Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 3
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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५०२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ अतीतअनागतवर्तमानचौवीसीजिन नाम, सं.,मागु., गद्य, मूपू., काल चउथ) ९९८३(+), १११५३(+), ११५०३(+), ११५१०(+), (अथ जम्बू) १३१७१-२७(+)
१०९२२(+), ११५२१-१(45), ११५०१, ११५०२ अद्वैतवादनिरासस्थल, सं., गद्य, मूपू., (नापि ब्रह) १२६७३-११ | अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षित, प्रा., गा. १६०४, प+ग, मूतपू., अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., १६अधिकार, श्लोक (नाणं पञ्चव) ९९३९(+), ११७९९५), ११७९३), १०००५-१, २७२, पद्य, मूपू., (जयश्रीरान) १२११३(१), १२१२२),
१०८०४, ११७९२, ११७९५ १२११२(+5), १२०५२, १२०५३, १२१११, १३१२८, १२०५१(5) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-चूर्णि, गणि जिनदास महत्तर, प्रा.,सं., गद्य, (२) अध्यात्मकल्पद्रुम-अध्यात्मकल्पलता टीका, उपा. रत्नचन्द्र, मूपू.. (कञ्चि पञ्च) ११७९४
सं., अध्याय १६, ग्रं.२४५९, वि. १६७४, गद्य, मूपू., (प्रणत (२) अनुयोगद्वारसूत्र-टीका, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, सं., सुरा) १२११२(45), १३१२८
ग्रं.५९००, गद्य, मूपू.. (सम्यक्सुरे) ११७९३(+), १०७५८ (२) अध्यात्मकल्पद्रुम-बालावबोध, मु. हंसरत्न, मागु., गद्य, मूपू., (२) अनुयोगद्वारसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, जै., (नाणं जाणवउ) (श्रीशङ्खश) १२१२२६), १२१११
११७९९(+) अध्यात्मतरङ्गिणी, मु. सोमदेव, सं., श्लोक ४०, पद्य, दि., (मा (२) अनुयोगद्वारसूत्र-बालावबोध, ऋ. मोहन ऋषि, मागु., गद्य, स्माधस) १०१०३)
मूपू., (प्रणिपत्य) ९९३९(4). ११७९२ (२) अध्यात्मतरङ्गिणी-टीका, मु. प्रभाचन्द्र, सं., गद्य, दि., (२) अनुयोगद्वारसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, जै., (ना० ज्ञान) (सदेव वो यु) १०१०३(+)
९९३९) अध्यात्मबिन्दुद्वात्रिंशिका, मु. हर्षवर्द्धन, सं., श्लोक ३२, पद्य, | अनुयोग विधि, मागु.,प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (मुहपत्ती) १११६७
मूपू., (ब्रूमः किम) १३०८२, १३१३५, १३२४९, १३२७१ अनेकान्तजयपताका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अध्याय ६, ग्रं.३७५०, (२) अध्यात्मबिन्दुद्वात्रिंशिका-स्वोपज्ञ व्याख्या, मु. हर्षवर्द्धन, सं., गद्य, (जयति विनिर)-<प्रतहीन.>
गद्य, मूपू., (वयमध्यात्म) १३०८२, १३१३५, १३२४९, १३२७१ (२) अनेकान्तजयपताका-टीका, आ. मुनिचन्द्रसूरि, सं., ग्रं.२०००, अध्यात्मसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., ७ प्रबंध, पद्य, मूपू., | वि. १२वी, गद्य, पू., (शेषमतिमतिश) १०१०२ (ऐन्द्रश्रे) १३२२५(५), १२०९५
अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्याय ९२, ग्रं.८९९, (२) अध्यात्मसार-शब्दभावोक्ति वृत्ति, पं. गम्भीरविजय, सं., वि. गद्य, मूपू., (तेणं कालेण) ९९८२), ११४०५(+), ११५११(+), १९५२, गद्य, मूपू.. (जयति वीरना) १३२२५(+)
११५१३(+), ११५१४-१(+), ११५१५५), ११५१६), ११५२०(+#), (२) अध्यात्मसार-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य) १२०९५ ९३३४, १०७८०, १०८००, १०८०३-१, १०८९४, १०९१८, अनन्तकीर्ति कथा, सं., गद्य, मूपू., (परदार विरत) १२४७०, १०९५४, १११४७-१, ११२९२, ११४९१-१, ११४९३, ११४९४, १२४८४-५(5)
११२६४, ११४९२, ११४९०० अनन्तचतुर्दशी पूजा, मु. ब्रह्मशान्तिदास, सं.,मागु., प+ग, दि., (२) अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टीका, सं., गद्य, मूपू., (-) १०७८० (आह्वयामि) ९३४७-१२
(२) अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टीका , आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, अनर्घराघव, कवि मुरारि, सं., ७ अंक, पद्य, (निष्प्रत्य)
मूपू., (अथान्तकृतद) ११४९८-२१), ११४९९-२(+), १०४९८(45), <प्रतहीन.>
१०८००, ११०१२, ११५१७, ११५१८, ११४९०) (२) अनर्घराघव-टिप्पण, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., ग्रं.२४००, गद्य, | (२) अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.. (अन्तगड शब) पू., (परब्रह्म) १३५८७(4)
९९८२(+), ११५११(५), ११५१३६), ११५२०(+#), ११४९१-१, अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्याय ३३,
११४९२ ग्रं.१९२, प+ग, मूपू., (तेणं कालेण) ९९८३(+), १०१८३(+), (२) अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.. (ते कालने) १०९२२(+), १११५३(+), ११२४३(+), ११५००(+), ११५०३(+),
११४९४ ११५१०५), ११५१४-२(+), ११५२१-१(45), १०८०३-२, ११४९५, (२) अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य) ११४९६, ११४९७, ११५०१, ११५०२
११४९३ (२) अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र-टीका , आ. अभयदेवसूरि , सं., | अन्नपूर्णा स्तोत्र, शङ्कराचार्य, सं., श्लोक ९, पद्य, वै.,
वि. १२वी, गद्य, मूपू., (अथानुत्तरौ) १०१८३(+), ११४९८-३(+). (नित्यानन्द) ९५३७-१०७) ११४९९-३(+), ११५००+)
अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, (२) अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (ते सं., श्लोक ३२, पद्य, मूपू., (अनन्तविज्ञ) १२८५४(+), १०३९४,
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