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कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची
जैन हस्तलिखित साहित्य (खंड-१.१.१५) KAILASA ŚRUTASAGARA GRANTHASUCI
Descriptive Catalogue of Jain Manuscripts (volm.115
घाममा अण बापावादयामान बदरिमाणासिवमा
वादमखराalan २णानामाझिाडि
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानामदिर
WERSIOमादानाकभिता WiPORNORIEमाका यातासारमतारनपान सिबायादार
मापन
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आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न १५
कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची
(१.१.१५)
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, ,कोबा तीर्थ संचालित
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर
देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागार में संगृहीत हस्तलिखित ग्रंथों की विस्तृत सूची
• आशीर्वाद व प्रेरणा आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी
Sangee
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wyd a fren
प्रकाशक
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ, गांधीनगर वीर सं. २५३९ ० वि.सं. २०६९ ० ई. २०१३
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आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न १५
Ācārya Śhri Kailāsasāgarasūri Smrti Granthasūci - Ratna 15
कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची : १.१.१५
Kailāsa Śrutasāgara Granthasūci: 1.1.15
०ग्रंथसूची निर्देशन समिति ०
मुकेश एन. शाह (ट्रस्टी)
श्रीपाल आर. शाह (ट्रस्टी) रजनीभाई एन. शाह (कारोबारी सदस्य)
कनुभाई एल. शाह (नियामक)
० संपादक मंडल ०
पं. नवीनभाई वी. जैन पं. संजयकुमार आर. झा
०सह संपादक ०
०संपादन सहयोग ०
पं. रामप्रकाश झा
डॉ. हेमंत कुमार पं. अरुण कुमार झा
परबत ठाकोर ब्रिजेश पटेल
संजय गुर्जर दिलावरसिंह विहोल
० कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग
केतन डी. शाह
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आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची रत्न १५
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर स्थित
देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ
हस्तलिखितग्रंथानां विस्तृत सूची
विभाग - १ : हस्तप्रत सूची
-
वर्ग १: जैन साहित्य
खंड - १५
• आशीर्वाद व प्रेरणा आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी
Descriptive Catalogue of Manuscripts
Preserved in
Devarddhigani Kṣamāśramaṇa Hastaprata Bhāṇḍāgāra,
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under the auspices of
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Section - I : Manuscripts' Catalogue Class - I : Jain Literature
Volume - 15
Blessings & Inspiration
Acharya Shri Padmasagarsurishwarji
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Publisher
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth, Gandhinagar, (Guj.) India
2013
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Acharya Shri Kailasasagarsuri Memorial Catalogue Series - 15
Kailāsa Śrutasāgara Granthasūci
Descriptive Catalogue of Manuscripts - 1.1.15
Dēvarddhigani Kṣamāśramana Hastaprata Bhāṇḍāgāra,
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©: Publisher
O Vir Samvat 2539, Vikram Samvat 2069, A.D. 2013
O ISBN:
Preserved in
Edition: First
• प्रकाशन सौजन्य :
शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार, अहमदाबाद
Sheth Shri Samvegbhai Lalbhai Parivar, Ahmedabad
Available at:
Shruta Sarita
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth
• Publisher:
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Koba Tirth, Gandhinagar 382007. (Guj.) INDIA
Tel: (079) 23276204, 23276205, 23276252, 30927001 Fax: 23276249
Web site: www.kobatirth.org E_mail: gyanmandir@kobatirth.org
Price: Rs. 1500/
81-89177-00-1 (Set)
978-81-89177-53-9 (Vol.15)
• Printer :
Navprabhat Printing Press, Ahmedabad
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* उपलक्ष
श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. द्वारा लोढाधाम प्रतिष्ठा महोत्सव
के पुनीत प्रसंग पर
वि.सं. २०६९, चैत्र कृष्णपक्ष, प्रतिपदा, शुक्रवार, दि. २६-४-२०१३
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योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी
आचार्य श्री कीर्तिसागरसूरीश्वरजी
गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी
आचार्य श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी
आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी
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|| अर्हम् नमः ।। मंगल कामना
तीर्थंकरों की वाणी में सरस्वती का निवास है. श्री तीर्थंकर परमात्मा के श्रीमुख से निकली वाणी, जिसे गणधर भगवंतों ने सूत्ररूप में गुंफित किया है; ऐसे जिनागम की परंपरा को वाचना के द्वारा आज तक अविच्छिन्न रखनेवाले सभी आचार्य भगवंतों को वंदन. जिनागम को समर्पित नियुक्तिकार-भाष्यकार-चूर्णिकार-टीकाकार एवं ग्रंथों के प्रतिलेखक आदि श्रमण समूह का भी मैं ऋण स्वीकृतिपूर्वक पुण्य स्मरण करता हूँ..
अनेक जैन संघों, श्रेष्ठियों तथा यतिवर्ग ने आज तक जैन साहित्य का संग्रह-संरक्षण करके अनुमोदनीय कार्य किया है, वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं. समय परिवर्तन के साथ परिस्थितिवश लोगों का गाँवों से शहर की ओर जाना प्रारंभ हुआ. यतिवर्ग भी लुप्तप्राय हुए. इन सभी कारणों से ग्रन्थभंडारों की स्थिति चिंतनीय बन गई. बहुत से ग्रन्थ विदेश जाने लगे, कुछ भंडार लोगों की उपेक्षा से नष्टप्राय होने लगे, ग्रन्थों की सुरक्षा भी एक समस्या बन गई. इन सब बातों को देखकर सर्वप्रथम सन् १९७४ में अहमदाबाद के चातुर्मास दौरान ग्रन्थ भंडारों को सुव्यवस्थित करने का मुझे विचार आया. परम श्रद्धेय आचार्य भगवंत श्रीमद् कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. से इस विषय में चर्चा करके उनके मंगल आशीर्वाद से कार्य प्रारंभ करने का संकल्प किया. श्रेष्ठीवर्य स्व. कस्तुरभाई लालभाई आदि ने भी इस कार्य में सहयोग देने की भावना दर्शाई. सन् १९७९ में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र के नाम से कोबा में संस्था की स्थापना हुई. अनेक स्थानों व विविध प्रान्तों में विहार करके ग्रन्थों को संग्रह करने का कार्य प्रारंभ हुआ और धीरेधीरे संग्रह समृद्ध बनता गया.
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर आज भारत का एक सुव्यवस्थित-समृद्ध ज्ञानभंडार है. प्राचीन प्रणाली को कायम रखते हुए भी इस ज्ञानमंदिर में आधुनिक साधनों का सुभग समन्वय हुआ है.
ज्ञानभंडार को व्यवस्थित करने के साथ-साथ इस सूची में समाविष्ट अधिकांश ग्रंथों की मूलसूची बनाने का भगीरथ कार्य मुनि श्री निर्वाणसागरजी ने किया है तथा इस कार्य के लिए योग्य मार्गदर्शन देकर पंन्यास श्री अजयसागरजी ने जो सहयोग दिया है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. अन्य मुनिराजों ने भी जो यथायोग्य बहुमूल्य सहयोग दिया है, उन सबकी मैं हार्दिक अनुमोदना करता हूँ. ज्ञानमंदिर के निदेशक श्री कनुभाई शाह की देखरेख में पंडितवर्ग ने जिस सूझ व धैर्य के साथ अस्तव्यस्त हस्तप्रतों को व्यवस्थित करने एवं प्रतों के बारीक अध्ययनपूर्वक अतिविवरणात्मक सूचीकरण के इस कार्य को उत्तरोत्तर गति प्रदान की, वह अपने आप में अनूठा व इतिहाससर्जक कार्य है. श्री नवीनभाई जैन, श्री संजयकुमार झा, श्री रामप्रकाश झा, डॉ. हेमंत कुमार, श्री अरुण कुमार झा आदि सभी पंडितवरों, प्रोग्रामर श्री केतनभाई शाह एवं सभी सहयोगी कार्यकर्ताओं को मेरा हार्दिक धन्यवाद है. ज्ञानमंदिर का कार्य सम्भालने वाले संस्था के ट्रस्टी श्री मुकेशभाई एन. शाह, श्री श्रीपालभाई आर. शाह एवं कारोबारी सदस्य श्री रजनीभाई एन. शाह आदि सभी को उनकी बहुमूल्य सेवाओं के लिए हार्दिक आशीर्वाद देता हूँ. अनेक श्रीसंघों, व्यक्तियों और जैन-जैनेतर लोगों ने भी इस कार्य में मुझे पूर्ण सहयोग दिया है, जिन्हें मैं धन्यवाद देता हूँ. ग्रन्थों के संरक्षण, सूचीकरण व प्रस्तुत १५वें खंड के प्रकाशन में आर्थिक सहयोग प्रदान करनेवाले शेठश्री संवेगभाई लालभाई परिवार, अहमदाबाद एवं समस्त ट्रस्टीगण के प्रति भी धन्यवाद देता हूँ.
बड़ी संख्या में पूज्य साधु-साध्वीजी तथा विद्वान-शोधकर्ताओं द्वारा यहाँ के ग्रंथसंग्रह का सुंदर लाभ लिया जा रहा है, जो बड़ी ही प्रसन्नता का विषय है. इस ज्ञानभंडार के हस्तप्रतों की अपने-आप में विशिष्ट प्रकार के सूचीपत्र कैलास श्रुतसागर ग्रन्थसूची का १५वाँ खंड प्रकाशित होने जा रहा है, यह ज्ञानमंदिर के कार्य की सफलता का एक नया सोपान है. मुझे विश्वास है कि विश्वभर के विद्वद्वर्ग इस ग्रंथसूची से महत्तम लाभान्वित होंगे. संस्था अपने विकासपथ पर उत्तरोत्तर आगे बढ़ती रहे, यही मेरी मंगल कामना है.
पभसागर सरि
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प्रकाशकीय
जिनेश्वरदेव चरम तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी, श्रुतप्रवाहक पूज्य गणधर भगवंतों, योगनिष्ठ आचार्यदेव श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी तथा परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी की दिव्यकृपा से परम पूज्य आचार्यदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी के शिष्यप्रवर राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की प्रेरणा एवं कुशल निर्देशन में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखित जैन ग्रंथों की सूची के १५ वें खंड को लोढाधाम-मुंबई की पुण्यमयी धरा पर परम पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी के करकमलों से लोढाधाम प्रतिष्ठा महोत्सव के पावन प्रसंग पर चतुर्विध श्रीसंघ के करकमलों में समर्पित करते हुए श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबातीर्थ परिवार अपार हर्ष की अनुभूति कर रहा है.
विश्व में बहुत से ग्रंथालय तथा ज्ञानभंडार हैं, किन्तु प्राचीन परम्पराओं के रक्षक ज्ञानतीर्थरूप आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में हस्तलिखित ग्रंथों का जो बेशुमार दुर्लभ खजाना पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा भारत के कोने-कोने से एकत्र किया गया है, यह ज्ञानभंडार इस भूमंडल पर अब अपना उल्लेखनीय स्थान प्राप्त कर चुका है.
हस्तप्रतों की संप्राप्ति, संरक्षण, विभागीकरण, सूचीकरण तथा रख-रखाव के इस कार्य व मार्गदर्शन में पूज्य आचार्यदेव के अधिकतर शिष्य-प्रशिष्यों का अपना योगदान रहा है. तपस्वी मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने हस्तप्रतों के सूचीकरण हेतु वर्षों तक अहर्निश भगीरथ परिश्रम किया है. इस सूचीकरण की अवधारणा को और विकसित करने में तथा कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के कार्य में ग्रंथालय विज्ञान की प्रचलित प्रणालियों के स्थान पर महत्तम उपयोगिता व सूझबूझ का उपयोग करने में तथा समय-समय पर सहयोगी बनने हेतु पूज्य पंन्यास श्री अजयसागरजी तथा यहाँ के पंडितवर्यों, प्रोग्रामरों और कार्यकर्ताओं ने अपनी शक्तियों का यथासंभव महत्तम उपयोग किया है. इसी तरह पूज्य आचार्य भगवंत के अन्य विद्वान एवं प्रज्ञाशील शिष्यों का भी इस पूरी प्रक्रिया में विविध प्रकार का सहयोग प्राप्त होता रहा है, जिससे ज्ञानमंदिर की प्रवृत्तियों को विशेष बल एवं वेग मिलता रहा है. इस अवसर पर संस्था ज्ञात-अज्ञात सभी सहयोगियों व शुभेच्छुकों की अनुमोदना करते हुए हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करती है. सभी के मिलेजुले समर्पित सहयोग के बिना यह विशालकाय कार्य संभव नहीं था.
पंडितों के साथ करीब तीस कार्यकर्त्ताओं के माध्यम से, श्रीसंघ के व्यापक हितों से संबद्ध ज्ञानमंदिर की अनेकविध प्रवृत्तियों के संचालन के लिए निरंतर बड़ी मात्रा में धनराशि की आवश्यकता रहती है. किसी भी प्रकार के सरकारी या अन्य किसी भी अनुदान को न लेकर मात्र संघों व समाज की ओर से मिलनेवाले आर्थिक व अन्य सहयोग के द्वारा कार्यरत इस संस्था में हस्तप्रत सूचीकरण व संलग्न अन्य विविध प्रवृत्तियाँ निरंतर गतिशील रहती हैं. इस भगीरथ कार्य हेतु भारत व विदेश के श्रीसंघों, संस्थाओं व महानुभावों का भी आर्थिक सहयोग यदि नहीं मिल पाता तो यह कार्य आगे बढ़ाना मुश्किल था. समस्त चतुर्विध संघ तथा संस्था के सभी शुभेच्छुकों को इस अवसर पर साभार- धन्यवाद दिया जाता है..
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्रुतभक्ति के प्रत्येक कार्य में हमारे वर्तमान ट्रस्टीगण अत्यंत उत्सुक और गतिशील रहे हैं. विशेषतः ट्रस्टीवर्य श्री मुकेशभाई एन. शाह एवं श्री श्रीपालभाई आर. शाह तथा कारोबारी सदस्य श्री रजनीभाई एन. शाह का योगदान महत्वपूर्ण रहा है. तदुपरांत समय-समय पर तन-मन-धन से ज्ञानमंदिर का कार्यभार निर्वाह करनेवाले ट्रस्टीवर्य स्व. श्री शांतिलाल मोहनलाल शाह, स्व. श्री उदयनभाई आर. शाह, श्री हेमंतभाई राणा, श्री सोहनलालजी एल. चौधरी, श्री चांदमलजी गोलिया, श्री किरीटभाई कोबावाला, श्री कल्पेशभाई जे. शाह, श्री गिरीशभाई वी. शाह एवं कारोबारी सदस्य श्री मोहितभाई शाह का भी ज्ञानमंदिर को आज की ऊँचाईयों तक पहुँचाने में सुंदर योगदान प्राप्त हुआ है, जिसे इस अवसर पर याद किये बिना नहीं रहा जा सकता.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची- जैन हस्तलिखित साहित्य के इस १५वें खंड के वित्तीय सहयोग प्रदाता शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार, अहमदाबाद के प्रति संस्था कृतज्ञता व्यक्त करती है.
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची के इस १५वें रत्न का समाज में स्वागत किया जाएगा, ऐसा हमारा विश्वास है.
श्री सुधीरभाई यु. महेता - प्रमुख
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र ट्रस्ट कोबातीर्थ, गांधीनगर
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©Qor©©© ©room
ॐ
कत्थ अम्हारिसा पाणी, दुसमा दोसदूसिआ । हा अणाहा कहं हुंता, न हुंतो जइ जिणागमो ।।३४।।
संबोधसित्तरी
स्व. नरोत्तमभाई लालभाई
जन्म - ७-९-१८९६ स्वर्गारोहण - १३-१२-१९७५
स्व. सुलोचनाबेन नरोत्तमभाई लालभाई जन्म - १३-२-१९०२ स्वर्गारोहण - २४-४-१९७९
ॐ
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प्राक्कथन
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची प्रकाशन के अविरत सिलसिले में परम श्रद्धेय आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी के करकमलों से लोढाधाम प्रतिष्ठा महोत्सव के पावन प्रसंग पर प्रकाशित हो रहे इस १५वें रत्न का प्रकाशन हमारे लिए गौरव की बात है.
प्रस्तुत भाग में संस्कृत, प्राकृत व देशी भाषाओं में आगनिक, धार्मिक, कर्मसिद्धान्त, साहित्य आदि व आयुर्वेद, ज्योतिष, वास्तु, सामुद्रिक, व्याकरण, न्यायदर्शन, छन्दोग्रंथादि, रास, कथा-चरित्रादि विषय विशेषरूप से उल्लेखनीय हैं. कतिपय स्तवन- स्तोत्र, औपदेशिक सुभाषित पद आदि की लघुकृतियाँ भी अपने कलेवर में विविध विषयों को समेटी हुई दृष्टिगोचर होंगी. छोटी से छोटी कृतियाँ भी महत्त्वपरक होने के कारण उन्हें निश्चय ही योग्य स्थान प्राप्त हुआ है. आगम व व्याख्या साहित्य की मूल, टीका, अवचूरि आदि महत्वपूर्ण कृतियाँ प्रचुर मात्रा में अप्रकाशित ज्ञात हो रही हैं, इनमें से अनेक विद्वानों की कृतियाँ तो बड़ी ही महत्वपूर्ण हैं.
हस्तप्रतों के वर्गीकरण से लेकर सूचीकरण तक का संपूर्ण कार्य बडा ही जटिल व कष्टसाध्य होता है, परंतु उनमें समाहित महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ, जो अद्यावधि विद्वद्वर्ग की नजरों से ओझल थीं, उन्हें आपके कर-कमलों में समर्पित करने का यह सुंदर परिणाम हमारे लिये अपार संतोषदायक सिद्ध हो रहा है.
इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान/व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सबका विस्तृत विवरण व टाइप सेटिंग सम्बन्धी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ vi एवं परिशिष्ट परिचय संबंधी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ ४५४ पर है. कृपया वहाँ पर देख लें.
जैन साहित्य एवं साहित्यकार कोश परियोजना के अन्तर्गत शक्यतम सभी जैन ग्रंथों व उनमें अन्तर्निहित कृतियों का कम्प्यूटर पर सूचीकरण करना; एक बहुत ही जटिल व महत्वाकांक्षी कार्य है. इस परियोजना की सबसे बड़ी विशेषता है, ग्रंथों की सूचना पद्धति. अन्य सभी ग्रंथालयों में अपनायी गई, मुख्यतः प्रकाशन और पुस्तक इन दो स्तरों पर ही आधारित द्विस्तरीय पद्धति के स्थान पर, यहाँ बहुस्तरीय सूचना पद्धति विकसित की गई है. इसे कृति, विद्वान, प्रत, प्रकाशन, सामयिक व पुरासामग्री; इस तरह छः भागों में विभक्त कर बहुआयामी बनाया गया है. इसमें प्रत, पुस्तक, कृति, प्रकाशन, सामयिक व एक अंश में संग्रहालयगत पुरासामग्री इन सभी का अपने-अपने स्थान पर महत्त्व कायम रखते हुए भी इन सूचनाओं को परस्पर संबद्धकर एकीकरण का कार्य कर दिया गया
है.
प्रस्तुत सूची के पूर्व के सभी खंडों की तरह इस खंड में समाविष्ट अधिकांश प्रतों की मूल सूची तो श्रुतसेवी पूज्य मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने वर्षों की मेहनत से बनाई थी. उसी को आधार रखकर हमने यह संपादनकार्य किया है. मुनिश्री के हम चिरकृतज्ञ हैं. समग्र कार्य दौरान श्रुतोद्धारक पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी तथा श्रुताराधक पूज्य पंन्यास श्री अजयसागरजी की ओर से मिली प्रेरणा व मार्गदर्शन ने इस जटिल कार्य को करने में हमें सदा उत्साहित रखा है. साथ ही पूज्यश्री के अन्य शिष्यप्रशिष्यों की ओर से भी हमें सदा सहयोग व मार्गदर्शन मिलता रहा है, जिसके लिए संपादक मंडल सदैव आभारी रहेगा. इस ग्रंथसूची के आधार से सूचना प्राप्त कर श्रमणसंघ व अन्य विद्वानों के द्वारा अनेक बहुमूल्य अप्रकाशित ग्रंथ प्रकाशित हो रहे हैं, यह जानकर हमारा उत्साह द्विगुणित हो जाता है; हमें अपना श्रम सार्थक प्रतीत होता है..
प्रतों की विविध प्रकार की प्राथमिक सूचनाएँ कम्प्यूटर पर प्रविष्ट करने एवं प्रत विभाग में विविध प्रकार से सहयोग करने व त्वरा से संदर्भ पुस्तकें तथा प्रत उपलब्ध कराने हेतु आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के सभी कार्यकर्ताओं को हार्दिक
धन्यवाद.
सूचीकरण का यह कार्य पर्याप्त सावधानीपूर्वक किया गया है, फिर भी जटिलता एवं अनेक मर्यादाओं के कारण क्वचित् भूलें रह भी गई होंगी. इन भूलों के लिए व जिनाज्ञा विरुद्ध किसी भी तरह की प्रस्तुति के लिए हम त्रिविध मिच्छामि दुक्कडं देते हैं. विद्वानों से करबद्ध आग्रह है कि इस प्रकाशन में रह गई भूलों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करें एवं इसे और अधिक बेहतर बनाने हेतु अपने सुझाव अवश्य भेजें, ताकि अगली आवृत्ति व अगले भागों में यथोचित सुधार किए जा सकें.
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संपादक मंडल
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मंगलकामना
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अनुक्रमणिका
प्राक्कथन
अनुक्रमणिका
प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत
हस्तप्रत सूचीकरण सहयोग सौजन्य एवं सादर ग्रंथ समर्पण
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...iv
v-vi
.vii-viii
. १-४८६
.४८७-५९६
हस्त सूची
परिशिष्ट कृति परिवार अनुसार प्रत पेटाकृति अनुक्रम संख्या..
१. संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति
क्रमांक सूची परिशिष्ट १
२. देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति
क्रमांक सूची परिशिष्ट - २
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.४८७-५४८
५४९-५९६
इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान/व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सबका विस्तृत विवरण व टाइप सेटिंग संबंधी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ vi एवं परिशिष्ट परिचय संबंधी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ ४५४ पर हैं. कृपया वहाँ पर देख लें..
प्रस्तुत खंड १५ में निम्नलिखित संख्या में सूचनाओं का संग्रह है.
o प्रत क्रमांक ५९२३६ से ६२९४०
O इस सूचीपत्र में मात्र जैन कृतियों वाली प्रतों का ही समावेश किए जाने के कारण वास्तविक रूप से २६२२
प्रतों की सूचनाओं का समावेश इस खंड में हुआ है..
समाविष्ट प्रतों में कुल २६३५ कृति परिवारों का समावेश हुआ है..
● इन परिवारों की कुल ३५३४ कृतियों का इस सूची में समावेश हुआ है.
O सूची में उपरोक्त कृतियों कुल ६९२४ बार आई हैं.
iv
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(-)
(+)
दुर्वाच्य, अवाच्य, अशुद्ध पाठ सूचक.
. प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में
प्रत की महत्ता सूचक इस हेतु प्र. वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. कर्त्ता कर्त्ता के शिष्य-प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित, रचना के समीपवर्ती काल में लिखित संशोधित शुद्धप्राय
- टिप्पण 'युक्त विशेष पाठ, पाठ में सुगमता हेतु विविध प्रकार के चिह्नयुक्त प्रत, यथा- अन्वय दर्शक अंक युक्त, पदच्छेद • संधि सूचक वचन विभक्ति क्रियापदसूचक चिह्न आदि वाली प्रत.
-
# ............. कृति नाम के बाद प्रयुक्त होने पर संयुक्त कृति की पहचान यथा आवश्यकसूत्र सह निर्युक्ति, भाष्य व तीनों की
लघुवृत्ति..
(#)
(S)
प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में प्रत की अवदशा, पाठ नष्ट हो जाने से प्रत की उपयोगिता में कमी का सूचक. इस हेतु प्र. वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं.
मूल पाठ का टीकादि का मूल व टीका का, टिप्पणक का अंश नष्ट है. अक्षर फीके पड़ गये हैं, मिट गये हैं, पन्नों पर आमने-सामने छप गये हैं. अक्षर की स्याही फैल गई है. पत्र जीर्णतावश नष्ट होने लगे हैं, हो गये हैं. कृति परिशिष्टों में प्रत क्रमांक के अंत में उर्ध्वाक्षरों से प्रत की अपूर्णता सूचक. अपूर्ण, त्रुटक, प्रतिअपूर्ण हेतु. (--).............आदिवाक्य अनुपलब्ध..
अप.
......... अपभ्रंश (कृति भाषा ) अंति: अंतिमवाक्य (कृतिमाहिती) आ.......... आचार्य (विद्वान स्वरूप )
आदि.......... आदिवाक्य (कृतिमाहिती)
उप.
उपा. .... उपाध्याय (विद्वान स्वरूप)
ऋ.
S/.
...........
कुं... कुल ग्रं.
कुल पे,
क्रीत.
ग.
प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत
कृति नाम के अंत में विभिन्न अज्ञात विद्वान कर्तृक, अनेक अस्थिर टबार्थ व श्लोक संग्रह जैसी समान कृतियों के समुच्चय रूप या फुटकर कृति दर्शक संकेत.
. कृति / प्रत / पेटांक नाम के बीच का, की, के, इत्यादि विभक्ति सूचक .
. प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में
*********
ऋषि (विद्वान स्वरूप)
क........... कवि (विद्वान स्वरूप )
. कुंडली (कृति स्वरूप)
. मूल व टीका आदि का संयुक्तरूप से सर्वग्रंथाग्र परिमाण प्रत व पेटाकृति विशेष में.
. कुल पेटाकृति (प्रतमाहिती स्तर)
प्रत को खरीदनेवाला (प्र. ले. पु. विद्वान )
को..
प्रत प्रतिलेखन उपदेशक (प्र. ले. पु. विद्वान)
.
******...
गडी.
गद्य.
गा.
गु.
गुटका
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.कोष्टक (कृति स्वरूप )
. गणि (विद्वान स्वरूप)
. गडी किए हुए पत्रों वाली प्रत.
.. गद्यबद्ध (कृति प्रकार )
. गाथा (कृति परिमाण)
. गुजराती (कृति भाषा )
. बंधे पत्रों वाली प्रत. (प्रतमाहिती स्तर)
******.....
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गृही.
गोल ...........
ग्रं.
जै.. . जैन कृति (कृति परिशिष्ट) जै.क. ..... जैन कवि (विद्वान स्वरूप ) जै.............जैन देवनागरी (प्रत लिपि)
दत्त.
ते............... जैन श्वेतांबर तेरापंथी कृति. (कृति परिशिष्ट ) आदान-प्रदान में प्रत देनेवाला (प्र. ले. पु. विद्वान)
. जैन दिगंबर कृति. (कृति परिशिष्ट)
. देवनागरी (प्रत लिपि)
दि.
देना.
पं.
. पंजाबी (कृति भाषा )
पं. ........... पंन्यास, पंडित (विद्वान स्वरूप )
पठ.
प+ग
पद्य. पा.
पु. हिं...
पू. वि.
पूर्व.
पृ.
.... गृहीत. आदान-प्रदान में प्रत को प्राप्त करने वाला (प्र. ले. पु. विद्वान )
.. गोल कुंडलाकार प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) ....... ग्रंथाग्र (कृति परिमाण)
........... पद्य व गद्य संयुक्त (कृति प्रकार )
पे.
ये. वि.
पै.............
प्र. वि.
आले.
...........
नाम.
प्रा.
प्रे.
पठनार्थ जिसके पढ़ने हेतु प्रत लिखी या लिखवाई गई हो. (प्र. ले. पु. विद्वान )
. पद्यबद्ध (कृति प्रकार)
पाठक (विद्वान स्वरूप)
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. पुरानी हिंदी (कृति भाषा )
. पूर्णता विशेष (प्रतमाहिती, पेटाकृति माहिती व कृतिमाहिती स्तर)
. कृतिमाहिती में वर्ष प्रकार सूचक 'वि.' 'श.' आदि के बाद संवत् प्रवर्तन के पूर्व का वर्ष दर्शक.
- पृष्ठ सूचना (प्रत माहिती स्तर पर व पेटाकृति स्तर पर )
. पेटाकृति नाम
-पेटाकृति विशेष
. पैशाची प्राकृत (कृति भाषा )
प्रत विशेष.
. प्रतिलेखक, लहिया, (प्रतिलेखन पुष्पिका. प्रत, पेटाकृति, कृति माहिती स्तर पर . )
(प्रत / पेटाकृति / कृति स्तर) (सामान्य, मध्यम आदि उपलब्धता सूचक.)
प्र. ले. श्लो..... प्रत, पेटाकृति व कृति हेतु प्रतिलेखक द्वारा
लिखित प्रतिलेखन श्लोक ( जलात् रक्षेत्... इत्यादि)
प्र. ले. पु..... प्रतिलेखन पुष्पिका की
-
. प्राकृत (कृति भाषा )
. प्रतलेखन प्रेरक (प्र. ले. पु. विद्वान )
vi
बौ.............. बौद्ध कृति (कृति परिशिष्ट) .मराठी (कृति भाषा )
महाराष्ट्री प्राकृत (कृति भाषा )
म.
महा.
मा.
मा.
******.
गु.
मु.
मु.
मृपू.
यं.
रा.
श.
वै. व्याप.
रारा..............राजस्थानी (कृति भाषा )
राज्यकाल .... जिस राजा के राज्य शासनकाल में प्रत लिखी
गई हो, राज्ये........... जिस आचार्य के गच्छनायकत्व काल में प्रत का लेखन हुआ हो.
लिख. प्रत लिखवाने वाला (प्र. ले. पु. विद्वान) ले. स्थल...... लेखन स्थल (प्रतिलेखन पुष्पिका) वाचक (विद्वान स्वरूप )
वा.
वि........... . विक्रम संवत् (वर्ष माहिती) (प्रे. ले. पु., कृति रचना वर्ष )
विक्र ............. विक्रेता प्रत का. (प्र. ले. पु. विद्वान) वी..
.मागधी प्राकृत (कृति भाषा )
. मारुगुर्जर (कृति भाषा )
मुनि (विद्वान स्वरूप )
.....................
सा.
स्था.
हिं.
श्राव. श्रावक (विद्वान स्वरूप) श्रावि.
श्रु..
श्वे.
सं.
सम.
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. मुस्लिम धर्म (कृति परिशिष्ट)
. जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक कृति (कृति परिशिष्ट)
. यंत्र (कृति स्वरूप)
राजा (विद्वान स्वरूप)
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वर्ष संख्या के पूर्व होने पर 'वीर संवत' यथा वी. २००० वर्ष संख्या पश्चात् होने पर वी सदी'. यथा- ८वी सदी. (७१०-८००) (प्र. ले. पु., कृति रचना वर्ष)
. वैदिक कृति (कृति परिशिष्ट )
व्याख्याने पठित विद्वान द्वारा (प्र. ले. पु. विद्वान)
शक संवत् (वर्ष माहिती
प्र. ले. पु. कृति
रचना वर्ष)
****...
श्राविका (विद्वान स्वरूप)
. श्रोता द्वारा व्याख्यान में श्रुत. (प्र. ले. पु. विद्वान )
. जैन श्वेतांबर कृति (कृति परिशिष्ट )
. संस्कृत (कृति भाषा )
समर्पक ज्ञानभंडार को प्रत समर्पित करनेवाला.
(प्र. ले. पु. विद्वान )
साध्वीजी (विद्वान स्वरूप)
जैन श्वेतांबर स्थानकवासी (कृति परिशिष्ट) . हिंदी (कृति भाषा )
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० सुकृत के सहभागी ० हस्तप्रत सूचीकरण में विशिष्ट आर्थिक सहयोगियों की नामावली १. शेठ आणंदजी कल्याणजी (धार्मिक धर्मादा ट्रस्ट).|| १३. फेडरेशन ऑफ जैन एसोसिएसन इन नॉर्थ अमेरिका, पालडी
अहमदाबाद || "जैना" हस्ते डॉ. प्रेमचंदजी गडा अमेरिका २. श्री शांतिलाल भुदरमल अदाणी परिवार अहमदाबाद || १४. श्री एम. जे. फाउन्डेशन
मुंबई ३. बाबु श्री अमीचंद पन्नालाल आदीश्वर ट्रस्ट, वालकेश्वर|| १५. श्री कल्याण पार्श्वनाथ जैन संघ, चौपाटी मुंबई
मंबई || १६. श्री सांताक्रुज जैन तपगच्छ संघ, श्री कुंथुनाथ जैन ४. शेठ श्री झवेरचंद प्रतापचंद सुपार्श्वनाथ जैन संघ. देरासर मार्ग, सांताक्रूज़ (वे.)
मुंबई वालकेश्वर
|| १७. श्री महावीर जैन श्वे. मू. पू. संघ, पालडी अहमदाबाद ५. श्री प्लेजेंट पैलेस जैनसंघ
मुंबई
१८. श्री श्वे. मू. पू. जैन संघ, नानपुरा, सुरत ६. श्री गोवालिया टैंक जैनसंघ
| १९. श्री आंबावाडी मू. पू. जैन संघ अहमदाबाद ७. श्री प्रेमलभाई कापडिया
२०. श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ श्वे. मू. पू. जैन संघ, आरे रोड, गोरेगाँव
मुंबई ८. श्री जवाहरनगर जैन श्वे. मू. पू. जैन संघ, गोरेगांव
|२१. श्री राजस्थान जैन श्वे. मू. पू. संघ, जयनगर, बेंग्लोर
२२. श्री आदिनाथ जैन श्वे. मंदिर ट्रस्ट, चिकपेट, बेंग्लोर ९. जैन सेन्टर ऑफ नॉर्दर्न केलिफोर्निया अमेरिका
२३. श्री महुडी जैन श्वे. मू. पू. ट्रस्ट, महुडी १०. श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन बोर्डिंग अहमदाबाद
२४. श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज़, मुंबई ११. श्री शंभुकुमार कासलीवाल
| २५. श्री जुहु स्कीम जैन संघ, विलेपार्ले (वे.) मुंबई १२. शेठ मोतीशा जैन रिलीजियस एन्ड चेरीटेबल ट्रस्ट
२६. श्री शांतिनाथ देरासर जैन पेढी, श्री शंखे. पार्श्व., बावन । जिनालय, देवचंदनगर रोड, भायंदर (वे.) थाणा मुंबई
मुंबई मुंबई
मुंबई
हस्तप्रत सूचीकरण में आर्थिक सहयोगियों की नामावली
इन्दौर
पूना
१. श्रीमद् यशोविजयजी जैन संस्कृत पाठशाला, श्री जैन प्रेरणा से श्री सिद्धगिरि महातीर्थ चातुर्मास आराधना हेतु श्रेयस्कर मंडल
___ महेसाणा श्री बेतालीस के विशा श्रीमाली जैन ज्ञाति मंडल मुंबई २. श्री अबूंद गिरिराज जैन श्वे. तपागच्छ उपाश्रय ट्रस्ट || ११. श्री आदिनाथ सोसायटी जैन टेम्पल ट्रस्ट, पूना-सातारा
। रोड ४. शेठ श्री शायरचंदजी नाहर
___ मंबई || १२. श्री बिरला एकेडेमी ऑफ आर्ट एन्ड कल्चर ५. श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन देरासर ट्रस्ट, पालडी
कोलकाता अहमदाबाद || १३. दक्षिण-पावापुरी तीर्थ, चंद्रप्रभु जैन सेवामंडल ट्रस्ट ६. संघवी श्री पुखराजजी हंजारीमलजी दांतेवाडीया
मांडवला चेन्नई || १४. श्री जवाहर जैन श्वे. मू. संघ, गौरेगाँव मुंबई (वे.) ७. श्री रांदेर रोड जैनसंघ श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन || १५. श्री सोहनराज सिंघवी
कोलकाता देरासर, रांदेर रोड
सुरत ८. श्री जिन आराधक मंडल, कांदीवली मुंबई ९. श्री जयेशभाई हिरजीभाई शाह, नरीमान प्वाइंट मुंबई १०. प. पू. आ.देव श्री जगच्चन्द्रसूरीश्वरजी महाराज की
चेन्नई
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(० सुकृत के सहभागी हस्तप्रत सूचीकरण में १ से १५ भाग के आर्थिक सहयोगियों की नामावली १. रमेशकुमार चोथमलजी, तारादेवी रमेशकुमार & सन्स ||८. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर २. श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर || ९. शेठश्री आणंदजी कल्याणजी पेढी अहमदाबाद ३. घाणेराव (राजस्थान) निवासी श्रीमती मोहिनीबाई एस.| १०. श्री भवानीपुर मूर्ति पूजक जैन श्वेताम्बर संघ कोलकाता | देवराजजी जैन
चेन्नई || ११. श्रीमती तारादेवी हरखचंदजी कांकरिया परिवार ४. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर
कोलकाता ५. मांडवला (राज.) निवासी संघवी मुथा मोहनलालजी | १२. श्री सांताक्रुज जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक जैन संघ मुंबई
रघुनाथमलजी सोनवाडीया परिवार चेन्नई || १३-१४. डॉ. विनय के. जैन - प्रेसीडेन्ट (जीवदया फाउन्डेशन), ६. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर
यु.एस.ए. ७. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर || १५. शेठश्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद
हस्तप्रत सूचीकरण में भविष्य के आर्थिक सहयोगियों की नामावली
१. शेठश्री संवेगभाई लालभाई, अहमदाबाद २. शेठश्री रसिकलाल धारीवाल (माणिकचंद ग्रुप) पूना, मुंबई ३. शेठश्री रमेशभाई लुंकड भीनमाल, पवनबेन लुंकड, भीनमाल, मुंबई ४. श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड ट्रस्ट, पायधुनी-मुंबई ५. शेठश्री चंद्रप्रकाशजी अग्रवाल, कायमगंज ६. श्री बावन जिनालय, भायंदर-मुंबई ७. शेठश्री देवीचंद विकासकुमार अनिलकुमार चोपडा (बच्छराज डेवलोपर्स) मुंबई ८. शेठश्री शांतिलाल लल्लुभाई शाह - ह. भरतभाई शाह, वालकेश्वर-मुंबई ९. शेठश्री सोहनराजजी सिंघवी, कोलकाता १०. श्री सायन जैन संघ, शीव-मुंबई
२ सादर समर्पण
कल्याणस्वरूप तीर्थंकरों द्वारा स्थापित श्रमणप्रधान चतुर्विध श्रीसंघ के
कर कमलों में...
जिनके द्वारा यह श्रुत परंपरा अक्षुण्ण रही.
०००
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॥श्रीमहावीराय नमः॥ ॥ श्री बुद्धि-कीर्ति-कैलास-सुबोध-मनोहर-कल्याण-पद्मसागरसूरि सद्गुरुभ्यो नमः॥
कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
५९२३६. (+) दशाश्रुतस्कंध सह विषमपद टिप्पण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२, १३४३७).
दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: उवदंसेति त्ति बेमि, दशा-१०.
दशाश्रुतस्कंधसूत्र-विषमपद टिप्पण", मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ५९२३७. (+) संघयणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८.५४११.५, ६x४०).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिई १; अंति: जा वीरजिण तित्थं,
गाथा-३५२.
बृहत्संग्रहणी-टबार्थ , मु. धर्ममेरु, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ अरिहंत; अंति: प्रवर्तइ ता सीम नंदउ. ५९२३८. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०-१(१)=२९, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११, ११४३५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-१
गाथा-११ अपूर्ण से अध्ययन-१७ गाथा-१४ अपूर्ण तक है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-पर्याय टिप्पण, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. ५९२३९. (+) पंचकल्पसूत्र का भाष्य, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २७-१(३)=२६, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४११,१५४४८-५१).
पंचकल्पसूत्र-भाष्य, ग. संघदासगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: वंदामि भद्दबाहु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७६
___अपूर्ण तक व गाथा-११३ अपूर्ण से १०८९ अपूर्ण तक है.) ५९२४०. (+) दशवकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५४-२९(२,१२ से १४,१७ से १९,२१ से ३४,३७ से ४०,४३,५१ से ५३)=२५, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११, ५४३४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के
पाठांश नहीं है, विनयसमाधि अध्ययन, उद्देश-२ गाथा-६ अपूर्ण तक है.)
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनप्रणित; अंति: (-). ५९२४१. (#) क्षेत्रसमास प्रकरण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-२(१ से २)=२२, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२७४११.५, ५४२९). बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: झाएज्जा सम्मदिट्ठीए,
गाथा-१८८, (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से है.) ५९२४२. आगमिक विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१-८(१ से २,१७,१९ से २१,२९ से ३०)=२३, जैदे., (२६.५४११, ३६४१६-२०).
आगमिक विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: ए परोक्षं श्रुतज्ञान. ५९२४३. कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६४११, ६x४०).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. व्याख्यान २ अपूर्ण तक है.)
कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालने विषे ते काल; अंति: (-). ५९२४४. (+) पट्टावलीसह टीका, संपूर्ण, वि. १९६६, आषाढ़ शुक्ल, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, ले.स्थल. मुंबइ (लालबाग),
पठ.पं. हरखविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., दे., (२६४१२, १४४४१).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पट्टावली तपागच्छीय, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिमंतो सुहहेउ; अंति: दिंतु सिद्धिसुहं, गाथा-२१. पट्टावली तपागच्छीय-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, आदि: सिरिमंतोत्ति यत्तदो; अंति: कल्याण०
शिष्यः प्रथम. ५९२४५. (+) दशवकालिकसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १५०५, भाद्रपद, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले.स्थल. जंघरालनगर, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ११४३९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: कहणा पवियालणा संघे,
अध्ययन-१०.
दशवैकालिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: धर्म उत्कृष्टम्मंग, अंति: ब्रवीमि पूर्ववत्. ५९२४६. (+) संघयणीसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८८०, कार्तिक शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले.पं. परमसुख;
राज्ये आ. जिनोदयसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१११२) कर दुख अंगुलि नेन दुख, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२९३,
संपूर्ण. बृहत्संग्रहणी-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अर्हदादीन् नत्वा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ५९२४७. (+) जीवविचार प्रकरण सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४-१६(१ से १६)=१८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४११.५,११४३८). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१,
(पू.वि. गाथा १५ से है.)
जीवविचार प्रकरण-टीका, पा. रत्नाकर, सं., गद्य, वि. १६१०, आदि: (-); अंति: तस्मादित्यक्षरार्थः. ५९२४८. दृष्टांतशतक, संपूर्ण, वि. १८५३, पौष कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १८, प्रले.पं. विवेकसागर; पठ.मु. नथु (गुरु पं. विवेकसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, ६४३९).
दृष्टांतशतक, मु. तेजसिंघ ऋषि, सं., पद्य, आदि: नत्वा श्रीवृषभं सदा; अंति: धीरैर्विशोध्यं वरै, श्लोक-१०२. ५९२४९. सिद्धांतगाथा संग्रह व विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १५-१७X५५). १. पे. नाम. सिद्धांतगाथा संग्रह, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: भावेणघोसिरे, गाथा-७२. २.पे. नाम. सिद्धांतविचार संग्रह, पृ. ३अ-१८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अति: (-). ५९२५०. कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७.५४१२, १२४३८).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम व्याख्यान अपूर्ण मात्र
कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: तीणइ कालि तीणइ समइ; अंति: (-). ५९२५१. वंगचूलिका प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, दे., (२७४१२, ५४२१).
वंगचूलिका प्रकीर्णक, आ. यशोभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भत्तिब्भरनमियसुरवर; अंति: दढचित्तोह हवइ दियहं.
वंगचूलिका प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्तिना भरसमुह तेणे; अंति: चित प्रतितवंत होज्यो. ५९२५२. आगमिक गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६.५४११.५, ५४२६-३५).
आगमिक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: सालवणो पडतोवि अप्प; अंति: (-), (पू.वि. आयु उदाहरण पाठ अपूर्ण तक
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
५९२५३. (*) कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य कल्पांतर्वाच्यानि, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ७७-६५ (१ से ६५ ) = १२. प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न, जैदे. (२६. ५x११, १३x४०-५० ).
"
कल्पसूत्र - अंतर्वाच्य *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: रतः श्रीसंघभट्टारकः, (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण से है.) ५९२५४. (+) शुकराज कथा, संपूर्ण, वि. १४८९, वैशाख कृष्ण, ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले. स्थल. पत्तन प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. कुल ग्रं. ५००, जैदे., (२७४११, १२X४६).
शुकराज कथा - शत्रुंजयमाहात्म्ये, आ. माणिक्यसुंदरसूरि सं., गद्य, आदि: श्रीशत्रुंजयतीर्थेश : अंतिः कथासी लभतां प्रथाः.
५९२५५. (+) उपदेशमालावचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्रले. ग. चंद्रजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पंचपाठ - संशोधित., जैदे., ( २६.५X११, १५x५०).
उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंदन; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४,
संपूर्ण.
יי
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उपदेशमाला - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नत्वा जिनवरेंद्रान, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "प्रविहरति स्वेच्छया विचरंति" पाठ तक है.)
५९२५६. (+०) सप्तस्मरण, अपूर्ण, वि. १८५०, कार्तिक शुक्ल, १५, रविवार श्रेष्ठ, पृ. १९-४ (५,७,१० से ११) १५,
ले. स्थल विसलनगर, प्र. वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात् संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२७४१२, १०x२३-२६). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० हवइ, अंति: जैन जयति शासनम्,
स्मरण-७, (पू.वि. भयहरस्तोत्र की गाथा-८ अपूर्ण से २० अपूर्ण तक, अजितशांति की गाथा - ७ अपूर्ण से १३ अपूर्ण एवं गाथा-२८ अपूर्ण से ४० तक तथा भक्तामर स्तोत्र के श्लोक-१ से ५ अपूर्ण तक नहीं है.)
३
५९२५७. (+) लघुसंग्रहणि व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५२, माघ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. २, ले. स्थल. सीरोहीनगर,
प्र. ग. नायक विजय (गुरुग. कपूरविजय); गुपि. पं. कपूरविजय गणि (गुरु पंन्या. केसरविजय); पंन्या. केसरविजय (गुरु
न्या. नयविजय); पठ. मु. खुशाल (गुरु ग. नायकविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. आदिसरजिन प्रसादात्, संशोधित., जैदे., (२५X११.५, १३४३४).
१. पे. नाम. लघुसंगाहणि, पृ. १आ-१६अ, संपूर्ण.
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३४९. २. पे. नाम, गाथा संग्रह, पृ. १६अ, संपूर्ण.
जैन गाथा *, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-).
"
,
५९२५८. (d) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४-२ (४,११) = १२, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५४१२, ६-८४३०-३४)
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- ४, गाथा- ३२ अपूर्ण से ३३ अपूर्ण तक, अध्ययन- ५, गाथा- ३० अपूर्ण से ४३ अपूर्ण तक एवं गाथा- ९० के बाद नहीं है.)
५९२५९. (+) संबोधसत्तरी सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५.५४१९, ४४३८). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोयगुरु: अंतिः सो लहइ न इत्व संदेहो, गाथा- ७२. संबोधसत्तर- बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्करीनइ त्रिभुवननउ, अंति: ते लहइ ईहा संहेद नही.
५९२६०. (+) सप्तस्मरण, संपूर्ण, वि. १८२३ माघ शुक्ल, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. १०. कुल पे. २, ले. स्थल. जालोरनगर,
प्रले. पं. आगमसागर, पठ. श्राव. वसता (गुरु पं. आगमसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २६.५X११, ११x४२-४४).
१. पे. नाम, सप्तस्मरण, पृ. १आ १०आ, संपूर्ण.
सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं हवइ, अंति: जैनं जयति शासनम्,
स्मरण- ७.
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२. पे नाम, विजयदेवसूरि स्तुति, पृ. १०आ, संपूर्ण
सं., पद्य, आदि: श्रीमेडतापुरमहीललला, अंति: द्यगुरुराजकृत्ताधिसेवः, गाथा- १.
५९२६१. (+) वैराग्यशतक सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. पं. हितविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र. वि. द्विपाठ-संशोधित, जैदे., (२५.५X११.५, १४X३०-४२).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारम्मि असारे, अंति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, गाथा- ११०. वैराग्यशतक - अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अहो प्राणी संसार, अंति: जाणीने अंगीकार करवो.
५९२६२. (+) संबोधसत्तरी सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १३-३ (१ से ३) १०. पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. पदच्छेद
सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२८x११, ४X४५).
संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा २० अपूर्ण से १०७ अपूर्ण तक
""
है.)
संबोधसप्ततिका - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
५९२६३. (+) आदिनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १६७४, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. १०, प्रले. मु. मोहनदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६.५X११, १३४३९).
आदिजिन चरित्र, प्रा.सं., गद्य, आदि: धण मिहुण महब्बल च; अंतिः त्पाटो केवलज्ञानमापः. ५९२६४. सम्यक्त्वसार कुलक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८७८, फाल्गुन शुक्ल, ६, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, प्र. वि. त्रिपाठ., जैदे., ( २६.५X११.५, १-५X४०-५०).
१. पे नाम, सम्यक्त्वसार कुलक सह वालावबोध, पृ. १अ ८अ संपूर्ण
सम्यक्त्वसार कुलक, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महावीरं लोआलोअ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा ३४ तक लिखा है.)
सम्यक्त्वसार कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि नमिऊण महावीर, अंति: जाणिवं भव्यजीव, संपूर्ण.
२. पे. नाम. पंचाशक प्रकरण - गुर्वाज्ञाकथन की टीका, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
पंचाशक प्रकरण- हिस्सा गुर्वाज्ञाकथन की टीका, सं., गद्य, आदिः षष्टाष्टमद्वादशैः; अंति: गुरुगच्छमुपागताः. ५९२६५. (+) उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ९. प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२७४११, १९६२-६७).
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""
उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: सोहेयव्वं पयत्तेण, गाथा-५४४. ५९२६६. (+) स्याद्वादरत्नाकर सूत्र, संपूर्ण, वि. १८०५, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल. उदयपुरनगर, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११.५, १५X३९).
प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, आ. वादिदेवसूरि, सं., प+ग., वि. १९५२-१२२६, आदि: रागद्वेषविजेतारं; अंति: स्फूर्ति च वाच्यम्, परिच्छेद ८, सूत्र- ३७९.
५९२६७. (+#) श्रावक अतिचार आलोयणा चौपाई, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १९-११ (१ से १०, १२) =८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७११, ९३८).
श्रावक अतिचार आलोयणा चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ३४ से ४७ व गाथा-५९ अपूर्ण से १५३ तक है.)
५९२६८. (+) मेरुतेरस कथा संपूर्ण, वि. १९६४, पौष शुक्ल ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. पाटणनगर, प्रले. मणीलाल लखमीचंद पांडे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., ( २६.५X११.५, ११X३५-४८).
मेरुत्रयोदशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य भारती; अंति: स मुक्ति साधनं.
"
५९२६९. (A) पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ९. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६५११, १३x४३). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., पग, आदि: अन्नाणमोह दलणी जणणी, अंति: मिच्छामि दुकडं.
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५९२७०. (+) नवतत्त्व सह टीका आदि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, ले. स्थल. गगडाणी, प्रले. मु. वनवीर
(नागोरीगच्छ); पठ. मु. पंचायण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित कुल ग्रं. ४७७, जैदे., (२७.५४११.५, १६४५३).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
१. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टीका, पृ. १अ - ६आ, संपूर्ण, वि. १७०३, माघ कृष्ण, १३. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः परिअट्टो चैव संसारे, गाथा ६०.
"
नवतत्त्व प्रकरण- टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानजिनपति, अंतिः स्यादिति गाथार्थः ग्रं. ४७७. २. पे. नाम. चक्रवर्तिआदि नाम, पृ. ६आ, संपूर्ण.
चक्रवर्ती कुलकरबलभद्रवासुदेवप्रतिवासुदेव नाम, सं., गद्य, आदि आर्षभिर्भरतस्तत्र, अंति: लंकेशमगधेश्वराः. ३. पे. नाम. एकलविहारी ८ बोल, पृ. ६आ, संपूर्ण.
प्रा. पद्य, आदि अहिं ठाणेहि अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. "भणीयंविव्विवसरीरंति पाठ तक लिखा है.)
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"
५९२७१. यंत्रराज की टीका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, जैदे. (२७४१२, १५४३८-४२). यंत्रराज- टीका, आ. मलवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य सर्वज्ञपदारव, अंति: ( ) ( पू. वि. सौम्ययाम्यव्यास गणना तक है.)
५९२७२. (+) ज्ञानद्रव्य कथा, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. संशोधित. वे. (२८४१२, ११४३१).
ज्ञानद्रव्य कथा, सं., गद्य, आदि: श्रीज्ञानसाधारणवित्त, अंति: यमित्ताई पालिया.
"
५९२७३ (+) चतुर्मासपर्वप्राभातिक व्याख्यान, संपूर्ण वि. १८९९ आषाद, श्रेष्ठ, पृ. ११ ले, स्थल, पेथापुर प्रले. मु. नरेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न - टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२७४१२, ११x४२-४७)आषाढकार्तिकफाल्गुनचातुर्मासिक व्याख्यान, सं., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वसुखमागारं अंतिः कर्तव्यमिति श्रेयः ५९२७४. (+) संग्रहणी सूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १९ - १ (१५) = १८, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२७X११, १२X३५). वृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिठं अरिहंताई ठिङ, अंति: (-), (पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा - १८० अपूर्ण तक है.)
५९२७५. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४६२ - १ (८२) = ४६१, प्र. वि. संशोधित कुल ग्रं. १६५००, जैदे., (२७.५X११, ५X३३-३७).
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए अंतिः णायाधम्मकहाओ
"
समत्ताओ, अध्ययन - १९, ग्रं. ५५००, ( पू. वि. बीच के कुछ पाठांश नहीं है.)
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ध्यात्वा वीरं जिनं०; अंतिः बिजो संपूर्ण थयो, ग्रं. १०५००.
५९२७६. (+) जीवाभिगमसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २३१-२ (३ से ४)-२२९ पठ. श्राव वाना दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र. वि. संशोधित कुल ग्रं. ४८००, जैदे., (२७४११, ११४३४).
"
जीवाभिगमसूत्र, प्रा. गद्य, आदि: णमो उसभादियाणं चउवीस अंति: सेनं सव्वजीवाभिगमे, प्रतिपत्ति-१०, सूत्र- २७२, ग्रं. ४७५०, (पू.वि. बीच के कुछ पाठांश नही है.)
"
५
५९२७७. (+) उपदेशमाला सह दोघट्टीविशेष वृति, संपूर्ण वि. १४२२, पक्षाक्षवेदशीतांशु, मध्यम,
पृ. २१९+३(१२,१०३,१७१) = २२२, ले. स्थल, अणहिलपुर, लिख श्रावि गांगीदे नयणसिंह, उप आ. देवसुंदरसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिकावुत, संशोधित कुल ग्रं. ११७६४, जैवे. (२६.५x११.५, १७४५४).
उपदेशमाला. ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण जिणवरिंदे इंद, अंतिः जयंमि थिर थावरा होउ, गाथा- ५४४. उपदेशमाला-दोपट्टी विशेषवृत्ति, आ. रत्नप्रभसूरि, प्रा. सं. गद्य वि. १२३८, आदिः वस्वारघट्टस्य घनोपदे अंतिः वर्षे माघे समर्थिता, ग्रं. १११५०.
יי
',
५९२७८, (+४) कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १२२-४(१ से ४)+१ (४४)=११९, पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ७-१४२४-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-) अंति: (-). (पू. वि. देवानंदा ऋषभदत्त संवाद से सामाचारी अपूर्ण तक है.)
कल्पसूत्र - टवार्थ मा.गु, गद्य, आदि (-); अंति: (-).
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५९२७९. (+) षडावश्यकसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८९-६९(१ से ६४,८१ से ८५)=१२०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११.५, ३-११४२७). आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: इअसमत्तं मे गहिअं, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.,
चैत्यवंदन अपूर्ण से रचनाप्रशस्ति अपूर्ण तक है.) षडावश्यकसूत्र-टबार्थ+बालावबोध, मु. जिनविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७५१, आदि: (-); अंति: (-), पृ.वि. प्रथम
व अंतिम पत्र नहीं है. ५९२८०. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १७६५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १५८-४(१ से ४)=१५४, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५.५४१०.५, ५-१५४३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढम; अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९,
ग्रं. १२१६, संपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (१)श्रीवर्द्धमानमानम्य, (२)नमस्कार अरिहंतने हुव; अंति: कल्प उपदेश्यो
कहियो, संपूर्ण. कल्पसूत्र-कथा संग्रह *, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुकड न देवो, (अपूर्ण, पू.वि. नागकेतु कथा
अपूर्ण से है.) ५९२८१. (+#) ऋषिमंडल प्रकरण सह टबार्थ, दृष्टांतकथा व कथासूची, संपूर्ण, वि. १८७८, ज्येष्ठ शुक्ल, १२, शनिवार, श्रेष्ठ,
पृ. ८४, कुल पे. २, ले.स्थल. भीनमालनगर, प्रले. मु. नवलचंद (गुरु पं. भीमविजय); गुपि.पं. भीमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतीनाथजी श्रीपार्श्वप्रभु प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. २३४, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४११, ५-१५४५१). १. पे. नाम. ऋषिमंडल प्रकरण सह टबार्थ व दृष्टांत कथा, पृ. १आ-८४अ, संपूर्ण.. ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि,प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: भत्तिब्भरनमिरसुरवर; अंति: धम्मघोस० सिद्धिसुह,
गाथा-२३४, ग्रं. २५९. ऋषिमंडल प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्तिने भर समुहे; अंति: कर्ताये नाम जाणवो.
ऋषिमंडल प्रकरण-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: पांचेनमेकरि सहित; अंति: पाली स्वर्गे गया. २. पे. नाम. ऋषिमंडल दृष्टांतकथा सूची, पृ. ८४अ, संपूर्ण.
ऋषिमंडल प्रकरण- बीजक, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: १आदीश्वर दृ० २ महा; अंति: दिवाकर वृथोवादी. ५९२८२. (+) उपदेशतरंगिणी, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १३४५०).
उपदेशतरंगिणी, ग. रत्नमंदिरगणि, सं., पद्य, आदि: श्रीनाभेयः स वो देया; अंति: (-), (पू.वि. धर्मोपदेश-९ अपूर्ण तक
५९२८३. (+) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८१७, फाल्गुन शुक्ल, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६२, ले.स्थल. कालाऊना, प्रले.ग. क्षमामेरु; पठ. पं. गिरधर (गुरु ग. क्षमामेरु), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२७X१०.५, ११४३३).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-८, ग्रं. १२१६. ५९२८४. गौतमपृच्छा सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८१-१४(१ से २,६८ से ७९)=६७, जैदे., (२७.५४११.५, ९४३५-३७).
गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-९ अपूर्ण से ५४ तक हैं.)
गौतमपृच्छा-टीका*,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. ५९२८५. (+) उपदेशमाला सह टबार्थ+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५३-२१(१ से २१)=३२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १२४४०-४६).
उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३५ अपूर्ण से ८८ तक है.) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५९२८६. (+) अंतगडदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४११, १३४४०).
अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: (-), (पू.वि. "अट्ठमे चेव दिवसेसु
उद्दिसंति तत्थय" पाठ तक है.)
अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अंतगड शब्दस्य कः; अंति: (-). ५९२८७. रायपसेणीयसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १२२-१९(१ से ४,३५ से ४२,४५ से ४६,५२ से ५३,६८ से ६९,८२)=१०३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४११.५, ६४३५-४८). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. आभियोगिक देवों के द्वारा सूर्याभदेव के आज्ञापालन के वर्णन
अपूर्ण से दृढ़प्रतिज्ञ की अनासक्ति के वर्णन अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.)
राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-)... ५९२८८. (+) भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६०९-५२८(१ से ५२४,५२८,५३१ से ५३२,५८७)=८१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ११४३६-४३). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., आरंभ से "इवए सव्वा
मावइजोए" तक, "तत्थ परिमंडलासं" से "देसिए पणतीसए देसो गाढे" तक, ""जावसियकलि योगसमय" से "याणं
जावअणिदियाणाय कया रे" तक, एवं "छएवं काउलेस्स भवसिद्धाएहि" तक नहीं है.) ५९२८९. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १८७४, कार्तिक शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. १०८-८२(१ से ८२)=२६, पठ. मु. रतनचंद
(गुरु मु. विसनदास); मु. खुबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४१२, ५४३६-४८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.,
अध्ययन-२३ गाथा-१ अपूर्ण से २८ अध्ययन तक है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं. ५९२९०. रायपसेणीयसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदे., (२७४१२, ७X४०-४५).
राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताण० तेण; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., "तोरणाणपुरउ
दोदोवइरन्नीभा" पाठ तक है.) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., बीच-बीच में टबार्थ दिये गये
५९२९१. (+) उववाईसूत्र सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२७४११.५, ९-१५४३४-४६).
औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेण० चंपा०; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., "पडिसाहरति
सत्तमेसमएकयाडपडि" पाठ तक है.) औपपातिकसूत्र-टिप्पण*, मागु.,सं., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., वि. पत्र
___ खंडित होने के कारण आदिवाक्य अवाच्य है.) ५९२९२. (+) तंदुलवैचारिकप्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २६, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२७.५४१२, ५४३५).
तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग., आदि: निजरिय जरामरणं; अंति: कारणं लहइ सिवसुक्खं.
तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: मोक्षसुख पामइ ए कारण. ५९२९३. (+) गाथाकोश, संपूर्ण, वि. १५८५, ज्येष्ठ कृष्ण, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. मेडतानगर, प्रले. आ. जिनदेवसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११.५, १४४३३-४८).
गाथाकोश, प्रा., पद्य, आदि: वंदिय वीरं धीरं गंभी; अंति: हा पुण भुवा विहरती, गाथा-४३५.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५९२९४. (#) नवस्मरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं..प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ४४३०). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: (-), (पू.वि. भक्तामर स्तोत्र के
श्लोक-२५ अपूर्ण तक है.)
नवस्मरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ते त्रिभुवननी पुजा; अंति: (-). ५९२९५. (+) संघपट्ट सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्रले. श्रावि. नाथीबाई; अन्य. श्रावि. हेमकुंवर बाई; मु. देवजी ऋषि; श्रावि. सूताबाई; नाथा बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४११.५, ४४३२).
संघपट्टक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, आदि: वह्निज्वालावलीढं; अंति: यापीत्थं कामहे, श्लोक-४०.
संघपट्टक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: व० अगनि तेहनी ज्वाला; अंति: महापराभव पामीई छई. ५९२९६. (+) प्रतिक्रमण सूत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०-२१(१ से २१)=९, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद
सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११.५, १२४३१-३४). १. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. २२अ-२३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं,
(पू.वि. "आहारसण्णाए भयससण्णाए" पाठ से है.) २. पे. नाम. प्रवज्या कुलक, पृ. २३आ-२५आ, संपूर्ण.
प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संसार विसमसायर भवजल; अंति: तरंति ते भवसलिलरासिं, गाथा-३४. ३. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. २५आ-२७आ, संपूर्ण.
वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धेः अंति: वंदामि जिणे चोवीसं, गाथा-५०. ४. पे. नाम. संथारापोरसीसूत्र, पृ. २७आ-२८आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: जीवा कम्मवसु० खमंतु, गाथा-१४. ५. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र- अध्ययन १ से २, पृ. २८आ-२९अ, संपूर्ण.
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६.पे. नाम. उपदेशमाला स्वाध्याय, पृ. २९अ-३०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है.
पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. गाथा ३३
__ अपूर्ण तक है.) ५९२९७. (+) दशवैकालिकसूत्र, पूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-१(३)=२४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४४५).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: सव्वदुहाण मुच्चइ,
___ अध्ययन-१०, (पू.वि. अध्ययन- ४ सूत्र-१ अपूर्ण से ५ अपूर्ण तक नहीं है.) ५९२९८. (+) सम्यक्त्वकौमुदी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११, १३४३८-४८).
सम्यक्त्वकौमुदी कथा, उपा. विनीतसागर, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानमानम्य; अंति: सर्वतीर्थमभ्यागतः, ग्रं. १५८७. ५९२९९. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५७-१३२(१ से ४७,५९ से १२८,१३३ से १४७)=२५,
पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७.५४१२, ४४३४-४५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ से अध्ययन-१२ गाथा-५ अपूर्ण से
अधययन-१३ गाथा-३३ से अध्ययन-२३ गाथा-८६ अपूर्ण तक, अध्ययन-२५ गाथा-१ अपूर्ण तक व अध्ययन-२७
गाथा-१४ अपूर्ण तक व अध्ययन-२८ तक है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ + कथा संग्रह , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५९३००. (+) सूत्रकृतांगसूत्र सह बालावबोध श्रुतस्कंध-२, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४-१(१)=३३, पू.वि. बीच के पत्र हैं.,
प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२७.५४११, १४४४१).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
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सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति: (-) (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. अध्ययन- १ अपूर्ण से अध्ययन-३ अपूर्ण तक है.)
सूत्रकृतांगसूत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण.
५९३०१. (+) आचारांगसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. त्रिपाठ संशोधित, जैये. (२७४११ २ १५X४६-५२)
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आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे, अंति: (-), (पू. वि. श्रुतस्कंध १ अध्ययन- २ उद्देशक- ६ अपूर्ण तक है.)
आचारांगसूत्र- बालावबोध, आ. पार्थचंद्रसूरि, मा.गु. गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीजिनाधीशं अंति: (-). ५९३०२. (+#) शतककर्मग्रंथ सह स्वोपज्ञ टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१२, २१X५५-६०).
शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: (-), ( पू. वि. गाथा - २५ तक है.)
शतक नव्य कर्मग्रंथ - स्वोपज्ञ टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः यो विश्वविश्वभविना; अंति: (-). ५९३०३. वाग्भट्टालंकार, संपूर्ण, वि. १९०८, कार्तिक शुक्ल, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २४, ले. स्थल. जहानाबाद, प्रले. देवीदीन ईश्वरीप्रसाद पाठक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७,५४११.५, ७२७-३२).
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वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रियं दिशतु अंति: सारस्वताध्यायिनः, परिच्छेद-५. ५९३०६. बृहत्क्षेत्रसमास सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ९. पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. जैदे. (२७.५४११, ८४४५). बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ६वी, आदि: नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण, अंति: (-), ( पू. वि. गाथा - १६३ अपूर्ण तक है.)
जंबूद्वीप प्रकरण - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: निमस्कार होउं जलसहित; अंति: (-).
५९३०७, (+) वाग्भटालंकार सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ७-१ (४) =६, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें. जैवे. (२७.५४११.५, २१-२२४७६-७८)
वाग्भटालंकार, जै. क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रियं दिशतु अंति: (-), (पू. वि. परिच्छेद ४ के श्लोक-११ तक व श्लोक-३४ अपूर्ण से श्लोक-१११ अपूर्ण तक है.)
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वाग्भटालंकार-टीका, आ. जिनवर्धनसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीमान् श्रीआदिनाथः; अंति: (-).
५९३०८. पक्खी स्तोत्र व भारती स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८६८, चैत्र कृष्ण, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ११-५ (६ से १०)-६, कुल पे. २, प्र. ग. कांतिविजय (गुरुग न्यानविजय, तपागच्छ); गुपि. ग. न्यानविजय (गुरु ग. नेमविजय, तपागच्छ); ग. नेमविजय (गुरु पंन्या. खेमाविजय, तपागच्छ); पठ. पं. देवविजय (गुरु गं. कांतिविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, जैवे. (२७४१२, १५४४१). १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि: तित्यंकरे व तित्थे अंतिः (-) (पू.वि. "छडे भंते वएराई भोअणा' तक पाठ है.) २. पे. नाम. भारती स्तोत्र, पृ. ११अ अपूर्ण. पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
सरस्वतीदेवी स्तवन, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: यान् मावहति चिरकालं, श्लोक - ९, (पू.वि. श्लोक ५ अपूर्ण से है . ) ५९३०९ चतुर्दशीचैत्यवंदन, अजितशांति, बृहत्शांति व स्नातस्वा स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ४, जै., (२७.५४११.५, १३४३८).
1
१. पे. नाम. चतुर्दशी चैत्यवंदन, पृ. १अ २आ, संपूर्ण.
सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठान, अंति: मणं शरीरं वसुपसनं श्लोक-३७.
२. पे. नाम. अजितशांति स्तव, पृ. २आ-५आ, संपूर्ण.
आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि अजियं जियसव्वभयं संत अंतिः जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा- ४०. ३. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, पृ. ५आ - ७आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैन जयति शासनम्. ४. पे. नाम. स्नातस्या स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण.
पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ५९३३०. (+#) खंडप्रशस्ति सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १४४४१).
खंडप्रशस्ति, क. हनुमान, सं., पद्य, आदि: कृत क्रोधे यस्मिन्; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-८७ तक है.)
खंडप्रशस्ति-सुबोधिका टीका, पं. गुणविनय गणि, सं., गद्य, वि. १६४१, आदि: श्रीपार्श्व फलवर्द; अंति: (-). ५९३३२.(+) सप्तव्यसन कथासमुच्चय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६५-४९(१ से १९,२९ से ३३,३८ से ४२,४४ से ४९,५१ से ६४)=१६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १४४४३). सप्तव्यसन कथासमुच्चय, आ. सोमकीर्ति, सं., पद्य, वि. १५२६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-३ अपूर्ण से सर्ग
७अपूर्ण तक है.) ५९३४३. (#) वसुधारा महाविद्या, संपूर्ण, वि. १९४६, कार्तिक शुक्ल, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. कपडवणज नगर, प्रले. हेतराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, ९४२५).
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैनस्य; अंति: च भोगं करोति. ५९३४९. (+#) पुराण श्लोक संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७२४, कार्तिक कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १८-१(१२)=१७,
ले.स्थल. घोसहीनगर, प्रले. मु. भरथ; पठ. मु. नरहर (गुरु मु. भरथ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१०.५, ६x४६). पुराणहुंडी, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रूयतां धर्मसर्वस्व; अंति: स्मरणेनापि तत्फलं, श्लोक-२८३, (वि. १७२४,
पू.वि. श्लो-१७५ अपूर्ण से श्लोक-१९१ अपूर्ण तक नहीं है.)
पुराणहुंडी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: धर्म सघलाइ सांभलीइ; अंति: स्मरण थकी ते फल होइ. ५९३५३. (#) जैनसिद्धांत संदर्भश्लोक-पुराणगत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १२४३३). जैनसिद्धांत संदर्भश्लोक-पुराणगत, सं., पद्य, आदि: अहिंसा १ सत्य २; अंति: (-), (पू.वि. अधिकार-११, श्लोक-६६
अपूर्ण तक है.) ५९३६३. वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७६९, भाद्रपद कृष्ण, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. ८, प्रले. मु. केसरसोम (गुरु पं. धनसोम गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२,११४३२-४०).
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: तस्य सुखं भवति. ५९३७१. (#) पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १८४९, फाल्गुन कृष्ण, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. ५,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १३४५४-५८).
पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती; अंति: गर्ग०सत्योपासक केवली, श्लोक-१८३. ५९३७७. वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२६.५४११.५, १२४३३).
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: भोगं च करोति. ५९३७८. (#) वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९००, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. लक्ष्मीचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, ११४३४).
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैनस्य; अंति: भोगं च करोति. ५९३८४. (+) वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७९९, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १२४४५).
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: वृद्धिर्भवतिः स्वाहा. ५९४०२. (+#) सप्तव्यसन कथासमुच्चय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६४-३९(१ से ७,९ से ३७,४३ से ४४,५०)=२५,
पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १५४३३).
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११
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
सप्तव्यसन कथासमुच्चय, आ. सोमकीर्ति, सं., पद्य, वि. १५२६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश
हैं.)
५९४१६. (+) आर्यवसुधरा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८४२, आश्विन कृष्ण, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १०x४३).
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. ५९४१८. आर्यवसुधरा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्रले. मु. वीरचंद ऋषि (गुरु मु. सुमतिसागर ऋषि);
गुपि. मु. सुमतिसागर ऋषि; पठ. मु. हरदत्त ऋषि (गुरु मु. देवदत्त ऋषि); गुपि. मु. देवदत्त ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६४११.५, १०४३१).
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. ५९४२४. दसआश्चर्य वर्णन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८१-७६(१ से ७६)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११.५, १३४२९-३५).
१० आश्चर्य वर्णन, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. आश्चर्य ४ अपूर्ण से आश्चर्य ५ अपूर्ण तक का पाठ हैं.) ५९४२५. बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३५, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ६३, जैदे., (२६४१२, ४४२१-२४).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३१७,
(प्रले. मु. किसनचंद (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ **, मा.गु., गद्य, आदि: नमी वांदीनइ अरिहंतनइ; अंति: लोकमांहि प्रवर्तउ, (प्रले. पं. तिलोकचंद
(खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य) ५९४२६. (+) अनुयोगद्वारसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७६२ कृष्ण, ११, जीर्ण, पृ. ६६-५(१,१५,२९ से ३०,४७)=६१,
ले.स्थल. मेडतानगर, प्रले. सा. भांगा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ जीर्ण होने के कारण पत्रांक काल्पनिक दिया गया है, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ७४५७-६२). अनुयोगद्वारसूत्र, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: जंचरणगुणट्ठिओ साहू, प्रकरण-३८, ग्रं. २०८५,
(पू.वि. प्रकरण १, ५ व २६ अपूर्ण है.)
अनुयोगद्वारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (वि. पत्र खंडित होने के कारण अंतिमवाक्य अवाच्य है.) ५९४२७. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५३, आषाढ़ कृष्ण, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. ६१, प्रले. श्राव. माइदास मुथा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५.५४१२, ५-८४३५-३८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई इतिब्बैमी,
अध्ययन-१०.
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ध० जीवनइ दुर्गती; अंति: नी० सदाइ मौखत्ता. ५९४२८. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५७-९९(१,३३ से १३०)=५८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, ५४३६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ गाथा-६ अपूर्ण से
अध्ययन-१० गाथा-१० अपूर्ण तक व अध्ययन-२९ गाथा-६२ अपूर्ण से अध्ययन-३४ गाथा-२० अपूर्ण तक है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अति: (-). ५९४२९. (#) गौतमपृच्छा सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १५४४३).
गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६२ तक है.) गौतमपृच्छा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमि नमस्कार करी; अंति: (-). गौतमपृच्छा-कथा संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: वसंतपुर नगरनइ पासइं; अंति: (-).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५९४३०. (+) लघुसंग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८४०, फाल्गुन शुक्ल, १२, जीर्ण, पृ. ७१-२१(१ से २१)=५०,
ले.स्थल. स्याणानगर, प्रले. पंन्या. वनीतविजय (गुरु पं. कनकविजय); पठ. पं. प्रेमविजय (गुरु पं. हर्षविजय); गुपि.पं. हर्षविजय (गुरु पंन्या. वनीतविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (७२२) जाद्रिसं पुस्तके द्रिष्ट्वा, जैदे., (२५.५४१२, १-४४३१). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: नंदोजा वीर जिण तित्थ, गाथा-३६४, (पू.वि. गाथा
१०६ अपूर्ण से है.)
बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जगै ए आसीस वचन जाणवौ. ५९४३१. (+#) धन्यचरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८३-३४(१ से ३४) ४९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ६४३४-३८).
दानकल्पद्रुम, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पल्लव-४ अपूर्ण से पल्लव-८ अपूर्ण तक है.)
दानकल्पद्रुम-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ५९४३२. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४९, जैदे., (२६४१२, १-१८४३९-४२).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपुणागमं गइत्ति बेमि,
अध्ययन-१०. दशवकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: धम्मो० दुर्गति पडता; अंति: जंबू प्रते कह्यु.
दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: (-). ५९४३३. (+#) अंतगडदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४५+१(४१)=४६, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. १९५१, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ८४४०-४५). अंतकृदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय-९२,
ग्रं. ८९९.
अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणि कालि चउथइ आरि; अंति: धर्मकथा माहि छे तिम. ५९४३४. (+) उपासकदशांगसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९२७, वैशाख शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ४०, ले.स्थल. मगसुदाबाद,
प्रले.मु. गोकलचंद ऋषि; अन्य. आ. शातिसागरसूरि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२५.५४११.५, २-१२४४७). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेण; अंति: दिवसेसु अंग तहेव, अध्ययन-१०,
ग्रं.८१२. उपासकदशांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १११७, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: कुर्वतां प्रीतये
मे, अध्ययन-१०. ५९४३५. (+) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९२३, कार्तिक शुक्ल, १४, बुधवार, मध्यम, पृ. ६४-२६(१ से २६)=३८,
ले.स्थल. नागोर, प्रले. मनीराम जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६४११.५, ६४३२-३५).
उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: दिवसेसु उदिसंति, (पू.वि. अध्ययन-६ अपूर्ण से
उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: विषे दि० उपदिसे साधु. ५९४३६. (+#) श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १८८४, कार्तिक शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ३६, ले.स्थल. नागोर, अन्य. मु. हेमसागर (अचलगच्छ); मु. चेनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १३४४२).
श्रीपाल चरित्र, ग. जयकीर्ति, सं., गद्य, वि. १८६८, आदि: प्रणम्य सिद्धचक्रं; अंति: कृतं च जयकीर्त्तिना, प्रस्ताव-४. ५९४३७. (+#) परीक्षामुख सह लघुवृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३२-१(१)=३१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १९-२३४५०-५३).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
१३ परीक्षामुखसूत्र, आ. माणिक्यनंदि, सं., पद्य, वि. ५६९, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., सूत्र २ से है व २०५ तक लिखा है.) परीक्षामुखसूत्र-प्रमेयरत्नमाला टीका, आ. अनंतवीर्यजी, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है
व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५९४३८. हरिश्चंद्रतारालोचनीचरित्र, संपूर्ण, वि. १८१७, फाल्गुन शुक्ल, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१, ले.स्थल. सांडेरानगर,
प्रले. पं. मुनिविजय गणि (गुरु ग. अमृतविजय); गुपि.ग. अमृतविजय (गुरु पं. लालविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रशादात्, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३६). - हरिश्चंद्रराजा चौपाई, मु. कनकसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: पासजिणेसर पाय नमु; अंति: संघनी पूगइ मनह
जगीश, खंड-५, गाथा-७८१. ५९४३९. (+#) नवतत्त्व प्रकरण, जीवविचार प्रकरण, दंडक प्रकरण व संग्रहणीसूत्र सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम,
पृ. ३१-२(१,२४)=२९, कुलपे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, ९४२७-३०). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टिप्पण, पृ. २अ-५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४९, (पू.वि. गाथा ७ अपूर्ण से है.)
नवतत्त्व प्रकरण-टिप्पण*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टिप्पण, पृ. ५अ-९अ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: शांतिसूरि०
समुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टिप्पण*, सं., गद्य, आदि: त्रिभुवने प्रदीप; अंति: श्रुत समुद्धात. ३. पे. नाम. दंडक प्रकरण सह टिप्पण, पृ. ९अ-१२अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, म. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ.
गाथा-३९. दंडक प्रकरण-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: नत्वा चतुर्विंशति; अंति: विज्ञप्ति आत्महिता. ४. पे. नाम. बृहत्संग्रहणी सह टिप्पण, पृ. १२अ-३१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४७ तक व
गाथा-१६२ अपूर्ण से गाथा-२६८ तक है.)
बृहत्संग्रहणी-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: नत्वा अरिहंता दीन्; अंति: (-). ५९४४०. कल्पसूत्र सह प्रवचन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदे., (२६४१२, ५-१३४३०-३६).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., भगवान महावीर जन्म प्रसंग अपूर्ण लिखा तक है.) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: सकलार्थसिद्धिजननी; अंति: (-), अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५९४४१. (#) पूजापंचासिका सह कथा व कथासूचि, संपूर्ण, वि. १८७०, वैशाख शुक्ल, १४, मंगलवार, मध्यम, पृ. २८, कुल पे. २,
ले.स्थल. राजनगर (अमदावाद, प्रले. ग. वीरविजय (गुरु पं. जीवणविजय, वडतपागच्छ); गुपि.पं. जीवणविजय (वडतपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १३४३५-४०). १. पे. नाम, पूजापंचासिका सह बालावबोध, पृ. १आ-२८अ, संपूर्ण.
स्नात्रपंचाशिका, ग. शुभशील, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य श्रीजिनान्; अंति: मुक्ति सुखार्थिना, कथा-५०, श्लोक-५०.
स्नात्रपंचाशिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य क० प्रणाम; अंति: सुख एकभव करी पामस्ये. २. पे. नाम. पूजापंचासिका कथासूचि, पृ. २८अ, संपूर्ण.
स्नात्रपंचाशिका-कथासूचि, मा.गु., गद्य, आदि: धनसारनी कथा वीरवणीक; अंति: (-).
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१४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५९४४२. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८३९, श्रावण शुक्ल, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४१-१५(१ से १५)=२६,
ले.स्थल. कनकगिरि, प्रले. पं. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १६४५२). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४,
(पू.वि. श्लोक-२९ से है.)
कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, वा. मेघविजय, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: रभोराज्ञया वृत्तिम्. ५९४४३. (+) कल्पसूत्र पीठिका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, ११४४३). कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानस्य जिनेश; अंति: (-), (पू.वि. मल्लिनाथ प्रभु के केवलज्ञान
प्रसंग तक का पाठ है.) ५९४४४. (#) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७-२(१,१४)=२५, प.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १-३४३७-४१). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-१ अपूर्ण से आगे बीच-बीच
के पाठांश हैं.) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५९४४५. (+#) उत्तमचरित्र कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४८, वैशाख कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. २५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ६४३३).
उत्तमकुमार चरित्र, सं., गद्य, आदि: भक्त्या वस्त्राणि; अंति: मुक्तिं यास्यति.
उत्तमकुमार चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्ते करीने निर्दोष; अंति: मनुष्य थइ मोक्षे जशे. ५९४४६. (#) संग्रहणी सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २४, प्रले. मु. जगमल ऋषि; पठ. ग. जयवंत ऋषि (गुरु मु. जगमल ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ९४२७-३०).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३१६. ५९४४७. (+) पद्मावतीदेवी अष्टक की टीका, संपूर्ण, वि. १९७६, माघ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. २३, ले.स्थल. बीदाशर, प्रले. मु. ज्ञानभद्र; पठ. मु. मणिलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., ., (२५.५४१२, ९४३५-३८). पद्मावतीदेवी अष्टक-पार्श्वदेवीय वृत्ति, ग. पार्श्वदेव, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्यं जिनं देवं; अंति: छंदसांप्रायः,
ग्रं. ५००. ५९४४८. योगसार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१२, फाल्गुन शुक्ल, १, मध्यम, पृ. २२, प्रले. ग. हंसविजय (गुरु पंन्या. गजविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ३४३७).
योगसार, मु. योगींद्रदेव, अप., पद्य, आदि: णिम्मलझाणपरिट्ठया; अंति: जोगचंद०दोहा इक्कमणेण, गाथा-१०८.
योगसार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: निर्मल ध्यानने विषइ; अंति: नाम छंद सहित कीधा. ५९४५०. (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८२३, आश्विन शुक्ल, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. २१,
ले.स्थल. मुनराबंदर, प्रले. मु. जगन्नाथ ऋषि (गुरु मु. आसकरण ऋषि, लुंकागच्छ); गुपि.मु. आसकरण ऋषि (गुरु मु. चापसीह ऋषि, लुंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १-५४३०-३४).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ अजीवार पुन्नं३; अंति: अणागयद्धा अणतगुणा, गाथा-९७. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व १ चेतना; अंति: अणागत काल अनंत गुण.
नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीरजिनं नत्वा; अंति: (-). ५९४५१. (+) नवतत्त्व व जीवविचार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ.,
जैदे., (२६४१२, ५४३४).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
१.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-१५आ, संपूर्ण.
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवार पुण्णं३; अंति: छप्पया अणंतानेया, गाथा-९९, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदिः साचा वस्तुनो स्वरूप; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., गाथा-६१ तकटबार्थ लिखा है.) २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १५आ-२१आ, संपूर्ण.
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: ___ संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१६
से २० तक टबार्थ लिखा है.) ५९४५२. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२६, वैशाख कृष्ण, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, कुल पे. २,
ले.स्थल. देलवाडा, प्रले. पं. राघवकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४१२, ६४३८). १.पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ अध्ययन ३-१०, पृ. १अ-२०आ, संपूर्ण.
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. १८२६, वैशाख कृष्ण, १३) २.पे. नाम. जैनधार्मिक श्लोक संग्रह, पृ. २०आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक प्रा.,सं., पद्य, आदि: नागो जहा पंक जला; अंति: भोगा पुरिसंचयंति, श्लोक-३. ५९४५३. (+) प्रश्नोत्तर संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, १५४४६).
प्रश्नोत्तररत्नाकर, गच्छा. सेनसूरि ; मु. शुभविजय, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य परं ज्योति; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., उल्लास-२, प्रश्न-२८ अपूर्ण तक लिखा है.) ५९४५४. (+) शीलकुलक सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४१२, १९४४६). शील कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सोहग महानिहिणो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
गाथा ६ तक लिखा है.) शील कुलक-व्याख्या+कथा, सं., गद्य, आदि: (१)अथ धर्मस्य द्वितीयभे, (२)व्याख्या अहं तस्य; अंति: (-), अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५९४५५. (+) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-७(१ से ७)=१८, पठ. श्रावि. सवीराबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ५४२९-३२). पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: अभिग्गहे९ विरइ१०,
(पू.वि. करेमि काउस्सग्गं पाठ से है.)
आवश्यकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: त्याख्यान करइ नीवी. ५९४५६. षडशीतिकर्मग्रंथ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११.५, ४-१५४२९-३५). षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअजिणं जिअ१ मग्गण; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-२५ तक है.)
षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिअक० नमस्कार करी; अंति: (-). ५९४५७. चतुर्विंशतिदंडक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४९, वैशाख शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. लखमपुर,
पठ. श्रावि. लाला लक्ष्मीचंद-वह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (६०) कर कुबडी कठिन गत, (७२५) जहां लग मेरु अडग है, (१०८१) पोथी लिखी चित प्रेमसु, दे., (२५.५४१३, २४२७).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउ चोउवीसजिणे; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ,
गाथा-४२.
दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउंक० नमस्कार; अंति: आत्मानै हितनै अर्थनइ. ५९४५८. (+) अणुत्तरोववाईसूत्र, पूर्ण, वि. १८७४, वैशाख कृष्ण, ८, बुधवार, मध्यम, पृ. १७-१(१)=१६, ले.स्थल. इंद्रपत्तननगर,
प्रले. मु. दयाराम (गुरु मु. मनसाराम); गुपि. मु. मनसाराम (गुरु मु. नैणसुख); मु. नैणसुख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं.१९२, जैदे., (२६४१२, ६x४१).
अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (१)अयमढे पण्णत्ते, (२)तहा णेयव्वं,
अध्याय-३३, ग्रं. १९२, (पू.वि. प्रथम अध्ययन का प्रारंभिक पाठ नहीं है.) ५९४५९. (+) विशंति प्रकाश सह टीका, संपूर्ण, वि. १८४०, चैत्र कृष्ण, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. वासानगर, प्रले. पं. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वप्रभु प्रासादात्., संशोधित. कुल ग्रं. ६२५, जैदे., (२५४१२.५, १८:५५). वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: यः परात्मा पर; अंति: फलमीप्सितम्,
प्रकाश-२०. वीतराग स्तोत्र-अवचूरि, मु. विशालराजसूरि-शिष्य, सं., गद्य, वि. १५१२, आदि: जयति श्रीजिनो वीरः; अंति:
तपसि गुरुपुष्ये, प्रकाश-२०, ग्रं. ६२५. ५९४६०. (+) भाष्यत्रय सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३-१७(१ से १७)=१६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४१२, ४४२७).
भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. भाष्य-२ से भाष्य-३ गाथा-४६ तक है.)
भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५९४६१. (+) कर्मग्रंथ १-४, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित.,
जैदे., (२५.५४१२, १०x४३). १.पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण.
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६०. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ५आ-८अ, संपूर्ण.
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिण; अंति: देविंद० नमह तं वीर, गाथा-३४. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ८अ-९आ, संपूर्ण. ___ आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२५. ४. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १०अ-१६अ, संपूर्ण..
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. ५९४६२. (+#) अंगचूलिया, संपूर्ण, वि. १८३१, आषाढ़ कृष्ण, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. भीनमालनगर,
प्रले. पं. विनयविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिपार्श्ववीरजिन प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१२, १७४४९-५२).
___अंगचूलिका प्रकीर्णक, प्रा., गद्य, आदि: नमो सुय० नमो अरि०; अंति: जंजिणेहिं पवेइअं. ५९४६३. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. अजिमगंज, प्रले. पंडित. नारायणचंद्र
व्यास; पठ. मु. भागचंद (गुरु मु. रामधन, बृहन्नागोरी लुकागच्छ); अन्य. मु. गोकलचंद ऋषि (विजयगच्छ); मु. पनालाल महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-त्रिपाठ., दे., (२६४१२.५, १४-१६x४४-४८). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते,
श्लोक-४४.
कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, पा. हर्षकीर्ति, सं., गद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: पार्श्वनाथप्रसादतः. ५९४६४. (+) विचारषट्विंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. बेलानगर, प्रले. पं. भावविजय;
पठ. मु. मोरारजी (गुरु पं. भावविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ३४२५).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिऊण चउवीसजिणे तस्स; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया,
गाथा-४३, (वि. १८४९, चैत्र शुक्ल, ४) दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ऋषभ प्रमुख चोवीस; अंति: हितने काजे लिखी छे, (वि. १८४८, चैत्र
५९४६५. (4) पाक्षिकसूत्र व पाक्षिकखामणा, संपूर्ण, वि. १८८५, फाल्गुन कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४२७). १.पे. नाम. पाक्षिक सूत्र, पृ. १आ-१४अ, संपूर्ण.
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २.पे. नाम. क्षामणकसूत्र, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण.
हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. ५९४६६. (+) नवतत्त्व सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, २४३२-३५).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा ४९ तक है.) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व दसप्राण धारइ; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
गाथा ४७ तक टबार्थ लिखा है.) ५९४६७. (+) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-१(१२)=१४, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, १५४४२-४५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. विनय
अध्ययन सूत्र ९ तक है.) ५९४६८. अणुत्तरोववाइयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६२, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. वीकानेर,
प्रले. मु. मुनीलाल (गुरु मु. गणेशदास, खरतरगच्छ); गुपि.मु. गणेशदास (गुरु मु. लछीराम, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, ५-७X४२-४८). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: तहाणेयव्वं,
अध्याय-३३, ग्रं. १९२.
अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आठमां अंतगडदशांगने; अंति: परि तिमज जाणिवा. ५९४६९. (+#) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७-१४(१ से १४)=१३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १३४३२-३९). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण से गाथा-२९७ अपूर्ण
तक है.) ५९४७०. (+#) जीवविचार, दंडकप्रकरण सह टबार्थ व नवतत्त्वनां २७६ भेद, संपूर्ण, वि. १८३०, कार्तिक शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. १३,
कुल पे. ३, ले.स्थल. सोवनगिरि, प्रले. ग. अजितविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, ५४३६-३९). १.पे. नाम. जीवविचार सह टबार्थ, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुय
समुद्दाओ, गाथा-५१, (ले.स्थल. जालोरनगर) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: भुव० त्रिभुवन माहइ; अंति: जोइ संक्षेपइ ए विचार. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण के २७६ बोल, पृ. ७अ-९अ, संपूर्ण.
नवतत्त्व-२७६ बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: तत्वना नवभेद जाणवा. ३. पे. नाम. विचारछत्रीसीसह टबार्थ, पृ. ९आ-१३आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया,
गाथा-३९.
दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: न० श्रीचउवीस तीर्थंक; अंति: पोताना हितनइ अर्थइ. ५९४७१. (+) राईपडिकमणो-सविधि, संपूर्ण, वि. १९४३, श्रावण शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १२, प्रले. पं. रत्नसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., अ., (२५४१२, १५४३३). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: इच्छामि खमासमणो; अंति: मानं जैनंजयत्त
सासनं. ५९४७२. सौभाग्यपंचमी कथा सह टबार्थ व दूहा, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-१(१)=१२, कुल पे. २, ले.स्थल. छाणीनगर,
अन्य. मु. बालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, ६४३९). १. पे. नाम. सौभाग्यपंचमी कथा, पृ. २अ-१३अ, संपूर्ण. वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि:
श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मेरुता नगरे, श्लोक-१५२, (संपूर्ण, वि. प्रत का प्रथम पत्र नहीं है, परंतु कृति का अपूर्ण भाग
श्लोक १ से ७ तक पत्रांक १३आ पर बाद में लिखा है.) वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: श्रीमेडतानगरइ लिखीतं, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. २. पे. नाम. औपदेशिक दूहा, पृ. १३अ, संपूर्ण.
जैनदुहा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: समता समो नही सुख; अंति: जीवत समो नही दूख, गाथा-१. ५९४७३. (+) भववैराग्यशतक, आदिनाथदेशनाद्वार व २९ भावना प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-७(१ से
७)=१२, कुल पे. ३, ले.स्थल. उदयपुर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ८४४४). १. पे. नाम. भववैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ. ८अ-१४अ, संपूर्ण, वि. १८१५, ले.स्थल. उदयपुर.
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिओसासयं ठाणं, गाथा-१०२. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)संसार जे ते असार छइ, (२)चउद राजलोक रूप संसार; अंति: लहइंजीव
शाश्वतु ठाम. २.पे. नाम. आदिनाथदेशना सह टबार्थ, पृ. १४अ-१९अ, संपूर्ण, ले.स्थल. उदयपुर, प्रले. मु. केसरविजय (गुरु पं. ऋद्धिविजय); गुपि.पं. ऋद्धिविजय (गुरु पं. तिलकविजय); पठ. ग. भावविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. आदिनाथ देशनोद्धार, प्रा., पद्य, आदि: संसारे नत्थि सुह; अंति: सिवं जंति, गाथा-८८, संपूर्ण. आदिनाथ देशनोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसारमाहि नथी सुख; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., गाथा ४१ तक लिखा है.) ३. पे. नाम. ओगणत्रीस भावना सहटबार्थ, पृ. १९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
२९ भावना प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: संसारम्मि असारे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ९ तक है.)
२९ भावना प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: संसार असार छइ नथी; अंति: (-). ५९४७४. (+#) वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. पल्लिकानगरी, प्रले. मु. गजसार,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ५४३८).
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारम्मि असारे; अंति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, गाथा-१०४.
वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ए संसार असार विषै; अंति: जिउ लहइ क० जीव लाभै. ५९४७५. पद्मावतीसहस्त्रनाम स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८८४, कार्तिक शुक्ल, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २२-१०(१ से १०)=१२,
कुल पे. ३, ले.स्थल. रामपुरा, प्रले. पं. मोतीचंद (गुरु मु. प्रेमचंद); गुपि. मु. प्रेमचंद; राज्ये गच्छाधिपति जिनहर्षसूरि (खरतरगच्छ-भट्टारक), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी में पत्रांक ७ से १८ भी लिखा हैं., जैदे., (२६४१२, १०४२८-३०). १.पे. नाम. पद्मावतीसहस्रनाम स्तोत्र, पृ. ११अ-१९आ, पूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
सं., पद्य, आदि: (-); अंति: प्रीत्यपलापने किं, श्लोक-१३५, (पू.वि. श्लोक ७ अपूर्ण से है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ २. पे. नाम. पद्मावती स्तोत्रजंत्रमंत्र स्थापना विधि, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण.
पद्मावती स्तोत्र-यंत्रमंत्र स्थापना विधि, सं., पद्य, आदि: श्रियं दिशितु वो देव; अंति: सौख्यं प्रजायते, श्लोक-९. ३. पे. नाम. पद्मावती छंद, पृ. २०अ-२२आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी छंद, ग. कल्याणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सगती सदा सानिध करो; अंति: कल्याणनै जयकारणी,
गाथा-२८. ५९४७६. (+) वरदत्तगुणमंजरी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. १२,
ले.स्थल. पालीताणानगर, प्रले. पं. प्रेमकुशल गणि (गुरु ग. विद्याकुशल); गुपि.ग. विद्याकुशल (गुरु ग. देवकुशल, तपागच्छ); ग. देवकुशल (गुरु मु. रविकुशल); मु. रविकुशल (गुरु ग. दयाकुशल); ग. दयाकुशल (गुरु ग. कल्याणकुशल); ग. कल्याणकुशल (तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ६४३८-४०). वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि:
श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मेडतानगरे, श्लोक-१५२.
वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनेश; अंति: मेडतानगरनि विषई. ५९४७७. (+) उत्तराध्ययनसूत्र-१ से ४ अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, ६४३८).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५९४७८.(+) उत्तराध्ययनसूत्र-मियापुत्तियं अज्झयण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, अन्य. सा. बेनकोरबाई सामी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१२.५, ५४२८-३७).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५९४७९. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ७०-५९(१ से ५८,६९)=११, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ६४३४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१८ गाथा-५२ से अध्ययन-२०
गाथा-३१ तक है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५९४८०. (+) उत्तराध्ययनसूत्र-नमिप्रव्रज्या अध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, २२४३९-६६).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५९४८१. (+#) चतुर्मासिकत्रयी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९५५, आश्विन अधिकमास कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. लक्ष्मणपुर,
प्रले. मु. गिरधारीलाल यति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. कुल ग्रं. ४०१, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १२४४७-५०). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं स्फुरद; अंति: सुविशदं
व्याख्याभृत. ५९४८२. (+) उत्तराध्ययनसूत्र-नमिप्रव्रज्याअध्ययन सह अर्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, २१४७२).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५९४८३. (+) नवतत्त्व सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८९४, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. १४-३(१ से ३)=११, प्र.वि. अबरख युक्त प्रत.,
टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, ४४२५).
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२०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण, आ. धर्मसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: लिहिओसिरीधम्मसूरीहिं, गाथा-५५, (पू.वि. गाथा ११
अपूर्ण से है.)
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: न्यास रूपे कर्यो. ५९४८४. (+#) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२, ७४१६-२६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., वज्रपाणी पुरंदर प्रसंग अपूर्ण तक लिखा है.) ५९४८५. (+) चतुर्विंशतिदंडक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, ३४२७). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: एसा विणत्ति अप्पहिया,
गाथा-४१.
दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनै चोवीस; अंति: आत्माने हितकारी है. ५९४८६. (+) दशठाणांगनो बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १४४३९-४२).
१० स्थान बोल-आनंदादि दशश्रावक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: मन ठाम राखवानु हेतु; अंति: नंदिणिपिया सालहीपिया. ५९४८७. (+#) चौविसदंडक सह टबार्थव उदर रासो, अपूर्ण, वि. १८३१, आषाढ़ शुक्ल, १०, सोमवार, जीर्ण, पृ. १०, कुल पे. २,
प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११, ३४३०-३३). १. पे. नाम. चौवीसदंडक सह टबार्थ, पृ. १आ-१०अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: एसा विणत्ति अप्पहिया,
गाथा-३८. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चउवीश तीर्थंकर ऋषभ; अंति: एहवी लिखी आत्मार्थे. २.पे. नाम. उदर रासो, पृ. १०अ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.
जैन कथा-वार्ता-चरित्रादि , पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रारंभिक पाठ है.) ५९४८८. पाक्षिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-५(१० से १४)=१०, जैदे., (२६४१२, ६४३३-३७).
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., स्थूल ७ गाथा १०
अपूर्ण तक हैं.)
पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकर सिद्ध तीर्थ; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ५९४८९. संग्रहणी रत्न, संपूर्ण, वि. १८०७, वैशाख शुक्ल, १४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. सोहीनगर, प्रले.ग. विजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १५४४५).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहताइ ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३११. ५९४९०. (+#) नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९००, फाल्गुन शुक्ल, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. १०, पू.वि. अंत में प्रक्षेप गाथा लिखि
हैं., ले.स्थल. नवानगर, प्रले. श्राव. नानचंद दोसी; राज्यकालरा. रणमल्लजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, ४४३०).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवार पुण्ण३; अंति: अणागयद्धा अणतगुणा, गाथा-४७.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व१ अजीवतत्व२; अंति: अनंतगुणो छे जीवने. ५९४९१. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४१२, ४४२८).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५०.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: च्यारप्राण से लेकर; अंति: बहोत मोक्षे जाय. ५९४९२. (+) दशवैकालिकसूत्र सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(१)=१०, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त
विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५.५४१२, ५४२६-३३).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन १ गाथा ५ अपूर्ण
से अध्ययन ४ सूत्र ७ अपूर्ण तक है.)
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५९४९३. पद्मावतीअष्टक सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४११.५, २४२३-३८).
पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ८ अपूर्ण तक है.)
पद्मावतीदेवी अष्टक-टीका, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनं देवं; अंति: (-). ५९४९४. (+#) नवतत्त्व सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४११.५, ३४२६-३०).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवार पुण्णं३; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४३ अपूर्ण तक है.)
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (१)जयति श्रीमहावीरः, (२)जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: (-). ५९४९५. (+#) ऋषिमंडल प्रकरण सह टबार्थ+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९६-८७(१ से ५२,५५ से ५८,६१ से ७६,८० से
९४)=९, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३८-४२).
ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश हैं.) ऋषिमंडल प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-).
ऋषिमंडल प्रकरण- कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५९४९६. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १५४३०).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., अध्ययन ८ गाथा २ अपूर्ण तक लिखा है.) ५९४९७. (+) नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९१, कार्तिक कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. विदासर, प्रले. मु. पुन्यचंद ऋषि
(अहिपुरगच्छ); पठ. पं. चिमनजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, ४४३६).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-६१.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: साची वस्तुनो स्वरूप; अंति: एक समै एकसो आठ सिद्ध. ५९४९८. (+) सिंदूरप्रकर, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१२,११४२६-३०).
सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदुर प्रकर स्तपः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ७४ अपूर्ण तक
५९४९९. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ- अध्ययन २०, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११६-१०७(१ से १०७)=९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ४४३१). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा ४
अपूर्ण से है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ५९५००. (+) श्रीपालराजा कथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-११(१ से ११)=९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१२.५, ८४३६-४२). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा १२८ अपूर्ण से
२५७ तक है.) सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
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२२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५९५०१. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९०१, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, मंगलवार, मध्यम, पृ. १५-६(१ से ६)=९, ले.स्थल. आंतरोली, प्रले. श्राव. दौलत; पठ. श्राव. सुरज, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, ११४२२-२८). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: जस पडहोतीहअणे सयले,
(पू.वि. प्रारंभिक अतिचार की आठगाथा का आऊसग्ग के लिए "अन्नत्थ का पाठ-वायाए कायेणं नकरेमि न
कारवेमि" पाठ से है.) ५९५०२. चतुर्मासिकपर्व व्याख्यानपद्धति एवं १२४ अतिचार वर्णन, संपूर्ण, वि. १८५९, कार्तिक कृष्ण, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ८,
कुल पे. २, ले.स्थल. महिमापुर मकसूदाबाद, प्रले. पं. संतदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. २१०, जैदे., (२४.५४१२, १३४३५-४०). १.पे. नाम. चातुर्मासपर्व व्याख्यान पद्धति, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण..
चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६५, आदि: प्रणम्य परमानंदं; अंति: समयसुंदर०
___व्याख्याम्. २.पे. नाम. १२४ अतिचार वर्णन, पृ. ८आ, संपूर्ण.
श्रावकव्रत १२४ अतिचारभेद वर्णन, प्रा.,सं., गद्य, आदि: ५ अतिचारा संलेखनायाः; अंति: अतिचाराः सर्वे भवति. ५९५०३. नवतत्त्व, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१२, ७X१९).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवार पुण्णं३; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४० अपूर्ण तक है.) ५९५०४. (+) वरदत्तगुणमंजरी कथानक सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, ८४५७).
वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नमः वर्धमानाय श्रीमत; अंति: विषये गुणमंजरी कथा.
वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: महावीरस्वामीने नम; अंति: पालनै मुक्तै गया. ५९५०५. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१)-८, दे., (२६४१२, २४२६-२९).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवार पुण्ण३; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-२२ अपूर्ण तक
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: २ आश्रव ३ बंध ४ ए ४; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ५९५०६. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९८, वैशाख शुक्ल, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, पठ. मु. जिता (लुकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १२४३५-४६).
साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० इच्छा; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ५९५०७. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ व भयहर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८६१, आश्विन कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ.८, कुल पे. २,
ले.स्थल. कलकत्तानगर, प्रले. श्राव. बख्तावरसिंह गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ५४३३-३७). १.पे. नाम. भक्तामरस्तोत्र सह मा.गु. टबार्थ, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण.
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणति मौलि; अंति: समुपिति लक्ष्मीः , श्लोक-४४.
भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्तामर कहेतां भक्ति; अंति: लक्ष्मीनी संपदा पामै. २. पे. नाम. भयहर स्तोत्र, पृ. ८अ, संपूर्ण.
५ परमेष्ठि स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: परमिट्ठमंतसारं सारं; अंति: आरोग्ग देउ सुहपन्नो, गाथा-६. ५९५०८. (+) भगवतीसूत्र का बीजक, पूर्ण, वि. १८५१, ज्येष्ठ कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ९-१(१)-८, ले.स्थल. विक्रमपुर,
प्रले.मु. वसंतराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं.५९०, जैदे., (२५.५४११.५, १९४४५-४९). भगवतीसूत्र-बीजक, मु. हर्षकुल, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: सर्वोपि भगवतीसत्कः, ग्रं. ४०९, (अपूर्ण,
पू.वि. "प्राणभूतादि शब्दवाच्यश्च खंदक संबंध:" पाठ से है.) ५९५०९. (+) नवतत्त्व प्रकरण सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०४, माघ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ.८, प्रले.पं. भाग्यविजय (गुरु पं. मानविजय); गुपि.पं. मानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५४१२, ४४३२-३६).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवार पुण्णं३; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-५१.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जिनमतनई विषई नवतत्; अंति: सिद्ध पनर भेद कह्या. ५९५१०. (+#) पाक्षिकसूत्र, खांमणा व साधु अतिचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ४,
ले.स्थल. सीरोहीनगर, पठ. माहसींघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १४४३९-४४). १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण.
हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. पाक्षिकखामणा, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासणौ पिअं; अंति: निथार पारगा होह, आलाप-४. ३. पे. नाम. साधुअतिचार, पृ. ६आ-८अ, संपूर्ण.
साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दसणम्मिय; अंति: विषईउ अनेरुजि०. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण.
मु. ज्ञानविमल, पुहिं., पद्य, आदि: वीर विना वाणी कोण; अंति: ज्ञानविमल गुण गावै, गाथा-९. ५९५११. कातंत्रविभ्रम सह अवचूर्णी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४१२, ३४३०-४५).
हैमविभ्रम, सं., पद्य, आदि: कस्य धातोस्तिवादीनाम; अंति: चान्यदक्षेवयममीवयम्, श्लोक-२१.
हैमविभ्रम-अवचूरि, ग. चारित्रसिंह, सं., गद्य, वि. १६२५, आदि: नत्वा जिनेंद्र; अंति: लोप: बावनीकः सिद्धम्. ५९५१२. (+) श्रावकआराधना, जीवराशिखमावण, अणसण विधि व बोल संग्रहादि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुलपे. ५,
प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७७१३, १७४४६). १. पे. नाम. श्रावक आराधना, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण. ___ उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: श्रीसर्वज्ञं प्रभु; अंति: मुनिषड्रसचंद्रवर्षे, अधिकार-५, ग्रं. १६६. २. पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती, अंति: पापथी छुटे तत्काल, ढाल-३,
गाथा-३४. ३. पे. नाम. अणशण विधि, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण, वि. १८९८, माघ शुक्ल, १०, ले.स्थल. नागपुर.
अनशन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नवकार त्रणवार भणावी; अंति: वार ३ उच्चरावीयइ. ४. पे. नाम. तीर्थंकरचक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
तीर्थंकर चक्रवर्ती ऋद्धिवर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: तित्थयरा गणहारीचक्क; अंति: श्रेय कल्याण संपजै. ५. पे. नाम. औपदेशिक विचार संग्रह, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण..
मा.गु., प+ग., आदि: संजराग जल पव्वेमि; अंति: श्रेय कल्याण संपजै. ५९५१३. (+) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८८०, चैत्र अधिकमास शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. रायण, प्रले. मनिराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२४.५४११, २७X४६).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि,
___अध्ययन-१० चूलिका २. ५९५१४. (+#) सूक्तिमुक्तावली, संपूर्ण, वि. १८३८, चैत्र शुक्ल, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १२४४८-५०). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२,
श्लोक-१००. ५९५१५. (+) अनुयोगद्वार, संपूर्ण, वि. १९३०, आषाढ़ कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४११.५, २३४४५-५२). अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प+ग., आदि: णाणं पंचविहं पणत्ता; अंति: साहू से तं नए, प्रकरण-३८,
ग्रं. २०८५.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५९५१६. (#) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९२८, आषाढ़ कृष्ण, १, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. वीगोद, प्रले.ऋ. भीमराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १०४२६-२८). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यताक्षरसंलक्षः; अति: धायाः परमानंदनेदिनः,
श्लोक-८५, ग्रं. १५०. ५९५१७. (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)=७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ११४३२-३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. देवानंदा के गर्भधारण से गर्भपरिवर्तन प्रसंग
तक है.) ५९५१८. (+) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ३६, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२,१७४३८-४६).
उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ३६, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: द्धिय समए त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण. ५९५१९. (+) जीवविचार व नवतत्त्व, संपूर्ण, वि. १८९२, माघ शुक्ल, २, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, प्रले. मु. पानाचंद;
पठ. मु. जीवराज (गुरु मु. पानाचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीजिनेश्वरजी प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२५४१२, १२४२८). १.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण.
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५२. २.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ४अ-७अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवा२ पुण्णं३; अंति: लहीउ मणीरयणासुरिहें, गाथा-५७. ५९५२०. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थव व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२९-१२२(१ से १२२)=७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१२, ४४३८-४२).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-१३६ अपूर्ण से १५७ अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५९५२१. (+) भववैराग्यशतक, संपूर्ण, वि. १८४६, फाल्गुन कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. आणंदपुरनगर, प्रले.पं. प्रेमविजय गणि; पठ. मु. मोरारजी (गुरु पं. भावविजय); गुपि.पं. भावविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १२४२९).
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, गाथा-१०४. ५९५२२. (+) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-६(१ से ६)=७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १७४४१-४४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-५ उद्देश्य-२
गाथा-२१ अपूर्ण से अध्ययन-१० गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ५९५२३. (+) गौतमकुलक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४१२, १-४४३९).
गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: संवितु सुहं लहति, गाथा-२०.
गौतम कुलक-बालावबोध*मा.गु., गद्य, आदि: लुद्धा० लोभी नरा; अंति: फलाइं जइवावी नीवाणइ. ५९५२४. शांतिस्नात्र व अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १९८८, फाल्गुन कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. हणादरा,
प्रले. मु. रत्नचंद्र (उपकेशगच्छ); गृही. मु. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, ९४२७). १.पे. नाम. शांतिस्नात्र विधि, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण.
प्रा.,सं., गद्य, आदि: नमोर्हत्सिद्धाचार्यो; अंति: ॐभवण० ॐनमोअर्ह०. २. पे. नाम. अष्टोतरीनी विधि, पृ. ६आ, संपूर्ण.
बृहत्शांतिस्नात्र विधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नमोर्हत्सिद्धाचार्यो; अंति: १०८ वार अभिषेक करीइ.
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TOTT VO
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
२५ ५९५२५. (+) जीवविचार, नवतत्त्व, व चतुर्विंशतिदंडकविचारगर्भित स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५१, श्रावण शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ६,
कुल पे. ३, ले.स्थल. मलसीसर, प्रले. पं. जगरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १५४३०). १.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओसुय समुद्दाओ, गाथा-५२. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५१. ३. पे. नाम. चतुर्विंशति दंडक विचार गर्भित स्तवन, पृ. ४आ-६अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: विन्नत्ती अप्पहिया,
गाथा-४५. ५९५२६. (+) श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले.मु.सुमतिशेखर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२,१२४४२). सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: हंसोनभाति बलभोजनं; अंति: कापरिमलस्वयमेवधत्ते,
गाथा-४०. ५९५२७. (+) दंडकसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८५०, माघ शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(५)=६, ले.स्थल. देवगढ, प्रले. मु. कपूरसुंदर (गुरु
पं. रतिसुंदर); गुपि.पं. रतिसुंदर (गुरु मु. मानसुंदर, तपागच्छ); मु. मानसुंदर (गुरु उपा. कांतिसुंदर, तपागच्छ); उपा. कांतिसुंदर (गुरु उपा. सहजसुंदर, तपागच्छ); उपा. सहजसुंदर (तपागच्छ); पठ.पं. हेमराज; लिख. मु. दलपतसुंदर; राज्यकालरा. सामंतसिंघ, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, ४४३८).
दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, ___ गाथा-३९, (पू.वि. गाथा २४ अपूर्ण से ३१ अपूर्ण तक नहीं है.)
दंडक प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने चौवीस; अंति: लहिया कहेता लिख्या. ५९५२८. (+#) भगवतीसूत्र शतक-१, उद्देश-९ कालासवेसिक अधिकार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६,
अन्य.सा. दीवालीबाई; मु. भगवानदास ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, ५४३०-३४). भगवतीसूत्र-शतक-१ के ९वें उद्देश का हिस्सा सूत्र-४२३-४३४ कालासवैश्यपुत्र अधिकार, आ. सुधर्मास्वामी,
प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० कालास; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सूत्र-४३४ अपूर्ण तक
लिखा है.) भगवतीसूत्र-शतक-१ के ९वें उद्देश का हिस्सा सूत्र-४२३-४३४ कालासवैश्यपुत्र अधिकार-टबार्थ, मा.गु., गद्य,
आदि: ते० ते कालनिं विषइं; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५९५२९. (#) पडीलेहणाकुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७०, आषाढ़ कृष्ण, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. मु. गणपतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, ४४२७).
पडिलेहण कुलक, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि: पडिलेहणाविसेस; अंति: सीसेण विजयविमलेण, गाथा-२८.
पडिलेहण कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रतिलेखनाना विशेष; अंति: लेखणा विचार लख्यो. ५९५३०. (+) सिद्धचक्र भेद व नवपदआराधना विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(२५.५४१२, १८४३८). १.पे. नाम. नवपदना ३४६ भेद, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण.
३४६ भेद-नवपद, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अशोकवृक्ष प्रातिहार; अंति: भावोत्सर्गतपसे नमः, पद-३४६. २. पे. नाम. नवपदआराधन विधि, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण.
नवपद आराधन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: आसोज सुदि ७ चईत्र; अंति: कवच्छल प्रभावना कीजै. ५९५३२. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५४१२, १२x२८).
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२६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणति मौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ५९५३३. (+) भक्तामर स्तोत्र व सूक्तियाँ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. लक्ष्मीचंद मुहोता, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १०४३२). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणति मौलि; अंति: समुपिति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २.पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. ५अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सुभाषित संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-६२. ५९५३४. पुण्यप्रकाश स्तवन व अष्टमीतिथिपादपूर्ति स्तुति, संपूर्ण, वि. १८५३, श्रावण कृष्ण, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल
पे. २, ले.स्थल. मांडल, पठ. श्रावि. सांकलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १३४४२). १.पे. नाम. पुण्यप्रकाश स्तवन, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नाम पुण्यप्रकास ए, ढाल-८,
गाथा-१०२. २. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: संप्रात संसारसमुद्र; अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. ५९५३५. (+#) पद्मावतीसहस्त्रनाम स्तोत्र व पटल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. मु. मुंहणजी (खरतरगच्छ),
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १७X४५-४८). १.पे. नाम. पद्मावतीसहस्रनाम स्तोत्र, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: प्रणम्य परया भक्त्या ; अंति: प्रीत्यपलापने किं, श्लोक-१३५. २. पे. नाम. पद्मावतीपटल स्तोत्र, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: श्रीमन्माणिक्यरश्मि; अंति: देवी मां रक्ष पद्ये, श्लोक-९. ५९५३६. (+) मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १६x६३).
मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदि: प्रणम्य ऋषभदेव; अंति: सागरशररसशशिप्रमिते,
श्लोक-१९८. ५९५३७. (+#) होली कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. जगत्तारण, प्रले. पं. राजहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ७४३०-३३).
होलिकापर्व कथा,सं., पद्य, आदि: वर्द्धमान जिन; अंति: विज्ञानां वाचनोचित, श्लोक-५१.
होलिकापर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वर्धमान महावीर जिन; अंति: भाखु पंडितो० योग्य. ५९५३८. (+) आठ कर्म प्रकृति विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१२.५, २२४६१).
८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अष्टकर्मनी नाम ज्ञान; अंति: ते जाणवा इत्यार्थ. ५९५३९. (#) गौतमपृच्छा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. हीरा ऋषि (गुरु मु. भीमराज ऋषि); पठ. मु. गुलालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४११.५,८४३५-४०).
गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४.
गौतमपृच्छा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमी करी तीर्थनाथ; अंति: गौतम पृच्छाकरी. ५९५४०. अक्षयनिधितपविधि व सुंदरी कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १२४३२). १.पे. नाम. अक्षयनिधितप विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण वदि ४ना दीवस; अंति: विचारीने बोलीइं. २. पे. नाम. सुंदरी कथा, पृ. १आ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
सुंदरी कथा-अक्षयनिधितपोपरि, प्रा., गद्य, आदि: पज्जसवणेकप्पे भावणाई; अंति: (-), (पू.वि. "भरेकम्म
अखनिहितवपडिरझ" पाठ तक है.) ५९५४१. शत्रुजयतीर्थकल्प सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९२७, कार्तिक कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ६-१(५)=५, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. खेमचंद; लिख. सा. चंदनश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११.५, ३४२८-३१). शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., पद्य, आदि: अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ; अंति: लहइ सेत्तुंजजत्तफलं, गाथा-२५, (अपूर्ण,
पू.वि. गाथा २० अपूर्ण से २५ अपूर्ण तक नहीं है.)
शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अइमुत्तइ केवलीइं; अंति: फल पामे नमस्कार, संपूर्ण. ५९५४२. (+) प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, कुल पे. ३,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५,
१९४३२). १. पे. नाम. आदिजिन स्तुति श्लोकसंग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: उद्यान विमलोचलेंद्र; अति: ऋषभं जिनोत्तमम्, श्लोक-१६. २. पे. नाम. जिनस्तुत्यादि संग्रह, पृ. ३अ-५आ, संपूर्ण.. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: यनैकेन रणांगणे क्षित; अंति: वर्द्धित नित्यहर्षः, श्लोक-५३,
(वि. आदिजिन, पार्श्वजिन, नेमिजिन, महावीरजिन स्तुति व जैनधर्म महिमा संबंधित श्लोकों का संग्रह.) ३. पे. नाम. भ्रमराष्टक, पृ. ६अ, संपूर्ण.
___ सं., पद्य, आदि: गंधाढ्यासौ भुवनविदित; अंति: हंतु नलिनीगज उज्जहार, श्लोक-८. ५९५४३. (+) काल विचार, संपूर्ण, वि. १९३७, चैत्र शुक्ल, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. इंदोर, प्रले.मु. हीरचंद ऋषि,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ये पत्र श्री श्रीजीसाहेब के भंडारके हैं श्री पुनमियाविजयगच्छाधिश्वर., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१२, १२४२५-४०).
काल विचार, प्रा., पद्य, आदि: अहरत्तहय दसणा कसिणा; अंति: नीसन्यं ह्रीं स्वाहा, गाथा-१०६. ५९५४४. (+) कुलक संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे.,
(२५.५४११.५, ६४३३-३५). १. पे. नाम. अभव्य कुलक सह मा.गु. टबार्थ, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
अभव्य कुलक, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: जह अभवियजीवेहिन; अंति: तेसिन संपत्ता, गाथा-९.
अभव्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिम अभव्य जीवोइ नथी; अंति: य जीव होइ तेन पामे. २. पे. नाम. पुन्यपाप कुलक सह मा.गु. टबार्थ, पृ. २अ-४अ, संपूर्ण. पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: छत्तीसदिवस सहस्सा; अंति: धम्मम्मि उज्जमं
कुणह, गाथा-१६. पुण्यपाप कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: छत्तीसहजारदिवस वरस; अंति: करवामां उद्यम करवो. ३. पे. नाम. पुन्य कुलक सह मा.गु. टबार्थ, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण.
पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संपुन्नइंदियत्त; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-१०.
पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संपूर्ण जे पांचे अंति: थई सिद्धना सुख पामें. ५९५४५. (+) चोवीसी जोडा व महावीरदीपावली स्तुति, संपूर्ण, वि. १८६४, फाल्गुन कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २,
ले.स्थल. डीसानगर, पठ. मु. गुलाबचंद (गुरु ग. उत्तमचंद्र); गुपि. ग. उत्तमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीऋषभदेव प्रसादात्., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १६४३८-४८). १.पे. नाम. स्तुतिचतुर्विंशतिका, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण.
म. शोभनमनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: परम वसुत्तरांग, स्तुति-२४, श्लोक-९६. २. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण.
मु. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सासननायक श्रीमहावीर; अंति: द्यो सरसती वर वाणी, गाथा-४.
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२८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५९५४६. (+#) संघयणी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-१९(१ से ९,१३ से १४,१६ से २३)=५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ५४२८-३१). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा १ से ४६ अपूर्ण, २० अपूर्ण से
७७ अपूर्ण, ७९ अपूर्ण से १२५ अपूर्ण, तथा १३२ अपूर्ण से अंत तक नहीं है.)
बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).. ५९५४७. (+#) भक्तामर व कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक
लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १२४२७). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २.पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ५अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ५ अपूर्ण तक है.) ५९५४८. (+) समवायांगसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९०३, श्रावण शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ११६, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२५४१२, १-१०४५१-५४). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: अज्झयणं ति त्ति बेमि, अध्ययन-१०३,
सूत्र-१५९, ग्रं. १६६७. समवायांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: वृत्तितः समाप्तम्,
ग्रं. ३५७५. ५९५४९. (+) आवश्यकसूत्र सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२६४१२, ४४२८). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहताण०; अंति: (-), (पूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "नामधेयं ट्ठाणसंपत्ताणं नमोजिनाणं जियभणाण" पाठ तक लिखा है.) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: न० नमस्कार हो अ०; अंति: (-), पूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५९५५०. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थव दृष्टांत कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ६-१८४३९).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: (-), अध्ययन-३६, ग्रं. २०००,
(अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-१२ गाथा-४९ अपूर्ण तक लिखा है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा संग्रह, मु. पार्श्वचंद्रसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: वर्द्धमानं जिनं; अंति: (-), अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह", मा.गु., गद्य, आदि: जिम एक आचार्यनइ; अंति: (-), कथा-४, अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५९५५१. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९२३, पौष कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ६८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५.५४१२, ७४४५). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर; अंति: सरीरधरे भविस्सइति,
अध्याय-१०, गाथा-१२५०, ग्रं. १३००. प्रश्नव्याकरणसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: अहो जंबू इणमो कहता; अंति: जाइं अनंतसुख
पामे. ५९५५२. (+) विवेकविलास सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(२५४११,१७४४५-५०).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
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विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, आदि: शाश्वतानंदरूपाय तमस, अंति: लोकोत्तरं शाश्वतम्, उल्लास- १२, (संपूर्ण वि. प्रशस्ति का श्लोक ६ अपूर्ण तक है.)
विवेकविलास- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ते को एक परमात्मानइ; अंति: नाम द्वादशोल्लासः, संपूर्ण. ५९५५३. (+) दशवैकालिकसूत्र सह अन्वयार्थ, संपूर्ण, वि. १९९० श्रावण कृष्ण, ८, शनिवार, मध्यम, पृ. ६५, ले. स्थल. बीकानेर,
प्रले. पं. चुन्नीलाल (गुरु वा. अमरचंद, खरतरगच्छ); गुपि. वा. अमरचंद (बृहत् खरतरगच्छ); अन्य. श्राव. अगरचंद भेदान सेठिया, श्राव धनसुख दास श्रावि. मगनबाई जेठमल सेठिया, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५X१२, १६x४४).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठे, अंति: अपुणागमं गइ तिबेमि,
अध्ययन- १०.
दशवैकालिकसूत्र-अन्वयार्थ, पुहिं., गद्य, आदि: अहिंसा प्राण व्यपरोप; अंति: मैने तुजे कहा है.
५९५५४.
(+#)
) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८७४, आषाढ़ शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ६३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. कुल ग्रं. १११६. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x११.५, १०x३४).
""
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान- ९,
ग्रं. १२१६.
"
५९५५५. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११३-५२ (१ से ५२ ) =६१. पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैवे. (२५.५४१२, ९४२९-३२).
उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-): अंति: (-) (पू.वि. अध्ययन- २२ गाथा- ७ अपूर्ण से अध्ययन- ३६ गाथा-२६७ अपूर्ण तक है.)
५९५५६. (+) जंबूस्वामी चरित्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८५३, चैत्र शुक्ल, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. ६१, अन्य. मु. हीराचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११.५, ७३९-४७).
जंबूस्वामी चरित्र, प्रा., प+ग, आदि: नमिऊण वद्धमाणं जस्स, अंति: भवमज्झे सिज्झिस्संति.
जंबूस्वामी चरित्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी श्रीवर्द, अंति: भवमा मोक्षे जास्ये.
1
५९५५७. (+) आत्मप्रबोध सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६२. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५X१२, १५X३४).
आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, सं. पण, वि. १८३३, आदि: अनंतविज्ञानविशुद्ध, अंति (-), (पू.वि. "कर्माणि करोती तिनकथिदोषः " तक का पाठ है.)
२९
आत्मप्रबोध-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. जिनलाभसूरि, सं., गद्य, वि. १८३३, आदि: अथ तावद्ग्रंथादौ; अंति: (-). ५९५५८. (+#) विपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५९, ले. स्थल. वेरावल बंदर, प्रले. पं. अमृतकुशल (गुरु पं. जेवंत कुशल); गुपि. पं. जेवंतकुशल (गुरु पं. खांतिकुशल); पं. खांतिकुशल (गुरु पं. उदयकुशल); पं. उदयकुशल (गुरु पं. प्रभुकुशल) पं. प्रभुकुशाल (गुरु ग. रंगकुशल); पठ. मु. लालचंद, मु. माणकलाल, मु. मगनलाल, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. श्रीसुमतिनाथजी तथा श्रीचिंतामणी पार्श्वनाथ प्रसादात, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६X१२, ७x४५).
विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. गद्य, आदि; तेणं कालेणं तेणं; अंतिः सेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध -२,
"
ग्रं. १२५०, (वि. १९३३, आश्विन शुक्ल, ७, रविवार)
विपाकसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणे कालै ते०; अंतिः जिम आचारांगसूत्र मै (वि. १९३३ कार्तिक शुक्ल,
י'
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१३)
५९५५९. (+) पन्त्रवणासूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३४३-२८५ (१ से २८४,२९० ) = ५८, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X११.५, ७x४६).
प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा. गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं, उद्देश-६ के १८वाँ कार्यस्थिति
"
१६ द्वार से "काल ठितीयं आउय कमं" तक का पाठ है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं. ५९५६०. सूत्रकृतांगसूत्र श्रुतस्कंध-१ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५६, जैदे., (२६४१३, ६४४२-४६).
सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज; अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आदिदेव नमस्कृत्य; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५९५६१. (#) सुक्तावली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२५.५४१२, १५४६१).
सूक्तावली, सं., पद्य, आदि: ॐकार बिंदुसंयुक्तं; अंति: (-), (पू.वि. काव्याधिकार अपूर्ण तक है.) ५९५६२. (+#) संघयणीसूत्र सह टबार्थव विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १७९९, आश्विन कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ५४+२(३६ से
३७)=५६, कुल पे. ३, प्रले. मु. भक्तिविजय (गुरु ग. रामविजय); गुपि. ग. रामविजय (गुरु पं. कांतिविजय गणि); पं. कांतिविजय गणि (गुरु पं. प्रेमविजय गणि); पं. प्रेमविजय गणि (गुरु आ. विजयप्रभसूरि); आ. विजयप्रभसूरि (गुरु पं. सदारुचि गणि, तपागच्छ), प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, २-२१४३७-५७). १.पे. नाम. बृहत्संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-५४अ, संपूर्ण.
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: वीरजिण तित्थं, गाथा-३४५.
बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, मु. धर्ममेरु, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने अरिहत; अंति: संघयणी जयवंती वर्तो. २. पे. नाम. जीवगति आदि विचार संग्रह, पृ. ५४अ, संपूर्ण.
विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. पुद्गलस्वरूप वर्णन, पृ. ५४आ, संपूर्ण.
विचार संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५९५६३. आचारांगसूत्र श्रुतस्कंध-१ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५४, दे., (२५.५४१२, ६x४७).
आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुअंमे आउसं तेणं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सु० एहवउ सांभल्यु; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५९५६४. (+#) गौतम कुलक सह टीका, संपूर्ण, वि. १९२४, चैत्र शुक्ल, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५२, ले.स्थल. लखनौ,
प्रले. मु. गोकलचंद ऋषि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२, १२४३६-४१).
गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टीका+कथा, मु. ज्ञानतिलक, सं., गद्य, वि. १६६०, आदि: नत्वा श्रीदेवगुरुन; अंति: भुवि चिरंजीयात,
कथा-६९. ५९५६५. (+#) पर्युषणअष्टाह्निका व्याख्यान सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७७, श्रावण शुक्ल, ५, सोमवार, जीर्ण, पृ. ५१,
प्रले. मु. जैवंतसागर (गुरु मु. मोहोकमसागर); गुपि.मु. मोहोकमसागर; पठ. मु. हिम्मतसागर; अन्य. परसराम (ब्राह्मण), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१०८४) याद्रसं पुस्तकं द्रष्टा, जैदे., (२६४१२, ६४२७-३५). पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि: स्मृत्वा पार्श्व; अंति: करगामिनी भवति,
गाथा-१९७.
पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ केहवा; अंति: परंपरा हाथे आवती होइ. ५९५६६. (#) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५०+१(१५)=५१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ११४२४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (प.वि. स्थविरावली-माढर गोत्रीय
स्थविर आर्य इसिपालित के वर्णन तक का पाठ है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ ५९५६७. (+) नंदीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८८६, आश्विन शुक्ल, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. ५०-१(३८)+१(१८)=५०,
ले.स्थल. नागोर, प्रले. मु. हंसराज ऋषि (बृहन्नागोरीगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ५०००, जैदे., (२६४१२.५, ८-२२४३३-४८). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: तिबेमि नंदी सम्मता, सूत्र-५७,
गाथा-७००. नंदीसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नंदी कहता आणंदनो; अंति: (-), (वि. अंत की कुछ गाथाओं का टबार्थ नहीं
लिखा है.) ५९५६८. (+#) जंबूअध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९३, चैत्र शुक्ल, १, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४९, ले.स्थल. मकसुदाबाद,
प्रले. मु. जसविजय (गुरु मु. सुबुद्धिविजय); गुपि.मु. सुबुद्धिविजय (गुरु ग. कुशलविजय); ग. कुशलविजय (गुरु ग. भानुविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (७९६) भग्नपृष्टी कटीग्रीवा, जैदे., (२६४१२, ७४३७-४०). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: से आराहगा भणिया,
उद्देशक-२१.
जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: ते कालनि विषइ ते; अंति: आराधक जीव कह्या. ५९५६९. (+#) जंबूअध्ययन सह टबार्थ, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५०-१(१)=४९, ले.स्थल. कुरदवाड, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, ६४४३-४६). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: से आराहगा भणिया, (पू.वि. "तवेणकम्मखपफलं"
पाठ से है.)
जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: आराधक भणवा अने जाणवा. ५९५७०. (+) समवायांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५६-७(१,४८ से ५३)=४९, पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ७४३३-३६). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. समवाय-१ अपूर्ण से २३ अपूर्ण तक व
समवाय-२७ अपूर्ण से २९ अपूर्ण तक है.)
समवायांगसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५९५७१. नंदीसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७३३, कार्तिक कृष्ण, ७, शनिवार, मध्यम, पृ. ४४, ले.स्थल. बुसी, प्रले.सा. कुशला आर्या (गुरु सा. नेतुजी आर्या); गुपि.सा. नेतुजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२,७-२८४३५-६०). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: समणुन्नाइं नामाइं, सूत्र-५७,
गाथा-७००, संपूर्ण. नंदीसूत्र-बालावबोध*मा.गु., गद्य, आदि: अथ नंदि इति कः; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
___ अंत की कुछ गाथाओं का बालावबोध नहीं लिखा है.) ५९५७२. (+#) जंबूअध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७२, फाल्गुन शुक्ल, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४३, प्रले. मु. विनयसुंदर (गुरु
पंन्या. धनविजय); गुपि. पंन्या. धनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ७४३८-४२).
जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० रायगिहे; अंति: से आराहगा भणिया, उद्देशक-२१.
जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: ते कालनि विषइ ते; अंति: आराधक जीव कह्या. ५९५७३. कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १११-६९(१ से २,१५,२१ से ३०,३७,४३ से ८३,८५ से ८७,९१ से ९९,१०७,११०) ४२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४१२, ६४३२).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नागकेतु प्रसंग से महावीरस्वामी की दीक्षा हेतु
नंदिवर्धन से अनुज्ञा के प्रसंग तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५९५७४. (+) दशवकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०७, मध्यम, पृ. ४१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ७४४१).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किटुं; अंति: अपुणागमं गइत्ति बेमि,
__ अध्ययन-१०.
दशवकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनधर्म उत्कृष्ट; अंति: एहवी मोक्षगति पामइ. ५९५७५. (+#) सिद्धांतछूटकगाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३९, ले.स्थल. औरंगाबाद, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ४४२५).
सिद्धांतगाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अन्नम्मि हे ह किंचि, गाथा-८६.
सिद्धांतगाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मरूपीओ मांगलिक; अंति: मृत्युसमय अंतकालि. ५९५७६. (+#) श्रावकदिनकृत्य सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १६४६, पौष शुक्ल, ४, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३९-१(३८)=३८, ले.स्थल. अहम्मदावाद, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ५४३१). श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वीरं नमिऊण तिलोयभाणु; अंति: मिच्छामिह दुक्कडंति,
गाथा-३४०, ग्रं. ३९०, (पू.वि. गाथा ३२७ अपूर्ण से ३३६ अपूर्ण तक नहीं है.)
श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वीरं कहीइ श्रीमहावीर; अंति: फोक थाउ इहा पाप. ५९५७७. (+) भक्तामर स्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४-१(३३)=३३, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१०८५) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, जैदे., (२५४१२, १३४४१-४४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४१ अपूर्ण से ४३
अपूर्ण तक नहीं है.)
भक्तामर स्तोत्र-टीका, उपा. सिद्धिचंद्र, सं., गद्य, आदि: श्रेयः श्रिये प्रभुर; अंति: स्तावोक्तिरत्नाकरात्. ५९५७८. (+) नवस्मरणादि स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३४, कुल पे. ३४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२,
१५४४५). १.पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १आ-१०अ, संपूर्ण.
मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: जैनंजयति शासनम्, स्मरण-९. २.पे. नाम. लघुजिनसहस्रनाम, पृ. १०अ-११अ, संपूर्ण.
जिनसहस्रनाम लघुस्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमस्त्रिलोकनाथाय; अंति: मुच्यते नात्र संशयः, श्लोक-४१. ३. पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. ११अ-१२आ, संपूर्ण..
आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यताक्षरसंलक्ष्य; अंति: लभ्यते पदमुत्तमम्, श्लोक-६३. ४. पे. नाम. जिनपंजर स्तोत्र, पृ. १२आ-१३आ, संपूर्ण.
आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ, अंति: श्रीकमलप्रभाख्यः, श्लोक-२५. ५. पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण.
अजितशांति स्तवलघु-खरतरगच्छीय, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उल्लासिक्कमनक्ख; अंति: जिणवल्लह०
विधुणंतह, गाथा-१७. ६. पे. नाम. सर्वाधिष्टायक स्तोत्र, पृ. १४अ-१५अ, संपूर्ण.
गणधरदेव स्तुति, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तं जयउ जए तित्थं; अंति: निट्ठियट्ठो सुही होइ, गाथा-२६. ७. पे. नाम. गुरुपारतंत्र्य, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. गुरुपारतंत्र्य स्मरण-खरतरगच्छीय, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: मयरहियं गुणगणर यणसायर; अंति:
जिणदत्त०पणयमुणि तिलओ, गाथा-२१. ८.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १५-१६अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिग्घमवहरउ विग्घ; अंति: नमामि साहम्मिआतेवि, गाथा-१४. ९.पे. नाम. चौबीसजिन स्तवन, पृ. १६अ-१७अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
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२४ जिन स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: कनककांतिधनुशतपंचकोच, अंतिः युपरमं परमं परमंबिका, श्लोक-२९.
१०. पे नाम, जयतिहुअण स्तोत्र, पृ. १७अ १८आ, संपूर्ण.
आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख, अंतिः अभव० विन्नवइ अनिंदिय
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गाथा - ३०.
११. पे नाम. महिम्न स्तोत्र, पृ. १८ आ- २१अ संपूर्ण.
आदिजिन महिम्न स्तोत्र, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: महिम्नः पारं ते परम; अंतिः ब्रह्मैक तेजोमयी, श्लोक-३८.
१२. पे नाम. ग्रहशांति, पृ. २१अ, संपूर्ण,
ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिरुदीरिता, श्लोक-११. १३. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण
सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: सरस्वती नमस्यामि; अंतिः करिष्यामि न शंसयः, श्लोक ७
१४. पे. नाम गौतमाष्टक, पृ. २१आ, संपूर्ण.
गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिं वसु अंतिः लभते नितरां क्रमेण श्लोक ९. १५. पे. नाम. बृह्नमस्कार, पृ. २१ आ-२२अ, संपूर्ण.
वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमेष्ठिनमस्कार; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक ८.
१६. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस, अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु श्लोक-११.
१७. पे. नाम. जिनसहस्रनाम, पृ. २२आ- २४आ, संपूर्ण
शक्रस्तव - अर्हन्नामसहस्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं. प+ग, आदिः ॐ नमोर्हते भगवते; अंतिः प्रपेदे संपदा
"
पदम्.
१८. पे नाम ज्वालामालिनी स्तोत्र, पृ. २४आ- २५आ, संपूर्ण
सं., गद्य, आदिः ॐ नमो भगवते श्रीचंद, अंति: ज्ञापयति स्वाहा.
१९. पे. नाम पद्मावत, पृ. २५ आ२६अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन अष्टक - महामंत्रगर्भित, सं., पद्य, आदि: श्रीमदेवेंद्रवृंदा अंतिः तस्येष्टसिद्धि:, श्लोक ९. २०. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. २६अ २६ आ, संपूर्ण
सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: व्याप्तानंतसमस्तलोक, अंतिः भवत्युत्तम संपदः, श्लोक ९.
,
२१. पे. नाम जैनरक्षा स्तोत्र, पृ. २६ आ-२७अ संपूर्ण
जिनरक्षा स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीँ श्रीँ अर्ह; अंति: संपदश्च पदे पदे, श्लोक-१८.
२२. पे. नाम. नवपद आह्वान, पृ. २७अ-२८अ, संपूर्ण.
नवपद आवाहन, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: अंतरंगारिगणे सुनाणे, अंतिः आगच्छ आगच्छ अत्र. २३. पे नाम, गौतमस्तव, पृ. २८अ-२८आ, संपूर्ण,
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गौतमस्वामी स्तव, आ. वज्रस्वामि, सं., पद्य, आदिः स्वर्णाष्टाप्रसहस्र, अंतिः श्रेयांसि भूयांसि नः श्लोक-११. २४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. २८आ- २९आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र - सहस्रफणी, उपा. भक्तिलाभ, सं., पद्य, आदि ध्यात्वा सद्गुरु पाद: अंति: नंदोदयः स्फूर्जतात् लोक-१६.
२५. पे. नाम. सारस्वत स्तोत्र, पृ. २९आ- ३०अ, संपूर्ण
सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, आदि: कंवात्कुंडलिनित्वदिय; अंतिः तस्य वाचां विशेषः, श्लोक-१२. २६. पे नाम. अकलंक स्तोत्र, पृ. ३०१-३०आ, संपूर्ण
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कलंकाष्टक, सं., पद्य, आदि: त्रैलोक्यं सकलं; अंति: सूक्ष्मः शिवः, श्लोक - १०.
२७. पे. नाम. अष्टप्रकारीपूजा, पृ. ३१अ, संपूर्ण.
अष्टप्रकारी पूजा, सं., पद्य, आदि: स्वर्वासिवासे सुतरां अंति: मोक्षं विरहाद्भवस्य, श्लोक - ९. २८. पे. नाम. नंदीश्वर स्तोत्र, पृ. ३१अ- ३१आ, संपूर्ण.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
नंदीश्वरतीर्थ स्तोत्र, सं., पद्य, आदि; सुमेरुशृंगे कृत जैन, अंतिः कल्याणभुजो भवंति श्लोक ९. २९. पे. नाम. पंचपरमेष्ठी स्तुति, पृ. ३१आ, संपूर्ण.
पंचपरमेष्ठि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: णमिउण असुरसुरगरूल, अति: उवज्झाय सव्वसाहुय, गाधा- १.
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३०. पे. नाम. उवसग्गहरह, पृ. ३१आ, संपूर्ण.
उवसग्गाहर स्तोत्र - गाथा ९, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः उवसग्गहरं पास पास अंतिः भवे भवे पास जिणचंद,
गाथा - ९.
३१. पे. नाम. पद्मावती स्तोत्र, पृ. ३१आ-३३आ, संपूर्ण, पे.वि. यंत्र दिया हुआ है.
पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र, अंति: स्तुता दानवेंद्रैः, श्लोक-२७.
३२. पे. नाम. घंटाकर्ण स्तोत्र, पृ. ३३आ-३४अ, संपूर्ण.
घंटाकर्ण मंत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ घंटाकर्णमहावीर, अंतिः ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. ३३. पे, नाम, घंटाकर्ण कल्प, पृ. ३४अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: ए मंत्र त्रिकालगुणी, अंतिः चोरासी जातना वाय जाई.
३४. पे नाम, पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ३४अ ३४आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखक ने कृति का नाम लक्ष्मीस्तोत्र लिखा है. पार्श्वजिन स्तोत्र - लक्ष्मी, मु. पद्मप्रभदेव, सं., पद्य, आदि लक्ष्मीर्महस्तुल्य, अंतिः स्तोत्रं जगन्मंगलम् श्लोक- ९.
५९५७९. (+) कर्मग्रंथ १-४, संपूर्ण, वि. १८८५, कार्तिक शुक्ल, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३४, कुल पे. ४, ले. स्थल. सवाइजनगर, प्रले. चक्रपाण पं., प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जै. (२५.५x१२.५, ४X३२).
१. पे. नाम. कर्मविपाकसूत्र, पृ. १आ-१०अ, संपूर्ण.
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य वि. १३वी १४बी, आदि सिरिवीरजिणं वंदिय; अंतिः लिहिओ देविंदरिहिं गाथा ६०.
२. पे. नाम. कर्मस्तवसूत्र, पृ. १०अ १६अ, संपूर्ण.
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी १४वी, आदि: तह धुणिमो वीरजिण अंतिः देविंदं० तं नमह बीरं, गाथा - ३४.
३. पे. नाम. बंधस्वामित्वसूत्र, पृ. १६अ २०अ, संपूर्ण.
स्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी २४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्तं, अंतिः देविंदसूरि० सोउं, गाथा - २५.
४. पे. नाम षडशीतिका कर्मग्रंथसूत्र, पृ. २० अ-३४अ, संपूर्ण.
षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - ९४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: देविंदसूरीहिं गाथा-८८.
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५९५८१. दीपमालिका व्याख्यान, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३२, जै, (२५.५४१२.५, ११४२६-२८).
दीपावलीपर्व व्याख्यान, पा. उमेदचंद्र, सं., गद्य, वि. १८९६, आदि: श्रीनेमीशं जिनं; अंति: रम्यं कृतं शुभतराशया. ५९५८२. (०) कर्मग्रंथ १६. पूर्ण वि. १८६२ आषाढ़ शुक्ल, १०, शनिवार, मध्यम, पृ. ३२-१ (१) -३१, कुल पे, ६,
ले. स्थल. अजिमगंज, प्रले. मु. देवरंग (गुरु ग. सौभाग्यसुंदर); गुपि. ग. सौभाग्यसुंदर (गुरु ग. नीत्यकमल); ग. नीत्यकमल (गुरु ग. लावण्यकमल); ग. लावण्यकमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६X१२, ११X३०). १. पे. नाम. कर्मविपाक सूत्र, पृ. २अ ५आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
',
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्म, वि. १३वी १४बी, आदि (-); अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा - ६०, ( पू. वि. गाथा ८ अपूर्ण से है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ २.पे. नाम. कर्मस्तव सूत्र, पृ. ५आ-८अ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमहं तं
वीरं, गाथा-३४. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व तृतीय कर्मग्रंथ, पृ. ८अ-१०अ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्क; अंति: देविंदसूरि०
सोउं, गाथा-२५. ४. पे. नाम. षडशीति कर्मग्रंथ, पृ. १०अ-१७आ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो
देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. ५. पे. नाम. शतक कर्मग्रंथ, पृ. १७आ-२५आ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति:
देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००. ६.पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रंथ, पृ. २५आ-३२आ, संपूर्ण.
आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: चंद० एगूणा होई नउईओ, श्लोक-९४. ५९५८३. (+#) रत्नसंचय सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०-१(१)=२९, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ७४२८).
रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६ अपूर्ण से ३२१ अपूर्ण तक है.)
रत्नसंचय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५९५८४. (+) निरयावलिकासूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७९-५०(१ से ५०)=२९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ५४३६-४०).
वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: बारस्स उद्देसगा, अध्ययन-१२, (पू.वि. "द्वितीसुकेणभते" पाठ से है.)
वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: उद्देशा अध्ययन. ५९५८५. (+) श्रीपाल चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ६४३८).
सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाइं झायित; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३१२ अपूर्ण तक लिखा है.) सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ*, मागु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत प्रमुख नव; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., गाथा ४० तक का टबार्थ लिखा है.) ५९५८६. (#) साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८९, अगर, माघ शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. २६, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ३-६४३३-३६).
साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: आवस्सही इच्छाकारेण; अंति: खमामि सव्वस्स अहयंपि.
साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आवसही करतौ सावधान; अंति: स० सर्वने अ० हूं पिण. ५९५८७. सुदर्शन चरित्र, संपूर्ण, वि. १९५५, आश्विन शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. २६, दे., (२६४१२.५, १४४४४-४९).
सुदर्शनसेठ चरित्र, मु. सकलकीर्ति, सं., पद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: श्रीसुदर्शनयोगिनः, परिच्छेद-८. ५९५८८.(+) संघयणि सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २५, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, ९४२९-३२). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: नंदउ जा वीरजिण तत्थं,
गाथा-३२८. ५९५८९. (+#) स्तुति, स्तोत्र व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८-५(१,३ से ६)=२३, कुल पे. २४, प्र.वि. पदच्छेद
सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १६४३१). १.पे. नाम. दसपच्चक्खाण, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. आयंबिल पच्चक्खाण अपूर्ण से देवसचरम पच्चक्खाण
तक है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ७अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: संत्तित्तुः स्तुतिभ; अंति: नित्यं मनो वांछितम्, श्लोक-१. ३. पे. नाम. नमस्कारसूत्र, पृ. ७अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन नमस्कार-जीरावला, सं., पद्य, आदि: आधिव्याधिहरो देवो; अंति: नतनाथो नृणां श्रिये, श्लोक-१. ४. पे. नाम. नमस्कारसूत्र, पृ. ७अ, संपूर्ण.
___ पार्श्वजिन स्तवन, प्रा., पद्य, आदि: चउकसाय पडिमल्लु; अंति: जिण पास पय छउ वंछिय, गाथा-२. ५. पे. नाम. वर्द्धमानजिन स्तुति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु वर्द्धमानाय; अंति: प्राणभाजां श्रुतांगी, श्लोक-४. ६. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, प्रा.,सं., पद्य, आदि: परसमयतिमिरतरणि भव; अंति: मे मंगलं देविसार, गाथा-४. ७. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ७आ-११अ, संपूर्ण.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ८. पे. नाम. लघुशांति स्तवन, पृ. ११अ-१२अ, संपूर्ण.
लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ९. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. १२अ-१३अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. १०. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १३अ-१६अ, संपूर्ण.
आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ११. पे. नाम. स्थंभनक पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १६आ-१९आ, संपूर्ण. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: अभय०
विन्निवइ आणंदिय, गाथा-३०. १२. पे. नाम. श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र, पृ. १९आ-२१आ, संपूर्ण.
वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, गाथा-५०. १३. पे. नाम. दीक्षा कुलक, पृ. २१आ-२३अ, संपूर्ण.
प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संसार विसमसायर भवजल; अंति: तरंति ते भवसलिल रासं, गाथा-३४. १४. पे. नाम. पगामसज्झाय, पृ. २३आ-२६अ, संपूर्ण.
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, सूत्र-२१. १५. पे. नाम. आदिनाथ स्तुति, पृ. २६अ-२६आ, संपूर्ण. ___आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तीहार सुतारगणं; अंति: सुहाणि कुणेसु सया, गाथा-४. १६. पे. नाम. सिद्धाचल स्तुति, पृ. २६आ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेजमंडण आदि; अंति: नंदसूरि पाय सेवता, गाथा-४. १७. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. २६आ-२७अ, संपूर्ण.
बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. १८. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तुति, पृ. २७अ, संपूर्ण.
विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषय; अंति: जण मनवंछित सारै, गाथा-४. १९. पे. नाम. नेमिनाथ स्तुति, पृ. २७अ-२७आ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदु पाय; अंति: जिनवर मंगलाकर देवियै, गाथा-४. २०. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. २७आ-२८अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमा; अंति: सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. २१. पे नाम, अष्टमी स्तुति, पृ. २८अ संपूर्ण,
अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोह, अंति: संघ कल्याणदाता, गाथा-४.
२२. पे नाम, पार्श्वप्रभु स्तुति, पृ. २८अ २८आ, संपूर्ण,
पार्श्वजिन स्तुति - पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्म, आदि: समदमोत्तम वस्तु अंतिः जयतु सा जिनशासनदेवता, श्लोक-४.
२३. पे नाम, अष्टमी स्तुति, पृ. २८आ, संपूर्ण
अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमुं, अंतिः इम जीवित जनम प्रमाण,
गाथा-४.
२४. पे. नाम. पर्युषण स्तुति, पृ. २८आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वली वली हुं ध्यावुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण तक है.)
५९५९०. (+) गीत, स्तवन, स्तोत्र व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१, कुल पे. १७, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X१२, ११३०).
१. पे नाम. प्रसन्नचंद्रऋषि सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण.
प्रसन्नचंद्र राजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मारगमां मुनिवर मल्यो, अंतिः समवसुंदर
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ढाल-५.
४. पे. नाम. पाखी चैत्यवंदन, पृ. ४आ-७अ, संपूर्ण.
मनवाल, गाथा ५.
२. पे. नाम रात्रिभोजन सज्झाय, पृ. १अ २अ, संपूर्ण.
रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: पुण्यसंजोगे नरभव लाघ, अंतिः मोक्षतणा अधिकार रे, गाथा- १४.
३. पे. नाम. प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. २अ - ४आ, संपूर्ण.
४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अति भली, अंतिः समय० नयर प्रसीद्ध,
सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान, अंति: जं कंचि नाम तिथं श्लोक-४०,
५. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र - द्रुमपुष्पिका अध्ययन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
,
दशवैकालिकसूत्र - हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा. पद्य, आदि धम्मो मंगलमुकि अंति: साहुणो त्तिबेमि, गाथा - ५.
६. पे. नाम गौतमस्वामी सज्झाय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण
गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरोसीस, अंति: लावण्यसमय० संपति कौड, गाथा- ९.
७. पे. नाम गौतमस्वामी स्तुति, पृ. ८अ संपूर्ण
मा.गु. सं., पद्य, आदि अंगुठे अमृत वसे लब्ध, अंतिः घर कुसल पगपगला बलहंत, गाथा ५.
८. पे. नाम, सोलहसती नाम, पृ. ८अ संपूर्ण,
३७
१६ सती नाम, मा.गु. सं., पद्य, आदि ब्राह्मी चंदनबाला, अंतिः कुर्वंतु वो मंगलं.
९. पे. नाम. पार्श्वनाथ लघुस्तोत्र, पृ. ८आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन लघुस्तवन- इरियापथिकी मिथ्यादुः खकृत विचारगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, प्रा., पद्य, आदि: मणुवातिसय तिडुत्तर न अंतिः दर पणयंत पास जिणचंदं, गाथा-४.
१०. पे. नाम, चेलणा सज्झाय, पृ. ८आ. ९अ, संपूर्ण.
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३८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरे वखाणी राणी; अंति: समयसुंदर० भव तणो पार,
गाथा-७. ११. पे. नाम. पार्श्वनाथ नीसाणी, पृ. ९अ-१३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपति दायक सुरनर; अंति: गुण जीनहर्ष कहंदा है,
गाथा-२९. १२. पे. नाम. अतीत वर्तमान अनागत नामावली, पृ. १३आ-१५आ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: जंबूद्वीपे भरते अतीत; अंति: श्रीआरणनाथाय नमः. १३. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सयणासणन्नपाणे चेइअ; अंति: साहुदेह
साधारणा. १४. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: कुशल वडो संसार कुशल; अंति: निधान्न लक्ष्मी मिले, गाथा-३. १५. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १७अ, संपूर्ण.. जिनकुशलसूरि सवैया, मु. धर्मसीह, पुहिं., पद्य, आदि: राजै थूभ ठौर ठौर ऐसौ; अंति: नाम युं कहायो है, गाथा-१,
(वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक लिखा है.) १६. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण.
जिनदत्तसूरि सवैया, मु. धर्मसी, पुहिं., पद्य, आदि: बावन वीर कीए अपने वस; अंति: धर्मसी० की एक दुहाई, सवैया-१. १७. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १७आ-२१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणंसाहूणं; अंति: (-), (पू.वि. "त्तस सव्वस्सवि देवसियस्स"
पाठ तक है.) ५९५९१. (+) क्षेत्रसमास सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८७३, वैशाख कृष्ण, ८ अधिकतिथि, मध्यम, पृ. २०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १५४३७). बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण;
अंति: झाएज्जा सम्मदिट्ठीए, गाथा-१८८.
जंबूद्वीप प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण क० नमीनइ जेहनै; अंति: ध्यावउ सम्यग्दृष्टि. ५९५९२. अणुत्तरोववाईय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, जैदे., (२६४१२, ६४३३).
अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेण कालेणं तेणं समएण; अंति: सुत्तं समत्तं,
अध्याय-३३, ग्रं. १९२.
अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चउथा अरतिणौ काहानै; अंति: त० तिमज ने० जाणीवा. ५९५९३. (#) गौतमपृच्छा सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २९-११(१ से ४,२१ से २४,२६ से २८)=१८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १५४४३).
गौतमपृच्छा , प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश हैं.)
गौतमपृच्छा-टीका*,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ५९५९४. (#) गौतमपृच्छा सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७-२०(१ से २०)=१७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १७४४४).
गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३७ से ६४ तक है.)
गौतमपृच्छा -टीका *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५९५९५. सुखबोधार्थमालापपद्धति, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-१(२)=१३, जैदे., (२५.५४११.५, ७४३६).
आलाप पद्धति, आ. देवसेन, सं., पद्य, वि. १०वी, आदि: गुणानां विस्तर; अंति: यथा जीवस्य शरीरमिति,
अधिकार-१९, सूत्र-२२८, (पू.वि. पाठांश "ज्ञानदर्शनसुख" से आगे "जनपर्यायाः" से पूर्व तक का पाठ नहीं है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
३९
५९५९६. (+) नवतत्त्व, दंडक प्रकरण, जीवविचार प्रकरण व बालकना मुखने छालानो मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (२६४१२, ११४३१).
१. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा, अंतिः सहपरभवगा न सेसहं, गाथा- ७७.
२. पे नाम, दंडक प्रकरण, पृ. ६आ ९अ, संपूर्ण.
मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीसजिणे तस्स, अंति: विन्नत्ती अप्पहिया, गाथा- ४०.
३. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ९आ-१२ आ. संपूर्ण.
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य वि. ११वी आदि भुवण पईवं वीरं नमिऊण अंतिः रुदाउ सुय समुद्दाउ, गाथा ५१.
"
४. पे. नाम. बालकना मुखना छालानो मंत्र, पृ. १२आ, संपूर्ण.
औषधमंत्रादि संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
,
५९५९७. जीवविचार प्रकरण सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ११, जैवे. (२५४१२, ४४२१-२७).
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा - ५२.
५९५९८. (+)
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीन भुवननै विषे; अंति: रूप समुद्र थकी. कुलक संग्रह सह टबार्थ व उपदेशरत्नकोश, संपूर्ण, वि. १९४१, माघ शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ५, ले.स्थल. लखनउ, प्रले.मु. गोकुलचंद्र ऋषि (गुरु आ. शांतिसागरसूरि, विजयगच्छ पूर्णिमापक्ष); गुपि. आ. शांतिसागरसूरि (गुरु आ. जिनचंद्रसागरसूरि विजयगच्छ), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीऋषभजिन मंदिरे, पदच्छेद सूचक लकीरें, दे., (२५.५४१२.५, ७X३९-४२).
१. पे. नाम. पुण्यकुलक सह शब्दार्थ, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संपुर्ण इंदियत्त, अंतिः ते सासयं सुक्खं गाथा १०.
पुण्यकुलक- शब्दार्थ, मु. गोकुलचंद्र ऋषि, सं., गद्य, आदि: संपूर्णप्रतिपूर्ण, अंतिः सुखं कर्मरहिता भवंति.
२. पे. नाम. अभव्यकुलक सह शब्दार्थ, पृ. २अ २आ, संपूर्ण.
अभव्य कुलक, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: जह अभवियजीवेहिं न अंतिः तेसिंन संपत्ता, गाथा ९.
अभव्य कुलक- शब्दार्थ, मु. गोकुलचंद्र ऋषि, सं., गद्य, आदिः यः अभव्य जीवेन न; अंतिः अभव्य जीवेन न प्राप. ३. पे. नाम. पुण्यपाप कुलक सह शब्दार्थ, पृ. २आ-४अ संपूर्ण.
पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: छत्तीसदिण सहस्स वास, अंति: धम्मम्मि उज्जमं
कुणह, गाथा - १६.
""
पुण्यपाप कुलक- शब्दार्थ, मु. गोकुलचंद्र ऋषि, सं. गद्य, आदि: छत्तीस सहस्र दिवसो; अंतिः प्रति उद्यम कुर्यात् ४. पे. नाम. दानशीलतपभावना कुलक सह शब्दार्थ, पृ. ४अ -१०अ, संपूर्ण.
दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः परिहरिय रज्जसारो अंतिः सो लहइ सिद्धिसुहं,
वक्षस्कार-४, गाथा-८१, संपूर्ण.
दानशीलतपभावना कुलक-शब्दार्थ, मु. गोकुलचंद्र ऋषि, सं., गद्य, आदिः परिहरति राज्यलक्ष्मी, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दानकुलक तक का टबार्थ लिखा है.)
.पे. नाम, उपदेश रत्नकोष, पृ. १० अ- ११आ, संपूर्ण.
उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः उवएसरयणकोसं नासिअ अंतिः वच्छयले रमइ सेच्छाए गाथा - २५.
"
५९५९९ (+) क्षेत्रसमास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६११.५, १३x२८-३२).
"
बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा. पद्य वि. ६वी, आदि: नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण; अंति: (-), ( पू. वि. गाथा २३४ तक है.)
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४०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५९६००. कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ९-१(१)-८, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.. प्र.वि. पत्रांक खंडित होने के कारण पत्रांक अनुमानित २ से ९ लिखा है., जैदे., (२५४११.५, ६४२९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. "आभोईएपडिवाउ" पाठ से "कोडिन्नागुत्तेण"
पाठ तक है.)
कल्पसूत्र-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ५९६०१. (-) संग्रहणी सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४१२, ५४३८).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई विभव; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., गाथा-७१ अपूर्ण तक लिखा है.) । बृहत्संग्रहणी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउं नमस्कार अरिहंत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., गाथा-३० अपूर्ण तक का टबार्थ लिखा है.) ५९६०२. (+) पाक्षिकसूत्र व पाक्षिकखामणा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२,
१५४३८). १.पे. नाम. पाक्षिक सूत्र, पृ. १अ-९अ, संपूर्ण.
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: देवसीयं पडिकमामि. २. पे. नाम. क्षामणक सूत्र, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.
क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो० पिय; अंति: पारगा होह ए गुरुंवचन, आलाप-४. ५९६०३. दंडक स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. पादरा, प्रले. मु. वखतविजय (गुरु पं. प्रतापविजय
गणि); गुपि.पं. प्रतापविजय गणि (गुरु उपा. चतुरविजय); उपा. चतुरविजय (गुरु ग. मेघविजय); ग. मेघविजय (गुरु पंडित. प्रेमविजय); पंडित. प्रेमविजय (गुरु आ. विजयप्रभसूरि, तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ४४२३-२६). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया.
गाथा-४०, संपूर्ण. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिनइ चउवीस तीर्थंकर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
गाथा-३ तक का टबार्थ लिखा है.) । ५९६०४. बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. अबरखयुक्त पत्र., जैदे., (२५४११.५, ६-१५४४२).
बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पति निग्गंथाण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., "जेतत्थ एगरायाउवा दुराउचापरं" पाठ तक लिखा है.) बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नो० न कल्पइ नि० साधु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., "सिसजंगमणं सव्वं आगमणं" पाठ तक का टबार्थ लिखा है.) ५९६०५. (+) हेमदंडक व पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक
लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १४४४५). १. पे. नाम. हेमदंडक, पृ. १आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: जीवभेया सरीराहार; अंति: अप्पाबहुदंडगम्मि, गाथा-५. २. पे. नाम. हेमदंडक का पद्यानुवाद, पृ. १आ-८आ, संपूर्ण. हेमदंडक-पद्यानुवाद, मु.ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: जो ध्रुव अलख अमूरती; अंति: कीनों हेमदंडग
सुजगीस, गाथा-१०६. ५९६०६. (+) सिंदूरप्रकर काव्य, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. मु. जीतमल ऋषि; पठ.मु. ऋषभचंद, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४४०). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२,
श्लोक-१०१.
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____ ४१
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ ५९६०७. (+) एकविंशतिस्थानक व निगोद वर्णन सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८९, आश्विन शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २,
प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ५४३६). १.पे. नाम. एकविंशतिस्थानक सह टबार्थ, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण. २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाण नयरी जिणया; अंति: असेस साहारणा भणिया,
गाथा-६६. २१ स्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीर, (२)जिण विमानाथी चवी; अंति: सघलाना
सरीखा कह्या. २. पे. नाम. निगोदवर्णन सह टबार्थ, पृ. ७आ, संपूर्ण..
निगोद विचार, प्रा., पद्य, आदि: चउहा अणंता जीवा अवर; अंति: पुणोवि तत्थेव तत्थेव, गाथा-४.
निगोद विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीतीर्थंकर वीतराग; अंति: उपजे तिहांचवे. ५९६०८. (+) उपदेशमाला की अनुक्रमणिका व वर्णमालिका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित.,
जैदे., (२५.५४११, १०x२९). १. पे. नाम. उपदेशमाला की श्लोकानुक्रमणिका, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण.
उपदेशमाला-श्लोकानुक्रमणिका, प्रा., गद्य, आदि: नमिऊण; अंति: अक्खरम. २.पे. नाम. उपदेशमाला की वर्णमालिका, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
उपदेशमाला-वर्णमालिका, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: आदौ षट्शून्येषु; अंति: (-), (पू.वि. "दिणभवेजीअं" पाठ तक है.) ५९६०९. (+) लघुसंग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. पालनपुर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, ३४२७).
लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं जिणसव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०.
लघुसंग्रहणी-टबार्थ *मा.गु., गद्य, आदि: नमीऊं के० नमस्कार; अंति: सूरि आचार्ये कह्यौ. ५९६१०. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८३, माघ शुक्ल, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. रामचंद्र ऋषि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, ५४३५).
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति:
संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: भुवनपईव क० तीन भुवन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., गाथा २४ अपूर्ण तक का टबार्थ लिखा है.) ५९६११. प्रस्ताविकश्लोक संग्रह, आदिजिन स्तुति व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ३, दे.,
(२५४१२.५, १०४३२). १.पे. नाम. प्रस्ताविक श्लोक, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण, वि. १९३२, कार्तिक शुक्ल, ५, प्रले. मु. लक्ष्मीचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य.
श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अवनीतलगतानां कृत्य; अंति: शत्रुगणं नृपहति सदा, श्लोक-४९. २. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्र उठि वंदू श्रीऋषभ; अंति: ऋषभदास गुण
गाय, गाथा-४. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
आ. कीर्तिसूरि, पुहिं., पद्य, वि. १७२३, आदि: सकल मुरत श्रीशांतिजि; अंति: कीर्तिसूरि उच्छाहै, गाथा-१२,
(वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है. गाथा परिमाण गिनकर लिखा गया है.) ५९६१२. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २६-१९(१ से १५,१७ से २०)-७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२६४११.५, ५४२५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-५, गाथा-९ अपूर्ण से
अध्ययन-६, गाथा-१५ अपूर्ण तक है.)
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४२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५९६१३. सूक्तिमुक्तावली, अपूर्ण, वि. १८७७, भाद्रपद कृष्ण, ४, रविवार, मध्यम, पृ. ७-१(२)=६, ले.स्थल. कुचेरा, प्रले.सा. रुखमा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १४४३८). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२,
श्लोक-१०२, (पूर्ण, पू.वि. गाथा १४ अपूर्ण से २७ अपूर्ण तक नहीं हैं.) ५९६१५. (#) चतुर्मासिकत्रय व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, ८x२१). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं स्फुरद; अंति: (-), (पू.वि. अंत
के पत्र नहीं हैं., प्रथम व्याख्यान अपूर्ण तक है.) ५९६१६. (#) सप्तस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६१-५६(१ से ५३,५८ से ६०)=५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ११४३९). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: भवे भवे पास जिणचंद, स्मरण-७,
(पू.वि. "जयतिहुअण स्तोत्र" अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ५९६१७. विवेकमंजरी प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. सा. लक्ष्मीसुंदरगणिनी-शिष्या (गुरु सा. लक्ष्मीसुंदरगणिनी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १५४४६). विवेकमंजरी, श्राव. आसड कवि, प्रा., पद्य, वि. १२४८, आदि: सिद्धपुरसत्थवाहं वीर; अंति: आसडेण० दिणेस
वरिसंमि, गाथा-१४४. ५९६१८. (+) सकलार्हत् स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ३४३७-३९).
सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति:
(-), (पू.वि. गाथा २७ अपूर्ण तक है.)
सकलार्हत् स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमः श्रीपार्श्वनाथाय; अंति: (-). ५९६१९. सूत्रकृतांगसूत्र सह टीका-श्रुतस्कंध २ अध्ययन ७, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-२(१,५)=५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., दे., (२६४११.५, १५४४५).
सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पाठांश है.)
सूत्रकृतांगसूत्र-बृहद्वृत्ति #, आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य, वि. १०वी, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ५९६२०. (+#) पासाकेवली सुकनावली, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७-२(२,६)=५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १८४३८-४३). पाशाकेवली, म. गर्गऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती; अंति: सत्योपासक केवली, श्लोक-१९६,
(पू.वि. बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ५९६२१. (+) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८६२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. अजिमगंज,
प्रले. मु.खुशालचंद; पठ. श्राव. संतोषमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४११,८x२७).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५१. ५९६२२. सूयगडांगसूत्र श्रुतस्कंध-१ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३५, वैशाख कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ८०, प्र.वि. कुल ग्रं. ६५७५, दे., (२५४१२, ४४३२-३५).
सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज; अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बुज्झे० छकाय जीवनो; अंति: (-), प्रतिपूर्ण.. ५९६२३. (+) गौतम कुलक बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १०४२६).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
४३ गौतम कुलक-बालावबोध+कथा, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८४६, आदि: नत्वा श्रीमन्महावीर; अंति:
(-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने अंत के कुछ पाठांश नहीं लिखे हैं.) ५९६२४. (+) सूयगडांगसूत्र श्रुतस्कंध-२ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ४-७X४१-४६).
सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विहरइ त्तिबेमि, प्रतिपूर्ण.
सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तुम्ह प्रति कहुं छु, प्रतिपूर्ण. ५९६२५. (+) दीपालिकल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४५, वैशाख कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ५०, ले.स्थल. डभोइनगर, प्रले. पं. न्यायसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ५४३३). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: श्रीवर्धमानमांगल्य; अंति: चंद्रार्कजगत्त्रये,
श्लोक-३३१.
दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हन्नत्वाल्पबुद्धी; अंति: त्यार लगि प्रवर्तो. ५९६२६. निरयावलिकादिसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६४-२१(१ से २१)=४३, कुल पे. ५, दे., (२४.५४११.५,
६४५०-५५). १.पे. नाम. कल्पिकासूत्र, पृ. २२अ-२५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: भणियव्वो तहा, अध्ययन-१०, (पू.वि. "वियपुव्विसे सद्दावेति" पाठ से है.) २.पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र, पृ. २५आ-२८अ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "कप्पवडिसियाणं पढमस्स
अयमढे पण्णत्ते" पाठ तक लिखा है.) । ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र, पृ. २८अ-५४आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइणं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संघहणाए, अध्ययन-१०, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., बीच-बीच के पाठ नहीं लिखे हैं.) ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र, पृ. ५४आ-५८आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइणं भंते समणेणं०; अंति: वासे सिज्झिहिंति, अध्ययन-१०, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
बीच-बीच के पाठ नहीं लिखे हैं.) ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र, पृ. ५८आ-६४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
___प्रा., गद्य, आदि: जइणं भंते पंचमस्स; अंति: (-), (पू.वि. "अहियासिति तं मठं आराहेति" पाठ तक है.) ५९६२७. (+) भक्तामरादि स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३, कुल पे. ११, पठ. सा. माणेकबाई आर्या,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, ६x४१). १.पे. नाम. भक्तामरस्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण.
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४८.
भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्त एवा देवोना; अंति: वरे छे ल० लक्ष्मी. २.पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. ८अ-१३आ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते,
श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कल्याणना मंदिररूप; अंति: मोक्षने प्र० पामे छे. ३. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १३आ-१६अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: भव्यात्मनां क्रीयते,
श्लोक-१२. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: किं० पार्श्वप्रभुनु; अंति: क्री० कराय छे. ४. पे. नाम. रत्नाकरपंचविंशति सह टबार्थ, पृ. १६अ-१८आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं. पद्य वि. १४वी आदिः श्रेयः श्रियां मंगल, अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये श्लोक-२५. रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः श्रे० कल्याणरूपी; अंति: आपनी पासे याचं छं . ५. पे नाम, प्रार्थना पंचविशंति सह टवार्थ, पृ. ९८आ-२९आ, संपूर्ण
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प्रार्थनापंचविंशति, आ. अमितगत्याचार्य, सं., पद्य, आदि: सत्त्वेषु मैत्रीं; अंति: मम दुष्कृतं प्रभो, श्लोक-२५. प्रार्थना पंचविंशति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: स० प्राणिओने विषे; अंति: प्र० हे प्रभो.
६. पे. नाम, परमानंद पंचविंशति सह टवार्ध, पृ. २१ आ. २३आ, संपूर्ण.
परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदिः परमानंदसंयुक्त; अंति: परमं पदमात्मनः, श्लोक-२५.
परमानंद स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः परमानंद कहेता; अंति: एहवी स्थिति रहेता.
७. पे नाम, प्रज्ञाप्रकाश सह टवार्थ, पृ. २३आ-२७आ, संपूर्ण
प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका, मु. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन, अंति: मवका प्रणीता श्लोक-३७. प्रज्ञा प्रकाशषट्त्रिंशिका - टवार्थ * मा.गु., गद्य, आदि: प्र० बुद्धिनो प्रकाश अंतिः म० मे प्र० रची छे
3
८. पे. नाम. ज्ञानप्रकाश सह टबार्थ, , पृ. २७-३३अ, संपूर्ण.
काव्यषट्त्रिंशिका, मु. तेजसिंह, सं., पद्य, आदि: ज्ञानप्रकाशो कविरंजन; अंति: शिकेयं मयका प्रणीता, श्लोक-३७. काव्यषट्त्रिंशिका - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः ज्ञा० मतिश्रुतादि अंतिः अर्थे ते माटे भणवु,
९. पे. नाम. हृदयप्रदीपषट्त्रिंशिका सह टबार्थ, पृ. ३३-३७अ संपूर्ण.
हृदयप्रदीपषट्त्रिंशिका, आ. चिरंतनाचार्य, सं., पद्य, आदिः शब्दादिपंचविषयेषु अंतिः शिष्यते किं वदान्यत्,
श्लोक-३६.
हृदयप्रदीपषट्त्रिंशिका - टबार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: श० शब्दादि पांच विषय अंतिः शुंव० बोल अ० बीजुं १०. पे नाम परमसुखप्रबोध सह टवार्थ, पृ. ३७आ-३९आ, संपूर्ण.
परमसुखद्वात्रिंशिका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: धर्माधर्मांतर मत्वा, अंतिः तदा ते परमं सुखम्, श्लोक-३२. परमसुखद्वात्रिंशिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: धर्म अने अधर्म जे; अंति: तुने परम सुख थशे.
११. पे. नाम. मणिरत्नमाला सह टवार्थ पू. ३९-४३, संपूर्ण.
प्रश्नोत्तरीरत्नमाला, तुलसीदास, सं., पद्य, आदि; अपार संसार समुद्र, अंति: गौरीश पदी सुसेव्यौ श्लोक-३२. प्रश्नोत्तरीरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते तुं मणिरत्नमाला; अंति: लेवो एज विज्ञप्ति.
५९६२८. (+) भक्तामर स्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ४३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैये.,
(२५X१२, १५X३२-३५).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि (-) अंति: (-) (पू.वि. श्लोक-३ से ४१ तक है. वि. प्रतिलेखक ने श्लोक सं. १ व २ नहीं लिखे हैं.)
भक्तामर स्तोत्र- गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदि: पूजाज्ञानवचोपायापगमा; अंतिः (-).
५९६२९. (+) निशीथसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९०, आश्विन शुक्ल, ८, रविवार, मध्यम, पृ. ४९, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित कुल ग्रं. ८५०, जैदे. (२६१२.५ ७४३९).
""
निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जे भिखु हत्थ कम्मं, अंति: जाव तेण परं छम्मासा, उद्देशक- २०, संपूर्ण.
निशीथसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे कोई भि० साधु, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "अहावरावीसतिरातिया आरोवणा" पाठ के टवार्थ तक लिखा है.)
५९६३०. (४) उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १८३० फाल्गुन शुक्ल, ३, रविवार, जीर्ण, पृ. ४५, प्रले. मु, काना ऋषि, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जीवे. (२६x१२. १७४४५).
,
"
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि: संजोगाविष्यमुक्कस्स अंतिः सम्मए ति बेमि, अध्ययन- ३६.
"
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ ५९६३१. (+#) नवतत्त्व सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १२४३१).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५० तक है.)
नवतत्त्व प्रकरण-टीका, मु. नेतृसिंह कवि, सं., गद्य, आदि: अमरपतिगणैर्यो वंतितो; अंति: (-). ५९६३२. (+) प्रतिक्रमण सूत्र संग्रह व प्रत्याख्यान आगार संख्या सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३८, कुल पे. २,
प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, ४४२२-३५).. १. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह सह टबार्थ, पृ. १अ-३८आ, संपूर्ण.
साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं०; अंति: गुणधारणा ६
चेव.
साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ति० त्रण्य वार हाथ; अंति: (-),
(वि. प्रतिलेखक ने अंतिम गाथा का टबार्थ नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. प्रत्याख्यान आगार संख्या, पृ. ३८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: फासिअ१ पालियर सोहिय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१
अपूर्ण तक है.)
प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: फा० फरस्युं आंगीकार; अंति: (-). ५९६३३. (+#) नारचंद्र ज्योतिष सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३६, आषाढ़ कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ३६, ले.स्थल. बीकानेर,
प्रले.पं. तेजसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं.५००, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, ६४४२).
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: निजराशितश्चंद्रः, श्लोक-२९४.
ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: माहरो श्रीअरिहंत; अंति: हृदये राज्यं पगेकाल. ५९६३४. साधुविधि प्रकाश, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदे., (२४.५४१२, १०४३३).
साधुविधि प्रकाश, उपा. क्षमाकल्याण, प्रा.,सं., गद्य, वि. १८३८, आदि: प्रणम्य तीर्थेशगणेश; अंति: वसुस्ससग्गो
दुसज्झाओ. ५९६३५. (#) औपपातिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११२-८७(१ से ७२,७५ से ७७,८० से ८३,८५ से ८६,८९ से ९४)=२५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४११, ५४२७-३१).
औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठ हैं.)
औपपातिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५९६३६. (+) दशाश्रुतस्कंधसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ७४५०).
दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: उवदंसेति त्ति बेमि, दशा-१०.
दशाश्रुतस्कंधसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वर्द्धमानं जिनं; अंति: कह्यो ए अधिकार रचामि. ५९६३७. (+) षट्पुरुष चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २६+१(९)=२७, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२७४१२, १२४५०).
षट्पुरुष चरित्र, ग. क्षेमकर, सं., गद्य, आदि: श्रीअर्हतश्चतुस्; अंति: श्रीमत्तीर्थंकरा. ५९६३८. (+) नवतत्त्व व दंडक प्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि
सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१२, १५४४२-४६). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टीका, पृ. १आ-२०अ, संपूर्ण.
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५०.
नवतत्त्व प्रकरण-टीका, मु. नेतृसिंह कवि, सं., गद्य, आदि: अमरपतिगणैर्यो वंतितो; अंति: श्रीनेतृसिंहोमुनिः. २. पे. नाम. विचारषट्विंशिका सह टीका, पृ. २०अ-२५आ, संपूर्ण.
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४६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ,
गाथा-३९. दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., गद्य, वि. १५७९, आदि: श्रीवामेयं महिमामय; अंति: मत्वेद
बालचापल्यम्. ५९६३९. प्रश्नोत्तरसार्धशतक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६-१(६)+१(८)=२६, जैदे., (२५.५४१२, ८x२९-३४).
प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८५१, आदि: श्रीसर्वज्ञ नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र
नहीं हैं., अन्त के कुछ पाठ नहीं हैं.) ५९६४०. (+) जातकदीपिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६८, श्रावण शुक्ल, १, मंगलवार, मध्यम, पृ. २०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ४४३०).
जातकपद्धति, मु. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदि: प्रणम्य पार्श्वदेवेश; अंति: एषा जातकदीपिका, श्लोक-९३.
जातकपद्धति दीपिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणाम करीने पार्श्व; अंति: जातकदीपिका सौतै छइं. ५९६४१. (+) सूयगडांगसूत्र सह टीका व नियुक्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-द्विपाठ-त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४१२.५, २४४८).
सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज; अंति: (-), (पू.वि. उद्देश-२, सूत्र २४ तक
सूत्रकृतांगसूत्र-बृहद्वृत्ति #, आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य, वि. १०वी, आदि: स्वपरसमयार्थसूचकमनंत; अंति: (-).
सूत्रकृतांगसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: तित्थंकरे य जिणवरे; अंति: (-). ५९६४२. (+) कर्पूरप्रकरण सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १७४५२).
कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि: कर्पूरप्रकरः शमामृत; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१८० तक है.)
कर्पूरप्रकर-टीका, आ. जिनसागरसूरि, सं., गद्य, वि. १५५१, आदि: व्याख्या लक्ष्य; अंति: (-). ५९६४३. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८६-१५८(१ से १४१,१४३,१५४ से १६९)=२८, प्र.वि. कुल ग्रं. ५७८१, जैदे., (२५४१२, ५४३४).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, (प.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं
हैं., ऋषभदेव प्रभु की पुत्रोत्पत्ति वर्णन से है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: आगै एहवो कहता हुआ छै, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: गयो सासू जोवती रही, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ५९६४४. (#) भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९२०, संवतेंदुअंकनखवर्षे, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२, सोमवार, मध्यम,
पृ. २७-३(१ से ३)=२४, ले.स्थल. गंगापुर, प्रले. मु. धर्मसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, प्र.ले.श्लो. (५६५) याद्रस पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२५.५४१२, १२४२९).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-४ से है.)
भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: लक्ष्मी स्वयंवर वरइ. ५९६४५. महानिशीथसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९१-६२(१ से ६२)+१(८९)=३०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२५.५४१२, ५४३९).
महानिशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३ अपूर्ण से "सुजहवयथुणंति" पाठ तक है.) ५९६४६. श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३५, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. १८,
ले.स्थल. मंगलापुर, प्रले. मु. मुगतिचंद्र ऋषि; पठ. श्रावि. जमना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंतिम पृष्ठ पर प्रतिलेखक ने "योगशतक टीका का अर्थ" प्रारंभ करके छोड़ दिया है., दे., (२५.५४१३,७४२७-३०). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिह० सव्वसाहूण; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्,
(वि. १९३५, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, रविवार)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
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श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार थायो अरिहंत; अंति: ते पाप नीफल होजो, (वि. १९३५, मार्गशीर्ष शुक्र. ९, मंगलवार)
५९६४७. भैरवपद्मावतीकल्पादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४३-१७(१ से १७) = २६, कुल पे. ८, जैवे. (२४.५४१२,
"
११-१३×३८).
१. पे. नाम. भैरवपद्यावतीकल्प, पृ. १८अ ३३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं.
भैरवपद्मावती कल्प, आ. मल्लिषेण, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: भैरवपद्मावतीकल्पः, परिच्छेद- १०, श्लोक - ४००,
(पू.वि. "साधकलक्षण" के श्लोक ८ अपूर्ण से है.)
२. पे नाम, चंद्रप्रभु स्तोत्र, पृ. ३३आ, संपूर्ण,
चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ चंद्रप्रभु जिनाधीश; अंति: दायिनि मे चिरप्रदा, श्लोक - ५.
३. पे. नाम. ज्वालामालिनी स्तोत्र, पृ. ३३आ-३४आ, संपूर्ण.
सं., गद्य, आदिः ॐ नमो भगवते श्रीचंद, अंति: ज्ञापयति स्वाहा.
४. पे. नाम. गौतम यंत्राम्नाय पू. ३५अ-३९अ, संपूर्ण.
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सं. गद्य, आदि: सिंहारूढासुत युग्म, अंतिः विदिक्षुभः
"
५. पे. नाम. गौतमाष्टक, पृ. ३९अ, संपूर्ण.
गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिं वसु अंतिः लभते सुतरां क्रमेण श्लोक ९. ६. पे. नाम. मंत्रसाधना विधि, पृ. ३९-४३अ, संपूर्ण.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदिः ॐ ह्रीं नमो अरिहंताण; अंति: बाधः मृक्षणारक्ष्या.
७. पे नाम, शांतिजिन स्तोत्र, पृ. ४३अ, संपूर्ण.
४७
सं., पद्य, आदि: शांतये शांतिकामाय; अंति: स्य पापशांतिर्भवेदपि, श्लोक-३.
८. पे नाम. ह्रींकार साधनाविधि, पृ. ४३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
ह्रीँकार कल्प, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: दीपमालिकाया उपोष; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पाठ किंचित् नहीं है.)
५९६४८. (+) गौतमपृच्छा सह टीका, संपूर्ण, वि. १८८५, वैशाख शुक्ल, ६, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४३, ले. स्थल. सुजाणगढ,
प्रले. पं. आसकरण; राज्यकाल रा. रत्नसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका के अंतर्गत बीकानेर में वि. १८८५ में संपन्न होनेवाले महाराजा श्री रत्नसिंहजी के राजतिलक का वर्णन मिलता है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२५.५X१२, १५X३९).
गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं, अंति: गोयमपुच्छा महत्यावि, प्रश्न- ४८, गाथा- ६४.
गीतमपृच्छा- टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य वि. १७३८, आदि: वीरजिनं प्रणम्यादी, अंतिः नगर्यां च शुभे दिने, ५९६४९. गौतमपृच्छा सह टीका, संपूर्ण, वि. १८४७, श्रेष्ठ, पृ. ५६, ले. स्थल. काशी, प्रले. वैजनाथ ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. व्याख्यायते रूषि वखतरामेण सिवनेत्र द्रव्यपुस्तकार्पणमस्तु वाणारस्वा चातुर्मासि स्थित श्री विजयगछे श्री गुणसूरिणां वृत्साखायां., कुल ग्रं. १६८२, जैदे., (२५x१२, ११४३७-३९).
गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न- ४८, गाथा-६४.
गौतमपृच्छा - टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, वि. १७३८, आदि: नत्वा तीर्थनाथं जानं, अंति: पठनीयाः श्रोतव्या एव. ५९६५० (+) पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८१४, श्रावण कृष्ण, २, सोमवार, मध्यम, पृ. ११, ले. स्थल. कोरालग्राम,
प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४.५४११, १४४३५).
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पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि तित्यंकरे अ तित्थे, अंतिः जेसिं सुरसायरे भत्ति
५९६५१. (+) भगवतीसूत्र सह टबार्थ शतक - ११ उद्देश ११, १२, संपूर्ण, वि. १८९६, श्रेष्ठ, पृ. २२, ले. स्थल. गादरा, प्रले. श्राव. रामलाल, अन्य. मु. देवकरजी साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैवे. (२५x१२.५, ८x४०-५५).
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भगवतीसूत्र-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अति: (-), प्रतिपूर्ण. ५९६५२. (+) मौनएकादशी कथानक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले.स्थल. जधन्यपुर, अन्य. पं. भक्तिनय; पठ. श्राव. गणचंद शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ५४३५-३८). मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदि: प्रणम्य ऋषभदेवं; अंति: सागरशररसशशिप्रमिते,
श्लोक-२०१.
मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने; अंति: विद्यमान हुते. ५९६५३. (+) भगवतीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१६-१८९(१ से १८९)=२७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१२, ८४४५-५०). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शतक-९ उद्देश-३२ अपूर्ण से उद्देश-३४
अपूर्ण तक है.)
भगवतीसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५९६५४. (+#) गुर्वावली, पूर्ण, वि. १९०६, फाल्गुन शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. २१-१(१९)=२०, ले.स्थल. झालरा पाटण, प्रले. पं. हंसराज;
राज्ये गच्छाधिपति महेंद्रसूरि; पठ. पं. धनराज छोटु पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १७४३८). पट्टावली खरतरगच्छीय, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३०, आदि: प्रणिपत्य जगन्नाथ; अंति:
जीयात्सुर्जगत्याम्. ५९६५५. (+) अनुयोगद्वारसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, १-५४४२). अनुयोगद्वारसूत्र, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प+ग., आदि: नाणं पंचविहं; अंति: (-), (पू.वि. "गणिपिडगं तं जहा" तक
के पाठ हैं.)
अनुयोगद्वारसूत्र-टीका, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: सम्यक्सुरेंद्रकृत; अंति: (-). ५९६५६. चतुःशरणप्रकीर्णक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९३५, श्रावण कृष्ण, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २४, ले.स्थल. ममाइ, प्रले. नथु व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., दे., (२६x२१, २४३३-४६). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाण,
गाथा-६३.
चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: इदमध्ययनं परमपद; अंति: भवतीति गाथार्थः. ५९६५७. (+) पच्चक्खाण बोल, विधि व स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११९-९५(१ से ८७,९३ से
९६,१११,११४,११६ से ११७)+१(९२)=२५, कुल पे. १८,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२,१०४२८). १. पे. नाम. दसपच्चखाण विचार, पृ. ८८अ-९१अ, संपूर्ण.
प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: आगार साधू कै हूवै. २. पे. नाम. देसावगासि पच्चक्खाण, पृ. ९१अ, संपूर्ण.
देसावगासिक पच्चक्खाण, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: अहण्णं भंते तुम्हाणं; अंति: मह० सव्व० वोसरै. ३. पे. नाम. सीमंधर स्तुति, पृ. ९१अ-९१आ, संपूर्ण.
आदिजिनसीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय त्रिभुवन आदि; अंति: प्रति करुं प्रणाम, गाथा-२. ४. पे. नाम. वीसविहरमान स्तुति, पृ. ९१आ-९२अ, संपूर्ण.
विहरमान २० जिन स्तव, सं., पद्य, आदि: द्वीपेत्र सीमंधर; अंति: कर्मणामष्टकं च, श्लोक-४. ५. पे. नाम. वीसविहरमान जिन नाम, पृ. ९२अ, संपूर्ण.
विहरमान २० जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सीमंधरजी युगमंधरजी; अंति: श्रीअजितवीर्यजी२०. ६. पे. नाम. आलोयणा विधि, प्र. ९२अ-९२आ, संपूर्ण.
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४९
अतिचार आलोचना, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि : आजूणा चौपहुर दिवसमा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंत के कुछ पाठ नहीं हैं.)
७. पे नाम, विविध बोल संग्रह, पृ. ९२आ- ९७अ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं.
बोल संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: सव्वट्टे देवतणुमान, (पू. वि. प्रारंभिक पाठांश नहीं हैं) ८. पे. नाम, वैमानिक देहमान, पृ. ९७-९८अ संपूर्ण,
वैमानिकदेव देहमान, प्रा., पद्य, आदि: दो सागरोवमाई पुन्नाइ; अंतिः सव्वट्टे देवतणुमाणं, श्लोक-१३. ९. पे. नाम ५ परमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, पृ. ९८ अ- ९८ आ, संपूर्ण.
प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: बार गुणा अरिहंता सिद, अंतिः धम्मपुरिससीह पेरता.
१०. पे. नाम. समकीत दस बोल, पृ. ९८- ९९अ, संपूर्ण.
सम्यक्त्व १० बोल, मा.गु., गद्य, आदि: हेय१ ज्ञान२ उपादेय३; अंति: निश्चय केवली गम्य १०. ११. पे. नाम. अनाज के नाम, पृ. ९९अ, संपूर्ण.
धान्य नाम, मा.गु., गद्य, आदि व्रीही जबर मसूर३: अंतिः निष्पाप२३ चणक२४.
१२. पे. नाम. २२ अभक्ष नाम, पृ. ९९अ - ९९आ, संपूर्ण.
२२ अभक्ष्य नाम, मा.गु., गद्य, आदिः उंबर १ कठुवर२; अंति: अजाणफल२१ चलतरस२२.
१३. पे. नाम. ३२ अनंतकाय नाम, पृ. ९९आ, संपूर्ण.
"
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३२ अनंतकाय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जमीकंद१ वज्रकंदर आली, अंति: आलू ३१ पिंडालू ३२. १४. पे नाम. ४ आहार का नाम, पृ. ९९ आ-१००अ, संपूर्ण.
४ आहार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम असन आहार विधि; अंति: राख४ ए अनाहार जाणिवा . १५. पे. नाम. साधु श्रावक के खाने की चीजों का काल प्रमाण, पृ. १०० आ-१०१आ, संपूर्ण.
भक्ष्याभक्ष्य काल प्रमाण, मा.गु., गद्य, आदि: चावल रांधै पहर४; अंति: आवै सो अभक्ष जाणना. १६. पे. नाम. राई संधारा विधि, पृ. १०१ आ-१०२अ, संपूर्ण.
"
संधारा विधि, प्रा.मा.गु., प+ग, आदिः (अपठनीय); अंतिः नवकार गुणकै सोवै (वि. आदिवाक्य का पाठ खंडित होने के कारण अवाच्य है.)
१७. पे. नाम. पोषह विधि, पृ. १०२अ १०२आ, संपूर्ण.
पौषध विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: पोशहसाला के अंदर तथा अंति: गोलाकार जमीन पूंजै.
१८. पे. नाम. प्रस्तावीक श्लोक, पृ. १०२आ-११९आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं.
सुभाषित लोक संग्रह * पुहिं. प्रा. मा.गु. सं., पद्य, आदि: हंसो न भाति बल भोजन, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२१४
1
अपूर्ण तक है. बीच-बीच के पाठांश नहीं है.)
५९६५८. (*) जयतिहुअणादि स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित., वे. (२६१३, ८४२३).
१. पे नाम, बंभणापार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ ७अ संपूर्ण.
जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: विण्णवइ अणिदिव गाथा ३०.
२. पे. नाम तं जय स्तोत्र, पृ. ७अ १०अ, संपूर्ण.
गणधरदेव स्तुति, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तं जयउ जए तित्थं; अंति: निट्ठियट्ठो सुही होइ, गाथा - २६. ३. पे, नाम, गुरुपारतंत्र्य स्मरण, पृ. १०अ १२अ, संपूर्ण
गुरुपारतंत्र्य स्मरण- खरतरगच्छीय, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: महरहिअं गुणगण रयण; अंति: जिणदत्त० पणयमुणि तिलओ, गाथा-२१.
४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि सिग्धमवहरउ विग्धं अंति: (-) (पू. वि. गाथा ५ अपूर्ण तक है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
५९६५९. (+) कर्मग्रंथ - २ से ४ अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २४-६(१ से ५, ९) = १८, कुल पे ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२६४१२, ९४३५)
"
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१. पे, नाम, कर्मस्तव, पृ. ६अ-८आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र हैं.
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी १४बी, आदि: (-); अति: ( ) ( पू. वि. गाथा १६ अपूर्ण से
"
२४ अपूर्ण तक है. वि. कर्मबंध उदय, उदीरणा, सत्ता आदि यंत्र सहित)
२. पे. नाम. बंधस्वामित्व सूत्र. पू. १०अ १४अ संपूर्ण.
बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं वंद, अंति: देविंदसूरि० सोठं गाधा- २५.
३. पे. नाम. षडशीति, पृ. १४अ - २४अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
घडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी ९४वी, आदिः नमिअ जिणं जिअर मगण, अंति: लिहिउ देविंदसूरीहिं, गाथा - ९१, (संपूर्ण, वि. यंत्र सहित )
"
५९६६० (+) कर्मग्रंथ १ से ४, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे ४, प्र. वि. संशोधित. दे. (२४.५x१२.५, १०X२८-३०). १. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण.
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६०. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ५आ-८आ, संपूर्ण.
आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी २४वी, आदि; तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वंदिवं नमहं तं वीरं, गाथा-३४.
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३. पे नाम, बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ८आ-१०आ, संपूर्ण,
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी १४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्तं, अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा - २४.
४. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १० आ-१८आ, संपूर्ण.
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी १४वी आदि नमिअ जिणं जिअ मग्गण, अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. ५९६६१. भक्तामर स्तोत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे. (२६११.५, ३x२९).
"
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमौलि, अंति; मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भगत कहिये भगवंतनी, अंति: तेहनुं जणाव्यं.
५९६६२. (+) कल्पसूत्र-साधुसमाचारी व्याख्यान सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८४६, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले. स्थल. बालोचरनगर, प्रले. पं. भूपविजय (गुरु पं. भगवानविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. प्र. ले. लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे. (२५.५४१३, ८४३४).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: अत्थगई वीगई, प्रतिपूर्ण
कल्पसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जीवने इम उपदेश देवे, प्रतिपूर्ण
"
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: दुःकृतं च देयम्, प्रतिपूर्ण.
५९६६३. (+) लघुक्षेत्रसमास सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८४७, माघ कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १८. ले. स्थल, राजनगर,
लिख. पं. जीवसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीराजनगरे झवेरीपाडा मध्ये श्रीचिंतामण पार्श्वनाथ प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, ५X३२).
बृहत्क्षेत्रसमास- जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण; अंतिः समयखेत्तस्स परिरओ, गाथा - १४२, (प्रले. ग. मुक्तिविजय (गुरु ग. ज्ञानविजय), प्र.ले.पु. सामान्य ) बृहत्क्षेत्रसमास (प्रा.) जंबूद्वीप प्रकरण का ( मा.गु.) टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमीनें जलसहित मेघ, अंति: षेत्रनी प्रधि जांणवी, (प्रले. पं. नेमविजय, प्र. ले. पु. सामान्य )
५९६६४. (+) वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१८, माघ कृष्ण, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले. स्थल. मकसूदाबाद, लिख. मु. अबीरचंद जती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५X१२.५, ५X३४).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहसि जहा सासयं ठाणं, गाथा-१०४, (प्रले. मु. बीरेंद,
प्र.ले.पु. सामान्य)
वैराग्यशतक-टबार्थ, सं., गद्य, आदि: वीरं वारिधिगंभीरं; अंति: मोक्षस्य लक्षणं, प्र.ले.पु. सामान्य. ५९६६५. (+) शीलोपदेशमाला सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-१(१)=१६, अन्य. मु. गुलाब (गुरु मु. अभयसोम);
गुपि. मु. अभयसोम; अन्य. श्राव. राजेंद्र; नीहालचंद जगजी गोरजी; मु. रायचंद (गुरु आ. तत्वविमलसोमसूरि); गुपि. आ. तत्वविमलसोमसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५.५४११.५, ६४३०). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदिः (-); अंति: आराहिय लहइ बोहिफलं, कथा-४३,
गाथा-११६, (पू.वि. गाथा ६ तक नहीं है.)
शीलोपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: भवांतरि बोधिरूप फल. ५९६६६. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११७-९८(१ से ८,१० से २१,२३ से २६,२८ से
३२,३४,३७,४५ से ४७,५० से १११,११५ से ११६)=१९, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १५४५०).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश हैं.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टीका*, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ५९६६७. (+) भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध+कथा, अपूर्ण, वि. १८१०, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १६-२(१ से
२)=१४, ले.स्थल. सुरतिबंदिर, पठ. मु. मुलचंद (गुरु पं. भक्तिविजय); गुपि.पं. भक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १६x४७-५१). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पूर्ण, पू.वि. श्लोक-३ तक
नहीं है.)
भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध + कथा*, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मानतुंग एहवु आणिउ छइ, पूर्ण. ५९६६८. (+) सुक्तावली, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२, ११४३३).
सुक्तावली श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सकल कुशलवल्ली पुष्कर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २८६ अपूर्ण तक
५९६७०. (+) पाक्षिकसूत्र व पाक्षिकखामणा, अपूर्ण, वि. १९वी, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २,
प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१२, १४४३२). १.पे. नाम. पाक्षिक सूत्र, पृ. १अ-१२आ, संपूर्ण..
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: (१)मिच्छामि दुक्कडं, (२)जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. क्षामणकसूत्र, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण.
हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. ५९६७१. कल्पसूत्र सह बालावबोध-स्थविरावली, अपूर्ण, वि. १८०८, भाद्रपद शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १९९-१८५(१ से १८४,१८७)=१४, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२४.५४११.५, ६-१४४३४-४२).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्थविरावली अपूर्ण है.)
कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५९६७२. (+) विपाकसूत्र सह पर्याय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पत्र ९x४. खडा लेखन पद्धति है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ३५४१६).
विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
विपाकसूत्र-भाषापर्याय *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५९६७३. नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदे., (२५.५४११, ३४२८).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१जीवार पुण्ण३; अति: अणागयद्धा अणतगुणा, गाथा-४८.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: साचा वस्तुनो स्वरूप; अंति: धरवा सदाई सर्वदा. ५९६७४. अंगचूलिका प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९३८, पौष शुक्ल, १५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, प्र.वि. लालचंद्र द्वारा अपने पूर्वजों की
स्मृति में श्री राजेंद्रसूरि के रुपदेश से श्री राजपुर में सं. १८४१ को इस प्रत को रखवाने का उल्लेख मिलता है., दे., (२५४१२, १७४४१).
अंगचूलिका प्रकीर्णक, प्रा., गद्य, आदि: नमो सुय० नमो अरि०; अंति: कंजजिणेहिंपवेइ अंत्थ. ५९६७५. (+) सिंदूरप्रकर सह टबार्थ, सुभाषित श्लोक वस्तुत्यादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२३, श्रावण शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल
पे. ५, ले.स्थल. आसपुरनगर, प्रले. मु. गोकलचंद ऋषि; अन्य. आ. शांतिसागरसूरि (विजयगच्छ); राज्यकालरा. उदेसींघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वागडीयादेशे. श्रीपार्श्व चैताले., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५४१२, ६x४०-५०). १. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण..
सुभाषित श्लोक संग्रह *,सं., पद्य, आदि: नो वापी नैव कूप; अंति: दर्शननिंदा कुलक्षयः, श्लोक-३. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: यः संसार विगाहमान; अंति: सौख्यं करो पातु माम्, श्लोक-२. ३. पे. नाम, ज्वरनाशक मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ नमो आदेस चामुंडे; अंति: कनकपत्र कटुकतैल हवनं. ४. पे. नाम. धर्मप्राप्ति के १८ दृष्टांत सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण.
धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांत श्लोक, सं., पद्य, आदि: लज्जातो भयतो वितर्क; अंति: ममसमं तेषाममेयं फलम्, श्लोक-१.
धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांत श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लज्जाथी धर्मप्राप्ति; अंति: जंबूस्वामीवत्. ५. पे. नाम. सिंदुरप्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-१५आ, संपूर्ण.
सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२,
__ श्लोक-१००, संपूर्ण. सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २५ से ९२ तक
टबार्थ लिखा है.) ५९६७६. (+) पाक्षिकसूत्र व पोसह विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. ३,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे.,
(२६४११.५, १३४३०). १.पे. नाम. पाक्षिक सूत्र, पृ. १अ-१२अ, संपूर्ण.
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. पौषध लेवा विधि, पृ. १२अ, संपूर्ण.
पौषध लेने की विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम इरियावही पडिकम; अंति: संदिसाउ उपति पडिलेहु. ३.पे. नाम. पोसो पारवा विधि, पृ. १२आ, संपूर्ण.
पौषध पारने की विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम इरियावहि; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ५९६७७. (+) जातकपद्धति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३३, श्रावण शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. बोराणा, प्रले. मु. जडावचंद ऋषि (लुंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४११.५, ५४२०-३५).
जातकपद्धति, मु. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदि: प्रणम्य पार्श्वदेवेश; अंति: एषा जातकदीपिका, श्लोक-९६.
जातकदीपिका पद्धति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणाम करीने; अंति: बोध थावाने अर्थे. ५९६७८.(+) चउसरण पइण्णय व संग्रहणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १७७९, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १४-२(१ से २)=१२,
कुल पे. २, ले.स्थल. सापिला, पठ. मु. नैण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१२, १६४३६). १.पे. नाम. चउसरण पइण्णो , पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
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चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी आदि (-); अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा - ६३. (पू.वि. गाथा ४५ अपूर्ण से है . )
२. पे. नाम. संग्रहणि सुत्र, पृ. ३आ- १४अ, संपूर्ण.
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताइं ठिइ, अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३११. ५९६७९. (+) सप्तस्मरण व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे., ( २६ ११.५, १३X३५).
१. पे. नाम. सप्तस्मरण, पृ. १आ-१०अ संपूर्ण.
सप्तस्मरण - खरतरगच्छीय. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअं जिअ सव्वभयं अंतिः नमामि साहम्मिया तेवि, स्मरण- ७.
२. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. १० अ, संपूर्ण.
जैनदुहा संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा - १.
५९६८०. उवसग्गहरं व जयतिहुअण स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ६१-५३(१ से ५३ ) = ८, कुल पे. २, जैवे.,
५३
(२५.५X११.५, ६X१९).
१. पे. नाम. उवसग्गाहर स्तोत्र - गाथा ५, पृ. ५४अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि (-) अंति भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५, (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. जयतिहुअण स्तोत्र, पृ. ५४ अ- ६१आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुवणवरकप्परुक्ख, अंति: (-), (पू. वि. गाथा २२ अपूर्ण तक है.)
५९६८९. (+) सिंदूरकर, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न- अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित, जैवे. (२५४१३ १४-१७२५-३०).
"
सिंदूरकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य वि. १३वी आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः अंतिः सोमप्रभ० मुक्तावलीयम्, द्वार - २२,
3
लोक-१०१.
५९६८२. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैवे. (२६११.५, ४X३७). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: (-),
(पू.वि. श्लोक २८ अपूर्ण तक है.)
कल्याणमंदिर स्तोत्र - टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि हे स्वामिन मंगलिकनुं अंतिः (-).
५९६८५. (+) क्षेत्रसमास प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८४१ आश्विन शुक्ल, ९, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १०, प्रले. पं. कनकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५x१२, १५X४०).
लघुक्षेत्रसमासप्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपद्वय, अंतिः कुसलरंगमई पसिद्धि, अधिकार-६, गाथा - २६५.
५९६८६. (*) कल्याणमंदिर व भावारिवारण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैदे., ( २४x११, १०X२९-३६).
१. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १अ - ५अ, संपूर्ण.
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आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. २. पे. नाम, भावारिवारण स्तोत्र, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण
महावीरजिन स्तव- समसंस्कृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा. सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक ७ अपूर्ण तक लिखा है.)
"
५९६८७. संबोधसत्तरी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५X१२, १२X३३). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य, आदि नमिऊण तिलोअगुरु: अंति: (-). (पू. वि. गाथा ४९ तक है.) संबोधसप्ततिका - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: वंदिय पासजिणंदं तह, अंति: (-).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
५९६८८. (+) साधु प्रतिक्रमण सूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ.
,जैदे., (२५.५x१२.५,
"
१-५X३५).
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पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत अंतिः वंदामि जिणे चडवीसं पगामसज्झायसूत्र टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: च्यार मांगलिक्खना, अंतिः २४ तीर्थंकरजी प्रते. ५९६८९. (+) मौनएकादशी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र. वि. संशोधित., दे., (२५.५X११.५, १०x२२). मौनएकादशी व्याख्यान, मा.गु. सं., गद्य, आदि: राजगृही नगर के उद्या; अंति: भक्तिः धर्मकार्यकृतं. ५९६९० (+) भक्तामर स्तोत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८७४ वैशाख कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल. कोठ्या, प्र. मु. जिनेंद्रकुशल, अन्य पं. प्रमोदकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२५.५X१२.५, ५४२९). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः सेवक अमर देवता नमता, अंति: होइ लक्ष्मी श्रीदेवी. ५९६९१. होलीरजपर्वकथानक सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८६१ वैशाख शुक्ल, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल राजनगर, प्रले. पं. वसंतविजय; अन्य. पं. भाग्यचंद्र गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X१२, ७X३७-४०).
"3
"
होलीरजपर्व प्रबंध, ग. फतेंद्रसागर, सं., पद्य, वि. १८२२, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य, अंतिः श्रीविद्याकाख्यपुरे, लोक-१३९.
होलीरजपर्व प्रबंध - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्धमानस्वामी प्; अंतिः श्रीविझेवानगर माह .. ५९६९२. (+) चतुःशरणप्रकीर्णक सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १० प्र. वि. संशोधित, जैदे (२६११.५, ४X३०-३३). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई, अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं,
1
गाथा - ६३.
चतुः शरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावद्ययोग क० पाप; अंतिः मोक्ष० स्थानक पांमइ.
५९६९३. (*) भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १० प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे.,
(-#)
(२६×११.५, ४X३३-३६).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४.
भक्तामर स्तोत्र - बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर, अंति: अपवर्ग संबंधी संपदा.
,
५९६९४. (+) उपदेशमाला सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४०-२८ (१ से २३,२७ से ३१) - १२, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२५x११.५ ९५५८-७८).
""
उपदेशमाला. ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. गाथा १३८ अपूर्ण से २४४ अपूर्ण तक है.) उपदेशमाला - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-): अंति: (-).
५९६९५ (+) प्रतिक्रमण सूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १०. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित अशुद्ध पाठ,
""
जैदे., (२६X११.५, १०X२६).
पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: (-), (पू. वि. सामायिक लेने की विधि अपूर्ण तक है.)
५९६९६. (+) भाव प्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १९१५, आश्विन कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल. इंदोरनगर, प्रले. पं. विजयसमुद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२५.५४१२, १२x४३).
"
"
भाव प्रकरण, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, वि. १६२३, आदि; आनंदभरिय नयणो आनंद: अंतिः विजयविमल०
पुव्वगंथाओ, गाथा- ३०.
भाव प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, ग. विजयविमल, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: नत्वा श्रीजिनशंभव, अंति: (-), (वि. प्रतिलेखक ने अंतिम गाथा की टीका नहीं लिखी है.)
५९६९७, (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २६-१५ (१ से १५) = ११. पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. जैवे. (२५.५४१२, २४५० ).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२ गाथा-१४ अपूर्ण से
अध्ययन-३ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५९६९८. (+) चतुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९१३, भाद्रपद कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. उदयपुर, पठ. मु. गोकलचंद ऋषि
(गुरु आ. शांतिसागरसूरि, विजयगच्छ); गुपि. आ. शांतिसागरसूरि (गुरु आ. जिनचंद्रसागरसूरि, विजयगच्छ);
आ. जिनचंद्रसागरसूरि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५.५४१२, ११४४२).
चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६५, आदि: प्रणम्य परमानंद; अंति:
मिथ्यादुकृतंदेयम्. ५९६९९. एकादश गणधर परिकर सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. द्विपाठ., दे., (२५४१२, १०४३८).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र
गणधरवाद लिखा है.) कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, वि. १६२८, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५९७००. (+) दुरिअरयसमीर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १५१९, मध्यम, पृ. ११,प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ५००, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४९). दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीरं मोहपंको; अंति: सया पायप्पणामो तुह,
गाथा-४४. दरिअरयसमीर स्तोत्र-टीका, ग. साधुसोम, सं., गद्य, वि. १५१९, आदि: वर्द्धयतु वर्द्धमानः; अंति: वाच्यमाना चिरं
जयतु. ५९७०१. (+#) श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र व स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-१३(१ से १२,२०)=८, कुल पे. ३,
प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १३४३४). १.पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीस, गाथा-५०, (पू.वि. गाथा ४७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १३अ-१५आ, संपूर्ण. जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहअणवरकप्परुक्ख; अंति: अभयदेव०
आणदिअ, गाथा-३०. ३. पे. नाम. सप्तस्मरण, पृ. १५आ-१९आ+२१आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअ सव्वभयं; अंति: (-),
(पू.वि. स्मरण-३ गाथा-१५ व स्मरण-४ गाथा-१८ अपूर्ण से स्मरण-५ गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ५९७०२. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. अणंतलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका का कुछ अंश खंडित है., दे., (२५.५४१२, ७४३९).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४.
भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्तिवंत देवता नमता; अति: आवी प्राप्त थई. ५९७०३. (+) जयतिहुअण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१२, ९४२८).
जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: अभय०
विनवइ अणिदिय, गाथा-३०. ५९७०४. (+#) बृहत्संग्रहणी सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, जैदे., (२६४१२, १०४२५-२९).
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५६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताइं ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ९९ अपूर्ण तक
५९७०५. उत्तराध्ययनसूत्र- अध्ययन-३६, संपूर्ण, वि. १८७१, आषाढ़ कृष्ण, १२, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. जयपुर, प्रले. मु. जयदेव, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १५४५०).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सम्मए त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण. ५९७०६. नेमिजिन, महावीरजिन भव वर्णन व गणधर संवाद, अपूर्ण, वि. १९८१, आश्विन शुक्ल, ६, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १०-३(१ से
३)=७, कुल पे. ३, ले.स्थल. लिबपुर, प्रले. मोहनलाल चंद्रागज शाह; अन्य.सा. माणेकबाई स्वामी (गुरु सा.डाहीबाई), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, १६४५१). १.पे. नाम. नेमिजिन नवभव, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
नेमराजिमती ९ भव वर्णन, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: सुरो भविष्यति, (पू.वि. द्वितीय भव वर्णन अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. वीरजिन सताईस भव, पृ. ४आ-७अ, संपूर्ण.
महावीरजिन २७ भव व्याख्यान, सं., गद्य, आदि: ग्रामेशस्त्रिदशो; अंति: तीर्थंकरो जातः, ग्रं. १००. ३. पे. नाम. गौतमादिगणधर संवाद, पृ. ७अ-१०आ, संपूर्ण. गणधरवाद-सुबोधिकाटीकागत गणधरसंवाद, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: केवलज्ञानोत्पन्ना; अंति: प्य
भगवाननुजानातीति. ५९७०७. (+) इंद्रियपराजयशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, अन्य. श्राव. हस्तमलजी लक्ष्मीचंदजी डागा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, ८४५६-६०).
इंद्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदि: सुच्चिय सूरो सोचेव; अंति: संवेगरसायाणं निच्चं, गाथा-१००.
इंद्रियपराजयशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेहजि सुरसुभट तेहजि; अंति: नीत्य निरंतर सेवी. ५९७०८. (+#) साधुप्रतिक्रमण सूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १६४३६-४१).
साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० इच्छा; अंति: (-).
(पू.वि. "जल्लसंघाणपरीट्ठावणि" पाठ तक है.) ५९७०९. (+#) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१(३)=६, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ११४३२-३५). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: जिण पासपय लउ
वंछिय, (पू.वि. चैत्यवंदन के मध्य का भाग नहीं है.) ५९७१०. (+#) उपाशकदशांगसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १२४३९-४२). उपासकदशांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. १११७, आदि: श्रीवर्धमानमानम्य; अंति: (-),
(पू.वि. "सचित्ताहर प्रत्याख्यान" पाठ तक है.) ५९७११. (+#) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १३४३६-४०). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण,
पू.वि. भक्तामरस्तोत्र श्लोक-१६ अपूर्ण तक है.) ५९७१२. (#) पच्चक्खाण संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ५४३३). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: (-), (पू.वि. एकासना बेआसना पच्चक्खाण अपूर्ण
तक है.) प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: सूर्यना उदय थकी; अंति: (-).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ ५९७१३. (+) श्रावकप्रतिक्रमण सूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२,
१४४३४-३७). १.पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: समुन्नय
निमित्तं. २. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ६आ-८अ, संपूर्ण.
वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ५९७१४. (+) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, १८४४४-५०).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-६ गाथा-३२ तक लिखा है.) ५९७१५. (+) भक्तामरस्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, प्रले.पं. माणकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ५४३७-४२).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४.
भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जिनपाद केहवा छे भक्त; अंति: प्रगट कीधौ. ५९७१६. (+) स्तवन चौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४१२, ११४३२). स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवालहो; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मल्लिजिन स्तवन तक लिखा है.) ५९७१७. (+) वीरथुई सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२.५, ५४३२).
सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति:
आगमेस्संतिई तिबेमो, गाथा-२९.
सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पु० नरकनां दुख; अंति: कुशील ते कहि छि. ५९७१८. (+#) सौभाग्यपंचमी कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, ले.स्थल. पेढामली, प्रले.ग. मयाविजय पं, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १५४३३).
वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: (-); अंति:
मेडतानगरे, श्लोक-१५१, (पू.वि. श्लोक १४ अपूर्ण से है.) ५९७१९. (+) आर्यवसुधारा, संपूर्ण, वि. १९३४, आश्विन शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. ममोईबंदर, प्रले. पं. महिमाअमृत (गुरु
मु. हितकमल, खरतरगच्छ-भट्टारक); गुपि.मु. हितकमल (गुरु ग. धर्मधीर, खरतरगच्छ-भट्टारक); ग. धर्मधीर (गुरु आ. जिनकीर्त्तिरत्नसूरि, खरतरगच्छ-भट्टारक); आ. जिनकीर्तिरत्नसूरि (खरतरगच्छ-भट्टारक), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीचिंतामणिजी प्रसादात्., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४१२, ११४३३).
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. ५९७२०. (+) प्रतिमाशतक, संपूर्ण, वि. १९४२, आश्विन कृष्ण, २, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. सिद्धगिरि, प्रले. हठिसिंग मानसिंग बारोट; लिख.मु. शांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १६४४०).
प्रतिमाशतक, उपा. यशोविजयजीगणि, सं., पद्य, आदि: ऐंद्रश्रेणि नता; अंति: व्यक्तयुक्तिः, श्लोक-१०४. ५९७२१. (-) चारध्याननो थोकडो, संपूर्ण, वि. १९७३, कार्तिक कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. सा. संतोकबाइ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६४१२, १७४५६).
४ ध्यान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: से किं ते झाणे चउविह; अंति: चोथी अणुपेहा जाणवी. ५९७२२. (#) भववैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८३, आश्विन शुक्ल, १५, मंगलवार, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. कुचरा,
प्रले. सा. रुखमा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, ७४४२). - वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिउ सासयं ठाणं, गाथा-१०४.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ए संसार असार जाणिउ; अंति: जीव मोक्षरूपीयो धर्म. ५९७२३. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन-२३ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८५६ कृष्ण, ७, मंगलवार, मध्यम, पृ. ११-६(१ से ६)=५,
प्रले. मु. डाहु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ५४२४).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. गाथा-५६ से है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ५९७२४. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४८, भाद्रपद शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ५, प्रले. मु. रुपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१०८६) यादृसं पुस्तकं दृष्टा, जैदे., (२६४१२, ६४३६-४०).. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भूवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०
सुअमुद्दाओ, गाथा-५१.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: तीन भुवन माहे दिवा; अंति: समुद्रमाहिथी कह्यो. ५९७२६. (+) उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन-३६, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-३(१ से ३)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १४४३६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. गाथा ८६ अपूर्ण से २५५
अपूर्ण तक है.) ५९७२७. (+) वीरथुई, महावीर स्तवन व उत्तराध्ययन नमिपवजा अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३,
प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १३४४२). १. पे. नाम. वीरथुई, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति:
आगमीस्सति त्तिबेमि, गाथा-२९. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंति: श्रीजंबूस्वामी जाणीए, गाथा-८. ३. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र- नमिप्रव्रज्या अध्ययन, पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण.
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५९७२८. (+#) गौतमपृच्छा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४१, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. लक्ष्मणापुरी, प्रले. मु. गोकुलचंद्र ऋषि (गुरु
आ. शांतिसागरसूरि, विजयगच्छ पूर्णिमापक्ष), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, ७X४३).
गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४, संपूर्ण. गौतमपृच्छा-टबार्थ, सं., गद्य, आदि: हे भगवन श्रुत्वा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बीच-बीच
की गाथाओं का टबार्थ लिखा है.) ५९७२९. (+) सूक्तमुक्तावली, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं..प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२. ११४२६). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृतवल्लीवृंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४३
तक है.) ५९७३१. (+) आराधनासूत्र, बावीस अभक्ष्य व बत्रीसअनंतकाय गाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३,
प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, ८४४०). १. पे. नाम. आराधनासूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण.
पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण भणइ भयवं; अंति: ते सासयं सुक्ख, गाथा-७०, ग्रं. २४५.
पर्यंताराधना-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: भगवंतनइ नमस्कार; अंति: शाश्वता सुख प्रतई. २. पे. नाम. बावीसअभक्ष गाथा सह टबार्थ, पृ. ५आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
२२ अभक्ष्य गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पंचुंबर चउविगई हिम; अंति: वजह अभक्ख बावीसं, गाथा-२.
२२ अभक्ष्य गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वड पीपल उंबरि अंजीर; अंति: ए बावीस अभक्ष वर्जवा. ३. पे. नाम. बत्रीसअनंतकाय गाथा सह टबार्थ, पृ. ५आ, संपूर्ण.
३२ अनंतकाय गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सव्वाउ कंदजाई; अंति: परिहरियव्वा पवत्तेणं, गाथा-५.
३२ अनंतकाय गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सर्व कंदजाति अणंतकाय; अंति: परिहरवा यत्नइ करीनइ. ५९७३२. (+#) भक्तामर स्तोत्र व संयुक्त वर्णमाला, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, ११४२६). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम. संयुक्त वर्णमाला, पृ. ५आ, संपूर्ण.
संयुक्त वर्णमाला के५प्रकार, मा.गु., पद्य, आदि: क्क क्ख ग घ ङ; अंति: स्व हल्ल्व क्ष्वः. ५९७३३. विपाकसूत्र-द्वितीयश्रुतस्कंध सुखविपाक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५.५४१२, १३४३६-४०).
विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: सेसं जहा आयारस्स, प्रतिपूर्ण. ५९७३५. (+#) भक्तामर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ६४५३-५७).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४.
भक्तामर स्तोत्र-टीका, मु. श्रीदेव, सं., गद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञ नमस्कृत; अंति: र्देवराजस्य सत्कृतेः. ५९७३६. उपसर्गहर स्तोत्र लघुवृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)-५, जैदे., (२५.५४१२, १४४३१).
उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ लघुवृत्ति, आ. पूर्णचंद्राचार्य, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: द्यावादाभिधग्रंथात्,
(पू.वि. गाथा २ की टीका अपूर्ण से है.) ५९७३७. (+) संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६२, फाल्गुन कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ८८+१(१०)=८९, ले.स्थल. अहमदावाद,
प्रले. छेलराम लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कोष्ठक व यंत्र सहित., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१०८७) याद्रशं पूस्तकं द्रष्ट्वा, दे., (२६.५४१२, ४-२२४२९-४५).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३९३.
बृहत्संग्रहणी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउ कहतां वांदीनै; अंति: सर्व सुख पामइ. ५९७३८. (+) पंचदंड कथा विक्रमचरित्रे, संपूर्ण, वि. १९२९, कार्तिक शुक्ल, १५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ११६, ले.स्थल. मकसुदाबाद
अजीमगंज, प्रले. मु. पूरणचंद्र ऋषि (गुरु आ. जिनशांतिसागरसूरि, विजयगच्छ); गुपि. आ. जिनशांतिसागरसूरि (विजयगच्छ); अन्य. श्राव. हर्षचंद्र गोलेचा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, १०४३१). पंचदंड कथा-विक्रमचरित्रे, आ. रामचंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १४९०, आदि: प्रणम्य जगदानंद दायक; अंति: शतानि
संति संख्यया, श्लोक-२५५०. ५९७३९. (+) सिंदूरप्रकर सह बालावबोध+कथा, अपूर्ण, वि. १८४५, फाल्गुन शुक्ल, १४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १०१-१(४८)=१००,
ले.स्थल. दधिग्राम, प्रले. मु. सखाचंद (गुरु मु. कानजी); गुपि.मु.कांनजी (गुरु मु. पदमसी); मु. पदमसी (गुरु पं. तेजाजी); पं. तेजाजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ४-१४४२७-३९).
सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: परा कृममुक्तावलीयम्, द्वार-२२,
___ श्लोक-१०२, (अपूर्ण, पू.वि. श्लोक ३८ से ४२ नहीं है.)
सिंदूरप्रकर-बालावबोध+कथा, मा.गु., गद्य, आदि: सिंदूरनो प्रकर कहिइं; अंति: मुक्ताफलनी माला, संपूर्ण. ५९७४०. नेमिचरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१२, ५४३४).
नेमिजिन चरित्र-त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रअष्टमपर्वे, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:
ॐ नमो विश्वनाथाय; अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-२ गाथा ३५६ अपूर्ण तक है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमिजिन चरित्र-त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रअष्टमपर्वे-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य परया भक्त्या,
(२)श्रीनेमिनाथ तीर्थंकर; अंति: (-). ५९७४१. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११६, क्रीत. मु. गोकलचंद ऋषि; विक्र. अमरदत्त बोडा,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ५ रुपये में प्रत खरीदे जाने का उल्लेख मिलता है., पदच्छेद सूचक लकीरें-त्रिपाठ-द्विपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १-४४३२-३५). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि,
अध्ययन-१०. दशवैकालिकसूत्र-दीपिका वृत्ति, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६९१, आदि: स्तंभनाधीशमानम्य; अंति:
ब्रवीमीति पूर्ववत्, अध्ययन-१०, ग्रं. ३४५०. ५९७४२. (+) उववाईसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९३-२१(१ से २,४३,६१ से ६३,६६,६८,७३ से ८०,८३ से ८४,८७ से ८९)-७२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ५४३६).
औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "पंचवर्णसरससुरहि" से "अवारसदेसी भासावि" तक है.)
औपपातिकसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५९७४३. (+#) अष्टाह्निकाव्याख्यान सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५७, भाद्रपद शुक्ल, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. ७७,
ले.स्थल. कोटानगर, प्रले. मु. नैनसुख (गुरु आ. कांतिसागरसूरि, विजयगच्छ); गुपि.आ. कांतिसागरसूरि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ५४२४). पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि: स्मृत्वा पार्श्व; अंति: परंपरा करगामिनि भवति,
श्लोक-६२४, संपूर्ण. पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: समरिने श्रीपार्श्व; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
__अपूर्ण., आर्द्रकुमारकथा द्वितीय के श्लोक ६० तक का टबार्थ लिखा है.) ५९७४४. (+) बृहत्संग्रहणी सह टीका, संपूर्ण, वि. १८५०, पौष शुक्ल, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ११८, ले.स्थल. नवानगर,
लिख.पं. न्यानचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १३४३७).
बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: अत्यद्भुतं योगिभि; अंति: वृत्तिः समर्थिता, ग्रं. ३५००. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: सिरिचंद० अत्तपढणट्ठा,
गाथा-३४९. ५९७४५. (+#) व्याख्यान संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९१-४(१ से ४)=८७, कुल पे. १३, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक
लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१२, १३४३६). १.पे. नाम. चातुर्मासिक व्याख्यान, पृ. ५अ-१३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. __ चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: सर्वेष्टार्थसिद्धिः, ग्रं. ४०१,
(पू.वि. कालिकाचार्य दृष्टांत अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अट्ठाई व्याख्यान, पृ. १३अ-२६अ, संपूर्ण. अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीशं शांतिकर्ता; अंति: श्रद्धावतां
प्रीतये. ३. पे. नाम. दुरिअरयसमीर स्तोत्र सह टीका, पृ. २६अ-४६आ, संपूर्ण.
दुरिअरयसमीर स्तोत्र-वृत्ति, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, आदि: नत्वा वीरजिनेंद्र; अंति: तस्य उच्छेदन विनाशकः. दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीरं मोहपंको; अंति: सया पायप्पणामो तुह,
गाथा-४४. ४. पे. नाम. ज्ञानपंचमी व्याख्यान, पृ. ४६आ-५०अ, संपूर्ण.
वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ज्ञानं सारं सर्व; अंति: विषये गुणमंजरी कथा.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ ५. पे. नाम. कार्तिकपूर्णिमा व्याख्यान, पृ. ५०अ-५३आ, संपूर्ण. कार्तिकपूर्णिमापर्व व्याख्यान, ग. जयसार, सं., गद्य, वि. १८७३, आदि: श्रीसिद्धाचलतीर्थेशं; अंति: व्यलेखि
शिष्यहेतवे. ६. पे. नाम. मौनएकादशी व्याख्यान, पृ. ५३आ-५६अ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरं नत्वा गौतमः; अंति: सोद्यमा समाभवति. ७. पे. नाम. पोषदशमी कथा, पृ. ५६अ-६०अ, संपूर्ण.
पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वनाथ; अंति: धिकार सत्यं ब्रूवेमि. ८.पे. नाम. मेरुत्रयोदशी व्याख्यान, पृ. ६०अ-६५अ, संपूर्ण. मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: मारुदेवं जिनं नत्वा; अंति:
शिष्यैरामोदतस्त्वदः, ग्रं. १६५. ९. पे. नाम. होलिका व्याख्यान, पृ. ६५अ-६७अ, संपूर्ण. होलिकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३५, आदि: होलिका फाल्गुने मासे; अंति:
व्याख्यानमाख्यानभृत्. १०. पे. नाम. चैत्रीपूनम व्याख्यान, पृ. ६७अ-७०अ, संपूर्ण.
चैत्रीपूर्णिमापर्व व्याख्यान, मु. जीवराज, सं., गद्य, वि. १८६९, आदि: तीर्थराजं नमस्कृत्य; अंति: कांतिरत्नसहायतः. ११. पे. नाम. अक्षयतृतीया व्याख्यान, पृ. ७०अ-७२आ, संपूर्ण.
अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य प्रभु; अंति: क्षमाकल्याणपाठकैः, ग्रं. ७०. १२. पे. नाम. रोहिणी व्याख्यान, पृ. ७२आ-८६अ, संपूर्ण. रोहिणीतप व्याख्यान, आ. नरेंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १७७०, आदि: नत्वा च श्रीमहावीरं; अंति: द्रदेवश्चसूरिकृतम्,
श्लोक-१२९. १३. पे. नाम. दीपमालिका व्याख्यान, पृ. ८६अ-९१अ, संपूर्ण.
दीपावलीपर्व व्याख्यान, सं.,प्रा., गद्य, आदि: जाते वीरजिनस्य निवृत; अंति: विझवणं रायभुवणं वा. ५९७४६. (+) आचारांगसूत्र-श्रुतस्कंध-२ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१८, फाल्गुन कृष्ण, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ११४,
प्रले. मु. फतेचंद ऋषि (गुरु मु. आसानंद ऋषि); पठ. मु. विनयचंद ऋषि (गुरु मु. फतेचंद ऋषि, लुंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक का उल्लेख बाद में किया गया प्रतीत होता है., संशोधित., दे., (२५.५४१२, ७५३६-४१).
आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विमुच्चइ त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण.
आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: प्रते ए अर्थ भाष्या, प्रतिपूर्ण. ५९७४७. (+) निरयावलिकादिपंचोपांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०१, कुल पे. ५,प्र.वि. संशोधित. कुल
ग्रं. ४२००, जैदे., (२६४१२, ६४३१-३५). १. पे. नाम. निरयावलिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-३९अ, संपूर्ण.
कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंति: सव्वेसिं भणियव्वो, अध्ययन-१०.
कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० ते उत्सर्पणीनो; अंति: पूर्वपाठनी परे कहवो. २. पे. नाम. कल्पावतंसिका सह टबार्थ, पृ. ३९अ-४६आ, संपूर्ण.
कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: कप्पवडिसियाणं, अध्ययन-१०.
कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० जो भं० हे पूज्य स; अंति: हे जंबू स्वामी श्रमण. ३. पे. नाम. पुष्पिका सह टबार्थ, पृ. ४६आ-६४अ, संपूर्ण.
पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइणं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संगहणीए, अध्ययन-१०.
पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० जद्यपि भ० हे भगवन; अंति: तीजो अध्ययन समाप्त. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिका सह टबार्थ, पृ. ६४अ-८२अ, संपूर्ण.
पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेण०; अंति: वासे सिज्झिहिंति, अध्ययन-१०.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पुष्पचूलिकासूत्र - टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदिः ज० जो भं० हे भगवंत अंति: जंबू पूर्व पाठ कहिवड.
५. पे. नाम. वृष्णिदशा सह टवार्थ, पृ. ८२अ १०१ अ, संपूर्ण.
वृष्णिदशासूत्र, प्रा. गद्य, आदि: जइणं भंते समणेणं, अंतिः बारस्स उद्देसगा, अध्ययन- १२.
वृष्णिदशासूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज०जदपी भं०हे भगवंत अंति: एम सर्व ५२ उद्देशा.
५९७४८. (+४) कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८८८, वैशाख अधिकमास कृष्ण, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. २२२-१६४ (१ से
४२,४८ से १६९)=५८, क्रीत. श्राव. पनालाल प्रेमचंद, विक्र. श्राव. ज्वालानाथ गणेशीलाल रेसमीवाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वि.सं. १९३४ में इस प्रत का १२.५ रुपये में क्रय-विक्रय होने का उल्लेख मिलता है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. प्र. ले. लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, ( २४९) शास्त्राभ्यासः सदाकार्यो, (५२२) तैलाद्रक्षेत् जलाद्रक्षेत्, जैवे. (२५.५x१२, १६X३७).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-) अंति: उवदंसेइ ति बेमि, व्याख्यान ९. ग्रं. १२९६
(पू.वि. त्रिशलामाता के ५वाँ स्वप्नवर्णन अपूर्ण से १३वाँ स्वप्नवर्णन अपूर्ण तक एवं स्थविरावली चतुर्थ आर्यव्यक्त के वर्णन अपूर्ण से है.)
!
कल्पसूत्र - कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं. गद्य, आदि: (-); अंतिः कल्पसूत्रस्य चेमाम् ग्रं. ४१०९. ५९७४९. (+#) प्रकरणादि स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८९३, मध्यम, पृ. ८७ -२ (१ से २) = ८५, कुल पे. १३, ले. स्थल. कामठी, प्रले. पं. परमसुख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है. जैवे. (२६४१२, १०-१३x२३-२८).
१. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ३अ-५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: बुद्धबोहिकणिकाय, गाथा ५१ (पू. वि. गाथा २१ अपूर्ण से है.)
२. पे नाम, जीवविचार प्रकरण, पृ. ५अ-८अ, संपूर्ण.
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण, अंति: रुदाइ सूअ समुदाउ, गाथा ४९.
३. पे. नाम. विचारषट्त्रिंशिका चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. ८आ-११आ, संपूर्ण.
दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीसजिणे तस्स, अंति: गजसारेण० अप्पहिया,
गाथा - ४१.
४. पे नाम, श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १९आ-१५अ संपूर्ण
वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेतु सव्वसिधे धमाय; अंतिः वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ५. पे नाम, वृद्धशांति स्तोत्र, पृ. १५अ १७आ, संपूर्ण,
बृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं., पग, आदि: भो भो भव्याः शृणुत, अंतिः पूज्यमाने जिनेश्वरे. ६. पे नाम, भक्तामर स्तोत्र, पृ. १७आ-२२आ, संपूर्ण.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि, अंतिः मानतुंग० लक्ष्मी: श्लोक-४४.
७. पे. नाम. लघुशांति स्तोत्र, पृ. २२आ - २३आ, संपूर्ण.
लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांत अंतिः सूरिः श्रीमानदेवश्च श्लोक-१७, ८. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. २३आ - २८अ, संपूर्ण.
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आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. ९. पे, नाम, सप्तस्मरण, पृ. २८आ-४०आ, संपूर्ण वि. १८९३, पौष शुक्ल ७, शुक्रवार
1
सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअं जिअ सव्वभयं, अंतिः भवे भवे पास जिणचंद, स्मरण- ७.
१०. पे. नाम. संघयणीसूत्र सह टिप्पण, पृ. ४१अ - ६२आ, संपूर्ण, वि. १८९३, माघ शुक्ल, ५, ले. स्थल. कामठी. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ, अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२९३, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
६३ बृहत्संग्रहणी-टिप्पण, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा पंचपरमेष्ठीन्; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
बीच-बीच के पाठों का टबार्थ लिखा है.) ११. पे. नाम. क्षेत्रसमास, पृ. ६३अ-८२अ, संपूर्ण, वि. १८९३, फाल्गुन कृष्ण, ५. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; अंति: कुसलरंगमई
पसिद्धिं, अधिकार-६, गाथा-२६५. १२. पे. नाम. कर्मविपाकग्रंथ, पृ. ८२आ-८६आ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ
देविंदसूरिहिं, गाथा-६०. १३. पे. नाम. बंधविहाण, पृ. ८६आ-८७अ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिण; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ६ अपूर्ण तक लिखा है.) ५९७५०. (#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९७, माघ शुक्ल, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. ७०, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (६११) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, जैदे., (२५४१२, ५४३०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि,
अध्ययन-१०.
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनधर्म उत्कृष्ट; अंति: कहुए गुरु वचन. ५९७५१. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२५-७०(१ से ७०)=५५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ६-१८४३९-४९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१२, गाथा-३० अपूर्ण से
अध्ययन-२० गाथा-११ अपूर्ण तक है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ५९७५२. (+) संग्रहणीसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८९-७(१ से ७)=८२, ले.स्थल. चांणोदनगर, प्रले.ग. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, १५४४५). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: नंदोजा वीर जिण तित्थ, गाथा-३४९,
(पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से है.)
बृहत्संग्रहणी-बालावबोध*,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: प्रवर्त्तइं तां लगी. ५९७५३. तिलोयदीविआसंघयणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७२, पौष शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. ८३, ले.स्थल. डीसा, प्रले. मु. दयासील (गुरु मु. विनयसील); गुपि.मु. विनयसील, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ३४३०-३५). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: नंदोजा वीर जिण तित्थ,
गाथा-३४९, संपूर्ण. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा
३२३ अपूर्ण काटबार्थ तक लिखा है.) ५९७५४. (+#) संग्रहणीसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८५८, आश्विन कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ९०, ले.स्थल. वाणारस,
प्रले. मु. उमेदचंद्र, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४१२.५, १६४३४). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: नंदोजा वीर जिण तित्थ.
गाथा-३४९.
बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: अत्यद्भतं योगिभि; अंति: वृत्तिः समर्थिता, ग्रं. ३५००. ५९७५५. (+) समवायांगसूत्र सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९१, ले.स्थल. नागोर, प्रले. गोकलचंद वोरा, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ८११८, जैदे., (२५.५४११.५, ४-७४४०-५०).
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६४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सुयमे आउसं तेणं भगवय; अंति: अज्झयणंति त्तिबेमि,
अध्ययन-१०३, सूत्र-१५९, ग्रं. १६६५. समवायांगसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., गद्य, वि. १७उ, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंति: प्रतिइंकहिता हुंआ,
ग्रं. ६४५३. ५९७५६. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८६-२(१ से २)=८४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, ४४२८).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि, अध्ययन-१० __ चूलिका २, (पू.वि. अध्ययन-२, गाथा-८ अपूर्ण से है.)
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: प्ररूप्यो. ५९७५७. (+) विपाकसूत्र सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, ७४३८). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेण; अंति: (-), (पू.वि. "देवलोगाउ ३ किहिंगत्थिहति
गो० महाविदेहे ज" पाठ तक है.)
विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणे कालै ते०; अंति: (-). ५९७५८. (+#) कल्पसूत्र का कल्पांतर्वाच्य, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९९, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४२८).
कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, सं., गद्य, आदि: पुरिमचरिमाणकप्पो; अंति: रतः श्रीसंघभट्टारकः. ५९७५९. सुसढकथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७६, ले.स्थल. टांपीगाम, प्रले. माणजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ४४२८). सुसढ चरित्र, प्रा., पद्य, आदि: जे परमाणंदमय परप्पमा; अंति: जयणविय धम्मकम्मा, गाथा-५१६, (वि. १८४४, भाद्रपद
कृष्ण, २, शनिवार)
सुसढकथा-टबार्थ, मु. लब्धि, मा.गु., गद्य, वि. १८०८, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: वारता कीधी छे. ५९७६०. (+) सूयगडांगसूत्र सह टबार्थ श्रुतस्कंध-१, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०६, प्रले. नाहना; लिख. श्रावि. ग्यानबाई;
अन्य. मु. परागजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ४-११४३१-३७). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज तिउट्टेज; अंति: (-), ग्रं. २१००, (प्रतिपूर्ण,
पू.वि. प्रथम श्रुतस्कंध मात्र है.) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बु० जिनाज्ञा सहित; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रथम श्रुतस्कंध के टबार्थ
सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तेहनो कोण संबंध कहइ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५९७६१. (+#) कल्पसूत्र व्याख्यान-१ से ८, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९०-२६(२ से ३,१३ से १६,३५ से ५०,६० से ६२,७६)=६४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२६४१२, ९४३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेण; अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,
बीच-बीच व अंत के पाठांश नहीं है.) ५९७६२. (#) दशवैकालिकसूत्र सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५९, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, ६४३९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि,
अध्ययन-१०. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि: श्रीजिनधर्म उत्कृष्ट; अंति: ते गतिने विषे जाई.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ ५९७६३. (+) उपासकदशांगसूत्र सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ५४३६). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन-१०,
ग्रं. ८१२. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मा.गु., गद्य, वि. १६९३, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर: अंति: बेदिवसें सुभांग
तिमज. ५९७६४. सम्यक्त्वकौमुदीकथानक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८२, श्रावण शुक्ल, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ९१, ले.स्थल. जयपुर, प्रले. मु. रिषलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ६४३९). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४५७, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: स्वर्गमश्नुते, पद-४४४,
ग्रं. १६७५.
सम्यक्त्वकौमुदी-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमान; अंति: नर मोक्षनां सुख पामै. ५९७६५. (+#) स्तुति, प्रकरण व स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८७०, चैत्र कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ४८-२८(१ से २८)=२०, कुल
पे. १६, ले.स्थल. रतनगढ, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, ११४३४). १. पे. नाम. पर्युषण स्तुति, पृ. २९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कहे जिनलाभसुरिंद, गाथा-४, (पू.वि. गाथा- २
__ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा-४. ३. पे. नाम. शीतलजिन स्तुति, पृ. २९आ-३०अ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन जिननायक; अंति: भणे श्रीजिनलाभसूरिंद, गाथा-४. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ३०अ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुरति मनमोहन कंचन; अंति: इम श्रीजिनलाभसुरंद, गाथा-४. ५. पे. नाम. जिन स्तुति, पृ. ३०अ-३०आ, संपूर्ण.
समवसरण स्तुति, मु. जयत, मा.गु., पद्य, आदि: मिलि चौविह सुरवर; अंति: पामै जयत० सुनाणी, गाथा-४. ६. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. ३०आ-३१अ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: विस्मतहृदः क्षितौ, श्लोक-४. ७. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. ३१अ-३१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: ट्रेनें कि धप; अंति: दिशतु शासनदेवता,
श्लोक-४. ८. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ३१आ-३४अ, संपूर्ण.
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा-५१. ९. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ३४अ-३६आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-६०. १०. पे. नाम. विचारषटत्रिंशिका, पृ. ३६आ-३९अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गयसारेण० अप्पहिया,
गाथा-४५. ११. पे. नाम. अजितशांति स्तोत्र, पृ. ३९अ-४२अ, संपूर्ण.
अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: (अपठनीय), गाथा-४०. १२.पे. नाम. अजितशांति स्तव-खरतरगच्छीय, पृ. ४२अ-४४अ, संपूर्ण.
TOTT
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
अजितशांति स्तबलघु-खरतरगच्छीय, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि उल्लासिकमनक्ख, अंति: (अपठनीय),
गाथा-१७.
१३. पे. नाम. भयहरनाम श्रीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ४४-४५आ, संपूर्ण.
नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण, अंति: सबल भुवणच्चिअ चलणो, गाथा-२४. १४. पे. नाम. कष्ट निवारक चतुर्थ स्मरण, पृ. ४५-४७, संपूर्ण.
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गणधरदेव स्तुति, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तं जयउ जए तित्थं; अंतिः सुनिठि अठो सुही होई, गाथा - २६. १५. पे. नाम. गुरुपारतंत्र स्मरण, पू. ४७-४८अ, संपूर्ण
गुरुपारतंत्र्य स्मरण-खरतरगच्छीय, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: मयरहियं गुणगणरयणसायर; अंतिः जिणवत्त० पणयमुणि तिलओ, गाथा-२१.
१६. पे नाम, षष्टम स्मरण खरतरगच्छीय, पृ. ४८ अ- ४८आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि सिग्धमवरउ विग्धं अंतिः नमामि साहम्मिआ तेवि, गाथा- १४. ५९७६६. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १०८-९२ (१ से ९२ ) = १६. पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. जैवे. (२६४११.५, ५४४०-४५)
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव चार द्रव्य के वर्णन से
अरिष्टनेमि प्रसंग तक है.)
कल्पसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
*,
कल्पसूत्र - बालावबोध *, मा.गु., रा. गद्य, आदि (-): अंति: (-).
',
५९७६७ (+) भक्तामर स्तोत्र व गण विचार, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे., (२५X१२, ८x२३).
१. पे. नाम. गण विचार, पृ. १अ संपूर्ण
मा.गु., पद्य, आदि: चू चे चो ला अश्वनी, अंति: दो च ची रेवती देवगण.
२. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १आ-७आ, पूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमीलि अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४४ नहीं है.) ५९७६८. इकवीसठाणा प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, जैदे., (२५.५X१२, ६x२६).
२१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणार नयरी; अंति: (-). (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा - ५५ तक है.)
२१ स्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चवन पणो कहेसी विमान, अंति: (-), (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ४ अपूर्ण तक के स्वार्थ लिखा है.)
५९७६९ (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९३६ आश्विन कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. २३९-४ (१९५ से
१९७,२०७*)+२(२६,१४४) = २३७, ले. स्थल. नागोर, प्रले. लक्ष्मीनारायण मुथा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२५.५X११.५, ६-२०x४१-५३).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन -३६, ग्रं. २०००, (पू.वि. अध्ययन- ३२ गाथा- ६५ अपूर्ण से गाथा- ८६ तक नहीं है.)
उत्तराध्ययनसूत्र - टबार्थ + कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (१) संजोग बि प्रकारे, (२) श्रीमहावीरने वारे, अंति: अध्ययन
वाल्हा हुइ.
५९७७०. (+) शांतिनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १९१३, आषाढ़ शुक्ल, ६, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २१६, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संशोधित., दे., (२५.५X१२.५, १३X३८).
शांतिजिन चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि सं. गद्य वि. १५३५, आदिः प्रणिपत्यार्हतः सर्व अंतिः स करोतु शांतिम्,
प्रस्ताव- ६.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ ५९७७१. (+) जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२५, वैशाख कृष्ण, ११, शनिवार, मध्यम, पृ. २०५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१२,८४४२-४६).
जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहताण० तेण; अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, वक्षस्कार-७, ग्रं. ४१४६. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७७०, आदि: श्रीसिद्धार्थनराधिप; अंति: श्रुतई कहइं छइ,
ग्रं. १५०००. ५९७७२. (+) चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र सह टबार्थ व मलयगिरीय टीका का बालावबोध, पूर्ण, वि. १९३५, आषाढ़ शुक्ल, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. १९८-१(५८)=१९७, ले.स्थल. नागोर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४१२, २-१७४३८-५०). चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: जयति नवणलिणकुवलय विय; अंति: अविणीएसु दायव्वं, प्राभृत-२०, ग्रं. १८५४,
संपूर्ण. चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पु० पूछइछइ जिनवर वृष; अंति: नही अ० अविनीतनै देवउ, संपूर्ण. चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र सह मलयगिरीय टीका का-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां अविघ्न पणइ; अंति: भणी म्हारी
पुन्याई, संपूर्ण. ५९७७३. (+#) कल्पसूत्र सह कल्पसुबोधिका टीका व्याख्यान-१से ८, संपूर्ण, वि. १९४६, कार्तिक कृष्ण, २, जीर्ण, पृ. १८५,
ले.स्थल. स्थंभनगरे, प्रले. सोमेश्वर शीवलाल व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, २-७X४०-४७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), ग्रं. १२१६, (प्रतिपूर्ण,
पू.वि. स्थविरावली तक है.) कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय, सं., गद्य, वि. १६९६, आदि: प्रणम्य परमश्रेयस्कर; अंति: (-),
ग्रं. ६५८०, प्रतिपूर्ण. ५९७७४. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थव दृष्टांत कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२.५, ६-२५४४३-५४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: पावइ सासयं ठाणं, अध्ययन-३६,
ग्रं. २०००. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा संग्रह, मु. पार्श्वचंद्रसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: (१)पूर्वसंजोग मातापिता,
(२)श्रीमहावीरदेवने वारे; अंति: देइ परा साजा कर्या. ५९७७५. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६९-१२(११४,१४२,१४४ से १५३)+१(८०)=१५८, जैदे., (२६४१२,५-१४४२६-३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-), (पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं..
आदिनाथ की कथा के पाठ "देवांगना धवल दीजतां भगवंतनइंचवरी" सेटबार्थ के पाठ "वलीपुरुषनी ७२ कला दिखाडी वली स्त्रीनी ६४ कला" , दृष्टांत कथा के पाठ "पुत्र नमिने विनम आवीपगे" से कथा के पाठ "हिवई
तेहीजनगरनै विषई" तक एवं मूल पाठ "निग्गंथनिगंथीणवा हठाणंआरुग्गावे" के पश्चात नहीं है) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: तेणि कालि तेणि समि; अंति: (-), पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमतेव सुधर्मणे; अंति: (-), पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं
५९७७६. तत्वार्थसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, चैत्र कृष्ण, १३, गुरुवार, जीर्ण, पृ. १४४, प्रले. मु. जुहारलालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१०८६) यादृसं पुस्तकं दृष्टा, जैदे., (२६४१२, ४४२८-३२). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: (१)त्रैकाल्यं द्रव्य, (२)सम्यग्दर्शनज्ञान; अंति: मरणं दुःखं
णिवारेइणं, अध्याय-१०. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-टबार्थ *, पुहिं., गद्य, आदि: त्रैकाल्यं किं भूत; अंति: का कह्या सो जाणता.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
५९७७७. (+) सूयगडांगसूत्र सह टबार्थ - श्रुतस्कंध २, संपूर्ण, वि. १९४५, चैत्र कृष्ण, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १२७, ले. स्थल, कलोल, प्रले. श्राव. छोटा उगन शेठ, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, दे. (२६४११.५ ५X३८). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. पण, आदि: (-); अंति विहरति त्ति बेमि, ग्रं. २१००, प्रतिपूर्ण सूत्रकृतांगसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: इ० इम हुं कहु छु, प्रतिपूर्ण
"
"
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५९७७८. (+) संग्रहणीसूत्र सह लघुटीका, अपूर्ण, वि. १८७३ आश्विन कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १२५-१ (१०४) + १(७४)=१२५, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५४१२, १३४३६).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी आदि नमिठं अरिहंताई ठिइ, अंतिः नंदठ जा वीरजिण तत्थं,
गाथा- ३४९, (पू.वि. गाथा २३२ से २३३ तक नहीं है.)
"
बृहत्संग्रहणी - टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: अत्यद्भुतं योगिभि, अंतिः वृत्तिः समर्थिता, ग्रं. ३५००, ५९७७९. (+) संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७२३, कार्तिक कृष्ण, १०, रविवार, मध्यम, पृ. १२१, प्र. वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११, ३X२०).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि: नमिऊ अरिहंताई ठिइ, अंतिः सिरिचंद० अत्तपडणट्ठा,
गाथा - ३४९.
बृहत्संग्रहणी - टबार्थ, मु. धर्ममेरु, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने अरिहंत अंतिः प्रवर्त त्या लगई. ५९७८१. (4) कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११६, प्र. वि. प्रत के अंत में मी बाचना ऐसा लिखा हैं., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१२, ५-१८३०-३३).
"
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो अंतिः (-) (प्रतिपूर्ण, पू. वि. महावीर चरित्र तक
है.)
कल्पसूत्र- व्याख्यान+कथा, मा.गु, गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो अंति: (-), प्रतिपूर्ण,
कल्पसूत्र - टबार्थ, मु. कल्याण शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: (१) प्रणम्य शिरसा वीरं, (२) ते काल ते समयने विषे; अंतिः (-), प्रतिपूर्ण
५९७८२. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११३+२(३९,९२ ) = ११५, प्र. वि. संशोधित संशोधित., जैदे. (२६१२, ४x२० ).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपुणागमं गइत्ति बेमि, अध्ययन १० चूलिका २.
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (१) जीवनइ दुरगती पडता, (२) प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: तीर्थंकरे प्ररूप्यूं.
५९७८३ (१) चित्रसेनपद्मावती चरित्र सह वार्थ, अपूर्ण, वि. १८५८, माघ शुक्त. १०, मध्यम, पृ. ९७-१ (३६* )= ९६, ले.स्थल. पाटण, प्रले. पं. हस्तिविजय (गुरुग. उमेदविजय); पठ. ग. उमेदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, ६X३८).
चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्म, वि. १५२४, आदि: नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंतिः चारूनिर्मितम्, श्लोक-१२३२, संपूर्ण.
!
चित्रसेनपद्मावती चरित्र - टवार्थ, ग. भक्तिविजय, मा.गु, गद्य, आदिः अथ क० पहला युगला; अंतिः प्रभावेन मनोहर सुंदर, संपूर्ण.
५९७८४. (+१) कर्मग्रंथ सह अवचूरि- १से ५, संपूर्ण, वि. १९२६, चैत्र कृष्ण, १ शुक्रवार, मध्यम, पृ. ९५, कुल पे. ५,
ले. स्थल मकसूदाबाद, प्रले. मु. केशरीचंद्र ऋषि (बृहत्विजयगच्छ); अन्य. मु. जिनचंदसागर, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. पदच्छेद
सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६१२, ११७४३७-५०).
१. पे. नाम. कर्मविपाक सह अवचूरि, पृ. १आ-१५अ, संपूर्ण.
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी १४बी, आदि: सिरिवीरजिण बंदिअ अंति: लहिउ देविंदसूरिहिं, गाथा-६१.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: सिरि० कर्मणां विपाको; अंति: कृतो देवेंद्रसूरिभिः. २. पे. नाम. कर्मस्तव सह अवचूरि, पृ. १५अ-२६आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंद० नमह
तं वीर, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: तह० गुणस्थानेषु; अंति: तं वीरं नमतेति. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व सह अवचूरि, पृ. २६आ-३३आ, संपूर्ण.
बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्क; अंति: नेयं ___ कम्मत्थयं सोउ, गाथा-२५.
बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: बंध० बंधः कर्माणुना; अंति: तिदेशद्वारेण भणनात्. ४. पे. नाम. षडशीति सह अवचूरि, पृ. ३४अ-५७आ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहिउ
देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नमि० तत्र जीवंति यथा; अंति: शास्त्रेभ्य इति शेषः. ५. पे. नाम. शतक कर्मग्रंथ सह अवचूरि, पृ. ५७आ-९५आ, संपूर्ण.. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति:
देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००.
शतक नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नमिअजिण० मिथ्यात्व; अंति: क्षये ज्ञानी भवति. ५९७८५. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९९-६(१ से ६)=९३, जैदे., (२६४१२, ५-१३४३४-३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., च्यवन कल्याण से पाठ
"अभिनिट्ठाए पमाणपताए सव्वएणदिव" तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं.
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं. ५९७८६. (+#) स्थानकवासी श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४७, पौष कृष्ण, १०, शनिवार, मध्यम, पृ. ८३,
प्रले. मु. रामचंद्र ऋषि (गुरु मु. राघव ऋषि); गुपि.मु. राघव ऋषि (गुरु मु. गोलक ऋषि); पठ. श्राव. कल्याणचंद तलसी मोदी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ३४२२-२६).
आवश्यकसूत्र-श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं०
तिखुत; अंति: नमो जिणाणं जीयभयाणं.
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हो कर्मरूप; अंति: ज्यो सदा सर्वदापणे. ५९७८७. (+#) मलयासुंदरी चरित्र, अपूर्ण, वि. १८७७, भाद्रपद कृष्ण, १४, बुधवार, मध्यम, पृ. ८७-६(१ से ६)=८१, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १६x४७). मलयासुंदरी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: (-); अंति: पभणे जिनहर्ष विचार, खंड-४ ढाल १४८,
गाथा-३००६, (पू.वि. गाथा-१६९ से है.) ५९७८८. (+) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९३१, भाद्रपद कृष्ण, ७, बुधवार, मध्यम, पृ. ७७, प्रले. मु. चुनीलाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२६४१२.५, १०४२७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९.
ग्रं. १२१६. ५९७८९. (#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४०, कार्तिक शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ६६, प्रले. प्रभुदास वैष्णव;
पठ. य. लुणकर्ण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२,५-१९४२९-५२).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि,
___ अध्ययन-१०. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीर, (२)हिवे विघ्न टालवाने; अंति: तुज प्रति कह
५९७९० (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३२८-१(१)+२(१९७,२७८)=३२९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२५४११.५, ४४२७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: संबुडे त्ति बेमि, अध्ययन-३६,
ग्रं. २०००, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: अचलगछिनिमत्ता सुदीपि; अंति: एहवौ तीर्थंकरे कह्यो, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: इति उदायन ऋषि संबंध, कथा-४, (पूर्ण,
पू.वि. "जणाचेव जंगीयत्थयगुरुण" पाठ से है.) ५९७९१. (+#) कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका, अपूर्ण, वि. १८६५, चैत्र कृष्ण, ३०, गुरुवार, मध्यम, पृ. २७६-१४(१ से
१३,१७)=२६२, ले.स्थल. वाणारसी, प्रले. चिमनराम विरामण चतुर्वेदी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (५२३) मंगलं लेखकानां च, जैदे., (२६४१२, ११४३६-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, (पू.वि. प्रारंभ
के पत्र नहीं हैं., "तेणं कालेणं तेणं समएणं समणो भगवं महावीरे" से है) कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: कल्पसूत्रस्य चेमाम्, ग्रं. ४१०९,
(पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., प्रारंभ से "त्वाकाष्टग्रहणार्थवनेजगाम" तक एवं "दीर्घाणितपोसिचकार एकदा च
विश्वभूति" पाठ से "तिर्विहारं कुर्व्वन मथुरायां समागतः" पाठ तक नहीं है.) ५९७९२. (+#) जीवाभिगमसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६०, आश्विन शुक्ल, १, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २६२, ले.स्थल. रहणगाम,
प्रले. मु. भीवराज ऋषि (गुरु मु. छीत्रमल); गुपि.मु. छीत्रमल (गुरु मु. गुमानचंद ऋषि); मु. गुमानचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ७४४३). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताण णमो; अंति: सेत्तं सव्वजीवाभिगमे, प्रतिपत्ति-१०, सूत्र-२७२,
ग्रं. ४७५०. जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मु. जिनविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७७२, आदि: वली नमस्कार हुवउ; अंति: वार्ता संपूर्ण थई,
ग्रं. ९३००. ५९७९३. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान-कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०१,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १५४३६-४५).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेण; अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: ते काल जे अवसर्पिणी; अति: ए भगवंतइ उपदिसिउ. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य सारदा देवी, (२)लौकिक पर्व दीवाली; अंति: आज्ञानो
आराधक जाणवो. ५९७९४. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, ज्येष्ठ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १२५-२८(१ से ७,३९ से ५७,१०१ से १०२)=९७,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, ६-१७४३०-३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, (पू.वि. प्रारंभ
से ऋषभदत्त द्वारा देवानंदा को स्वप्नफल कहे जाने के प्रसंग तक, सिद्धार्थ राजा द्वारा १४ स्वप्नों के अर्थ सुनकर हर्षित
होने के प्रसंग अपूर्ण से नालंदा नगर में चातुर्मास के प्रसंग अपूर्ण तक तथा स्थविरावली के बीच के पाठांश नहीं है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (अपठनीय), (वि. अंतिम वाक्य के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-व्याख्यान कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: दुक्कडम देवौ.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ ५९७९५. (+) स्थानांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १८५+१(८६)=१८६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४१२, ८४४६-५०). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं भग; अंति: अणंता पण्णत्ता, स्थान-१०,
सूत्र-७८३, ग्रं. ३७००, (वि. १९३५, श्रावण शुक्ल, २, बुधवार) स्थानांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सुण्या मे हे आउखावंत; अंति: अनंते कहैहइ भगवंतने, (वि. १९३५, श्रावण
शुक्ल, ७, सोमवार) ५९७९६. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थव व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८७१, चैत्र कृष्ण, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. १८१,
ले.स्थल. ब्राहनपुर, प्रले.ग. जसविजय (गुरु ग.शांतिविजय); गुपि.ग.शांतिविजय (गुरु मु. गुमानविजय); मु.गुमानविजय (गुरु पं. नवनिधविजय); पं. नवनिधविजय (गुरु मु. लक्ष्मीविजय); पठ. मु. चतुरविजय (गुरु पं. तिलोकजी); गुपि.पं. तिलोकजी (गुरु पं. हेमविजय); पं. हेमविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित.,प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (४५६) कर गावड कर दो वडी, जैदे., (२६४१२, ६-१४४३६-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहताणं नमो; अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९,
ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (१)ते काल जे अवसर्पिणी, (२)चोसट्टिइद्रे करी; अंति: बार बार उपदेसि बोलइ.
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: पताका गृही तिमगृहवी. ५९७९७. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८४८, भाद्रपद शुक्ल, १५, सोमवार, मध्यम, पृ. १७९,
ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. पं. अजबसुंदर (उपकेशगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ६-१५४३९-४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९,
ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्था जिनं; अंति: उपदेश्यौ कह्यो.
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानजिन; अंति: अनेराने नहीं लेवा. ५९७९८. (+) उपदेशमाला सह टीका व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ४-१६४३२-४५).
उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४. उपदेशमाला-वृत्ति, ग. रामविजय, सं., गद्य, वि. १७८१, आदि: नत्वा विभुंसकलकामित; अंति: वाणी श्रुतदेवी,
ग्रं. ७६००.
उपदेशमाला-कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: श्रेयस्कर कामितदान; अंति: सप्ततितमः संबंधः. ५९७९९. (+) वर्धमानदेशना, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १८९-३५(१ से ३,५,७,१७ से १८,४१ से ६४,१२७ से १३०)=१५४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२५४१२, १०-१३४३५-३८). वर्द्धमानदेशना, ग. राजकीर्ति, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: राजकीर्तिगणिना, उल्लास-१०, ग्रं. ४३००, (पू.वि. प्रारंभ व
बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) ५९८००. (+) कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका, अपूर्ण, वि. १८०६, कार्तिक कृष्ण, ६, रविवार, मध्यम,
पृ. १६२-१(१)+१(१२१)=१६२, ले.स्थल. आढसर, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (४५९) मंगलं लेखकस्यापि, (५२४) पोथी प्यारी प्राणथी, जैदे., (२६४१२, १५४३४-३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, (पूर्ण,
पू.वि. "आचेलुक्क १ उद्देशसिय २ सिझायर ३ रायपिंड ४" पाठ से है.) कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: प्रमाणीभवंति, ग्रं. ४१०९, अपूर्ण.
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५९८०१. (+#) समवायांगसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम पू. १६४-२५ (१ से ४,१३ से १५, १८ से १९,४१,१०१ से ११५)=१३९, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे.,
"
(२५x११.५, ६४३५-४०).
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समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-) (पू. वि. सामान्य व विशेष नय की दृष्टि से वस्तुओं के स्वरूप के वर्णन से है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.)
समवायांगसूत्र- टवार्थ * मा.गु गद्य, आदिः (-); अंति: (-).
५९८०२. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८४८, चैत्र, मध्यम, पृ. १५८, प्रले. मु. केसरविजय (गुरु मु. रंगविजय); गुपि. मु. रंगविजय (गुरु पं. मुक्तिविजय); पं. मुक्तिविजय (गुरु पं. हस्तिविजय); पं. हस्तिविजय (गुरु पं. कुसलविजय); अन्य. मु. हेमविजय (गुरु मु. लक्ष्मीचंद महात्मा); हीरालाल लक्ष्मीचंद व्यास, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५X११.५, ६-१७X३३-४३).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो अंतिः उवदंसेइ ति बेमि, व्याख्यान ९. कल्पसूत्र - टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार होयो, अंतिः अध्ययन जाणवुं छे.
कल्पसूत्र - व्याख्यान+कथा , मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर, अंतिः सर्वांग सुंदर होस् .
५९८०३. (+) उपदेशमाला सह टवार्थ व बालावबोध, संपूर्ण वि. १९वी ९. गुरुवार, जीर्ण, पृ. १४९, ले. स्थल. पावानगर, प्र. वि. श्री आदिनाथ प्रसादात्, टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित कुल ग्रं. ७०००, जैदे. (२५x११.५ ११५x५०). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिनवरिंदे इंद, अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा- ५४४. (प्रले. मु. जीवणविजय शिष्य (गुरु मु. जीवणविजय), प्र.ले.पु. सामान्य )
"
.
उपदेशमाला - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण कहिता नमस्कार, अंतिः उपकारक लेखक पाठक होइ,
(प्रले. पं. रामविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य )
उपदेशमाला - बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७१३, आदि: वंदित्वा वीरजिनं; अंति: शोधनीयो वसुधा धनेश
५९८०४. (*) कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका व कालिकाचार्य संबंध, संपूर्ण वि. १९११ माघ कृष्ण, १, श्रेष्ठ,
पृ. २४२+२(१४१,१५९)= २४४, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित - पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., वे., (२५.५x१२.५, १३४३५-३८).
१. पे. नाम. कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका, पृ. १आ-२२६आ, संपूर्ण.
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं काले० समणे, अंतिः अज्झयणं सम्मतं, व्याख्यान- ९. कल्पसूत्र - कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानस्य, अंति: प्रमाणीभवंति २. पे. नाम. कालिकाचार्य कथा, पृ. २२६आ- २४२अ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य वि. १६६६, आदि: प्रणम्य श्रीगुरुं अंतिः चक्रे बालावबोधिकाम् ३. पे. नाम. आशीर्वचन लोक, पृ. २४२अ संपूर्ण.
आशीर्वचन पाठ, सं., पद्य, आदि नक्षत्राक्षतपूरितं अंतिः यद्यस्य गृहेषु कल्पः श्लोक-२.
५९८०५. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८१४, मध्यम, पृ. ३५०-१ (७१) ३४९, ले. स्थल. सांडेरानगर, प्रले. पं. मुनिविजय गणि (गुरु पंन्या. देवेंद्रविजय गणि); गुपि. पंन्या. देवेंद्रविजय गणि (गुरु ग. जयविजय ); ग. जयविजय (गुरु पंन्या. अमृतविजय); पंन्या. अमृतविजय (गुरु पंन्या. सिंहविजय); पंन्या. सिंहविजय (गुरु आ. विजयरत्नसूरि); आ. विजयरत्न (गुरू आ. विजयप्रभसूरि), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित. प्र. ले. श्री. (९७९) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५X११, ६x२८).
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि; तेणं कालेणं तेणं समए; अंतिः धम्मकहाओ सम्मत्ताउ अध्ययन-१९, ग्रं. ५५००, ( चैत्र शुक्ल, ६, गुरुवार, पू. वि. भगवान महावीर के द्वारा मेघकुमार को दिए गए उद्बोधन का कुछ भाग नहीं है.)
,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: धर्मकथा संपूर्ण,
ग्रं. १३९१०, (, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, गुरुवार) ५९८०६. (+) लोकप्रकाश, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३८४-६७(१,१२ से २१,८२ से ९९,२०९ से २४२,२४७,३८१ से
३८३)=३१७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १५४४०-४७). लोकप्रकाश , उपा. विनयविजय, सं., पद्य, वि. १७०८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-१, श्लोक-१८ अपूर्ण से
सर्ग-३०, श्लोक-७६१ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ५९८०७. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सहटबार्थ, कथा संग्रह व माहात्म्यगर्भित गाथासंग्रह, संपूर्ण, वि. १८५६, मध्यम, पृ. २९०, कुल
पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. १४०००, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१२, ६४३४). १.पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व कथा संग्रह, पृ. १आ-२९०आ, संपूर्ण.
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६.
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ + कथा संग्रह , मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरने वारे; अंति: भद्रबाहुस्वामी कहे. २. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र माहात्म्यगर्भित गाथासंग्रह, पृ. २९०आ, संपूर्ण..
संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जे करि भव सिद्धिया; अंति: पुव्वरिसी एव भासंति, गाथा-४. ५९८०८. (+) आवश्यकसूत्र की वंदारु वृत्ति व टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२९, भाद्रपद शुक्ल, १५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २८८,
ले.स्थल. वढवाण, प्रले. मु. माणिक्यविजय (गुरु पं. दीपविजय गणि); गुपि. पं. दीपविजय गणि (गुरु ग. राजविजय); ग. राजविजय (गुरु पं. प्रेमविजय); पं. प्रेमविजय (गुरु पं. हर्षविजय); पं. हर्षविजय (गुरु पंन्या. वनीतविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१७) जलाद्रक्षे तैलाद्रक्षे, (१३६) मंगलं लेखकानां च, जैदे., (२५.५४१२, ६x२४-२८). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वंदारू टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: वृंदारुबंदारकवृंदवं; अंति: वृत्तितोवरचूर्णितश्च,
ग्रं. २७२०. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वंदारू टीका का टबार्थ, मु. देवकुशल, मा.गु., गद्य, वि. १७६१, आदि: वांदवानो शील छे;
अंति: आवस्यकनो विधि कह्यो, ग्रं. ३०२२. ५९८०९. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१७, मध्यम, पृ. २०९, प्रले. पं. विनयविजय गणि (गुरु ग. देवेंद्रविजय);
गुपि.ग. देवेंद्रविजय (गुरु पंन्या. अमृतविजय); पंन्या. अमृतविजय (गुरु पंन्या. सिंहविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४११.५, ४४४३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६, (, पौष
कृष्ण, १०)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उत्तराध्ययननो अर्थ; अंति: भल्यो तिम में काओ, (, फाल्गुन शुक्ल, २) ५९८१०. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सहटबार्थ+व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७०-६७(१ से ३,२४ से २५,२७ से २९,३५
से ३८,४१ से ६४,७१ से ७५,८५,१५३,१६१,१६५ से १७१,१८५ से १८६,२१२ से २२५)=२०३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४११, ५-१७४३५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,
अध्ययन-१, गाथा-१६ से प्रशस्ति की गाथा-४ तक है व बीच-बीच की गाथाएँ नहीं हैं.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा*,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ५९८११. ठाणांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३१, वैशाख शुक्ल, १०, रविवार, मध्यम, पृ. ३११, अन्य. आ. अमृतचंद्रसूरि; राज्यकालरा. जसवंतसिंघ,प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२४.५४१२, ६४३५). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: सम्मत्तं छाणगमिति, स्थान-१०,
सूत्र-७८३.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्थानांगसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमद्वीरजिनं नत्वा; अंति: सूत्रारथ संपूर्ण थयो. ५९८१२. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २७१-९७(५६ से १२७,१४६ से १६४,१९८,२३३ से
२३७)=१७४, अन्य. सा. रतनबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५.५४१७, ४४३७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६,
(पू.वि. बीच-बीच के पाठ नहीं हैं) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: उत्तराध्ययननो ए अर्थ; अंति: तुज प्रते कहुंछु, (वि. आदिवाक्य अवाच्य
५९८१३. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ व २४ जिन आयुष्य विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४७, कुल पे. २,
प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२४.५४११.५, ७४३४). १. पे. नाम. चोवीसजिन आयुष्य विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन आयुष्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीरीषभदेव आउखू; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
श्रेयांसजिन के आयुष्य तक लिखा है.) २. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-४७आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१०, ___ गाथा-१७ तक है.)
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मरूपीउ मांगल्य; अंति: (-). ५९८१४. (+) अनुयोगद्वारसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९२-१(१७१)+१(१६८)=१९२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१२, १९४३९).
अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प+ग., आदि: नाणं पंचविहं; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं
हैं., बीच व अंत के किंचित् पाठ नहीं हैं.) अनुयोगद्वारसूत्र-टीका, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: सम्यक्सुरेंद्रकृत; अंति: (-),
पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ५९८१५. (+) कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९०७, वैशाख अधिकमास शुक्ल, ३, मंगलवार, मध्यम, पृ. १९३-१५(१०६ से
१२०)=१७८, ले.स्थल. जेसलमेर, प्रले.पं. हर्षचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१२, ९-१२४२८-३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: अज्झयणं सम्मत्तं, (पृ.वि. प्रभु महावीर की
दीक्षा के समय पुरजनों के द्वारा किए गए शब्दोच्चार से लेकर प्रभु महावीरस्वामी की संपदा के वर्णन तक का प्रसंग
नहीं है.) कल्पसूत्र-बालावबोध, उपा. रामविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८१९, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: श्रीसंघ आगै
वखाण्यो. ५९८१६. (+#) चंदराजा चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९८-३२(१ से ३२)+२(४३,६१)-६८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १६४३४-३९).
चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उल्लास-२, ढाल-१२ की
___गाथा-२ अपूर्ण से उल्लास-४, ढाल-३३ की गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ५९८१७. (+) सम्यक्त्वकौमुदी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८६६, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. ९१,
ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. मु. करमचंद (गुरु मु. अमरचंद, खरतर गच्छ); गुपि. मु. अमरचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, २०४३७). सम्यक्त्वकौमुदी चौपाई, मु. आलमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: वीर जिणेसर चरण युग; अंति: आस्या सहूं
सिद्धि जी, खंड-६.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
५९८१८. (+) श्रीपाल चौपाई, अपूर्ण, वि. १९३२, वैशाख कृष्ण, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ८९-७ (२ से ६,२५,४०)=८२, ले. स्थल. सवाइजनगर, प्रले. देवकृष्ण जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. वे., (२५x१२.५, ९५३७).
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श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवि तणी, अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४ डाल ४१, गाथा- १८२५ (पू.वि. खंड-१, डाल- १, गाथा १ अपूर्ण से ढाल-४, गाथा-१६ अपूर्ण तक, खंड-२, ढाल - ४, गाथा - १ अपूर्ण से गाथा - १७ अपूर्ण तक व खंड ३, ढाल -२, गाथा - १९ अपूर्ण से हाल-३, गाथा-४ अपूर्ण तक नहीं है.)
अपूर्ण से है. वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है. जो लिखी है, वे क्रमशः नहीं हैं.)
"
७५
"
५९८१९, (+) कल्पसूत्र का वालावबोध व्याख्यान १ से ३. संपूर्ण वि. १९३२, फाल्गुन कृष्ण, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६२, ले. स्थल. मकसुदाबाद, प्रले. य. नेमचंद्र, पठ. मु. नंदलाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. माघ कृष्णपक्ष ६ रविवार से लेखन कार्य प्रारंभ कर फाल्गुन कृष्णपक्ष ११ सोमवार को पूर्ण किया गया है. श्रीपदमप्रभु प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें.. प्र. ले. श्रो. (१) बादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, वे. (२५.५४१२.५, ११x२७).
"
कल्पसूत्र - कल्पदीपिका बालावबोध, मु. मयाचंद ऋषि, मा.गु., गद्य वि. १८१४, आदि: प्रणम्य परमं ज्योति, अंतिः (-), प्रतिपूर्ण
५९८२०. (+) श्रीपाल चौपाई, संपूर्ण, वि. १८०६, ज्येष्ठ कृष्ण, ८, शनिवार, मध्यम, पृ. ६२, प्र. वि. संशोधित - टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे., (२५X१२, ११x४२).
"
श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य वि. १७३८, आदिः कल्पवेलि कवियण तणी, अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४ ढाल ४१, गाथा - १८२५.
५९८२१. (+) सप्ततिका सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११९-३३ (१ से ३३) = ८६, प्र. वि. संशोधित. कुल ग्रं. ३०००, जैदे., (२६X१२, १३X३६).
सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, वि. १३वी- ९४वी, आदि (-); अंतिः एगुणो होइ नवनवई, गाथा-७२ (पू.वि. गाथा-५२
सप्ततिका कर्मग्रंथ-बालावबोध, उपा. जयसोम, मा.गु., गद्य, वि. १७०२, आदि: (-); अंति: नेव्यासी गाथा हुइ.
५९८२२. (+) श्रीपाल चौपाई, अपूर्ण, वि. १८५८, आश्विन कृष्ण, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५५-५ (१ से ५ ) = ५०, ले. स्थल. खीचूंद, प्र. ग. भावविजय (गुरु पंन्या. सत्यराज, बृहत्खरतर ); गुपि पंन्या. सत्यराज (गुरु उपा. जयमाणिक्य, बृहत्खरतर);
उपा. जयमाणिक्य (गुरु वा. जिनजवगणि, बृहत्खरतर ); वा. जिनजयगणि (परंपरा आ. कीर्तिरत्नसूरि, बृहत्खरतर गच्छ); राज्ये गच्छाधिपति जिनहर्षसूरि प्र. ले. पु. मध्यम, प्र. वि. अबरखयुक्त पत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित, जैदे., (२५X११.५, १२-१६४३५-४७).
श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४ डाल ४१, गाधा- १८२५, (पू.वि. खंड-१, डाल-६, गाथा-१२ अपूर्ण से है. ) ५९८२३. (+) अष्टप्रकारीपूजा रास, अपूर्ण, वि. १८३९ वैशाख शुक्ल, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६६-१९ (१ से १९) =४७, ले.स्थल. जालोरनगर, प्रले. पं. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीगोडीपार्श्व प्रशादात्., संशोधित., जैदे., (२६x१२, १४४४४).
८ प्रकारी पूजा रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: (-); अंतिः सुखसंपति बहु पाया रे, डाल-७८, गाथा - २०९४, (पू.वि. ढाल - २२, गाथा - १० अपूर्ण से है . )
५९८२४. नलदमयंती रास, अपूर्ण, वि. १७७३, फाल्गुन शुक्ल, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४० - २ (१ से २ ) = ३८, ले. स्थल. जहानावाद, प्र. मु. भोजराज, पठ. सा. नाथी आर्या सा. लाछां आर्या, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. १५९५, जैदे. (२६४११.५. १३-१६X३५-४० ).
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नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य वि. १६७३ आदि (-) अंति: चतुरमाणा सचितवसी, खंड-६ ढाल ३९, गाधा-२०१, ग्रं. १५९५ (पू. वि. खंड-१ हाल २ गाधा- ७ अपूर्ण से है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५९८२५. (+) आनंदघन चोवीसीसह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३८, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्रले. मु. विनीतविजय
शिष्य (गुरु पं. विनीतविजय); गुपि.पं. विनीतविजय (गुरु पं. हितविजय गणि); पं. हितविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंतिम पत्र न होने के कारण प्रतिलेखक का नाम शिष्य के रूप में दिया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३४११, ४४३४-३५). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: ज्ञान० सुखनो सदा रे,
स्तवन-२४, संपूर्ण. स्तवनचौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभ जिनेश्वर; अंति: गाता अखयसंपद अति
घणी, संपूर्ण. ५९८२६. समयसार नाटक, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९६-६०(१ से ६०)=३६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२५.५४१२.५, १०४३०). समयसार नाटक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मोक्षद्वार, दोहा-९ से
साध्य-साधक स्वरूप, दोहा-६२ अपूर्ण तक है.) ५९८२७. (#) अंजनासती रास, पूर्ण, वि. १८९८, कार्तिक शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ३८-१(१)=३७, ले.स्थल. अडपोदरा,
प्रले. य. नेमविमल गोरजी; लिख. श्राव. वखेचंद लालचंदरंगजी साह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१२, १२४२७).
अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: (-); अंति: ऋद्धि वृद्धि मंगलमाल, खंड-३,
गाथा-६३२, (पू.वि. खंड-१, ढाल-१, गाथा-११ अपूर्ण से है.) ५९८२८. (+) चंदकेवली रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४१३, १३-१६४३४-४८).
चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: (-), (पू.वि. उल्लास-२,
___ ढाल-१२, गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ५९८२९. शालिभद्रधन्ना चौपाई, संपूर्ण, वि. १८३७, आश्विन शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ३१, जैदे., (२५४११.५, १०४३८).
शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: मनवंछित फल
लहिस्यइजी, ढाल-२९, गाथा-५०९. ५९८३०. (+) महाबलमलयसुंदरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, १८४४५). महाबलमलयासुंदरी चौपाई, मु. भक्तविमल, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीपार्श्वनाथ प्रणम; अंति: पूगी छै मनरि
कोडरे, खंड-४. ५९८३१. कयवन्ना चौपाई, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०-१(१)=२९, जैदे., (२६४१२, १२४३५).
कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदिः (-); अंति: जयरंग० एक चडती छे, ढाल-३१,
गाथा-५६२, (पू.वि. ढाल-१, गाथा-३ अपूर्ण से है.) ५९८३२. (+) आगमसारोद्धार व नयचक्र, संपूर्ण, वि. १८२५, श्रावण अधिकमास कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. २५, कुल पे. २,
ले.स्थल. नाडूल, प्रले. पं. विनयविजय गणि (गुरु ग. देवेंद्रविजय); गुपि.ग. देवेंद्रविजय (गुरु पंन्या. अमृतविजय); गुभा.पं. जयविजय गणि (गुरु पं. अमृतविजय गणि); गुपि.पंन्या. अमृतविजय (गुरु पंन्या. सिंहविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीपद्मप्रभुजी प्रशादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१२, १७७५५). १.पे. नाम. आगमसारोद्धार सह बालावबोध, पृ. १आ-१८अ, संपूर्ण.
आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: प्रथम भव्य जीवने; अंति: तिथि सफल फली मन आस. आगमसारोद्धार-स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: तिहां प्रथम जीव; अंति: ते
समकिति जाणवो. २. पे. नाम. नयचक्र का बालावबोध, पृ. १८अ-२५आ, संपूर्ण.
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त्र.
.
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
७७ नयचक्र-भाषावचनिका का बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: स्यात्कारमुद्रिता; अंति: लोह सुवर्ण न
थायइ. ५९८३३. (+) आठदृष्टिनी सज्झाय सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८३५, वैशाख शुक्ल, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. २७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ९००, जैदे., (२५.५४१२, ३-१२४३०-४०).
८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदेशी; अंति: वाचक जशने _वयणेजी, ढाल-८, गाथा-७६. ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: शिव कहता० निरुपमद्रव; अंति: संविज्ञ जनपक्षीय. ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: ऐंद्रश्रेणिनतं पार्श; अंति: हेतई
लिख्यो छई. ५९८३४. उत्तमकुमारचरित्र रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०-९(१ से ९)=२१, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४१२, १२४३८-४३). उत्तमकुमारचरित्र रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-७, गाथा-६ अपूर्ण से
ढाल-२८, दोहा-३ अपूर्ण तक है.) ५९८३५. स्तवन सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १८, कुल पे. १४, ., (२४४११, १४४२९). १.पे. नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. १आ-१३आ, संपूर्ण, वि. १९०८, ज्येष्ठ शुक्ल, २, ले.स्थल. बुआडानगर, प्रले. ग. रत्नविजय,
प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. श्रीपार्श्वप्रभु प्रसादात्.
मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिनेशर प्रीतम; अंति: गाता अखय संपद अतिघणी, स्तवन-२४. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण.
मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: ते दिन क्यारे आवसी; अंति: त्यारे निरमल थासुं, गाथा-८. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १४अ, संपूर्ण.
आदिजिन पद, मु. जयंत, पुहि., पद्य, आदि: आज तो हमारे भाग ऋषभ; अंति: फंद जयंत गुण गाये हे, गाथा-३. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १४अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन पद-शंखेश्वरतीर्थ, म. वीरविजय, पुहिं., पद्य, आदि: अजब जोत हे मेरे; अंति: पुरो मेरे मन की, गाथा-३. ५.पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १४अ, संपूर्ण.
महावीरजिन पद, मु. कीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर सेवीइं; अंति: जिनचदके इम कीरत गाई, गाथा-३. ६. पे. नाम. आत्म पद, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, पुहिं., पद्य, आदि: म्हे मतवाला ग्यान का; अंति: दिल भ्यांतर पेठारे, गाथा-३. ७. पे. नाम. समकित सज्झाय, पृ. १४आ, संपूर्ण.
मु. ज्ञानविमल, पुहिं., पद्य, आदि: जबलगे समकित रत्नकुं; अंति: ज्ञान कहे चित सोह. गाथा-५. ८. पे. नाम. साधारणजिन जन्म महोत्सव स्तवन, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण.. साधारणजिन जन्मकल्याणक स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनमुख देखण जाउंरे; अंति: विमल
प्रभु ध्याउं रे, गाथा-५. ९. पे. नाम. हित स्तवन, पृ. १५अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-आत्मोपदेश, मु. हर्षचंद, पुहि., पद्य, आदि: नही एसो जनम वारोवार; अंति: हर्षचंद० पावे
भवपार, गाथा-५. १०. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: ऋषभ जिणंदस्युं प्रीत; अंति: देवचंद०अविचल सुखवास,
गाथा-६. ११. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कांबल रोपाणी लागणो; अंति: मोहन० जिम अंतरजामी, गाथा-५.
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७८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वस्तवन, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. रंग, मा.गु., पद्य, आदि: दिलरंजन जिनराजजी; अंति: रंगने० हवे हाथरे, गाथा-७. १३. पे. नाम. पुण्यफल सज्झाय, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदानंदन गुणनीलो रे; अंति: गुणविजय० फले
आसो रे, गाथा-१५. १४. पे. नाम. ११ अंग स्वाध्याय, पृ. १७अ-१८अ, संपूर्ण. ११ अंग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२२, आदि: आचारांग वडु कह्यु; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाणांगसूत्र की सज्झाय तक लिखा है.) ५९८३६. (+) शालिभद्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३१, ले.स्थल. जेसलमेर, प्रले. राम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १०४३४). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: वंछित फल लहिस्यै
जी, ढाल-२९, गाथा-५११. ५९८३७. (+) महाबलमलयसुंदरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९१६, श्रावण कृष्ण, २, रविवार, मध्यम, पृ. ३६, ले.स्थल. पारानगर, प्रले. उदेराम ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२५४१२, १३-१६४३३-३७). महाबलमलयासुंदरी चौपाई, मु. भक्तविमल, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीपार्श्वनाथ प्रणम; अंति: पूगी छै मनरि
कोडरे, खंड-४. ५९८३८. (+) व्याख्यान, सुभाषित श्लोकादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-५(१ से ५)=१७, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण
युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, १५-१९४४३-५०). १.पे. नाम. औपदेशिक व्याख्यान, पृ. ६अ-९आ, संपूर्ण.
प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: अनंत विज्ञान विशुद्ध; अंति: विशर्येत सहस्रधा. २. पे. नाम. सुभाषित संग्रह, पृ. १०अ-२२अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: वीरं विश्वगुरुं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-४६९ तक लिखा है.) ३. पे. नाम. मांगलिक श्लोक, पृ. २३अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक ,प्रा.,सं., पद्य, आदि: देवपूजा गुरुपास्ती; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
अंतिम श्लोक अपूर्ण है.) ५९८३९. कर्मविपाक के बोल, संपूर्ण, वि. १८७६, चैत्र शुक्ल, ९, रविवार, मध्यम, पृ. २७+१(११)=२८, प्रले. मु. श्रीचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १०x१७-२८).
कर्मविपाक बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रकृतिबंध कर्मस्थित; अंति: जीव अंतरायकर्म बांधे. ५९८४०. (#) मृगावती रास, अपूर्ण, वि. १९२५, वैशाख कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. २२-१(१२)=२१, ले.स्थल. सीरसाला, प्रले. मु. रुपचंद (अचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १६४३८). मृगावतीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: समरु सरसति सामिणी; अंति: वृद्धि
सुजगीसा, खंड-३ ढाल ३७, गाथा-७४५, (पू.वि. खंड-२ ढाल-४ गाथा ९ अपूर्ण से गाथा-२६ अपूर्ण तक नहीं है.) ५९८४१. (+) उत्तराध्ययन सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-१(१)=२३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१३, १०-१७४३८-४२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., अध्ययन-१, गाथा-३ अपूर्ण से है व अध्ययन-२, गाथा-२५ तक लिखा है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा संग्रह, मु. पार्श्वचंद्रसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रथम पत्र
नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५९८४२. (+) चित्रसेनपद्मावती चौपाई, संपूर्ण, वि. १८६९, मध्यम, पृ. २०, ले.स्थल. जेशलमेर, प्रले. मु. कांतिरत्न (खरतरगच्छ),
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ४९५, जैदे., (२५४११.५, १३४५०).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
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१३x२९).
१. पे. नाम. परमार्थशतक. पू. १अ १६आ, संपूर्ण.
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चित्रसेनपद्मावती चौपाई दानधर्मानुमोदनाधिकारे, उपा. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: श्रीरिसहेसर पयकमल; अंति: ए चौपाई वीकानेर वणाई, ढाल-३१, गाथा-४९१.
५९८४३, (+) पट्टावली, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. २६. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, दे.. (२५X११.५, ११-१६४३५-६०)
पट्टावली*, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदिः श्रीवर्धमानस्वामी, अंतिः श्रेयसे भद्रं भवतु.
7
"
५९८४४. (*) विविधवोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६१२, १५X४२). ५८ बोल संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: उछेद आंगुले करी; अंतिः वानर बेठा ते जाणवु. ५९८४५. चंदराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १८. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे. (२५x१२, १०X३३).
"
"
"
चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धरा धिवति, अंति: (-), (पू.वि. खंड-१,
ढाल- १२, गाथा- ८ तक है.)
५९८४६. (+) जंबूद्वीप विचार, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १२, ले. स्थल. ध्रांगधा, प्रले. मोती हीरा वोहरा, पठ. मु. भूषण मुनि, अन्य. मु. धारसी ऋषि (गुरु मु. वसरामजी स्वामी); गुपि. मु. वसरामजी स्वामी; अन्य. श्रावि. पाली रुगनाथ जीवराज शाह, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित कुल नं. ३२५, जैवे. (२५४११.५, ९-१९३४३३-३५)
लघुसंग्रहणी - खंडाजोयण बोल* संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीप एक लाख अंतिः हजारने नेऊ नदीउ थई, ५९८४८. (+) चौमासी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९३५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्रले. मु. रणधीर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे. (२४.५x११, १५X४०-४४).
",
चातुर्मासिक व्याख्यान, मा.गु., प+ग, आदि: प्रणम्य परमानंद, अंति: तिनौ चौमासी जाणवी.
५९८४९. (*) परमार्थशतक, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १६, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४१२,
,
७९
पुहिं, पद्य, आदि अनुभी अभ्यास में अंतिः नमी २. पे. नाम. वैदिक ग्रंथोद्धृत जैनाचार श्लोक संग्रह, पृ.
सीस तिकाल, गावा- १०३. १६आ, संपूर्ण.
पुराणहुंडी, मा.गु., सं., पद्य, आदिः यस्मिन् गृहे सदा, अंतिः तेषां गंगा पदे पदे, श्लोक ५.
५९८५०. (+) नवतत्त्व प्रकरण व चार निक्षेपा विचार, संपूर्ण, वि. १७९६, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. २, ले.स्थल. नवानगर, प्रले.मु. आसकरण ऋषि, पठ. मु. जगनाथ ऋषि (गुरु मु. आसकरण ऋषि, स्थानकवासी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संशोधित., प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५X११.५, १७५४-५७).
१. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, पृ. १अ - १३आ, संपूर्ण.
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा, अंति: तिन्निवि एए उवाएया, गाथा- ६०. नवतत्त्व प्रकरण घालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पहेलो जीवतत्त्व बीजो अंति: जिमांहि मोक्ष जाई. २. पे. नाम. चार निक्षेपा गाथा, पृ. १३आ, संपूर्ण.
४ निक्षेप विचार, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: नामजिणाजिणनामा ठवणा; अंति: जीवो भाव जिण समोवसरण, गाथा - १. ५९८५१. आवकपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३, पठ. श्रावि. साकरबाई, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., (२५x११,
९४२४).
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श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०, अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ५९८५२. सत्तरभेदी पूजा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८१ वैशाख शुक्ल, १४, बुधवार, मध्यम, पृ. १५, जैवे. (२५.५४१२.५, ३-५X३५-४०).
१७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतमुखकजवासिनी, अंतिः सकल० सफल चिणीयो रे, ढाल १७, गाथा - १०४.
१७ भेदी पूजा - टबार्थ, ग. सुखसागर, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत जिनेश्वर, अंति: तिम मे स्तव्यो.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
५९८५३. कल्पसूत्र का बालावबोध पीठिका, संपूर्ण, वि. १८६०, आषाढ़ शुक्ल, ११, रविवार श्रेष्ठ, पृ. १३, ले. स्थल. जिरण, पठ. मु. माणकचंद (गुरु मु. महानंद) प्रले. मु. महानंद (गुरु मु. रायचंद); गुपि. मु. रायचंद (गुरु मु, मीवाचंद): मु. मीयाचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५X१२, १३X२६).
कल्पसूत्र - बालावबोध, मा.गु. रा. गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं अंतिः (-), प्रतिपूर्ण
"
५९८५४. मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११-२ (१ से २) =९, जैवे. (२५x११, १४४३८).
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मानतुंगमानवती रास, उपा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदि: (-); अंति: अभयसोम० मतिमंदिर लहै, ड- १४, (पू. वि. गाथा ४१ अपूर्ण से है.)
५९८५५. छूटक बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९५४ माघ शुक्ल, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. मु. जेचंद, प्र. ले. पु. सामान्य, दे.,
(२५.५X१२, १८X३२-३६).
बोल संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., गद्य, आदि छ कारणे साधुने आहार; अंतिः पाले सदगुरुनो मार्ग. ५९८५६. माणिकदेवी रास, संपूर्ण, वि. १८४०, श्रावण कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ९, जैदे., (२५. ५X१२, ११x२५-३१).
दानशीलतपभावना रास, मु. निहालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७९८, आदि: श्रीगुरु गौतम पय; अंति: निहालचंद आनंद रे, ढाल - ५, गाथा - १२१.
"
५९८५७. (-) कोणिक चरित्र, संपूर्ण, वि. १९४३, आषाढ़ कृष्ण, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. मु. लक्ष्मीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, प्र. ले. श्लो. (८७३) मुरखकुं पोथी दहि, (११२६) ईक पोथी ईक पदमणी, दे. (२४.५X१२, १२४३५). कोणिकराजा रास, मा.गु., पद्य, आदिः सुखे राजा श्रेणेक, अंति: रसाल परीग्रह एहवो ए, ढाल - १४. ५९८५८. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९७७, श्रावण अधिकमास कृष्ण, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १५- ३(१,१३ से १४)=१२, ले. स्थल. जालोर, प्रले. मु. मंगलचंद्र (गुरु आ. प्रसन्नचंद्र सूरि); राज्यकालरा उमेदसिंह राठौड, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५X११.५, १०x४२-४६).
साधु प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., पग, आदि: (-); अंतिः दुक्कडं कहणो, (पू.वि. "सगं अन्नत्थउससिणणं" पाठ से
יי
है.)
५९८५९. सूक्तमुक्तावली, संपूर्ण, वि. १८६३, पौष शुक्ल, १०, रविवार, मध्यम, पृ. १०, ले. स्थल. अर्जुनपूर, प्रले. मु. शिवजी माजी ऋषि; पठ. मु. उदयचंद, मु. रूपचंद, मु. मोतीचंद (गुरु मु. शिवजी मालजी ऋषि); मु. पितांबर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. श्रीमहावीर प्रसादात्, प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५.५X११.५, १३x४३).
सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु. सं., पद्य, वि. १७५४, आदिः सकलसुकृतवल्लिवृंद, अंति: केसरविमलेन विबुधेन, वर्ग ४, श्लोक १७६.
५९८६०. दशविध यतिधर्म सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९१७, आश्विन कृष्ण, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले. स्थल. पालण, प्रले. लक्ष्मीचंद तलसी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२१.५x११.५, १०x३०).
१० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुकृतलता वन सींचवा; अंति: ज्ञानविमल० अनुभवें, ढाल ११, गाथा- १३६.
५९८६१. (a) सिंहासनवत्रीसी कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७०-५८ (१ से ५८ ) = १२. पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१२.५, १८३०).
सिंहासनवीसी कथा, मा.गु., पद्य, आदि (-) अंति: (-) (पू.वि. कथा १८ अपूर्ण से कथा २५ अपूर्ण तक है.) ५९८६२. मंगलकलश रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैवे. (२६११.५, १४४४९).
मंगलकलश रास, मु. दीप्तिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७४९, आदि: प्रणमुं सरसति स्वामी, अंति: (-), (पू.वि. ढाल - १२ अपूर्ण तक है.)
५९८६३. (+) स्तवन चोवीसी, संपूर्ण, वि. १७९२, मार्गशीर्ष शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्रले. मु. भूषणदास (गुरु मु. थोभण); गुपि. मु. थोभण (गुरु मु. लाधो साहा); मु. लाधो साहा, पठ. श्रावि. मानकुंअर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत., जैदे., (२५X११.५, ११×३२).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
स्तवनचौवीसी, मु. लाधो साहा, मा.गु., पद्य, वि. १७७९, आदि: प्रभुजी आदिसर अरिहंत; अंति: लाधो० रे गुण जिन
तणा, स्तवन-२४. ५९८६४. वीरजिनवरनिर्वाण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, जैदे., (२६४१२, १४४२८).
महावीरजिन निर्वाण स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सच्छांतिकांतिसमता; अंति: देवचंद्र० विसाला
रे, ढाल-१२. ५९८६५. गुणठाणा बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९२८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १२-२(१० से ११)=१०, ले.स्थल. पोरबंदर, प्रले. मोरारजी भगवानजी जोसी; पठ. सा. रूडाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, १६४३४). १४ गुणठाणा २१ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: नाम १ लक्खण गुण २; अंति: निमत्यते कुसल होजो, (पू.वि. द्वार-१५ अपूर्ण
से द्वार-२१ अपूर्ण तक नहीं है.) ५९८६६. (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ११, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, २०४५२). १. पे. नाम. पंचमहाव्रत सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ५महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरवेरे; अंति: कांतिभणै ते सुख लहे,
ढाल-५. २.पे. नाम. सीलनी नववाडनी सज्झाय, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीनेमीसर चरण युग; अंति: जिन हो यूगति नववाड,
ढाल-११, गाथा-९७. ३. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. पंचमीतिथि सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहगुरु चरण पसाउले रे; अंति: कांतिविजय गुण गाय रे,
गाथा-७. ४. पे. नाम. पांचमा आरानी सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण, प्रे. मु. विद्याविजय, प्र.ले.पु. सामान्य.
पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहे गौतम सुणो; अंति: जिनहर्ष० वयण रसाल, गाथा-२०. ५. पे. नाम. धन्नासालीभद्रनी सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अजीया जोरावर कारमी; अंति: उदयरत्न० भवजलतीर रे,
गाथा-७. ६. पे. नाम. मेतार्यऋषिनी सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मेतारजमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, पुहिं., पद्य, आदि: समदम गुणना आदरुजी; अंति: राजविजय० तणी सझाय,
गाथा-१३. ७. पे. नाम. नामेलापुत्रनी सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण.
इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामेलापूत्र जाणीयै; अंति: लबधवीजे गुण गाए, गाथा-९. ८. पे. नाम. श्रीजीवशिख्यानी सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण. ___ औपदेशिक सज्झाय-निंदात्यागे, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: गुण छे पुरा रे; अंति: सहजसुंदर० थइ उजमाल,
गाथा-६. ९. पे. नाम. नववाडनी सज्झाय, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: उदयरतन राखो निरमली,
ढाल-१०, गाथा-४३. १०.पे. नाम. श्रीथुलभद्रनो नवरसो, पृ. ६आ-९आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि नवरसो ढाल व दूहा, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति
दायक सदा; अंति: उदय० भणतां मंगलमाल, ढाल-९, गाथा-७४. ११. पे. नाम. छंदज्ञान, पृ. ९आ, संपूर्ण.
आ. पिंगलाचार्य, मा.गु., पद्य, आदि: पंच दी लहूं अंकडो; अंति: इम कवी नीश्चे जाण, गाथा-२.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५९८६७. स्तुति, स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. ७, प्रले. मु. मनसुख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. *पत्र
अबरख युक्त है., जैदे., (२५.५४१२, ८x२०). १. पे. नाम. ऋषभदेवजी स्तुति, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति, पुहिं., पद्य, आदि: उज्वल सिखरी दिणंदो; अंति: दिन दिन तेज सवाया हो, गाथा-११. २. पे. नाम. पार्श्वनाथजिन स्तवन, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. बखतावर, मा.गु., पद्य, आदि: चरणकमल जिनवरतणारे; अंति: तावर० सफल करो जिनराय,
गाथा-५. ३. पे. नाम. सररी सज्झाय, पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण.
संवर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर गौतमने; अंति: मुगत हेला युतिरो, गाथा-६. ४. पे. नाम. सेत्तुंजतीरथ गीत, पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सेतुजे रिषभ समोसर्या; अंति: समयसुंदर कहे
एम, गाथा-१६. ५. पे. नाम. नारीरूप सज्झाय, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण.
मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: चित्रलिखित जे पूतली; अंति: कहै जिनहर्ष प्रबंध, गाथा-७. ६.पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. ८अ-९अ, संपूर्ण.
मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: करमदल मलकुं क्षय; अंति: जिनदास० मत कोई संका, गाथा-४. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ९अ-११अ, संपूर्ण.
मु. केसर ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४२, आदि: प्रणमुपास जिनेसरु; अंति: ऋख केसर मनचंगैरे, गाथा-८. ५९८६८. चंदनमलयागिरी वार्ता, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, दे., (२५.५४११, १२४४२).
चंदनमलयागिरिरास, मु. भद्रसेन, पुहिं., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीविक्रम; अंति: भद्रसेन० सुवंछित भोग, अध्याय-५,
गाथा-२००. ५९८६९. आगमसारोद्धार का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८, जैदे., (२५.५४१२, ११४३०).
आगमसारोद्धार-स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: तिहां प्रथम जीव; अंति: (-),
(अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सात नय दृष्टांत अनुयोगद्वार अपूर्ण लिखा तक है.) ५९८७०. स्तवन व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.७, कुल पे. ३४, प्रले. मु. रामरतन (गुरु मु. लालचंद,
स्थानकवासी), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११, २६४५७-६२). १. पे. नाम. नागला ढाल, पृ. १अ, संपूर्ण.
जंबूस्वामी५ भव सज्झाय, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसारद प्रणमुंहो; अंति: होके मुनीवर रामजी, गाथा-३४. २. पे. नाम. जीव तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मानवभव दर्लभता सज्झाय, नरसिंघदास, रा., पद्य, वि. १८७९, आदि: दुलभ लाधो मानवभव का; अंति:
नरसींगदास० एह अभ्यास, गाथा-९. ३. पे. नाम. धरमरूचि तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. धर्मरुचिअणगार सज्झाय, मु. रतनचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८६५, आदि: चंपानगर अनोपम सुंदर; अंति: रतनचंद०
नीसतार हो, गाथा-१५. ४. पे. नाम. आतमबोध तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
वैराग्य सज्झाय, शिव, मा.गु., पद्य, आदि: परमातम प्रणमी करी; अंति: काइ धारो चित्त मझार, गाथा-२३. ५. पे. नाम. नेमीजी नवभव तवन, पृ. २अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: क्यु आया किम फीर; अंति: मोटी जनममरणरी खोडो, गाथा-२०. ६. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: सिद्धारथ कुल दीपक; अंति: रायचंद० प्रभुजी पीर, गाथा-१६.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ ७. पे. नाम. आणंदरी दो ढाल सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. आणंदश्रावक सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: आज पछे अण तीरथी रे; अंति: चौथमल०
उलास हो सामी, ढाल-२, गाथा-२३. ८. पे. नाम. कामदेवश्रावक सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. कामदेव श्रावक सज्झाय, मु. खुशालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि: एक दिन इंद्र प्रसंसी; अंति: जी कुसालचंद
प्रकाश, गाथा-१६. ९. पे. नाम. जंबुकुंवर सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण.
जंबूस्वामी सज्झाय, मु. बुधमल, मा.गु., पद्य, आदि: जंबुकुंवर वैरागीया; अंति: बुधमल जोडी छे ढालोजी, गाथा-१२. १०.पे. नाम. अरणक सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. खीमा, पुहिं., पद्य, आदि: काचा था सो चल गया हो; अंति: आयो जिण दीस जाय रे,
गाथा-१२. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाखीणो सोहावें जिनजी; अंति: दीपविजय०बंदु
बिजयहीर, गाथा-७. १२. पे. नाम. भवदेवनागीला सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. भवदेवनागिला सज्झाय, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७२, आदि: भवदेव जागी मोहनी तज; अंति:
रतनचंद० निज सीस नमाय, गाथा-१२. १३. पे. नाम. सुभद्रासती सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर सोधे इरज्या; अंति: कविअण० केरइं ठाम, गाथा-१६. १४. पे. नाम. राधाकृष्ण बारमासो, पृ. ४अ, संपूर्ण.
रतनासागर, पुहिं., पद्य, आदि: पेलो रे महीनो सखी; अंति: रतन० वीछोहो जण पडीयो, गाथा-१६. १५. पे. नाम. नववाड सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमो अधेनउत्ताधेनको; अंति: रतनचंद भणे रे उल्लास, गाथा-१२. १६. पे. नाम. प्रियदर्शनासती सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: सतीया ए समीप रुपोयो; अंति: ध्या हो सीखेवोजी पार, गाथा-११. १७. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मु. कुसालचंद, रा., पद्य, आदि: अहो अहो उग्रसेन घर; अंति: वांद्या तणी वार, गाथा-११. १८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: संत चरणकी जाउ बलिहार; अंति: रत तेरी लागे प्यारी, गाथा-४. १९. पे. नाम. नारीपरिहार पद, पृ. ४आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-नारीपरिहार गर्भित, पुहिं., पद्य, आदि: मांडीरी घंटा घरररर; अंति: र रंगमहेल चुवे झरररर, गाथा-४. २०. पे. नाम. प्रियतमविरह पद, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: झरी झरी मेरी नाव; अंति: मारे साइ उतारो पार, गाथा-६. २१. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण.
मुहम्मद काजी, पुहिं., पद्य, आदि: गाफल वंदे नीदडली; अंति: मेमंद०बीडली पार उतार, गाथा-५. २२. पे. नाम. भक्ति पद, पृ. ५अ, संपूर्ण.
सूरदास, पुहिं., पद्य, आदि: माखण मेरो खायो मटकी; अंति: सूरदास० खेले होरी, गाथा-४. २३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५अ, संपूर्ण.
गोपीचंद, पुहिं., पद्य, आदि: सोनारी कुंडीरे गोपी; अंति: देसी हमने रोटी रे, गाथा-४२. २४. पे. नाम. औपदेशिक बारमासो, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक बारमासा, मु. कवियण, पुहि., पद्य, आदि: गुणनीद्धे गुणमत लागु; अंति: कवीयण भाखे छे एमतो,
गाथा-१५. २५. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: नगर दवारकासु कसन; अंति: बरोबर क्युं हो जाय, गाथा-१२. २६. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. ६अ, संपूर्ण.
पुहि., पद्य, आदि: जी मात जसोदा जलभर; अंति: सांज पड्या लादीनी, गाथा-९. २७. पे. नाम. समवसरण गीत, पृ. ६अ, संपूर्ण.
सुमतिजिन समवसरण गीत, मा.गु., पद्य, आदि: आज हुंगइथी समोसरणमे; अंति: ले जे उतरे भवपारो रे, गाथा-८. २८. पे. नाम. नेमजीरो व्यावलो, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. नेमिजिन व्याहलो, मु. गुमानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: छपनकोड जादव मिल आया; अंति: गुमानचंद सहु
चतलाइ, ढाल-४, गाथा-३०. २९. पे. नाम. आवतीचोवीसी स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. अनागतचौवीसी स्तवन, मु. रामरतन, मा.गु., पद्य, वि. १९०६, आदि: श्रीसंतजिनेसर सोलमा; अंति: राम० हर्ष उलासो
रे, गाथा-२७. ३०. पे. नाम. ८ मदस्वरूप वर्णन, पृ. ७अ, संपूर्ण.
८ मदस्वरुप विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मदजात मेतार्जवत् कुल; अंति: ठकुराइमद रावणवत्. ३१. पे. नाम. औपदेशिक पद-कायाअनित्यता, पृ. ७अ, संपूर्ण..
मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: काहे काया रूप देखी; अंति: जिन० सनतकुमार की, गाथा-१. ३२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ७अ, संपूर्ण.
मारीच, मा.गु., पद्य, वि. १५२९, आदि: गंगानायो नी गोमती; अंति: पनरे एगुणतीसी नाठी, गाथा-३. ३३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ७अ, संपूर्ण.
मु. माणकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: छे डारी तो सुद नही; अंति: माणकचंद० मत परणो कोइ, गाथा-४. ३४. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ७अ, संपूर्ण.
मु. रामरतन, पुहिं., पद्य, आदि: भावधरी जीन पुजीये; अंति: रामरतन० सघलो कामोजी, गाथा-९. ५९८७१. समकितभेद व मार्गानुसारि बोल सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१२,
१२४२८-३२). १. पे. नाम. समकितनो भेद, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण.
सम्यक्त्व विचार, मा.गु., गद्य, आदि: एहवे शिष्य हाथ जोडने; अंति: स्वरूप विचारवो. २. पे. नाम. मार्गानुसारि बोल, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
मार्गानुसारी ३५ गुण, सं., पद्य, आदि: न्यायसंपन्नविभवः; अंति: गृहधर्माय कल्पते, श्लोक-१०. ३. पे. नाम. मार्गानुसारी बोल का बालावबोध, पृ. ५आ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मार्गानुसारी ३५ गुण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: स्वामीनो द्रोह करी; अंति: (-), (पू.वि. आठवाँ गुण वर्णन
___ अपूर्ण तक है.) ५९८७२. द्वादशभावना सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८०, आषाढ़ शुक्ल, ९, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. ग. ऋद्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीकल्याणपार्श्वनाथ प्रसादात्, जैदे., (२३४१२, १३४२५-३३). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पास जणेशर पाय नमी; अंति: वन भणी
जेसलमेरू मझार, ढाल-१३, गाथा-१२८, ग्रं. २००. ५९८७३. श्रावकपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.८, दे., (२५.५४१२,१०x४०).
श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दसणमि०; अंति: अजाणताहुउ होइ.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
५९८७४. (+) महावीरस्वामी स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित., दे.,
(२४.५X११.५, १०X३६).
महावीरजिन स्तवन- २७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति भगवति देउ मति; अंति: (-), (पू. वि. गाथा ८४ अपूर्ण तक है.)
५९८७५. अवंतीसुकुमाल रास तेरडालीया, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६, वे. (२५.५४१२, १५X३३-३५)
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ढाल - १३, गाथा - १०७.
५९८७६. पंचपरमेष्ठि गुणवर्णन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे. (२५.५x१२, १०x३४).
"
अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनीवर आर्य सूहस्ती, अंति: जीनहर्ष० सुख पावे रे,
८५
५ परमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि बारस गुण अरिहंता, अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. मृषावाद व्रत वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.)
५९८७७. कर्मप्रकृति बोल, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. बीकानेर, प्रले. सा. रखुबाई, पठ. सा. कलुबाई (गुरु सा. अजवाई): गुपि. सा. अजवाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५.५x११.५, १४४३०).
,
८ कर्मप्रकृति विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: पेहलु ज्ञानावरणीय, अंतिः नगर दाह सरिखो विकार, ५९८७८. (+१) सज्झाव व जिनस्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८ कुल पे. ३०, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१२, १७X५७).
१. पे. नाम. सम्यक्त्वना सडसठ बोल, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण.
"
सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्म, वि. १८वी आदिः सुकृतवल्लि कादंबिनी अंति वाचक जस इम बोले रे, ढाल-१२, गाथा-६८.
२. पे. नाम. नारी हरियाली, पृ. ३अ, संपूर्ण.
नारी प्रहेलिका हरियाली, वा. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एकनारी अतिदीपती रे; अंति: गुण० नही संदेह रे,
गाथा- ७.
३. पे. नाम. कुंथुजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण.
पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: रात दिवस नित सांभरो; अंति: रे पदमने मंगलमालो ला, गाथा-७. ४. पे. नाम. सर्वज्ञ स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे साहिब तुमहि, अंति: जस कहे ० तुम तारणहारा, गाथा-५.
५. पे. नाम. सीमंधर स्तवन, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण, वि. १८३६, फाल्गुन कृष्ण, १३, प्रले. पं. विनयानंद, प्र.ले.पु. सामान्य. सीमंधरजिन विनती स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुर्हि, पद्म, आदि: सीमंधर विनती सुणि अंतिः नय० कहु क्या बहु
"
तेरा, गाथा-५.
गाथा - ९.
८. पे. नाम. लोभ परिहार स्वाध्याय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण
६. पे. नाम, औपदेशिकहरियाली सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण
औपदेशिक हरियाली, मु. जिनेंद्रसागर, पुहिं., पद्य, आदि कहिज्यो रे पंडित ते, अंतिः जिनेंद्रसागर० वखाणे, गाथा- ७. ७. पे. नाम. आध्यात्मिक हरियाली स्वाध्याय, पृ. ३आ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक हरियाली, वा. गुणविजय, मा.गु, पद्य, आदि एक अचंभो जगमां मे; अंति: गुण० कमलविजय गुरु सीस,
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औपदेशिक सज्झाय- लोभपरिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तुम्हे जोज्यो ते; अंति: उदयरतन० बांदु सदा रे, गाथा- ७.
९. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्म, आदि: वनिता ते प्रीउने; अंति उदयरतन० पामे परम आनंद, गाथा-५. १०. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: धर्मजिणंद तेरे धर्मक; अंति: न्यायसागर० पदवी मागई, गाथा-१०. ११. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: निजर भरि जोवो नहीं; अंति: न्यायसागर०सिवपुर वास, गाथा-५. १२. पे. नाम. बाहुजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. ।
बाहुजिन फाग, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: परणे रे बाहू रंग; अंति: न्याय जिन आणि खरी रे, गाथा-९. १३. पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: कुंन रमे चित कौन रमे; अंति: न्यायसागर० कुंन नमे, गाथा-६. १४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मु. अमृत, पुहिं., पद्य, आदि: रित वसंत आई मेरी; अंति: अमृत जिनगुण गाय, गाथा-५. १५. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती स्तवन, मु. मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल बेठी उंची गोखड; अंति: मतिहस कहै धन तेह, गाथा-७. १६. पे. नाम. नेमि स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती स्तवन, मु. दानविजय, पुहिं., पद्य, आदि: राजीमती कहे मेरी; अंति: दानविजय घरि मंगल होय, गाथा-७. १७. पे. नाम. अभिनंदन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
अभिनंदनजिन स्तवन, वा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु मुझ दरिसन मिली; अंति: मानविजय०प्रभु ध्याने,
गाथा-७. १८. पे. नाम. कुंथुनाथ जिनस्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. कुंथुजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कुंथु जिनेसर जाणज्यो; अंति: लाल मानविजय उवझाय रे,
गाथा-७. १९. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
सुमतिजिन स्तवन-पिंडस्थध्यान गर्भित, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रूप अनूप निहाल सुमति; अंति:
___ शांतिविजय० हो लाल, गाथा-५. २०. पे. नाम. जिनमंदिर कर्त्तव्य स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण.
मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: करि निसिही देहरामाह; अंति: लाल नित मेवारे, गाथा-७. २१. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-कापरडामंडन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अंगी सुरंगी अंगीयां; अंति: जिनहर्ष० श्रीपास,
गाथा-७. २२. पे. नाम. आत्मशिक्षा स्वाध्याय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चतुर तुं चाख मुझ सीख; अंति: रिद्धिविजय० सयल सीझे,
गाथा-५. २३. पे. नाम. जिन पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. कनककुशल, मा.गु., पद्य, आदि: जिनकी अंग प्रभा उमा; अंति: कनककुसल गुन गाय जी,
गाथा-५. २४. पे. नाम. जिन पद संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: जब जिनराज कृपा करे; अंति: नय० जिन ओपम आवे,
गाथा-५. २५. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण.
नेमराजिमती स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: स्यानै आवीनै मुझनै; अंति: उदयरतन० मुगतै सिधासी, गाथा-७. २६. पे. नाम. बाहुबलि मुनि स्वाध्याय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
बाहुबली सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबलि धरम ध्यानै; अंति: मोहन० समकित सिंधुरा,
गाथा-६, (वि. प्रतिलेखक ने दो-दो गाथाओं को एक गिना है.) २७. पे. नाम. गौडीजिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अदभूत गुरुगुण धाम मद; अंति: कांतिविजय० पास
वधायो, गाथा-७. २८. पे. नाम. सुंदरीमहासती स्वाध्याय, पृ. ७आ, संपूर्ण. सुंदरीसतीतप सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सामनी करो पसा; अंति: कांतिविजय०शिरनामी
रे, गाथा-८. २९. पे. नाम. मौनएकादशी स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज एकादशी नणदल मौन; अंति: उदयरतन० लीला
लहसी, गाथा-७. ३०. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. नेमराजिमती नवभव स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३७, आदि: नेमजी आव्या रे सहसाव; अंति:
पद्मविजय जिनरायने, गाथा-१७. ५९८७९. (#) नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-१(७)=७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १४४३९). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: जस० तणा नाथ
वानजीवो, पूजा-९, (पू.वि. पूजा-८ अपूर्ण से पूजा-९ अपूर्ण तक नहीं है.) ५९८८०. नवपद के चैत्यवंदन, स्तवन व स्तुतियां, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१२, ११४३४). नवपद के चैत्यवंदन स्तवन वस्तुतियां, मु. हीरधर्म; मु. कुसल, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय श्रीअरिहंत; अंति: (-),
(पू.वि. तप पद स्तवन गाथा ५ अपूर्ण तक है.) ५९८८१. (+) नवतत्त्व तेरह द्वार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१२, १०४३५-४२).
नवतत्त्व १३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीव ते चेतन अजीव ते; अंति: (-), (पू.वि. द्वार-१० अपूर्ण तक है.) ५९८८२. (#) स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८५१, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. श्रीभटेवा पार्श्वनाथ प्रसादात, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १४४३९-४२).
स्तवनचौवीसी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सुगुण सोभागी; अंति: कांतिविजय० ते वरे रे, स्तवन-२४. ५९८८३. (#) स्तवन, गीत व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ५, प्रले. मु. लाधाजी (गुरु पं. नेमविजय गणि);
गुपि.पं. नेमविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ११४२६). १. पे. नाम. भिनमाल पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भिनमाल, मु. पुण्यकमल, मा.गु., पद्य, वि. १६६१, आदि: सरसति भगवति नमीय पाय; अंति:
पुण्यकमल भवभय हरो, गाथा-५३. २. पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. हितविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एक पुरुष मे नवलो; अंति: हित पभणे वीतरागेरे, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: जाग जाग रेण गइ भोर; अंति: ज्यू नीरंजन पावे रे, गाथा-४. ४. पे. नाम. प्रभात गीत, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
म. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: आजकाल करत प्यारे काल; अंति: रूपचंद तन कि बात है. गाथा-४. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदिः आप ही ख्याल खेलंदा, अंति: रूप० जीत तुम्हारी है, गाथा - ३. ५९८८४. (४) सिद्धाचल तीर्थमाला, संपूर्ण वि. १८५३, कार्तिक कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल. सूरत (गोपीपुरा), प्रले. मु. केशरचंद (गुरु मु. कल्याण); गुपि. मु. कल्याण; पठ. श्रावि. जयतीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४१२, १४४३९).
शत्रुंजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरंग, मा.गु, पद्य वि. १८४०, आदि: विमलाचल वाला वारुरे, अंतिः अमृत० गिरिराया रे, ढाल - १०.
५९८८५. (४) उपधानविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७. प्र. वि. यंत्र सहित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १७४३६).
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उपधानादि विधि संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: प्रथम नोकारनो उपधान; अंति: बे आंबीले १ उपवास. ५९८८६. चतुर्विशतिजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., ( २६१२, १३X३१). १. पे. नाम. चतुर्विंशति जिन नमस्कार, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण.
नमस्कारचीवीसी, मु. लखमो, मा.गु., पद्य, बि. १६वी, आदि: पडम जिणवर पडम जिणवर, अंति: लखमण० सफल करूं संसार, गाथा २५.
२. पे. नाम. २४ जिन स्तुति, पृ. ४अ - ६आ, संपूर्ण.
मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: कनकतिलक भाले हार हीइ, अंति: मुनि लावण्यसमदं भणै, गाथा-२८. ५९८८७. (#) विहरमानजिन स्तवनवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ८- १ (७)= ७, पठ. श्राव. मकन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२६.५x११.५, ११४३३-३६). विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुष्कलवय विजयें जाया अंतिः वाचक
""
यश इम बोलई रे, स्तवन-२०, ( पू. वि. स्तवन- १६ अपूर्ण से स्तवन- १९ अपूर्ण तक नहीं है.)
५९८८८. (#) तेइसबोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५X१२, १०X३२).
५ शरीर २३ बोल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम शरीर ते शरीर, अंति: (-), (पू.वि. केवली समुद्धात भेद अपूर्ण क
है.)
५९८८९. वीसस्थानक तप ओली विधि, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६ प्र. वि. कोष्ठक सहित जैदे., (२५.५X१२,
1
५९८९०.
१३-१७४२८-३२).
२० स्थानकतप विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नाण की क्रिया; अंति: (-).
(+#) बूढा चोपई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५X१२, ११४३१-३४).
बुढापा रास, मु. चंद, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: दया ज माता वीनवु; अंति: चंद० कलजुग नीसाणी, ढाल - २२. ५९८९१. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ५, दे., (२५.५x१२, १३X३८).
१. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन- छमासीतप वर्णनगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि द्यो मति; अंति: आपो स्वामी सुख घणा, गाथा ११.
२. पे. नाम. चौदपूर्व स्तवन, पृ. १आ- ३अ संपूर्ण.
१४ पूर्व स्तवन, आ. सौभाग्यसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८९६, आदि: जिनवर श्रीवर्धमान, अंति: हांजी संघनै आनंद करै,
ढाल- ३.
३. पे. नाम. तिलकतपस्या स्तवन, पृ. ३अ ४अ, संपूर्ण, वि. १९२६, ले. स्थल. अजीमगंज.
तिलकतप स्तवन, ग. विजयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सासण देवी सारदा वाणी; अंति: विजयविमल० जिन कथा,
ढाल - २, गाथा - १८.
४. पे. नाम. बारमासी तप, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
१२ मासी तप स्तवन, मु. विजयविमल, मा.गु., पद्य, वि. १९०२, आदि: त्रिभुवन नायक तु; अंति: सुपसाय
विजयविमल वरे, गाथा-१५. ५. पे. नाम. पखवासा स्तवन, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. पाक्षिकतपवृद्ध स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जंबुद्वीप सोहामणो; अंति: समयसुंदर० मनह जगीस,
ढाल-२,गाथा-१४. ५९८९२. (+#) चौदगुणठाणै जीवभेद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १३४४४-५०). १४ गुणठाणा जीवभेद, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम मिथ्यात्व गुण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
गुणस्थान-११ तक लिखा है.) ५९८९३. (#) आवश्यकसूत्र सह बालावबोध व टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५१-४६(१ से ४६)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ५-१७४२९-३८).
आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-५ सूत्र "धिइए धारणाए अणुप्पेहाए" से
"परमट्ठनिट्ठिअट्ठा सिद्धासिद्धि" तक है.) आवश्यकसूत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
आवश्यकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५९८९४. २४ तीर्थंकरों के नाम, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२५४१२, १४४२२-३७). २४ तीर्थंकरों के नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण, मा.गु., को., आदिः (-); अंति:
(-). ५९८९५. (#) बूढा चरित्र, संपूर्ण, वि. १९३३, श्रावण शुक्ल, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. श्रावि. लीछमाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, १३४३८).
बुढापा रास, मु. चंद, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: दया ज माता वीनवु; अंति: चंद० कलजुग नीसाणी, ढाल-२२. ५९८९६. हंसराजवच्छराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४१२, २५४४४).
हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-१ ढाल-२
अपूर्ण से खंड-२ ढाल-६ अपूर्ण तक है.) ५९८९७. (+) प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक बीजक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १७X४१-४७).
प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक-बीजक, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गद्य, वि. १८५३, आदि: पहिलै बोलै तीर्थंकर; अंति: (-),
(अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बोल-४८ अपूर्ण तक लिखा है.) ५९८९८. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १८९२, चैत्र शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. पोरबंदर, प्रले. मु. जयराम ऋषि; पठ. सा. जसोदा बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १५४३०). साधुवंदना लघु, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमो अनंत चोवीसी ऋषभ; अंति: जैमल एही
तिरणनो दाव, गाथा-१११, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा लिखा है.) ५९८९९. आठकर्मप्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १८६८, पौष शुक्ल, १५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, अन्य. सा. अजबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३१).
८ कर्मप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: समकित वेदनीनो ए अर्थ; अंति: प्रकार भोगवोना कहा. ५९९००. (+) मार्गणाद्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १४-३०x४५).
६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: गइ इंदि काए जोए वेय; अंति: का पर्यावा अनंतगुणा. ५९९०१. होलीपर्वकथा का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९५१, चैत्र कृष्ण, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. कलकत्ता, प्रले. मु. ऋषभचंद्र; पठ. मु. मुकतचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११.५, १३४३६).
होलिकापर्व कथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीआदिश्वर प्रणमीकै; अंति: भणी भाषा वणाई छै.
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९०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५९९०२. (-) सुभद्रापंचढालीयो, संपूर्ण, वि. १९४३, आषाढ़ कृष्ण, ४, रविवार, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. नीबोल,
प्रले.पं. लक्ष्मीचंद (नागोरी तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, १२४२४-२८). सुभद्रासती पंचढालीयो, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७०, आदि: सिवदायक लायक सदा; अंति: चंदे ढाल पांचु
एकही, ढाल-५. ५९९०३. (+) चंदराजा चरित्र, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९३-१(१)=९२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १५४४५-५५).
चंद्रराजारास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: (-); अंति: मोहनविजये० गुण चंदना, उल्लास-४,
___ गाथा-२६७९, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-८ अपूर्ण से है.) ५९९०४. (+) कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०८-३७(१ से ३७)-७१, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, १०४२६-३१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. देवानंदामाता के गर्भ में अवतरण के प्रसंग से
त्रिशलामाता के दोहला के प्रसंग तक का पाठांश है.)
कल्पसूत्र-बालावबोध *, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५९९०५. (+) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८८८, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६२, ले.स्थल. मंदसौर, प्रले. पं. खुबचंद
(अज्ञा. पं. मूर्तिकुशल, खरतरगच्छ); गुपि. पं. मूर्तिकुशल (गुरु मु. ज्ञानप्रिय); मु. ज्ञानप्रिय (गुरु मु. वाणारसजी); मु. वाणारसजी (गुरु मु. कुसलसोभाग्य); मु. कुसलसोभाग्य (गुरु उपा. गजवल्लभजी); उपा. गजवल्लभजी, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं.१७५०, जैदे., (२५.५४१२,१३४३४-३९). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण
तणी; अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४, गाथा-१८२५, ग्रं. १७५०. ५९९०६. (+) कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९१५, माघ कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १८४-१३१(१ से ६१,६५ से १३४)=५३,
ले.स्थल. विक्रमपुर, लिख.पं. देवराज (गुरु पं. प्रतापसौभाग्य, खरतरगच्छ); गुपि.पं. प्रतापसौभाग्य (गुरु ग. जयकीर्ति, खरतरगच्छ); ग. जयकीर्ति (गुरु वा. अमृतसुंदर, खरतरगच्छ); वा. अमृतसुंदर (गुरु मु. अमरविमल, कीर्तिरत्नसूरिशाखा गच्छ); राज्ये आ. जिनसौभाग्यसूरि (खरतरगच्छ); राज्यकालरा. सिरदारसिंह, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं.५५२५, दे., (२५४१२, १३४२९-३१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६,
(पू.वि. भगवान महावीरस्वामी का जन्मप्रसंग अपूर्ण है व भगवान महावीरस्वामी के निर्वाण का प्रसंग अपूर्ण से है.)
कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: जयवंतो प्रवो छै. ५९९०७. विक्रमसेनराज चौपाई, संपूर्ण, वि. १८६९, माघ शुक्ल, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४४, ले.स्थल. रासनगर, प्रले. मु. महिमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १३४३८). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सुखदाता संखेश्वरो; अंति: मानसागर० दोलत
दाइजी, ढाल-५२, गाथा-११६२. ५९९०८. (+#) श्रीपाल रास चतुर्थ खंड सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८७६, वैशाख शुक्ल, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४३,
ले.स्थल. राधनपुर, प्रसं.पं. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीआदिनाथ प्रसादात्. बीलीमोहोरा नगर में प्रतिसंशोधन किया गया है., त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४११, ४-९४३६). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: लहसे ज्ञान
विशाला जी, प्रतिपूर्ण.
श्रीपाल रास-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मंगलीकनी माला थास्ये, प्रतिपूर्ण. ५९९०९. (#) विक्रमसेनराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८२८, फाल्गुन कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ४२, प्रले. पं. कस्तुरविजय गणि,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १५४४५).
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विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदिः परम ज्योति प्रकाशकर, अंति: परमसागर आणंदारे, ढाल ६४.
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५९९१०. (+) कल्पसूत्र व्याख्यान २ का बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. ४०, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित. दे. (२५४१२, ११४३२-४२).
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"
कल्पसूत्र - बालावबोध * - बालावबोध *, मा.गु., रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. द्वितीय वाचना की राजसिंहकुमार कथा अपूर्ण तक है.)
५९९११.) श्रीपाल चौपाई खंड १ से ३. संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४०, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे.,
(२६.५X१२, १४X३२-३६).
श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी अंति: (-), प्रतिपूर्ण
५९९१२. (+) मानतुंगमानवती रास, संपूर्ण, वि. १८२५, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ३९, प्र. वि. संशोधित, जैवे (२५x१२,
१५X३६).
९१
मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे अंति: मोहनविजय मंगलमालो है, ढाल ४७, गाथा- १०१५.
י'
५९९१३. (+) ऋषिमंडलपूजादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०२, कार्तिक शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ३८, कुल पे. ४, ले. स्थल. विक्रमपुर, प्रले. पं. माणिक्यसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२४.५४१२, १४४३४-३६).
१. पे. नाम. श्रीऋषिमंडलपूजा विधि, पृ. १अ ९आ, संपूर्ण.
ऋषिमंडल स्तोत्र पूजा, संबद्ध, ग. शिवचंद्र, मा.गु. सं., पद्य, वि. १८७९, आदि: प्रणमी श्रीपारस विमल, अंति: विजयते वैजयंती जयंति, बाल- २४.
२. पे. नाम. नंदीश्वराष्टमद्वीपांतर्गतपंचाशजिनप्रतिमार्चनविधि पृ. ९आ-१४आ, संपूर्ण.
5
नंदीश्वरद्वीप ५२ जिनप्रसाद स्तवन, ग. शिवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: स्वस्ति श्रीसुखकरण; अंतिः शिवचंद० पूजा मनरंग.
३. पे. नाम. २१ प्रकारी पूजा, पृ. १४- २४आ, संपूर्ण.
ग. शिवचंद्र, मा.गु., सं., पद्य, वि. १८७८, आदि: मंगल हरिचंदन रूचिर, अंतिः परमानंद वधावै.
४. पे नाम, विंशतिपदपूजा विधि, पृ. २४आ-३८अ संपूर्ण, पे. वि. पाठांतर व विशेष पाठ युक्त.
२० स्थानक पूजा, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य वि. १८५८, आदिः सुखसंपतिदायक सदा जग, अंति जनपंकविखंडनाय, पूजा-२०.
५९९१४. (#) चंद्रलेहा रास, संपूर्ण, वि. १८४७, चैत्र कृष्ण, १२, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३६, ले. स्थल. नवानगर, प्रले. मु. लावण्यसागर (गुरु पं. माणिक्यसागर गणि); पठ. श्राव. रतनशी; अन्य. मु. खीमसागर, पं. मोहनविजय गणि (गुरु पं. माणिक्यसागर गणि); गुपि. पं. माणिक्यसागर गणि (गुरु पं. कुंयरविजय गणि); पं. कुंयरविजय गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. श्रीऋषभदेव प्रसादात्., अशुद्ध पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५४११.५, १०-१४४२८-३८).
"
चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८ आदि: सरसति भगवति नमी करी, अंतिः त्रिभुवनपति हुवे तेह,
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ढाल - २९, गाथा- ६२४.
५९९१५. श्रीपालरास सह टबार्थ - चतुर्थ खंड ढाल ४ से १४, संपूर्ण, वि. १८७५, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३५, ले. स्थल, वड, प्र. पं. हर्षविजय पठ. मु. सुमतिविजय, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे. (२४.५४११.५, ४-६५४५).
"
श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, प्रतिपूर्ण श्रीपाल रास-टवार्थ में, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
५९९१६. (+) नलदमयंती रास, संपूर्ण, वि. १७८१, मार्गशीर्ष, श्रेष्ठ, पृ. ३४, ले. स्थल. वारणी, प्रले. पं. लीलकुशल (तपागच्छ); राज्यकालरा संग्रामसिंघ रावत, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में तपागच्छे रामगढ विश्राम का उल्लेख मिलता है, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७११.५, १४४४५).
नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख; अंति: समयसुंदर० चित्तवसी, खंड-६, गाथा- ९३१, ग्रं. १४७०. ५९९१७. (#) हरचंद्रराजा रास, संपूर्ण, वि. १९२३, श्रावण कृष्ण, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०, ले. स्थल. नवाशहेर, प्रले. पं. कस्तुरचंद (अज्ञा. मु. चारित्रविमल, खरतर गच्छ); गुपि. मु. चारित्रविमल (गुरु पं. रूपचंद, खरतर गच्छ); पं. रूपचंद (गुरु ग. दयाभक्ति, खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा); ग. दयाभक्ति (गुरु ग. सिद्धविजय, खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा); ग. सिद्धविजय (खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६१२, १५X४५).
हरिश्चंद्रराजा रास, ग. लालचंद, मा.गु., पद्य वि. १६७९, आदि: शुभ मति आपो सारदा, अंति: लालचंद० नरक पंडित, ढाल- ३८, गाथा-८०९.
५९९१८. (+) अरदास चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३०, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित. दे., (२५x११.५,
""
१५४५२).
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अरदास चौपाई, मु. कुस्यालचंदजी, मु. धन्नो, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: अरीगंजण अरीहंतजी; अंति: (-), (पू.वि. डाल- ६४ गाथा-६ अपूर्ण तक है.)
५९९१९, (+) रूपसेन रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २९. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जै, (२५४११.५, १६x४९-५०).
रूपसेन रास, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, वि. १८०९, आदि: श्रीऋषभादिक नित्य, अंति: (-), (पू. वि. गाथा- १८८७ अपूर्ण तक है.)
५९९२०. (+) सालिभद्रधन्ना चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २६. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित अशुद्ध पाठ, जैवे. (२५x१२, ११४३५-४०).
शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: (-), (पू. वि. गाथा ४८९ अपूर्ण तक है.)
५९९२१. आनंदघन चोवीसी सह बालावबोध व टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८३४, श्रेष्ठ, पृ. २५+१ (१३) २६, जवे. (२४४१२,
५X४१-४७).
स्तवनचीवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८५ आदिः ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम, अंति: अनंत सुखनो सदा रे, स्तवन- २४, (संपूर्ण, वि. १९८३४, माघ शुक्ल, १५, प्र. ले. पु. सामान्य )
स्तवनचौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: चिदानंदमय जिनवर, अंति: (-), ग्रं. ८२८, (अपूर्ण,
पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, बीच-बीच के स्तवनों का रचार्थं लिखा है.)
स्तवनचौवीसी- बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: शुद्ध चेतना अने आत्म; अंति: (-), (अपूर्ण, वि. १८३४, माघ शु. १३. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. बीच-बीच के स्तवनों का बालावबोध लिखा है., प्र. मु. विनयानंद, प्र.ले.पु. सामान्य )
"
५९९२२. (+) हरिबल रास संपूर्ण वि. १८११, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. २५+१ ( २३ ) -२६, ले. स्थल, सावलि,
"
प्रले. मु. दयाचंद्र (गुरु पं. हर्षचंद्र गणि) गुपि पं. हर्षचंद्र गणि (गुरुग. तेजचंद्र) राज्यकालरा, सिवसंघजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X११.५, १४-१७X३५-४०).
हरिबल रास, मु. कुशलसंयम, मा.गु., पद्य, वि. १५५५, आदि: पहिला प्रणमूं पासजिन, अंति: कुसलसंयम० विस्तरह, खंड-४, गाथा ५८९. अं. १०५०.
५९९२३. (+) प्रश्नोत्तरार्द्धशतक- बीजक, संपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. २५+१ (२५) = २६ प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५x१२,
१५X३३).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक-बीजक, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गद्य, वि. १८५३, आदि: पहिलै बोलै तीर्थंकर; अंति: शास्त्रमै
कह्यो छे, प्रश्न-१५१. ५९९२४. कका चंद्रावला व कका बत्रीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, कुल पे. २, दे., (२५४१२, १०४३७). १.पे. नाम. कका चंद्रावला, पृ. १अ-२१अ, संपूर्ण, वि. १९१२, क्षीतिनीधिचंद्राक्षि, ले.स्थल. सदामापुरी.
मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगरवा गरु गुणवंत; अंति: कवियण० जिन वंदुपाय, गाथा-१७८. २. पे. नाम. कका बत्रीसी, पृ. २१अ-२४अ, संपूर्ण.. ककाबत्रीसी, मु. जीवण, मा.गु., पद्य, आदि: कका कहू ते कहु मान; अति: लइ जीवणना नामुसीस, गाथा-६४,
(वि. प्रतिलेखक ने एकगाथा को दो गाथा गिना है.) ५९९२५. (+#) चंद्रलेहा रास, संपूर्ण, वि. १७८२, कार्तिक कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. २४, ले.स्थल. वारणी, प्रले. पं. लीलकुशल (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १५४४०). चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसति भगवति नमी करी; अंति: त्रिभुवनपति हुवे तेह,
ढाल-२९, गाथा-६२४. ५९९२६. (+) सज्झाय विचारादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९५२, आषाढ़ शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ८७-६५(१ से ६५)=२२, कुल पे. ५,
प्रले. श्राव. गोपालजी पानाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४११.५, १३४४२). १.पे. नाम. साधरा आचार उपर ढाला, पृ. ६६अ-८०आ, संपूर्ण. साधु आचार सज्झाय, मु. रूपचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: पहिला अरिहंतने नमु; अंति: इम भणे
रूपचंद, ढाल-६. २. पे. नाम. निनवछत्रीसी, पृ. ८०आ-८२अ, संपूर्ण. निह्नवछत्रीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: इण आरे निन्हव उगडीया; अंति: रे कोइ म जाणो
रोसजी, गाथा-३८. ३. पे. नाम. द्रव्यभावलेश्या सज्झाय, पृ. ८२अ-८३अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतदेवनी वाणी; अंति: ला पलमारागहणा जाणजी, गाथा-१८. ४. पे. नाम. जिनमतश्रद्धा सझाय, पृ. ८३अ-८४अ, संपूर्ण.
जिनमतश्रद्धा सज्झाय, रा., पद्य, आदि: लखचोरासी जीव जचावे; अंति: पचखाण कठे नही चाल्यो, गाथा-२५. ५. पे. नाम. मोहविवेक चौपाई खंड-५ ढाल-३-४, पृ. ८४अ-८७आ, संपूर्ण.
