Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 3
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 442
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (+) हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४२५ भगवतीसूत्र अभयदेवीय टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: लोगस्सणम्भन्तेएगम्मि; अंतिः ते अणन्ता असङ्खा वा. निगोदषट्त्रिंशिका-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि: इम लोकाकाश प्रदेशनें; अंतिः उद्देशे ए अधीकार छे. १३०१३. श्राद्धविधिप्रकरणवृत्ति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४९, श्रेष्ठ, पृ. ३४०, जैदेना., ले. स्थल मकसूदावाद, ले. मु. मतिकुमार (गुरु पाठक विद्याधीर, बृहत्खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टीका-६ प्रकाश. प्र. पु. - सर्वग्रं. ६७६१., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें (२७.५०१२ ७०४६-४९). श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका, आ. रत्नशेखरसूरि सं., गद्य, वि. १५०६, आदि: अर्हत्सिद्धगणी अति: www.kobatirth.org: , " " जयदायिनी कृतिनाम्. श्राद्धविधि प्रकरण-विधिकौमुदि टीका का टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीअरिहन्त सिद्ध: अंतिः पुण्यवन्ताने होज्यो. १३०१५. कर्मग्रन्थ ६ सह वृत्ति, संपूर्ण वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. ४८, जैदेना, प्र. वि. टीका ग्रं. ३७८०, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२८x११.५. १९-२०४६५-७०). सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ. " सप्ततिका कर्मग्रन्थ- टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं. गद्य, आदि अशेषकर्माशतमः समूह अंतिः धर्मं परममङ्गलम्. १३०१६. कालसत्तरि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४९, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले. स्थल. भावनगर, ले. कृष्णजी वेलजी दवे, प्र. वि. मूल-गा. ७५. (२८४११.५, ४४३४-३६) कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि प्रा. पद्य, आदि देविन्दणयं अंतिः कालसरूवं किमवि भणियं · कालसप्ततिका टवार्थ मागु, गद्य, आदिः इन्द्र महाराय पण अंतिः सरुप कांइक ए कहिउ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३०१७. श्राद्धआलोचना विधि, संपूर्ण वि. १८७१ मध्यम पृ. ७ जैवेना. ले. स्थल वढवाण, ले. मु. पद्मविजय ( तपगच्छ), " " प्र.ले.पु. मध्यम, (२७.५४१२, १२-१३३७-४१). श्रावक आलोयणा विधि, मागु., पद्य, आदिः अष्टविधि विज्ञान; अंतिः निन्दा० आलोयणा पोहति. १३०१९. देववन्दन विधि, संपूर्ण, वि. १९०८, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. स्थल. बजांणानगर, ले. जेष्टीराम प्र.ले.पु. मध्यम, (२७.५४१२.५, १३-१६४३८-४४). " देववन्दन विधि, मु. हुकमचन्द, मागु., पद्य, आदिः सर्वारथसिध वीमानथी; अंतिः ते लहसे बहु सुषमान. १३०२०. निगोदषट्त्रिंशिका का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र. वि. द्विपाठ, (२७.५x११.५, १३-१४४३७ 89). निगोदषट्त्रिंशिका-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि: लोकचउदरजवात्मक तेहना; अंतिः असङ्ख्याति जाणवि. १३०२१. दिगम्बरमत विचार, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना, ( २८.५५११.५ १३४४२-४७). दिगम्बरमत विचार, आ. महेन्द्रसूरि सं., गद्य, आदिः तत्र च परिधापनिका अंतिः शूद्रादपिनदुष्यति. १३०२२. सिद्धपञ्चाशिका सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना. प्र. वि. मूल-गा. ५०, ( २८.५४११, १३४५०-५२). सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सिद्धत्थसुअं; अंतिः देविन्दसूरिहिं. सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः सिद्धत्थ० सिद्धाः; अंतिः सिद्धप्राभृतावनीयः. १३०२३. कालसत्तरि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना. प्र. वि. गा. ७४ (२९x१२, १०४३७-४०). कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदिः देविन्दणयं; अंतिः कालसरूवं किमवि भणियं. १३०२४. सिद्धान्तविचारछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र. वि. ३६अधिकार, (२९x१२, १४-१५X४६-५१). सिद्धान्तषट्त्रिंशिका, सं., प्रा., मागु., प+ग, आदिः प्रथमं तावत्; अंतिः संसारिणो हुन्ति. १३०२५." श्रुत विचार, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४७, जैदेना., प्र. वि. प्र. पु. ग्रं. १७५०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२९.५४१०.५, १३४४६ ४९). For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608