Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 3
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१३४४३. जैनमेघदूत सह टीका, संपूर्ण, वि. १९६७, श्रेष्ठ, पृ. ५८, जैदेना., प्र. वि. मूल- सर्ग-४; टीका - अध्याय- ४., (२७Xx११.५, १५४५०-५७).
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जैनमेघदूत, आ. मेरुतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः कश्चित्कान्तामविषय; अंतिः सौख्यलक्ष्मीम्.
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जैनमेघदूत वृत्ति, आ. शीलरत्नसूरि सं., गद्य वि. १४९१ आदि आदी यः समकालमेव अंतिः त्यनुप्राससङ्कराश्च. १३४४५.” रघुवंश सह टीका - सर्ग १-७, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७९, जैदेना., ले. स्थल पाटण, ले. पं. नायकविजय (गुरु
-
पं. जयविजय ), प्र. वि. त्रिपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें प्रारंभ में ज्यादा, बाद में क्वचित (२७४११.५ १-४४३४-४६). रघुवंश, कालिदास, सं., पद्य, आदि: वागर्थाविव सम्पृक्तौ; अंति:
रघुवंश - टीका, मु. धर्ममेरु, सं., गद्य, वि. १७४८, आदि: वागर्थेति कवीनां; अंति:
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१३४४९. युक्तिप्रबोध सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९७१, श्रेष्ठ, पृ. ७५, जैदेना., प्र. वि. मूल - गा. २५., ( २७.५x१२.५, १५४६०-६६).
युक्तिप्रबोध उपा. मेघविजय, प्रा., पद्य, आदि पणमिय वीरजिणिन्दं अंतिः सुहसिद्धिसंवसिआ
युक्तिप्रबोध-वृत्ति, उपा. मेघविजय, सं., गद्य, आदिः स्फुरच्चिदानन्दमया; अंति: (१) सुखसिद्धिसंवासिताः (२) श्रियै
नन्दतात्.
१३४५०.” आरम्भसिद्धिवृत्ति, संपूर्ण, वि. १५२९, श्रेष्ठ, पृ. ८८ - १ (६९* )= ८७, जैदेना., ले. स्थल. स्थंभतीर्थ, ले.- नाकर जोसी, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, संशोधित (२६.५४१०.५, १६-१७४५४-६३).
आरम्भसिद्धि-सुधीशृङ्गारवार्तिक, गणि हेमहंस, सं., गद्य, वि. १५१४, आदिः श्रीधर्मन्यायसम्यग्; अंतिः यतनीयं तत्वज्ञैः. १३४५१. कुवलयमाला कथा व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९६७, श्रेष्ठ, पृ. ७०, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. योधपुर, ले. - रामचन्द्र
लोडा, (२७१२, १५X४६-५३).
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पे. १. कुवलयमाला कथा, आ. रत्नप्रभसूरि, सं., पद्य, (पृ. १आ-६९आ), आदि आदित्यवर्णं तमसः अंतिः तटालंकारहार श्रियः, पे. वि. अध्याय- ४ नं.३८९४.
पे. २. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. ७०अ-७०अ), आदि: #; अंतिः #.
१३४५४. सज्जनचित्तवल्लभ काव्य सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., प्र. वि. मूल - श्लो. २५., (१३.५X१२,
१३X३४-४०).
सज्जनचित्तवल्लभ काव्य, मु. मल्लिषेण, सं., पद्य, आदि: नत्वा वीरजिनं; अंतिः संसार विच्छित्तये.
सज्जनचित्तवल्लभ काव्य-टीका, कवि नेतृसिंह, सं., गद्य, आदिः लब्धिमन्तं विशेषज्ञ; अंतिः सल्लोकसेवान्वितैः.
१३४५५.” विजयप्रशस्ति काव्य सह स्वोपज्ञवृत्ति, संपूर्ण, वि. १९६५, श्रेष्ठ, पृ. १८८, जैदेना., ले. वसतीराम जोसी, प्र. वि. मूल - सर्ग-२१., पदच्छेद सूचक लकीरें, (२७४१२, १५X४०-५५).
विजयप्रशस्ति महाकाव्य, गणि हेमविजय, सं., पद्य, आदिः श्रेयांसि वः सृजतु अंतिः कुर्वन् सतां मङ्गलम्.
विजयप्रशस्ति महाकाव्य - विजप्रदीपिका वृत्ति, मु. गुणविजय, सं., गद्य, वि. १६८८, आदिः स्वस्ति श्रीनाभि; अंतिः पार्श्व० प्रसिद्ध्यै
१३४५६.” सोमसौभाग्य काव्य, संपूर्ण, वि. १५३१, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., ले. स्थल. लालपुर, ले.- गोपाल, प्र. वि. सर्ग- १०, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न प्रारंभिक पत्र (२६.५४११, १५४५०-५६),
सोमसौभाग्यकाव्य, मु. प्रतिष्ठासोम, सं., पद्य, वि. १५२४, आदिः श्रीनाभिभूः स भवतां अंतिः भूषणगणं च निर्ममे.
१३४५८.” सप्तसङ्घान काव्य, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना, प्र. वि. सर्ग-९, ग्रं. ४४०, संशोधित - प्रारंभिक पत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६४११, १७-२०X३६-४९).
सप्तसन्धान महाकाव्य, उपा. मेघविजय, सं., पद्य वि. १७६०, आदि श्रीनामिजन्मान्वयपद अंतिः नित्यमुन्नीयमानम्.
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१३४५९. सन्देह समुच्चय, संपूर्ण वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना. प्र. वि. श्लो. ४१० (२७४११.५, १३-१५४४४-५९).
सन्देह समुच्चय, आ. ज्ञानकलशसूरि, सं., पद्य, आदिः सभूतभावप्रविकाशनैक: अंतिः वाच्यमानो विचक्षणः

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