मोहविवेक चौपाई, पं. धर्ममंदिर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५९९२८. (+#) धन्नाजी चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २८-६(१,६ से७,९,१६,१८)=२२, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १८४४७-५५). धन्नाअणगार चौपाई, मु. सबलदास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ अपूर्ण से ढाल-६१ अपूर्ण
तक के बीच-बीच के पाठ है.) ५९९२९. जयविजयकुंअर रास, संपूर्ण, वि. १९०१, भाद्रपद कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले.स्थल. जालना, पठ. पं. जसराज, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, १५४४१). जयविजयकुंवर रास, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: आदि आदि जिणेसरु पय; अंति: जिनविजय०
सनेहि रे, अधिकार-४, ग्रं. ७२५. ५९९३०. जंबूस्वामी चरित्र, संपूर्ण, वि. १८२७, माघ शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले.स्थल. लोढ्याणा, प्रले. मु. देवेंद्रकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३९). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीपार्श्वनाथ प्रणम, (२)श्री परमेस्वर; अंति: मंगलनो करणहार
थयो.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५९९३१. (+#) क्षेत्रसमास गणित, संपूर्ण, वि. १८३८, फाल्गुन शुक्ल, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले.स्थल. भावनगर,
प्रले. मु. उदयचंद ऋषि; पठ. मु. जगसी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२५.५४११.५, १३४३७).
बृहत्क्षेत्रसमास-गणित, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ए जंबुद्वीपने विषे; अंति: खला लगेघन गणित थयो. ५९९३२.(+-) नवकारमंत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८०४, मध्यम, पृ. १७, ले.स्थल. कंवरपुरा, प्रले. मु. गंगाराम ऋषि (गुरु
मु. खेतसी ऋषि); गुपि.मु.खेतसी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११.५, १५-१७४२८-३५).
नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहताणं; अंति: पढमं हवई मंगलम्, पद-९.
नमस्कार महामंत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: ह्रीं आतमान इण भव पर; अंति: कर संसारनो अंत कर. ५९९३३. (+) गजसुकुमाल रास, संपूर्ण, वि. १८२५, वैशाख शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. नाडूलनगर,
प्रले. पं. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपद्मप्रभु प्रशादात्., संशोधित.,प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५४१२,१५४४९). गजसुकुमाल चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६९९, आदि: नेमीसर जिनवरतणा चरण; अंति: जिनराज०
चरण नमीजे छे, ढाल-३०, गाथा-५६१, ग्रं. ८००. ५९९३४. (+) सम्यक्त्व विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१(१)=१७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, १३४४२-५०).
सम्यक्त्व विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पाठांश हैं., प्र.ले.पु. मध्यम) ५९९३५. (+) नलदमयंतीरास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १८-२(१ से २)=१६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, १५४३६-४५). नलदमयंतीरास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-१ ढाल-४
दुहा-१ अपूर्ण से खंड-६ ढाल-३ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ५९९३६. (+#) कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८३६, कार्तिक शुक्ल, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. ले.स्थल. गुटानगर,
प्रले. मु. सुजाणराज (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १८४३०-३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६,
(पू.वि. व्याख्यान-९ सामाचारी से है.)
कल्पसूत्र-बालावबोध *, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: देव इम भाखता थया. ५९९३७. कनकवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-५(१ से ५)=१५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११.५, १२४३२-३५). अजितसेनकनकावती रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ गाथा ३
अपूर्ण से ढाल- २४ गाथा १ अपूर्ण तक है.) ५९९३८. (+#) कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २०-५(१ से २,६ से ८)=१५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रांक ४१ से ६० भी अंकित हैं., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, दे., (२५.५४११.५, १६४३१). कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कथा १ अपूर्ण से कथा ४ अपूर्ण तक व कथा ७ से कथा १२
अपूर्ण तक है.) ५९९३९. (#) चौबीस महादंडक, पार्श्वजिन स्तोत्र व मोटीशांति, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १५, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १७४२९). १.पे. नाम. चौवीसदंडक ३० बोल, पृ. १अ-१२अ, संपूर्ण, वि. १८८९, पौष कृष्ण, १३, पे.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका की स्याही
उड़ गई है, इसलिए अवाच्य है. महादंडक ३० द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक १ लेस्या २ ठिती; अंति: पीण चवन आसरी जाणवो.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन गोडीजी, पृ. १२आ-१४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी
ब्रह्मवादिनी; अंति: प्रीतविमल०अभिराममंतै, ढाल-५, गाथा-५५. ३. पे. नाम. मोटीशांति, पृ. १४अ-१५आ, पूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: (-), (पू.वि. "कल्याण भाजो ही
जिनाभिषेके" पाठ तक है.) ५९९४०. (+) अमरसेनजयसेन चरित्र, संपूर्ण, वि. १९०१, श्रावण अधिकमास शुक्ल, ८, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. जालण(लसकर), प्रले. मु. जसराज (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, १५४४३). रात्रिभोजन चौपाई, उपा. सुमतिहंस, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: सुबुधि लबधि नव निधि; अंति: सुमतिहंस०
चिरनंदैजी, ढाल-२४. ५९९४१. विक्रमादित्यलीलावती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१-१७(१ से १२,२१,२३,२६,२९ से ३०)=१४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४१२.५, १५४३५-३८).
विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१७ अपूर्ण से
__ढाल-२९ अपूर्ण तक व ढाल-३१ से ३६ तक बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ५९९४२. (+#) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-४(१ से ४)=१३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, ११४२३-२७). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. सुपार्श्वजिन स्तवन से महावीरजिन
स्तवन अपूर्ण तक है.) ५९९४३. (+) विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १९x४४). विविध विचार संग्रह, पुहि.,प्रा., गद्य, आदि: स्त्री के जब स्त्री; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., जीव
नाम अपूर्ण तक है.) ५९९४४. (+) जंबूद्वीप विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६-२३(४,१२ से २९,३२ से ३५)=१३, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६४११.५, १२४३६).
लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीप लांबो; अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच व अंत के
पाठांश नहीं हैं.) ५९९४५. (+#) अषाढाभूति चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पठ. श्रावि. माणिकबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ११४४०).
आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सकल ऋद्धि समृद्धिकर; अंति: न्यान०परम
कल्याणोरे, ढाल-१६, गाथा-२२०, ग्रं. ३५१. ५९९४६. (+#) अषाढाभूति चौपाई, संपूर्ण, वि. १८५२, भाद्रपद अधिकमास शुक्ल, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. १३, ले.स्थल. बलुदा,
प्रले. ग. शिवहंस; पठ.सा. मुखीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खडित है, जैदे., (२६४११.५, १३४३१-३२).
आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सकल ऋद्धि समृद्धिकर; अंति: न्यान०परम
कल्याणो रे, ढाल-१६, गाथा-२१८. ५९९४७. (+) आर्द्रकुमार चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-१०(१ से १०)=१२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १५४३०-३३).
आर्द्रकुमार रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदि: सकल सुरासुर जेहना; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र
नहीं हैं., ढाल-१५ गाथा-२८२ अपूर्ण तक है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५९९४८. (+) विंशतिस्थानक पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १५४३५-३९). २० स्थानक पूजा, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: सुखसंपतिदायक सदा जग; अंति: जिनहरष०
तणी रचना करी, पूजा-२०. ५९९४९. (#) कानडकठीयारा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८७७, चैत्र शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. अमदानगर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२,११४२७). कान्हडकठियारा रास-शीयलविशे, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमुसदा; अंति:
मान० होज्यो मुझ आणंद, ढाल-९. ५९९५०. (+) सुक्तमाला, संपूर्ण, वि. १८७४, फाल्गुन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. नवानगर, प्रले. मु. लवजी ऋषि (गुरु
मु. अमीचंद ऋषि); गुपि.मु. अमीचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीआदिनाथ प्रशादेन., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४१-४५). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृतवलीवृदं जें; अंति: केसरविमलेन विबुधेन,
वर्ग-४, श्लोक-१७६. ५९९५१. अष्टप्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १७-६(१ से ५,१३)=११, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६४१२, ८x१६-२३). ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-७ अपूर्ण से है व
बीच-बीच के तथा अन्तिम कुछ पाठांश नहीं हैं.) ५९९५२. (+) अंजनासती रास, संपूर्ण, वि. १९११, कार्तिक कृष्ण, ९, रविवार, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. दसोर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११.५, २१४४५).
अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: (१)नमो अरिहताणं नमो, (२)पहलेने कडावै हो पाय; अंति: जगत्रनी माय तो,
गाथा-१६३. ५९९५३. चोवीसदंडक बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११,दे., (२६४११.५, १४४४७).
२४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक लेश्या ठित्ति; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
भाग-११ झाझेरा-८ तक लिखा है.) ५९९५४. चारमंगल रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, दे., (२५.५४१२, १३४४५-४८).
४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: अनंत चोवीशीजिन नमुं; अंति: ए मुगतनगर ले जायके, ढाल-४,
गाथा-१७७. ५९९५५. (+#) पंडितप्रिया चौपाई, अपूर्ण, वि. १७८७, फाल्गुन शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ३७-२६(१ से २६)=११, ले.स्थल. सावरनगर,
प्रले. ग. रामचंद्र (गुरु मु. भीमचंद्र); गुपि.मु. भीमचंद्र (गुरु मु. मुक्तिचंद्र); मु. मुक्तिचंद्र; पठ. मु. खेमाजी ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, २१४५६-६०). पंडितप्रिया चौपाई, पंन्या. रामचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सिरि सतगुरु शक्ति रे, ढाल-२९, (पू.वि. ढाल-२३,
गाथा-४१ अपूर्ण से है.) ५९९५६. (+) मृगलेखा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-४(१ से ४)=११, पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १८४४७-५२). मृगांकलेखा चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-११, गाथा-७ से
ढाल-४८, गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ५९९५७. नवतत्त्व का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, जैदे., (२६४१२, ८४२५).
नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., पापतत्त्व अपूर्ण तक लिखा है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
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५९९५८. (+#) मानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-७ (१ से २,११ से १५) = १०, पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १४X३०-३४).
मानतुंगमानवती रास - मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: (-) अंति: (-), (पू.वि. ढाल १, गाथा-५ अपूर्ण से ढाल - १७, गाथा - १९ अपूर्ण तक है व बीच के पाठ नहीं हैं.) ५९९५९. (0) आत्मशिक्षा भावना व आठकर्म प्रकृति विचार, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६x११.५, १२X३१-३५).
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१. पे. नाम. आत्मशिक्षा भावना, पृ. १अ ९आ, संपूर्ण, वि. १९०२, कार्तिक कृष्ण, ३, ले. स्थल कीसनगड, प्रले. सा. रुषमा. मु. रतनहर्ष, मा.गु., पद्य वि. १६६२, आदि: श्रीजिनवर मुखवासिनी अंतिः ते लहेसी सिवठाम गाथा - १८५.
२. पे. नाम. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, पृ. ९आ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम अष्टकर्म कहीइ; अंति: (-), (पू.वि. अशातावेदनीय कर्म के पंद्रह विचार अपूर्ण तक लिखा है.) ५९९६० (+) छ आरानो संवाद, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १०, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२४.५x१२.५,
१४X३७-४०).
६ आरा संवाद, मा.गु., गद्य, आदि: अवसर्पणी उत्सर्पणी, अंतिः उत्सर्पणी जाणवी.
५९९६१ (४) पद, सतवन, सज्झाबादि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १०, कुल पे. १४, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६१२, ९-११x२७-३३).
१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- अंतरीक्षजी, वा, विनयराज, मा.गु., पद्य, वि. १७७२, आदि पर उपगारी परम गुरु; अंतिः विनेराजे० त्रिभुवनधणी, डाल-४, गाथा-२७.
२. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण.
आदिजिन पद, मु. विमल, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सखी वंदन जईयै; अंति: हेते वंदो विमल जिणंद, गाथा-५. ३. पे. नाम. वसंतऋतु वर्णन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन होरी - चिंतामणी, मु. जिनलाभ, पुहिं., पद्य, आदि: जिनमंदिर जयकार ऐसे; अंति: जिनलाभ० खेलत भव पार, गाथा - ७, (वि. प्रतिलेखख ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.)
४. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ४-४आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: सिंह की खोली कीयै; अंति: खातउ रे मैं नही तवार, दोहा-४.
पे. नाम, ऋषभजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण
आदिजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि मन मधुकर मोही रह्यो, अंति: जिनराज० करजोडि रे,
गाथा-५.
६. पे. नाम. अभिनंदन गीत, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण
अभिनंदनजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी वीनवुं रे; अंति: समविषमी जिनराज रे,
गाथा-५.
७. पे. नाम. थंभणपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ६अ- ६आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन छंद - स्थंभनपुर, मु. अमरविसाल, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपूर श्रीपासजिणंद, अंति: पार्श्वनाथ चोसालो, गाथा ८.
८. पे. नाम, ऋषभजिन स्तवन, पृ. ७अ-८अ संपूर्ण,
आदिजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि ऋषभ जिणेसर त्रिभुवन, अंति: लालचंद० मझारो रे,
गाथा - ११.
९. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ८ अ, संपूर्ण.
मु. लालचंद, पुहिं, पद्य, आदि मेरो मन वस कर लीनो; अंतिः लालचंद० पूरो बंछित आस, गाथा- ३. १०. पे नाम, सिद्धाचल स्तवन, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: यात्रा निनाणुं करिय; अंति: पद्म कहै भव तरीय, गाथा-१०. ११. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. ८आ-९आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आज आपेचालोसहीयां; अंति: जिनचद० मन आणीरे.
गाथा-९. १२. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरिस्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दादो परतिख देवता; अंति: सारेज्यो सगला काज,
गाथा-५. १३. पे. नाम. जिनकुसलसूरि गीत, पृ. १०अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि गीत, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कुसल गुरु कुसल करो; अंति: वीनवै श्रीजिनचंदसूरि,
गाथा-२. १४. पे. नाम. जिनकुसलसूरि पद, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि गीत, मु. जिनभक्ति, मा.गु., पद्य, आदि: दरसण देज्यो खरतरगछना; अंति: कुसल जिनभक्ति सवाई,
गाथा-५. ५९९६२. खरतर तपागच्छ ३० उत्सूत्र बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, ३., (२५.५४१२.५, १३४३३).
खरतर तपागच्छ ३० उत्सूत्र बोल, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीखरतरगच्छीय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., मुहपत्ति चर्चा तक का वर्णन है.) ५९९६३. श्रीपालराजानोरास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५८-४९(१ से ४९)=९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४१२.५, १०४३१). श्रीपाल रास-बृहद, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४२, गाथा-१२ अपूर्ण
से ढाल-४८, गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ५९९६४. (+) दसविधयतिधर्म सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. २२०, जैदे., (२६४१२, १२४३०-३६). १० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुकृतलता वन सींचवा; अंति: सुजश
लीला अनुभवे, ढाल-११, गाथा-१३५. ५९९६५. चोवीस तीर्थंकरोना नाम तथा माता-पितादिकोष्ठक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४१२, ९x१८-२८). २४ जिन च्यवनागम, नगर, पिता, मातादिविचार कोष्ठक, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-),
(पू.वि. वासुपूज्यस्वामी के वर्णन तक है.) ५९९६६. (#) अवंतिसुकमाल स्वाध्याय, खेमा छत्रीशी व दशवकालिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-३(१ से
२,७)=८, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४३३-३६). १. पे. नाम. अवंतीसुकुमाल सज्झाय, पृ. ३अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्यसुहस्ति; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१२,
गाथा-९४ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. खेमा छत्रीसी, प्र. ८अ-९अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: संघ जगीश जी, गाथा-३६, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण
से है.) ३. पे. नाम. दशवकालिक स्वाध्याय, पृ. ९अ-११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दशवैकालिकसूत्र-स्वाध्याय, संबद्ध, ग. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रुतदेवी पसाउले; अंति: (-),
(पू.वि. अध्ययन-८, गाथा-१० अपूर्ण तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ ५९९६७. (+) अवयद शुकनावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५४१२, १५४३८-४२). अबयद शुकनावली, मु. नगविजय, पुहिं., गद्य, वि. १८७३, आदि: महावीर को ध्याइकै; अंति: बात में संदेह नहीं,
प्रकरण-४. ५९९६८. (+) श्रावकपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्रले. मु. रामराज (अविचलगच्छ), प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, ११४३४).
श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणमिदंसणंमि; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ५९९६९. इलाचीकुमारनोरास, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ९,प्र.वि. पत्रांक अव्यवस्थित हैं., जैदे., (२६४१२, १०४३२).
इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: सकल सीध दाअक सद; अंति:
नानसागर आणंद करो, ढाल-१६, गाथा-१८७, ग्रं. २९९. ५९९७०. (+) तिलोकसुंदरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९६४, कार्तिक शुक्ल, १३, रविवार, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. देवगढ, प्रले. चांदमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१२, २२४४८-५६). त्रैलोक्यसुंदरी चौपाई, मु. कनीराम ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८११, आदि: अरिहंत सिद्ध अनतगुण; अंति: कनीराम०
फलसिरे लो, ढाल-२२. ५९९७१. (+) प्रायश्चित विधि, संपूर्ण, वि. १९२०, आश्विन शुक्ल, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. ९, प्रले. पं. कल्याणनिधान (गुरु ग. हंशविलास); गुपि.ग. हंशविलास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४१२.५, १३४३४).
श्रावक आलोयणा विधि, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं जिनें; अंति: तावद स्वाध्यायः. ५९९७२. (#) श्रावकपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, ११४२९-३४).
श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणमिदंसणंमिय; अंति: मिच्छामिदुक्कड. ५९९७३. प्रदेशीराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९६७, आश्विन कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. रापर, प्रले. मुलचंद (पिता प्रेमचंद
मोरबीआ); गुपि. प्रेमचंद मोरबीआ; पठ. सा. डाइबाई (गुरु सा. संतोकबाइ); गुपि.सा. संतोकबाइ, प्र.ले.पु. मध्यम, दे., (२५४१२, १५४४१).
प्रदेशीराजा चौपाई, मु. गिरधर ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सतगुरु चरणकमल नमी; अंति: रंगे मुंबईमां उमंगथी, ढाल-७. ५९९७४. सुमतिजिन स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-८(१,३,९ से १४)=८, कुल पे. ५, जैदे., (२५.५४१२.५,
१३४३५). १. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. २अ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: थंभणपुर श्रीपास;
अंति: कहै मुनि इम धर्मसी, ढाल-६, गाथा-३४, (पू.वि. ढाल-२, गाथा-७ अपूर्ण से ढाल-६, गाथा-३० अपूर्ण तक
नहीं है.) २.पे. नाम. चौवीस दंडक स्तवन, पृ. ४अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूर मनोरथ पासजिणेसर;
अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४, गाथा-२५ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. गौडीचा जिन स्तवन, पृ. १५अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: इम जंपइ जिनराज रे, गाथा-७,
(पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) ४. पे. नाम. त्रेसठशलाका स्तवन, पृ. १५अ-१६आ, संपूर्ण. ६३ शलाकापुरुष स्तवन, मु. वसतौ, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु चरणकमल मनधार; अंति: नमे मुनी वसतो सदा,
गाथा-१८. ५. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १६आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: काय रे जीव मनमैं; अंति: जिनहरष० पसायै
रंगरली, गाथा-९. ५९९७५. पंचज्ञाननी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, दे., (२४.५४१२, १०४३१).
ज्ञानपंचमीपर्व पूजा, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८७, आदि: सकल कुशल कमलावली; अंति: रूपविजय
गुण गाया रे, ढाल-११. ५९९७६. बारभावना वेलि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, प्रले.पं. हुकमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२.५, १२४३४). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पासजिणेसर पायनमी; अंति: भावन भणी
जेसलमर मझार, ढाल-१३, गाथा-१२८, ग्रं. २००. ५९९७७. (+) अयवंती सुकुमालतुं तेरढालियुं, संपूर्ण, वि. १९५८, माघ कृष्ण, १४, रविवार, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. मंगलपुर, प्रले. अंबाराम लाधाराम जोषी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, ११४३८-४१). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: पास जिनेसर सेवीये; अंति: शांतीहर्ष सुख पावे,
ढाल-१३, गाथा-१०७. ५९९७८. (+) सिद्धचक्रपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १९०१, भाद्रपद शुक्ल, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. सुजाणगढ, प्रले.पं. लालचंद्र; राज्यकालरा. रतनसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., दे., (२६४१२.५, १२४३९).
सिद्धचक्रयंत्र पूजनविधि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: प्रथम थकी बलबाकुल; अंति: वात्सल्य करै इत्यादि. ५९९७९. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ३, ले.स्थल. लोहियाणा, जैदे., (२५४१२,
१४४३८-४१). १.पे. नाम. विमलाचल तीर्थमाला स्तवन, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरंग, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: विमलाचल वाहला वारु; अंति: नित नमो
गिरिराया रे, ढाल-१०. २. पे. नाम. सर्वार्थसिद्ध सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदानंदन गुणनीलो रे; अंति: गुणविजय० फले
आसोरे, गाथा-१६. ३. पे. नाम. सिद्धाचल स्वाध्याय, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो प्रणमुंदिन; अंति: कहे मानविजय उवज्झाय, ढाल-४,
गाथा-२५. ५९९८०. (#) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-२(१ से २)=८, कुल पे. १७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे., (२६४१२, ११४३५-४३). १.पे. नाम. द्वितीय भरत वर्तमान जिननाम स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. वर्तमान जिननाम स्तवन-द्वितीय भरते, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ते नवी मुकुं मनथी,
गाथा-६, (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. धातकी प्रथम भरते वर्तमानजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. वर्तमानजिन नाम स्तवन-धातकी प्रथमभरते, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: युगादि पहिला नमु; अंति:
ज्ञानसागर० आणा परमाण, गाथा-६. ३. पे. नाम. धातकी प्रथम भरते अनागतजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. अनागतजिन स्तवन-धातकी प्रथमभरते, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: भावी जिन वंदो हो; अंति:
ज्ञानसागर जयकार, गाथा-६. ४. पे. नाम. धातकीखंड द्वितीय भरते वर्तमानजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
१०१ वर्तमानजिन स्तवन-धातकीखंड द्वितीयभरते, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: धातकी बीजे भरते नमुं;
अंति: ज्ञान० दरिसण संकेत, गाथा-९. ५. पे. नाम. धातकी द्वितीय भरते अतीत चोवीस जिननाम स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. अतीतजिन चौवीसी-धातकी द्वितीयभरते, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: धातकी खंडे बीजे भरते; अंति:
ज्ञानसागर० स्याद्वाद, गाथा-९. ६. पे. नाम. धातकी द्वितीय भरते चतुर्विंशति जिननाम स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. वर्तमानजिन चौवीसी-धातकी द्वितीयभरते, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: वर्तमान जिनगण भलो; अंति:
ज्ञानसागर० जगधणीजो, गाथा-६. ७. पे. नाम. पुष्करार्द्ध प्रथम भरते अतीत चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. अतीतजिन चौवीसी-पुष्करार्द्ध प्रथमभरते, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: पुष्कर भरत पहेले नमु; अंति:
ज्ञानसेवक गुण गाय रे, गाथा-९. ८. पे. नाम. पुष्करार्द्ध प्रथम भरते वर्तमान चतुर्विंशति जिननाम स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. वर्तमानजिन चौवीसी-पुष्करार्द्ध प्रथमभरते, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: पुष्कर भरते पहिले; अंति:
ज्ञानसा वासन वासे जी, गाथा-७. ९.पे. नाम. पुष्करार्द्ध प्रथम भरते अनागत चोवीसी जिननाम स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
अनागतजिन चौवीसी-पुष्करार्द्ध प्रथमभरते, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: पुष्कर अर्द्ध भरतइ; अंति:
___ ज्ञानसागर० जन भ्राता, गाथा-९. १०. पे. नाम. पुष्करार्द्ध द्वितीय भरते अनागत चोवीसी जिननाम स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. अनागतजिन चौवीसी-पुष्करार्द्ध द्वितीयभरते, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: पुष्कर भरत बीजे भला;
अंति: ज्ञानविबुध० समराय, गाथा-८. ११. पे. नाम. पुष्करार्द्ध द्वितीय भरते वर्तमान जिननाम स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. वर्तमानजिन चौवीसी-पुष्करार्द्ध द्वितीयभरते, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: वर्तमाने वृंद हवे; अंति:
ज्ञानसागर०मुझ होज्यो, गाथा-५. १२. पे. नाम. प्रथम ऐरवते अतीत जिननाम स्तवन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. अतीतजिन चौवीसी-प्रथम ऐरवते, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: पुष्कर अरध मझारि भरत; अंति:
ज्ञानसेवक० मानले, गाथा-९. १३. पे. नाम, द्वितीय भरते अनागत चोवीस जिन स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
अनागतजिन चौवीसी-द्वितीय भरते, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: हो तारक पंचरूप पहिला; अंति:
ज्ञान० चरणवर भूप हो, गाथा-९. १४. पे. नाम. प्रथम ऐरवते वर्तमान जिननाम स्तवन, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. वर्तमानजिन चौवीसी-प्रथम ऐरवते, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे मारे अरिहा; अंति: निजगुण
बोधिइ रे लो, गाथा-६. १५. पे. नाम. प्रथम ऐरवते अनागत जिननाम स्तवन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. अनागतजिन चौवीसी-प्रथम ऐवते, म. ज्ञानसागर-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: ऐरवत पहेले जिन पहेला; अंति:
ज्ञान० तेह जिनेशरे, गाथा-६. १६. पे. नाम. द्वितीय ऐरवते अनागत जिननाम स्तवन, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. अनागतजिन चौवीसी-स्तवन-द्वितीय ऐरवते, म. ज्ञानसागर-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: वज्रस्वामी पहिलाइ; अंति:
ज्ञानसागर० हारे, गाथा-८. १७. पे. नाम. द्वितीय ऐरवते धातकीखंडे वर्तमान चतुर्विंशति जिननाम स्तवन, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण.
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वर्तमानजिन चौवीसी द्वितीय ऐरवते धातकीखंडे, मु. ज्ञानसागर- शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि ऐरक्त बीजे सुख करु
रे, अंति: ज्ञानसागर० आवे दाय, गाथा- १५.
,
५९९८१. (+) धर्मध्यान विचार, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १०-३ (१ से ३) =७, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५x१२, १०X२७-३०).
धर्मध्यान लक्षण, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: चोथी अणुप्पेहा कहीड़, (पू. वि. तीसरा भेद अपूर्ण से है.) ५९९८२. पुद्गलपरावर्त्तकाल व कर्मभूमि अकर्मभूमि आराभाव विचार, संपूर्ण, वि. १९३९, वैशाख कृष्ण, ८, मध्यम, पृ.७, पे. २, प्रले. पं. खतावरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२५.५४११.५, १०४२८-३५)
"
१. पे. नाम. पुद्रलपरावर्त्तकाल विचार, पृ. १अ ७अ, संपूर्ण.
पुद्गलपरावर्त विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चिहुं को एक जोजन; अंति: परावर्त्त काल कहीये.
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२. पे. नाम. कर्मभूमि अकर्मभूमि आराभाव विचार, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: देवकुरु उत्तरकुरु, अंतिः सदा परिभ्रमण करे.
५९९८३. स्थूलभद्र जीरो शिवलवेलि, संपूर्ण वि. १८८१, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल. बीकानेर, प्रले. सोमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X१२, १५X४९).
स्थूलभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: सयल सुहंकर पासजी, अंति: विमला कमला वरस्यै रै, ढाल- १८.
५९९८४. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ७, प्रले. मु. तिलोकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११.५, ११x२६-३२). साधुवंदना, आ. पार्श्व चंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहजिण पमुह चउवीस, अंति: मन आणंदे संधुआ, डाल-७,
गाथा-८८.
५९९८५. पंदरतिथिस्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. ७, जैवे. (२५.५४११, ११४३७-४२).
१५ तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्म, आदिः एक मिध्यात असंयम, अंतिः ज्ञान० लीलालच्छि लहंत, स्तुति - १६, गाथा-६४.
५९९८६. परदेशीराजाना प्रश्न, संपूर्ण, वि. १९५३, चैत्र शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल, कालावड, प्रले वशराम आंबाभाई खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, १६४४१-४४
प्रदेशीराजा के प्रश्न - राजप्रश्नीयसूत्रे, मा.गु., गद्य, आदि: परदेसी राजाये करणी; अंति: भले धर्म पामा छे सही, प्रश्न- ११. ५९९८७. (+०) स्तवन, गाथा व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५x११.५, ९४२५)
१. पे. नाम. पुण्यप्रकाश स्तवन, पृ. १अ ७आ, संपूर्ण.
उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा, अंति: नामे पुन्य प्रकाश ए, ढाल-८, गाथा - १०२.
२. पे. नाम, जैनधार्मिक गाथा संग्रह, पृ. ७आ, संपूर्ण.
(+)
जैनगाथा संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., पद्म, आदि: पुत्तीपुराण सुणिय अंतिः केज्जाई सामग्गेन, गाथा- १. ३. पे. नाम. अन्नपूर्णमंत्र व जापविधि, पृ. ७आ, संपूर्ण.
"
५९९८८.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ. पुहिं, प्रा., मा.गु. सं. प+ग, आदिः ॐ नमो भगवती अंतिः सुखं कुरु करु स्वाहा. पुण्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १८०२, माघ कृष्ण, ८, रविवार, मध्यम, पृ. ७, प्रले. लाखाजी बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संशोधित., जैदे., (२५.५X१२, ११x२७-३०).
पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा, अंतिः नामे पुन्य
प्रकाश ए, ढाल -८, गाथा - १०२.
५९९८९. कोणिक चौपाई, संपूर्ण, वि. १८८७, कार्तिक शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल. बीकानेर, प्रले. सा. चंदनाजी (गुरु सा. कलुजी); गुपि. सा. कलुजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७X१२, १८x२८-३२).
कोणिकराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: कूटुंब तणि जागरिका; अंति: ज्युं पामो सुख रसाल, ढाल-२२.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
५९९९०. (+#) सीमंधरजिन स्तवन- ३५० गाथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९ - २ (१ से २) = ७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१२.५, ११-१४X३५-३८).
, י
सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन- ३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. गाथा ३८ अपूर्ण से २४५ अपूर्ण तक है.)
५९९९१. (+) अवंतिसुकुमाल रास, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे., (२५X११.५, ११X३५-४० ).
अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु, पद्य वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति, अंतिः शांतिहरख सुख पावे रे, ढाल - १३, गाथा - १०७.
५९९९२. (+) जीवविचार बोल, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१) ७, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२४.५४१२, १०-१३X२६-३०).
""
जीवविचार बोल " मा.गु., को. आदि: (-); अंति: (-) (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पृथ्वीकाय भेद अपूर्ण से है.) ५९९९३. (#) भंगरत्नावली व गाथासप्तक, संपूर्ण, वि. १८७६, आश्विन कृष्ण, १, शनिवार, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, ले. स्थल. कोटानगर, प्रले. मु. नेणचंद्र ऋषि (गुरु आ. कांतिसागरसूरि, विजयराजगच्छ बृहत्शाखा). प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१२, १४- १७x४६).
१. पे. नाम. भंगरत्नावली, पृ. १अ ७आ, संपूर्ण.
मु. गांगेय, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम पद करवार, अंति: रकारे विकल्प करे जै.
२. पे. नाम गाथा सप्तक, पृ. ७आ, संपूर्ण
गाथासप्तक, प्रा., पद्य, आदि: पढमे बीए तईए चडत्था, अंतिः आदीनां विस्तरोयं, गाथा- ७.
१५X४५-५०).
१. पे. नाम ऋषभ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
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५९९९४. (+#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. १६, ले. स्थल. विजापुर, प्रले. पं. विनयविजय गण प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संभवनाथजी रो देरासर, संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x११.५,
आदिजिन स्तवन, मु. श्रीविजय, मा.गु., पद्म, आदि: ऋषभजिणेसर भेटीइं भवि; अंतिः श्रीविजै लहै परमानंद, गाथा ५. २. पे. नाम. गोडीपार्थं स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मनमोहन पावन देहडीजी; अंति: मोहन० ज हो, गाथा-५.
३. पे. नाम. शेत्रुंजय स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
साधारण जिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुडिं, पद्य, आदि: जिनराज जुहारण जास्या: अंतिः नयविमल०सुख सरास्याजी, गाथा - ७, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.)
४. पे. नाम. शेत्रुंजय स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
१०३
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि शत्रुजानो वासी, अंतिः कवियण० भव पार उतारो, गाधा-६. ५. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. केसरविमल, मा.गु, पद्य, आदिः लाखेणो सोहोवे जनजी; अंतिः इम कहे केसर धीर,
गाथा - १०.
६. पे नाम, नेमिनाथ स्तवन, पृ. २अ संपूर्ण.
नेमिजिन स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: कालीने पीली वादली, अंतिः कांति नमे वारंवार, गाथा - ७. ७. पे. नाम. नेमनाथजी स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती स्तवन, मु. रुचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: मात सिवादेवी जाया; अंति: रूचिरविमल० पाया राज,
गाथा- ७.
८. पे. नाम. चवीस तीर्थकर स्तवन, पृ. २अ-३-अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
२४ जिन स्तवन- मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमु; अंतिः तास सीस प्रणम आणंद, गाथा - २९.
९. पे. नाम. आदीश्वर विनती स्तवन, पृ. ३अ ४अ, संपूर्ण.
आदिजिन वृहत्स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदिः प्रणमवि सयल जिणंद, अंतिः प्रेमविजय० देयो सेवा, गाथा ४२ (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.)
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१०. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन- भ्रमर गीता, पृ. ४-५ अ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तवन-भ्रमरगीता, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: समुद्रविजय नृप कुल, अंति: प्रभु थुण्यो सानुकूल, गाथा - २७.
११. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ५अ- ५आ, संपूर्ण.
पं. कांतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिनेशर मुरति; अंति: कांतीविमल जस गाजै रे, गाथा- ८.
१२. पे. नाम. श्रीमंदिरजिन स्तवन, पृ. ५आ - ६अ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदिः श्रेयांसनंदन स्वामि; अंति: लब्धिना० उदय अतिघणो, गाथा - ९. १३. पे नाम, धर्मजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण,
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हारे मुने धर्म, अंतिः मोहन० अति घणो रे लो, गाथा- ७.
१४. पे नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण.
मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदिः सुणि सुणि सरसति, अंति: संतोषी० पाया रे, डाल-७, गाथा-४०. १५. पे नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण.
मु. उदयरत्न, मा.गु, पद्य, आदि: अचिरानंदन वंदना रे, अंतिः उदयरतन जिनराजधी रे, गाथा- ९.
१६. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तवन, मा.गु, पद्य, आदिः समुद्रविजयसुत नेम; अंतिः गौतमसाम इम बोले वाण, गाथा ६. ५९९९५. (+) मार्गणाद्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५x१२.५ १६x४१).
""
६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि जिननाम २ सुरद्विक, अंतिः एवं ५ गुणठाणा हुवे.
५९९९६. (+) पंचमीतप विषये गुणमंजरी वरदत्तकथा प्रासंग वीरविभो गर्भित जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७३, ज्येष्ठ शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल. अम्हदपुर, प्रले. पं. राजविजय गणि, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२५x११.५,
११x२४-२८).
ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९३, आदि: सुत सिद्धारथ भूपनो; अंति: स मंगल करै, ढाल - ६, गाथा - ६८.
५९९९७. (#) खंडाजोयण विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१ (१)=६, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे. (२५४१२, १५४३२).
१. पे नाम, खंडाजोयण विचार, प्र. २अ-७अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
लघुसंग्रहणी - खंडाजोयण बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: रोहीयानी परइ जाणिवी, (पू. वि. मेरुपर्वत के वर्णन से है)
२. पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. ७अ, संपूर्ण.
विचार संग्रह *, प्रा.,मा.गु., सं., गद्य, आदि: घणा सम उपनाने होइ ते; अंति: ३ दसाना परइ जाणवो. ५९९९८. (+) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९३६, चैत्र कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ६, प्रले. श्राव. पन्नालाल, पठ. श्रावि. सिणगार कुंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५X११.५, ११x२८-३३).
गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: श्री वीरजिनेस्वर चरण; अंतिः सयल संग आणंद करी, गाथा - ६३.
६००००. (#) साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१२, १०X३२-३५).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
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साधुवंदना बडी, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमूं अनंत चोइसी ऋषभ; अंति: जैमल एही तिरणरो दाव, गाथा - १०७.
६०००२. (#) नंदीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-१६ (१ से १३, १९ से २१ ) = ६, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५X११.५, १३X३५-३८).
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नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: से त्तं परोक्खणाणं, सूत्र- ५७, गाथा- ७००, ( पू. वि. प्रारंभ व बीच के पाठांश नहीं हैं.)
"
६०००३. ज्ञानपंचमी देववंदन, संपूर्ण, वि. १९२२, वैशाख शुक्ल, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. बकुतरा, प्रले. मु. नानचंद (गुरु पंन्या. रूपविजय); गुपि पंन्या. रूपविजय, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. श्री ऋषभदेवजी प्रसादात् दे. (२६४१२, १६४५१). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम बाजठ उपरि तथा; अंतिः (१) विजयलक्ष्मी शुभ हेज, (२) सज्झाय केहवी, पूजा-५.
६०००४. (+) पार्श्वनाथ व वीसस्थानक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. दे. (२४४१२, १४X३६).
१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन प्रभाति, मु. लाभउदय, मा.गु, पद्य, आदि उठोने मोरा आतमराम; अंतिः वस्तुं सिंध वधाई, गाथा ५. २. पे. नाम. वीसस्थानक तपोविधि स्तवन, पृ. १अ - ५आ, संपूर्ण.
२० स्थानकतप स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: श्रीजिनमुखकजवासनी, अंति: नितु नि मंगल चारजी, ढाल -६, गाथा- ८१.
६०००५. (+#) जसराज कृत बावनी, संपूर्ण, वि. १८७५, पौष कृष्ण, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ५, पठ. मु. पदमसी (गुरु ग. रविविजय, तपगच्छ); गुपि. ग. रविविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, १५X३६).
अक्षरबावनी, मु. जसराजजी मु. जिनहर्ष, पुहिं, पद्य, वि. १७३८, आदिः ॐकार अपार जगत आधार, अंति: गुण चितकु रिझाए है, गाथा-५०.
६०००६. भावप्रकरण की अवचूर्णि, षड्द्रव्य विचारणगाथा सह अर्थ व गतिआगति विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ,
पृ. १४-९(१ से ९)=५, कुल पे. ३, दे., (२५X१२, १३x४४-४७).
१. पे. नाम. भावप्रकरण की अवचूरि, पृ. १०अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
भाव प्रकरण- अवचूरि, ग. विजयविमल, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: ( १ ) तट्टीकादेर्लिखितम्, (२) विहितेयं विजयविमलेन
२. पे. नाम. षट्द्द्रव्य विचार गाथा सह विवरण, पृ. १० अ- १०आ, संपूर्ण.
६ द्रव्यपरिणाम विचार गाथा, प्रा., पद्य, आदिः परिणामि जीव मुत्ता; अंतिः सुद्धबुद्धिहिं, गाथा-३.
६ द्रव्यपरिणाम विचार- विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: कोण द्रव्य परिणामी, अंति: नविजहंति ए वचनमांहि.
३. पे, नाम, गतागत विचार पृ. ११अ १४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है.
गतागति २४ दंडक के ५६३ भेद विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: भरतक्षेत्रमां जीवरा अंति: (-) (पू. वि. गत ५६१ जीव भेद तक पाठ है.)
६०००७, (२) नमिप्रवज्या, वीरथुई व जिनधर्म महिमा, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र. वि. अवाच्य अक्षर पत्रों
पर आमने-सामने छप गए हैं. दे. (२५x१२, १३४३६).
""
१. पे नाम, नमिरायरखिश्वरकि प्रव्रज्या, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण
उत्तराध्ययन सूत्र - हिस्सा नमिप्रव्रज्याध्ययन ९. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पद्य, आदि चहऊण देवलोगाओ उवपन्न, अंतिः
जहा से नमी रासरिसि, गाथा - ६२.
२. पे. नाम. विर थुई. पू. ३अ ४आ, संपूर्ण.
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१०६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति:
आगमिस्संति तिबेमि, गाथा-२९. ३. पे. नाम. जिनधर्म महिमा, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), श्लोक-१६, (वि. स्याही फैलने से पाठ
अवाच्य है.) ६०००८. श्रीपालराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-१६(१ से ९,१२ से १६,१९ से २०)-५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११.५, १५४३१-३५). श्रीपाल रास-बृहद, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल १२ से ढाल २७ गाथा
१३ अपूर्ण तक है.) ६०००९. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पठ. आणंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, १६४५१).
बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: लोकांतिक देवता ते; अंति: एतले मेरूने मध्ये, (वि. कर्मविषयक बोल संग्रह.) ६००१०. नवतत्त्व विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२६४१२, १९४३९-४१).
नवतत्त्व विचार*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीगुरु प्रसादे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पुन्यतत्व वर्णन
प्रारंभ तक लिखा है.) ६००११. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, साधुअतिचार, क्षामणासूत्र व मंत्र, संपूर्ण, वि. १८७६, वैशाख अधिकमास शुक्ल, २, सोमवार,
मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ४, प्रले. मु. दोलतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १५४३४-३८). १. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. २. पे. नाम. साधुपाक्षिकादिअतिचार, पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण.
साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दसणम्मि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ३. पे. नाम. साधुपाक्षिकादिक्षामणासूत्र, पृ. ५आ, संपूर्ण..
क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पियं च मे जंभे; अंति: मणसा मत्थएण वंदामि, आलाप-४. ४. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण.
___ मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवती परमेसरि; अंति: स्वाहा मंत्र २१ वार. ६००१२. (+) चौमासीपर्व देववंदन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-९(१ से ९)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११, ११४२८-३१). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मल्लिजिन से महावीरजिन
चैत्यवंदन अपूर्ण तक है.) ६००१३. (#) उपदेशछत्तिसि व बावनी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
(२५.५४१२, २०२५३-५५). १.पे. नाम. उपदेशछत्तीसी, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.
उपदेशछत्रीसी, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सरूप जामै प्रभूत; अंति: जिनहरष० मोकुं दिजीयो, गाथा-३६. २. पे. नाम. बावनी, पृ. ३अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अक्षरबावनी, मु. उदैराज, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: ॐकाराय नमो अकल अवतार; अंति: (-), (पूर्ण,
पू.वि. गाथा ५२ अपूर्ण तक है.) ६००१४. (+) बुटाजी की ढाल विवाहलो, संपूर्ण, वि. १९वी, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. विकानेर, प्रले. मु. विजयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १४४३८).
बुढ़ापा चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: जंबुद्वीपनै भरतमै; अंति: धर्म विना जीवनी कमाई, ढाल-१२. ६००१५. (#) गौतमपृच्छा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप
गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १४४३३-३६).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
१०७ गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल
चोपइनी गाथा १४ अपूर्ण तक है.) ६००१६. (+) श्रीपालराजानोरास, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १२५-५४(१ से ५४)=७१, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. द्विपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १४४३८-४५).
श्रीपालराजा चरित्र*,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड ४ ढाल ४ गाथा १० अपूर्ण से ढाल १३ अपूर्ण
तक है.)
६००१७. (+) चौमासापर्वादि व्याख्यान व कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१७, चैत्र कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ७९, कुल पे. ११,
प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, १३४३७). १. पे. नाम. चतुर्मासिकपर्व व्याख्यान, पृ. १अ-१९अ, संपूर्ण.
चातुर्मासिक व्याख्यान*,रा., गद्य, आदि: श्रीपार्श्व सुख; अंति दुक्कडम् होज्यो. २. पे. नाम. अट्ठाईपर्व व्याख्यान, पृ. १९अ-३१अ, संपूर्ण.
अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, रा., गद्य, आदि: शांतीशं शांतिकर्तार; अंति: मनोवांछित सिद्ध हुवै. ३. पे. नाम. दीवालीपर्व व्याख्यान, पृ. ३१अ-४९आ, संपूर्ण.
दीपावलीपर्व व्याख्यान, रा., गद्य, आदि: पणमिय वीरं वुच्छं; अंति: मंगलीकमाला संपजे. ४. पे. नाम. सौभाग्यपंचमी व्याख्यान, पृ. ४९आ-५३आ, संपूर्ण.
वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ज्ञानं सारं सर्व; अंति: माला संपजै. ५. पे. नाम. कार्तिक पूनम व्याख्यान, पृ. ५३आ-५७अ, संपूर्ण.
कार्तिकपूर्णिमा व्याख्यान, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: सिद्धोविज्जायचक्की; अंति: आपरो जणमारो सफल करणौ. ६. पे. नाम. मौनइग्यारस कथा, पृ. ५७अ-६०आ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व कथा, रा., गद्य, आदिः (१)सिरि वीरं नमिऊण, (२)श्रीमहावीरस्वामीने; अंति: तपस्या अंगेजी. ७. पे. नाम. पोषदशमी कथा, पृ. ६०आ-६३अ, संपूर्ण.
पौषदशमीपर्व कथा, रा., गद्य, आदि: (१)ध्यात्वा वामेयमहँत, (२)अगणित महिमारा भंडार; अंति: जावज्जीव अंगेजी. ८.पे. नाम. मेरूतेरस कथा, पृ. ६३अ-६७आ, संपूर्ण. _मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान-भाषांतर, मा.गु., गद्य, आदि: (१)मारुदेवं जिनं नत्वा, (२)श्रीऋषभदेवस्वामीनै; अंति:
संपत्ति प्रगट हुवै. ९. पे. नाम. होलिकापर्व कथा, पृ. ६७आ-७२आ, संपूर्ण.
होलिकापर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: फागुण सुदि पूनिम दिन; अंति: ऋद्धि सुख संपदा पामै. १०. पे. नाम. आखातीजरी कथा, पृ. ७२आ-७५आ, संपूर्ण.
अक्षयतृतीया व्याख्यान, रा., गद्य, आदि: (१)प्रणिपत्य प्रभु पार, (२)श्रीचिंताणिपार्श्वना; अंति: मंगलीक माला संपजै. ११. पे. नाम. रोहिणी कथा, पृ. ७५आ-७९अ, संपूर्ण.
रोहिणीतप कथा, रा., गद्य, आदि: (१)उच्छिट्ठम सुंदरय, (२)उषराड अनै विरुऊ जूठो; अंति: क्षय करी मुगतै गया. ६००१८.(+) आगमसार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७४, प्र.वि. *पत्र अबरख युक्त है, संशोधित., दे., (२५.५४१२, ११४३३-३६).
आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: हिवै भव्यजीवने; अंति: तिथि सफल फली मन आस. ६००१९. (+) श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १९१७, माघ कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ६८,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१२, १३४३०-३५).
श्रीपाल चरित्र-बालावबोध, मु. देवमुनि, मा.गु., पद्य, वि. १९१७, आदि: श्रीअरिहंत सुसिद्धपद; अंति: मुनि कथा
लिखी सुजगीस, प्रस्ताव-४, ग्रं. १८००. ६००२०. (+) सूक्तमाला सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अन्य. पं. भगवानविजय,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १३-१५४३७-५०).
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१०८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलकुशलवल्लि; अंति: (-), (पू.वि. वर्ग २ गाथा १२
तक है.)
सूक्तमाला-बालावबोध, मु. प्रतापविजय, मा.गु., गद्य, आदि: तदनुक्रम संग्रहो; अंति: (-). ६००२१. देववंदन संग्रह विधिसहित, संपूर्ण, वि. १९५४, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ५२, कुल पे. ५, ले.स्थल. मोटा गाव,
पठ. पंडित. हीमतविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१२.५, ११-१२४३०-३६). १. पे. नाम. दीपालीकाना देववंदन, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (१)थापनाथापी
इरीयावहीपड, (२)वीरजिनवर वीरजिनवर; अंति: प्रगटे सकल गुण खाण. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमी देववंदन विधि, पृ. ५अ-१५आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः (१)प्रथम बाजोट मांडी,
(२)श्रीसौभाग्यपंचमी तणो; अंति: विजयलक्ष्मी शुभ हेत, पूजा-५. ३. पे. नाम. मौनएकादशी देववंदन विधि, प्र. १५-२५आ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व देववंदन, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नगर गजपूर पुरंदर; अंति: परे रूपविजय सुहंकरं. ४. पे. नाम. चैत्रीपूनमना देववंदन विधि, पृ. २५आ-३५अ, संपूर्ण. चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (१)प्रथम चौमुख प्रतिमा, (२)नाभि नरेश्वर वंश;
अंति: दान अधिक आणंद, देववंदनजोडा-५. ५. पे. नाम. चोमासी देववंदन विधि, पृ. ३५अ-५२आ, संपूर्ण. चौमासी देववंदन सविधि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (१)प्रथम ईरियावहि पछे, (२)श्रीशंखेश्वर ईस्वर; अंति:
विजय शिव मंदिरीई रे, गाथा-४२५. ६००२२. (#) ढालसागर, अपूर्ण, वि. १९०४, माघ शुक्ल, ५, बुधवार, मध्यम, पृ. १२५-४९(१ से ३,६,८ से ११,१३ से ३१,४६ से
४७,४९ से ५०,७२ से ७३,८१ से ८२,८८ से ९०,९४ से १०३,१२२)=७६, ले.स्थल. भाणपुर, प्रले. मु. ॐकारजी (कमलगच्छ); पठ. मु. सुखलाल (गुरु मु. देवीचंद); गुपि. मु. देवीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (१०६३) कड कुबडी कड बेगडी, दे., (२७.५४१२,१५४४४). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदिः (-); अंति: जंपे संघरंग वधामणो, खंड-९,
(पू.वि. गाथा ८७ से हैं., वि. ढाल १५१.) ६००२३. (#) श्रीपालराजा रास व दूहा, संपूर्ण, वि. १९२३, माघ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ४४, कुल पे. २, ले.स्थल. सरसापटण,
प्रले. मु. शिवराज ऋषि (गुरु मु. किशोरचंद ऋषि); गुपि.मु. किशोरचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२, १३-१५४२८-३८). १.पे. नाम. श्रीपालराजा रास, पृ. १आ-४४आ, संपूर्ण. श्रीपाल रास-बृहद्, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुण; अंति: जिनहरष लुणिज्यो रे,
ढाल-४९, गाथा-८५२. २. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. ४४आ, संपूर्ण.
जैनदुहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: साजन फलज्यो फूलज्यौ; अंति: इणही रंग रहिज्यो, गाथा-१. ६००२४. (+#) वछहसरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८७२, श्रावण शुक्ल, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४०, ले.स्थल. गोलनगर, प्रले. मु. मानसोम
(गुरु मु. नरेंद्रसोम); गुपि. मु. नरेंद्रसोम (गुरु मु. फतेहसोम); मु. फतेहसोम (गुरु मु. कनकसोम), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (११२३) जेसी हती तेसी लखी, जैदे., (२५४१२, १३४३०). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदिसर आदे करी चोवीसे; अंति: दिन
दिन हुयै जयजयकार, खंड-४, गाथा-९१४, (वि. ढाल ४८.) । ६००२५. (+#) स्तवन व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३१, कुल पे. ८६, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३८-४३).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
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१. पे नाम, शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिनेसर साहीबा, अंतिः मोहन जय जयकार, गाथा- ७.
२. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. केशरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभजिणेशर वालहो मुज; अंतिः केशर० दरिसण सुख थाय,
गाथा- ७.
४. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ संपूर्ण
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गाथा-५.
३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र - गोडीजी, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनमुख पंकज, अंति: उदय सुसेवक तास तणो,
१०९
मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: अजितजिणेशर सेबीइ रे; अंतिः विनय वंदे नितमेव गाथा ५.
५. पे. नाम. वीर स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर वंदीये; अंति: उत्तम एहवी वाणी रे, गाथा- ८. ६. पे. नाम. शेत्रुंजय स्तवन, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मारू मन मोह्यं रे; अंति: कहेतां नावे पार,
गाथा ५.
७. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. विनयविबुध शिष्य, मा.गु., पद्म, आदि: मीठो मुने लागे रे अंतिः प्रभुजी पूरो आश रे,
गाथा-८.
१०. पे. नाम. सर्वज्ञ स्तव, पृ. ३ आ-४अ, संपूर्ण.
सर्वज्ञजिन स्तवन, मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदिः प्रभुजि सू लागे; अंति: नित नांमे सीस के, गाथा-७.
गाथा ५.
८. पे नाम. राणपुर आदि स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन- राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदिः राणपुरो रलीयामणी रे, अंति: लाल समयसुंदर सुखकार, गाथा- ७.
९. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण.
संभवजिन स्तवन- धाणसामंडण, मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमो भवियां जिनवर, अंतिः विनय नमे करजोडि रे,
११. पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन- जन्मबधाई, मा.गु, पद्य, आदिः आज तो बधाइ राजा नाभ; अंतिः निरंजन आदिसर दयाल रे,
गाथा - ६.
१२. पे नाम, अनंत स्तवन, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण.
अनंतजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि धार तरवरनी सोहिली, अंतिः नियत आनंदघन राज पावे, गाथा- ७.
१३. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ४-५अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: जय जगनायक जगनायक, अंतिः केशर० दरिशण सुखकंद, गाथा-५. १४. पे, नाम, निंदात्याग सज्झाय, पृ. ५अ संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झायनिंदात्यागे, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: गुण छै पूरा रे, अंतिः म भणीस हलुआ रे बोल,
गाथा- ६.
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१५. पे. नाम. अरणकराजऋषि स्वाध्याय, पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण.
अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु, पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंतिः मनवंछित फल सिधो जी,
गाथा - १०.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६. पे. नाम. नेमी स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: कालिने पीलि वादली; अंति: कांति नमे वारंवार, गाथा-७. १७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तव, पृ. ६अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिनगीत, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे एही जचाहीइं; अंति: आनंदघन न ध्यावं, गाथा-२. १८. पे. नाम. चउवीसतीर्थंकर स्तवन, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, म. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणम; अंति:
तास सीस पभणे आणंद, गाथा-२९. १९. पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. ७आ-९अ, संपूर्ण.
आदिजिन बृहत्स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमिय सयल जिणंद; अंति: प्रेमविजय० मुझ
सेवा, गाथा-४२. २०.पे. नाम. ढंढणऋषि स्वाध्याय, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.
ढंढणऋषि सज्झाय, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढणऋषिने वंदणा; अंति: कहै जिणहरष सुजाण रे, गाथा-९. २१. पे. नाम. आत्महित स्वाध्याय, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि: सुण बेहेनी पीयुडो; अंति: राजसमुद्र० सोभागी रे,
गाथा-८. २२. पे. नाम. मेघकुमार स्वाध्याय, पृ. १०अ, संपूर्ण.
मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावे रे मेघ; अंति: छुटे भव भव पास, गाथा-५. २३. पे. नाम. सीता स्वाध्याय, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलजलती मिलती घणीरे; अंति: नीत
प्रणमीजे पाय रे, गाथा-९. २४. पे. नाम. इलापुत्र स्वाध्याय, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामेलापूत्र जाणीयै; अंति: लब्धिविजय गुण गाय,
गाथा-९. २५. पे. नाम. विमलाचल स्तवन, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आंखडीआं अम्हे आज; अंति: ते श्रीआदेसर तुठारे,
गाथा-७. २६. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. ११आ, संपूर्ण. सुमतिजिनसमवसरण गीत, ग. जीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज हुंगई थीरे समवस; अंति: जीतना डंका वाजे रे,
गाथा-७. २७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तव, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. केसर, पुहिं., पद्य, आदि: मनमोहन मूरत पास की; अंति: संपत दीजो उलास की, गाथा-३. २८. पे. नाम. बीजतिथीस्तवन, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तवन, ग. गणेशरुचि, मा.गु., पद्य, वि. १८१९, आदि: वीरजिणेसर इम वदे रे; अंति: गणेशरूचि० वंदु पाय,
गाथा-१६. २९. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. १२आ-१४अ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरुपाय; अंति: भगत
__ भाव प्रसंसयो, ढाल-३, गाथा-२५. ३०. पे. नाम. अष्टमी स्तवन, पृ. १४अ-१५अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मारे ठाम धर्म; अंति: कांति सुख पावे घणो,
ढाल-२, गाथा-२४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
३१. पे. नाम. मौनएकादशी फलप्ररूपण स्तवन, पृ. १५अ-१६आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमी पूछे वीरने; अंति: जिनेंद्र०भवियण
सादरे, ढाल-३, गाथा-२८. ३२. पे. नाम. मौनएकादशी स्वाध्याय, पृ. १६आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज एकादसी रे नणदल; अंति: उदयरतन० लीला लहेसे,
गाथा-७. ३३. पे. नाम. पंचमीतप स्वाध्याय, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. __ पंचमीतिथि सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहगुरु चरण पसाउले रे; अंति: कांतिविजय गुण गाय,
गाथा-७. ३४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण.
ग. कपूरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी त्रिसलासुत; अंति: सातिम सुख पावे रे लो, गाथा-७. ३५. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण.
पं. कपूरविजय गणि, रा., पद्य, वि. १८२३, आदि: वीरजिणेसर वंदीइं; अंति: कपूरविजय जयकार, गाथा-११. ३६. पे. नाम. बारमासो, पृ. १८अ-१९अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती बारमासो, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण मासे स्वाम; अंति: एम नवेनिधान पामीरे, गाथा-१३. ३७. पे. नाम. नाडूलमंडण पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन-नाडोलमंडन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपद्मप्रभु जिनराय; अंति: घरि दीइं एम
आसीस रे, गाथा-१५. ३८. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती पद, मु. प्रमाणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: नव भव केरी प्रीत; अंति: प्रमाणसागर० बंधण छोड, गाथा-९. ३९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २०अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन होरी, मु. रत्नसागर, पुहिं., पद्य, आदि: रंग मच्यो जिनद्वार; अंति: रत्नसागर० बोले जयकार, गाथा-५. ४०. पे. नाम. विजयधर्मसूरि स्वाध्याय, पृ. २०अ-२१अ, संपूर्ण.
विजयधर्मसूरि सज्झाय, मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: सासनदेवी पसायथी जोय; अंति: प्रेमे प्रणम्या पाय, गाथा-१३. ४१. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २१अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, म. धीर, पुहि., पद्य, आदि: अजब ज्योत हेरी जिन; अंति: आसापुरो मेरे मनकी, गाथा-३. ४२. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २१अ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: देव निरंजन भव भय; अंति: रूपचंद० सो तरीया हे, गाथा-६. ४३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २१अ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: लख लहो रे लख लहो रे; अंति: गुननिरंजन पाउरे, गाथा-३. ४४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २१अ, संपूर्ण.
मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: जाग जाग जाग जाग रे; अंति: मान० सिवपुर माग रे, गाथा-४. ४५. पे. नाम. सुविधिजिन पद, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण.
मु. कनककुशल, मा.गु., पद्य, आदि: मुजरा साहिब मुजरा सा; अंति: कनक० मेवा मांगे लो, गाथा-४. ४६. पे. नाम. पार्श्वजिनहोरी पद, पृ. २१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन होरी, मु. वल्लभसागर, पुहिं., पद्य, आदि: पासजि के दरबार चलो; अंति: वल्लभ० आज सफल अवतार,
गाथा-५. ४७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २१आ-२२अ, संपूर्ण.
उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपासजी प्रगट; अंति: अवलंब्या तुज पाया रे, गाथा-५. ४८. पे. नाम. गुरू गीत, पृ. २२अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
विजयप्रभसूरि सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (१) गिराणी जल गयो हंसा, (२) समरी वर सारद सूरी; अंति: इम मानविजय गुण गावे, गाथा - ९.
४९. पे नाम, चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. २२अ २२आ, संपूर्ण
२४ जिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रह समे भाव धरी घणो अंति: नीत होय जगीसा, गाथा ५.
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५०. पे. नाम. जोबनीयानी सज्झाय, पृ. २२आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद - योवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जोबनियानी मोजा फोजा; अंति: कहीये वाता जेथी रे,
गाथा-५.
५१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २२आ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पुहिं, पद्य, वि. १८वी, आदि एसे जिनचरणां चितलाईय, अंतिः इण पर लिजे नाम रे, गाथा-४. ५२. पे. नाम. क्रोध सज्झाय, पृ. २२आ-२३अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., पद्म, आदि: क्रोध न करीइ भोला, अंतिः उपसम आणी पासे रे, गाथा- ९.
५३. पे. नाम. मान सज्झाय, पृ. २३अ - २३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झायमानपरिहार, पंडित, भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अभिमान न करस्यो कोई अंतिः भावसागर चोमासे हो, गाथा-८.
५४. पे. नाम. माया सज्झाय, पृ. २३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय मायापरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: माया मूल संसारनो, अंति: लहे सुख निर्वाण,
गाथा- ७.
५५. पे. नाम. लोभ सज्झाय, पृ. २३-२४अ संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय- लोभोपरि, पंडित भावसागर, मा.गु., पद्म, आदि: लोभ न करीई प्राणीया, अंतिः भावसागर० सयल जगीस रे, गाथा-८.
५६. पे नाम, आदिश्वरजिन स्तवन, पृ. २४- २४आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन- नारदपुरीमंडन, मु. वल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: चालो सहेली आपण सहु अंति: पग वल्लभ करे प्रणाम, गाथा- ७.
५७. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २४आ, संपूर्ण.
मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदिः मरूदेवीरो नंद सांमी, अंतिः प्रभुसु मलि माचो रे, गाधा-३.
५८. पे नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. २४आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मोतीडे मेह वुठारे; अंति: आणंद होत सदाई रे, गाथा-५. ५९. पे नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. २४-२५अ, संपूर्ण.
मु. वीर, मा.गु, पद्य, आदि आविजिर्णसर वीनती, अंतिः वीर नमे करजोडी रे, गाथा-५.
६०. पे. नाम. शेत्रुंजय स्तवन, पृ. २५अ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: हेजालू मन माहरो रे; अंति: न्यानसमुद्र सिरताररे, गाथा-५. ६१. पे नाम. तिर्थाधिराज शेत्रुंजय स्तवन, पृ. २५ अ- २५ आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि : आदिजिणंद नमो जयकारी, अंतिः विनय नमे लखवारी रे, गाथा- १०. ६२. पे. नाम. नेमीश्वर स्तवन, पृ. २५आ- २६अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती स्तवन, मु. विनय, मा.गु पद्य वि. १८२१, आदिः रहो रहो वाल्हा रे; अंतिः विनय लहे जयकार, गाथा ९.
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,
६३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २६अ, संपूर्ण.
मु. राज, पुहिं., पद्य, आदि: जय बोलो अश्वसेन लाला; अंति: राज० नयन विसाला की, गाथा-६. ६४. पे, नाम, तृष्णा सज्झाय, पृ. २६अ २६आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
मा.गु., पद्य, आदिः क्रोध मान मद मछर माय; अंति: विज्ञ विना निवारणे, गाथा-११. ६५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २६आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-षड्दर्शनप्रबोध, म. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: ओरन से रंगन्यारा; अंति: तो प्रीत तुमारी है,
गाथा-८. ६६. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. २६आ, संपूर्ण, शुक्रवार, प्रले. पं. मानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य.
औपदेशिक सवैया-दूहा, मं. बिरबल, पुहिं., पद्य, आदि: दूति दमण मुरख बांभण; अंति: वांध कुया माहे बोरो, पद-१. ६७. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २७अ, संपूर्ण.
मु.ज्ञानविमल, पुहि., पद्य, आदि: वीर विना वाणी कोण; अंति: ज्ञानविमल गुण गावै, गाथा-८. ६८. पे. नाम. नेमजिन पद, पृ. २७अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती गीत, म. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: नेम मिले तो वाता; अंति: रूपचंद सेवा कीजीइ हो, गाथा-४. ६९. पे. नाम. आरती, पृ. २७अ-२७आ, संपूर्ण..
पार्श्वजिन आरती, मु. मतिहंस, पुहि., पद्य, आदि: पेहली आरति अश्वसेन; अंति: प्रभुजी की आरती गाई, गाथा-१०. ७०. पे. नाम. महावीरजिन गहुंली, पृ. २७आ, संपूर्ण.
मु. वचनसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सखी राजगृही उद्यानमा; अंति: वचनसागर कहे कर जोड, गाथा-९. ७१. पे. नाम. चक्रेश्वरीमाता स्तवन, पृ. २७आ-२८अ, संपूर्ण.
चक्केसरीदेवी गीत, मा.गु., पद्य, आदि: हारेमा चक्केसरी; अंति: करे तेहने फल देजो, गाथा-८. ७२. पे. नाम. पंचासरापार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरातीर्थ, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परमातम परमेश्वरु; अंति: अक्षय अविचल
राज, गाथा-७. ७३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २८अ-२८आ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: घेर आवोने नेम वरराज; अंति: मनोरथ सहु फल्या रे, गाथा-८. ७४. पे. नाम. नेमराजुल सज्झाय, पृ. २८आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. चतुरकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत नेमकु; अंति: चतुरकुशल इम बोले वाण,
गाथा-६. ७५. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २८आ-२९अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती गीत, मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: नेमकुमर वर परणवा; अंति: कांती कहे कर जोडजी, गाथा-७. ७६. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन आव्या हे सोर; अंति: कांति० मुगते गयाजी,
गाथा-१०. ७७. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, प्र. २९आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: गगन परे विजूरी चमकै; अंति: सजन मेरा चितमे शाले, गाथा-५. ७८. पे. नाम. राधाकृष्ण होरी, पृ. २९आ, संपूर्ण.
राधाकृष्ण होरी गीत, पुहिं., पद्य, आदि: कुंण खेले रंग होरी; अंति: बाह पकर जकझोरी, गाथा-४. ७९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २९आ-३०अ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: क्या करूं मंदिर क्या; अंति: न करे दुनीयामे फेरा, गाथा-६. ८०.पे. नाम. सज्जन पद, पृ. ३०अ, संपूर्ण.
मु. कवियण, पुहिं., पद्य, आदि: दलडे दीजी केहने जी; अंति: कवियण इम गुण गाता, गाथा-५. ८१. पे. नाम. मुहपतिनी पडिलेहणा बोल, पृ. ३०अ, संपूर्ण.
मुहपति पडिलेहण के २५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र१ अरथर तत्व देख; अंति: त्रसकाय परिहरु. ८२. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ३०आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सीतलजिन सहेज सुरंगा; अंति: कुशल गुण गाया रे, गाथा-६. ८३. पे. नाम. हीरगुरू कवित, पृ. ३०आ, संपूर्ण.
हीरविजयसूरि कवित, क. सोम, मा.गु., पद्य, आदि: सबे मृगनयणी चली; अंति: कवि सोम कहे० पेटनटा, गाथा-१. ८४. पे. नाम. कलियुगसाधुपद, पृ. ३०आ, संपूर्ण.
क. धीर, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर होवे मजूर वद; अंति: श्रावक तो सेवा करे, गाथा-१. ८५. पे. नाम. कलियुगसाधु पद, पृ. ३०आ-३१अ, संपूर्ण.
मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: आवे मुनीवर चोमास; अंति: मान० इलाइद किम अवतरे, गाथा-३. ८६. पे. नाम. एकादशी स्तवन, पृ. ३१अ-३१आ, संपूर्ण. ____मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बेठा भगवंत; अंति: कहै
कह्यो द्याहडी, गाथा-१३. ६००२६. (+) सामाइकाधिकारे चंद्रलेहा चउपई, संपूर्ण, वि. १८८५, कार्तिक कृष्ण, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३२, ले.स्थल. तोलीयासर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १३४२९). चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसति भगति नमी करी; अंति: त्रिभुवनपति हुवे तेह,
ढाल-२९, गाथा-६२४. ६००२७. (+) स्तुतिस्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, कुल पे. ५५, दे., (२६४१२, १३४४८-५४). १.पे. नाम. ८४ गच्छ नाम, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह अतिरिक्त पेज है, पत्रांक नहीं लिखा है.
मा.गु., गद्य, आदि: १ऊमएसगच्छ २ वडगच्छ; अंति: ३ चवदसीया ८४ मधूकरा. २. पे. नाम. १० मत नाम, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह अतिरिक्त पेज है, पत्रांक नहीं लिखा है.
१० गच्छमति नाम, मा.गु., गद्य, आदि: १ तपामती २ वडपोसा; अंति: नागोरीलोका १०साकरीया. ३. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण. पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं० जयउ; अंति: पास भुवनत्तय
सामीय. ४. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: समदमोत्तम वस्तु; अंति: जयतु सा जिनशासनदेवता,
श्लोक-४. ५. पे. नाम. ऋषभस्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुक्तियहार सुतार; अंति: सुहाणि कुणेसु सया, गाथा-४. ६. पे. नाम. पार्श्वपलांकित स्तुति, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञ ज्योति; अंति: वृद्धिं वैदुष्यम्, श्लोक-४. ७. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमा; अंति: सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. ८. पे. नाम. द्वितीया स्तुति, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ९. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण.
अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै; अंति: विहसंति कल्याणदाता, गाथा-४. १०. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण..
मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: पूवः क्षितौ कल्याणा, श्लोक-४. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोक; अंति: मज्जन
स्वस्तिनजाघः, श्लोक-४.
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११५
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ १२. पे. नाम. वीसविहरमान स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण.
विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषय; अंति: जण मनवंछित सारै, गाथा-४. १३. पे. नाम. अणोजा स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: यदहिनमनादेव देहिन; अंति: नित्यं मम मंगलेभ्यः, श्लोक-४. १४. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: युगादिपुरुषंद्राय; अंति: कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. १५. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. ७अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: ऋषभनाथभिनाथनिभानन; अंति: तनुभातनुभातनु भारती, श्लोक-४. १६. पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. ७अ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरल कुवल गवल; अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. १७. पे. नाम. से@जा स्तुति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेजमंडण आदि; अंति: नंदसूरि० पाय सेवता, गाथा-४. १८. पे. नाम. दीपमालिका स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: पापायां पुरि चारु; अंति: शार्दूलविक्रीडितम्,
श्लोक-४. १९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.
आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन नरेसर वामा; अंति: जिनभक्ति० बहु वित्त, गाथा-४. २०. पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. ८अ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: दद्यात्सौख्यम्, श्लोक-४. २१. पे. नाम. जिनकुशलसूरि कृत स्तुति, पृ. ८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: दें कि धप; अंति: दिशतु शासनदेवता,
श्लोक-४. २२. पे. नाम. आठम स्तुति, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
अष्टमीतिथि स्तुति, मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चौवीसे जिनवर प्रणमुं; अंति: शासणिसूरी सुभ ज्झाण, गाथा-४. २३. पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुरति मनमोहन कंचन; अंति: इम श्रीजिनलाभसूरीश,
गाथा-४. २४. पे. नाम. नेमिनाथ स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति-गिरनारमंडन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गिरिनार शिहर पर नेमि; अंति:
जिनलाभसूर०फले सुजगीस, गाथा-४. २५. पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: बाला पणै डावै पाय; अंति: काज चढे प्रमाणै, गाथा-४. २६. पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र स्तुति, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमंत सुरनर पाय; अंति: चंद समकित नित वलं, गाथा-४. २७. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदु पाय; अंति: करौ अंबिका देवियें, गाथा-४. २८. पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र स्तुति, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जगनायक दायक सिद्ध; अंति: भाखै श्रीजिनचंद, गाथा-४. २९. पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा-४.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३०. पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण.
मु. जिणचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुखसंपति दायक समरूं; अंति: श्रीजिणचंदनी वाणी, गाथा-४. ३१. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वली वली हुंध्यावं; अंति: कहै जिनलाभसूरींद, गाथा-४. ३२. पे. नाम. दंडक स्तुति, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण.
२४ दंडक स्तुति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: रुचितरुचिमहामणि; अंति: दद्यादलं भारती भारती, श्लोक-४. ३३. पे. नाम. शत्रुजय स्तुति, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण.
५ तीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशजयमुख्य; अंति: संतु भद्रंकराः, श्लोक-४. ३४. पे. नाम. शांति स्तुति, पृ. १०आ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: देवदेवाधिपैः सर्वतो; अंति: यच्छताद्वस्सदा, श्लोक-४. ३५. पे. नाम. इग्यारसी स्तुति, पृ. १०आ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: दीक्षा श्रीअरनाथकस्य; अंति: ज्ञानस्य लाभं सदा, श्लोक-४. ३६. पे. नाम. जिन स्तुति, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण.
समवसरण स्तुति, मु. जयत, मा.गु., पद्य, आदि: मिल चौविह सुरवर; अंति: पामी जैत सुनाणी, गाथा-४. ३७. पे. नाम. दश पच्चक्खाण, पृ. ११अ-१२अ, संपूर्ण.
प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: गारेणं वोसिरामि, (वि. आगार सहित.) ३८. पे. नाम. विगय महाविगय निवियातादि विचार, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण.
विगयनिवियातादि विचार, रा., गद्य, आदि: दूध१ दही२ घृत३ तेल४; अंति: पांच निवीयाता जाणवा. ३९. पे. नाम. प्रवज्याभिधान कुलक, पृ. १२आ-१३आ, संपूर्ण.
प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संसार विसमसायर भवजल; अंति: तरंति ते भवसलिलरासिं, गाथा-३४. ४०. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १३आ-१५आ, संपूर्ण.
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. ४१. पे. नाम. रात्रीसंथारा गाथा, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण.
संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: हे वंदामि जिणेचउवीसं, गाथा-१९. ४२. पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १६अ-१७अ, संपूर्ण.
वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, गाथा-५०. ४३. पे. नाम. अतिचार आलोचना, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण.
अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: आजूणा चउपहुर दिवसमा; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ४४. पे. नाम. थंभणपुरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १७आ-१९अ, संपूर्ण. __ जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: अभयदेव०
आणंदिअ, गाथा-३०. ४५. पे. नाम. सप्तस्मरण, पृ. १९अ-२४आ, संपूर्ण. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं; अंति: (१)नमामि
साहम्मिया तेवि, (२)भवे भवे पास जिणचंद, स्मरण-७, (वि. अंतिम उवसग्गहरं स्तोत्र का मात्र प्रतीक पाठ लिखा है.) ४६. पे. नाम. लघुशांति, पृ. २४आ-२५अ, संपूर्ण.
आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ४७. पे. नाम. सप्ततिशतजिन स्तवन, पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण..
तिजयपहत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ४८. पे. नाम. नवग्रह स्तोत्रमय पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २५आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति:
जिणप्पहसूरि०न पीडंति, गाथा-१२. ४९. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, प्र. २५आ-२७आ, संपूर्ण.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ५०. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. २७आ-२९आ, संपूर्ण.
आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. ५१. पे. नाम. महावीरसमसंस्कृतबृहत् स्तोत्र, पृ. २९आ-३१अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: दृष्टि
दयालो मयि, श्लोक-३०. ५२. पे. नाम. वीर चरित्र, पृ. ३१अ-३२अ, संपूर्ण. दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीर मोहपंको; अंति: सया पायप्पणामो तुह,
गाथा-४४. ५३. पे. नाम. जीवविचार, पृ. ३२अ-३३आ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति:
संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ५४. पे. नाम. नवतत्त्व, पृ. ३३आ-३५अ, संपूर्ण.
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१जीवार पुण्णं३; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४९. ५५. पे. नाम. दडंक प्रकरण, पृ. ३५अ-३५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २८
अपूर्ण तक है.) ६००२८. (#) लब्धिप्रकास सह चौपाई, संपूर्ण, वि. १९६८, आश्विन कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ३६, ले.स्थल. वीकानेर, अन्य. मु. सिरदार;
प्रले. मु. गणेश महात्मा (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. २०००, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, प्र.ले.श्लो. (६) कर कूबड मस्तक अधो, (५६५) याद्रसं पुस्तकं दृष्ट्वा, (११४२) थली हमारो देश है, (११४३) मंगले लेखकानांच, दे., (२५.५४१२, १६x४६-५६). लब्धिप्रकाश, क. नंदलाल, प्रा., पद्य, वि. १९०३, आदि: नमिऊण महावीरं वंदामि; अंति: मिच्छामि दुक्कडम,
गाथा-३५. लब्धिप्रकाश-स्वोपज्ञ चौपाई, क. नंदलाल, मा.गु., पद्य, वि. १९०३, आदि: रामचंद्र बनवास में; अंति: सत्गुरु की
कृपा थाय. ६००२९. चंद्रकेवलि रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३३, जैदे., (२५४१२, १४४३७).
चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल १५ गाथा १ अपूर्ण तक लिखा है.) ६००३०. (+) श्रेणिक चरित्र, संपूर्ण, वि. १९६४, वेदशास्त्रनिधिब्रह्म, फाल्गुन शुक्ल, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३४, प्रले. ललित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, २१४६८). श्रेणिकराजा रास, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९३९, आदि: जै जै जै जिन जगगुरु; अंति: (१)तेही भवजल से
तिरेजी, (२)जन्मादि अधिकार, ढाल-८४. ६००३१. अंजनासती रास, संपूर्ण, वि. १८४५, माघ कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. २७, प्रले. मु. तेजवर्द्धन (गुरु मु. देवसुंदर), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, ११४२८).
अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: पेहलेने कडवे हो पाय; अंति: सतीय सीरोमणी अंजना, गाथा-३१२. ६००३२. (+) प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, ले.स्थल. लिखणेउ, प्रले. पदमसी, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल ग्रं. ९०००, जैदे., (२६४१२.५, १४४३५).
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११८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक-बीजक, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गद्य, वि. १८५३, आदि: पहिलै बोलै तीर्थंकर; अंति: भयौ
जैसलमेर मझार, प्रश्न-१५१. ६००३३. (+#) मुनिपति रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२-४(१३ से १६)=२८, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं..प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४३५-४२). मुनिपति रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६१, आदि: सकल सुख मंगल करण; अंति: (-), (पू.वि. ढाल २७
गाथा २५ तक है.) ६००३४. (+#) विक्रमादित्य चौपाई, संपूर्ण, वि. १८३७, वैशाख शुक्ल, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३०, ले.स्थल. सकराणी, प्रले.पं. जगरूपकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १०४२७). विक्रमादित्य चौपाई, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: सरस वचन द्यो सारदा; अंति: वंती कामणि इमया
कहीए, गाथा-४६९. ६००३५. चोसठप्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-२(१,११)=२३, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., दे., (२५४१२, १८४३७-४१). ६४ प्रकारी पूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ज्ञानावरणीय
पूजा प्रारंभ के दूहा ५ अपूर्ण से अंतरायकर्म ढाल ५ गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ६००३६. (+) परदेशीराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१२, १४४३६). केशीगणधर प्रदेशीराजा चौपाई, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमी श्रीअरिहंत; अंति: पार समकित
सुद्ध आधार, ढाल-४१, गाथा-५९४. ६००३७. (+) चौवीसदंडक ३०द्वार, संपूर्ण, वि. १८४७, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले.स्थल. सारंगपुरनगर,
प्रले. आ. नानजी (मुहर्पुष्करा ग); पठ. श्राव. लालचंद; लिख. श्राव. पर्वतसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १३४४६).
२४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक१ लेस्सार ठिती३; अंति: ऊ०६ मासनो आंतरो. ६००३८. (+) अट्ठाई व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९५६, श्रावण शुक्ल, ४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले.स्थल. फलवृद्धिका नगर, प्रले. मु. जवाहरमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीऋषभदेवजी प्रशादातं., संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १३४२५-३५).
अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, रा., गद्य, आदि: शांतीशं शांतिकर्तार; अंति: मनोवांछित सिद्ध हुवै. ६००३९. (+) छत्तीसबोलनो थोकडो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, ११४२७-३०).
३६ बोल थोकडो, मा.गु., गद्य, आदि: एगेविहेअसंयमे एगेलो; अंति: जीव विनतिरो अध्ययन. ६००४०. श्रीपालराजा रास, संपूर्ण, वि. १७५५, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदे., (२६४१२,१०४२९).
श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १५३१, आदि: करकमल जोडि करि सिद्ध; अंति: ज्ञान० भूपति श्रीपाल,
गाथा-३२६. ६००४१. (+#) इलाकुमार चौपाई, संपूर्ण, वि. १९१९, श्रावण कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. सुरतनगर, प्रले. नागरदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १०४३२). इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: सकल सिद्धदायक सदा; अंति:
न्यानसागर० अजुआलइ छे, ढाल-१६. ६००४२. (#) सामायिकाधिकारे चंद्रलेखा चउपई, संपूर्ण, वि. १८८०, आषाढ़ शुक्ल, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. १८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२.५, १८४४१).
चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसति भगवति नमी करी; अंति: त्रिभुवनपति हुवे तेह,
ढाल-२९, गाथा-६२४. ६००४३. (+#) मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-२(१,७)=१९, पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४३६-४०).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
११९ मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: (-); अंति: (-),
(पू.वि. ढाल १ दूहा ११ अपूर्ण से ढाल २२ गाथा १० अपूर्ण तक है व ढाल ५ गाथा १० अपूर्ण से ढाल ७ गाथा १४
अपूर्ण तक नहीं है.) ६००४४. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९१८, फाल्गुन कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले.स्थल. विसाहु, प्रले. केसु ब्राह्मण; लिख. मु. लालचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२.५, १०४२०).
साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: पांच भरत पांच एरवत; अंति: देवमुनि ते संथुण्या, ढाल-१३, गाथा-३७७. ६००४५. (+#) अट्ठाई व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८९९, चैत्र शुक्ल, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. १९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल ग्रं. ५९३, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१२.५, १४४३१).
अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, रा., गद्य, आदि: शांतीशंशांतिकर्तार; अंति: मनोवांछित सिद्ध हुवै. ६००४६. (#) जंबूस्वामी कथानक, पूर्ण, वि. १८९३, आश्विन शुक्ल, २, बुधवार, मध्यम, पृ. २३-१(१८)=२२, ले.स्थल. पालीताणा,
प्रले. मु. मूलराज (गुरु मु. मनरूपराज, अंचलगच्छ); गुपि.मु. मनरूपराज (गुरु मु. सरूपराज, अंचलगच्छ); मु. सरूपराज (गुरु मु. पद्मराज, अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३०-३४). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: सप्रभावं जिनं; अंति: अपछमानंदन केवलीणं, (पू.वि. बीच का
पाठांश नहीं है.) ६००४७. (+) ठाणांगसूत्र के बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, २२४४५).
स्थानांगसूत्र-बोल, मा.गु., गद्य, आदि: एगे आया एगे अणया; अंति: बार बार पचखाण भांजसो. ६००४८. (+#) चंद्रलेहा रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, जैदे., (२५४११.५, १८४३४). ___ चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसति भगति नमी करी; अंति: भुवनपति हुवें तेंह,
ढाल-२९, गाथा-६२४. ६००४९. (+#) हंसराजवछराज चौपाई, संपूर्ण, वि. १९६७ शुक्ल, मध्यम, पृ. १५, प्रले. चतुर्भुज व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १५४४४). हंसराजवछराज चौपाई, मु. विनयमेरु, मा.गु., पद्य, वि. १६६९, आदि: वीर जिणेसर चरम जिण; अंति: गहगहइ गावता
लीलविलास, खंड-४. ६००५०. द्रौपदी चौपाई, अपूर्ण, वि. १७५८-१८६८, वैशाख कृष्ण, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २६-६(२० से २५)=२०,
ले.स्थल. पीलवा, प्रले. सा. चंदना आर्या (गुरु सा. कुशालाजी आर्या); गुपि. सा. कुशालाजी आर्या, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५४११.५, २१४५०). द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६९३, आदि: पुरसादाणी पासजण चरण; अंति: कनककीरति
सुखकार, ढाल-३९, गाथा-१११७, (पू.वि. ढाल ३० गाथा ३ अपूर्ण से ढाल ३९ गाथा १४ अपूर्ण तक नहीं है.) ६००५१. (#) विचारसार चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४-१६(१,३ से ५,११ से १९,२८ से ३०)=१८, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १४-१७४४५). सारविचार चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., गाथा-१२ से ९१६ अपूर्ण तक
है. जिसमें बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) ६००५२. चंदराजारास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७०-५३(१ से ३३,३६ से ४१,४७ से ६०)=१७, जैदे., (२५.५४११.५, १५-१७४४०-४५). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्रारंभ से
उल्लास-३ ढाल-६ गाथा-१ अपूर्ण से उल्लास-३ ढाल-१९ गाथा-८ अपूर्ण तक, उल्लास-३ ढाल- २७ गाथा-६ अपूर्ण तक, उललास-४, ढाल-३ गाथा-१७ से उल्लास-४ ढाल-२० गाथा-१० अपूर्ण तक व उल्लास-४ ढाल-२२, गाथा-९ अपूर्ण के पश्चात नहीं है.)
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१२०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६००५३. (+) पंचपरमेष्ठि गुणवर्णन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-१(१)=१४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १४४४९).
आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). (पृ.वि. प्रारंभ में नवकार मंत्र एवं गाथा-२ के
बाद का पाठ नहीं है.) षडावश्यकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
षडावश्यकसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६००५४. (#) गुणावली रास, अपूर्ण, वि. १८८१, चैत्र शुक्ल, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १८-२(१,३)=१६, ले.स्थल. कुचेरा,
प्रले. सा. अजाजी (गुरु सा. यसुजी); गुपि. सा. यसुजी; पठ. सा. चुत्रा (गुरु सा. अजाजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२६४१२, १४४४०). गुणकरंडकगुणावली रास-बुद्धिविषये, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: (-); अंति: हौ जीनहर्ष जगीस
के, ढाल-२६, गाथा-४९३, (पू.वि. प्रारंभ से ढाल-२ गाथा-७ अपूर्ण तक एवं ढाल-४ गाथा-१ अपूर्ण से ढाल-५
गाथा-१ अपूर्ण तक नहीं है.) ६००५५. (+) धूर्ताख्यान का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, पौष कृष्ण, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २१-४(५ से ७,१६)=१७, ले.स्थल. मयानगर, प्र.वि. श्रीनेमिनाथ प्रासाद., संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ११-१४४३२-३४). धूर्ताख्यान-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमालवदेशे उजेणी; अंति: अनुमोदवां ध्यावां, (पू.वि. "त्रिलोतमा दक्षिण
पासे रही ति" पाठ से "स्त्रीर्णमेरु समांन उन्नत एकवट वृक्ष देख तो हुओ" तक "उपजावतो समुद्रने बेठे मुक्यो ते" पाठ से
"समुद्रे सेतु बांधावनारे अनेक योजनाथी पछीओ" तक नहीं है.) ६००५६. (#) चंदनमलयागिरि चौपाई, संपूर्ण, वि. १८५४, चैत्र शुक्ल, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. १६, ले.स्थल. सामलगढ, पठ.
घणसीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (५६५) याद्रसं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५४११.५, १०-१२४३२-४०). चंदनमलयागिरि चौपाई, क. केसर, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: सानीधकारी सारदा समरू; अंति: तिहा घर संपति
कोडि, ढाल-११, गाथा-२६५. ६००५७. (#) महीपाल चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६-२०(१ से २०)=१६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १५४४३). महीपालराजा चौपाई, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-१ ढाल-२४ गाथा-२ अपूर्ण से
खंड-२ ढाल-१३ गाथा-२३ अपूर्ण तक है.) ६००५८. (+#) दृष्टांतशतक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, ४४४२-४६).
दृष्टांतशतक, मु. तेजसिंघ ऋषि, सं., पद्य, आदि: नत्वा श्रीऋषभं सदा; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ७५ अपूर्ण तक है.)
दृष्टांतशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमीने श्रीऋषभदेवनइ; अंति: (-). ६००६०. (+#) खंडाजोयण द्वारविचार, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ११, ले.स्थल. विकानेर, प्रले. मु. न्याय ऋषि (गुरु मु. जीत
ऋषि); गुपि. मु. जीत ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४१२, २०४५५-६०).
लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: दोय लाख झोजन लवण; अंति: चर छै बारै थिर छै. ६००६१. (+) नंदीश्वरद्वीप पूजा, संपूर्ण, वि. १९१९, चैत्र कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, ११४३५).
नंदीश्वरद्वीप पूजा, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सर्वासि वासे सुतरां; अंति: मद मान वनसिंधुराए. ६००६२. आनंदघनचौविसी आदि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-४(१ से ४)=१४, कुल पे. ५, दे., (२५४१२, ११४३२-३७). १.पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण.
मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सौधूरिश्री अरिहंत; अंति: लालचंद० वीज फलो रे, गाथा-३.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
१२१ २.पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरमणी सम सहु मंत्र; अंति: जिनलाभ० जश लीजै रे,
गाथा-१३. ३. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण.
वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथनायक जिनवरू रे; अंति: नित प्रति नमत कल्याण, गाथा-५. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा-४. ५. पे. नाम. चौवीसी, पृ. ७अ-१८आ, पूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: (-), (पू.वि. महावीरजिन
स्तवन अपूर्ण तक है.) ६००६३. (+) श्रावकपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. २१०, दे., (२५.५४१२.५, ११-१२४२८-३०).
श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि अ; अंति: करी मिच्छामि
दुक्कडं.
६००६४. (१) कयवन्ना चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ११-१३४३०-४३).
कयवन्ना चौपाई, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दान न देखइ दलिद्रहि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२६५ तक
६००६५. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा- व्याख्यान १-८, अपूर्ण, वि. १८३७, इंदुसिधीराममुनी, चैत्र शुक्ल, १५,
गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १६६-१५४(१ से १५४)=१२, ले.स्थल. मुडीआ, प्रले. पं. रामविजय (गुरु पं. हस्तिविजय); गुपि.पं. हस्तिविजय (गुरु पं. भाणविजय); पं. भाणविजय (गुरु पं. मानविजय); पं. मानविजय (गुरु पं. चतुरविजय); पं. चतुरविजय (गुरु पं. मानविजय); पं. मानविजय (गुरु पं. चंद्रविजय); पं. चंद्रविजय (गुरु मु. साधुविजय); मु. साधुविजय (गुरु मु. जीवविजय); मु. जीवविजय (गुरु उपा. कल्याणविजय); उपा. कल्याणविजय (गुरु भट्टा. विजयहीरविजयसूरि); भट्टा. विजयहीरविजयसूरि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.ले.श्लो. (१०८९) जाद्रसेन लिखतं दृष्ट्वा, जैदे., (२५४११, १२४२७-३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., "वित्थरवायणापु अज्झसभदतु
पुरोथेरावली" पाठ से स्थविरावली तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं.
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं. ६००६६. (+) चंदनबाला चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ११४२७-३०). चंदनबालासती चौपाई, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी मंडित नीलतनु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६३ अपूर्ण
तक है.) ६००६७. (+#) सुक्तावली, संपूर्ण, वि. १८७०, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. सादडी, अन्य.पं.रूपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १४४३५). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृत्यवल्लीवृंद; अंति: केसरविमलेन विबुधेन,
वर्ग-४, श्लोक-१७६. ६००६८. हितोपदेशसत्तरी, संपूर्ण, वि. १९००, चैत्र कृष्ण, ७, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्रले. पं. लखमण; पठ. श्राव. सदाकुंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, ७४१४).
औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: ऊतपत्ति जोज्यो जीव; अंति: इम कहे श्रीसार ए,
गाथा-७२.
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१२२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६००६९. (#) नेमजिन गीतादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. ५, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
(२५.५X११.५, १४-१६x४३).
१. पे. नाम. नेमजिन गीता, पृ. १अ २अ, संपूर्ण.
नेमिजिन गीता, मु. विजयसिंघ - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: भगवति भारती चीत्त; अंति: नामे जीम लहिए जयकार,
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गाथा - २९.
२. पे. नाम. राजगीता, पृ. २अ - ४अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगल तणी कल्प; अंतिः पास जिनवरतणी राजगीता, गाथा- ३६.
३. पे. नाम, पार्श्वनाथ दशभव स्तवन, पृ. ४अ ६आ, संपूर्ण,
पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. विद्याचंद, मा.गु., पद्य, वि. १६४३, आदि: श्रीजीनवर सदा ओलगुं; अंति: विद्याचंद ० जय जगतिलो, गाथा-४३.
४. पे. नाम. दानशीलतपभावना रास, पृ. ६आ-९आ, संपूर्ण, वि. १८८८, ?, ले. स्थल. लोढलाग्राम, पे. वि. प्रतिलेखन वर्ष ८८ लिखा है.
दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेसर पय नमी, अंतिः वृद्धि सुप्रसादोरे, दाल-४, गाथा- १००, ग्रं. १३५.
५. पे. नाम. सिद्धाचलउद्धार रास, पृ. ९आ-१२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल, अंति: (-),
(पू.वि. ढाल ६ गाथा ९९ तक है.)
६००७०. (+#) आठकर्म के तीसबोल विवरण, संपूर्ण, वि. १७९८, कार्तिक, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६११.५, १७x४५-४९).
८ कर्म ३० बोल विवरण, मा.गु, गद्य, आदि: ज्ञानावरणी पोलिआ अंतिः बत्रीस मोक्ष जाई.
६००७१. (+#) शियलवेलि, वीरजिन स्तवनादि, संपूर्ण, वि. १८८५, चैत्र कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. ३, ले. स्थल. पेथापुर, प्र. मु. लक्ष्मीविजय, प्र.ले. पु. सामान्य, प्र. वि. सुविधिनाथ प्रसादात्, टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६१२, ११४३४).
१. पे. नाम. वैराग्यदीपकमदनदीपक शीलवेल, पृ. १अ - १२अ, संपूर्ण.
स्थूलभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: सबल सुहंकर पासजी, अंतिः वीर० कमला बरस्यै रे, ढाल - १८.
२. पे. नाम, वर्द्धमानजिन स्तवन, पृ. १२आ, संपूर्ण,
महावीरजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी वीरजिणंदने; अंति: रंगविजय० पाय सेव हो, गाथा - ५. ३. पे नाम, दूहो, पृ. १२ आ. संपूर्ण.
औपदेशिक दोहा, मु. उदयराज, पुहिं., पद्य, आदि: हति गरज मन उर हे अंतिः फरतडी रेण गइ उदेराज, गाथा - १. ६००७२. (+) मौनएकादशीदेववंदन, चैत्यवंदन व थोय, संपूर्ण, वि. २०वी, माघ कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. वे. (२५४१२, १५X३०-३८).
"
१. पे नाम, मौनएकादशीदिन देववंदन नमस्कार, पृ. १अ-७अ संपूर्ण वि. १९०१ ले. स्थल. गढ़वेहरी साल ग्राम,
प्रले. ग. पद्मविजय, प्र.ले.पु. सामान्य.
मौनएकादशीपर्व देववंदन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल नयर सिणगार हार; अंति: मे दान सकल सुख काजे.
२. पे नाम, सीमंधर चैत्यवंदन, पृ. ७अ ७आ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन प्रार्थना स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि; शत्रुमित्र समचित्त; अंतिः वली अवधारो हेव, गाथा-१.
३. पे. नाम. सिमंधरजिन स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
१२३ सीमंधरजिन स्तुति, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सीमधर जिनपति विनति; अंति: कांति सेवक सुविवेक,
गाथा-४. ६००७३. कयवन्ना चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, दे., (२४.५४१२, १३४३३).
कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति: (-), ढाल-३१,
गाथा-५५५, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-८ गाथा-१५ तक लिखा है.) ६००७४. पार्श्वजिन आरती व चैत्यवंदनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-४(१ से ३,८)=७, कुल पे. १३, जैदे.,
(२६.५४१२, ११४३१). १. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: (-); अंति: रूप लक्ष्मी सुखमेवा, गाथा-१०,
(पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. चैत्यवंदन, पृ. ४अ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाचल सिद्ध; अंति: शिवलक्ष्मी गुणगेह, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन आरती, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भव भव आरत टालें हमार; अंति: लक्ष्मी देई सुख थायो, गाथा-५. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचलमंडणो; अंति: सीवसुख लक्ष्मीसंग हो, गाथा-७. ५. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. श@जयतीर्थ स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीरे मारे श्रीसिद्ध; अंति: सिव सुलक्ष्मी पामीए, गाथा-९,
(वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ६. पे. नाम. पूंडरगिरी स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन-पुंडरीकगिरि, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोरठ देस सोहामणो; अंति: सुख लक्ष्मी संघ
के, गाथा-७. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भीलडीयाजी, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: श्रीभिलडीया पास भेट; अंति:
लक्ष्मी० मली हो लाल, गाथा-७. ८. पे. नाम. पंचासरापार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पाटण पंचासरा, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हे साहीब मेहेर करीने; अंति: लक्ष्मी सुख
मेवा, गाथा-९. ९. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है.
मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे मारे प्रथम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) १०. पे. नाम. नारंगा पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन स्तवन-नारंग, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि: (-); अंति: लक्ष्मी गुणखाणी रे, गाथा-९,
(पू.वि. गाथा-७ से है.) ११. पे. नाम. दोढसोकल्याणक चैत्यवंदन, पृ. ९अ-१०अ, संपूर्ण.
१५० जिनकल्याणक चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक जगजयो; अंति: शिवलक्ष्मी वरीजे, गाथा-१६. १२. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण.
मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवृधमान जिनराया; अंति: लक्ष्मीवि० जगदीस रे, गाथा-१३. १३. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीद्धाचल मनोहारी; अंति: रूप लक्ष्मी घरे रमीइ,
गाथा-११.
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१२४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६००७५. मदनकुमार रास, अपूर्ण, वि. १९४४, चैत्र शुक्ल, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २६-१३(१ से ३,५ से १४)=१३, ले.स्थल. सोजत, अन्य. सा. मदनकुंवरजी म. सा., प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, १९४३०-३५). मदनसेन चौपाई, मु. सांवतराम ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८९८, आदि: (-); अंति: दुरगति दुर नसाइयै, ढाल-३१,
(पू.वि. ढाल-८ गाथा-५ अपूर्ण से ढाल-७ अंक-२४ एवं ढाल-२५ गाथा-१ अपूर्ण से अन्त तक है.) ६००७६. (+) अक्षयनिधि तपविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, १२४३८). १.पे. नाम. अक्षयनिधि तपस्तवन, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. अक्षयनिधितप स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७१, आदि: श्रीशंखेश्वर शिर; अंति: नाचवा घर बारणे,
ढाल-५, गाथा-५१. २. पे. नाम. अक्षयनिधितपखमासमणविधि दहा, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. अक्षयनिधितप खमासमण दूहा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकर संखेश्वर नमी; अति: होज्यो ज्ञानप्रकाश,
गाथा-२६. ३. पे. नाम. अक्षनिधितप गर्भित पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अक्षयनिधितपगर्भित, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: तपवर कीजे रे अक्षय;
अंति: पद्मविजय फल लीधो, गाथा-१२. ४. पे. नाम. अक्षयनिधितप विधि, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण.
___ मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण वदी चौथनें; अंति: चित्रामण करवा जोईइ. ६००७७. (+) सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०-२७(१ से २७)=१३, कुल पे. २१, प्र.वि. संशोधित., दे.,
(२५४१२, १४४३६). १.पे. नाम. चार मंगल शरण, पृ. २८अ, पूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ४ मंगल शरण, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: (-); अंति: चोथमल० बाल गोपाल, गाथा-१०,
(पू.वि. गाथा १ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. श्रावक करणी सज्झाय, पृ. २८अ-२९अ, संपूर्ण.
श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदिः श्रावग तुं उठे; अति: करणी दुखहरणी छे एह, गाथा-२३. ३. पे. नाम. क्रोध परिहार सज्झाय, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडुआं फल छे क्रोधना; अंति: निर्मळी उपशम
रस नाही, गाथा-६. ४. पे. नाम. मान परिहार सज्झाय, पृ. २९आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मान न कीजीये; अंति: देज्यो तुमे दसोटो,
गाथा-५. ५. पे. नाम. माया परिहार सज्झाय, पृ. २९आ-३०अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समकितनुं मुल जाणीये; अंति: ए मारग छे सुध
रें,गाथा-६. ६.पे. नाम. लोभ परिहार सज्झाय, पृ. ३०अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तुमें लक्षण ज्योजो; अंति: लोभ तजे तेहने
सदारे, गाथा-७. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पृ. ३०आ, संपूर्ण.
वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७८०, आदि: पासजी तोरा पाय पलक; अंति: र गाता बाधो छे प्रेम, गाथा-१०. ८. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ३०आ-३१अ, संपूर्ण.
मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजी सहजानंदी थयो; अंति: नयवीजय आणंद सहावे, गाथा-५. ९. पे. नाम. सोलसती सज्झाय, पृ. ३१अ-३१आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
१६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिनाथ आदि वीरजीने; अंति: उदयरत्न० सुखसंपदा
ए, गाथा-१७. १०. पे. नाम. आदिनाथ स्तवन, पृ. ३१आ-३२अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. महानंद, रा., पद्य, आदि: प्यारो लागे प्यारो; अंति: स्वामी तुमची हो सेव, गाथा-७. ११. पे. नाम. स्त्रीसीखामण सज्झाय, पृ. ३२अ-३३अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: एक अनोपमरे सीखामण; अंति:
उदयरत्न जस वीस्तरे, गाथा-१०. १२. पे. नाम. पुरुषसिखामण सज्झाय, पृ. ३३अ-३४अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो सुणो कंथा रे; अंति: कुमुदचंद०कहे
समझल्यो, गाथा-१०. १३. पे. नाम. शीयल नववाड सज्झाय, पृ. ३४अ-३६आ, संपूर्ण. ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: हो तेहनि जाउ भामणे,
ढाल-१०, गाथा-४३. १४. पे. नाम. जीवराशी क्षमापना, पृ. ३६आ-३८अ, संपूर्ण. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: समयसूदर० छुटे
ततकाल, ढाल-३, गाथा-३६. १५. पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. ३८अ-३८आ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिकराय रयवाडी चढ; अंति: समयसुंदर० वे कर जोडि, गाथा-९. १६. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. ३८आ, संपूर्ण.
मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढण रिषनै वंदना; अंति: कहे जिन हरख सुजाण, गाथा-९. १७. पे. नाम. सामायिक बत्रीस दोष सज्झाय, पृ. ३८आ-३९अ, संपूर्ण. ३२ सामायिकदोष सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शुभ गुरू चरणें नामी; अंति: सरगे गई सुलसा रेवती,
गाथा-९. १८.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३९अ-३९आ, संपूर्ण.
मु. नित्यलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणंद सदा शिवगामी; अंति: नीभलाभ० पेरे बोले रे, गाथा-५. १९. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. ३९आ-४०अ, संपूर्ण..
सीमंधरजिन स्तवन, मु. रूप, मा.गु., पद्य, आदि: हारे ओला चांदलिया; अंति: निज रूपने रे लोल, गाथा-६. २०.पे. नाम. तीर्थंकर परिवार स्तवन, पृ. ४०अ, संपूर्ण. जिन परिवारमान स्तवन, मु. भावविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सकल जिणेस्वर प्रणमी; अंति: भावे समरू नीसदिस,
गाथा-७. २१. पे. नाम. सातव्यसन सज्झाय, पृ. ४०अ-४०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: पर उपगारी साधु; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ४ की गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ६००७८. भाष्यत्रय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-२(३,७)=१६, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४१०.५, ३४३३). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: (-), (पू.वि. भाष्य-१ गाथा-६ अपूर्ण से
गाथा-११ अपूर्ण तक, गाथा-२५ से २८ अपूर्ण तक व भाष्य-२, गाथा-१० के पश्चात नहीं है.)
भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांदी नमस्कार करीनइ; अंति: (-), (पू.वि. भाष्य-२ गाथा-१ तक टबार्थ है.) ६००७९. उपदेशपदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. ६६, दे., (२५४१२, २०४४०-५३). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: कोई तुमारा इल्म से; अंति: है जैनी बार बार यही, गाथा-७.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. परमानंद, पुहिं., पद्य, आदि: महावीर हमें बचा लो; अंति: परमानंद॰झुका रहा हूं, गाथा-५. ३. पे. नाम. गुरु महिमा पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. परमानंद, पुहिं., पद्य, आदि: गुरुसेवा में ध्यान; अंति: परमानद० दिया करो, गाथा-५. ४. पे. नाम. गुरुगुण पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. परमानंद, पुहिं., पद्य, आदि: वारी जाउंजी सतगुरुजी; अंति: परमानंद०पार उतारनाजी, गाथा-४. ५. पे. नाम. उद्यम महिमा पद, प्र. १अ-१आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-उद्यम महिमा, मु. परमानंद, पुहि., पद्य, आदि: उद्यमकर उठके प्यारे; अंति: परमानंद० धर लीजै,
गाथा-६. ६.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-बेमेल विवाह परिहार, प. १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-बेमेल विवाह परिहार, मु. परमानंद, पुहिं., पद्य, आदि: पोति भी तोती को; अंति: यह ब्याह
लिये जाय, गाथा-६. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद-सत्संग माहात्म्य, पृ. १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-सत्संग, मु. परमानंद, पुहिं., पद्य, आदि: भरा सत्संग का दरिया; अंति: आकाल की फासी तु
डालो, गाथा-५. ८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-कुनारी परिहार, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: यह कलियुग घोर है आया; अंति: करो मत घोर अंधियारी, गाथा-१०. ९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: बिना जिनराज को देखे; अंति: से यह विनती हमारी है, गाथा-४. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद-धुम्रपान परिहार, पृ. २अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: जरा हो जाना हुशीयार; अंति: प्रगट सुनाने वाले, दोहा-४. ११. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-दहेज परिहार, पृ. २अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: कन्या रो रो करे पुका; अंति: में नाम बढाने वाले, दोहा-७. १२. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण.
पुहि., पद्य, आदि: कहां गए जैन जाति के; अंति: में मंगल चाहनेवाले, दोहा-६. १३. पे. नाम. ब्रह्मचर्य सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-ब्रह्मचर्यव्रत, पुहिं., पद्य, आदि: ले लो ब्रह्मचर्य शरण; अंति: धन हरने वाले, गाथा-५. १४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय- वेश्यावृत्ति परिहार, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण..
औपदेशिक सज्झाय-वेश्यावृत्ति परिहार, मु. परमानंद, पुहिं., पद्य, आदि: डूबे जाते हो क्यों; अंति: के रहने वाले,
दोहा-८. १५. पे. नाम. औपदेशिक पद-अनाथ, पृ. ३अ, संपूर्ण.
मु. परमानंद, पुहिं., पद्य, आदि: रोरो करे अनाथ पुकार; अंति: परमानंद० कमाने वाले, दोहा-५. १६. पे. नाम. शीलव्रत सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण.
शीयलव्रत पद, पुहिं., पद्य, आदि: पहनो पहनो री सवा मन; अंति: ती हो तुम अति दुःखडा, दोहा-४. १७. पे. नाम. पतिव्रत सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: चाहो जो स्वर्ग निवास; अंति: से ध्यान लगा लो, दोहा-५. १८. पे. नाम. नारी शिक्षा सज्झाय, प्र. ३अ-३आ, संपूर्ण.
नारीशिक्षा सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: सीता और अंजना नारी; अंति: धर्म से प्रीत बढा लो, दोहा-१०. १९. पे. नाम. नारी शिक्षा सज्झाय-विधवा, पृ. ३आ, संपूर्ण.
नारीशिक्षा सज्झाय-विधवा, पुहिं., पद्य, आदि: विधवा के धर्म सुनो; अंति: रहे जब लो जान तुमारी, दोहा-८.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ २०. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-मित्रता, पुहिं., पद्य, आदि: नर तन को पा के मूरख; अंति: रोता फिजूल क्यों है, दोहा-५. २१. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-बेमेल विवाह, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. __ औपदेशिक सज्झाय-बेमेल विवाह, मु. परमानंद, पुहिं., पद्य, आदि: म्हारो जनम अकारथ जाय; अंति: से संसार में
फराएँगे, दोहा-८. २२. पे. नाम. वीरता सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: हम वीर की संतान है; अंति: से संसार में फराएंगे, दोहा-८. २३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-विद्याभिलाषी, पृ. ४अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-विद्याभिलाषी, मु. परमानंद, पुहिं., पद्य, आदि: मंगल करो महाराज; अंति: परमानंद० गरीब
निवाज, दोहा-६. २४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-वृद्ध विवाह निषेधक, पृ. ४आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-वृद्धविवाह निषेध, पुहिं., पद्य, आदि: एक महाजन था धनदास; अंति: हृदय फटा जाता है.,
दोहा-१२. २५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय- माता पिता की सेवा, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-माता पिता की भक्ति, पुहिं., पद्य, आदि: माँ बाप से रख दोस्ती; अंति: तुम्हारा है भला, दोहा-९. २६. पे. नाम. मनुष्य जन्म सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-मनुष्य जन्म दुर्लभता, मु. परमानंद, पुहिं., पद्य, आदि: जो गर्भ में दुःख था; अंति: भूला उसको
याद कर, दोहा-७. २७. पे. नाम. प्रभुभक्ति पद, पृ. ५अ, संपूर्ण.
पुहि., पद्य, आदि: ईश्वर तू लाज रख ले; अंति: लब पेहो नाम तेरा, दोहा-५. २८. पे. नाम. चपल स्वभाव परिहार, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: फंस गया नादान तू; अंति: तो ताप हरना सीख ले, दोहा-१२. २९. पे. नाम. बालविवाह परिहार, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
बालविवाह परिहार सज्झाय, पुहि., पद्य, आदि: बचपन में करे विवाह; अंति: विदेशी हंसाने वाले, दोहा-६. ३०. पे. नाम. कन्या विक्रय परिहार सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण. __ औपदेशिक सज्झाय-कन्याविक्रय परिहार, पुहिं., पद्य, आदि: महाजन तुम कहाते हो; अंति: तिलक छापे लगाते हो,
दोहा-६. ३१. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-पाश्चात्य संस्कृति परिहार, पृ. ६अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-पाश्चात्य संस्कृति परिहार, पुहिं., पद्य, आदि: जगदीश के हम अंश हैं; अंति: उनका मानो
उपभोग है, दोहा-६. ३२. पे. नाम. नारी शिक्षा सज्झाय-पतिव्रत धर्म, पृ. ६अ, संपूर्ण.
नारीशिक्षा सज्झाय-पतिव्रत धर्म, पुहिं., पद्य, आदि: सुख नारियों जो चाहो; अंति: प्रभु की शरण में आओ, दोहा-७. ३३. पे. नाम. गौहत्या निषेध सज्झाय, पृ. ६आ, संपूर्ण..
पुहि., पद्य, आदि: आओ प्यारो बनो रक्षक; अंति: यह आँखो से निहारा है, दोहा-७. ३४. पे. नाम. वेश्यावृत्ति निषेध सज्झाय, पृ. ७अ, संपूर्ण..
औपदेशिक सज्झाय-वेश्यावृत्ति निषेध, पुहिं., पद्य, आदि: हम हैं रंडीबाज; अंति: रंडी का जूठा खाया है, दोहा-७. ३५. पे. नाम. वृद्ध विवाह निषेध सज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण.
वृद्धविवाहनिषेध सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: आए हम कन्यारत्न के; अंति: करनी को भोगने वाले, दोहा-८. ३६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-वृद्ध विवाह निषेध, पृ. ७आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय-वृद्धविवाह निषेध, पुहि., पद्य, आदि: बूढे बाबा करे विवाह; अंति: जो व्याह रचानेवाले,
दोहा-६. ३७. पे. नाम. नशावृत्ति निषेध सज्झाय, पृ. ८अ, संपूर्ण..
पुहि., पद्य, आदि: होलि में खाक धूल; अंति: त्याग जलाओगे कब तलक, दोहा-५. ३८. पे. नाम. आलस परिहार सज्झाय, पृ. ८अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-आलस परिहार, पुहिं., पद्य, आदि: उठो जरा नींद को; अंति: जहाँ सब सुख समेरा है, दोहा-३. ३९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ८अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: बने मस्तान अब हमतो; अंति: शिवपदको मिलायेंगे, गाथा-६. ४०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ८अ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: जिन आपको जोया नहीं; अंति: रंगा सो क्या हुआ, दोहा-४. ४१. पे. नाम. वैराग्य पद, पृ. ८आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-वैराग्य, पुहिं., पद्य, आदि: यापन जतन बचाना जब; अंति: ली बाहर कफन से निकले, दोहा-५. ४२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय- वैराग्य, पृ. ८आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-वैराग्यविषये, पुहि., पद्य, आदि: देख लो इसका तमाशा; अंति: कहा तुम्हारा चंद, दोहा-८. ४३. पे. नाम. अहंकार परिहार सज्झाय, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-अहंकार परिहार विषे, पुहिं., पद्य, आदि: सुनो मित्र हमारा; अंति: म्हारा मूर्ख गंवारा, दोहा-४. ४४. पे. नाम. वैराग्य पद, पृ. ९अ, संपूर्ण. ।
औपदेशिक पद-वैराग्य, पुहिं., पद्य, आदि: बता दे भैया इस जग; अंति: तुमारा ले ले सुख जोन, दोहा-४. ४५. पे. नाम. साज श्रृंगार परिहार सज्झाय, पृ. ९अ, संपूर्ण.
मु. गुरुदास, पुहिं., पद्य, आदि: जाय मिजाजी जोबन को; अंति: गुरुदास० गावत फटको, दोहा-५. ४६. पे. नाम. वेश्यावृत्ति परिहार सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-वेश्यावृत्ति परिहार, पुहि., पद्य, आदि: खुजली उठ रही है वह; अंति: चुके हैं तुम्हें, दोहा-७. ४७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय- वीरता, पृ. ९आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-महावीरता, पुहिं., पद्य, आदि: उठो भारत के क्षत्री; अंति: कर लो एक ईश का ध्यान, दोहा-५. ४८. पे. नाम. वीरता सज्झाय, पृ. ९आ, संपूर्ण. ___ पुहिं., पद्य, आदि: अश्वटाप अरु रथ पहियो; अंति: काले काले मेघ जवान, दोहा-७. ४९. पे. नाम. देशभक्ति पद, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: जागो भारत सुनो बाते; अंति: जगत से हट चला है तम, दोहा-५. ५०. पे. नाम. जीवहिंसा परिहार सज्झाय, पृ. १०अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-जीवहिंसा परिहार, पुहिं., पद्य, आदि: जब से जिनमत को तजा; अंति: तुमको जमाना हो गया,
दोहा-६. ५१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १०अ, संपूर्ण.
पुहि., पद्य, आदि: आप में जब तक कि कोई; अंति: तुझको नजर आता नहीं, दोहा-४. ५२. पे. नाम. जीवहिंसा परिहार सज्झाय, पृ. १०अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-जीवहिंसा परिहार, न्यामत, पुहिं., पद्य, आदि: जुल्म करना छोड़ दो; अंति: न्यामत०भले के
वास्ते, दोहा-६. ५३. पे. नाम. जीवहिंसा परिहार पद, पृ. १०आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: यह नहीं कलयुग है कर; अंति: आँख उठा के देख लो, दोहा-३. ५४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १०आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: अमोलक जैनधर्म प्यारे; अंति: होय धर्म भवसागर तारे, दोहा-३.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ ५५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १०-११अ, संपूर्ण...
पुहि., पद्य, आदि: ख्याल आता है मुझे; अंति: देखो न अपने कुरान को, दोहा-१७. ५६. पे. नाम. औपदेशिक पद-मिथ्याभिमान परिहार, पृ. ११अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-मिथ्याभिमान परिहार, पुहिं., पद्य, आदि: देखोजी हम हैं सिपाही; अंति: को देखकर चले अकड़के,
दोहा-२. ५७. पे. नाम. अवसरवादिता परिहार पद, पृ. ११अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-अवसरवादिता परिहार, पुहिं., पद्य, आदि: सब पैसे के भाई रे; अंति: नहीं तो खावे गोता, दोहा-४. ५८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ११अ, संपूर्ण.
कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, आदि: रामरस ऐसो रे भाई जो; अंति: गए पीके अमर हो जाइ, दोहा-४. ५९. पे. नाम. पाखंड परिहार पद, पृ. ११अ, संपूर्ण.
पाखंडपरिहार पद, पुहिं., पद्य, आदि: दिलकुखूब समझाना; अंति: खाता वटवाघुल तो जैसा, दोहा-३. ६०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ११आ, संपूर्ण.
श्राव. अमरदास, पुहि., पद्य, आदि: गर्भवास में लिखे जो; अंति: अमरदास० प्रभु का नाम, दोहा-४. ६१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: एक राइ घटे कछु तिल; अंति: सच्चा नाम ईश्वर का, दोहा-३. ६२. पे. नाम. औपदेशिक पद- लालच परिहार, पृ. १२अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-लालच परिहार, पुहिं., पद्य, आदि: सारा सुगंधिदार माल; अंति: मात जो अमने छनकदार, दोहा-३. ६३. पे. नाम. बातूनी परिहार पद, पृ. १२अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-विकथा परिहार, पुहिं., पद्य, आदि: गप्पा हाके गपोडा पुर; अंति: यासो वाचोर बर्णिना, दोहा-५. ६४. पे. नाम. कपट परिहार पद, पृ. १२अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-कपट परिहार, मा.गु., पद्य, आदि: बापा ज्यां छे कपट; अंति: जाणु एनी युक्ति हजार, दोहा-२. ६५. पे. नाम. सुरा व सुंदरी परिहार पद, पृ. १२अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-सुराव सुंदरी परिहार, मा.गु., पद्य, आदि: होटलमांजाइने बोटल; अंति: प्रीति केरु साच, दोहा-२. ६६. पे. नाम. मदिरापान परिहार पद, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-मदिरापान परिहार, पुहि., पद्य, आदि: एजी पिलो शराब की; अंति: कि काज में मशहूर, दोहा-२. ६००८०. (+) श्रावकपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १०४३२).
श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि अ; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ६००८१. (+) सामायिक चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, ११४२९).
सामायिक चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: सारद भगवंत नमी करी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१० गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ६००८२.(+) रास संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२६, आश्विन कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२,
१५४३४-३७). १. पे. नाम. शील रास, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण. शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलउ प्रणाम करूं; अंति: इम श्रीविजयदेवसूरि, गाथा-७७,
ग्रं. २४१. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थरास, पृ. ८अ-१२अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पय नमी; अंति: सुणतां आनंद थाय, ढाल-६,
गाथा-११२. ६००८३. (+) व्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १८४३७-४४).
व्याख्यान संग्रह *,प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., गद्य, आदि: देवपूजा१ दयार दानं३; अंति: मंगलीक माला संपजे.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६००८४. (१) कल्पसूत्र का अनुवाद, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, १०x४१-४३). कल्पसूत्र-अनुवाद, पुहिं., गद्य, आदि: (१)नत्वा श्रीमत् महावीर, (२)हे श्रोतागणो मेरी; अंति: (-), (वि. कल्पसूत्र के
कर्ता पंचम श्रुतकेवली भद्रबाहुस्वामी के बदले हरिभद्रस्वामी लिखा है.) ६००८५. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ४४३१). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्ष प्रपद्यते,
श्लोक-४४.
कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मंगलिकनो मं घर एतलेइ; अंति: मोक्ष प्रति पामे. ६००८६. (+) पट्टावली, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२-१(१)=११, प्र.वि. संशोधित., ., (२५.५४१२, १४४३४).
पट्टावली खरतरगच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
"शमश्रेणिः दजिनकल्पमार्ग ७ परिहार" पाठ से "छतरी छै इती ६९ श्री जिनचंद्रसूरिः" तक है.) ६००८७. (+) ढुंढीयानी नवबोल चर्चा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४११.५, १५४४२-४६). ढूंढिया नवबोल चर्चा, मु. दीपविजय, रा., गद्य, वि. १८७६, आदि: श्रीमंत्तपागछिय भेद; अंति: (-),
(पृ.वि. "दशमादेशावगासीक व्रत निश्चै किया होगा इग्या" पाठ तक है.) ६००८८. (+) नरकादि बोल, संपूर्ण, वि. १९००, आश्विन शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. मुरलीधर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १७४३९).
नारकीभवनद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पेहली नारकि असंखाता; अंति: आंगुलनी अवगाहणा छै. ६००८९. (#) कमलावती स्वाध्यायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६८, श्रावण शुक्ल, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ५,
ले.स्थल. प्रतापगढ, प्रले. मु. जोडीमल ऋषि (गुरु मु. चौथमल ऋषि, स्थानकवासी); गुपि.मु. चौथमल ऋषि (गुरु मु. हीरालाल, स्थानकवासी); मु. हीरालाल (गुरु मु. जवाहरलाल, स्थानकवासी); मु. जवाहरलाल (गुरु मु. रतनचंद, स्थानकवासी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२, १५४४०). १.पे. नाम. कमलावती सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. कमलावतीसती सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: महिला में बेठी राणी; अंति: पाणी गुरु सेवा करे,
गाथा-३१. २. पे. नाम. प्रजनकुवारकी लावणी, पृ. २अ-४आ, संपूर्ण. प्रजनकंवर लावणी, मु. खूबचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १९६४, आदि: वाचो पुरण प्रेमसुं; अंति: नंदलालगुरु बताया
जी, गाथा-२२. ३. पे. नाम. शांबप्रद्युम्न लावणी, पृ. ४आ-७आ, संपूर्ण.
मु. नंदलाल शिष्य, पुहिं., पद्य, आदि: ए प्रजन कुवर का स्या; अंति: मेरा हे उपगारिजी, दोहा-२९. ४. पे. नाम. कृष्ण बलभद्र लावणी, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.
मु. नंदलाल शिष्य, पुहिं., पद्य, वि. १९६५, आदि: ये कृष्ण और बलभद्र; अंति: लियो सुयश जगमे, दोहा-५. ५.पे. नाम. रावण पद, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
मु. जवाहर ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: रावण को समझावत राणी; अंति: प्रगट्या अवतारी, गाथा-५. ६००९०. (+) द्रौपदी चौपाई व आषाढभूति चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(२६४११.५, १८४४७). १.पे. नाम. द्रोपदी चौपाई, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण, ले.स्थल. जोदपुर, प्रले. लमणदास, प्र.ले.पु. सामान्य. द्रौपदीसती चौपाई, आ. हीरविजयसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सील बडो वरता मध्ये म; अंति: हे मारी आवागमन निवार,
ढाल-१४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ २. पे. नाम. आषाढभूति चौपाई, पृ. ६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३७, आदि: सासणनायक सुखकरूं; अंति: (-),
(पू.वि. ढाल-३ अपूर्ण तक है.) ६००९१. (#) ढुंढीयानी नवबोल चर्चा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, १५४४७-५२). ढुंढिया नवबोल चर्चा, मु. दीपविजय, रा., गद्य, वि. १८७६, आदि: श्रीमंत्तपागछिय भेद; अंति: अपने दिलसे
विचारणो. ६००९२. धर्मबुद्धि-चंद्रहंस चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-१३(१ से १३)=१०, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२, १४४३८). १.पे. नाम. पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री रास, पृ. १४अ-२१अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: (-); अंति: गृह शिवसुख सुजस लहै, ढाल-३९, गाथा-५३५,
(पू.वि. ढाल- ५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. चंद्रराजा चौपाई, पृ. २१अ-२३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
___चंद्रहंसराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: नमो निरंजन देवहु नमो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ६००९३. (+) हीरावेधि बत्रीसी सह टबार्थव २७ तारा संख्या, संपूर्ण, वि. १८३१, फाल्गुन शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २,
ले.स्थल. पाहलणपूर, प्रले. मु. वीरचंद ऋषि (स्थानकवासी); पठ. मु. निहालचंद ऋषि (गुरु मु. वीरचंद ऋषि, स्थानकवासी); राज्यकालरा. बाहादरखान, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ६x४५-४७). १. पे. नाम. हीरावेधी बत्रीसी, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण.
हीरावेधि बत्रीसी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजनगर सम एह नारि; अंति: कांति हीरावेधरी, गाथा-३२.
हीरावेधि बत्रीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अथ मंदोदरी रावणने; अंति: तेहज हीराने वेधस्ये. २. पे. नाम. २७ तारा संख्या, पृ. ७आ, संपूर्ण.
ग्रहनक्षत्र तारा संख्या श्लोक, पुहिं., पद्य, आदि: त्रयं यमेश्चाग्नौषट्; अंति: द्वाविंशदंपिचातिमे, श्लोक-५, (वि. यंत्र सहित.) ६००९४. स्नात्रपूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, दे., (२६४१२.५, १४४४१).
स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रथम अंग शुद्ध करी; अंति: मोक्षसौख्यं श्रयंति,
ढाल-८, गाथा-६०. ६००९५. (#) रोहानी कथा, संपूर्ण, वि. १८७५, वैशाख कृष्ण, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. प्रतिलेखन वर्ष अंशतः खंडित है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, १९४४८).
रोहिणी कथा, मु. विनयचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर श्रीसंते सरु; अंति: मिथ्यादुकृत तेम ए, ढाल-६. ६००९७. (+) बासठिमार्गणा विचार, संपूर्ण, वि. १८४७, आषाढ़ अधिकमास कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. मु. स्वरूपचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १३४४६).
६२ मार्गणा यंत्र-विवरण, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, आदि: नरकगति गुणठाणा चार; अंति: यौ ज्ञानना नय मार्ग, ६००९८.(+) लीलावती चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, १४४४७-५०). लीलावती चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिसर आददे प्रणम; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ११ की गाथा २० के बाद
दोहा ३ अपूर्ण तक है.) ६००९९. (+) अवंतिसुकुमाल रास, संपूर्ण, वि. १९५३, श्रावण शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. कालावाड, प्रले. आंबामाडण खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, १६४४५).
अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: प्रणमी श्रीवीतरागने; अंति: शांतिहरष सुख पावे रे,
ढाल-१३, गाथा-१०७. ६०१००. (#) आलोवणा विधि, संपूर्ण, वि. १९५७, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. मृगटा, प्रले. सा. फुली (गुरु सा. पनाजी);
गुपि. सा. पनाजी; अन्य. सा. कसना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १४४३९).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: अतीत काल अठार पाप; अंति: साधुश्रावक आराधक होय. ६०१०१. पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्रि कथानक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-४(१ से ४)=६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११.५, १०४३४-३८).
पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथानक, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पाठ हैं.) ६०१०२. (#) श्रीपालराजानोरास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३-१६(१ से १६)=७, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १४-१८४४७-५३). श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२८ गाथा १० अपूर्ण से
ढाल-३९ गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ६०१०३. (#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, रविवार, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. ५, ले.स्थल. जयनगर,
प्रले. मु. रुपचंद ऋषि (पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (९६४) यादृशं पुस्तके दृष्टां, जैदे., (२५.५४१२, १६x४३). १. पे. नाम. धन्ना सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. धन्नाअणगार सज्झाय, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जिनशासन स्वामी अंतरज; अंति: विनयचंद गुण गाया,
गाथा-२०. २. पे. नाम. श्रीकृष्णकंसवर्णन लावणी सज्झाय, पृ. २अ-४आ, संपूर्ण. कंसकृष्ण विवरण लावणी, मु. विनयचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: गाफल मत रहे रे मेरी; अंति: विनयचंद० मनही
आणंदे, ढाल-२७, गाथा-४३. ३. पे. नाम. चेलणारो चोढाल्यो, पृ. ४आ-६अ, संपूर्ण, पठ. श्रावि. अखाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य. चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: औसर ते नर अटकलै जे; अंति: पुहता मुनि
मुगत मझार, ढाल-४, गाथा-३७. ४. पे. नाम. जीवोपदेशछतीसी, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण.
औपदेशिकछतीसी-जीव, मु. विनयचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १८६८, आदि: जीवा तने करम नमावै; अंति: विनय० मास
ही जेठे रे, गाथा-३६. ५. पे. नाम. खिमाबावनी सिज्झाय, पृ. ७आ-९आ, संपूर्ण.
क्षमाबावनी, मु. रूपचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: जती धरम दसविध कह्यौ; अंति: रूपचंद० सुख पामस्यो, गाथा-५२. ६०१०४. (+#) नयचक्र रास सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४४८). सप्तनय रास, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुचरणकमल; अंति: एह अनंत कल्याणकार, ढाल-१५,
गाथा-१८५.
सप्तनय रास-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: नत्थि ण्णएहि विहुणं; अंति: (-). ६०१०५. (+#) ज्ञानपंचमी देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. जंबूसर, प्रले. पं. प्रेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १६४३४). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम बाजठ उपरि तथा; अंति: विजयलक्ष्मी
शुभ हेज, पूजा-५. ६०१०६. (+) कर्मस्तव सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ.७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, ५४२५-३१). कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंद० नमह
तं वीर, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिम श्रीमहावीरनइं हु; अंति: करइ छइ महावीर कहु.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
१३३ ६०१०७. (+#) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १४४३५). स्तवनचौवीसी, श्राव. विनयचंद्र गोकलचंद कुमट, मा.गु., पद्य, वि. १९०६, आदि: श्रीआदिश्वर सामी हो; अंति: (-),
(पू.वि. ढाल-१९ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ६०१०८. (+) चारमंगल रास, संपूर्ण, वि. १९६४, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, १५४४४).
४ मंगल रास, म. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: अनंत चोवीशीजिन नम; अंति: के धर्म आराधीये ए, ढाल-४,
गाथा-१०७. ६०१०९. उपदेशबावनी, संपूर्ण, वि. १९५७, वैशाख कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. जयनारण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. २१२, दे., (२६४१२, १२४४१-४४). अक्षरबावनी, मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, वि. १८७०, आदि: नमो सिद्धं अ आ इ ई उ; अंति: पंडित अतिगुणखान,
गाथा-५८. ६०११०. (+#) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-७(१ से ५,९ से १०)=६, कुल पे. ९, पठ. पंन्या. नरेन्द्रविजय गणि
(लघुपोसालगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १५४३३). १. पे. नाम. बाहुबलि सज्झाय, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. बाहुबली सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: तेह समकित सिंधुरा, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-६
अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. मनमांकडली सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण. मनमांकड सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: मन मांकडलो आण न माने; अंति: लावण्यसमे०फल लीजे
रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. सुभद्रासती सज्झाय, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण.
मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर सोझे हीरजारे; अंति: कविअण० केरई ठाम, गाथा-१९. ४. पे. नाम. सीयल सज्झाय, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सीयल सोहामणुंपालिइं; अंति: गुणहर्ष०
मंगलमालो रे, गाथा-२३. ५. पे. नाम. सिखामण सज्झाय, पृ. ८अ-८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: एक अनोपम शिखामण कही;
अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ६. पे. नाम. सचितअचित सज्झाय, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण... सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचन अमरी समरी सदा; अंति: नयविमल कहे
सज्झाय, गाथा-२५. ७. पे. नाम. प्रत्याख्यान विचार सज्झाय-द्वितीय ढाल, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानविचार सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदिः (-); अंति: विनय सयल संपत्ति वरो,
प्रतिपूर्ण. ८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १२अ, संपूर्ण.
___ मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: कोइ राम कहो रेहमान; अंति: आनंदघन० में नही कमरी, गाथा-४. ९. पे. नाम. नंदीषेणऋषि स्वाध्याय, पृ. १२अ-१३अ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पंचसयां धण परहरी थई; अंति: लब्धिविजय निसदीसे रे,
गाथा-१६.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६०१११. (#) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १८२५, श्रावण अधिकमास शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ८-१(७)=७, ले.स्थल. वीरमा,
पठ. मु. जीतहंस (गुरु पं. तलकहंस गणि); गुपि.पं. तलकहंस गणि (गुरु पं. चतुरहंस), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३७-४०). स्तवनचौवीसी, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: रीषभजिणंदारीषभजिणंद; अंति: मानविजय नितु
ध्यावे, स्तवन-२४, (पू.वि. मल्लिजिन स्तवन गाथा-५ अपूर्ण से नेमिजिन स्तवन तक पाठ नहीं है.) ६०११२. (+#) श्रावकपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १२४३१). श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणमिदंसणंमि; अंति: (-), (पू.वि. "बेठा
पडिकमणु कीधुरूडांखमास" पाठ तक है.) ६०११३. अध्यात्मगीता, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२४.५४१२, १०x२९).
अध्यात्मगीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमीयै विश्वहित; अंति: देवचंद्रे० सुप्रतीता, गाथा-४९. ६०११४. (+) छत्रीसी, बावनी, स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, कुलपे. १२, प्र.वि. टिप्पण
युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२.५, २१-२४४६४). १.पे. नाम. बालचंदबत्रीसी, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहिं., पद्य, वि. १६८५, आदि: (-); अंति: द्रंग रंग मन आणिये, गाथा-३३,
(पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. दयाछत्रीशी, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. दयाछत्रीसी, मु. चिदानंदजी, पुहिं., पद्य, वि. १९०५, आदि: चरणकमल गुरूदेव के अंति: कृपाथी सफल फलि मन
आश, गाथा-३६. ३. पे. नाम. क्षमावावनी, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण. अक्षरबावनी, उपा. क्षमालाभ, रा.,पुहि., पद्य, वि. १८८०, आदि: ॐ आदि अजित संभवसुं; अंति: क्षमा कहे० पामे
मुदा, गाथा-५७. ४. पे. नाम. बत्रीसअनंतकाय नाम, पृ. ५अ, संपूर्ण.
३२ अनंतकाय गाथा, प्रा., पद्य, आदि: थूला सुहमा जीवा संक; अंति: परिहरियव्वा पयत्तेण, गाथा-५. ५. पे. नाम. सचितअचित वस्तुसज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण. सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचन अमरी समरी; अंति: नयविमल कहे सज्झाय,
गाथा-२५. ६. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण.
अणाहारीवस्तु सज्झाय, मु. मुक्ति, मा.गु., पद्य, आदि: जखौ मंडण वीरजिणंद; अंति: मुक्ति० मुखथी लही, गाथा-१०. ७. पे. नाम. सूतक चौपाई, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. सूतक सज्झाय, आ. पुण्यसिंधुसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १९७६, आदि: श्रीश्रुतदेवि समरू; अंति: पुण्य० लहसे निरधार,
गाथा-३३. ८. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पीउजीरे पीउजी नाम; अंति: नेम भेटी आशा फली, गाथा-७. ९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
मु. नित्यलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन समझो राज मन अभि; अंति: नित्यलाभ० निज संभार, गाथा-१३. १०. पे. नाम. मधुबिंदु सज्झाय, पृ. ६आ, संपूर्ण.
मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वति मुजरे माता; अंति: अचलसुख इम मागीइ, ढाल-५, गाथा-१०. ११. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. ६आ, संपूर्ण.
मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवांछित फल सीधो जी, गाथा-८.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ १२. पे. नाम. पाखीखामणा अंचलगच्छीय, पृ. ६आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतजीने खमावीएरे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ६०११५. (#) ब्रह्मचर्यनववाड सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, पठ. मु. कानजी स्वामी ऋषि (गुरु मु. भाणजी ऋषि); अन्य. सा. हरकुंवरबाई; मु. हीराचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १३४२९). नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीनेमीसर चर्णयुग; अंति: जिनहर्षसुमति मन रीझ,
ढाल-११, गाथा-९७. ६०११६. (#) स्तवन, पद व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे., (२५.५४११.५, १६४५२-५६). १.पे. नाम. संभवजिन स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण.
संभवजिन स्तवन, मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी संभव स्वामी; अंति: सवि आस्या फली रेलो, गाथा-५. २. पे. नाम. सुविधिजिन स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण.
सुविधिजिन स्तवन, मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: सुविधिजिनेश्वर साइया; अंति: मान० पावन थाई देह, गाथा-५. ३. पे. नाम. विमलजिन स्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. विमलजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अमल विमलप्रभु मिलवा; अंति: मान० गाता परम कल्याण,
गाथा-५. ४. पे. नाम. धर्मजिन स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण.
धर्मजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रमुदित वित्ते रे; अंति: मान० कहीइं अवदात, गाथा-५. ५. पे. नाम. वीरजिन स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन, पं. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिसलानंदन त्रिजग; अंति: मानवि०सिद्ध सुख पायो, गाथा-७. ६. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. रुचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: मात शिवादेवी जाया; अंति: रूचिरविमल० सुख पाया,
गाथा-७. ७. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण..
मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: सुमतिजिनेसर साहिब; अंति: मान० वंछित दानो जी, गाथा-५. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तव, पृ. २अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन पद-गोडीजी, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु बेठेहिं सारंग; अंति: जडित मुगट मणे मोल मे, गाथा-४. ९.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तव, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पुक्खलवइ विजयेजयोर; अंति:
__ भयभंजन भगवंत, गाथा-७. १०. पे. नाम. सिद्धाचलजिन स्तव, पृ. २आ, संपूर्ण. शQजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: वनीता ते प्रीउने वीन; अंति: उदयरतन पामे परम आणंद,
गाथा-५. ११. पे. नाम. नेमिजिन स्तव, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती स्तवन, मु. मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल बेठी उंची गोखड; अंति: मतिहस कहे धन्य तेह, गाथा-७. १२.पे. नाम. ऋषभजिन स्तव, पृ. ३अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: जय जगनायक जगगुरु; अंति: केसर कहैदरसण सुखकंद, गाथा-६. १३. पे. नाम. ऋषभजिन स्तव, पृ. ३अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. महानंद, रा., पद्य, आदि: प्यारो लागे प्यारो; अंति: साहीब थांरी माने सेव, गाथा-६. १४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तव, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रभु जगजीवन बंधुरे; अंति: चरणनी सेवा दीजे रे,
गाथा-७. १५. पे. नाम. साधारणजिन गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण..
साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: देव निरंजन भव भय; अंति: रूपचंद० सो तरीया हें, गाथा-३. १६. पे. नाम. शांतिजिन स्तव, पृ. ३आ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांतिजिणेसर साहिबो; अंति: मोहन जय जयकार, गाथा-७. १७. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थस्तव, पृ. ३आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: म्हारू मन मोह्युरे; अंति: कहितां नावे हो
पार, गाथा-५. १८. पे. नाम. नेमिजिन स्तव, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: कालिने पीलि वादली; अंति: कांति नमे वारंवार, गाथा-७. १९. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ४अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: चकवी न बोले स्याम; अंति: सबही दिस दरसानी है, सवैया-१. २०. पे. नाम. मेघकुमार स्वाध्याय, पृ. ४अ, संपूर्ण.
मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावेरे मेघकु; अंति: प्रीत० भव भवनो पार, गाथा-५. २१. पे. नाम. गोडीपार्श्व स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: मिता चालो तो जिनजि; अंति: ज्ञान० मंदिरमा आइये,
गाथा-८. २२. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जिनराज हमारे दिल; अंति: न्यायल्गुण सवि हस्यां, गाथा-३. २३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. ज्ञानसागर, पुहिं., पद्य, आदि: अनीकी मुरत पाश की; अंति: ज्ञान० रिद्ध आवास की,
गाथा-५. २४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, प्र. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मनवचकाया वश करी रे; अंति: रेनयविमल
थुणीओ, गाथा-५. २५. पे. नाम. श्रीकृष्ण पद, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मीराबाई, पुहि., पद्य, आदि: द्रौपद आवत सीत प्रीत; अंति: मीरा० बेठे आय कपोला, गाथा-४. २६. पे. नाम. श्रीकृष्ण पद, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
सूरदास, ब्र., पद्य, आदि: उभजी तो जलफां रे सूल; अंति: सूर० हरीचरणे चितलाय, गाथा-४. २७. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुजरो मानीने लीजोरे; अंति: मोहन उठी प्रणमीजे रे,
गाथा-३. २८. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मिलवो जुग जोर कठिन; अंति: रूपचंद प्रिया मेरा, गाथा-८. २९. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ५अ, संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनचरणारी सेवा प्यार; अंति: मोहन अनुभव मांगी, गाथा-५. ३०.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तव, पृ. ५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: भगवंत भज्यानि तक जाय; अंति: उदयरतन० साहिबे
रे, गाथा-७.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
१३७ ३१. पे. नाम. शेव्रुजय स्तव, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: शेजानो वासी; अंति: कवियण० भव पार उतारो, गाथा-६. ६०११७. (+) सम्यक्त्वपरीक्षा वचनिका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४१२, १४-१७४५३). सम्यक्त्वपरीक्षा-वचनिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजीणराज वीतरागदेव; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., लूण व दूध ग्रहण विचार अपूर्ण तक लिखा है.) ६०११८. (#) २४ जिन नाम, गणधर नाम व पुण्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१३, १४४३२). १. पे. नाम. गइ चोवीसी जिननाम, पृ. १अ, संपूर्ण.
२४ जिन नाम-अतीत, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीकेवलज्ञानी; अंति: स्वामी२३ सांप्रती२४. २. पे. नाम. वर्तमान चोबीसी नाम, पृ. १अ, संपूर्ण.
२४ जिन नाम-वर्तमान, मा.गु., गद्य, आदि: आदिनाथ१ अजीतनाथ२; अंति: श्रीवर्द्धमान२४. ३. पे. नाम. इग्यार गणधर नाम, पृ. १अ, संपूर्ण.
११ गणधर नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिजी१; अंति: श्रीप्रभासजी११. ४. पे. नाम. पुण्यप्रकाश स्तवन, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण. ___ उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: विनय० पुण्यप्रकाश ए, ढाल-८,
गाथा-१०२. ६०११९. (+#) जीवविचार स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६३, फाल्गुन कृष्ण, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. लाडोल,
प्रले. मु. गलाबचंद (गुरु ग. विवेकविजय); गुपि.ग. विवेकविजय (गुरु ग. शुभविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १४४३२). जीवविचार स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि: श्रीसरसती रे वरसती; अंति: विजय पभणे
आनंदकारी, ढाल-९, गाथा-८३. ६०१२०. (+) अक्षरबावनी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१२, १३४४१-४५).
अक्षरबावनी, मु. मान, पुहिं., पद्य, आदि: ॐकार अपार अलख्य; अंति: मान० अक्षर बावनी गाई, गाथा-५७. ६०१२१. (#) गुणावली कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १४-१८४३६-३९). गुणावलि रास, मु. ज्ञानमेरु, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: प्रणमंचउवीसे जिनरा; अंति: सवे मनवंछित पावंति,
ढाल-१६. ६०१२२. (+) आलोयणा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, १६x४२-४५).
आलोयणा विचार, मु. चंद्रभाण, पुहिं., प+ग., आदि: सिद्ध श्रीपरमातमा; अंति: किया उपजै आनंद है. ६०१२३. (+#) चंदकेवली रास, संपूर्ण, वि. १८२०, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. १७०, प्रले. मु. नेमिविजयशिष्य
(गुरु पं. नेमिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२,११४२९-३२). चंदकेवली रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: वर्णव्या गुणचंदना,
उल्लास-४ ढाल१०८, गाथा-२६७९.
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१३८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६०१२४. (+) चंदकेवली रास, संपूर्ण, वि. १८७४, चैत्र शुक्ल, २, बुधवार, मध्यम, पृ. १६५, ले. स्थल. लक्ष्मणपुर, प्रले. पं. सरूपचंद्र (गुरु मु. महरचंद्र, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि. मु. महरचंद्र (गुरु मु. सुमेरुचंद्र, बृहत्खरतरगच्छ ); मु. सुमेरुचंद्र (गुरु ग. केसरिचंद्र, बृहत्खरतरगच्छ); ग. केसरिचंद्र (गुरु वा. लावण्यकमल, बृहत्खरतरगच्छ); वा. लावण्यकमल (परंपरा आ. जिनचंद्रसूरि बृहत्खरतरगच्छ); आ. जिनचंद्रसूरि (बृहत्खरतरगच्छ); राज्ये आ जिनहर्षसूरि (गुरु गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. श्रीशांतिजिनबिंबप्रसादात् संशोधित, जैवे. (२५४१२, १३x२८).
,
चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्म, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंति: मोहनविजये० गुण चंदना,
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1
उल्लास-४ ढाल१०८, गाथा - २६७९.
६०१२५ (+) स्तवन, पद, गीत व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२९, फाल्गुन शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १५७, कुल पे, ७०, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें, दे., (२६X१२, ९३६).
१. पे. नाम ऋषभजिनेंद्रस्य गत्यागत्यो स्तवन, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण,
आदिजिन स्तवन- २४ दंडक गतिआगतिविचारगर्भित, ग. धर्मसुंदर, मा.गु., पद्य, आदिः आदीसर हो सोवनकाय, अंतिः धर्मसुं० सुरतरू तोलै, ढाल २, गाथा-२६.
२. पे. नाम. आदिनाथ वृद्धिस्तवन, पृ. ४आ- ९अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन- आत्मनिंदागर्भित, वा. कमलहर्ष, मा.गु, पद्य, आदि आदीसर पहिलउ अरिहंत अंतिः कमलहरषैभव अपणउ गिणी, ढाल ४, गाथा- ५२.
३. पे. नाम. समवसरण विचार पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ९आ-१२आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तवन- समवसरण विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासन सेहरो जग; अंति: पाठक धर्मवर्धन धार ए, ढाल - २, गाथा-२८.
४. पे नाम. इरियावही मिच्छामिदुक्कडसंख्या स्तवन, पृ. १२आ-१५अ, संपूर्ण.
इरियावही मिच्छामिदुक्कडं संख्या स्तवन, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: पद पंकज रे प्रणमी, अंति: इम संथव्य भाव करी, ढाल ४, गाथा- १३.
५. पे. नाम. आलोइण पद, पृ. १५अ - १८आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन- अतिचारगर्भित, उपा. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: ए धन सासन वीर जिनवर, अंति: धर्मसी० फलवधिपुर, डाल- ४, गाथा-३०.
६. पे. नाम. चैत्रीपुनिम पुंडरीक स्तवन, पृ. १९अ- २१अ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: पाय प्रणमीरे जिनवर, अंतिः साधुकीरति इम की गाथा १३. ७. पे. नाम. सामायक बत्रीसदोष सझाय, पृ. २१अ - २१आ, संपूर्ण.
३२ सामायिकदोष सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: संयमे धीर सुगुरु पाय; अंतिः विमल गुण वाधइ नूर, गाथा - १०.
८. पे. नाम. सचित्ताचित्तविचार सज्झाय, पृ. २२अ - २४अ, संपूर्ण.
सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचन अमरी समरी; अंति: नयविमल कहे सज्झाय, गाथा - २५.
९. पे. नाम. दशवैकालिकचूलिका सज्झाय, पृ. २४अ - ३३अ, संपूर्ण.
दशवैकालिकसूत्र - सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धम्मोमंगल महिमा नीलो, अंति: सदाजी जयतसी जयजय रंग, अध्याय- ११.
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१०. पे. नाम. नववाडि शीलरी, पृ. ३३अ - ४२आ, संपूर्ण.
नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीनेमीसर चरणयुग; अंति: हो जुगति नववाडी, ढाल - ११, गाथा - ९७.
११. पे. नाम. लबध तवन, पृ. ४२-४५अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
१३९ आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: प्रणमुंप्रथम जिनेसर; अंति:
धरमवरधन० प्रकाश ए, ढाल-३, गाथा-२५.. १२. पे. नाम. असिज्झाई स्तवन, पृ. ४५आ-४७अ, संपूर्ण.
असज्झाय सज्झाय, मु. हीर, पुहिं., पद्य, आदि: श्रावण काती मिगसिर; अंति: नाम कहियो तु इण परै, गाथा-१५. १३. पे. नाम. अढीद्वीप वीसविहरमान स्तवन, पृ. ४७अ-५१अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तवन, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: वंदु मन सुध विहरमांन; अंति: नेहधर
धर्मसी नमै, ढाल-३, गाथा-२६. १४. पे. नाम. चौदगुणठाणा स्तवन, पृ. ५१अ-५६अ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सुमतिजिणंद सुमति;
अंति: कहे इम मुनि धरमसी, ढाल-६, गाथा-३५. १५. पे. नाम. चउदहपूर्वविचारगर्भित स्तवन, पृ. ५६अ-५९अ, संपूर्ण, ले.स्थल. बीकानेर. १४ पूर्व स्तवन, आ. सौभाग्यसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८९६, आदि: जिनवर श्रीवर्धमान; अंति: सौभाग्यसूरि०आनंद करै,
ढाल-३, गाथा-३३. १६. पे. नाम. नंदीसरजी स्तवन, पृ. ५९अ-६१अ, संपूर्ण.
नंदीश्वरद्वीप स्तवन, मु. जैनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: नंदीसर बावन जिनालय; अंति: जैनचंद्र गुण गावो रे, गाथा-१५. १७. पे. नाम. त्रेसठसिलाकापुरुष स्तवन, पृ. ६१अ-६३अ, संपूर्ण. ६३ शलाकापुरुष स्तवन, मु. वखतचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरु चरणकमल मनधार; अंति: नमै मुनी वसतो मुदा,
ढाल-५, गाथा-१८. १८. पे. नाम. भगवतीसूत्र सज्झाय, पृ. ६३अ-६५आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: वीरजिणेसर अरथ प्रकाश; अंति:
क्षमागावै सुजगीस रे, गाथा-२१. १९. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. ६५आ-६७अ, संपूर्ण.
आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचे इंद्री रे; अंति: भणे विजयदेवसूरो जी, गाथा-१३. २०. पे. नाम. रहनेमी सज्झाय, पृ. ६७अ-६८अ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग रहनेम रह्यौ तब; अंति: देव० सुख लहैस्यैरे,
गाथा-१२. २१. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ६८आ-६९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुरमंडन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: हो सुणि सांवलिया; अंति: क्षमाकल्याण रे
लो, गाथा-५. २२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. ६९अ-६९आ, संपूर्ण.
मु. रुघपति, रा., पद्य, आदि: आज सुहावो दीहडो में; अंति: रुघपति अरदास हो राज, गाथा-५. २३. पे. नाम. नेमिनाथ स्तवन, पृ. ६९आ-७०आ, संपूर्ण..
नेमराजिमती सज्झाय, मु. पेमचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नेम छबीलौ माहरे मन; अंति: पेमचंद० गुणभंडार हो, गाथा-६. २४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७०आ-७१अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: जैनधर्म पायो दोहिलो; अंति: नवल० भजीये भगवान्, गाथा-५. २५. पे. नाम. आतम सज्झाय, पृ. ७१अ-७१आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहिं., पद्य, आदि: इक काया अरु कामनी; अंति: राजस०
स्वारथीओसंसार, गाथा-५. २६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुरमंडन, पृ. ७१आ-७२आ, संपूर्ण.
मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्ध श्रीलोद्रवपुर; अंति: गानै नायक श्रीजिनचंद, गाथा-९.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
२७. पे. नाम लोद्रवपुर स्तवन, पृ. ७३-७४आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- लोद्रवपुरमंडन, ग. जिनलाभ, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: श्रीलोद्रवपुर साहिबो अंति जिनलाभ० कीध जगीस ए, गाथा - १५.
२८. पे. नाम. १९ अंग सज्झाय, पृ. ७४आ-८५अ, संपूर्ण.
-
मु. विनयचंद्र, मा.गु., पच, वि. १७५५, आदि: पहिली अंग सुहामणो रे, अंतिः विनयचंद्र कठै मे करी, ढाल ११. २९. पे नाम बुढाबत्तीसी पृ. ८५-८७आ, संपूर्ण
सुगणबत्तीसी, ग. रुघपति, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि: सुगुण बूढापी आवीबी, अंतिः स्वपति० सुणज्यो ससनेह,
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गाथा - ३२.
३०. पे. नाम. सील रास. प्र. ८७आ- ९४अ संपूर्ण.
शीयलव्रत रास, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, आदि शीलरतन जतने धरौ छंडी अंतिः धरमसी० सीलनौ रास कि,
गाथा - ६४.
३१. पे. नाम पद्मावती आराधना, पृ. ९४अ ९७अ संपूर्ण
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती; अंति: समय० पापथी छूटइ ततकाल,
ढाल- ३, गाथा - ३५.
३२. पे. नाम. पुन्यविषय सज्झाय, पृ. ९७अ - ९८आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्म, वि. १६वी, आदि: एक घर घोडा हाथीया जी अंति पुण्य प्रमाण रे, गाथा १२.
३३. पे. नाम. निंदा स्वाध्याय, पृ. ९८-९९अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झायनिंदात्याग विषये, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु. पच, वि. १७वी, आदि निंद्या म करिज्यो अंतिः समयसुंदर सुखवाद रे, गाथा-५.
३४. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. ९९अ, संपूर्ण.
औपदेशिक दोहा-आशात्याग, पुहिं., पद्य, आदि: जे आसा के दास ते; अंति: खरभलै कै जंगल के रोज, दोहा-३. ३५. पे. नाम. आत्म सज्झाय, पृ. ९९अ १००अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय- आयुष्य, मा.गु., पद्य, आदि: आऊखी तुटै नै सांधो अंति: सूत्रधी विसतार रे, गाथा- ९. ३६. पे नाम. जीव आयुष्यविचार सज्झाय, पृ. १००अ १०१अ, संपूर्ण.
मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुचरणकमल; अंति: मे सज्झाय दाखीजी, गाथा- १०.
३७. पे. नाम. सीमंधरजिन विनती स्तवन, पृ. १०१ अ - १०३ आ. संपूर्ण.
उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार, अंति: भक्तिलाभ० आस्या मनतणी, गाथा- १८. ३८. पे नाम. मिगसरमुदितवन, पृ. १०३ आ-१०४आ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बैठा भगवंत, अंति: समयसुंदर कहो दाहडी, गाथा-१३.
३९. पे नाम. पांचम वृद्धस्तवन, पृ. १०४
१०७अ संपूर्ण
ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-वृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः प्रणमुं श्रीगुरुपाय अंतिः भगति भाव प्रशंसीयो, ढाल - ३, गाथा-२०.
४०. पे नाम. पंचमी लघुस्तवन, पृ. १०७अ १०७आ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन- लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचम तप तुम्हे करो; अंति: समयसुं० पांचो भेदरे, गाथा-५.
४१. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १०७आ-१०८आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल, अंतिः सफल फल सहु आस, गाथा - ९.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
१४१ ४२. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १०८आ-१०९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अंतरजामी सुण अलवेसर; अंति: जिनहर्ष० सायरथी
तारौ, गाथा-५. ४३. पे. नाम. गौडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १०९अ-१०९आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. दीपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुणज्यौ गोडीजी; अंति: दीजै कीजै एतो काम, गाथा-६. ४४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १०९आ-११०अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचिंतामण पासजी, अंति: जिनचंद० पूरो जी
आस, गाथा-५. ४५. पे. नाम. महावीर बृहत्स्तवन, पृ. ११०अ-११२अ, संपूर्ण. महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति:
समयसुदर०त्रिभुवनतिलो, गाथा-१९. . ४६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ११२अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन पद, मु. कनककीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: तूं मेरै मन में तूं; अंति: कनककीरत तीन भुवन में, गाथा-३. ४७. पे. नाम. जिनबिंबपूजन तवन, पृ. ११२आ-११३आ, संपूर्ण.
जिनबिंबपूजा स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनबिंब जूंहारो; अंति: श्रीजिनचंद सवाइरे, गाथा-१२. ४८. पे. नाम. शीतलनाथ स्तव, पृ. ११३आ-११५अ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८२७, आदि: भविजन वंदोरे शीतल; अंति: विबुध क्षमादि
कल्याण, गाथा-११. ४९. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ११५अ-११६अ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, पुहि., पद्य, आदि: सुणि सुणि शेत्रुजा; अंति: श्रीजिनभक्तिसूरिंदा, गाथा-११. ५०. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ११६अ-११८अ, संपूर्ण.
उपा. सहजकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: विमलगिरि सिखर गजराज; अंति: सहिजकीरति इम कहै, गाथा-१७. ५१. पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. ११८अ-११९आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: ऋषभ जिणेसर त्रिभुवन; अंति: लालचंद० मझारो रे,
गाथा-११. ५२. पे. नाम. आगम स्तवन, पृ. ११९आ-१२०अ, संपूर्ण.
उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रुत अतिहि भलो संघ; अंति: क्षमाकल्याण सदा पावै, गाथा-७. ५३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १२०अ-१२१अ, संपूर्ण. ___महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मारग देशक मोक्षनो रे; अंति: देवचंद्र पद लीधो रे,
गाथा-९. ५४. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १२१अ-१२४अ, संपूर्ण. अजितशांति स्तवन, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: मंगल कमलाकंद ए सुख; अंति: मेरुनंदण
उवज्झाय ए, गाथा-३२. ५५. पे. नाम. चउवीसजिनानां गणधरसाधुसाध्वीसंख्या वृद्धस्तवन, पृ. १२४अ-१२६आ, संपूर्ण. २४ जिन गणधरसाधुसाध्वीसंख्यागर्भित स्तवन, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७५३, आदि: आदीसर पहलो
अरिहंत गण; अंति: ध्याइये धर्मदेव ए, गाथा-१९. ५६. पे. नाम. अंतरकालदेहायुजिन स्तवन, पृ. १२६आ-१३०आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-देहमान आयुस्थितिकथनादिगर्भित, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि:
पंचपरमेष्ठि मन शुद्ध; अंति: धरमसीमुनि इम भणै, ढाल-५, गाथा-२९. ५७. पे. नाम. उपधानतप सज्झाय, पृ. १३०आ-१३२आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
उपधानतप स्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, आदिः श्रीमहावीरजी धरम; अंतिः समय० भणइ वंचित सुखकरो, डाल- ३, गावा- १८.
५८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १३३अ - १३३आ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: हितधर वंदू हो पासजिण, अंति: जिनलाभ० नित नवलै नूर, गाथा-७. ५९. पे. नाम. सेडुंजय स्तवन, पृ. १३३ आ-१३४आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविमलाचल सिरतिलो; अंति: अविचल लील विलास,
गाथा - ११.
६०. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १३४आ-१३५अ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि ऋषभ सकल सुखकार हमारे अंति: रूपचंद० सुखकार हमारे, गाथा - ३.
६१. पे नाम आदिजिन पद, पृ. १३५१-१३५ आ. संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन- धुलेवामंडन, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: चालो री सखी धूलेवे, अंतिः रिषभ० लुडीजी तुमारी, गाथा-६.
६२. पे नाम. आदिजिन पद, पू. १३५आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन-धुलेवामंडन, आ. जिनसौभाग्यसूरि, पुहिं., पद्य, आदि : आज जिणंद जयो सो; अंति: प्रभू भेटत ह भयो, गाथा-६.
६३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १३५आ - १३६अ, संपूर्ण.
आ. जिनहर्षसूरि, पुहिं, पद्य, आदि जिन तेरी छाय रही है अंतिः जिनहर्ष आतमनो विसराम, गाथा- ३.
"
६४. पे. नाम. १७ भेद जीव अल्पबहुत्व स्तवन, पृ. १३६अ १३९अ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, आदि: अरिहंत केवलज्ञान, अंतिः जिम देख्नु परतिखपणे, ढाल ३, गाथा १८. ६५. पे नाम. शांतिजिन अष्टभयनिवारण स्तवन, पृ. १३९अ १४०अ संपूर्ण
शांतिजिन स्तवन- अष्टभयनिवारण, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: जगनायक जिनवर पुहवी; अंति: धरमवर्धन० कुशल कल्याण, गाथा- २३.
६६. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन पच्चक्खाणविवरणविधिगर्भित पू. १४० अ- १४४अ, संपूर्ण.
1
पार्श्वजिन स्तवन- पच्चक्खाणविधिविवरणगर्भित, मु. खेम, प्रा. मा.गु., प+ग, आदि: पणमहि पाव जिनराय सिर अंति: वाचक खेम इण परि भासए, ढाल ५, गाथा-४४.
६७. पे. नाम. राइसंथारा गाथा, पृ. १४४आ- १४५आ, संपूर्ण.
संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि अंति: मज्झवि तेह खमंतु, गाथा-२४.
६८. पे. नाम. उपदेशमाला प्रास्ताविक गाथा, पृ. १४५ आ-१४६आ, संपूर्ण
पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: उप्पन्नं केवलं नाणं,
गाथा - ३३.
६९. पे. नाम. सप्तस्मरण खरतरगच्छीय, पृ. १४७अ - १५४अ, संपूर्ण.
सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत, अंतिः भवे भवे पास जिणचंद, स्मरण - ७, (वि. उपसर्गहर स्तोत्र का पूरा पाठ न होकर मात्र सातवे स्मरण हेतु संकेत किया गया है.) ७०. पे. नाम. गर्भ उत्पत्ति सज्झाय, पृ. १५४अ - १५७अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय- गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदिः उतपति सुणज्यो आपणी; अंति: इम कहे श्रीसार ए,
गाथा - ७१.
६०१२६ (+) चंदकेवली रास, संपूर्ण वि. १९१९ आश्विन शुक्ल ४ शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १४३+१ (३७) = १४४, ले. स्थल, विदासर प्र. मु. शिवराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, दे., (२५.५४११.५, १२४३२-३७)चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: मोहनविजये० गुण चंदना, उल्लास-४ ढाल १०८, गाथा - २६७९.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
१४३ ६०१२७. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३७-१(१)=१३६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १३४४०-४५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कुलबालक कथा अपूर्ण से अभयकुमार
दृष्टांत अपूर्ण तक है., वि. मूल पाठ कथानुसार आंशिक रूप से है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६०१२८. (#) चंदकेवली रास, संपूर्ण, वि. १८५४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. १०३+१०(८० से ८९)=११३,
ले.स्थल. महेंद्रपुर, प्रले.मु. विरमविजय (गुरु ग.खेमविजय पंडित); गुपि.ग.खेमविजय पंडित (गुरु ग.खुसालविजय पं.); ग.खुसालविजय पं. (गुरु ग. सुखविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथजी प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३५). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: मोहनविजये० गुण चंदना,
उल्लास-४ ढाल १०८, गाथा-२६७९. ६०१२९. (4) पांडवचरित्र रास, संपूर्ण, वि. १९०३, कार्तिक कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ११०, ले.स्थल. केलसकर, प्रले. पं. जसराज; राज्ये
आ. जिनहेमसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १४४३९).
पांडवचरित्र रास, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति: लाभवर्धन
___ पा० लहै तेह, खंड-६ ढाल१५०, ग्रं. ३७९७. ६०१३०. (+#) चंदराजा रास, अपूर्ण, वि. १८१९, वैशाख शुक्ल, ४, रविवार, मध्यम, पृ. ११४-२४(१ से २४)=९०,
ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मु. प्रीतविजय; पठ.पं. जसविजय; अन्य. मु. मानविजय; पंन्या. केसरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (६५७) जलाद्रक्षे स्थलाद्रक्षे, जैदे., (२५.५४१२, १६४३०-३३). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: (-); अंति: मोहनविजये० गुण चंदना, उल्लास-४ ढाल
१०८, गाथा-२६७९, (पू.वि. उल्लास-२ ढाल-४ की गाथा-१८ अपूर्ण से है.) ६०१३१. (#) चंदराजा रास, अपूर्ण, वि. १८४७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. १००-९(१ से ९)=९१, ले.स्थल. साचोर, प्रले. मु. भावविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ४१००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १६x४०).
चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: (-); अंति: वर्णव्या गुणचंदना, उल्लास-४ ढाल १०८,
__गाथा-२६७९, (पू.वि. उल्लास-१ ढाल-१० की गाथा-५ अपूर्ण से है., वि. अंत में रास का पूर्ववृत्तांत दिया गया है.) ६०१३२. (#) पांडव रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३५-५०(१ से १३,५१,७२ से ८२,८८,१०६ से १०७,११० से १३१)=८५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२.५, १६४३५-४०). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं.,
ढाल-१६ की गाथा-१३ से ढाल-१५१ की गाथा-२१तक है.) ६०१३३. (+) चंदराजा चौपई, अपूर्ण, वि. १९०६, वैशाख कृष्ण, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. ८९-९(३२,३४ से ४१)-८०,
ले.स्थल. सिरदारशहर, प्रले. मु. नीतसोम (गुरु मु. नेत्रविशाल, खरतरगच्छ); गुपि.मु. नेत्रविशाल (गुरु ग. शांतिसमुद्र, खरतरगच्छ); ग. शांतिसमुद्र (गुरु ग. वीमाणक्यराज, खरतरगच्छ); ग. वीमाणक्यराज (गुरु ग. रूपवल्लभ, खरतरगच्छ); ग.रूपवल्लभ (गुरु उपा. विद्यानिधान, खरतरगच्छ); उपा. विद्यानिधान (गुरु आ. जिनसुखसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनसुखसूरि (गुरु आ. जिनलाभसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५.५४१२, १५४४७-५०). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धरा धवति प्रथम; अति: मोहनविजये० गुण
चंदना, उल्लास-४ ढाल १०८, गाथा-२६७९, (पू.वि. उल्लास-२ ढाल-१६ गाथा-२ अपूर्ण से उल्लास-३ ढाल-२ गाथा-९
अपूर्ण तक नहीं है.) ६०१३४. हरिबल चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ.८६-२(८१ से ८२)=८४, जैदे., (२५.५४१२, १४४४२).
हरिबल चौपाई, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१०, आदि: प्रथम धराधव जगधणी; अंति: (-), (पू.वि. बीच व
अंत के पत्र नहीं हैं., उल्लास-४ ढाल-१९ से २० अपूर्ण व ढाल-२४ के बाद के पाठ नहीं है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६०१३५. (+४) बच्छराज चौपाई, संपूर्ण वि. १८७१ आश्विन शुक्ल, १. शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ७४, ले. स्थल, आहडसर, प्रले. मु. ऋद्धिसागर (गुरु मु. शीलरंग, खरतरगच्छ क्षेमशाखा); गुपि. मु. शीलरंग (गुरु वा. दयाराज गणि, खरतरगच्छ-क्षेमशाखा); वा. दयाराज गणि (गुरुवा. विद्याविशाल गणि, खरतरगच्छ क्षेमशाखा); वा. विद्याविशाल गणि (खरतरगच्छ-क्षेमशाखा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५x१२, १३४३४).
वच्छराज चौपाई, मु. विनयलाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६३०, आदिः परम निरंजन परमप्रभु; अंति: विनयलाभ ० मंगलमाल ए, खंड-४ ढाल ६६.
६०१३६. (#) चंदकेवली रास, अपूर्ण, वि. १८५३, कार्तिक कृष्ण, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. ८४-२१ (१ से ११,१३,४८ से ५५,६८)=६३, ले.स्थल. वाराहीनगर, प्रले. पंन्या. हर्षविजय, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१२, १७X३७).
,
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चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: (-); अंति: मोहनविजये ० गुण चंदना, उल्लास-४ ढाल १०८, गाथा-२६७९, (पू.वि. उल्लास- १ ढाल १४ गाथा - १४ से है.)
६०१३७. षडशीति सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४५-२ (१८,४०)+२(१७,३९) ४५, जैये., (२५.५४१२,
३-१४X३६-४२).
षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: नमिय जिणं जीअमग्गण; अंति: (-), (पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा ५७ तक है.)
षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. यशसोम शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: (१) प्रणिधाय परंतेजो, (२) नमस्कार करीने;
अंति: (-). पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
षडशीति नव्य कर्मग्रंथ - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: वीतरागदेव नमस्करीन; अंति: (-), पू. वि. अंत के पत्र नहीं 8.
६०१३८. (+) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १८३२, पौष शुरू, २ रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५८-३ (५० से ५२) ५५, ले. स्थल. मकसूदाबाद, प्रले. पं. देवचंद्र, लिख.मु. क्षेमविजय (गुरु पंन्या. प्रसिद्ध विजय); गुपि. पंन्या. प्रसिद्ध विजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे. (२६४१२, १३४३९-४२).
"
श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पच, वि. १७३८ आदि कल्पवेल कविवण तणी अंति: लहेशे ज्ञान विशालाजी, खंड-४ ढाल ४१, गाथा- १८२५ (पू.वि. खंड-४ डाल-८ गाथा- ६६ से हाल ११ गाथा २५ अपूर्ण तक नहीं है.)
६०१३९. (+#) श्रीपाल चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५४, प्रले. पं. उदयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें कुल ग्रं. १७०० अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६४११.५, १५४३६).
श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेली कवियण तणी, अंति: ज्ञान विशाला जी, खंड-४ ढाल ४१, गाथा- १८२५.
६०१४०. (#) जिनेश्वरपूजादीपकभावविशुद्धविषय तेजसार रास, पूर्ण, वि. १९२३, भाद्रपद शुक्ल, १३, शनिवार, श्रेष्ठ,
पृ. ३६-१(१)=३५, ले.स्थल. कोटानगर, प्रले. मु. गोकलचंद्र (गुरु मु. मोतीचंद्र, विजयगच्छ); गुपि. मु. मोतीचंद्र (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X१२, १३x४०-४६).
तेजसारकुमार रास-जिनेश्वरपूजादीपकभावविशुद्ध विषये, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य वि. १७८७, आदि; (-); अंतिः थायो नेमि सदा सुखकार, ढाल - ३९, गाथा- ९६०, (पू.वि. ढाल - १ गाथा-७ अपूर्ण से है.) ६०१४१. (+) पत्रवणासूत्र पर्यायपद जीव अजीव पर्याय विचार, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३१. पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X१२, १३x४४).
प्रज्ञापनासूत्र - पंचम पर्यायपद जीव अजीवादि विचार, संबद्ध, पुहिं, पद्म, आदि पटलै सो पर्याय कहियै; अंति: (-), (पू.वि. अवगाहना विचार अपूर्ण तक है.)
६०१४२. चातुर्मासिक व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९५८, वैशाख कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. २४-७ (७, ११, १३ से १४,१८ से २०) = १७, ले. स्थल. कडी, प्रले. य. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २६१२, १८x४०).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
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चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान- अनुवाद, मा.गु., गद्य, आदि: (१) स्मारं स्मारं स्फुर, ( २ ) सर्वजगतें पूज्यमान, अंति मांगलिकनी माला थाय (पू. वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं है.)
६०१४३. धर्मस्वरूप विचार कथा, संपूर्ण, वि. १९३६, कार्तिक कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. २३, प्रले. श्राव. रामजी वीरचंद शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५X१२.५, १५X३६).
धर्मध्यान चतुर्विध आलंबन कथा, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: धर्मकथा तेसु जे भाव, अंतिः परम आनंद सुख पामे,
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कथा-४.
