Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 3
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 498
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ पाक्षिक स्तुति-स्नातस्या, आ. बालचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्. पाक्षिक स्तुति-टबार्थ, मागु, गद्य, आदि जे भगवन्त केहवो छेई अंतिः क० सिद्धिप्रति पे. वि. मूल-श्लो. ४. १३६९७. भयहर स्तोत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., (२५.५x११, ११४३-५०). नमिऊण स्तोत्र- टीका, सं., गद्य, आदि: सिद्धार्थपार्थिवसुतं; अंतिः मूलमन्त्रेण पूजनीय. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३७०१. आषाढभूति चौपाई, संपूर्ण, वि. १७५९, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. पद्मावतीनगर, ले. पं. विचारसागर (गुरु पण्डित जसवन्तसागर), पठ. - गणि युक्तिसागर (गुरु पं. विचारसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ढाल - १६, गा.२२०, (२६×१०.५, १५X३१-३८). आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु पद्य वि. १७२४, आदि सकल ऋद्धि समृद्धिकर अंतिः होजो परम कल्याणो रे. १३७०५. नवस्मरण व लघुशान्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १४, पे. २, जैदेना., ( २४x१०.५, १२४३२-३८). पे. १. नवस्मरण, मु. मिन्न मित्र कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, (पृ. १अ १३आ), आदि नमो अरिहन्तार्ण० हवइ: अंतिः मोक्षं प्रतिपद्यन्ते., पे.वि. ९ स्मरण. नवकारमंत्र व उवसग्गहरं का प्रतिकपाठ मात्र एवं तिजयपहुत्त सूत्र नहीं हैं. पे. २. लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि सं., पद्य, (प्र. १३आ- १४आ), आदि शान्तिं शान्ति: अंतिः जैनं जयति शासनम् .. , पे.वि. श्लो. १७+२. ४८१ १३७०६. नवस्मरण, प्रतिअपूर्ण, वि. १७२६, मध्यम, पृ. ९-१(१) ८, जैदेना ले. मु. लावण्यविमल (गुरु पण्डित दानविमल), प्र. वि. ९ स्मरण, पू. वि. नवकार, उवसग्गहरं, तिजयपहुत्त एवं कल्याणमंदिर नही हैं., ( २५.५x१०.५, १३×३९-४७). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, आदि:-: अंति जैनं जयति शासनम्. १३७०७. सप्तस्मरण सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६८४, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., ले. स्थल. उग्रसेनपुरनगर, ले.- मु. उदयहर्ष (गुरु गणि हीरराज, खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. मूल-७ स्मरण., ( २६×११, २३-२४४५७-६५). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदिः अजिअं जिअ सव्वभयं; अंतिः भवे पास जिणचन्द.. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय-वृत्ति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १३६५, आदि: अजितशान्ति जिनाधिपयो; अंतिः ख्यातोमुनीनांविभुः. १३७०८. सप्तस्मरण सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १६९२ श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना. ले. वल्लभ, प्र. वि. मूल-७ स्मरण.. (२६.५००११, १५९५२-५७) (4) ; सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि अजिअं जिअ सव्यभयं अंतिः भवे पास जिणचन्द सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय- बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः (१) अजितं अजितनामा बीजउ (२) नमस्कृत्याजितं शान्त; अंतिः पार्श्वनाथ जिनचन्द. १३७०९. सप्तस्मरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६३१, मध्यम, पृ. २४, जैदेना., ले. पं. रत्ना, पठ- श्राविका कुवरां, प्र. वि. मूल-७ स्मरण. प्र. पु. सर्व ग्रं. १२६५. दशा वि. विवर्ण पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२७४११, ११०४०४५) सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि उल्लासिक्कमनखनिग्गय अंतिः भवे पास जिणचन्द सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय बालावबोध, मागु, गद्य आदि कवि श्रीजिनवल्लभसूरि अंतिः पार्श्वनाथ जिनचन्द १३७१०.” जिनरत्नस्तोत्रप्रकाश - १ प्रस्ताव, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., प्र. वि. प्रथम प्रस्तावे २१ स्तोत्र., पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत प्रथम पत्र (२६.५०११, १७०४५४-६१)जिनस्तोत्ररत्नकोशः, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयश्रियं ज्ञानतप; अंति: For Private And Personal Use Only १३७११.” प्रकरण स्तोत्र सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. ११, जैदेना, दशा वि. विवर्ण- पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२०५११.५. १७४५५-६३).

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