Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 3
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 477
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रमेयरत्नकोष, आ. चन्द्रप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नत्वा ज्ञानतमिस्र; अंतिः प्रमाणानि जैमिनेः. १३३७५." शब्दरत्नाकर, संपूर्ण, वि. १७४८, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., ले.स्थल. बीकानेर, ले.- पं. नेमिसुन्दर (गुरु आ. जिनचन्द्रसूरि), प्र.वि. ६ काण्ड, पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, (२६४११, १६x४७-५१). शब्दरत्नाकर, उपा. साधुसुन्दर, सं., पद्य, आदिः ध्यात्वार्हतो गुरुन्; अंतिः मङ्गले शं च सं सुखे. १३३७७. काव्यकल्पलता स्वोपज्ञवृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८३, जैदेना., प्र.वि. एल. डी. इंडलोजी-अहमदाबाद से प्रकाशित पुस्तक में भी इतना ही भाग उपलब्ध है.. पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. शब्दसिद्धिप्रतान के प्रारंभिक कुछ भाग तक है., (२५.५४११, १५४४८-५५). कविशिक्षा-काव्यकल्पलतावृत्ति पर स्वोपज्ञ परिमल वृत्ति, यति अमरचन्द्र, सं., गद्य, वि. १३वी, आदिः श्रीशारदां हृदि; अंतिः१३३८०." वग्भट्टालङ्कार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले.- मु. जससागर, प्र.वि. ५परिच्छेद; प्र.पु.-मूल-ग्रं. २८९, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत, (२६४११, ११४२७-३४). वाग्भटालङ्कार, जैनकवि वाग्भट्ट , सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः श्रियं दिशतु वो देवः; अंतिः सारस्वतध्यायिनः. १३३८१.” वग्भट्टालङ्कार-परिच्छेद १-४, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.- पाठक ज्ञानसमुद्र (गुरु पं. हर्षविशाल, खरतरगच्छ),प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, (२६४११, १५४४१-४४). वाग्भटालङ्कार, जैनकवि वाग्भट्ट , सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः श्रियं दिशतु वो देवः; अंति:१३३८२." वग्भटालङ्कार सह टीका, संपूर्ण, वि. १७०३, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., ले.स्थल. सरवाड, ले.- गणि जससागर (गुरु आ. कल्याणसागरसूरि), पठ.- मु. युक्तिसागर,प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. मूल-५परिच्छेद., संशोधित, (२६४११, १५४४४ ५३). वाग्भटालङ्कार, जैनकवि वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः श्रियं दिशतु वो देवः; अंतिः सारस्वताध्यायिनः. वाग्भटालङ्कार-टीका , गणि सिंहदेव, सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानसन्तति; अंतिः इति सारस्वताध्यायिनः. १३३८३." विदग्धमुखमण्डन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. प्रत १३३८३ और १३३८४ की कृती एक ही है। कर्ता नाम अलग है। ४ परिच्छेद, श्लो.२७१, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, ११-१९४४७-४८). विदग्धमुखमण्डन काव्य, आ. धर्मदाससूरि, सं., पद्य, आदिः सिद्धौषधानि भवदुःख; अंति: मेकान्त मदनोत्तरम्. १३३८४." विदग्धमुखमण्डन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-प्रारंभिक पत्र, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. परिच्छेद-३ गा.३४ तक लिखा हैं., (२६४११, ११ १३४३९-४५). विदग्धमुखमण्डन काव्य, आ. धर्मदाससूरि, सं., पद्य, आदिः सिद्धौषधानि भवदुःख; अंति:१३३८६. वज्जालग्गं, संपूर्ण, वि. १५२६, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. ७५०., (२७४११.५, १५४५६-५८). वज्जालग्ग, कवि जयवल्लभ, प्रा., पद्य, आदिः विविह कवि विरइयाओ; अंतिः भणेरुत्नाकेणकज्जे. १३३८७." प्राकृत छन्दकोष, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. उग्रसेनकोट, ले.- पं. देवकीर्ति, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५४११, ८-११४२८-२९). पे.-१. प्राकृत छन्दकोश, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-८आ), आदिः आजोयणट्ठियाणं सुरनर; अंतिः इहछन्दकोसम्मि., पे.वि. गा.८०. पे..२. प्राकृत छन्दकोश, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ८आ-१०अ), आदिः गामाणामाजाई वयसं; अंतिः For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608