६०१४४. (+४) गौतमपृच्छा सह बालावबोध, कथा व बीजक, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३०-७ (१ से ७)= २३, कुल पे. २,
प्रले. ग. गुलाबसुंदर (गुरु उपा. देवसुंदर); गुपि. उपा. देवसुंदर, अन्य. मु. गोपाल ऋषि (गुरु मु. थोभण ऋषि); गुपि. मु. थो ऋषि, अन्य. मु. भीमजी ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४१२, १७४४४-४७).
"
१. पे. नाम. गौतमपृच्छा सह बालावबोध व कथा, पृ. ८आ-३०अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति: गोयमपुच्छा महत्वावि, प्रश्न- ४८, गाथा- ६४, (पू. वि. गाथा २५ से है. ) गौतमपृच्छा - बालावबोध, आ. जिनसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (१) हर्षपूरेण भावतः, (२) तेह एह माहि जाणिवा.
,
गौतमपृच्छा - कथा संग्रह में, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: हुओ मोक्ष पामिस्व, कथा-३५. २. पे. नाम. गौतमपृच्छा बीजक, पृ. ३०अ, संपूर्ण.
गौतमपृच्छा- बीजक, सं., गद्य, आदि: गाथा १९ प्रारंभ; अंतिः सो मोक्षसुख प्राप्तौ
६०१४५. (+#) ठाणांगसूत्र नवमस्थानक पदार्थ विवरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १३३३-३९).
स्थानांगसूत्र का हिस्सा नवमस्थानक पदार्थविवरण- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि जीवतत्त्वर अजीब, अंतिः (-). (पू.वि. मोक्षमार्ग विवरण प्रारंभमात्र तक है.)
६०१४६. (#) विक्रमसेनराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८९९, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. २६ + १ ( २० ) =२७, प्र. वि. किसी अन्य संस्कृत प्रत का पत्र इस प्रत में चिपक गया है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१२.५, १८x४०-४५).
"
विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य वि. १७२४, आदि: सुखदाता संखेश्वरो, अति: मानसागरे ० दोलति
पाईजी, ढाल ५२, गाथा- ११६२, ग्रं. १६२४.
६०१४८. (+४) सुक्तावली सह अर्थ व दृष्टांत कथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १९-२ (१ से २) = १७, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे. (२६४१२, १४४३८).
"
सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-७ से उपशमदृष्टांत
श्लोक तक है.)
१४५
(२५X१३, ११-१५x२९-४५).
१. पे. नाम. ज्ञानपूजा विधि, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं.
५ ज्ञान पूजाविधि, रा. प+ग, आदि (-): अंति: ज्ञाननी भक्ति साचवे, (पू. वि. मात्र अंतिम पंक्ति है.)
२. पे नाम, शांतिजिन आरती, पृ. ७अ, संपूर्ण,
3
सूक्तमाला अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
-
सूक्तमाला कथा, मा.गु, गद्य, आदि: (-): अंति: (-) (पू. वि. प्रदेशीराजा कथानक अपूर्ण से उपशम दृष्टांत तक है.)
,
६०१४९. (#) पूजा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २१-६ (१ से ६) = १५, कुल पे. ५, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
सेवक, पुहिं., पद्य, आदि: जय जय आरती शांति, अंति: नर नारी अमरपद पावे, गाथा-५.
३. पे. नाम, अष्टप्रकारी पूजा, पृ. ७अ १०आ, संपूर्ण.
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८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: सुचि सुगंधवर कुसमयुत; अंति: मोक्षसौख्यं श्रयंति, दाल-८, श्लोक ८.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
४. पे. नाम. नवपद पूजा, पृ. १० आ-१७आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंतिः कोई नये न अधूरी रे, पूजा- ९. ५. पे. नाम. सत्तरभेद पूजा, पृ. १७ आ-२१आ, पूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है.
"
१७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु. पच, वि. १६१८, आदिः भाव भले भगवंतनी पूजा, अंति: (-) (पू. वि. प्रशस्ति गाथा अपूर्ण तक है.)
६०१५०. नवतत्त्व विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५, दे., (२५.५४१२.५, २५X४६-५०).
,
יי
तत्व प्रकरण-विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि; जीवतत्त्व अजीवतत्त्व अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सिद्धविचार किंचित् अपूर्ण तक लिखा है.)
६०१५१. (+) विक्रमसेन चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३४-१९ (१ से १८, २४) = १५, प्र. वि. संशोधित कुल ग्रं. १५००, जैदे. (२६११.५, १६x२६).
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विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य वि. १७२४, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, ढाल २७ की गाथा- २ अपूर्ण से ढाल ५०, गाथा-७ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ६०१५२. (+) ध्यान व समकित विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, दे. (२४४१०.५,
१३X३८).
१. पे नाम, ध्याननो द्वार, पृ. १अ १२आ, संपूर्ण.
ध्यानद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम चार प्रकारना, अंतिः ध्याननां वे भेद लाभे.
२. पे नाम समकितना नौ प्रकार, पृ. १२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है.
९ सम्यक्त्त्व प्रकार, मा.गु., गद्य, आदि: एहवुं सांभलीनै शिष्य; अंति: (-), (पू.वि. नौवां समकित अपूर्ण तक है.) ६०१५३. प्रदेशीराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८८१, कार्तिक कृष्ण, १४, गुरुवार, मध्यम, पृ. १५, ले. स्थल. शाहपुर, प्रले. मु. जगराम
(गुरु मु. कनीराम); गुपि.मु. कनीराम (गुरु मु. गाढमल); मु. गाढमल (गुरु मु. सांमीदास); मु. सांमीदास (गुरु मु. दीपचंद); मु. दीपचंद (अज्ञा. मु. लालचंदजी): मु. लालचंदजी (गुरु मु. जीवराजजी), प्र.ले.पु. मध्यम जैदे., (२५.५४१२, २१४३५).
प्रदेशीराजा चौपाई, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: रायप्रसेणी सुत्रमे अंतिः मिच्छामिदुक्कडं सोय,
ढाल १७.
६०१५४. (+) श्रावकपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९३० चैत्र कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १४, ले. स्थल. नागपुर, प्रले. पं. आनंदनिधान मुनि प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीजिनकुशलसूरजी प्रसादात्, पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. दे. (२५.५X१२, ८x२३-४७). श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ६०१५५. (+) हरिचंद चउपई, संपूर्ण, वि. १८३६, ज्येष्ठ शुक्ल, १२, गुरुवार, मध्यम, पृ. १४, ले. स्थल. विक्रमपुर, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६.५X१२, १६x४१).
हरिश्चंद्रराजा चौपाई, मु. कनकसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: पासजिणेसर पाय नमु; अंति: भाजैइ भवजंजाल रे, खंड- ५ ढाल २२, गाथा- ४६३.
६०१५६. (+) चोवीसदंडक द्वार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १६- ३ ( १, ३, १२) = १३, प्र. वि. संशोधित., दे., (२५X१२, ११४३०). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: गुणा अधिका कहिवा, (पू.वि. नामद्वार अपूर्ण से है व बीच के कुछ
पाठ नहीं हैं.)
६०१५७, (+०) कुमारपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २९-१७(१ से २,४,६ से ७,९ से १४,१७, २०, २३, २५ से २६,२८) = १२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे. (२५.५४११. १५-१८४४०-४८).
"
कुमारपाल रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६७०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५२ अपूर्ण "आवो आवो सहू को कहे ऊभा थई आदर करई पाठ तक हैं. बीच-बीच का पाठांश नहीं हैं.)
६०१५८. (+) भंगतरंगणि सह टीका व बालावबोध, संपूर्ण वि. १८६२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे. (२६१३, २०६१).
"
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
१४७ भंगतरंगिणी, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंसिरिणजिहिवं; अंति: अंतसमूहो दुरोगाढो, गाथा-५२. भंगतरंगिणी-टीका, श्राव. दलपत, सं., गद्य, वि. १७८६, आदि: संजोगियाइ दस१०; अंति: सेयं भंगतरिगिणी.
भंगतरंगिणी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम संजोगिभांगा; अंति: समस्तानुपूर्वी३. ६०१५९. (+) अवयद सुकनावली, संपूर्ण, वि. १९२५, पौष शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. विकानेर, प्रले. मु. प्रतापसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमानभद्रजी प्रसादात्., संशोधित., दे., (२५४११, १५४३४).
अबयद शुकनावली, मु. सुजाणसिंह, पुहिं., गद्य, वि. १७९४, आदि: महावीर को ध्याइके; अंति: इस वातमें संदेह
नाही. ६०१६०. (+) नव्वाणुंप्रकारी पूजा व नवपद स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१२, १०४२०-२३). १. पे. नाम. ९९ प्रकारनी पूजा, पृ. १आ-११अ, संपूर्ण. ९९ प्रकारी पूजा-शत्रुजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: श्रीशंखेसर पासजी; अंति:
आतम आप ठरायो रे, ढाल-११. २. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण.
मु. दोलतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसती प्रणमु; अंति: दौलत० नवपदने सदाजी, गाथा-८. ६०१६२. (+#) अनुकंपा चोढालिया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. आउआ, प्रले. सा. जमकु (गुरु मु. भारमलजी
स्वामी); गुपि. मु. भारमलजी स्वामी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२६४१२, २४४२६).
अनुकंपास्वरूप चौढालीयो, मा.गु., पद्य, आदि: अनुकंपाने आदरी किजो; अंति: भुलारो नरणो कीजो, ढाल-४. ६०१६३. (+) स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८-१(५)=७, कुल पे. १४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१३,
१२४३४). १.पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतडली बधाणी रे; अंति: मोहन कहे कवी रंग जो, गाथा-५. २. पे. नाम. आत्म सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: रे अणसमझूजी सि सीखा; अंति: रूपचंद गुण गावे छे, गाथा-७. ३. पे. नाम. मनकमुनि सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ___मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नमो नमो मनक महामुने; अंति: लबधी० सद्गति सारो रे, गाथा-१०. ४. पे. नाम. बाहुबलनी ढाल, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. भरतबाहुबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: तव भतेसर वीनवुरे; अंति: जे रामविजय इम
भणे रे, गाथा-१२. ५. पे. नाम. चंदनबालानी सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. चंदनबालासती सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बालकुमारी चंदनबाला; अंति: कुंवर कहै करजोडिरे,
गाथा-१३. ६. पे. नाम. इलाचीपुत्रनी सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामे इलाचीपुत्र जाणी; अंति: लब्धिविजय गुण गाय,
गाथा-१०. ७. पे. नाम. मेतारजमुनि सज्झाय, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है.
मु. राजविजय, पुहि., पद्य, आदि: संजम गुणना आगलाजी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८. पे. नाम. क्रोधनी सज्झाय, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है.
औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: उदयरतन० उपसमरस नाही, गाथा-६,
(पू.वि. गाथा-३ से है.)
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१४८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९. पे. नाम. माननी सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रेजीव मान न कीजीए; अंति: उदयरतन० दसवटो
रे, गाथा-५. १०. पे. नाम. मायानी सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समकितनु मुल जाणीये; अंति: उदयरतन० छे
सुधरे, गाथा-६. ११. पे. नाम. जंबुस्वामी सज्झाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. ___ जंबूस्वामी सज्झाय, आ. शिवचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: संजमपथ स्वामी दोहीलो; अंति: शिवचंद्रसूरि० जयकार,
गाथा-१२. १२. पे. नाम. आउखानी सज्झाय, पृ. ७-८अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: आउखा तुटाने सांधो को; अंति: चोथमल०
जालौर मझार रे, गाथा-७. १३. पे. नाम. बीजा महाव्रतनी सज्झाय, पृ. ८अ, संपूर्ण. मृषावादपापस्थानक सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: असत्य वचन मुखथी नवि; अंति: जेह
पाले सुद्ध आचार, गाथा-५. १४. पे. नाम. अरणिकमुनिवरनी सज्झाय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: समयसुंदर फल
लीधो जी, गाथा-८. ६०१६४. (+) पंचपरमेष्ठिगुण वर्णन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-२(१ से २)=७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५,१६४३५-३८). पंचपरमेष्ठि १०८ गुणवर्णन, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अपायागमातिशय वर्णन से अप्रत्याख्यानी
क्रोध वर्णन तक है.) ६०१६५. (+) बंधउदयसत्तादि विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, १६४३८). १४ गुणस्थानके कर्मबंधउदयसत्ता व उदीरणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणी ५ दर्शना; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., आकाशद्रव्य के स्वरूप तक लिखा है.) । ६०१६६. (#) नवपदगुण वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्रले. मयाराम ठाकोर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १५४३४).
नवपदगुण वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: पेले पदे नमो अरिहंता; अंति: नमस्कार होजो. ६०१६७. स्तवन, गीत व भास संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०८, फाल्गुन कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. १४, ले.स्थल. नागोर, दे.,
(२६४१३, १४४३०-३५). १. पे. नाम. हर्षचंदजी भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. हर्षचंदजी गीत, श्रावि. लुंगादे, मा.गु., पद्य, वि. १८२६, आदि: सरसति सामण सहिया; अंति: लुंगादे० केरा पाय,
गाथा-११. २. पे. नाम. लक्ष्मीचंदजी गीत, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
लक्ष्मीचंद्रसूरि भास, रा., पद्य, आदि: गुण गाऊँ गछराजनां हे; अंति: वांदा हो राज थाने, गाथा-१३. ३. पे. नाम. दादाजी स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. दादाजी स्तवन-नागोरीगच्छ, मु. परमानंद, मा.गु., पद्य, आदि: देव सकल सेहरो हो; अंति: वीरनो० जपै परमानंद,
गाथा-९. ४. पे. नाम. दादा स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
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दादाजी स्तवन- नागोरीगच्छ, मु. परमानंद, मा.गु., पद्य, आदि दौलत दो दादा सदगुरु: अंति: गुण गावै परमानंद,
गाथा - ९.
५. पे नाम, लक्ष्मीचंदजीरो भास, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण
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लक्ष्मीचंद आचार्य भास, मु. केशरचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: सरसती तोने ध्यावु, अंतिः संघ सहु ओछव कीधी हो, गाथा- ९.
६. पे. नाम. सदारंगजी गीत, पृ. ३आ-४अ संपूर्ण.
मु. रहिदास शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सारददेवी सुखकारी, अंति: रहिदासजी० सुणै सुजाण, गाथा- ९.
७. पे नाम, बर्द्धमान आचार्य गीत, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण.
श्राव. भैरु कवि, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: मोरी सजनी विवध वधावो; अंति: भैरु० पूगी मननी आस, गाथा - १०. ८. पे नाम, सदारंग आचार्य गीत, पृ. ४आ-५अ संपूर्ण
मु. खेमदास, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: आज मनोरथजी माहरा सहू; अंति: मुनि खेमदास सुखकार, गाथा-१०. ९. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण.
मु. हर्षचंद, मा.गु., पद्य, आदिः प्रणमुं पदपंकज सदा, अंतिः हरषि० भांजो भवना पास, गाथा-५.
१०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण.
मु. हर्षचंद, मा.गु., पद्य, आदिः सेवक जपै हो साहिब, अंतिः हरषि जपुं तुम नाम, गाथा-७.
११. पे नाम वर्द्धमानजी गीत, पृ. ५आ- ६अ, संपूर्ण.
वर्द्धमान आचार्य गीत, वरमो, मा.गु., पद्य, आदिः आज घणा आणंद है आवो; अंति: वरमो० गुरु अविचल रहो,
गाथा - ९.
१२. पे. नाम. लक्ष्मीचंद्रजी गीत, पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण.
मु. हर मुनि, मा.गु, पद्य, वि. १८४७, आदि: सरसति सामण सहीया, अंति: हर गायो० हो पूज जी, गाथा ६. १३. पे नाम, लक्ष्मीचंद्रजी भास, पृ. ६आ- ७अ संपूर्ण,
१४९
६०१७० (+४) स्तवनवीसी, पूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष
"
"
पाठ- संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, १२३३-३७).
लक्ष्मीचंद्रसूरि भास, मा.गु, पद्य वि. १८८१, आदि राज सरसति प्रणमुं; अंतिः दिने मंगलवार उदार, गाथा- १२. १४. पे. नाम. गच्छाधिपति भास, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
गच्छाधिपति भास-लुंकागच्छ, मा.गु., पद्य, आदि: म्हें तो गच्छपतिना; अंति: माहाराजजी मुझ उपरे, गाथा- १०. ६०१६८. मेतारजमुनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैवे. (२५४१२, १८x४०-४३). तारजमुनि चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १८४९, आदि: सासणनायक सीमरीयै; अंतिः (-), (पू.वि. ढाल १७, गाथा-७ अपूर्ण तक है.)
६०१६९. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-१४ (१ से १४) = ७, प्र. वि. टिप्पणयुक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२५X१२, ४-६x२७-३०).
"
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी आदि (-) अंति: संतिसूरि० सुयसमुदाओ, गाथा ५१, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गाथा ४ अपूर्ण से है.)
""
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ सेटबार्थ है व अंतिम गाथा का टबार्थ नहीं लिखा है.)
स्तवनवीसी, मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, आदि: किम मिलिये किम परचिय अंति: (-), (पू. वि. स्तवन- २०, गाथा- १
अपूर्ण तक है.)
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६०१७१. (#) समाधितंत्र दोधक, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१२, १४x२९-४०).
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१५०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
समाधिशतक दोधकछंदमय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं, पद्य वि. १८वी, आदि: समरी भगवति भारती, अंति: (-), (पू.वि. गाथा- १९९ तक है., वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.) ६०१७२. (+#) उत्तमकुमारचरित्र रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७-१ (१) ६, पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५x११.५, १२३४-३७).
,
"
उत्तमकुमारचरित्र रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४५, आदि: (-); अंति: ( - ), ( पू. वि. ढाल - १, गाथा - १ पूर्ण
ढाल -६, गाथा- ५ तक है.)
६०१७३. अक्षयतृतीया व होलिका व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, वे., (२५.५x१२.५, १२४३३-३६). १. पे नाम, अक्षयतृतीया व्याख्यान, पृ. १आ ५अ संपूर्ण,
अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, प्रा. रा. सं., गद्य, आदि उसभस्सय पारणए इक्स्तु अंतिः आतम कारज सार्या. २. पे. नाम. होलिकापर्व व्याख्यान, पृ. ५अ ६आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३५, आदि: होलिका फाल्गुने मासे; अंति: (-), (पू.वि. सेठ की पुत्री के अग्नि में जल जाने के वर्णन तक है.)
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६०१७४. (#) खेताणुवाई व षड्द्रव्य बोल, संपूर्ण, वि. १९३०, आश्विन कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२६४१२.५, १८४३९).
१. पे नाम, खेत्ताणुंवाय, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण.
क्षेत्रोपपत्ति, मा.गु., गद्य, आदि: खेताणुवाएणं सव्वत्थो; अंति: तिरीयलोए संखेजगुणा, (वि. आरम्भ में कोष्ठक दिए गए हैं.)
२. पे. नाम षट्द्रव्यना बावीस बोल, पृ. ६अ, संपूर्ण.
षड्द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मास्तिकाय १ अधर्म, अंति: असर्वगतव्यापी २२.
६०१७६. (+) स्तवन व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६-१ (२) ५, कुल पे ४, प्र. वि. संशोधित, जैदे.,
(२६X११, १४X३६).
१. पे. नाम, पंचतीर्थ स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदिः आदि ए आदिजिनेसरू ए; अंति: लावण्यसमय० पाम सासता, गाथा ६.
२. पे. नाम. सोलहसती सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है.
१६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिनाथ आदि जिनवर, अंति: (-), (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण तक है.)
३. पे नाम, मुनिमालिका, पृ. ३अ ५आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
मुनिमालिका स्तवन, ग. चारित्रसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: (-); अंतिः सदा कल्याण कल्याण, गाथा- ३६, (पू.वि. ढाल १ गाथा- २ अपूर्ण से है.)
४. पे. नाम. अतितअनागत वर्तमान चोवीसीजिन स्तवन, पृ. ५आ - ६आ, संपूर्ण.
९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: वरतमान चौवीसी वंदू, अंतिः सदा जिणचंदसुर ए, ढाल -५, गाथा- २३.
६०१७७. (+) चौदनियम व ऋषिमंडल स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२५.५X१२.५, १५x२९-३२).
१. पे. नाम. चौदनियम गाथा सह बालावबोध, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण.
श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सचित दव्व विगइ वाहण; अंति: दिसि न्हाण भत्तेसु, गाथा - १. श्रावक १४ नियम गाथा - बालावबोध, रा. गद्य, आदि: श्रावके जावज्जीव, अंतिः तोकुं सामान्यकरणा है.
२. पे नाम, ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. ४अ ५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है.
आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६० अपूर्ण तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
१५१ ६०१७८. (+) शांतिजिन रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६१-३(१४० से १४१,२५९)=२५८, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १६४३५-३८). शांतिजिन रास, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८५, आदि: सकल श्रेयवरदायिनी; अंति: (-), (पू.वि. खंड-५,
ढाल-१०, गाथा-१३ अपूर्ण से खंड-५, ढाल-१२, गाथा-८ अपूर्ण तक है व रचना प्रशस्ति का किंचित् पाठ नहीं है.) ६०१७९. सम्यक्त्वसप्ततिका सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्रले. पं. विमलविजय
(गुरु ग. विनीतविजय, तपागच्छ); गुपि.ग. विनीतविजय (गुरु ग. नेमविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. द्विपाठ., जैदे., (२५.५४१२, १२४३३).
सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सणसुद्धिपयास; अंति: सणसुद्धिं धुवं लहह, गाथा-७०, संपूर्ण. सम्यक्त्वसप्ततिका-सम्यक्त्वरत्नप्रकाशक बालावबोध+कथा, उपा. रत्नचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १६७६, आदि:
नत्वा श्रीपार्श्वमर; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंतिम प्रशस्ति श्लोक १२ तक हैं.)। ६०१८०. (+#) विक्रम चरित्र, संपूर्ण, वि. १८५९, चैत्र शुक्ल, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १६८, ले.स्थल. अगस्तपुरनगर,
पठ. मु. लक्ष्मीविजय (गुरु पं. मुक्तिविजय गणि); गुपि.पं. मुक्तिविजय गणि (गुरु पं. हंसविजय); पं. हंसविजय (गुरु पंन्या. गजविजय); पंन्या. गजविजय (गुरु पंन्या. गंगविजय); पंन्या. गंगविजय (गुरु पंन्या. हेमविजय); पंन्या. हेमविजय (गुरु
आ. विजयप्रभसूरि); आ. विजयप्रभसूरि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (६१६) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, जैदे., (२५४१२, १८४४५-४८). विक्रमराजा रास, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: अमल कमल सम नयनजुग; अंति: भाण० ऋद्धि
विसालाजी, ढाल-१७४, गाथा-५७९७. ६०१८१. (+) सुक्तिमाला-धर्म वर्गसह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १८६५, आश्विन शुक्ल, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. १३१-३(८७ से
८९)=१२८, ले.स्थल. खारसी, प्रले. मु. गोविंदजी; लिख. पं. शिवहंसजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १५४४४). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृतवल्लि; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. मात्र
प्रथम वर्ग है व श्लोक-४३, ४४ नहीं है.) सूक्तमाला-टबार्थ, मु. धर्मविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८२७, आदि: प्रणमि सदगुरु शारदा; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण.
सूक्तमाला-कथा, मु. धर्मविजय, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ६०१८२. (+) कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२४-५(२३ से २७)=११९, प्र.वि. पत्र-८३+४२ हैं., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ११४२९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढम; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बीच के कुछ पाठांश नहीं है व आठवीं वाचना अपूर्ण तक लिखा है.) कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (१)अज्ञान तिमिरांधानां, (२)अहँत भगवंत उत्पन्न; अंति: (-),
पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६०१८३. (+#) श्रीपालराजा रास, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०४, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, ६-१४४२४-२६).
श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण
तणी; अंति: (-), (पू.वि. प्रशस्ति की दो गाथाएँ नहीं हैं.) ६०१९०. (+#) भुवनदीपक, संपूर्ण, वि. १९३३, आश्विन शुक्ल, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, ७४१८-२६).
भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७०. ६०१९२. (+#) भुवनदीपक सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५२, चैत्र कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. २०, कुल पे. २, प्रले. मु. ज्ञानचंद्र,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, ६४३०). १.पे. नाम. भुवनदीपक सह टबार्थ, पृ. १आ-२०अ, संपूर्ण.
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१५२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७३.
भुवनदीपक-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती संबंधीयो; अंति: पद्मसूरि० समाप्त थयो. २. पे. नाम. नवग्रह जाति व उत्पतिस्थान सह टबार्थ, पृ. २०अ, संपूर्ण.
नवग्रहजाति व उत्पत्तिस्थान, प्रा.,सं., पद्य, आदि: कंसारो भरडो लोहार; अंति: केतो वासी कुंकणयं, गाथा-३.
नवग्रह उत्पत्तिस्थान-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सूर्य कंसारो चंद्रमा; अंति: केतुजन्म कुंकण देश. ६०२०९. नारचंद्र ज्योतिष सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०-१८(१ से १८)=१२, प्रले. मु. राजेंद्ररत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२.५, ७४३०-४०). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: करइ पुण नत्थि संदेहो, श्लोक-२९४, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र
नहीं हैं., श्लोक-७४ अपूर्ण से है.)
ज्योतिषसार-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: करी वेलाइतक्रमइ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ६०२१६. (+) मुहूर्तमुक्तावली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४६, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. लाडनूं,
प्रले.पं. रत्ननिधान (गुरु मु. विद्याविजय, बृहत्खरतर); गुपि.मु. विद्याविजय (गुरु उपा. जयमाणिक्य, बृहत्खरतर); उपा. जयमाणिक्य (गुरु वा. जिनजयगणि, बृहत्खरतर); वा. जिनजयगणि (परंपरा आ. कीर्तिरत्नसूरि, बृहत्खरतर गच्छ); आ. कीर्तिरत्नसूरि (बृहत्खरतर गच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ४४४२). मुहूर्तमुक्तावली, आ. परमहंस परिव्राजक, सं., पद्य, आदि: श्रीशं श्रीहरशारदा; अंति: पादपलतौषधिरोपणं च,
श्लोक-४६.
मुहर्तमुक्तावली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ; अंति: औषधीरोपण रोपवू. ६०२२६. अनुपानमंजरी सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९३३, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ९, दे., (२५.५४१२, ८-९४३७-३९).
__ अनुपानमंजरी, आ. विश्रामाचार्य, सं., पद्य, वि. १८४३, आदि: यस्य ज्ञानमयी; अंति: विश्राम ग्रंथकारकः, समुद्देश-५.
अनुपानमंजरी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे प्रभुनी ज्ञानमयी; अंति: (-). ६०२२७. (+) ज्योतिषसार संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १६x४६).
ज्योतिषसारोद्धार, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: तं नमामि जिनाधीशं; अंति: (-), (पू.वि. आयभवन अपूर्ण तक
६०२२८. हस्तजीवन, अपूर्ण, वि. १८६८, फाल्गुन शुक्ल, १, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २०-१२(१ से १२)=८, ले.स्थल. कास्यां, प्रले. उमेदराम ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, ९४४१). । हस्तसंजीवन, उपा. मेघविजय, सं., पद्य, वि. १८वी, आदिः (-); अंति: मेघ० भवनाभासन विधिः, (पू.वि. दिन लग्न
चक्र दर्शन अपूर्ण से है.) ६०२३१. सामुद्रिकशास्त्र, संपूर्ण, वि. १८५२, पौष शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. ध्राफा, प्रले. मु. रूपचंद्र (गुरु मु. देवजी ऋषि, लुंकागच्छ); गुपि.मु. देवजी ऋषि (गुरु मु. तेजसिंह ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १४४२७-३१).
सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अति: दक्षिणेच सुखं भवेत्, अध्याय-३६, श्लोक-२७१. ६०२५०. (+) नारचंद्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-४(१ से २,८ से ९)=६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १५४४२). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: विग्रहं च न संसय, श्लोक-२९४, (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र
नहीं हैं., प्रारम्भिक श्लोक-४३ अपूर्ण तक व वस्तु आर्या श्लोक ८ अपूर्ण से श्लोक ७७ अपूर्ण तक नहीं है.) ६०२८४. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १८७२, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ७०-९(१ से ९)=६१,
ले.स्थल. मलसीसर, प्रले.पं. आसा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीगोडीपार्श्वनाथ साहाय. श्रीऋषभदेवजी प्रसादात्, संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१११) भग्नपृष्टिकटीग्रीवा, (४६७) पोथी राखे चुंपसु, (६१२) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (६३५) तैलाद्रक्षे जलाद्रक्षे, जैदे., (२६४१२,११४२६-४५).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
१५३ अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: रोषोक्तावु
नतौ नमः, कांड-६, ग्रं. १४५२, (पू.वि. कांड- २ श्लोक १०२ अपूर्ण से है.) ६०२९९. विवाहपडल सह बालावबोध व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११.५,
१५४३४). १.पे. नाम. हीर दोहा, प्र. १अ-५आ, संपूर्ण.
विवाहपटल दोहा, मु. हीर, मा.गु., पद्य, आदि: हरसेणा धन मीन मल मास; अंति: हीर० जे जोवैते जाण, गाथा-१३४. २. पे. नाम. विवाहपडल सह बालावबोध, पृ. ५आ-३२अ, संपूर्ण, वि. १८७७, चैत्र शुक्ल, ३, शुक्रवार,
प्रले. पंन्या. ऋद्धिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. विवाहपडल, सं., पद्य, आदि: जंभाराति पुरोहिते; अंति: गतरात्रिस्फुटा भवेत्, श्लोक-१६०.
विवाहपडल-बालावबोध, मु. अमरसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य शिरसा पार्श; अंति: रच्यौ इण विधि अमर. ३.पे. नाम. बारह भुवन नाम, पृ. ३२अ, संपूर्ण.
१२ भावफल, सं., पद्य, आदि: तनु १ धन २ सहज ३; अति: १० आयु ११ व्यय १२, श्लोक-१. ४. पे. नाम. राशिनामादि ज्योतिष संग्रह, पृ. ३२अ-३२आ, संपूर्ण, पे.वि. कुछ श्लोकों का अर्थ भी लिखा हुआ है.
ज्योतिष*, मा.ग.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ६०३०७. (+) वैद्यवल्लभ सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८४७, वैशाख शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. २६-१(१)=२५, कुल पे. २, ले.स्थल. सिणधरी,
प्रले. मु. उत्तमशेखर; गुभा. मु. रतनशेखर (गुरु मु. दौलतशेखर); गुपि.मु. दौलतशेखर (गुरु मु. कृतशेखर); मु. कृतशेखर (गुरु उपा. राजशेखर); उपा. राजशेखर (गुरु उपा. सांमतिशेखर); उपा. सांमतिशेखर (गुरु मु. विनयशेखर); मु. विनयशेखर (गुरु उपा. उदयशेखर); उपा. उदयशेखर (गुरु उपा. क्षिमाशेखर); उपा. क्षिमाशेखर (गुरु उपा. शिवाशेखर); उपा. शिवाशेखर, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४१२, ७४३७). १.पे. नाम. वैद्यवल्लभ सह टबार्थ, पृ. २अ-२६अ, संपूर्ण. वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: सरस्वतीं हृदि; अंति: परोपकाराय विहितोयम्, विलास-९,
श्लोक-३२६. वैद्यवल्लभ-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीशारदा प्रति हृदय; अंति: परोपकार हेते कीधो. २. पे. नाम. हरकसा औषधि, पृ. २६अ-२६आ, संपूर्ण...
औषधवैद्यक संग्रह*, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: गंधक आवल सारो दूध; अंति: हरकसा जाई जाती रहै. ६०३३५. (#) वसुधारा, संपूर्ण, वि. १८७०, ज्येष्ठ शुक्ल, १२, गुरुवार, मध्यम, पृ. १३, ले.स्थल. गारब, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ९४२२-२६).
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. ६०३४५. (+) वसुधारा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ११४३१).
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति, (वि. अंत में विधि दी गई है.) ६०३५२. वसुधारा स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८५५, आषाढ़ शुक्ल, ४, रविवार, मध्यम, पृ. ७-२(४ से ५)=५, ले.स्थल. परोतीया, प्रले. मु. जीवाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, १४४३२). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैनस्य; अंति: शृणोति भोगंच करोति, (पू.वि. "इतनागच्छा गच्छा
माविबंबमाना" से "अनुमोदिता इदानीं परिभ्यश्वं" तक का पाठ नहीं है.) ६०३५७. सज्झाय, चैत्यवंदन, स्तुति आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३५-२४(१ से १९,२५ से २९)=११, कुल
पे. १२, दे., (२५४११.५, १०४३३). १. पे. नाम. राईपडिकमण सज्झाय, पृ. २०अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जसपडहो तिहुयणे सयले, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से
है.) २.पे. नाम. जगचिंतामणि सूत्र, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
संबद्ध, आ. गौतमस्वामी गणधर, प्रा., प+ग., आदि: जगचिंतामणी जगनाह; अंति: सासयबिंबाई पणमामि, गाथा-७. ३. पे नाम, सीमंधरस्वामी चैत्यवंदन, पृ. २०आ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: श्रीसीमंधर वीतराग; अंति: विनय धरे तुम
ध्यान, गाथा ३.
४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. २० आ-२१अ संपूर्ण
सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पुष्कलवड़ विजयेजयो, अंति भयभंजण भगवंत, गाथा- ७.
५. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. २१अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सीमंधर जिनवर सुखकर, अंति: ज्ञानविमल गुणखाणी, गाथा- १. ६. पे. नाम. सिद्धाचल चैत्यवंदन, पृ. २१अ २१आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुंजय सिद्ध, अंतिः जिनवर करुं प्रणाम, गाथा- ३. ७. पे. नाम बीज स्तुति, पृ. २१-२२अ संपूर्ण.
तिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न, अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४.
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८. पे नाम, साधु अतिचार, पृ. २२अ-२४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
श्रावकपाक्षिक अतिचार तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणेमि दंसणंमि०, अंति: (-) ( पू. वि. सूत्र ८ अपूर्ण तक है.)
९. पे. नाम. मांगलिक श्लोक, पृ. ३०अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: कुर्वंतु वो मंगलं, श्लोक-२, (पू. वि. श्लोक - १ अपूर्ण है.)
१०. पे. नाम. सोलसती नाम, पृ. ३०अ, संपूर्ण, वि. १९३८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, शुक्रवार, ले. स्थल. पचपाहाड नगर, प्रले. श्रीचंद्र, पठ. मु. तिलोकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य.
१६ सती स्तुति, सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी चंदनबालिका; अंतिः कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१.
११. पे. नाम. जैनधार्मिक श्लोक, पृ. ३०-३०आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा., सं., पद्य, आदि: देवश्चित्त समाधिता; अंतिः श्रीवर्द्धमानो जिनः, श्लोक-४. १२. पे नाम, प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ३० आ-३५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: (-), (पू.वि. श्रावक अतिचार अपूर्ण तक है.)
६०३५८. (+१) कल्याणमंदिर स्तोत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १८४४ आश्विन शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १४, ले. स्थल बेनातटपुर,
प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५X११.५, १७३३-५५).
कल्याणमंदिर स्तोत्र - टीका, पा. हर्षकीर्ति, सं., गद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनं; अंति: पार्श्वनाथप्रसादतः. ६०३५९, (+) भक्तामर स्तोत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १३. पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १४४४०).
"
भक्तामर स्तोत्र- टीका, उपा. सिद्धिचंद्र, सं., गद्य, आदिः श्रेयः श्रिये प्रभुर अंति: (-) (पू.वि. श्लोक-२२ अपूर्ण तक की का है., वि. मूल गाथा के प्रतीक पाठ दिए गए हैं.)
६०३६०. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९, जै, (२५४१२, १५X३३).
प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - श्वेतांबर से संबद्ध, प्रा.सं., प+ग, आदि: णमो अरिहंताणं० जयउ अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "अन्नत्थ उससिएणं" का पाठ अपूर्ण तक लिखा है.)
६०३६१. (+) जीवविचार सह टबार्थ व जीव के ५६३ भेद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२४४१२.५, ५-१५४३२).
"
१. पे नाम, जीवविचार प्रकरण सह टवार्थ, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: ___ संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५२.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: तीन भुवन कै विषइ; अंति: रूप समुद्र थकी. २. पे. नाम. जीवना ५६३ भेद, पृ. ७आ-९आ, संपूर्ण.
५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नारकी के १४; अंति: ५६० अजीवरा भेद. ६०३६२. (+) प्रतिक्रमणसूत्र व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त
विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२४.५४१२, १२४३०-३५). १. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं णमो: अंति: करेमि
काउसग्गं. २. पे. नाम. वर्द्धमानजिन स्तुति, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. ।
महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु वर्द्धमानाय; अंति: भाजा श्रुतांगी, श्लोक-४. ३. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. ८अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमा; अंति: सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. ४. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै; अंति: विहसंति कल्याणदाता, गाथा-४. ५. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: विस्मतहृदः क्षितौ, श्लोक-४. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति संगीतमय, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: दें दें कि धप; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम श्लोक
अपूर्ण तक है.) ६०३६३. (+#) भववैराग्यशतक व जैनधार्मिक गाथा, संपूर्ण, वि. १७६३, जीर्ण, पृ.८, कुल पे. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें-संधि सूचक चिह्न. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४११.५, ७४३८). १. पे. नाम. भववैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण.
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, गाथा-१०४.
वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंति: लहइ जीव शाश्वतुं ठाम. २. पे. नाम. जैनधार्मिक गाथा, पृ. ७आ, संपूर्ण.
जैनगाथा संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जिणधम्मेय जीवाणं; अंति: सुखाणं कलाणदायगाधमे, गाथा-१.
जैनगाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिनधर्म जीवानइ; अंति: सुख फलना दायक ए धर्म. ६०३६४. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२४४१२, ९४२७).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेण० समणे; अंति: (-), (पू.वि. इंद्र के द्वारा हरिणगमेषी को
देवानंदा के गर्भापहरण का निर्देश देने तक का वर्णन है.) ६०३६६. (+) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९२७, माघ शुक्ल, १५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. गोकलचंद
ऋषि (विजयगच्छ); पठ. मु. पन्नालाल ऋषि (गुरु मु. गोकलचंद ऋषि, विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२३.५४१२, ११४४०).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-९८. ६०३६७. हुताशनकथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२३, चैत्र कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले. मु. राजविजय (गुरु
पं. मोहनविजय); गुपि.पं. मोहनविजय (गुरु पं. नयविजय गणि); पं. नयविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, ५४३८).
होलिकापर्व कथा,सं., पद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानंजिन; अंति: विज्ञानं वाचनोचितः, श्लोक-५१.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची होलिकापर्व कथा-टबार्थ, आ. जिनसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानस्वामी; अंति: जिनसुंदर० प्रकास्यो. ६०३६८. पुद्गलपरावर्त विचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. १३, दे., (२४४११.५, १२४४०-४५). १. पे. नाम. पुद्गलपरावर्त्त विवरण, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
पुद्गल परावर्तन के सात भेद, मा.गु., गद्य, आदि: औदारिक वैक्रिय तेजस; अंति: परावर्त कहीये. २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, प्रले. पं. माणेकचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य.
सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: प्रथमे नार्जिता; अंति: पंडितैस्त्रिदशैरपि, गाथा-२०. ३. पे. नाम. लेश्या विचार, पृ. ३अ, संपूर्ण.
लेश्या फलस्वरूप लक्षण, प्रा.,सं., पद्य, आदि: अतिरौद्रः सदाक्रोधी; अंति: सुक्काए सासयं ठाणं, गाथा-८. ४. पे. नाम. सम्यक्त्वना नव भेद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
सम्यक्त्व के ९ भेद, मा.गु., गद्य, आदि: द्रव्य सम्यक्त१ भाव; अंति: सम्यक्त नही ते दीपक. ५. पे. नाम. पंचपरमेष्ठिगुण वर्णन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
प्रा.,सं., प+ग., आदि: अन्नाण कोह मय माण; अंति: मरणं उवसग्ग सहणंच. ६. पे. नाम. कर्मस्थिति विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण.
८ कर्मस्थिति विचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: ज्ञाने दंसणावरणे; अंति: एवं बंधठिई माणं, गाथा-३. ७. पे. नाम. पुण्यपाप परिणाम गाथा, पृ. ४आ, संपूर्ण.
जैन गाथा , प्रा., पद्य, आदि: विणउविछेयं पसन्नमणु; अंति: तह लेसाओ बिनायवव्वा, गाथा-३. ८. पे. नाम. कामावस्था वर्णन, पृ. ४आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: प्रथमे जायते चिंता; अंति: दशसंजायतेह्यमी, श्लोक-३. ९. पे. नाम. ४५ आगम नाम, पृ. ५अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: आचारांग१ सुयगडांग२; अंति: योगद्वार२ इति चूलिका. १०. पे. नाम. जिनदत्तसूरि छंद, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, फा.,मा.गु., पद्य, आदि: केही गल्लां कथीयां; अंति: रूपचंद० जिन साईयां, गाथा-१३. ११. पे. नाम. पौषधप्रतिक्रमण गाथा, पृ. ६आ, संपूर्ण.
पौषधप्रतिक्रमण स्थापन गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पाणिवह मुसावाए अदत्त; अंति: देसे तह पोसह विभागे, गाथा-१. १२. पे. नाम. चउदह नियम गाथा, पृ. ६आ, संपूर्ण.
श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई; अंति: दिसि न्हाण भत्तेसु, गाथा-१. १३. पे. नाम. २२ अभक्ष ३२ अनंतकाय नाम, पृ. ६आ, संपूर्ण.
अभक्ष्यानंतकाय गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सव्वावि कंदजाई सूरण; अंति: वजह दव्वाणि बावीस, गाथा-७. ६०३६९. (+#) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२, ११४३७). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: (-),
(पूर्ण, पू.वि. अंत के किंचित् आंशिक पाठ नहीं हैं.) ६०३७०. (+) साधुसमाचारी, संपूर्ण, वि. १८६८, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. उद्योतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४१२.५, १४४३४).
साधुसमाचारी, सं., गद्य, आदि: इह पर्युषणा द्विविधा; अंति: माभिः कियंतो लिखिता. ६०३७१. गौतमकुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९३, माघ कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. वढवाण, प्रले. श्राव. नानजी उकरडा दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ऋषि गोविंदजी के प्रत से नकल किये जाने का उल्लेख है., जैदे., (२४४११.५, ४४२५).
गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लु० लोभी न० पुरुष; अंति: धर्म उत्कृष्टो सर्व.
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(+)
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
१५७
६०३७२.
चतुः शरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १९३४, माघ शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ५, ले. स्थल. फलोधी, प्रले. मु. रतनलाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे., (२५४१२, १०x२७).
चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं,
गाथा - ६३.
६०३७३. मानतुंगमानवती रास, संपूर्ण, वि. १९०५, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. ३९, ले. स्थल. लसकर, पठ. श्राव आणंदरूप सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. १६००, दे., (२५.५४१२, १५४३६-४२).
मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे, अंतिः मोहन० घरि मंगलमाल हे, डाल- ४७, गाधा १०१५. ग्रं. १६००.
६०३७४. खंडाजोएण, संपूर्ण, वि. १८८८, वैशाख कृष्ण, ९, मंगलवार, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल. मेडता, प्रले. श्रावि. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X११, १९x४८-५४).
लघुसंग्रहणी- खंडाजोयण बोल *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: लाख जोयणनो जंबूद्वीप; अंति: एवं नदारोहिताना. ६०३७५. (+) कथाष्टक कथासंग्रह, संपूर्ण, वि. १६३१, आषाढ़ शुक्ल, १४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले. स्थल. लाटापल्ली, प्रले. आ. रत्नसागरसूरि (गुरु आ जिनहर्षसूरि) गुपि आ जिनहर्षसूरि, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२६.५X१०.५, १३x४१-४५).
वसतिदानादि विषयक कथासंग्रह, प्रा., सं., गद्य, आदि: वसही सयणासण भत्तपाणे; अंति: सकारा पंच दुर्लभा, कथा-८. ६०३७६ (२) विधि विचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ११, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७११, १२५३३).
१. पे. नाम. १८००० शीलांग भेद, पृ. १अ, संपूर्ण.
१८ हजार शीलांग भेद, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम स्त्री भेद ४ अंतिः शीलव्रत का जाणिवा
२. पे. नाम. अढाई द्वीप का व्योरा, पृ. १आ, संपूर्ण.
अढीद्वीप वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: मेरु५ वैताढ्य १७०; अंति: ६ सहस्र ९७५ कोडाकोडी. ३. पे. नाम संसारु पंचप्रकारः, पृ. १आ- ३अ, संपूर्ण.
५ प्रकारे संसारीजीव, मा.गु., गद्य, आदि: द्रव्य संसारुर, अंतिः परिणमते संसारु निवडई.
४. पे नाम, मोक्षसामग्री के पाँच प्रकार, पृ. ३अ संपूर्ण
मोक्षसाधन प्रकार, मा.गु., गद्य, आदि: द्रव्य१ क्षेत्र २ काल; अंति: भाव को आत्मीकु भाउ ५. पे. नाम. पांचलब्धि विचार, प्र. ३अ ३आ, संपूर्ण.
५ लब्धि विचार, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि खउउवसम विसोहिय देसण अंति; लब्धि महादुर्लभः,
६. पे. नाम. सूतक विचार, पृ. ३-४अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदिः सूतकं वृद्धिहानिध्या; अंतिः क्षेत्रस्य सूतकम्, श्लोक ८.
७. पे. नाम. दीक्षा मुहूर्त्त, पृ. ४-४आ, संपूर्ण.
दीक्षा मुहूर्त, मा.गु. सं., पद्य, आदि: अश्विनी पूर्वा, अंति: दीक्षा दीयते.
८. पे. नाम. दीक्षा विधि, पृ. ४-५अ, संपूर्ण.
वडीदीक्षा अनुयोग विधि, प्रा., सं., मा.गु, गद्य, आदिः ॐ नमो अरिहंताणं, अंति: थापणे स्थान कीये. ९. पे नाम यतिप्रायश्चित विधि, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण
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साधुप्रायश्चित विधि, मा.गु., गद्य, आदि: जती वाट चालइ तहिका, अंति: इकठाणा५ मुखसेोध्या. १०. पे नाम. अष्टशुद्धि विवरण, पृ. ५आ-७आ, संपूर्ण.
८ शुद्धि विवरण, मा.गु, गद्य, आदि: भावशुद्धिर कायशुद्धि, अंतिः तुलनाय कथं विधेयः.
११. पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण.
विचार संग्रह, प्रा.मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
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१५८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६०३७७. (+) कानडकठियारा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९०४, आषाढ़, १०, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. भोला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४११, १२४५४). कान्हडकठियारा रास-शीयलविशे, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पार्सनाथ प्रणमुंसदा; अंति:
मानसागर०दिन वधते रंग, ढाल-९. । ६०३७८. (+) श्रीपालराजा चरित्र, संपूर्ण, वि. १८९०, आषाढ़ शुक्ल, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ७२, ले.स्थल. मेंसाणा,
प्रले. मु. विद्याविजय (गुरु पं. चतुरविजय); गुपि.पं. चतुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमनरंगापार्श्वजिन प्रशादात्., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (२८२) जीहा लग मेरु अडग हे, (८९५) पोथी प्यारी प्राणथी, (१०९२) पोथी अरू पदमणि, (१०९३) पोथी उरू पुस्तका, जैदे., (२६४११,१३४३४). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण
तणी; अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४ ढाल ४१, गाथा-१८२५. ६०३७९. (+) तीस द्वार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. १२५०, दे., (२६-२९.५४११.५, ११४२२).
२४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: जीव अनंतगुणाधिका. ६०३८०. (+) औपपातिकसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५०-३१(१ से १२,२० से ३८)=१९, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२९.५४१२,११४३६).
औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "अरसाहारे अंताहारे पंताहारे से जह नाम कोइ मिच्छो नगरगुणे
बहुविहि" पाठ अपूर्ण तक है.)
औपपातिकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ६०३८१. (#) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४८-१(४१)=४७, प्र.वि. कुल ग्रं. ३०००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९४११, १६४५२). नवतत्त्व प्रकरण, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: परियट्टतो भवेसिद्धि, गाथा-३२,
(पू.वि. बालावबोध का बीच का किंचित् अंश नहीं है.)
नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. मेरुतुंगसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीरं विश्वविभु; अंति: इम अढार भेद हुइ. ६०३८२. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-३४ से ३६, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, जैदे., (२८.५४१२.५, ११४४०-४२).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सम्मएत्ति बेमि, (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., अध्ययन-३६ की अंतिम गाथा के कुछ अंतिम शब्द नहीं लिखे हैं., वि. प्रतिलेखक ने अध्ययन-३४ की
गाथा-४८ अपूर्ण से लिखना प्रारंभ किया है.) ६०३८३. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११८-८(१३,५७ से ६१,८४ से ८५)=११०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ७४३५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं
हैं., अध्ययन-३० गाथा-२९ तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: संयोग बाह्य मातापिता; अंति: (-), पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ६०३८४. (+#) नेमिनिर्वाण महाकाव्य सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५८९, भाद्रपद अधिकमास शुक्ल, ७, बुधवार, मध्यम, पृ. ९१,
पठ. मु. राजपाल (गुरु मु. ब्रह्महासा, सरस्वतीगच्छ); गुपि. मु. ब्रह्महांसा (गुरु मु. विजयकीर्ति भट्टारक); मु. विजयकीर्ति भट्टारक (गुरु आ. ज्ञानभूषण, मूलसंघ); आ. ज्ञानभूषण (गुरु आ. भुवनकीर्ति, मूलसंघ); आ. भुवनकीर्ति (गुरु आ. सकलकीर्ति भट्टारक, मूलसंघ); आ. सकलकीर्ति भट्टारक (गुरु आ. पद्मनंदि, सरस्वतीगच्छ-मूलसंघ-बलात्कारगण), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१२, ७४४०-४३). नेमिनिर्वाण महाकाव्य, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, ई. १२वी, आदि: श्रीनाभिसूनोः पदपद्म; अंति: भगवान विनश्वराणि,
सर्ग-१५. नेमिनिर्वाण महाकाव्य-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: युगादिदेवस्य विस्तार; अंति: प्रबंध वाग्भट कविः.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
१५९ ६०३८५. (+) त्रिशष्टिशलाकापुरुष चरित्र-पर्व ७, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १००-११(१,८ से १६,९९)=८९, पू.वि. प्रारंभ,
बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१०.५, १५४४४). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि: (-); अंति: (-),
(प्रतिअपूर्ण, पू.वि. सर्ग-१, श्लोक-१४ अपूर्ण से ८४५ अपूर्ण तक है व सर्ग-१०, श्लोक-८८७ अपूर्ण से श्लोक- ९२६
अपूर्ण तक है.) ६०३८६. प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६९, श्रावण कृष्ण, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ८७+१(१४)=८८, प्रले. पं. केसरीचंद (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८.५४१२, ६x४१). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर; अंति: शरीरधरे भविस्सत्तीति,
अध्याय-१०, गाथा-१२५०.
प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अहो जंबूए प्रत्यक्ष; अंति: तेणइज भवि मोक्ष जाइ. ६०३८७. (+) शतककर्मग्रंथ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९२८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. ८३+१(४७)=८४,
ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. पुनमचंद्र (गुरु आ. जिनशांतिसागरसूरि, विजयगच्छ); गुपि. आ. जिनशांतिसागरसूरि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२९.५४१३, १४४४४). शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति:
देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००.
शतक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: रत्नत्रयोपदेष्टार; अंति: कृतं गम्यार्थपद्धतिः. ६०३८८. (+#) चित्रसेनपद्मावती चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८४, फाल्गुन शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ७०, ले.स्थल. सोझत, प्रले. पं. कस्तुरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९x१३, ६४३६). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, मु. रत्नशेखर, सं., पद्य, वि. १६६०, आदि: प्रणम्य श्रीमदर्हतं; अंति: मस्तरेरूपकृति प्रवणै,
श्लोक-८००, संपूर्ण. चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा चाषीच सद्गुरुन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., गाथा-७८७ तक टबार्थ लिखा है.) ६०३८९. (#) कल्पसूत्र, पूर्ण, वि. १७१९, माघ शुक्ल, २, जीर्ण, पृ. ६८-१(१)=६७, ले.स्थल. भाग्यनगर, लिख. श्राव. मुला ओसवाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. १२१६, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८.५४१२.५, ९४२३-३६).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, (पू.वि. प्रारंभ के किंचित्
___ पाठांश नहीं हैं.) ६०३९०. सूयगड सूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६०, जैदे., (२८.५४११.५, १३४४६).
सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज; अंति: विहरइ त्तिबेमि, अध्याय-२३. ६०३९१. (+#) आवश्यकसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १६५९, आषाढ़ अधिकमास कृष्ण, ११, शुक्रवार, मध्यम,
पृ. ५९-२(४९,५२)=५७, प्रले. उपा. रुद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२, १७४५०).
आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, अध्ययन-६, सूत्र-१०५,
(पू.वि. बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.)
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वंदारू टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: वृंदारुवृंदारकवृंदवं; अंति: वृत्तितोवरचूर्णितश्च. ६०३९२. (+) राजप्रश्नीयसूत्र, संपूर्ण, वि. १६४७, आश्विन शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ५९, ले.स्थल. कर्णाल, प्रले. मु. माईदास ऋषि (गुरु
आ. नानक ऋषि); गुपि. आ. नानक ऋषि (गुरु मु. बलराज ऋषि); मु. बलराज ऋषि (गुरु मु. शेखर); मु. शेखर; राज्यकाल रा. अकबर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. २१००, जैदे., (२८.५४११.५, १२४४४).
राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: पस्से पस्सावणीए णमो, सूत्र-१७५.
ग
.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६०३९३. (+) कल्पसूत्र सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७.५४१२.५, १३४२३-४३).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पृ.वि. वर्षावास में स्थित श्रमण के
__ आहार-पानी की चर्चा तक है.)
कल्पसूत्र-टिप्पण*, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६०३९४. प्रतिष्ठाविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५१, कुल पे. २, जैदे., (२९४१३.५, १४४५१). १.पे. नाम. प्रतिष्ठाकल्प सह टबार्थ, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण.
चैत्यप्रतिष्ठा विधि, सं., प+ग., आदि: विषमैरंगुलैर्हस्तैः; अंति: लग्ने तत्सर्वमाचरेत्, श्लोक-४०.
चैत्यप्रतिष्ठा विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: विषम क० एकी गणतीइं; अंति: विंब प्रतिष्ठा करवी. २. पे. नाम. प्रतिष्ठाकल्प, पृ. ७आ-५१आ, संपूर्ण.
सं., गद्य, आदि: लग्ने प्रतिष्ठा विधे; अंति: समालोक्य स्वाहा. ६०३९५. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३८, श्रेष्ठ, पृ. ५०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ३५००, दे., (२७.५४१२, ३४२६-२९).
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्.
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करुं अरिहंत; अंति: दुक्कडम देउं छु. ६०३९६. (+#) जीवाभिगमसूत्र सह कठिनपद टिप्पण, संपूर्ण, वि. १७४०, कार्तिक शुक्ल, ६, मंगलवार, मध्यम,
पृ. ४९+१(१७)=५०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२९४११.५, २१४७४).
जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: णमो उसभादियाणं चउवीस; अंति: सेत्तं सव्वजीवाभिगमे, प्रतिपत्ति-१०, सूत्र-२७२.
जीवाभिगमसूत्र-कठिनपद टिप्पण", सं.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६०३९७. (+) समवायांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १६९५, आश्विन शुक्ल, ३, रविवार, मध्यम, पृ. ४७, राज्यकालरा. शाहजहाँ;
अन्य. श्रावि. सुंदरीबाई वासु शाह; श्रावि. हीरुकाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. सुंदरीबाई के उपाश्रय में प्रत लिखे जाने का उल्लेख मिलता है., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. १७६७, जैदे., (२९x१२, १३४४८).
समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: अज्झयणंति त्तिबेमि, अध्ययन-१०३,
सूत्र-१५९. ६०३९८. नवस्मरण व लघुशांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४२-१(३७)=४१, कुल पे. २, प्र.वि. अंत के पत्रांक
अव्यवस्थित हैं और अंतिम पत्रांक पेन्शिल से लिखा है., जैदे., (२८x११.५, ५४३०). १.पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १अ-४१आ, पूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: जैनंजयति शासनम, स्मरण-९,
(पू.वि. "प्रकंपानंतरमव से शांति१६ कुंथु१७" तक नहीं है., वि. पेज ३५आ से ३६आ पर पार्श्वजिन स्तोत्र- ॐनमः
पार्श्वनाथाय लिखा हैं.) २. पे. नाम. लघुशांति स्तोत्र, पृ. ४२अ-४२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. पत्रांक पेन्शिल से लिखा है.
लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ७ अपूर्ण तक हैं.) ६०३९९. (+) निशीथसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७५८, फाल्गुन शुक्ल, मध्यम, पृ. ३८-१(३)+१(१६)=३८, प्रले. सा. रामु आर्या
(गुरु सा. रुखमा आर्या); गुपि. सा. रुखमा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. साधु के प्रायश्चित संबंधी गुरुमास-लघुमास कोष्ठक दिया गया है. लेखनस्थल नाम अस्पष्ट है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५४११.५, ८X४९).
निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जे भिखु हत्थ कम्म; अंति: सिसपसिस्सो व होज, उद्देशक-२०, (पू.वि. बीच के पाठ नहीं
निशीथसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे कोई भि० अणगार; अंति: शिष्यनइ भणवानइ अर्थइ.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
१६१
६०४०० (+) सुवोधा सामाचारी, संपूर्ण वि. १९७९, माघ कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ३६+१ (३४) = ३७, ले. स्थल, नागोर, प्रले. वल्लभ जोषी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. लेखन संवत् के रूप में संवत् १९७२, आषाढ मास, कृष्णपक्ष का भी उल्लेख किया गया है. संभव है कि इस वर्ष में लिखित प्रत के ऊपर से प्रतिलिपि की गई हो., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, दे., (२९x१२.५, १३४४६).
सुबोधा सामाचारी, आ. श्रीचंद्रसूरि, प्रा., सं., प+ग, आदि: नमिऊण तिलोयगुरुं; अंति: सामायारी सम्मत्ता. ६०४०१ (७) शांतिनाथपुराण प्रपंधिका पंजिका, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३६, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
(२८.५x१३, १६५३५).
शांतिनाथपुराण- टिप्पणक, आ. जिनचंद्र, सं., गद्य, आदि: श्रीशांतिनाथमानम्य; अंतिः रेण सद्वादशशती कृता,
सर्ग - १६, ग्रं. १२००.
9
६०४०२. (+) अभिधानचिंतामणी नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ३३-१ (१) -३२, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें- अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९x१२, १९×३९-४५).
६०४०३.
"
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अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि (-) अंति: (-), (पू. वि. कांड-९ श्लोक-१३ अपूर्ण से कांड-६ श्लोक १२७ तक है.)
(+#)
दशाश्रुतस्कंधसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३२, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१२, ७५२-५५).
दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः सुयं मे आउस तेण अंति: (-). (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. दशा- १० का अंतिम सूत्र नहीं है.)
६०४०४.
दशाश्रुतस्कंधसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः सु० सांभल्यो मे०; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. (+#) व्यवहारसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१९, कार्तिक शुक्ल, ९, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३०, ले. स्थल. नागोर, प्रले. सा. वाल्हा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२८.५X१२, ९x४६-४९). व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि जे भिक्खू मासियं अंतिः महापज्जवसाणे भवइ, उद्देशक- १०,
ग्रं. ३७३.
व्यवहारसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: क्षय करवारूप फल हुइ.
६०४०५. (+४) अनुयोगद्वारसूत्र सह बालावबोध व टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २८, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२८.५४१२.५, २-२६x४९-६७).
अनुयोगद्वारसूत्र, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा. पग, आदि: नाणं पंचविहं, अंति: (-), (पू.वि. सूत्र- ९४ "आणुपुव्वि दव्वाइं लोगस्स कइ भागे होज किं" तक का पाठ है.)
अनुयोगद्वारसूत्र - बालावबोध, मु. मोहन ऋषि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनं; अंति: (-).
अनुयोगद्वारसूत्र - टवार्थ* मा.गु, गद्य, आदिः ना० ज्ञान पंच प्रकार अंति: (-).
६०४०६. बृहत्कल्पसूत्र व प्रायश्चितविधि सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८५०, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २८. कुल पे. २, प्रले. सा. वंदना (गुरु सा. संदुराजी); गुपि. सा. संदुराजी (गुरु सा. चमना आर्याजी); सा. चमना आर्याजी (गुरु सा. कुसाला आर्याजी); सा. कुसाला आर्याजी (गुरु सा. धना आर्याजी); सा. धना आर्याजी (गुरु सा. अमरा आर्याजी); सा. अमरा आर्या (गुरु सा. केसर आर्याजी); सा. केसर आर्याजी, प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे. (२९x१२.५, ७X४८-५१).
१. पे. नाम. बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-२८अ संपूर्ण.
बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पड़ निगंधाण, अंतिः कप्पट्टिई तिबेमि, उद्देशक - ६,
ग्रं. ४७३.
बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नो क० न कल्पइ नि०; अंति: हुं तुझ प्रति कहु छउ
२. पे. नाम, बृहत्कल्पसूत्र की प्रायश्चित्त विधि सह टवार्थ, पृ. २८अ २८आ, संपूर्ण.
बृहत्कल्पसूत्र- प्रायचित्त विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नीवी मास भिन्न, अंति: १८० दीक्षानो छेद वृहत्कल्पसूत्र- प्रायश्चित्त विधि का टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नीवीने मास भिन्न कही; अंतिः भिन्न मास छेद दिन २५.
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१६२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६०४०७. (+) निरयावलिकादि पंचोपांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १६६२, आषाढ़ शुक्ल, १, मध्यम, पृ. २७, कुल पे. ५, प्र. वि. प्रतिलेखन
पुष्पिका मिटाई हुई है-पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२९.५४१२, १३५०-५५),
"
"
१. पे. नाम. निरयावलिकासूत्र, पृ. १आ-१३अ, संपूर्ण.
कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंति: भणियव्वो तहा, अध्ययन- १०.
२. पे. नाम, कप्पवासिया, पृ. १३अ १७अ संपूर्ण
कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि जइ णं भंते समणेणं०; अंति: वासे सिज्झिहिंति, अध्ययन- १०. ३. पे नाम, पुफिया, पृ. १७अ २१आ, संपूर्ण
पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि जइ णं भंते समणेणं०; अंति: चेहवाई जहा संगहणीए अध्ययन - १०. ४. पे. नाम. पुप्फचूलिया, पृ. २१-२४अ, संपूर्ण.
पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०: अंतिः खलु जंबू निक्वड, अध्ययन- १०. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र, पृ. २४अ-२७अ, संपूर्ण.
प्रा., गद्य, आदि, जइ णं भंते पंचमस्स अंति: बारस्स उद्देसगा, अध्ययन- १२.
६०४०८. (+) स्तुति, स्तवन व साधुसामाचारी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २६, कुल पे. ३, प्र. मु. कीर्त्तिविजय (गुरु ग. गुणविजय, तपागच्छ); गुपि.ग. गुणविजय (गुरु ग. देवविजय, तपागच्छ); ग. देवविजय (तपागच्छ); राज्ये भट्टा. विजयाणंदसूरी (तपागच्छ नागपुरीय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२८x१२, १५X४२-४९).
९. पे नाम, नंदीसूत्र स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण
संबद्ध, सं., पद्य, आदि: अर्हंस्तनोतु स श्रेय; अंति: विघ्नविघातदक्षाः, श्लोक-८.
२. पे नाम, पंचपरमेष्ठि स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण
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गोद्वहनविधिसंग्रह, प्रा., पद्य, आदिः ॐ नमोमिति नमो भगवओ; अंति: जिणाइ नवकार उधरियं, गाथा ५. ३. पे. नाम. साधुसमाचारी सह टिप्पण, पृ. १आ-२६आ, संपूर्ण.
सामाचारी प्रकरण, प्रा. सं., गद्य, आदि आयारमयं वीरं वंदिय; अंतिः दुज्जइ गमणं पसाहेइ, द्वार- २१. ग्रं. ११७६.
"
सामाचारी प्रकरण- टिप्पण, मा.गु., सं., गद्य, आदि: ततः श्रीशांतिरित्या, अंति: इम वडा वडा कहि
६०४०९. (+) प्रतिष्ठाकल्प विधि, संपूर्ण वि. १९६४ श्रेष्ठ, पृ. २४, प्र. वि. संशोधित. दे. (२८.५४१३ १४५४६).
',
י
प्रतिष्ठा कल्प, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., सं., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: श्रृंखलामुद्रा.
६०४१०. भक्तामर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २४, ले. स्थल. ममाई, प्रले. रामनारायण व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. त्रिपाठ, जैदे., (२८४१२.५, १४४३-४८).
"
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि, अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४
भक्तामर स्तोत्र - बालहितैषिणी टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य वि. १६५२, आदिः प्रणम्य परमानंददायकं अंति मायातीति मंगलम् ग्रं. ६९३.
६०४११ (+)
युगप्रधान स्वरूप, तपविधि व वर्णन, संपूर्ण वि. १९५७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. २४, कुल पे. ३,
पठ. मु. हारक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. सोमतिलकसूरि के प्रशिष्य व हंसभुवनगणि के शिष्य कीर्तिभुवन द्वारा स्थंभनकपुर में वि.सं. १४९१ में लिखित प्रत से प्रतिलिपि की गई है, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२८.५X१२.५, १६x४५ ).
१. पे. नाम. युगप्रधान स्वरूप विचार, पृ. १आ-२२आ, संपूर्ण.
दुषमप्राभृत-यंत्र, आ. देवेंद्रसूरि, सं., को, आदि नमः श्रीभद्रबाहवे; अंति: गुणा जुगप्पहाण समा.
"
२. पे. नाम. युगप्रधान तपविधि संग्रह, पृ. २२आ-२३आ, संपूर्ण.
युगप्रधान विधि, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि से भयवं केवई काल, अंतिः तथा सामीवछल करवो.
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३. पे नाम, युगप्रधान वर्णन, पृ. २३आ- २४आ, संपूर्ण.
युगप्रधान स्तवन, मु. सौभाग्यविमल, मा.गु., पद्य, आदि: पंचम आरे जे थया दोय, अंति: सौभाग्य० पामो सदा जो, ढाल- २, गाथा-३२.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
१६३ ६०४१२. (+#) रिषिपुत्रिकाध्ययन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८२३, वैशाख शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१२, १०४३७-४०). ऋषिपुत्रिकाध्ययन, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: सो जयउजए उसहो अणंत; अंति: शवक्खियं अप्पगंथेण,
गाथा-१८८.
ऋषिपुत्रिकाध्ययन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जयवंत होवो २ वृषभ; अंति: आत्मग्रंथ करिके. ६०४१३. (+) पर्युषणाअष्टान्हिका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२९x१२, १२४२५-२८).
अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीशं शांतिकर्ता; अंति: पद्यबंधं
विलोक्य तत्. ६०४१४. नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध व दंडक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, कुल पे. ३, जैदे., (२८x१२.५,
१२४३४). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, पृ. १अ-१०आ, संपूर्ण.
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५०.
नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व १ अजीवतत्त; अंति: पनरै प्रकारे सिद्धा. २.पे. नाम. दंडक प्रकरण, पृ. १०आ-१२आ, संपूर्ण.
मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा-३९. ३. पे. नाम. लघुदंडक भेद, पृ. १२आ-२०आ, संपूर्ण.
२४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सरीर १ अवगाहना २; अंति: सूधी पुरषवेद लाभे. ६०४१५. (+) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८७८, पौष शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. पं. गिरधारीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२८.५४१३, १३४३१-३६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि,
अध्ययन-१०. ६०४१६. (+#) महादंडक ३० बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२.५, १७४४३-४९).
२४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक १ लेसा २ ठिइ ३; अंति: (-), (पू.वि. आयु द्वार अपूर्ण तक है.) ६०४१७. आचारांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५४-३५(१ से १४,२९ से ४९)=१९, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२८.५४११,५४५१-५५).
आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ उद्देशक-२
अपूर्ण से अध्ययन-४ उद्देशक-४ तक व अध्ययन-८ उद्देशक-५ अपूर्ण से अध्ययन-८ उद्देशक-८ अपूर्ण तक है.)
आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६०४१८. (+) पर्युषणाचिंतामणी प्रकरण व प्रहेलिका श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. २, ले.स्थल. अमदावाद,
प्रले. मु. गुण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२८x११.५, १२४४८). १.पे. नाम. पर्युषणाचिंतामणी प्रकरण, पृ. १आ-१८आ, संपूर्ण.
पं. अमृतकुशल, सं., गद्य, वि. १८५६, आदि: चिदानंदस्वरूपाय: अंति: लभतां प्रभाः. २. पे. नाम. प्रहेलिका श्लोक, पृ. १८आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ६०४१९. (+) सम्यक्त्वसार कुलक व पंचाशक प्रकरण-गुर्वाज्ञाकथन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. २,
प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८x१२, १२४४५-५४). १. पे. नाम. सम्यक्त्वसार कुलक सह बालावबोध, पृ. १आ-१६आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सम्यक्त्वसार कुलक, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महावीरं लोआलोअ; अंति: समत्तं निच्चलं तस्स, गाथा-५६.
सम्यक्त्वसार कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण महावीर; अंति: जाणिवू भव्यजीवइ. २.पे. नाम. पंचाशक प्रकरण का हिस्सा गुर्वाज्ञाकथन सह टीका, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. पंचाशक प्रकरण-हिस्सा गुर्वाज्ञाकथन, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: छठ्ठट्ठमदसमदुवालसेहि; अंति:
साहुझंखाहरणेणविणेआ, गाथा-२.
पंचाशक प्रकरण-हिस्सा गुर्वाज्ञाकथन की टीका, सं., गद्य, आदि: षष्टाष्टमद्वादशैः; अंति: गुरुगच्छमुपागताः. ६०४२०. (+#) तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७, प्रले. मु. दरगह ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४११.५, ८४४७-५१).
तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग., आदि: निजरिय जरामरणं; अंति: कारणं लहइ सिवसुक्खं.
तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तप जप संजमनइ वलइ; अंति: सुख पामइंए कारण. ६०४२१. (+#) उपासकदशांगसूत्र सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८-२(१ से २)=१६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९४११, १४४५०-५३). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ अपूर्ण से अध्ययन-९
अपूर्ण तक है.)
उपासकदशांगसूत्र-विषमस्थल टिप्पण, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६०४२२. उपधानविधि व श्रावक आलोचना, संपूर्ण, वि. १९६४, आश्विन शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. २,
ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. गोपीनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१२, १४४४४-४८). १.पे. नाम. उपधानतप विधि, पृ. १आ-१४आ, संपूर्ण.
प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पहिलो नोकार उपधान१; अंति: सज्झाय उपवास १. २. पे. नाम. श्रावक आलोचना, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण.
श्रावक आलोयणा, प्रा.,सं., पद्य, आदि: तिव्वार पनरठारस इग; अंति: स्रस्वाध्यायेनोपवासः. ६०४२३. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १५७५, आषाढ़ शुक्ल, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. १६-१(१४)=१५, जैदे., (२८x११.५, १०४४५).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४,
(पू.वि. श्लोक-३७ अपूर्ण से श्लोक-४० तक नहीं है.)
भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: किल इति संभावने; अंति: (-). ६०४२४. पंचकल्याणक पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, दे., (२७.५४१२.५, ९४२१-२५).
२४ जिन पंचकल्याणक पूजा, पुहि.,सं., प+ग., आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अनंता; अंति: पेगोला गुड चढाईजै, पूजा-२४. ६०४२५. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. पंडित. नारायणचंद्र व्यास;
पठ. मु. गोकलचंद ऋषि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन का शुल्क २ रुपये प्राप्त करने का उल्लेख प्रत में मिलता है, द्विपाठ-त्रिपाठ., ., (२८x११.५, १४४३८-४७). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते,
श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, पा. हर्षकीर्ति, सं., गद्य, आदि: (१)श्रीमत्पार्श्वजिनं, (२)अथ काव्यद्वयस्य; अंति:
(१)पार्श्वनाथप्रसादतः, (२)प्राप्नुवंतीत्यर्थः. ६०४२६. (+#) श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १३४३२). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाइं झायित; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३४४ अपूर्ण तक लिखा है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
१६५ ६०४२७. चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८-४(१ से २,१२ से १३)=१४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. किनारी
खंडित होने के कारण कुछ पत्र के पत्रांक अनुमानित दिये गये हैं., जैदे., (२८.५४११.५, १४४४२-४५). __ चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्राभृत-१ अपूर्ण से प्राभृत-३ अपूर्ण तक व प्राभृत-४ अपूर्ण से
प्राभृत-६ अपूर्ण तक है.) ६०४२८. (+) द्रव्यसंग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७०८, माघ शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२८x१२, ३४३२-३५). द्रव्यसंग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: जीवमजीवं दव्वं जिणवर; अंति: चंदमुणिणा भणियं जं,
अधिकार-३, गाथा-५९.
द्रव्यसंग्रह-बालावबोध, मु. हंसराज, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमज्जिनेंद्रदेवान; अंति: हंसराज० सहसि मासेव, अध्याय-३. ६०४२९. (+#) पाक्षिकसूत्र की अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x११, १७७५५-६०).
पाक्षिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: तीर्थं वक्ष्यमाण; अंति: मिथ्यादुःकृतमिति. ६०४३०. (+#) दीवालीकल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९०, भाद्रपद शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. योधद्रंग, प्रले. पं. हेमसागर
(गुरु पं. देवेंद्रसागर); अन्य. पं. देवेंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२, ८४५५-५८). दीपावलीपर्व कल्प, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: संतु ०वर्द्धमानस; अंति: सुरेंद्रादिभिः कृतः,
श्लोक-२५९.
दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामीन; अंति: करी अठाइ महोत्सव करे. ६०४३१. (+#) औपदेशिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९x१३.५, १५४४८).
औपदेशिक व्याख्यान, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: चत्वारी परमांगाणी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., नगर में राक्षस द्वारा उपद्रव वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ६०४३२. अंतकृतदशांगसूत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १८८४, श्रावण शुक्ल, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. लक्ष्मणपुर,
लिख. श्रावि. जेठाबाई माणकचंदजी लाला (पति श्राव. माणकचंदजी सदानंदजी लाला); गुपि. श्राव. माणकचंदजी सदानंदजी लाला (पिता श्राव. सदानंदजी महानंदजी लाला); श्राव. सदानंदजी महानंदजी लाला (पिता श्राव. महानंदजी लाला); श्राव. महानंदजी लाला, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२८x१३, १२४४३). अंतकृद्दशांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: अथांतकृतदशासु किमपि; अंति: विधीयतां
सर्वथा, वर्ग-८. ६०४३३. (+#) आगमिकवस्तुविचार प्रकरण सह टबार्थ वसयोगकेवली विचार, संपूर्ण, वि. १७६४, कार्तिक शुक्ल, ५, रविवार,
मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २, ले.स्थल. सन्मानपुर, प्रले. मु. त्रिलोकऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३०x११.५, ५४३७-४०). १.पे. नाम. आगमिकवस्तुविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-११आ, संपूर्ण. षडशीति प्राचीन कर्मग्रंथ, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: निच्छिन्नमोहपास; अंति: सुणंतु गुणंतु जाणंतु,
गाथा-८६. षडशीति प्राचीन कर्मग्रंथ-टबार्थ, म. विमलकीर्ति, मा.गु., गद्य, वि. १५७०, आदि: अभिवंद्य मुदा पादौ; अंति:
ब्धिचंद्राशवर्षे. २. पे. नाम. सयोगी केवलीगुण विचार, पृ. ११आ, संपूर्ण.
विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६०४३४. (+#) व्यवहारसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ११,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, जैदे., (२८.५४१२, १५४६४).
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१६६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: जे भिक्खु मासिय; अंति: भवंति त्तिबेमि, उद्देशक-१०, ग्रं. ३७३. ६०४३५. चतुर्विंशतिजिन स्तुति सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. त्रिपाठ., दे., (२७.५४१२, ५४४२-४५).
स्तुतिचतुर्विंशतिका, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: नरेंद्रमौलिगलितो; अंति: याधम बाधमंबा,
स्तुति-२४, श्लोक-९६. स्तुतिचतुर्विंशतिका-स्वोपज्ञ अवचूरि, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., गद्य, वि. ९वी, आदि: नम्राशीलामनेन ते च; अंति: देवं
क्रियाविशेषणं. ६०४३६. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२८, वैशाख कृष्ण, ५, मध्यम, पृ.८, ले.स्थल. ममोईबंदर, प्रले. पं. चुत्रभुज, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२९x१२, ४४३१-३५).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४९.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व चेतनासहित; अंति: परावर्त्त होइं. ६०४३७. (+#) इंद्रियपराजयशतक व संदेहाउली गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१२, १३४४५-५०). १. पे. नाम. इंद्रियपराजयशतक सह बालावबोध, पृ. १आ-८आ, संपूर्ण.
इंद्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदि: सुच्चिय सूरो सो चेव; अंति: संवेगरसायणं निच्चं, गाथा-१०१.
इंद्रियपराजयशतक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तेहज शूर तेहज पंडित; अंति: संवेगरसायण नित्य. २. पे. नाम. संदेहाउली गाथा, पृ. ८आ, संपूर्ण. संदेहदोलावली प्रकरण-चयन जैनधर्ममहिमा गाथा, प्रा., पद्य, आदि: इणि दुसमिय वयधारि; अंति: पयासंता
मंदबुधीए, गाथा-६. ६०४३८.(+) पंचपरमेष्ठीरक्षा मंत्र, सहस्रनाम स्तोत्र व नवग्रहरक्षा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, कुल पे. ३,
प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२९x१२, ११४२८). १. पे. नाम. वज्रपंजर स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: पंचपरमेष्ठि; अंति: राधिश्चापि शरीरजा, श्लोक-८. २. पे. नाम. अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण.
आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी-१३वी, आदि: अर्हन्नामापि कर्ण; अंति: सानंद महानंदैककारणं,
प्रकाश-१०. ३. पे. नाम. नवग्रहरक्षाचतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरु नमस्कृत्वा; अंति: ग्रहशांतिर्विधि स्तव, श्लोक-१०. ६०४३९. (+#) कर्पूरप्रकर, संवेगद्रुमकंदली व सद्बोध चंद्रोदय, अपूर्ण, वि. १६वी, जीर्ण, पृ. ९-२(१ से २)=७, कुल पे. ३,
प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९.५४११.५, १७४६६-६९). १. पे. नाम. कर्पूरप्रकर, पृ. ३अ-६अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ___ मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: नेमिचरित्रका, श्लोक-१८३, (पू.वि. श्लोक-६९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. संवेगदुमकंदली, प्र. ६अ-८अ, संपूर्ण.
आ. विमलाचार्य, सं., पद्य, आदि: दूरीभूतभवार्तिभिः; अंति: बद्धो भवद्भ्योंजलिः, श्लोक-५३. ३. पे. नाम. सद्बोध चंद्रोदय, पृ. ८अ-९आ, संपूर्ण.
मु. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि: यज्जानन्नपि बुद्धिमा; अंति: (अपठनीय), श्लोक-५०, (वि. अंतिम पंक्ति अवाच्य है.) ६०४४०. साधुप्रतिक्रमण सूत्र, स्तवन व आलोचना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक दोनो ओर दिया
गया है, दे., (२७४१२, ६x४५). १.पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १-१०, संपूर्ण.
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि पडिक्कमिउ; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. सूत्र-२१.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
१६७ २.पे. नाम. बीस विहरमानजिन स्तवन, पृ. १०, संपूर्ण.
२० विहरमानजिन चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत चोबीसी जिन नमु; अंति: नमु साध बंदु निसदीस, गाथा-२. ३. पे. नाम. श्रावक आलोचणासूत्र, पृ. १०, संपूर्ण.
श्रावक देवसिक आलोचणासूत्र, पुहिं., गद्य, आदि: ७ लाख प्रिथवीकाय ७; अंति: सांति सांति सांति. ६०४४१. (+#) शतककर्मग्रंथ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. लालजी (गुरु मु. हरिदास); गुपि. मु. हरिदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४११.५, ७X६३-६६). शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति:
देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००.
शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणमीनइ जिनप्रतइ; अंति: संभारवानि अर्थिइ. ६०४४२. (+) लघुदंडक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. लखनौ, प्रले. मु. जसवंतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५४१२, ४४४६-५१). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसारेण अप्पहिआ.
गाथा-४६, संपूर्ण. दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइं चउवीस; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., गाथा-१२ तक टबार्थ लिखा है.) ६०४४३. साधुप्रतिक्रमण सूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७-२१(१ से २१)=६, ले.स्थल. अमदावाद,
प्रले. श्राव. फतेचंद्र; लिख. सा. भावधी (गुरु सा. हस्तिश्री); गुपि.सा. हस्तिश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ७५०, जैदे., (२८x११.५, ३-८४३३-३९). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीस, सूत्र-२१, (पू.वि. "इहलोगस्स
आसायणाए" पाठ से है.)
पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तीर्थंकरजिन प्रतिं. ६०४४४. नवतत्त्व व सिद्धांतगाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८५३, आश्विन कृष्ण, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, कुल पे. २,
पठ. पन्या. माणकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१२, ११४३९). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. २अ-६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है.
प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: दुचक्की केसव चक्कीय, गाथा-६०, (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सिद्धांतगाथा संग्रह, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: एकैदियए पंचेंदिय; अंति: नायव्वा सव्वदेवाणं, गाथा-३७. ६०४४६. (+) जंबुस्वामी चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९,प्र.वि. वि.सं. १९०६ आषाढ कृष्णपक्ष १३ को प्रत आदान-प्रदान करने का उल्लेख मिलता है, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १९-२३४४७-५१).
जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ प्रणम; अंति: भवंति भविनां सदा. ६०४४७. (#) अंजनासुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १८४७, माघ शुक्ल, १५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. वि.सं. १९०६ आषाढ कृष्णपक्ष
१३ को प्रत आदान-प्रदान करने का उल्लेख मिलता है, प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. कुल ग्रं. ५००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (११३६) यादृशं चरित्रं दृष्टं मया, जैदे., (२६.५४११.५, १६-१९x४५-४९).
__ अंजनासुंदरी रास-बृहद, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलै नइ कडवइ पय नमु; अंति: भार्या जगतनी मात, गाथा-१६०. ६०४४८. (+) पन्नवणासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५८७+१(४५)=५८८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८.५४१२,७४३३-३६). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: सुही सुहं पत्ता, पद-३६, सूत्र-२१७६,
ग्रं. ७७८७. प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७८४, आदि: (१)प्रणम्य पुण्यपदपद्म, (२)नमस्कार हो
अरिहतनें; अंति: सुखी थका रहेछे, ग्रं. २८०००.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६०४४९. (+) कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका, संपूर्ण, वि. १९०३, आषाढ़ कृष्ण, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ,
पृ. २१२+१(१३७)=२१३, प्रले.मु. क्षितिरत्न; गुभा.पं. जयरंग (गुरु पं. आणंदप्रभ, बृहत्खरतर); गुपि. पं. आणंदप्रभ (गुरु पंन्या. सत्यराज, बृहत्खरतर); पंन्या. सत्यराज (गुरु उपा. जयमाणिक्य, बृहत्खरतर); वा. जिनजयगणि (परंपरा आ. कीर्तिरत्नसूरि, बृहत्खरतर गच्छ); आ. कीर्तिरत्नसूरि (बृहत्खरतर गच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८x१२, १२४४५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (१)नमो अरिहंताणं नमो, (२)तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदसेइ त्ति
बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६.
कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्य; अंति: श्रेयो भवतु, ग्रं. ४१०९. ६०४५०. बारभावना सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२६.५४११.५, ९४२८).
१२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पासजिणेसर पाय नमी; अंति: भणी जेसलमेर
___ मझार, ढाल-१३, गाथा-१२८, ग्रं. २००. ६०४५१. (+) हरिविक्रम चरित्र, संपूर्ण, वि. १९५९, कार्तिक कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ११९, ले.स्थल. ममाई, प्रले. गोपीनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८.५४१२.५, १३४४७). हरिविक्रम चरित्र, आ. जयतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थाय नमस्तस्म; अंति: नि चरिते हरिविक्रमे, सर्ग-१२,
श्लोक-४७५०. ६०४५२. (+#) कथा कोश, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १५८-१(१)=१५७, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९४११, १५-२२४५४-७२). बृहत् कथाकोश, आ. हरिषेणाचार्य, सं., पद्य, वि. १०वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. राजकुमाराख्यान अपूर्ण से
कथा १५८ अपूर्ण तक है.) ६०४५३. (+) समाधिशतक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १९, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२,११४४०).
समाधिशतक, आ. देवनंदी, सं., पद्य, ई. ५वी, आदि: येनात्माबुध्यतात्मैव; अति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., श्लोक-१७ तक लिखा है., वि. मूल आदिवाक्य को बालावबोध-मंगलाचरण के श्लोक-४ के क्रम में लिया
गया है.) समाधिशतक-बालावबोध, मु. पर्वतधर्मार्थी, मा.गु., गद्य, आदि: (१)जिनान् प्रणम्याखिलकर, (२)जिण अनादि काल
की; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६०४५४. (+) आचारांगसूत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २२४, प्र.वि. संवत् १९४१ वैशाख कृष्ण पक्ष १० को भट्टारक
श्रीराजेंद्रसूरि की प्रेरणा से लालचंद्र ने अपने परिवार के साथ राजपुर भांडागार को यह ग्रंथ समर्पण किया., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित., जैदे., (२८x११, १५४५४-५७).
आचारांगसूत्र-टीका # , आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य, वि. ९१८, आदि: जयति समस्तवस्तु; अंति: मिति
तात्पर्यार्थः, श्रुतस्कंध-२, ग्रं. १२०००. ६०४५५. सम्यक्त्वकौमुदी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१८, पौष कृष्ण, २, शुक्रवार, जीर्ण, पृ. ११४, ले.स्थल. गोधरा,
प्रले. मु. देवसागर (गुरु ग. फतेसागर); गुपि.ग. फतेसागर (गुरु ग. रंगसागर); ग. रंगसागर (गुरु ग. मानसागर); ग. मानसागर (गुरु वा. राजकीर्ति); पठ. श्राव.सूर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (७) जलाद्रक्षे तैलाद्रक्षे, (८३९) जादृसं पुस्तकं दृष्ट्वा, (९४३) भग्नपृष्टी कटी ग्रीवा, दे., (२७.५४१२, ५४४२). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४५७, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: क्षयं स्वर्गमश्रुते,
पद-४४४, ग्रं. १६७५. सम्यक्त्वकौमुदी-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: सुख पामे निश्चे पामे.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ ६०४५६. (+) कल्पसूत्र सहटबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८६३, श्रावण अधिकमास कृष्ण, १३, जीर्ण, पृ. ११३,
ले.स्थल. वलभीपुर, पठ. पं. भैरुदास; अन्य. आ. जिनहर्षसूरि (गुरु आ. जिनचंद्रसूरि, खरतरगच्छ); गुपि. आ. जिनचंद्रसूरि (खरतरगच्छ); अन्य. आ. जिनसुखसूरि (गुरु आ. जिनलाभसूरि, खरतरगच्छ); गुपि. आ. जिनलाभसूरि (बृहत्खरतरगच्छ); अन्य. आ. जिनभक्तिसूरि (गुरु आ. जिनसुखसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनरत्नसूरि (गुरु आ. जिनराजसूरि, खरतरगच्छ); गुपि. आ. जिनराजसूरि (गुरु गच्छाधिपति जिनसिंहसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं.५०००, जैदे., (२७४१२,६४३७-४७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: अज्झयणं सम्मत्तं, व्याख्यान-९,
ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: तेणइ कालिजे अवसर्पि; अंति: अध्ययन संपूर्ण थयउ.
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य परमानंद दायक; अंति: दाई खामणा करीजै. ६०४५७. (+) भगवतीसूत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १६१२, फाल्गुन कृष्ण, ७, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २२०, ले.स्थल. योधपुर,
प्रले. मु. भावचंद्र (गुरु उपा. पद्मचंद्र, तपगच्छ); गुपि. उपा. पद्मचंद्र (गुरु पं. साधुरत्न, तपागच्छ); पं. साधुरत्न (तपागच्छ); राज्यकाल मल्लदेव, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीभारतीगुरूचरण प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२९x११, १९४५८-६९). भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११२८, आदि: सर्वज्ञमीश्वरमनंत; अंति: श्लोकमानेन निश्चितम्,
शतक-४१, ग्रं. १८६१६, (वि. मूल का प्रतिकपाठ मिलता है.) ६०४५९. (+) पन्नवणासूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-८(१ से ७,२४)=१७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१३, ६४२८). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. "संठाणपरिणयावि आयतसंठाणपरिणयावि"
पाठ से "गोमज एयरूयए अंकफलीहेय लोहिखेय" पाठ तक है.)
प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६०४६०. (#) उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १६५२, आश्विन शुक्ल, ४, शनिवार, मध्यम, पृ. ६७, ले.स्थल. दंतापुरी, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३७-३९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: विणिग्गयावाणी, अध्ययन-३६,
ग्रं. २०००. ६०४६१. संग्रहणी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८९८, चैत्र कृष्ण, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६४, ले.स्थल. जालना,
प्रले.पं. अचलसुन्दर (गुरु पं. सौभाग्यसुन्दर, उपकेश गच्छ); पठ. श्राव. आणंदरूप सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १२४३१-३६).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई ठिइ; अंति: सन्नि गईरागई वेए, गाथा-३४९.
बृहत्संग्रहणी-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहतदेवनि नमिऊण; अंति: मंगलिकनी मालादिओ. ६०४६२.(+) प्रश्नव्याकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९८, श्रावण शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ७४, ले.स्थल. रूपनगर, प्रले. वृंदावन
रामलाल महात्मा; लिख. श्राव. कर्वजी प्रेमराज शेठ; श्राव. कुस्यालचंद प्रेमराज शेठ; श्राव. गुलाबचंद प्रेमराज शेठ; श्राव. श्यामदासजी दुर्गदास, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (३०x१२, १४४४८-५३). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर; अंति: सरीरधरे भविस्सइति.
अध्याय-१०, गाथा-१२५०, ग्रं. १३००, संपूर्ण. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अहो जंबू ए प्रत्यक्ष; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
यत्र-तत्र टबार्थ आंशिक रूप से है.) ६०४६३. (#) ध्यानस्वरूप स्वाध्याय व बेतालीस दोष, संपूर्ण, वि. १९६४, श्रावण कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ.८, कुल पे. २,
ले.स्थल. अमदावाद, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२७.५४१२, १४४४०). १. पे. नाम. ध्यानस्वरूप स्वाध्याय, पृ. १आ-८आ, संपूर्ण.
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१७०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ध्यानस्वरूपनिरूपण प्रबंध, मु. भावविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६९६, आदि: सकल जिणेसर पाय वंदे; अंति:
भावविजय० चित्त रंगे, ढाल-९, गाथा-१६३. २. पे. नाम. आहारना ४२ दोष, पृ. ८आ, संपूर्ण.
गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि: आहारका १ देसिय २ पु; अंति: रस हेउ दव्व संजोगा, गाथा-५. ६०४६४. योगबिंदुसह स्वोपज्ञ वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९३२, श्रावण शुक्ल, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. १०८, ले.स्थल. पाटणनगर, प्रले. महासुखराम अध्यारु, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५, १०x४५).
योगबिंद, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: नत्वाद्यंतविनिर्मुक, अंति: तेन जनस्ताद्योगलोचनः, श्लोक-५२६.
योगबिंदु-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: सद्योगचिंतामणितोनणीय; अंति: करणांकप्रद्योतक इति. ६०४६५. (+) पन्नवणासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६०, आषाढ़ शुक्ल, ८, जीर्ण, पृ. २०७+१(३३)=२०८, प्रले.सा. चंदु आर्याजी
(गुरु सा. चमना आर्याजी); गुपि.सा. चमना आर्याजी (गुरु सा. कुसाला आर्याजी); सा. कुसाला आर्याजी (गुरु सा. धना आर्याजी); सा. धना आर्याजी (गुरु सा. अमरा आर्याजी); सा. अमरा आर्याजी (गुरु सा. केसर आर्याजी); सा. केसर आर्याजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (२०६) भग्न पृष्टी कटी ग्रीवा, (६११) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, (६९१) जले रक्षेत स्थले रक्षेत्, जैदे., (३०x१४, ११४६०). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: सुही सुहं पत्ता, पद-३६, सूत्र-२१७६,
ग्रं. ७७८८. प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ, मु. धनविमल, मा.गु., गद्य, वि. १७०५, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: ० सु० सुख पाम्या
थकी. ६०४६६. (+) अनुयोगद्वारसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९६+१(२१)=९७, ले.स्थल. साहिपुरा,
प्रले. सा. चंदु आर्याजी (गुरु सा. चमना आर्याजी); गुपि. सा. चमना आर्याजी (गुरु सा. कुसाला आर्याजी); सा. कुसाला आर्याजी (गुरु सा. धना आर्याजी); सा. धना आर्याजी (गुरु सा. अमरा आर्याजी); सा. अमरा आर्याजी (गुरु सा. केसर आर्याजी); सा. केसर आर्याजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (२४) भग्न पृष्टिं कटी ग्रीवा, जैदे., (३०x१३.५, ९४६९). अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प+ग., आदि: णाणं पंच विहं पण्णत्; अंति: दुक्खक्खट्ठयाए, प्रकरण-३८,
ग्रं. २०८५, (वि. १८६७, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, सोमवार) अनुयोगद्वारसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: ना० ज्ञान पंच प्रकार; अंति: स्वरूप स्थापना कृता, (वि. १८६७, ज्येष्ठ
कृष्ण, ५, मंगलवार)
अनुयोगद्वारसूत्र-बालावबोध, मु. मोहन ऋषि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनं; अंति: वादमंजरीटीकादि कथा. ६०४६७. (+) संग्रहणी प्रकरण सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८२४, कार्तिक कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ११६, ले.स्थल. उदयपुर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१२.५, ३-१२४३५-४७).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३४९. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउ कहतां वादीनै; अंति: सर्व सुख पामइ.
बृहत्संग्रहणी-बालावबोध*,मा.गु., गद्य, आदि: हिवइ सोधर्म देवलोकनइ; अति: सर्वसुख पामई. ६०४६८. (+) चित्रसंभूति रास, संपूर्ण, वि. १९३६, पौष शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ७१, ले.स्थल. पधरी, प्रले. कालीदास परसोत्तम खत्री;
लिख. श्राव. ताराचंद रायचंद बारीया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. लेखनशुल्क(लखामणी) कोरी ४५ चुकाकर प्रत लिखायी गयी है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२९x१२, १३४५५-६०). चित्रसंभूति रास, मु. खोडीदास ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम कुंवर क्षितीपत; अंति: ने भांखे ऋषि खोडीदास,
ढाल-२१ उल्लास ४, गाथा-५५८. ६०४६९. (+) आचारांगसूत्र सह टबार्थ श्रुतस्कंध-१, पूर्ण, वि. १६५१, आषाढ़ कृष्ण, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ५५-१(१)=५४,
ले.स्थल. मोरबी, लिख. मु. करमण मोरबीया ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२९४१२.५, ७४३६-३८).
आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
१७१ आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ए १८ इति दिशि कहिइ प; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., अध्ययन-९ गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ६०४७०. (+) महीपाल चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६१, आश्विन शुक्ल, ७, रविवार, जीर्ण, पृ. ४७, ले.स्थल. पक्वेशुभनगर,
प्रले. मु. मनीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२९.५४१२, ९४६५-८२). महीपालराजा कथा, ग. वीरदेव, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण रिसहनाहं केवल; अंति: वुद्धिं करतेहिं, गाथा-१८०९,
(वि. आदिवाक्य का प्रारम्भिक भाग खंडित है.)
महीपालराजा कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी श्रीऋषभ; अंति: त्रास नहीं कछु. ६०४७१. चौमासी व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७४१३, १६४३८-४२).
चातुर्मासिक व्याख्यान*,रा., गद्य, आदि: सामायिकावश्यकपौषधानि; अंति: (-), (पू.वि. देसावगासिक व्रत वर्णन
अपूर्ण तक है.) ६०४७२. (+) विपाकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल ग्रं. १२१६, जैदे., (२८.५४११, १३४५८). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेवं भंते सुहविवागे, श्रुतस्कंध-२ अध्ययन
२०, ग्रं. १२५०. ६०४७३. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४२, आषाढ़ कृष्ण, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. नवानगर, प्रले. मु. साकरचंद (गुरु मु. अखेचंद); गुपि.मु. अखेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१२, ४-३७-४०). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं,
गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, ग. लाभकुशल, मा.गु., गद्य, आदि: एकठो संबंध मिले ते; अंति: ए अध्ययनथी सुख
होइ. ६०४७४. (#) क्षेत्रसमास सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २०-५(११ से १५)=१५, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, २०४७३). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपय पईट्ठि; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-१४७ विजयाण पिहुत्ति० से गाथा-२०० कालो अमहाकालो० तक व गाथा-२३१ एगोलक्खोय
अडसया० के बाद के पाठ नहीं है.)
लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: अहमिति ब्रह्मपदं; अंति: (-). ६०४७५. (+) पांडव चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०१-६(१ से २,१२४ से १२५,१८४,२१६)=२९५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १३४३५). पांडव चरित्र, ग. देवविजय, सं., गद्य, वि. १६६०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जङ्गराजा व
गंगा संवाद अपूर्ण से द्वारिकानगरी में १२वर्षोत्तर उपद्रव प्रसंग अपूर्ण तक है व बीच-बीच के कुछ पाठांश नहीं है.) ६०४७६. (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८x१०.५, ७-९४२२-२५). १.पे. नाम. महावीरजिन वृद्धस्तवन, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति:
समयसुंदर० भुवनतिलो, गाथा-१९. २. पे. नाम. शीतलनाथजी वीनती, पृ. ४अ-६अ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन-अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: मोरा साहेब हो; अंति: समयसुंदर०जीन
मन मोहए, गाथा-१५. ३.पे. नाम. सिद्धाचलजीस्तवन, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण.
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१७२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: विमलाचल सिर तिलो; अंति: अविचललील विलास,
गाथा-११. ४. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण.
वा. जयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: चोथो अभिनंदणजिन जानी; अंति: कालिकादेवि आप्पिरे, गाथा-११. ५.पे. नाम. नवमीकोतवन, पृ. ८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
नवमीतिथि स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुनो मोरी विनती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ तक है.) ६०४७७. (+#) पाखीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-१७(१ से १७)=६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १४४४२). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मुसावायस्स वेरमणे हिए सुहे खमे निस्सेसिए से
विज्जाचरण विणिच्छिओ पाठ तक है.) ६०४७९. (+) सिद्धहैमशब्दानुशासन षट्पादावचूरि- अध्याय १-२ पाद-२, संपूर्ण, वि. १५००, श्रावण कृष्ण, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४४, ले.स्थल. अणहिलपुरपत्तन, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४४६-५७).
सिद्धहेमशब्दानुशासन-षट्पादावचूरि, सं., गद्य, आदि: पूपूर्वक णमं प्रह्व; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६०४८०.(+) प्रश्नोत्तररत्नमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६९२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. नरसिंह (गुरु
पं. कनकमेरू); गुपि.पं. कनकमेरू, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (४९९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, जैदे., (२५.५४१०.५-११.०, ४४३९).
प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: कंठगता कंन भूषयति, श्लोक-२९. प्रश्नोत्तररत्नमाला-टबार्थ, मु. रंगविजय, मा.गु., गद्य, आदि: पहिला श्रीआदिनाथनइ; अंति: भलउ होसइ सही
जाणज्यो. ६०४८१. (+) संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १७०६, वैशाख शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ८, पठ. मु. अमिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १५४५२).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३४९. ६०४८३. (+) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११५, अन्य. सा. केसरबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ५४२८). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन-१०,
ग्रं. ८१२.
उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणें काले चौथे; अंति: तिमज पूर्वली परे. ६०४८५. (+) वैराग्यशतक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७५९, वैशाख कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ११, पठ. श्रावि. जीवादे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१२, ८x२७).
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिओसासयं ठाणं, गाथा-१०५. ६०४८६. (+) समवायंगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११२, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. कुल ग्रं. ८१३५, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२८x११.५, ६४३२-३५). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सुयमे आउसंतेणं भगवय; अंति: अज्झयणाति त्तिबेमि.
अध्ययन-१०३, सूत्र-१५९, ग्रं. १६६८. समवायांगसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., गद्य, वि. १७उ, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंति: प्रतिइ कहिता हुआ,
ग्रं. ५४५८. ६०४८७. (+#) शीलोपदेशमाला सह शीलतरंगिणी टीका, पूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २०७-१(४१)=२०६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३०x१२, १२४४४). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबभयारि नेमि; अंति: आराहिय लहह
बोहिसुह, कथा-४३, गाथा-११५, (अपूर्ण, पू.वि. बीच के कुछ पाठांश नहीं है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
शीलोपदेशमाला-शीलतरंगिणी वृत्ति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., गद्य, आदि: यस्योपदेशसमये दशनांश; अंति: त्रं
श्रियो मंदिरम्, पूर्ण. ६०४८८. आत्मा के ६५ गुण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९, ले.स्थल. जालना, प्रले. मु. अचलसुंदर; पठ. श्राव. आणंदरूप सेठ,
प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१२, ११४३१-३६). _आत्मा के ६५ गुण, मा.गु., गद्य, आदि: असंख्यात प्रदेशी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
जिनप्रतिमापूजन प्रसंग अपूर्ण तक लिखा है.) ६०४८९. (+) विचारषट्त्रिंशिंका व जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २,
ले.स्थल. जालना, प्रले. पं. अचलसुन्दर (गुरु पं. सौभाग्यसुन्दर, उपकेश गच्छ); पठ. श्राव. आणंदरूप सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ.,प्र.ले.श्लो. (१०९४) कड लुली गाबड नीची, (१०९५) पोथी प्यारी प्राणसुं, जैदे., (२७४१२, ५४३०-३२). १.पे. नाम. विचारषविंशिका सह टबार्थ, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण, वि. १८९८, वैशाख शुक्ल, १५. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसारेण० अप्पहिया,
गाथा-४५. दंडक प्रकरण-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: मन वचन काया एकठा करी; अंति: आत्मनें हितकारी भवतु. २. पे. नाम. जीवविचारसूत्र सह टबार्थ, पृ. ६आ-१२अ, संपूर्ण, वि. १८९८, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, बुधवार.. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण; अंति: शांतिसूरि०
समुद्दाओ, गाथा-५१.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: भुवन जे त्रिभुवन; अंति: समुद्र तेहथी उधयें. ६०४९०. (+) पार्श्वनाथ चरित्र, पूर्ण, वि. १५०१, वैशाख शुक्ल, गुरुवार, मध्यम, पृ. १४८-२(१ से २)=१४६, प्रले.ग. उदयरत्न;
गुभा. वा. विजयसिंह गणि (गुरु आ. मुनिसिंहसूरि); गुपि. आ. मुनिसिंहसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., प्र.ले.श्लो. (११३९) यावन्नंदतिमंदरक्षिति धरोयावच्चविश्वंभरा, जैदे., (२८.५४११.५, १३-१७४५०-५५). पार्श्वनाथ चरित्र, आ. भावदेवसूरि, सं., पद्य, वि. १३१२, आदिः (-); अंति: पल्लवले नित्यमेतत्, सर्ग-८, ग्रं. ६४००,
(पू.वि. सर्ग-१ श्लोक-५४ अपूर्ण से है.) ६०४९१. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १५९३, आश्विन शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १५८, ले.स्थल. नागपुर, प्रले. मु. मतिरत्न;
गृही. ग. दयानंदन (खरतरगच्छ); दत्त. श्रावि. देउबाई; श्रावि. करण; श्रावि. जीवा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. विक्रम संवत १५९५ में इस प्रत को अर्पित करने का उल्लेख मिलता है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित. कुल ग्रं. ६०००, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, जैदे., (२८.५४११, १२४४४). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: पुरिससीहाणं, अध्ययन-१९,
ग्रं. ६०००, (वि. अंत में बीजक दिया गया है.) ६०४९२. (+#) शांतिनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८६, ले.स्थल. मुलतान, प्रले. क्र. दिवाकर, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९.५४१२, १८४५७-६३). शांतिजिन चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५३५, आदि: प्रणिपत्यार्हतः सर्व; अंति: स करोतु शांतिम्,
प्रस्ताव-६. ६०४९३. (+) समवायंगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१८, श्रावण कृष्ण, ९, रविवार, मध्यम, पृ. १०७, ले.स्थल. सारंगपुर,
प्रले. मु. मयाचंद ऋषि; अन्य. उदाजी; श्राव. मोतीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं.७१३५, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, जैदे., (२६४११, ८४३८-४३). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सुयमे आउसं तेणं भगवय; अंति: अज्झयणं त्तिबेमि,
अध्ययन-१०३, सूत्र-१५९, ग्रं. १६६७.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
समवायांगसूत्र- टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., गद्य वि. १७३, आदि हे संगमसुद्ध आउखाणा, अंतिः विषई बहुमान देखाडीड, ग्रं. ५४५७.
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६०४९४. (+) योगशास्त्रगत चतुर्विध धर्मध्यान सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५२, प्रले. पं. अचलसुन्दर (गुरु पं. सौभाग्यसुन्दर, उपकेश गच्छ); पठ. श्राव. आणंदरूप सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे (२७.५X११.५, १२X३७-४१).
योगशास्त्र - हिस्सा प्रकाश-५ से १० धर्मध्यान के ४ प्रकार, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य वि. १३वी, आदिः पादांगुष्ठादी जंघाया, अंति: कुलता व्रजेत्,
योगशास्त्र - हिस्सा प्रकाश-५ से १० धर्मध्यान के ४ प्रकार का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पगना अंगुठा आदि
देइ, अंतिः न छंडावीइ चपल न थाइ.
६०४९५. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. ८५-४ (१ से २,४७,८४) = ८१, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित., जैदे. (२६.५४११.५, ११४३१-४२).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं..
"
अध्ययन-१, गाथा-१ से गाथा २५ अपूर्ण तक, अध्ययन २५ गाथा २० अपूर्ण से गाथा ४५ अपूर्ण तक,
.
अध्ययन- ३६ गाथा-३२ अपूर्ण से गाथा ५० अपूर्ण तक व गाथा- ७२ अपूर्ण से नहीं है.)
६०४९६. (+) शतक नव्य कर्मग्रंथ सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७१२,
४x२८-३२).
शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी- १४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंतिः
देविंदसूरि० आयसरणड्डा, गाथा- १००.
शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे पहिलु द्वार, अंति: संभारवानि अ.
६०४९७. चार शरणा व तीन मनोरथ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२७१२.५, १२X३५-४१).
१. पे. नाम. चार शरणा, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण.
"
४ शरणा, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतजी को सरणो; अंति: सरणो मुझने होज्यो.
२. पे. नाम. तीन मनोरथ पू. ३आ-५अ, संपूर्ण
आवक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, आदि: तीन मनोरथ समणावासिक, अंति: बारमा देवलोके जाय ६०४९८. सूयगडांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५६-१० (३३९, ४० से ४८ ) =४६, जैदे. (३०x११.५, १३x४३).
सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: बुज्झिज्जति तिउट्टिज; अंति: विहरति त्ति बेमि, अध्याय-२३, ग्रं. २१००, (पू.वि. "सुहामरणाणं दारिद्दाणंदो" पाठ से "पावेएवं सन्ननिवेस कल्लाणेपावते" पाठ तक नहीं है.) ६०४९९. पाखीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८९८, पौष कृष्ण, १४, रविवार, मध्यम, पृ. २४, ले. स्थल. जालना, प्रले. पं. अचलसुन्दर (गुरु पं. सौभाग्यसुन्दर, उपकेश गच्छ); पठ श्राव आणंदरूप सेठ, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. ले. श्लो. (१०९४) कड लुली गाबड नीची, जैदे., (२९.५x११, १५x६२).
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि: तित्यंको अतित्थे अंतिः जेसिं सुअसायरे भत्ति.
६०५००. (+#) अंतगडदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ५३-५ (१ से ५ ) = ४८, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैसे. (२६११.५, ७४४५).
अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., वर्ग- २ के अध्ययन-६
अपूर्ण वर्ग-८ अध्ययन- १० अपूर्ण तक है. )
अंतकृदशांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वि. बीच-बीच मे कहीं-कहीं रचार्थं दिये गए हैं शेष टबार्थ के लिए जगह छोड़े हुए हैं.)
६०५०१. (+#) उववाईसूत्र सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३४-२० (१ से २०) = १४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (३०x१२, ११४३५).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
१७५ औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. राजा कोणिक के द्वारा भगवान महावीर का वंदन करने जाने
हेतु सेनापति को तैयारी करने का आदेश देने के प्रसंग से लेकर परिव्राजक को धारण करने योग्य चंदनादि वस्तुओं के
वर्णन तक है.)
औपपातिकसूत्र-टिप्पण*, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६०५०२. (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १६३३, चैत्र कृष्ण, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. पंचपाठ-प्रतिलेखन
पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (६१६) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, जैदे., (२९.५४११.५, १-५४३३-३६).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणतगुणा, गाथा-६०.
नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति श्रीमहावीर; अंति: शीघ्र प्राप्नुवंति. ६०५०३. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३-७(१ से ७)=६, दे., (२८.५४१२, ७४३१).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., इंद्र के द्वारा भगवान महावीर की स्तुति किए जाने से लेकर हरिणेगमेषी के द्वारा देवानंदा के गर्भापहरण तक
का वर्णन है.) ६०५०४. (+) सत्तरीयसयठाणांप्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६३, श्रेष्ठ, पृ. ७०, ले.स्थल. राजनन, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२७.५४१२.५, ४४३५). सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि , प्रा., पद्य, वि. १३८७, आदि: सिरिरिसहाइ जिणंदे; अंति:
सिरिसोमतिलयसूरीहिं, गाथा-३६०. सप्ततिशतस्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीमत्पार्श्वजिनं, (२)श्रीलक्ष्मीवंत ऋषभाद; अंति: करण रूपे
रचना करी छे. ६०५०५. (+#) योगचिंतामणि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५६, कार्तिक शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १४३, ले.स्थल. कोसैपुर नगर,
पठ. य.रूपजी जती; राज्यकालरा. राधिकादासजी; अन्य. य. हेमचंद उत्तमचंद जती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ७४३३-३६). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: यत्र वित्रासमायांति; अंति: सप्तमको मिश्रकाध्याय,
अध्याय-७.
योगचिंतामणि-बालावबोध, मु. मानकीर्ति-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञ प्रणम्या; अंति: मिश्रकाध्याय पूरो. ६०५०६. (+#) हैमीनाममाला, संपूर्ण, वि. १९०९, आश्विन कृष्ण, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. १२३+५(२२ से
२३,४०,४९,११६)=१२८, ले.स्थल. बालूचर (मकसुदाब, प्रले.पं. सांवतसिंघ (गुरु पं. बुधसिंघ); गुपि.पं. बुधसिंघ (गुरु पं. उमेदचंद); पं. उमेदचंद (गुरु मु. रतनचंद); मु. रतनचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. *पत्र क्रमांक २२ तीन बार होने के कारण काल्पनिक पत्रांक २३ लिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, ११४२९).
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति:
रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६. ६०५०७. (+#) अभिधानचिंतामणी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८६९, पौष शुक्ल, १, शनिवार, मध्यम, पृ. १२१-५(६५,९९ से
१०१,१०५)+२(९७,१०४)=११८, प्रले. मु. भागचंद्र (गुरु मु. भवानजी); गुपि.मु. भवानजी (गुरु मु.रामराय ऋषि); मु. रामराय ऋषि (गुरु मु. सुजाण ऋषि); मु. सुजाण ऋषि (गुरु मु. भीमसेन); मु. भीमसेन (गुरु मु. सुजाण ऋषि); पठ. मु. मोतीचंद ऋषि । (लुकागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ४०००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १६४३२).
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति:
रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६, (पू.वि. बीच-बीच के कुछ पाठांश नहीं हैं.) अभिधानचिंतामणि नाममाला-बालावबोध+बीजक, पं. देवविमल गणि, मा.गु., गद्य, आदि: हेमाचार्य नाममाला;
अंति: कवि देवविमलेन.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६०५०८. (#) सिद्धांतचंद्रिका वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४०). सिद्धांतचंद्रिका-सूबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., गद्य, वि. १७९९, आदि: पुराणपुरुष ध्यात्वा; अंति: (-),
(पू.वि. समासप्रकरण तक की टीका है.) ६०५०९. (#) विवेकविलास सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८८३, वैशाख शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ९४, ले.स्थल. कलकत्ताबिंदर,
प्रले. मु. वीरवैताल यति (नागोरी लोंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२.५, १५४३७).
विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, आदि: शाश्वतानंदरूपाय तमस; अंति: लोकोत्तरं शाश्वतम्, उल्लास-१२.
विवेकविलास-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ते को एक परमात्मानइ; अंति: तेह प्रति उपार्जइ. ६०५१०. (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, संपूर्ण, वि. १९१०, माघ शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ७५, ले.स्थल. बालूचर,
प्रले. मु. सांवतसिंह (गुरु मु. बुधसिंह), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, ११४२७-३५).
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति:
रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६. ६०५११. योगचिंतामणि सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६५+१(३५)=६६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४१२.५, ७४३२-३६). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: यत्र वित्रासमायांति; अंति: (-), (पू.वि. "घृताधिकार"
अपूर्ण तक है.)
योगचिंतामणि-बालावबोध, मु. मानकीर्ति-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञ प्रणम्या; अंति: (-). ६०५१२. (+#) चांद्रीवृत्ति, अपूर्ण, वि. १८९५ शुक्ल, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. १५०-८७(१ से ८७)=६३, ले.स्थल. विशालपुर,
प्रले. मु. लालचंद्र ऋषि (गुरु मु. रामचंद्र ऋषि, लोंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १६x४८-५१). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: सरस्वती सदाभक्त; अंति:
प्रभुचंद्रकीर्तिः, वृत्ति-३, संपूर्ण. ६०५१३. लीलावती भाषा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१२,१२-१५४३५-४३).
लीलावती-पद्यानुवाद, पं. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपारस परमेश्वर; अंति: (-), (पू.वि. "क्षेत्र व्यवहार"
गाथा-४४ अपूर्ण तक है.) ६०५१७. (+) नयचक्रसार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित. कुल ग्रं.१९००, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११.५, ३-८४४४-४७).
नयचक्रसार, ग. देवचंद्र, सं., गद्य, वि. १८वी, आदि: गुणानां विस्तर; अंति: परममंगलता लभंतीति. नयचक्रसार-स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणम्य परमब्रह्म; अंति: कृति भणता
परमानंद. ६०५१८. भैरवपद्मावती कल्पसह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४९, प्र.वि. त्रिपाठ., दे., (२७४१२.५, २-४४४५-५०).
भैरवपद्मावती कल्प, आ. मल्लिषेण, सं., पद्य, आदि: कमठोपसर्गदलनं; अंति: भैरवपद्मावतीकल्पः, परिच्छेद-१०,
__ श्लोक-४००. भैरवपद्मावती कल्प-टीका, म. बंधुषेण, सं., गद्य, आदि: श्रीमत्थारुनिकायामरव; अंति: व्या मंत्रकल्पः जयतु,
अध्याय-१० परिच्छेद.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ ६०५१९. (+#) नारचंद्रज्योतिष सह यंत्रकोद्धार टिप्पण, संपूर्ण, वि. १८७७, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४४,
प्रले. मु. हुकमचंद ऋषि (गुरु मु. किशोरचंद ऋषि); गुपि.मु. किशोरचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र की किनारी खंडित होने के कारण पठनार्थे अस्पष्ट है., पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १६-१९४४१-५३). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: च कंठे सताम, श्लोक-५३७, (वि. प्रतिलेखक
ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.)
ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: सरस्वती प्रसादेन; अंति: आरोहण मुहर्तम्. ६०५२०. (+#) नारचंद्रज्योतिष सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३९-१(१)=३८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ६४३६-४०). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: दोषा प्रकीर्त्तिता, श्लोक-४३४, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.,
श्लोक-५ अपूर्ण से है., वि. प्रतिलेखक ने एक श्लोक को दो श्लोक गिना है.)
ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ए राशि दोष कह्यो, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ६०५२२. योगचिंतामणि सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४२-१५(४,११ से २४)=२७, प्र.वि. बालावबोध टबार्थ रूप में लिखा गया है., जैदे., (२६.५४१२, ८४३२-३९). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: यत्र वित्रासमायांति; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं
हैं., पित्तविकार लक्षण, श्लोक-९ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) योगचिंतामणि-बालावबोध, म. मानकीर्ति-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञ प्रणम्या; अंति: (-), पृ.वि. अंत के
पत्र नहीं हैं. ६०५२३. (#) धनंजयनाममाला, संपूर्ण, वि. १७६२, वैशाख शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. २४, ले.स्थल. सूर्यपुर (सुरत), पठ. मु. नेमसागर
(गुरु मु. रत्नचंद्र, सरस्वतीगच्छ); गुपि.मु. रत्नचंद्र (गुरु मु. श्रुभचंद्र, सरस्वतीगच्छ); मु. श्रुभचंद्र (गुरु मु. अभयचंद्र, सरस्वतीगच्छ); मु. अभयचंद्र (गुरु मु. कुंमदचंद्र, सरस्वतीगच्छ); मु. कुमदचंद्र (गुरु आ. कुंदकुंदाचार्य, सरस्वतीगच्छ); आ. कुंदकुंदाचार्य (सरस्वतीगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. कुल ग्रं. २०५०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, ९४२४).
धनंजयनाममाला, जै.क. धनंजय, सं., पद्य, आदि: तन्नमामि परं ज्योति; अंति: शरणोत्तम मंगलान्, श्लोक-२११. ६०५२८. (+) अनेकार्थसंग्रह-कांड-४ से ७, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-१(९)=१९, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, १०x४०). अनेकार्थ संग्रह, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण,
पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., कांड-७, श्लोक-५५ अपूर्ण तक है.) ६०५२९. (+#) नारचंद्रज्योतिष सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७२४, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ४७-२९(१ से २१,२५ से ३१,४४)=१८,
अन्य. पं. नेतसीजी; मु. कनकसुंदर-शिष्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१२, ५४३०). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: रविजासुतीव्र, श्लोक-२९४, (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं
हैं., श्लोक-६२ अपूर्ण से है व बीच-बीच के श्लोक नहीं हैं.)
ज्योतिषसार-टबार्थ *,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: बारमइ क्रूर करइ, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. ६०५३०. (+) नारचंद्र सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १८४५, पौष शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. १८, ले.स्थल. राजपुरा, प्रले. पं. लब्धिकमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, १५४४६).
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: प्रकीर्तिता, श्लोक-२९४.
ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: सरस्वतीं नमस्कृत्य; अंति: यंत्रकोद्धारटिप्पनम्. ६०५३१. (#) अभिधानचिंतामणि नाममाला व चूडी चक्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, जैदे., (२५४१२,१४४२९).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१. पे. नाम. अभिधानचिंतामणि नाममाला- कांड-१ से २, पृ. १आ-१७अ, संपूर्ण.
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदिः प्रणिपत्वार्हतः; अंति (-), प्रतिपूर्ण
२. पे. नाम. चूडी चक्र, पृ. १७आ, संपूर्ण.
ज्योतिष, मा.गु. सं. हिं. प+ग, आदि हस्ताद्या पंचनक्षत्र, अंतिः केतुनास्तीस्य सर्वदा. ६०५३२. (+४) मुहूर्त मणिमाला, अपूर्ण, वि. १८३५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, मध्यम, पू. ३४-१७(१,४ से १९)=१७,
ले. स्थल. करमावास ग्राम, पठ. मु. वीरचंद ऋषि (स्थानकवासी); अन्य. आ. भानुचंद्रसूरि भट्टारक; मु. रूपजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, २०x४७-५० ).
मुहूर्त मणिमाला, पा. रूपचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: (-); अंति: वौ वाचत पढत प्रसन्न, (पू.वि. नक्षत्र विचार अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)
६०५३३. (+) हैमशब्दचंद्रिका, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १७, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५x१२,
१४४५०).
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.
हैमशब्दचंद्रिका, उपा. मेघविजय, सं., गद्य वि. १८वी आदिः ॐ शंखेश्वरपार्श्वा, अंति: (-), (पू. वि. अंत के किंचित् पाठांश नहीं हैं.)
६०५३४. (+) पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. १९१७ वैशाख कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. १५- १ ( १२ ) = १४, ले. स्थल. कामठी, प्रले. गंगाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. दे., (२७१३, १०x१९-२२).
"
पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवती, अंति: कुलीनाय हितात्मने, श्लोक १९६, (पू. वि. श्लोक-१४५ अपूर्ण से १४९ अपूर्ण तक नहीं है.)
है.)
वैद्यकसारोद्धार भाषाटीका, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
६०५३५. (+#) वैद्यकसारोद्धार सह भाषाटीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-४ (१ से ४) = १४, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १४-१७४१-४५).
वैद्यकसारोद्धार, मु. हर्षकीर्ति, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नालेरपाक अपूर्ण से लवंगादिचूर्ण अपूर्ण तक
६०५३६. (+#) सामुद्रिकशास्त्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८११, वैशाख शुक्ल, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. १३, ले. स्थल. सथाणा, प्रले. मु. हमीरकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जै, (२५.५४१२, ८४४८).
सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि आदिदेवं प्रणम्यादी, अंतिः घणपुण्यभाजाम्, अध्याय-३६, श्लोक-२७१. सामुद्रिकशास्त्र-वार्थ, मा.गु., गद्य, आदि आदिदेव जे चतुर्विंशत: अंतिः आरिसो धजा कमल भलीमाल. ६०५३७. सामुद्रिकशास्त्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८९७, आषाढ़ शुक्ल, १४, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १३, ले. स्थल स्तंभतीर्थ, प्रले. पं. शिवचंद (पाचंचंद्रसूरिगच्छ); एड. श्राव अमथा देवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२७४१३, १४४३५-४०).
सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि आदिदेवं प्रणम्यादी, अंतिः विरुपं चैव शंखिणी, अध्याय-३६, श्लोक-२७१. सामुद्रिकशास्त्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पुरुष स्त्रीना लक्षण; अंतिः विषे स्त्री भली आणवी. ६०५३८. सिद्धांतचंद्रिका सह सुबोधिनी वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, जैदे., (२५X१२, १७x४९).
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सिद्धांतचंद्रिका, प्रक्रिया, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, आदि: नमस्कृत्य महेशानं मत, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रकृतिभाव प्रकरण के ओदन्तो धौ वेतौ सूत्र अपूर्ण तक लिखा है . ) सिद्धांतचंद्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., गद्य, वि. १७९९, आदि: पुराणपुरुषं ध्यात्वा; अंति: (-), अपूर्ण,
पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.
६०५४०. स्वरोदय ग्रंथ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३ - १ (१) = १२, प्र. वि. कुल ग्रं. ५५०, दे., (२७X१२, १४X५०).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
स्वरोदयज्ञान, मु. कपुरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९०५, आदि: (-); अंति: नंदचंद चितधार, गाथा-४५३, (पू.वि. गाथा-३१
अपूर्ण से है.) ६०५४१. (+) नारचंद्र ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १८८३, श्रावण कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. १२, प्रले. पं. तिलकनिधान मुनि (बृहत्खरतरगच्छ); पठ. मु. फतैचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १३४४३).
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: अर्हतजिनं नत्वा; अंति: मकरादिदिनकरादि निशा, श्लोक-२९४. ६०५४२. (+#) शुकनावली, संपूर्ण, वि. १८९६, भाद्रपद कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. उम्मेदपुर, प्रले.पं. मोतीचंद (गुरु
मु. प्रेमचंद); गुपि. मु. प्रेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमहावीर प्रसादात्, प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३, ९४२७).
पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: पदं पदं चैव पतिता तव; अंति: ज्ञायते च शुभाशुभम्, श्लोक-१९६. ६०५४३. अर्थकांड, संपूर्ण, वि. १९२२, भाद्रपद शुक्ल, १३, रविवार, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. दसपुर नगर, प्रले. पं.खुबचंद
(अज्ञा. पं. मूर्तिकुशल, खरतरगच्छ); गुपि.पं. मूर्तिकुशल (गुरु मु. ज्ञानप्रिय); मु. ज्ञानप्रिय (गुरु मु. वाणारसजी); मु. वाणारसजी (गुरु मु. कुसलसोभाग्य); मु. कुसलसोभाग्य (गुरु उपा. गजवल्लभजी); उपा. गजवल्लभजी, प्र.ले.पु. मध्यम, दे., (२६.५४१२, ११x१७-३०).
अर्थकांड, आ. हेमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: स्वात्यादष्टक; अंति: शून्येन समहर्घता, (वि. प्रतिलेखक ने श्लोक संख्या
नहीं लिखी है.) ६०५४४. (+#) सामुद्रिकशास्त्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९१३, आश्विन कृष्ण, २, बुधवार, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. वडलू,
प्रले. मु. प्रतापहस; पठ. मु. युवारहस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१०७३) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, दे., (२५.५४१२, १४४४३-४७).
सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: शुभाशुभफलप्रदं, अध्याय-३६, श्लोक-२७१.
सामुद्रिकशास्त्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पुरुष स्त्रीना लक्षण; अंति: अपकीर्ति वधारे. ६०५४५. (+#) प्रासादमार्तंड सह दीपिका भाषाटीका, संपूर्ण, वि. १९७३, भाद्रपद शुक्ल, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. १०,
ले.स्थल. बालापुर (वैराटद, प्रले. पं. जयमुनि (गुरु मु. मोहनमुनिशिष्य, चंद्रकुलीन); गुपि. मु. मोहनमुनिशिष्य (गुरु आ. मोहनमुनि, चंद्रकुलीन); आ. मोहनमुनि (चंद्रकुलीन), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. शिखर, कलश, प्रासादादि का यंत्र, कोष्ठक व चित्र. गौडिपार्श्व प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२९.५४१४, १८४६२-६५).
प्रासादमार्तंड, सं., पद्य, आदि: अनंतविज्ञानविशुद्धरू; अंति: स्वामी सर्वधनक्षयं. प्रासादमार्तंड-दीपिका भाषाटीका, पुहि., गद्य, आदि: एक हाथ के प्रासाद मे; अंति: (-), (वि. भाषाटीका सर्वत्र नहीं
६०५४९. वैद्यवल्लभ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२५.५४१३, ६४३२).
वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: सरस्वतीं हृदि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., विलास-२, गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ६०५५२. (+) नारचंद्र ज्योतिष व औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(२४४११, १३४३३-३५). १. पे. नाम. नारचंद्र ज्योतिष, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण.
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: चिराय विश्वकर्मणा, श्लोक-१०५. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , प्रा.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). ६०५५३. अरिहंत पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १९७३, आश्विन कृष्ण, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. बालपुर वैराटदेश,
प्रले. ग. जयमुनि; अन्य. मु. हर्षमुनि (गुरु आ. मोहनमुनि); आ. मोहनमुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. बालापुरे गोडीपार्श्वनाथ प्रसादात्, प्र.ले.श्लो. (४३९) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२९४१४.५, १९४६३).
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१८०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अहँत पाशाकेवलि, सं., गद्य, आदि: श्रीमद्वीरजिनं नत्वा; अंति: सर्वथा नात्र संशयः, प्रश्न-४. ६०५५५. रामविनोद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९१, जैदे., (२७४११, ७४३०-३५).
रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सिद्धि बुद्धि दायक; अंति: केश नय तलेने राम पढे,
समुद्देश-७, गाथा-१६१७, ग्रं. ३३२५. ६०५६१. (+#) रामविनोद वैद्यकग्रंथ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२.५, १८४५०). रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सिद्धि बुद्धि दायक; अंति: रामविनोद विनोदसु,
समुद्देश-७, गाथा-१६१७, ग्रं. ३३२५. ६०५६२. (+) रामविनोद वैद्यक व नाडीपरीक्षा, संपूर्ण, वि. १८४०, फाल्गुन शुक्ल, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४९, कुल पे. २,
प्रले. पं. अमृतकीर्ति (गुरु वा. राजधर्म, खरतरगच्छ); गुपि. वा. राजधर्म (गुरु आ. जिनलाभसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनलाभसूरि (गुरु आ. जिनभक्तिसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १८४५५). १. पे. नाम. रामविनोद वैद्यक, पृ. १आ-४८आ, संपूर्ण. रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सिद्धि बुद्धि दायक; अंति: जा लगि मेरु दिणंद,
समुद्देश-७, गाथा-१६१७. २. पे. नाम. नाडीपरीक्षा, पृ. ४८आ-४९आ, संपूर्ण. रामविनोद-हिस्सा नाडीपरीक्षा-नेत्रपरीक्षा, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुभमति सरसति समरियै; अंति:
क्षा एह कही रामचंदही, गाथा-४५. ६०५७१. (+#) लीलावती भाषा, संपूर्ण, वि. १८६१, कार्तिक कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. २२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ७६०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १३-१५४३६-४०). लीलावती-भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सोभित सिंदूर पुर; अंति: लालचंद० जनसुख
काज, अध्याय-१६, गाथा-७०७. ६०५७६. (+) सभाश्रृंगार, शालिहोत्र व नंदबहुत्तरी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(२५.५४११, १५४४३-४९). १.पे. नाम. सभाशृंगार, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण.
___ मा.गु., गद्य, आदि: जीव अजीव पुन्य पाप; अंति: श्रेय कल्याण पाम्मे. २.पे. नाम. शालिहोत्र बालावबोध, पृ. ६आ-१६अ, संपूर्ण, वि. १८३४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, ले.स्थल. जालोरगढ.
शालिहोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम रेवंतजीरो उतपत; अंति: रातो टाल्यो बीजा भला. ३. पे. नाम. नंदबहुत्तरी, पृ. १६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: सबही नगर सिर सेहरोप; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- १८ अपूर्ण तक है.) ६०५७७. (+#) अबयद शुकनावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६,प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२६४१२.५, १२४२९). अबयद शुकनावली, मु. सुजाणसिंह, पुहिं., गद्य, वि. १७९४, आदि: महावीर कौ ध्याइके; अंति: सुजाणसिंह०फल
श्रीकार. ६०५८०. (+#) लीलावती का अनुवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १६४३८). लीलावती-भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सोभित सिंदूर पुर; अंति: लालचंद० जनसुख
काज, अध्याय-१६, गाथा-७०७. ६०५८५. प्रास्ताविक श्लोक व जैनधार्मिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२,
१६४३५-४५).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
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१. पे नाम, प्रस्ताविक लोक संग्रह, पृ. १अ १० आ, संपूर्ण.
सुभाषित श्लोक संग्रह, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: कछु न कारण रूप को; अंति: वरसै धूल न वरसै पाणी,
गाथा - ३०१.
२. पे. नाम. जैनधार्मिक श्लोक संग्रह, पृ. १० आ-११आ, संपूर्ण.
व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा. मा.गु. सं., पद्य, आदि: जिनेंद्रपूजा गुरु, अंतिः घणु विस्तार पामै
मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: सरसति समरु मोरी; अंति: जेठ मास की जान, गाथा - १६७.
२. पे. नाम. शनिश्चर स्तोत्र, पृ. १०अ १०आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदिः ॐ नमो यत्पुरा राज्य, अंतिः पीडा न भवंति कदाचन, श्लोक १०.
३. पे. नाम. सूरजपुत्र जाप, पृ. १०आ, संपूर्ण.
शनि जाप, सं., गद्य, आदिः ॐ नमो आदित्याय वस, अंतिः कुरु कुरु स्वाहा.
४. पे. नाम. शनिश्चर छंद, पृ. १०आ- ११आ, संपूर्ण.
क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहिनर असुर सुरांपति, अंति: हेम० सुप्रसन्न शनीसवर, गाथा- १७. ५. पे. नाम. शनिश्चर छंद, पृ. ११आ- १२आ, संपूर्ण.
६०५८८. (+४) शनीचर कथा, स्तोत्र, मंत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे, ५. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२४४१२, १४२७-४०).
१. पे. नाम. शनीचर कथा, पृ. १आ-१०अ संपूर्ण.
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,
खेतल, मा.गु., पद्य, आदि: बांहण महिख बडाला; अंति: कुसल मंगल खेतल कहे, गाथा - ६. ६०५९८. (*) पासाकेवली सुकनावली, संपूर्ण वि. १९३४, मार्गशीर्ष शुक्ल ८, मध्यम, पृ. ८, पठ. मु. जेठमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६.५४९२.५, १२x२८).
,
पाशाकेवली. मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवती अंतिः भलो होसी सत्य माने. ६०६०३. (+) पर्यंताराधना सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६१, आश्विन शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ५, प्रले. ग. विनय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X११.५, ७x४३).
पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण भणइ एवं भयवं; अंति: लहंति ते सासयं सुखं, गाथा- ७०. पर्यताराधना-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः नमः करीनई कल्याण, अंतिः ते सासयं सुक्खं.
६०६०८. रामविनोद, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११. पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. जैवे. (२४.५४१२, १४४४४)
रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्म, वि. १७२०, आदि सिद्धबुद्धदाता सलहीय, अंति: (-), (पू.वि. हारिद्रकोपाय, श्लोक ७२ अपूर्ण तक है.)
६०६१०. (+) विक्रमराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११३-१०६ (१ से १०४,१०६, १०८) = ७, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५x१२, १३४३२-३५).
विक्रमराजा चौपई, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. बीच के पत्र हैं., खंड-६ की डाल - ७, गाथा १९ अपूर्ण से ढाल १३, गाथा १३ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.)
६०६२२. (+) विवाहपडल पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें..
.
,
जैदे., (२६X११.५, १०X२४).
१८१
विवाहपडल- पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी पद वंदी करी, अंति: (-), (पू. वि. गाथा ५१ अपूर्ण तक है.)
६०६५६. (+) श्रुतबोध सह टीका, संपूर्ण, वि. १९१६ माघ शुरू, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले. स्थल, इंदौर, प्रले. सवाईराम ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ संशोधित. वे. (२६.५x१३.५, १०x३२).
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श्रुतबोध, कालिदास, सं., पद्य, आदि: छंदसां लक्षणं येन, अंतिः प्रोक्तं गणानां फलं श्लोक-४४.
श्रुतबोध- मनोरमा टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं. गद्य, आदिः श्रीमत्सारस्वतं धाम, अंतिः सुता त्रिलवेश्वरायुः.
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१८२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६०६७२. (+-) वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. पानेली, प्रले.पं. नायकविजय (गुरु आ. विजयसेनसूरि);
गुपि. आ. विजयसेनसूरि (गुरु आ. हीरविजयसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीऋषभदेव प्रशादात्., अशुद्ध पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १३४२८-३१).
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: गतं सर्व या चंद्र. ६०६७७. आर्यवसुधाराधारिणी, संपूर्ण, वि. १८८१, आश्विन शुक्ल, ४, जीर्ण, पृ. ६, ले.स्थल. मणोद, जैदे., (२६४१२, १३४४१).
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. ६०६८२. (#) वसुधारामहामंत्र स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९१९, वैशाख कृष्ण, ११, जीर्ण, पृ. ५, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४१२, १४४३९).
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: च भोगं करोति. ६०६८४. यंत्रराज सह टीका- अध्याय पंचम, संपूर्ण, वि. १९०६, कार्तिक कृष्ण, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२७४११.५, ११-१२४४२-४६).
यंत्रराज, आ. महेंद्रसूरि, सं., पद्य, श. १२९२, आदि: (-); अंति: विचारणा यंत्रजा, प्रतिपूर्ण. यंत्रराज-टीका, आ. मलयेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: कथनाध्यायोगमपंचमः, (प्रतिपूर्ण, वि. टीका का
अल्पांश लिखा है.) ६०६८५. (+) अणुत्तरोववाई सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५८, चैत्र कृष्ण, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २९, ले.स्थल. भुजनगर, प्रले.
हरदेवजी छगनजी त्रवाडी; खीमजी छगनजी त्रवाडी; अन्य. सा. रूपाबाई; सा. हेमकुवरबाई महासती; सा. केसरबाई आर्या; सा. लाडकुंवरबाई; सा. रतनबाई आर्या; सा. सूरजबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७.५४१२, ४४२८). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा.. प+ग.. आदि: तेण कालेणं तेणं समएण: अंति:
अणुत्तरोववाईदसाणं, अध्याय-३३.
अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालने विषे ते; अंति: धर्मकथा णे० जाणवा. ६०६८६. (+) प्रश्नव्याकरण सूत्र सह टबार्थ-श्रुतस्कंध १ पंचमाश्रवद्वार अंतिमगाथापंचक से श्रुतस्कंध-२, संपूर्ण, वि. १८९२,
मार्गशीर्ष शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ६०, ले.स्थल. रापर, दत्त. श्राव. हीराचंद मोरबीया; गृही. सा. घुमतीबाई आर्या; अन्य. श्राव. टोकरसी कल्याणजी मोरबीया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१२, ५४२२).
प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सरीरधरे भविस्सइति, प्रतिपूर्ण.
प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सिद्धनुं सुख पामीइं, प्रतिपूर्ण.. ६०६८७. तीर्थंकर, नवतत्त्व, आदि बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०५, ले.स्थल. लसकर, प्रले. य. अचलदास (ओसवालगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ५७००, जैदे., (२७४१२, १२४१५-३१). बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. तीर्थंकर, नवतत्त्व, जंबूद्वीप, जैनसिद्धांत आदि विषयों से
संबंधित बोल संग्रह.) ६०६८८.(+) आचारांगसूत्र सह टबार्थ-द्वितीय श्रुतस्कंध, संपूर्ण, वि. १८३७, श्रावण कृष्ण, १३, शनिवार, श्रेष्ठ,
पृ. १००+१(५६)=१०१, ले.स्थल. पुन्नपालसर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. कुल ग्रं.८०००, जैदे., (२६.५४१२, ६x४८).
आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विमुच्चति त्ति बेमि, ग्रं. २६४४, प्रतिपूर्ण.
आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मोक्ष परमार्थ जाणवो, प्रतिपूर्ण. ६०६८९. (+) पंचाख्यान चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १७X४२).
पंचाख्यान चौपाई, मु. रत्नसुंदरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६२२, आदि: प्रणम्य पूर्वं; अंति: सुगुरू कवि पूरइ आस,
अधिकार-५, गाथा-२६२७. ६०६९०. (+) आगमसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६७, ले.स्थल. जालना, प्रले. मु. अचलसुंदर; पठ. श्राव. आणंदरूप सेठ,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (११४०) कड लुली गाबड नीची, जैदे., (२७.५४१२.५, १२४३७-४०).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
१८३ आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: तिहां प्रथम जीव; अंति: तिथि सफल फली मन आस. ६०६९२. (+) सूयगडांगसूत्र सह टबार्थ-प्रथम श्रुतस्कंध, संपूर्ण, वि. १८९७, फाल्गुन कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ६०, ले.स्थल. जालणा
लसकर, प्रले. रामलाल महात्मा; लिख. श्राव. आणंदरूप सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१२, ६४३६-३८).
सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज; अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य सद्गुरुन्, (२)बुज्झि० छकाय सरूप; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६०६९४. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२६-४६(१ से २,३२ से ३३,३७,४३ से ४४,४७,४९,५१
से ५३,६१,७१ से ७५,८६,११४,१५१ से १६४,१७१,१७५ से १८१,१८६,२२२ से २२४)=१८०, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४१२, ४४३७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ गाथा १३ अपूर्ण से
अध्ययन-३६ तक के बीच-बीच के पाठांश हैं.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६०६९५. (+) चंदराजा रास, संपूर्ण, वि. १९२२, आश्विन कृष्ण, ८, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १५३, ले.स्थल. नलीनपुर, प्रले. मु. फतेसागर
(गुरु मु. वीरसागर); गुपि.मु. वीरसागर (गुरु पं.प्रतापसागर); पं. प्रतापसागर; पठ. श्राव. पाशवीर अरजणजी साह; श्राव. दामजी अरजणजी साह; लिख. श्राव. अरजण धनराजजी साह, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीचंद्रजिन प्रसादेन, पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (५५६) भग्नपृष्टि कटी ग्रीवा, (६६०) जिहा लगे मेरु महिधर, (८८९) यादृसं पुस्तकं दृष्टवा, (९७६) जलात् रक्षेत् तैलात् रक्षेत्, दे., (२७.५४१३, १२४३१-३२).
चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तिम; अंति: मोहनविजये० गुण चंदना,
उल्लास-४, गाथा-२६७९. ६०६९६. (+) सिद्धांतसारोद्धार, बोल व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७, कुल पे. ३, अन्य. मु. ज्ञानवर्द्धन,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. लेखन संवत मात्र १८ लिखा है, संशोधित., जैदे., (२७.५४१३, १८-२०४४४). १.पे. नाम. सिद्धांतसारोद्धार विचार, पृ. १आ-३६आ, संपूर्ण.
सिद्धांतसारोद्धार, मा.गु., गद्य, आदि: जंबुद्वीप विगत ५२६; अंति: दुक्कडं दीजै. २.पे. नाम. पांच बोलनो विचार, पृ. ३६आ-३७अ, संपूर्ण.
बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. बटुक भैरव मंत्र, पृ. ३७आ, संपूर्ण.
बटुकभैरव मंत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं बटुकाय आपदौ; अंति: बटुकाय ह्रीं स्वाहाः. ६०६९७. (+) कल्पसूत्र- प्रथम व्याख्यान सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८९२, श्रेष्ठ, पृ. १५, अन्य. मु. रत्नवर्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२८x१३, ५-१२४३७).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (१)नमो अरिहंताणं नमो, (२)तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीचतुर्विंशतिजिनान; अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमो क० माहरो नमस्कार; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६०६९८. स्तवन, स्तुति व विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ४, ले.स्थल. पूना, प्रले. पं. मेघविजय गणि;
पठ. श्राव. कसना साह, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२.५, १२४३६). १.पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, ग. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७४५, आदि: श्रीशंखेस्वर प्रभु; अंति: सोभाग्य०नवी रचायो
रे, ढाल-१४, गाथा-१७६. २.पे. नाम. पोसह लेवानी विधि, पृ.८आ-९आ, संपूर्ण.
पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथमतो ३ नवकार कहि; अंति: वादे पछे सज्झाय करे. ३. पे. नाम. सांजरी पडिलेहण, पृ. ९आ, संपूर्ण.
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१८४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची राईप्रतिक्रमण विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम इरियावहि पडि; अंति: पछे उपधि पडिलेहवो. ४. पे. नाम. सिद्धचक्रजी स्तुति, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८उ, आदि: पहिले पद जपीइ अरिहंत; अंति: कांतिविजय गुण
गाय, गाथा-४. ६०७००. दसपच्चक्खाण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रावण कृष्ण, ४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. पालीनगर, प्रले.पं. कपुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अबरखयुक्त पत्र., जैदे., (२६.५४१२.५, ४४२९).
दसप्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: आगारेणं वोसिरामि.
प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: सूर्यना उदय थकी; अंति: साखें वोसिरावू डूं. ६०७०३. (+#) खरतरगच्छीय तीस बोल, संपूर्ण, वि. १९५९, वैशाख कृष्ण, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. फलौदी, प्रले.मु.सोभागमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२,१२४३८). खरतरगच्छ संबंधी धर्मसागरीय ३० प्रश्नों के उत्तर, मा.गु., गद्य, वि. १६२७, आदि: श्रीखरतरगछिय सुविहित; अंति:
शुद्धमार्गः सुखावह. ६०७०४. (+) विधि व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, ले.स्थल. अहमदबाद, प्रले. अमरदत्त गुमानीराम
पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२८x१२.५, ११४४२-४६). १.पे. नाम. दीक्षा विधि, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण.
प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पुच्छा १ वासे २ चिइ; अंति: वाली बांधी एक गणवी. २. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. ४आ, संपूर्ण.
४ दुर्लभता गाथा, प्रा., पद्य, आदि: चत्तारि परमंगाणी; अंति: संयमम्मि वीरियं, गाथा-१. ३. पे. नाम. दीक्षा के अठारह दोष, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
दीक्षा के १८ दोष, मा.गु., गद्य, आदि: आठ वरसना बालक उपरांत; अंति: हुइ तो दीक्षा सूझे. ६०७०५. (#) श्रावक प्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. १९०५, भाद्रपद कृष्ण, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. ९२, प्रले. मु. आनंदरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ., (२६४१२, १५४३३-३८).
श्रावकाचार प्रश्नोत्तर, श्राव. बुलाकीदास, पुहि., पद्य, आदि: सिद्धं संपूर्ण भव्या; अंति: जगत मै भव्यन को आधार,
___ अधिकार-२४, गाथा-२२५९, ग्रं. ३७००. ६०७०६. २४ दंडक २९ बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, दे., (२७.५४१२.५, १३४३३-३६).
२४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: जीव अनंतगुणाधिका. ६०७०७.(+#) पगाम सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९५१ शुक्ल, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. ९-१(८)=८, ले.स्थल. कोटा, प्रले. मु. इश्वरचंद्र (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२.५, ६४२१). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पगाम सिज्झाए निगाम; अंति: वंदामि जिणे चोवीसं, सूत्र-२१,
(पू.वि. "अनुपालेमि तं धम्म" से "समणोहं संजई विरदई" तक के पाठ नहीं है.) ६०७०९. (+) पाक्षिक अतिचार, जिन नमस्कार व जीवविचार प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-४(४ से ७)=७, कुल
पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ११४३५). १. पे. नाम. पाक्षिक अतिचार, पृ. १आ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्रावक पाक्षिकादि अतिचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दसणमि अचरणं; अंति: (-), (पू.वि. श्रावक के द्वारा
बाल-नख काटे जाने तथा शरीर को विभूषित किए जाने की आलोचना के वर्णन तक है.) २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, पृ. ८अ-९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
२४ जिन नमस्कार, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: मलप्रक्षालन जलोपमा, श्लोक-२९, (पू.वि. श्लोक-६ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ९अ-११आ, संपूर्ण.
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ६०७१०. (+) सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, ११४३४).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
१८५ सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामी सीमधर
विनती; अंति: जसविजय बुध जयकरौ, ढाल-११, गाथा-१२५, ग्रं. १८८.. ६०७११. (+#) मौनएकादशी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२.५, ७४३६).
मौनएकादशीपर्व कथा, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरं नमिऊण पुच्छ; अंति: रिद्धि तह मुक्खं, गाथा-१५६.
मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरजीने; अंति: मोक्षरा सुख लहइं. ६०७१३. (#) ५ कुगुरु सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ८x२५).
५ कुगुरु सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो सदगुरु गुणधारी; अंति: णयविजय० संसिणंएए,
ढाल-६, गाथा-४१. ६०७१४. कल्पसूत्रसामाचारी अध्ययन कीटीका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, दे., (२५.५४१२, १८४३८).
कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन-टीका, सं., गद्य, आदि: (१)ॐ वंदामि भद्दबाहु, (२)तस्मिन् काले तस्मिन्;
अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सातवीं सामाचारी अपूर्ण तक लिखा है.) ६०७१५. (+) छ आराना बोल, संपूर्ण, वि. १९५३, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. जामनगर, प्रले. पं. खूबचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात्, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६४१२, १२४४२).
६ आरा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: दस कोडाकोडि सागरोपम; अंति: ते सुखी थास्ये. ६०७१६. (+) विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.१९-१(५)=१८, कुल पे. ३,प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., दे.,
(२५.५४१२, १४४४०). १.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह बालावबोध, पृ. १अ-१९अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., वि. १९१७,
आश्विन कृष्ण, ६, ले.स्थल. सीवपुरी, प्रले. मु. हसविजय; पठ. श्रावि. सालीबाई. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति:
संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१, (पूर्ण, पू.वि. बीच के आंशिक पाठ नहीं है.) जीवविचार प्रकरण-बालावबोध, पं. हंसविजय, मा.गु., गद्य, वि. १९१४, आदि: प्रथमथी महावीरस्वामी; अंति:
सिवपद पामे सार, (अपूर्ण, पू.वि. गाथा-१९ के बालावबोध का कुछ अंश नहीं है.) २.पे. नाम. चौदराजलोक विचार, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण.
१४ राजलोक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहेली नरके पहेलो राज; अंति: परे सर्व वस्तु देखे. ३. पे. नाम. अढीद्वीप विचार, पृ. १९आ, संपूर्ण.
____ मा.गु., गद्य, आदि: सर्वने मध्य भागे एक; अंति: मनुष्यक्षेत्र छे. ६०७१७. जैन तात्त्विक क्रमावलि सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७-९(१ से ९)=१८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४१२, ८-११४३९).
जैन तात्त्विक क्रमावलि, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. दश यतिधर्म से तैतीस आशातना अपूर्ण तक है.) जैन तात्त्विक क्रमावलि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अति: (-).
जैन तात्त्विक क्रमावलि-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६०७१८. (+) पंचज्ञान पूजा, अपूर्ण, वि. १८९९, माघ शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ३३-२१(१ से १८,२० से २२)=१२, प्रले. बलदेव व्यास; पठ. मु. मानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १०४२७). ज्ञानपंचमीपर्व पूजा, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८७, आदि: (-); अंति: उपर भेला ५१ थापिइं, ढाल-११,
(पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., द्वितीय पूजा अपूर्ण से है व तृतीय पूजा अपूर्ण से आठवीं पूजा अपूर्ण तक नहीं है.) ६०७१९. (+) नवतत्व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, १०४२७).
नवतत्त्व स्तवन, मु. विवेकविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७२, आदि: सरस्वतीनें प्रणमुं; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-७ तक
है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१८६
६०७२०. (#) नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८१६, पौष शुक्ल, ११, शनिवार, मध्यम, पृ. १४, ले. स्थल. जैपुर, प्रले. मुधोसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै.., (२५.५X१२, १६X३७-४१).
नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: से त्तं परोक्खणाणं, सूत्र- ५७,
गाथा - ७००.
"
"
६०७२२. (+१) कल्पसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १३०-८७(१ से ८२, ९२ से ९३,१०९ से ११९)=४३, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६.५x११.५, ६४३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. नेमिनाथचरित्र अपूर्ण से है व अंत के कुछ पाठांश नहीं हैं.)
कल्पसूत्र - टवार्ध " मा.गु., गद्य, आदि: (-): अंति: (-).
*,
६०७२३. (+) तत्वार्थाधिगमसूत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ९, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४१२, १३४३३).
तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति सं., गद्य, आदि: त्रैकाल्वं द्रव्य, अंतिः बहुतत्त्वतः साध्याः, अध्याय- १०. ६०७२४. (+) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-४ (१ से ४) = २१, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५. ५X१२, १९-२४४४२-६५).
लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: सुय सुयदेवी पसाएण, अधिकार- ६, गाथा-२६३ (पू.वि. गाथा ३२ अपूर्ण से है.)
लघुक्षेत्रसमास प्रकरण - सुगमावबोधिका टीका, आ. मलयगिरिसूरि, सं. गद्य, आदि (-); अंति: सत्तपसः श्रेयसे
"
संतु
६०७२७. (+) भक्तामर स्तोत्र अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५२९, चैत्र शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. २६ प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १५७२, जैदे. (२६४११.५. १७४५५-६०).
"
भक्तामर स्तोत्र - गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि सं., गद्य वि. १४२६, आदि: पूजाज्ञानवचोपायापगमा, अंतिः
पमतिः प्रायशः संति,
०
६०७२८. (+*) कल्पमांडणी, कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यानकथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७- २ (१ से २) = १५, कुल
पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६४१२, ६x२९-३४).
१. पे नाम, कल्पसूत्र मांडणी, पृ. ३अ-७आ, अपूर्ण. पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं है.
कल्पसूत्र- मांडणी, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: एक प्रकारि ते करे, (पू. वि. गुरुशिष्य संवाद अपूर्ण से है.)
२. पे. नाम. कल्पसूत्र सह टबार्थ व कथा, पृ. ८अ १७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो, अंति: (-), (पू. वि. देवराज इन्द्र के द्वारा की गई भगवान महावीर स्वामी की स्तुति के वर्णन तक है.)
कल्पसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतन माहरो, अंति: (-).
कल्पसूत्र - कथा संग्रह, मा.गु. सं., गद्य, आदिः पृथ्वीभूषणनगरे प्रजा अंतिः (-).
६०७२९. कर्मविपाक, कर्मस्तव व बंधस्वामित्व कर्मग्रंथ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १६-७ (१ से ७) = ९, कुल पे. ३, दे.,
(२६×११.५-१३.०, ७३० ).
१. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ८अ ९आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी १४वी, आदि (-) अंति लहिउ देविंदमूरिहिं गाथा- ६३ (पू. वि. गाथा ४७ अपूर्ण से है.)
२. पे. नाम, कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ९आ- १३अ, संपूर्ण
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी १४वी, आदि: तह धुणिमो वीरजिणं, अंतिः वंदियं नमहं तं वीरं, गाथा-३४.
३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १३ अ- १६अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी १४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्त; अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा - २४. ६०७३१. (+#) पर्युषणाष्टान्हिका व दर्शनाष्टक, संपूर्ण, वि. १८८८, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, ले. स्थल. खीवसर, प्रले. उपा. मूलचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे., (२५.५x१२.५, १४X३९).
१. पे. नाम. पर्युषणाष्टान्हिका व्याख्यान, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण.
पर्युषणाष्ठाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदिः स्मृत्वा पार्थ, अंतिः मोक्षं जगाम श्लोक-६२४. २. पे. नाम. दर्शनाष्टक श्लोक, पृ. ८आ, संपूर्ण.
जिनदर्शन श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: दर्शनं देवदेवस्य; अंति: प्रपद्ये जिनं देवदेव, श्लोक ८.
६०७३२. अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२७.५४१२, १२४३४-३७).
श्रावकपाक्षिक अतिचार- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणेमि दंसणंमि०: अंतिः करिमिच्छामिदूकडं. ६०७३३. जीवविचार व दंडक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, ज्येष्ठ कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. २, प्रले. मु. अचलसुंदर, पठ. श्राव. आणंदरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७X१२.५, ४X३१-३४).
१. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ,
पृ. १आ-८आ, संपूर्ण.
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण, अंतिः
!
,
संतिसूरि०सुवसमुद्दाओ, गाथा-५१.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: भुवनज तीन भुवन तेहने; अंति: देउ धर्यो० कयौः. २. पे नाम, विचारषट्त्रिंशिका सह टवार्थ, पृ. ९अ- १५अ संपूर्ण.
दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्म, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीसजिणे तस्स अंति: गजसारेण० अप्पहिआ
,
गाथा-४४.
दंडक प्रकरण- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि मन वचन कायाए करी, अंति: आतमने हितकारी भवतु
६०७३८. कल्पसूत्र सह सुखबोधिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५५ - १ (४१) + १ (५५) = १५५, प्र. वि. त्रिपाठ., जैदे.,
१८७
(२५.५X११.५, १२x४६).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेण कालेणं० समणे, अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान- ९, , संपूर्ण. कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय, सं., गद्य, वि. १६९६, आदि: प्रणम्य परमश्रेयस्कर, अंतिः
विद्वज्जनैराश्रिता (अपूर्ण, पू. वि. लक्ष्मीदेवी के अभिषेक का किंचित् अंश नहीं है.)
६०७३९. उपदेशमाला सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८२५, आषाढ़ कृष्ण, १३, मंगलवार, मध्यम, पृ. १७५, ले.स्थल. राजनगर, जैवे. (२५.५x११.५, ४-१५X३७-५१).
उपदेशमाला. ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिनवरिंदे इंद, अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४. उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७१३, आदि: नमिऊण क० नमस्कार करी; अंति: वाणी श्रुतदेवता ते.
६०७४१. (+) आचारांगसूत्र सह टबार्थ - द्वितीय श्रुतस्कंध, संपूर्ण, वि. १८५६, भाद्रपद कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. २५५, ले. स्थल. भुजनगर, अन्य. सा. केसरबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६.५X११.५, ४X३०).
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आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: विमुच्चति त्ति बेमि, ग्रं. २१५४, प्रतिपूर्ण. आचारांगसूत्र- टबार्थ, मु. धर्मसी, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति होई इम हुं कहुं छउ, ग्रं. १२५५४, प्रतिपूर्ण. ६०७४२. सत्तरीयसयठाणा सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७७, जैदे (२५X१२, ४४२८).
सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३८७, आदि: सिरिरिसहाइ जिणिदे; अंति: सिरिसोमतिलयसूरीहिं, गाथा- ३६०.
सप्ततिशतस्थान प्रकरण - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१) श्रीमत्पार्श्वजिनं, (२) श्रीलक्ष्मीवंत ऋषभाद, अंति: करणरूपे रचना करी छे.
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१८८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६०७४३. (+) औपदेशिक सज्झाय व छमाबत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ.,
जैदे., (२६.५४१२, ११४३०-३३). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. जैमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: मोह मिथ्या की नीद मे; अंति: रिषी जेमल कहे एम,
गाथा-३६. २. पे. नाम. खिमाछत्रीसी, पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण. क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव क्षमागुण आदर; अंति: समयसुंदर आदेसो जी,
गाथा-३६. ६०७४४. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९३५, फाल्गुन शुक्ल, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मु. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६-३२.५४१२, १३४३७-४२).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४८,
(वि. यंत्र-मंत्र व विधि सहित.) ६०७४६.(-) स्तुति, बत्तीसी, चौपाई आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४, कुल पे. १७, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे.,
(२७X१२.५, १२४३३-३६). १.पे. नाम. बारहव्रत वर्णन, प्र. १आ-२अ, संपूर्ण.
१२ व्रतवर्णन गाथा, पुहि., पद्य, आदि: जो नित मन वच कायसु; अंति: ए फल देहि विसालो जी, दोहा-१३. २. पे. नाम. पार्श्वजिन सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन सज्झाय-गजभव, पुहिं., पद्य, आदि: करि उपगार मुनीश तिहा; अंति: भयौ देखो धर्म प्रभाव, दोहा-१०. ३. पे. नाम. बारह भावना चौपाई, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण.
१२ भावना चौपाई, जगदीश स्वामी, पुहिं., पद्य, आदि: पंच परमगुरु वंदना; अंति: इम भाखै स्वामी जगदीश, दोहा-१६. ४. पे. नाम. मूढशिक्षा छंद, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
औपदेशिक छंद-मूढशिक्षा, जै.क. भैया, पुहिं., पद्य, आदि: देह सनेह कहा करै; अंति: कै समदृष्टी लोय, दोहा-१२. ५. पे. नाम. आत्मसंबोधन रास, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण.
उपदेशबत्तीसी, मु. राज, पुहिं., पद्य, आदि: आतमराम सयाने झुठा; अंति: राज कहे० सुणीजै जी, गाथा-३२. ६.पे. नाम. स्वाध्याय सिलोक, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
स्वाध्याय श्लोक, सं., पद्य, आदि: ॐकारबिंदु संयुक्त; अंति: आचार्य का नाम लेणं, श्लोक-४. ७. पे. नाम. चरचा समाधान, पृ. ६अ-८आ, संपूर्ण. चर्चा समाधान, जै.क. भूधर, पुहिं., पद्य, वि. १२७६, आदि: जयो वीर जिनचंद्रमा; अंति: भूधर० ध्यान नहि फल,
दोहा-५४. ८. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ८आ-९आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: कंचन भंडार पाय रंजन; अंति: नीच निरदै महा अधरमी, दोहा-७. ९.पे. नाम. द्रव्यलिंगी व्यवस्था, प्र. ९आ-११अ, संपूर्ण.
द्रव्यलिंग व्यवस्था, पुहिं., पद्य, आदि: सम्यग्ज्ञान नही; अंति: सहज सुष्टता सोइ, दोहा-३८. १०. पे. नाम. द्वादशानुप्रेक्षा, पृ. ११अ-१३आ, संपूर्ण..
पुहि., पद्य, आदि: विरहत पहुचे पाडवा; अंति: चकचूर करि करे दूरा, दोहा-३८. ११. पे. नाम. अध्यात्म भारत, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण.
पुहिं., गद्य, आदि: भाय इम भावना ध्यान; अंति: लहत परम सुखरस. १२. पे. नाम. से@जय वर्णन, पृ. १४अ-१६आ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ वर्णन, पुहि., गद्य, आदि: अथानंतर जंबूद्वीप; अंति: कल्याण के कर्ता हो. १३. पे. नाम. तेरह काठिया, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण.
दार
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
१३ काठिया गाथा, पुहिं., पद्य, आदि: जे वट पारै वाटमै करै; अंति: दसा कहिये तेरह तीन, गाथा-१७. १४. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १७अ-१८अ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: आबत श्रीभगवंत जिहा; अंति: अब विलंब कारण कवन, दोहा-८. १५. पे. नाम. एकाक्षरी दोहा, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तुति-एकाक्षरी, न्याय, पुहिं., पद्य, आदि: जोगी जती जथा रथी; अंति: नमो न्याय निज सीस, दोहा-६. १६. पे. नाम. नवरतन कवित्त, पृ. १८आ-२०अ, संपूर्ण.
नवरत्न कवित्त, पुहिं., पद्य, आदि: धनंतरि छप्पनक अमर; अंति: जुगमें मूरख विपत्ति, गाथा-१२. १७. पे. नाम. नरक वर्णन, पृ. २०अ-२४आ, संपूर्ण.
बुद्धिविलास, पुहिं., पद्य, आदि: जन्मथान सब नर्क में; अंति: बुद्धि० पन तीर्नु काल, दोहा-१०३. ६०७४७. (+#) षडशीति, शतक व सप्ततिका कर्मग्रंथ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४३-१६(१ से ११,२७ से ३१)=२७, कुल
पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं.५००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ५४३९). १.पे. नाम. षडशीति प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १२अ-२२अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: लिहिउ देविंदसूरीहिं, गाथा-८४,
(पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४८ अपूर्ण
तक का टबार्थ लिखा है.) २. पे. नाम. शतक प्रकरण सह टबार्थ, पृ. २२अ-३४आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति:
देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००, (पू.वि. गाथा-४० अपूर्ण से ७८ अपूर्ण तक नहीं है.) शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करिनइ राग; अंति: संभारवानइ अर्थइ. ३. पे. नाम. सप्ततिका प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ३४आ-४३आ, संपूर्ण.
सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: एगूणा होइ नओईउ, गाथा-९०.
सप्ततिका कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्ध क० निश्चल; अंति: उणी नेउ गाथा होइ. ६०७५२. (+) प्रासंगिक सुभाषित संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-३(१ से ३)=६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-संशोधित., जैदे., (२९४११.५, ११४३५-३८).
सुभाषित श्लोक", मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२५ अपूर्ण से ८७ अपूर्ण तक है.) ६०७५७. (+) भक्तामरस्तोत्र पूजाविधान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र.वि. पत्र-१अपर भक्तामर आदि यंत्र हैं., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२९.५४१४.५, १२४३०-३२).
भक्तामर स्तोत्र-पूजा विधान, संबद्ध, आ. सोमसेन, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्देवेंद्रवंद्य; अंति: आदिनाथं जिनं यजे. ६०७५८. (+) योगचिंतामणि सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८५७, ज्येष्ठ शुक्ल, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १३९-३२(१ से ३१,४५)=१०७,
ले.स्थल. वृदांवन, प्रले. सीताराम गौडे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२८.५४१४, ७X४०). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: योगचिंतामणिश्चिरम्, अध्याय-७,
(पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., अध्याय-२ अपूर्ण से है व अध्याय-३ का किंचित् पाठ नहीं है.) योगचिंतामणि-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण. ६०७५९. (#) स्तवनचोवीसी, संपूर्ण, वि. १९४१, पौष कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. निंबज, प्रले. मु. रूपविजय;
अन्य. मु. गुलाबविजय; पठ. मु. वनीतरूची; अन्य. मु. लब्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, प्र.ले.श्लो. (१०९९) जब लगे मेरू गिरंद हैं, दे., (२८.५४१४.५, १७४४०).
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१९०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्तवनचौवीसी, मु. मोहनरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभ जिणेसर साहिब; अंति: मोहनरूच गुण गाया रे, स्तवन-२४. ६०७६०. (+) सारस्वतव्याकरण की टीका-प्रथम वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३९-६(३८,४३ से ४७)=१३३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (३०x१२, ११४३७-४४). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: नमोस्तु सर्वकल्याणपद; अंति:
(-), ग्रं. ७५००, (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. "आमिह ह्रां ह्रौं हृद्वि ऋ" पाठ से "हे कर्त्तः शेष सुकरं शशि" पाठ तक, "नदी ३१
___टा इयं० स्वर० ४१सू" से "लोपो भवति ईकारे परे तु" पाठ तक नहीं है.) ६०७६१. बृहत्कल्पसूत्र सह टीका, नियुक्ति, नियुक्ति की टीका, लघुभाष्य व लघुभाष्य की टीका -खंड तृतीय, संपूर्ण,
वि. १९४१, वैशाख कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ३०८, ले.स्थल. राजपुर, प्रले. श्राव. लालचंद पूनमचंद प्राग्वाट; उप. आ. राजेंद्रसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७७१३, १८४४४).
बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. बृहत्कल्पसूत्र-सुखावबोधा टीका, आ. मलयगिरिसूरि ; आ. क्षेमकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-),
प्रतिपूर्ण. बृहत्कल्पसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. बृहत्कल्पसूत्र-नियुक्ति की टीका #, आ. मलयगिरिसूरि ; आ. क्षेमकीर्तिसूरि, सं.,प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति:
(-), प्रतिपूर्ण. बृहत्कल्पसूत्र-नियुक्ति का लघुभाष्य #, ग. संघदासगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. बृहत्कल्पसूत्र-नियुक्ति के लघुभाष्य की टीका #, आ. मलयगिरिसूरि ; आ. क्षेमकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १४वी, ___ आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. बृहत्कल्पसूत्र-लघुभाष्य #, ग. संघदासगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). प्रतिपूर्ण.
बृहत्कल्पसूत्र-भाष्य की टीका, आ. मलयगिरिसूरि ; आ. क्षेमकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६०७६६. (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४८-२०(१ से १७,१९,३२,४३)=२८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१२, ७४३६-३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., बीच-बीच के पाठांश
नहीं है.) ६०७६८. (+#) वाग्भटालंकार सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १५७३, कार्तिक शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. २२, प्रले. मु. ब्रह्महीरा (गुरु
आ. रत्नकीर्तिसूरि); गुपि. आ. रत्नकीर्तिसूरि (गुरु आ. भुवनकीर्ति, सरस्वती गच्छ); आ. भुवनकीर्ति (गुरु आ. सकलकीर्ति भट्टारक, मूलसंघ); आ. सकलकीर्ति भट्टारक (गुरु आ. पद्मनंदि, सरस्वतीगच्छ-मूलसंघ-बलात्कारगण); गृही. श्राव. धनराज ब्रह्मचारी; दत्त. जै.क. रत्नचंद्र भट्टारक, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संवत १६९८ चैत्र वद २ बुधवार को ग्रन्थ अर्पित करने का उल्लेख मिलता है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२९x१३, ८४३२).
वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रियं दिशतु; अंति: सारस्वतध्यायिनः, परिच्छेद-५. वाग्भटालंकार-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: मंत्रानुस्मरणशीलाः, (वि. प्रत की किनारी खंडित होने के
कारण आदिवाक्य अवाच्य है.) ६०७६९. ज्योतिषसार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदे., (२५.५४१२.५, ५४२४).
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: अहँतजिनं नत्वा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
श्लोक-५३ तक लिखा है.) ६०७७०. (#) नारचंद्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४१-२२(१ से १६,२९ से ३४)=१९, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१२.५, १५४३८-४६). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-३० अपूर्ण
से श्लोक-२१६ अपूर्ण तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ ६०७७१. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १८३०, सिद्धभूषरूद्र, चैत्र शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ७६-६५(१ से ३,६ से
१४,२२ से २३,२५ से ७५)=११, ले.स्थल. राधिकापुर, प्रले. मु. दीपचंदजी (गुरु मु. मनसुखरायजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३३).
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: रोषोक्तावु
नतौ नमः, कांड-६, ग्रं. १४५२, (पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., कांड-१ श्लोक-४७ से ७९, कांड-२ श्लोक-२२३ से कांड-३ श्लोक-३६६ अपूर्ण, श्लोक-४०५ अपूर्ण से श्लोक-४२४ व कांड-६ श्लोक-१५३४ अपूर्ण से
है., वि. श्लोकांक मुद्रित पुस्तक के अनुसार उल्लेख किया गया है.) ६०७७२. (+) श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १५४४८-५०).
श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मान पद्धति
श्लोक-१० तक लिखा है) ६०७७६. (+) योगविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८.५४१३, १२४५०).
योगविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, मु. शिवनिधान, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: श्रीहर्षसारवाचकशिष्य; अंति: मे सरीर
पणविया सिद्ध. ६०७७७. (#) श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९६, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२५.५४१२.५, ५४३१-३४).
वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेतु सव्व सिद्धे; अंति: वंदामी जिणे चउवीस, गाथा-५०. वंदित्तुसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: वांदीनइ सर्व अरिहंत; अंति: चउवीस तीर्थंकर प्रतइ, (वि. आदिवाक्य का
पूर्वार्द्ध खंडित है.) ६०७७९. (#) अभिधानचिंतामणि नाममाला सह स्वोपज्ञ टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ., (२४४१३, १५४३६).
