Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 3
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 447
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. बृहत्सङ्ग्रहणी-बालावबोध*, मागु., गद्य, आदिः ॐ नत्वा अरिहन्तादि; अंतिः लगि एह चिरंजीवउ. १३०८१. भाव प्रकरण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३०., त्रिपाठ, (२९.५४१४, १-३४५२ ७५). भाव प्रकरण, गणि विजयविमल, प्रा., पद्य, वि. १६२३, आदिः आणंदभरियनयणो आणंद; अंतिः रम्माओ पुव्वगंथाओ. भाव प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, गणि विजयविमल, सं., गद्य, वि. १६२३, आदिः नत्वा श्रीजिनशम्भवमा; अंतिः विहितेयं विजयविमलेन. १३०८२. अध्यात्मबिन्दु सह टीका-प्रथम द्वात्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १९४६, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., ले.- ऋ. बालगिर बावा, प्र.वि. मूल-श्लो.३२. प्रथम द्वात्रिंशिका., (३१x१४, १२४३५-३७). अध्यात्मबिन्दुद्वात्रिंशिका, मु. हर्षवर्द्धन, सं., पद्य, आदिः ब्रूमः किमध्यात्म; अंतिः आत्मस्वरुपः. अध्यात्मबिन्दुद्वात्रिंशिका-स्वोपज्ञ व्याख्या , मु. हर्षवर्द्धन, सं., गद्य, आदिः (१) वयमध्यात्ममहत्वं (२) अनन्तविज्ञानविभूति; अंतिः ज्ञानं न सिद्ध्येत. १३०८३. सर्वज्ञशतकसंशयनिराकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२९.५४१४, १४४३७-३९). सर्वज्ञशतकसंशयनिराकरण, सं., गद्य, आदिः भट्टारक विजयसेनसूरि; अंतिः हेतु प्रतीकाराभावात्. १३०८४. पौषदसमी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७७, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. जीर्णदुर्गनगरे, ले.- गणि कुंअरकुशल, पठ.- मु. वीनयकुशल (गुरु गणि कुंअरकुशल),प्र.ले.पु. मध्यम, (२९.५४१४, ७४३२-३५). पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकाचार्य, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य पार्श्वनाथ; अंतिः सुखं जनः प्राप्नोति. पौषदशमीपर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने पार्श; अंतिः मोक्षनां सूख पामेइं. १३०८५." ऋषभजिनशतक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, देना., ले.स्थल. अकब्बरपुर, ले.- गणि हेमविजय, प्र.वि. ४स्तव, श्लो.२४२, संशोधित, (२९.५४१४, १४४३८). आदिजिन शतक , कवि कमलविजय, आ. विजयसेनसूरि, सं., पद्य, वि. १६५६, आदिः स्वस्ति श्रीमति यत्र; अंतिः अगमत् शतकं सदर्थम्. १३०८७. सारस्वतोल्लासकाव्य, गुरुशष्टिशतक व पर्वविकृप्तिशतक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, पे. ३, जैदेना., (२९.५४१४.५, १४४३६-३९). पे.१. सारस्वतोल्लासकाव्य, आ. रत्नमण्डनसूरि, सं., पद्य, (पृ. १अ-७आ), आदिः कश्चिज्जनो नोलज्जित; अंतिः __अधिगम्य कविप्रवेका., पे.वि. श्लो.१५४. पे.२. गुरुगौरव स्तोत्र, आ. रत्नमण्डनसूरि, सं., पद्य, (पृ. ७आ-१५अ), आदि: लक्ष्मीलतार्गलसोग ; अंतिः वादे व्यधादिदं., पे.वि. श्लो.१६१. पे..३. पर्वविकृप्तिशतक, वा. बूटारत्न, सं., पद्य, वि. १५०४, (पृ. १५अ-२३आ), आदिः श्रीसान्द्रश्चन्द्र; अंतिः मुखे मडंनं पंडितानां., पे.वि. श्लो.१०२. १३०८८." रत्नपालनृपकथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना.,प्र.वि. श्लो.८३१, पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, (२९.५४१४, १४४३६-३८). रत्नपालनृप कथा, गणि सोममण्डन, सं., पद्य, वि. १५वी, आदिः श्रेयः श्रीसद्मने; अंति: गणाधीशा वः शिवसम्पदे. १३०८९. सिद्धपञ्चासिका सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९६७, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.- मेघराज व्यास, प्र.वि. मूल-गा.५०., पंचपाठ, (२९.५४१४, ३-४४३७-३९). सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सिद्धत्थसुअं; अंतिः देविन्दसूरिहिं. सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः सिद्धाः प्रतिष्टिता; अंतिः श्रीदेवेन्द्रसूरिभिः. For Private And Personal Use Only

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