Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 3
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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३९७
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३
पे.५. विरोधनिरासस्थल, सं., गद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदिः ननु सदसदादिविरोधि; अंतिः कृतं विस्तारेण. पे:६. महेश्वरव्यवस्थापकस्थल, सं., गद्य, (पृ. ६आ-९अ), आदिः क्षित्यादिकं बुद्धि; अंतिः कथञ्चिदपि सिद्धिः. पे-७. सर्वज्ञव्यवस्थापकस्थल , सं., गद्य, (पृ. ९अ-११अ), आदिः अत्र जैमिनीयाः प्राह; अंतिः प्रमाण सर्वज्ञेति. पे:८. आत्मव्यवस्थापकस्थल, सं., गद्य, (पृ. ११अ-१४आ), आदिः अत्र चार्वाकश्चर्वय; अंतिः अभिलाषान्तराभावात्. पे:९. सर्वज्ञव्यवस्थापकस्थल, सं., गद्य, (पृ. १४आ-१५अ), आदि: नन्वशेषविषयविशदावभास; अंतिः विषयत्वविशेषज्ञस्य. पे..१०. इश्वरजगत्कर्तृकोस्थापनस्थल, सं., गद्य, (पृ. १५अ-१६आ), आदिः तन्वादिकं बुद्धिमत्; अंति: महेश्वरस्याशेषज्ञत्व. पे.११. अद्वैतवादनिरासस्थल, सं., गद्य, (पृ. १६आ-१७आ), आदिः नापि ब्रह्मणस्तस्या; अंतिः विचारणां प्राञ्चति. पे.-१२. सर्वार्थनिरासस्थल, सं., गद्य, (पृ. १७आ-१९अ), आदिः यः कार्यसिद्धि; अंतिः दिग्मात्रवादस्थलं. पे.-१३. सामग्रीभङ्गवाद, सं., गद्य, (पृ. १९अ-१९अ), आदिः अथ कैश्चित्सामग्री; अंतिः एवेति विरम्यते. पे.-१४. प्रत्यक्षानुमानप्रमाणनिरुपण वादस्थल, सं., गद्य, (पृ. १९अ-२१अ), आदिः ननु प्रत्यक्ष व्यति; अंतिः भासिनः
परोक्षेतेति. पे.-१५. भ्रमज्ञाननिरुपण वादस्थल, सं., गद्य, (पृ. २१अ-२१आ), आदिः शुक्तिकायाः रजतज्ञान; अंतिः
स्वरुपमेवोपपन्नमिति. पे-१६. साङ्ख्यमतनिरासन वादस्थल, सं., गद्य, (पृ. २१आ-२४अ), आदिः क्षित्यादिकं बुद्धि; अंतिः षङ्गात्तत्प्रयुक्तं. पे.-१७. चाक्षुषप्राप्यकारित्व वादस्थल, सं., गद्य, (पृ. २४अ-२५अ), आदि: ननु प्राप्यकारि; अंतिः प्राप्यकारित्वमिति. पे.-१८. शाब्दबोध वादस्थल, सं., गद्य, (पृ. २५अ-२५आ), आदिः ननु शब्द स्वग्राहकेण; अंतिः कारित्वं श्रोत्रस्य. पे.-१९. परमब्रह्मोत्थापनस्थल, आ. भुवनसुन्दरसूरि, सं., गद्य, (पृ. २५आ-२९आ), आदिः श्रीवीरजिनमानम्य; अंतिः
विलुठिष्चति तत्पदोः. १२६७५. परमाणु भाङ्गा, भाङ्गाकरण विधि व प्रस्तार विधि सह यन्त्र व दृष्टप्रतर, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ४,
जैदेना.,प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, (२६.५४१२४). पे.१. परमाणुपरिणाम भाङ्गा कोष्टक, प्रा.,मागु., पद्य, (पृ. १अ-३अ), आदिः परमाणु पोगालेण भन्ते; अंतिः #. पे..२.पे. नाम. भाङ्गाकरण विधि सह यन्त्र, पृ. ३आ-३आ
भाङ्गाकरण विधि, सं.,प्रा., पद्य, आदि: गन्धेषु गुणं कावर्णा; अंतिः स्कन्धविषयेपि.
भाङ्गाकरणविधि-यन्त्र, सं., कोष्टक, आदिः#; अंति: #. पे..३. पे. नाम. प्रस्तार विधि सह यन्त्र, पृ. ४अ-५आ।
प्रस्तार विधि, सं.,मागु., पद्य, आदिः वर्णीन् क्रमेण गन्धा; अंतिः लक्षण निमित्तम्.
प्रस्तार विधि-यन्त्र, सं., कोष्टक, आदि:#; अंतिः #. पे.-४. दृष्टलोकप्रतर, सं.,मागु., यंत्र, (पृ. ६अ-६अ), आदि: #; अंतिः#. १२६७६. षडशीती कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२२, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, ले.- नागरदास, प्र.वि.
मूल-गा.८६., (२६.५४१२, ३४२७-३१). षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जिय; अंति: देविन्दसूरीहिं.
षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करि जिन; अंतिः आचार्य ग्यान हेतु. १२६७७. ज्ञानपञ्चमी, मौनएकादशी कथा व दीवाली कल्प, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल.
नाडुलनगरे, ले.- मु. हेतसागर, (२६४१२, १४-१६४३७-४३). पे.-१. पे. नाम. कार्तिकसौभाग्यपञ्चमीमाहात्म्यविषये वरदत्तगुणमञ्जरी कथानक, पृ. १अ-५अ वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, गणि कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदिः श्रीमत्पार्श्व; अंतिः तैरेव मेडतानगरे.,
पे.वि. श्लो.१५२.
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