अभिधानचिंतामणि नाममाला-स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवृति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य,
वि. १२१६, आदि: धर्मतीर्थकृतां वाचा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "करोति पीडां कामति
क्षेत्रं राशिरांचविरेणवाक्रोडः" पाठ तक लिखा है.) अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति:
(-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., शनिग्रह नाम तक लिखा है.) ६०७८०.(+) अर्थरत्नावली, अपूर्ण, वि. १९४६, भाद्रपद कृष्ण, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३३-७(१ से ७)=२६, ले.स्थल. मुंबई, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१३, १४४४४-५२). अर्थरत्नावली, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: यावच्चंद्रदिवाकरौ, (पू.वि. "अ:
श्रीकृष्णो नो स्माकं सौख्यं ददते" पाठ से है.) ६०७८२. (+) सिद्धांतचंद्रिका की टीका- भ्वादि से कंड्वादि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, प्रले. देवीदीन पाठक,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पुष्पिका अपूर्ण है., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६.५४१४, १०४२८). सिद्धांतचंद्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., गद्य, वि. १७९९, आदि: (-); अंति: सदानंदेन निर्मिता, (प्रतिपूर्ण,
वि. धातुपाठ व किंचित् टिप्पण है.) ६०७८३. पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १८७९, आश्विन अधिकमास शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. उदयपुर, प्रले.पं. धर्मचंद्र (गुरु
आ. कांतिसागरसूरि, विजयगच्छ); गुपि. आ. कांतिसागरसूरि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२४.५४१३, १३४३४).
पाशाकेवली, म. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती; अंति: तस्या पासककेवली, श्लोक-१९६.
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१९२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६०७८४. (+) नाममाला, संपूर्ण, वि. १९५९, फाल्गुन शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. कनैयालाल बुधालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१३, १४४४७).
धनंजयनाममाला, जै.क. धनंजय, सं., पद्य, आदि: तन्नमामि परं ज्योति; अंति: शब्दाः समुत्पीडिताः, श्लोक-२११. ६०७८५. पासाकेवली, पूर्ण, वि. १९४१, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १०-१(१)=९, ले.स्थल. पालि, दे., (२८x१४, ९-११४४०-४२). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: गुरु भक्ति करे सही, श्लोक-१९६, (पू.वि. "ताहरि पणि शत्रु
उपना पणि वलय गया" पाठ से है.) ६०७८६. (+#) ज्योतिषसार संग्रहादि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक
युक्त पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, जैदे., (२९४११.५, १२४४०). १. पे. नाम. नारचंद्र ज्योतिष, पृ. १आ-२७आ, संपूर्ण.
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: रुचिरावासराः संभवंति, श्लोक-२९४. २.पे. नाम. गोधूलिक लग्नविचार, पृ. २८अ-३२अ, संपूर्ण.
सं., प+ग., आदि: नंदक्षणंचैव चैत्र; अंति: सिंहकेये व्ययस्थे. ३. पे. नाम. भुवनदीपक, पृ. ३३अ-३९अ, संपूर्ण..
आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७०. ४. पे. नाम. प्रश्नपद्धति, पृ. ३९अ-४१आ, संपूर्ण..
षट्पंचाशिका, आ. पृथुयशा, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य रविं० वराह; अंति: जातिश्च लग्नपात्, अध्याय-७, श्लोक-५६. ६०७८७. (-) नवस्मरण व लघुशांति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२१, फाल्गुन शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ५१, कुल पे. २, पठ. मु. साधुविजय;
सा. ज्ञानश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. कुल ग्रं. १२५०, दे., (२६.५४११.५, ३४२७). १. पे. नाम. नवस्मरण सह टबार्थ, पृ. १आ-४८अ, संपूर्ण.
नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: जैनं जयति शासनम, स्मरण-९.
नवस्मरण-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: नमो कहतां नमस्कार; अंति: श्रीजीनेश्वरदेवनो, ग्रं. ९००. २.पे. नाम. लघुशांति, पृ. ४८अ-५१आ, संपूर्ण.
आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिशांतिनिशांत; अंति: जयनं जयति शाशनम, श्लोक-१७.
लघुशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीशांतिनाथ शाता; अंति: श्रीजिनेश्वरदेवनो. ६०७८८. अजितसेनकनकावती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१२, १५४३२).
अजितसेनकनकावती रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: वीणापुस्तकधारणी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल
४२ गाथा- ३ अपूर्ण तक है.) ६०७९७. माधवानलकुतुहल चौपाई, संपूर्ण, वि. १८२२, माघ कृष्ण, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्., प्र.ले.श्लो. (११४६) जां लगि तारा द्वीप सदा, जैदे., (२५४१२, १५४६०). माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि: देव सरसति देव सरसति; अंति:
कुशललाभ०पामै नवनिद्ध, गाथा-५५२. ६०७९८. कवित संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. ७८, दे., (२५.५४१२, २२४६५). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण..
रघुवीर प्रसाद, पुहिं., पद्य, आदि: इश्क का करना सहज न; अंति: भवसागर का तरना है, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-निर्गुण इस्क, रघुवीर प्रसाद, पुहिं., पद्य, आदि: तेरे लिये हरदम; अंति: देहु दरस मुरलीवारे, गाथा-४. ३. पे. नाम. राम वनवास वर्णन, पृ. १आ, संपूर्ण.
गोस्वामी तुलसीदास, पुहि., पद्य, आदि: लायो जल झारी सियाजी; अंति: होगी राज की त्यारी, दोहा-४. ४. पे. नाम. कवित्त संग्रह- राम वनवास, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
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गोस्वामी तुलसीदास, पु,ि पद्य, आदि रोवत सारी अवध राम, अंतिः तुलसीहरि के गुण गाए, चौपाई ४७, (वि. कवित्त १० )
५. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद- वैराग, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: कालबली से लड़के, अंति: बनारसी० जो होवे तंत दोहा-४.
६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-मृगतृष्णा, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: वनकाय में मन मृग चार, अंति: जन्में नहीं मरता है, दोहा-८.
७. पे. नाम. औपदेशिक पद- परमार्थ, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद- परमार्थ, जै. क. बनारसीदास, पुहिं, पद्य, आदि जिसने नहीं कुछ दिया, अंति: बनारसी०उठी परभात
१९३
चला, पद-४.
८. पे. नाम. द्रोपदी चीरहरण कवित्त, पृ. ३अ, संपूर्ण.
द्रोपदीसती चीरहरण कवित्त, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि द्रीपदी विपत्ति में, अंतिः बनारसी० की फेरी, दोहा-५.
"
९. पे. नाम औपदेशिक पद- फकीरी, प्र. ३अ- ३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद - फकीरी विषे, जै. क. बनारसीदास पुहिं., पद्य, आदि; मन को मार के बनाया अंति: बनारसी० जिगर समझे, दोहा-८, (वि. कवित्त युगल)
१०. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण.
जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: कुरान की आयतें हम; अंति: बनारसी ० सखून मस्ताना, दोहा - ८. ११. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
जै.. बनारसीदास, पु,ि पद्य, आदिः यह काया है कामधेनुः अंतिः बनारसी नहीं करे खाली, दोहा-५. १२. पे. नाम. रुखमणी विवाह, पृ. ४अ, संपूर्ण.
रुक्मिणी विवाह, शिशुपाल, पुहिं., पद्म, आदि: पांच सात मिल भामणी अंतिः कबके वे सरदार, दोहा-६. १३. पे. नाम. रुखमणी विवाह वर्णन, पृ. ४अ - ५आ, संपूर्ण.
कवित्त संग्रह रुक्मिणी विवाह वर्णन, पुहिं., पद्य, आदि बनडा की अजब बहार, अंतिः पूज खड़ी वरजार, दोहा-१७. १४. पे. नाम. कवित्त संग्रह- कृष्ण रुक्मिणी, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: श्रीपति आवो आवो रे; अंति: जग में विख्यात रे, दोहा-२०.
१५. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६अ ६आ, संपूर्ण
नमिजिन पद, पुहिं, पद्य, आदिः विदेह देश और मिथिला अंतिः राजरमण सब कुछ त्यागी, दोहा-४.
१८. पे नाम. निर्गुण कवित्त, पृ. ७अ ७आ, संपूर्ण
दोहा संग्रह, पुहि., पद्य, आदि कार बड़ो पेशकार को अंतिः जामें चीवीस चकार है.
१६. पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. ६आ, संपूर्ण.
नेमराजिमती पद, पं. कपूरचंद, पुहिं, पद्य, आदि छाई घटा गगन में काली अंतिः कपूरचंद० जाउं बलिहारी, दोहा-६. १७. पे. नाम. नमिराज वर्णन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
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औपदेशिक दोहे, कबीर, पुहिं., पद्य, आदिः यह काया कंचन से बहतर, अंति: कबीर ० क्या लगेगा मेरा, दोहा - २०. १९. पे. नाम औपदेशिक दोहे जीव एवं प्रमाद परिहार, पृ. ७आ, संपूर्ण.
औपदेशिक दोहे - प्रमाद परिहार, कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: एक बूंद ते सब किया; अंति: कबीर० गाफेल अपना हाथ, दोहा-१३.
२०. पे. नाम औपदेशिक दोहे माचा परिहार, पृ. ७आ, संपूर्ण
औपदेशिक पद-माया परिहार, कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: माया माथे सींगडा, अंति: को जाके राम आधार, दोहा-७.
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१९४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २१. पे. नाम. औपदेशिक दोहे- कालनी वातो, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.
औपदेशिक दोहे- कालविषये, कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: मूसा डरो काल से कठिन; अंति: में पला न पकड़े कोय,
दोहा-२९. २२. पे. नाम. भक्ति केवी रीते करशो, प्र. ८अ, संपूर्ण.
औपदेशिक दोहे- भक्तिगर्भित, कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: माला तो कर में फिरे; अंति: हले नहीं जीभ होट, दोहा-२. २३. पे. नाम. साधु कोने केहवा, पृ. ८अ, संपूर्ण.
औपदेशिक दोहे-साधुगुण गर्भित, कबीर, पुहि., पद्य, आदि: केशो कहा बिगाडियो जो; अंति: ऐसा चाहिये जैसा०
होय, दोहा-२०. २४. पे. नाम. साधु थवु कांइ रस्ता मापज्युं नथी, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
औपदेशिक दोहे- साधुता, कबीर, पुहि., पद्य, आदि: जब लग नाता जात का तब; अंति: का संतज पावे नाम, दोहा-४. २५. पे. नाम. कहनी साथे करणी पद, पृ. ८आ, संपूर्ण..
औपदेशिक दोहे- कथनी और करनी, कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: कहना मीठी खांड है; अंति: करनी मत करो के पीछे,
दोहा-१३. २६. पे. नाम. मगजनी पंडिताई विरुद्ध हृदयनी पवित्राई पद, पृ. ८आ, संपूर्ण.
औपदेशिक दोहे- मगज की पंडिताई के विरुद्ध हृदय की पवित्रता, कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: पढी गुणी पाठक भये
__सम; अंति: बिन यूं कहे दास कबीर, दोहा-२. २७. पे. नाम. कृष्ण से पांडवों का प्रश्न, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण.
औपदेशिक दोहे-कृष्ण पांडव प्रश्नोत्तर, पुहि., पद्य, आदि: यह कृष्णा श्रीकृष्ण; अंति: जलद्दगों से था वुआ, दोहा-२५. २८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-शाणी स्त्री, पृ. ९अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-चतुर नारी, दलपतराम, पुहिं., पद्य, आदि: एक घरमांहथी रे घर; अंति: जो रे सीखामण दलपतराम,
दोहा-१४. २९. पे. नाम. सेलडीनी संगति करनारी एरंडी, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-ईख की संगति करने वाली एरंडी, दलपतराम, मा.गु., पद्य, आदि: ओ एरंडी उत्तम संगति;
अंति: दीधी सिखामण दलपतरामे. ३०. पे. नाम. औपदेशिक दोहे- छोटी नदी, पृ. ९आ, संपूर्ण.
औपदेशिक दोहे-छोटी नदी, दलपतराम, मा.गु., पद्य, आदि: ओ छोटी नदी छत पामीने; अंति: विण पर उपगार करे
सही, दोहा-१४. ३१. पे. नाम. वृक्षमहिमा वर्णन, पृ. ९आ, संपूर्ण.
औपदेशिक दोहे- वृक्ष महिमा, दलपतराम, मा.गु., पद्य, आदि: जोओ आछो छोड अनाज तणा; अंति: दीठा नजरे
दलपतरामे, दोहा-१२. ३२. पे. नाम. मकोड़ा कवित्त, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण.
औपदेशिक दोहे-मकोडा, दलपतराम, मा.गु., पद्य, आदि: ओमकोडा हट लेवानो; अंति: दलपतो सीखामण दे छे,
दोहा-१२. ३३. पे. नाम. दरजीनी कातर गजने सोयना गुण दोष, पृ. १०अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दरजी की कैंचीगज वसूई के गुण दोष, मा.गु., पद्य, आदि: सुण दरजीडा कातर गजने; अंति:
अर्थ सिरे अलगाज धरे, दोहा-१५. ३४. पे. नाम. हाथीनी कवित्त, पृ. १०अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-हाथिणी, दलपतराम, मा.गु., पद्य, आदि: हो हाथीणी जाणी मैं; अंति: दिधी ए आशीष
दलपतरामे, गाथा-७. ३५. पे. नाम. कवित्त बादली, पृ. १०अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
१९५ औपदेशिक सज्झाय-बादल, दलपतराम, मा.गु., पद्य, आदि: हारे आव वहाली; अंति: भावी तूं दलपतरामने,
गाथा-१४. ३६. पे. नाम. वाली वादलीरे, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, दलपतराम, मा.गु., पद्य, आदि: दयाथी दे छे जीवन दान; अंति: एम इच्छे दलपतराम, गाथा-१३. ३७. पे. नाम. सेलडी सज्झाय, पृ. १०आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-ईख, दलपतराम, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सेलडी तूंशाणी; अंति: दे छे आशीष दलपतराम,
गाथा-११. ३८. पे. नाम. शांतिनाथजी को हालरियो, पृ. १०आ, संपूर्ण.
शांतिजिन हालरर्दू, मु. चौथमलजी, मा.गु., पद्य, आदि: सर्वार्थसिद्ध थकी; अंति: मनवांछित फल पावे, गाथा-५. ३९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय- दयादान, पृ. १०आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-दया, मा.गु., पद्य, आदि: गरीबो आसरोलेवा; अंति: मास्वार्थ छे ताहरो, गाथा-९. ४०. पे. नाम. औपदेशिक दोहे- काया, पृ. १०आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-काया, पुहिं., पद्य, आदि: मन का इंजन बुद्धि; अंति: की वृथा प्रणाली है, गाथा-१०. ४१. पे. नाम. औपदेशिक दोहे-विभिन्न विषयक, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: बातहि से दशरथ मरे; अंति: से कामधेनु पुष्यरथ, दोहा-२०. ४२. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. ११अ, संपूर्ण.
प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४३. पे. नाम. मनुस्मृति- अध्याय ११ श्लोक-२३३ से२४१, पृ. ११अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं.
मनुस्मृति, ऋ. मनु, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ४४. पे. नाम. मूर्ख लक्षणानि, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-मूर्खलक्षण, सं., पद्य, आदि: मूर्खस्य पंच विघ्नान; अंति: नास्त्यौषधम्, श्लोक-२१. ४५. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. ११आ, संपूर्ण.
औपदेशिक श्लोक संग्रह प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: कोशेषुपंचस्वधिराजमान; अंति: गंगदत्त पुनरेतिकूपम्, श्लोक-६. ४६. पे. नाम. कलियुगाष्टक, पृ. ११आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: यत्राल्पेनापिकालेन; अंति: फणींद्र इव रत्नतः, श्लोक-८. ४७. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोकाः, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: एतत्तु मां दहतियद्; अंति: सद्यः साधुसमागमः, श्लोक-१२,
(वि. भगवद्गीतादि ग्रन्थों से संकलित) ४८. पे. नाम. औपदेशिक कुंडलिया, पृ. १२अ, संपूर्ण.
क. गिरधर, पुहिं., पद्य, आदि: हीरा अपनी खान को बार; अंति: सुरा हेतु हरवाई को, दोहा-११. ४९. पे. नाम. राजाओं का इतिहास कवित्त, पृ. १२अ, संपूर्ण.
औपदेशिक कवित्त संग्रह*, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: पीपल को खेत पार्यो; अंति: कहां लो पुकारुं मैं, (वि. कवित्त-१) ५०. पे. नाम. प्रास्ताविक कवित्त, पृ. १२अ, संपूर्ण.
क. गिरधर, पुहिं., पद्य, आदि: साईं अपने भ्रात को; अंति: राज कलियुग को पायो, दोहा-२. ५१. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १२अ-१३अ, संपूर्ण.
श्राव. गोविंद, पुहि., पद्य, आदि: साध्वी के साथ वैर; अंति: गोविंदगुना सतावे है, सवैया-१७. ५२. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण.
क. गंग, पुहिं., पद्य, आदि: गंग तरंग प्रवाह चलै; अंति: गंग०से भूख है न्यारी, दोहा-१२. ५३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३आ, संपूर्ण.
मु. चौथमलजी, रा., पद्य, आदि: पुन्य गयो पूर्व, अंति: चौथमल० कौन आयो है, दोहा-१.
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१९६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५४. पे. नाम. औपदेशिक पद, प्र. १३आ, संपूर्ण.
पंडित. टोडरमल, पुहिं., पद्य, आदि: नीर बिन कूप कहा तेज; अंति: टोडर० भावे कहो पारसी, दोहा-३. ५५. पे. नाम. औपदेशिक दोहे- पाश्चात्य संस्कृति परिहार, पृ. १३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक दोहा-पाश्चात्य संस्कृति परिहार, मु. गिरधर, पुहि.,रा., पद्य, आदि: कबहु मन रंग तरंग चढे; अंति:
गिरधर० सगो सगा की जड, दोहा-९. ५६. पे. नाम. प्रास्ताविक कवित्त संग्रह, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण.
औपदेशिक कवित्त संग्रह, पुहि.,सं., पद्य, आदि: पत्तनप्रदेशे कुमार; अंति: लटपट्टा अटपट्टा है, दोहा-३, (वि. किंचित
गद्यांश भी है.) ५७. पे. नाम. प्रास्ताविक कवित्त संग्रह, पृ. १४अ-१५आ, संपूर्ण..
औपदेशिक कवित्त संग्रह-विभिन्न विषयक, पुहिं., पद्य, आदि: सीख्यो सब काम धन धाम; अंति: ऐसे डीलन में
आयके, गाथा-४८, (वि. कवि गंग, टोडर, कवि शिवनाथ, मोतीराम, रघुवीर आदि विद्वानों की रचनाओं का संकलन
है.)
५८. पे. नाम. आलसी गजल, पृ. १५आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-प्रमाद परिहार, पुहिं., पद्य, आदि: दुनिया में हाथ पैर; अंति: रंज उठाना नहीं अच्छा, गाथा-४. ५९.पे. नाम. औपदेशिक कवित्त संग्रह, पृ. १५आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-भारत दर्दशा, पुहिं., पद्य, आदि: लूटत है दिन रैन सभी; अंति: रहै न कोई रूठा, गाथा-२९. ६०.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १५आ, संपूर्ण.
मु. बाल मुनि, पुहिं., पद्य, आदि: जियरा मोरा जान काहे; अंति: बाल० समझावन को आया., दोहा-३. ६१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १५आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-संसार मिथ्या, पं. गुणपद्म, पुहिं., पद्य, आदि: कोई कर्म के भेद को; अंति: दुनिया को झूठी जाने,
पद-२. ६२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १५आ, संपूर्ण.
मु. ज्ञान, मा.गु., पद्य, आदि: रेनर जन्म अमोलक पाय; अंति: झे ज्ञान गुरु बतलाया, गाथा-५. ६३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १५आ, संपूर्ण.
सूरदास, पुहि., पद्य, आदि: अपुन यो आपुते; अंति: वटा कहि कोने जकर्यो, दोहा-३. ६४. पे. नाम. श्रीकृष्ण पद, पृ. १५आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: मनमोहन छैल विहारी; अंति: साथी स्वारथिआ संसार, पद-३. ६५. पे. नाम. राम स्तुति, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण.
गोस्वामी तुलसीदास, हिं., पद्य, आदि: श्री रामचंद्र कृपालु; अंति: कामादि खलदलगंजनं, पद-५. ६६. पे. नाम. भरत विलाप, पृ. १६अ, संपूर्ण.
गोस्वामी तुलसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: हमारी मात की करनी; अंति: यही तुलसी विचारी है, दोहा-४. ६७. पे. नाम. भारत दुर्दशा, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण.
मोहन, पुहिं., पद्य, आदि: पाप में धन का लगाना; अंति: मोहन कंगाल से धनी हो, दोहा-३८. ६८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १६आ, संपूर्ण..
मु. हंसराज, पुहिं., पद्य, आदि: जैसे मिले दूध जल यार; अंति: नरनार लुटे घरना घरना, दोहा-७. ६९. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त संग्रह, पृ. १६आ, संपूर्ण.
औपदेशिक कवित्त संग्रह- देशभक्ति, राधेश्याम, पुहिं., पद्य, आदि: उसी का जीवन है धन्य; अंति: को जो टेलवा
हुआ है, गाथा-५०. ७०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १६आ, संपूर्ण.
औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: नवजुवानो तुम कदम आगे; अंति: में आप लाना सीख लो, दोहा-१.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
७१. पे. नाम. औपदेशिक सवैया-छत्रपति शिवाजी, पृ. १६आ, संपूर्ण.
__ पुहिं., पद्य, आदि: कुंभकर्ण असुर औतारी; अंति: सुन्नत होती सबकी, दोहा-३. ७२. पे. नाम. पैगंबर साहेब के फरमान, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण.
___फा.,मा.गु., गद्य, आदि: हजरत अल्ली साहेबे; अंति: मारा जेवूज वहालु छे. ७३. पे. नाम. लुकमान का कौल, पृ. १७अ, संपूर्ण..
औपदेशिक दोहे- लुकमान और कुत्ते, पुहिं., पद्य, आदि: किसी ने यह जाके; अंति: न मरदूद उसको जमाना,
गाथा-१५. ७४. पे. नाम. भजन काया ऊपर, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-काया, पुहिं., पद्य, आदि: माया नदी किनारे काया; अंति: लेता इससे बचना गर है, गाथा-१६. ७५. पे. नाम. गायन मूर्खनारी पर, पृ. १७आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-मूर्खनारी परिहार, भोजाभगत, मा.गु., पद्य, आदि: मूर्ख नारी कुभारजा; अंति: कूतरी कहवाणी रे,
दोहा-५. ७६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १७आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-पाखंडी बाबा परिहार, भोजाभगत, पुहि., पद्य, आदि: जो इस जगत में एवा; अंति: भोजोभगत०मां
जावारे, दोहा-३. ७७. पे. नाम. औपदेशिक दोहे- व्यसन परिहार, पृ. १७आ, संपूर्ण.
कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: अमल गांजो भांग तमाखू; अंति: कबीरा०जम कूटेला झाबो, दोहा-६. ७८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
म., पद्य, आदि: जनम्हणती बाबा बाबा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ६०७९९. (+#) धर्मबुद्धिपापबुद्धि रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-२(१ से २)=१७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १४-१८४३६-३९). पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री रास, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३
गाथा-१० अपूर्ण से ढाल-३६ गाथा-९ तक है.) ६०८१०. (+) प्रबोधपचीसी, ग्यानपचीसी व सुंदरबावनी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-१(१)=९, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद
सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, १२४४१). १.पे. नाम. प्रबोधपचीसी, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८४६, माघ शुक्ल, ५, ले.स्थल. सत्यपुर,
प्रले. पंन्या. भीमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. प्रबोधपच्चीसी, पं. सुंदरदास, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: कवि सुंदर विसतरणा है, गाथा-२७, (पू.वि. गाथा-१३
अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. ज्ञानपच्चीसी, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सूरिनर तिरजग जोन मे; अंति: वनारसी० करन के हेत, गाथा-२५. ३. पे. नाम. सुंदरबावनी, पृ. ४अ-१०आ, संपूर्ण..
अक्षरबावनी, पं. सुंदरदास, पुहिं., पद्य, वि. १८३६, आदि: ॐकार अपार संसार; अंति: प्रणाम सुंदर रची है, गाथा-५७. ६०८१७. औपदेशिक चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(२)=६, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३५).
औपदेशिक चौपाई, क. सारंग, पुहिं., पद्य, आदि: ओंकार अपार अलख मूरति; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., चौपाई-४ अपूर्ण से ११ अपूर्ण तक नहीं है व चौपाई-३७ अपूर्ण तक लिखा है.) ६०८२२. (+) धर्मसागरोपाध्यायोपज्ञ कुलक सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८६-२(८२ से ८३)-८४, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१२.५, ११४२३).
औष्ट्रिकमतोत्सूत्रोद्घाटन कुलक, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, आदि: पणमिय वीरजिणंदं सुरि; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-१६ तक है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
धर्मसागरोपाध्यायोपज्ञ कुलक- टीका, पं. गुणविनय गणि, सं., गद्य, वि. १६६५, आदि: प्रणम्य रम्यशर्माणं, अंतिः (-). (पू.वि. टीका के बीच का व अन्तिम भाग नहीं है.)
६०८३३. (+) वैद्यवल्लभ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७५, माघ कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले. स्थल. जयनगर, प्रले. मु. माणेकचंद्र ऋषि; पठ. मु. किस्तूरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अबरख युक्त पत्र है, पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे., (२५.५x१२, ७४३८-४३).
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वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: सरस्वतीं हृदि, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., विलास ८ तक लिखा है., वि. प्रतिलेखक ने अष्टम विलास लिखकर कृति पूर्ण कर दी है.) वैद्यवल्लभ-बार्थ, रा. गद्य, आदि: सरस्वती माता हृदय, अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६०८३८, (#) नाचंद्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५०-३६ (१ से २९, ३५ से ४१) = १४, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., ( २६१२.५, १५X४४).
"
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. रोगिणां कालतिथि प्रकरण अपूर्ण से ग्रह प्रतिभाव फल अपूर्ण तक है व बीच-बीच के कुछ पाठांश नहीं हैं.)
"
"
६०८४१. (+) सन्निपातकलिका सह टवार्थ, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र. वि. संशोधित. दे. (२५.५५१२, ५X३५). सन्निपातकलिका, अश्विनीकुमार, सं., पद्य, आदि: अम्लस्निग्धोष्ण; अंति: मनः संधिकसर्वग्रसुहा, श्लोक - ८६, संपूर्ण. सन्निपातकलिका टवार्थ, वा. हेमनिधान, पुहिं, गद्य वि. १७३३, आदि: संधिक सन्निपात की अंति (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम गाथा अपूर्ण तक का टबार्थ लिखा है.)
६०८४७, (+) सन्निपातकलिका सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८७३, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले. स्थल, मलसीसर, प्रले. पं. धर्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५x१२.५, ६x२८).
सन्निपातकलिका, अश्विनीकुमार, सं., पद्य, आदिः आम्लस्निग्धोष्ण, अंतिः रिपुवरो रोगजालं तथैव, गाथा-७६. सन्निपातकलिका टवार्थ, वा. हेमनिधान, पुर्हि, गद्य वि. १७३३, आदि: खटाई करि स्निग्ध क० अंतिः हेमनि० सन्निपातकलिका.
"
६०८५४. पुराणवेदादि श्लोकसंग्रह व वैद्यसंजीवनी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९ कुल पे २, जैदे. (२५४११.५, १९४५७). १. पे. नाम. पुराणवेदादि श्लोकसंग्रह, पृ. १अ ७अ, संपूर्ण, वि. १८२३, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, शनिवार, ले. स्थल नाडुलनगर, प्रले. मु. विजय, प्र.ले.पु. सामान्य.
पुराणहुंडी, मा.गु., सं., पद्य, आदिः यो यत्र जायते जंतु अंतिः एक रात्री भोजन कीघई, श्लोक १७५. २. पे. नाम. वैद्यसंजीवनी, पृ. ७आ- ९अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: देशकालवयोवह्नि सात्म; अंति: लज्जा सर्व रेणु पंके, श्लोक-१०१.
६०८६३. सुक्तावली, संपूर्ण, वि. १८७५, फाल्गुन शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. मु. भाणजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X१३, १६५३६).
सूक्तावली, सं., पद्य, आदि: राज्यं निःसचिवं गतः अंतिः सारवासः असुखी च जीव श्लोक-१२६.
६०८७० (+) तंदुलवेयालीय पन्नय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३९, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे., (२७.५X१२.५,
५X३१-३५).
तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा. प+ग, आदि: निज्जरिव जरामरणं; अंतिः कारणं लहइ सिवसुक्खं.
"
६०८७८. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, माघ कृष्ण, ८, जीर्ण, पृ. ६१-११ (१ से ३,६ से ११,१४,२०)=५०, ले. स्थल. जाहनाबाद, प्रले. मु. सामाजी ऋषि पठ सा. भांगा, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन वर्ष सं. १७ लिखा है, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र. ले. लो. (२०६) भग्न पृष्टी कटी ग्रीवा, (१०८४) याद्रसं पुस्तकं द्रष्टा, जैवे. (२७४१२, ६४५६-६२)
.
प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: सरीरधरे भविस्सइति, अध्याय १०, गाथा- १२५०,
ग्रं. १३००, ( पू. वि. अध्याय-२ अपूर्ण से है, किन्तु बीच-बीच के कुछ पाठांश नहीं हैं.) प्रश्नव्याकरणसूत्र - टवार्थ, मा.गु. गद्य, आदि (-); अंति; जाए अनंता सुख पामइ.
"
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
६०८७९. (+) विपाकसूत्र सह टिप्पण, अपूर्ण वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४७-५ (१ से २४ से ६) = ४२ प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२६४१२, १२४३२-३८).
विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अति: (-), (पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., श्रुतस्कंध १ अध्याय १ अपूर्ण से श्रुतस्कंध २ अध्याय ३ अपूर्ण तक है तथा बीच-बीच के कुछ पाठांश भी नहीं हैं.) विपाकसूत्र टिप्पण, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ६०८८० (+) नंदीसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८२५ श्रावण शुक्ल, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. ३९, ले. स्थल, नागोर,
प्रले. सा. खुस्याली आर्या (गुरु सा. अमरांजी आर्या); गुपि. सा. अमरांजी आर्या (गुरु सा. केसर आर्या) सा. केसर आर्या (गुरु सा. बाल्हांजी आर्या) सा. बाल्हांजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८.५४१२, ९-३४४५१-६१ ).
"
नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि जयइ जगजीवजोणीवियाणओ अंति: समणुन्नाई नामाई, सूत्र -५७,
गाथा - ७००.
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नंदीसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः ज० इतिंद्रियविषयकषाय; अंति: अनुज्ञाना नाम जाणवा.
६०८८१. बृहत्कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ३७-३ (१ से २,३३) -३४, पृ. वि. बीच-बीच के पत्र हैं, जैदे., (२८x१२.
"
६X३५-४१).
बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. उद्देश १ सूत्र- १३ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.)
२. पे. नाम. पद्मावती कल्प, पृ. २अ ५अ, संपूर्ण.
सं., प+ग, आदि: ऐं क्लीं ह्रीं नागा, अंतिः मंत्र प्रांतरंजिका, अध्याय-६, श्लोक-७२.
३. पे. नाम पद्मावती कल्प, पृ. ५आ-७अ, संपूर्ण.
६०८८२. (+#) उपासकदशांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ३४-१ (१) = ३३, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५X११, ११४३४-३९).
""
उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पग, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. अध्ययन- १ अपूर्ण से अध्ययन- १०
अपूर्ण तक है.)
६०८८३. पद्मावती पूजा, स्तोत्रादि व पद्मावतीअष्टक की टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०- १ (१) = २९, कुल पे. १४, दे., (२६.५X१२, १४X४६).
१. पे. नाम पद्मावती पूजाविधि, पृ. २अ अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
पद्मावती पूजा व विधि, सं., गद्य, आदि; ओम ह्रीं क्लीं सो; अंतिः ह्रीं महालक्ष्मी नमः, संपूर्ण
सं., गद्य, आदि: हाँ ह्रीँ हूँ, अंति: दक्षिणां दद्यात्.
४. पे. नाम पद्मावती पूजाविधि, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
पद्मावती पूजा, सं., गद्य, आदिः आदौ मंत्र निवेश: ततो, अंतिः दीयते स वशी भवति.
५. पे. नाम पद्मावती कल्प द्वादश यंत्र, पृ. ७आ-८अ संपूर्ण
पद्मावती कल्प द्वादशयंत्र, सं., पद्य, आदि दिक्षुकूटा निचि अंतिः दुष्ट निग्रहः, श्लोक-१२. ६. पे. नाम पद्मावती यंत्रोद्धार, पृ. ८अ ९आ, संपूर्ण.
१९९
सं., गद्य, आदि: षट्कोण मंडलचादौ षट्; अंति: प्रभृति दोषात्रेटना.
७. पे. नाम. पद्मावती पूजनविधि, पृ. ९आ- ११अ, संपूर्ण.
पद्मावतीपूजन विधि, मु. इंद्रनंदि, सं., गद्य, आदिः ॐ नमो भगवते, अंतिः स्वहृदि स्थापयेत्.
८. पे. नाम. रक्त पद्मावती पूजनविधि व मंत्र, पृ. ११अ - १२आ, संपूर्ण.
पद्मावती - रक्तवर्णीय पूजनविधिवृद्ध, सं., गद्य, आदि: पूग ४०० पत्र ४०० अंति: लक्षजापात्सारस्वतं. ९. पे. नाम पद्मावतीदेवी स्तोत्र, प्र. १२ आ. १४अ संपूर्ण.
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२००
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पद्मावतीदेवी चौपाई, आ. जिनप्रभसूरि, अप., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रीजिनशासन अवधारि; अंति: भवण
जिणप्पहसूरि, गाथा-३७. १०. पे. नाम. रक्त पद्मावती कल्प, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण.
भगवती देवी पद्मावती कल्प, सं., गद्य, आदि: ओं ह्रीं क्लीं पद्म; अंति: स्वाहा जाप सहस्र. ११. पे. नाम. पद्मावती पूजन- शैवागमोक्त, पृ. १४आ-१७आ, संपूर्ण.
सं., गद्य, आदि: ततो रक्तपद्मावती १; अंति: देवी पद्मावती नमः. १२. पे. नाम. पद्मावती स्तवन, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण.
पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: स्तुता दानवेंद्रैः, श्लोक-९. १३. पे. नाम. पद्मावती क्षेपक काव्ययंत्र, पृ. १८आ, संपूर्ण.. ___पद्मावती स्तोत्र-क्षेपक, सं., पद्य, आदि: गर्जभीरदगर्भ निर्गत; अंति: रक्ष मां देवि पञ, श्लोक-३. १४. पे. नाम. पद्मावती अष्टक की वृत्ति, पृ. १८आ-३०आ, संपूर्ण.
पद्मावतीदेवी अष्टक-टीका, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनं देवं; अंति: च्छंदसांप्रायः. ६०८८४. (+#) गुणस्थानक्रमारोह सह टीका, संपूर्ण, वि. १८४२, वैशाख शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ३२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५,१२-१५४३५-३९). गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४४७, आदि: अहँ पदं हृदि; अंति: प्रकटित
इत्यर्थः. गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोहहत; अंति: रत्नशेखरसूरिभिः,
श्लोक-१३५. ६०८८५. सम्यक्त्वकौमुदी कथानक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, प्र.वि. द्विपाठ., जैदे., (२७७१३, १३४४१).
सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४५७, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: विपर्ययादिष्यते बंधः,
पद-४४४, ग्रं. १६७५. ६०८८६. (+) श्रीपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. १८८१, माघ शुक्ल, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४४-१५(१ से ९,१७ से २१,३८)=२९,
ले.स्थल. मेडतानगर, प्रले. मु. कर्मचंद ऋषि (पासचंद्रगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२७४१२, १३४३३-३७). श्रीपाल चरित्र, ग. जयकीर्ति, सं., गद्य, वि. १८६८, आदि: (-); अंति: कृतं च जयकीर्तिना, प्रस्ताव-४, (पू.वि. प्रारंभ
व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) ६०८८७. भक्तामर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९३१, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २६, ले.स्थल. सुज्ञानगढ, प्रले. श्राव. चुनीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, १३४३३).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टीका, मु. कनकसागर, सं., गद्य, वि. १७४६, आदि: सरस्वत्या नमस्कृत्य; अंति: कनकसागर०
बुधवासरे. ६०८८८.(+#) विपाकसूत्र, अपूर्ण, वि. १६००, फाल्गुन शुक्ल, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३२-४(१ से २,१२ से १३)=२८,
ले.स्थल. राजपाटिका, प्रले. मु. तेजा (गुरु आ. जिनदत्तसूरि); गुपि.आ. जिनदत्तसूरि; राज्यकालरा. साहिआलम, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल ग्रं. १३१६, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२.५, १३४४०-४६). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: सेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध-२, ग्रं. १२५०,
(पू.वि. प्रारंभ से "विपुलस्सअसण पाणखाइमसाइ" तक व "अभिक्खुणंरमहधाइ महदाइ महराइं" से "तच्चाएपुढवीए उक्कोस सत्तरसा" पाठ तक नहीं है.)
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२०१
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
६०८८९. (+#) पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९१०, कार्तिक कृष्ण, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. २१, ले. स्थल. बीकानेर, प्रले. मु. रिधकरण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२७.५x१२.५, १०X२५-३० ).
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि तित्थंकरे य तित्थे अंतिः तस्स मिच्छामिदुक्कडं. ६०८९०. (+) कल्पसूत्र सह व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११४-९४ (१ से २३.३२ से १०२ ) = २०, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२७४१२, १०२८).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., बीच-बीच के पाठांश हैं.)
1
कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-), पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.
६०८९१. जिनसहस्रनाम स्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. त्रिपाठ., जैदे.,
(२७.५४१२, १४४३३-४४).
जिनसहस्रनाम स्तोत्र, आव आशाधर, सं., पद्म, वि. १२८७, आदि प्रभो भवांगभोगेषु अंतिः (-),
(पू.वि. श्लोक-१२२ तक है.)
जिनसहस्रनाम स्तोत्र - टीका, सं., गद्य, आदि: जिन इति अनेक विषम भव; अंति: (-).
६०८९२. भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३०, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, जीर्ण, पृ. २४, प्रले. मु. रायसुंदर, पठ. मु. तत्त्वसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८x१२, ५X२७-३६).
भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १४बी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे, अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३,
,
3
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गाथा - १४५.
भाष्यत्रय - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांदवा योग्य जे पंच, अंति: छे पीडा रहित छे.
६०८९३. (+) भगवतीसूत्र सह टबार्थ शतक- ३ उद्देश-२ संपूर्ण वि. १९६४ श्रेष्ठ, पृ. २०, ले. स्थल वसो, प्रले. सनाभाई झवेरभाई पटेल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. वे., (२७.५X१२, ५X४४-४७),
"
"
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
भगवतीसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
जैदे. (२६४१२.५, ११४३५).
६०८९४.
(#)
नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-३ (१३ से १४,२०) = १८, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६४११.५, ७४३४).
"
नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, आदिः नमो अरिहंताणं हवइ, अंति: (-), (पू. वि. भक्तामर स्तोत्र
श्लोक-२० अपूर्ण से श्लोक-३६ अपूर्ण तक नहीं है तथा तिजयपहुत्त स्तोत्र गाथा - ९ अपूर्ण तक है., वि. कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं लिखा है तथा तिजयपहुत्त स्तोत्र बृहच्छांति स्तोत्र के बाद है.)
६०८९५. (+) बृहत्पंचनमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २२. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित.,
बृहत्पंचनमस्कार, सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य, अंति: लक्ष्मीर्यस्य तेनेति.
६०८९६. स्नात्रादि विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८५७, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २३ - १ (१) =२२, कुल पे.
३,
ले. स्थल. अजिमगंज, जैवे. (२६.५४१२.५, १६३५-३८).
"
१. पे नाम, स्नात्र विधि, पृ. २अ-८आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
स्नानविधि, मा.गु. सं., पग, आदि (-); अंति: भोजन करावे भक्ति करे, (पू. वि. धूपावली डाल गाधा ८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. छत्रभ्रमण विधि, पृ. ८आ - २३अ, संपूर्ण.
छत्रभ्रमण प्रतिमापूजन स्नात्र विधि, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: हिवै विशेष पर्वादिक; अंति: साहमीनी भक्ति कीजै.
३. पे. नाम. शतौषधि नाम, पृ. २३अ - २३आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: मोरशिखा सहदेवी तुलसी अंतिः कांची मुलं वव सर्षप.
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२०२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६०८९७. (+) नयप्रकाश स्तव सह स्वोपज्ञ वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९३५, श्रावण कृष्ण, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, १२४४४).
नयप्रकाश स्तव, ग. पद्मसागर, सं., पद्य, आदि: तस्मै नमः श्रीजिन; अंति: कृत: पंडितपद्मसागरैः, श्लोक-९. नयप्रकाश स्तव-स्वोपज्ञ वृत्ति, ग. पद्मसागर, सं., गद्य, वि. १६७६, आदि: गंगाप्रवाहा इव वाग्व; अंति: पद्म०
स्वात्मबुद्धये, ग्रं. ७४०. ६०८९८. (+) भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६७, श्रावण कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. २६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, ५४२८). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाह, भाष्य-३,
गाथा-१४५.
भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्तु कहतां वांदी; अंति: बाधा पीडा रहित. ६०८९९. उत्तमकुमार चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७+१(१३)=१८, जैदे., (२७.५४१२, १४४४४).
उत्तमकुमार चरित्र, मु. चारुचंद्र, सं., पद्य, आदि: वंदित्वा स्वगुरुन; अंति: चारुचंद्र०नंदतांचिरं, श्लोक-५७५. ६०९००. (+) सिंदूरप्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१७, वैशाख कृष्ण, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले.स्थल. मकसूदाबाद,
प्रले. मु. अबीरचंद्र ऋषि (गुरु मु. इंद्रचंद्र, पासचंदगच्छ); पठ. श्राव. मेघराज माहसिंघ कोठारी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६.५४१२.५, ६४३८). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२,
श्लोक-१००.
सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिंदूर लाल रंग का; अंति: रचना करतो भयो ६०९०१. (+) ठाणांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४१-१२१(१ से १२१)=२०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४११.५, ७४४५-५२). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. चतुर्थ स्थान, चतुर्दशपूर्वि सूत्र अपूर्ण से षष्ठ
स्थान छद्मस्थकेवलि सूत्र अपूर्ण तक है.)
स्थानांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६०९०२. (+) उववाई सूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २८-९(१ से ८,११)=१९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२,५४४६).
औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. भगवान महावीर की शारीरिक विशिष्टताओं के वर्णन से शुक्ल
____ ध्यान के प्रकारों के वर्णन तक है तथा बीच के पाठ नहीं है.) ६०९०३. (+#) रायपसेणीयसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४८-२९(१ से २२,३५ से ४१)=१९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १५४५१). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., "मणिपेढिया पणत्ता सोलसजोयणाई से
बहुदासीदासगोमहिसग० तत्थ नयरेसु" तक पाठ है.) ६०९०४. पंचसंग्रह की टीका, संपूर्ण, वि. १९३६, लेश्यागुप्तीग्रहशशी, पौष शुक्ल, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. मुंबइ,
प्रले. मु. लक्ष्मीविजय (गुरु आ. शांतिसागरसूरि, विजयगच्छ); गुपि. आ. शांतिसागरसूरि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (११५२) द्यामा भोगसरोवरे सुरसरित्पूरेण पूर्णेस्फुरत्, (११५३) यत्नेन रक्षणीयश्च, दे., (२७.५४१२.५, १२४३६). पंचसंग्रह-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: (-); अंति: स्तान्मंगलमशिश्रियं, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने "तत्रैकोननवतिर्नरकगति" पाठ से लिखा है.) ६०९०५. (+) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, ५४११).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५७
अपूर्ण तक लिखा है.) ६०९०६. षट्पुरुष चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदे., (२७.५४१२.५, १६४५५).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
षट्पुरुष चरित्र, ग. क्षेमंकर, सं., गद्य, आदि: श्रीअर्हतश्चतुस्; अंति: श्रीमत्तीर्थंकरा. ६०९०७. संबोधसत्तरि सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-१(१६)=१६, ले.स्थल. भावनगर, प्रले.पं. उत्तमविजय (गुरु
पं. मेघविजय गणि); गुपि.पं. मेघविजय गणि; पठ. मु. रंगविजय (गुरु पं. केसरविजय); गुपि.पं. केसरविजय; पठ. मु. नेमविजय (गुरु ग. शांतिविजय); गुपि.ग. शांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ४४३५).
संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरु; अंति: जयसेहर नत्थि संदेहो, गाथा-१०५,
(पू.वि. गाथा-९६ अपूर्ण से १०२ अपूर्ण तक नहीं है.)
संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनई; अंति: संदेह नही निःसंदेह. ६०९०८. प्रतिष्ठा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, दे., (२७४१२, ११४३१).
प्रतिष्ठा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: हवे पूर्वोक्त भव्य; अंति: विसर्जन मंत्र. ६०९०९. (+) श्रीपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १५४३१).
श्रीपाल चरित्र, पंन्या. सत्यराज, सं., पद्य, वि. १५१४, आदि: श्रिये श्रीमन्महावीर; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४१२ तक
६०९११. (+) नवतत्त्व, जीवविचार व दंडक स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९०५, श्रावण शुक्ल, १०, बुधवार, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. ३,
ले.स्थल. कलकत्ताबंदर, प्रले.मु. हिंदुमल्ल ऋषि; पठ. मु.खूबचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., ., (२६४१३, ८४३०-३३). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण.
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: सहपरन्नवगा न सेस, गाथा-७७.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *मा.गु., गद्य, आदि: साची वस्तुको स्वरुप; अंति: ठाणा सागै नही चालै. २.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ७आ-११अ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण; अंति:
संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, पुहि., गद्य, आदि: तीन भुवन कै विषै; अंति: ऐसा श्रुतसमुद्र सेती. ३. पे. नाम. दंडक प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ११अ-१५अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ,
गाथा-४०.
दंडक प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करकै ऋषभादिक; अंति: कैवा सै आत्महितार्थ. ६०९१२. (+) नवस्मरण, संपूर्ण, वि. १९०३, वैशाख शुक्ल, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १३, ले.स्थल. अणहिल्लपुरपाटण, प्रले. सिवराम
पानाचंद ठाकोर; लिख. श्राव. दगडु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचासरा पार्श्वजिन प्रसादात्, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२७४१२, १२४३२). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: जैनंजयति शासनम, स्मरण-९,
(अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं लिखा है.) ६०९१३. (+) सेनप्रश्न-उल्लास-४, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र.वि. पत्रांक-१४ 'आ' पर साधु को गच्छ से निष्कासन संबंधी वृत्तांत का उल्लेख है., संशोधित., दे., (२७.५४११.५, ९४२५-३०). प्रश्नोत्तररत्नाकर, गच्छा. सेनसूरि ; मु. शुभविजय, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. जालोरसंघ के प्रश्न
से लिखा है.) ६०९१४. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०१, आषाढ़ कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. १०,
ले.स्थल. मेसाणा नगर, प्रले. पं. सुरेंद्रविजय गणि; पठ. श्रावि. झवेर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमनरंगापार्श्वजिन प्रसादात्., संशोधित., दे., (२६४१२, १३४२८-३०). १.पे. नाम. देवसिराईयप्रतिक्रमण सूत्र, पृ. १आ-९आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: वंदामि जिणे
चउवीसं. २.पे. नाम. महासतामहासती सज्झाय, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण.
भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जसपडहो तिहुयणे सयले, गाथा-१३. ३. पे. नाम. पंचतीर्थ स्तुति, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण.
कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढम; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. ४. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीर; अंति: देहि मे देवि सारम्,
श्लोक-४. ५. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. ११अ, संपूर्ण.
मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. ६. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतांसावधाना, श्लोक-४. ७. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: निवारो संघतणा
निशदिश, गाथा-४. ८. पे. नाम. चतुर्दशी स्तुति, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण.
पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-६. ९. पे. नाम. लघुशांति स्तोत्र, पृ. १२आ-१३आ, संपूर्ण.
लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९. १०. पे. नाम. संथारापोरसीसूत्र, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: इअसमत्तं मए गहिअं, गाथा-७, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथाओं को एक
गाथा गिना है.) ६०९१५. (4) पाक्षिकसूत्र, खामणासूत्र व यवराजमुनि दृष्टांत, संपूर्ण, वि. १९३४, चैत्र कृष्ण, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. १२, कुल
पे. ३, ले.स्थल. जावरा, प्रले. मु. सुरजमल ऋषि; पठ. मु. रामविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१३, १५४३०). १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १अ-११आ, संपूर्ण.
हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. क्षामणकसूत्र, पृ. ११आ-१२आ, संपूर्ण.
हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पियं च मे जंभे; अंति: निथार पारगा होह, आलाप-४. ३. पे. नाम. जवराजमुनीनो दृष्टांत, पृ. १२आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है.
- यवराजर्षि गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अधावसी पधावसी ममं; अंति: दीह पीठाओ महाभयं, गाथा-३. ६०९१६. (+) वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, ५४३३).
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिउ सासयं ठाणं, गाथा-१०४, संपूर्ण. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असार माहे नथी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
अंतिम गाथा का टबार्थ नहीं लिखा है.) ६०९१७. (-) प्रतिक्रमणसूत्रस्तुति-स्तोत्र कुलकादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २२, प्र.वि. अशुद्ध पाठ.,
जैदे., (२७४१२, १४४४१). १.पे. नाम. साधुश्रावक प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: जैन
जयति शासनं. २. पे. नाम. द्वितीया स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण.
बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्निसोवन; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ३. पे. नाम. ग्यानपंचमी स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमा; अंति: सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुक्तियहार सुतार; अंति: सुहाणि कुणेसुसया, गाथा-४. ५. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदिय पाय; अंति: जिनवर मंगलाकर देवियै, गाथा-४. ६. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण..
मा.गु., पद्य, आदि: बाला पणै डावै पाय; अंति: मेलै मुक्ति साथ, गाथा-४. ७. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण.
आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेजमंडण आदि; अंति: निह्नः पाय सेवता, गाथा-४. ८. पे. नाम. पलांकित स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: समुदमुत्तमवस्तु; अंति: जयतु सा जिनशासनदेवता,
श्लोक-४. ९. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहे; अंति: तह संत कल्लाणदाता, गाथा-४. १०. पे. नाम. दीपमालिका स्तुति, प्र. ७अ, संपूर्ण.
दीपावलीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पापायां पुरि चारु; अंति: संस्तौमि वीरं विभुं, श्लोक-१. ११. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने नेमनाथस्तुति नाम दिया है.
मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतक पाडल जाई; अति: माई जो तूंसे अंबाई, गाथा-४. १२. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोकं; अंति: मज्जनशस्तनिजाघः, श्लोक-४. १३. पे. नाम. वीसविहरमान स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण.
विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषय; अंति: जण मनवंछित सारै, गाथा-४. १४. पे. नाम. चैत्रीपुनम स्तुति, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.
५ तीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमुख्य; अंति: ते संतु भद्रंकराः, श्लोक-४. १५. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ८अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: युगादपुरुषंद्राय; अंति: कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. १६. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा-४. १७. पे. नाम. संगीतबद्ध पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: देंद्रे कि धपमप; अंति: दिशतु शासनदेवता,
श्लोक-४. १८. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वली वली हुं ध्या; अंति: कहै जिनलाभसूरींद, गाथा-४. १९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञ ज्योति; अंति: वृद्धि वैदुष्यम्, श्लोक-४.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २०. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ९अ-११अ, संपूर्ण. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: अभय०
विनिवइ आणदिय, कडी-३०. २१. पे. नाम. प्रवज्या कुलक, पृ. ११अ-१२अ, संपूर्ण.
प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संसार विसमसायर भविजल; अंति: तरंति ते भवसलिलरासिं, गाथा-३४. २२. पे. नाम. वंदितुसूत्र, पृ. १२अ-१२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेतु सव्वसिद्धे धम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२८ अपूर्ण तक है.) ६०९१८. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२७४११, ५४३०).
प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर*, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं० जयउ; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "वंदणवत्तियाए" सूत्र तक लिखा है.) ६०९१९. (#) चार्चिक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-३(१ से ३)=१२, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८x१२.५, १३४४३).
चार्चिक, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: सतामुचित एवास्ति, (पू.वि. "कथं प्रत्ययः स्याद्गच्छादीनां परंपरामूलत्वात्" पाठ से
है.)
६०९२०. (+) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११,प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, ११४३७).
श्लोक संग्रह प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दंसणभद्दसनथी निव्वाण; अंति: जेष्ट बंधव जाणिये, (वि. श्लोकों का क्रम
__ अव्यवस्थित है.) ६०९२१. (+) उपदेशचिंतामणि सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२, ११४४७).
उपदेशचिंतामणि, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तित्थयरे भयवंते परमग; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., गाथा-९ तक लिखा है.) उपदेशचिंतामणि-स्वोपज्ञ टीका, आ. जयशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४३६, आदि: प्राचीमेकां पुनानामि; अंति: (-),
(अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-९ की टीका अपूर्ण तक लिखा है.) ६०९२२. (+) लोकनालि प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२७४१२, २-५४३३-३६). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसणं विणा ज; अंति: धम्मकित्ति० इह
भिसं, गाथा-३४.
लोकनालिद्वात्रिंशिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, वि. १७१२, आदि: श्रीमद् विमलनाथस्य; अंति: प्रमिते द्वादशोत्तरे. ६०९२३. ज्ञानपंचमी माहात्म्य, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५.५४१२.५, ५४२७).
वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि:
__ श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८९ अपूर्ण तक है.) ६०९२४. योगशास्त्र- प्रकाश १ से ४, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १७-८(१ से २,५,९ से ११,१४ से १५)=९, जैदे., (२७.५४११, ११-१३४३८-४२). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ व
बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., प्रकाश-१, श्लोक-४६ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ६०९२५. दीपमालिका कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, जैदे., (२७.५४१२, ७X४३).
दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: श्रीवर्द्धमानमांगल्य; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१६२ अपूर्ण तक लिखा है.) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हन बालबोधेना; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
श्लोक-६१ अपूर्ण तक का टबार्थ लिखा है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
६०९२६. (+) सूत्रकृतांगसूत्र सह टबार्थ - अध्ययन ६, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १० + १ (६) = ११, अन्य. मु. गांगजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७X१२, ३-५X३०-४०).
सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पग, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र- बार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण,
६०९२७. () अजितशांति, बृहत्शांति व सकलार्हत्स्तोत्र, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ११. कुल पे. ३, प्रले. मु. विद्याविजय पठ. श्रावि. दीवालीबाई जीवा संघवी, अन्य. मु. लक्ष्मीविजय; जसराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२७१३, ८-१०x२२-३१).
१. पे नाम, अजितशांति स्तव, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण.
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आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि अजियं जियसव्वभयं संत, अंति: जिणवयणे आवरं कुणह, गाधा-४०.
२. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, पृ. ७अ - ९आ, संपूर्ण, ले. स्थल. इलोल, पे. वि. श्रीऋषभदेवजी प्रसादात्
सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैन जयति शासनम्, (वि. विद्याविजयजी के द्वारा जसराजजी को दीक्षा दिए जाने का उल्लेख है.)
पे, नाम, सकलाईत स्तोत्र. पू. १०अ ११आ, संपूर्ण
हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठान, अंति: भावतोर्हतं नमामि, श्लोक-३२.
"
६०९२८. (+) वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२१ आश्विन शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ९, ले. स्थल. राधनपुर, प्र.पं. कुशलविजय पठ श्रावि. धनबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जै, (२७.५४११.५, ६x४५). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, गाथा- १०४. वैराग्यशतक - टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: संसार असारमांहे नथी; अंतिः शाश्वतु सुख प्रते.
२०७
',
६०९२९. (+*) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११. पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे. (२६४१२, ६-८४३७-५२).
उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-), (पू.वि. आणंद श्रावक के द्वारा संलेखणा व्रत स्वीकार करने के वर्णन तक है.)
उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेण कालि चोथा; अंति: (-).
६०९३०. प्रतिष्ठाकल्प, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, दे., (२७१२.५, १५x५३).
जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, आ. रत्नशेखरसूरि, मा.गु. सं., गद्य, आदिः श्रीपार्श्वेशो विभा अंतिः १०८ वार स्मर्यते. ६०९३२. (४) निरयावलिकासूत्रगत कल्पिकासूत्र, अपूर्ण, वि. २०बी, जीर्ण, पृ. ११-२ (२ से ३ ) - ९, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२६.५११.५, ६३७-४०).
""
१२४४४).
१. पे नाम, चिंतामणिकल्प, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.
आ. धर्मघोषसूरि, सं., पद्य, आदि: किंचिद् गुरूणां वदन; अंति: चिंतामणी जगत्प्रभोः, श्लोक-४५.
२. पे. नाम. चिंतामणि संप्रदाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
सं., गद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं अहे अंति लेखिन्याः कथिताविधिः,
३. पे. नाम. भयहरस्तोत्र मंत्राम्नाय पृ. ५आ-७अ संपूर्ण
कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के कुछ पाठांश नहीं हैं.) ६०९३३. (+) वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८२, माघ शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ९, ले. स्थल. वीसलनगर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीपास प्रसादात् पठनार्थे का नाम अस्पष्ट है. मात्र 'झवेरी' लिखा है. संशोधित, जैवे. (२८.५x१२.५, १०x३७). महावीरजिन स्तवन- दीपावलीपर्व निर्वाणमहिमा, मु. गुणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रमणसंघतिलकोपमं; अंतिः श्रीगुणहर्ष वधामण, डाल- १०, गाधा- १२२.
""
६०९३४. (+) चिंतामणिकल्प स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे ८, प्र. वि. संशोधित. दे. (२७४१२.५,
,
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भयहर स्तोत्र मंत्राम्नाय, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: जयसाली गभीरश्च; अंति: च आदेशः प्राप्यते. ४. पे. नाम. कल्पद्रुम मंत्राम्नाय, पृ. ७अ, संपूर्ण.
सं., गद्य, आदि: कल्पद्रुम मंत्ररुचेव; अंति: धनधान्यादि लाभः. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-स्तंभनतीर्थ, आ. तरुणप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीस्तंभनस्तंभन; अंति: याचितं परिजुतः,
श्लोक-११. ६.पे. नाम. पार्श्वप्रभु स्तव, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. रत्नकीर्ति, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पासनाहं विसहरव; अंति: रणं संथवणं पासनाहस्स, गाथा-७. ७. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ८अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. कमलप्रभ, प्रा., पद्य, आदि: जस्स फणिंद फणो होई; अंति: कमलप्पह गुरु पसायाओ, गाथा-७. ८.पे. नाम. चिंतामणि विशेष यंत्राम्नाय, पृ. ८अ-११आ, संपूर्ण.
चिंतामणिबृहत्कल्प विशेषाम्नाय, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम श्रीपार्श्वनाथ; अंति: सिद्ध मनोवंछित थाय. ६०९३५. (+) इकवीसठाणा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. मु. हरजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, ५४३३). २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया; अंति: स साहारणा भणीया,
गाथा-६६. ६०९३६. (+) पाक्षिकसूत्र, पाक्षिकखामणा व छींक विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुलपे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, ९४३७). १.पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १अ-९अ, संपूर्ण..
हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. खामणासुत्त, पृ. ९अ-१०अ, संपूर्ण.
क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: नित्थारग पारगा होह. ३. पे. नाम. छींक विचार, पृ. १०आ, संपूर्ण.
___ संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पाखी पडिक्कमणा छीके; अंति: क्रिया पुरि करइ. ६०९३७. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७८२, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, जीर्ण, पृ. १२-२(१ से २)=१०,
ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. पं. मोहनविजय (गुरु ग. जसविजय पंडित); गुपि.ग. जसविजय पंडित (गुरु पं. रत्नविजय गणि); पं. रत्नविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, ३४३६-३८). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४,
(पू.वि. श्लोक-९ अपूर्ण से है.)
कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पामे निश्चयस्यु सही. ६०९३८. नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-६(४ से ९)=१०, प्र.वि. प्रतिलेखक ने प्रतनाम सप्तस्मरण दिया है, परंतु यह नवस्मरण है., जैदे., (२७.५४१२, १०४२८). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: जैनं जयति शासनम्, स्मरण-९,
(पू.वि. स्मरण-४ की गाथा-१४ अपूर्ण से स्मरण-८ की गाथा-४ अपूर्ण तक नहीं हैं.) ६०९३९. (+) संयमश्रेणीविचार सहटबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद
सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४१२, ३४३०). १.पे. नाम. संयमश्रेणीविचार सह टबार्थ, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण, वि. १९०६, भाद्रपद कृष्ण, ११, प्रले. श्राव. डुंगरजी,
प्र.ले.पु. सामान्य.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
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संयमश्रेणिविचार स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरुना, अंतिः ध्यानमा घ्यायो रे, ढाल - २, गाथा - २१.
संयमश्रेणिविचार स्तवन - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ऐंद्रवृंदनतं नत्वा; अंति: हेतु छई ते भणी.
२. पे. नाम. संयमश्रेणिविचार का बालावबोध, पृ. ८- ९आ, संपूर्ण.
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संयमश्रेणिविचार स्तवन- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१) सच्चामि वुड्डिणं, (२) सर्व जघन्य संजमस्थान; अंतिः अंतरमुहुर्त थाइ
६०९४०. (+) प्रतिक्रमणसूत्र व स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ६, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२७X१३.५, २१x६७).
१. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण.
साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., सं., प+ग, आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंतिः वंदामि जिणे चडवीसं.
२. पे. नाम. थंभनपार्श्व स्तोत्र, पृ. ५अ- ६अ, संपूर्ण.
जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख, अंतिः अभय०
3
.
विन्निवह आनंदिय गाथा- ३०.
३. पे, नाम, सप्तस्मरण, पृ. ६अ-८आ, संपूर्ण
सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि अजिअं जिअ सव्वभयं, अंति: (-), स्मरण- ७, (वि. सप्तम स्मरण का मात्र प्रारंभिक अंश 'उवसग्गहरं पासं०' लिखा है.)
४. पे. नाम. लघुशांति स्तोत्र, पृ. ८आ- ९अ, संपूर्ण.
लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शांति शांतिनिशांत अंतिः सूरिः श्रीमानदेवश्च श्लोक-१७. ५. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ९अ -१०अ, संपूर्ण.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्म, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि, अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४.
६. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १०अ १०आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंति: (-), (पू. वि. गाथा ३७ तक है.) ६०९४१. (+) चौवीसदंडकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १०, ले. स्थल. वडगाम, प्रले. उगरचंद हरचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५X१२.५, ३x४०).
दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि नमिठं चउवीसजिणे तस्स, अंतिः विनत्ति अप्पहिया,
गाथा-४४.
दंडक प्रकरण - टबार्थ, मु. यशसोम- शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउं कहतां मन वचन; अंति: आपणा जीवने हितकारी.
ו
६०९४२. (+) कल्पसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८ - १ (१) = ७, प्र. वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., द्विपाठ- टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. दे. (२६४१२.५, १०x४०-४५%
"
कल्पसूत्र- टीका सं., गद्य, आदि: (-): अंति: (-). (पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, सोमिल
ब्राह्मण के द्वारा किए गए यज्ञ के वर्णन से है व ग्यारह गणधरों की दीक्षा तक का वर्णन है.)
६०९४३. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४७-४१ (१ से ४१) = ६, पू.वि. बीच के पत्र हैं.,
वे. (२७.५x१२.५, ६४३३).
"
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-) अंति: (-), (पू.वि. भगवान महावीर के कालधर्म से उनकी
मोक्षप्राप्ति तक का वर्णन है.)
कल्पसूत्र - टवार्थ " मा.गु., गद्य, आदि: (-) अंति: (-). *, कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि (-): अंति: (-).
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२१०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६०९४४. (+) योगसार, संपूर्ण, वि. १९६५, कार्तिक शुक्ल, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. कोडाय, प्रले. श्राव. भीमसी पुनसी वणिक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, १४४५३).
योगसार, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: प्राप्नोति परमं पदम्, प्रस्ताव-५, श्लोक-२०६. ६०९४५. (+-) धर्मकल्पद्रुम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६,प्र.वि. अशुद्ध पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७.५४१२.५, ११४३५-४०). धर्मकल्पद्रुम, पंडित. उदयधर्म, सं., पद्य, आदि: श्रियं दिशतु वो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
श्लोक-११२ अपूर्ण तक लिखा है.) ६०९४६. (+#) गांगेयभंग प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७.५४१२.५, १७X४१).
गांगेयभंग प्रकरण, मु. पद्मविजय, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महावीरं गंगेय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ तक है.)
गांगेयभंग प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमत् शांतिजिनाधीश; अंति: (-). ६०९४७. (+) संबोधसत्तरी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९-२(१,८)=७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१३, ५४३३-३७). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जयसेहर नत्थि संदेहो, गाथा-७२, (पू.वि. गाथा-१ से
५ अपूर्ण तक व ६३ अपूर्ण से ७२ अपूर्ण तक नहीं है.)
संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: श्रीरत्नशेखरसूरि. ६०९४८. (+) चतु:शरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१५, श्रावण कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२, ५४४१). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: पुणेहि विणा न पामंति,
गाथा-६४, ग्रं. ८०.
चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावद्ययोग क० पाप; अंति: विना पांमवो दोहिलो, ग्रं. २७५. ६०९४९. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्रले. मु. सत्यमूर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१२.५, ४४३२). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: शांतिसूरि०
समुद्दाओ, गाथा-५१.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: तीन भुवन स्वर्ग; अंति: रूपीया समुद्र हुती. ६०९५०. (-) अंगविद्यादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ७, प्रले. मोहन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे.,
(२७४१२.५, १३४४६-५८). १. पे. नाम. अंगविद्या, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
क्र. नारद मुनि, सं., पद्य, आदि: अंगविद्यां प्रविक्ष; अंति: लति प्रोदिते नारदेवः, श्लोक-१८. २. पे. नाम. ज्योतिषीय प्रश्नोत्तरी, पृ. २अ-४अ, संपूर्ण.
प्रा.,सं., गद्य, आदि: वारपृच्छकदि ग्यानम्; अंति: वद्धमाणे जिणे दिट्ठ. ३. पे. नाम. त्रिषष्टिशलाकापुरुषनिवद्धा विचार स्वाध्याय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण, प्रले. मु. मोहन, प्र.ले.पु. सामान्य. त्रिषष्टिशलाकापुरुष विचार स्वाध्याय, आ. विजयरत्नसूरि, प्रा., पद्य, आदि: पणम्य पढमजिणंदरिसह; अंति: लहेइ
सो सासयं सुक्खं, गाथा-२२. ४. पे. नाम. साधुनां चतुर्दशोपकरणानि, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
साधुसाध्वी १४ उपकरण, प्रा., पद्य, आदि: पत्तं पत्ताबंधो पायठ; अंति: वितहारणे अइचारो, गाथा-४. ५. पे. नाम. द्रौपदी प्रश्नोत्तराणि, पृ. ५अ, संपूर्ण.
द्रौपदी पंचप्रश्नोत्तराणि, सं., पद्य, आदि: महाभारते शास्त्रे; अंति: न पुंसा वामलोचना, श्लोक-८. ६. पे. नाम. प्रहेलिका दोहा संग्रह, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
२११ प्रहेलिका दोहा, पुहिं., पद्य, आदि: बरसइ कांबल भीजइ पाणी; अंति: तलार बांधी मुकइ, दोहा-१०. ७. पे. नाम. धान्यव्यापार अतिचार, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
___सं., गद्य, आदि: यथाप्रायः सर्वाणि; अंति: महालाभत्वात्. ६०९५१. धार्मिक श्लोकसंग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-३(१ से ३)=७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., ., (२७.५४१२.५, १०x२८-३०).
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३६ अपूर्ण से श्लोक- १५६ तक है.) ६०९५२. (4) पर्युषणाष्टाह्निका व अट्ठाई पर्व व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश
खंडित है, जैदे., (२७.५४१३, १६४३७). १.पे. नाम. पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान प्रथम, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, आ. लक्ष्मीसूरि, सं., गद्य, वी. १६६९, आदि: सामायिकप्रमुखशिक्षाव; अंति: (-),
प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. अट्ठाई विवरण, पृ. ५अ-८अ, संपूर्ण.
अट्ठाईपर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: सामाइक व्रतना धारक; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
माहेश्वरी नामक नगर वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ६०९५३. उत्तराध्ययनसूत्र- अध्ययन ३६, संपूर्ण, वि. १८७५, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. सा. वंदना (गुरु सा. संदुराजी); गुपि.सा. संदुराजी (गुरु सा. चमना आर्याजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१२, १९४४८).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सम्मए त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण. ६०९५४. भाष्यत्रय सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-८(१ से ८)=६, दे., (२७४१२, ४४१६-३०).
भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., चौत्यवंदन भाष्य
गाथा-४६ से गुरुवंदन भाष्य गाथा-१३ तक है.) भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्रथम भाष्य गाथा- ४८ तक का
टबार्थ लिखा है.) ६०९५५. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४९६-४९०(१ से ४९०)=६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८x१३, ६४३५).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२० गाथा-२ अपूर्ण से __अध्ययन-२१ गाथा-११ तक है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६०९५६. (+) उपधान विधि व वीसस्थानक आलापक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, ले.स्थल. मुंबई, प्रले. वल्लभ
लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, १२४४६). १. पे. नाम. उपधानतप विधि, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण.
प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तत्र प्रथम द्वितीयो; अति: (-). २. पे. नाम. वीसस्थानक आलापक, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
२० स्थानकतप आलापक, प्रा., गद्य, आदि: इच्छकारि भगवन् पसाय; अंति: नित्थारगपारगा होह. ६०९५७. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ९-१(२)=८, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,
प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५,७४५५).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२
___ गाथा-४ अपूर्ण तक व अध्ययन-२ गाथा-१३ अपूर्ण से उद्देशक-५ गाथा-४२ अपूर्ण तक है.) दशवकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ध० श्रीजिणधर्मरुप; अंति: (-).
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२१२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६०९५८. लोकनालिद्वात्रिंशिका सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९३०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. नारायण व्यास; पठ. आ. शांतिसागरसूरि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८x१२.५, २-४४४०-४५). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसणं विणा जं; अंति: जहा भमह न इह
भिसं, गाथा-३२.
लोकनालिद्वात्रिंशिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा वीरं विशेषज्ञ; अंति: हाथइ राखी विचारिवो. ६०९५९. घंटाकर्ण कल्प यंत्रमंत्र सहित, संपूर्ण, वि. १९७८, पौष शुक्ल, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. जयगोपाल पुरोहित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. यंत्र सहित, दे., (२६.५४१३, १३४३८).
घंटाकर्ण कल्प, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रणम्य गिरिजाकांत; अंति: भूतादि भय नाशयति. ६०९६०. (+) शोभन स्तुति, संपूर्ण, वि. १७९६, पौष कृष्ण, ३, रविवार, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. वणथली, प्रले. मु. ऋद्धिविजय (गुरु
ग. जीवविजय); गुपि.ग. जीवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्. अंतिम पृष्ठ पर कोई कृति लिखकर मिटाई हुई है, संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५४४०-४३).
स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४,
__ श्लोक-९६. ६०९६१. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, जैदे., (२७४१२, ४४३६).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,
अध्ययन-१ मात्र है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, मु. रत्नसिंह-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीमत्पार्श्वजिनं, (२)उत्तर प्रधान जे अध्य; अंति:
(-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ६०९६२. (+) पर्यंताराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७१५, कार्तिक कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ७, प्रले. मु. प्रेमचंद (गुरु ग. लाभचंद,
तपागच्छ); गुपि.ग. लाभचंद (तपागच्छ); पठ. श्रावि. कनका, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७.५४१२, ६४३५). पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: सोम० ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०,
ग्रं. २४५.
पर्यंताराधना-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनई; अंति: शाश्वता सुख प्रते. ६०९६३. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१२, ९४२८).
प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: इच्छामि खमा० वंदिउं; अंति: (-),
(पू.वि. पोषधव्रत अपूर्ण तक है.) ६०९६४. होलिका कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६५, कार्तिक शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. महाजनटोली, प्रले.ऋ. लालमण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, ६४२९-३१).
होलिकापर्व कथा, सं., पद्य, आदि: ऋषभस्वामिनं वंदे; अंति: यतो धर्मस्ततो जयः, श्लोक-६५.
होलिकापर्व कथा-टबार्थ, पुहिं., गद्य, आदि: ऋषभस्वामी तिनकु वंदु; अंति: जिहां धर्म तिहां जय. ६०९६५. (#) नवपद आराधन विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३७, चैत्र कृष्ण, ९, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. थीरपुर,
प्रले. श्राव. साहाजी; पठ. मु. लालचंद (गुरु मु. विजयचंद); गुपि. मु. विजयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १२४३०). १. पे. नाम. ओली खमासमण विधि, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. ___ नवपद आराधन, मा.गु., गद्य, आदि: पहेले पद नमो अरिहंता; अंति: वरसी प्रमुख तप करे. २. पे. नाम. नवपदविधि, प्र. ४अ-६अ, संपूर्ण.
नवपद आराधन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम आसो चइत्रनी; अंति: इम सर्व ठेकाणे कहीए. ६०९६६. (+) स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३-२५(१ से २५)=८, कुल पे. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय
दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२,१६४४८-५२).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
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१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र नवग्रहगर्भित, पृ. २६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
पार्श्वजिन स्तोत्र नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा. पद्य वि. २४वी, आदि (-); अंति: जिणप्पहसूरिन पीडति गाथा - १०, ( पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण से है.)
२. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. २६अ - २७आ, संपूर्ण.
प्रा. पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा ४९.
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३. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. २७आ-२८आ, संपूर्ण.
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः शांतिसूरि० समुदाओ, गाथा ५१.
1
४. पे. नाम. दंडकसूत्र, पृ. २८आ-२९आ, संपूर्ण.
दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा. पद्य वि. १५७९, आदि नमिठं चठवीसजिणे तस्स अंतिः विन्नत्ति अप्पहिया,
"
गाथा - ३९.
५. पे. नाम. सिंदूरप्रकरण, पृ. २९आ-३३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं. पद्य वि. १३वी आदि सिंदूरप्रकरस्तपः: अंति: (-) (पू. वि. गाथा ९२ अपूर्ण तक
""
है.)
६०९६७ (१) विवाहपन्नति, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७-११ (१ से ११) = ६. पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे. (२७४११, ७४३८-४३).
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शतक-१ उद्देशक- २ अपूर्ण है.) ६०९६८. (+) श्रावकाराधना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्र. वि. संशोधित - पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४X११.५,
११४३४).
२१३
श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य वि. १६६७, आदि: श्रीसर्वशं प्रभु, अंति: मुनिषडरसचंद्रवर्षे, अधिकार - ५, ग्रं. १६६.
६०९६९. (+) उत्तराध्यवनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ६-१ (१) ५. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५x११.५, ६X३६-३९).
गाथा ४०.
दंडक प्रकरण-वार्थ, पुहिं. गद्य, आदि; नमस्कार करके चउवीस अंतिः आत्माके हितके वास्ते.
२. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ४अ-८आ, संपूर्ण.
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., अध्ययन-१ गाथा ३ अपूर्ण से है व अध्ययन- २ का सूत्र - १ अपूर्ण तक लिखा है.)
3
उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ * मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६०९७०. (#) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६X१२, ७X२७).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, श्लोक-३२ अपूर्ण तक लिखा है.)
"
६०९७१. (+) उपसर्गहर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र. वि. संशोधित. दे. (२७४१२.५, १४४४२). उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पास पास अंति: भवे भवे पास जिणचंद,
गाथा-५.
उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ५ की पार्श्वदेवीय टीका, ग. द्विजपार्श्वदेव, सं., गद्य, आदि: धरणेंद्रं नमस्कृत्य अंति मिथ्यादुः कृतमिति
६०९७२. (+) दंडक प्रकरण व जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, प्रले. आ. अमृतचंद्रसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६.५४१३.५, ७३४).
""
"
१. पे. नाम. दंडक प्रकरण सह टवार्थ, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण.
दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ,
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२१४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति:
संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, पुहिं., गद्य, आदि: त्रिभुवन मे दीपक; अंति: ऐसा श्रुतसमुद्रने. ६०९७३. (+) नवतत्त्व व अभक्ष्य विचार, संपूर्ण, वि. १८९९, फाल्गुन शुक्ल, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २,
ले.स्थल. जोजावर, प्रले. मु. गणेशदास ऋषि; पठ. मु. पुनमचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१३, ९-११४२२-४०). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: सहपरभवगा नसेसटुं, गाथा-७७. २. पे. नाम. अभक्ष्य विचार, पृ. ६आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "पल्लको कोमल
विलया" पाठ तक लिखा है.) ६०९७४. ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. मु. जगचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१३, ९४२२-२६).
ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलिक्ष; अंति: लभ्यते पदमव्ययम,
श्लोक-९४. ६०९७५. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-१(१)=८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १७४४२-४६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ गाथा-२१ अपूर्ण से
अध्ययन-१२ गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ६०९७६. (+#) सुभाषित संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-१(३)=७, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १५४४२-४६). सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दानं सुपात्रे विशुद; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४५ अपूर्ण तक
व श्लोक-६२ अपूर्ण से १६८ तक है.) ६०९७७. (+) पर्यंताराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९५, पौष शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. मेसाणा, प्रले. पं. सुरेंद्रविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, ७४४४).
पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: सोम० ते सासयं सुक्खं, गाथा-६८.
पर्यंताराधना-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करिने; अंति: जीव शाश्वता सुख पामे. ६०९७८. (+) मलधारीगच्छ सूरिमंत्र विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७७१३, १६x४५). सूरिमंत्र विचार- मलधारीगच्छ, सं., गद्य, आदि: तत्र च दश वक्तव्यता; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., अधिकार-५ अपूर्ण तक लिखा है.) ६०९७९. (+#) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७-१२(१ से ११,१५)=५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१२, १६४२७).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. विनयसमाधि अध्ययन अपूर्ण
६०९८०. (+) मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८x१३, १५४४९).
मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदि: प्रणम्य ऋषभदेवं; अंति: नामु एकार विधाकै: ये,
श्लोक-१९५. ६०९८१. (+) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं..प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ६४४२-४४).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (१)नमो अरिहंताणं० तेणं, (२)तेणं कालेणं० आमलकप्प; अंति: (-),
___ (पू.वि. आमलकप्पा नगरी में सूर्याभदेव द्वारा भगवान महावीरस्वामी के वंदन करने के प्रसंग तक का पाठांश है.)
राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंति: (-). ६०९८२. (+) समवायांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१-३६(१ से ३६)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११.५, ७४४३-४६). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रकीर्णक समवाय पंचमांग विवरण अपूर्ण
से चरणकरण निरूपण अपूर्ण तक है.)
समवायांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ६०९८३. (+) भावनावेल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. चतुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १५४४१-४५). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पास जिणेसर पाय नमी; अंति: भणी जेसलमेर
मझार, ढाल-१३, गाथा-१२८. ६०९८४. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०५-१००(१ से १००)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, ४४२७).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१६ गाथा-१३ अपूर्ण से
__ अध्ययन-१८ गाथा-४ तक है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६०९८५. (+#) दशाश्रुतस्कंधसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ७-२(१ से २)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं..प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२६४१२, ६४३५-४०).
दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. दशा-१ अपूर्ण से दशा-३ अपूर्ण तक
है.)
दशाश्रुतस्कंधसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६०९८६. (+) वीतराग स्तवन व वीरजिन स्तुति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद
सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, ५४४५). १. पे. नाम. वीतराग स्तवन सह टबार्थ, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण.
रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्कर प्रार्थये, श्लोक-२५.
रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रेयः कल्याण अनइ; अंति: बीज हु प्रार्थं छु. २. पे. नाम. वीरजिन स्तुति सह टबार्थ, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सर्वकार्येषु सिद्धं, श्लोक-४.
पाक्षिक स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: स्नात न्हवराव्यो; अंति: सिद्धि प्रतई दियो. ६०९८७. (+) दशवैकालिकसूत्र सहटबार्थ- अध्ययन १ से ३, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, ४४३५-३७).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: ध० धर्म म० मंगलिक; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६०९८८. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ५४३१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र
नहीं हैं., अध्ययन- ४ अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: धम्मो० दुर्गति पडता; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६०९८९. (+) विक्रमराजा कथा, संपूर्ण, वि. १९४६, आश्विन शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. मकसुदाबाद अजीमगंज, प्रले. मु. हीरचंद्र ऋषि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१५.५, १५४३६).
विक्रमकुमार कथा जीवदयोपरि-अनुवाद, पुहि., गद्य, आदि: जीवदया के पालने से; अंति: सुख प्राप्त होते हैं. ६०९९०. (+) दीपमालिका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२, ९४२८).
दीपावलीपर्व व्याख्यान, पा. उमेदचंद्र, सं., गद्य, वि. १८९६, आदि: श्रीनेमीशं जिनं; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., भगवान महावीरस्वामी के चातुर्मासस्थल वर्णन प्रसंग अपूर्ण तक लिखा है.) ६०९९१. (+) अष्टकप्रकरण सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८४, प्र.वि. त्रिपाठ-द्विपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७.५४१३, १३४५३).
अष्टकप्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: यस्य संक्लेशजननो; अंति: मभिधातुं न शक्यते, अष्टक-३२. अष्टकप्रकरण-वृत्ति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., गद्य, वि. १०८०, आदि: आविष्कृताशेषपदार्थसा; अंति: हरिभद्रसूरेरिति,
ग्रं. ३३७०. ६०९९२. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११९-७६(१ से ७६)=४३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ४४३६).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. व्याख्यान-२ अपूर्ण है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अति: (-). ६०९९३. (+#) रायपसेणीयसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ८४४६-५०). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहताण० तेण; अंति: (-), (पू.वि. राजाप्रदेशी द्वारा दान देने के प्रसंग तक का
पाठांश है.)
राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: तेणइ कालि चुथा आराभई; अंति: (-). ६०९९४. (+#) सूत्रकृतांगसूत्र सह टबार्थ- श्रुतस्कंध १, संपूर्ण, वि. १७०३, फाल्गुन शुक्ल, ६, जीर्ण, पृ. ७४+२(२८ से २९)-७६,
प्रले. उपा. कर्मसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक २८ की संख्या तीन बार लिखी हुई है, पत्रांक २९ को भी काल्पनिक बढते पत्र की संख्या के रूप में ली गई है, टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२७.५४११.५, ५४३०-३४).
सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज; अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीआचारांग० छकाय; अंति: (-), प्रतिपूर्ण.. ६०९९५. (+) सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र, संपूर्ण, वि. १९३५, श्रावण कृष्ण, १४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ७०+१(५)=७१, प्रले. श्राव. डाह्याभाई
भूपतराम साठोदरा; अन्य. श्राव. लालचंद पूनमचंद प्राग्वाट; श्रावि. तुलसी पूनमचंद प्राग्वाट; श्राव. जवेरचंद सेठ; श्राव. जेठाभाई; आ. राजेंद्रसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वि.सं. १९४१ वैशाख कृष्णपक्ष दशमी के दिन आ. श्रीराजेंद्रसूरि के उपदेश से लालचंद्र पूनमचंद्र ने इस प्रत को राजपुर के भांडागार में रखवाया, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. २२२१, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (११०२) बद्ध मुष्टि कटि ग्रीवा, दे., (२६.५४१२, ११४५०-५३).
सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरि० तेणं० मिथिल; अंति: सोक्खुप्पाए सदापाए, प्राभृत-२०, ग्रं. २२२१. ६०९९६. (+) यतिदिनचर्या सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९५७, आषाढ़ कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. ६८, ले.स्थल. राजनगर, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., दे., (२७४१२, २-४४४८). यतिदिनचर्या, आ. भावदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वीरं नमिऊण जिणंसुआण; अंति: भावदेव०थोवमइजणजोग्गा,
गाथा-१५४.
यतिदिनचर्या-अवचूरि, मु. मतिसागर, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य जगदानंद; अंति: ता स्तोकमतियतियोग्या. ६०९९७. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ+व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६८-१(१)=६७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ.,
जैदे., (२७४१२, ५४३९-४७).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं..
व्याख्यान-५ अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: वर्द्धमानं जिन; अंति: (-),
पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ६०९९८. (+) अंतगडदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६०, ले.स्थल. जालणापुर,
प्रले.मु. केशवजी ऋषि; पठ. श्राव. माणेकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७.५४१२, ६४३६). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेण० चंपा०; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं,
अध्याय-९२, ग्रं. ८९९.
अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणे काले चोथा आराने; अंति: विस्तारए वाचना जाणवी. ६०९९९. (+) ठाणांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५९, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ३६००, जैदे., (२७४११.५, १८४६३).
स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउस तेणं भग; अंति: अणंता पण्णत्ता, स्थान-१०,
सूत्र-७८३, ग्रं. ३६००. ६१०००. (+#) क्षेत्रसमास सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८६८, चैत्र कृष्ण, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५४, ले.स्थल. लक्ष्मणापुरी,
प्रले. मु. मुक्तेंदु ऋषि; लिख. मु. नेणचंद्र ऋषि (गुरु आ. कांतिसागरसूरि, विजयराजगच्छ बृहत्शाखा); गुपि. आ. कांतिसागरसूरि (गुरु आ. महेंद्रसागरसूरि, विजयराजगच्छ बृहत्शाखा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, १५४३८). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपट्ठिय; अंति: कुसलरंगमयं
पसिद्धं, अधिकार-६, गाथा-२६३. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध, मु. उदयसागर , मा.गु., गद्य, वि. १६७६, आदि: निश्शेषज्ञानविज्ञान; अंति:
___मंगलस्वरूपे कह्यो छे. ६१००१. (+#) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ६४२७). पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि: स्मृत्वा पार्श्व; अंति: परंपरा करगामिनि भवति,
श्लोक-६२४.
पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: समरिने श्रीपार्श्व; अंति: परंपरा हाथे आवता होय. ६१००३. (+) अष्टाह्निकामहोत्सव ग्रंथ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९७४, आषाढ़ शुक्ल, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४९, पठ. य. बापुलाल
(देवसूरगच्छ); अन्य. पं. मोहनविजय (गुरु ग. जसविजय पंडित); गुपि.ग. जसविजय पंडित (गुरु पं. रत्नविजय गणि); पं. रत्नविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६.५४१२.५, ५४३६).
पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि: स्मृत्वा पार्श्व; अंति: परंपरा करगामिनि भवति, ___ श्लोक-६२४.
पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: भव्य जीवरूप कमलने; अंति: प्राप्त थाय छे. ६१००४. (+) पाक्षिक व क्षामणकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६२, आषाढ़ शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ४८, कुल पे. २,
प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, ४४२७). १.पे. नाम. पाक्षिकसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-४६अ, संपूर्ण.
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति.
पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकर प्रते वांदउ; अंति: तीर्थकर०वाणी प्रकासी. २. पे. नाम. पाक्षिक खामणा सह टबार्थ, पृ. ४६अ-४८आ, संपूर्ण.
क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: पारगा होह ए गुरुवचन, आलाप-४. क्षामणकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छु छुवाछु; अंति: सिक्षाभूत जाणवा.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६१००५. (+) बृहत्संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६२-१६(३,६ से ९,११ से १२,१५ से
१६,१९ से २१,२९,३५,४०,४४)+२(२२,२७)=४८,प्र.वि. यंत्र सहित., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२, ३-६४३०-४०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं
व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बीच-बीच के पाठांश नहीं है व गाथा-३०२ अपूर्ण तक लिखा है.) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *मा.गु., गद्य, आदि: नमी वांदीने अरित अरि; अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.
बृहत्संग्रहणी-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६१००६. (#) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५२-५(४१,४६ से ४७,४९ से ५०)=४७, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १६x४८-५२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ से अध्ययन-३२
गाथा-४५ अपूर्ण तक, अध्ययन-३२ गाथा-७४ अपूर्ण से अध्ययन-३५ गाथा-११ अपूर्ण, अध्ययन-३६ गाथा-६८
अपूर्ण से गाथा-१०४ व गाथा-१८१ अपूर्ण से गाथा-२६५ अपूर्ण तक है.) ६१००७. (#) पंचसंग्रह सह मलयगिरीया टीका-उद्वर्तनापवर्तना से सप्ततिका संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६७,
प्र.वि. प्रत्येक प्रकरण के अलग-अलग क्रम में पत्रांक तथा अलग-अलग प्रतिलेखकों द्वारा लिखे गये हैं. अतः सभी पत्रों को क्रमशः गिना गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२.५, १२-१६४३७-४६). पंचसंग्रह, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
अपवर्तनापवर्तना प्रकरण गाथा-४ से सप्ततिका संग्रह अपूर्ण तक लिखा है.)
पंचसंग्रह-टीका, आ. मलयगिरिसूरि, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६१००८. (-) भैरवपद्मावती कल्प, पद्मावती आराधना, मंत्रयंत्रादि विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९५७, माघ शुक्ल, १०, मंगलवार,
मध्यम, पृ. ४५, कुल पे. १३, ले.स्थल. नागोर, प्रले. किशनकरण मुथा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२७४१२, १५४४५). १.पे. नाम. पद्मावतीकल्प, पृ. १आ-१४अ, संपूर्ण. __ भैरवपद्मावती कल्प, आ. मल्लिषेण, सं., पद्य, आदि: कमठोपसर्गदलन; अंति: भैरवपद्मावतीकल्पः, परिच्छेद-१०,
श्लोक-४००, (वि. यंत्र सहित.) २. पे. नाम. पद्मावती कल्प, पृ. १४अ-१७आ, संपूर्ण.
सं., प+ग., आदि: श्रीमद्गीर्वाणेत्या; अंति: मंत्र प्रांतरंजिका, अध्याय-६, श्लोक-७२, (वि. जप-अनुष्ठान विधि सहित.) ३. पे. नाम. भैरवपद्मावती कल्प व्याख्यारूप अनुष्ठानविधि, पृ. १७आ-२४अ, संपूर्ण. भैरवपद्मावती कल्प-टीका का संक्षेपरूप पद्मावती अनुष्ठान विधि, सं., गद्य, आदि: तत्रादौ स्नात्वा; अंति:
लक्षजापात्सारस्वतम्. ४. पे. नाम. पद्मावतिदेवी चतुष्पदिका, पृ. २४अ-२५अ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी चौपाई, आ. जिनप्रभसूरि, अप., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिनशासन अवधारि करेवि; अंति: भवण
जिणप्पहसूरि, गाथा-३७. ५. पे. नाम. रक्तपद्मावती कल्प, पृ. २५आ, संपूर्ण.
पद्मावती कल्प-रक्त, सं., गद्य, आदि: ओं ह्रीं क्लीं पद्म; अंति: पंचातयो देयोः. ६. पे. नाम. पद्मावती मंत्र, पृ. २५आ, संपूर्ण.
पद्मावतीदेवी मंत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं एह सक्ती हस; अंति: स्वाहा जाप सहस्र१६. ७. पे. नाम. पद्मावतीपूजन विधि, पृ. २५आ-२८आ, संपूर्ण.
पद्मावतीदेवी पूजन कल्प, सं., गद्य, आदि: अत्र पद्मावती पूजने; अंति: योगिन्यस्ता नमाम्यहम. ८. पे. नाम. पद्मावती स्तवन, पृ. २८आ-२९अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
२१९ पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: स्तुता दानवेंद्रैः, श्लोक-८. ९. पे. नाम. पद्मावती क्षेपककाव्य, पृ. २९अ, संपूर्ण.
पद्मावती स्तोत्र-क्षेपक, सं., पद्य, आदि: गर्जन्नीरदगर्भनिर्गत; अंति: रक्ष मां देवि पद्ये, श्लोक-३. १०. पे. नाम. पद्मावत्यष्टक की टीका, प्र. २९अ-३९अ, संपूर्ण..
पद्मावतीदेवी अष्टक-टीका, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनं देवं; अंति: च्छंदसांप्रायः, ग्रं. ५२२. ११. पे. नाम. मायाबीजफलानुष्ठान विधि, पृ. ३९अ-४४आ, संपूर्ण.
मायाबीज विधि, सं., गद्य, आदि: विधिना ह्रींकार; अंति: विद्वेषणस्तंभादिषु, (वि. यंत्र सहित.) १२. पे. नाम. अट्टेमट्टेकल्प स्तवन, पृ. ४४आ, संपूर्ण... पार्श्वजिन स्तव-अट्टेमट्टेमंत्राम्नाय गर्भित, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवते श्रीपार; अंति: शुभगतामपि वांछितानि,
श्लोक-९. १३. पे. नाम. अट्टेमट्टेयंत्राराधन विधि, पृ. ४४आ-४५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-अट्टेमट्टेमंत्राम्नाय गर्भित-मंत्रसाधन विधि, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: नमो भगवते श्रीपार्श; अंति:
सन्मुखं पीडा स्यात्. ६१००९. (+#) आचारांगसूत्र, प्रदेशी प्रश्न व नरकगति विचार, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३९, कुल पे. ३, प्र.वि. मुखपत्र पर
कोई अज्ञात ग्रंथ का श्लोक-३१ से ३५ है तथा अंतिम पत्र पर दिशादि यंत्र उल्लिखित है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १२४२९-३६). १.पे. नाम. आचारांगसूत्र-प्रथमश्रुतस्कंध, पृ. १आ-३९अ, संपूर्ण.
आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. प्रदेशी प्रश्न, पृ. ३९अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है.
प्रा., गद्य, आदि: अजयसुरीकंता १ तह; अंति: अयभारोराय संबोही ११. ३. पे. नाम. नरकगतिविचार गाथा, पृ. ३९अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है.
प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: नरयगई पडिहत्थकए तह; अंति: अंधला करणहार सुजाण, गाथा-३. ६१०१०. (+) षोडशक सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., दे., (२७४१३, १७X४५-५९).
षोडशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनं वीर; अंति: ननु हारिभद्रमिदम्, अध्याय-१६,
श्लोक-२१७. षोडशक प्रकरण-सुगमार्थकल्पना वृत्ति, आ. यशोभद्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११वी, आदि: अमृतमिवामृतमनघं जगाद;
अंति: मंडलभास्वरं स्थानम्, प्रकरण-१६, ग्रं. १५००. ६१०११. गौतमपृच्छा प्रकरण सह टीका व कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६, दे., (२७.५४१२.५, १५४३३).
गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण तित्थनाहं जाणं; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४७ तक
लिखा है.) गौतमपृच्छा-टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, वि. १७३८, आदि: वीरजिनं प्रणम्यादौ; अंति: (-), पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण. गौतमपृच्छा-कथा, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, आदि: एकस्मिन् ग्रामे एको; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
ब्रह्मदत्तकथानक तक लिखा है.) ६१०१२. (+#) भुवनभानुकेवलि चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३०, बुधवार, मध्यम, पृ. ४९, ले.स्थल. अजीमगंज, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १५४५४).
भुवनभानुकेवली चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., गद्य, आदि: सिरिरिसहपह पणमिय; अंति: हेमायरिय० लिहियं
भवई.
६१०१३. (+#) आवश्यकसूत्र मूल, नियुक्ति व भाष्य की संयुक्त अवचूर्णि, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३५, पू.वि. अंत के पत्र
नहीं हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, २८४८०-८५).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आवश्यकसूत्र-अवचूर्णि #, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, वि. १४४०, आदि: प्रारभ्यते श्री; अंति: (-),
(पू.वि. पारिष्ठापनिकानियुक्ति प्रतीक गाथा-९५ तक है.) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की अवचूर्णि #, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, वि. १४४०, आदि: (-); अंति: (-).
आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की अवचूर्णि #, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६१०१४. दशवैकालिकसूत्र सह अन्वय व अन्वयार्थ, संपूर्ण, वि. १९९१, वैशाख शुक्ल, ७, शनिवार, मध्यम, पृ. ३५, ले.स्थल. नागोर, प्रले. गोकलदास वोरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (६३६) यादृशं पुस्तके दृष्टा, दे., (२६.५४१२, २१x६७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: आगमं गइ त्ति बेमि,
अध्ययन-१०. दशवैकालिकसूत्र-अन्वय, प्रा., गद्य, आदि: अहिंसा संजमो तवो: अंति: मंगई उवेइ तिबेमि.
दशवैकालिकसूत्र-अन्वय का अन्वयार्थ, हिं., गद्य, आदि: प्राण व्यपरोपणका; अंति: ही मैने तुझे कहा है. ६१०१५. (-) स्तुति स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९५८, चैत्र कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ३३, कुल पे. ३२, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे.,
(२७४१२.५, १३४३६). १.पे. नाम. लघुसहस्रनाम स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.
जिनसहस्रनाम लघुस्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमस्त्रैलोक्यनाथाय; अंति: मुच्यते नात्र संशयः, श्लोक-४१. २. पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण..
आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षर संलक्ष्य; अंति: लभ्यते पदमुत्तमम्, श्लोक-६३. ३. पे. नाम. जिनपंजर स्तोत्र, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण.
आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अह; अंति: सः कमलप्रभाख्यः, श्लोक-२५. ४. पे. नाम. सप्तस्मरण खरतरगच्छीय, पृ. ५आ-९अ, संपूर्ण. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: उल्लासिक्कमनखनिग्गयप; अंति: नमामि साहम्मिया
तेवि, (प्रतिपूर्ण, वि. बृहद् अजितशांति व नमिऊण स्तोत्र नहीं है.) ५. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. ९अ-१०आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: कनककांतिधनुशतपंचकोच; अंति: युपरमं परमं परमंबिका,
श्लोक-२९. ६. पे. नाम. स्थंभनक तीर्थराज पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १०आ-१३अ, संपूर्ण. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: अभय०
विनिवइ आणंदिय, गाथा-३०. ७. पे. नाम. युगाधिदेव महिम्न स्तोत्र, पृ. १३अ-१५आ, संपूर्ण. आदिजिन महिम्न स्तोत्र, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: महिम्नः पारं ते परम; अंति: ब्रह्मैक तेजोमयी,
श्लोक-३८. ८. पे. नाम. ग्रहशांति स्तोत्र, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण.
आ. भद्रबाहस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिरुदीरिता. श्लोक-११. ९.पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पृ. १६अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: सरस्वतीं नमस्यामि; अंति: करिष्यामि न संशयः, श्लोक-७. १०.पे. नाम. गौतमाष्टक, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण.
गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिं वसु; अंति: लभते नितरां क्रमेण, श्लोक-९. ११. पे. नाम. बृहन्नमस्कार, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण.
वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमेष्ठिनमस्कार; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. १२.पे. नाम. चिंतामणी पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
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पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु लोक-११.
१३. पे. नाम जिनसहस्रनाम, पृ. १७आ २०अ, संपूर्ण.
शक्रस्तव - अर्हन्नामसहस्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग, आदिः ॐ नमोर्हते भगवते, अंतिः प्रपेदे संपदां पदम्.
१४. पे. नाम. ज्वालामालिनीदेवी स्तोत्र, पृ. २० आ - २१आ, संपूर्ण.
ज्वालामालिनीदेवी स्तोत्र-सवीज, सं., गद्य, आदिः ॐ नमो भगवते श्रीचंद, अंति: ज्ञापयति स्वाहा.
,
१५. पे नाम. पार्श्वजिन अष्टक, पृ. २९आ-२२अ संपूर्ण.
पार्श्वजिन अष्टक - महामंत्रगर्भित, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्देवेंद्रवृंदा, अंतिः तस्येष्टसिद्धिः, श्लोक - ९. १६. पे. नाम. सिद्धसारस्वत स्तव, पृ. २२अ - २३अ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: व्याप्तानंतसमस्तलोक, अंतिः भवत्युत्तम संपदः, लोक- ९.
१७. पे नाम, जैनरक्षा स्तोत्र, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण.
जिनरक्षा स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीजिनं भक्तितो; अंति: संपदश्च पदे पदे, श्लोक-१८.
१८. पे. नाम. नवपद स्वरूप, पृ. २३-२४आ, संपूर्ण.
नवपदस्वरूप दर्शन, प्रा., पद्य, आदि: जिअंतरंगारि जणे, अंतिः चराय केवलज्ञानदायकाय गाथा - ९. १९. पे. नाम. गौतम स्तवन, पृ. २४-२५आ, संपूर्ण.
गौतमस्वामी स्तव, आ. वज्रस्वामि, सं., पद्य, आदिः स्वर्णाष्टाग्रसहस्र अंतिः श्रेयांसि भूवांसि नः श्लोक-११. २०. पे. नाम. सहस्रफणा पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २५-२७अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र - सहस्रफणी, उपा. भक्तिलाभ, सं., पद्य, आदि: ध्यात्वा सद्गुरु पाद अंति: नंदोदयः स्फूर्जतात्, लोक-१६.
२१. पे. नाम. सारस्वत स्तोत्र, पृ. २७अ - २८अ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, आदि: कंदात्कुंडलिनित्वदिय; अंति: तस्य वाचां विशेषः, श्लोक-१२. २२. पे नाम, अकलंक स्तोत्र, पृ. २८अ २८आ, संपूर्ण.
अकलंकाष्टक स्तोत्र, आ. अकलंकदेव, सं., पद्य, आदि: त्रैलोक्यं सकलं; अंति: सूक्ष्मः शिवः, शिवः, श्लोक-१६.
२३. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा अष्टक, पृ. २८आ- २९अ, संपूर्ण.
अष्टप्रकारी पूजा, सं., पद्य, आदि: स्वर्वासिवासे सुतरां अंतिः मोक्षं विरहाद्भवस्य श्लोक ९.
२४. पे नाम. नंदीवरतीर्थ स्तोत्र, पृ. २९ अ २९आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: सुमेरुशृंगे कृत जैन, अंतिः कल्याणभुजो भवति, श्लोक ९.
२५. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि स्तुति, पृ. २९आ, संपूर्ण.
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प्रा., पद्य, आदि: णमिण असुरसुरगरूल, अति: उवज्झाय सव्वसाहुय, गाथा- १.
२६. पे. नाम. उपसर्गहर स्तोत्र, पृ. २९आ - ३० अ, संपूर्ण.
उवसग्गाहर स्तोत्र - गाथा ९, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि उवसग्गहरं पास पास अंतिः भवे भवे पास जिणचंद,
गाथा - ९.
२७. पे. नाम. पार्श्वजिन बीजमंत्र, पृ. ३०अ, संपूर्ण.
१८ अक्षरी नमिऊणबीज मंत्र, प्रा. सं., गद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं नमिऊण अंतिः मंतं ह्रीं श्रीं नमः
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२८. पे. नाम पद्मावती स्तोत्र, पृ. ३० अ-३२अ संपूर्ण
पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र, अंतिः स्तुता दानवेंद्रैः, श्लोक-२७.
२९. पे नाम, घंटाकर्ण स्तोत्र, पृ. ३२अ-३२आ, संपूर्ण
घंटाकर्ण महावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: नमोस्तु ते स्वाहा, श्लोक-४, (वि. यंत्र सहित.)
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३०. पे. नाम. घंटाकर्ण कल्प, पृ. ३२-३३अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: एमंत्र त्रिकालगुणी अंतिः चोरासी जातना वाय जाई.
३१. पे. नाम. लक्ष्मी स्तोत्र, पृ. ३३अ - ३३आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र- लक्ष्मी, मु. पद्मप्रभदेव, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीर्महस्तुल्य; अंतिः स्तोत्रं जगन्मंगलम्, श्लोक-९. ३२. पे. नाम. कुलकोडिमान गाथा, पृ. ३३आ, संपूर्ण.
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प्रा., पद्य, आदि: एगा कोडाकोडी सनाणवज, अंतिः कुलकोडीणं सुणेयवा, गाथा-१. ६१०१६ (+) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण वि. १६०१ फाल्गुन शुक्र १२, सोमवार, मध्यम, पृ. ३३, प्रले. सा. रतना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे., (२७.५x१२, १२x२२).
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंतिः अपुणागमं गइ तिबेमि, अध्ययन - १०.
१-६X३३-३७).
१. पे. नाम. साधुपाक्षिकसूत्र सह अवचूरि, पृ. १आ- २९अ, संपूर्ण.
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि: तित्यंकरे अतित्थे अंतिः जेसिं सुअसायरे भत्ति. पाक्षिकसूत्र अवचूरि, सं., गद्य, आदि: तीर्थंकरांचशब्दावत, अंतिः कृतं मे दुष्कृतमस्तु.
६१०१८. पाक्षिक व पाक्षिकखामणा सूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३०, कुल पे. २, प्र. वि. त्रिपाठ, वे. (२६४१२.५,
""
-
२. पे नाम, पाक्षिकक्षामणासूत्र सह अवचूरि पृ. २९-३०आ, संपूर्ण.
क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पिवं अंतिः नित्धारण पारगा होह, आलाप-४.
क्षामणकसूत्र अवचूरि, सं., गद्य, आदिः यथा राजानं पुष्पमाण, अंति: यूतमित्याशीर्वचनं
६१०१९. साधुप्रतिक्रमण सूत्र व कल्पवृक्ष दशकार्यनाम, संपूर्ण वि. १९६२ ज्येष्ठ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. २८. कुल पे. २, ले. स्थल. नवावास, प्रले. चकुभाई गोपालदास, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२.५, ३-१३x२६-३६). १. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमण सह टबार्थ, पृ. १आ-२८अ, संपूर्ण, वि. १९६२, ज्येष्ठ कृष्ण, ११.
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पगाम सिज्झाए निगाम: अंतिः वंदामि जिणे चडवीस, सूत्र - २१. पगामसज्झायसूत्र - टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १७४९, आदि: (१) एँ नत्वा पार्श्वनाथ, अतिहि, अंति: वेगलो करवाने अर्थे.
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(२) प्रकासक०
२. पे. नाम. दशकल्पवृक्ष सह टबार्थ, पृ. २८अ २८आ, संपूर्ण.
१० कल्पवृक्षनाम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: तेसिमत्तंग १ भिंगा २ अंति: कप्पदुम० दसविहा दंति, गाथा-२. १० कल्पवृक्षनाम गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मितगनामा भ्रंगनामे, अंतिः ए दश प्रकारे आपे. ६१०२०. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३८-१२ (१ से ४,१४ से १६, ३० से ३४) = २६, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५.५X११.५, ७४३३). उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- २ गाथा १ अपूर्ण से अध्ययन- ६ गाथा-७ अपूर्ण तक, अध्ययन-८ गाथा-६ अपूर्ण से अध्ययन-१२ गाथा-४३ अपूर्ण तक व अध्ययन १४ गाथा - २१ अपूर्ण से अध्ययन- १६ प्रारंभिकसूत्र अपूर्ण तक है.)
.
उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ * मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
*,
६१०२१, (4) रूपसेन कथानक, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २६-१ ( २ ) = २५ प्रले. पं. सदासमर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२७.५x१२.५, १४४५१).
रूपसेनकनकावती चरित्र चतुर्थव्रतपालने आ जिनसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीमंतं विदुरं शांत, अंतिः सुकृताय कृता कथा, श्लोक-२२४, ग्रं. १५३० (पू. वि. पुण्यबीज वर्णन अपूर्ण से शीतजलानदी पूर्वप्रसंग तक नहीं है.) ६१०२२. महावलमलयसुंदरी चरित्र, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. २४, प्र. वि. द्विपाठ. दे. (२७१२.५, १०X३५-४०). महाबलमलयासुंदरी चरित्र, सं., गद्य, आदिः यन्मनोरथशतैरगोचर, अंतिः द्वर्षशते याते समजनि
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
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६१०२३. (+#) निरयावलिकादिपंचोपांग सूत्र सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३, कुल पे. ५, अन्य. मु. प्रागजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२८x११.५, १५४४२-४५). १. पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह टिप्पण, पृ. १आ - ९अ, संपूर्ण.
कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंतिः अवमठ्ठे पण्णत्ते, अध्ययन- १०.
कल्पिकासूत्र - टिप्पण, मा.गु. सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-).
२. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र सह टिप्पण, पृ. ९अ - १० अ, संपूर्ण.
कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०: अंतिः महाविदेहे सिज्झीहिति अध्ययन १०. कल्पावतंसिकासूत्र - टिप्पण, सं., मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
३. पे नाम. पुष्पिकासूत्र सह टिप्पण, पृ. १०अ १९अ, संपूर्ण.
पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि जति णं भंते समणेणं०; अंति: चेइवाई जहा संगहणीए अध्ययन - १०.
पुष्पिकासूत्र - टिप्पण, मा.गु. सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-).
४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह टिप्पण, पृ. १९अ-२० आ, संपूर्ण.
पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि जइ णं भंते समणेणं०; अंति: वासे सिज्झिहिंति, अध्ययन- १०. पुष्पचूलिकासूत्र - टिप्पण, मा.गु. सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-).
५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टिप्पण, पृ. २० आ - २३आ, संपूर्ण.
वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते० पंचमस्स; अंति: बारस्स उद्देसगा, अध्ययन- १२. वृष्णिदशासूत्र - टिप्पण *, सं., मा.गु., गद्य, आदि (-); अति: (-).
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६१०२४. पर्युषणचिंतामणि का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९५८, ज्येष्ठ शुक्ल ९, शनिवार, मध्यम, पृ. २०-१० (१,७ से १५)=१०, ले. स्थल. कडी, प्रले. पं. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २६१२, १९x४९).
पर्युषणाचिंतामणी प्रकरण- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंतिः कर्तानो आशीर्वाद छे, पू. वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं.
६१०२५. (+#) पर्यूषणाद्यष्टाह्निका व्याख्यान व मेरुत्रयोदशी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८९०, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, रविवार, मध्यम, पृ. २१, कुल पे. २. ले. स्थल मकसूदाबाद, प्रले. पं. उद्योतविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. सुविधिनाथ प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२.५, १३-१५४२७-३५).
,
१. पे नाम. पर्युषणाद्यष्टाह्निका व्याख्यान, पृ. १आ- १६आ, संपूर्ण
अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीशं शांतिकर्त्ता, अंति: पद्यबंध
विलोक्य तत्.
२. पे. नाम. मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, पृ. १६ आ-२१आ, संपूर्ण.
उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: मारुदेवं जिनं नत्वा, अंतिः शिष्यैरामोदतस्त्वदः. ६१०२६. (+) अणुत्तरोववाइसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२१ चैत्र कृष्ण, १२, शुक्रवार, जीर्ण, पृ. २१, ले. स्थल. राजपुरनगर, प्रले. श्राव. लखमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीआदीश्वरजी प्रसादात् टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १०००, दे.. (२७.५X१२.५, ५X३०).
',
अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स: अंतिः अणुत्तरोववाई दसाणं, अध्याय-३३, ग्रं. १९२.
अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालने विषे ते; अंतिः धर्मकथा णे० जांणवा. ६१०२७. संग्रहणीसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३१-१० (१ से १०) २१, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. यंत्र - कोष्ठक सहित., त्रिपाठ., जैदे., ( २६.५X११.५, १-५X४७-५१).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा- ८२ अपूर्ण से गाथा २७४ अपूर्ण
1
तक है.)
बृहत्संग्रहणी- बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६१०२८.(+) शीलोपदेशमाला सह शीलतरंगिणीवृत्ति व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२.५, १४४४५). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबंभयारि नेमि; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३० तक लिखा है.) शीलोपदेशमाला-शीलतरंगिणी वृत्ति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., गद्य, आदि: (१)यस्योपदेशसमये दशनांश, (२)इह
हि प्रकरणकारः; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. शीलोपदेशमाला-कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: जंबूद्वीपाभिधो द्वीप; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., श्रेणिकराजा दृष्टांत श्लोक-६६ अपूर्ण तक लिखा है.) ६१०२९. गौतमीय काव्य, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३१-११(१ से ११)=२०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२७.५४१३, ६४३२). गौतमीय काव्य, पा. रूपचंद्र गणि, सं., पद्य, वि. १८०७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-२ श्लोक-३२ अपूर्ण से
सर्ग-६ श्लोक-३८ अपूर्ण तक है.) ६१०३०. (+) जंबूचरित्र, संपूर्ण, वि. १८९८, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, रविवार, मध्यम, पृ. २०, ले.स्थल. मीरजापुर, प्रले. मु. फतैचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीचंद्राप्रभुजीतीर्थसहाय्येन., संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १५४४३)...
जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० रायगिहे; अंति: से आराहगा भणिया, उद्देशक-२१. ६१०३१. (4) जयतिहुयण स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२.५, ९४२६). जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि,प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तियणवरकप्परुक्ख; अंति: अभय०
विनिवइ आणंदिय, गाथा-३०.
जयतिहुअण स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: अत्रायं वृद्धसंप्रदा; अंति: त्रिलोकश्लाघितः, ग्रं. २५०. ६१०३२. पंचनिग्रंथी प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १७, ले.स्थल. सुरत, प्रले. वल्लभ जोषी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ७८०, दे., (२७४१२, ४४३०). भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा पंचनिग्रंथी प्रकरण, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११२८, आदि: नमिऊण
महावीर भव्व; अति: रइया भावत्थसरणत्थं, गाथा-१०८, (वि. १९७४, वैशाख कृष्ण, १) पंचनिग्रंथीप्रकरण-टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, वि. १८वी, आदि: नमस्कार करीने; अंति:
संभारवानइ अर्थइ, ग्रं. ३५५, (वि. १९७४, वैशाख कृष्ण, २) ६१०३३. आचारांगसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. वस्तुतः प्रतिलेखक ने पत्रांक-२ से लिखना प्रारंभ किया है., दे., (२६.५४१२.५, ६४३६).
आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२ उद्देश-३
अपूर्ण तक है.) ६१०३४. (+#) सिद्धचक्रआराधन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १३४३६). नवपद आराधन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: वछलादिक प्रमुख कीजै, (वि. पत्र चिपके होने के कारण
आदिवाक्य अवाच्य है.) ६१०३५. (+#) श्रावकप्रतिक्रमण सूत्र संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१३, ६४३२).
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: नायव्वो वीरियायारो. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: माहरो नमस्कार हूंवउ; अंति: जाणिवउ ते
वीर्याचार.
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६१०३६. (#) साधुप्रतिक्रमण सूत्र संग्रह विधि सहित, संपूर्ण, वि. १९२९, पौष कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. १५, प्रले. मु. लक्ष्मीचंद्र ऋषि, पठ. मु. अमुलखचंद्र ऋषि (गुरु मु. लक्ष्मीचंद्र ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७X११.५, ७X४२-४५).
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.
साधु प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह थे. मू. पू. संबद्ध, प्रा. सं., पग, आदि: णमो अरिहंताणं णमो अंतिः करी मिच्छामिदुक्कडं. ६१०३७, (+) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९०३ कार्तिक शुक्ल ५ रविवार, मध्यम, पृ. १५- १ ( १ ) = १४, ले. स्थल, बीकानेर, प्रले. मु. केसरीचंद महात्मा; सम. श्राव. हीरचंद वच्छावत, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६.५x१२.५, १७४४२).
(+)
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दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी आदि (-); अंति: अपुणागमं गइत्ति बेमि, अध्ययन- १०, (पू.वि. क्षुल्लकाचार अध्ययन, गाथा-६ अपूर्ण से है.)
६१०३८. वास्तुसार प्रकरण व प्रतिष्टासार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०बी, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. २, प्र. वि. यंत्र सहित. मुखपत्र पर दिसाधनयंत्र है. दे., (२७.५X१२.५. १५४४९).
१. पे. नाम. वास्तुसार प्रकरण, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण.
ठकुर फेरु, प्रा., पच, वि. १३७२, आदि: सवलसुरासुरविंदं दंसण अंतिः गिहपडिमालक्खणाईणं, प्रकरण-३, गाथा-२०५. २. पे. नाम. प्रतिष्ठासार संग्रह, पृ. ७आ-१४आ, संपूर्ण
आ. वसुनंदि सैद्धांतिक, सं., पद्य, आदिः सिद्धं सिद्धात्मसद् अंतिः २ स्वाहा शुभं भवतु, अध्याय ६.
६१०३९. नवस्मरण, संपूर्ण, वि. १९०३, वैशाख कृष्ण, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १४, प्रले. सिवराम पानाचंद ठाकोर,
लिख. श्राव. दगडु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६x१२.५, १३x३१).
,
नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, आदिः नमो अरिहंताणं नमो अंतिः जैनं जयति शासनं, स्मरण ९. ६१०४०. (+) पोषदशमी कथादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित.,
जैदे. (२६४१३, १३४३३).
१. पे. नाम. पौषदशमीपर्व कथा, पृ. १आ ४आ, संपूर्ण
जिनेंद्रसागर, सं., पद्य, आदि: ध्यात्वा वामेयमर्हत; अंतिः शीघ्रं रचयांचकार, श्लोक ७५.
मु.
२. पे. नाम. चैत्रीपूर्णिमा व्याख्यान, पृ. ४आ-७आ, संपूर्ण.
चैत्री पूर्णिमापर्व व्याख्यान, मु. जीवराज, सं., गद्य, वि. १८६९, आदि: तीर्थराजं नमस्कृत्य अंतिः कांतिरत्नसहायताः. ३. पे नाम, अक्षयतृतीया व्याख्यान, पृ. ८अ १०अ, संपूर्ण
3
"
अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं. गद्य, आदिः प्रणिपत्य प्रभुं अंतिः क्षमाकल्याणपाठकैः ग्रं. ७०. ४. पे नाम, चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पृ. १०अ ११आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं स्फुरद, अंति: (-), (पू.वि. सामायिक विवरण अपूर्ण तक है.) ६१०४१. (+#) धर्मरत्न प्रकरण सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,
प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५X११.५, ४-१३X३४-३८).
धर्मरत्न प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सयलगुणरयणकुलहर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३३ अपूर्ण तक है.)
धर्मरत्न प्रकरण- सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: सज्ज्ञानलोचनविलोकितस, अंति: (-).
६१०४२. (#) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७२७, वैशाख अधिकमास कृष्ण, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. १४-५(१ से ५)=९, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४११.५, ३४२५-२८).
१. पे नाम, नवतत्व प्रकरण सह टवार्थ, पृ. ६अ १४आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: अनंतभागो य सिद्धिगओ, गाथा-५१, (पू. वि. गाथा - १७ अपूर्ण से है.) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: हजी सिद्धि गयो छे.
२. पे. नाम. ६ संघयण नाम, पृ. १४आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: वज्रऋषभनाराचर ऋषभ, अंतिः नाराच४ कीलका५ छेव
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. ६ संस्थान नाम, पृ. १४आ, संपूर्ण.
६संस्थानभेद विचार, सं., गद्य, आदि: समचतुरस्र न्यग्रोधर; अंति: वामन४ कुब्ज५ कुंडक६. ६१०४३. शांतिस्नात्रादि जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, ले.स्थल. मुंबइ, प्रले. श्राव. लक्ष्मीचंद
मुहोता, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२.५, १५४४०). १.पे. नाम. शांतिस्नात्र विधि, पृ. १आ-९अ, संपूर्ण.
उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: यात्रायां क्षुद्रोप; अंति: शांतिनाथ भगवाननी जै. २.पे. नाम. जलयात्रा विधि, पृ. ९अ, संपूर्ण.
मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो वववं नमो; अंति: सर्हद्धर्चने स्वाहा. ६१०४४. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र व लघुशांति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, ७४२२). १. पे. नाम. वंदेत्तूसुत्र, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण..
वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्ध; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. ७अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ तक है.) ६१०४५. (+) देवद्रव्याधिकारे नाभाकराज कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७.५४१२.५, १६४५१). नाभाकराज चरित्र, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., पद्य, वि. १४६४, आदि: सौभाग्यारोग्यभाग्योत; अंति: मेरुतुंग निर्मिताकथा,
श्लोक-२९५. ६१०४६. (#) दशदृष्टांत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १६४३९-४२).
मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत, सं., गद्य, आदि: संसारे चतसृषु गतिषु; अंति: (-), (पू.वि. ब्रह्मदत्त वृत्तान्त अपूर्ण तक है.) ६१०४७. (+) वृद्धशांति, संपूर्ण, वि. १९३४, चैत्र कृष्ण, ९, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. मकसुदाबाद, प्रले. श्राव. जिनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसंभवजिनप्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., दे., (२५.५४१२.५, ७X१५).
बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैन जयति शासनं. ६१०४८. (+#) नवतत्त्व प्रकरण सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५,प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, ६४३१).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५१.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सिद्ध ऋषभदेव प्रमुख. ६१०४९. (#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. देवपाटण (पाटण), प्रले. मु. हर्षसागर; पठ.मु. प्रेमजी ऋषि; पं. वजेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१३, १४४२९). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते,
श्लोक-४४. ६१०५०. (+#) रायपसेणीयसूत्र सह मलयगिरीयाटीका, संपूर्ण, वि. १८६६, आषाढ़ शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ. १६४,
ले.स्थल. वाराणसीमहानगर, प्रले. मु. मलुकचंद ऋषि; लिख. आ. कांतिसागरसूरि (गुरु आ. महेंद्रसागरसूरि, विजयराजगच्छ बृहत्शाखा); गुपि. आ. महेंद्रसागरसूरि (गुरु आ. सुबुद्धिसागरसूरि, विजयराजगच्छ बृहत्शाखा); आ. सुबुद्धिसागरसूरि (गुरु आ. तिलकसागरसूरि, विजयराजगच्छ बृहत्शाखा); आ. तिलकसागरसूरि (गुरु आ. गुणसागरसूरि, विजयराजगच्छ बृहत्शाखा); आ. गुणसागरसूरि (विजयराजगच्छ बृहत्शाखा), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४११.५, १२४४४-४८).
राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: णमो रायपसेणइ, सूत्र-१७५, ग्रं. २१००.
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राजप्रश्नीयसूत्र- टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं., गद्य, आदि: प्रणमत वीरजिनेश्वर, अंति: मलयगिरिणा० भवतु कृती, ग्रं. ३७००.
,
६१०५१. (+) शीलोपदेशमाला सह शीलतरंगिणी टीका, संपूर्ण, वि. १९६२, भाद्रपद शुक्ल, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १५४, प्र. वि. संशोधित. दे. (२७.५४१२.५, १४४४५).
शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा. पद्य वि. १०वी, आदि आबालबंभयारि नेमि, अंतिः आराहिब लहह बोहि कथा ४३, गाथा- ११४. ग्रं. ६६५५.
शीलोपदेशमाला - शीलतरंगिणी वृत्ति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., गद्य, आदिः यस्योपदेशसमये दशनांश, अंतिः
व्ययंसमग्रमंगलमूलं च.
६१०५२. (+४) समवायांगसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९६२ श्रावण शुक्ल, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. १४९, ले. स्थल. मंमाई, प्रले. माधव व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ संशोधित कुल ग्रं. ५४४२ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१२.५, ३-७४४८).
समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः सुयं मे आउस तेणं, अंतिः अज्झयणं ति त्ति बेमि, अध्ययन- १०३, सूत्र - १५९, ग्रं. १६६७.
समवायांगसूत्र- वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११२०, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य अंतिः पादौनाष्टशती तथा, ग्रं. ३५७५.
६१०५३. (+) श्रीपाल चरित्र सह अवचूरी, पूर्ण, वि. १९५३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १४९-१ (१०२*) = १४८, ले.स्थल. मालवा, प्रले. आसुलाल पुस्करणा ब्राह्मण; लिख. मु. राज (गुरु मु. मोहनविजय); गुपि. मु. मोहनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न संशोधित कुल ग्रं. ४५७२, दे. (२७.५४१३ १४४३८). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाई झायित; अंति: वाइ
कहा ऐसा, गाथा-१३४१, प्र. १५५०, संपूर्ण
सिरिसिरिवाल कहा-अवचूरि, मु. हेमचंद्र, सं., गद्य, आदि: ध्यात्वा नवपदीं; अंति: नंदतु समृद्धि लभताम्, संपूर्ण. ६१०५४. सम्यक्त्वरत्न महोदधि सह वृत्ति, संपूर्ण वि. १९५८, भाद्रपद शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १४८, ले. स्थल, नागोरनगर, प्रले देवकृष्ण जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८४१३, १६५६०).
दर्शनशुद्धि प्रकरण, आ. चंद्रप्रभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: पत्तभवण्णवतीरं दुहदव, अंति: सिवसुहं सासयं झत्ति, अध्याय-५ श्लोक-२७१.
दर्शनशुद्धि प्रकरण- वृत्ति, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य वि. १२७७, आदिः यद्वक्त्रांभोजपवाप्यः अंतिः श्रुत्वाराधनगृहिभाक्
६१०५५. (+४) षडावश्यकसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण वि. १९१५, आषाढ़ शुक्ल, ८, रविवार, मध्यम, पृ. १४६+१ (३०) १४७, प्र. वि. श्रीचिंतामणीपार्थ प्रशादात् प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है- टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२७४१२, ३-१६५३६).
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.सं., पग, आदि: नमो अरिहंताणं, अति: इअसम्मत्तम्मएगंहिअं. आवश्यक सूत्र- बार्थ *, मा.गु, गद्य, आदि: बार गूणे सहित श्रीअर, अंति: मने करी आदर्श,
आवश्यकसूत्र- षडावश्यकसूत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि : बारसगूण अरिहंता, अंति: (-).
६१०५६. कल्पसूत्र सह टवार्थ व अंतर्वाच्य, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १२९. प्र. वि. कुल ग्रं. ३४३६, वे. (२६४१२, ६३९).
3
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो अंति: उवदंसेइ ति बेमि, व्याख्यान- ९,
ग्रं. १२१६.
कल्पसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरहंतनि नमस्कार, अंति: स्वामी आपणा शिष्यन.
कल्पसूत्र - - अंतर्वाच्य *, सं., गद्य, आदि: ग्रामेशस्त्रिदशो; अंति: आदिनाथ समाचारी यावत्.
६१०५७. (+) कल्पसूत्र सह बालावबोध व व्याख्यान + कथा, संपूर्ण, वि. १८९४, श्रेष्ठ, पृ. १२१, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७X१२, १२X३४).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९,
ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-बालावबोध *, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: नमस्कार होय मेरा अरि; अंति: आदि दिखाडे है.
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ६१०५८. (+#) चतुर्विंशति प्रबंध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११०, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२.५, १४४४०). प्रबंधकोश, आ. राजशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४०५, आदि: राज्याभिषेककनकासनस्थ; अंति: सुखं तस्यात्,
प्रबंध-२४. ६१०५९. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध- व्याख्यान १ से८, संपूर्ण, वि. १९१३, श्रावण शुक्ल, ५, बुधवार, श्रेष्ठ,
पृ. १०८, ले.स्थल. लूचानगर, प्रले. पं. रूपविजय (गुरु पं. गुलाबविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१२, ६-१४४१८-३९).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: आठकर्मरुप अरिजे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. खीमाविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७०७, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६१०६०. (+) विक्रम चरित्र, सुकन विचार व क्षुद्रोपद्रवशमन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९५६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३०, शनिवार, श्रेष्ठ,
पृ. ९७, कुल पे. ३, ले.स्थल. पाटण, प्रले. वंशीलाल सीवदास व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२७.५४१२, ११४४१). १.पे. नाम. पंचदंड कथा-विक्रमचरित्रे, पृ. १आ-९६अ, संपूर्ण.
आ. रामचंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १४९०, आदि: प्रणम्य जगदानंद दायक; अंति: चित्ते चिरं विंदतात्, श्लोक-२५९९. २.पे. नाम. सुकन विचार, पृ. ९६अ-९६आ, संपूर्ण.
सुकन विचार संग्रह, सं., पद्य, आदि: कन्यागोपूर्णकुंभं; अंति: सप्तैतेश्चांतजातयः, श्लोक-९. ३. पे. नाम. क्षुद्रोपद्रवशमन स्तुति, पृ. ९६आ, संपूर्ण.
क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: सर्वे यक्षांबिकाद्या; अंति: द्रुतं द्रावयंतु नः, श्लोक-१. ६१०६१. प्रवचनसारोद्धार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२७.५४११.५, ५४३६-४०).
प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊण जुगाइजिणं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७०८
अपूर्ण तक है.) ६१०६२. आगमसारोद्धार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८४-५(२ से ६)=७९, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२७४११.५, १२४३०-३५).
आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: हिवै भव्यजीवने; अंति: (-), (पू.वि. सम्यक्त्व वर्णन
दूहा-४ अपूर्ण तक है.) ६१०६३. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८४४, कार्तिक कृष्ण, १२, जीर्ण, पृ. १६३-८४(१ से ८४)=७९,
ले.स्थल. वेगमनगर, प्रले. मु. वीरभाण ऋषि (गुरु मु. खीउसीजी ऋषि); गुपि.मु. खीउसीजी ऋषि (गुरु मु. दशरत ऋषि); मु. दशरत ऋषि (गुरु मु. सीतलजी ऋषि); मु. सीतलजी ऋषि (गुरु मु. बालचंद ऋषि); मु. बालचंद ऋषि (गुरु मु. धनजी ऋषि); मु. धनजी ऋषि (गुरु मु. जिनराज ऋषि); मु. जिनराज ऋषि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२७४१२, ५४३१). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००,
(पू.वि. अध्ययन-२६ से है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६१०६४. जंबूअध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६२, वैशाख कृष्ण, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६८, जैदे., (२७.५४१२, ५४३३-३५).
जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेण कालेण० रायगिहे; अंति: से आराहगा भणिया, उद्देशक-२१.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
२२९ जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते चौथो आरोते कालने; अंति: करे ते आराधक कहीजे. ६१०६५. (+) त्रैलोक्यदीपिका संग्रहणी सूत्र, संपूर्ण, वि. १८९८, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६२, ले.स्थल. आडेसरनगर,
प्रले. मु. पद्मविजय गणि; पठ. श्राव. आसकरण वरधलाल शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२८x१२, ५४३४).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-४०१. ६१०६६. (+) गौतमकुलक सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, १५४४५-५०).
गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: निसेवितु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टीका+कथा, मु. ज्ञानतिलक, सं., गद्य, वि. १६६०, आदि: नत्वा श्रीदेवगुरुन; अंति: भुवि चिरंजीयात,
कथा-६९. ६१०६७. (+) पक्खीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९७२, चैत्र शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. २७, ले.स्थल. विद्यापुरनगर, प्रले. नारायण नथुभाई
ब्रह्मभट्ट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रत की कीमत "पुणात्रण्यरूपीयाने पुणात्रण आना छे" लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं.७२८, दे., (२६.५४१२, ४४२९).
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति, ग्रं. १६८.
पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकर प्रते वांदउ; अंति: मिथ्या विफल होज्यो, ग्रं. ५६०. ६१०६८. (+) कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका, अपूर्ण, वि. १९००, कार्तिक शुक्ल, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. ३७९-१२(१२४
से १२९,२११ से २१४,२१६ से २१७)=३६७, ले.स्थल. नागपुर, प्रले. पं. ज्ञानकलश (बृहत्खरतरगच्छ); गुपि. आ. जिनचंद्रसूरि (बृहत्खरतरगच्छ श्रीजिनभद्रसूरिशाखा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक २९१ के बाद १९२ लिखा हैं., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १२४२४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)नमो अरिहंताणं नमो, (२)तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति
बेमि, व्याख्यान-९, (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)
कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्य; अंति: कुर्वतां सतां श्रेयः. ६१०६९. कल्पसूत्र सह टबार्थव व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९०+१(१४)=१९१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१२, ५-१५४३५-३९).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. स्थविरावली अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: तिणकालै तिणसमय श्रमण; अंति: (-).
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमतेव सुधर्मणे; अंति: (-). ६१०७०. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७६, प्र.वि. पीठिका संस्कृत में लिखी है व
उसका भी टबार्थ लिखा है. अबरखयुक्त पत्र., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (४९३) पय अक्खर मत्ताए, जैदे., (२६४११.५, ६-१५४४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९,
ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: चउथा आरानुछेहडु; अंति: उपदिसे देखाडेइउ. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंति: मिच्छादुक्कड देवा, (वि. व्याख्यानगत
__ पीठिका का भी टबार्थ है.) ६१०७१. (#) प्रज्ञापनासूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २५३-११३(१ से ६६,१८५ से २१४,२१७ से २३३)=१४०, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७.५४११.५, ६४३९).
प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पद २ अपूर्ण से है.) ६१०७२. (#) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित
है, जैदे., (२५.५४१२.५, ४४२६).
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२३०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढम; अंति: (-), (पू.वि. साधुसमाचारी अपूर्ण तक
कल्पसूत्र-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुवो० अरिहंत: अंति: (-). ६१०७३. (+) मलयसुंदरी चरित्र, संपूर्ण, वि. १९६४, पौष शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ९९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, १४४२१-२८). मलयासंदरी चरित्र, आ. जयतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: चतुरंगोजयत्यहन; अंति: प्यूचे मयेदं तथा, प्रस्ताव-४,
ग्रं. २४३०. ६१०७४. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६०-५५(१ से २,४ से ६,९,१३,२२ से २३,२७ से २९,३१,३३ से
३४,३९,४३,४५ से ४८,५२,५४ से ५५,६४,६७,७१,७३,७८,८३ से ८४,९० से ९१,९५ से ९६,१०५ से १०६,१०९,११३ से ११७,१२०,१२३ से १२४,१२९ से १३०,१३३ से १३४,१३९ से १४०,१४२,१४७,१५५)=१०५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७४११.५, ५-१९४२२-५०).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश हैं.)
कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६१०७५. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १५०-४(१ से २,११३ से ११४)=१४६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७.५४११.५, ६x४०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ गाथा-१७ से अध्ययन-३६
गाथा-६९ तक है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६१०७६. (+) अणुयोगद्वारसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०६, श्रावण कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. १२६, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मेघदत्त पुरोहित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७४१२, ७४४०).
अनुयोगद्वारसूत्र, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प+ग., आदि: नाणं पंचविह; अंति: दुक्खक्खट्ठयाए, प्रकरण-३८.
अनुयोगद्वारसूत्र-टबार्थ, मु. धर्मसिंह, मा.गु., गद्य, आदि: वंदितु जिणवरिंदे०; अंति: साता सुहस्स हेतवे. ६१०७७. (+) आचारप्रदीप, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९७-२(१ से २)=९५, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (५५६) भग्नपृष्टि कटी ग्रीवा, जैदे., (२६.५४१२, १५४५०).
आचारप्रदीप, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५१६, आदि: (-); अंति: जयदायकश्च विदाम्, प्रकाश-५, ग्रं. ४७६५,
(पू.वि. प्रारंभ के कुछेक पाठांश नहीं हैं.) ६१०७८. प्रश्नव्याकरणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९२४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ९७, ले.स्थल. लखनौ, प्रले. मु. गोकलचंद ऋषि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, ५४४४-५०). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर; अंति: सरीरधरे भविस्सइति.
अध्याय-१०, गाथा-१२५०, ग्रं. १२५०. ६१०७९. (+) उपदेशतरंगिणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२७४१२, १६x४९).
उपदेशतरंगिणी, ग. रत्नमंदिरगणि, सं., पद्य, आदि: श्रीनाभेयः स वो देया; अति: समग्राक्षरमेलने, तरंग-५, ग्रं. ३३००. ६१०८०.(+) गौतमपृच्छा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५४३९).
गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४.
गौतमपृच्छा-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, वि. १५६९, आदि: तीर्थनाथ श्रीमहावीर; अंति: एगोत्म प्रीच्या भई. ६१०८१. ओघनियुक्ति सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८, प्र.वि. त्रिपाठ., दे., (२७.५४१२.५, ६४५४-५६).
ओघनियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: अरहते वंदित्ता चउदस; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., गाथा-२५५ तक लिखा है.) ओघनियुक्ति-अवचूर्णि #, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, वि. १४३९, आदि: प्रक्रांतोयमावश्यकान; अंति: भक्त्या
स्वपरहेतोः, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ ६१०८२. (4) आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति, भाष्य व मूलनियुक्ति भाष्य की शिष्यहिता बृहद्वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम,
पृ. २१२-१०५(१ से ५९,१३० से १५७,१७१,१९४ से २१०)+१(११०)=१०८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४६०).
आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., सूत्र-पडिक्कमामि पंचहि पाठ से
प्रत्याख्यानसूत्र अपूर्ण तक है.) आवश्यकसूत्र-शिष्यहिता टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,
टीकागत ध्यानशतक गाथा-३६ से प्रत्याख्यानाध्ययनटीका अपूर्ण तक है.) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,
पारिष्ठापनिका नियुक्ति से प्रत्याख्याननियुक्ति अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की शिष्यहिता टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-),
पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जम्हा विउ पमाणं, गाथा-२५३, (पू.वि. प्रारंभ व बीच
के पत्र नहीं हैं., गाथा-२०५ से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: दर्शनेनेति गाथार्थः,
पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. ६१०८३. (+) सप्तस्मरण, जयतिहुअण स्तोत्र व तिजयपहुत्त स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद
सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १२४३१). १.पे. नाम. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, पृ. १आ-१०अ, संपूर्ण.
मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, स्मरण-७. २.पे. नाम. जयतिहुअण स्तोत्र, पृ. १०अ-१२आ, संपूर्ण, वि. १८४७, श्रावण शुक्ल, ३, शुक्रवार.
आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: विण्णवइ अणिंदिय, गाथा-३०. ३. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. १२आ-१३आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ६१०८४. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८५, कार्तिक कृष्ण, ७, जीर्ण, पृ. २७०, ले.स्थल. नूरदीनगर,
प्रले. मु. जिनदास ऋषि (गुरु मु. सूरति मुनि); गुपि. मु. सूरति मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ५८५४, जैदे., (२९४१३, ७४४२). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० चंपाए; अंति: जाव पुरिससिहेणं,
अध्ययन-१९.
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: तेणइ कालि ते चउथे आर; अंति: (-). ६१०८५. कर्मग्रंथ १-६ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४८, कुल पे. ६, प्रले. पं. पासदत्त मुनि;
पठ. मु. आनंदशेखर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. १२५००, जैदे., (२६४१२, १६४५१). १. पे. नाम. कर्मविपाक सह बालावबोध, पृ. १आ-२६अ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ
देविंदसुरीहिं, गाथा-६०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: ध्रौव्योत्पाद विनाश; अंति: कृतंगम्यार्थ
पद्धति. २. पे. नाम. लघुकर्मस्तव सह बालावबोध, पृ. २६अ-४३आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमहं तं
वीरं, गाथा-३४.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ - बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदिः सम्यक्त्वादि गुणालये; अंतिः कृतं गम्यार्थ पद्धति.
३. पे. नाम. बंधस्वामित्व सह बालावबोध, पृ. ४३आ - ५३अ, संपूर्ण.
बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी १४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्त, अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा - २४.
बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ - बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: चतुर्दशोन्मार्गणकास्; अंति: हुइ ते शुद्ध करज्यो.
४. पे. नाम. षडशीति प्रकरण सह बालावबोध, पृ. ५३अ-९१अ, संपूर्ण.
"
घडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी २४वी आदि नमिय जिणं जियमग्गणः अंतिः लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८६.
घडशीति नव्य कर्मग्रंथ - वालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु. गद्य, आदिः स्वान्ययोरूपकाराय मत, अंति: (१) सुबोधेयं
"
विनिर्ममे, (२) गम्यार्थ पद्धति.
५. पे. नाम. शतकशाख सह बालावबोध, पृ. ९९अ १७३ आ. संपूर्ण वि. १८९१ आषाढ़ कृष्ण, ६, गुरुवार,
ले. स्थल. खीमेल.
शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी १९४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंतिः देविंदसूरि० आयसरणड्डा, गाथा- १००.
शतक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: दृष्ट्वा येन भृशं; अंति: (१) आत्मस्मरणने अर्थे, (२) कृतं गम्यार्थपद्धतिः.
६. पे. नाम. सप्ततिशास्त्र सह बालावबोध, पृ. १७३-२४८अ, संपूर्ण, वि. १८९१, पौष कृष्ण, ३, ले. स्थल. खीवेल. सप्ततिका कर्मग्रंथ, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा. पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्वं; अंतिः चंद० एगुणा होई नउईओ,
"
लोक-१२.
सप्ततिका कर्मग्रंथ बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु, गद्य, आदि: अभिगम्यजगद्धीरं वीरं अंति: (१) सुबोधोयं विनिर्ममे (२) कृतं गम्यार्थ पद्धति.
६१०८६. (+) कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९६, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२७४१२, ६-१६४३१).
',
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो अंतिः (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., ऋषभदेव चरित्र तक लिखा है.)
कल्पसूत्र - टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीअरिहंतने नमस्कार, अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: कल्याणानि समुल्लसंति; अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण.
६१०८७. (+) विधिप्रपा नाम सुविहित समाचारी, संपूर्ण, वि. १९७८ आश्विन कृष्ण, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १६८, ले. स्थल. मुंबई, प्रले. लालजी सवजी ठक्कर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें, दे., (२७४१२.५, १०x४४).
"
विधिमार्गप्रपा नाम सुविहितसमाचारी, आ, जिनप्रभसूरि, प्रा. पद्य वि. १३६३, आदिः नमिय महावीरजिणं सम्म अंतिः पच्चक्खाण ठाण विवरणं, ग्रं. ३५७२.
६१०८८. (+#) उववाईसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८६६, आश्विन कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १२६, ले. स्थल. वणारस (बनारस), प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ- अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ- संशोधित. कुल ग्रं. ४५००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले, लो, (४९९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, जै, (२७१२, १७४३८).
औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंतिः सुही सुहं पत्ता, सूत्र ४३, प्र. १९७५. औपपातिकसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य, अंति: संशोधिता चेयम्, ग्रं. ३३२५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
२३३ ६१०८९. भक्तामर स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९५३, पौष कृष्ण, १२, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १२१, कुल पे. १२, ले.स्थल. जोधपुर,
प्रले. गंगाविसन बोडा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२, १०४३२). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र ऋद्धि, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण, वि. १९५३, आषाढ़ शुक्ल, १३.
भक्तामर स्तोत्र-ऋद्धि, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं अहणमो; अंति: झौं झौं स्वाहा. २. पे. नाम. २४ जिन स्तव सह टीका, पृ. २आ-५आ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तव, श्राव. भूपाल, सं., पद्य, आदि: श्रीलीलायतनं महीकुल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___अपूर्ण., श्लोक ५ तक लिखा है.)
२४ जिन स्तवन-टीका, सं., गद्य, आदि: भो देवः प्राप्तंजिन; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३. पे. नाम. भक्तामर सह भाषाटीका, पृ. ६अ-३२अ, संपूर्ण.
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४८. भक्तामर स्तोत्र-भाषाटीका, श्राव. अखैराज श्रीमाल, पुहि., गद्य, आदि: (१)किल अहमपि तं प्रथम, (२)किल सो
जु है प्रथम; अंति: तस मन वंछित होइ. ४. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह भाषाटीका, पृ. ३२अ-५६अ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते,
श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-भाषाटीका, श्राव. अखैराज श्रीमाल, पुहि., गद्य, आदि: तेजु है तीर्थेश्वर; अंति: करी जथा प्रति
जोइ. ५. पे. नाम. एकीभाव स्तोत्र सह भाषाटीका, पृ. ५६अ-७२अ, संपूर्ण. एकीभाव स्तोत्र, आ. वादिराजसूरि, सं., पद्य, ई. ११वी, आदि: एकंभावंगत इव मया यः; अंति: वादिराजमनुभव्य
सहाय, श्लोक-२६. एकीभाव स्तोत्र-भाषाटीका, श्राव. अखैराज श्रीमाल, पुहिं., गद्य, आदि: यह जु अष्टप्रकार; अंति: श्रेष्ट प्रधान है. ६.पे. नाम. विषापहार स्तोत्र सह भाषाटीका, पृ. ७२अ-९३आ, संपूर्ण. विषापहार स्तोत्र, जै.क. धनंजय कवि, सं., पद्य, ई.७वी, आदि: स्वात्मस्थितः सर्वगत; अंति: सुखानि यशोधनंजयंच,
श्लोक-४०. विषापहार स्तोत्र-भाषाटीका, श्राव. अखैराज श्रीमाल, पुहि., गद्य, आदि: (१)पुराण पुरुषः पायात्, (२)पुराण० पुराण
पुरुष; अंति: अखेराज अरजेत इम. ७.पे. नाम. सिद्धप्रिय स्तोत्र सह भाषाटीका, पृ. ९३आ-१११अ, संपूर्ण.
सिद्धिप्रिय स्तोत्र, आ. देवनंदी, सं., पद्य, ई. ६वी, आदि: सिद्धिप्रियैः प्रति; अंति: तातः सतामीशिताः, श्लोक-२५.
सिद्धिप्रिय स्तोत्र-भाषाटीका, मु. रामजी ऋषि, पुहिं., गद्य, आदि: श्रीनाभिराजतनु भूपद; अंति: संताप कौं हरौं. ८. पे. नाम. पद्मावती स्तोत्र, पृ. १११अ-१११आ, संपूर्ण.
पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२८ व ३२ मात्र
९. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र काव्य महिमा, पृ. १११आ-११५आ, संपूर्ण.
भक्तामर स्तोत्र-मंत्र-यंत्र विधिविधान, संबद्ध, पुहिं.,सं., प+ग., आदि: श्रीभक्तामरजी माहा; अंति: कीजै तौ बंदि तै
छूटै.
१०. पे. नाम. लघुसामायिक सह टबार्थ, प्र. ११६अ-११८आ, संपूर्ण.
सामायिक-लघु, सं., पद्य, आदि: सिद्ध वस्तु वचो भक्त; अंति: वशीभूताय ते नमः, श्लोक-१२.
सामायिक-लघु-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्ध जो वस्तु पदार; अंति: वचनकाय करि ध्याउछु. ११. पे. नाम. एकसोगुणहत्तर जीवां की याद, पृ. ११८आ, संपूर्ण.
१६९ जीवों के नाम, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकर२४ माता२४; अंति: रूद्र११ कुलकर१४.
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२३४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र-मंत्र, पृ. ११८आ-१२१आ, संपूर्ण.
____ संबद्ध, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं ह्रीं श्रीं; अंति: कुरु कुरु स्वाहा, मंत्र-४८. ६१०९०. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८१-६६(१ से ६६)=११५, पू.वि. बीच के
पत्र हैं., प्र.वि. कहीं-कहीं टीका से उद्धृत पाठ टबार्थ सहित लिखा है., संशोधित-द्विपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, ५४३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्वप्न पाठक वर्णन से ऋषभदेव जीवन चरीत्र
अपूर्ण तक हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६१०९१. सारस्वत व्याकरण सह दीपिका टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११४-१(१)=११३, जैदे., (२७४१२.५, २२४५७). सारस्वत व्याकरण, प्रक्रिया, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., प्रारंभिक पाठांश नहीं है व निर्णेनिज्म शब्दरूप तक लिखा है.) सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रथम
पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६१०९२. (+) पन्नवणासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९३+२(१०४,२२६)=३९५, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ३१०००, जैदे., (२६.५४११, ७X४८). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहताण ववगय; अति: सुही सुहं पत्ता, पद-३६, सूत्र-२१७६,
ग्रं. ९७०७, (वि. १८३७, चैत्र शुक्ल, ५, रविवार, ले.स्थल. पेमासर) प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७८४, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीर, (२)अरिहंतनै नमस्कार
हुव; अंति: परंपरायै ते सिद्ध, (वि. १८३७, चैत्र शुक्ल, ११, शनिवार, ले.स्थल. गेहरसम) ६१०९३. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ- अध्ययन १९ से ३६, संपूर्ण, वि. १९२३, फाल्गुन कृष्ण, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ९८,
ले.स्थल. जालरापाटण, प्रले. मु. गोकलचंद ऋषि (गुरु आ. शांतिसागरसूरि, विजयगच्छ); गुपि. आ. शांतिसागरसूरि (गुरु
आ. जिनचंद्रसागरसूरि, विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ऋषभ प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., दे., (२७४१२.५, ६४४१).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सम्मएत्ति बेमि, प्रतिपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सुमत भणवा योग्य, (प्रतिपूर्ण, वि. अंत में छत्तीस अध्ययनों के
नाम लिखे हैं.) ६१०९४. (+) संग्रहणीसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १५४४२).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई ठिइ; अंति: सन्नि गईरागई वेए, गाथा-२७३.
बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: अत्यद्भुतं योगिभि; अंति: ज्ञानदृग्वीर्य सौख्य, ग्रं. ३५००. ६१०९५. (+) द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका व द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका की स्वोपज्ञ टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८०, कुल पे. २,
प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ४५२६, जैदे., (२६.५४११, २०४५१). १. पे. नाम. द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका, पृ. १आ-१६आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदि: ऐंद्रशर्मप्रदं दानमन; अंति: परमानंदकंदांबुवाहः, अध्याय-३२, ग्रं. ५५००. २. पे. नाम. द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका की स्वोपज्ञ टीका, पृ. १७अ-८०आ, संपूर्ण. द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका-स्वोपज्ञ तत्त्वार्थदीपिका टीका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, आदि: ऐंद्रवृंदविनतांघ्रिय;
अंति: परमानंद संपदम्, अध्याय-३२, ग्रं. १२४४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
२३५
६१०९६. (+४) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८७२ कार्तिक कृष्ण, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ७९ प्र. वि. अबरखयुक्त पत्र, संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५x१२, ११४२३).
"
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान- ९,
ग्रं. १२१६.
1
६१०९७. (+४) साधुआद्धप्रतिक्रमण सूत्र, स्तुति व काव्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९६-२० (२८ से ४७ ) = ७६, कुल पे. ४७, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२६४१२, ११४४५). १. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण.
.
प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं नमो अंति: सेसो संसार फल हेऊ. २. पे. नाम. पलांकित स्तुति, पृ. ७अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति - पनांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: शमदमोत्तमवस्तुमहापणं, अति: जयतु सा जिनशासनदेवता, श्लोक-४.
३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदिः युगादिपुरुषेंद्राय अंतिः कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४.
"
४. पे नाम, महावीरजिन स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदिः यदंहिनमनादेव देहिन; अंति: नित्यममंगलेभ्यः, श्लोक-४.
५. पे नाम, पंचमीपर्व स्तुति, पृ. ७आ-८-अ, संपूर्ण
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमा, अंति: सिद्धायिका नायिका, श्लोक-४.
६. पे नाम, अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. ८अ संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोह, अंतिः विहसंति कल्याणदाता, गाथा ४.
७. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण.
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मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंतिः विपदः पंचकमदः, श्लोक-४.
८. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. ८- ९अ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदिः नाभेवाजितवासुपूज्यसु अंतिः एता प्रयच्छंतु ना, श्लोक-४. ९. पे. नाम. बीजतिथी स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण.
बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न, अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा ४.
१०. पे नाम. लघ्वीखीछंदसि स्तुति, पृ. ९अ- ९आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं अंति: दद्यात्सौख्यम्, श्लोक-४.
११. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोकं, अंति: मज्जनशस्तनिजाघः, श्लोक-४.
१२. पे. नाम. अर्बुदाचलआदिजिन स्तुति, पृ. ९आ-१०अ संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तियहार सुतारगण अंति: सुहाणि कुणेसु सया, गाथा-४. १३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १० अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति - पलांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञं ज्योति अंतिः वृद्धिं वैदुष्यम्, श्लोक-४.
१४. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. १०अ १० आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: ऋषभनाथ भनाथनिभानने; अंति: तनुभातनुभातनु भारती, श्लोक-४. १५. पे. नाम जिन स्तुति, पृ. १० आ, संपूर्ण.
५ तीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुंजयमुख्य अंति: संतु भद्रंकराः, श्लोक-४.
१६. पे. नाम चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. १०आ ११अ संपूर्ण.
साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरलकमलगवल, अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. १७. पे. नाम. दीपमालिका स्तुति, पृ. ११अ ११आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दीपावलीपर्व स्तुति, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: पापायां पुरि चारु; अंति: जिनचंद्र० क्रीडितं,
श्लोक-४. १८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: दें दें कि धप; अंति: दिशतु शासनदेवता,
श्लोक-४. १९. पे. नाम. दंडक स्तुति, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण.
२४ दंडक स्तुति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: रुचितरुचिमहामणि; अंति: दद्यादलं भारती भारती, श्लोक-४. २०. पे. नाम. वीसविहरमाण स्तुति, पृ. १३अ, संपूर्ण.
विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषय; अंति: जन मन वंछिय सारै, गाथा-४. २१. पे. नाम. शत्रुजय स्तुति, पृ. १३अ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेनूंजमंडण आदि; अंति: नंदसूरि० पाय सेवता, गाथा-४. २२. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: लोकाधारं शांताकारं; अंति: धर्मे शिक्षा, श्लोक-४. २३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १३आ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा-४. २४. पे. नाम. पर्युषणा स्तुति, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण.
पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वली वली हुं ध्या; अंति: कहै जिनलाभसूरींद, गाथा-४. २५. पे. नाम. अजितजिन स्तुति, पृ. १४अ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विश्वनायक लायक; अंति: जिनलाभसूरि० जयजयकारी, गाथा-४. २६. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदि: जयज्जा समणे भयवं; अंति: एअंपढह कय
अभयसूरीहि, गाथा-२२. २७. पे. नाम. स्थंभनपार्श्वजिन स्तुति, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., पद्य, आदि: श्रीसेढीतटिनीतटे; अंति: नाथो नृणां श्रिये, श्लोक-२. २८. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १५आ-१८आ, संपूर्ण.
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. २९. पे. नाम. दशपच्चक्खाण, पृ. १८आ-२०अ, संपूर्ण.
प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: अभिग्गहे९ विगई१०. ३०. पे. नाम. आगारसंख्या गाथा, पृ. २०आ, संपूर्ण.
प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: दो चेव नमोक्कारे; अंति: हवंति सेसेसु चत्तारि, गाथा-३. ३१. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. २०आ-२२आ, संपूर्ण.
वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, गाथा-५०. ३२. पे. नाम. संथारापोरसीसूत्र, पृ. २३अ-२४अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: निसीही निसीही नमो; अंति: मज्झवि तेह खमंतु, गाथा-१४. ३३. पे. नाम. प्रवज्या कुलक, पृ. २४अ-२५आ, संपूर्ण.
प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संसार विसमसायर भवजल; अंति: तरंति ते भवसलिलरासिं, गाथा-३४. ३४. पे. नाम. जयतिहूअण स्तोत्र, पृ. २५आ-२७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: (-), (पूर्ण,
पू.वि. गाथा २२ तक है.) ३५. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ४८अ-५०अ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
दरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सया पायप्पणामो तुह, गाथा-४४, (पू.वि. गाथा
१ अपूर्ण से है.) ३६. पे. नाम. समसंस्कृतमय महावीर स्तोत्र, पृ. ५०अ-५२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: दृष्टिं
दयालो मयि, श्लोक-३०. ३७. पे. नाम. बृहत्शांति, पृ. ५२आ-५५अ, संपूर्ण.
बृहत्शांति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: सुखी भवतु लोकः. ३८. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ५५अ-५७आ, संपूर्ण.
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ३९. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ५७आ-६०अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-४९. ४०. पे. नाम. चौवीसदंडक स्तवन, पृ. ६०अ-६२आ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया,
गाथा-४०. ४१. पे. नाम. सरीर ५ नाम, पृ. ६२आ, संपूर्ण.
५शरीर नाम, मा.गु., गद्य, आदि: औदारिक१ वैक्रिय२; अंति: तैजस४ कार्मण५. ४२. पे. नाम. संघयण नाम, पृ. ६२आ, संपूर्ण..
६संघयण नाम, मा.गु., गद्य, आदि: वज्रऋषभनाराच१ ऋषभ; अंति: कीलक५ छेवठो६. ४३. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. ६२आ-७५अ, संपूर्ण.
हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: जेसिं सुअसायरे भत्ति. ४४. पे. नाम. पाक्षिक खामणा, पृ. ७५अ-७५आ, संपूर्ण.
क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. ४५. पे. नाम. इकवीस स्थानक, पृ. ७५आ-७९अ, संपूर्ण. २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया; अंति: असेस साहारणा भणिया,
गाथा-६८. ४६. पे. नाम. उपदेशमाला सज्झाय, पृ. ७९अ-८०आ, संपूर्ण. ___ पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: उप्पन्नं केवलं नाणं,
गाथा-३३. ४७. पे. नाम. वृद्धसंग्रहणीसूत्र, पृ. ८०आ-९६आ, संपूर्ण.
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३११. ६१०९८. (+) संघयणीसूत्र सह टबार्थ, लघुसंग्रहणी व जंबूद्वीप विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७३, कुल पे. ३,
प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-द्विपाठ., जैदे., (२६४१२, २-२२४३६-५२). १.पे. नाम. संघयणीसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-५७आ, संपूर्ण.
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउ अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३४५. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमीने अरिहंतादिक; अंति: (-), (वि. अंतिम ५ गाथाओं का टबार्थ नहीं
लिखा है.) २.पे. नाम. लघुसंग्रहणी, पृ. ५७आ-६१अ, संपूर्ण.
आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०. ३.पे. नाम. जंबूद्वीप विचार-लघुसंग्रहणी, पृ. ६१अ-७३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची लघुसंग्रहणी-जंबूद्वीप विचार *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जंबुद्वीप मांहि केतल; अंति: (-), (पू.वि. भावपूजा करतां
जिन नामकर्म बांधे तथा दैवलोक आउ बांधे पाठ तक है.) ६१०९९. शत्रुजय माहात्म्य-सर्ग १३ से १४, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७४१२, ९४३०).
शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. श्लोक ३१२ अपूर्ण तक है.) ६११००.(+) कल्पसूत्र, पूर्ण, वि. १८७१, चैत्र शुक्ल, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६६-१(१)+१(३९)=६६, ले.स्थल. मलसीसर,
प्रले. पं. पुन्यभक्ति (गुरु ग. ज्ञाननिधान); गुपि.ग. ज्ञाननिधान (गुरु पंन्या. सत्यराज); पंन्या. सत्यराज (गुरु उपा. जयमाणिक्य, बृहत्खरतर); उपा. जयमाणिक्य (गुरु वा. जिनजयगणि, बृहत्खरतर); राज्यकालरा. डुंगरसिंघजी शेखावत, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. कीर्तिरत्नसूरि शाखायां., संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, ११४२७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, (प.वि. जंबद्वीपमें उत्सपीणी काल के
सुसम-सुसम आरा वर्णन से है.) ६११०१. भुवनभानुकेवली चरित्र, संपूर्ण, वि. १८७५, चैत्र शुक्ल, १, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ५६, ले.स्थल. हरिदुर्ग, प्रले. मु. मनोहरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, १३४४२).
भुवनभानुकेवली चरित्र, सं., गद्य, आदि: अस्तीह जंबूद्वीपे; अंति: नरेंद्रर्षिः केवली, ग्रं. १८००. ६११०२. (+#) सूत्रकृतांगसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६०९, चैत्र शुक्ल, १४, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ९८-४७(१ से ४७)=५१,
प्रले. मु. गुणचंद (गुरु ग. देवकीर्ति, बृहद्गच्छ); गुपि. ग. देवकीर्ति (गुरु आ. नयचंद्रसूरि, बृहद्गच्छ); आ. नयचंद्रसूरि (बृहद्गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, २१-२४४६०-७०). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विहरति त्ति बेमि, अध्याय-२३, ग्रं. २१००,
(पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१५ अपूर्ण से है.)
सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.ग., गद्य, आदिः (-); अंति: यांगस्य वार्तिकं. ६११०३. (#) जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, संपूर्ण, वि. १९६२, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ३८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२, ७४२४-२७).
जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, आ. रत्नशेखरसूरि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वेशो विभा; अंति: १०८ वार स्मर्यते. ६११०४. (+) ज्ञानसार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३०, श्रेष्ठ, पृ. ३३, ले.स्थल. पालिताणा, प्रले. ग. मेघविजय (गुरु ग. जीवविजय
पंडित); गुपि.ग. जीवविजय पंडित (गुरु ग. लक्ष्मीविजय पंडित); ग. लक्ष्मीविजय पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, ४४३७). ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऐंद्रश्रीसुखमग्नेन; अंति: स्वीयं कृतं मंगलम,
अष्टक-३२, श्लोक-२७३. ज्ञानसार-स्वोपज्ञ टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, आदि: ऐंद्रवदनतं नत्वा; अंति: पोतानुज मंगल
कीधु.
६११०५. (+#) जंबूअध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९००, फाल्गुन शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ३१, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, ८४५०).
जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० रायगिहे; अंति: भवे भवे पावइस्सइ, उद्देशक-२१.
जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालनइ विषईते; अंति: शाता भवोभवै पामस्यै. ६११०६. (+) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार सह स्याद्वादरत्नाकर टीका-परिच्छेद १ से ४, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८९, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. १५१२, जैदे., (२७४१२.५, १४४४९). प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, आ. वादिदेवसूरि, सं., प+ग., वि. ११५२-१२२६, आदिः (१)रागद्वेषविजेतारं,
(२)प्रमाणनयतत्त्व; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार-स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. वादिदेवसूरि, सं., गद्य, आदिः (१)नमः
परमविज्ञानदर्शना, (२)प्रकर्षेण संदेहा; अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
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1.
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
२३९ ६११०७. (+#) विवाहपन्नत्ती सह टीका का टबार्थ+बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९०४, श्रावण शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ६३७,
ले.स्थल. हरिदुर्ग, सम. श्रावि. मानकंवर धना हरजी सा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वि.सं. १९१४ मार्गशीर्ष शु.प. १० गुरुवार के दिन इस प्रत को दान देने का उल्लेख मिलता है, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२, ९x४८). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहताणं० सव्व; अंति: संतिकरितं नमसामि, शतक-४१,
सूत्र-८६९, ग्रं. १५७५२.
भगवतीसूत्र-टीका का टबार्थ+बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वज्ञः सर्वज्ञ; अंति: मयाहिस्तवक कृतः. ६११०८. (+) आचारांगसूत्र सह टीका, पूर्ण, वि. १९६३, पौष कृष्ण, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०२-१(१०१)=३०१, प्र.वि. संशोधित-त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२७४१२.५, १३४५१).
आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउस तेण; अंति: विमुच्चति त्ति बेमि, अध्ययन-२५,
ग्रं. २६४४, (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ उद्देशक-१ अपूर्ण है.) आचारांगसूत्र-टीका # , आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य, वि. ९१८, आदि: जयति समस्तवस्तु; अंति: मिति
तात्पर्यार्थः, श्रुतस्कंध-२, ग्रं. १२०००. ६११०९. (+#) जीवाभिगमसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७७, अन्य. श्राव. लालचंद पूनमचंद प्राग्वाट; श्रावि. तुलसी
पूनमचंद प्राग्वाट; श्राव. जवेरचंद सेठ; श्राव. जेठाभाई; आ. राजेंद्रसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. वि. सं. १९४१ वैशाख कृष्णपक्ष दशमी के दिन आ. श्रीराजेंद्रसूरि के उपदेश से लालचंद्र पूनमचंद्र प्राग्वाट ने इस प्रत को राजपुर के भांडागार में रखवाया, त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७X१२, १७४५१-५५).
जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: णमो उसभादियाणं चउवीस; अंति: सेत्तं सव्वजीवाभिगमे, प्रतिपत्ति-१०, सूत्र-२७२,
ग्रं. ४७५०. जीवाभिगमसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: प्रणमत पदनखतेजःप्रति; अंति: नयः सिद्धांतसद्बोधम्,
प्रतिपत्ति-१०, ग्रं. १४०००. ६१११०. (+#) स्थानांगसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९२३, भाद्रपद कृष्ण, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २९१, अन्य. श्राव. लालचंद पूनमचंद
प्राग्वाट; श्रावि. तुलसी पूनमचंद प्राग्वाट; श्राव. जवेरचंद सेठ; श्राव. जेठाभाई; आ. राजेंद्रसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. वि.सं. १९४१ वैशाख कृष्णपक्ष दशमी के दिन आ. श्रीराजेंद्रसूरि के उपदेश से लालचंद्र पूनमचंद्र प्राग्वाट ने इस प्रत को राजपुर के भांडागार में रखवाया, त्रिपाठ-द्विपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. १८०००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (४६) भग्न पृष्टी कटी ग्रीवा, (१०७) यन्मात्राक्षरपादबिंदुगलितं किंचित्प्रमादान्मयो, (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, दे., (२६४१२.५, २१४४८). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: अणता पण्णत्ता, स्थान-१०, सूत्र-७८३,
ग्रं. ३७००. स्थानांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: श्रीवीरं जिननाथ; अंति: ग्येभ्योन्येभ्य इति,
स्थान-१०, ग्रं. १४२५०. ६११११. (+#) वस्तुपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १९५९, आषाढ़, श्रेष्ठ, पृ. १५७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, १४४३६-३९).
वस्तुपालमंत्री चरित्र, ग. जिनहर्ष, सं., पद्य, वि. १४९७, आदि: श्रीमानहन शिवः; अंति: जिनहर्ष० व्यधात्, प्रस्ताव-८. ६१११२. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३४-३(१३ से १५)+१(४७)=१३२,
पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, ५-१४४३५-४१).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. व्याख्यान-७ अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरीहतने माहरो; अंति: (-). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य परमं ज्योति; अंति: (-).
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२४०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६१११३. (+#) सामायिकअध्ययन नियुक्ति सह विशेषावश्यकभाष्य व टीका, संपूर्ण, वि. १९६०, मार्गशीर्ष कृष्ण, १, शुक्रवार,
श्रेष्ठ, पृ. ७०७, ले.स्थल. नागोर, प्रले. राजेश्वर चंद्रेश्वर मुहथा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (४८५) यावल्लवणसमुद्रो, (११५४) अशुद्ध शुद्धं लिखितं कदाचित्, दे., (२७.५४१३, १५४४५).
आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का हिस्सा सामायिकअध्ययन नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि:
__ आभिणिबोहियनाणं सुयना; अंति: भासिअत्था परिसमत्ता. विशेषावश्यकभाष्य, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: कयपवयणप्पणामो वोच्छं; अंति: जोग्गो
सेसाणुओगस्स, गाथा-३६०३. विशेषावश्यकभाष्य-शिष्यहिता बृहट्टीका, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, सं., गद्य, वि. ११७५, आदि: श्रीसिद्धार्थनरेंद्र;
अंति: नमते प्रीत्यविच्छेदः, ग्रं. २८०००. ६१११४. (+) स्थानांगसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३७, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२७४१२.५, १४४४८-५२). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: अणंता पण्णत्ता, स्थान-१०, सूत्र-७८३,
ग्रं. ३७००. स्थानांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: श्रीवीरं जिनंनाथं; अंति: टीकाल्पधियोपिगम्या,
स्थान-१०,ग्रं. १४२५०. ६१११५. (+#) धर्मसंग्रह सह स्वोपज्ञटीका, पूर्ण, वि. १९३८, भाद्रपद कृष्ण, १४, गुरुवार, मध्यम,
पृ. ४६०-१(५७)+२(३२,१६३)=४६१, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२, १५४३७-४१). धर्मसंग्रह, उपा. मानविजय, सं., पद्य, वि. १७३१, आदि: प्रणम्य प्रणताशेषसुर; अंति: परमानंदकारणम्, प्रकरण-४,
श्लोक-१५९, (पू.वि. श्लोक २४ नहीं है.) धर्मसंग्रह-स्वोपज्ञ टीका, उपा. मानविजय, सं., गद्य, वि. १७३१, आदि: प्रणम्य विश्वेश्वर; अंति: परमानंदकारणम्,
प्रकरण-४. ६१११६. (+) जीवाभिगमसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१२, पौष शुक्ल, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३४१+१(२९८)=३४२,
ले.स्थल. फलवर्द्धिपुर, प्रले. पं. फतेविजय; अन्य. मु. ऋषभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीवीरसाहिबजी प्रशादात, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५.५४१२, ६४३४-३८). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० णमो; अंति: सेत्तं सव्वजीवाभिगमे, प्रतिपत्ति-१०, सूत्र-२७२,
ग्रं. ४७५०. जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मु. जिनविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७७२, आदि: प्रणम्य ज्ञानविज्ञान; अंति: वार्ता संपूर्ण थइ,
ग्रं. ९३००. ६१११७. (+) भगवतीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम,
पृ. ६६९-३(११०,३१५*,४१५*)+८(१३७,१७६,४०६,४११,४१७,४६८,५५९,६३८)=६७४, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२.५, ६-२४४३०-५३). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहंताणं० सव्व; अंति: देव अविग्धं लिहंतस्स, शतक-४१,
सूत्र-८६९, ग्रं. १५७५२. भगवतीसूत्र-टबार्थ, मु. सत्यसागर, मा.गु., गद्य, आदि: सुखसंततिवृद्ध्यर्थं; अंति: प्रते नमस्कार करे, ग्रं. १५७७५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
२४१ ६१११८. (+#) शांतिनाथ चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५४, कार्तिक शुक्ल, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३०१,
ले.स्थल. वाराहिनगर, प्रले. ग. तेजविजय (गुरु ग.रंगविजय, तपागच्छ); गुपि.ग.रंगविजय (गुरु ग. यशोविजय, तपागच्छ); ग. यशोविजय (गुरु पं. गुणविजय, तपागच्छ); पं. गुणविजय (गुरु ग. ऋद्धिविजय, तपागच्छ); ग. ऋद्धिविजय (गुरु गच्छाधिपति विजयप्रभसूरि, तपागच्छ); गच्छाधिपति विजयप्रभसूरि (गुरु आ. देवसूरि, तपागच्छ); अन्य.पं. धनविजय गणि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (४६) भग्न पृष्टी कटी ग्रीवा, (१०७३) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, जैदे., (२५४१२, ७४३७-४०). शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३०७, आदि: श्रेयोरत्नकरोद्भता; अंति: स करोतु शांतिः,
प्रस्ताव-६, श्लोक-१६३२, ग्रं. ५०००. शांतिनाथ चरित्र-टबार्थ, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७९९, आदि: मंगलिक रूप समुद्र; अंति: संघने सानिध
करो. ६१११९. (+#) जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७९, मध्यम, पृ. ३४०, ले.स्थल. वडलुंनगर, प्रले. मु. सुमतविजय (गुरु
मु. जीवणविजय); गुपि. मु. जीवणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रथम पृष्ठ पर हस्तप्रत के लेन-देन का उल्लेख मिलता है, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२.५, ६४३६-४३). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, वक्षस्कार-७, ग्रं. ४१४६, (वि. १८७९,
कार्तिक कृष्ण, १३) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७७०, आदि: श्रीसिद्धार्थनराधिप; अंति: स्वामी प्रतइ कहै
छई, ग्रं. १५०००, (वि. १८७९, माघ शुक्ल, ५, शुक्रवार) ६११२०. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह सूत्रार्थदीपिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६१-१२५(९२,१३६ से
२५९)+१(७०)=३३७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १३४४२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६,
ग्रं. २०००, (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-१० गाथा-३३ से अध्ययन-१९ गाथा-५ अपूर्ण तक नहीं है.) उत्तराध्ययनसूत्र-सूत्रार्थदीपिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १८पू, आदि: अहँतो ज्ञानभाजः; अंति:
महतामपीत्युक्तेः, ग्रं. १५३००, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. ६११२१. (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९०६, वैशाख कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ९९-६(१३ से १८)=९३, ले.स्थल. सुजाणगढ, प्रले.पं. मुहणचंद; राज्यकालरा. रतनसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४१२.५, १०x२३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९,
ग्रं. १२१६, (पू.वि. देवानंदा के गर्भहरण प्रसंग अपूर्ण से माता त्रिशला के स्वप्न दर्शन प्रसंग अपूर्ण तक नहीं है.) ६११२२. आचारांगसूत्र- श्रुतस्कंध १, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १७५-१९(१ से ९,११ से १५,११३ से ११४,१५७ से १५८,१६०)+२(१०३ से १०४)=१५८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४१२, ६x२८-३२).
आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अध्ययन-१ उद्देशक-३
__ अपूर्ण से अध्ययन-२ उद्देशक-५ अपूर्ण तक के बीच-बीच के पाठ हैं.) ६११२३. (+#) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७०, पौष शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. १३३+१(१७)=१३४,
ले.स्थल. भुजनगर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल ग्रं. ३५००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२, ४४२३). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंति: दिवसेस अंगं तहेव,
अध्ययन-१०, ग्रं. ८१२. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मा.गु., गद्य, वि. १६९३, आदि: ते० तेणइ काले चोथे; अंति: तिमज पूर्वली
परे.
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२४२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६११२४. (+#) कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका व्याख्यान १ से ७ अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५४-४(१ से ४) = १५०, प्र. वि. पवच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२४.५x११, १३४४६).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं अंतिः (-), प्रतिपूर्ण,
कल्पसूत्र - कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-) (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. पर्युषण पर्व माहात्य वर्णन से है.)
६११२५. (+#) स्थानांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १६९, ले. स्थल. पुरगांम, प्रले. सा. सुगुणश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें कुल ग्रं. ३७७५, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१२, २- ११x२६-३६).
स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदिः सुयं मे आउस तेणं अंतिः अणता पण्णत्ता, स्थान-१०, सूत्र- ७८३, ग्रं. ३७०० (वि. १८०९ श्रावण कृष्ण, १०)
स्थानांगसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि मे कहतां मै एहवौ वचन, अंति: पुदगल अनंते कडेहइ छड़ (वि. १८०९, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, वि. बीच-बीच में टबार्थ नहीं लिखा है.)
६११२६, (A) कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १५४-२२ (१ से ६,८५ से ८९,९७ से ९८,१०० से १०७,१११) = १३२, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५X११.५,
६-१५x२८-३७).
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कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. देवानंदाब्राह्मणी स्वप्नदर्शन से साधुकल्पित आहारवर्णन प्रसंग अपूर्ण तक है व बीच-बीच के कुछ पाठांश नहीं हैं.)
कल्पसूत्र - टवार्थ ". मा.गु., गद्य, आदि: (-): अंति: (-).
*
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
६११२७. (+) उववाईसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९५०, माघ कृष्ण, ९, मंगलवार, मध्यम, पृ. ९७- २ (६५ से ६६ )=९५, ले. स्थल. रिणिनगर (ऋणीनगर, प्रले. मु. लाभ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे. (२४.५X१२,
६४३२-३५).
औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि; तेणं कालेणं तेणं, अंतिः सुही सुहं पत्ता, सूत्र- ४३, ग्रं. १६००, संपूर्ण.
औपपातिकसूत्र - टबार्थ, आ. पार्धचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्वा श्रीजिनं अंति: सुख पाम्या थका, संपूर्ण. ६११२८. बारसासूत्र, संपूर्ण, वि. १९५७, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. ६२, ले. स्थल. बीकानेर, प्रले. मु. ऋद्धिसार (परंपरा पं. धर्मशीलगणि, खरतरगच्छ); गुपि. पं. धर्मशीलगणि (गुरु पं. लब्धिहर्ष, बृहत्खरतरगच्छ क्षेमशाखा), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २२x१२, ११X३२).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो अंतिः उबव॑से ति बेमि, व्याख्यान - ९,
ग्रं. १२१६.
६११२९. (+#) उपदेशमाला सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७७-१ (१) १७६, पू. वि. प्रथम व अंतिम पत्र नहीं है..
प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४X११.५, १४X३६).
उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. गाथा ३ से ५४२ तक है. ) उपदेशमाला - बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
६११३० (+) प्रतिक्रमणसूत्र, स्तुति, स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १६२-७( ७१ से ७७) = १५५, कुल पे १०१, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें, दे., (२२.५X१२, १x२८).
१. पे नाम, प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १अ ११अ, संपूर्ण
साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., सं., प+ग, आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंतिः समुन्नइ निमित्तं.
२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पू. ११ अ ११ आ. संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., पद्य, आदि: श्रीसेढीतटिनीतटे; अंति: नाथो नृणां श्रिये, श्लोक-२.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ११आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन चैत्यवंदन, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: चउक्कसायपडिमल अंति: पासु पयच्छउ वंछिउ, गाथा-२. ४. पे. नाम. पंचपरमेष्टी स्तुति संग्रह, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण.
जिनस्तुत्यादि संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतो भगवंत; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. ५. पे. नाम. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, पृ. १२अ, संपूर्ण.
हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: श्रेयसे पार्श्वनाथः, श्लोक-१. ६. पे. नाम. साधुअतिचार, पृ. १२अ, संपूर्ण.
साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सयणासणन्नपाणे; अंति: वितहायरणेय अइयरो, गाथा-१. ७. पे. नाम. गोचर चर्या, पृ. १२अ, संपूर्ण.
गोचरी आलोअण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: कालेणय गोअरिआ; अंति: जंकिंचि अणुउत्तं, गाथा-१. ८. पे. नाम. पच्चक्खाण आगारसंख्या, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण.
प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: दो चेव नमुक्कारे; अंति: हवंति सेसेसु चत्तारि, गाथा-३. ९.पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. १२आ-१६अ, संपूर्ण.
संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ. १०. पे. नाम. देसावगासिक पच्चक्खाण, पृ. १६अ, संपूर्ण.
संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाण; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ. ११. पे. नाम. मंगला स्तोत्र, पृ. १६अ-१७अ, संपूर्ण.
मांगलिक श्लोक-खरतरगच्छीय, सं., पद्य, आदि: सर्वमंगलमंगल्यं; अंति: प्रधानो जिनराजसूरिः, श्लोक-८. १२. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तुति, पृ. १७अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: सर्वारिष्टप्रणाशाय; अंति: गौतमस्वामिने नमः, श्लोक-१. १३. पे. नाम. सरस्वती अष्टक, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण.
शारदादेवी स्तुति, सं., पद्य, आदि: प्रथम भारती नाम; अंति: सा जयतु सरस्वती देवी, श्लोक-८. १४. पे. नाम. सोलह सतीनाम, पृ. १७आ, संपूर्ण.
१६ सती स्तुति, सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी चंदनबालिका; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. १५. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १७आ-१८आ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: राजती श्रीमतीदेवता; अंति: मेधामाह्वयति विभवेन, श्लोक-९. १६. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. १७. पे. नाम. वीसविहरमानजिन स्तुति, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण.
विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषै विहरंत; अंति: जण मनवंछित सारै, गाथा-४. १८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: समुदमुत्तमवस्तु; अंति: जयतु सा जिनशासनदेवता,
श्लोक-४. १९. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमोत्तीहारसतारगणं; अंति: सुहाणि कुणेसु सया, गाथा-४. २०. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तुति, पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमा; अंति: सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. २१. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. २१अ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्य; अंति: देवी दद्यात् सौक्ष, श्लोक-१. २२. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
सं., पद्य, आदिः यदंह्रिनमनादेव देहिन; अंतिः नित्यम मंगलेभ्यः, श्लोक-४.
२३. पे नाम, अजितजिन स्तुति, पृ. २१-२२अ संपूर्ण
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विश्वनायक लायक, अंतिः यपे होज्यो जयजयकारी, गाथा-४.
२४. पे नाम, अष्टमी स्तुति, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण
अष्टमीतिथि स्तुति, मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चौवीसे जिनवर प्रणमुं, अंतिः जिनसुख० जनम प्रमाण,
गाथा-४.
२५. पे नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. २२-२३-अ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुरति मनमोहन कंचन, अंति: इम श्रीजिनलाभसूरिंद, गाथा- ४.
२६. पे नाम, पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण
आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन नरेसर वामा, अंतिः जिनभक्तिसूरि० वित्त, गाधा ४. २७. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. २३-२४अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंतिः विस्मतहृदः क्षितौ श्लोक-४.
२८. पे. नाम. शीतलजिन स्तुति, पृ. २४- २४आ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुख समकित दायक कामित, अंति: रीये कहे जिनलाभसूरीस, गाथा-४. २९. पे नाम. त्रिगरी स्तुति, पृ. २४-२५अ संपूर्ण
साधारणजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: मिल चौविहसुरवर विरचै; अंति: वे पामे जयति सुनाणी, गाथा-४. ३०. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २५ अ-२६अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति - नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि दें कि धपमप, अंतिः दिशतु शासनदेवता, लोक-४.
"
३१. पे. नाम. चैत्रीपूनम स्तुति, पृ. २६अ - २६आ, संपूर्ण.
चैत्री पूर्णिमापर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि सेनुंजगिरि नमीयै; अंतिः श्रीजिनलाभसुरिंद, गाथा ४. ३२. पे. नाम वीरजिन स्तुति, पृ. २६-२७अ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: बालपणे डावो पाय चांप; अंतिः काज चदै प्रमाणे, गाथा-४,
"
३३. पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. २७अ-२७आ, संपूर्ण.
"
सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक, अंतिः श्रीजिनलाभसूरिंदा जी गाथा ४. ३४. पे नाम, पर्जूषणा स्तुति, पृ. २७-२८अ संपूर्ण
पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वली वली हुं ध्यावं; अंति: कहै जिनलाभसूरींद, गाथा-४. ३५. पे नाम, नेमिनाथ स्तुति, पृ. २८अ २९अ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदित पाय अंति: मंगल सदा अंबा देविये, गाथा-४.
३६. पे, नाम, पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २९अ, संपूर्ण.
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पार्श्वजिन स्तुति - समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पच, आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोकं अंति: मज्जन शस्तिनिजाघ, श्लोक-४.
३७. पे, नाम, ऋषभजिन स्तुति, पृ. २९अ २९आ, संपूर्ण
आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः युगादिपुरुषेंद्राय; अंति: कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४.
३८. पे नाम, सेडुंजा स्तुति, पृ. २९-३०अ, संपूर्ण
शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुंजयमंडण, अंति: नंद० तुम्ह पाव सेविता, गाथा-४.
३९. पे नाम वीरप्रभु स्तुति, पृ. ३०अ संपूर्ण
महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीदेवार्य विश्ववर, अंतिः शस्वद् भूयात्, श्लोक-१.
४०. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. ३० अ- ३०आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै, अंति: तिहसंति कल्याणदाता, गाथा-४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ ४१. पे. नाम. शीतलजिन स्तुति, पृ. ३०आ-३१अ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन जिननायक; अंति: भणे श्रीजिनलाभसूरिंद, गाथा-४. ४२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ३१अ-३२अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञ ज्योति; अंति: वृद्धिं वैदुष्यम्, श्लोक-४. ४३. पे. नाम. चतुर्विंशतीजिन स्तुति, पृ. ३२अ-३२आ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरलकवलगवल मुक्ताफल; अंति: मुक्तिं श्रुतोच्चयम, श्लोक-४. ४४. पे. नाम. दीवालीपर्व स्तुति, पृ. ३२आ-३३आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: पापायां पुरि चारु; अंति: जिनचंद्र० क्रीडितं,
श्लोक-४. ४५. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, प्र. ३३आ-३४अ, संपूर्ण.
मु. चंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ ताता जगत; अंति: जिनचंद० एहवी वाणी, गाथा-४. ४६. पे. नाम. ऋषभदेवजिन स्तुति, प्र. ३४अ-३४आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: ऋषभनाथ भनाथनिभानने; अंति: तनुभातनुभातनु भारती, श्लोक-४. ४७. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. ३४आ-३५अ, संपूर्ण.
५तीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमुख्य; अंति: ते संतु भद्रंकराः, श्लोक-४. ४८. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ३५अ-३५आ, संपूर्ण. __नेमिजिन स्तुति-गिरनारमंडन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गिरनार सिहर पर नेम; अंति: जिनलाभ० फलै
सुजगीस, गाथा-४. ४९. पे. नाम. धर्मनाथ स्तुति, पृ. ३५आ-३६अ, संपूर्ण.
धर्मजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुरति मन हरणी जाणै; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंद, गाथा-४. ५०. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तुति, पृ. ३६अ-३७अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य नरेसर; अंति: देव विघन हरो नितमेव, गाथा-४. ५१. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३७अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: सुवर्णवर्णं गजराज; अंति: ऋषभं जिनोत्तमम्, श्लोक-१. ५२. पे. नाम. सिद्धगिरी नमस्कार, पृ. ३७अ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धोविज्जायचक्की; अंति: महं तित्थमेयं नमामि, गाथा-१. ५३. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. ३७अ-३७आ, संपूर्ण.
आदिजिनसीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय त्रिभुवन आदि; अंति: प्रति करुं प्रणाम, गाथा-३. ५४. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. ३७आ, संपूर्ण. शQजयतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय नाभिनरिंदनंद; अंति: निसदिन नमत
कल्याण, गाथा-३. ५५. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३७आ-३८अ, संपूर्ण. शांतिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सोलम जिनवर शांतिनाथ; अंति: लहीयै कोडि कल्याण,
गाथा-३. ५६. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ३८अ, संपूर्ण. नेमिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदिः प्रह सम प्रणमो नेमि; अंति: क्षमाकल्याण प्रणाम,
गाथा-३. ५७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३८अ-३८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: पुरसादाणी पासनाह; अंति: प्रगटे परम
कल्याण, गाथा-३.
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५८. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३८आ, संपूर्ण.
महावीरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु जगदाधार सार सिव, अंति: कल्याण० क सुपसाय, गाथा-३.
५९. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ३८-३९अ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र नमस्कार, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत उदार कांत, अंतिः निधि प्रगटै चेतन भूप,
गाथा - ६.
६०. पे. नाम. पद्मनाभ स्तवन, पृ. ३९अ, संपूर्ण.
पद्मनाभजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्म, आदि: प्रथम महेसर पद्मनाभ अंतिः कारण परम कल्याण, गाथा - ३.
६१. पे. नाम, सिखर स्तवन, पृ. ३९अ- ३९आ, संपूर्ण.
सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: पूरव देसे दीपतो ए अंतिः तीरथ करण कल्याण,
गाथा - ३.
६२. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ३९आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि दर्शनाद्दुरितध्वंसी, अंतिः साक्षात्सुरद्रुमः, ६३. पे. नाम. शांतिजिन स्तोत्र, पृ. ३९-४०अ, संपूर्ण.
श्लोक-१.
सं., पद्य, आदि: शांतवे शांतिकामाय अंतिः स्य पापशांतिर्भवेदपि श्लोक-३.
६४. पे. नाम. ऋषभजिन स्तोत्र, पृ. ४०अ, संपूर्ण.
आदिजिन नमस्कार, सं., पद्य, आदि: वंदे देवाधिदेवं तं अंतिः मम भूयात् भवे भवे, श्लोक-३.
६५. पे. नाम. ऋषभ स्तोत्र, पृ. ४०-४०आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: जय जय जगदानंदन जय; अंति: भगवते ऋषभाय नमोनमः, श्लोक ५.
६६. पे नाम, शांतिजिन स्तोत्र, पृ. ४० आ-४९अ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः किं कल्पद्रुमसेवया, अंतिः सेव्यतां शांतिरेष स श्लोक-५
६७. पे. नाम नेमिजिन स्तोत्र, पृ. ४९ अ-४१ आ. संपूर्ण
सं., पद्य, आदिः परमान्नं क्षुधार्त्त अंतिः कथं धन्यतमो न गण्यः, श्लोक ५.
६८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ४१-४२अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: अभिनवमंगलमालाकरणं, अंतिः वासुराः पुण्यभासुराः, श्लोक ५,
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६९. पे. नाम. वीरजिन स्तोत्र, पृ. ४२अ, संपूर्ण.
महावीर जिन स्तव, सं., पद्य, आदि: कनकाचलमिव धीर, अंतिः यथा नित्य सुखि भवामि, श्लोक ६.
७०. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ४२अ -४४अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदिः किं कर्पूरमयं सुधारस, अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु श्लोक-११.
७१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ४४अ - ४४आ, संपूर्ण.
आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं धरणोर, अंतिः नमामः कुशलं लभामः, श्लोक ५.
७२. पे. नाम गौतम अष्टक, पृ. ४४आ-४५आ, संपूर्ण.
गौतमस्वामी अष्टक, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिं वसु, अंति: लभते सुतरां क्रमेण श्लोक ९.
७३. पे नाम, पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ४५आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: अमरतरु कामधेनु चिंता, अंतिः कुणसु पहु पास, गाथा- ३.
७४. पे नाम, पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ४५ आ-४६अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र-वाराणसी, प्रा., पद्य, आदि: चित्तबहुलाइ चविउं; अंति: विहेउसो बोहिलाभं मे, गाथा-३. ७५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ४६ अ- ४६ आ. संपूर्ण.
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पार्श्वजिन स्तुति, आ, जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि; त्रिभुवनजनतारणगुण अंति: कुसलांबुजबोधनवासरे, श्लोक ७. ७६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ४६ आ-४७आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- शृंखलाबंध, मु. जैनचंद्र, सं., पद्य, आदिः सर्वदेवसेवितपदपद्मं अंति: जैनचंद्रेः० वांगमुदे, श्लोक ७. ७७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ४७-४८अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव- करटक, सं., पद्य, आदि आनंदभंदकुमुदाकरपूर्ण अंतिः मे यदि मेरुधीरम्, श्लोक ५.
७८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४८-४९अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरस वरसं; अंति: शिवसुंदर सौख्यभरम्, लोक- ७,
७९. पे. नाम. आदिजिनपारणा स्तुति, पृ. ४९अ, संपूर्ण.
सुपात्रदानफल स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: उसभस्सय पारणए इक्खुर; अंति: भरहे साहु न सीयंति, गाथा-५. ८०. पे. नाम. जैनधार्मिक श्लोक संग्रह, पृ. ४९अ - ४९आ, संपूर्ण.
लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा. सं., पद्य, आदि धम्मो मंगल मूलं सव्व; अंतिः जिणंदवर सासणे बोहे, गाथा-५. ८१. पे. नाम. नवग्रहजिन स्तुति, पृ. ४९-५०आ, संपूर्ण.
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ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधिर्मतः, श्लोक-१२. ८२. पे नाम, दशवैकालिकसूत्र-प्रथम अध्ययन, पृ. ५० आ-५१आ, संपूर्ण.
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८३. पे नाम, साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ५१ आ-५६आ, संपूर्ण
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत; अंतिः वंदामि जिणे चउवीस, सूत्र - २१. ८४. पे. नाम. राईसंथारा गाथा, पृ. ५६आ-५९अ, संपूर्ण.
संधारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि अंतिः जीवा कम्मवसु० खमंतु, गाथा-२१. ८५. पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ५९अ - ६२आ, संपूर्ण.
बंदिसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि; वंदितु सव्वसिद्धे, अंतिः वंदामि जिणे चडवीसं, गाथा-५०.
८६. पे नाम, आलोयण विधि, पृ. ६२ आ. ६३आ, संपूर्ण,
आलोषणा विधि, मा.गु., गद्य, आदिः आजूणा प्यार पुहर, अंति: मिच्छामि दुकडं.
८७. पे. नाम. थंभणपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ६४अ - ६८आ, संपूर्ण.
जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि: जय तिहुअणवरकप्परुक्ख, अंति: अभयदेव विन्न० आनंदिउ, गाथा-३०,
3
"
८८. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र, पृ. ६८आ-७०आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे आयाण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १९ अपूर्ण तक है.)
८९. पे नाम, शांति स्तोत्र, पृ. ७८अ-७८आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च श्लोक-१७, (पू.वि. गाथा - १३ अपूर्ण से है.) ९०. पे. नाम. सप्तत्युत्तरशतजिन स्तोत्र, पृ. ७८आ-८०अ, संपूर्ण.
तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंत निच्चमच्चेह, गाथा-१४.
९१. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ८० अ-८१अ, संपूर्ण.
"
पार्श्वजिन स्तोत्र नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा. पद्य वि. २४वी आदि दोसावहारदक्खो नालिया; अंतिः जिप्सूर पीडंति, गाथा- १०.
९२. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र - तपागच्छीय, पृ. ८१अ - ८५अ, संपूर्ण.
सं., प+ग, आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंतिः पूज्यमाने जिनेश्वरे.
९३. पे. नाम. पाक्षिकखामणा, पृ. ८५-८६आ, संपूर्ण
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२४८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. ९४. पे. नाम. ३२ दूषण, पृ. ८६आ-८७अ, संपूर्ण.
सामायिक ३२ दूषण, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम १० मन संबंधी; अंति: मायकरा ३२ दुषण जाणने. ९५. पे. नाम. मुहपत्तिपडिलेहणगाथा सह अर्थ, पृ. ८७अ-८७आ, संपूर्ण.
मुखवस्त्रिका प्रतिलेखन गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: दिट्ठपडिलेह एगा नव; अंति: एसा पुण देह पणवीसा, गाथा-७.
मुखवस्त्रिका प्रतिलेखन गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: साचवू सम्यक्तमोहनी; अंति: कायदंड परिहरु एवं. ९६. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ८७आ-९१आ, संपूर्ण.
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ९७. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ९१आ-९५आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: बुद्धबोहेक्कणिक्काय, गाथा-४९. ९८. पे. नाम. दंडक प्रकरण, पृ. ९५आ-९९अ, संपूर्ण.
मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा-४०. ९९. पे. नाम. संग्रहणी, पृ. ९९अ-१२४अ, संपूर्ण.
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३१६. १००. पे. नाम. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, पृ. १२४अ-१४७अ, संपूर्ण.
आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपय पईट्ठि; अंति: कुसलरंगमयं पसिद्धं, अधिकार-६,
गाथा-२६४. १०१. पे. नाम. सिंदुर प्रकरण, पृ. १४७अ-१६२अ, संपूर्ण. सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: स जानाति जनाग्रतः, द्वार-२२,
श्लोक-१०१. ६११३१. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, व्याख्यान+कथा व पट्टावली, संपूर्ण, वि. १८०७, विक्रमार्कसमयादब्ध्यभ्रनागक्षमा, भाद्रपद
कृष्ण, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १३४, कुल पे. २, ले.स्थल. जावदनगर, प्रले. ग. नवनिधिकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. शांतिजिन प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५४११.५, ५-१३४३६-३९). १.पे. नाम. कल्पसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-१३३अ, संपूर्ण. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९,
ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमो० नमस्कार होजो; अंति: सभा आगे एहवो कह्यो.
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: आलिया गलीया कीजै. २.पे. नाम. पट्टावली तपागच्छीय, पृ. १३३आ-१३४अ, संपूर्ण.
____ मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: श्रीविजयदेविंद्रसूरि. ६११३२. (+#) उववाईयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ६०००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ५४३०-३४).
औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र-४३, ग्रं. १६००.
औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्वा श्रीजिनं; अंति: सुख पाम्या थका. ६११३३. महानिशीथसूत्र, संपूर्ण, वि. १९०४, पौष कृष्ण, १४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १२५, ले.स्थल. सवाईजैपुर, दे., (२४.५४१२, १४४४०).
महानिशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: ॐ नमो अरहताणं सुय; अति: महानिसीहमि पाएण, अध्ययन-६, ग्रं. ४५४४.
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सूत्र, आ.
अपूर्ण स गद्य, आदि
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
२४९ ६११३४. (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७८-८६(१ से ८०,११० से ११५)=९२,
पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२.५, ९४३८-४२). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३ अपूर्ण से अध्ययन-७
अपूर्ण तक व अध्ययन-८ अपूर्ण से अध्ययन-१४ अपूर्ण तक है.)
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६११३५. (+) जीवाभिगमसूत्र सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, ६४३७-४२). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० णमो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
पडिवत्ति-३ उद्देश-४ अच्चि णं भंते विमाणाई पाठ तक लिखा है.)
जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, सं., गद्य, आदि: नमोर्हद्भ्य द्वादशगु; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६११३६. (+) श्रीपाल चौपाई, अपूर्ण, वि. १८४५, आश्विन शुक्ल, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. ८६-१(७२)+१(९)-८६, प्रले. मु. देवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४१२.५, ११४३१).
श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण
तणी; अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४, गाथा-१८२५, (पू.वि. खंड-४, ढाल-८, गाथा-११ अपूर्ण से गाथा-२६
अपूर्ण तक नहीं है.) ६११३७. (+) आचारांगसूत्र सह टबार्थ- श्रुतस्कंध १, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८१-१(४४)+१(५)=८१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, ५४४२).
आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण,
पू.वि. अध्ययन-५, उद्देशक-५ का सूत्र-१७७ अपूर्ण नहीं है.)
आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीजिनाधीशं; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ६११३८. (+) अभिधानचिंतामणि नाममालासह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १८६२, वैशाख कृष्ण, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७७,
ले.स्थल. जयनगर, प्रले. पं. ज्ञानचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., प्र.ले.श्लो. (११५८) श्रीगुरदेव प्रतापसै, जैदे., (२५४११.५, १२४४५). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति:
रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६, ग्रं. १४५२, संपूर्ण. अभिधानचिंतामणि नाममाला-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: सिद्धं निष्पन्नं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., कांड-१ श्लोक-५२ तक लिखा है.) ६११३९. (+#) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८६६, चैत्र शुक्ल, १, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ७६, ले.स्थल. रासावतिनगर, प्रले.पं. महिमाविजय
(गुरु मु. भांणविजय); गुपि.मु. भाणविजय (गुरु पं. जीवविजय); पं. जीवविजय (गुरु मु. गंभीरविजय); मु. गंभीरविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १३४२३-२८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९.
ग्रं. १२१६. ६११४०. (+) व्याख्यान संग्रह, अपूर्ण, वि. १९६९, पौष कृष्ण, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८०-५(४८ से ५२)=७५, कुल पे. १०,
प्रले. मु. कीसन; अन्य. मु. सुखसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४४१२.५, १२४२७). १.पे. नाम. चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पृ. १आ-१७अ, संपूर्ण.
उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं स्फुरद; अंति: सर्वेष्टार्थसिद्धिः, ग्रं. ४०१. २. पे. नाम. अष्टान्हिकापर्व व्याख्यान, पृ. १७अ-३५आ, संपूर्ण.
अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०. आदि: शांतीशं शांतिकर्ता: अंति: पद्यबंध
विलोक्य तत्.
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२५०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. दीपालिका माहात्मय व्याख्यान, पृ. ३५आ-४२आ, संपूर्ण.
दिवालीकल्प, सं., गद्य, आदि: श्रीगौतम गणाधीसो; अंति: सुखभाजो भवंतीति. ४. पे. नाम. ज्ञानपंचमी व्याख्यान, पृ. ४२आ-४७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ज्ञानं सारं सर्व; अंति: (-), (पू.वि. राजा अमरसिंह को सुग्रीव नाम
पुत्रोत्पन्न के प्रसंग तक है.) ५. पे. नाम. मौनएकादशी व्याख्यान, पृ. ५३अ-५६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: धने सोद्यमानसमा भवति, (पू.वि. श्रीकृष्ण व भगवान नेमिनाथ के
प्रश्नोत्तर संवाद से है.) । ६. पे. नाम. पौषदशमी व्याख्यान, पृ. ५६आ-६०आ, संपूर्ण.
पौषदशमीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: अभिनवमंगलमालाकरणं; अंति: स्मरणादानंदमाला भवतु. ७. पे. नाम. मेरुत्रयोदशी व्याख्यान, पृ. ६१अ-६८आ, संपूर्ण. मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: मारुदेवं जिनं नत्वा; अंति:
शिष्यैरामोदतस्त्वदः, ग्रं. १६५. ८. पे. नाम. होलिकापर्व व्याख्यान, पृ. ६८आ-७१आ, संपूर्ण.
उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३५, आदि: होलिका फाल्गुने मासे; अंति: व्याख्यानमाख्यानभृत्. ९.पे. नाम. चैत्रीपुनम व्याख्यान, पृ. ७१आ-७६आ, संपूर्ण.
चैत्रीपूर्णिमापर्व व्याख्यान, मु. जीवराज, सं., गद्य, वि. १८६९, आदि: तीर्थराजं नमस्कृत्य; अंति: जीवराज०
भिर्विशेषकं. १०. पे. नाम. अक्षयतृतीया व्याख्यान, पृ. ७६आ-८०आ, संपूर्ण.
अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य प्रभुं; अंति: क्षमाकल्याणपाठकैः. ६११४२. (+#) कर्मग्रंथ १ से ६ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५५, कार्तिक शुक्ल, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. ७४, कुल पे. ६,
ले.स्थल. बाहलपुर, प्रले. मु. लालचंद (गुरु मु. कुशलदत्त, खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा); गुपि.मु. कुशलदत्त (गुरु ग. हर्षसेन, खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा); ग. हर्षसेन (गुरु मु. भुवनविशाल, खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा); मु. भुवनविशाल (गुरु आ. सागरचंद्रसूरि, खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टबार्थ बालावबोध शैली में लिखा है, संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १४-१७४३९-४४). १.पे. नाम. कर्मविपाकसूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-११आ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ
देविंदसूरिहिं, गाथा-६०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७वी, आदि: (१)शारदां वरदां स्मृत्व,
(२)श्रीमहावीरजिन प्रति; अंति: यक श्रीदेवेंद्रसूरी. २. पे. नाम. कर्मस्तव सह टबार्थ, पृ. ११आ-१८अ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिण; अंति: वंदियं नमहं तं
वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., गद्य, आदि: तह कहतां तिम अहि; अंति: ते महावीर प्रतइ. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १८अ-२४अ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंदसूरि०
सोउं, गाथा-२५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, म. धनविजय, मा.गु., गद्य, आदि: कर्मबंधना प्रकारथी; अंति: कर्मस्तव
सांभलीनै. ४. पे. नाम. षट्शीतिकर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. २४अ-३९आ, संपूर्ण.
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२५१
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअजिणं जिअ१ मग्गण; अंति: लिहियो
देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, उपा. धनविजय, मा.गु., गद्य, आदि: वांदीनै तीर्थंकर; अंति: श्रीतपागच्छनायकै. ५. पे. नाम. शतककर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. ३९आ-६०अ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति:
देविंदसूरि आयसरणट्ठा, गाथा-१००. शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, उपा. धनविजय, मा.गु., गद्य, आदि: पंचम प्रारंभ्यते; अंति: जाणिवौ एहवौ अर्थई. ६. पे. नाम. सप्ततिकाकर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. ६०अ-७४अ, संपूर्ण.
सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: एगणा होइ नवईउ, गाथा-७२. सप्ततिका कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७००, आदि: सिद्धि निश्चल पद छइ; अंति: हितहेतुं
समुद्दिश्य. ६११४३. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३४, भाद्रपद शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६९+१(६७)=७०,
प्रले. श्राव. पितांबर भगवानदास सा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (११०४) जादिसं पुस्तकं पुस्तकं भूकं, जैदे., (२४४१२, ५४२९-३२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि,
अध्ययन-१०.
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ध० दुरगति पडतां राखे; अंति: सुधर्मास्वामी कहइ छइ. ६११४४. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६१-११५(१ से
११२,११५,१२१,१३४)=४६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५,५-१४४३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. भगवान पार्श्वनाथ के अणगारधर्म स्वीकार करने
के प्रसंग अपूर्ण से आगे व बीच-बीच के पाठांश हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६११४५. उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १८९९, पौष शुक्ल, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६३, ले.स्थल. आनंदपुर, प्रले. मु. सदानंद (गुरु मु. इंद्रभाणजी); गुपि.मु. इंद्रभाणजी (गुरु मु. मलुकचंदजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२, १४-१७४३०-३५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६,
ग्रं. २०००. ६११४६. राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६२, दे., (२४.५४१२.५, ३-५४३३).
राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., केशीकुमार
द्वारा हाथी के जीव का दृष्टांत देने के प्रसंग अपूर्ण तक लिखा है.) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., प्रारम्भिक कुछ सूत्रों का ही टबार्थ लिखा है.) ६११४७. (+#) विपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९८, कार्तिक शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ५९, ले.स्थल. धुलेवातीर्थ, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, ८४४०-४३). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध-२,
ग्रं. १२५०. विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अथ विपाकश्रुतमिति कः; अंति: जिम आचारंगनी परइं.
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२५२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६११४८. (+#) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९१३, पौष कृष्ण, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५८, ले. स्थल. सांकरा, प्रले. मु. रत्नविजय (गुरु मु. भाणविजय); पठ. पं. लक्ष्मीविजय, गुपि. मु. भाणविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४.५x१२, ११x२८-३२).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: कासवगत्ते पणिवयामि, व्याख्यान-९,
ग्रं. १२१६.
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६११४९, (+) भगवतीसूत्र सह टवार्थ शतक- ११ उद्देश १० से ११ अपूर्ण, वि. १९४१ आश्विन कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ५१-२ (१ से २)+१(८)=५०, प्रले. जेठा देवशंकर शुक्ल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. १२००, अक्षरों की फैल गयी है, दे., (२३.५४१२, ५४२३).
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रश्न- ९ अपूर्ण से है.) भगवतीसूत्र - टवार्थ * मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण,
६११५०. (+) संबोधसत्तरी स्तोत्रादि संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७, कुल पे. ६, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. दे. (२५४१२.५, २-६५३३).
१. पे. नाम संबोधसत्तरी सह टबार्थ, पृ. १आ-१८आ, संपूर्ण.
संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरु; अंति: जयसेहर० नत्थि संदेहो, गाथा- १२४. संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१) ऐं नमस्ते जगन्नेत, ( २ )नमिऊण क० नमी नमस्कार; अंति: थानक इहां संदेह नथी,
२. पे. नाम. वैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ. १८आ - २७आ, संपूर्ण.
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः संसारंभि असारे नत्थि अंतिः लहइ जिउ सासवं ठाणं, गाथा १०४.
वैराग्यशतक- टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: संसार असारमाहि नवी अंति शाश्वतउ ठाणं स्थानक. ३. पे. नाम. रत्नाकरपच्चीसी सह बालावबोध, पृ. २८अ - ३३अ, संपूर्ण, वि. १९३६, कार्तिक शुक्ल, ८.
"
रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्म, वि. २४वी, आदिः श्रेयः श्रिवां मंगल, अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये श्लोक-२५. रत्नाकरपच्चीसी-बालावबोध, मु. जीवराज, मा.गु., गद्य, वि. १९२०, आदि: सत्य चोवीसेजिन नमुं; अंति: जीवराज ०
धर्मनो मर्म.
४. पे. नाम. अभव्य कुलक सह टबार्थ, पृ. ३३आ-३४अ, संपूर्ण.
अभव्य कुलक, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: जह अभवियजीवेहिं न अंतिः हावि तेसिं न संपत्ता, गाथा- ९. अभव्य कुलक-टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: जीवनी दोय रास एक तो अंति: होय अभव्य जीवाने, ५. पे. नाम. आगमिक विचार संग्रह, पृ. ३४अ - ३५आ, संपूर्ण.
विचार संग्रह, प्रा.मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
६. पे. नाम. गौतम कुलक सह टबार्थ, पृ. ३५-३७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
गौतम कुलक, प्रा. पद्य, आदि; लुद्धा नरा अत्थपरा, अंति: (-). (पू. वि. गाथा १९ अपूर्ण तक है.)
"
गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभी नर लक्ष्मी, अंति: (-).
६११५१. कल्पसूत्र-साधुसमाचारी सह कल्पद्रुमकलिका टीका, संपूर्ण, वि. १९०२, पौष शुक्ल १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २६, ले. स्थल वालूचरनगर, प्रले. पं. नित्यसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीदेवगुरुप्रसादात् श्रीसंभवजिन प्रसादै, दे. (२५x१२, १६x४१).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-) अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण
कल्पसूत्र - कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि (-); अंतिः कल्याणं सर्वदा भवतु, प्रतिपूर्ण, ६११५२. पाक्षिकप्रतिक्रमण सूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६ - १ (१) = २५, जैदे., ( २४.५X१२, ५X३५-४४). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडं, (अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है, सूत्र -५ अपूर्ण से
है.)
पाक्षिकसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छामिदुकडं देउ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
२५३ ६११५३. जातकपद्धति सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४१३, ४४२७).
जातकपद्धति, मु. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदि: प्रणम्य पार्श्वदेवेश; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-८८ अपूर्ण तक
जातकदीपिका पद्धति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणाम करी पार्श्व; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१८ अपूर्ण तक टबार्थ
लिखा है.) ६११५४. पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री संबंध, संपूर्ण, वि. १९२०, आश्विन शुक्ल, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. १८, प्रले. मु. कल्याणनिधान (गुरु ग. हसविशाल); गुपि.ग. हसविशाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, १३४३४).
__ पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथानक, सं., प+ग., आदि: धर्मतः सकलमंगलावली; अंति: जयो वांछितावाप्तिः. ६११५५. (+) सिंदूरप्रकर सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१९, फाल्गुन शुक्ल, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. १६, ले.स्थल. योधपुर, प्रले. आ. जिनोदयसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१२, ६x४१). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: ज्ञानगुणास्तनोतु, द्वार-२२,
श्लोक-१००.
सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कवीश्वर ग्रंथने धुरे; अंति: गुण ते प्रते तनोतु. ६११५६. (+) नागश्री कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१३, १३४३०). नागश्री कथा-रात्रिभोजन परिहार, म. ब्रह्मनेमिदत्त, सं., पद्य, आदि: श्रीमज्जिनं जगत; अंति: (-),
(पू.वि. श्लोक-३६१ अपूर्ण तक है.) ६११५७. संथारपइणं सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३७, श्रावण शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. १५, दे., (२५४११.५, ५४३०-३५).
संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: काऊणं नमुक्कारो जिण; अंति: सुहसंकमणं मम दिंतु, गाथा-१२२.
संस्तारक प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: करीनइ नमस्कार जिणवर; अंति: आविबल सुख दि० दीउ. ६११५८.(+) नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९७४, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, १६४५३).
नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: नाणं सेत्तं नंदी, सूत्र-५७,
गाथा-७००. ६११५९. (+) कल्पसूत्र-महावीरस्वामी जन्मकल्याणक सहटबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१२, ६-१३४४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पांचवीं
वाचना अपूर्ण तक लिखा है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६११६०. (+) अष्टाहिका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९०८, पौष कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. मूलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., दे., (२५४१२.५, १५४३८).
अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीशशांतिकर्ता; अंति: पद्यबंध
विलोक्य तत्. ६११६१. (+) अंतगडदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ३२-२३(१ से १२,१७ से १८,२१ से २७,३० से ३१)=९, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, ९x४६-४८). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वर्ग-३, अध्ययन-८ अपूर्ण से वर्ग-८,
अध्ययन-७ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के कुछ पाठांश नहीं हैं.)
अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६११६२. (+) साधुश्रावक प्रतिक्रमणसूत्र व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-८(१ से ८)=११, कुल पे. ४,
ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. ग. वीरचंद्र; पठ.मु. शिवचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ९४३०-३५).
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२५४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. देवसीराईप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. ९अ-१६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-अंचलगच्छीय, संबद्ध, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: अचलगच्छ०
वंदना होइजो, (पू.वि. द्वाद्वशक्तगत व्रत-११ अतिचार अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. लघु सज्झाय, पृ. १६अ-१७आ, संपूर्ण. नंदीसूत्र सज्झाय, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: सयं जिणंदवर
वीरसासणं, गाथा-२४. ३. पे. नाम. बडी सज्झाय, पृ. १७आ-१९आ, संपूर्ण.
स्थविरावली सज्झाय, प्रा., पद्य, आदि: सुहम्मं अग्गिवेसाणं; अंति: केवलनाणं च पंचमियं, गाथा-२७. ४. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र-द्रुमपुष्पिका अध्ययन, पृ. १९आ, संपूर्ण.
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६११६३. विचारषट्विंशिका सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९३७, श्रावण कृष्ण, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. धानेरा,
प्रले. पं. लालविजय; अन्य.पं. चतुरविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीअजितशांति प्रसादात्., दे., (२५४११.५, ११-१७४३२-३८). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ,
गाथा-४२.
दंडक प्रकरण-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: मन वचन कायाई नमस्कार; अंति: हितनी करणहारी छे. ६११६४. (+) नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१२, १८४६१).
नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: नाणं से त्तं नंदी, सूत्र-५७,
गाथा-७००. ६११६५.(+) दंडक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१२.५, ४४२५). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ,
गाथा-४१.
दंडक प्रकरण-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने चोवीस; अंति: आत्माने हितकारिणी. ६११६६. पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ८, ले.स्थल. सुजाणगढ, प्रले.पं. मुहणचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १४४३४).
पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नत्वा जिनेंद्र; अंति: कुलीनाय हितात्मने, श्लोक-१९६. ६११६७. (+#) स्तुति स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने
छप गए हैं, दे., (२५४१२.५, १०४४४). १.पे. नाम. पद्मावतीदेवी स्तव, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, वि. १९४८, भाद्रपद शुक्ल, ८, प्रले. मु. रामचंद्र; पठ.मु. तेजकर्ण,
प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. श्रीगुरुदेव प्रसादात्.
सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: पद्मावतीस्तोत्रम्, श्लोक-२७. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: विधातारं तावद; अंति: विशोध्या शिखरिणी, श्लोक-१५. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हत्सिद्धमुनि; अंति: जीयात दृढालंबनम, श्लोक-१. ४. पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. ५अ-७आ, संपूर्ण.
आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आयताक्षरसंलक्ष्य; अंति: ल्लभ्यते पदमुत्तम, श्लोक-६३. ५. पे. नाम. जिनपंजर स्तोत्र, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. ___ आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ, अंति: श्रीकमलप्रभाख्यः, श्लोक-२५.
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२५५
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ ६११६८. (+) दशवैकालिकसूत्र- अध्ययन १ से ४, संपूर्ण, वि. १९५७, कार्तिक शुक्ल, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. मोरारजी
राघवजी खत्री; अन्य. सा. साकरबाई महासती (गुरु सा. कस्तुरबाई), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२४४११.५, ११-१४४३०-३५).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६११६९. चातुर्मासिकत्रयी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. कुल ग्रं. ४०१, जैदे., (२५४११.५, १६४३६).
चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: सुविशदं व्याख्याभृत,
(वि. प्रतिलेखक ने आवश्यक पद की व्याख्या से लिखना प्रारंभ किया है.) ६११७०. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-१(३)=७, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४११.५, १५४४०).
देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-),
(पू.वि. लघुशांति स्तोत्र तक है.) । ६११७१. (+) कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४१२, १३४४०-४६).
__कालिकाचार्य कथा, सं., गद्य, आदि: वंदामि भद्दबाहुं; अंति: स्थविरावली वाच्याः. ६११७२. दशवैकालिकसूत्र- अध्ययन-१ व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ४, जैदे., (२४४१२,
१३४४०). १. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र-द्रुमपुष्पिका अध्ययन, पृ. १आ, संपूर्ण.
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. सूत्रकृतांगसूत्र-वीरस्तुति अध्ययन, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति:
हिवइ आगमिसंति तिबेमि, गाथा-२९. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण. ___प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंच महव्वय सुव्वय; अंति: मोखपदस्स छंडिसंगभूयं, गाथा-११. ४. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र-नेमिप्रव्रज्या अध्ययन, पृ. ३अ-५आ, संपूर्ण.
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६११७३. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०८, वैशाख कृष्ण, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १६६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं. १६०००, दे., (२५४१२, ७X४२).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६.
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वर्द्धमानजिनं नत्वा; अंति: तुज प्रतै कहुं छु. ६११७४. (+) जंबूअध्ययन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४११.५, ६४३०-३७).
जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० रायगिहे; अंति: (-), (पू.वि. उद्देश-२० अपूर्ण तक
जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: ते कालनइ विषई ते; अंति: (-). ६११७५. नंदीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८५, दत्त. श्राव. हरखचंद गांगजी सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. सं. १९३७, पौष कृष्णपक्ष-८, शनिवार को यह प्रत मुंबई के लोंकागच्छ के उपाश्रय के भंडार में रखने का उल्लेख मिलता है., दे., (२४४११.५, ७X२२). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: सेत्तं परोक्खणाणं, सूत्र-५७,
गाथा-७००. नंदीसूत्र-टबार्थ*, मागु., गद्य, आदि: ज० जय थाउ तथा; अंति: प० परोक्षज्ञाननो भेद.
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२५६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६११७६. (+) नंदीसूत्र सह टबार्थ, बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२, ८-२४४१५-५१).
नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: अणुजाणामि, सूत्र-५७, गाथा-७००. नंदीसूत्र-टबार्थ* मा.गु., गद्य, आदि: नंदी ते आनंदनी देण; अंति: किस्युं अ० आचारांग. नंदीसूत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: सेलयघण जे सेल ते; अंति: द्रव्यनउ विचार कहीसी.
नंदीसूत्र-कथा संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: कुंडक० घडानउ; अंति: ए वेश्यानी बुद्धि, कथा-९८. ६११७७. (+) अष्टप्रकारीपूजाफल सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९७, पौष शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ६०, ले.स्थल. सोझत, प्रले. मु. कस्तुरहस
(गुरु मु. प्रधानहंस); गुपि. मु. प्रधानहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१८७) धने च जोवने पुस्तकैषुरंभे, जैदे., (२५४१२, ९४३३).
८ प्रकारीपूजा कथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: पणमह तं नाभिसुअं; अंति: होही तुह सिवफला चेव, कथा-८. ८ प्रकारीपूजा कथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तुजने मोक्ष दातावली, (वि. प्रतिलेखक ने दूसरी
गाथा से टबार्थ लिखा है.) ६११७८. (+) साडात्रणसौगाथानुंस्तवन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६९-२(१,६४*)=६७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१२.५, ४४२४-२९). सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-),
(पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-१, गाथा--२ अपूर्ण से ढाल-१७, गाथा-३५३ अपूर्ण तक है.) सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-),
पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. ६११७९. भगवतीसूत्र सह टबार्थ- शतक १ से ३, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६७, अन्य. मु. हीरालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, ६४५५). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेण; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., शतक-३ के उद्देश-१ तक ही लिखा है.)
भगवतीसूत्र-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि: तेणं० णं इसे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६११८०. (+) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६१, माघ कृष्ण, ४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५४, ले.स्थल. कृष्णगढ,
प्रले.पं. हमीरकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वप्रभु प्रसादात् पत्रांक-१ "आ" पर पंचपरमेष्ठि गुण अपूर्ण लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५४१२, ५४२९). पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि: स्मृत्वा पार्श्व; अंति: हेतुः सकामान्,
श्लोक-६२४.
पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: समरु भजु पार्श्व; अंति: धर्ममार्ग प्ररूपी. ६११८१. (+) कल्पसूत्र-महावीरजिन चरित्र सहटबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१-२(३९ से ४०)+१९(१ से १९)=५८, प्र.वि. संशोधित-संशोधित., दे., (२४.५४१२, ६-११४३७-३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., बीच के पाठांश नहीं है व महावीरजिन भविष्यफलकथन अपूर्ण तक लिखा है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६११८२. (+#) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ४६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश
खंडित है, जैदे., (२५४१२, ६x४१).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
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उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: दिवसेसु उद्दिसंति०, अध्ययन-१०, (वि. पत्र दीमकभक्षित होने के कारण अंतिमवाक्य अवाच्य है.)
उपासक दशांगसूत्र- बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालनई विषे ते अंतिः पछे समुदेश की जह.
६११८३. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १९६७, आषाढ़ शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ४२, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे.,
(२४४१२, १७४५२).
"
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि: संजोगाविष्यमुक्तस्स अंतिः सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन- ३६. ६११८४. नवस्मरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७४, आषाढ़ कृष्ण, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३५, प्रले. राघवजी गोर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. १२५०, जैदे.
(२४४१२, ४४३२).
"
नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ अंति: जैनं जयति शासनं, स्मरण-८,
"
.
(वि. कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं है.)
नवस्मरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत विहरमाननइ; अंति: शासन जयवंत प्रवर्तो.
६११८५. कुमतिमतखंडन कुलक सह टीका, संपूर्ण, वि. १९५३, माघ शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३८, ले. स्थल. बीकानेर, प्रले. मु. ऋद्धिकर्ण, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २४.५X१२, १५X३६).
२५७
औष्ट्रिकमतोत्सूत्रोद्घाटन कुलक, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, आदि: पणमिय वीरजिणंद सुरि, अंतिः तुरियं
निअबोहणडाए, गाथा- १८.
धर्मसागरोपाध्यायोपज्ञ कुलक- टीका, पं. गुणविनय गणि, सं., गद्य, वि. १६६५, आदि: प्रणम्य रम्यशर्माणं, अंतिः णविनयैः श्रीनव्यनगरे ६११८६. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३६- ५ (१ से ५) = ३१, पू.वि. बीच के पत्र हैं. दे., ( २४.५x१२.५, १०x२१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सौधर्म इन्द्र के द्वारा भगवद् दर्शन वर्णन से भगवान की गर्भावस्था में मातृभक्ति के वर्णन तक है.)
६११८७, (+) संग्रहणीसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८०७ पौष शुक्ल १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३६, ले. स्थल, सीरोहीनगर,
,י
प्रले. ग. राजशील (गुरु ग. लावण्यशील); गुपि. ग. लावण्यशील, पठ. मु. रत्नशील (गुरु ग. राजशील), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसंभवनाथ प्रसादात्., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (६२५) जलात् रक्षेत् तैलात् रक्षेत्, जैदे., ( २४४१२, ६३४).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ, अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३३५. बृहत्संग्रहणी - टवार्थ मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ अरिहंत, अंतिः तिहां तांह पंचास्यह
६११८८. (+) सम्यक्त्वकौमुदी, संपूर्ण, वि. १८१९, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३३, ले. स्थल. सांडेरानगर, प्रले. पं. विनयविज गणि (गुरु ग. देवेंद्रविजय); गुपि. ग. देवेंद्रविजय; ग. जयविजय (गुरु पंन्या. अमृतविजय); पंन्या. अमृतविजय (गुरु पंन्या. सिंहविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित कुल ग्रं. १३१५, जैदे. (२४.५४११, १५४३५-४५),
सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४५७, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: विपर्ययादिष्यते बंधः,
पद- ४४४.
६११८९. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३५-५ (१ से ४,३४) ३०, पू. वि. बीच के पत्र हैं. दे. (२४४१२,
,
११x२४-३०).
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दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि (-); अंति: (-) (पू. वि. अध्ययन-४ अपूर्ण से अध्ययन-९, उद्देश-३ अपूर्ण तक है.)
६११९० (+) नंदीसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८७७, फाल्गुन कृष्ण, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३२-२ (७, २०)-३०,
ले. स्थल, रामपुरा, प्रले. मु. हेमराज यति (गुरु मु. रतन) गुपि. मु. रतन ( गुरु मु. रुपचंद): मु. रुपचंद (गुरु मु. खेमराज): मु. खेमराज (गुरु मु. रायभाण ऋषि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ३०००, अक्षरों की स्याही फैल है, जैदे., (२५x११.५, ११४४२-४९).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा. प+ग, आदि: जयड़ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः वीसरमणुसाई नामाई, सूत्र- ५७,
"
गाथा - ७०० (पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.)
""
नंदीसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नंदी कहतां आणंदनो; अंति: अनुज्ञाना नाम जाणवा, पू. वि. बीच-बीच के पत्र
नहीं हैं.
६११९९ (+) कूर्मापुत्रचरित्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९२९ फाल्गुन कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. २७, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ६२१, वे., (२५x११.५, ५४३१-३६).
कुम्मापुत्त चरिअ, मु. जिनमाणिक्य, उपा. अनंतहंस, प्रा. पद्य वि. १६वी, आदिः नमिऊण वद्धमाणं असुर, अंतिः इच्छतं चिरं जयउ, गाथा - १९८.
६१९९३. (+)
कुम्मापुत चरिअंटवार्थ * मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर, अंतिः परम आनंदसुखने पामो
3
६११९२. (+) भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४४ वैशाख शुक्ल ५ रविवार, मध्यम, पृ. २६, पठ. मु. नागजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३X११, ५x२७).
भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: वंदितु वंदणिज्जे, अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३,
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गाथा - १४८.
भाष्यत्रय - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांदी नमस्कार करीनइ, अंति: बाधा पीडा रहित.
बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २८, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५X१२, ७x४८). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पड़ निग्गंधाण, अंतिः कप्पदुई तिबेमि, उद्देशक- ६. बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नो० नहि कल्पे, अंति: तुझ प्रते कहुं छु.
६११९४, (+) भक्तामर, कल्याणमंदिर व उवसग्गहर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९१७, माघ शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ३, ले. स्थल. जेसलमेरु, प्रले. मु. साहिबचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, दे., ( २४४१२, ९४२६-३१).
१. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १आ- ६अ, संपूर्ण.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमीलि अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४.
२. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ६अ. १०आ, संपूर्ण,
आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, बि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. ३. पे. नाम. उवसग्गहरं स्तोत्र, पृ. १० आ, संपूर्ण.
उवसमाहर स्तोत्र - गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि उवसग्गहरं पासं पासं, अंति (-) (अपूर्ण,
,
"
पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा- २ मात्र हैं., वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा लिखकर कृति पूर्ण कर दी है.) ६११९५ (4) स्तुति स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २४- १ ( ९ ) = २३, कुल पे ५१, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है. वे.. (२२x१२, १४४३९).
१. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण.
पंचप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय, संबद्ध प्रा. सं., प+ग, आदि: णमो अरिहंताणं० जयउ, अंति: तुज्झतिसंझ नमोत्थु
"
,
२. पे. नाम श्रुतदेवता स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण,
सं., पद्य, आदि: सुवर्ण शालिनी देयाद्; अंति: मशेषश्रुत संपदम्, श्लोक - १.
३. पे. नाम. भुवनदेवता स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: चतुर्वर्णाय संघाय अंतिः करोतु सुखमक्षतम्, श्लोक १.
४. पे. नाम. क्षेत्रदेवता स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण.
संबद्ध, सं., पद्य, आदिः यासां क्षेत्रजगता; अंतिः रक्षंतु क्षेत्रदेवता, श्लोक १. ५. पे. नाम. प्रतिक्रमण स्तुति, पृ. ५अ संपूर्ण
सं., पद्य, आदि: कमलदल विपुल नयना, अंतिः भूयान्नः सुखदायिनी, लोक-३. ६. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण.
प्रा.,सं., पद्य, आदि: परसमयतिमिरतरणिं भव; अंति: मे मंगलं देवि सारं, गाथा-४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
२५९ ७. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: नमोस्तु वर्द्धमानाय; अंति: भाजां श्रुतांगी, श्लोक-४. ८. पे. नाम. प्रतिक्रमणविधि, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: भयवंदसण्णभद्दो सुदं; अंति: करी मिच्छामि
दुक्कडं. ९. पे. नाम. स्थंभनपार्श्वजिन स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., पद्य, आदि: श्रीसेढीतटिनीतटे; अंति: नाथो नृणां श्रिये, श्लोक-२. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन चैत्यवंदन, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: चउक्कसायपडिमलुल्लूरण; अंति: पासु पयच्छउ वंछिउ, गाथा-२. ११.पे. नाम. पंचपरमेष्टिनमस्कार स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण..
५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति, सं., पद्य, आदि: अहँतो भगवंत इंद्र; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. ६आ, संपूर्ण.
सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: श्रियसे पार्श्वदेवं, श्लोक-१. १३. पे. नाम. अतिचार आलोयणा, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: आजूणा चार पहर दिन मे; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. १४. पे. नाम. मुहपत्तीपडिलेहण के ५० बोल, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अर्थतत्व साचौ; अंति: जीमणै पगै परिहरीयै. १५. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण.
आदिजिनसीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय त्रिभुवन आदि; अंति: प्रति करुं प्रणाम, गाथा-२. १६. पे. नाम. सिद्धाचल स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धो विजाइ चक्की; अंति: तित्त्थमेयं नमामि, गाथा-२. १७. पे. नाम. मंगल श्लोक, पृ. ७आ, संपूर्ण..
सं., पद्य, आदि: शिवमस्तु सर्वजगतः; अंति: सुखी भवंतु लोकाः, गाथा-१. १८. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय नाभिनरिंदनंद; अंति: निसदिन नमत
कल्याण, गाथा-३. १९. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. शांतिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमां जिनवर शांति; अंति: लहिये कोड कल्याण,
गाथा-३. २०.पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ८अ, संपूर्ण.
नेमिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह सम प्रणमौ नेमि; अंति: क्षमा० करै प्रणाम, गाथा-३. २१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: पुरसादाणी पासनाह; अंति: प्रगटै परम
कल्याण, गाथा-३. २२. पे. नाम. वीरजिनस्तुति, प्र. ८अ, संपूर्ण. महावीरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु जगदाधार सार सिव; अंति: कल्याण करी
सुपसाय, गाथा-३. २३. पे. नाम. समेतशिखर चैत्यवंदन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: पूरव दिसे दीपतो; अंति: तीरथ करण कल्याण, गाथा-३. २४. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण.
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सं., पद्य, आदि: सर्वारिष्टप्रणाशाय; अंति: गौतमस्वामिने नमः,
श्लोक-१.
२५. पे नाम. शारदादेवी स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., पद्म, आदिः अवामा वामादे सकलमुनयः अंतिः हरतु मे दुरितं श्लोक-२. २६. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: सुवर्णवर्ण गजराज, अंतिः ऋषभं जिनोत्तमम्, श्लोक १.
२७. पे. नाम. ज्ञानपहरावणी गाथा, पृ. ८आ, संपूर्ण.
ज्ञान पहिरावणी गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नमंत सामंतमही विनाहं, अंतिः नाणस्सलाभाय भवसु पाय.
".
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
२८. पे. नाम. देसावगासी पच्चखाण, पृ. ८आ, संपूर्ण
देसावगासिक पच्चक्खाण, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: अहनं भंते तुम्हाणं; अंति: गारेण वोसिरामि
२९. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है.
सिद्धचक्र नमस्कार, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत उदार कांत; अंति: (-), (पू. वि. प्रथम गाथा अपूर्ण तक है.)
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३०. पे नाम, आठम स्तुति, पृ. १०अ अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: इम जीवित जनम प्रमाण, गाथा-४, (पू. वि. गावा- ३ अपूर्ण तक नहीं है.)
३१. पे. नाम. दशमी स्तुति, पृ. १०अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि; अश्वसेन नरेश्वर वामा; अंतिः जिनभक्तिसूरि० चित्त, गाथा ४. ३२. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. १०अ १० आ, संपूर्ण
मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि, अंतिः सुखं विस्मत हृदः, श्लोक-४.
३३. पे नाम चतुर्दशी स्तुति, पृ. १०आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति - नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि में ट्रें कि धप, अंतिः विशतु शासनदेवता, श्लोक-४.
गाथा-४.
३५. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ११अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदिय पाय; अंति: मंगल करो अंबा देविये, गाथा-४.
३६. पे नाम. नवपद स्तुति, पृ. १९अ ११आ, संपूर्ण
३४. पे. नाम. अमावस्या महावीर स्तुति, पृ. १० आ-११अ संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुरति मनमोहन कंचन, अंति: इम श्रीजिनलाभसूरिंद,
सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु, पद्य, आदिः निरुपम सुखदायक; अंतिः श्रीजिनलाभसूरिंदाजी, गाथा ४. ३७. पे. नाम. पर्युषण स्तुति, पृ. १९आ, संपूर्ण.
पर्युषण पर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु. पच, आदि: वली वली हुं घ्यावं; अंतिः कहै जिनलाभसूरींद, गाथा-४. ३८. पे. नाम. शेत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पृ. ११-१२ अ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीशत्रुंजयमंडण अंति: नंदसूरि० पाय सेवता, गाथा ४. ३९. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. १२अ संपूर्ण
सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं, अंति: दद्यात्सौख्यम्, श्लोक - १.
४०. पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १२अ - १३आ, संपूर्ण.
वंदित्सूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे, अंतिः वंदामि जिणे चडवीसं, गाथा-५०.
४९. पे. नाम संथारापोरसी सूत्र, पृ. १३आ-१४आ, संपूर्ण.
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संधारापोरसीसूत्र, प्रा. पद्य, आदि निसीहि निसीहि निसीहि अंतिः जीवा कम्मवसु० खमंतु, गाथा १७. ४२. पे. नाम. उपदेशमाला प्रकरण, पृ. १४आ- १५ आ, संपूर्ण, वि. १९५६.
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२६१
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: उप्पन्नं केवलं नाणं,
गाथा-३३. ४३. पे. नाम. द्रुमपुप्फिका अध्ययन, पृ. १६अ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ;
अंति: साहुणो त्तिबेमि, गाथा-५. ४४. पे. नाम. मांगलिक श्लोक, पृ. १६अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: सर्वमंगल मांगल्यं; अंति: जैन धर्मोस्तु मंगलम्, श्लोक-२. ४५. पे. नाम. लघुशांति स्तोत्र, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण.
लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ४६. पे. नाम. सप्ततिशतजिन स्तोत्र, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण.
तिजयपहत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निभंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ४७. पे. नाम. नवग्रहगर्भित पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति:
जिणप्पहसूरिन पीडंति, गाथा-१०. ४८. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिनानां नवग्रह गर्भित स्तोत्र, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण.
ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांति विधिर्मता, श्लोक-१२. ४९. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि बृहन्नवकारमहामंत्र स्तवन, पृ. १८अ-१९आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पत्तरू रे; अंति: सेवा देज्यो नित्त,
गाथा-१३. ५०. पे. नाम. बृहत्शांति, पृ. १९आ-२१आ, संपूर्ण.
बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे. ५१. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. २१आ-२४अ, संपूर्ण.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ६११९६. नवस्मरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, दे., (२५४११.५, ४४३०).
नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: (-), (वि. प्रतिलेखक ने
भक्तामरस्तोत्र, कल्याणमंदिर व बृहत्शांति स्तोत्र नहीं लिखा है.) ६११९७. (+) अंबड चरित्र, संपूर्ण, वि. १८२०, फाल्गुन कृष्ण, १४, गुरुवार, मध्यम, पृ. २३, ले.स्थल. रूपनगर,
पठ. आ. जिनोदयसूरि; प्रले. पं. विनयकीर्ति, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं.१३००, जैदे., (२४४११, १७४४०).
अंबड चरित्र, ग. अमरसुंदर, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: धर्मात् संपद्यते; अंति: लेखकानाम्. ६११९८. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३९-१७(१ से १७)=२२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४११, ५४३३-३६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पिंडैषणा अज्झयण,
उद्देश-१, गाथा-२० से धम्त्थकाम अज्झयण, उद्देश-६, गाथा-२५ अपूर्ण तक है.)
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६११९९. (+) ढालसागर रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १६x४३-४४).
पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: श्रीजिन आदिजिनेश्वरू; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-३० की गाथा-१७ अपूर्ण तक लिखा है.) ६१२००. (+) विपाकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३-१२(१ से ११,३२)=२१, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,
प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१२,१५४३८-४२).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति (-) (पू. वि. प्रथम श्रुतस्कंध, अध्ययन-३ अपूर्ण से अध्ययन १० अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.)
६१२०१. (+) विचारषट्त्रिंशिका सह टबार्थ व बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १७९४, श्रावण कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. २१-१(१९)=२०, कुल पे. ७, प्रले. पं. हेमराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे., (२२.५X११, १३x४५).
१. पे नाम, विचारषट्त्रिंशिका सह टवार्थ, पृ. ९अ १८अ संपूर्ण.
दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि नमिठं चउवीसजिणे तस्स, अंति: गयसारेण० अप्पहिआ
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गाथा ४६.
दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनै चौवीस; अंति: आपणा जीवनै हितकारिणः. २. पे. नाम. सागरोपम पल्योपम विचार, पृ. १८आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: पूर्व १ पल्योपम २; अंति: एक १ कालचक्र हुवै.
३. पे. नाम. जंबूद्वीपादि विचार, पृ. १८आ, संपूर्ण.
जंबूद्वीपादिविचार संग्रह, प्रा. मा.गु., प+ग, आदि: पांच से छबीस जोयण, अंतिः सिघि लाख जोजन ४. ४. पे. नाम. ४ थोक ४५ पैंतालीस लाख योजनरा अढाई द्वीप माहे सूरज छै तिणरी विगति, पृ. २०अ, संपूर्ण. जंबूद्वीपक्षेत्रविस्तार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीप लाख जोजन २; अंति: चक्रवर्त्ति रै हुवै.
५. पे. नाम. २४ दंडक गति आगति विचार, पृ. २०आ- २१आ, संपूर्ण.
गति आगति द्वार विचार - २४ दंडके, मा.गु., गद्य, आदि: १ नारकी १० भुवनपत्ती; अंति: ५ अनोभर विमान ५ रा. ६. पे. नाम. १२ चक्रवर्त्ती नाम, पृ. २१आ, संपूर्ण.
१२ चक्रवर्ती नाम, मा.गु., गद्य, आदि: भरथ १ सगर २ मघवा ३; अंति: ब्रह्मदत्तचक्री १२.
७. पे. नाम. अढार नातरा नाम, पृ. २१आ, संपूर्ण.
१८ नातरा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मात एक तेणइ बांधव १; अंति: बालकसुं पुरषसुं सगपण.
६१२०२. (#) जंबूअध्ययन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २७-१० (१ से ९, २६) = १७, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, जैदे., ( २१x१२, ५x२३).
.
जंबू अध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., वीतशोकानगरी में धर्मघोषसूरिशिष्य के मासक्षमण पारणा प्रसंग से कुबेरदत्त कुचेरदत्ता को पेटी में रखकर यमुना मे प्रवाह करने प्रसंग तक है. बीच कुछ पाठांश नही है. )
जंबू अध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं.
६१२०३. (+) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे. ७, ले. स्थल. पालनपुर, प्र. वि. श्रीपलवीवाजी प्रसादात्, संशोधित, जैदे. (२४४११, ११४२६-२८).
१. पे. नाम. श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ- १६आ, संपूर्ण.
देवसिप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदिः नमो अरिहंताणं; अंतिः करी मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १६-१७अ, संपूर्ण.
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, आदिः करेमि भंते पोसहं, अंतिः अम्ह सवा पसत्था.
३. पे. नाम. बीजनी थूई, पृ. १७अ, संपूर्ण.
जतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा- ४. ४. पे नाम, पांचमनी ई. पू. १७अ १७आ, संपूर्ण
नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रावण सुदि दिन, अंति: सफल थयो अवतार तो, गाथा-४.
५. पे. नाम. आठमनी थई. पू. १७आ-१८अ संपूर्ण.
संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा. सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीर, अंतिः देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ ६. पे. नाम. एकादशी थूई, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: गुण० संघ तणा
निसदीस, गाथा-४. ७. पे. नाम. चउदशनी थोय, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण.
पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सर्वकार्येषु सिद्धम्, श्लोक-४. ६१२०४. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ-अध्ययन ९, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२५४११.५, ५४२५-३६).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६१२०५. (+) राजप्रश्नीयसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४०-२७(१ से १८,३० से ३८)=१३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२५४११.५, ५४३१). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूर्याभदेव के प्रेक्षागृह निर्माण प्रसंग अपूर्ण से सूर्याभदेव द्वारा
भगवान महावीरस्वामी की वंदना करने के प्रसंग अपूर्ण तक है.) ६१२०६. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२४४१२, ६-९४४५).
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं
हैं., रानी धारणी के दोहद प्रसंग वर्णन अपूर्ण तक है.)
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणे काले चोथा; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ६१२०७. (+) भयहर स्तोत्र व अजितशांतिजिन स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. ३, ले.स्थल. पत्तण,
प्रले. मु. छजमल (गुरु मु. नागजी ऋषि, लोंकागच्छ); गुपि. मु. नागजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२२.५४११.५, ६४३२). १.पे. नाम. भयहर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण, वि. १८४६, फाल्गुन शुक्ल, १, बुधवार.
नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण; अंति: भयं तस नासेई दूरेण, गाथा-२४.
नमिऊण स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा प्रणमामि देवसम; अंति: एहवा श्रीपार्श्वनाथ. २. पे. नाम. अजितशांतिजिन स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. ५अ-१३अ, संपूर्ण. अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: अजिअसति जिणनाहस्स,
गाथा-४२, (वि. १८४६, फाल्गुन कृष्ण, १०, गुरुवार) अजितशांति स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अजित जीत्या सर्व भय; अंति: जिन सामान्य केवलीनाथ, (वि. १८४६,
फाल्गुन कृष्ण, ११) ३. पे. नाम. भरतक्षेत्र विस्तार वर्णन, पृ. १३आ, संपूर्ण. भरतक्षेत्रे आर्यम्लेछ क्षेत्रफल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: भरतक्षेत्रना क्षेत्र; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण. ६१२०८. (+) संग्रहणी प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्रले. पं. दीपचंद्र; पठ. श्रावि. लछीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११,११-१३४४३).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३६८. ६१२०९. (+) जिनसहस्रनाम स्तव सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-७(२ से ६,१३ से १४)=१७, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१२, १४४३७). जिनसहस्रनाम स्तोत्र, श्राव. आशाधर, सं., पद्य, वि. १२८७, आदि: प्रभो भवांगभोगेषु; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३
तक, ५१ अपूर्ण से ९९ तक व ११८ अपूर्ण से १३६ तक है.)
जिनसहस्रनाम स्तोत्र-टीका, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., गद्य, आदि: ध्यात्वा विद्यानंद; अंति: (-). ६१२१०. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदे., (२४.५४११, १४-१८४३६-४६).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुक्किहं, अंति: अपुणागमं गइत्ति बेमि अध्ययन १० चूलिका २.
६१२११. द्रव्यसंग्रह सह टबार्थ व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १७९५, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. २, ले. स्थल नाडूलनगर, प्रले. पं. मोहनविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२५x११, १५X४०-४५).
१. पे. नाम. द्रव्यसंग्रह, पृ. ९अ १४आ, संपूर्ण.
आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: जीवमजीवं दव्वं जिणवर; अंति: मुणिणा भणियं जं, अधिकार-३,
गाथा - ५८.
द्रव्यसंग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि जीवद्रव्य अजीवद्रव्य, अंतिः देवे ए ग्रंथ कीधो. २. पे. नाम. देवद्वार विचार, पृ. १४-१५आ, संपूर्ण.
५ देव बोल, मा.गु., गद्य, आदिः भविव द्रव्यदेवा १ अंतिः भावदेवा असंख्यातगुणा.
(+)
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६१२१२. (+) पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८८९, फाल्गुन शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ. १६, ले. स्थल. पालणपुर, प्रले. पं. शिवचंद्र (गुरु मु. वीरचंद्र); गुपि. मु. वीरचंद्र, राज्यकाल फत्तेखान, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २४.५X११.५, १०X३०-३४). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि: तित्थंकरे व तित्थे, अंतिः जेसिं सुवसायरे भत्ति.
,
६१२१३. (+) श्रावकदिनकृत्य प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित., जैदे.,
(२४.५X१२.५, १२x२८-३१).
श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वीरं नमिऊण तिलोयभाणु अंति: (-), (पूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा-३३८ अपूर्ण तक है)
"
६१२१४. () सिंदूरकर व धर्मोपदेश काव्य, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५ कुल पे. २, पठ. केसरीसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५X१२, ११x२८).
१. पे. नाम. सिंदूरप्रकर. पू. १ आ-१४आ, संपूर्ण.
आ. सोमप्रभसूरि, सं. पद्य वि. १३वी आदि सिंदूरप्रकरस्तपः अंतिः सोमप्रभ० मुक्तावलीयम्, द्वार २२ श्लोक- ९८. २. पे नाम, धर्मोपदेश काव्य, पृ. १४ आ-१५आ, संपूर्ण,
जैन लोकसंग्रह, सं., पद्य, आदि: हर्षेशोकभयं जये रिपु, अंतिः कस्येन स्थानमस्य श्लोक-४.
६१२१५.
व्यवहारसूत्र चुलिका-सोलह स्वप्न विचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैवे. (२३.५४११.५, ३४३३).
"
व्यवहारसूत्र - चुलिका सोलह स्वप्न विचार, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं अंतिः वसई सो सुहिय भविस्सई.
व्यवहारसूत्र - चुलिका का टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि; ते० तेणें काले पांच अंति: मुगतिनां सुख पामसे. ६१२१६. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र. वि. संशोधित. दे. (२४.५X१२, ६४५८). साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह से.मू. पू., संबद्ध, प्रा., सं., प+ग, आदि आवसही इच्छाकारेण अंतिः खमामि सव्वस्स
"
,
अहयंपि
११X३२).
१. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र. पू. १अ ११आ, संपूर्ण.
साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि आवसही कहेतउ सावधान, अंति
६१२१७. (+) पाक्षिकसूत्र व पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण वि. १८५०, चैत्र शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, ले. स्थल, पत्तननगर, प्र. श्राव, वखता; अन्य. ग. रंगविजय (गुरु पं. हेमविजय गणि, तपागच्छ); गुपि. पं. हेमविजय गणि (गुरु आ. विजयधर्मसूरिश्वर, तपागच्छ); आ. विजयधर्मसूरिश्वर (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., जैवे. (२४४११.५.
हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि: तित्थंकरे अ तित्थे; अंति: मणसा मत्थेण वंदामि.
२. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ११आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, सुरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: गोडी गामने गुदरे, अंति: रु हिवे मुझ पार उतार, गाथा- ७.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
२६५ ६१२१८. होली कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४९, चैत्र कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. सीरोहीनगर, प्रले. पं. ज्ञानविजय (गुरु मु. जीवणविजय); गुपि.मु. जीवणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११.५, ७४३५-३९). होलीरजपर्व प्रबंध, ग. फतेंद्रसागर, सं., पद्य, वि. १८२२, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: फतेंद्र० विध्यकापुरे,
श्लोक-१३९.
होलीरजपर्व प्रबंध-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानस्वामीने; अंति: श्रीवीकेवानगर मध्ये. ६१२१९. (+) लोकनालिद्वात्रिंशिका सह टीका, संपूर्ण, वि. १८८४, ज्येष्ठ शुक्ल, १, शनिवार, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. विक्रमपुर,
प्रले. पं. ललितचंद्र मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (११५७) आचंद्रार्क चिरनंद्यात्, जैदे., (२४.५४११.५, १५४३८). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसण विणा जंलोअं; अंति: धम्मकित्ति०
इह भिसं, गाथा-३३. लोकनालिद्वात्रिंशिका-व्याख्या, सं., गद्य, आदि: (१)जिनदर्शनं विना जन्मम, (२)प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: कुरुथ यथा
इह न भ्रमथ. ६१२२०. चंदावेज्झयं पइण्णं, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६-१५(१ से १५)=११, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२३४१२, ५४२७). चंद्रावेध्यक प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१०१ अपूर्ण से १६९ अपूर्ण तक है.,
वि. उपदेशमाला की ४ गाथाएँ भी इस प्रत में संकलित हैं.) ६१२२१. (+) षडशीति कर्मग्रंथ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२४, माघ शुक्ल, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, पठ. मु. लालजी जती
(बृहत्विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ११०, प्र.ले.श्लो. (१६) भणजो गुणजो वाचजो, दे., (२१.५४११, ५-७४३०-३२). षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअजिणं जिअ१ मग्गण; अंति: लिहिउ
देविंदसूरीहिं, गाथा-८६.
षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वीतरागदेवनइ नमस्करी; अंति: श्रीदेवेंद्रसूरि. ६१२२२. (+#) भक्तामर स्तोत्र सह टीका व पूजाविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, ले.स्थल. नवीननगर,
प्रले. ग. जिनविजय (गुरु ग. शांतिविजय); गुपि.ग. शांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११,११-१३४३५-४३). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह लघुटीका, पृ. १अ-१२अ, संपूर्ण...
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणत मौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४.
भक्तामर स्तोत्र-लघुटीका, सं., गद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञं नमस्कृत; अंति: बिभर्ति सर्वोत्तम एव. २. पे. नाम. उमास्वातिविरचिता पूजा विधि, पृ. १२आ, संपूर्ण.
पूजा प्रकरण, वा. उमास्वाति, सं., पद्य, आदि: स्नानं पूर्वोन्मुखी; अंति: कृत्वारत्रिकमंगलं, श्लोक-१९. ६१२२३. पाखीसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, दे., (२५४१३, १४४३२). १.पे. नाम. पक्खिसूत्र, पृ. १आ-१२अ, संपूर्ण.
हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: तेसिं सिवसायरेमभत्ती. २. पे. नाम. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण.
संबद्ध, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: मुहपत्ति वंदणीयं; अंति: १२ छ हजार सज्झाय, गाथा-३. ६१२२४. (+) नवतत्त्व सह बालावबोध व जीवोरा भेद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(२४.५४१२.५, १५४३५). १.पे. नाम. जीवोरां भेद, पृ. १अ, संपूर्ण.
अढीद्वीप वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: अढाईद्वीपरा क्षेत्र; अंति: सातमी दारा भेद १४. २. पे. नाम. नवतत्त्व सह बालावबोध, पृ. १आ-१२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
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२६६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- ३८ तक है.)
नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व १ अजीवतत्त; अंति: (-). ६१२२५. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ अध्ययन ९ से १०, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-२(१,१०)=१०, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४११, ३४३१). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से गाथा-४८
अपूर्ण तक एवं गाथा-५३ अपूर्ण से अध्ययन-१० गाथा-१ अपूर्ण तक है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ६१२२६. (+) गुरूनिर्वाण, संपूर्ण, वि. १९६४, श्रावण कृष्ण, ६, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२४४१२, १०४२७).
मणिविजय गुरू निर्वाण, पं. गुलाबविजय, सं., गद्य, आदि: प्रणम्यानंतविज्ञानं; अंति: सिद्धिर्भविष्यतीति. ६१२२७. (+) नवतत्त्व, दंडक प्रकरण व जीवविचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१३.५, ११४२४). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: मिस्सो होइ अजीवो, गाथा-५३. २. पे. नाम. दंडक प्रकरण, पृ. ४आ-७आ, संपूर्ण.
मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: विन्नत्ती अप्पहिया, गाथा-४०. ३. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ६१२२८. (+) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, ९४२६-२९).
प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: इच्छामि खमा० वंदिउं; अंति: (-), (पू.वि. अंत
के पत्र नहीं हैं., जयवीयरायसूत्र गाथा-३ अपूर्ण तक है)। ६१२२९. आचारांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५३-४६(१,८ से ५२)=७, जैदे., (२५४११, ४-६४३२-५०).
आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेण; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं
हैं., प्रारंभ से अध्ययन-१ उद्देश-४ अपूर्ण तक एवं अध्ययन-९ उद्देश-२ गाथा-६ अपूर्ण से अधययन-९ उद्देश-२
गाथा-२ अपूर्ण तक है.)
आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सूयं० सांभल्यो मे० म; अंति: (-), पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ६१२३०. (+) कल्पसूत्र की कल्पलता टीका- व्याख्यान १, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. मु. तिलोकचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१२, १०-१८४३०-३७). कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंति: (-),
प्रतिपूर्ण. ६१२३१. (+) लघुस्वयंभूसिद्धिप्रियै स्तोत्र सह टीका, पूर्ण, वि. १८१३, श्रावण कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१) ७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४११.५, ११४२७-३०). सिद्धिप्रिय स्तोत्र, आ. देवनंदी, सं., पद्य, ई. ६वी, आदि: (-); अंति: देवनंदि० सतामीशिताः, श्लोक-२५,
(पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण से है.)
सिद्धिप्रिय स्तोत्र-लघुस्वयंभू-टीका, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: क: ईशिता प्रभुः सतां, गाथा-२५. ६१२३२. (+) स्तोत्र व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २७-२१(१ से १८,२१ से २३)=६, कुल पे. ७, प्र.वि. पदच्छेद
सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४३). १.पे. नाम. लघुशांति, पृ. १९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं..
आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७, (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सप्ततिशतजिन स्तोत्र, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण.
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२६७
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निभंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ३. पे. नाम. नवग्रहगर्भित पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदुक्खोणालिय; अंति:
गहाण पीडति, गाथा-१०. ४. पे. नाम. घंटाकर्ण महामंत्र, पृ. २०आ, संपूर्ण, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्ट.
घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: नमोस्तु ते स्वाहा, श्लोक-४. ५. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. २४अ-२५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-२० अपूर्ण
से है.) ६. पे. नाम. महावीरजिनविज्ञप्ति स्तवन, पृ. २५अ-२६आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: दृष्टिं
दयालो मयि, श्लोक-३०. ७.पे. नाम. महावीरजिन स्तोत्र, पृ. २६-२७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीर मोहपको; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- ४०
अपूर्ण तक है.) ६१२३३. (+) नवस्मरण, प्रतिक्रमण व साधु आलोयणा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-७(१,१० से १५)=९, कुल पे. ३,
प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४१०.५, ११-१६४३३). १. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. २अ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. भयहर स्तोत्र गाथा-१३ से एवं कल्याणमंदिर स्तोत्र
श्लोक-१० अपूर्ण के पश्चात नहीं है.) २. पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १६अ-१६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, (पू.वि. गाथा-३०
अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. साधु आलोयणा, पृ. १६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: इच्छाकारेण संदिसह; अंति: (-),
(पू.वि. "जाणंह अहंनयाणा" पाठ तक है.) ६१२३४. लघुसंग्रहणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, दे., (२३४१३, ४४२८).
लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्न; अंति: रइया भद्दसूरिहिं, गाथा-३०, (संपूर्ण,
वि. अंत में गाथांक नहीं लिखा है.) लघुसंग्रहणी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने श्री; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
__गाथा-८ अपूर्ण तक का टबार्थ लिखा है.) ६१२३५. (+#) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-३(३ से ५)+१(६)=६, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११.५, ४४३०-४१). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. बीच
व अंत के पाठांश नहीं हैं.)
प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार थाउ श्रीअरि; अंति: (-). ६१२३६. (+) आलाप पद्धति, पूर्ण, वि. १९७७, आश्विन शुक्ल, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१)=८, प्रले. मूलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४४१२, ८-१८४३१).
आलाप पद्धति, आ. देवसेन, सं., पद्य, वि. १०वी, आदि: (-); अंति: यथा जीवस्य शरीरमिति, अधिकार-१९,
सूत्र-२२८, (अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., "ख्यातभाग वृद्धि संख्यात भाग वृद्धिः" पाठ से है.)
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६१२३७. उपासकदशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.
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८, वे. (२४४१२, ८X४०).
"
, י
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उपासक दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: तेणं० चंपा नामं नवरी अंति: (-), (अपूर्ण,
"
पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., आनंद श्रावक की कथा अपूर्ण तक लिखा है.)
६१२३९. (+) दानशीलतपभावना कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५९, कार्तिक शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. नागोर, प्रले. लक्ष्मीनारायण महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२४.५x१२, ५४४३).
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि देवाहिदेवं नमिउण वीर, अंतिः हिवा सूरि खमंतु तेणं,
गाथा ४९.
दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवाधिदेव श्रीमहावीर, अंति: हुइ ते आचार्य खमायो. ६१२४०. व्यवहारसूत्र की चुलिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५०-१९५१, श्रेष्ठ, पृ. ६, दे., ( २४११.५, ५X४४). व्यवहारसूत्र - चुलिका सोलह स्वप्न विचार, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० पाडलीपु, अंतिः वसई सो सुहिय भविस्सई, (वि. १९५०, फाल्गुन शुक्ल, १३, सोमवार, ले. स्थल. सिंघोली, प्रले. मु. देविचंद (गुरु मु. जवाहरलाल, स्थानकवासी); गुपि. मु. जवाहरलाल (गुरु मु. रतनचंद, स्थानकवासी); मु. रतनचंद (स्थानकवासी), प्र.ले.पु. सामान्य )
व्यवहारसूत्र - चुलिका का दवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: ते० तिण काले पांचमा, अंतिः कालमाई सुखीया धासीइम, (वि. १९५१, ले.स्थल. रतलाम, प्रले. मु. हीरालाल (गुरु मु. जवाहरलाल, स्थानकवासी); गुपि. मु. जवाहरलाल (गुरु मु. रतनचंद, स्थानकवासी) मु. रतनचंद (स्थानकवासी), प्र.ले.पु. सामान्य )
६१२४१. (+#) गौतम कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
प्र.ले. लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे. (२४.५४११.५, ४४४३).
श्लो.
गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा, अंति: निवितु सुहं तिज्झंति, गाथा - २०.
गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लु० लोभी न० मनुष्य, अंतिः फलाइ जवावि निवाणं.
६१२४२. (+) गौतमस्वामि रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रावण कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X१२, १०X३१-३८). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: विजयभद्र० इम भणे ए, गाथा-६३.
६१२४३. (#) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, पठ. श्राव. जेठमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., ( २४.५X१२, १x२९-३२).
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा., सं., पद्य, आदि: धर्माजन्मकुले शरीरयद; अंति: दंसणरहिया न सिज्झंति. ६१२४४. होलिकाकल्प सह टबार्ध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदे. (२३४११.५, ६x२९).
"
होलिकापर्व कथा, मु. गुणाकरसूरि शिष्य, सं., पद्य, आदि: ऋषभस्वामिनं मन्ये, अंतिः यतो धर्मस्ततो जयः,
श्लोक-६९.
होलिकापर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ऋषभं कर्षुकं नीमि, अंति: हुवे तेतलो जय हुवे.
६१२४५. (+) वीरथूइ अध्ययन सह टबार्थ व प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६. कुल पे. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४X१२, ३-५X३४).
१. पे. नाम. वीरथुइ अध्ययन सह टबार्थ, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण.
सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिस्सणं समणा; अंतिः आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा - २९.
सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: पु० नरकनां दुख, अंतिः आगमियेकाजे इंद्र
थाय.
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२. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण.
प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: पंच महव्वयसुव्वय, अंति: मोखपहस्स विडिंसगभूयं.
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२६९
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ ६१२४६. (+#) दसाणुवाइसूत्र पद-३ बोलसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १५४४६). १.पे. नाम. दसाणुवाइसूत्र ३ पद, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. ___दसाणुवाइ-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: राजग्रही नगरी गुणसल; अंति: को सुख दुख को वेदा. २. पे. नाम. रूपीअरूपी बोलसंग्रह सह टबार्थ, पृ. ५अ, संपूर्ण. रूपीअरूपी जीवअजीव भेद गाथा, प्रा., पद्य, आदि: कम्मठ पावठाणा मणवयजो; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "णिचंकारणकत्ता सवगदमिदर रहेप्पवेसो" पाठ तक लिखा है) रूपीअरूपी जीवअजीव भेद गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कर्म ८ पाप १८ मन जोग; अंति: (-), अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६१२४७. सीमंधरस्वामी वृद्धस्तवन व सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८६, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २,
जैदे., (२३.५४१२, १२४४१). १.पे. नाम. सीमंधरस्वामी वृद्धस्तवन, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामी सीमंधर
विनती; अंति: जसविजय वाचक जयकरो, ढाल-११, गाथा-१२५, ग्रं. १८८. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र वर सेवा; अंति: राणी नित आतमहित साथे, गाथा-१३. ६१२४८. (+) प्रतिक्रमण सूत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-१६(१ से १५,२०)=५, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(२३४११.५, १३४३०). १.पे. नाम. भरहेसर सज्झाय, पृ. १६अ-१६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है.
संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: पडहो तिहुअणे सयले, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. १६आ-१७आ, संपूर्ण.
संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सूरे उग्गए अब्भत्त; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ. ३. पे. नाम. सकलार्हत् स्तोत्र, पृ. १७आ-१९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४०
अपूर्ण तक है., वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.) ४. पे. नाम. लघुशांति, पृ. २१अ-२१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१२ अपूर्ण तक है.) ६१२४९. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१८x१२.५, १३४२४).
कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते,
श्लोक-४४. ६१२५०. (#) साधुप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२, १२४२८).
___ पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत; अंति: वंदामि जिण चउवीसं, सूत्र-२१. ६१२५१. (#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११३-१०८(१ से १०८)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२, ८४३८). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम श्रुतस्कंध, अध्ययन-३ के
अतिम भाग से अध्ययन-४ के प्रारंभ तक है.)
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६१२५२. (+) व्यवहारसूत्र की चुलिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, अन्य. श्राव. हजारीमलजी मंगलचंदजी,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११.५, ६x४०).
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२७०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची व्यवहारसूत्र-चुलिका सोलह स्वप्न विचार, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: वसई सो सुहिय
भविस्सई.
व्यवहारसूत्र-चुलिका का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल पांचमा आराने; अंति: वससी ते सुखी भ० हुसी. ६१२५३. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. लाहोर, प्रले. मु. समयनिधान; पठ. मु. नेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११, ६४३३).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणंतभागो य सिद्धिगओ, गाथा-४८.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: अणंतमउ भाग सिद्ध गयउ. ६१२५४. (+) पर्युषणाष्टान्हिका व्याख्यान-सूर्ययशभूपतिसंबंध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १३४३७). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: (-); अंति: पद्यबंधं विलोक्य तत्,
प्रतिपूर्ण. ६१२५५. (#) सुक्तावली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, १४४४०).
सूक्तावली, सं., पद्य, आदि: अहँतो भगवंत इंद्र; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१०१ अपूर्ण तक है.) ६१२५६. (+) नंदीसूत्र सहटबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६३+१(२८) ६४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१२, ४-७X४८-६६).
नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: अणुजाणामि. नंदीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नंदी ते आनंदनी देण; अंति: (-), (वि. प्रतिलेखक ने अंतिम कुछ पाठांशों के
टबार्थ नहीं लिखे हैं.)
नंदीसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: हुं वांदुंछु; अंति: मषी लिखतां लागइ छइ. ६१२५७. (+) व्यवहारसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११.५,
२-७४३८-४१). १. पे. नाम. व्यवहारसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-६२आ, संपूर्ण.
व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: जे भिक्खू मासिय; अंति: भवंति तिबेमि, उद्देशक-१०.
व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: जंबू प्रत्यै कह्यौ. २. पे. नाम. वैयावच्चविचार के बोल, पृ. ६२आ-६३अ, संपूर्ण.
वैयावच्च विचार-१३० बोल, मा.गु., गद्य, आदि: आचार्यरी वेयावच; अंति: चाल्यौ छे ते जाणवो. ३. पे. नाम. प्रायश्चित्त विचार, पृ. ६३अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: भिन्न मास क० लूखो; अंति: ग्रह संपउगेसु, (वि. प्रायश्चित कोष्ठक संलग्न है.) ६१२५८. (2) अष्टाह्निका व्याख्यान सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५६, पौष कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ३९, ले.स्थल. अजीमगंज, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (११०५) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२४.५४१२, ७४३०-३४). पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि: स्मृत्वा पार्श्व; अंति: हेतुः सकामान्,
श्लोक-६२४.
पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-टबार्थ, ग. ऋद्धिविजय, मा.गु., गद्य, आदि: समरीने श्रीपार्श्व; अंति: धर्ममार्ग प्ररूपीने. ६१२५९. उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, ले.स्थल. बीकानेर, अन्य. श्राव. अगरचंद भेरोदान सेठिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५४१२, २२४४७-५३).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: भवसिद्धिय संवुडे, अध्ययन-३६. ६१२६०. जीवाजीवाभिगमसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८३-५१(१ से ५१)=३२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे.,
(२३.५४१२.५, ४-७४३८-४२).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
२७१ जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उद्देशक-१ नरकलोक विवरण अपूर्ण से नरकवासियों के
विवरण अपूर्ण तक है.)
जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ६१२६१. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २५,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४४१२.५, ५-८४४०-४६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-६, गाथा-१७ तक लिखा है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२)हिवे विघ्न टालवाने; अंति: (-), अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६१२६२. कर्मग्रंथ १ से ४, संपूर्ण, वि. १९२८, माघ शुक्ल, ९, शनिवार, मध्यम, पृ. २२, कुल पे. ४, ले.स्थल. मकसुदाबाद
अजीमगंज, प्रले. मु. गोकलचंद ऋषि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५४१२.५, ७४३२). १. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण.
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिण वंदिअ; अंति: लहिउ देविंदसूरिहिं, गाथा-६५. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ७अ-१०अ, संपूर्ण.
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमहं तं वीरं, गाथा-३४. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १०आ-१३अ, संपूर्ण.
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउ, गाथा-२५. ४. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १३अ-२२आ, संपूर्ण.
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअजिणंजिणमग्गण; अंति: लिहिउ देविंदसूरीहिं, गाथा-८८. ६१२६३. (#) नवस्मरण व पार्श्वजिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे., (२४४१२, १०x२६). १. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १आ-१८आ, संपूर्ण. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: जैनं जयति शासनं, स्मरण-८, (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वि. प्रतिलेखक ने कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं लिखा है.) २.पे. नाम. कलिकुंडपार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
पार्श्वजिन पद्मावतीदेवी छंद, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: कलिकुंडदंड; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा है.) ६१२६५. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ- अध्ययन ४, संपूर्ण, वि. १९०३, चैत्र शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ. १५, दे., (२३.५४१२.५, १५४३२).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६१२६६. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९७५, माघ कृष्ण, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, दे., (२४४१२, १७४४७).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: भिक्खू अपुणागमंगई,
अध्ययन-१० चूलिका २. ६१२६७. (+#) स्तुति गाथादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१२, ४४३३). १. पे. नाम. वीरथुईनाम अज्झयण सह टबार्थ, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: हवइ
आगमिसंति तिबेमि, गाथा-२९. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पु० सुधर्मास्वामीने; अंति: इम हूं बे० कहूं
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२७२
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
२. पे. नाम. प्रास्ताविकगाथा संग्रह सह टबार्थ, पृ. ७अ - ८आ, संपूर्ण.
"
प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्ववमूलं; अंति: तेहुति परित संसारे, गाथा- १०. प्रास्ताविक गाथा संग्रह - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हे सुव्रत जंबु प०; अंति: प० थोडा संसारना धणी. ३. पे नाम, पुच्छिस्सुणं, पृ. ८आ, संपूर्ण.
प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि कल्याणी कोडीकारणी, अंतिः जिनेश्वर देवाधिदेवं गाथा १९. ४. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अध्ययन १ से ३, पृ. ९अ १३अ, संपूर्ण.
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुकि, अंतिः (-), प्रतिपूर्ण दशवेकालिकसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः ध० धर्म म० मंगलिक, अंति: (-), प्रतिपूर्ण
६१२६८. श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८३१, कार्तिक शुक्ल, २, शनिवार, मध्यम, पृ. १४-३ (१ से ३)=११,
ले. स्थल. जयपुर, प्रले. य. खुसालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५X१२, ९X२७-३०).
वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीस, (पू. वि. 'पुरिसवरगंधहत्थीण' पाठ से है.) ६१२६९. (1) जिनपूजा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २३-५ (१,१२,१६,२० से २१) १८, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे. (२३.५x१२, १०४२८).
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जिनपूजा संग्रह, श्राव. ब्रह्मशांतिदास, सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., आदिजिन पुष्पांजलिपूजा अपूर्ण से विमलजिन जयमाल तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.)
१३X२६).
१. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
६१२७०. (+) भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७२, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ११, प्रले. दामोदर त्रिकमजी खत्री, पठ सा. गंगाबाई (गुरु सा मानकुवरबाई), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४४१२.५, ४४३२).
"
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणित मीलि अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्ते सेवा करवा, अंतिः रूपणी संपदा पामे.
६१२७१. (4) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८. कुल पे ९. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (१८.५x११.५,
सं., पद्य, आदि: वाग्वादिनी नमस्तुभ्य अंतिः ते निर्मलबुधिमंदिरैः श्लोक ७
२. पे. नाम. वशीकरण मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह ै, उ. पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदिः ॐ तुल कंपै जलहर कंपै, अंति: सर्व राज्ञादि वश्यं. ३. पे नाम, शंखेश्वर पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र - शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक; अंति: लब्धरुचि०मुदं प्रमोद, गाथा-३२.
४. पे. नाम. चिंतामणी पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु श्लोक-११.
५. पे. नाम. पंचषष्टीय स्तोत्र, पृ. ५अ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तोत्र - पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि आदौ नेमिजिनं नौमि अंतिः मोक्षलक्ष्मीनिवासम्, श्लोक- ८.
६. पे नाम, शेत्रुंजय स्तोत्र, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि आदिनाथ जगन्नाथ विमला, अंतिः शासनं ते भवे भवे, श्लोक ५.
७. पे. नाम. इंद्राक्षि स्तोत्र, पृ. ५आ-७अ, संपूर्ण.
इंद्राक्षी स्तोत्र रुद्रयामले, सं., पद्य, आदि: (१)ॐ अस्य श्रीइंद्राक्ष, (२) ब्राह्मी मे पूर्वत: अंतिः भगवत्या प्रसादिता, श्लोक-२८.
८. पे नाम, जिनपंजर स्तोत्र, पृ. ७अ ८अ संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
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.
आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह, अंतिः श्रियं स लभते नरः, ९. पे. नाम. शनीश्वर स्तोत्र, पृ. ८आ, संपूर्ण.
शनिश्चर स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः यः पुरा राज्यभ्रष्ट, अंतिः वृद्धिं जयं कुरु श्लोक-११.
६१२७२. (#) वरदत्तगुणमंजरी कथा, एकादशी कथा व दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७२, श्रावण कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ६, कु पे, ३, ले. स्थल, कलकत्ता, प्रले मु. क्षमाभक्ति, अन्य. मु. लोकचंद मुनि प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२३.५x१२.५, १६४३७).
"
श्लोक-२३.
१. पे. नाम. वरदत्तगुणमंजरी कथा, पृ. ९आ-४आ, संपूर्ण
मा.गु. सं., गद्य, आदि: ज्ञानं सारं सर्व, अंति: प्रपाल्य मुक्तिं गतः.
२. पे. नाम. मौनएकादशी कथा, पृ. ४आ- ६आ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदिः श्रीवीरं नत्वा गौतमः; अंति: सोद्यमा समाभवति.
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३. पे. नाम. आध्यात्मिक दूहा संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक दूहासंग्रह, पुहिं, पद्य, आदि टूना टाम न टोटका, अंतिः रामनाम घट रहे समाय, गाथा ५.
"
६१२७३. भक्तामर स्तोत्र मंत्राम्नाय संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, जीवे. (२३४११.५, १४४२९).
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भक्तामर स्तोत्र-मंत्राम्नाय, संबद्ध, मा.गु., सं., गद्य, आदि: मूल ८ लघुमंत्र १; अंतिः सुमरि सर्वगुण था. ६१२७४. (+#) जीवविचार व नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२३४११.५, १५४३२-३६).
१. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ- ३अ, संपूर्ण.
आ. शांतिसूरि, प्रा., पच, वि. ११वी, आदिः भुवण पईवं वीरं नमिऊण अंतिः रुदाउ सुव समुदाओ, गाथा- ५६.
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२. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ३अ- ५अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवार पुण्णं३; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५१.
६१२७५. (+०) पच्चक्खाणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २२x१२, १५ - २०X१३-१६).
प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उगए सूरे नमुक्कार, अंतिः असित्थेण वा बोसिरामि
६१२७६. जीवविचार प्रकरण व दंडक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९२७, फाल्गुन कृष्ण, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५. कुल पे. २, ले. स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. गोकलचंद ऋषि (विजयगच्छ); पठ. मु. पन्नालाल ऋषि (गुरु मु. गोकलचंद ऋषि, विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५X१२, १२X४१).
१. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १आ- ३आ, संपूर्ण.
आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण, अंतिः शांतिसूरि० समुद्दाओ, गावा ५१.
,
२. पे. नाम. दंडक प्रकरण, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण.
मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीसजिणे तस्स, अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा- ४०. ६१२७७. कल्याणमंदिर स्तोत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, जैये. (२३.५x१२.५, १९४४५).
कल्याणमंदिर स्तोत्र- टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य वि. १६५२, आदि कल्या० वस्य० इत्यनवो अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वि. मूल का प्रतीक पाठ मात्र लिखा है. गाथा- ३० तक लिखकर छोड़ दिय है.)
"
६१३०६. (+) यंत्रराजागम, संपूर्ण, वि. १७२६, भाद्रपद शुक्ल, १५, सोमवार, मध्यम, पृ. ४२, ले. स्थल. आसोप, प्रले. जयदेव, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. वस्तुतः लिखावट से प्रत सं. २०वी की प्रतीत होती है. संशोधित, जैदे., (२७.५x११.५, ८४२८). यंत्रराज, आ. महेंद्रसूरि, सं., पद्य, श. १२९२, आदि: श्रीसर्वज्ञपदांबुजं अंति: विचारणा यंत्रजा, अध्याय ५. ६१३०९. (+) नारचंद्र ज्योतिष सह यंत्रोद्धार टिप्पण, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८-७ (१ से ६,१६) =३१, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२७४११, १३x२७-३६).
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२७४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सर्वदिग्गमन नक्षत्र से छायाबलज्ञान विधि तक
है.)
ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६१३१४. सामुद्रिकशास्त्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्र.ले.श्लो. (११५९) यदि शुद्धमशुद्धं वा, जैदे., (२२.५४११, १२४३९).
सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: लंबोदरी लंबदंताः, अध्याय-३६, श्लोक-२७१, संपूर्ण. सामुद्रिकशास्त्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: पहीलु आउष जोइय पीछै; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., स्त्रीलक्षण तक बालावबोध लिखा है.) ६१३४५. योगचिंतामणि सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२९-३(१ से २,३५)=१२६, जैदे., (२७४१२.५, ७४४२).
योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं
हैं., अध्याय-१ अपूर्ण से कायचिकित्सा प्रारंभ तक है.) योगचिंतामणि-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
अध्याय-४ तक लिखा है.) ६१३४७. (#) योगचिंतामणि सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४२-४३(१ से ३२,३७ से ३९,९९ से १००,११२,१३३ से १३७)=९९, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२, ६x२४). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रकरण-२ राजरोग निवारण
विधि अपूर्ण से पारदविधि अपूर्ण तक है व बीच-बीच के कुछ पाठांश नहीं है.)
योगचिंतामणि-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६१३५९. (+) रामनिदान सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११०+१(३८)=१११,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२४.५४१३, ५-७X३८). रामनिदान, सं., पद्य, आदि: श्रियं स दद्यात् भवत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., जिह्वापरीक्षा तक
लिखा है.)
रामनिदान-टबार्थ, पुहि., गद्य, आदि: मोक्षलक्ष्मी वह देओ; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६१३६०. (+#) रामनिदान सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८१-९(५० से ५८)+१(१४)=७३, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, दे., (२४४१२.५, ८-२२४३४-६०). रामनिदान, सं., पद्य, आदि: श्रियं स दद्यात भवत; अंति: (-), (पू.वि. स्नेहपानाधिकार किंचिंत अपूर्ण भाग नहीं है व
प्रस्वेदाधिकार से जिह्वापरीक्षा श्लोक-४ अपूर्ण तक है.)
रामनिदान-टबार्थ, पुहिं., गद्य, आदि: मोक्षलक्ष्मी वह देओ; अंति: (-). ६१३७२. (+) अभिधानचिंतामणिनाममाला-१ से २ कांड, संपूर्ण, वि. १८०७, चैत्र शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. पं. भाणसागर; पठ. पं. सुंदरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १५४४०-४३).
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति:
(-), प्रतिपूर्ण. ६१३७६. सारस्वतव्याकरण सह दीपिका टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १७०-३(१ से ३)=१६७, दे., (२६.५४१२, १०४३२).
सारस्वत व्याकरण, प्रक्रिया, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं
हैं., मंगलाचरण अपूर्ण से संप्रदान कारक अधिकार तक है., वि. मूलपाठ का मात्र प्रतिकपाठ है.) सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ व
अंत के पत्र नहीं हैं.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ ६१३७७. सारस्वतव्याकरण सह दीपिका टीका, संपूर्ण, वि. १८३८, माघ कृष्ण, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २०५, ले.स्थल. पत्तन,
प्र.वि. त्रिपाठ. कुल ग्रं. ९५५०, प्र.ले.श्लो. (११६२) यन्मात्राक्षरपादबिंदुगलितं किंचित्प्रमादान्मया, जैदे., (२६.५४११.५, १-५४३२-४२). सारस्वत व्याकरण, प्रक्रिया, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति:
नराकारमधुपापीतपत्कजः. सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: (१)नमोस्तु सर्वकल्याणपद,
(२)प्रणम्येत्यादि० अथैत; अंति: प्रभुचंद्रकीर्तिः, वृत्ति-३, ग्रं. ८१००. ६१३८३. गणरत्नमहोदधि-१ से ४ अध्याय, संपूर्ण, वि. १९३६, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. २१, दे., (२८x१३, १०४३७).
गणरत्नमहोदधि, आ. वर्द्धमान, सं., गद्य, वि. ११९७, आदि: वाग्देवतायाः क्रम; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६१३९४. (+#) जन्मपत्री पद्धति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १७४४८-५२).
जन्मपत्री पद्धति, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: स्वस्तिश्रीऋद्धिवृद; अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-१९ श्लोक-७ तक
६१४०८.(-) देशांतरी छंद, चाणक्यलघुराजनीति व चाणक्यवृद्धराजनीति सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३,
कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५४१२, १८४३३-३६). १.पे. नाम. पार्श्वनाथनो छंद, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण..
पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन संपो सारदा मया; अंति: पास० छंद देशांतरी, गाथा-३९. २.पे. नाम. चाणक्यलघुराजनीति सह तिलक बालावबोध, पृ. ४अ-११आ, संपूर्ण..
चाणक्यलघुराजनीति, संक्षेप, कौटिल्य, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य शंकर देवं; अंति: पुण्यानि पुराकृतानि, अध्याय-८. चाणक्यलघुराजनीति-तिलक बालावबोध, पुहि., गद्य, आदि: (१)श्रीमन्नाभेयमानम्य, (२)अहं उत्तमं शास्त्रं; अंति:
पुन्य सबल होय तो बचै. ३.पे. नाम. चाणक्यवृद्धराजनीति सह बालावबोध, पृ. ११आ-१३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
चाणक्यवृद्धराजनीति, कौटिल्य, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य शिरसा विष्णु; अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-३ अपूर्ण तक है.)
चाणक्यवृद्धराजनीति-बालावबोध, पुहि., गद्य, आदि: श्रीठाकुर तीन लोक के; अंति: (-). ६१४३४. (#) यंत्रराज सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११-३(१ से २,८)=८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१२, १०x४१). यंत्रराज, आ. महेंद्रसूरि, सं., पद्य, श. १२९२, आदिः (-); अंति: विचारणा यंत्रजा, अध्याय-५, (पू.वि. अध्याय-१,
श्लोक-२२ अपूर्ण से है व अध्याय-३ के श्लोक-७ अपूर्ण से २३ अपूर्ण तक नहीं है.)
यंत्रराज-टीका, आ. मलयेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: कथनाध्यायोगमपंचमः. ६१४४४. (+) भुवनदीपक, संपूर्ण, वि. १८४५, श्रावण शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. राजपुरा, प्रले.पं. लब्धिकमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११.५, १५४४२).
भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७५. ६१४६४. (#) योगचिंतामणि सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८१-४१(१ से ४०,५१)=४०, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१२.५, १३४२२-३३). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अजमोदा गुटी से सिंहताव
विधि अपूर्ण तक है.)
योगचिंतामणि-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६१४७५. (+) भुवनदीपक सह टबार्थ व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४७, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. २३, कुल
पे. ३, ले.स्थल. मामटखेडा, प्रले.पं.चैनसागर; पठ.मु.सवसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४११.५, ६४३१).
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ज्योतिष में मा.गु., स्
३. पे. नाम. आगमन पृच्छा, पृ. २३आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१. पे. नाम. भुवनदीपक सह टबार्थ, पृ. १अ - २३अ, संपूर्ण.
भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य वि. १३५ आदि; सारस्वतं नमस्कृत्वः अंतिः श्रीपद्मप्रभसूरिभिः श्लोक-१७७. भुवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती संबंधी ज्ञान, अंति: १२ भवननो विचार कह्यो. २. पे. नाम. काल परिमाण वर्णन, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण, पे. वि. टचार्थ आंशिक है.
.सं., हिं. पण, आदि (-); अंति: (-).
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आगंतुकप्रश्न विचार, सं., पद्य, आदि: आत्मछाया त्रिगुणीकृत अंतिः सुन्ये च मरणं भवेत्, गाथा-२. ६१४७७. अजीर्णमंजरी, लंघनपथ्य निर्णय व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, कुल पे. ३, ले.स्थल. जव्वलपुर, प्रले. पं. अनोपचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२२.५४१२.५, ११-१४४३६-३९).
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१. पे. नाम. अजीर्णमंजरी, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण.
काशिराज, सं., पद्य, आदिः यो रावणं रणमुखेभुवनैः अंतिः णार्द्रवेनामवधारयंतु, गाथा- ४१.
२. पे. नाम लंघनपथ्य निर्णय, पृ. ४अ २१अ, संपूर्ण.
मु. दयातिलक शिष्य, सं. पद्य वि. १७९२, आदि श्रीसर्वज्ञं नमस्कृ, अंति: उत्तरे लोकसंख्या श्लोक-३४२.
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३. पे. नाम. औषध भस्म निर्माण विधि संग्रह, पृ. २१आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी दूसरे व्यक्ति के द्वारा बाद में लिखी गई है.
औषध संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
६१४८४. जिनबिंबप्रवेश स्थापनाविधि व अष्टोत्तरी स्नात्रविधि, संपूर्ण वि. १९२७ चैत्र कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, दे., (२४४१३.५, १७-१९४२४-२८).
१. पे. नाम. बिंबप्रवेश स्थापना विधि, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण.
जिनबिंबप्रवेश स्थापना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पहिलु मुहूर्त्त भलुं; अंति: नाम १०८ वार स्म...
२. पे. नाम. अष्टोत्तरी स्नात्रविधि, पृ. ६अ, संपूर्ण.
मा.गु., सं., गद्य, आदि: तथा प्रथम उपगरण, अंतिः फल दे यथाशक्ति मेलवी.
६१४९९, (+) वसुधारा स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ८-९ (१) ७, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न संशोधित..
जैदे., (२५X१२, ११३४).
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति, (पू. वि. "धर्म पर्यायं येन दरिद्रा" पाठ से है.) ६१५००. आर्यवसुधाराधारिणी, संपूर्ण, वि. १९४०, कार्तिक शुक्ल, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल. करमावास ग्राम,
प्रले. मु. वरधीचंद्र ऋषि (लुंकागच्छ); अन्य. ग. राजसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. राजसागरजी के प्रत से लिखी गई है., दे., (२४.५X१२.५, १६X३० ).
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य अंतिः भाषितमभ्यनंदन्निति
सं., पद्य, आदि धने व्यये यदा लगे; अंतिः यस्य स जातो कुलदीपकः, श्लोक-१२.
३. पे. नाम. बारभुवन ग्रह विचार, पृ. १६ अ १८ अ, संपूर्ण.
६१५४१. (+) भुवनदीपक, बारभुवन विचार व महादशा, संपूर्ण, वि. १८८६, मध्यम, पू. १८, कुल पे. ४, ले. स्थल धराव पठ. मु. रायचंद साहाजी (गुरु मु. वेलचंद साहाजी, कडुयाम्मतिगच्छ); प्रले. मु. वेलचंद साहाजी (गुरु मु. जीवराज, कडुंयामतीगच्छ); गुपि. मु. जीवराज (गुरु मु. हेमचंद); मु. हेमचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. श्रीमहावीर प्रसादात् श्रीसुन्नतस्वामीजी प्रसादतः, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२४४११.५, ७X३१-३५). १. पे. नाम. भुवनदीपक, पृ. १अ १४आ, संपूर्ण, वि. १८८६, चैत्र कृष्ण, ५, मंगलवार
आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१९०, संपूर्ण. भुवनदीपक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि सरस्वती संबंधी जे अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१५ अपूर्ण तक लिखा है.)
२. पे. नाम. जन्मकुंडली विचार, पृ. १५ अ १६अ, संपूर्ण, पे. वि. द्वादशभाव चक्र सहित.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
२७७ १२ भाव विचार, सं., पद्य, आदि: लग्नस्थितो दिनकर; अंति: करं रविजः सुतीव्रम्, श्लोक-१२.. ४. पे. नाम. ग्रह उच्चनीच, राशीश व महादशांतर्दशा विचार, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण, वि. १८८६, चैत्र कृष्ण, ९, शुक्रवार,
प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (११७१) एक झाडने अनेक फल, पे.वि. द्वादशभाव चक्र सहित.
ज्योतिष*,मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-). ६१५४२. अष्टकर्म एकसोआठ प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. मु. गुलाबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४१२.५, १५४२६-२९).
८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम पहिलो कर्म; अंति: विषे उद्यम करवो. ६१५४४. (#) मुहूर्तमुक्तावली व ज्योतिष श्लोक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७९, श्रावण कृष्ण, ३, रविवार, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २,
ले.स्थल. कोट, प्रले. श्राव. वीरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१२, ६४३७). १. पे. नाम. मुहूर्तमुक्तावली सह टबार्थ, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण. मुहूर्तमुक्तावली, आ. परमहंस परिव्राजक, सं., पद्य, आदि: श्रीशं श्रीहरशारदा; अंति: पादपलतौषधिरोपणंच,
श्लोक-४५. मुहूर्तमुक्तावली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणिपत्य भक्त्या; अंति: औषधी आरोपण मोर्त. २. पे. नाम. शुभाशुभ चंद्र श्लोक सह टबार्थ, पृ. ८आ, संपूर्ण.
ज्योतिष श्लोक, सं., पद्य, आदि: भूद्विपाद्रिनवाब्धि; अंति: यात्राजलैनो शुभां, श्लोक-२.
ज्योतिष श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भू १ द्वीप ८ अद्रि ७; अंति: १२ चंद्रमा शुभ जाणवौ. ६१५४९. (#) भुवनदीपक, अपूर्ण, वि. १८३६, आश्विन शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १०-१(१)=९, ले.स्थल. सोझितनगर, प्रले. मु. जयकरण;
पठ. मु. देवीदास (गुरु मु. हरचंद); गुपि. मु. हरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (४४०) तैलाद्रक्षेद् जलाद रक्षेद, जैदे., (२२.५४१२, १३४२५-२८). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: (-); अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७५, ग्रं. १९०,
(पू.वि. श्लोक-१२ से है.) ६१५५३. (+#) भुवनदीपक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-१(९)=१४, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,
प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०.५, १०४२७). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक १७७ अपूर्ण
तक है व ८९ अपूर्ण से १०१ अपूर्ण तक नहीं है.) भुवनदीपक-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती संबंधीओ मह; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक १०२ अपूर्ण तक का
टबार्थ है व श्लोक ८९ अपूर्ण से १०१ अपूर्ण तक का टबार्थ नहीं है.) ६१५६०. (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १५वी, मध्यम, पृ. ६७-३(२,२३ से २४)=६४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण
युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२, १५४७०). __ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., श्रुतस्कंध १
____ अध्ययन-१ मेघकुमार संबंधकथा से श्रुतस्कंध २ अध्ययन-१ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) ६१५६१. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८६३, पौष कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ४४-१(१)=४३, ले.स्थल. मेरतानगर,
प्रले. पं. लालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीफलोधीपार्श्वनाथ प्रसादात, संशोधित-टिप्पणयुक्त विशेष पाठ.,प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (६२) मंगलं लेखकानांच, जैदे., (२६४१२.५, ६४४२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि,
अध्ययन-१० चूलिका २, (संपूर्ण, वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक २ से लिखना प्रारंभ किया है.)
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ध० दुर्गत पडता जीवनइ; अंति: तुज प्रते कहुं छु, संपूर्ण. ६१५६३. (+) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१-६(९,१७ से १९,२३ से २४)=३५, पू.वि. बीच-बीच
व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४४१३, ११४३७).
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२७८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहताणं नमो सि; अंति: (-),
(पू.वि. "नमो तेसिं खमा० गणिपिडगं भगवंतं तंजहा" पाठ अपूर्ण तक है तथा बीच-बीच के कुछ पाठांश नहीं हैं.) ६१५६४. चित्रसेनपद्मावती कथा, संपूर्ण, वि. १९२४, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३२, ले.स्थल. मकसुदाबाद (अजीम,
प्रले. मु. हजारीमल ऋषि (नागोरीलंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसंभवनाथजी प्रशादात्., प्र.ले.श्लो. (८७६) पोथी प्यारी प्राणथी, दे., (२६.५४१२, १०४३२). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, पा. राजवल्लभ, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंति: पाठक
कविराजवल्लभः, श्लोक-१२३१. ६१५६५. अंतगडदशासूत्र, संपूर्ण, वि. १८४४, श्रावण कृष्ण, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २९, ले.स्थल. लखनौ, लिख. श्रावि. जेठाबाई माणेकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१३, ११४४५-४९). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं,
अध्याय-९२. ६१५६६. कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदे., (२५४१२, १२४३०-३५).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., कार्तिकश्रेष्ठिकथा अपूर्ण तक लिखा है.) कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: (१)श्रीवर्द्धमानस्य, (२)तस्मिन्काले चतुर्थ;
अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६१५६७. (+) संघयणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६५, वैशाख कृष्ण, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३६, ले.स्थल. गोंडल (गुडल), प्रले. मु. रंगकुशल; अन्य. मु. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८.५४१३.५, ६४३५-४०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउ अरिहंताई ठिइ; अंति: नंदोजा वीरजिण तित्थं,
गाथा-३४०.
बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहतादि पंचपरमेष्ठ; अंति: प्रवर्ते तां लगे. ६१५६८. दिपावली कल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३७, आषाढ़ शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. २५, ले.स्थल. राजलदेसर, पठ. मोहनलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२.५, ७४३०). दीपावलीपर्व कल्प, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: संतु वर्द्धमानस; अंति: सुरेंद्रादिभिः कृतः,
श्लोक-२६५.
दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: करी अठाइ महोत्सव करे. ६१५६९. (+) चतुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९०७, आषाढ़ कृष्ण, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २३, ले.स्थल. विक्रमपुर,
प्रले. मु. धर्मशीलविजयजी म. सा.; पठ. मु. कुशलनिधान, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१०१९) भणज्यो गुणज्यो वाचज्यो, दे., (२६४१३, १३४३७).
चातुर्मासिक व्याख्यान, रा.,सं., पद्य, आदि: सामायिकावश्यकपौषधानि; अंति: मिच्छामिदुक्कडं देणौ. ६१५७०. (+) प्रतिक्रमणसूत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१८, आषाढ़ शुक्ल, ३, सोमवार, मध्यम, पृ. २३, कुल पे. ९, प्रले. मथेन
शिवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३, ९-११४२२-२८). १. पे. नाम. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १अ-१८अ, संपूर्ण. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: वंदामि जिणे
चउव्वीसं. २. पे. नाम. पौषध प्रत्याख्यानग्रहण विधि, पृ. १८अ-१९अ, संपूर्ण.
पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: करेमि भंते पोसह; अंति: मिच्छामि दक्कडं. ३. पे. नाम. चउक्कसायसूत्र, पृ. १९अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन चैत्यवंदन, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: चउक्कसायपडिमलुल्लरण; अंति: पासु पयच्छउ वंछिउ, गाथा-२. ४. पे. नाम. संथारापोरसी विधि, पृ. १९अ-२०अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
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संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: इअ समत्तं मए गहिअं, गाथा-१४.
५. पे. नाम. श्रावक १४ नियम गाथा, पृ. २०अ २०आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई अंति: दिसि न्हाण भत्तेसु, गाथा- १.
६. पे. नाम, प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. २०आ-२२आ, संपूर्ण
संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि उग्गए सूरे नमुक्कार, अंति: गारेण वोसिरामि
७. पे. नाम. साधु दैवसिक अतिचार, पृ. २२-२३अ, संपूर्ण.
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साधुदेवसिप्रतिक्रमणअतिचार श्वे. मू. पू., संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ठाणे कमणे चंकमणे; अंति: ते मिच्छामि दुकडं.
८. पे. नाम. गोचरी आलोचना गाथा, पृ. २३अ, संपूर्ण
गोचरी आलोयण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अहो जिणेहिं असावज्जा, अंति: साहु देहस्स धारणा.
९. पे. नाम. साधुअतिचारचिंतवन गाथा, पृ. २३अ संपूर्ण.
संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सयणासणन्नपाणे; अंति: वितहायणे अइयारो, गाथा - १.
६१५७१. श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १८८४, कार्तिक कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. २२, ले. स्थल. लखनौ, प्रले. मु. धर्मचंद्र (गुरु आ. कांतिसागरसूरि विजयगच्छ); गुपि आ. कांतिसागरसूरि, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., (२५.५x१३, १२४३४). श्रीपाल चरित्र, पंन्या. सत्यराज, सं., पद्य, वि. १५१४, आदि: श्रिये श्रीमन्महावीर; अंति: यं रत्नत्रितयमाप्यते, लोक-४९१.
६१५७२. अध्यात्मकल्पद्रुम सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३१-८ (१,१३, २५ से ३०) = २३, प्र. वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६.५X१३.५, १-३X४७).
अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयश्रीरांतरारीणां अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., अधिकार-८ के श्लोक-१५ तक है व बीच-बीच के कुछ पाठ नहीं हैं.)
अध्यात्मकल्पद्रुम-अध्यात्मकल्पलता टीका, उपा. रत्नचंद्र, सं., गद्य, वि. १६७४ आदि (-); अंति: (-),
पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं है.
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६१५७३. (+) कर्मग्रंथ २ से ४ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २२, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक
लकीरें - संशोधित., जैदे., (२७X१३, ६X५३).
१. पे. नाम. कर्मस्तव सह टबार्थ, पृ. १अ - ६आ, संपूर्ण.
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वंदियं नमहं तं
वीरं, गाथा - ३४.
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: तेसे स्तवना महावीरजी; अंतिः श्रीमहावीरदेव प्रति.
२. पे. नाम. बंधस्वामित्व सह टवार्थ, पृ. ७अ १२आ, संपूर्ण
बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्क; अंति: देविंदसूरि० सो गाथा २५.
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बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: बंधना कारण ५७ हेतु; अंति: स्तव प्रति सांभलीनइ. ३. पे. नाम. षडशीति सह टबार्थ, पृ. १२आ- २२आ, संपूर्ण.
षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: नमिअ जिणं जिअ मग्गण; अंति: देविंदसूरीहिं, गाथा- ८८.
षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांदीनइं तीर्थंकर, अंति: (-), (वि. अंतिम गाथा का टबार्थ अपूर्ण लिखा है.)
६१५७४. (+) सिंदूरप्रकर सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८५, आश्विन शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले. स्थल. धाणोरा, प्रले. पं. गौतमसागर, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीआदिजिन प्रसादात्, पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ.. जैदे., (२६.५X१३, ६x२७-३१).
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२८०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२,
श्लोक-१००.
सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिंदूरनो समूह तपरूपी; अंति: तेउनी श्रेणी छे ते. ६१५७५. पर्युषणापर्व संबंध, संपूर्ण, वि. १८७८, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले.पं. रूपसौभाग्य,
प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१३, १४४३१).
__ पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० ॐकार; अंति: चलसो वर्तमान योग्य. ६१५७६. (+#) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १८७५, फाल्गुन शुक्ल, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. २०-१(१)=१९,
कुल पे. ३२, ले.स्थल. कामठी, प्रले.पं. परमसुख; पठ. श्राव. रामदयाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२, १२४२३). १.पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह, पृ. २अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: समुन्नइ निमित्तं,
(पू.वि. जयउसामी सूत्र अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, प. ७आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: नमोस्तु वर्द्धमानाय; अंति: भाजां श्रुतांगी, श्लोक-४. ३. पे. नाम. प्रतिक्रमण स्तुति, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: कमलदल विपुल नयना; अंति: भयान्नः सुखदायिनी, श्लोक-३. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
प्रा.,सं., पद्य, आदि: परसमयतिमिरतरणिं भव; अंति: मे मंगलं देवि सारं, गाथा-४. ५. पे. नाम. श्राद्धसंबंधि वीर स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण. संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीर; अंति: देहि मे देवि सारम्,
श्लोक-४. ६. पे. नाम. अन्नपूर्णा स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण.
सुपात्रदानफल स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: उसभस्सय पारणए इक्खुर; अंति: भरहे साहु न सीयंति, गाथा-५. ७. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: नाभेयाजितवासुपूज्यसु; अंति: नेताः प्रयच्छंतु नः, श्लोक-४. ८. पे. नाम. वीरपारणादिन स्तुति, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण.
महावीरजिन पारणा स्तुति, सं., पद्य, आदि: यत्पारणासुप्रथमासु, अंति: पातु मम प्रमोद, श्लोक-४. ९. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तुति, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतक सुप्रपंच; अंति: सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. १०. पे. नाम. तीर्थराजजिन स्तुति, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराजः पदपद्म; अंति: दाता ददतां शिवं वः, श्लोक-१. ११. पे. नाम. दीपालीपर्व स्तुति, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: पापायां पुरि चारु; अंति: जिनचंद्र० विक्रीडितं,
श्लोक-४. १२. पे. नाम. अजितनाथ स्तुति, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण.
अजितजिन स्तुति, मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जंबूद्वीपमै सोहै भरत; अंति: जिनचंद्र मुनींद्र, गाथा-४. १३. पे. नाम. विमलाचल स्तुति, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पुहिं., पद्य, आदि: आगे पूरव वार निनाणु; अंति: विनती एह हमारी जी, गाथा-४. १४. पे. नाम. बीज स्तुति, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण.
बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरोमनोरथ माय, गाथा-४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
२८१ १५. पे. नाम. नेमीनाथ स्तुति, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वदूं पाय; अंति: करहु अंबिका देवयै, गाथा-४. १६. पे. नाम. पर्युषणापर्व स्तुति, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण.
पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वली वली हुं ध्यावं; अंति: कहै जिनलाभसूरींद, गाथा-४. १७. पे. नाम. सिद्धचक्रजी स्तुति, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा-४. १८. पे. नाम. अगियारस स्तुति, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: सुखं विस्मत हृदः, श्लोक-४. १९. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै; अंति: संति कल्लाणदाता, गाथा-४. २०. पे. नाम. प्रतिक्रमणविधि संग्रह, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: भयवंदसण्णभद्दो सुदं; अंति: करी मिच्छामि
दुक्कड. २१. पे. नाम. आदिनाथ स्तुति, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण.
चैत्रीपूर्णिमापर्व स्तुति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेजूंजय तीरथ; अंति: सुंदर कहै सानिधि करो,
गाथा-४. २२. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: समदमोत्तम वस्तु; अंति: जयतिसा जिन शासनदेवता,
श्लोक-४. २३. पे. नाम. आदिनाथ स्तुति, पृ. १७अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तियहार सुतारगण; अंति: सुहाणि कुणेसु सया, गाथा-४. २४. पे. नाम. आदिनाथ स्तुति, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: युगादिपुरुषंद्राय; अंति: कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. २५. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति-पलांकिता, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., पद्य, आदि: सर्वज्ञ ज्योतिरूपं; अंति: सद्बुद्धिं वैदुष्यं, श्लोक-४. २६. पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: यदहिनमनादेव देहिन; अंति: नित्यम मंगलेभ्यः, श्लोक-४. २७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १८आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुर निर्झरलोक; अंति: मज्जन सुस्त निजाघः, श्लोक-४. २८. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. २९. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण..
आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शेजूंजय मंडण आदिदे; अंति: नंद० तुम्ह पाय सेवता, गाथा-४. ३०.पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी अष्ट परमाद; अंति: सवि विघन दूरे हरे, गाथा-४. ३१. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २०अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: बालपणे डाबो पाय; अति: मिलै मुक्ति साथ, गाथा-४. ३२. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन नरेसर वामा; अंति: भक्तिसूरि० बहु वित्त, गाथा-४.
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६१५७७. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र - अध्ययन १ से १५, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८, प्रले. श्राव. नानजी उकरडा दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५x१२, १५X४३).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स, अंति: ( - ), प्रतिपूर्ण. ६१५७८. पक्खीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६X१३, ९X२७).
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
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पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अ तित्थे; अंति: (-), (पू.वि. "अहरिहंतवो कम्मं पायच्छित्तं" पाठ तक लिखा है.)
६१५७९. सप्ततिका कर्मग्रंथ सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २६-९ (१ से ९) = १७. पू. वि. बीच के पत्र हैं, जैदे. (२६४१२,
१४X४०).
सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ७ अपूर्ण से गाथा २२ तक है.) सप्ततिका कर्मग्रंथ टीका सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
-
,
"
६१५८०. (+) योगसार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२२ श्रावण कृष्ण, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. १७, प्रले. मुलजी रामनारायण जानी,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित., दे., ( २६ १३.५, ४X३०).
योगसार, मु. योगींद्रदेव, अप, पद्य, आदि णिम्मलझाण परडिआ अंतिः जोगिचंद० इक्कमणेण, गाथा- १०८.
योगसार- बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: निर्मल ध्यानने विषइ अंतिः छंद सहित कीधा.
६१५८१. (+) पाक्षिकसूत्र व पाक्षिकखामणा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित कुल ग्रं. ३२०, जैदे. (२५.५४१३, ११४२६-३४).
"
१. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ - १६आ, संपूर्ण.
हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि तित्थंकरे व तित्थे अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति.
२. पे. नाम. देसावगासिक पच्चक्खाण, पृ. १६आ, संपूर्ण.
हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति.
२. पे. नाम क्षामणकसूत्र. पू. १६आ-१७अ संपूर्ण.
हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पिवं; अंतिः नित्वारग पारगा होह, आलाप ४. ६१५८२. (+) पाक्षिकसूत्र व देसावगासी पच्चक्खाण, संपूर्ण वि. १९०३, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५. श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. २, ले. स्थल, बीकानेर, प्रले. पं. धर्मशील, पठ. कर्मु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. दे. (२६४१३, ११X३०).
१. पे नाम पाक्षिकसूत्र. पू. १अ १६आ, संपूर्ण.
संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: अहण्णं भंते तुम्हाण; अंति: वत्तियागारेण वोसिरइ.
६१५८३. नवस्मरण व पार्श्वजिन चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५+१ (१३) १६, कुल पे. २, जैवे. (२५.५४१३.५,
१२X३१).
१. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १आ-१५आ, संपूर्ण.
मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, आदिः नमो अरिहंताणं हवइ अंतिः मोक्षं प्रपद्यंते, स्मरण-९.
२. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १६आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं.
सं., पद्य, आदिः ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण तक है. )
६१५८४. स्थानांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४०-२४ (१ से २,१३ से ३०,३५ से ३८) = १६, जैदे., (२८.५X१३,
५X३८-४२).
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',
स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं. ठाण- १ सूत्र ४८ अपूर्ण से सूत्र ५३ अपूर्ण तक है.) ६१५८५. (+) प्रवचनसारोद्धार सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १६-१ (१) १५. पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न - टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२५.५X१३.५, ५x२५-२७).
"
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
२८३ प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से ९८ अपूर्ण
तक है.)
प्रवचनसारोद्धार-टिप्पण, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अति: (-). ६१५८६. (+) दशवैकालिकसूत्र अध्ययन-६ से ८, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१२, ५४३२-३५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अध्ययन-८ की
गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) ६१५८८.(+) कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२८x१३.५, १५४२९-३६). कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६६, आदि: प्रणम्य श्रीगुरुं; अंति: चक्रे
बालावबोधिकाम्. ६१५९०. (+) पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १२४३२).
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. ६१५९१. (+) जयतिहुयणबत्तीसी व श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १९०१, वैशाख शुक्ल, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुलपे. २,
ले.स्थल. वालोच, प्रले. लक्ष्मण; पठ. श्राव. बाबु रतनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१३.५, ९x१८). १.पे. नाम. जयतिहुअणबत्तीसी, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: अभयदेउ०
आणिंदिय, गाथा-३०. २. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ८अ-१४अ, संपूर्ण.
वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ६१५९२. चैत्यवंदनभाष्य, गुरुवंदनभाष्य व प्रास्ताविक गाथा, संपूर्ण, वि. १९२७, श्रावण कृष्ण, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल
पे. ३, ले.स्थल. कलकत्ता, प्रले. मु. रत्नचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (७२४) जलाद्रक्षे थलाद् रक्षे, दे., (२६४१३, ६४३३). १.पे. नाम. चैत्यवंदनभाष्य सह टबार्थ, पृ. १अ-९अ, संपूर्ण.
चैत्यवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: परमपयं पावइ लहं सो, गाथा-६३.
चैत्यवंदनभाष्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्वा अरिहंतादिक; अंति: अजरामरवस्थानक पामै. २. पे. नाम. गुरुवंदनभाष्य सह टबार्थ, पृ. ९अ-१४आ, संपूर्ण..
गुरुवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गुरुवंदणमिह तिविह; अंति: अणभिनिवेसीयमच्छरिणो, गाथा-४१.
गुरुवंदनभाष्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: गुरुवंदन गुणवंत गुरु; अंति: ऐसे गीतार्थ सोधज्यौ. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा, पृ. १४आ, संपूर्ण.
प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: नमण नमण में फेर है; अंति: यथा चीतो चोर कवाण, गाथा-१. ६१५९३. पाक्षिकसूत्र व पाखिखामणा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. २, जैदे., (२८x१३, १२४३७). १.पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-१२आ, संपूर्ण.
हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २.पे. नाम. पाखिखामणासूत्र, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण.
क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. ६१५९४. वैराग्यशतक व आत्महित कुलक, संपूर्ण, वि. १९४४, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. २,
ले.स्थल. घीवटा, प्रले. जयशंकर मूलजी ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, ५४३६). १.पे. नाम. वैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ. १अ-१२अ, संपूर्ण...
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिओसासयं ठाणं, गाथा-१०४.
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वैराग्यशतक - बार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंति: लहड़ जीव शाश्वतुं ठाम.
२. पे. नाम. आत्महित कुलक सह टबार्थ, पृ. १२ आ-१३अ, संपूर्ण.
आत्महित कुलक, प्रा., पद्य, आदि: कत्थ वितवो न सीलं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ तक लिखकर समाप्तिसूचक संकेत दे दिया है.)
आत्महित कुलक- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: किहां एक तप छे नथी अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा
"
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
अपूर्ण.
६१५९५ (+) मौनएकादशी कथा व मल्लिनाथ चरित्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित, जैवे. (२६.५४१३.५, १४४३१).
"
१. पे. नाम, मौनैकादशी कथा, पृ. १अ ७आ, संपूर्ण.
मौन एकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि, अंतिः फलं प्रकटी चकारेति.
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२. पे. नाम. मल्लीनाथ चरित्र, पृ. ८अ १२आ, संपूर्ण
मल्लिजिन चरित्र - मौनैकादशीपर्व माहात्म्योपरि, प्रा. सं., गद्य, आदि: मल्लीणं अरहा अप्प अंतिः आग्रहादुद्यमः कृतः ६१५९६. शांतिकर्म विधि, संपूर्ण, वि. १९२६ माघ शुक्ल ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले. स्थल मेडतानगर, प्रले. पं. हुकमविजय,
पठ. श्राव. चुनीलाल, पं. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२७.५४१३.५, १२४३७).
शांतिस्नात्र विधि, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु. सं., पद्य, आदि: अथ प्रतिष्ठायां वा, अंतिः वाजा वाजते धारादेवी. ६१५९७. () महापच्चक्खाण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२९x१३, ६x४०). महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: एस करेमि पमाणं तित्थ; अंति: अहवा विसिज्झिज्झा, गाथा- १४३. महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ए हुं प्रणाम करूं; अंति: अथवा मुक्ति पामे. ६१५९८. सम्यक्त्वसामाधिकारोपण विधि, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, जै. (२५४१२, १३५३५).
""
आचारदिनकर, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., पग, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
६१५९९. श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२८x१३, ११x२९). श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा. मा.गु., प+ग, आदि: नमो अरिहं० पंचिंदिय अंति: (-), (पू.वि. पोसह विधि
"3
अपूर्ण तक है.)
६१६००. व्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ४, जैदे., (२७.५X१३, १३४५१).
१. पे. नाम. पौषदशमीपर्व कथा, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण
सं., गद्य, आदि: अभिनवमंगलमाला० दुरंत, अंति: स्मरणादानंदमाला भवतु.
२. पे. नाम. मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, पृ. ३ आ-७अ, संपूर्ण.
उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: मारुदेवं जिनं नत्वा, अंतिः शिष्यैरामोदतस्त्वदः, ग्रं. १६५. ३. पे. नाम. होलिकापर्व कथा, पृ. ७अ - ९अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: ऋषभस्वामिनं वंदे, अंतिः यतो धर्मस्ततो जयः, श्लोक ६५.
४. पे. नाम. चैत्रीपूर्णिमा व्याख्यान, पृ. ९अ १९आ, संपूर्ण
,
चैत्री पूर्णिमापर्व व्याख्यान, मु. जीवराज, सं., गद्य वि. १८६९, आदि: तीर्थराजं नमस्कृत्य अंतिः कांतिरत्नसहायत्तः, ६१६०९, (+) संबोधसत्तरि, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ११, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे. (२६x१३, १३४३४). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोयगुरुं; अंति: जयसेहर० नत्थि संदेहो, गाथा - २४८. ६१६०२ (१) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. ११वी, मध्यम, पृ. ११. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
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י
(२५.५X१३, १३X२८-३३).
नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, आदिः नमो अरिहंताणं० हवइ अंति: (-) (पू.वि. बृहच्छांति अपूर्ण तक है.)
६१६०३. अट्ठाई व्याख्यान सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, प्र. वि. अंतिम दो पत्रों पर पत्रांक नहीं लिखा है., जै.., (२५x१२.५, ६४३५).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
२८५ पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि: स्मृत्वा पार्श्व; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., आर्द्रकुमार कथा श्लोक-१० अपूर्ण तक लिखा है.) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: समरीने श्रीपार्श्वजी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., दधिमुख पर्वत वर्णन प्रसंग तक लिखा है.) ६१६०४. सिंदूरप्रकर, संपूर्ण, वि. १९४०, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. ११, प्रले. हरसुख त्रेवाडीया; पठ. श्राव. त्रैलोक्यचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१३, १२४३३). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२,
श्लोक-१००. ६१६०५. (+) पर्युषणअष्टाह्निका व्याख्यान सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. प्रारंभ में लब्धिरुचिगणि गुरुभ्यो
नमः लिखकर प्रतिलेखन कार्य प्रारंभ करने से प्रतिलेखक लब्धिरुचिगणि-शिष्य होना चाहिये., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२७७१३.५, ५४१७-२१). पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि: स्मृत्वा पार्श्व; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अभयदाने शीलमतीरानी कथा के पश्चात् शैवशास्त्र दृष्टांतश्लोक- ४ अपूर्ण तक लिखा
पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: समरीने श्रीपार्श्व; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., श्लोक-२३ अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) ६१६०६. (+#) भक्तामरपूजन विधि, संपूर्ण, वि. १९३५, चैत्र कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ११, प्रले. मु. जीणचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १०x२८-३५).
भक्तामर स्तोत्र-मंत्र, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: भक्तामरप्रणत० ॐ ह्री; अंति: महाप्रभावीक मंत्र छै, मंत्र-४८. ६१६०७. (+) कर्मविपाक कर्मग्रंथ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४१३, ४४२७-३२). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: (-),
(पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-४२ अपूर्ण तक है) ६१६०८. (#) उत्तराध्ययनसूत्र- अध्ययन १ से ६, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १०४३४).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६१६०९. (#) साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१३, ११४४२-४५).
साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: इच्छामिपडिक्कमिउं; अंति: भवग्गहणाइं नाइक्कमति.
साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टीका, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरजिनवरेंद्रान्; अंति: श्रेय एवेति मन्यते. ६१६१०. (+) इकवीसठाणा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, प्रले. श्राव. चंपालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२९x१४, ५४३२). २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा १ नयरी २; अंति: असेस साहारणा भणिया,
गाथा-६६, संपूर्ण. २१ स्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे विमानथकी चव्या ते; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है.) ६१६११. (4) जीवविचार व दंडक प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
(२७.५४१३.५, १३४२४). १.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण.
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५८.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
२. पे. नाम. दंडक प्रकरण, पृ. ६ आ-९अ संपूर्ण.
मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउण चढविसजिणे तसु अंति: गयसारेण० अप्पहिआ, गाथा-४७, ६१६१२. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१३.५, ७X२७-३०).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा, अंति: सहपरभवगा न सेसहं, गाथा- ७७. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व १ अजीवतत्व २; अंति: ठाणा सागै नही चालै. ६१६१३. (०) आदिजिन स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९५०, ज्येष्ठ शुक्ल ९. बुधवार, मध्यम, पृ. ९,
प्र. वि. त्रिपाठ- संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें, दे., (२८.५X१३.५, १४X३८-४४).
रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदिः श्रेयः श्रियां मंगल; अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५. रत्नाकरपच्चीसी-टीका, मु. भोजसागर, सं., गद्य, वि. १७९५, आदि: नमस्कृत्य जिनं सार्व, अति:
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शरनिधिसंयममितेवर्षे.
६१६१४. (#) पाक्षिकसूत्र व पाक्षिक खामणा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८.५X१३.५, १२३८-४२).
१. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र. पू. १- ९अ, संपूर्ण
हिस्सा, प्रा. प+ग, आदि तित्यंकरे अतित्वे अंति: जेसिं सुअसारे भति
"
२. पे. नाम. क्षामणकसूत्र, पृ. ९अ - ९आ, संपूर्ण.
खामणासूत्र, प्रा., पद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो बंदि, अंति: बंदामि ४ निधारगाहोह
६१६१५. सामाइकी अतिचार, संपूर्ण वि. १९५६, भाद्रपद कृष्ण, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. ९, ले. स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. धनसुख ऋषि, पठ. पं. गणेशचंद्र, प्र. ले. पु. सामान्य, दे., (२५.५४१३, ८४२४-२८).
सामायिक अतिचार, प्रा., गद्य, आदि: नमो चडवीसाए अंति: अरिहे समणे तहा संघे.
६१६१६. जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५३ आषाढ कृष्ण, १०, रविवार, मध्यम, पृ. ९, प्र. वि. कुल ग्रं. २५०, दे.,
(२४४१३, ५x२८).
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण; अंतिः शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा-५८.
जीवविचार प्रकरण- टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन कहितां स्वर्ग; अंति: रूपी समुद्र तेहथी.
६१६१७. (+४) उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०-१ (१) ९, पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर मिट गए हैं, जैवे. (२६.५x१२.५, ५X३९).
יי
उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि (-) अंति: (-) (पू.वि. अध्ययन- १ गाथा- २ अपूर्ण से अध्ययन- २
"
गाथा ४० अपूर्ण तक है.)
उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्ध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-).
*,
६१६१८. (+) अनुत्तरीपपातिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे. (२५x१२,
५X३२).
अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं तेणं समय, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वर्ग-३ अध्ययन-१ दसअध्ययननामगाथा- २ अपूर्ण तक लिखा है.) अनुत्तरोपपातिकदशांगसूत्र ट्वार्थ, मा.गु. गद्य, आदि: ते० तेणइ कालइ चउथा, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण सूत्र- १ अपूर्ण तक लिखा है.)
,
६१६१९. प्रतिक्रमण विधि व सामाइकि अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, जैवे. (२५४१३, ६४१७).
१. पे. नाम. प्रतिक्रमण काउसग्गादि विधि, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण.
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"
प्रतिक्रमण विधि" संबद्ध, प्रा., मा.गु. गद्य, आदि देवसिर राई२ पक्षि३; अंति तस्स मिच्छामिदुक्कडं (वि. प्रतिक्रमण काउसग्गादि की विधि दी गई है. )
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ २.पे. नाम. सामायिक अतिचार, पृ. ३अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं..
प्रा., गद्य, आदि: नमो चउवीसाए; अंति: (-), (पू.वि. "भोयणपिज्ज भखणीयं" पाठ तक है.) ६१६२०. (+) सम्यक्त्वसप्तति सह सम्यक्त्वकौमुदीटीका-सम्यक्त्वषडाकारस्वरूपाधिकार११ गाथा-५५ से ५८, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८x१३, १५४३९-४५).
सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. सम्यक्त्वसप्ततिका-सम्यक्त्वकौमुदीटीका, आ. संघतिलकसूरि, सं., प+ग., वि. १४२२, आदि: (-); अंति: (-),
प्रतिपूर्ण. ६१६२१. पत्रलेखन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, दे., (२५.५४१३, १०४३३-३६).
पत्रलेखन विधि, सं., प+ग., आदि: स्वस्ति श्रीनिकर य; अंति: विज्ञतरेष्व०विस्तरेण. ६१६२२. (+) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४१२.५, ५४२०-२५). षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: (-),
(अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२१ अपूर्ण तक लिखा है.) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांदीनइं तीर्थंकर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., गाथा-१६ अपूर्ण तक लिखा है.) ६१६२३. (+#) श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्रसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९२१, वैशाख शुक्ल, ११, शनिवार, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१३, १६४३४). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० इच्छा; अंति: जैनं जयति
शासनम्. ६१६२५. (+) पंचपरमेष्टिगुणगान सहटीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८.५४१४, १६४३९). नमस्कार स्तव, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: परमिट्ठि नमुक्कार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., गाथा-२४ तक लिखा है.) नमस्कार स्तव-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १४९७, आदि: (१)जिनं विश्वत्रयी, (२)व्याख्या
परमेष्टिन; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६१६२६. (+) प्रास्ताविक श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९६४, आश्विन शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ७, प्रले. मु. रामलाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४१३.५, १०x२८).
प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: धर्माजन्मकुले शरीर; अंति: दसणरहिया न सिज्झंति, गाथा-६१. ६१६२७. (+#) विचारषट्विंशिका सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१(१)=६, ले.स्थल. भावनगर, प्रले. श्राव. देवजी
वालजी; पठ. श्राव. परमाणंद सोमचंद; दत्त. मु. राम; गृही. मु. नारणजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संवत् १९०६ कार्तिक शुक्ल पक्ष १३ सोमवार को प्रत अर्पित करने का उल्लेख मिलता है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ३४२६-४८).
दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: (-); अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा-४५, (पू.वि. गाथा-४ से
दंडक प्रकरण-टबार्थ *मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: वळे तेहने वास्ते. ६१६२८. (#) भगवतीसूत्र-शतक-२ उद्देश-५ जिनप्रतिमामंडनालापक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१३, १०४२५). आगमों में जिनप्रतिमा के आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "सच्चेणं एसमट्ठिणो चेवणं आयभावे वत्तव्वयाए" पाठ तक लिखा है.) ६१६२९. कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, दे., (२६.५४१३, १४४३९).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
कथा संग्रह, सं., गद्य, आदिः उपानहौ मया दत्तै, अंतिः फलति कपालं न भूपालः .
६१६३०. (+) उपधान विधि, संपूर्ण, वि. १८८२, माघ शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल. भावनगर, प्रले. मु. नगविजय, पठ. मु. सुजाणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६.५x१२, २१४५०-५३).
,
उपधानतप विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: पहिलो नोकार उपधान१; अंतिः समकितनी मेले जाणावी. ६१६३१. (+) प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२४, आश्विन कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ७, प्रले. मु. ऋषभचंद्र ऋषि,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (२६४१३, १०x३३).
',
प्रस्ताविक लोक संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: धर्माज्जन्मकुले शरीर, अंतिः दवा० दया कहा से होय, गाथा- ६२. ६१६३२. (*) नयचक्र, संपूर्ण, वि. १९६१ आश्विन कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल, जयपुर ( जेपुर), प्रले. किसनलाल जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित. दे. (२७.५x१३, ११४३९-४२).
""
नवचक्रसार, ग. देवचंद्र, सं., गद्य, वि. १८वी, आदि: गुणानां विस्तरं अंतिः यथा जीवस्य शरीरमिति, ६१६३३. कर्मप्रकृति विवरण, संपूर्ण वि. १८७४ श्रावण कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ७, प्रले. पं. धर्मा प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२५.५५१२.५, १६५३६-४३).
3
८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानवरणीय दर्शनावरण, अंति: ९ निश्चय केवली गम्बः. ६१६३४. (+) पंचम कर्मग्रंथ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२८x१३, १५X३६-४०). शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी १४बी, आदि: नमिव जिणं धुवबंधोदय, अंतिः
1
देविंदसूरि० आवसरणड्डा, गाथा- १००,
६१६३५. जयतिहुयण स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. ७-१ (१) = ६, पू.वि. प्रथम व अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२६X१३, ७X१८-२३).
जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण से
,
"
गाथा - २९ अपूर्ण तक है.)
.
६१६३६. (+) सकलैश्चर्य स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३६, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल गोलनयर, अन्य. मु. सुमतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे. (२६१२.५, ११४३५). सकलैश्वर्य स्तोत्र, आ. राजेंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: सकलैश्वर्यवस्थानमास; अंतिः सिरसा मनसा सदा, गाथा-२३. सकलैश्वर्य स्तोत्र बार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: वयं आहत्यं समुपास, अंति: निरंतर वादु छु.
६१६३७. (+#) प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
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(२६१३.५, १०X२८-३२).
प्रस्ताविक लोक संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि धर्माज्जन्मकुले शरीर, अंतिः दंसणरहिया न सिज्झति, गाथा- ६१. ६१६३८. (+) नवतत्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल अजिमगंज, प्रले. मु. रतनचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि., पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६.५x१३,
१०x२८-३२).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: सहपरभवगा न सेसट्टं, गाथा-७७.
६१६४०. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२३, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. नागोर, प्र. मु. ऋषभचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे., (२५.५X१२.५, ६४३५).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: एयं बंध ठिईमाणं, गाथा- ६०.
,
"
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: उत्कृष्ट स्थिति कही. ६१६४१. (+) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५+१ (५) ६ प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, दे. (२६१३, १०x३०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: सहपरभवगा न सेसट्ठ, गाथा-७७. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९९३ माघ कृष्ण, ५. गुरुवार, मध्यम, पृ. ६-१ (१) ५, ले. स्थल बीकानेर, प्रले. आ. देवगुप्तसूरि (उपकेश गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे., ( २६१२.५, ६x४१).
६१६४२. (+)
"
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३,
(पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.)
चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: अनंत सुखना कारण छे. ६१६४३. (+#) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. तिलोकचंद ऋषि (गुरु मु. हरदास ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१३.५, ५-८x२७). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीर नमिऊण; अंति: रुद्दाउसुय समुद्दाउ,
गाथा-५१.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, पुहिं., गद्य, आदि: तीन भुवन में दीपक; अंति: समुद्र से निकाला० हे. ६१६४४. प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१६, माघ शुक्ल, १३, रविवार, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. मिलापचंद ऋषि; पठ. मु. गुलाबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२.५, ११४२५-२९).
प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: धर्माज्जन्मकुले शरीर; अंति: दसणरहिया न सिज्झति, गाथा-६०. ६१६४५. (+#) पच्चक्खाण सूत्र संग्रह व पोसह पारवानीगाथा, संपूर्ण, वि. १९२१, आश्विन शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ३,
ले.स्थल. सुज्ञानगढ, प्रले. मु. ऋषभचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.. (२७.५४१३.५, ७४२०-२५). १.पे. नाम. प्रत्याख्याण सूत्र, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण.
प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: अप्पाणं वोसरामि. २. पे. नाम. पौषध लेवानी विधि, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: करेमि भंते पोसह; अंति: अप्पाणं वोसिरामि. ३. पे. नाम. पौसह पारवा गाथा, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
पौषधपारणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: सागरचंदो कामो; अंति: सेसो संसारफल हेउ. ६१६४७. (+) जैन धार्मिक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५-९(१ से ८,१२)=६, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१२, १२४३१).
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (१)बांछितार्थमखि, (२)निर्धनस्य मृतस्पंच, (पू.वि. प्रारंभ के
___ पत्र नहीं हैं., श्लोक १ से ५ अपूर्ण एवं ३८ अपूर्ण से ४८ अपूर्ण तक नहीं है.) ६१६४८. (+#) होलिरजपर्व कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२९, फाल्गुन शुक्ल, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. द्वापुरनगर, प्रले. पं. रुचिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, ५४३१).
होलिकापर्व कथा, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीवर्धमानं जिनं; अंति: विज्ञानां वाचनोचित्, श्लोक-५१.
होलिकापर्व कथा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामीन; अंति: जीवनइ अर्थे रच्यो. ६१६४९. (+) भगवतीसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-द्विपाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १५-१८४४४).
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहताणं० सव्व; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., सूत्र-३, "रायगिह चलण दुक्खे" पाठ तक लिखा है.) भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११२८, आदि: सर्वज्ञमीश्वरमनंत; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "श्रुतमहतोमनस्तीर्थायैतिभणतात्" पाठ तक लिखा है.) ६१६५०. (+#) जीवविचार प्रकरण, नवतत्त्व प्रकरण व दस श्रावक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८९६, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, १,
सोमवार, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मु. लाभचंद्र; पठ. श्राव. पुनमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१३, १५४३१). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाउ सुय समुद्दाउ, गाथा-५१. २.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण., पृ. ३अ-५आ, संपूर्ण.
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२९०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: मिस्सो होइ अजीवो, गाथा-५३. ३. पे. नाम. १० श्रावक सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण.
___ मु. गढमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: आनंदी आणंद हुवै; अंति: आपो अविचल सेव, गाथा-५. ६१६५१. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. रायचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१३, १२४२४). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते,
श्लोक-४४. ६१६५२. (+) उपदेशशतक व शाश्वत प्रतिमा वर्णन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(२)=५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(२६४१२, ११४३६-४१). १.पे. नाम. धर्मोपदेशशतक, पृ. १अ-५अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है.
आ. मेरुतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिधाय परं ज्योतिर; अंति: जयते जंगमकल्पवृक्षः, सर्ग-५, श्लोक-१०६,
(पू.वि. श्लोक-२५ अपूर्ण से ४८ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. शाश्वतप्रतिमावर्णन स्तव, प्र. ५आ-६अ, संपूर्ण.
शाश्वतप्रतिमा वर्णन, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चत्तारिअट्ठदसदो वंदि; अंति: देविंद० जगगुरू विंति, गाथा-१६. ६१६५३. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६४१२.५, ११४३६-३८).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४८. ६१६५४. (+) स्तवन व स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८२, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ५, ले.स्थल. पाली,
पठ. श्रावि. नवलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथजी प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२३.५४१२.५, १२४२६). १. पे. नाम. अजितशांति स्तव, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण.
आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. २. पे. नाम. संतिकरं स्तोत्र, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण.
आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: सांतिकरं सांतिजिण; अंति: स लहइ सुह संपयं परमं, गाथा-१३. ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: सिद्धोविज्जायचक्की; अंति: महं तित्थमेयं नमामि, गाथा-१. ४. पे. नाम. अमृतवेल सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चेतन ज्ञान अजुवालीए; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है.) ५. पे. नाम. ज्ञानपूजा मंत्र, पृ. ५आ, संपूर्ण.
सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीँ श्री अनंता; अंति: समर्पयामि. ६१६५५. पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९६२, फाल्गुन शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. सुजाणगढ, प्रले. मु. रावतमल्ल ऋषि; पठ. मु. जेष्टमल्ल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१३.५, ९४३०).
पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: जगत्पदमावतीस्तोत्रम्, श्लोक-२७. ६१६५६. (+) मौनएकादशी गुणणो, संपूर्ण, वि. १९५३, मार्गशीर्ष शुक्ल, १४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. नागोर,
प्रले. मु. करमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित.,प्र.ले.श्लो. (१११३) कर घांबड कर गुंबडी, दे., (२६४१३, ८-११४११-३५).
मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: जंबूद्वीपे भरत; अंति: श्रीआरणनाथाय नमः. ६१६५७. (+) तपागच्छीय पट्टावली, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १६४१२-४२).
पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर तत्समये; अंति: (-), (पू.वि. विजयदेवसूरि वर्णन अपूर्ण तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
२९१ ६१६५८. वैराग्यशतक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. लखनेउ, प्रले. मु. धर्मचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१३.५, १३४३५).
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहसि जहा सासयं ठाणं, गाथा-१०४. ६१६५९. (+#) तिजयपहुत्तस्तोत्र, बृहत्शांति व ऋषिमंडल स्तोत्र, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, कुल पे. ३,
प्रले.मु. गुणचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१३.५, १३४३१-३५). १. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४, (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण से है., वि. प्रतिलेखक ने गाथांक १४
को १५ लिखा है.) २. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, पृ. २अ-४आ, संपूर्ण.
सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: सुखी भवतु लोकः. ३. पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. ४आ-६आ, संपूर्ण.
आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आयंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: लभ्यते पदमव्ययम, श्लोक-९६. ६१६६०. (+) पाक्षिक चैत्यवंदन, अजितशांति व बृहत्शांति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-१८(१ से १७,२२)=५, कुल पे. ३,
प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१३, १२४२६). १.पे. नाम. पाक्षिक चैत्यवंदन, पृ. १८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८४९, वैशाख कृष्ण, २,
ले.स्थल. राजनगर. सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: नाथ श्रियेस्तुव,
श्लोक-२६, (पू.वि. मात्र अतिम गाथा अपूर्ण है.) २.पे. नाम. अजितशांति स्तव, पृ. १८अ-२१आ, संपूर्ण.
आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. ३. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, पृ. २१आ-२३आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है.
सं., प+ग., आदि: (-); अंति: जैनंजयति शासनम्, (पू.वि. प्रारम्भ के दो शब्द व "स्कंद विनायको" पाठ से है.) ६१६६१. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७७१३.५, ६४३९). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: शांतिसूरि०
समुद्दाओ, गाथा-५१, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: त्रण भुवनने विषे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., गाथा-२६ अपूर्ण तक लिखा है.) ६१६६२. (+) भावप्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, अन्य. पंडित. श्रीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१३.५, ६४३०). भाव प्रकरण, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, वि. १६२३, आदि: आणंदभरिय नयणो आणंद; अंति: विजयविमल.
पुव्वगंथाओ, गाथा-३०. ६१६६३. (+) सूरिमंत्रकल्प विधि, संपूर्ण, वि. १९७६, आश्विन शुक्ल, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. बुरानपुर, प्रले. ग. जयमुनि,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२८x११, १७X५०).
मुद्रापंचक विधि, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं नमोजिणाण: अंति: मद्रापंचकविधिरियं. ६१६६४.(+) दीपालिकाकल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६, प्रले. मु. मोतिविजय; पठ.पं. सुखविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (९७९) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७.५४१३, ५४३१). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: श्रीवर्द्धमानमांगल्य; अंति: चंद्रार्कजगत्त्रये,
श्लोक-४३६, ग्रं. १५००.
कावाधरिय.
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२९२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हते बालबोधीना; अंति: करे ति लगे प्रतपो. ६१६६५. (+#) कल्पसूत्र व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७७१३, १२x२७). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*,सं., गद्य, आदि: नमः श्रीवर्धमान०; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
ऋषभदेव पंचकल्याणक वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ६१६६६. (+) उपदेशमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७०५, आश्विन शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ५४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४११.५, ५४३४). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४,
(प्रले. मु. केशव, प्र.ले.पु. सामान्य) उपदेशमाला-बालावबोध, मु. रत्नचरित्र-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: स्तुत्वा जिनं च सुगु; अंति: रंथ वाणी श्रुतदेवता,
ग्रं. २५५७, (प्रले. मु. भीमा (गुरु मु. केशव), प्र.ले.पु. सामान्य) ६१६६७. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व नमस्कार मंत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९३५, वैशाख शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ५२-२(२६
से २७)=५०, कुल पे. ४, प्र.वि. अंत के दो पत्रों पर पत्रांक अंकित नहीं है, इसलिये अनुमानित लिखा गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२८x१२.५, ९-१५४४०-५०). १. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-५०अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१३ तक व
अध्ययन-१५ से अध्ययन-२५ तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा संग्रह, मु. पार्श्वचंद्रसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानजिन; अंति: (-),
(पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र मंगलाचरण लिखा गया है.) २.पे. नाम. नमस्कार महामंत्र, पृ. ५१आ, संपूर्ण.
शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढम हवई मंगलम्, पद-९. ३. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ५१आ, संपूर्ण. साधुप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: तिखूत्तो आयाहिण; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रारम्भिक २ गाथाएँ लिखी हैं.) ४. पे. नाम. अभक्ष्य विचार, पृ. ५२आ, संपूर्ण.
विचार संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६१६६८. (+#) चोवीसदंडक सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२, प्रले. महानंद बृद्धिचंद साधु; पठ.मु.सौभाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२८x१२.५, १२४४१).
दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ,
गाथा-४६.
दंडक प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: थमा १वंसा २ सेला ३; अंति: विरह नइ बोलई जाणवउ. दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: आपणा हितने काजे लिखी, (वि. प्रारंभिक अंश नष्ट होने के
कारण आदिवाक्य अवाच्य है.) ६१६६९. (+) सिद्धांतसारदीपक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८३-१३४(१ से १०१,१०३ से १३४,१४०)=४९, पू.वि. बीच-बीच
के पत्र हैं., प्र.वि. प्रथम पत्र का पत्रांकवाला भाग खंडित होने के कारण अनुमानित पतरांक दिया गया है., संशोधित-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१२.५, ११४३०-३५). सिद्धांतसार, आ. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अधिकार-१० गाथा-३४० से ३६३
तक, अधिकार-१२ गाथा-१३३ अपूर्ण से अधिकार-१३ गाथा-५२ अपूर्ण तक व गाथा-७७ अपूर्ण से अधिकार-१६ गाथा-६१ अपूर्ण तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ ६१६७०.(+) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०६, वैशाख कृष्ण, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४४, ले.स्थल. गंज, प्रले. मु. दोदराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२८x१३, ८४४३-४६). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नाम नयरी; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव,
अध्ययन-१०,ग्रं. ८१२.
उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल चोथो आरोते; अंति: करीनइ उ० उपदेश दीधउ. ६१६७१. कामघटचरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३१-२(१ से २)=२९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७.५४११.५, ७-१३४३१-३५). पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथानक, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कला वर्णन अपूर्ण से श्रीपति द्वारा
शील प्रभाव वचन सुनने के प्रसंग तक का पाठ है.)
पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथानक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६१६७२. विपाकसूत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १८८४, आषाढ़ कृष्ण, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०, ले.स्थल. लखणेउ, लिख. श्रावि. मुनीया, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८.५४१३, १२४४०). विपाकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, आदि: नत्वा श्रीवर्द्धमान; अंति: मदभयदेवाचार्यस्येति, श्रुतस्कंध-२,
ग्रं. ९००. ६१६७३. (+#) विक्रम चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३, ११४३४-३६). विक्रमादित्य चौपाई, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: पुरसादाणि प्रणमीए; अंति: (-),
(पू.वि. ढाल २६ गाथा २ अपूर्ण तक है.) ६१६७४. कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८४०, श्रेष्ठ, पृ. १५२-१२१(१ से १२१)=३१, ले.स्थल. पत्तन,
प्रले. पं. भक्तिविजय (गुरु ग. कांतिविजय, तपगच्छ); गुपि.ग. कांतिविजय (गुरु पंडित. प्रेमविजय, तपगच्छ); पंडित. प्रेमविजय (गुरु आ. विजयप्रभसूरि, तपगच्छ); आ. विजयप्रभसूरि (तपगछ); पठ. ग. चंद्रविजय गणि (गुरु पं. भक्तिविजय, तपगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (४६९) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, जैदे., (२८x१३, ७४३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, (वि. १८४०, श्रावण शुक्ल,
१५, बुधवार, पू.वि. भगवान महावीरस्वामी को केवलज्ञान प्राप्ति प्रसंग अपूर्ण से है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: कहइ ए गुरुक्त जाणिवउ, (वि. १८४०, श्रावण कृष्ण, ५, रविवार)
कल्पसूत्र-बालावबोध*,मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: भाषा संपूर्णं कृतं. ६१६७५. (+) नवतत्त्व सह टबार्थ व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२१, वैशाख कृष्ण, ८, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३५, कुल पे. ३,
ले.स्थल. वटपद्रनगर, प्रले. मु. भवान ऋषि (गुरु मु. तलिकचंद ऋषि); पठ. मु. हेमचंद; अन्य. मु. जवाहरलाल; श्राव. चुनीलाल नेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रत प्रदान करने का उल्लेख मिलता है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. १४०१, जैदे., (२७४१२, ३४२२-२६). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-३५अ, संपूर्ण.
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ अजीवार पुन्नं३; अति: अणागयद्धा अणतगुणा, गाथा-९५, ग्रं. १५१. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, उपा. मानविजय, मा.गु., गद्य, आदि: वीरजिनं नत्वा मत्वा; अंति: तथी अनागति अनंतगुणा,
ग्रं. १२५०. २. पे. नाम. पर्याय विचार, पृ. ३५आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है.
विचार संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. सिद्धों के भेद, पृ. ३५आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है.
सिद्धों के १५ भेद उदाहरण, प्रा., पद्य, आदि: जिणसिद्धायअरिहा अजिण; अंति: समयेवि अणेग सिद्धाय, गाथा-४. ६१६७६. यतिप्रतिक्रमण सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१७, श्रेष्ठ, पृ. ३१, ले.स्थल. पालनपुर, प्रले. गोविंददास;
अन्य. श्राव. खुशालदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ७५०, दे., (२८x१३, १०४३७).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पगाम सिज्झाए निगाम; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१,
(वि. १९१७, माघ शुक्ल, ६) पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १७४९, आदि: ऍनत्वा पार्श्वनाथ: अंति: तीर्थंकर
जिन प्रति, (वि. १९१७, माघ शुक्ल, ८) ६१६७७. (+) गुणस्थानक्रमारोह सह टीका, संपूर्ण, वि. १९३६, रसगुणनवशशि, श्रावण कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. २३,
ले.स्थल. लक्ष्मणपुर, प्रले. मु. गोकुलचंद्र ऋषि (गुरु आ. शांतिसागरसूरि, विजयगच्छ पूर्णिमापक्ष), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२७.५४१३, ३-५४३७). गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोहहत; अंति: रत्नशेखरसूरिभिः,
श्लोक-१३६. गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४४७, आदि: अहँ पदं हृदि; अंति: प्रकटित
इत्यर्थः. ६१६७८. (+) सिंदूरप्रकरण सह टबार्थ व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(२८x१३, ५४४३). १.पे. नाम. चंद्रमा प्रमाण, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा लिखी गई है.
ज्योतिष, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. श्वासोश्वास प्रमाण विचार, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा लिखी गई है.
_श्वासोश्वास विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: दस चुटक्या इक सास ह; अंति: स्वास दिनरात का हुवा. ३. पे. नाम. सिंदूरप्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-२०आ, संपूर्ण. सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: मानेति शमेति नाशम्, द्वार-२२,
श्लोक-१००. सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तपरूपीया हाथीनै; अंति: नास पामइ गोत्र कहिओ. ४. पे. नाम. लेश्या काव्य, पृ. २०आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. षट्लेश्या लक्षण, प्रा.,सं., पद्य, आदि: अतिरौद्र सदा क्रोधी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र
प्रथम श्लोक है.) ५.पे. नाम. संक्रांतिपुन्यकाल भोग विचार, पृ. २०आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा लिखी गई है.
