Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 3
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३
४६५ १३४६१. शतार्थ सह विवरण, संपूर्ण, वि. १९५४, श्रेष्ठ, पृ. १०५, जैदेना., प्र.वि. हिस्सा-श्लो.१; टीका-सूत्र-१०६विव..,
(२५.५४१२, ९४२४-३२). योगशास्त्र-हिस्सा परिग्रहारम्भ श्लोक, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः परिग्रहारम्भमग्ना; अंतिः
परमीश्वरीकर्तुमीश्वर. योगशास्त्र-हिस्सा परिग्रहारम्भ श्लोक का शतार्थ विवरण, गणि मानसागर, सं., गद्य, वि. १७वी, आदिः (१) प्रणम्य
परमप्रीत्या (२) हंभारम्भेगोरितिनाम; अंतिः (१)कथमिति सम्भवेव्ययः (२)शतार्थीमिमाममलाम्. १३४६२. शतार्थ सह विवरण, संपूर्ण, वि. १९५४, श्रेष्ठ, पृ. ८७, जैदेना., ले.स्थल. पाटडी, प्र.वि. हिस्सा-श्लो.१; टीका-सूत्र
१०६विव.., (२५४१२, ११४२४-२९). योगशास्त्र-हिस्सा परिग्रहारम्भ श्लोक, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः परिग्रहारम्भमग्ना; अंतिः
परमीश्वरीकर्तुमीश्वर. योगशास्त्र-हिस्सा परिग्रहारम्भ श्लोक का शतार्थ विवरण, गणि मानसागर, सं., गद्य, वि. १७वी, आदिः (१) प्रणम्य
परमप्रीत्या (२) हंभारम्भेगोरितिनाम; अंतिः (१)कथमिति सम्भवेव्ययः (२)शतार्थीमिमाममलाम्. १३४६४. विदग्धमुखमण्डन, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.- त्रिविक्रम, प्र.वि. ४ परिच्छेद, श्लो.२७२, पदच्छेद
सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-प्रारंभिक पत्र, (२७४११.५, १३४५२-५४). विदग्धमुखमण्डन काव्य, आ. धर्मदाससूरि, सं., पद्य, आदिः सिद्धौषधानि भवदुःख; अंति: मेकान्त मदनोत्तरम्. १३४६५. विदुग्धमुखमण्डन काव्य, पूर्ण, वि. १७४९, मध्यम, पृ. १३-१(११)=१२, जैदेना., ले.स्थल. सांगानेर, ले.- मु. जससागर,
पठ.- मु. युक्तिसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ४ परिच्छेद, श्लो.२६१, (२६४११, १३-१४४४१-४७). विदग्धमुखमण्डन काव्य, आ. धर्मदाससूरि, सं., पद्य, आदिः सिद्धौषधानि भवदुःख; अंतिः मेकान्त मदनोत्तरम्. १३४६६. विदग्धमुखमण्डन, संपूर्ण, वि. १७५०, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. कृष्णगढ, ले.- मु. महिमासागर (गुरु आ.
अजीतसागर), पठ.- मु. मयगलसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ४ परिच्छेद, श्लो.२७३, टिप्पण युक्त विशेष पाठ,
पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत, (२७४११, १२-१४४४३-५०). विदग्धमुखमण्डन काव्य, आ. धर्मदाससूरि, सं., पद्य, आदिः सिद्धौषधानि भवदुःख; अंतिः मेकान्त मदनोत्तरम्. १३४७०. भुवनदीपक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना.,प्र.वि. मूल-श्लो.१७४., (२५४११.५, १३४३१
३७). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदिः सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभसूरिभिः.
भुवनदीपक-बालावबोध* , मागु., गद्य, आदिः सरस्वती सम्बन्धीयो; अंतिः इस्यै नामें आचार्यै. १३४७१. भुवनदीपक सह टबार्थ व दिनमान काल, संपूर्ण, वि. १८१५, श्रेष्ठ, पृ. १४, पे. २, जैदेना., (२६.५४११.५, ६४४०-४५). पे.१. पे. नाम. भुवनदीपक सह टबार्थ @, पृ. १अ-१४आ
भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदिः सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभसूरिभिः.
भुवनदीपक-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः सरस्वती सम्बन्धीओ; अंतिः ईस्ये आचार्य कह्यो., पे.वि. मूल-श्लो.१८०. पे.२. दिनमान काल, मागु., गद्य, (पृ. १४आ-१४आ), आदिः पहिलो आपणी देहनी; अंति: घडी निर्णय जाणवी. १३४७२. भुवनदीपक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८००, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., ले.स्थल. जालोरगढ, ले.- मु. गणपतसागर (गुरु
गणि भाणसागर); मु. जीवणसागर (गुरु गणि भाणसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-श्लो.२१३., टिप्पण युक्त विशेष
पाठ, (२६.५४११.५, ५-६४३६-४०). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदिः सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभसूरिभिः.
भुवनदीपक-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः सरस्वती सम्बन्धीओ; अंतिः ईस्ये आचार्य कह्यो. १३४७४. पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १८९९, श्रेष्ठ, पृ.६, जैदेना., ले.स्थल. बनेडाराजपुर, ले.- ऋ. रामनाथ, (२७४११.५,
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