Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 15
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 448
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कातंत्रव्याकरण, आ. शर्ववर्माचार्य, सं. पण, आदिः सिद्धो वर्णसमाम्नायः अंति: (-), प्रतिपूर्ण , ६२६०७ (१) प्रदेशीराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५x११.५, १७x४५-४८). प्रदेशीराजा चौपाई, मा.गु, पद्य, आदि: रावप्रदेसी मुकियो, अंति: उच्चकुल अवतार. ६२६११. प्राकृत छंदकोश सह टीका, अपूर्ण, वि. १७२७, फाल्गुन कृष्ण, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. २२-३ (१ से ३)=१९, ले. स्थल, रूपनगर, प्रले. संतोषी पांडे, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४.५४११.५, ११४३८-४२). " प्राकृत छंदकोश, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्म, आदि: (-): अंति: रयणसेहर० सुहं देवो, गाथा-२७, (पू.वि. प्रारंभ के 7 " ४३३ पत्र नहीं हैं., गाथा- २ अपूर्ण से है.) प्राकृत छंदकोश - टीका, आ. अमरकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५०, आदि: (-); अंतिः लिखन्निजहस्त पुस्तके, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. ६२६१२. (+४) नवाणुं प्रकारनी पूजा, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ८. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२३.५४१२, १२४३८). ९९ प्रकारी पूजा, वा. अमरसागर, मा.गु., प+ग, आदि: स्वस्ति श्रीदायक, अंति: वंछित फल पाईजे. ६२६१४. (+) रामविनोद व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२८, फाल्गुन शुक्ल, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. १०१, कुल पे. २, ले.स्थल. चुरू, प्रले. गिरधारी ब्राह्मण; पठ. मु. हीरालाल ऋषि (लौंकागच्छ); मु. विनयचंद्रजी ऋषि (स्थानकवासी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२९x१२, १२X३९). १. पे. नाम. रामविनोद, पृ. १आ - १०१अ, संपूर्ण. पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सिद्धबुद्धदाता सलहीय; अंति: जां लगि मेरु दिणंद, समुद्देश- ७, गाथा - १६१७, ग्रं. ३३२५. २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १०१अ - १०१आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह, पुहि. प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६२६१९. (+) पथ्यापथ्य, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (२७४१२.५, ११४४०). पथ्यापथ्य, उपा. रामऋद्धिसार, पुष्टि, पद्म, आदि आदीश्वर जिणंद को अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाधा ४४४ तक लिखा है.) ६२६२४ (४) कल्पसूत्र, संपूर्ण वि. १९०७, माघ शु. १, रविवार, मध्यम, पृ. १५४+२ (३५, ४८) = १५६, ले. स्थल. विक्रमपुर, प्र. मु. कनकमाणिक्य, पठ. सिवलाल ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे (२४.५४१२.५, ८x१७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं अंति: उवदंसे ति बेमि, व्याख्यान ९. ६२६२५ (+) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति सह टबार्ध, अपूर्ण, वि. १८८१ कार्तिक कृष्ण, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. २९९-१६२ (१ से १३१, १४६ से १६१,१७५,१७९ से १८६, १८८ से १८९,२२३ से २२५, २४३) = १३७, ले. स्थल. हुरडा, प्रले. पं. जसकुशल; पठ मु. खुबकुशल (गुरु पं. जसकुशल), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, कुल ग्रं. १७००० अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४X१२.५, ७X३७). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, वक्षस्कार- ७, ग्रं. ५१४६, (पू. वि. वक्षस्कार गंगासिन्धु नदी वर्णन से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) For Private and Personal Use Only जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जंबूस्वामी प्रते कहे, ग्रं. १२०००. ६२६२६. नंदीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०९, वैशाख शुक्ल, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ८९, ले. स्थल. महुवा, प्रले. श्राव. नानजी उकरडा दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ दे (२४.५x१३, ३-१९४३४-३७). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: २० तहा वीसणुं नामाई, सूत्र-५७, गाथा- ७००.

Loading...

Page Navigation
1 ... 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612