ज्योतिष श्लोक, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६१६७९. (+) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१२.५, ७X२२). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: (-),
(पू.वि. देवसीय खमासमण अपूर्ण तक है.) ६१६८०.(+) योगदृष्टिसमुच्चय कीटीका, संपूर्ण, वि. १९२९, नवद्विनगचंद्र, आषाढ़, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्रले. मु. गुणचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२८.५४१३, १७४३८-४१).
योगदृष्टि समुच्चय-स्वोपज्ञ टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: योगतंत्रप्रत्यासन्न; अंति: तरायप्रशांत्यर्थमिति. ६१६८१. जिनशतक सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४१, प्र.वि. कुल ग्रं. १५००, जैदे., (२६४१२.५, १३४४२).
जिनशतक, मु. जंबू कवि, सं., पद्य, वि. १००१-१०२५, आदि: श्रीमद्भिः स्वैर्महो; अंति: वागसौ द्राग्विधेयात्,
परिच्छेद-४, श्लोक-१००. जिनशतक-पंजिका टीका, मु. शांबमुनि, सं., गद्य, वि. १०२५, आदि: निष्क्रांतौ कृत पंचम; अंति: शाख सित
त्रयोदश्याम्, ग्रं. १५५०.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
६१६८२. (+#) उवासगदसांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५१-२० (१ से २०) = ३१, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे., (२७४१३, ७४५).
उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. अध्ययन - २ अपूर्ण से अध्ययन- ९ अपूर्ण तक है.)
उपासक दशांगसूत्र- बार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मा.गु, गद्य वि. १६९३, आदि: (-); अंति: (-).
',
६१६८३. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३०-६ (१ से ६) = २४, पू.वि. बीच के पत्र हैं, जैदे., (२७X१२, ४-७५३५). उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- १ गाथा ३७ अपूर्ण से अध्ययन-७ गाथा-७ अपूर्ण तक है.)
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६१६८४. (+) कल्पसूत्र की टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २३+१ (११) = २४, ले. स्थल. लक्ष्मणापुर, प्रले. मु. गोकलचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ- अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. दे. (२७४१३, १२४४३)
कल्पसूत्र- टीका, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमश्रेयस्कर, अंतिः समितिषु चोपयोगः,
६१६८५. (+) दीपमालिकाकल्प, अपूर्ण, वि. १८९९, फाल्गुन कृष्ण, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १८ - १ (१५) = १७, प्रले. श्राव. गुणचंद्र, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२७४१३.५, ११४३८).
६X३५-३७).
दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., गद्य वि. १३८७, आदि: पणमिय वीरं वुच्छं, अंतिः समत्थिओ एस सत्थिकरो, (पू.वि. अनंत चतुष्टय वर्णन अपूर्ण से बावन जिनालय न्हवण वर्णन तक का पाठ नहीं है.) ६१६८६. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३६-१८ (१ से १८) = १८. पू. वि. बीच के पत्र हैं. जैवे., (२७.५४१३,
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-५, उद्देशक-१, गाथा - ७ अपूर्ण से अध्ययन-६, उद्देशक- ३, गाथा ३७ अपूर्ण तक है.)
६१६८७ (४) प्रतिष्ठाविधि, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २१, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे., (२८४१२.५, ११४३८-४७).
प्रतिष्ठा विधि संग्रह, मा.गु., सं., गद्य, आदि: प्रणम्य स्वस्ति; अंति: (-), (पू.वि. गुरु के नवांगी पूजा करने के प्रसंग त है.)
६१६८८. (+) कल्पसूत्र की कल्पलताटीका की पीठिका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१३, १३x४३).
कल्पसूत्र- कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंति: (-), प्रतिपूर्ण
६१६८९. उत्तमकुमार चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदे., ( २६१२.५, १५X४१).
उत्तमकुमार चरित्र, मु. चारुचंद्र, सं., पद्य, आदि: वंदित्वा स्वगुरुन, अंति: कथेयं नंदतां चिरम्, श्लोक - ५७५. ६१६९०. (४) शत्रुंजयमाहात्म्य सह टवार्थ सर्ग ६, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, प्र. वि. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे.,
(२७X१३, ६x४६).
शत्रुंजय माहात्म्य, आ. धनेखरसूरि, सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण शत्रुंजय माहात्म्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण
२९५
६१६९१. (+) शतार्थवृत्त काव्य सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९४६, श्रावण कृष्ण, ३०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले. स्थल. मुंबई, प्रले. पं. ऋषभदत्त गणेशदत्त, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ-संशोधित. दे. (२७.५४१३, १२x२७-५८).
साधारणजिन स्तुति - शतार्थी, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. ९४वी, आदि: कल्याणसारसवितानहरे; अंति: परमागम सिद्धसूरे, श्लोक-१.
,
साधारणजिन स्तुति-शतार्थी स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. सोमप्रभसूरि, सं. पण, आदि: (१) अत्र स्तुताश्चतुर्वि, (२) तत्र श्रीऋषभः है, अंतिः शतार्थ व्यधात्.
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२९६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६१६९२. मुनिपति चरित्र, संपूर्ण, वि. १८६५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले.स्थल. मकसुदाबाद, प्रले.ऋ. लालमण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२.५, १३-१६४३२-४०).
मुनिपति चरित्र सारोद्धार, संक्षेप, प्रा.,सं., गद्य, आदि: नमिऊण वद्धमाणं चौतीस; अंति: मंइयं हरिभद्दसूरीहि. ६१६९३. (+) संघयणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-४(२,१० से १२)=१७, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१३, १३४३०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ८ अपूर्ण से
गाथा १५ अपूर्ण तक, गाथा ८५ अपूर्ण से ११४ तक व गाथा २०९ अपूर्ण से नहीं है.) ६१६९४. (#) साधुप्रतिक्रमण सूत्र संग्रह व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-३(९ से ११)=१५, कुल पे. १७,
प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१३.५, १३४३२). १. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १आ-१३आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. ___ साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: तस्स
मिच्छामिदुक्कड, (पू.वि. "नाणं उवसंपजामि" पाठ से "सीसे सामीय कुलगुणेअ" पाठ तक नहीं है.) २.पे. नाम. जिन चैत्यवंदन, पृ. १३आ, संपूर्ण. ५ तीर्थजिन चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धुर समरु श्रीआदिदेव; अंति: कमल० घरि जै जैकार,
गाथा-६. ३. पे. नाम. महासती कुलक, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण.
भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जस पटओ तीहूणे सयले, गाथा-१३. ४. पे. नाम. कल्याणकंद स्तुति, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण.
कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्याणकंद पढम जिणंद; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. ५. पे. नाम. बीजदिन स्तुति, पृ. १४आ, संपूर्ण.
बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. ६.पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ७. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीर; अंति: देहि मे देवि सारम्,
श्लोक-४. ८. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: गुणहर्ष० तणा निसदीस,
गाथा-४. ९. पे. नाम. चतुर्दशी स्तुति, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण.
पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. १०.पे. नाम. शेव्रुजय स्तुति, पृ. १६आ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुजय मंडण आदिदे; अंति: नंदसूरी तस पाय सेवता, गाथा-४. ११. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति-उन्नतपुरमंडन, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: उन्नतपुरमंडण जगतधणी; अंति: भावसागर पावे
तेह नरा, गाथा-४. । १२. पे. नाम. विजयप्रभसूरि स्तुति, पृ. १७अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: विजयप्रभसूरे नित्य; अंति: यीलब्धिमहोगौतमस्वामि, श्लोक-१. १३. पे. नाम. विजयरत्नसूरि स्तुति, पृ. १७अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: विजयरत्नगणाधिप धीमता; अंति: तदयामितकांतिसुखावहः, श्लोक-१.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
२९७ १४. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १७अ, संपूर्ण.
आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराजः पदपद्म; अंति: दधतांशीवं सूरीस, श्लोक-१. १५. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १७अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: शन्नो देवी दया दंभा, श्लोक-१. १६. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण..
मा.गु., पद्य, आदि: नेमिजिन उपदिसी मौनएक; अंति: धरा संति तै सुरवरा, गाथा-४. १७. पे. नाम. पजूसण स्तुति, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण.
पर्युषणपर्व स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजुसण पून्ये; अंति: शांतिकुशल गुण गायाजी, गाथा-४. ६१६९५. भववैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७०, पौष कृष्ण, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. सूर्यपुर, प्र.वि. श्रीअभिनंदनजिन प्रसादात्., जैदे., (२८.५४१३, ४४३४).
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिउसासयं ठाणं, गाथा-१०९, (प्रले.पं.खेमाविजय,
प्र.ले.पु. सामान्य) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वामेयं पार्श्वनाथ; अंति: प्राप्ति शीघ्र थाई, (प्रले. पं. दीपविजय,
प्र.ले.पु. सामान्य) ६१६९६. स्थंभन पार्श्वनाथ माहात्म्य कथा, संपूर्ण, वि. १९३६, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १४, ., (२८x१३, १०४३८).
पार्श्वजिन माहात्म्य कथासंग्रह-स्थंभनपार्श्व, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., गद्य, वि. ११३१, आदि: श्रीस्थंभन पार्श्व; अंति:
सतां वांछितस्तंभनेशः, प्रबंध-३२. ६१६९७. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह पद्यानुवाद व मंत्र विधि सहित, संपूर्ण, वि. १९४०, भाद्रपद कृष्ण, १२, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. मेडतानगर, प्रले. सूर्यमल ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७७१३, ११४३४). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते,
श्लोक-४५. कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: परम ज्योति परमातमा; अंति:
कारन समकित शुद्धि, गाथा-४५. कल्याणमंदिर स्तोत्र-मंत्र विधिसहित, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवओ रिसहस्स; अंति: श्रीजिनाय
नमोनमः. ६१६९८. (+) भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९२, पौष कृष्ण, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मु. अनोपचंद
(पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ); पठ. श्रावि. सूरजकुंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७४१२.५, ६४३७). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३,
गाथा-१४८.
भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांदिनइ वांदवा योग्य; अंति: करी पीडायइं करी रहित. ६१७००. (+) दृष्टांतकाव्य सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२७.५४१३, ५४३२-३५).
दृष्टांतशतक, मु. तेजसिंघ ऋषि, सं., पद्य, आदि: नत्वा श्रीवृषभं सदा; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-६८ अपूर्ण तक है.)
दृष्टांतशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनै; अति: (-). ६१७०१. (#) कर्मग्रंथ-१ से ३, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-२(१ से २)=१६, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, जैदे., (२६.५४१३, ४४३६-४२). १.पे. नाम. कर्मविपाक कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. ३अ-११आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: लहिउ देविंदसूरिहिं,
गाथा-६१, (पू.वि. गाथा-२ से है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: आचार्ये लिख्यो छे. २. पे. नाम. कर्मस्तव सह टबार्थ, पृ. ११आ-१६आ, संपूर्ण, पे.वि. कर्मविपाक व कर्मस्तव दोनो मिलाकर सर्वगाथा-९५ का
उल्लेख है. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमहं तं
वीर, गाथा-३४, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: तह तिम थवु छउं मन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., वि. गाथा-२५ तकटबार्थ लिखा है.) ३.पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १६आ-१८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं वंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ६१७०२. भवभावना प्रकरण सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-४(१ से २,४ से ५)=१५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७.५४१२.५, ६-१४४२५-५२). भवभावना, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६ से २३ व गाथा ४३ से १९३
तक है.) भवभावना-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
भवभावना-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अजितशत्रु कथा-४ से संबलकंबल कथा-१८ तक है.) ६१७०३. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. स्याणानगर, प्रले. पं. मानविजय गणि (गुरु
ग. अजितविजय); गुपि.ग. अजितविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत. कुल ग्रं. ६२५, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, ३४२१-३९). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते,
श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य शंखेश्वरपार, (२)कल्याण क० श्रेय मंगल;
अंति: (१)दवरभक्तिमहानुभावात्, (२)युग यावत् सुख भोगवइ. ६१७०४. (#) मौनएकादशी कथा व होलिकाकल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८५, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. २, प्रले. मु. रत्नचंद
ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, ८४३९). १.पे. नाम. मौनएकादशी कथा सह टबार्थ, पृ. १अ-१०अ, संपूर्ण, ले.स्थल. विक्रमपुर. मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदि: प्रणम्य ऋषभदेवं; अंति: भव्या महानंदैक संपदः,
श्लोक-१९३, (वि. १८८५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, ले.स्थल. विक्रमपुर) मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ऋषभदेवने नमस्कार; अंति: मोक्षनी संपदा आपे, (वि. १८८५,
मार्गशीर्ष शुक्ल, १४) २.पे. नाम. होलिकाकल्प सह टबार्थ, पृ. १०अ-१३आ, संपूर्ण, वि. १८८५, पौष कृष्ण, १३, ले.स्थल. बिकानेर. होलिकापर्व कथा, मु. गुणाकरसूरि शिष्य, सं., पद्य, आदि: श्रीऋषभस्वामिनमन्ये; अंति: यतो धर्मस्ततो जयः,
श्लोक-६९. होलिकापर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)ऋषभं कर्षकं नौमि, (२)ऋषभजिन करसणी धर्मरूप; अंति: धर्म तठई
जय हुवई. ६१७०५. सुलसासती व मोहविवेक कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. २, ले.स्थल. कलोल, प्रले. त्रिभुवन
मोहनदास लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१३, १३४३८). १.पे. नाम. सुलसासती कथा, पृ. १आ-९अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: अथानंतरविश्वेशः; अंति: जिनेंद्रो भविष्यति, श्लोक-२४०. २. पे. नाम. मोहविवेक कथा, पृ. ९अ-१३अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: अथ भव्यप्रबोधाय मुनि, अंति: भूयांसः प्रावजस्तदा, श्लोक-११३.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
२९९ ६१७०६. अणुत्तरोववाइ सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९७८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. १४, दे., (२६.५४१३, ८x२९-४४).
अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेण० नवमस्स; अंति: तहाणेयव्वं,
अध्याय-३३, ग्रं. १९२.
अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आठमां अंतगडदशांगने; अंति: परि तिमज जाणिवा. ६१७०७. (+#) भक्तामर व कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. २, प्रले. मु. बदनमल्ल,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७७१३.५, ४४३६). १.पे. नाम. युगादिदेव स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-१०अ, संपूर्ण, वि. १८८६, फाल्गुन शुक्ल, १, ले.स्थल. सरवाडनगर.
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मु. हर्षचंद्र, पुहि., गद्य, वि. १८३९, आदि: (१)जिनेश्वरं नमस्कृत्य, (२)भक्ति संयुक्त जे अमर;
अंति: (१)हर्षच० सतां श्रेणिषु, (२)होयगे यह भावार्थ हई. २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १०आ-१५आ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते,
श्लोक-४४.
कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कल्याणक क० मंगलिक; अंति: पामई अपितु पामइंज. ६१७०८. ऋषिमंडल स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९७२, आषाढ़, मध्यम, पृ. १३, ले.स्थल. विजापुर, प्रले. नारायण नथुभाई ब्रह्मभट्ट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ३२५, दे., (२७.५४१२.५, ४४३४). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामीगणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यताक्षरसंलक्ष्य; अंति: सर्वे दोषाद्विमुचति, श्लोक-८२,
ग्रं. ८४.
ऋषिमंडल स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आदिको अक्षर अंतको; अंति: कष्ट दुरसुंछुटे, ग्रं. २४२. ६१७०९. अल्पबहुत्त्व सूत्र की अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, प्र.वि. कुल ग्रं. ५००, जैदे., (२७४१२.५, १४४४३-४६). प्रज्ञापनासूत्र-तृतीयपदसंग्रहणी की अवचूरि, आ. कुलमंडनसूरि, सं., गद्य, वि. १४४१, आदि: एदिसि० भास०
परित्त; अंति: (१)कुलमंडन० भुवनाब्दे, (२)रिसारार्थसंग्रहेणेति. ६१७१०. वास्तुमंजरी, संपूर्ण, वि. १९७६, कार्तिक शुक्ल, ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. बुराणपुर, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्., दे., (२७.५४१४, १८:५२).
वास्तुमंजरी, सूत्रधार नाथजी खेतजी, सं., पद्य, आदि: उद्यदादित्यसंकाशं: अंति: नाथेन दोषो न दीयते. अधिकार-३. ६१७११. (+#) लघुसंग्रहणीसह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३-१(९)=१२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३, २-११४३२-३८).
लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: रइया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३१,
(पू.वि. गाथा १९ अपूर्ण से २० अपूर्ण नहीं है.)
लघुसंग्रहणी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमीय क० नमस्कार करीन; अंति: वधारे थाय ते सारु. ६१७१२. (#) गौतमपृच्छा सह टबार्थ, बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १८५५, चैत्र शुक्ल, १५, शनिवार, मध्यम, पृ. ३४-२१(१ से
४,१३,१७ से २५,२७ से ३३)=१३, ले.स्थल. सीरोहीनगर, प्रले. मु. विवेकसागर (गुरु मु. जितसागर); गुपि.मु. जितसागर (गुरु मु. भक्तिसागर); मु. भक्तिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. जीरावलाजी प्रसादात्. बीच के पत्र न होने तथा अंतिम पत्र पर पत्रांकन लिखा होने से अनुमानित पत्रांक दिया गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१३, २-१६४३९). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६५, (पू.वि. गाथा १९ अपूर्ण से २४,
गाथा २६ से ३१ अपूर्ण, गाथा ४९ अपूर्ण व अंतिम गाथा है.) गौतमपृच्छा-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पिण नाममात्र कह्या. गौतमपृच्छा-बालावबोध, आ. जिनसूरि, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: सूरेण हर्षपूरण भावतः.
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३००
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गौतमपृच्छा-कथा संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६१७१३. (+) ज्ञानसार, संपूर्ण, वि. १९१८, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १३, प्रले. नागर व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. कुल ग्रं. ३२५, दे., (२८x१२.५, ११४३०-३५). ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऐंद्रश्रीसुखमनेन; अंति: स्वीयं कृतं मंगलम्,
अष्टक-३२, श्लोक-२७३. ६१७१४. श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र सह अर्थदीपिका टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३, दे., (२७४१३, ६४३३-३७).
वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र गाथा ३
तक लिखा है.) वंदित्तसूत्र-अर्थदीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४९६, आदि: जयति सततोदयश्रीः; अंति: (-),
अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६१७१५. नयरहस्य, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, दे., (२७.५४१३, १६४५८).
नयरहस्य, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, आदि: एंद्रश्रेणिनतं नत्वा; अंति: तु कल्याणसंप्राप्ति:, ग्रं. ६००. ६१७१६. (#) चतु:शरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-४(१ से ४)=१२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, ३४२९-३२).
चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा १४ अपूर्ण से ६१ तक
चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६१७१७. (+) यतिप्रतिक्रमण सूत्र सह टबार्थव ४७ दोष विचार, संपूर्ण, वि. १८२१, पौष शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २,
प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (५६०) जलात् रक्षेत् थला क्षे, (१०५४) यादृसं पुस्तकं दृष्टां, जैदे., (२८.५४१३, २-५४३०-३५). १. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-९अ, संपूर्ण.
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि पडिक्कमिउ; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, सूत्र-२१.
पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांछउवाको आचरिया थक; अंति: अरिहंत २४ ऋषभादिक. २.पे. नाम. ४७ दोष विचार, पृ. ९आ, संपूर्ण.
विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६१७१८. (+) गच्छाचार प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८.५४१३, ७४३९-४३).
गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महावीरं; अंति: गच्छंति हि अमप्पणी, गाथा-१३७.
गच्छाचार प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने श्रीमह; अंति: तां हित पामि आत्मानि. ६१७१९. (#) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६४१२.५, ५४२८-३२). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर*, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., आवश्यक-४ से वंदनाधिकार आवश्यक तक लिखा है.)
प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६१७२०. (+) सिंदूरप्रकर, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., दे., (२७.५४१३.५,११४२७-३५). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., श्लोक-६७ तक लिखा है.) ६१७२१. (#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४-२४(१ से २४)=१०, पू.वि. बीच के पत्र हैं.,
प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७.५४१३, ५४२४).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
३०१ उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३ से अध्ययन-६ गाथा-२ अपूर्ण
तक है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६१७२२. (#) पद्मावतीसहस्रनाम स्तोत्र व पूजादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१(१)=१०, कुल पे. ६, प्र.वि. अक्षरों
की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३, १४४४६). १.पे. नाम. पद्मावतीसहस्रनाम स्तोत्र, पृ. २अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है.
सं., पद्य, आदि: (-); अंति: करोति पुत्रे, श्लोक-१३०, (पू.वि. प्रथमशत श्लोक-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पद्मावती व्रतउद्योपन पूजा, पृ. ५आ-७आ, संपूर्ण.
पद्मावतीव्रतउद्यापन पूजा, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमः श्रीपार्श्वनाथाय; अंति: पार्श्वजिनं भक्त्या. ३. पे. नाम. धरणेद्रयक्षपूजा विधि, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.
सं., प+ग., आदि: धरनयक्षविलक्षविसह्यस; अंति: नित्यं० पुष्पांजलि, श्लोक-१०. ४. पे. नाम. पद्मावती स्तोत्र, पृ.८अ-९आ, संपूर्ण.
पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: पद्मावतीस्तोत्रम्, श्लोक-२७. ५. पे. नाम. पद्मावत्यष्टक, पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण.
पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथजिन; अंति: पूजयामीष्टसिद्धिः, श्लोक-१२. ६. पे. नाम. पद्मावतीपूजा छंद, पृ. १०-११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
सं., पद्य, आदि: श्रीसव्यपानिगति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२५ अपूर्ण तक है.) ६१७२३. (#) चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. सरदारशहेर, प्रले. मु. नारायणचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, ४४३९). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावजजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं,
गाथा-६३, (वि. १९२५, माघ कृष्ण, ११, शुक्रवार) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावध पाप योग मन वच; अंति: मांहिलो प्रधान साधु, (वि. १९२५,
माघ कृष्ण, १२, शनिवार) । ६१७२४. (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४१२.५, ५४३५-३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. ऋषभदत्त देवानंदा प्रसंग
अपूर्ण तक है.) ६१७२५. (-#) जिनबिंबप्रतिष्ठादि विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३१-२१(१ से २१)=१०, कुल पे. ३, प्र.वि. उपयुक्त
यंत्र-कोष्ठक सहित. अंत में नवग्रहपूजन विधि मात्र इतना लिखकर छोड़ दिया है., अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८x१२.५, ११४३८-४२). १.पे. नाम. जिनबिंब स्थापन प्रतिष्ठा विधि, पृ. २२अ-२८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. जिनबिंब प्रतिष्ठा विधि, मु. नरसागरशिष्य, मा.गु.,सं., गद्य, वि. १८१४, आदि: (-); अंति: (१)शोध्यं हि बुद्धिवरैः,
(२)गच्छ गच्छ स्वाहा, (पू.वि. गृहचैत्य प्रतिष्ठा अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पीठमंडपस्थापन विधि, पृ. २८अ-३०अ, संपूर्ण..
वेदिका स्थापन विधि, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: तिहां पहिले भव्य; अंति: धवल मंगल गावै. ३. पे. नाम. दिक्पालपूजन विधि, पृ. ३०अ-३१अ, संपूर्ण.
१० दिक्पाल आवाहन विसर्जन विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ नमो इंद्राग्नियम; अंति: तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा.
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३०२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६१७२६. (+) न्यायावतार व षड्दर्शन श्लोक, संपूर्ण, वि. १९३५, आश्विन शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, ले.स्थल. बंबई,
प्रले. मु. केशरीसिंह ऋषि (विजय गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में प्रतिलेखक द्वारा शांतिसागरसूरिभिः प्रशादात् इदं पुस्तकं लिखितं मया व "श्रीगोडीपार्श्वनाथजु के खास प्रासाद का मकान में चातुर्मासा किया" का उल्लेख है., संशोधित., दे., (२७.५४१३, १-४४२६-३२). १.पे. नाम. न्यायावतारसूत्र सह अवचूरि, पृ. १अ-९अ, संपूर्ण. न्यायावतारसूत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. ११वी, आदि: प्रमाणं स्वपराभासि; अंति: द्धापि प्रकीर्त्तिता,
श्लोक-३२. न्यायावतारसूत्र-अवचूरि, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रमाणेत्यादि अनेन: अंति: सिद्धानेपि प्ररूढापि. २. पे. नाम. प्रमाणकाव्य श्लोक, पृ. ९अ, संपूर्ण.
षड्दर्शनसिद्धांत श्लोक, सं., पद्य, आदि: चार्वाकोध्यक्षमेकं; अंति: स्पष्टतोस्पष्टतश्चा, श्लोक-१. ६१७२७. (+) संग्रहणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१(१)=१०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, १४४२८).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा १२ अपूर्ण से २३२ अपूर्ण तक
६१७२८. (#) तत्त्वार्थसूत्र, संपूर्ण, वि. १८११, ज्येष्ठ शुक्ल, ७, मंगलवार, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. नागरचल, प्रले. नवनिधिराम __पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १३४२६-३०).
तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: (१)त्रैकाल्यं द्रव्य, (२)सम्यग्दर्शनज्ञान; अंति: (१)चउगइदुक्खं
णिवारेइ, (२)बहुतत्त्वतः साध्याः, अध्याय-१०. ६१७२९. बारसासूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., दे., (२८.५४१२.५, ७४३६).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. "तिखुत्तोमुद्धाणं धरणि" पाठ
तक है.) ६१७३०. लोकतत्त्वनिर्णय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. मुंबाईबंदर, प्रले. नरोतन खुसाल; अन्य. श्राव. अंबालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२९x१३.५, १२४३८).
लोकतत्त्वनिर्णय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यैकमनेकं; अंति: मिदं हि किमिहेश्वरेण, श्लोक-१४५. ६१७३१. (#) हिंगुल प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, १४४५४).
हिंगुल प्रकरण, उपा. विनयसागर, सं., पद्य, आदि: श्रीमच्छ्रीवासुपूज्य; अंति: विनयार्णवेन० नितांत, श्लोक-१८०. ६१७३२. (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७८, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१६५) पोथी प्यारी प्राणथी, जैदे., (२७.५४१२, ५४३४-३७). नवतत्त्व प्रकरण, आ. मणिरत्नसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जीवा जीवार पुण्णं३; अंति: लिहिओ मणिरयणसूरिहिं,
गाथा-५५, (वि. १८७८, वैशाख शुक्ल, ५, रविवार, प्रले.मु. जयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: नसूरिये तपगच्छ नायक, (वि. १८७८,
वैशाख शुक्ल, १२, प्रले. मु. गुलाबविजय (गुरु पंन्या. दीपविजय); गुपि. पंन्या. दीपविजय (गुरु पंन्या. कृष्णविजय),
प्र.ले.पु. सामान्य) ६१७३३. (+) अष्टाह्निका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२७.५४१३.५, २४४५५).
अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीशं शांतिकर्ता; अंति: श्रद्धावतां
प्रीतये. ६१७३४. श्रावकप्रतिक्रमण सूत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ३, दे., (२७.५४१३, १२४३२). १.पे. नाम. श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण.
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: मिच्छामि दुक्कडं.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
३०३ २.पे. नाम. त्रिकालभाव वंदना, पृ. ६आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: पढो मंत्र नवकार ताप; अंति: भाव वंदना होयजौ, पद-२. ३. पे. नाम. चतुःशरण स्वाध्याय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
४ शरण सज्झाय, क. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो मंगलिक कहु; अंति: वास जीवडो नवि लहै, गाथा-६. ६१७३५. कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. १६, ले.स्थल. नागपुर, प्रले. पं. अमृतसार, प्र.ले.पु. सामान्य, दे.,
(२६४१३, १७४३५-४१). १. पे. नाम. माघकवि कथा दानविषये, पृ. १अ, संपूर्ण.
माघकवि कथा-दानविषये, सं., गद्य, आदि: उपानही मया दत्ते जीर; अंति: स्वर्णदानं च दत्तम्. २. पे. नाम. जयशेखरराजा सोममंत्रि कथा-उपकारविषये, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ सं., गद्य, आदि: विस्मरत्युपकारं नो स; अंति: जातो हर्षः सर्वेषां. ३. पे. नाम. भोजराजा भूकँडद्विज कथा-अनित्यताविषये, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
सं., गद्य, आदि: धारानगर्यां भोजराजः; अंति: चौर्यं त्याजितश्चेति. ४. पे. नाम. बुद्धिसिद्धिस्त्रीद्वय कथा-अतिलोभे, पृ. २अ, संपूर्ण.
सं., गद्य, आदि: अतिलोभो न कर्तव्यः; अंति: याचितं तदा अंधाजात. ५. पे. नाम. परगृहभंजने भंजकविप्रकथा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. भंजकविप्र कथा-परगृहभंजने, सं., गद्य, आदि: (१)असमंजसवाक् लोको न, (२)शांतिपुरे तिलक; अंति: जाते शांतः
कलहः. ६. पे. नाम. अविचारितकर्मणि कथा, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. विप्रपालितशुक कथा-अविचारितकर्मणि, सं., गद्य, आदि: (१)विचारितं च कर्तव्यं, (२)एकेन केनचिद्विप्रेण; अंति:
पश्चात्तापपरो जाता. ७. पे. नाम. कुस्त्री कथा, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
सं., गद्य, आदि: (१)वरं रंक दरिद्रत्वं, (२)कश्चिन्नगरे एको वणिग; अंति: भृशं लज्जितश्चैति. ८. पे. नाम. एकाग्रचित्ततापस कथा, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
सं., गद्य, आदि: (१)ध्रुवमेकाग्रया भक्त, (२)भद्रपुरे जडमति तापसः; अंति: दत्तं सुखी जातः. ९. पे. नाम. उपयोगशून्यक्रियाविषयक कथा, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
सं., गद्य, आदि: (१)दानं ध्यानं मौन शास, (२)यत्र एकोनासहस्रप्रमि; अंति: हास्यं समुत्पन्नम्. १०. पे. नाम. निःशूकबूतकार कथा, पृ. ४आ, संपूर्ण.
सं., गद्य, आदि: (१)शूरे धीमतिनिःशूके, (२)उज्जयिन्यां हालाहल; अंति: चकार लक्षं प्राप्तम्. ११. पे. नाम. कमलश्रेष्ठि कथा-नियमविषये, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
कमलश्रेष्ठि कथा-मषावाद, सं., गद्य, आदिः (१)योपि सोपि ध्रुवं, (२)श्रीपुरनगरे कमलनामा; अंति: तदनु धर्मनियमश्चक्रै. १२. पे. नाम. कृपणश्रेष्ठि कथा, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
सं., गद्य, आदि: (१)भोक्तारोर्थस्य कार्प, (२)चंद्रकुलिकानगरे कुरु; अंति: दुखी भूत्वा मृतः. १३. पे. नाम. कर्मदशायां विप्रकथा, पृ. ५आ, संपूर्ण.
दरिद्रविप्रकथा-कर्मदशायां, सं., गद्य, आदि: यत्रतयापि यातानां; अंति: आनीय गृहे स्थितः. १४. पे. नाम. कच्छपशृगाली कथा बुद्धिविषये, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. कच्छपशृगाली कथा-बुद्धिविषये, पुहि.,सं., गद्य, आदिः (१)बुद्ध्या सिद्ध्यति, (२)एकः कश्चित् कच्छपः; अंति: करौ
तुमै वाहिर बैठा. १५. पे. नाम. वृद्धवणिक् कथा- भाग्यदशायां, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. वृद्धवणिक कथा-भाग्यदशायां, सं., गद्य, आदिः (१)पुन्यप्राग्भारयोगेन, (२)एकः कश्चिद वणिक; अंति: चितं धर्मकर्म
चकार.
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३०४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६. पे. नाम. विप्रद्वय कथा-भाग्यविषये, पृ. ६आ, संपूर्ण.
विप्रद्वय कथा-भाग्ये, सं., पद्य, आदि: आरोहतुं गिरिशिखरं; अंति: फलति कपालं न भूपालः, श्लोक-१. ६१७३६. भयहर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. यंत्राम्नाय सहित., दे., (२७.५४१२.५-१३.०, १५४२८-४१).
नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण; अंति: उवसग्गो तहय रयणीसु, गाथा-२०.
नमिऊण स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: सिद्धार्थपार्थिवसुत; अंति: द्धति सर्वकामिकोयम्. ६१७३७. पुण्यपापस्वरूप कुलक व कायस्थिति स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे.,
(२७.५४१२.५, ५४३१-३४). १.पे. नाम. पुण्यपापस्वरूप कुलक सह टबार्थ, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: छत्तीसदिण सहस्स वास; अंति: सम्मं धम्मंमि
उज्जमह, गाथा-१६. पुण्यपाप कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सोए वरसे छत्तीस हजार; अंति: जिम परम सुख पांमई. २. पे. नाम. कायस्थिति स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. ३अ-६अ, संपूर्ण.
कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जहत्तुह दसण रहिउ; अंति: अकायपयसंपयं देसु, गाथा-२६.
कायस्थिति प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जिम ताहरे दर्शनइ; अंति: संपदा प्रतई आपि. ६१७३८. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२२, फाल्गुन कृष्ण, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. सलेमपरा, प्रले. श्राव. रामअदाजी कापडीया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१३, ५४३७-४२). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते,
श्लोक-४४.
कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कल्याण ते मंगलिक; अंति: थोडइ कालइ मोक्ष पामई. ६१७३९. (#) कल्याणमंदिर स्तोत्र सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५४, कार्तिक कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३, ६४३४). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते,
श्लोक-४४, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पार्श्वनाथजीरा चरण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., श्लोक-२० अपूर्ण तक लिखा है.) ६१७४०. (+#) सिंदूरप्रकर, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-५(१ से ५)=८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. प्रत अबरखयुक्त स्याही से लिखी गयी है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१३, ११४२८).
सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ३४ अपूर्ण से ९८ अपूर्ण तक
६१७४१. (+) सर्वज्ञशतक सह स्वोपज्ञ टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६,प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., दे., (२७४१२.५, १४४५३).
सर्वज्ञशतक, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, आदि: पणमिय सिरिवीरजिणं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., गाथा ४ अपूर्ण तक लिखा है.) सर्वज्ञशतक-स्वोपज्ञ टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "सव्वे पाणा सव्वे भूआ सव्वे जीवा" विवरण अपूर्ण तक नहीं है.) ६१७४२. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४९-४२(१ से ३८,४३ से ४६)=७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७.५४१३, ५४२२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन ७ गाथा १४ अपूर्ण से अध्ययन ८
गाथा ८ अपूर्ण तक व अध्ययन ९ गाथा ६ अपूर्ण से गाथा १८ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
६१७४३. (+) दानादिप्रवर्तने कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०बी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. दे. (२८x१३,
१५X३८-४३).
१. पे. नाम. चंद्रोदर चरित्र दानादिप्रवर्तने, पृ. १-५आ, संपूर्ण.
-
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चंद्रोदरराजर्षि चरित्र दानादिप्रवर्तने, प्रा. सं., प+ग, आदि (१) इदानिं यथाशक्ति दाना, (२)गयडिंवडमरवकं चक
-9
१. पे. नाम. पोसह विधि, पृ. १अ ७अ संपूर्ण
पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः खमासमण देइने इच्छा; अंति दर्शन करणो.
२. पे. नाम. देववंदन विधि, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
अंतिः भविका प्रयत्नम्, गाथा- १५६.
२. पे. नाम. दत्त कथा दाने, पृ. ५आ-७अ, संपूर्ण.
दत्त कथा - दानप्रभावे, प्रा., सं., पद्य, आदि: (१) छहिय मणवज्जं किरियं, (२) अच्छिपुरी विस्सउ राज, अंति: भव्यजनः कदाचित् गाथा ३९.
६१७४४. (*) पोसह व देववंदन विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित. दे. (२७४१३, १०X३४).
३०५
संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम खमासण देई इरिय; अंति: (-), (पू.वि. जावंति केवि साहु० पाठ तक है.) ६१७४५. क्षेत्रसमास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७.५X१४, ६x२६-३१). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३२ अपूर्ण तक है.)
"
६१७४६. (१) प्रतिक्रमण विधि, अपूर्ण, वि. १९२० आश्विन शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ६-१ ( २ ) =५, प्रले. पं. रामचंद (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१३.५, ९५२३-२६).
"
प्रतिक्रमणविधि संग्रह - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि उपाश्रय तथा घर में अंतिः पछे सामायक पारीजै, (पू.वि. बीच के कुछ पाठांश नहीं है.)
६१७४० पौषदशमी व सौभाग्यपंचमी कथा, अपूर्ण, वि. १८८५, कार्तिक शुक्ल, १४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ९-३ (२ से ४)=६, कुल
पे. २. ले. स्थल, विक्रमपुर, प्रले. मु. रतनचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६१३, ८४४०-४५).
.
१. पे. नाम. पौषदशमी कथा सह टबार्थ व अंतर्कथा, पृ. १अ १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है.
पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकसूरि, सं., गद्य, आदि: (१) प्रणम्य पार्श्वनाथ, (२)वामेयं जिनं नत्वा सद, अंति (-),
(पू.वि. गौतमस्वामि द्वारा महावीरस्वामी से प्रश्नोत्तर के प्रारंभिक प्रसंग तक है.) पौषदशमीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनें; अंति: (-).
पौषदशमीपर्व कथा - अंतर्कथा, मा.गु., गद्य, आदि: जिम कोसंबीनगरीए धना; अंति: (-).
२. पे. नाम. वरदत्तगुणमंजरी कथा सह टबार्थ, पृ. ५अ - ९अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: प्रपाल्य मुक्तिं गतः, (पू.वि. जिनदेवश्रेष्ठ प्रसंग अपूर्ण से है.) वरदत्तगुणमंजरी कथा - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पालनै मुक्तै गया.
६१७४८. (+) पूजा प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३०, फाल्गुन कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ५, प्रले. पं. तिलकवर्द्धन गणि प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२७.५x१२, ६३४-४०).
पूजा प्रकरण, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवद्धमाणतित्थाहिन; अंतिः च्वं अप्पवगाफलो एसो, गाथा-५७. पूजा प्रकरण- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वर्द्धश्चासौ मनश्च; अंति: फल देणहार एहवा जाणवा. ६१७४९. (+#) अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै.., (२७X१४, १२x२३-२६).
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अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि अजिअं जिअसव्वभवं संत, अंतिः जिणववणे आयरिअं कुणह
गाथा ४२.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६१७५०. (+४) श्रावकप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, ले. स्थल, जेसलमेर, प्रले. मु. पुनमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२७४१२, १२X३३-३६).
सामायिक अतिचार, प्रा., गद्य, आदि: नमो चडवीसाए तित्थयरा, अंतिः अरिहे समणे तहा संधे. ६१७५१. (+) पौषदशमी कथा संपूर्ण वि. १९१२ ज्येष्ठ कृष्ण, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक
चिह्न - टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित., दे., (२७X१३.५, ११X३०).
पौषदशमीपर्व कथा, मु. जिनेंद्रसागर, सं., पद्य, आदि: ध्यात्वा वामेयमर्हत अंतिः शीघ्रं रचवांचकार श्लोक ७५६१७५२. दंडक प्रकरण व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०१, मार्गशीर्ष कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले. स्थल. वेरावलबंदर, प्रले. मु. हीरजी प्रेमजी ऋषि, पठ मु. लवचंद ऋषि, श्राव. आंबा, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२६४१२.५, १०x२६). १. पे. नाम, दंडक प्रकरण, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण.
मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउण चोवीसे जिणे; अंति: एसा विनति अपहिया, गाथा-४४. २. पे. नाम श्लोक संग्रह, पृ. ५अ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा., सं., पद्य, आदि: रुखाणं जलाहारो संकोय; अंतिः सोलस एहुवी मणुएस, श्लोक - ५. ६१७५३. (+) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२६X१३.५, ११X३३). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: सहपरभवगा न सेसहं, गाथा- ७७. ६१७५४. (+) चतुर्विंशति दंडकद्वार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७२, नयनमुनिवसुशशी, चैत्र शुक्ल, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५,
ले. स्थल, जयनगर, प्रले. मु. रूपचंद (पार्श्वचंदसूरि), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., ( २६.५X१२.५, ५X३३-३७).
दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीसजिणे तस्स, अंति: गजसारेण० अप्पहिआ,
गाथा - ३९.
दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउं नमस्कार करी; अंति: आप आपनै हिताहित भी. ६१७५५. (+) स्थानांगसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५८, प्र. वि. त्रिपाठ - टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित., जैदे. (२६.५१२, ५-१९४५३-६६ ).
स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदिः सुवं मे आउस तेण भग अंतिः (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ठाण ४ उद्देसा १ अपूर्ण तक लिखा है.)
"
स्थानांगसूत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ( अपठनीय): अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
वि. प्रत का प्रारंभिक भाग खंडित होने के कारण आदिवाक्य अवाच्य है.)
६१७५६. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९४२, कार्तिक कृष्ण, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७२, ले. स्थल. अमदावाद, प्रले. पं. प्रधानविजय, लिख. श्राव. रघुनाथ प्रसाद भंडारी; श्राव. भेरुप्रसाद श्रीमाली, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५X१२.५, ११X३०).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान - ९. ६१७५७. (+) लघुसंग्रहणी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९१८ आश्विन कृष्ण १४, श्रेष्ठ, पृ. ९४-२४ (४६ से ६९ ) = ७०, प्र. वि. संशोधित. दे., (२७४१३, १५४३३-४३).
"
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य वि. १२वी आदि नमिठं अरिहंताई ठिह, अंतिः जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३०४, ( पू. वि. गाथा २१४ से २९० तक नहीं है.)
बृहत्संग्रहणी- बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, वि. १६००, आदि: श्रीपार्श्वनाथं फल; अंतिः सर्व्व सुख पामइ.
६१७५८. (+) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९३४, आषाढ़ शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५७, प्रले. पं. दयाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, दे. (२५.५१३, १९३०-३५ ).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो अंतिः (१) उवदंसेड़ ति बेमि, (२) अज्झयणं सम्मत्तं, व्याख्यान - ९.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
३०७ ६१७५९. उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका- अध्ययन ५ से८, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५०, दे., (२८x१३,१३-१५४३४-३६).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
अध्ययन ८ अपूर्ण तक लिखा है.) उत्तराध्ययनसूत्र-शिष्यहिता बृहद्वत्ति #, आ. शांतिसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-नियुक्ति की शिष्यहिताबृहद्वत्ति#, आ. शांतिसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६१७६०. गौतमपृच्छा सह टीका, संपूर्ण, वि. १८६७, श्रेष्ठ, पृ. ५०, प्रले. मनसाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १२४४१).
गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४.
गौतमपृच्छा-टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, वि. १७३८, आदि: वीरजिनं प्रणम्यादौ; अंति: पृच्छा महार्थे मोटी. ६१७६१. (+) रत्नाकरावतारिका की आद्यश्लोकशतार्थी वृत्ति व आद्यश्लोकशतार्थी वृत्ति की टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ,
पृ. ५३+१(२१)=५४, ले.स्थल. अजीमगंज, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १६९७, दे., (२६.५४१३, १४४३८-४१). रत्नाकरावतारिका-आद्यश्लोकशतार्थीवृत्ति, उपा. जिनमाणिक्य, सं., पद्य, आदि: वितरतु परमार्थरमां; अंति:
प्रदीपांकुरायते. रत्नाकरावतारिका की आद्यश्लोकशतार्थीवृत्ति-टीका, मु. विजय, सं., गद्य, वि. १५३९, आदि: इह हि
चतुरचतुरंगसभास; अंति: भुजिष्येण विजयेन. ६१७६२. कल्पसूत्र सह कल्पमंजरी टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५१+१(२)=५२, दे., (२६.५४१२, ९-१२४४१-४८).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)नमो अरिहंताणं नमो, (२)णमो अरिहंताणं० पढम; अंति: (-),
(अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वाचना ३ अपूर्ण तक लिखा है.) कल्पसूत्र-कल्पमंजरी टीका, मु. रत्नसार, सं., गद्य, आदि: श्रीनाभेयजिनेश्वरोत; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण. ६१७६३. (+) अंतगडदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४९, प्रले. सा. रोडी (गुरु सा. उमाजी); गुपि.सा. उमाजी
(गुरु सा. लिखमाजी); सा. लिखमाजी (गुरु सा. नोजाजी); सा. नोजाजी (गुरु सा. सुखाजी); सा. सुखाजी (गुरु सा. दीपाजी); सा. दीपाजी (गुरु सा. केसरजी); सा. केसरजी, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित.,प्र.ले.श्लो. (७९०) तेल रक्षं जले रक्षं, (९४३) भग्नपृष्टी कटी ग्रीवा, (१११४) जादिसं पुस्तकं लीख्यत्त वा, जैदे., (२७.५४१३, ८४४५). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय-९२,
ग्रं. ८९०, (वि. १८७३, चैत्र शुक्ल, ७, गुरुवार, ले.स्थल. गोनगढ (मेडतानगर) अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणे काले ते०; अंति: ज्ञाताधर्मकथानी परे, ग्रं. ३०००, (वि. १८७३,
आषाढ़ शुक्ल, ८, मंगलवार, ले.स्थल. मेडतानगर) ६१७६४. (+) दीपालिकाकल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४९, ले.स्थल. बांतानगर,
प्रले. पंन्या. तिलोकहंस (गुरु पंन्या. यूक्तहंस); गुपि.पंन्या. यूक्तहस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीलिलविलाशजी प्रशादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१३, ५४२८-३०). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: श्रीवर्द्धमानमांगल्य; अंति: चंद्रार्क जयत्त्रये,
श्लोक-४३७.
दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअर्हत बालबोधीनां; अंति: त्यारि लगे प्रतपो. ६१७६५. विपाकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८८४, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४६, ले.स्थल. लखनौ, प्र.वि. कुल ग्रं. ११७०, जैदे., (२९x१३, ११४४२). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध-२,
ग्रं. १२५०, (वि. अध्ययन २०.)
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३०८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६१७६६. (+) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६+१(३३)=४७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, ७४३५-४०).
उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन-१०.
उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणे कालइनै विषइ; अंति: ए मोटो अंग तिम जाणवो. ६१७६७. (#) कथा कोश, अपूर्ण, वि. १८९५, आषाढ़ शुक्ल, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. ८९-३२(१ से ३२)=५७, कुल पे. १२,
ले.स्थल. राजपुरा, प्रले. पं. विद्यारुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२.५, १५४४१). १.पे. नाम. धन्नाशालिभद्र कथा, पृ. ३३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: सिद्ध विमाने देवो.., (पू.वि. अंत के प्रसंग हैं., वि. पत्र खंडित होने के कारण अंतिमवाक्य
अंतिमवाक्य का अंतिम अंश अवाच्य है.) २. पे. नाम. वीतरागसिंघ पूजाविषये आरामसोभा कथानक, पृ. ३३अ-३७आ, संपूर्ण.
आरामशोभा कथानक, सं., गद्य, आदि: (१)सद्धर्ममूलसम्यक्त्व, (२)इहैव भरते कुशाढ्यदेश; अंति: मोक्षप्राप्यसिः. ३. पे. नाम. शीलविषये ऋषिदत्ता कथा, पृ. ३७आ-४५आ, संपूर्ण.
ऋषिदत्तासती चरित्र, सं., गद्य, आदि: अत्रैव जंबूद्वीपे; अंति: जे मोक्षने विषे छै. ४. पे. नाम. जीवदयाविषये मेतार्य कथा, पृ. ४५आ-४७आ, संपूर्ण.
मेतार्य कथा-जीवदयाविषये, सं., गद्य, आदि: अत्रैव भरते साकेतपुर; अंति: रेणादि दिख्या गृहीता. ५. पे. नाम. नमस्कारविषये रत्नसिख कथा, पृ. ४७आ-५६आ, संपूर्ण.
रत्नशेखरराजा कथा-नमस्कारविषये, सं., गद्य, आदि: अन्नेव इत्थधम्मे रयण; अंति: केवल्य मोक्षे गत. ६. पे. नाम. कषायविषये अमरदत्तमित्रानंद कथा, पृ. ५६आ-६१आ, संपूर्ण.
अमरदत्तमित्रानंद कथा-कषायविषये, सं., गद्य, आदि: अस्मिन् भरते सुरतिलक, अंति: ७. पे. नाम. दानधर्मविषये ललितांग कथा, पृ. ६१आ-६४आ, संपूर्ण.
ललितांगकुमार कथा-दानविषये, सं., गद्य, आदि: दानसील तपो भाव धर्म; अंति: राजा राज्यं करोति. ८. पे. नाम. जीवदयाविषये दामनक कथा, पृ. ६४आ-६७अ, संपूर्ण. दामनक कथा-जीवदया विषये, सं., गद्य, आदि: (१)जो जीवदया परयो परस्स, (२)अत्रैव भरते राजपुरं; अंति: स्वर्ग
जगाम. ९.पे. नाम. गुरुविराधना विषये कुलवालक कथा, पृ. ६७अ-७०आ, संपूर्ण. कुलवालक कथा-गुरुविराधना विषये, सं., गद्य, आदिः (१)यतः तवियोवितवोतिव्वो, (२)अत्रैव भरतक्षेत्रे; अंति: स्वर्ग
जगाम. १०. पे. नाम. सुपात्रदानविषये-कनकरथराजा कथा, पृ. ७०आ-७३आ, संपूर्ण.
कनकरथराजा कथा-सुपात्रदानविषये, सं., गद्य, आदि: अत्रैव भरते वैताढ्य; अंति: द्वावपि स्वर्गे गतौ. ११. पे. नाम. मानविषये बाहुबल कथा, पृ. ७३आ-७४आ, संपूर्ण. बाहुबलि कथा-मानविषये, सं., गद्य, आदिः (१)मानं बाहुवलीमरीचर, (२)धम्मो मएण हुतो; अंति: अतो मानोन
विधेयः. १२. पे. नाम. द्यूतविषये नल कथा, पृ. ७४आ-८९आ, संपूर्ण.
नल कथा-द्यूतविषये, सं., गद्य, आदि: अत्र भरते कौशलदेशे; अंति: क्रमेण मोक्षजास्यतः. ६१७६८. (#) नवस्मरण सह टबार्थ व चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ५२-२३(१ से १३,१५ से २४)=२९, कुल पे. २,
प्र.वि. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४१३, ३-४४३१). १. पे. नाम. नवस्मरण सह टबार्थ, पृ. १४अ-५२अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., पे.वि. प्रतिलेखक ने हुंडी में
सातस्मरण लिखा है, वास्तव में तपागच्छीय नवस्मरण हैं. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: मोक्ष प्रतिपद्यते, स्मरण-९, (पू.वि. अजितशांति
गाथा १० अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
३०९ नवस्मरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: प्रपद्यते क० पामइ. २.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ५२अ-५२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ४ अपूर्ण तक है.) ६१७६९. (#) प्रतिक्रमणसूत्र व स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८६०, कार्तिक कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ५०-१२(२० से ३१)=३८, कुल
पे. १२, प्रले. पं. गौडीदत्त; पठ. मु. खुस्यालचंद (गुरु पं. गौडीदत्त), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ११४२९). १. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १आ-१४आ, संपूर्ण. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो सि; अंति:
परियाणामि संजम. २. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १४आ-१७अ, संपूर्ण. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेतु सव्वसिद्ध; अंति: वदामि जिणे चोबीस, गाथा-५०, (वि. अंतिम तीन गाथाएँ
संक्षेप में लिखी हुई हैं.) ३. पे. नाम. जयतिहुअण स्तोत्र, पृ. १७अ-१९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २६ अपूर्ण तक
४. पे. नाम. लघुशांति, पृ. ३२अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७, (पू.वि. मात्र अंतिम श्लोक है.) ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३२अ-३३अ, संपूर्ण.
तिजयपहत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहत्तपयासय अट्ठ; अंति: निभंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ६.पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. ३३अ-३३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति:
तेस प्रलभंतसस्तम्, गाथा-११. ७. पे. नाम. संकलित श्लोक संग्रह, पृ. ३३आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक ,प्रा.,सं., पद्य, आदि: अहं तित्थयर माया; अंति: सर्वत्र सुखी भवत लोक, श्लोक-३. ८. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ३३आ-३७आ, संपूर्ण.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ९. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ३७आ-४१आ, संपूर्ण.
आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. १०.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ४१आ-४४आ, संपूर्ण.
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ११.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ४४आ-४७आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवार पुण्णं३; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४८. १२. पे. नाम. दंडक प्रकरण, पृ. ४७आ-५०अ, संपूर्ण.
मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिऊ चौवीसजिणे तस्स; अंति: एसा विणत्ति अप्पहिया, गाथा-३८. ६१७७०. (+) प्रतिष्टाकल्प, संपूर्ण, वि. १९५३, वैशाख कृष्ण, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४०, ले.स्थल. सीलोदर, प्रले. पं. महेंद्रविजय
गणि; पठ.पं. हिम्मतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमहावीर प्रशादात्. सीलोदर अजितनाथ बिंब स्थापनं कुर्यात् तस्मिन्नवसरे., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२७.५४१२.५, १२४३५-३९).
प्रतिष्ठा कल्प, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: सकल० प्रतिष्टाकल्पः. ६१७७१. (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३२-१(१)=३१, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४१२, ११४३१).
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३१०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. महावीरस्वामी दीक्षा प्रसंग तक है.) ६१७७२. (+) भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, ४४२८-३२).
भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाह, भाष्य-३.
भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्तु क० वांदीने; अंति: केहवा बाधारहित एवा. ६१७७३. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३७-७(१ से ७)=३०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ६४५०-६०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन ४ अपूर्ण से
अध्ययन १० गाथा १५ तक है.)
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६१७७४. ओघनियुक्ति, संपूर्ण, वि. १९३१, ज्येष्ठ कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ३०, ले.स्थल. अजिमगंज, प्रले. पं. नारायण; पठ. आ. शांतिसागरसूरि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१२.५, १६x४६-५०).
ओघनियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: अरहते वंदित्ता चउदस; अंति: अहिएहिं संगहिआ, गाथा-११६४,
ग्रं. १६००. ६१७७५. (+) आचारांगसूत्र सह बालावबोध- श्रुतस्कंध १, अपूर्ण, वि. १७४४, पौष कृष्ण, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६१-३३(१ से
३३)=२८, प्रले. छजमल्ल; पठ. चूहड, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, ४-८४३३-३७).
आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं..
लोकसार अध्ययन अपूर्ण से है.)
आचारांगसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ६१७७६. राजप्रश्नीयसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६-६(१,१४,२० से २३)=२०, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७४१२.५, १०४२९-३२).
राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ६१७७७. भक्तामर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, गृही.मु. हीराचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ. कुल ग्रं.७५८, दे., (२६४१३, २-५४१५-२८).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-बालहितैषिणी टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदि: प्रणम्य परमानंददायकं; अंति:
___मायातीति मंगलम्. ६१७७८. (+#) श्रावकप्रतिक्रमण सूत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १८-१०(१ से ४,१२ से १७)=८, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. साथ में पच्चक्खाण भी दिया है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१३, ११४३१). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठ
हैं.) ६१७७९. संबोधसत्तरी व गाथा संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३७, पौष शुक्ल, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, कुल पे. २,
ले.स्थल. पाटण, प्रले. जयशंकर मूलजी ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२७४१३, ४-३०-३२). १. पे. नाम. संबोधसत्तरीसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-२१आ, संपूर्ण.
संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोयगुरुं; अंति: जयसेहर नत्थि संदेहो, गाथा-१२४.
संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण क० नमी नमस्कार; अंति: इहां कीसोइ संदेह नथी. २. पे. नाम. ४ धर्मरत्न गाथा सह टबार्थ, पृ. २१आ-२२अ, संपूर्ण.
४ रत्न गाथा, प्रा., पद्य, आदि: दया१ जिणधम्मोर सावय; अंति: तावद्धम्म समायरे, गाथा-३. ४ रत्न गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: दया आणवी श्रीजीनदेव; अंति: एहवओ धर्म करवओ.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
६१७८१. बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६२, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २७, ले. स्थल. वीकानेर, प्रले. मु. मुनीलाल (गुरु मु. गणेशदास, खरतरगच्छ); गुपि. मु. गणेशदास (गुरु मु. लछीराम, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. ले. श्लो. (१९४२) चली हमारो देश है, दे., (२५४१२, ५-७४४०-४५),
बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पति निगंधाण, अंतिः कप्पट्टिई तिबेमि, उद्देशक- ६. बृहत्कल्पसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बृहत कल्प एहवो नाम अंति; तुझ प्रते कहुं छड, ग्रं. ३१००. ६१७८२. (+) बृहत्संग्रहणी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६९-४५ (१ से ४५) = २४, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, दे., (२७.५१३, १५X३५).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ११४ से १८९ तक है.) बृहत्संग्रहणी- बालावबोध, मा.गु, गद्य, आदिः (-); अंति: (-).
६१७८३. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र व स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण वि. १८७२ वैशाख शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. १८, कुल पे. ७, ले. स्थल, मलसीसर, प्रले. पं. श्रीपाल, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२६४१२.५, १२x२५). १. पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण.
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वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०.
२. पे. नाम. दिक्षा कुलक, पृ. ४अ - ६आ, संपूर्ण.
प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संसार बिसमसायर भवजल, अंतिः तरति ते भवसलिल रासं, गाथा- ३४.
३. पे नाम, भक्तामर स्तोत्र, पृ. ६आ- १०आ, संपूर्ण
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि, अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४.
४. पे नाम, लघुशांति स्तवन, पृ. १०आ- ११अ संपूर्ण.
लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिशांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ५. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. ११ आ-१२अ संपूर्ण
प्रा. पद्म, आदि: तिजयपहुत्तपवासव अट्ठ: अंतिः निब्भतं निच्चमच्चेह, गाथा- १४.
,
६. पे. नाम. स्थंभनक पार्श्वनाथ नमस्कार, पृ. १२अ - १५अ, संपूर्ण.
जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख, अंतिः विण्णवइ अणिदिव गाधा-३०.
७. पे. नाम, कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १५अ १८अ संपूर्ण.
आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. ६१७८४. (+) कल्पसूत्र की सुबोधिका टीका, अपूर्ण, वि. १९२५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ९७-८० (१ से ८०)=१७,
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३११
प्र. वि. संशोधित. दे. (२७४१२.५, १७४४३-४५).
"
"
कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, मु. छत्रसौभाग्य, सं., गद्य, आदि: (-) अंतिः परमानंदेन वाच्या इति, (पू. वि. व्याख्यान ८ अपूर्ण से है., वि. सामाचारी अध्ययन)
६१७८५. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६X१२.५, ३X२८).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुत्रं पावा, अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५७ अपूर्ण तक है.) नवत्त्व प्रकरण-वार्थ, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदिः साची वस्तुनो स्वरूप, अंति: (-).
६१७८६. (+) चातुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९३०, फाल्गुन कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १५, ले. स्थल. सीराजमंज, प्रले. पं. भीमराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, दे., (२५.५X१२, १५X४५).
चातुर्मासिक व्याख्यान, मा.गु., प+ग, आदि: प्रणम्य परमानंद, अंति: मिछामि दुकड देवो.
६१७८७. उपदेशप्रासाद सह टबार्थ- स्तंभ १३ से १४, अपूर्ण, वि. १९४२, वैशाख शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. १५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे., (२५.५x१२.५, ६x४१).
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३१२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उपदेशप्रासाद, आ. लक्ष्मीसूरि, सं., प+ग., वि. १८४३, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. स्तंभ १३ से १४
अपूर्ण तक है.)
उपदेशप्रासाद-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ६१७८८. (+) भक्तामर स्तोत्र व कल्याणमंदिर स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद
सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४१३, ५४२९-३१). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह अवचूरि, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण.
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४.
भक्तामर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: भक्ताश्च ते अमराश्च; अंति: तं तद्गत चित्ता. २.पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह अवचूरि, पृ. ७अ-१५आ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते,
श्लोक-४४.
कल्याणमंदिर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: कथं भूतं अंघ्रिपद्म; अंति: कालात् प्राप्नुवंति. ६१७८९. (#) संघयणीसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. अबरख युक्त पत्र., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, ७X१८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., गाथा ८५ तक लिखा है.) ६१७९०. (+) चतुर्मास व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९४६, पौष शुक्ल, १५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्रले. मु. धनसुख ऋषि;
पठ. श्राव. वेजुलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ३३५, दे., (२६४१३, ११४३५). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं स्फुरद; अंति: सर्वेष्टार्थसिद्धिः,
(वि. अंत में समकित धारी जीव के लक्षण रूप दूहा लिखा है.) ६१७९१. (+) विचारषत्रिंशिका सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३५, चैत्र शुक्ल, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. जुनागढ, प्रले.पं. हर्षविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१२, २४३४-४०). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया.
गाथा-४३.
दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ध्यात्वा शंखेश्वर; अंति: हितनी करणहारो. ६१७९२. (+#) चतुः शरणप्रकीर्णक व दशविधसुत व्याख्या, संपूर्ण, वि. १८३३, माघ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. २,
ले.स्थल. पालिताणानगर, प्र.वि. श्रीआदिनाथजिनप्रशादात., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, १७-२०४४८-५१). १.पे. नाम. चतु:शरणप्रकिर्णक अवचूरि, पृ. १आ-१२अ, संपूर्ण, प्रले. उपा. भावविजय (गुरु उपा. विमलहर्ष, तपगच्छ);
गुपि. उपा. विमलहर्ष (गुरु आ. विजयदानसूरि, तपगच्छ); राज्यकाल (गुरु गच्छाधिपति सेनसूरि , तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य.
चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: इदमध्ययनं परमपद; अंति: भवतीति गाथार्थः. २.पे. नाम. आचारांगवृत्तिगत दशविधसत्य-सुतविचार संग्रह, पृ. १२अ-१३अ, संपूर्ण. विचार संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अति: (-), (वि. जीव भेद-प्रभेद, अतीत, अनागत, वर्तमान व दश प्रकार
के पूत्रों के वर्णनादि संग्रह.) ६१७९३. (+) कालिकाचार्य संबंध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अकयुक्त पाठ-सशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १३४४१-४६).
कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६६, आदि: प्रणम्य श्रीगुरु; अंति: संघ जयवंतौ प्रवत्तौ.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
३१३ ६१७९४. (+) चतुर्मासिक कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२७४१३, १४४३५).
चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं स्फुरद; अंति: सर्वेष्टार्थसिद्धिः. ६१७९५. (+) दृष्टांतशतक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७७१३, ५४३७).
दृष्टांतशतक, मु. तेजसिंघ ऋषि, सं., पद्य, आदि: नत्वा श्रीवृषभंसदा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५५ अपूर्ण तक है.)
दृष्टांतशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनै; अंति: (-). ६१७९६. (+) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४९, वैशाख कृष्ण, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. १०, ले.स्थल. वीकानेर,
प्रले. पं. वासदेव (कवलागछ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१२.५, १३४३५-३७). १. पे. नाम. भयहर स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.
नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण; अंति: नासइ तस्स दूरेण, गाथा-२४. २. पे. नाम. लघुशांति स्तोत्र, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ३. पे. नाम. सत्तरिसउजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
तिजयपहत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंत निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ४. पे. नाम. बृहत्शांति, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण.
बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: सुखी भवतु लोकः. ५. पे. नाम. अजितशांति स्तोत्र, पृ. ५अ-८अ, संपूर्ण.
अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं संत; अंति: सुखी भवतु लोकः,
गाथा-४४. ६. पे. नाम. संकलित श्लोक संग्रह, पृ. ८अ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक ,प्रा.,सं., पद्य, आदि: अहं तित्थयर माया; अंति: स्तूय माने जिनेश्वरे, श्लोक-२. ७. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, प्र. ८अ-११अ, संपूर्ण.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीभक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ८. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ११अ-१३आ, संपूर्ण.
आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ९. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ७, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं०० ॐ अंति: ८ गाथा० पासजिन
चंद, गाथा-८. १०. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र की गाथा यंत्रसहित, पृ. १४अ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐभवणवई वाणमंतर; अंति: उवसमंतु मम स्वाहा, (वि. मंत्र व यंत्र
सहित.) ६१७९७. अनुयोग का वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्रले. मानचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१३, १२४३५).
सिद्धांत हुंडी, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: पहिलुंलुंका पुछीइ; अंति: जुत्ता सामाइएणवा. ६१७९८. (+#) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. ५, ले.स्थल. ईडर, प्रले. मु. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१३, ११४३२). १. पे. नाम. शांतिकर स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संतिकरंस्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंति: सिद्धी भणइ सिसो,
गाथा-१४. २. पे. नाम. नमिऊण स्तोत्र, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण.
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३१४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण; अंति: नासइ तस्स दूरेण, गाथा-२४. ३. पे. नाम. अजितशांति स्तव, पृ. ३अ-७अ, संपूर्ण..
आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. ४. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ७अ-११आ, संपूर्ण.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ५. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, पृ. ११आ-१३आ, संपूर्ण.
सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. ६१७९९. (+) अजितशांति स्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९४७, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. १५-२(१ से २)=१३,
ले.स्थल. मकसुदाबाद (अजीम, प्रले. मु. हीरचंद्र ऋषि (बृहत्विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६४१३, १-४४५०).
अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: पुव्वुप्प० विणासंति, गाथा-३९, (पू.वि. गाथा-५ से
अजितशांति स्तव-बोधदीपिका टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १३६५, आदि: (-); अंति: तदा
पूरितरांपयोभिः, ग्रं. ७४०. ६१८००. (+) दंडक व नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९०५, श्रावण शुक्ल, ११, गुरुवार, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २,
ले.स्थल. कलकत्ता, प्रले. मु. खुबचंद्र ऋषि (भट्टारकगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. भागीरथी तटे., संशोधित., दे., (२५.५४१३, ९४३०-३२). १.पे. नाम. दंडकविचार षट्विंशिकासुत्र, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ,
गाथा-४०. २.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ४आ-१०आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: सहपरभवगा न सेसटुं, गाथा-७७. ६१८०१. प्रज्ञापनासूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, जैदे., (२६४१२.५, ६४३५-३९).
प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० ववगय; अंति: (-), पद-३६, सूत्र-२१७६,
ग्रं. ७७८७, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम प्रज्ञापनासूत्र के "गोवालीपाणी मासावलीगुझा" पाठ तक
लिखा है.) ६१८०२. सम्यक्त्व सप्ततिका सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१३, ५४२६-३०).
सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सणसुद्धिपयास; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६५ अपूर्ण तक है.)
सम्यक्त्वसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सम्यक निर्मलाईनइ; अंति: (-). ६१८०३. (#) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१(१)=१०, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, ९४२७-३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
भगवान महावीर के च्यवन-प्रसंग से है व देवराज इन्द्र के द्वारा हरिनैगमेषी के देविनंदा के गर्भापहरण की आज्ञा देने के
वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ६१८०४. (#) दुहा, श्लोक व विधि संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. १०, ले.स्थल. नेसलपूर,
प्रले. मु. नथमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, ५-११४४५-५०). १. पे. नाम. प्रस्ताविक श्लोक सह टबार्थ, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: धर्माज्जन्मकुले शरीर; अंति: जिह्वानल कदर्थित, गाथा-२१. प्रस्ताविक श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: धर्म थकी भला कुलनइ; अंति: कद• वली न बोलइ.
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३१५
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ २. पे. नाम. नारकी दुःख वर्णन सह टबार्थ, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण, वि. १९४३, कार्तिक शुक्ल, १, ले.स्थल. बीकानेर,
प्रले. मु. नथमल, प्र.ले.पु. सामान्य. नारकीदुखवर्णन लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: दुःख दुष्ट भुगता हुय; अंति: जिनदास० दुख जीव पायो,
गाथा-१०. नारकीदखवर्णन लावणी-टबार्थ, पुहिं., पद्य, आदि: पांच आश्रव मति करो; अंति: दूरगंध असूच अपार, दोहा-१०,
(वि. पद्यमय टबार्थ है.) ३. पे. नाम. परमार्थ हीयाली सह टबार्थ, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वरसइ कांबलि भीजइ पाण; अंति: मुख
कवि देपाल वखाणइ, गाथा-६. आध्यात्मिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कांबली कहतां काया; अंति: जोगारंभ हीयाली कही. ४. पे. नाम. परमार्थ हरियालीसह टबार्थ, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-परमार्थ, मु. शिवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अचरिज एक अपूरव दिठो; अंति: वाचा अविचल
पालो रे, गाथा-९.
औपदेशिक सज्झाय-परमार्थ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अ० हे भव्य जीवां इण; अंति: अविचल प्राणी पालो रे. ५. पे. नाम. परमार्थ हीयाली सह टबार्थ, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक औपदेशिक हरियाली, उपा. विनयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सेवक आगे साहिब नाचे अंति: धरमै
निज मनि ल्यावो, गाथा-८.
आध्यात्मिक औपदेशिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सेव० कर्मरूप सेवकनै; अंति: श्रीजिनधर्मनइ विणइं. ६. पे. नाम. आदिजिन हरियाली सह टबार्थ, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण, वि. १९४७, वैशाख कृष्ण, ९, रविवार, प्रले. मु. नथमल,
प्र.ले.पु. सामान्य. आदिजिन हरियाली, मा.गु., पद्य, आदि: एक अचंभो उपनो कहो जी; अंति: सुणो भविक सहु संत, गाथा-१०.
आदिजिन हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पुरषो आउखो हवडानै सम; अंति: लोक मुक्ति में वासौ. ७. पे. नाम. इरियावही कुलक सह टबार्थ, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण, वि. १९४७, वैशाख कृष्ण, ११, मंगलवार.
इरियावही कुलक, प्रा., पद्य, आदि: चउदस पय अडचत्ता तिगह; अंति: पमाणमयं सुए भणियं, गाथा-१०.
इरियावही कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इरियावहीना मिच्छामि; अंति: पच्चक्खाण करे. ८. पे. नाम. दशपच्चक्खाणगाथा सह टबार्थ, पृ. ६अ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-हिस्सा सप्तमशतक-द्वितीय उद्देशे पच्चक्खाण गाथा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: अणागय१
मतिकतर; अंति: पच्चखाणं नवेदसहा, गाथा-१. भगवतीसूत्र-हिस्सा सप्तमशतक-द्वितीय उद्देशे पच्चक्खाण गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अणागय आगलि
अमुके; अंति: पुरीमढाकना पचखाण करे. ९. पे. नाम. नवकल्पी विहार विधि, पृ. ६आ, संपूर्ण.
नवकल्पीविहार विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: चोमासीनी कल्प च्यार; अंति: कल्पी विहार कहीयइ. १०. पे. नाम. ८ निह्नव वर्णन गाथा, पृ. ६आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: कयणं भंते नीनवा भवीस; अंति: होई धम्म वीछोहीये, गाथा-४. ६१८०५. (#) नवपदजीकै क्षमाश्रमण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४-१८(१ से १८)-६, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१३, १३४३०-३४).
३४६ भेद-नवपद, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अशोकवृक्ष; अंति: भावोत्सर्गतपसे नमः, पद-३४६, संपूर्ण. ६१८०६. (+#) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, ५४३५-३९).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणत मौलि; अंति: समपैत्रु लक्ष्मीः .
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३१६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६१८०७. (+#) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. महेंद्रविजय; पठ. मु. राजमल्ल (गुरु
मु. महेंद्रविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७७१३, ५४३६-३९). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रूद्धाओ सूअ
समुद्धाओ, गाथा-५१.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: भवनक० तीन भवनमाहि; अंति: समुद्रथकी कह्यो. ६१८०८. (+) कर्मविपाक व कर्मस्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे.,
(२७४१३, ११४२७). १. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण.
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लहिउ देविंदसूरिहिं, गाथा-६०. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ४आ-६आ, संपूर्ण.
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिण; अंति: वंदिय नमहतं महावीर, गाथा-३२. ६१८०९. (#) दीवालीदेववंदन व आर्यवसुधारा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे., (२५.५४१३, १४४३३-४२). १. पे. नाम. दिपावलीपर्व देववंदन विधि, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रथम इरियावही ४; अंति:
ज्ञानविमल०सकलगुण खाण. २. पे. नाम. वसुधारा स्तोत्र, पृ. ३आ-८आ, संपूर्ण.
सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: भव्यमभ्यनंदिनंवीतिः. ६१८१०. पर्यंताराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, ले.स्थल. भावनगर, प्रले. पं.शांतिसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१३, ५४३४). पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: लहंति ते सासयं सुखं, गाथा-७०,
ग्रं. २४५.
पर्यंताराधना-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: विजयगुरु आराधना; अंति: पामे अनंता अनुक्रमे. ६१८१२. (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित..जैदे.. (२५.५४१३, ११४२७-३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. हरिनैगमेषी देव का देवानंदा
के पास जाने का वर्णन अपूर्ण तक है.) ६१८१३. श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १८९९, माघ कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ७, प्रले.पं. विनयचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१३, ७४१७).
वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउव्वीस, गाथा-५०. ६१८१४. (#) कल्पसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-२(१,५)=६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१३, ११४३५-४०).
कल्पसूत्र-टीका*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठ हैं.) ६१८१५. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९-२(१ से २)=७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२५.५४१३, ४४३०). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: रूद्धाओ सूअसमुद्धाओ, गाथा-५१,
(पू.वि. गाथा ११ अपूर्ण से है.) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, पुहिं., गद्य, आदिः (-); अंति: श्रुतरुपी समुद्र से.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ ६१८१६. कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-६(१ से ६)=६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४१२.५, १०४४०). कल्पसूत्र-बालावबोध *मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नवकारफल महिमादर्शक कथा अपूर्म से
नागकेतु कथा तक है.) ६१८१७. (+#) जीवविचार प्रकरण व अढार नातरा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७X१३, ५४३९). १.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण, वि. १८८१, माघ शुक्ल, ११, ले.स्थल. सुजाणगढ, प्रले. मु. सुमेरचंद,
प्र.ले.पु. सामान्य.
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाउ सुय समुद्दाउ, गाथा-५१.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवन प्रदीपम्; अंति: श्रुतसमुद्रात्. २. पे. नाम. अढार नातरा श्लोक सह टीका, पृ. ६आ, संपूर्ण.
१८ नातरा श्लोक, सं., पद्य, आदि: भ्रातासितनुर्जन्मासि; अंति: सपत्नी च भवत्यहो.
१८ नातरा श्लोक-टीका, सं., गद्य, आदि: भ्राता एक मातृकत्वात; अंति: सह साध्व्याः . ६१८१८. (+) नवतत्त्वादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१३, १५४४०). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १८९२, भाद्रपद शुक्ल, ८, सोमवार, ले.स्थल. चूरुनगर,
प्रले. मु. सुमेरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य.
प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: मिस्सो होइ अजीवो, गाथा-५४. २. पे. नाम. दंडक प्रकरण, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण.
मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: विन्नत्ती अप्पहिया, गाथा-४०. ३.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ४अ-६अ, संपूर्ण.
__ आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊंण; अंति: रुद्दाउसुय समुद्दाउ, गाथा-५१. ४. पे. नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा
१५ तक लिखा है.) ६१८१९. (+#) नवतत्त्व प्रकरण सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. वसता (गुरु
आ. नित्यारंग); गुपि. आ. नित्यारंग; पठ. श्रावि. राणीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. २५३, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१११५) यादृसं पुस्तके दृश्यट, जैदे., (२५.५४११, ५४३१).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-४५.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: साचउ वस्तुनो स्वरूप; अंति: एक सिद्ध अनेक सिद्ध. ६१८२०. (#) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १५४५७).
कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: (-),
__ श्लोक-४४, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १४ तक लिखा है.) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, पा. हर्षकीर्ति, सं., गद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनं; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण. ६१८२१. (+#) श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०६, आषाढ़ शुक्ल, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, ६४३०-३५).
वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेतु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. वंदित्तुसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वसिद्धांत प्रतै; अंति: प्रतें वांदुछु.
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३१८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६१८२२. पाक्षिकनमस्कार स्तुति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३६, चैत्र कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. मु. रणधीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, ४४३२-३५). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति:
भावतोहं नमामि, श्लोक-२९.
सकलाहत् स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सकल क० समस्त अर्हत; अंति: भावतोहं नमामि. ६१८२३. हिंसाष्टक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, दे., (२६.५४१२.५, १३-१६४३५-४२).
हिंसाष्टक, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: अविधायापि हि हिंसा; अंति: शरणं प्रबुद्ध नयचक्र, श्लोक-८.
हिंसाष्टक-स्वोपज्ञ अवचूर्णि, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: अपार पारावार संसार; अंति: नयचक्र संचारा:. ६१८२४. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२६४१३, ७४२७-३०). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुय
समुद्दाओ, गाथा-५१.
जीवविचार प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: कथं भूतं वीरं भुवने; अंति: तरात् श्रुतसमुद्रात्. ६१८२५. स्तोत्र वस्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, ले.स्थल. पादलिप्तनगर, प्रले. इच्छाराम भाइचंद
भोजक; पठ. अबुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२.५, ११४२४-२९). १.पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १९३३, आश्विन शुक्ल, ६.
बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति: जैनं जयति सासनं. २.पे. नाम. सकलार्हत् स्तोत्र, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण. हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: श्रीवीरं प्रणिदध्महे,
श्लोक-३०. ३. पे. नाम. साधारणजिन नमस्कार, पृ. ५आ, संपूर्ण. साधारणजिन नमस्कार-स्तुति संग्रह, सं., पद्य, आदि: कल्याणपादपाराग; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., श्लोक २ तक लिखा है.) ६१८२६. (+#) कालिकाचार्य व्याख्यान व साधुसमाचारी, संपूर्ण, वि. १९०६, आश्विन शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २,
ले.स्थल. आढसर, प्रले.पं. विद्यारुचि; पठ.पं. जयसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १५४४१-४४). १.पे. नाम. कालिकाचार्य व्याख्यान, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण.
कालिकाचार्य कथा, सं., गद्य, आदि: वंदामि भद्दबाह; अंति: वली प्रांते वाच्याः. २. पे. नाम. साधुसामाचारी, पृ. ५आ, संपूर्ण.
साधुसमाचारी खरतरगच्छीय, सं., गद्य, आदि: तद्वर्त्तमानयोगः एवं; अंति: श्रेयः समुल्लसतु. ६१८२७. नमस्कार महामंत्र व आवश्यक सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२६४१३, १३४३०). १.पे. नाम. नमस्कार महामंत्र कथा, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण.
नवकार कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीनुकार भावसहित जप; अंति: राजसिंह कुमारनी परें. २. पे. नाम. पौषधविधि, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
खामणासूत्र, प्रा., पद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो वंदि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण तक है.)
खामणांसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बांछउ रोग रहित श्यात; अंति: (-). ६१८२८. (+#) नवतत्त्व प्रकरण सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१३.५, ७४३०).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: मिस्सो होइ अजीवो, गाथा-५३. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: अजीवतत्त्व मिश्र है.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ ६१८२९. (#) ठाणांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३२१-१८०(१ से ४०,५३ से ७०,९१ से १६४,१७५ से १७६,१८१ से
१८२,२२९ से २३२,२७१ से ३१०)=१४१, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८.५४१३, ५४३५-४१).
स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ६१८३०. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८७, चैत्र शुक्ल, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. २७५, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मु. हीरालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२.५, ७X५१-६१). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: णायाधम्मकहाओ
समत्ताओ, अध्ययन-१९, ग्रं. ६०००. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, ग. प्रेमजी, मा.गु., गद्य, वि. १६९९, आदि: तिणै कालै चोथा आरानी; अंति: धर्मकथा
समाप्त थइ. ६१८३१. चंद्रचरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६७, वैशाख शुक्ल, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. १६३, ले.स्थल. समीनगर,
प्रले. पंन्या. निधानविजय (गुरु पंन्या. खुशालविजय, तपागच्छ); गुपि.पंन्या. खुशालविजय (गुरु पंन्या. गौतमविजय, तपागच्छ); पंन्या. गौतमविजय (गुरु पंन्या. धनविजय); पंन्या. धनविजय (गुरु पंन्या. माणिक्यविजय); पंन्या. माणिक्यविजय (गुरु पंन्या. हितविजय); पंन्या. हितविजय (गुरु उपा.शुभविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.ले.श्लो. (२५२) जिहां लगे मेरु महिधर, (९८२) मंगलं लेखकानांच, (१००३) पोथी प्यारी प्राण की, (१११७) यादृशं पूस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२८x१३, ८४३८-४२). श्रीचंद्रकेवलि चरित्र, मु. सिद्धर्षि, सं., पद्य, वि. ५९८, आदि: ॐ ध्यात्वा श्रीजिनं; अंति: संघश्चिरंनंदयात, अधिकार-४,
श्लोक-११०११.
श्रीचंद्रकेवलि चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ॐकार सिद्धनो ध्यान; अंति: घ ते चिरंजीव रहो संघ, ग्रं. ११०१५. ६१८३२. श्राद्धविधि प्रकरण सह विधिकौमुदी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८४-१६(८६ से १०१)=१६८, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. सीताराम पुरोहित, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१३, १३४४४-४७). श्राद्धविधि प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं पणमिय; अंति: सुह लह लहति धुवं, प्रकाश-६,
(पू.वि. "गुत्तोखवेहिओ सासमित्तेण" पाठ से "सासाइतंपिजलं पतूविशेषेण" पाठ तक नहीं हैं.) श्राद्धविधिप्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५०६, आदि: अर्हत्सिद्धगणींद्र;
__ अंति: जयदायिनी कृतिनाम, प्रकाश-६, ग्रं. ६७६१. ६१८३३. (+#) धम्मिलकुमार चरित्र, संपूर्ण, वि. १९५४, आश्विन कृष्ण, ३, मंगलवार, मध्यम, पृ. ९५, प्रले. जोगीदालया व्यास
मारवाडी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१३, १५४४०-४३). धम्मिलकुमार चरित्र, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४६२, आदि: बोधिबीजं सतां स्वांत; अंति: मादरमुदारधियः
सदैव, श्लोक-३४९१. ६१८३४. (+#) संघयणि प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८०, वैशाख शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ८७+१(६८)-८८, ले.स्थल. पलिपुर,
प्रले. मु. प्रेमरत्न (गुरु मु. तारारत्न, चंद्रगच्छ); गुपि.मु. तारारत्न (गुरु उपा. क्षमारत्न, चंद्रगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, ४४२५). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३४९,
संपूर्ण. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, पुहि., गद्य, आदि: (-); अंति: न है तहा तक प्रवर्तो, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा
१अपूर्ण से टबार्थ लिखा है.) ६१८३५. (+) शांतिनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १८६१, फाल्गुन शुक्ल, १, शनिवार, मध्यम, पृ. १०४, प्रले.पं. दयालविजय;
पठ. ग. धर्मविजय (गुरु पं. रत्नविजय, विजयआणंदसूरिगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८x१३, २२४४६-५२).
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३२०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शांतिजिन चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५३५, आदि: प्रणिपत्यार्हतः सर्व; अंति: स करोतु शांतिम्,
प्रस्ताव-६. ६१८३६. चित्रसेनपद्मावती चरित्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८६१, पौष कृष्ण, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. १०९-१(१)=१०८,
प्रले. पं. हर्षविजय (गुरु ग. देवविजय); गुपि.ग. देवविजय (गुरु ग. अमीविजय); ग. अमीविजय (गुरु ग. माणिक्यविजय); ग. माणिक्यविजय (गुरु ग. हितविजय); ग. हितविजय (गुरु ग. शुभविजय); ग.शुभविजय (गुरु ग. विमलविजय); ग. विमलविजय (गुरु आ. विजयप्रभसूरि, तपागच्छ); आ. विजयप्रभसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.ले.श्लो. (८९६) यादृशं पुस्तकं दृष्टवा, जैदे., (२६४१२.५, ६४३४). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदिः (-); अंति: चारूनिर्मितम, श्लोक-१२३२,
(पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा ६ अपूर्ण से है.) चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ, ग. भक्तिविजय, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अर्थे मनोहर सुंदर, पू.वि. प्रथम पत्र
नहीं है. ६१८३७. प्रद्युम्न चरित्र, संपूर्ण, वि. १९५४, आश्विन शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. १०५, ले.स्थल. नागोर, प्रले. रणकिसनकरण मुथा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१३, १५४३७). प्रद्युम्न चरित्र, उपा. रत्नचंद्र, सं., पद्य, वि. १६७४, आदि: राज्यलक्ष्मीायल; अंति: वर्णाः षोडशचाधिकाः, सर्ग-१७,
ग्रं. ३५६९. ६१८३८. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१५, पौष शुक्ल, १०, सोमवार, मध्यम, पृ. १२४, ले.स्थल. एवला,
प्रले. मु. लाभविमल (गुरु आ. महिमाविमलसूरि, तपागच्छ); गुपि. आ. महिमाविमलसूरि (गुरु आ. विबुधविमलसूरि, तपागच्छ); आ. विबुधविमलसूरि (गुरु पंन्या. कीर्तिविमल, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२.५, ६x४३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६,
ग्रं. २०००.
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सं० संयोग बे प्रकारइ; अंति: छत्रीस० वाल्हा हुई. ६१८३९. (+) आचारांगसूत्र सह टबार्थ- श्रुतस्कंध १, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८.५४१३, ५४३५).
आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: (-), ग्रं. २६४४, प्रतिपूर्ण.
आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सु० सुधर्मस्वामी; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६१८४०. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८९०, वैशाख कृष्ण, ४, शनिवार, मध्यम, पृ. ७७+१(३५)=७८, ले.स्थल. गिरजापुर, जैदे., (२५४१२.५, ९४३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे: अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि. व्याख्यान-९.
ग्रं. १२१६. ६१८४१. (#) कल्पसूत्र सह टबार्थ+व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१३.५, ६-१३४४९-५५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., स्थविरावली के पाठ-"अकंपिये गोयमें गोत्तेणं थेरे अय" तक लिखा है.) कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सकलार्थसिद्धिजननी; अंति: (-),
(अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., भरतबाहुबली दृष्टांत तक टबार्थ लिखा है.) ६१८४२. आचारांगसूत्र सह टबार्थ- श्रुतस्कंध २, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५.५४१२.५, ६४३०-३३).
आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: विमुच्चइ त्ति बेमि, ग्रं. २६४४, प्रतिपूर्ण. आचारांगसूत्र-द्वितीयश्रुतस्कंध-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: भगवंत समीप सांभल्यु, प्रतिपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ ६१८४३. (+) निशीथसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९९४, भाद्रपद शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ७०+१(१३)=७१, प्रले. मोहनलाल; अन्य. श्राव. गणेशचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., दे., (२८.५४१२.५,८-१५४४६-५१).
निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जे भिखु हत्थ कम्म; अंति: पसिस्सोवभोजं च, उद्देशक-२०, ग्रं. ८१५.
निशीथसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नमस्कार हुवो सु०, (२)जे. जो कोइ मि. साध; अंति: लिखी छे सर्व पहिली. ६१८४४. (+) शांतिनाथ चरित्र व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६७-१(२५)+१(३०)=६७, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण
युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१३, २१४३०-३७). १.पे. नाम. स्वर्ग नरकागत मनुष्य चिह्न श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: विद्वेषतां बंधुजनेषु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक ४ तक लिखा है.) २. पे. नाम. शांतिजिन चरित्र, पृ. १आ-६७अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है.
आ. भावचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५३५, आदि: प्रणिपत्यार्हतः सर्व; अंति: (-), प्रस्ताव-६, (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., प्रस्ताव-४ अपूर्ण तक लिखा है.) ६१८४५. (+#) जंबूअध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५२, चैत्र शुक्ल, ८, शनिवार, मध्यम, पृ. ५७+१(१५)=५८, ले.स्थल. रतलाम,
प्रले. मु. शोभाचंद ऋषि (गुरु मु. मयाचंद ऋषि); गुपि.मु. मयाचंद ऋषि; अन्य. मु. मूलचंद ऋषि; सा. रूपाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१३, ६४३५-४०).
जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: से आराहगा भणिया, उद्देशक-२१.
जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० कालने विषे ते०; अंति: मोख्खना सुख लेसे. ६१८४६. पंचवस्तु सह शिष्यहिता व्याख्या, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४९, दे., (२७.५४१३, १४४५०-५४).
पंचवस्तुक, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: णमिऊण वद्धमाणं सम्म; अंति: सत्तरस सयाणि माणेण, गाथा-१७१४. पंचवस्तुक-स्वोपज्ञ शिष्यहिता व्याख्या, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनं वीरं; अंति: गुणानुरागी
भवतु लोकः, ग्रं. ७१७५. ६१८४७. (+#) वर्द्धमानदेशना, संपूर्ण, वि. २०वी, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १५०, ले.स्थल. ममोईबंदर, प्रले. पं.चुत्रभुज, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३, १२-१५४३०).
वर्द्धमानदेशना, ग. राजकीर्ति, सं., गद्य, आदि: अस्मिन् जंबूद्वीपे; अंति: सोधयति गतमत्सरा, उल्लास-१०, ग्रं. ४३००. ६१८४९. (#) कल्पसूत्र सह बालावबोध- व्याख्यान ६ से ९, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९४-१(७२)=९३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७७१३, १२४४०-४५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, ग्रं. १२१६, (प्रतिअपूर्ण,
पू.वि. "पडिलेहिव्वेभवइ सेनं हरियसुहुमे" पाठ से "यंवाथेरवापवित्तिगणिगणहरिगणा" पाठ तक नहीं है)
कल्पसूत्र-बालावबोध *मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: बर्षाण संपूर्ण, प्रतिअपूर्ण. ६१८५०. (+) सीमंधरजिन विनती स्तवन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १००-१(८३)=९९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१३, ३४३०-४०). सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सीमंधर साहिब
आगई; अंति: शास्त्र मर्यादा भणी, ढाल-१७, गाथा-३५३, (पूर्ण, पू.वि. गाथा ३०२ अपूर्ण से ३०७ अपूर्ण तक नहीं
सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा-बालावबोध, क. पद्मविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८३०, आदि: एस्तवनमा
प्राये; अंति: तेनेदं वार्तिकं कृतं, ढाल-१७, पूर्ण. ६१८५१. (+) श्रेणिकचरित्र, संपूर्ण, वि. १९५६, फाल्गुन कृष्ण, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ९२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२७.५४१३.५, ११४४३). श्रेणिक चरित्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३३५, आदि: सिद्धोवर्णसमाम्नायः; अंति: ति यदि रामात्रिभुवने,
सर्ग-१८.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६१८५२, (+) ज्ञानसार सह टीका, संपूर्ण वि. १८०३, वन्हिमरुत्पथवसुकु, चैत्र शुक्ल, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ८९, कुल पे. २, ले. स्थल, राजनगर, प्रले. मु. हीराचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ- टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित, जैदे., (२९x१२.५, १-१५X४०-५५).
१. पे. नाम. ज्ञानसार सह ज्ञानमंजरी टीका, पृ. १आ-८९आ, संपूर्ण.
ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी आदि ऐंद्रश्रीसुखमन, अंतिः कृतिः प्रीतये, अष्टक ३२, श्लोक-२७२.
"
ज्ञानसार- ज्ञानमंजरी टीका, ग. देवचंद्र, सं., गद्य, वि. १७९६, आदिः पार्श्वेशं जिनं नत्व, अंति: जैनधर्मोस्तु मंगलम्, अष्टक - ३२, ग्रं. ३८००.
२. पे. नाम. सामान्य जैन कृति, पृ. ८९आ, संपूर्ण,
जैन सामान्यकृति, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: जे आयरिय उवज्झाएहिं; अंति: एकण वाससं सम्मत्तो. ६१८५३. (+) चंद्रप्रभु चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२९ + १ (१२७) = १३०, प्र. वि. संशोधित. कुल ग्रं. ५६२५, जैदे., (२७.५४१३, १४४५४).
(+)
चंद्रप्रभजिन चरित्र, आ. देवेंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १२६४, आदि: दृष्टोपि दृष्टजन, अंतिः द्विमास्वाचरितं ततम्, परिच्छेद- २, ग्रं. ५६२५.
६१८५४.
उववाइयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३५, वैशाख शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ७३, प्रले. सा. बालाजी आर्या (गुरु सा. चनाजी आर्या); गुपि. सा. चनाजी आर्या (गुरु सा. हीराजी आर्या); सा. हीराजी आर्या, अन्य. सा. उदाजी आर्या (गुरु सा. पांचा), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जै, (२९.५४१३.५, ७X४५).
औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं, अंतिः सुही सुहं पत्ता, सूत्र ४३.
औपपातिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणि काली चउथा; अंति: प० पाम्या थका, प्र.ले.पु. सामान्य. ६१८५५. (+) श्रीपाल कथा सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८८५ कार्तिक शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १०३, ले. स्थल, लखनौ, प्रले. मु. सीवचंद ऋषि; अन्य. मु. धर्मचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६X१३.५, ७X३८).
सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाई झायित, अंति:
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"
कहा एसा, गाथा-१३४७, संपूर्ण.
सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ, पं. ऋद्धिसागर मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतादिक नवपद, अंति: (-), (अपूर्ण,
पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा १४९ से १९९८ अपूर्ण तक का रचार्थ नहीं लिखा है.)
६१८५६. (+) आवश्यकसूत्र व ४९ भांगा यंत्र, संपूर्ण वि. १९३७, आषाढ़ शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ७६, कुल पे, २, ले. स्थल, लखनौ, प्र. मु. गुणचंद्र ऋषि (गुरु मु. गोकलचंद ऋषि, विजयगच्छ); गुपि. मु. गोकलचंद ऋषि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीर-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. २७०० वे. (२६.५१३.५,
!
१३-१७X४७-६३).
१. पे. नाम. आवश्यक सूत्र सह बंदारु वृत्ति, पृ. १अ-७६अ, संपूर्ण.
आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० करेमि, अंतिः वंदामि जिणे चउवीसं, अध्ययन-६, सूत्र- १०५. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- बंदारू टीका, आ. देवेंद्रसूरि सं., गद्य, आदि: वृंदारुवृंदारकवृंदवं अंतिः वृत्तितोवरचूर्णितश्च. २. पे नाम. ४९ पच्चक्खाण भांगा यंत्र, पृ. ७६ आ. संपूर्ण.
प्रत्याख्यान ४९ भांगा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. यंत्र सहित है.)
६१८५७. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६३, वैशाख शुक्ल, २, रविवार, मध्यम, पृ. १२९, ले. स्थल. सकराणी, प्रले. मु. जगराम (गुरु मु. कनीराम); गुपि मु. कनीराम (गुरु मु. गाढमल); मु. गाढमल (गुरु मु. सांमीदास); मु. सांमीदास (गुरु मु. दीपचंद); मु. दीपचंद (अज्ञा. मु. लालचंदजी); मु. लालचंदजी (गुरु मु. जीवराजजी); मु. जीवराजजी, प्र.ले.पु. विस्तृत, जै.., (२९x१३, ७३५).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि: संजोगा विप्यमुक्कस्स, अंतिः सम्मए ति बेमि, अध्ययन- ३६. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: संजोग ते बे प्रकारइ, अंति: अध्ययन वाल्हा हुइ.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ ६१८५८. (+) प्रश्नचिंतामणि व बीजक, अपूर्ण, वि. १९३६, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, सोमवार, जीर्ण, पृ. ८१-१(४०)-८०, कुल पे. २,
प्र.वि. संवत १८७४ में लिखी गई प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२८x१३.५, १०-१७X४१). १.पे. नाम. प्रश्नचिंतामणि, पृ. १आ-७४आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. ग. वीरविजय, सं., गद्य, वि. १८६८, आदि: पुष्टंदीवरपीवरद्युत; अंति: चिरं नंदंतु चोत्तमाः, खंड-२, (पू.वि. बीच के
किंचित् पाठ नहीं हैं.) २.पे. नाम. प्रश्नचिंतामणि बीजक, पृ. ७५अ-८१आ, संपूर्ण.
प्रश्नचिंतामणि-बीजक, मा.गु., गद्य, आदि: ब्राह्मी सुंदरी; अंति: पहेरावे के आगल मुके, (वि. २०२ बीजक.) ६१८५९. (+) श्रीपालराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६३-१(३६)=६२,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७.५४१३, ७-१७४४९). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण
तणी; अंति: ज्ञान विशाला जी, खंड-४ ढाल ४१, गाथा-१८२५, (पू.वि. खंड-४ के ढाल-५, गाथा-९ अपूर्ण से
ढाल-६, गाथा-१ अपूर्ण तक नहीं है.) ६१८६०. (+) प्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१०, माघ कृष्ण, ६, सोमवार, मध्यम, पृ. ५५, ले.स्थल. लींबडी,
पठ. श्राव. नानजी उकरडा दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. खीमजी छगनजी तिवारी के द्वारा लिखित प्रत के ऊपर से प्रतिलिपि की गई है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. कुल ग्रं. २०००, जैदे., (२७.५४१३, ४४२९). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं०; अंति: गुणधारणा ६
चेव. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: न० नमस्कार हो अ०; अंति: रूपए छट्ठो
आवश्यक.
६१८६१. (+) स्थानांगसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८६२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. १२१,ले.स्थल. भाणमति, । प्रले. सा. चंदु आर्याजी (गुरु सा. चमना आर्याजी); गुपि. सा. चमना आर्याजी (गुरु सा. कुसाला आर्याजी); सा. कुसाला आर्याजी
(गुरु सा. धना आर्याजी); सा. धना आर्याजी (गुरु सा. अमरा आर्याजी); सा. अमरा आर्याजी (गुरु सा. केसर आर्याजी); सा. केसर आर्याजी. प्र.ले.प. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ३७५०, जैदे., (२९४१३, ८-१३४६३). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउस तेणं; अंति: अणता पण्णत्ता, स्थान-१०, सूत्र-७८३,
ग्रं. ३७५०.
स्थानांगसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीरजिनं नाथ; अंति: श्रीप्रवचन दीवी नई. ६१८६२. तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९३६, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. ६०, ले.स्थल. ममाई, प्र.वि. त्रिपाठ., प्र.ले.श्लो. (११६९) सूर्याचंद्रमसावेता, दे., (२७४१३.५, १-३४३९-४२).
तंदलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग., आदि: निजरिअजरा मरण; अंति: मुच्चह सव्वदुक्खाणं. तंदलवैचारिक प्रकीर्णक-लघुवृत्ति, मु. विशालसुंदर-शिष्य, सं., गद्य, वि. १६५५, आदि: सकलत्रिभुवनपरिवृटिक;
अंति: राजर्षिवदितिगाथार्थः. ६१८६३. (-) हितोपदेशमाला सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२७.५४१२.५, १३४३२). १० दृष्टांत-मनुष्यभवदुर्लभता, सं., पद्य, आदि: विप्रः प्रार्थितवान; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
दृष्टांत श्लोक १० तक लिखा है.) १० दृष्टांत-मनुष्यभवदुर्लभता-बालावबोध, पुहिं., गद्य, आदि: प्रथम श्रीऋषभदेव; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मुर्खदृष्टांत अपूर्ण तक लिखा है., वि. बालावबोधगत मंगलाचरण व अन्य दृष्टांत
श्लोकों के भी बालावबोध संलग्न हैं.) ६१८६४. (+) विशेषशतक सह टीका, संपूर्ण, वि. १९३६, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, रविवार, जीर्ण, पृ. ६३, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त
विशेष पाठ.,दे., (२८x१३, १३४५१).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१. पे. नाम. विशेषशतक, पृ. १आ- ६१आ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, प्रा. सं., पद्य, वि. १६७२, आदि: सुधर्मस्वामिनं नत्वा, अंतिः समयसुंदर०कृत शतकमिदं,
गाथा - १००.
२. पे. नाम, विशेषशतक-प्रश्नसंग्रह, पृ. ६२-६३आ, संपूर्ण.
संबद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, आदि: कृष्णस्य भवचतुष्टयं; अंति: वस्त्रधावन विधि. ६१८६५. (+) रुपसेन चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७२-१९ (१,५० से ६६, ७१ ) = ५३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ, जैदे., (२७.५X१३, ७४३४).
रूपसेनकनकावती चरित्र - चतुर्थव्रतपालने, आ. जिनसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: जिनसूरीणं सुकृता यथा, श्लोक-२७८, (पू. वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., श्लोक-३ अपूर्ण से है व बीच-बीच के श्लोक नहीं हैं.) रूपसेनकनकावती चरित्र चतुर्थव्रतपालनेटबार्थ, ग. ऋद्धिविजय, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-),
(पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३ अपूर्ण से है बीच-बीच के टबार्थ नहीं हैं व श्लोक-२५७ तक टबार्थ लिखा है.)
६१८६६. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ व कथा, संपूर्ण वि. १८६३, फाल्गुन शुक्ल, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. ९०,
ले.स्थल. साहिपुर, प्रले. सा. चंदु आर्याजी (गुरु सा. चमना आर्याजी); गुपि. सा. चमना आर्याजी (गुरु सा. कुसाला आर्याजी); सा. कुसाला आर्याजी (गुरु सा. धना आर्याजी); सा. धना आर्याजी (गुरु सा. अमरा आर्याजी); सा. अमरा आर्याजी (गुरु सा. सर आर्याजी); सा. केसर आर्याजी, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२८.५X१३, ८४५३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. पण, आदि: संजोगाविष्यमुक्कस्स, अंतिः सम्मए ति बेमि, अध्ययन-३६. उत्तराध्ययनसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: संजो० संजोग ते बे; अंति: तुझ प्रति कहुं छं.
"
उत्तराध्ययनसूत्र- कथा संग्रह, मा.गु, गद्य, आदिः उजेणी नगरी, अंति: (-).
६१८६७. (+) समवायांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८५८, चैत्र शुक्ल, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ८९ - २ (५१ से
५२)+३(१५,४२,८६)=९०, ले. स्थल. साहिपुरा, प्रले. सा. चंदु आर्याजी (गुरु सा. चमना आर्याजी); गुपि. सा. चार्या (गुरु सा. कुसाला आर्याजी); सा. कुसाला आर्याजी (गुरु सा. धना आर्याजी); सा. धना आर्याजी (गुरु सा. अमरा आर्याजी); सा. अमरा आर्याजी (गुरु सा. केसर आर्याजी); सा. केसर आर्याजी, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. संशोधित कुल ग्रं. ७१४१, प्र. ले. श्लो. (९२१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२९x१३.५, ८x४९).
समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः सुयं मे आउस तेणं, अंतिः अज्झयणति तिबेमि, अध्ययन-१०३,
सूत्र-१५९, ग्रं. १६६७, (पू. वि. समवाय ७९ अपूर्ण से ८४ अपूर्ण तक का पाठ नहीं है.)
समवायांगसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., गद्य, वि. १७उ, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंति : राजेन कृतोयं टबार्थः, ग्रं. ५४७४.
६१८६८. (+) प्रतिष्ठाविधि व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९४ कुल पे, २, ले. स्थल, उदयपुर, प्र. मु. हीरविजय, पठ. मु. जयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X१२, १०X३२). १. पे. नाम. प्रतिष्ठाविधि संग्रह, पृ. १अ - ९४आ, संपूर्ण.
प्रतिष्ठा विधि संग्रह, मा.गु., सं., गद्य, आदि: प्रणम्य स्वस्ति; अंति: उपर अधवासत करै सही, (वि. यंत्र - कोष्ठकादि युक्त.) २. पे. नाम औपदेशिक दोहा, पृ. ९४आ, संपूर्ण.
मु. उदयराज, पुहिं., पद्य, आदि: वस्तु ठिकांणै पाईयै; अंति: फाटा एही ज रीत, गाथा-३.
६१८७०. श्रावकप्रतिक्रमण सूत्र सह वालावबोध, संपूर्ण, वि. १९३०, वैशाख शुक्ल, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ७५, ले. स्थल, मेशाणा, प्रले. शिवराम जोशी, पठ. झूमकराम, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५X१४, १२x३१).
.
आवक प्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध प्रा. सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं० पंचि अंतिः इअसम्मत्तम्मएगंहिअं. आवक प्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय का वालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं अरि, अंतिः अंगिकार कीधुं ६१८७१. (+) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९३९, श्रावण शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ९५, प्रले. मंगूमल्ल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, दे., (२५.५४१२, ९४२८).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
३२५ __ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९. ६१८७२. (+#) संघयणीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८७५, पौष कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ८८-१(७४)=८७, प्र.वि. श्रीशांतिनाथजी प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, ५४३३-४५). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३९५,
(पू.वि. गाथा १३१ अपूर्ण से १३७ अपूर्ण तक नहीं है.) ।
बृहत्संग्रहणी-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउंकहितां नमस्कार; अंति: संसारिक सर्वसुख पामै. ६१८७३. (+) उत्तमकुमार चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८८१, श्रावण शुक्ल, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७५-१(१)=७४, प्रले. मु. ऋषभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२.५, ५४२७).
उत्तमकुमार चरित्र, मु. चारुचंद्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: चारुचंद्र०नंदतांचिरं, श्लोक-५७२, (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण
से है.)
उत्तमकुमार चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: घणाकाल लगे रहेजो. ६१८७४. (+) प्रतिष्ठा विधि, संपूर्ण, वि. १८५५, भाद्रपद शुक्ल, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ७७, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१११६) क्वचित एह पयसा, जैदे., (२४.५४१२, १२-१४४३५-३७).
। चैत्यप्रतिष्ठा विधि, सं.,प+ग., आदि: विषमैरंगलैर्हस्तैः; अंति: समालोकय स्वाहा. ६१८७५. (#) मुनिपति चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५८-१(१)=५७, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२८x१३, ६४२४-२७). मुनिपति चरित्र, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११७२, आदि: नमिऊण महावीरं; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं
हैं., पीठिका का कुछ भाग नहीं है व गाथा ५३३ अपूर्ण तक है.) ६१८७६. (+#) स्तुति, स्तवन स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४९, कुल पे. ५९, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर
आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६४१२, १२४२४-४९). १.पे. नाम. जिनपंजर स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.
आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ, अंति: श्रीकमलप्रभाख्यः, श्लोक-२५. २. पे. नाम. शीतलजिन स्तोत्र, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
शीतलजिन स्तवन, सं., पद्य, आदि: सकलमंगलकेलिनिवेशन; अंति: शीतलः सौम्यमूर्तिः, श्लोक-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: विशदगुणविचित्रं; अंति: भ्राजमानो जिनेंद्रः, श्लोक-४. ४. पे. नाम. समस्यामयी शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, सं., पद्य, आदि: यस्य ज्ञानदयासिंधो; अंति: शंखेश्वरप्रभुः, श्लोक-४. ५. पे. नाम. विविधयमकयुक्त पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीनिदानं गुरु; अंति: भवांभोनिधि, श्लोक-७. ६. पे. नाम. शंखेश्वरजिन स्तोत्र, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, सं., पद्य, वि. १८१७, आदि: गोडी ग्रामे स्तंभने; अंति: नौमि शंखेश्वरस्थं, श्लोक-५. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, सं., पद्य, आदि: विशदसद्गणराजिविराजि; अंति: वाग्जिनलाभशुभार्थदा, श्लोक-४. ८. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ५अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव-गोडीजी, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिने; अंति: संसेव्यतां विश्वपाः, श्लोक-३. ९. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तव, सं., पद्य, आदि: आद्यः श्रीऋषभस्ततो; अंति: सद्भक्तितः प्रत्यहं, श्लोक-३. १०. पे. नाम. मंगलाष्टक स्तोत्र, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण.
मंगलाष्टक, सं., पद्य, आदि: श्रीमन्नम्रसुरासुर; अंति: कुर्वंतु मे मंगलं, श्लोक-९.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११. पे. नाम. परमात्मा स्तोत्र, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण.
वीतरागाष्टक, सं., पद्य, आदि: शिवं शुद्धबुद्धं; अंति: ध्यायति योगेश्वरा, श्लोक-९. १२. पे. नाम. नमस्कार स्तोत्र, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.
जिनदर्शन श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: दर्शनं देवदेवस्य; अंति: धर्मशरणमर्हता, श्लोक-११. १३. पे. नाम. पार्श्वजिन थुई, पृ. ८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंति: जयतु सा जिनशासनदेवता,
श्लोक-४. १४. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण..
सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: दद्यात्सौख्यम्, श्लोक-१. १५. पे. नाम. वीरप्रभु स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीदेवार्यं विश्ववर; अंति: दात्यो शश्वद्भयात्, श्लोक-४. १६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञ ज्योति; अंति: वृद्धि वैदुष्यम्, श्लोक-४. १७. पे. नाम. जिन स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: दर्शनार्दुरितध्वंसी; अंति: साक्षात्सुरद्रुमः, श्लोक-१. १८. पे. नाम. जिनवर नवअंगपूजन दूहा, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.
नवअंगपूजा दुहा, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जल भरी संपुट पत्रना; अंति: कहै सहु वीर मुणिंद, गाथा-१०. १९. पे. नाम. तेसठसिलाका स्तवन, पृ. ९आ-११आ, संपूर्ण. ६३ शलाकापुरुष स्तवन, मु. वसतौ, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु चरणकमल मनधार; अंति: नमे मुनी वसतो सदा,
गाथा-१८. २०. पे. नाम. तिलक तपस्या स्तवन, पृ. ११आ-१३अ, संपूर्ण. तिलकतप स्तवन, ग. विजयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सासण देवी सारदा वाणी; अंति: विजयविमल जिनवर कथा,
ढाल-२, गाथा-१८. २१. पे. नाम. चतुर्विशतिजिन स्तुति, पृ. १३अ-१६अ, संपूर्ण.
२४ जिन चैत्यवंदन, मु. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्वृषभ सर्वज्ञ; अंति: कमला देहि मे जिन, श्लोक-४८. २२. पे. नाम. अष्टापद स्तुति, पृ. १६अ, संपूर्ण...
अष्टापदतीर्थ स्तुति, सं., पद्य, आदि: यत्र श्रीभरतेश्वरः; अंति: समीहे स्वयम्, श्लोक-१. २३. पे. नाम. नंदीश्वर स्तवन, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण.
नंदीश्वरद्वीप स्तुति, सं., पद्य, आदि: लसद्विपंचाशदधीश्वरा; अंति: भवभीतिशांतये, श्लोक-१. २४. पे. नाम. नमस्कार श्लोक, पृ. १६आ, संपूर्ण.
नमस्कारमाहात्म्य श्लोक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: नमस्कार समो मंत्र; अंति: जिनो वा नमस्तस्मै, श्लोक-५. २५. पे. नाम. चोवीसजिन आयु प्रमाण स्तवन, पृ. १६आ-१८आ, संपूर्ण.
२४ जिनदेहमान स्तवन, मु. रंगविनय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुंऋषभ जिनेसर; अंति: रंगविनय० मुनि रंग, गाथा-१३. २६. पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण.
नवपद स्तवन, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथनायक जिनवरुजी, अंति: नितप्रति नमत कल्याण, गाथा-५. २७. पे. नाम. छमासीतप स्तवन, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: गौतमस्वामी रे बुध दो; अंति: आपो स्वामी सुख घणा, गाथा-९. २८. पे. नाम. बारमासी तप स्तवन, पृ. १९आ-२१अ, संपूर्ण. १२ मासी तप स्तवन, मु. विजयविमल, मा.गु., पद्य, वि. १९०२, आदि: त्रिभुवन नायक तुं; अंति: सुपसाय
विजयविमल वरे, गाथा-१५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ २९. पे. नाम. चवदैपूर्व स्तवन, पृ. २१अ-२३अ, संपूर्ण. १४ पूर्व स्तवन, आ. सौभाग्यसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८९६, आदि: जिनवर श्रीवर्धमान; अंति: सयल मनवंछित फलै,
ढाल-३, गाथा-३३. ३०. पे. नाम. शोलीये को स्तवन, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण.
१६ तप स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिनेसर भाखियो रे; अंति: लाल निश्चै मुगति जाय, गाथा-८. ३१. पे. नाम. सोलहतप विधि, पृ. २३आ, संपूर्ण..
१६ तप विधि, पुहिं., गद्य, आदि: क्रोध१ मानर माया३; अंति: १६ दिन तप करै. ३२. पे. नाम. पखवासो स्तवन, पृ. २४अ-२५अ, संपूर्ण. पाक्षिकतपवृद्ध स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जंबुद्वीप सोहामणो; अंति: समयसुंदर० मनह जगीस,
ढाल-२, गाथा-१५. ३३. पे. नाम. दादाजी काव्य, पृ. २५अ, संपूर्ण.
युगप्रधानाचार्य स्तुति-खरतरगच्छीय, सं., पद्य, आदि: दासानुदासा इव सर्व, अंति: श्रीजिनभद्रसूरि, श्लोक-२. ३४. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. २५आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु वर्द्धमानाय; अंति: प्राणभाजां श्रुतांगी, गाथा-६, (वि. प्रारंभ का एक श्लोक
पार्श्वजिन स्तुति का है.) ३५. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २५आ-२६अ, संपूर्ण.
प्रा.,सं., पद्य, आदि: परसमयतिमिरतरणिं भव; अंति: मे मंगलं देवि सारं, गाथा-४. ३६. पे. नाम. क्षेत्रदेवता स्तुति, पृ. २६अ, संपूर्ण.
प्रतिक्रमण स्तुति, सं., पद्य, आदि: कमलदल विपुल नयना; अंति: भूयान्नः सुखदायिनी, श्लोक-३. ३७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २६आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., पद्य, आदि: श्रीसेढीतटिनीतटे; अंति: नाथो नृणां श्रिये, श्लोक-२. ३८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २६आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति-नवखंडा, सं., पद्य, आदि: कल्याण कमला गेह; अंति: सदाध्यायाभिमानसं, श्लोक-१. ३९. पे. नाम. सिद्धचक्र नमस्कार, पृ. २६आ-२७अ, संपूर्ण.
उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत उदार कांत; अंति: निधि प्रगटै चेतन भूप, गाथा-६. ४०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २७अ-२७आ, संपूर्ण.
मु. सुमति, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय श्री जिनराज जग; अंति: सुमति विलाश वरीजै, गाथा-११. ४१. पे. नाम. जीरावलापार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २७आ-२८आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मा.गु., पद्य, आदि: महाणंद कल्लाणवल्ली; अंति: जीरावलो रंगि गायो, गाथा-११. ४२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २८आ-२९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, उपा. देवकुशल पाठक, सं., पद्य, आदि: नमद्देवनागेंद्रमंदार; अंति: चिंतामणि पार्श्वनाथ,
श्लोक-७. ४३. पे. नाम. पार्श्वनाथजीरो छंद, पृ. २९अ-३०अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन छंद, मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: नरेंद्र फणींद्र; अंति: निहारतै कीजै आप समान, गाथा-१०. ४४. पे. नाम. पार्श्वनाथ जिन स्तोत्र, पृ. ३०अ-३०आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपास चिंतामणि जेम; अंति: सेवकां पूरै मनरली, गाथा-८. ४५. पे. नाम. पार्श्वनाथजीरो जमकबंध स्तोत्र, पृ. ३०आ-३१अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं वरसं; अंति: शिवसुंदर सौख्यभरम्,
श्लोक-७. ४६. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र-यमकबंध, पृ. ३१अ-३१आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तोत्र-यमकबंध, उपा. समयसुंदर गणि, सं., पद्य, आदि: प्रणत मानव मानव मानव; अंति: समयसुंदर०
स्तवः, श्लोक-५. ४७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ३१आ-३२अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव-करहेटक, सं., पद्य, आदि: आनंदभंदकुमुदाकरपूर्ण; अंति: मे हृदि मेरुधीरम, श्लोक-५. ४८. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ३२अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ४९. पे. नाम. चतुर्विंशति स्तोत्र, पृ. ३२अ-३२आ, संपूर्ण...
२४ जिन स्तोत्र, मु. नेतृसिंह कवि, सं., पद्य, आदि: वंदे धर्मजिनं सदा; अंति: नेत्र० सौख्यदः सदा, श्लोक-५. ५०. पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. ३३अ-३६आ, संपूर्ण.
आ. गौतमस्वामीगणधर, सं., पद्य, आदि: ऊँ आद्यताक्षरसंलक्ष; अंति: स्तोत्रमुत्तमम्, श्लोक-९६. ५१. पे. नाम. जिनसहस्रनाम स्तोत्र, पृ. ३६आ-४०आ, संपूर्ण. शक्र स्तव-अर्हन्नामसहस्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., आदि: ॐ नमोर्हते परमात्म; अंति:
सिद्धिसेन संपदा पदं. ५२. पे. नाम. लघुजिनसहस्रनाम स्तोत्र, पृ. ४०आ-४३अ, संपूर्ण. जिनसहस्रनाम लघुस्तोत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, सं., पद्य, आदि: नमस्त्रिलोकनाथाय; अंति: मुच्यते नात्र संशयः,
गाथा-४१. ५३. पे. नाम. पार्श्वनाथजिन स्तोत्र-समस्याबंध, पृ. ४३अ-४४अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र-समस्याबंध, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथं तमहं; अंति: अर्चनाभीष्ट लब्ध्यै, श्लोक-१३. ५४. पे. नाम. तीर्थमाला स्तुति, पृ. ४४अ-४५अ, संपूर्ण..
तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-९. ५५. पे. नाम. पार्श्वनाथ छंद, पृ. ४५अ-४६अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीरत, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण चिंतामण देव सदा; अंति: कीरत० मुखे कीया, गाथा-१५. ५६.पे. नाम. नवग्रहशांतिकारक स्तोत्र, पृ. ४६अ-४६आ, संपूर्ण.
ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: शांतिर्विनिर्मितः, श्लोक-१२. ५७. पे. नाम. आत्मरक्षा स्तोत्र, पृ. ४७अ, संपूर्ण.
वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमेष्ठिनमस्कार; अंति: आधिस्चापि कदाचन, श्लोक-८. ५८. पे. नाम. श्रीपालदर्शन, पृ. ४७अ-४९अ, संपूर्ण.
श्रीपाल विनती स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ नम सिधे मनदर संत; अंति: मुगति हो गयो, गाथा-२३. ५९. पे. नाम. देवदर्शन श्लोक, पृ. ४९अ-४९आ, संपूर्ण.
जिनदर्शन स्तुति, सं., पद्य, आदि: ॐ जय जय जय णिशही; अंति: हन्यते तव दर्शनात्, श्लोक-१६. ६१८७७. (+) सम्यक्त्वकौमुदी त्रेपनक्रिया व श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १७५५, चैत्र शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ५५, कुल पे. ३,
ले.स्थल. ललितपुर, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथ चैत्यालये., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंकयुक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२७.५४१३, १०-१२४३८-४५). १.पे. नाम. सम्यक्त्वकौमुदी, पृ. १आ-५५अ, संपूर्ण.
मु. धर्मकीर्ति, सं., पद्य, वि. १६७८, आदि: श्रीवीरंजिनं भक्त्या; अंति: वः कुरुताच्छिवानि, सर्ग-१०. २. पे. नाम. त्रेपण क्रिया, पृ. ५५आ, संपूर्ण.
५३ क्रिया, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: गुणवयतवसमपडिमै दाणं; अंति: चारित्र ए त्रेपण कही. ३. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. ५५आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक* प्रा.,सं., पद्य, आदि: संतोषो न कर्त्तव्यं; अंति: प्रचलंति केवलं, श्लोक-६.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
६१८७८. (+) नवचक्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६८-१६(१ से १६) -५२ प्रले. अमोलक पठ. गोकासखा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ - टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित, जैदे. (२६.५४१२.५, २-८४२६-३०).
"
नयचक्रसार, ग. देवचंद्र, सं., गद्य, वि. १८वी, आदि (-); अंतिः परममंगलता लभंतीति, (पू. वि. ज्ञान के भेद के वर्णन से है.)
नयचक्रसार-स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: कृति भणता परमानंद. ६१८७९. (+) निशीथसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे. (२६४१३, ७४३५-५१% -
"
निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जे भिखु हत्थ कम्मं; अंति: सिस पसिसोव भोद्यच्छं, उद्देशक- २०.
निशीथसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे० जे कोइ भि०, साधु, अंतिः नामा आचार्य लिखी छे,
६१८८०. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५८, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २६.५X१२, ६x२७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि प्रा. पद्य, वी, रवी, आदि धम्मो मंगलमुक्कि अंतिः (-), (पू.वि. अध्ययन- ९,
"
उद्देश - २, गाथा १७ तक है.)
६१८८२, (+) कल्पसूत्र, संपूर्ण वि. १८७८ आश्विन शुक्ल, ४, रविवार, मध्यम, पृ. ५८ ले स्थल दील्लीनगर, प्रले. ग. फतेविजय, राज्यकालरा. अकबर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२५x१२, १३x२८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो अंतिः उबदसेइ ति बेमि, व्याख्यान ९. ६१८८३. (+) पंचप्रतिक्रमण सूत्र संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८८६, वैशाख शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ६५-६ (५६ से ६१)=५९, ले. स्थल. जगाणा, प्रले. राघवजी गोर; लिख. मु. जीतविमल, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीमहावीर प्रशादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित., जैदे., (२६.५X१२, ४X३२).
पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह -तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं नमो अंतिः जैनं जयति
शासनम् (पू. वि. चतुर्दशी स्तुति से लघुशांति तक का पाठ नहीं है.)
पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह- तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमद्वामेयमानम्य; अंति: जयवंता वर्तो जिनशासन. ६१८८४. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५०-३(१,३८ से ३९) ४७, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं, जैये. (२६४१२.५,
१२X३३-३७).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ से भगवान महावीर का च्यवन व स्थिवारावली का किंचित् पाठ नहीं है.)
"
,
६१८८५. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४५-८ (१ से ६,१०,१९) = ३७, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. जैवे. (२५.५४१२, ५-१५४३१-३६).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. देवराज इन्द्र की राजसभा के वर्णन से है, अंत व बीच-बीच के कुछ पाठ नहीं हैं.)
६१८८६. (+) प्रतिक्रमणसूत्र व स्तुति स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ४४+१ (३३) २४५, कुल पे. ३४,
प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५.५४१२.५, १०-१२१७-२७).
',
"
१. पे नाम. साधुश्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ- १५अ, संपूर्ण.
साधु श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह खरतरगच्छीय संबद्ध, प्रा.सं. प+ग, आदि: णमो अरिहंताणं णमो अंति: जंचन आराहेमि
२. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन विज्ञप्तिका, पृ. १५अ- १९अ, संपूर्ण.
जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि जय तिहुयणवरकप्परुक्ख, अंतिः विण्णवइ अणिदिव गाधा-३०.
1
1
३. पे. नाम, जयतिहूअणस्तोत्र गाधा, पृ. १९अ संपूर्ण.
जयतिहुअण स्तोत्र - भंडार गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: परमेसर सिरिपासनाह, अंति: सिद्धि मह वंछिय दायर, गाथा-२.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण.
विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषय; अंति: जन मनवंछित सारे, गाथा-४. ५. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्निसोवन; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ६. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. २०अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: युगादिपुरुषंद्राय; अंति: कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. ७. पे. नाम. पंचमीस्तुति, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतक सुप्रपंच; अंति: सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. ८. पे. नाम. त्रिगडा स्तुति, पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण..
समवसरण स्तुति, मु. जयत, मा.गु., पद्य, आदि: मिल चौविह सुरवर; अंति: पामै जयति सुनाणी, गाथा-४. ९. पे. नाम. शीतलजिन स्तुति, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुख समकित दायक कामित; अंति: रीये कहे जिनलाभसूरीस, गाथा-४. १०. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. २१आ-२२अ, संपूर्ण.
आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमुं; अंति: इम जीवित जनम प्रमाण, गाथा-४. ११. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा-४. १२. पे. नाम. पर्वृषणा स्तुति, पृ. २२आ-२३अ, संपूर्ण.
पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वलि वलिहु ध्यावं; अंति: कहै जिनलाभसूरिंद, गाथा-४. १३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन नरेश्वर वामा; अंति: जिनभक्तिसूरि० वित्त, गाथा-४. १४. पे. नाम. दशमी स्तुति, पृ. २३आ-२४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: समुदमुत्तमवस्तु; अंति: जयतु सा जिनशासनदेवता,
श्लोक-४. १५. पे. नाम. पार्श्वनाथजी स्तुति, पृ. २४अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोकं; अंति: मज्जन शस्तनिजाघः, श्लोक-४. १६. पे. नाम. अगियारस स्तुति, पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: विस्मतहृदः क्षितौ, श्लोक-४. १७. पे. नाम. अजितजिन स्तुति, पृ. २४आ-२५अ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विश्वनायक लायक; अंति: जिनलाभसूरि० जयजयकारी, गाथा-४. १८. पे. नाम. सिद्धाचल स्तुति, पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमंडण आदि; अंति: नंदिसूरि० पसाय सेवता, गाथा-४. १९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २५आ-२६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: ट्रेनें कि धप; अंति: दिशतु शासनदेवता,
श्लोक-४. २०. पे. नाम. अणोझा स्तुति, पृ. २६अ-२६आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: यदह्रिनमनादेव देहिन: अंति: नित्यम मंगलेभ्यः श्लोक-४. २१. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २६आ-२७अ, संपूर्ण.
__ आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मूरति मनमोहन किंचन; अंति: इम श्रीजिनलाभसुरंद, गाथा-४. २२. पे. नाम. लघ्वीस्त्रीछंदसि स्तुति, पृ. २७अ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: दद्यात्सौख्यम्, श्लोक-१.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
३३१ २३. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. २७अ, संपूर्ण.
आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराजः पदपद्म; अंति: दाता ददतां शिवं वः, श्लोक-१. २४. पे. नाम. चोवीसजिन स्तुति, पृ. २७अ-२७आ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तुति, अप., पद्य, आदि: भरहेसरकारिय देव हरे; अंति: विगणंतु अणंतदहसगुणा, गाथा-२. २५. पे. नाम. शांतिनाथ स्तुति, पृ. २७आ-२८अ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तुति, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सयल सुरासुर सेवित; अंति: जिनहरषसूरि० सहाई जी, गाथा-४. २६. पे. नाम. शीतलजिन स्तुति, पृ. २८अ-२८आ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन जिननायक; अंति: भणे श्रीजिनलाभसूरिंद, गाथा-४. २७. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. २८आ-२९अ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरलकमलगवल; अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. २८. पे. नाम. नेमिनाथ स्तुति, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदू पाय; अंति: जिनवर मंगलाकर देवियै, गाथा-४. २९. पे. नाम. वंदेत्तुसूत्र, पृ. २९आ-३३अ, संपूर्ण.
वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेतु सव्वसिद्धे धम; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, गाथा-५०. ३०. पे. नाम. दीक्षा कुलक, पृ. ३३अ-३४आ, संपूर्ण.
प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संसार विसमसायर भवजल; अंति: तरंति ते भवसलिल रासं, गाथा-३४. ३१. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ३४आ-३८आ, संपूर्ण.
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: करेमि भंते० चत्तारि०; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. ३२. पे. नाम. राईसंथारा सूत्र, पृ. ३९अ-४०आ, संपूर्ण.
संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, गाथा-१४. ३३. पे. नाम. वीरजिन स्तोत्र, पृ. ४०आ-४२अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदि: जइज्जा समणे भयवं; अंति: एअंपढह कय
अभयसूरीहि, गाथा-२३. ३४. पे. नाम. उपदेशमाला स्वाध्याय, पृ. ४२अ-४४आ, संपूर्ण. पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: उप्पन्नं केवलं नाणं,
गाथा-३३. ६१८८७. (+) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९२३, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, ४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४०, ले.स्थल. बीदासर, प्रले. मु. शिवचंद्र ऋषि; पठ. केवलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १३४३०-४२).
___ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढम; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९. ६१८८८. भक्तामरस्तोत्र सह यंत्र व मंत्र विधि सहित, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४८, दे., (२६.५४१३, ४-७X९-३३).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४८. भक्तामर स्तोत्र-यंत्र, सं., यं., आदि: (-); अंति: (-).
भक्तामर स्तोत्र-मंत्र, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं अहणमो; अंति: कार्य सिद्धि होय, मंत्र-४८. ६१८८९. (2) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८९९, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४१-१(२१)+१(४१)=४१, ले.स्थल. नवानगर,
प्रले. श्राव. नानजी उकरडा दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ऋषि जयराम के द्वारा लिखित प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १५४३७-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९.
(पू.वि. भगवान महावीर की दीक्षा के पश्चात् का किंचित् वर्णन नहीं है.) ६१८९०. (+-) कल्पसूत्र सह कथा व टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९+१(१) ४०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं..प्र.वि. टिप्पण
युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ., दे., (२५४१२, ४४२०-२५).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. बलदेव-वासुदेव के जन्मप्रसंग
वर्णन अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: तिण कालनै विषे काल; अंति: (-).
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*,सं., गद्य, आदि: पंचम प्रतिमानां; अंति: (-), (पू.वि. मेघकुमारकथा अपूर्ण तक है.) ६१८९१. (+) सिंदूरप्रकर, संपूर्ण, वि. १८६४, विधिषटद्विपक्षि, आश्विन कृष्ण, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३०, प्रले. जुहारमल्ल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, ७४१७-२२). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२,
श्लोक-१०१. ६१८९३. (+) कर्मग्रंथ १ से४, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८, कुलपे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१२.५,
५४२९). १. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १आ-१२अ, संपूर्ण.
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिण वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६२. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १२अ-१८आ, संपूर्ण.
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमहं तं वीरं, गाथा-३४. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १८आ-२४अ, संपूर्ण.
___ आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२५. ४. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, पृ. २४अ-२८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअजिणं जिअ१ मग्गण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२३ तक है.) ६१८९४. (+) लघुक्षेत्रसमास, अपूर्ण, वि. १८५७, चैत्र कृष्ण, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २७-२(१ से २)=२५, ले.स्थल. वडीरुपावाली,
प्रले. मु. हमीरविजय; राज्यकालरा. गोपालसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४१२.५, ७४५०). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: कुसलरंगमयं पसिद्ध,
अधिकार-६, गाथा-२६४, (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण से है.) ६१८९५. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८५०, चैत्र कृष्ण, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. १३-२(१ से २)=११, ले.स्थल. धरोल, प्रले. पंन्या. जीवनविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२.५, ३४३०). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४,
(पू.वि. श्लोक-८ अपूर्ण से है.)
कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मोक्षं क० मोक्ष. ६१८९७. सूरिमंत्रपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १९७७, श्रावण शुक्ल, ६, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. अमलनेर, प्रले. आ. जयसूरि
(गुरु मु. हर्षमुनि); गुपि. मु. हर्षमुनि (गुरु मु. मोहनलालजी, खरतरगछ); मु. मोहनलालजी (खरतरगछ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीगिरवापार्श्वनाथ प्रसादात्., दे., (२७.५४१३.५, १७४४९).
सूरिमंत्रपूजा विधि, प्रा.,सं., गद्य, आदि: ॐ क्रौं ह्रीं श्रीं; अंति: निट्ठिअकम्मट्ठया. ६१८९८. (+) समवायांगसूत्र सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-११(१,४ से ७,१० से १५)=५, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१३.५, ४४२२). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-३ अपूर्ण तक है व
बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.)।
समवायांगसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., गद्य, वि. १७उ, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंति: (-). ६१८९९. (#) नवतत्त्वप्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. टीकादि का अंश नष्ट है,
अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, २-३४३३-३९).
M. गाथा-२३ अपूर्ण से है.) .
.प. १३-२(१ से २)=११,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है., वि. गाथाएँ क्रमशः
नहीं हैं.)
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीवीरजिनं नत्वा, (२)जीवतत्त्व चेतनासहित; अंति: (-). ६१९००. (+#) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. मूल पाठ का अंश खडित है, जैदे., (२६४१२.५, ६४३७).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: बोहिक्क१४ णिक्काय, गाथा-३९. ६१९०१. (+#) आराधनासार व संबोधपंचाशिका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, १२४३५). १.पे. नाम. आराधनासार, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण.
आ. देवसेन, प्रा., पद्य, वि. ९९०, आदि: विमलयरगुणसमिद्धि; अंति: हुज्जइ पवयण विरुद्धा, गाथा-११५. २. पे. नाम. संबोधपंचाशिका, पृ. ६आ-७आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
क. रइधूमहाकवि, अप., पद्य, आदि: नमिऊण अरुहचलणं वंदे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २३ अपूर्ण तक है.) ६१९०२. (+#) स्थानांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६४+२(११३,१३४)=२६६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१३, ६४३५-३८). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: (-), (पू.वि. स्थान-१० रत्नप्रकार वर्णन
प्रसंग अपूर्ण तक है.)
स्थानांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसुधर्मास्वामी; अंति: (-)... ६१९०३. (+#) कल्पसूत्र व्याख्यान १ से ८ सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८८०, फाल्गुन शुक्ल, १०, बुधवार,
मध्यम, पृ. २११, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३.५, ५-१३४२५-३०).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतने माहरो; अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
कल्पसूत्र-व्याख्यान कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६१९०४. (+) आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति व लघुटीका, संपूर्ण, वि. १९१४, श्रावण शुक्ल, १, बुधवार, श्रेष्ठ,
पृ. ४९१+२(२५५,३८३)=४९३, प्रले. य. स्योलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२५४१३, १३४३१).
आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: णमो अरहताणं० सव्व; अंति: एरिसयम्मि पयइयव्वं, अध्ययन-६, सूत्र-१०५. आवश्यकसूत्र-लघुवृत्ति #, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, वि. १२९६, आदि: देवः श्रीनाभिसूनु; अंति:
खेलतात्कृतिमानसे, ग्रं. १२३२५. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: आभिणिबोहियनाणं; अंति: चरणगुणट्ठिओ साहू,
गाथा-२५५०, ग्रं. ३१००.
आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की लघुटीका #, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, वि. १२९६, आदिः (-); अंति: (-). ६१९०५. पंचसंग्रह सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३१५-२(१७१,३०७)=३१३, जैदे., (२७४१३, १५४३८-४३).
पंचसंग्रह, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणं वीरं सम्म; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं
हैं., गाथा-५३६ तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) पंचसंग्रह-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: अशेषकर्मद्रुमदाहदावं; अंति: (-), पू.वि. बीच व अंत के पत्र
नहीं हैं. ६१९०६. (+) प्रज्ञापनासूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८५४, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. ४००-१९३(१ से १९३)=२०७,
ले.स्थल. मंडपिका, प्रले. मु. गंगशेखर (गुरु मु. जीतशेखर); गुपि. मु. जीतशेखर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित.,जैदे., (२८.५४१३,७४२१-४२).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: सुही सुहं पत्ता, पद- ३६, सूत्र - २१७६, ग्रं. ७७८७,
(पू.वि. अंत के पत्र हैं., दसवाँ चरमपद अपूर्ण से है.)
(२) ध्वांतः
प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७८४, आदि: (-); अंति: (१) सुखी थका रहे छे, सदा जियात् ग्रं. २८०००, पू. वि. अंत के पत्र हैं.
६१९०७. उपदेशकंदली सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८५- १ (६९) = १८४, जैवे. (२७.५x१२.५, १६x४२-४९).
उपदेशकंदली, भाव. आसड, प्रा., पद्य, आदि जे केवि अइकंता ने अंति रइयं गुरूवयसानुसारेण विश्राम-१३.
उपदेशकंदली - वृत्ति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: अत्रापि तत्र भगवतश्च; अंति: वृत्तिरियं शोधिता, ग्रं. ७६००. ६१९०८. (+४) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १२७-२६ (१ से १९,५८,८३,८९,११५ से ११७,१२६)=१०१, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२७.५X१२.५, ६-१४X३६-४५).
,
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कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ब्राह्मणी देवानंदा के गर्भहरण प्रसंग से साधुगोचरी तक का पाठ है बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)
7
कल्पसूत्र - टवार्थ * मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
"
-
कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ६१९०९. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. १४२-३ (२१ से २२,४९)-१३९, प्र. वि. टिप्पण पाठ. जीवे. (२७४१२.५, ३-६४४१-४८). उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि: संजोगाविष्यमुक्कस्स: अंतिः सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन- ३६,
=
युक्त विशेष
ग्रं. २०००, (पू.वि. अध्ययन- ९ गाथा ११ अपूर्ण से गाथा ३८ अपूर्ण तक व अध्ययन - १६ गाथा ६ अपूर्ण से ९ अपूर्ण तक नहीं है.)
उत्तराध्ययनसून टवार्थ कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-) (वि. पत्र खंडित होने के कारण आदिवाक्य व अंतिमवाक्य अवाच्य है.)
६१९१०. (+) उपदेशमाला सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १८५७, श्रेष्ठ, पृ. १०२, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें - प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२८x१३.५, १६३६-३९).
उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: (-), गाथा-१०६, (वि. प्रतिलेखक ने मात्र चयनित गाथाएँ ही लिखी हैं.)
उपदेशमाला - बालावबोध, मा.गु, गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीर, अंति: (-). उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: हवे श्रीउपदेशमाला; अंति: (-).
६१९११. (#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८३२, मध्यम, पृ. १८८-११४ (३ से ६, १८ से २३,२५ से २७,३०,३२ से ३३,३५ से ३७, ४० से ४३, ४६ से ४८, ५१ से ५६, ५९ से ६०, ६२, ६८, ७१ से ७६, ७८,८१,८३ से ९६,९८ से ९९,१०३ से १०७,११० से ११३,११६ से १२२, १२४ से १३७, १४० से १४७, १५२ से १५४, १६०,१६५,१६७,१७० से १७१,१७३ से १७४,१७८,१८० से १८१,१८३,१८५, १८७) = ७४, ले. स्थल. राधनपुर, अन्य. गच्छाधिपति पुण्यसागर (सागरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (२१) जिहां ध्रु सायर चंद रवि, (४५४) मंगलं लेखकानां च जैदे. (२६४१२, ५३५-३८).
""
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो, अंति: ( अपठनीय), व्याख्यान - ९, ग्रं. १२१६,
,
(वि. १८३२ आश्विन कृष्ण, ५. शुक्रवार, पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं. वि. स्याही अधिक फैलने के कारण आदिवाक्य व अंतिमवाक्य अपठनीय है.)
कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), (वि. १८३२, आश्विन कृष्ण, ९, मंगलवार) कल्पसूत्र - व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: ( अपठनीय).
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निवार, श्रेष्ठ, जिविजय (कार..दे..
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
३३५ ६१९१२. (+) कल्पसूत्र सह कल्पसुबोधिका टीका, संपूर्ण, वि. १९५०, भाद्रपद कृष्ण, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २०९,
ले.स्थल. राजनगर (अमदावाद, प्रले. बदरीनाथ बोरा; अन्य. शिवदान गुमानीराम लहिया; लिख. मु. राजविजय (गुरु मु. आत्माराम); गुपि. मु. आत्माराम, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२७.५४१३.५, ३-१८४३४-४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९,
ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय, सं., गद्य, वि. १६९६, आदि: प्रणम्य परमश्रेयस्कर; अंति:
विद्वज्जनराश्रिता, ग्रं. ६५८०. ६१९१३. आचारांगसूत्र सह टबार्थ- श्रुतस्कंध २, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८९+१(६४)=१९०, प्र.वि. कुल ग्रं. ८५००, जैदे., (२७.५४१२.५, ५४३३-३७).
आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विमुच्चति त्ति बेमि, ग्रं. २६४४, प्रतिपूर्ण.
आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: होइ एम कहुं छु, प्रतिपूर्ण. ६१९१४. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थव व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५६-१(१)=२५५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, ५-१४४२३-३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९,
ग्रं. १२१६, संपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल अवसर्पिणीनो; अंति: उपदेश्यौ कह्यो, संपूर्ण.
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रारम्भिक पाठ नहीं है.) ६१९१५. (+) आगमसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १९०४, पौष शुक्ल, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १७४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, ७४२४).
आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: हिवै भव्यजीवने; अंति: तिथि सफल फली मन आस. ६१९१६. (+) कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका, संपूर्ण, वि. १९६६, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. २१९, ले.स्थल. मद्रास,
प्रले. मु. रामप्रताप (गुरु मु. दयाप्रधान, क्षेमकीर्तिशाखा); गुपि. मु. दयाप्रधान (गुरु पं. पुन्यसुख, क्षेमकीर्तिशाखा); पं. पुन्यसुख (गुरु मु. किर्तिसागर, क्षेमकीर्तिशाखा); मु. किर्तिसागर (क्षेमकीर्तिशाखा); पठ. मु. गंभीरमल्ल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., दे., (२६.५४१४, १३४३४-३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९.
ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्य; अंति: कल्पसूत्रस्य चेमाम्,
ग्रं. ४१०९. ६१९१७. (+) प्रतिक्रमणसूत्र, स्तवन, स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२१, कुल पे. ९५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४१३, १३४३१-३५). १. पे. नाम. साधु श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: समुन्नइ
निमित्तं. २. पे. नाम. अतिचार गाथा, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सयणासणन्नपाणे; अंति: वितहायरणेय अइयरो, गाथा-१. ३. पे. नाम. गोचरचर्या गाथा, पृ. ७अ, संपूर्ण.
गोचरी आलोअण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: कालेणय गोअरिआ; अंति: जंकिंचि अणुउत्तं, गाथा-१. ४. पे. नाम. आगारसंख्या गाथा, पृ. ७अ, संपूर्ण.
प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: दो चेव नमोक्कारे: अंति: हवंति सेसेसचत्तारि. गाथा-३. ५. पे. नाम. पच्चक्खाण, पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमोक्कारस; अंति: मह० सव्व० बोसिरामि. ६.पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ८आ-१०आ, संपूर्ण.
वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ७. पे. नाम. अतिचार आलोचना, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण.
अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: आजुणा चौपहुर दिवसमाह; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ८. पे. नाम. मुहपत्ती बोल, पृ. ११अ, संपूर्ण.
मुहपति पडिलेहण के २५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अर्थ साचो सद्द; अंति: मूंहपत्तीना जाणवा. ९. पे. नाम. मुहपत्ती पडिलेहण, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण.
मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन विचार, मा.गु., गद्य, आदि: निलाडै कृष्णलेश्या १; अंति: जीमणै पगै परिहरीयै. १०. पे. नाम. मांगलिक श्लोक, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण.
मांगलिक श्लोक-खरतरगच्छीय, सं., पद्य, आदि: सर्वमंगलमंगल्य; अंति: प्रधानो जिनराजसूरिः, श्लोक-८. ११. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: राजते श्रीमती देवता; अंति: मेधामाह्वयति विभवेन, श्लोक-९. १२. पे. नाम. उपदेशमाला सज्झाय, पृ. १२आ-१४अ, संपूर्ण.
पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: उपन्नं केवलं नाणं, गाथा-३३. १३. पे. नाम. प्रव्रज्याभिधान कुलक, पृ. १४अ-१५आ, संपूर्ण.
प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संसार विसमसायर भवजल; अंति: तरंति ते भवसलिलरासिं, गाथा-३४. १४. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, प्र. १५आ-१८अ, संपूर्ण.
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. १५. पे. नाम. राईसंथारा गाथा, पृ. १८अ-१९अ, संपूर्ण.
संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीही निसीही नमो; अंति: मज्झवि तेह खमंतु, गाथा-१६. १६. पे. नाम. सीमंधर स्तुति, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण.
बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. १७. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तुति, पृ. १९आ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतक सुप्रपंच; अंति: सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. १८. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण.
अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमु; अंति: जिनसुखसूरि० सूह झाण,
गाथा-४. १९. पे. नाम. पार्श्वस्तुति, पृ. २०अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अस्वसेन नरेसर वामा; अंति: भक्तिसूरि० बहु वित्त, गाथा-४. २०. पे. नाम. मौनैकादशी स्तुति, पृ. २०आ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: विस्मतहृदः क्षितौ, श्लोक-४. २१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: देंद्रे कि धप; अंति: दिशतु शासनदेवता,
श्लोक-४. २२. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरलकमलगवल; अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. २३. पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. २१आ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा-४. २४. पे. नाम. पर्युषण स्तुति, पृ. २१आ-२२अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
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पर्युषण पर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वली बली हुं ध्यावु, अंतिः कहै जिनलाभसूरिंद, गाधा ४. २५. पे नाम, अष्टमी स्तुति, पृ. २२अ संपूर्ण,
अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै; अंतिः विहसंति कल्याणदाता, गाथा ४.
२६. पे. नाम. अजित स्तुति, पृ. २२अ - २२आ, संपूर्ण.
अजितजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु. पच आदि विश्वनायक लावक, अंतिः जिनलाभ० जय जयकारी,
יי
गाथा-४.
२७. पे नाम, शीतलजिन स्तुति, पृ. २२आ- २३अ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन जिननायक, अंति भी श्रीजिनलाभसूरिंद, गाधा ४. २८. पे. नाम. शीतल स्तुति, पृ. २३अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है.
शीतलजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: सुख समिकित दायक कामि; अंतिः रीये कहे जिनलाभसूरीस, गाथा ४.
२९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २३अ - २३आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति - पलांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञं ज्योति, अंतिः वृद्धिं वैदुष्यम्, श्लोक-४. ३०. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. २३आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर बंदु पाय अंतिः मंगल करे अंबक देवीये, गाथा-४,
३१. पे नाम, आदिजिन स्तुति, पृ. २३-२४अ, संपूर्ण.
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आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुक्तियहार सुतार; अंति: सुहाणि कुणेसु सया, गाथा-४. ३२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २४अ संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति - पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: समदमोत्तम वस्तु, अंति: सा जिनशासन देवता, श्लोक-४. ३३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २४अ २४आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोकं अंतिः मज्जनशस्तनिजाघः, श्लोक-४.
३४. पे नाम, वीसविहरमाण स्तुति, पृ. २४आ, संपूर्ण.
विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषय; अंतिः जण मनवंछित सारै, गाथा-४.
३५. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. २४आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: दद्यात्सौख्यम्, श्लोक-१.
३६. पे, नाम, सेजा स्तुति, पृ. २४-२५अ संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेत्रुजमंडण आदि; अंति: नंद० तुम्ह पाय सेविता, गाथा-४. ३७. पे. नाम. दीवाली स्तुति, पृ. २५अ, संपूर्ण.
दीपावलीपर्व स्तुति, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: पापायां पुरि चारु, अंति: जिनचंद्र० विक्रीडितं, श्लोक-४.
३८. पे. नाम. महावीर स्तुति, पृ. २५अ - २५आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः यदंहिनमनादेव देहिन; अंति: नित्यममंगलेभ्यः, श्लोक-४.
३९. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. २५आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि ऋषभनाथ भनाधनिभानने, अंति: तनुभातनुभातनु भारती, श्लोक-४. ४०. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. २५-२६अ, संपूर्ण
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुरति मनमोहन कंचन, अंति: इम श्रीजिनलाभसूरिंद, गाथा-४.
४१. पे नाम. दीवाली स्तुति, पृ. २६अ २६ आ, संपूर्ण.
दीपावलीपर्व स्तुति, मु. चंद्रविजय, मा.गु, पद्य, आदि: सिद्धारथ ताता जग; अंतिः जिनचंद० एहवी वाणी, गाथा ४. ४२. पे. नाम ऋषभजिन स्तुति, पृ. २६ आ, संपूर्ण.
५ तीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुंजयमुख्य; अंति: संतु भद्रंकराः, श्लोक-४.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४३. पे. नाम. त्रिगडै स्तुति, पृ. २६आ-२७अ, संपूर्ण.
समवसरण स्तुति, मु. जयत, मा.गु., पद्य, आदि: मिलि चौविह सुरवर; अंति: पामै जयति सुनाणी, गाथा-४. ४४. पे. नाम. शीतलजिन स्तुति, पृ. २७अ-२७आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुख समकित दायक कामित; अंति: रीये कहे जिनलाभसूरीस, गाथा-४. ४५. पे. नाम. चैत्रीपूनम स्तुति, पृ. २७आ, संपूर्ण.
चैत्रीपूर्णिमापर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सेजगिर नमीयै; अंति: श्रीजिनलाभसुरिंद, गाथा-४. ४६. पे. नाम. मौनएकादशी स्तुति, पृ. २७आ-२८अ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अरनाथ जिनेश्वर; अंति: जिनचंद्र० करो कल्याण, गाथा-४. ४७. पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. २८अ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: समरू सुखदायक मनसुद्ध; अंति: श्रीजिनचंदनी वाणी, गाथा-४. ४८. पे. नाम. महावीर स्तुति, पृ. २८अ-२८आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: बालपणे डाबो पाय चाप: अंति: काज चढे प्रमाणे. गाथा-४. ४९.पे. नाम. शांतिजिन स्तोत्र, पृ. २८आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: शांतये शांतिकामाय; अंति: स्य पापशांतिर्भवेदपि, श्लोक-३. ५०. पे. नाम. ऋषभजिन स्तोत्र, पृ. २८आ, संपूर्ण.
आदिजिन नमस्कार, सं., पद्य, आदि: वंदे देवाधिदेवं तं; अंति: मम भूयात् भवे भवे, श्लोक-३. ५१. पे. नाम. ऋषभदेव स्तोत्र, पृ. २८आ-२९अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: जय जय जगदानंदन जय; अंति: भगवते ऋषभाय नमोनमः, श्लोक-५. ५२.पे. नाम. शांतिनाथ स्तोत्र, पृ. २९अ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: किं कल्पद्रुमसेवया; अंति: सेव्यतां शांतिरेष स, श्लोक-५. ५३. पे. नाम. नेमि स्तोत्र, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमान्नं क्षुधात; अंति: कथं धन्यतमो न गण्यः, श्लोक-५. ५४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २९आ, संपूर्ण..
सं., पद्य, आदि: अभिनवमंगलमालाकरण; अंति: वासुराः पुण्यभासुराः, श्लोक-५. ५५. पे. नाम. महावीर स्तोत्र, पृ. २९आ-३०अ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: कनकाचलमिव धीर; अंति: यथा नित्य सुखि भवामि, श्लोक-५. ५६. पे. नाम. पार्श्वनाथ मंत्रगर्भित स्तोत्र, पृ. ३०अ-३१अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजंबोधिबीजं
ददातु, श्लोक-११. ५७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ३१अ, संपूर्ण.
आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीँ श्रीँ धरणोर; अंति: नमामः कुशलं लभामः, श्लोक-५. ५८.पे. नाम. गौतमाष्टक स्तोत्र, पृ. ३१अ-३१आ, संपूर्ण.
गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: इंद्रभूतिं वसुभूति; अंति: लभंते नितरां क्रमेण, श्लोक-१०. ५९.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ३१आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: अमरतरु कामधेनु चिंता; अंति: कुणइसु पहु सुपास, गाथा-३. ६०.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ३१आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र-वाराणसी, प्रा., पद्य, आदि: चित्तबहुलाइ चविउं; अंति: विहेउसो बोहिलाभं मे, गाथा-३. ६१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ३१आ-३२अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: त्रिभुवनजनतारणगुण; अंति: कुसलांबुजबोधनवासरेसु, श्लोक-७. ६२. पे. नाम. आदिजिन पारणा स्तवन, पृ. ३२अ-३२आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
३३९ सुपात्रदानफल स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: उसभस्सय पारणए इक्खुर; अंति: भरहे साहु न सीयंति, गाथा-५. ६३. पे. नाम. गौतम स्तुति, पृ. ३२आ, संपूर्ण.
गौतमस्वामी स्तुति, सं., पद्य, आदिः सर्वारिष्टप्रणाशाय: अंति: गौतमस्वामिने नमः, श्लोक-१. ६४. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. ३२आ, संपूर्ण.
शारदादेवी स्तुति, सं., पद्य, आदि: प्रथम भारती नाम; अंति: सा जयतु सरस्वती देवी, श्लोक-७. ६५. पे. नाम. सोलह सती नाम, पृ. ३२आ-३३अ, संपूर्ण.
१६ सती स्तुति, सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी चंदनबालिका; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. ६६. पे. नाम. धर्मोपरि गाथा, पृ. ३३अ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , प्रा.,सं., पद्य, आदि: धम्मो मंगल मूलं सव्व; अंति: जिणंदवर सासणे बोहे, श्लोक-५. ६७. पे. नाम. दुमपुफ्फियानामज्झयण, पृ. ३३अ, संपूर्ण. ___ दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ;
अंति: साहुणो त्तिबेमि, गाथा-५. ६८. पे. नाम. बृहद्शांति स्तोत्र, पृ. ३३अ-३५आ, संपूर्ण.
बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे. ६९. पे. नाम. नमस्कारमंत्र प्रभाव स्तवन, पृ. ३५आ-३७अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे आयाण; अंति: तणी सेवा
देज्यो नित, गाथा-२६, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.) ७०. पे. नाम. नवग्रहजिन स्तोत्र, पृ. ३७अ-३७आ, संपूर्ण.
ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधिर्मतः, श्लोक-१२. ७१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ३७आ-३८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति:
जिणप्पहसूरि०न पीडति, गाथा-१०. ७२. पे. नाम. सप्ततिशतजिन स्तोत्र, पृ. ३८अ-३८आ, संपूर्ण.
तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ७३. पे. नाम. शांति स्तोत्र, पृ. ३८आ-३९आ, संपूर्ण.
लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ७४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३९आ-४२अ, संपूर्ण. जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुअणवरकप्परुक्ख; अंति: विण्णवइ
अणिदिय, गाथा-३०. ७५. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ४२अ-४५अ, संपूर्ण.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ७६. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ४५अ-४८अ, संपूर्ण.
आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ७७. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. ४८अ-५०अ, संपूर्ण.. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: दृष्टिं
दयालो मयि, श्लोक-३०. ७८. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ५०अ-५२अ, संपूर्ण. दरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीरं मोहपंको; अंति: सया पायप्पणामो तुह,
गाथा-४४. ७९. पे. नाम. सप्तस्मरण, पृ. ५२अ-६०अ, संपूर्ण.
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३४०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं; अंति: मंगल कल्लाण
आवसं, स्मरण-७. ८०. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ६०अ-६२आ, संपूर्ण.
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ८१. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ६२आ-६५अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५०. ८२. पे. नाम. दंडकषट्विंशिका, पृ. ६५अ-६७अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिऊंचउवीस जिणे तसु; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ,
गाथा-३९. ८३. पे. नाम. लघुक्षेत्रसमास, पृ. ६७अ-८०अ, संपूर्ण. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपय पईट्ठि; अंति: कुसलरंगमय
पसिद्ध, अधिकार-६, गाथा-२६६. ८४. पे. नाम. संग्रहणीसूत्र, पृ. ८०आ-९६आ, संपूर्ण.
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३१०. ८५. पे. नाम. कर्मविपाकसूत्र, पृ. ९७अ-१००अ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ
देविंदसूरिहिं, गाथा-६०. ८६. पे. नाम. कर्मस्तवसूत्र, पृ. १००अ-१०२अ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिण; अंति: वंदीयं तं नमह
वीर, गाथा-३४. ८७. पे. नाम. बंधस्वामित्वसूत्र, पृ. १०२अ-१०३आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्; अंति: देविंदसूरि०
सोउं, गाथा-२५. ८८. पे. नाम. षडशीतिका कर्मग्रंथ, पृ. १०३आ-१०८आ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो
देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. ८९. पे. नाम. शतक कर्मग्रंथ, पृ. १०८आ-११३आ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति:
देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००. ९०. पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रंथ, पृ. ११३आ-११९अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिद्धपएहिं महत्थ; अंति: (१)पूरेऊणं परिकहंतु, (२)एगूणा होइ नउईउ, गाथा-९३. ९१. पे. नाम. जंबूद्वीप संग्रहणी, पृ. ११९अ-१२०आ, संपूर्ण.
लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्न; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०. ९२. पे. नाम. महावीरजी स्तवन, पृ. १२०आ-१२१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-बृहत, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जइज्जा समणे भगवं; अंति: एअंपढह कय
अभयसूरीहि, गाथा-२२. ९३. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. १२१आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., पद्य, आदि: श्रीसेढीतटिनीतटे; अंति: नाथो नृणां श्रिये, श्लोक-२. ९४. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १२१आ, संपूर्ण.
हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: चउक्कसायपडिमलुल्लूरण; अंति: पासु पयच्छउ वंछिउ, गाथा-२.
.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
३४१ ९५. पे. नाम. पंचपरमेष्टी स्तुति, पृ. १२१आ, संपूर्ण.
५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति, सं., पद्य, आदि: अहँतो भगवंत इंद्र; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम, श्लोक-१. ६१९१८.(+) उववाइउपांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५१, श्रेष्ठ, पृ. १२८, अन्य. सा. जडावबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, ५४३२-३६).
औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र-४३, ग्रं. १६००, (वि. १९५१,
आषाढ़ कृष्ण, १, मंगलवार) औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. राजचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्वा श्रीजिन; अंति: सुख पाम्या थका,
(वि. १९५१, ज्येष्ठ शुक्ल, २) ६१९१९. (#) कल्पसूत्र सह टबार्थ, व्याख्यान+कथा व व्याख्यानपद्धति, संपूर्ण, वि. १८५८, श्रेष्ठ, पृ. १८६, कुल पे. २,
ले.स्थल. गीरपुरनगर, प्र.वि. द्विपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२.५, ६-१६४३६-४०). १.पे. नाम. कल्पव्याख्यान पद्धति सह टबार्थ, पृ. १आ-१६आ, संपूर्ण, वि. १८५८, प्रले.ग. उमेदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. कल्पव्याख्यान पद्धति, संबद्ध, मु. कांतिविजय, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: धर्माधिकारि धर्मना; अंति:
पर्वोपिवासत्रयम्. कल्पव्याख्यान पद्धति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पुरिम कहेतां प्रथम; अंति: शंबंधी त्रीण उपवाश. २. पे. नाम. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पृ. १६आ-१८६आ, संपूर्ण, वि. १८५८, माघ कृष्ण, ७. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि. व्याख्यान-९.
ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: बारगुणे करी सहीत; अंति: संबंध संक्षेप कह्यौ.
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकर चक्रवर्ति; अंति: साधुइयण खामणा करवा. ६१९२०. श्रीपालचरित्र सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२७४१३, ११४२४-२७).
सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाई झायित; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-७७३ तक है.)
सिरिसिरिवाल कहा-अवचूरि, मु. हेमचंद्र, सं., गद्य, आदि: ध्यात्वा नवपदीं; अंति: (-). ६१९२१. (+) सूयगडांगसूत्र सह टबार्थ- श्रुतस्कंध १, संपूर्ण, वि. १८९४, श्रावण शुक्ल, १३, शनिवार, मध्यम,
पृ. ११२+१(८७)=११३, ले.स्थल. मोरबी, पठ. श्राव. नानजी उकरडा दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६.५४१३, ४४२९).
सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज तिउट्टेज; अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम श्रीआचारांग; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६१९२२. (+) कल्पसूत्र की कल्पलता टीका- व्याख्यान १ से ८, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८९-१(११)+२(१२,५५)=९०, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२.५, १५४३८-४७). कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंति: (-),
प्रतिपूर्ण. ६१९२३. (+) पंचाशक सह शिष्यहिता वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९६१, आषाढ़ कृष्ण, ४ अधिकतिथि, शुक्रवार, श्रेष्ठ,
पृ. २४७+१(११५)=२४८, ले.स्थल. नागोर, प्रले. नरोत्तम पुरोहित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२७.५४१३, १४४४७-५२). पंचाशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण वद्धमाणं सावग; अंति: जह विरहो होइ कम्माणं,
पंचाशक-१९, गाथा-९४०, ग्रं. ११८७. पंचाशक प्रकरण-शिष्यहिता वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११२४, आदि: सदृष्टीनां समस्तार्थ; अंति:
द्वद्भिः शोधिता चेति, ग्रं. ७४८०.
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३४२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६१९२४. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अंतर्वाच्य व अंतर्वाच्य का टबार्थ- व्याख्यान १ से ८, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४५, ले.स्थल. कोठ्यग्राम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, ५४३१-३५).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: तेणे कालि अवसर्पिणी; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, प्रा.,सं., गद्य, आदि: एसो पज्जोसवणा समणाण; अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ए जे पर्युषणापर्व; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६१९२५. पद्मचरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५०, प्र.ले.श्लो. (११२०) भग्निपृष्टि कटिग्रीवा, (११२१) तैलं रक्षजलं रक्ष, जैदे., (२७७१३, १४४४५-४८). पउमचरिय, आ. विमलसूरि, प्रा., पद्य, ई. ३वी, आदि: सिद्ध सुर किन्नरोरग; अंति: चरियं सुविरिसाणं, पर्व-११८,
गाथा-८६५१, ग्रं. १२०००. ६१९२६. कल्पसूत्र सह सुबोधिका टीका, संपूर्ण, वि. १९६२, कार्तिक कृष्ण, १, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २००, प्रले. पुनमचंद शिवदास
मारवाडी व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-द्विपाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (६२५) जलात्र क्षेत् तैलात्र क्षेत्, (११२२) भग्न पृष्टि कदिग्वा, दे., (२८x१३, ९-१२४३९-४३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९,
ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय, सं., गद्य, वि. १६९६, आदि: प्रणम्य परमश्रेयस्कर; अंति:
विद्वज्जनराश्रिता, ग्रं. ६५८०. ६१९२७. (+) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१३.५, ७४२८). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: (-), (पू.वि. राजा प्रदेशी के आत्मा संबंधी प्रश्न का उत्तर
केशीकुमार द्वारा दिये जाने के प्रसंग अपूर्ण तक है.)
राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंति: (-). ६१९२८. (+#) कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४८-२(७६,१३६)+१(७३)=१४७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, ९-१५४३३-३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,
व्याख्यान- ८ तक है व बीच के पाठ नहीं हैं.) कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्य; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र
नहीं हैं., व्याख्यान-९ के आरम्भिक अंश तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ६१९२९. (+#) जीवाभिगमसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३१, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१३, १६४३७-४२). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० णमो; अंति: सेत्तं सव्वजीवाभिगमे, प्रतिपत्ति-१०, सूत्र-२७२,
ग्रं. ४७५०. ६१९३०. (+) सिद्धहेमशब्दानुशासन सह स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्वत्ति अध्याय ५-६ पाद-२, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४१३, १३४३१-३४). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्याय-६ के पाद-२ सूत्र-६१ तक लिखा है.) सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्वत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३,
आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
६१९३१. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६६ - १४५ (१ से १४२, १५६ से १५७,१६२)=१२१, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२५.५x१२, ५X३०-३५ ).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- १९ गाथा ३७ अपूर्ण से अध्ययन-२० गाथा-५१ अपूर्ण तक, अध्ययन-२१ गाथा- ७ अपूर्ण से अध्ययन- २२ गाथा-१४ अपूर्ण तक व अध्ययन-२२ गाथा-२३ अपूर्ण से अध्ययन- ३६ गाथा - १२० अपूर्ण तक है.)
उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
"
६१९३२. (+०) शत्रुंजयमाहात्म्य सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८४७, चैत्र शुक्ल, ११, गुरुवार, मध्यम,
पृ. ५६२-१७१(६०,१०५, १०८, २४१ से ४०७,५०२)+४(१०४,१०६, ११५,५०० ) = ३९५, ले. स्थल. सवाणागढ,
प्रले. पं. प्रेमविजय (गुरु पं. हर्षविजय); गुपि. पं. हर्षविजय (गुरु पंन्या. वनीतविजय); पंन्या. वनीतविजय (गुरु पं. कनकविजय); पं. कनकविजय (गुरु आ. विजयरत्नसूरि) आ. विजयरत्नसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (७) जलाद्रक्षे तेलाद्रक्षे, (१०५६) यादृशं पुस्तं दृष्ट्वा, जैदे., (२८x१३, ६३९-४७)
३४३
शत्रुंजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो विश्वनाथाय: अंतिः सांभोनिधिं ग्रंथ एषः सर्ग- १४,
ग्रं. १००००, ( पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., सर्ग-५ गाथा- ८८४ अपूर्ण से सर्ग १० गाथा- ६१६ अपूर्ण तक नहीं है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.)
शत्रुंजय माहात्म्य - टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीयुगादीश, अंतिः थाओ घणा काल लगे, पू. वि. बीच के पत्र
नहीं हैं.
६१९३३. (+०) उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८९२ कार्तिक कृष्ण, ५, रविवार श्रेष्ठ, पृ. ५४९-१३ (२२६ से २२८,३२५ से ३३४)+१ (४६०)=५३७, ले. स्थल, लखणेड, प्रले. मु. धर्मचंद (गुरु आ जिनचंदसूरि, बृहत्विजयगच्छ); गुपि आ जिनचंद्रसूरि (गुरु गच्छाधिपति कांतिसागर, बृहत्विजयगच्छ); गच्छाधिपति कांतिसागर (बृहत्विजयगच्छ); पठ. मु. गुणचंद; मु. शिवचंद (गुरु मु. धर्मचंद, बृहत्विजयगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १५३०० अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२६४१३ १०-१५X३५-४२).
"
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पग, आदि: संजोगाविष्यमुकस्स, अंतिः सम्मए ति बेमि, अध्ययन- ३६. ग्रं. २०००, (पू.वि. अध्ययन-१२ गाथा ३८ व ३९ व अध्ययन- १८ गाथा ५१ से ५२ तक नहीं है.) उत्तराध्ययनसूत्र-सूत्रार्थदीपिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १८पू, आदि: अर्हतो ज्ञानभाजः अंति: बोधाव
;
सुदीपिकेयम् ग्रं. १५३००.
६१९३४ (+) आत्मप्रबोध सह टीका प्रकाश १ से ३, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३१७, प्र. वि. संशोधित, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६X१३.५, ९X३१-३५).
आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, सं. प+ग. वि. १८३३, आदि: अनंतविज्ञानविशुद्ध, अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
,
आत्मप्रबोध- स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. जिनलाभसूरि, सं., गद्य, वि. १८३३, आदि: अथ तावद्ग्रंथादौ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण ६१९३६. (+) उपदेशतरंगिणी सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९०, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैये. (२८.५५१३ ८४४६-५०).
"
उपदेशतरंगिणी, ग. रत्नमंदिरगणि, सं., पद्य, आदि; श्रीनाभेयः स वो देवा, अंति: (-), (पू. वि. तरंग-३ जिनार्योपदेश- १७
अपूर्ण तक है.)
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उपदेशतरंगिणी - टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: सूर्यमंडनपार्श्व अंति: (-).
६१९३७. (#) वर्द्धमानदेशना, संपूर्ण, वि. १८७८, आश्विन शुक्ल, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. ११४, ले. स्थल. नीमच, प्रले. मु. धर्मचंद्र (गुरु
आ. कांतिसागरसूरि विजयगच्छ); गुपि. आ. कांतिसागरसूरि अन्य मु. लक्ष्मीचंद (गुरु आ कांतिसागरसूरि), प्र.ले.पु. मध्यम,
,
प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१२.५, १४४४४).
वर्द्धमानदेशना, ग. राजकीर्ति, सं., गद्य, आदि: नमः श्रीपार्श्वनाथाय; अंतिः शोधयंतु गतमत्सराः, उल्लास- १०, ग्रं. ४३००.
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३४४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६१९३८. (#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३८-४(१,४०,८५,१००)=१३४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१३, १३४३२-३५). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ सूत्र-३
अपूर्ण से श्रुतस्कंध-२ वर्ग-८ तक बीच-बीच के पाठ हैं.) ६१९३९. (#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४१२.५, ६-१३४३०-३३).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. स्थविरावली अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंतइ नमस्कार; अंति: (-).
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य प्रणताशेष; अंति: (-). ६१९४०. प्रवचनपरीक्षा सह वृत्ति व बीजक, संपूर्ण, वि. १९६९, चैत्र कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ४९४+१(१३१)=४९५, कुल पे. २,
ले.स्थल. नागोर, प्र.वि. पंचपाठ-त्रिपाठ. कुल ग्रं. १४३८७, दे., (२७.५४१२.५, १२४४४). १.पे. नाम. प्रवचन परीक्षा, पृ. १आ-४८०आ, संपूर्ण, वि. १९६९, चैत्र कृष्ण, ११, ले.स्थल. नागोर. प्रवचनपरीक्षा, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, वि. १६२९, आदि: पणमिअणाणनिहाणं वीर; अंति: सहस्सकिरणो
जयउ एसो, विश्राम-११, ग्रं. १२०५. प्रवचनपरीक्षा-स्वोपज्ञ सहस्रकिरणा वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, वि. १६२९, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं;
अंति: बोध्यमिति गाथार्थः, विश्राम-११, ग्रं. १३३८७. २. पे. नाम. प्रवचन परिक्षा बीजक, पृ. ४८१अ-४९४आ, संपूर्ण.
प्रवचनपरीक्षा-बीजक, सं., गद्य, आदि: पणमिअइत्यादि गाथा; अंति: निराकरण विश्रामबीजक. ६१९४१. आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति, भाष्य, शिष्यहिताटीका व मूल+नियुक्ति+भाष्य पर टीका, संपूर्ण, वि. १९१७, वैशाख कृष्ण, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४७३, ले.स्थल. विक्रमपुरनगर, प्रले. आ. जय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७७१३, १६x४५).
आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: णमो अरहताणं० सव्व; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ, अध्ययन-६, सूत्र-१०५. आवश्यकसूत्र-शिष्यहिता टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: मिच्छंतीति
गाथार्थः, ग्रं. २२०००. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: आभिणिबोहियनाणं; अंति: जणो लहउ मोक्खं,
गाथा-२५५०, ग्रं. ३१००. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की शिष्यहिता टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति:
मिच्छंतीति गाथार्थः, ग्रं. २२०००. आवश्यकसूत्र-निर्यक्ति का भाष्य, प्रा., पद्य, आदि: अवरविदेहे गामस्स; अंति: विआणाहि समासेण, गाथा-२५३.
आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६१९४२. (+) सूत्रकृतांगसूत्र सह बृहद्वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३४४+३(१७६,२०८,३११)=३४७, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४१२.५, १६x४५-४९). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज तिउट्टेज; अंति: विहरइ तिबेमि, अध्याय-२३,
ग्रं. २१००. सूत्रकृतांगसूत्र-बृहद्वृत्ति #, आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य, वि. १०वी, आदि: स्वपरसमयार्थसूचकमनंत; अंति:
चरणगुणट्ठिओ साहुत्ति, ग्रं. १२८५०. ६१९४३. (+) कल्पसूत्र की कल्पसुबोधिका वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९७४, कार्तिक शुक्ल, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४६२, ले.स्थल. मुंबई,
प्रले. य. बापुलाल (देवसूरगच्छ); अन्य. पं. मोहनविजय (गुरु पं. जसविजय, देवसूरगच्छ); गुपि.पं. जसविजय (गुरु पं. रत्नविजय, देवसूरगच्छ); पं. रत्नविजय (देवसूरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, ३-११४२५-३७). कल्पसूत्र-सुबोधिकाटीका, उपा. विनयविजय, सं., गद्य, वि. १६९६, आदि: प्रणम्य परमश्रेयस्कर; अंति:
(१)प्रतीदमुवाचेति, (२)वृत्तौसूत्रसमन्वितम्, ग्रं. ५४००.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
३४५ ६१९४४. (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११३-१(८४)=११२, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, ८x१८-२४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं; अंति: (-), (पू.वि. साधु समाचारी अपूर्ण तक
है व बीच के पाठ नहीं हैं.) ६१९४५. सामाचारी शतक व सामाचारी शतक का बीजक, संपूर्ण, वि. १९५०, वैशाख कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. २७३, कुल पे. २,
प्र.ले.श्लो. (७४५) तैलाद्रक्षेज्जलाद्रक्षेत्, दे., (२५.५४१२, १४४२५). १. पे. नाम. सामाचारी शतक, पृ. १आ-२६९अ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६७२, आदि: श्रीवीरं च गुरुं; अंति: नुपमं सर्वकल्याणकारि, प्रकाश-५. २.पे. नाम. समाचारीशतक का बीजक, पृ. २६९आ-२७३अ, संपूर्ण.
सामाचारी शतक-बीजक, सं., गद्य, आदि: सामायिकदंडकोच्चारानं; अंति: १०० श्रीशांतिकविधिः. ६१९४७. (+#) सारस्वत व्याकरण सह दीपिका टीका, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६६-१(३८)=१६५, प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३, १३-१६४३६-४९). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: नमोस्तु सर्वकल्याणपद; अंति:
(-), वृत्ति-३, ग्रं. ७५००. सारस्वत व्याकरण, प्रक्रिया, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: (-), (पू.वि. स्वर वर्णन
__ के बीच के कुछ पाठ नहीं हैं.) ६१९६३. (+) योगचिंतामणि सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, ६-८x२२-३०). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: यत्र वित्रासमायांति; अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-२
अजमोदादि चूर्ण विधि अपूर्ण तक है.)
योगचिंतामणि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: औषध छइ बले पथ्य छइ; अंति: (-). ६१९६४. (2) मुहूर्तरत्नकौमुदी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३९, अन्य. नाना भट्ट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१३, १६x४५). मुहूर्तरत्नकौमुदी, मु. रत्नविजय, सं., पद्य, आदि: श्रीमत् पार्श्वजिनाध; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., प्रकरण-६ श्लोक-२३४ तक लिखा है.) ६१९७५. (+) भुवनदीपक सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९७, वैशाख कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १५+१(७)=१६, ले.स्थल. सुनाम, प्रले. मु. हिंदुमल्ल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, ८४३५). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: जगद्भावप्रकाशाख्य,
श्लोक-२०९, संपूर्ण. भुवनदीपक-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: ऐनमः श्रीसरस्वतीनमः; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
श्लोक-१७३ तक का टबार्थ लिखा है.) ६१९८९. (+) सन्निपातकलिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९७, माघ शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१३.५, ८४४०-४३).
सन्निपातकलिका, अश्विनीकुमार, सं., पद्य, आदि: रोगाग्रस्त शरीर शांत; अंति: मनः संधिकसर्वग्रसुहा, गाथा-८६. सन्निपातकलिका-टबार्थ, वा. हेमनिधान, पुहि., गद्य, वि. १७३३, आदि: संधिक सन्निपात की, अंति: इस वती से
काढेते. ६२०१८. परिभाषासूत्र वृत्ति व परिभाषासूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, दे., (२८x१२.५, ७-२१४३५-५९). १.पे. नाम. परिभाषासूत्रवृत्ति, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण.
सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमपरिभाषासूत्र की टीका, सं., गद्य, आदि: पंचम्या निर्दिष्टे; अंति: किं हि वचनान्न भवति. २. पे. नाम. परिभाषासूत्र संग्रह, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण, पे.वि. किसी अन्य प्रत के पत्रानुक्रम से विषयानुक्रम दिया गया है.
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३४६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
व्याकरण * सं., प्रा., मा.गु., प+ग, आदि (-); अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. "ततोण् एवं
सांकोटिन" पाठ तक लिखा है.)
६२०२४ नारचंद्र ज्योतिष, संपूर्ण वि. १९२६, चैत्र शुक्ल, २, सोमवार, मध्यम, पृ. ३०, ले. स्थल, स्तंभपूर, प्रले. कामेश्वर सीवलाल व्यास, लिख. मु. कल्याणचंद्र, प्र. ले. पु. सामान्य, दे., (२६X१३.५, १५X३१).
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा, अंति: प्रकोद्वार टिप्पनं, श्लोक - २९४. ६२०२५. (+) वाग्भटालंकार की अवचूरि, संपूर्ण वि. १७२९ वैशाख शुक्ल १२, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २९, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५X१२, १२३४).
,
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वाग्भटालंकार - अवचूरि, सं., गद्य, आदिः यदागमपदावली यस्यागम, अंति: विशेषेण निसुगमानि
६२०३० (+) भुवनदीपक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १९, ले. स्थल, सवाईजयपुर, प्रले. मु. प्रतापचंद्र ऋषि पठ. श्राव, पनालाल,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८.५X१३, १०X३६).
भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य वि. १९३५, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः सुताक्षे नखं, श्लोक १६१. ६२०४४. (+) अष्टलक्षी, अपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित. दे.,
(२७X१३, १४X५०-५२).
अष्टलक्षी, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य वि. १६४६, आदि: श्रीसूर्यः श्रेयसे अंति (-) (पू. वि. ११४ वें अर्थक्रम"
"
अपूरण पाठ तक लिखा है.)
६२०५६. सिंदूर प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९२८, पौष शुक्ल, १५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल. अलायनगर, प्रले. पं. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१३, १२४२८-३५).
सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार- २२, श्लोक- ९८.
६२०५७ (+) दशवैकालिकसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९१४, श्रेष्ठ, पृ. ५४, ले. स्थल, राजपुर, प्रले. पं. विनयविजय (गुरु पं. मोहनविजय); गुपि. पं. मोहनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२७X१३, ६X३५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुक्कि अंतिः भवियाणं बोहिणङ्काए, अध्ययन-१०, (वि. १९१४, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, मंगलवार, ले. स्थल. राज्ञपुर, वि. चूलिका २ ) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: धम्मो क० धर्म केवलीउ; अंति: प्रतिबोधवाने अर्थे, (वि. १९१४, आषाढ़ कृष्ण, ७, रविवार)
६२०५८. (+) अष्टप्रकारीपूजा रास, संपूर्ण, वि. १९२१ श्रावण शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ८६, ले. स्थल. अलायनगर,
प्रले. मु. पुण्यविजय (गुरु मु. उत्तमविजय); गुपि. मु. उत्तमविजय (गुरु मु. नेमिविजय), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीसंत प्रसादात्, संशोधित., प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., ( २६१२, १३३९-४३).
८ प्रकारी पूजा रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: अजर अमर अविनाश जे; अंतिः सुखसंपति बहु पाया रे, ढाल - ७८, गाथा - २०९५.
६२०५९. (+) दशवैकालिक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०७, पौष शुक्ल १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ७१, ले. स्थल. जोधपुर, प्रले. हरिराम व्यास; राज्यकालरा . तखतसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित., प्र.ले. श्लो. (९७९) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१९४५) भग्नपृष्टी की ग्रीवा, दे., (२६X१२.५, ४X३६).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि प्रा. पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुक्कि अंतिः अपुणागमं गइ तिबेमि
',
अध्ययन - १०.
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (१) श्रीवर्द्धमानमानम्य, ( २ )ध० श्रीजिनधर्मरूप; अंति: स्व मन थक नथी कहित
६२०६१. (+) अनुयोगद्वार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८९३, फाल्गुन कृष्ण, १२, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १३८,
ले.स्थल. अकबरावाद, प्रले. हरफूल मिश्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ - संशोधित., प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैवे. (२६.५४१२, ९४३९-४४).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
३४७
अनुयोगद्वारसूत्र, आ. आर्यरक्षितसूरि प्रा. प+ग, आदि: णाणं पंचविद्या पणत्ता, अंतिः दुक्खक्खट्टयाए, प्रकरण- ३८, ग्रं. २००५.
"
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अनुयोगद्वारसूत्र - बालावबोध, मु. मोहन ऋषि, मा.गु, गद्य, आदिः प्रणिपत्य जिनं अंति: गोः पादानविधिकुशलैः. ६२०६२. (+) प्रश्नव्याकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८६, अन्य श्राव. टोकरसी कल्याणजी मोरबीया, सा. गोमती आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२७.५१२, ५३०). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर, अंतिः मगस्स फलिह भूओ,
"
अध्याय १०.
प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१) प्रश्नव्याकरण दसमउ, (२) जं० हे जंबू सुसिष्य; अंति: एतला सुधी पाठ जाणवो.
६२०६३. (+) उपदेशप्रासाद सह टवार्थ-स्तंभ ४, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७९, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैये., (२७X१२.५, ६X३९).
उपदेशप्रासाद, आ. लक्ष्मीसूरि, सं., पण., वि. १८४३, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण उपदेशप्रासाद-वार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण,
६२०६४. (+) धन्ना चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५६, श्रावण शुक्ल, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १०६, ले. स्थल. नवानगर,
प्रले. मु. खीमचंद (गुरु मु. देवराज गणि, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि. मु. देवराज गणि (गुरु पं. जादव गणि, बृहत्खरतरगच्छ); पं. जादव गणि (परंपरा आ. जिनभद्रसूरि, बृहत्खरतरगच्छ); आ. जिनभद्रसूरि (बृहत्खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीधर्म प्रशादात् विक्रम संवत १८८७ वैशाष सुदी ७ गुरुवार को इस प्रत को दान देने का उल्लेख मिलता है, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे. (२६४१२, ६४३२-३६)
दानकल्पद्रुम, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदिः स श्रेयत्रिजगद्, अंतिः श्रीदानकल्पद्रुमः, पव- ९... दानकल्पद्रुम-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभदेवस्वामी, अंति: जयवंतो प्रवर्त्तो.
६२०६५. सिद्धांतसार दीपक का भाषा पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १९०८, आषाढ़ शुक्ल, १२, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १९१, ले. स्थल. जालना, पठ. श्राव आणंदरूप सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. ७४००, वे., (२५.५x११.५, १५X३७-४१). सिद्धांतसार- भाषा पद्यानुवाद, आव. नथमल बिलाला, पुहिं., पद्य, वि. १८२४, आदि सब दर्शी सर्वज्ञ महं, अंतिः नथमल समापत कनौं सार, अध्याय- १६, गाथा- ७४००.
६२०६६. (+) चित्रसेनपद्मावती चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४८, मार्गशीर्ष कृष्ण, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ९०, ले. स्थल. चांदुर, प्र. मु. विवेकवर्द्धन (गुरु पं. हंसवर्द्धन गणि); गुपि. पं. हंसवर्द्धन गणि (गुरु पं. नित्यवर्द्धन); पं. नित्यवर्द्धन (गुरु पं. खेमवर्द्धन); पं. खेमवर्द्धन (गुरु पं. हीरवर्द्धन ); पं. हीरवर्द्धन, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. विनयरूचीजी की प्रति से प्रतिलिपि की गयी है. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दे., (२५.५४१२, ९३८-४०).
"
चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्म, वि. १५२४, आदि: नत्वा जिनपतिमाचं अंति: ( १ ) पाठक राजवल्लभः, (२) चारूनिर्मितम्, श्लोक-१२३२.
चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ, ग. भक्तिविजय, मा.गु., गद्य, आदिः अद्य क० पहेला युगला; अंति: अर्थे कह्यू छे. ६२०६७. (+) गौतम कुलक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८९७, वैशाख शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ४१, ले. स्थल. नागोरनगर, प्र. मु. वृद्धचंद ऋषि (गुरु मु. सबलदास) गुपि. मु. सबलदास, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२५.५x१२.५, २०४४३-५० ).
गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदिः लुद्धा नरा अत्थपरा, अंतिः सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०.
गौतम कुलक-बालावबोध+कथा, ऋ. रिषु, मा.गु, गद्य, आदि: श्रीसुयदेवी समरि फूल, अंतिः सेवै ते सुखी थाये. ६२०६८. (+) आचारांगसूत्र सह टबार्थ - द्वितीय श्रुतस्कंध, संपूर्ण, वि. १९६३, ज्येष्ठ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ८४, प्रले. मु. केसरीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. प्र. ले. श्रो. (१९४७) दुवाकड कुबड मसतक अधो, दे. (३३१२.५, ८- ९४४३-४४).
आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: विमुच्चति त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण आचारांगसूत्र-टबार्थ, मु. धर्मसी, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: होइ इम हुं कहुं छउ, प्रतिपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६२०६९. (+) समवसरण प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५. प्र. वि. संशोधित, दे. (२६.५x१२, ४X३१). समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि प्रा., पद्य, आदि थुणिमो केवलीवत्थं अंतिः कुण्ड सुपयत्थं, गाथा २४. समवसरण स्तव टवार्थ, पंन्या. रुपविजय, मा.गु. गद्य, आदिः स्तवनां करूं छु, अंतिः टबार्थः प्रयत्नेन, ६२०७०. शेत्रुंजय रास, संपूर्ण वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८. दे., (२५.५४१२, ११४२४).
शत्रुंजयतीर्थ रास, उपा. समबसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पर नमी, अंतिः समयसुंदर ० आनंद थाय, ढाल - ६.
६२०७१. स्तवनचोवीसी, संपूर्ण, वि. १८७०, फाल्गुन कृष्ण, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., ( २६.५X१२.५, १२X४२). स्तवनचीवीसी, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि ऋषभ जिणंदा ऋषभ, अंति: मानविजय नितु ध्यावे,
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स्तवन- २४.
६२०७२. (+) जीवविचार व वंदेतु सूत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १८-७ (१ से ७) =११, कुल पे. ४, प्र. वि. पवच्छेद सूचक लकीरें संशोधित., जैदे., (२५.५X१२.५, ७३१).
१. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ८अ - ९अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: रूद्दाउ सुय समुद्दाउ, गाथा - ५१, ( पू. वि. गाथा ३५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. वंदेतुसूत्र, पृ. ९अ - १३अ, संपूर्ण.
वंदित्सूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेतु सव्वसिद्धे, अंतिः वंदामी जीण चोवीसं, गाथा-५०.
३. पे. नाम. साधुअतिचार, पू. १३-१८अ, संपूर्ण.
साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू. पू., संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ४. पे. नाम. लोक संग्रह जैनधार्मिक, पृ. १८आ. संपूर्ण.
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. छुटक श्लोक संग्रह-४.)
६२०७३, (+) रूपसेन चरित्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९०९, चैत्र शुक्ल, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४५, ले. स्थल, नागोरनगर, प्रले. पं. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीऋषभजिन प्रासादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें, दे., (२५X१२, ७X४२-४५). रूपसेनकनकावती चरित्र चतुर्थव्रतपालने, आ, जिनसूरि, सं., पद्य, आदि आरोग्वभाग्याभ्युदय अंतिः सुकृताय
कृता तथा श्लोक-२२१, (वि. १९०९ चैत्र शुक्ल, २, सोमवार)
रूपसेनकनकावती चरित्र - चतुर्थव्रतपालने -टबार्थ, ग. ऋद्धिविजय, मा.गु., गद्य, आदि: शरीर नीरोग पामे सो; अंति: रूपसेनमुनिनी कथा.
,
६२०७४, (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९, कुल पे ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५.५-३३.०x१२, १०X३०). १. पे. नाम. चौवीसदंडक स्तवन, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तवन- २४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य वि. १७२९, आदि: पूर मनोरथ पासजिणेसर अंति: गावै धरमसी सुजगीस ए, ढाल ४, गाथा- ३४.
२. पे. नाम. १४ गुणस्थानक स्तवन, पृ. ३आ-७अ संपूर्ण
सुमतिजिन स्तवन- १४ गुणस्थानविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सुमतिजिणंद सुमति; अंति: कहे एम मुनि धरमसी, ढाल-६, गाथा- ३४.
३. पे. नाम. अठावीसलब्धि स्तवन, पृ. ७अ ९आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन- २८ लब्धिगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: प्रणमुं प्रथम जिणेसर, अंतिः प्रगट ज्ञान प्रकास ए, ढाल - ३, गाथा - २५.
६२०७५. शीयलवेल, संपूर्ण वि. १९३२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले. स्थल नागोरनगर, प्रले. पं. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीऋषभजिन प्रासादात्., दे., (२५x१२, ११x२९-३५).
स्थूलभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: सबल सुहंकर पासजी, अंतिः विमला कमला वरस्ये रे, ढाल - १८.
६२०७६. (+) शत्रुंजयउद्धार रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६११.५, १५X३६-३८).
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६२०७७. मेरूत्रयोदशी कथा, संपूर्ण, वि. १८८१, श्रावण शुक्ल, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल. साणंदनगर, प्रले. मु. हेमविजय, अन्य. पं. गौतमविजय (गुरु पं. हेमविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीअमिझारापार्श्व प्रसादात्., प्र. ले. श्लो. (२१३) भणजो गुणजो वाचजो (१९५०) केड वगावड दोष बेवडी, जैदे. (२८.५४१२, १४४३५).
"
मेरुत्रयोदशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य भारती, अंतिः मुक्तिसाधनं कृतः
६२०७८. (+) साधुवंदना व चतुरविचार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., दे., ११X३२-४३).
१. पे नाम, साधु वंदना, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण.
साधुवंदना लघु, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमुं अनंत चोविसी, अंति: जैमलजी० ए तीरणरो दाव, गाथा-५३.
३४९
शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल, अंति: नयसुंदर० दरसण जय करो, गाथा - ११७.
६२०८३.
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२. पे नाम, चतुरविचार सज्झाय, पृ. ४आ-८अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय- चतुरविचार, रा., पद्य, आदि: साध सावग रतनारी माला, अंतिः परभव सामो देखो रे, गाथा- ६६. ६२०७९. (+) मौनएकादशी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८९१ आश्विन शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ९, ले. स्थल. सुहाई, प्रले. सा. लाडां (गुरु सा. रतना आर्या); गुपि. सा. रतना आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५X१२.५, १३X२६-३९). मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: सिरिवीरं नमिऊण अंतिः सकलसुख विभागी थाय. ६२०८१. अनुयोगद्वार सह वार्तिक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६७+२ (२७,५९) =६९, जैये. (२६.५x११.५, १८४३७-४१). अनुयोगद्वारसूत्र, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा. प+ग, आदि: नाणं पंचविह, अंति: (१)जं चरणगुणडिओ साहू, (२) साहू से तं नए, प्रकरण- ३८.
६२०८२. आराधनासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, दे., (२६X१२, ६x३२).
(+)
दे. (२४.५४१२,
अनुयोगद्वारसूत्र- बालावबोध, मु. हीरमुनि, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणी कर्मनो; अंति: (१) चोथो नय अनुयोगद्वार, (२) हीर मुनी कृत.
पर्यताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण भणइ एवं भयवं अंतिः लहंति ते सासयं सुखं गाथा- ७०. पर्यंताराधना-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्करी ग्लान कहे इम; अंति: लहइ ते शाश्वता सुख.
नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३९, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६.५X१२, ३X२०-२६).
१. पे. नाम. नवतत्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-३९अ, संपूर्ण.
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवापुन्नं पावा, अंतिः अणागयद्धा अनंतगुणा, गाधा- ९७.
नवतत्त्व प्रकरण-वार्थ, ग. मानविजय, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवीरजिनं नत्वा, अंतिः स्वान्योपकाराय २. पे. नाम. आगमिक गाथा संग्रह, पृ. ३९आ, संपूर्ण
जैनगाथा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि भिन्न मुहुतो नरएस, अंति: गुणा हुति सिद्धाणं, गाथा-४. ६२०८४. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४०, प्रले. जेकीसन बोडा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५X१३, ८x४२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा. पद्य, वी. रवी, आदिः धम्मो मंगलमुक्ति, अंतिः निच्चला होसु,
"
अध्ययन- १०, (वि. चूलिका २ . )
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दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: धर्म हेसो मंगल उत्कृ; अंति: निश्चल कर होजा एसा, (वि. अंत में "टबूकार्थे राजेंद्रसूरिणा भूतं" पाठ है.)
६२०८५. (+) आवक प्रतिक्रमण सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २८, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६४१२,
५X३०-३६).
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३५०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आवश्यकसूत्र-श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: तिखुत्तो आयाहिणं;
अंति: मिच्छामि दुक्कड. आवश्यकसूत्र-श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-स्थानकवासी-टबार्थ, रा., गद्य, आदि: तीन वार जीमण दखणना;
अंति: मिछामि दुक्कडं देवो. ६२०८६. दीवाली कल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४१, पौष कृष्ण, ६, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले.पं. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीअजितजिन प्रसादात्., दे., (२६४१३, ७४३८-४०). दीपावलीपर्व कल्प, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: संतु श्रीवर्द्धमान; अंति: सुरेंद्रादिभिः कृतः,
श्लोक-२५४, (वि. १९४१, पौष कृष्ण, ६, मंगलवार) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामीन; अंति: करी अठाइ महोत्सव करे, (वि. १९४१,
पौष कृष्ण, १३, सोमवार) ६२०८७. (+) गौतमपृच्छा का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९१३, माघ शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ६०, ले.स्थल. नागोरनगर, प्रले. पं. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (३२.५४१३.५, ८x२९-३२). गौतमपृच्छा-बालावबोध+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीमहावीरस्वामीने, (२)हे स्वामी जीव किसे; अंति: दुक्कडं
होज्यो. ६२०८८. मिश्रदत्त चरित्र, संपूर्ण, वि. २००७, आषाढ़ कृष्ण, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. सोजत, प्रले.सा. मदनकंवर (गुरु
सा. दीपकंवर); गुपि. सा. दीपकंवर (गुरु सा. राजकंवर); सा. राजकंवर (गुरु सा. तीजकूवर); सा. तीजकुंवर (गुरु सा. सुगनकंवर); सा. सुगनकंवर (गुरु सा. नंदकूवर); सा. नंदकुंवर, प्र.ले.पु. विस्तृत, दे., (२५४१२, २३४९२). मिश्रदत्त चरित्र-दानविषये, मु. चोथमल, रा., पद्य, आदि: आद जिनेश्वर हु नमु; अंति: चोथमल० दान नित दीजो,
गाथा-११७. ६२०८९. नारचंद्र ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १७७९, श्रावण अधिकमास कृष्ण, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. २०, ले.स्थल. जवालपुरदुर्ग,
प्रले. मु. सोमसुंदर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. विद्वान माहिती बीच में मिटाई हुई है., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५.५४१२, १३४३०-३३).
___ ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: दुख दो भाग्य दायकः, श्लोक-४३३. ६२०९०. पुन्यप्रकाश स्तवन, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(४*)=५, जैदे., (२७.५४१२, १३४३८).
पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: (-),
(पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., ढाल ७ की गाथा ७ अपूर्ण तक है.) ६२०९१. सिंदूरप्रकर सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-४(१ से ४)=७, जैदे., (२६४१२, १३४४२).
सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., श्लोक ९ से है, व २० तक लिखा है.) सिंदूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६२०९२. सेव॒जयउद्धार रास, संपूर्ण, वि. १८६१, फाल्गुन कृष्ण, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२७.५४१२, १२-१४४३८-४१).
शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: नयसुंदर० दरसण
जय करो, ढाल-१२, गाथा-१२०. ६२०९३. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२६.५४१२, ११४४२).
श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण
तणी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल ८ गाथा ७४ तक लिखा है.) ६२०९४. (+) परमात्माप्रकाश भाषा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८.५४१३, ७४२९-३२).
परमात्म प्रकाश-पद्यानुवाद, मु. नथमल, पुहिं., पद्य, वि. १९१९, आदि: जाके ज्ञानादरस मैं; अंति: नथमलकीनौं
शुभ साजमै, गाथा-३५६.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ ६२०९५. (+) देवसिक प्रतिक्रमण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. संशोधित., दे., (२९४१३.५, १४४३६).
साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: मिच्छामि
दुक्कडं.
आवश्यकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हो अरिहंतों; अंति: माफ हो मेरादुष्कृत्य. ६२१०७. (+#) पार्श्वनाथपुराण भाषा, संपूर्ण, वि. १९५६, पौष शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ५६, प्रले. बजरंगलाल जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (३१.५४१३, ५४२६-२८). पार्श्वपुराण, जै.क. भूधरदास, पुहिं., पद्य, वि. १७८९, आदि: मोह महातम दलन दिन,; अंति: ग्रंथ समापित कीय,
अध्याय-९. ६२१०९. (+) सारस्वतव्याकरण सह मेघरत्नाटीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६३, प्र.वि. त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष ___ पाठ-संशोधित., जैदे., (२९४११, १-५४५३).
सारस्वत व्याकरण, प्रक्रिया, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., द्वितीयवृत्ति भ्वादिप्रकरण प्रारंभिक भाग तक लिखा है.) सारस्वत व्याकरण-मेघरत्ना टीका, मु. मेघरत्न, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: राढावंत फणिपति फणै; अंति: (-),
अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६२१२२. (#) सन्निपातकलिकासह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२२, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. १७,
प्रले.पं. खूबचंद (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१४, ५४२१).
सन्निपातकलिका, अश्विनीकुमार, सं., पद्य, आदि: आम्लस्निग्धोष्ण रुक; अंति: रिपुवरो रोगजालं तथैव, गाथा-७६. सन्निपातकलिका-टबार्थ, वा. हेमनिधान, पुहिं., गद्य, वि. १७३३, आदि: खटाई करि स्निग्ध क०; अंति: (१)हेमनि०
सन्निपातकलिका, (२)रोगां कुंदूरी करै.. ६२१२३. (+#) हैमलघुप्रक्रिया सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-४(१ से ४)=११, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३, १०-१३४३१-४२). सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमलघप्रक्रिया, उपा. विनयविजय, सं., गद्य, वि. १७१०, आदि: (-); अंति: (-),
(पू.वि. सूत्र "अधातुविभक्तिवाक्यमर्थवन्नाम" से "मादुवर्णोनु" सूत्र तक है.)
सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमलघुप्रक्रिया-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६२१२७. (+) अनुपानमंजरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९७, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. शिवदास ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४१३, ८४३५-४२). अनुपानमंजरी, आ. विश्रामाचार्य, सं., पद्य, वि. १८४३, आदि: यस्य ज्ञानमयी; अंति: विश्राम ग्रंथकारकः, समुद्देश-५,
संपूर्ण. अनुपानमंजरी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे प्रभुनी ज्ञानमयी; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
समुद्देश-५ श्लोक-३८ तक लिखा है.) ६२१३२. (+) नारचंद्र ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले.ग. मोहनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x११, १५४४१-४४). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ से गृहप्रवेश
प्रकरण तक.) ६२१३५. चंदकेवली रास, संपूर्ण, वि. १८९६, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. १२५, ले.स्थल. सुजाणगढ,
प्रले. ग. सदाभक्ति (गुरु ग. भावविजय); गुपि.ग. भावविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीऋषभदेवजी प्रसादात्., प्र.ले.श्लो. (१४) जलाद्रक्षेत् तैलाद्रक्षेत्, जैदे., (२७४१२.५, १५४३०-३५). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: मोहनविजये० गुण चंदना,
उल्लास-४ ढाल १०८, गाथा-२६७९, (वि. अन्त में रासगत विषयवस्तु सूचि दी गयी है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६२१३६. तेरहद्वीपपूजा विधान, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३२-२(३,११२)=१३०, पू.वि. बीच-बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७.५४१२.५, १७४३४-३८). १३ द्वीप जिनपूजा विधि, क. लालजी, पुहिं., पद्य, वि. १८७७, आदि: श्रीअरहंत प्रणाम कर; अंति: (-), (पूर्ण,
पू.वि. बीच-बीच के पाठांश व कन्नामवाली प्रशस्तिगाथा नहीं है.) ६२१३७. (+) चंदकेवली रास, संपूर्ण, वि. १९१२, वैशाख कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ११७, प्रले. सुरतानचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ४०००, दे., (२८x१३, १३४३२-३७). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: मोहनविजये० गुण चंदना,
उल्लास-४ ढाल १०८, गाथा-२६७९, ग्रं. ४००१. ६२१३८. (+) चंदकेवली रास, संपूर्ण, वि. १८९०, आश्विन शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १०१, ले.स्थल. जांगलु, प्रले. मु. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१३, १३-१७४३३-४०). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तिम; अंति: मोहनविजये० गुण चंदना,
उल्लास-४ढाल १०८, गाथा-२६७९. ६२१३९. (+#) अंजनासती चौपाई, पूर्ण, वि. १९२४, वैशाख कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. ११९-१(११८)=११८, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. पं. लक्ष्मीकमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, ९४२०-२३). अंजनासुंदरी चौपाई, मु. गुलाबविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८९, आदि: श्रीजिणचरणकमल नमु; अंति: गुलाब ए०
आनंद पाव ए, ढाल-४७, (पू.वि. ढाल-४७ गाथा-२ अपूर्ण से गाथा-१० अपूर्ण तक नहीं है.) ६२१४०. (+) मदनमोहनासती रास, संपूर्ण, वि. १९५६, आश्विन कृष्ण, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ८३, ले.स्थल. भुजनगर,
प्रले. सा. धनबाई (गुरु सा. डाहीबाई आर्या); गुपि.सा. डाहीबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १६४३३). मदनमोहनासती रास, झवेरचंद दसानंद कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: सरसती माता विनवु सय; अंति:
झवेरचंद०खंड पुरो थयो, खंड-४. ६२१४१. (+) सुतक विचार, पद वस्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११३, कुल पे. ९६, ले.स्थल. जोटाणा, प्रले.
रेवाशंकर प्राणसुख पंडया (नागर); लिख. मु. गौतमसागर (गुरु मु. नेमसागर', तपा.सागरशाखा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१५८) जिहां लगे रवि तेजे जलहले, दे., (२८x१३, १३४३७). १. पे. नाम. सूतक विचार, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
सूतक विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: जेहनै घरै जन्म थायै; अंति: मरणनो सूतक जाणवो. २. पे. नाम. ऋतुवंती स्त्री विचार, पृ. २अ, संपूर्ण..
मा.गु., गद्य, आदि: ऋतुवंती स्त्रीनो दिन; अंति: ग्रंथमां कर्तुं छे. ३. पे. नाम. हितशिक्षा दूहा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुक्ष्मबोध विनु भवीक; अंति: देव० लहसई तत्त्वतरंग, गाथा-१५. ४. पे. नाम. अध्यात्मगीता, पृ. २आ-५आ, संपूर्ण.
ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमिए विश्वहित; अंति: रंगी मुनि सुप्रतीता, गाथा-४९. ५. पे. नाम. औपदेशिकगाथा संग्रह, पृ. ५आ-७अ, संपूर्ण.
औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: धणमिव चिंतइ धम्म; अंति: नीट्ठरं पडीचोयणा, गाथा-३२,
(वि. उपदेशरत्नाकरादि ग्रंथों से संकलित.) ६. पे. नाम. गणधरवंदन गुंहली, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. गणधरवंदन गहुंली, आ. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीरे कामनी कहे सुणो; अंति: दीपविजय० शणगार रे,
गाथा-१५. ७. पे. नाम. गुरुगुण गुंहली, पृ. ७आ, संपूर्ण.
गुरुगुण गहुँली, मु. कवियण, रा., पद्य, आदि: एकने अमुलक मेतो; अंति: ए जिनसासनरीत रे, गाथा-१३.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
३५३ ८. पे. नाम. महावीरजिन गईली, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
महावीरजिन गहुँली, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सईर गुरूवांदवा; अंति: गौतम० घरे मंगलमाल रे, गाथा-११. ९. पे. नाम. गुरुगुण गुहुली, पृ. ८आ, संपूर्ण.
गुरुगुण गहुली, मु. मणिउद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: मोहनिद्रा परीहरोरे; अंति: मणीउदोत मंगलमालो लाल, गाथा-७. १०. पे. नाम. साधुगुण गहुंली, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण.
मु. गौतमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आव्या मुनि संजमना; अंति: गौयम तेहना गुण गावे, गाथा-११. ११. पे. नाम. महावीरजिन गुहली, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.
महावीरजिन गहुंली, मु. गौतमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वाला मारा गुरु गुरु; अंति: गोयम वरणवैरे लोल, गाथा-९. १२. पे. नाम. महावीरजिन गुंहली, पृ. ९आ-११अ, संपूर्ण. महावीरजिन गहंली, म. गौतमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १९११, आदि: जीरे मारे गुरु गीरु; अंति: गौयम० कमला ते वरे
जी, गाथा-३१. १३. पे. नाम. नेमिजिन गहंली, पृ. ११अ-१२अ, संपूर्ण.
मु. गौतमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १९११, आदि: चालो सैयर गुरु वंदवा; अंति: गौतम० घेर मंगलमाल रे, गाथा-१९. १४. पे. नाम. नेमसागरगुरु गहुंली, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण.
मु. गौतमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वाला मारा गुरु गीरुआ; अंति: गौयम वरणवेरे लोल, गाथा-११. १५. पे. नाम. गौतमस्वामी गहुँली, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण.
मु. गौतमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जीरे मारे गुरुगौतम; अंति: गौयम० पेर वीनवे जी, गाथा-११. १६. पे. नाम. गौतमस्वामिगहुँली, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी गहंली, मु. गौतमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सैयर गुरु वंदवा; अंति: गौयम० अधिकार रे,
गाथा-११. १७. पे. नाम. नेमसागरगुरु गहुँली, पृ. १३आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: आव्या मुनि जिन आणा; अंति: सिववधुसु सगपण करस्ये, गाथा-९. १८. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण, वि. १९१५, कार्तिक शुक्ल, ११, बुधवार.
पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माताजी तुमे धन धन रे; अंति: भक्ति वसे भगवान रे, गाथा-११. १९. पे. नाम. प्रश्नोत्तरमाला, पृ. १४आ-१७अ, संपूर्ण.
मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, वि. १९०६, आदि: परम ज्योति परमात्मा; अंति: वाणी कही भवसायर तरी, गाथा-६२. २०. पे. नाम. नेमसागर गुहली, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण, वि. १९१५, कार्तिक शुक्ल, १२, शुक्रवार.
नेमसागर गहुली, मा.गु., पद्य, आदि: गुरुजी आव्या गोरी; अंति: सिववधुना सुख पावो रे, गाथा-९. २१. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र गीत, पृ. १८अ-२४आ, संपूर्ण, वि. १९१५, कार्तिक कृष्ण, २, सोमवार.
दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, वा. कमलहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: मंगलिक महिमा निलो रे; अंति:
___ कमलहरष० वंछित आसो रे, अध्याय-१०. २२. पे. नाम. सरस्वतीजयकरण छंद, पृ. २४आ-२७अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, वि. १६७८, आदि: सकलसिद्धिदातारं; अंति: या होऊ सयासंघकल्लाणं,
गाथा-४४. २३. पे. नाम. शारदा स्तोत्र, पृ. २७अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., पद्य, आदि: वागवादिनी नमस्तुभ्यं; अंति: निर्मल बुद्धिमंदिर, श्लोक-७, (वि. ओंएँ ह्रीँ १००००
जापेन शीघ्रकवित्व शक्ति अंत में लिखा है.) २४. पे. नाम. पार्श्वनाथ मंगलाष्टक, पृ. २७अ-२७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-अट्टेमद्देमंत्राम्नाय गर्भित, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवते श्रीपार; अंति: शुभगतामपि वांछितानि,
श्लोक-९.
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२५. पे. नाम. जिनेश्वराष्टक अष्टप्रकारपूजागर्भित, पृ. २७-२८अ, संपूर्ण.
आ. विबुधविमलसूरि, सं., पद्य, आदि जिनपतेर्वरगंधसुपूजन, अंतिः त्वं विबुधेश्वरेशं, श्लोक - ९. २६. पे नाम यतिप्रतिक्रमणसूत्र सह वालाववोध, पृ. २८अ ४४अ, संपूर्ण
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि इच्छामि पडिक्कमिङ, अंतिः वंदामि जिणे चउवीस, सूत्र- २१. पगामसज्झायसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: इछु छू छू हे भगवन, अंति: तीर्थंकर जीन प्रतइ. २७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४४आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-नारीशिक्षा, मु. गुलाब, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो संखणी नार आंख; अंति: तो चतुरलोक चा छे, गाथा-७.
२८. पे. नाम. औपदेशिक गरबी, पृ. ४४-४५अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-नारीशिक्षा, मु. गुलाब, मा.गु., पद्म, आदि रंगरो चुवा जीशी शीखा, अंति: गुलाब० विना वगदा वाया, गाथा ६.
२९. पे नाम. शत्रुंजयतीर्थं स्तवन, पृ. ४५अ ४६अ, संपूर्ण
मु. ,खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: करजोडी कहे कामिनी; अंतिः सेवक जिन धरे ध्यान, गाथा- १६.
३०. पे नाम, सहजानंदनी सज्झाय, पृ. ४६-४७अ संपूर्ण.
सहजानंदी सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी आदि सहजानंदी रे आतमा सूत; अंतिः वीर० तरीया अनेक रे, गाथा- ११.
३१. पे. नाम. श्रावक के तीन मनोरथ, पृ. ४७-४८अ, संपूर्ण.
श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, आदिः पहिलें मनोरथे समणो; अंतिः काले एहवो मुझने होजो.
३२. पे. नाम. वीसवेहरमान स्तवन, पृ. ४८अ ४८आ, संपूर्ण.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
२० विहरमानजिन स्तवन, पं. खेमवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर युगंधर; अंति: ग्रही मुझ तारो रे, गाथा-७. ३३. पे. नाम. पंचमीनेमीजिन स्तुति, पृ. ४८आ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रावण सुदि दिन, अंतिः ऋषभदास० करो अवतार तो, गाथा-४.
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३४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ४८-४९अ, संपूर्ण.
मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समरी सारद माय प्रणमी, अंति: अमर नमे तुझ लली लली, गाथा-८.
३५. पे, नाम, भिडभंजनपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४९आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जिनराज जोआनी तक जाय; अंति: बांहे सहाय छे रे,
गाथा- ७.
३६. पे. नाम. मंगलाचरण, पृ. ५०अ, संपूर्ण.
जिनगुणप्रशस्ति बोल, मा.गु., गद्य, आदि: भगवान त्रिलोक्य तारण; अंतिः श्रद्धाई करी सांभल.
३७. पे. नाम. छ आवश्यक नाम, पृ. ५० अ-५०आ, संपूर्ण.
६ आवश्यक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चार आवश्यक थया कर्म, अंति: आत्माने मोक्ष पोचावू.
३८. पे नाम. २८ लब्धि नाम, पृ. ५० आ. ५१आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: आमोसही विप्पोसही, अंति: नेया सेसाउ अविरुद्धा.
३९. पे नाम, विचार संग्रह, प्र. ५१-५२अ, संपूर्ण.
प्रा.सं., गद्य, आदि: मोलाक्षणिकः सुगंधा, अंतिः न शक्तिमंत इति.
४०. पे. नाम. स्यादवादमति स्वाध्याय, पृ. ५२-५३आ, संपूर्ण.
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१० बोल सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदिः स्वाद्वादमत श्रीजिन; अंतिः श्रीसार० रतन बहुमूल, गाथा-२१.
४१. पे नाम. आत्मशिक्ष्या स्वाध्याय पृ. ५३आ- ५४अ संपूर्ण.
"
औपदेशिक सज्झाय, मु. उदय, मा.गु, पद्य, आदि: प्यारी ते पीऊने एम; अंतिः मूगति जासै तै जीव रे, गाथा- ११.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
४२. पे. नाम. समोसरण स्तवन, पृ. ५४अ-५५अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-समवसरण, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिसलानंदन वंदिइं; अंति: जस०
जिनपदसेवा खांति, गाथा-१७. ४३. पे. नाम. पांडव सज्झाय, पृ. ५५अ-५६अ, संपूर्ण.
५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हसतनागपुर वर भलो; अंति: मुज आवागमण निवार रे, गाथा-१९. ४४. पे. नाम. गौतमगणधर स्वाध्याय, पृ. ५६अ-५६आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी महावीरजिनविरह स्तवन, मु. खिमाविजय, पुहिं., पद्य, आदि: तो सुप्रीति बंधानी; अंति: खिमा० ज्योति
मिलानी, गाथा-९. ४५. पे. नाम. शुद्धचेतनावचनविलास आत्मबोध स्वाध्याय, पृ. ५६आ-५७आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-आत्मप्रबोध, मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पिउडारे पिउडा नरभव; अंति: चतुर रमो
मुज साथिरे, गाथा-९. ४६. पे. नाम. सिद्धचक्र नमस्कार, पृ. ५७आ-५८अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र आराधता; अंति: ए सीस कहइ करजोडि,
गाथा-५. ४७. पे. नाम. पजुसण नमस्कार, पृ. ५८अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसत्रुजो सिणगार; अंति: आराधीइ आगमवाणी वनीत,
गाथा-३. ४८. पे. नाम. पजुसणपर्व चैत्यवंदन, पृ. ५८अ, संपूर्ण.
पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीदेवाधि; अंति: प्रवचन वाणी वनीत, गाथा-३. ४९. पे. नाम. पर्युषणपर्व नमस्कार, पृ. ५८अ-५८आ, संपूर्ण... पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कल्पतरुवर कल्पसूत्र; अंति: लहे उपजे विनय वनीत,
गाथा-३. ५०. पे. नाम. पर्युषणपर्व नमस्कार, पृ. ५८आ, संपूर्ण.
पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुपनविध कहे सुत; अंति: वाणी वनीत रसाल, गाथा-३. ५१. पे. नाम. पर्युषणपर्व नमस्कार, पृ. ५८आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिननी बहीन सुदर्शना; अंति: सुणज्यो एकहि चित,
गाथा-३. ५२. पे. नाम. पर्युषणपर्व नमस्कार, पृ. ५८आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिनेसर नेमनाथ; अंति: सरखी वंदु सदा वनीत,
गाथा-३. ५३. पे. नाम. पर्युषणपर्व नमस्कार, पृ. ५८आ-५९अ, संपूर्ण..
पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परवराज्य संवत्सरी; अंति: वीरने चरणे नामुंसीस, गाथा-३. ५४. पे. नाम. दानशीलतपभावना संवाद, पृ. ५९अ-६३आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: रीधीसमृधी प्रसीधारे, ढाल-४,
गाथा-९९,ग्रं. १३५. ५५. पे. नाम. अभक्षभक्षकालतीत सज्झाय, पृ. ६३आ-६५अ, संपूर्ण. सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचन अमरी समरी सदा; अंति: नयविमल कहे
सज्झाय, गाथा-२७. ५६. पे. नाम. पार्श्वनाथ पूजा, पृ. ६५अ-६६अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन-दीक्षाकल्याणक, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोना रूपा केरां सोगट; अंति: तिहां धन सघलो
पूरे, गाथा-२२. ५७. पे. नाम. १७ भेदी पूजा सज्झाय, पृ. ६६अ-६६आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तरभेद पूजा फल; अंति: तेह तर्याने तारे रे, गाथा-९. ५८. पे. नाम. कुमतिसीखामण स्वाध्याय, पृ. ६६आ-६७आ, संपूर्ण. जिनप्रतिमा स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन जिनप्रतिमा; अंति: मान० सुगुरुने सीस, ढाल-२,
गाथा-२१. ५९. पे. नाम. मधुबिंदुकथा दृष्टांत, पृ. ६७आ-६९अ, संपूर्ण.
मधुबिंदु द्रष्टांत, पुहिं.,मा.गु., गद्य, आदि: मधुबिंदु की कथानो; अंति: तपस्या करी देवता थई. ६०. पे. नाम. औपदेशिक प्रहेलिका हरियाली, पृ. ६९अ, संपूर्ण.
मु. रूप ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पर्वत बेठु प्रशविउ; अंति: रूप० नही तेहनी खोली, गाथा-४. ६१. पे. नाम. औपदेशिक प्रहेलिका हरियाली, पृ. ६९अ-६९आ, संपूर्ण.
मु. रूप ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: आहे बासि वसि रे वनी; अंति: हुउ जन सूप्रसंग, गाथा-४. ६२. पे. नाम. औपदेशिक प्रहेलिका हरियाली, पृ. ६९आ-७०अ, संपूर्ण.
मु. लावण्यसमय*मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअजिनवरना पाइ नम; अंति: लावण्य० हृदय विचारी, गाथा-९. ६३. पे. नाम. औपदेशिक प्रहेलिका हरियाली, पृ. ७०अ-७०आ, संपूर्ण.
मु. रूप ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: एक नारि इत अबल भणीजइ; अंति: रूप० सामायक करयोरे, गाथा-६. ६४. पे. नाम. औपदेशिक प्रहेलिका हरियाली, पृ. ७०आ, संपूर्ण.
मु. रूप ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: परबत वनमाहि एक नर ऊप; अंति: रूपऋषि उदकथी हो दूरि, गाथा-५. ६५. पे. नाम. औपदेशिक प्रहेलिका हरियाली, पृ. ७०आ-७१अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: एक पुरुष अति रूयडु; अंति: लहइसइ मान सोहामणा ए, गाथा-५. ६६. पे. नाम. औपदेशिक प्रहेलिका हरियाली, पृ. ७१अ, संपूर्ण.
मु. लावण्यसमय *, मा.गु., पद्य, आदि: दोइ पाख अछि इति सारी; अंति: बारे वरसे नामज खोलइ, गाथा-७. ६७. पे. नाम. चक्रवर्तिऋद्धिस्वरूप, पृ. ७१अ-७१आ, संपूर्ण.
चक्रवर्ति ऋद्धि विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: निधि९ रत्न१४; अंति: संबाहनं चाद्रिशृंगे. ६८. पे. नाम. ७२ कला नाम, पृ. ७१आ-७२अ, संपूर्ण.
७२ कला नाम-पुरुष, सं., पद्य, आदि: लिखित१ पठितर संख्या३; अंति: अब्द७१ नामालयः७२, श्लोक-२. ६९. पे. नाम. अतिरत्नजाति नाम, प्र. ७२अ-७२आ, संपूर्ण.
३० अतिरत्नजाति नाम, सं., गद्य, आदि: पद्मराग१ पुप्फरागर; अंति: अहिमणि२९ चिंतामणि३०. ७०. पे. नाम. ३६ आयुध नाम, पृ. ७२आ, संपूर्ण.
३६ आयुध प्रकार, सं., गद्य, आदि: चक्र धनु वज्र खड्ग; अंति: इति ३६ दंडायुधानि. ७१. पे. नाम. ७ राज्यलक्ष्मी नाम, पृ. ७२आ, संपूर्ण.
७ राजलक्ष्मी नाम, सं., गद्य, आदि: करि१ तुरंगर रथ३ पायक; अंति: कोष्ठागार६ गढ७. ७२. पे. नाम. १२ निर्घोष नंदीतुर नाम, पृ. ७२आ, संपूर्ण.
१२ तुर्यनंदा नाम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: भंभा१ मउंग२ मद्दल३; अंति: संखो११ पणवोअ१२, गाथा-१. ७३. पे. नाम. रण नंदीतर वाद्य नाम, पृ. ७२आ, संपूर्ण.
१२ ढक्कादि वाद्यनाम, प्रा., पद्य, आदि: ढक्का१ इक्कार डमरूअ३; अंति: मदल११ कंसाल१२ रणजंदी, गाथा-१. ७४. पे. नाम. ५ धात्री नाम, पृ. ७२आ-७३अ, संपूर्ण.
सं., गद्य, आदि: क्षीरधात्री१ मजन; अंति: संगधात्री५ पंचधात्री. ७५. पे. नाम. १८ लिपिनाम, पृ. ७३अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
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प्रा., पद्य, आदि: हंसलिबी भूअलिवीर अंति: चाणक्की १७ मूलेववीय१८, गाथा १.
७६. पे. नाम. १८ भार मान विचार, पृ. ७३अ, संपूर्ण.
भारमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प सरिसवे एक जव त्रिह; अंतिः एक भार इसउ १८ भार
७७. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ७३अ ७३आ, संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीजिनराज उलग, अंति: मोहन० रूपनो ललना, गाथा-७. ७८. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ७४अ-७४ आ. संपूर्ण.
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मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अजितजिणंद सुणोने एक अंतिः भाव० महाजती मारा लाल, गाथा ५. ७९. पे, नाम, बोल संग्रह, पृ. ७४ आ. ७५आ, संपूर्ण.
बोल संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: निद्रा५ असातावेदी ए; अंति: भय दुगंछा नपुंसकवेद. ८०. पे नाम. प्रस्ताविक कथा, पृ. ७५-७६आ, संपूर्ण.
भोजराज दृष्टांतकथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: मालवदेशे श्रीधारानगर, अंतिः २१ इति श्रीः कन्याः८१. पे. नाम. शुकन विचार, पृ. ७६आ, संपूर्ण.
सुकन विचार संग्रह, सं., पद्य, आदिः कन्यागौपूर्णकुंभ, अंति: मंगलं प्रस्थितानां श्लोक-१. ८२. पे. नाम. उपवासनो लाभ चढतो, पृ. ७६ आ-७७अ, संपूर्ण.
उपवास फल, मा.गु., गद्य, आदि: एके उपवासे एक उपवास, अंति: पचवीस उपवासनो लाभ छे. ८३. पे. नाम. श्राविकानो कथलो, पृ. ७७अ-७९आ, संपूर्ण.
विकथा सज्झाय स्त्रियों के कथला, मु. महानंद, रा. पद्य वि. १८१०, आदि; आठम पाखी पडवे दीवसे, अंतिः विकवानो विस्तारो गाथा-५०.
2
८४. पे. नाम. ७२ मिथ्यात्वनाम स्वाध्याय, पृ. ७९आ-८१अ, संपूर्ण.
७२ मिथ्यात्वनाम सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भारति भगवती हीयडि; अंति: लक्षमी० प्रणम नीसदीस, गाथा २६.
८५. पे. नाम. आध्यात्मिक कडब, पृ. ८१अ - ८१आ, संपूर्ण.
अखो, पुहिं., पद्य, आदिः मर्म समजो रे मनुवा; अंति: अखो० मत हुइ धरवा की, गाथा-३, (वि. कडव-६.) ८६. पे नाम. आध्यात्मिक कडव, पृ. ८१-८२अ, संपूर्ण.
अखो, मा.गु., पद्य, आदि: माया मोटी जगमांहे नट, अंति: अखो० हरिगुरुसंतने, गाथा-११, (वि. कडब-३) ८७. पे. नाम. आध्यात्मिक कडब, पृ. ८२अ ८२आ, संपूर्ण.
३५७
अखो, मा.गु., पद्य, आदि: जंते न जाणो निज आतमा; अंति: अखो० हरि गुरु संतने, गाथा - ११.
८८. पे. नाम ऋषभजिन लावणी, पृ. ८२-८३अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन- केसरियाजी, मु. जीव, पुहिं., पद्य वि. १८५९, आदि; खड़ा खड़ा मे अर्ज करत अंति: ल्यो अर्ज प्रभु मोरी, गाथा- ९.
८९. पे. नाम. आत्म भावना, पृ. ८३-८४अ, संपूर्ण.
धर्म भावना, मा.गु., गद्य, आदि: धन्य हो प्रभु संसार, अंति: करीनें वंदणा होज्यौ .
९०. पे. नाम. अभक्षअनंतकाय स्वाध्याय, पृ. ८४आ, संपूर्ण.
अभक्ष्य अनंतकाय सज्झाय, वा. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: वड पीपल उंबर फला रे, अंतिः उदय० सुजगीसो रे,
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गाथा ८.
११. पे नाम, तिरखउद्धार स्तवन, पृ. ८५ अ- ९९आ, संपूर्ण.
.
शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८ आदि विमल गिरिवर विमल, अंतिः कहे नव० दरिसण जयकरो, ढाल - १२, गाथा - १२०, ग्रं. १७०.
९२. पे. नाम. आराधना स्तवन, पृ. ९१ आ ९६ आ, संपूर्ण, पे. वि. धर्मनाथ प्रसादात्.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे
पुण्यप्रकाश ए, ढाल-८, गाथा-१०२. ९३. पे. नाम. पंचमीतपमहिमाकथागर्भित वीरजिन स्तवन, पृ. ९७अ-१०१अ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९३, आदि: सुत सिद्धारथ भूपनो; अंति: वसे सकल
__ भवि मंगल करो, ढाल-६, गाथा-६८. ९४. पे. नाम. ५ कारण छ ढालिया, पृ. १०१अ-१०४आ, संपूर्ण. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथसुत वंदिइ; अंति: (-), ढाल-६, गाथा-५८, (पूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., रचना प्रशस्ति का अंतिम अंश "विनय भणे आणंद ए" नहीं लिखा है.) ९५. पे. नाम. रहनेमिराजुल संवाद, पृ. १०४आ-१०७अ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कहे रहनेमी अंवरविण; अंति: वेकी नीत वंदन करो जो,
गाथा-४०. ९६. पे. नाम. नेमिजिन बारमासो, पृ. १०७अ-११३आ, संपूर्ण. नेमिजिन बारहमासा, मु. गौतमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १९१५, आदि: सरसतस्वामीने वेनवु; अंति: गौतम० तस घर
मंगलमाल, गाथा-१०५. ६२१४२. आगमसारोद्धार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११२+१(३९)=११३, दे., (२७.५४१३.५, ९४२९).
आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: अथ भव्यजीवने प्रतिबो; अंति: सफल फली मन आस. ६२१४३. (+) श्रीपाल चरित्र सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९२०, माघ कृष्ण, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ८५,
अन्य. पं. दर्शनविजय गणि (गुरु पं. अजितविजय गणि); गुपि.पं. अजितविजय गणि; गुभा.पं. विनयविजय गणि; पं. मुनिविजय गणि (गुरु पंन्या. देवेंद्रविजय गणि); गुपि. पंन्या. देवेंद्रविजय गणि (गुरु ग. जयविजय); गुभा. ग. जयविजय (गुरु पंन्या. अमृतविजय); गुपि. पंन्या. अमृतविजय (गुरु पंन्या. सिंहविजय); पंन्या. सिंहविजय (गुरु आ. विजयरत्नसूरि);
आ. विजयरत्नसूरि (गुरु आ. विजयप्रभसूरि), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका अपूर्ण. पं.श्रीदर्शनविजयगणि तत् लिखकर छोड़ दिये जाने से प्रतिलेखक अज्ञात है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७.५४१२,५-१३४३५-३८).
श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण ___ तणी; अंति: ज्ञानविशाला जी, खंड-४ढाल ४१, गाथा-१८२५, संपूर्ण. श्रीपाल रास-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., खंड-४ __ढाल-४ से अंतिम ढाल गाथा-१० तक लिखा है.) श्रीपाल रास-बालावबोध*, मागु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. मात्र खंड-४ में ही उपयुक्त स्थलों पर
बालावबोध है.) ६२१४४. सुक्तिमाला सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९१३, वैशाख कृष्ण, ९, शनिवार, मध्यम, पृ. १०१,
ले.स्थल. जालोरगढ, प्रले. पंन्या. प्रतापविजय; अन्य.पं. दीपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीआदेस्वरजी प्रसादात्. श्रीमाणभद्रजी., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (४५६) कर गावड कर दो वडी, (११६४) पोथी प्यारी प्राणथी, दे., (२७७१३, १४४३८). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृत्यवल्लीवृंद; अंति: गम्य विचारणीय, वर्ग-४,
श्लोक-१७६. सूक्तमाला-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम काव्यने विषे; अंति: विचारणीय क० विचारवु.
सूक्तमाला-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीआदेश्वरजीनी सेवा; अंति: छांडीने निकल्या. ६२१४५. चंदकेवली रास, संपूर्ण, वि. १८९४, श्रावण शुक्ल, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ८६, ले.स्थल. मुंबइबंदर, प्रले. मु. लवजी ऋषि
(गुरु मु. अमीचंद ऋषि); गुभा. मु. अमीचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (४५८) जब लग मेरु महीधर, जैदे., (२७७१३, १७४३७-४०).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
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३५९
चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: मोहनविजये० गुण चंदना, उल्लास-४, गाथा-२६७९ (वि. दाल १०८.)
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६२१४६. (+) ४५ आगम प्रश्नोत्तरी, संपूर्ण, वि. १८७९, फाल्गुन कृष्ण, १०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ८४, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२८x१३, ११४३४).
"
विचाररत्नसार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: कारणभूतं मुणेयव्वं. ६२१४७. (+१) अध्यात्मकल्पद्रुम शांतरसवर्णनाधिकार का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८५९ श्रावण शुक्ल, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ७०, ले. स्थल, राजनगर, पठ. मु. सदानंद (गुरु पंन्या. खुशालचंद); गुपि, पंन्या, खुशालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९x१३, १२X३५-३७).
अध्यात्मकल्पद्रुम - हिस्सा शांतरस अधिकार का शांतरसवर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: अहो भव्य जीवो सदाकाल; अंतिः चाखे तो परमपद पामे,
६२१४८. (+) विक्रमादित्यभूपाल पंचदंड चतुष्पदी, संपूर्ण, वि. १९३६, आश्विन कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ७४, ले. स्थल. लखनेउ, प्रे. मु. गुणचंद्र ऋषि (गुरु मु. गोकलचंद ऋषि, विजयगच्छ); प्रले. मु. गोकलचंद ऋषि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र. वि. संशोधित. प्र. ले. लो. (१९७५) पंचदंड विक्रमचरित (१९७६) शिशु गुणचंदने आग्रहे वे., (२८४१३.५, १५४४३).
"
,
विक्रमराजा चौपई, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: प्रणमु पासजिणंद पय; अंति: अहनिस उत्सव रंग बधाई, खंड ६, गाथा-३१६८ (वि. दाल-७५.)
"
६२१४९. (#) चंदकेवली रास, पूर्ण, वि. १८७७, भाद्रपद कृष्ण, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ७१ - १ (६) = ७०, ले. स्थल. अणहिलपुरपत्तन, प्रले. पं. कृष्णजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीपंचासराजी प्रसादात् श्रीधुलेवाजी श्रीऋषभनाथजी कृपाथी करी लखीतं. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२८४१३, १८४४६).
"
चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि प्रथम धराधव तीम, अंतिः वर्णव्या गुणचंदना, उल्लास-४, गाथा-२६७९, (पू. वि. खंड-१ ढाल ७ गाथा १५ अपूर्ण से ढाल ९ गाथा ११ अपूर्ण तक नही है.. वि. ढाल - १०८.)
"
६२१५० (+) नवतत्त्व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७४, प्र. वि. संशोधित दे. (२८४१३.५, २१-२३x४२-७०), नवतत्त्व संग्रह, आ. विजयानंदसूरि, पुहिं. गद्य वि. १९२७, आदि: शुद्धज्ञान प्रकाशाय अंतिः थकी लहिसो तत्त्वतरंग,
अध्याय-९.
६२१५१. प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक- बीजक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४२ + १ (४०) = ४३, जैदे., (२७X१३.५, १०X३३). प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक - बीजक, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गद्य, वि. १८५३, आदि: पहिलै बोलै तीर्थंकर; अंति: शास्त्रमै को छे, प्रश्न- १५१.
६२१५३. (१) सुक्तिमाला सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६२. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२७X१३.५, १३X३५-४० ).
सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु. सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृत्यवल्लीवृंद, अंति: (-). ( पू. वि. गाथा- २३ तक है.)
सूक्तमाला - बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: हवे प्रथम काव्यनें, अंति: (-).
६२१५५. रत्नपाल चोपाई, संपूर्ण, वि. १८७८, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३२, ले. स्थल. अणहिलपुरपत्तन, प्रले. पं. कृष्णजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१३.५, २०४९).
रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: सकल श्रेणि में दुर; अंति: घणौ मह लील विलासजी, खंड-४ डाल ६६, गाथा- १३७२.
६२१५६. (+#) विक्रमराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५X१३, १४X३३).
विक्रमराजा रास, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य वि. १८३०, आदि अमल कमल सम नवन यूग; अंति: (-). (पू.वि. खंड-२ गाथा १९ अपूर्ण तक है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६२१५७. (+) सिंदुर प्रकरण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १६,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२५.५४१३, ५४३३-३६). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,
गाथा-७२ अपूर्ण तक है.) सिंदूरप्रकर-टिप्पण, पुहि., गद्य, आदि: सिंदूर का समुहे कथं; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७०
अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) ६२१५८. (+) अट्ठाइ महोच्छव व्याख्यान का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९७६, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २९, ले.स्थल. अहमदाबाद, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, १२४३७).
अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान-बालाबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हन्नत्वाल्पबुधिना; अंति: मंगलमाला भवंतु. ६२१५९. (+#) बृहत्शांति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१२.५, ११४२३-२८).
बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनंजयतु शासनम्. ६२१६०. (+#) कल्पसूत्र व्याख्यान- व्याखान १ से८, संपूर्ण, वि. १९३७, श्रावण शुक्ल, १५, मंगलवार, मध्यम, पृ. ११२,
ले.स्थल. नागौर, प्रले.पं. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, ६-१३४३०-३८).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेण० समणे; अंति: (-), ग्रं. १२१६, प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुवो० अरिहंत; अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्यतीर्थनेतार; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६२१६१. (#) विक्रमराजा रास, त्रुटक, वि. १८८१, फाल्गुन शुक्ल, ४, मंगलवार, मध्यम, पृ. २६४-६८(१ से
३६,९६,१३०,१५०,१७०,२०६ से २३३)+४(९२,९७,१४९,१६३)=२००, ले.स्थल. नवानगर, प्रले. ग. जतनकुशल (गुरु गच्छाधिपति अमृतकुशल); गुपि. गच्छाधिपति अमृतकुशल (गुरु ग. रामकुशल); ग. रामकुशल (गुरु ग. रत्नकुशल); ग. रत्नकुशल (गुरु ग. विद्याकुशल); ग. विद्याकुशल (गुरु ग. हीरकुशल); ग. हीरकुशल (गुरु ग. राजकुशल), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. श्रीआदेश्वरजी प्रसादात्, श्रीचंद्रप्रभूप्रसादात्, श्रीनेमनाथ प्रसादात्, श्रीधर्मनाथ प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१३, १४४३१). विक्रमराजा रास, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: (-); अंति: भाण० ऋद्धि विसालाजी, ढाल-१७४,
गाथा-५६००, ग्रं. ७४४०, (अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ६२१६२. (+) राजप्रश्नीयसूत्र सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५४१२, ८४५१-५४).
राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं सम; अंति: पस्स सुपस्सवणीए णमो, सूत्र-१७५, ग्रं. २१००, संपूर्ण. राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: न० नमस्कार हो अ०; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
"उडवीड उडती रही त० त्रीजी वेला" तक लिखा है.) ६२१६३. (+) गौतमकुलक सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८८९, कार्तिक शुक्ल, १४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५६, प्रले. मु. रामसुख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१३.५, १३४२८-३६).
गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: निसेवितु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टीका+कथा, मु. ज्ञानतिलक, सं., गद्य, वि. १६६०, आदि: नत्वा श्रीदेवगुरुन; अंति: भुवि चिरंजीयात्,
कथा-६९. ६२१६४.(-) स्तोत्र, छंद, चैत्यवंदन, स्तुति व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३६, कुल पे. २८, प्र.वि. अशुद्ध
पाठ., दे., (२६.५४१३, ११४२४). १.पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी स्तोत्र-षोडशनामा, सं., पद्य, आदि: नमस्ते सारदादेवी; अंति: सरस्वती हरतु मे पापं, श्लोक-१२.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
___ ३६१ २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुती, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ३. पे. नाम. गोतमस्वामी स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरोसीस; अंति: लावण्यस० संपत्ति
कोड, गाथा-९. ४. पे. नाम. गोतमस्वामी लब्धि, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मंगलं भगवान वीरो; अंति: गौतमसामीनी लब्धिः ,
गाथा-९. ५. पे. नाम. गौडीजी छंद, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: धवल धिंग गोडी धणी; अंति: नाथजी दुखनी जाल तोडी,
गाथा-८. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो; अंति: संखेसरो आप त्रुठा, गाथा-७. ७. पे. नाम. माणिभद्र स्तोत्र, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण.
माणिभद्रवीर छंद, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमणिभद्र सदा समरो; अंति: वकीर्ति इम सुजस लहे, गाथा-९. ८. पे. नाम. शनिश्वर स्तोत्र, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण.
शनिश्चर छंद, मा.गु., पद्य, आदि: छायानंदन जग जयो रवि; अंति: वलि वलि एम वखाणीई, गाथा-१६. ९.पे. नाम. सरस्वती छंद, पृ. ७अ-१०अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणि; अंति: शांतिकुशल फलसी
माहरी, गाथा-३५. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १०अ-११अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. विनयशील, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मुरत श्रीपासतणि; अंति: नवनिध सदा आणंद
घणे, गाथा-११. ११. पे. नाम. नवकार मंत्र, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण नित; अंति: भावे सुरि सीस
रसाल, गाथा-१४. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ११आ-१२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, मु. हर्षकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: काइरे जीव मनमें; अंति: फली पास पसाये
रंगरली, गाथा-८. १३. पे. नाम. माणिभद्रवीर छंद, पृ. १२आ-१४आ, संपूर्ण.
मु. उदयकुसल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दो सरस्वती; अंति: लाख लाखरी मांजा लहे, गाथा-२६. १४. पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरिषभ जिनेस्वर; अंति: श्रीविजय बुध कहवाया, गाथा-७. १५. पे. नाम. गुणरत्नाकर छंद-सरस्वती छंद, पृ. १५अ-१६आ, संपूर्ण. गुणरत्नाकर छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५७२, आदि: शशिकरनिकर समुज्वल; अंति: (-), अध्याय-४,
(अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१४ तक लिखा है.) १६. पे. नाम. अंबिका स्तोत्र, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण.
अंबिकादेवी स्तोत्र, विश्वनाथ, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ काली कंकाली करवर; अंति: विश्वनाथ० शरण में, गाथा-६. १७. पे. नाम. नवकार छंद, पृ. १७अ-१९अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछितपुरण विविध परे; अंति: रीध वंछित फल लहे, गाथा- १८.
१८. पे नाम. आवक करणी, पृ. १९अ २०आ, संपूर्ण.
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श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदिः श्रावक तु उठे परभात, अंति: करणी दुखहरणी छे एह
गाथा - २१.
१९. पे नाम, चौवीस तीर्थंकर स्तवन, पृ. २०आ- २२आ, संपूर्ण.
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२४ जिन स्तवन- मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदिः सबल जिणेसर प्रणमुं अंति से श्री वीतरागनी सेव, गाथा - २७.
२०. पे. नाम. आदिजिन स्तोत्र, पृ. २२ आ-२५अ, संपूर्ण.
आदिजिन वृहत्स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदिः प्रणमवि सयल जिणंद, अंतिः जिम पामो
भवपार ए, गाथा- ४४.
२१. पे नाम, पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. २५अ-२६अ, संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तवन-१० भववर्णन, मु. मतिविसाल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसारद हो पाय; अंतिः सेवकने सुखीयो करो,
गाथा - १२.
२२. पे. नाम. गोतमस्वामी स्तोत्र, पृ. २६ अ २६ आ, संपूर्ण
गौतमस्वामी स्तवन, मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: पहेलो गणधर वीरनो रे; अंति: वीर नमे निसदीस, गाथा-८. २३. पे. नाम. माणिभद्र छंद, पृ. २६आ-३०अ, संपूर्ण, वि. १९४१, माघ कृष्ण, १२.
माणिभद्रवीर छंद, आ. शांतिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामनि पाय, अंतिः शांतिसूरि० सुख संपदा, गाथा- ४५. २४. पे नाम भवानी छंद, पृ. ३० अ- ३१आ, संपूर्ण, वि. १९४१, माघ कृष्ण, १२ पठ. पं. हिम्मतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य.
अंबिकादेवी स्तुति, मा.गु., पद्य, आदिः सदा पुराण ब्रह्म, अंति: अंबना संद गासे, गाथा- १९.
२५. पे. नाम. परमेष्टि स्तोत्र, पृ. ३१आ, संपूर्ण, वि. १९४१, माघ कृष्ण, १२, ले. स्थल. डोडुआ ग्राम.
पंचपरमेष्टि स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: स्वश्रियं श्रीमद अंति ते भवंति जिनप्रभा श्लोक ५. २६. पे. नाम. सोलसती स्तोत्र, पृ. ३२-३३अ, संपूर्ण
१६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि : आदिनाथ आदि जिनवर, अंति: उदयरतन० सुखसंपदा ए, गाथा - १७.
२७. पे. नाम. महावीर छंद, पृ. ३३अ - ३४आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तोत्र-प्रभाती, मु. विवेक, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो वीरने चित्तमां; अंति: में प्रभु दर्श तेरो, गाथा-१५. २८. पे नाम, जिवदया सज्झाय, पृ. ३५-३६आ, संपूर्ण.
दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सयल तीर्थंकर करु रे; अंति: कहे एह विचार, गाथा - २५. ६२१६५. (+) नलदमयंतीरास, संपूर्ण, वि. १८७९, आषाढ़ शुक्ल, ११, रविवार, मध्यम, पृ. ३५, ले. स्थल. कंटालीया,
प्रले. ग. हुकमहंस (गुरु पंन्या. तिलोकहंस); गुपि. पंन्या. तिलोकहंस (गुरु पंन्या. यूक्तहंस); पंन्या. यूक्तहंस, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६.५X१३, १५X३५).
नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख अंतिः चतुरमाणा सचितवसी, खंड-६ ढाल ३९, गाथा- ९३१, ग्रं. १३५०.
६२१६६. (+) अष्ठाह्निका व्याख्यान, संपूर्ण वि. १९४६ पौष, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३४ प्रले. मु. धनसुख ऋषि पठ, श्राव वेजुलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., ( २६.५X१३.५, ११३५). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीशं शांतिकर्त्ता, अंति: पद्यबंध विलोक्य तत्
,
६२१६७. गौतमकुलक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २०५ १७१ (१ से १२४,१३४ से १५२, १७२ से १९९)= ३४, जैवे. (२७.५४१२.५, १७४४५-४८).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
३६३ गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., बीच-बीच के पाठांश हैं.)
गौतम कुलक-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ६२१६८. (+#) कल्पसूत्र का बालावबोध- व्याख्यान ७, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१३, ११४३०-३३). कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. मरुदेवा माता के मोक्षगमन प्रसंग
तक है.) ६२१६९. ढुंढकमतपरीक्षा प्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. १९२८, भाद्रपद कृष्ण, ३, गुरुवार, जीर्ण, पृ. ३१, ले.स्थल. राजपुर,
प्रले. पं. हीमतविजय (गुरु पं.न्यांनविजय); गुपि.पं.न्यांनविजय (गुरु पं. जितविजय गणि); पं. जितविजय गणि (गुरु पं. महिमाविजय गणि); पं. महिमाविजय गणि (गुरु आ. विजयमानसूरि); आ. विजयमानसूरि; पठ. श्राव. लखमीचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, दे., (२६४१०.५, १४४३८). ढुंढकमतपरीक्षा प्रश्नोत्तर, मु. दीपविजय, रा., गद्य, वि. १८७६, आदि: श्रीतपागच्छाधिराज; अंति: त्रकी हलु जीवके
काज. ६२१७०. (+) बृहत्संग्रहणी, संपूर्ण, वि. १८८१, फाल्गुन कृष्ण, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. २८, ले.स्थल. सवाईजैय,
प्रले. मु. चारित्रसागर ऋषि; पठ. श्राव. पन्नालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (२०७) उदकानलचोरेभ्यो, (६७४) कड कुबडी कर बेवडा, जैदे., (२७७१३, १०४३१). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिई १; अंति: जा वीरजिण तित्थं,
गाथा-३४९. ६२१७१. (+) एकसोसित्तेर जिन का यंत्र, संपूर्ण, वि. १८९०, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, मध्यम, पृ. २८, ले.स्थल. लखनउ, प्रले. मु. रामसुख (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१३.५, १५४३२).
१७० जिन यंत्र, पुहि., गद्य, आदि: श्रीऋषभदेवजी १ अजित; अंति: तीरथ मे उत्तम है. ६२१७२. (-#) चैत्यवंदन, स्तुति वस्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २८, कुल पे. ७०, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३.५, १६४३९-४४). १. पे. नाम. वीसविहरमान चैत्यवंदन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.
__ चैत्यवंदनवीशी, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर आदिइश; अंति: मिच्छामि दुक्कडं तेह, चैत्यवंदन-२०. २. पे. नाम. १७० जिन चैत्यवंदन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सीमंधर तणा; अंति: जीवनी केसर लोक नमावे, गाथा-९. ३. पे. नाम. विहरमानजिन चैत्यवंदन, पृ. ३अ, संपूर्ण.
मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: रीषभांकित सीमधरो गज; अंति: केसर कहे दुख भांजे, गाथा-६. ४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिन सेवोरे के; अंति: केसर० सेवा करजो सुखे, गाथा-११. ५. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: आज आनंदघन प्रगटीयो; अंति: विनय० इंद्रादिक सेवं, गाथा-२५. ६. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण.
मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: नेमि जिनेसर वीनति; अंति: करी स्तवना नेमि उदार, गाथा-२२. ७. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
मु. केसर, पुहिं., पद्य, आदि: आदिकर आदिस्वर सुणो; अंति: केसर केतिक वार रे, गाथा-२१. ८. पे. नाम. चैत्यप्रवाडी, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. तीर्थयात्रा स्तवन, मु. केसर, मा.गु., पद्य, वि. १९०२, आदि: सारद माय नमी करी; अंति: कहे केसर कर जोडरे,
गाथा-२९. ९. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: आदि कर आदि करीजे रे; अंति: हे केसर होय शिव वरतो, गाथा-९. १०.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: आदि करण प्रभु प्यारा; अंति: केसर० लागी पायरीषभ, गाथा-१३. ११. पे. नाम. केसरियाजी स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. __ आदिजिन स्तवन-केसरियाजी, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: केसरियाजी कामणगारी; अंति: केसर० आज सफल
माहरी, गाथा-९. १२. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन- आत्मनिंदा एकत्रीशी स्तवन गर्भित, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के
साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. सीमंधरजिन स्तवन- आत्मनिंदाएकत्रीसी गर्भित, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहेब सुण; अंति:
(१)केसर० सहु जगदीस रे, (२)केसरसुं सिव पाइई, गाथा-३१. १३. पे. नाम. पार्श्वनाथ लावणी, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: परमातम श्रीपासजिनेश्; अंति: सुंजावदा से अरज करी, गाथा-५. १४. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ९अ, संपूर्ण.
मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाभेयश्री मोय दीयो; अंति: जीव विनेय विस्तरति, गाथा-५. १५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.
मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिनेश्वर साहवा; अंति: जीव विनेय स्वर रे, गाथा-१५. १६. पे. नाम. धर्मजिन पद, पृ. ९आ, संपूर्ण.
मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धर्म जिनेश्वर सुरत; अंति: जीव० शिववे शासन के, गाथा-५. १७. पे. नाम. केसरियाजी स्तवन, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है.
आदिजिन स्तवन-केसरियाजी, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: केसरियाजी कामणगारी; अंति: केसर० आज सफल
माहरी, गाथा-९. १८. पे. नाम. आदिनाथ स्तवन, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. जीवविजय, पुहिं., पद्य, आदि: पुरण पुन्य उदय हुयो; अंति: जीव० विरह न दीजें, गाथा-९. १९. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १०आ, संपूर्ण.
मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नमो नमो विमलगिरि नाम; अंति: जीव० पूर्व नवाणु, गाथा-८. २०.पे. नाम. अंतरिक्ष पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १०आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: पाये तुम पासजी; अंति: किनें मुझ किरतार जो, गाथा-९. २१. पे. नाम. अतीत अनागत वर्तमान जिननामनी लावणी, पृ. १०आ, संपूर्ण. ____ अतीत अनागत वर्तमान जिननाम लावणी, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: हुं प्रणमी पासजिणंद; अंति: शिव इम कहें
केसर रे, गाथा-११. २२. पे. नाम. पार्श्वजिन होरी- नवसारीमंडण, पृ. १०आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन होरी-नवसारी मंडण, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: खेलो नवसारी मंडण; अंति: केशर० चरणे होरी खेलो,
गाथा-११. २३. पे. नाम. दीपावली पर्व स्तवन, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण...
दीपावलीपर्व स्तवन, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीदीवाली विजयवति; अंति: केसर० ग्यान लाल रे, गाथा-८. २४. पे. नाम. ३४ अतिशय स्तवन, पृ. ११अ, संपूर्ण.
मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: चोत्रिस अतिशयना धणी; अंति: केसर कामा भीजे रे, गाथा-१३. २५. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण.
मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमधर साहिबारे; अंति: कहे केसर सुखदाय, गाथा-९. २६. पे. नाम. गुरुगुण गंहुली, पृ. ११आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
___३६५ गुरुगुण गहुंली, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: सोहम सिख बहु विचरता; अंति: केसरर० गति चोकमा ए, गाथा-११. २७. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण.
मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: हेत धरी साहेलीयु; अंति: विनय० पाप निकंदिइ रे, गाथा-८. २८. पे. नाम. गुरुगुणगंहुली, पृ. १२अ, संपूर्ण.
गुरुगुण गहुंली, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: देख्यो एक अचंभोरे; अंति: कहें केसर जयवरीइंरे, गाथा-७. २९. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण.
मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर आया रे जिपे; अंति: रे कहे केसर में अभंग, गाथा-७. ३०. पे. नाम. औपदेशिक हरियाली, पृ. १२आ-१३आ, संपूर्ण.
मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: अचरिज एक सुंण्यु; अंति: केसर० नारी में भलीया, गाथा-१८. ३१. पे. नाम. चक्रेसरी मातानो गरवो, पृ. १३आ, संपूर्ण.
चक्रेश्वरीदेवी गरबी, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचलें सोभति; अंति: केसर० कर्य संभार, गाथा-५. ३२. पे. नाम. उत्तमातम सज्झाय, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उत्तम आतमकुं नित्य; अंति: एह दसा कब धरसि रे, गाथा-९. ३३. पे. नाम. मध्यमातम सज्झाय, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. केसर, पुहिं., पद्य, आदि: रे मध्यमातम बाउरा रे; अंति: केसर० किम लहे निरवाण, गाथा-९. ३४. पे. नाम. अध्याम सज्झाय, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सूरत संगी हो अधमातम; अंति: कीरति जीव सिखवंत,
गाथा-१९. ३५. पे. नाम. अधमाधम आतम सज्झाय, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: रे अधमाधम आतम तेरी; अंति: केसर कहे सिरनामी, गाथा-१८. ३६. पे. नाम. अढार पापस्थानक सज्झाय, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण.
१८ पापस्थानक सज्झाय, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: नारी ते नरने विनवे; अंति: केसर ते अपार वाला, गाथा-२०. ३७. पे. नाम. पंचेंद्रीनामगर्भित आत्मबोधस्वाध्याय, पृ. १६अ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक सज्झाय, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: जीउ वीनती एक छे मेरी; अंति: तो सुख लीजे हो लाल, गाथा-७. ३८. पे. नाम. वीर वीनती, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमहावीर मया करी; अंति: कहे केसर दीयो मुझ, गाथा-७. ३९. पे. नाम. नेमजी स्तवन, पृ. १६आ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तवन, मु. केसर, पुहिं., पद्य, आदि: खेलनदे होरी खेलनदे; अंति: कहेशी जीवशिख केसर हो, गाथा-९. ४०. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण.
मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिसलाजी को नंदन; अंति: केसर पसायथी तुझ जो, गाथा-६. ४१. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण.
मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आ जगमां अंगना नथी रे; अंति: सुसय लोकाए जग देखोने, गाथा-९. ४२. पे. नाम. नंदक सज्झाय, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा नंद करे हु; अंति: रेदीसे पर उपगारी, गाथा-९. ४३. पे. नाम. औपदेशिक स्तवन, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. केसर, पुहिं., पद्य, आदि: चालो साहेली हेली गंग; अंति: केसर गुंण गित्तमां, गाथा-११. ४४. पे. नाम. ज्ञान साधारण द्रव्यादि सज्झाय, पृ. १८आ-२०अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-ज्ञान साधारण द्रव्यादि, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: भावें सुणजोरे ग्यान; अंति: जीव केसर
दुख कापेरे, ढाल-४, गाथा-४२.
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मु. केसर, पुहिं., पद्य, आदि: मुनिसुव्रतजिन वंदि; अंति: हे केसर नित्य मेव रे, गाथा- ७.
४९. पे नाम मुनिसुव्रत स्तवन, पृ. २१ आ-२२अ संपूर्ण.
.पे. नाम महावीरजिन विज्ञप्ति स्तोत्र, पृ. २०अ २१अ संपूर्ण, ले. स्थल. राजेरबंदर, प्रले. मु. हजारीमल ऋषि,
प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. श्रीमनमोहन पार्श्वनाथजी प्रसादात्
महावीरजिन स्तोत्र, मु. केसर, सं., पद्य, आदि: अहो वीर वीरत्व में अंतिः पततं केसरं रक्ष रक्ष, गाथा - ५२. ४६. पे. नाम. पंचतीर्थी स्तवन, पृ. २१अ, संपूर्ण.
पंचतीर्थीजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु, पद्य, आदि अब जिनबिंब परलंब, अंतिः केसर कहे जिम चिरनंदो, गाथा-५, ४७. पे. नाम. सिद्धगिरि स्तवन, पृ. २९आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थं स्तवन, मु. केसर, मा.गु, पद्य, आदि: सिद्धाचल जे भेटावें, अंतिः दीजीई सेवानुसारी रे, गाथा-७. ४८. पे नाम मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. २१आ, संपूर्ण.
मु. केसर, पुहिं., पद्य, आदि: भगधर भार्वे विनवुं कर, अंति: केसर हे जाणकंदो रे, गाथा-६.
"
मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: केसर धनसार से पूजो अंति: केसर विजें हम कुं. गाथा- ७. ५०. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. २२अ संपूर्ण
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
५१. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. २२अ - २२आ, संपूर्ण.
साधुगुण गहुंली, मु. जीव-शिष्य, मा.गु, पद्य, आदि हु बलिहारी रे जाउ, अंतिः सुशिष्यथी होय झकोर, गाथा-७, ५२. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. २२आ, संपूर्ण.
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मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतिपात्र प्रथम, अंति: केसर छे कांमी, गाथा-३,
५३. पे. नाम. नेमजिन चैत्यवंदन, पृ. २२आ, संपूर्ण.
नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: तारण तरण तरी समो; अंतिः नारीनुं दे सुख भरपूर, गाथा-३. ५४. पे नाम, चौवीसजिन लंछन स्तवन, पृ. २२आ, संपूर्ण
२४ जिन स्तवन- लंघनगर्भित, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: रौषभ रीषभ चरणे भलो, अंतिः केसर० नाक होई संघे,
गाथा- ७.
५५. पे. नाम महावीरजिन पूजा स्तवन, पृ. २२आ-२३अ, संपूर्ण.
मु. केसर, पुहिं, पद्य, आदि; केसर की पूजा करो वीर, अंतिः केसर० लहें सिवपुर के, गाथा ७.
"
५६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २३अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है.
मु. केसर, पुहिं, पद्य, आदि; साहेब सुरत पिंजार, अंतिः केसर० चरणे आवुं हां, गाथा ५.
"
५७. पे नाम. अजितजिन पद, पृ. २३अ, संपूर्ण
मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: देखो साहेब अजित, अंति: केसर० सिरनामी देखोरी, गाथा- ३.
५८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २३आ, संपूर्ण.
मु. केसर, पुहिं., पद्य, आदि: माडी मुने ते बुधित, अंति: जीव दासते घ्यावे, गाथा-५
"
५९. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन- आत्मनिंदा एकत्रीसी स्तवन गर्भित, पृ. २३आ-२४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति एकाधिक बार संलग्न किया गया है.
"
सीमंधर जिन स्तवन- आत्मनिंदाएकत्रीसी गर्भित, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहेब सुण, अंतिः (१) केसर० सहु जगदीस रे, (२) केसरसुं सिव पाइ, गाथा- ३१.
६०. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. २४-२५अ संपूर्ण
मु. केसर, पुहिं, पद्य, आदिः धिक् ताको अवतार छिद्, अंतिः जे सेवे उत्तम चरणा, गाथा- ९.
"
६१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २५अ, संपूर्ण.
केसर, मा.गु., पद्य, आदि: में तो साहेब तेरे नो; अंति: कृपा रहें केसर रे, गाथा-८.
मु.
६२. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. २५अ - २५आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. केसर,
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पुहिं., पद्म, आदि: मन की मन में रही रे, अंतिः ते हे केसरे कही रे, गाथा-५.
"
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
३६७ ६३. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. २५आ, संपूर्ण..
सं., पद्य, आदि: कमनपविसोनेम्यालीनः; अंति: श्रीगंतु भद्रम्, श्लोक-४. ६४. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. २५आ-२६अ, संपूर्ण.
मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: नंदा नंदन वंदन कीजै; अंति: कहे गणि केसर सिद्ध, गाथा-७. ६५. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २६अ, संपूर्ण.
मु. केसर, मा.गु., पद्य, वि. १९१०, आदि: हुंस्तेयि हुस्तेय; अंति: केसर०क्युं न करेइ हो, गाथा-६. ६६. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २६अ, संपूर्ण.
मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: में कलंकी कलंकी हो; अंति: दिजे केसर देवा हो, गाथा-५. ६७. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २६अ-२६आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है.
मु. केसर, पुहिं., पद्य, आदि: साहेब सुरत पिंजार; अंति: केसर० चरणे आवुहा, गाथा-५. ६८. पे. नाम. सुमतिनाथ स्तवन, पृ. २६आ, संपूर्ण.
समतिजिन स्तवन, म. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: हो साहेब सुमति जिनेश; अंति: केसर० मोय वार्य रे. गाथा-५. ६९. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २६आ-२७अ, संपूर्ण.
मु. केसर, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिनराज दयाल प्रभ; अंति: को कहे केसर सिवजावे, गाथा-७. ७०. पे. नाम. सूतक विचार, पृ. २७अ-२७आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: जेहने घरे जन्म थाये; अंति: पोर १२ पछी शुद्ध. ६२१७३. स्तवन चौवीसी वरास संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७, कुल पे. ४, जैदे., (२७.५४१३, ११४३७).
१. पे. नाम. स्तवन चौवीसी, पृ. १आ-१०अ, संपूर्ण. __स्तवनचौवीसी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सुगुण सोभागी; अंति: मालामाला ते वरे रेलो, स्तवन-२४. २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. १०अ-२१आ, संपूर्ण, वि. १८९९, ज्येष्ठ, प्रले. मु. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. स्तवनचौवीसी, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ ऋषभ जिणंद निरखी; अंति: प्रतिदिन सयल जगीस,
स्तवन-२४. ३. पे. नाम. अवंतीसुकमाल रास, पृ. २२अ-२७अ, संपूर्ण. अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: शांतिहरख सुख पावे
रे, ढाल-१३, गाथा-१०७. ४. पे. नाम. चंदनबालासतीरास, पृ. २७अ-२७आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी प्रेमें सरसती; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-११ तक है) ६२१७४. श्रावक पाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४-९(१ से ९)=२५, जैदे., (२७७१३.५, ८-१२४२७-३०).
श्रावकपाक्षिक अतिचार-पायचंदगच्छीय, संबद्ध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लहिजो
शिवसुखनी संपदा, गाथा-१५५, (पू.वि. सामायिक खमासना विधि से है.) ६२१७५. श्राद्धाहोरात्रकृत्य व नवपद ३४६ भेद गुणर्नु, संपूर्ण, वि. १८७३, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. २३, कुल पे. २,
ले.स्थल. जैपुर, प्रले. पं. श्रीपाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८.५४१२.५, ११४२९-३५). १.पे. नाम. श्राद्धाहोरात्रकृत्य, पृ. १आ-१५आ, संपूर्ण. श्रावकविधि प्रकाश, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु.,सं., गद्य, वि. १८३८, आदि: प्रणम्य श्रीजिनाधीश; अंति: पिण इतरो
विशेष छै. २.पे. नाम. नवपद देववंदन विधि, पृ. १६अ-२३अ, संपूर्ण.
३४६ भेद-नवपद, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अशोकवृक्ष प्रातिहार; अंति: भावोत्सर्गतपसे नमः, पद-३४६. ६२१७६. (#) द्विजमुखचपेटा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२, पठ. अंबालाल सींघ दीवानजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों
की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, ११४३६).
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३६८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची द्विजमुखचपेटा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: सद्भुत भाव्यर्थविकास; अंति: मांधाता राजोत्पत्ति,
श्लोक-४२१. ६२१७७. स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २१-३(१८ से २०)=१८, कुल पे. ८, दे., (२८x१३.५,
१३४४८-५५). १. पे. नाम. सम्यक्त्वना सडसठ बोल, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुकृतवल्लि कदंबिनी; अंति:
वाचक जस इम बोले रे, ढाल-१२, गाथा-६८. २. पे. नाम. अढार पापस्थानक निवारण सज्झाय, पृ. ४अ-९अ, संपूर्ण. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापथानक पहिलूंका; अंति:
वाचक जस इम भाखेजी, सज्झाय-१८, ग्रं. २११. ३. पे. नाम. आठदृष्टि सज्झाय, पृ. ९आ-१२अ, संपूर्ण, वि. १९६८, श्रावण शुक्ल, १५, ले.स्थल. गोधरा, प्रले. मु. राजेंद्रसोम,
प्र.ले.पु. सामान्य. ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदेशी; अंति: वाचक यशने
__ वयणेजी, ढाल-८, गाथा-७६. ४. पे. नाम. नववाड सज्झाय, पृ. १२अ-१३आ, संपूर्ण. ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: तेहने जाउ भामणे,
ढाल-१०, गाथा-४३. ५. पे. नाम. बार भावना सज्झाय, पृ. १४अ-१७आ, संपूर्ण. १२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: विमल कुल कमलना हस; अंति: सकलमुनि चित्त
आणो, ढाल-१४. ६. पे. नाम. षट्भावना स्वाध्याय, पृ. १७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. षड्भाव प्रकाश सज्झाय, उपा. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७७८, आदि: श्रीसद्गुरुना प्रणमी; अंति: (-),
(पू.वि. ढाल-२ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७. पे. नाम. सीता सज्झाय, पृ. २१अ, संपूर्ण.. सीतासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: छोडी हो पीया छोड; अंति: ० धरम हीये धरीजी,
गाथा-११. ८. पे. नाम. बाहुबली स्वाध्याय, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण. बाहुबली सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबली सुकल ध्याने; अंति: तेह समकित सिंधुरा, गाथा-१२,
(वि. मात्र अंतिम वाक्य अपूर्ण है.) ६२१७८. सुक्तिमाला, संपूर्ण, वि. १९४२, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. २०, ले.स्थल. कालंद्रीनगर, प्रले. पं. जीतविजय (गुरु
पं. रतनविजय); गुपि.पं. रतनविजय; पठ. मु. हिमतविजय (गुरु पं. रतनविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२.५, १०४२७). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृतवलीवृदं जें; अंति: मोक्ष साधै जि कोई,
वर्ग-४, श्लोक-१७६. ६२१७९. सीमंधरस्वामी विज्ञप्ति, संपूर्ण, वि. १९२६, माघ, मध्यम, पृ. २०, प्रले. करसनजी वेलजी दवे, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, १२४३४). सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सीमंधर साहिब
आगईं; अंति: शास्त्र मर्यादा भणी, ढाल-१७, गाथा-३५३. ६२१८०. (+) दीवाली व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१३, १३४३६-३९).
दीवाली व्याख्यान, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: श्रीवर्धमान मंगल्यः; अंति: रीगौतम सर्वज्ञाय नमः.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
३६९ ६२१८१. (+) लालकुमार कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२५.५४१३.५, १९४३३-३६). लालकुमार कथा, मु. चेतनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: देव धरम गुरु सेवके.; अंति: तस सीसचेतन जानियौ,
गाथा-१७१. ६२१८२. (#) अंजनासुंदरीरास, संपूर्ण, वि. १९३१, कार्तिक कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. १९, ले.स्थल. दीवबंदर, प्रले. पं. मेघविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१३, १४४३८-४२).
अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: सीयल समोवड को नही; अंति: भार्या जगतनी माय तो, गाथा-१६५. ६२१८३. हरचंदराजाचौपाई, संपूर्ण, वि. १९४४, कार्तिक कृष्ण, ३०, रविवार, मध्यम, पृ. १९, ले.स्थल. सिवपुरी, प्रले. सा. साकर (गुरु सा. चंपा); गुपि.सा. चंपा; पठ. श्राव. धनाजी छगनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२.५, १८x२८-३२).
हरचंदराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिनेसर पाय नमु; अंति: सुखरो नहीं पारो रे, ढाल-२८, गाथा-४१७. ६२१८४. (+) श्रावकपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १८-१(१)=१७, प्रले. मु. विजयचंद्र (गुरु मु. जगरामजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, ७४२३). श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: करि मिच्छामिदूक्कडं,
(पू.वि. "ज्ञानाचार स्थूल अपूर्ण" से है.) । ६२१८५. (#) मनुष्यजन्मदसदृष्टांतकाव्य सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९१७, फाल्गुन, मध्यम, पृ. १७, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२७.५४१२.५, १३४३६-४०).
मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांत काव्य, प्रा.,सं.,मा.गु., पद्य, आदि: चुल्लग पासग धन्ने; अंति: (-), श्लोक-११. मनुष्यभवदर्लभता १० दृष्टांत काव्य-बालावबोध, मु. ऋद्धिसोम, मा.गु., प+ग., आदि: श्रीपार्श्वशं जिनं; अंति: तणा
आग्रहथी अविरुद्ध. ६२१८६. धम्मिलकुमार रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, जैदे., (२७.५४१३, ११४३२-३५).
धम्मिलकुमार रास, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल शास्त्र महोदयधि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., ढाल-१० गाथा-१३ अपूर्ण तक लिखा है.) ६२१८७. नवतत्त्व व आठकर्म विषे बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-५(१,७ से १०)=१७, कुल पे. २, जैदे.,
(२७.५४१३.५, १५४३१). १.पे. नाम. नवतत्त्व बोल संग्रह, पृ. २अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से
अधिक बार जुडी हुई है.
बोल संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). २.पे. नाम. आठकर्म बोल संग्रह, पृ. १४आ-२२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक
से अधिक बार जुडी हुई है.
बोल संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६२१८८. (+) तेरापंथी चर्चा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१३, १२४३६-३९).
तेरापंथी चर्चा, मु. शीलविजय, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: छ लेस्या हुँति वीर; अंति: समयरस करल्यो आतमलीन,
(वि. नवग्रह पूजनयंत्र दिया है.) ६२१८९. (+) शांतिस्नात्र अष्टाह्निकापूजा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१२.५, १२४३५-३९). शांतिस्नात्र विधि, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अथ प्रतिष्टा वा जल; अंति: (१)गाजते बाजते
धारादेवी, (२)शांतिकलां गृहीत्वा, (वि. अंत में नवग्रह पूजन कोष्ठक अपूर्ण दिया गया है.) ६२१९०. (+#) लीलावती सुमतिविलास रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे., (२६.५४१२.५, १५४३३-३८).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
लीलावती सुमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदिः परम पुरुष प्रभु पास, अंति: सुख संप सुरसाल जी, ढाल - २१, गाथा- ३४८.
1
5
६२१९१. (+) श्रावकविधि प्रकाश व जीवोत्पत्तिस्थान विचार, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. २१-६ (१,१६ से २०) = १५, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६४१३.५, १५४२८-३४).
""
१. पे. नाम. श्रावकविधि प्रकाश, पृ. २अ-१५आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र हैं.
उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., सं., गद्य, वि. १८३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सामायिक उच्चरावण विधि अपूर्ण रचना प्रशस्ति अपूर्ण तक है.)
२. पे. नाम. जीवोत्पत्तिस्थान विचार, पृ. २१अ - २१आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
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६२९९२, (+४) बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९२५, आषाढ़ शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. २०-५ (१ से ५) = १५, ले. स्थल. वढवाण, प्र. मु. त्रिभुवन (गुरु मु. हीरा ऋषि); गुषि. मु. हीरा ऋषि, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६.५X१२.५, १५X४१-५७),
बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: समें नमस्कार हूजो, (पू.वि. धर्म ध्यान के बोल से है.) ६२१९३. (+) पट्टावली अंचलगच्छीय, संपूर्ण, वि. १८८१, पौष शुक्ल, १३, रविवार, मध्यम, पृ. १४, ले. स्थल. रायण, प्र. ग. भक्तिसागर (गुरु पं. सुखसागर); गुपि. पं. सुखसागर (गुरु मु. धनसागर, तपगछ); मु. धनसागर, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६.५x१२.५, १६.१९४३६-४२).
""
पट्टावली अंचलगच्छीय, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवैद्यमानआसन; अंतिः श्रीपुण्यसागरसूरि, (वि. अंत में विभिन्न गच्छों की स्थापना, उसके वर्ष आदि दिये गए हैं.)
६२१९४. २४ दंडक २९ बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७ - ३ (१ से २, ४) = १४, जैदे., (२७X१३, ११४३२).
२४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंतिः असंख्यात अधिका कहिवा, (पू.वि. "अढी से धनुष उतकृष्टा पांच से धनुष" से ";च्यारना नाम कहे छे, आहार संज्ञा १ भय" तक एवं "हीइछे सम्यक्त मिथ्यादृष्टि ३ नारकी नें दश भव"पाठ से अंत तक है.)
६२१९५. (#) चौमासीदेव वंदनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., ( २६४१२.५, १७४३८).
१. पे. नाम. चौमासीपर्व देववंदन, पृ. १आ- १४अ, संपूर्ण, वि. १९५३, फाल्गुन शुक्ल, ५, ले. स्थल. कोटारामपुरा,
प्र. मु. हीरचंद्र ऋषि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य.
पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकेवलज्ञान कमला; अंति: पास सांभलनुं चेइ रे.
२. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १४- १४आ, संपूर्ण.
मु. पुण्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद समोसवजी अंतिः हो स्वामि संजमसु, गाथा २२.
३. पे. नाम. शालिभद्र सज्झाय, पृ. १४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: प्रथम गोवालिया तणे; अंतिः (-), ( पू. वि. गाथा - १ अपूर्ण है.)
1
६२९९६. (४) चौमासी देववंदन, संपूर्ण वि. १९१० श्रावण शुक्ल, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. १४, ले. स्थल, राधणपुर, प्रले. हरजीवन माधवजी श्रीमाली; पठ. श्रावि. जीजी वजेचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (९३६) यादृसं पूस्तकं दृष्ट्वा, दे., ( २६.५X१३, १३X२७-३०).
चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि : आदिदेव अलवेसरू विनीत; अंति: पास सामलनु चेई रे. ६२१९७ (४) चोवीसदंडकद्वार विचार, अपूर्ण, वि. १९३० श्रावण शुक्ल, २ शनिवार, मध्यम, पृ. १५-१ (३) १४.
ले.स्थल. नौतनपुर, प्रले. मु. प्रतापचंद नवलचंद ऋषि (लोकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५X१३, १५X४१-४५).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
२४ दंडक २५ द्वार विचार, मा.गु., प+ग., आदि: सरीरोगाहणा संघयण; अंति: सिद्धने जोग नथी, गाथा-२, (पू.वि. "एदवंचि द्वार कह्या २५ हवे चोवी डंड" पाठ से "लाछे पांच भरत पांचदूरवत् पाचमाहाविदेह" तक नहीं है.) ६२१९८. नवतत्त्व भेद, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १३, जैवे. (२७.५x१३, १२x४३). तत्त्व भेद, मा.गु., गद्य, आदि: हवे विवेकी समदृष्टि, अंति: ५ एवं १५ भेद संपूर्ण.
६२१९९. (+) नरकादि भवना पांच बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७.५X१३, १२X४०-४५)
५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो नारकिनो द्वार; अंति: रस फरसने आकारे देखे.
६२२०० (0) लीलावती सुमतिविलास रासादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २३, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X१२.५, १७x४२).
१. पे. नाम. राम रावण युद्ध, पृ. १अ, संपूर्ण.
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राम रावण युद्ध पद, क. श्रीपति, मा.गु., पद्य, आदि: जुध तणां जयकार किरती; अंति: फुनी लोके त चले, गाथा- ३. २. पे. नाम. लीलावती रास, पृ. १आ-१३अ, संपूर्ण, वि. १८७४, भाद्रपद कृष्ण, ६, गुरुवार.
लीलावती सुमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु, पद्य, वि. १७६७, आदिः परम पुरुष प्रभु पास, अंति: सुख संपति सुरसाल जी, ढाल - २१, गाथा- ३४८.
३. पे नाम, शत्रुंजयतीर्थं स्तवन, पृ. १३आ, संपूर्ण
मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदिः उंचा रे गढसेडुंज, अंतिः बाधे अविहड रंग हो, गाथा- ७. ६२२०१ (+) द्वादशव्रत पूजा व विधि, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. दे. (२६.५x१३,
""
१०x२६).
१२ व्रत पूजाविधि, पं. वीरविजय, मा.गु. सं., पद्य, वि. १८८७, आदिः उच्चैर्गुणैर्यस्य, अंति: (१) जग जस पडह बजायो रे, (२) टालवा १२४ दीवा करीइं, ढाल १३, गाथा- १२४.
६२२०२. () शालिभद्र चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १४-२ (१२ से १३) = १२, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२९.५x१३, १५४४५-५१).
"
३७१
शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: (-),
(पू.बि. डाल- २३ अपूर्ण से ढाल २६ अपूर्ण तक व ढाल २८ अपूर्ण से नहीं है.)
६२२०३. (+) सतरभेदी पूजा व स्नात्र पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२. कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित, जैवे., (२७.५x१२,
१.
पे. नाम. हंसाउली रास, पृ. १४अ - २२अ अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
१०x३३-३९)
१. पे. नाम. १७ भेदी पूजा, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण.
वा. साधुकीर्ति, मा.गु, पद्य, वि. १६१८, आदि: ज्योति सकल जग जागती अंतिः साधुकीरति० सुख समाजइ, ढाल-१७.
२. पे. नाम. स्नात्रपूजा विधिसहित, पृ. ७आ - १२आ, संपूर्ण.
ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंति: संघ सकल आणंद, ढाल-८, गाथा-६०. ६२२०४. (+#) श्रेणिकराजाअभयकुमार पांचसाधु चौपाई, संपूर्ण, वि. १८९०, आषाढ़ शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १२,
ले. स्थल. मेडतानगर, प्रले. मु. कस्तुरहंस (गुरु मु. प्रधानहंस); गुपि. मु. प्रधानहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५X१४, १३-१५X३६-३८).
५ साधु चौपाई - अभयकुमारसंबंधे, मु. कान्हजी, मा.गु., पद्य वि. १७५९, आदि जगगुरु प्रणमु वीरजिन, अंति कानजी संघ उदय सूखकार, ढाल १३.
६२२०५. (+) हंसराजवच्छराज व रत्नचूड चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २७-१६ (१ से १३,२३,२५ से २६) = ११, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २८.५X१२, २०५९-६२).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
बच्छराजहंसराज चतुष्पदी, असाइत नायक, मा.गु., पद्य, वि. १४१७, आदि (-); अंति: (१) देवलोकि बेहु संचरड़, (२) भइ आसाइत अफला फलइ, खंड-४, गाथा- ४२०, ( पू. वि. खंड-१ गाथा ४४ से है.)
२. पे नाम, रत्नचूड चौपाई, पृ. २२अ-२७आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. रत्नसिंहसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १५०९, आदि: सरसति देवी पाय नमी, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३० अपूर्ण
तक, गाथा ८१ अपूर्ण से १२४ अपूर्ण तक व गाथा २२३ अपूर्ण से २७१ तक है.)
६२२०६. (+) स्तवन चोवीशी, संपूर्ण, वि. १८७५, कार्तिक कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र. वि. संशोधित. जैवे. (२७४१३, १०x३३). स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवालहो; अंति: तुं जीवजीवन आधारो रे, स्तवन- २४ गाथा- १२१. ग्रं. २५०.
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६२२०७ (१) देवकीजीना छ पुत्रनो रास, संपूर्ण वि. १८९०, वैशाख शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. श्राव. नानजी उकरडा दोसी; अन्य. श्राव. हीरा वृद्ध कुंवरजी सोलाणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. वि.सं. १८९५ में प्रत पठनार्थ देने का उल्लेख मिलता है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५X१३, १६x४०).
و
देवकी ६ पुत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमजिणंद समोसर्व अंतिः ते लहसे भवजल पार रे, डाल- १९, गाथा- ३०७. ६२२०८. (+) स्तवन चौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२७X१३, ७X१८-२३).
स्तवनचौवीसी, मु. हर्षचंद, मा.गु., पद्य, आदि उठत प्रभात नाम जीनजी अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अनंतजिन तक लिखा है.)
६२२०९ (+) पंद्रहतिथि अष्टमीतिथि व मौनएकादशी स्तुति, संपूर्ण वि. १८९४, मार्गशीर्ष शुक्ल ८, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुलपे, ३,
प्रले. पं. उमेदविजय पट. श्राव. सिरदारमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैवे. (२८.५४१३, ११४२८).
१. पे. नाम. १५ तिथि स्तुति संग्रह, पृ. १अ - ७आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक मिथ्यात असंयम; अंति: ज्ञानविमल० लबधि लहंत, स्तुति - १६, गाथा- ६४. २. पे नाम. अष्टमीस्तुति, पृ. ७आ- ८अ संपूर्ण.
अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल आठ करें जस आगल, अंति: नय० कोडि कल्याण जी, गाथा- ४.
३. पे नाम, एकादशी स्तवन, पृ. ८अ १९आ, संपूर्ण
मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरि समोसर्य, अंति: कांति० मंगल अति घणो, ढाल ३, गाथा २५.
६२२१० (+) महावीर विज्ञप्तिरूप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१५, चैत्र शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले. स्थल. पाहलणपूर, प्रले. गोविंददास खुशालदास साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे., (२७१३, १२४३०).
"
महावीरजिन स्तवन- स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदिः प्रणमी श्रीगुरुना पय अंतिः जस० सिर वहइस्य जी, ढाल ६, गाथा- १४८. ६२२११ (५) सुक्तिमाला, संपूर्ण, वि. १८६७, वैशाख शुक्ल, ११, शनिवार, मध्यम, पृ. ११ ले स्थल पलासूबानगर,
प्र. ग. रूपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीशांतिजिन प्रसादात्, टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित, जै, (२७४१३.५, १५X३४).
सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु. सं. पद्म, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृत्यवल्लीवृंद, अंति: केसरविमलेन विबुधेन, वर्ग-४, लोक-१७६.
६२२१२. ज्ञानपंचमी देववंदन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३ - १ (५) = १२, जैदे., (२७.५X१३, १०X३४).
ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: प्रथम बाजठ उपरि तथा अंतिः विजयलक्ष्मी शुभ हेज, पूजा-५, (पू. वि. श्रुतज्ञान स्तवन अपूर्ण है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ ६२२१३. (+) कषाय विपाकफल व प्रतिमाशतक, संपूर्ण, वि. १९२०, भाद्रपद कृष्ण, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, प्रले.
माधवजी लहिया; पठ. श्राव. अंबालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित.,दे., (२६४१३, ११४३४-३८). १.पे. नाम. कषाय विपाकफल दृष्टांत, पृ. १अ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक ,प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. प्रतिमाशतक, पृ. १आ-१०आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदि: ऐंद्रश्रेणि नता; अंति: व्यक्तयुक्तिः, श्लोक-१०४. ६२२१५. (+) वीसविहरमान व सुमतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(२५.५४१२.५, ८x२६-३०). १.पे. नाम. अढीदीप वीसविहरमान स्तवन, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तवन, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: वंदु मन सुध विहरमाण; अंति: नेहधर
ध्रमसी नमै, ढाल-३, गाथा-२६. २. पे. नाम. चौदहगुणठाणा विचार स्तवन, पृ. ५अ-१०अ, संपूर्ण.
सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सुमतिजिणंद सुमति;
____ अंति: कहे एम मुनि धरमसी, ढाल-६, गाथा-३४. ६२२१६. शेव्रुजयउद्धार रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२७.५४१२.५, १०४४०).
शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: (-), ग्रं. १७०,
(पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कलश मात्र नहीं लिखा है.) ६२२१७. आनंदघन चौवीसी व नेमनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, प्रले. वजेराम दला व्यास;
पठ. श्राव. भायचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२९x१३.५, १३४४३). १.पे. नाम. आनंदघन चोवीसी, पृ. १अ-१०अ, संपूर्ण. स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिणेसर प्रीतम; अंति: ज्ञान० सुखनो सदा रे,
स्तवन-२४. २. पे. नाम. नेमनाथजी स्तवन, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: निरख्यो नेमि जिणंदने; अंति: पद्म० वृक्ष नी जोड, गाथा-७. ६२२१८. (+-#) मछोदर रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१३, १४४३७). मत्स्योदर रास, पंडित. ललितसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन चोवीसमाइ नमी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१० अपूर्ण
तक है.) ६२२१९. (+) अनुयोगद्वारसूत्र का हिस्सा सामायिक १२ भेद गाथा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २,
अन्य. सा. अजाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१३, ११४३७). १. पे. नाम. अनुयोगद्वारसूत्र का हिस्सा सामायिक १२ भेद गाथा सह बालावबोध, पृ. १अ-१०आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति
इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा सामायिक १२भेद गाथा, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प+ग., आदि: उरग १ गिरि २ जलण ३;
अंति: पवण१२ समायतोसमेणो, गाथा-१. अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा सामायिक १२भेद गाथा का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (१)अत्र अनुजोगद्वार,
(२)पहिली उपमाइं साधु; अंति: दुक्कडमे दिउ. २. पे. नाम. अनुयोगद्वारसूत्र का हिस्सा सामायिक १२ भेद गाथा, पृ. १०आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक
से अधिक बार जुडी हुई है.
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३७४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
अनुयोगद्वारसूत्र - हिस्सा सामायिक १२भेद गाथा, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा. पग, आदि उरग १ गिरि २ जलण ३, अंतिः पवण१२ समायतोसमेणो, गाथा - १.
६२२२०. (+) स्तवन चोवीसी, संपूर्ण, वि. १९१२, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७X१३.५, १२x२५-३१).
२४ जिन स्तवन, मु. नेत, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभदेव राजा लही अलग; अंति: भव भवमो सुख दायन रे, गीत-२४. ६२२२१. पाशाकेवली शुकनावली, संपूर्ण वि. १९१२ आषाद अधिकमास कृष्ण, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, दे. (२७.५X१२.५, १२X४५).
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पाशाकेवली - भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः ॐ नमो भगवति, अंति: एह पीछे फेर पुछीजै. ६२२२२. कानडकठीयारा चउपड़, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैवे. (२६.५४१३, १२४३५).
"
"
कान्हडकठियारा रास- शीयलविशे, मु. मानसागर, मा.गु., पद्म, वि. १७४६, आदि: पार्श्वनाथ परणमु मुद अंतिः
मानसागर ० दिन वधते रंग, ढाल - ९.
६२२२४. (+) भवनद्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५X१२.५, २२X४३-४७). भवनद्वार विचार, मा.गु, गद्य, आदि: सात नारकी ना गोत्र, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पांच अनुत्तर विमान वर्णन तक लिखा है.)
६२२२५ (+) धुलीभद्रनी सिअलनी बेल, संपूर्ण, वि. १९०३ आषाढ़ शुक्ल, २. गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल, गोधावीनगर, प्रले. पं. जतनकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीमाहावीर वर्द्धमानस्वामी प्रसादात्., संशोधित. वे., (२७४१३.५, १५X३२). स्थूलभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: सवल सुहंकर पासजिन अंतिः वीरविजय० कमला वरसे रे, ढाल - १८.
६२२२६. ईलाचीकुमार रास, अपूर्ण, वि. १९०६, वैशाख शुक्ल, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १० - १ (१) = ९, अन्य. पं. विनयविजय पं. मुनिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. ले. लो. (६१५) जाद्रिसं पुस्तकं दृष्टा, वे. (२६४१३, १५X३०-३४).
इलाचीकुमार चौपाई -भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि.
१७१९, आदि: (-); अंति: ज्ञानसागर० अजूआले
छे, डाल- १६, गाथा - १८७, ग्रं. २९९ (पू. वि. डाल- २ से है.)
६२२२७. (+) खंडाजोयण, संपूर्ण, वि. १९३५, चैत्र शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल. अमदावाद, प्रले. सीवशंकर गौडब्राह्मण; अन्य. सा. दीवालीबाई स्वामी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रशस्ति के अंतर्गत प्रतिलेखक ने प्रत लिखवाने वाले परिवार की उन्नति संबंधी कुछ गाथाएँ लिखी है., संशोधित. कुल ग्रं. ३४०, प्र.ले. श्लो. (६१६) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, दे., (२६.५X१२.५, १५X३५-४०).
1
लघुसंग्रहणी - खंडाजोयण बोल * संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीप एक लाख, अंतिः हजारने नेऊ नदीउ थई. ६२२२८. श्रीपालरास चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ९, दे. (२६४१३, १२०४४).
"
श्रीपाल रास, मु. तत्त्वकुमार मुनि, मा.गु., पद्य, आदि आदिपुरुष आदीसरू आदि, अंतिः तत्त्व० चरित उदार, ढाल ५. ६२२२९. पुण्यप्रकाश व औपदेशिक पद, संपूर्ण, बि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, प्रले. श्राव. भाइचंद के सरिचंद बोहरा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८x१३.५, १२४३०).
१. पे. नाम. पुण्यप्रकाश स्तवन, पृ. १अ ७आ, संपूर्ण.
उपा. विनयविजय, मा.गु, पद्म, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा, अंतिः विनय० पुण्यप्रकाश ए. ढाल ८,
गाथा - १०२.
२. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. ७आ, संपूर्ण,
मु. चिदानंद, मा.गु, पद्य, आदि ज्ञान विना कोउ मुगति: अंतिः चिदानंद० धीर पावें, गाथा ५.
६२२३० (४) सीमंधरस्वामी विनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१५, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. पालणपुर, प्र. वि. श्रीपलवियापार्श्वजिन प्रशादात् अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२७X१३, १२X३०-३५ ).
सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामि श्रीमंमंदरा अंति: जसविजय बुध जयकरो, ढाल ११, गाथा - १२५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
६२२३१. २४ तीर्थंकरों के नाम, माता, पिता आदि विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ८, अन्य. सा. रूपवाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७X१३.५, १३X३६).
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२४ तीर्थंकरों के नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-).
६२२३२. (+) कल्पसूत्र का व्याख्यान व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५४१३, १३४३८).
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर, अंति: (-), (पू. वि. पुष्पवती नगर के अर्जुन नामक ब्राह्मण की कथा अपूर्ण तक है.)
६२२३३. (+) रत्नाकरपच्चीसी सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९४२, वैशाख शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. धानेरानगर, प्र.वि. अंतिम पत्र बाद में लिखकर जोड़ा गया है., संशोधित. दे. (२७४१३, १६४४४-४६).
,
"
रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य वि. १४वी आदिः श्रेयः श्रियां मंगल, अंतिः श्रेयस्कर प्रार्थये श्लोक-२५.
रत्नाकरपच्चीसी टीका. ग. कनककुशल, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमदर्हत अंतिः वृत्तिरियं कनककुशलेन ग्रं. ३००, ६२२३४. (+) चौवीस दडंक सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे., (२७४१३, ४X३४-३६).
दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीसजिणे तस्स, अंति: गयसारेण० अप्पहिया,
गाथा ४५.
दंडक प्रकरण - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: चउवीस तिर्थंकर, अंति: हितकारणी पोताने.
६२२३५. (+) औपदेशिक व सुभाषित कवित्तसंग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक
"
लकीरें-संशोधित., दे., ( २६.५X१२, ९X३१).
१. पे. नाम औपदेशिक सवैया, पृ. १अ ६अ, संपूर्ण.
आ. दयासूरि, पुहिं., पद्य, आदि: अमृत छांडि करे विख; अंतिः सूरिदया० बोध करत मुणी, गाथा- ३९.
२. पे. नाम. सुभाषित दोहा संग्रह, पृ. ६अ-८आ, संपूर्ण, पे. वि. स्वतंत्र दोहाओं व गाथाओं का संकलन है.
सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१८.
६२२३६. (+) कर्म प्रकृति बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे.,
(२६.५X१२.५, २६-२८X३२-५५).
८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरण कर्मभेद ५; अंति: बंध उदय सत्ता उप ६२२३७. (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८-२ (३ से ४) ६, कुल पे ९ प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२७४१३,
३.
थे, नाम. इरियावहीमिछादुक्कडसंख्या स्तवन, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण. पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
३७५
१२-१४X३२-३४).
१. पे. नाम. मौनएकादशी स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदिः समवसरण बैठा भगवंत, अंतिः समयसुंदर कहो घाडी, गाधा-१३.
२. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ-२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
पार्श्वजिन बृहत्स्तवन- गोडीजीदशमीतिथि, मु. समबरंग, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर जगतिलीए, अंति: (-), ( पू. वि. गाथा २२ अपूर्ण तक है.)
इरियावही मिच्छामिदुक्कडं संख्या स्तवन, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु, पद्य, आदि: (-); अंति: इम संथव्यो भावइ करी, ढाल- ४, गाथा- १५, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से है.)
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४. पे नाम. कुंथुनाथजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण
कुंथुजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: कुंथुजिन मनडुं किमहि; अंति: आनंद० करि जाणूं हो,
गाथा - ९.
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३७६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५.पे. नाम. शत्रुजयगिरि स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जात्रा निनाणु करिय; अंति: पद्म कहें भवतरिई, गाथा-७. ६. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथजीरो अंगीरो स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. वसता मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन पारकर देश में; अंति: वसता० प्रभु
अवधारजो, गाथा-८. ७. पे. नाम. प्रभुदर्शन स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण.
प्रभु स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु दर्शन सुख संपद; अंति: (-), गाथा-२. ८. पे. नाम. वीसस्थानकतप विधि स्तवन, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप स्तवन, मु. वखतचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: वीशस्थानक तप सेवीयै; अंति: कहै वसतो मुनिवरो, ढाल-३,
गाथा-१९. ९. पे. नाम. दादाजिनदत्तसूरि स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
जिनदत्तसूरि स्तवन, मु. लाभउदय, रा., पद्य, आदि: सदगुरुजी थे सांभलौ श; अंति: लाभउदै सुख सिद्ध हो, गाथा-११. ६२२३८. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८५५, वाणशराष्टविश्वंभरे शुक्ल, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. ८, प्रले. मु. गुणचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२७.५४१३, ८४२१). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते,
श्लोक-४४. ६२२३९. छूटक बोलनो थोकडो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, दे., (२६.५४१२, १८x१४-१९).
बोल संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६२२४०. सत्तरभेदी पूजा, संपूर्ण, वि. १८५७, आषाढ़ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. मु. रतनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२.५, १४४३६-४०). १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६१८, आदि: भाव भले भगवंतनी पूजा; अंति: साधुकीरत० दान देवै,
ढाल-१७. ६२२४१. (+) हुंडीरा बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, १०x४०).
१८१ हुंडी बोल, आ. भीषणजी स्वामीजी, रा., गद्य, आदि: जे हलूकर्मी जीव होसी; अंति: सेवे वीचारो जोजो सही. ६२२४२. (+#) शेव्रुजयउद्धार स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५९, ज्येष्ठ शुक्ल, १, रविवार, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७.५४१३, १३४३३). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: नयसुंदर० दरसण
जय करो, ढाल-१२, गाथा-१२२. ६२२४३. (-) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ७, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२७४१४, १२४२७). १.पे. नाम. अनंतचोविस, पृ. १अ, संपूर्ण. अतीत चौबीसजिन नाम स्तवन, म. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी ध्याइइं; अंति: राज० करुं प्रणाम,
गाथा-९. २. पे. नाम. अनागतचोवीसी- चैत्यवंदन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-अनागत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पद्मनाभ पहेला जिणंद; अंति: नय
वंदे सुजगीस, गाथा-१६. ३. पे. नाम. वीस विहरमानजिन चैत्यवंदन, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर जिनवरा विचरे; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चौथे जिन तक स्तवन लिखा है.) ४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
३७७ नवपद स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: सकल कुशल कमलानो; अंति: दानविजय जयकार रे,
गाथा-२३. ५. पे. नाम. गणधरपद गुहंली, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
गणधरपद गहली, ग. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर पटोधर दिनमणी; अंति: रूपविजय० करे रंगे हो, गाथा-७. ६. पे. नाम. रोहिणीतप सज्झाय, पृ. ५-६आ, संपूर्ण. मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य नमो; अंति: अमृतपदनो० स्वामी हो, गाथा-११, (वि. प्रतिलेखक ने दो
गाथा को एक गाथा गिनकर लिखा है.) ७. पे. नाम. एकादशीतिथी स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व स्तवन, म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भविकजन छंडीये विषय; अंति: लबधी० यु भवनी सात
__ हो, गाथा-८. ६२२४४. (+) चैत्यवंदन व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. १९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१३,
१३४३०-३२). १. पे. नाम. एकादशीनमस्कार चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. एकादशीतिथि चैत्यवंदन, मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासन नायक वीरजी बहु; अंति: शासने सफल करो
अवतार, गाथा-९. २. पे. नाम. पंचमीतिथि चैत्यवंदन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु.क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: युगला धर्म निवारिओ; अंति: श्रीखिमाविजय जिणचंद,
गाथा-९. ३. पे. नाम. आठमनु चैत्यवंदन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पं. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चैत्र वदी आठम दिने; अंति: खीमाविजय० ग्यान अनंत,
गाथा-१४. ४. पे. नाम. जिनचैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-देहमानगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचसया धनुषमान प्रथम; अंति:
ज्ञानविमल कहे सीस, गाथा-३. ५. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-वर्णगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पद्मप्रभने वासपूज्य; अंति: कहें
वंदो ते निसदिस, गाथा-३. ६. पे. नाम. पांचमेरु गरण, पृ. ३अ, संपूर्ण.
५ मेरुमंदिर नमस्कार, सं., गद्य, आदि: श्रीसुरेंद्रनाथाय नम; अंति: द्युन्मालीनाथाय नमः. ७.पे. नाम. अध्यात्मगर्भित चैत्यवंदन, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण, प्रले. पं. केसरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. आध्यात्मिक पद, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अलख अगोचर अकलरूप; अंति: मानवि० नाठा सघला दुख,
गाथा-१५. ८. पे. नाम. अष्टप्रतिहार्य श्लोक, पृ. ४अ, संपूर्ण.
८ प्रातिहार्य श्लोक, सं., पद्य, आदि: अशोकवृक्ष सुरपुष्प; अंति: जिनेश्वराणाम्, श्लोक-१. ९. पे. नाम. जिनेंद्र स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: जिनेंद्र देवता तत्र; अंति: (-), श्लोक-१. १०. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण.
सिद्धपद स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: जगतभूषण विगत दूषण; अंति: ध्यानथी सिद्धदर्शनं, गाथा-१३. ११. पे. नाम. सिद्धचक्रचैत्यवंदन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति:
सिद्धिचक्कं नमामि, गाथा-१०. १२. पे. नाम. पंचमी चैत्यवंदन, प्र. ५आ-६अ, संपूर्ण..
ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिगडे बेठा वीर; अंति: परे रंगविजय लहो सार, गाथा-९. १३. पे. नाम. अष्टमीतिथी चैत्यवंदन, प्र. ६अ-६आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि नमस्कार, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आठम तप आराधीए भाव; अंति:
शुभ फल पामे तेह, गाथा-१२. १४. पे. नाम. नवपद चैत्यवंदन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. शांतिविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: पहेले दिन अरिहंतनु; अंति: शिष्य कहे कर करजोड,
गाथा-६. १५. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. ७अ, संपूर्ण.
मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र महामंत्र; अंति: भणी वंदुबे करजोड, गाथा-३. १६. पे. नाम. साधारण चैत्यवंदन, पृ. ७अ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-भवसंख्यागर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रथम तीर्थंकर तणा;
अंति: नय प्रणमे धरी नेह, गाथा-३. १७. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. ७अ, संपूर्ण.
उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: श्रीसीमंधर वीतराग; अंति: विनय धरे तुम ध्यान, गाथा-३. १८. पे. नाम. ऋषभजिन चैत्यवंदन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
आदिजिन नमस्कार, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाभि नरेसर कुलकमल; अंति: प्रीत० आवागमन निवार,
गाथा-३. १९. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. वल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसोरठदेशे सोहता; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा ७ तक है.) ६२२४५. स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. १३, प्र.वि. प्रायः स्वतंत्र कृतियों वाले पत्रों को एकत्र
किया गया है., दे., (२६४१३, ११४२९). १. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है.
मु. खुशालमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: अभिनंदन अरिहंतजी रे; अंति: खुसीयाल० साहिबाजीरे, गाथा-५. २. पे. नाम. अजितजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण.
अजितजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: विषयने विसारी विजयान; अंति: उदयरत्न० परमानंदोरे, गाथा-३. ३. पे. नाम. शत्रुजयगिरिस्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. मलूकचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२५, आदि: श्रीशत्रुजगिरीनी; अंति: मलूकचंद गिरी गवे रे,
गाथा-५. ४. पे. नाम. माहावीर स्वामी स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, वि. १९०६, चैत्र शुक्ल, ८, प्रले. श्राव. भाईचंद वोहरा,
प्र.ले.पु. सामान्य.
महावीरजिन स्तवन, मु. खुशालमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: जिन माहरा रे श्री; अंति: खुस्याल० सुख लहे रे, गाथा-५. ५. पे. नाम. शांतिजिन गीत, पृ. ३अ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: चित चाहत सेवा चरण; अंति: हरख० मिटावो मरण की, गाथा-४. ६. पे. नाम. आदिनाथ स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. अक्षयचंदसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी आदेसर अलवेसर; अंति: अखचंद० वाधस्युरे,
गाथा-५. ७. पे. नाम. अजितनाथ स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
३७९ अजितजिन स्तवन, मु. खुशालमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअजित जिनेसर देव; अंति: खुसालमुनि०गुण गाय रे,
गाथा-५. ८.पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है.
मु. खुशालमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: अभिनंदन अरिहंतजी रे; अंति: खुसीयाल० साहिबाजी रे, गाथा-५. ९. पे. नाम. ऋषभदेव गीत, पृ. ४आ, संपूर्ण.
आदिजिन पद, म. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: उगत प्रभात नाम जिनजी; अंति: हरखचंद० संपत वढाइए, गाथा-४. १०. पे. नाम. आदीश्वरजिन स्तवन-वीकानेर मंडन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन-बीकानेर मंडण, मु. मलूकचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८१०, आदि: विकानेर नयर मंडणौ; अंति:
मलूक० वंदो दिन दिने, गाथा-८. ११. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-भावनगर, मु. मलूकचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२५, आदि: श्रीभावनगर प्रभु आदि; अंति: मलूकचंद
गुण गावे रे, गाथा-५. १२. पे. नाम. अवंतिसुकुमाल सज्झाय, पृ. ७अ, संपूर्ण.
मु. जगचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वंदो अयवंती सुकुमालन; अंति: जगचंद० त्रिकाल रे, गाथा-५. १३. पे. नाम. गुरु चेला प्रहेलिका दुहा, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
प्रहेलिका संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा १३ अपूर्ण तक है.) ६२२४६. (+) नवतत्त्व चौपाई, संपूर्ण, वि. १८७९, कार्तिक शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. देवकृष्ण हरदेव त्रेवाडी; अन्य. श्राव.खीमजी दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १६x४४). नवतत्त्व चौपाई, मु. वरसिंह ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: श्रीअरिहंतना पायि; अंति: वरसिंह० चित मे धरी,
गाथा-१६६. ६२२४७. जीव विचार, संपूर्ण, वि. १८८१, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. कृष्णगढ, जैदे., (२७४१३, १२४३४).
जीवविचार प्रकरण-यंत्र, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवरा २ भेद एक मूक्त; अंति: सादि अनंत स्थिति छे. ६२२४८. चौवीस दंडक द्वार विचार, संपूर्ण, वि. १८८३, आश्विन कृष्ण, १, शुक्रवार, जीर्ण, पृ. ६, ले.स्थल. व्यावर, प्रले. सा. चनणा (गुरु सा. वदुजी महासती); गुपि.सा. वदुजी महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२, २१४३६).
२४ दंडक बोल संग्रह , मा.गु., गद्य, आदि: शरीर उगाहणा संघयण; अंति: प्राणी नथी जोग नही. ६२२४९. (+) ज्ञाताधर्मकथा बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१५, पौष शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. बालुचर, प्रले. मु. बालचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१३,१२४३५-३९).
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-प्रश्नशतक, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ग्याताधर्म कथा साढा; अंति: होय ते कर्मने उदै, प्रश्न-१००. ६२२५०. थंभणपार्श्वनाथ वृद्धि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२७४१३, १०४२८).
पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमुरे पास; अंति: जाणी कुशललाभ
पयंपए, ढाल-५, गाथा-१८. ६२२५१. (#) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२.५,
१०४३४). १.पे. नाम. पांच आरा २९ बोल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
५ आरा २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरस्वामिजी; अंति: हिंदुवारो वल घसी. २.पे. नाम. चक्रवर्तीऋद्धि वर्णन, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण.
चक्रवर्तिऋद्धि विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: षट्खंड सर्व १२; अंति: मुनियो वदंति. ३. पे. नाम. महावीरजिन आयुष्य विचार, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: चैत्र सुदि १३ जन्म्य; अंति: वर्षरो आयुद्दयि हुवो. ४. पे. नाम. तीर्थंकर गोत्रकर्म २० बोल, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
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३८०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची तीर्थंकर गोत्रबंध के २० बोल, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतजीरा गुण ग्राम; अंति: तीर्थंकर गोत्र बांधे. ५.पे. नाम. पांच बोल, पृ. ४अ, संपूर्ण.
५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: १ बोलै तो अहंकारी; अंति: धणी धर्म नहीं पामै. ६.पे. नाम. मनुष्यभव पुण्यप्रभावदर्शक १७ बोल, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: १ बोलै मनुष जनमारो; अंति: पराक्रम करै सो पुन्य. ७. पे. नाम. चोवीस तीर्थंकर का आंतरा, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण..
२४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: पंचास लाख कोडि; अंति: पहला ऋषभनाथजी कै छै. ६२२५२. (+) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२,१३४३२).
गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: विजयभद्र० विस्तरे
ए, ढाल-६, गाथा-६६. ६२२५३. संवेगपक्षरी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२७७१३, १२४३०-३५).
संवेगी चौढालियो, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुद्ध संवेगी किरिया; अंति: मति नवि काची रे,
ढाल-४, गाथा-७३. ६२२५४. ढुंढकमत कुमतिउत्थापन चर्चा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२७.५४१२.५, १७X४७).
ढुंढकमत कुमतिउत्थापन चर्चा, पुहि.,प्रा., गद्य, आदि: ढुंढियो कहे हुं; अंति: पन्नत्तीए वुच्छं. ६२२५५. (+) कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-४(१ से ३,७)=५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५४१२.५, १३४४०-४२).
कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश हैं.) ६२२५६. सोजतरी गजल व गुरुगुण गहुंली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२७४१२.५, १४४४०). १. पे. नाम. सोजत गजल, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण.
रा., पद्य, आदि: हेलो मारियो जी; अंति: लीखे तो रीझ मोजाल हे, गाथा-७२. २. पे. नाम. गुरुगुण गहुँली, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
रा., पद्य, आदि: म्हारा पगल्याने पाय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१० अपूर्ण तक लिखा
६२२५७. (+) अक्षयतृतीया वदीपालिका व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१३,
१३४३५). १. पे. नाम. अक्षयतृतीया व्याख्यान, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण, वि. १९१३, आश्विन शुक्ल, २, बुधवार.
अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, प्रा.,रा.,सं., गद्य, आदि: उसभस्सय पारणए इक्खु; अंति: मंगलिक माला संपजै. २. पे. नाम. दीपालिका व्याख्यान, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दीपावलीपर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पापायां पुरिचारुषष्ट; अंति: (-), (पू.वि. देवानंदा ब्राह्मणी की
गर्भावस्था के वर्णन तक है.) ६२२५८. (+) पाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-४(१ से ४)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१३, १२४२५-२८). श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्वदारासंतोष व्रत
अपूर्ण से वीर्याचार अतिचार अपूर्ण तक है.) ६२२५९. (+) सडसठ बोल समकित सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०९, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. नागोरनगर, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१३, १३४३५). सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुकृतवल्लि कदंबिनी; अंति:
वाचक जस इम बोले रे, ढाल-१२, गाथा-७०. ६२२६०. मौनएकादशी गणणुंव एकादशी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, दे., (२८x१३, १३४३६).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
३८१ १. पे. नाम. मौनएकादशी गणj, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: करि प्रणमुंजिन;
अंति: जसविजय जय सिरि लही, ढाल-१२, गाथा-६२. २.पे. नाम. एकादशीतिथि सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज मारे एकादशी रे; अंति: उदय लीला लहिस्यै, गाथा-७. ६२२६१. (+) चोवीस दंडक चोवीस द्वार विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १५४१३-४२).
२४ दंडक २४ द्वार विचार, मा.गु., को., आदि: नरकगति१ भुवनपति११; अंति: मानिक असंख्यात गुणा. ६२२६२. अष्टप्रकारीपूजा दुहा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अ., (२७.५४१३, १२४३०).
८ प्रकारी पूजा-पिस्तालीसआगमगर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८१, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति:
(-), (पू.वि. छठी पूजा अपूर्ण तक है.) ६२२६३. नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६.५४१२.५, १५४३४-३७).
नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-९
अपूर्ण तक है.) ६२२६४. स्तवन स्तुत्यादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ९, पठ. मु. उत्तमचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे.,
(२६४१२.५, १२४३३). १.पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, म. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिनेसर प्रणम; अंति:
तास सीस पभणे आणंद, गाथा-२८. २. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: सदापिनाकीय कृतप्रणाम; अंति: भुवना० संसिद्धये, श्लोक-२. ३. पे. नाम. पंचपरमेष्टि स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरूं; अंति: प्रभु सुरवर सीस
रसाल, गाथा-७. . ४. पे. नाम. श्रीवामोदर मेदनी, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, सं., पद्य, आदि: श्रीवामोदर मेदनी; अंति: जिनेंद्र वचनस्य, श्लोक-८. ५. पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण.
मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: करणी दुखहरणी छे एह, गाथा-२२. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-स्थंभन, पृ. ५आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति-स्तंभन, प्रा., पद्य, आदि: सिरिथंभणयट्ठिय पास; अंति: समुन्नइ निमित्तम, गाथा-२. ७. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण.
प्रा.,सं., पद्य, आदि: परसमयतिमिरतरणिं भव; अंति: मे मंगलं देवि सारं, गाथा-४. ८. पे. नाम. आगम स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: स्वस्ति सुरभिगंधा; अंति: प्राणभाजां श्रुतांगी, श्लोक-१. ९. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. ५आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: प्राप्ते वसंत समये; अंति: त्वरितं त्यजेयुः, श्लोक-१. ६२२६५. (+) कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७७१३, २३४४९).
कथा संग्रह**, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६२२६६. (+-) स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६९, कार्तिक कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २६, ले.स्थल. लाडपूरा,
प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ., अ., (२६४१२, २२४४२-५४).
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३८२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. आउखानी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: आउखो तुटसे सांधो को; अंति: मुझ निस्तार रे,
गाथा-१४. २.पे. नाम. नेमजी की जान, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. नवलराम, पुहि., पद्य, आदि: नेमजी की जान बनी; अंति: मौख का हवाज अधिकारी,
गाथा-१६. ३. पे. नाम. मेघरथराजा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९२९, आदि: धन धन मेघरथ राजा; अंति: तिलोक० तणो वुनमान जी, गाथा-१४. ४. पे. नाम. अइमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण.
मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९४४, आदि: अयवंता मुनिवर नाव; अंति: की दो हीरालाल हो, गाथा-१४. ५. पे. नाम. दयापालन स्वाध्याय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-दयापालने, म. हीरालाल, रा., पद्य, वि. १९४४, आदि: मारी दयामाता थाने; अंति: हीरालाल.
उपगार हो, गाथा-१३. ६. पे. नाम. शील लावणी, पृ. २आ, संपूर्ण.
औपदेशिक लावणी-शील विषे, पं. हंस, पुहि., पद्य, वि. १८५२, आदि: चतुर नर सील सदा धरणा; अंति: हंसा० चैत
सुद कहणा, गाथा-८. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद-निंदा त्याग, पृ. २आ, संपूर्ण.
कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: निंदक तुंमत मरजे रे; अंति: कबीर० नरक निसाणी, दोहा-५. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
मु. रामरतनशिष्य, पुहिं., पद्य, आदि: हिरदे बाणज लागो उरो; अंति: भाखो भरम अंधेरो रे, दोहा-४. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. ३अ, संपूर्ण.
मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: नरीदरं फणींदर; अंति: दीजो अविचल ठाम, गाथा-१०. १०. पे. नाम. नाकोडा पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आपण घर बेठा लील करो;
अंति: समएसुंदर कहे कर जोडी, गाथा-८. ११. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: सिद्धारथ राजा का; अंति: बरत्या जय जयकार, गाथा-७. १२. पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण.
आदिजिन पारणा स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: या रस सेलडी सुपनो; अंति: विनवे तरणतारण जहाज, गाथा-७. १३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण.
मु. रामरतनशिष्य, पुहि., पद्य, आदि: मनडो मोहोजी महावीर; अंति: मार हीवडामा खटकी जी, गाथा-४. १४. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण.
मु. आसकरण, पुहिं., पद्य, वि. १८३८, आदि: साधुजीने बनणा नित; अंति: आसकरण को दासरे, गाथा-१०. १५. पे. नाम. लखचोरासीनो स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: तुं तो लख चोरासी; अंति: लोकमा धरम अमोल रे,
गाथा-१३. १६. पे. नाम. कलियुग सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी है.
मु. रामचंद, रा., पद्य, आदि: हलाहल कलजुग मत जाणो; अंति: राम कहे० धरम करो भाई, गाथा-९. १७. पे. नाम. कलियुग सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी है.
मु. रामचंद, रा., पद्य, आदि: हलाहल कलजुग चल आयो; अंति: राम० धरम ध्यान कीजे, गाथा-१०.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
३८३ १८. पे. नाम. वृद्धावस्था वर्णन सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मु. रामरतनशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: बालपणे तो हंस खेल गम; अंति: रतनजी समता राचीरे, गाथा-४. १९. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मु. चौथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९५८, आदि: सेवो श्रीरष्टनेम से; अंति: चौथमल० पुरो नेम दयाल, गाथा-१३. २०. पे. नाम. कालीराणी स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. कालीसती सज्झाय, मु. नंदलाल शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: काली ये राणी सफल; अंति: सेती बरते जै जैकार,
गाथा-७. २१. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: आज रंग वरस मारा नेम; अंति: तीन लोक में भारी रे, गाथा-११. २२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-वृद्धावस्था, मु. तिलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: अखडे मनी जोबन के; अंति: तिलोक० सुख लीजे
जटके, गाथा-५. २३. पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, पं. सदासुख, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीरीषभ जिणंदा मोरी; अंति: सदासुख० गाही दीवे, गाथा-४. २४. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण.
मु. नंदलाल शिष्य, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसा जदुपति रे प्रणवा; अंति: नंदलाल० गायो तस सीस, गाथा-८. २५. पे. नाम. गजसुकुमाल स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन आया हो सोरठ; अंति: करजोडि रतन भणे ए.
गाथा-११. २६. पे. नाम. भगुपुरोहितनी चोक, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. कमलावतीसती सज्झाय, मु. चोथमल, मा.गु., पद्य, वि. १९६०, आदि: धन पुरुस जो संजम; अंति: चोथमल आया
विचरंता जी, गाथा-८. ६२२६७. (+-) सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २८-६(८,१२ से १३,२३ से २४,२७)=२२, कुल पे. ३३,
प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२४.५४१२.५, १४४३५). १. पे. नाम. पंचमआरानी सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पंचमआरा सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहै गोतम सूणो; अंति: समयसुंदर० रसालो रे,
गाथा-२१. २.पे. नाम. दसबोल सज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण.
१० बोल सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: स्यादवादमति श्रीजिन; अंति: श्रीसार० रतन बहुमोल, गाथा-२१. ३. पे. नाम. कुगुरुपच्चीसी, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी है.
मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु केरि परखा; अंति: रत्नविजय इम बोले जी, गाथा-२५. ४. पे. नाम. अंतरायनी सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. असज्झाय सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता आदे नमीइं; अंति: ऋषभ० वरस्यो सिद्धि,
गाथा-११. ५. पे. नाम. नवपद सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: सुरतरुने सुरमण थकी; अंति: लहैजी अखय अमर जिनचंद, गाथा-७. ६. पे. नाम. कुमति सज्झाय, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण.
मु. राममुनि, मा.गु., पद्य, आदि: अबके जोग मील्यो छे; अंति: राममुनि० काज सुधारो, गाथा-१४. ७. पे. नाम. मेतार्यमुनि सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मेतारजमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, पुहिं., पद्य, आदि: समदम गुणना आगरु जी; अंति: राजविजय० ए सज्झाय,
गाथा-१४. ८. पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
मु. कवियण, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: सुरनर परसंशा करे; अंति: कवियण सांतिकुमारो, गाथा-१६. ९.पे. नाम. होलिकापर्व सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: नवगाटी नवल वर पाया; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) १०. पे. नाम. गजसुकमाल सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सहीने पोहता शिवपुरी, गाथा-४१, (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण
से है.) ११. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. __ महावीरजिन स्तवन-तपवर्णन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कीयो छे मास पांच दिन; अंति: समयसुंदर
सुखकार, गाथा-१०. १२. पे. नाम. धन्ना सज्झाय, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. धन्नाअणगार सज्झाय, मु. ठाकुरसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी रे धन्ना; अंति: लही हे वीरजिणवर कही.
गाथा-२१. १३. पे. नाम. पांच पांडव सज्झाय, पृ. १०आ-११आ, संपूर्ण.
५पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तिनापुर नगर भलो; अंति: मुज आवागमण निवार रे, गाथा-२०. १४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-नारी, पृ. ११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
पुहिं., पद्य, आदि: मुरख कुंभावे नहिरे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) १५. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नयविमल० धन अवतार, गाथा-१५, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा है.) १६. पे. नाम. गर्भावास सज्झाय, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: तुने संसारी सुख किम; अंति: जिनदास०महामुश्किल जो, गाथा-९. १७. पे. नाम. चित्रब्रह्मराय सज्झाय, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण. चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चित्र कहे ब्रह्मराय; अंति: कवियण शिवपद लेसी हो,
गाथा-२०. १८. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १५अ-१६अ, संपूर्ण.
मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: राणी राजुल कर जोडी; अंति: कांतिगाय श्रीकार रे. गाथा-१६. १९. पे. नाम. नंदीषेणमुनि सज्झाय, पृ. १६अ-१७अ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरीनो वासी; अंति: तस हरखे नामुंशीश हो,
ढाल-३, गाथा-१६. २०. पे. नाम. कर्म सज्झाय, पृ. १७अ, संपूर्ण. कर्मविपाकफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: देव दानव तीर्थंकर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.) । २१. पे. नाम. देवानंदा सज्झाय, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण.
उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखो अति; अंति: गणधर ए तो मोरी अमां, गाथा-१२. २२. पे. नाम, धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सामीने वीनहु; अंति: धनाजी आज नही सुकाल, गाथा-१३. २३. पे. नाम. ५ महाव्रत सज्झाय, पृ. १८अ-२०अ, संपूर्ण.
मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरवैरे; अंति: कांति०भणै ते सुख लहे, ढाल-५.
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गावा
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
३८५ २४. पे. नाम. मोरलीनी सज्झाय, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरता गामोगाम नेमि; अंति: राजविजय रंग भणे,
गाथा-१४. २५. पे. नाम. कुगुरुपच्चीसी, पृ. २०आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी है. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रत्नविजय इम बोले जी, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र
अंतिम गाथा है.) २६. पे. नाम. आत्मोपदेश सज्झाय, पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तो प्रणमु सदगुरु; अंति: नित आनंदघन सुख थाय,
गाथा-११. २७. पे. नाम. १८ नातरा सज्झाय, पृ. २१अ-२२आ, संपूर्ण.
मु. हेतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पेहेलां ने समरूं पास; अंति: काई हेतविजय गुण गाय, ढाल-३, गाथा-३६. २८. पे. नाम. पृथ्वीचंद्र सज्झाय, पृ. २२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पृथ्वीचंद्रगुणसागर सज्झाय, पंडित. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक सुखकरु वंदी; अंति: (-),
(पू.वि. ढाल-१, गाथा-३ अपूर्ण तक है.) २९. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. २५अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: (-); अंति: धन धन जंबू स्वामीने, गाथा-१५, (पू.वि. गाथा-१४
अपूर्ण से है.) ३०. पे. नाम. कलियुग सज्झाय, पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण.
मु. रामचंद, रा., पद्य, आदि: हलाहल कलजुग चल आयो; अंति: कहे धर्मध्यान कीजे, गाथा-१०. ३१. पे. नाम. अवंतिसुकमाल सज्झाय, पृ. २५आ, संपूर्ण. अवंतिसुकुमाल सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: संयमथी सुख पामीये; अंति: जिनहरख० कठोर कुमरजी,
गाथा-९. ३२. पे. नाम. सुगुरुपच्चीसी, पृ. २५आ-२६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरू पिछाणो एणे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२ तक है.) ३३. पे. नाम. इलापुत्र सज्झाय, पृ. २८अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: करे समयसुंदर गुण गाय, गाथा-२७, (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण से
६२२६८. (+) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२.५, १६४३०).
श्रीपाल रास, मु. चेतनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि: देव धरम गुरु सेवके; अंति: चेतन० मंगलिक माला,
ढाल-९. ६२२७०. (#) संघयणी अर्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२.५, १५४३३-३७). बृहत्संग्रहणी-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: नमीने अरिहंतादिक; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., गाथा-६९ तक का बालावबोध लिखा है.) ६२२७१. (+) दृष्टांत संग्रह व अतिचार विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-९(१ से ९)=११, कुल पे. २,
प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४१२, १५४३१-३५). १.पे. नाम. दृष्टांत संग्रह, पृ. १०अ-१४अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: मिच्छामिदुक्कडं दिजे, (पू.वि. आठवें दृष्टांत अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. श्रावकना १२ व्रत अतिचार, पृ. १४अ-२०आ, पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
श्रावकव्रत १२४ अतिचार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जहगेहंपईदेहं विसोहीय, अंति: (-), (पू.वि. अंतिम वाक्य अंतिम भाग नहीं है.)
६२२७२. (१) वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४९ कार्तिक कृष्ण, १४. शुक्रवार, जीर्ण, पृ. ९, ले. स्थल, माडल प्रले. सांकलेश्वर महेश्वर व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. २२५, मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., ( २४.५X१३.५, १२X३३). महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व निर्वाणमहिमा, मु. गुणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसमण संघ तिलकोपम; अंतिः श्रीगुणहर्ष वधामण, ढाल १०, गाथा- १२५, ग्रं. २२५.
६२२७३ (+) नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १८९५, मध्यम, पृ. ९ प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४.५x१२.५ १२x२९).
"
नवपद खमासण विचार, पुहिं., सं., गद्य, आदि: तिहां प्रथम पदै, अंति: वासं यजामहे स्वाहा. ६२२७४. अठार पापसरणा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. जयनारायण, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४x१२.५,
१४x२६-२९).
१८ पापस्थानक सज्झाब, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८९१, आदि: महावीर वर्धमानजी, अंतिः दुक्कडमे दिनो हे, गाथा - ३८.
६२२७५. (+) स्तुति स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. १६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित. दे., (२४.५X१३, १३X२४-२७).
१. पे. नाम छत्रुजिन नाम, पृ. १अ २आ, संपूर्ण.
९६ जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभदेवजी दूजा अंतिः सास्वत जिननामानि (वि. वर्तमानजिन के लंछन दिए गए हैं.)
२. पे. नाम. सोलसती नाम, पृ. २आ, संपूर्ण.
१६ सती नाम, मा.गु., सं., पद्य, आदि: ब्राह्मीजी१ चंदनबाला; अंति: सुंदरीजी१६.
३. पे. नाम. मांगलिक श्लोक, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
मा.गु. सं., पद्य, आदिः ॐकारविंदु संयुक्तं अंतिः क्षेमकारा भवंतु, लोक-३.
४. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. ३अ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः श्वेतपद्मासना देवी, अंतिः सर्वविद्या लभति च श्लोक-३.
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५. पे. नाम. २४ जिन वर्ण दूहा, पृ. ३अ, संपूर्ण.
२४ जिन वर्ण दुहा, मा.गु, पद्य, आदि: दोय गोरा दोय सावला, अंतिः वंदीया चवीसे जीणचंद, गाथा-१.
"
६. पे नाम, जिनदर्शनपूजन फल, पृ. ३अ, संपूर्ण,
मा.गु., पद्य, आदि: मुख दीठां सुख उपजै, अंति: लधौ धरमे भेव, गाथा - ३.
७. पे. नाम गौतमस्वामी स्तुति, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण.
मा.गु. सं., पद्य, आदि अंगुठे अमृत वसे अंतिः कुशल लच्छीलील मिलंत, गाथा-२.
८. पे. नाम. सरस्वती स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., पद्य, आदि सरस्वती महाभागे वरदे अंति दे विद्या परमेश्वरी, श्लोक-१. ९. पे. नाम. जिनदत्तसूरि स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण.
सं., पद्म, आदि: दासानुदासा इव सर्व अंतिः प्रधानो जिणदत्तसूरि श्लोक-१.
१०. पे. नाम. जिनदत्तसूरि सवैया, पृ. ३आ, संपूर्ण.
मु. धर्मसी, पुहिं, पद्य, आदि बावन्न वीर किये अपणे अंतिः जिणदत्त की एक दुहाई, सवैया १. ११. पे. नाम जिनकुशलसूरि गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: कुशल अंग उछरंग कुशल, अंतिः नवनिधान लक्ष्मी मीले, गाथा-२.
१२. पे नाम, मांगलिक लोक, पृ. ३आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदिः उपसर्गाः क्षयं यांति; अंतिः पूज्यमाने जिनेश्वरे, श्लोक - १.
१३. पे. नाम गौतमस्वामी गीत, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण
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मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी नित प्रणमीय, अंतिः होज्यो वंदना वारंवार, गाथा - ५.
१४. पे. नाम. गौतमस्वामी गीत, पृ. ४अ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्म, वि. १७वी, आदि; गौतम नाम जपो परभाते; अंतिः समयसुंदर० गुण गाते, गाथा-३. १५. पे. नाम. दादाजी स्तुति, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण.
जिनकुशलसूरि सवैया, मु. धर्मसीह, पुहिं., पद्य, आदि राजे धूभ ठौर ठीर ऐसी अंतिः नाम युं कहायो है, गाथा-४. १६. पे. नाम. जिनपंजर स्तोत्र, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण.
आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह, अंतिः श्रीकमलप्रभाख्यः श्लोक-२५. ६२२०६. (+) आवक आलोचना, पद्मावती आराधना व सोंस लेवानी विधि, संपूर्ण वि. १९४१ श्रावण शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र. मु. कुशलनिधान, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., ( २४.५X१३, ११x२६).
१. पे. नाम. श्रावक आराधना, पृ. १अ २अ संपूर्ण
श्रावक आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदिसह; अंति: इयसम्मत्तं मग हियं .. २. पे. नाम पद्मावती आराधना, पृ. २अ-५आ, संपूर्ण
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्म, वि. १७वी, आदि; हिव राणी पदमावती अंतिः पापथी छुटे तत्काल, दाल-३, गाथा - ३६.
३. पे. नाम. सोंस लेवानी विधि, पृ. ५आ, संपूर्ण.
श्रावक-श्राविका सम्यक्त्वग्रहण विधि, प्रा. सं., गद्य, आदि: धारणा प्रमाण अरिहंत, अंति: आगारेणं बोसरई. ६२२७७. अनुभव प्रकाश, संपूर्ण, वि. १८३२, पौष शुक्ल १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५१, ले, स्थल, उजीण, प्र. ले. श्ो. (१) यादृशं
पुस्तकं दृष्ट्वा, जैवे. (२५.५x१३.५, ११४३४-३७).
आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य, अंतिः परमानंद नंदितः, श्लोक ८०.
२. पे. नाम. चंद्रप्रभस्वामी स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण.
चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि:
"
अनुभव प्रकाश, मु. दीप, मा.गु., गद्य, आदि: गुन अनंतमय परम पद, अंतिः दीप० आप पदकों लहै. ६२२०८. (+) स्तोत्र स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९१२, चैत्र कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ४७-५ (१ से ५) =४२, कुल पे. २९,
प्रले. मु. कस्तुरहंस (गुरु मु. प्रधानहंस); गुपि. मु. प्रधानहंस, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५X१३, १३X२५).
१. पे. नाम ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. ६अ ८अ संपूर्ण.
चंद्रप्रभ प्रभाधीश, अंतिः दाविनि में चिरप्रदा, श्लोक ५.
३. पे. नाम. सर्वकार्यसिद्धि मंत्र, पृ. ८आ, संपूर्ण.
मा.गु. सं., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं वर्ण: अंतिः कुरु कुरु फट् स्वाहा.
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श्लोक- ७१.
५. पे. नाम. आर्यवसुधारा, पृ. १२आ-१९अ, संपूर्ण.
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य अंतिः भाषितमभ्यनंदन्निति,
३८७
४. पे. नाम. बटुकभैरव स्तोत्र, पृ. ९अ - १२अ, संपूर्ण.
रूद्रयामल-बटुकभैरव स्तोत्र, हिस्सा, उमामहेश्वर संवाद, सं., पद्य, आदि: मेरुपृष्ठे समासीनं अंतिः तदोपद्रवनाशनं,
६. पे नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १९अ, संपूर्ण.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह *, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदिः ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं अंतिः छांटो चलु भरने दीजे.
""
७. पे. नाम चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, प्र. १९आ-२० आ, संपूर्ण,
सं., पद्य, आदि: श्रीचक्रे चक्रभीमे; अंतिः चक्रदेव्याः स्तवंति, श्लोक - ९.
८. पे. नाम. चामुंडा अष्टक, पृ. २०आ-२१आ, संपूर्ण.
बालत्रिपुरा स्तोत्र, सं., पद्य, आदि देवि त्वं आदिशक्तिस, अंति: लभते वंछितामर्थं लाभ, लोक- ९. ९. पे. नाम महावीरजिन स्तोत्र, पृ. २९आ, संपूर्ण.
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३८८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: जयसिरि जिणवर तिहुअण; अंति: नियपय सुअदाणउ अइरा, गाथा-५. १०. पे. नाम. अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, पृ. २१आ-२७आ, संपूर्ण.
आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी-१३वी, आदि: अर्हन्नामापि कर्ण; अंति: पठनाजपात,
प्रकाश-१०, श्लोक-११२. ११. पे. नाम. जिनपंजर स्तोत्र, पृ. २८अ-२८आ, संपूर्ण.
आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ, अंति: श्रीकमलप्रभाख्यः, श्लोक-२५. १२. पे. नाम. मंत्रगर्भित चतुर्विंशतिजिन जैन कवच, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण.
जिनरक्षा स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: सर्वातिशयसंपूर्णान्; अंति: जैनेन्द्र० तथालिखत्, श्लोक-१७. १३. पे. नाम. जिनरक्षा स्तोत्र, पृ. २९आ-३०अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: श्रीजिनभक्ति भो नत्व; अंति: सर्वदा जनैः, श्लोक-२१. १४. पे. नाम. युगादिदेव महिम्न स्तुति, पृ. ३०आ-३४अ, संपूर्ण. आदिजिन महिम्न स्तोत्र, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: महिम्नः पारं ते परम; अंति: ब्रह्मैक तेजोमयी,
श्लोक-३८. १५. पे. नाम. जिनअपराधक्षमा स्तोत्र, पृ. ३४अ-३५आ, संपूर्ण.
जिनअपराधक्षमापन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐकार आद अविगत अतीत; अंति: धारितं ध्यान चिंता, श्लोक-१६. १६. पे. नाम. शीतलादेवी स्तोत्र, पृ. ३५आ-३६आ, संपूर्ण.
शीतलाष्टक, सं., पद्य, आदि: वंदेहं शीतला देवी; अंति: श्रद्धान्विताय च, श्लोक-१५. १७. पे. नाम. गणेशमहाविघ्नहर्ता स्तोत्र, पृ. ३६आ-३७अ, संपूर्ण. संकष्टहरण गणेशाष्टक, सं., पद्य, आदि: ॐ ॐ ॐकाररुपं महिमति; अंति: विलसं सद्गणि नामरूपं, श्लोक-४,
(वि. प्रतिलेखक ने दो गाथाओं को एक गाथा गिना है.) १८. पे. नाम. भवानी अष्टक, पृ. ३७अ-३७आ, संपूर्ण..
शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: न माता न तातो न बंधु; अंति: त्राहिमा भो नमस्ते, श्लोक-९. १९. पे. नाम. भैरावाष्टक, पृ. ३७आ-३८आ, संपूर्ण. भैरवाष्टक, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: क्षेत्रपालं नमामि, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने गाथा-४
अपूर्ण से लिखना प्रारंभ किया है.) २०. पे. नाम. गौतमगणधर स्तोत्र, पृ. ३८आ-३९अ, संपूर्ण. ___गौतमाष्टक, उपा. उदयविजय, सं., पद्य, आदि: ॐ जय जय श्रियानिधि; अंति: शिष्योदयसंपदे सविभुः, श्लोक-७. २१. पे. नाम. सहस्रफणि पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ३९अ-४१अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र-सहस्रफणी, उपा. भक्तिलाभ, सं., पद्य, आदि: ध्यात्वा सद्गुरु पाद; अंति: नंदोदयः स्फूर्जतात्,
___ श्लोक-१६. २२. पे. नाम. महालक्ष्मी स्तोत्र, प्र. ४१अ-४२अ, संपूर्ण. सिद्धलक्ष्मी स्तोत्र, महादेव, सं., पद्य, आदिः (१)ॐ अस्य श्रीसिद्धलक, (२)ॐकार लक्ष्मीस्वरूपे; अंति: दरिद्रो धनवान्
भवेत, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) २३. पे. नाम. महालक्ष्मी स्तोत्र, पृ. ४२अ-४२आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी है.
महालक्ष्मी स्तव, सं., पद्य, आदि: आद्यः प्रणवस्ततो; अंति: सर्वदाभूत मिच्छति, श्लोक-१२. २४. पे. नाम, महालक्ष्मी मंत्र, प्र. ४२आ-४३अ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं अंति: बयालीस पद्मावती नामे, (वि. विधि
सहित.) २५. पे. नाम. नोकारवाली जाप, पृ. ४३अ, संपूर्ण.
जैन मंत्र संग्रह-सामान्य , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं; अंति: योतस्स पूरते मनकामना.
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३८९
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ २६. पे. नाम. पद्मादेवी स्तोत्र, पृ. ४३अ-४३आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी स्तोत्र, पंडित. श्रीधराचार्य, सं., पद्य, आदि: जयंती भद्र मातंगी; अंति: सुखार्थी लभते सुखम्, श्लोक-१०,
(वि. बीजमंत्र सहित.) २७. पे. नाम. महालक्ष्मी स्तोत्र-दशाक्षरीमंत्र युक्त, पृ. ४३आ-४४अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक
बार जुड़ी है.
महालक्ष्मी स्तव, सं., पद्य, आदि: आदो तारततः श्रीव; अंति: सर्वसिद्धि मिच्छिता, श्लोक-१०, (वि. बीजमंत्र सहित.) २८. पे. नाम. जीरावलापार्श्वजिन स्तोत्र, प्र. ४४अ-४४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला महामंत्रमय, आ. मेरुतंगसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: ॐ नमो देवदेवाय नित्य; अंति:
मेरुतुंग० करं परं, श्लोक-१४. २९. पे. नाम. लघुस्तवराज, पृ. ४५अ-४७आ, संपूर्ण.
त्रिपुराभवानी स्तोत्र, आ. लघ्वाचार्य, सं., पद्य, आदि: ऐंद्रस्यैव शरासनस्य; अंति: भवंति चिरकालम, श्लोक-२६. ६२२७९. छत्तीसबोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३५, आश्विन कृष्ण, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३९, ले.स्थल. सायपुर, प्रले. श्राव. साकर; पठ. श्राव. धनाजी छगनाजी; अन्य. सा. चंपा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८.५४१३.५, १७४२८).
३६ बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: सरीगोतमसामी हाथ जोर; अंति: साधुने अनाचार लागे. ६२२८०. माणिकचंद चंपावती रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६, दे., (२६४१३.५, १५-१७४३२-३५).
माणिकचंदचंपावती रास, मु. भूधर, मा.गु., पद्य, आदि: आदिकरण अरिहंत जिन; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-३४, गाथा४ तक लिखा है.) ६२२८१. (+) सिद्धचक्रमहिमा उपर श्रीपालमहाराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८, ले.स्थल. वंगदेस, प्रले. ऋ. किसनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., ., (२६४१३.५, १५४३२-३६). श्रीपाल रास-बृहद्, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुण; अंति: जिनहरष० लुणिज्यो रे,
ढाल-४९,गाथा-८६१. ६२२८२. जंबूस्वामी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९७०, श्रेष्ठ, पृ. ३९, प्रले. मु. भरत मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, १३४४३).
जंबूस्वामी चरित्र, श्राव. आणंद जेठमल, मा.गु., पद्य, वि. १९२०, आदि: शासनपती वृधमाननो; अति: आनंद
जेठमल० कल्याण ए, ढाल-३५. ६२२८३. केसीबचनाप्त परदेशी प्रबोध, संपूर्ण, वि. १८८८, श्रावण कृष्ण, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१, ले.स्थल. वर्द्धनपुर,
प्रले. मु. अमृतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२.५, १२४४०). __केशीगणधर प्रदेशीराजा चौपाई, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमी श्रीअरिहंत; अंति: ज्ञानचंद० सुद्ध
आधार, ढाल-४१, गाथा-६३१. ६२२८४. समयसार नाटक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३४, दे., (२६४१३, १३४३७).
समयसार नाटक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२७९ अपूर्ण तक लिखा है.) ६२२८५. कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४४-१२(१ से १२)=३२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४१२, १३४३३-४१). कल्पसूत्र-बालावबोध *, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ब्राह्मण की कथा अपूर्ण से कुंभराजा की
कथा अपूर्ण तक है.) ६२२८६. (+#) पुण्यपाल चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४१३, १५-१८४२९-४०). पुण्यपाल चौपाई, मु. चेतनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुण; अंति: चेतन कियो चौमास,
खंड-४, (वि. ढाल ७.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६२२८७. (+#) पुन्यपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१३, १५-१७४३०-३२). पुण्यपाल चौपाई, मु. चेतनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुण; अंति: चेतन कियो चौमास,
खंड-४, (वि. ढाल ७) ६२२८९. योगदृष्टी सज्झाय का बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, दे., (२६.५४१४, १४४३०-३६).
८ योगदृष्टिगुण सज्झाय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: ऐंद्रश्रेणिनतं वीर; अंति: संसार
भावथी मुकाज्यो, (वि. अंतिम वाक्य का किंचित् अंश नहीं है.) ६२२९०. योग विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, दे., (२७४१३, १६४३५-४५).
योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीआवश्यक सुअक्खंधो; अंति: उपस्थापना आलोचना, (वि. अंत में
विधियों की सूची दी गई है.) ६२२९१. परदेशीराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९३०, आश्विन कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. २७, ले.स्थल. अहिपुर, दे., (२६.५४१३.५, १४४२६).
प्रदेशीराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: संधि प्रदेशी रायनी; अंति: ज्यो पामो भव पार रे, ढाल-२३. ६२२९२. (+) रात्रिभोजन रास, अपूर्ण, वि. १९०९, आषाढ़ कृष्ण, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २८-१(१)=२७, प्रले.पं. खुबचंद;
पठ. मु. लक्ष्मीविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीचिंतामणिपार्श्व प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (११२५) पढण गुणण कुं पुस्तिका, दे., (२८x१३, १२४२७-३१).
अमरसेन जयसेननृप चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: (-); अंति: जिनहरख० जयधर्मथी ए,
ढाल-२५, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) ६२२९३. (+) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९५९, भाद्रपद शुक्ल, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २४, ले.स्थल. वीकानेर, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१३.५, १-७४४५). आवश्यकसूत्र-श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: इच्छाकारेण संदिसह;
अंति: संपत्ताणं णमो जिणाणं. आवश्यकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकार जो तुमारी; अंति: नित्य करवि श्रावकनें. आवश्यकसूत्र-श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-स्थानकवासी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अनुयोगद्वार मध्ये;
अंति: नित्य करवि श्रावकने. ६२२९४. (+) साधु सामाचारी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित.. दे.. (२६.५४१३,१३४३७). साधु समाचारी, पुहि., गद्य, आदिः (१)व्याख्यानं कल्पसूत्र, (२)तिणकाल चोथा आरा; अंति: संसार समुद्र सै तरै,
समुद्देश-२८, (वि. वाचना-१५.) ६२२९५. प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक-बीजक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, प्रले.मु. अबीरचंद जती, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२.५, १२४३८). प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक-बीजक, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गद्य, वि. १८५३, आदि: पहिलै बोलै तीर्थंकर; अंति: शास्त्रमै
कह्यो छे, प्रश्न-१५१. ६२२९६. (+) स्तवन चौवीसी, संपूर्ण, वि. १९५२, चैत्र कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. २२, ले.स्थल. सीलदर, प्रले.पं. हिमतविजय; पठ.मु. विवेक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१३, ११-१३४३०-३४).
स्तवनचौवीसी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ए तो प्रथम तीर्थंकर; अंति: मोहन० तु विसवावीस रे, स्तवन-२४. ६२२९७. (+) शांतिकपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १९६२, माघ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. २३, प्रले. मु. विमलचंद्र ऋषि; पठ. मु. मोतीलाल
ऋषि (गुरु मु. विमलचंद्र ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका पत्रांक २२ 'अ' पर लिखी है., संशोधित., दे., (२६.५४१४.५, ११४३४).
शांतिकपूजा विधि, पुहि., गद्य, आदि: प्रथम शुभ दिन शुभ; अंति: गुरुजी के ज्ञान सारु.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
३९१ ६२२९८. चोमासीदेववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १९०५, फाल्गुन कृष्ण, २, मध्यम, पृ. २२, ले.स्थल. पाली, पठ. सा. जीतश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२.५, १२४२७).
चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अलवसरू विनीत; अंति: पास सामलनु चेई रे. ६२२९९. (+) दंडकना २९ द्वार, अपूर्ण, वि. १९११, भाद्रपद कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. २३-१(१)=२२, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, १०४२४-२८).
२४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जीव अनंत गुणा अधिक, (पू.वि. दंडक नाम अपूर्ण से है.) ६२३००. (+) चोमासी देववंदन, संपूर्ण, वि. १९४८, चैत्र शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. २३, प्रले. मु. तिलोकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, ९४३०-३२).
चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकेवलज्ञान कमला; अंति: पास सामलनु चेई रे. ६२३०१. (-#) दशवैकालिकसूत्र, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २३-१(२)=२२, ले.स्थल. साइपुरा, प्रले. सा. मादारजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३, १७४२६-३२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि,
अध्ययन-१०, (पू.वि. बीच का पाठांश नहीं हैं.) ६२३०२. (#) कर्मविपाक नव्य ग्रंथ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७७१३, ९-१४४६-२७). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, रा., गद्य, आदि: श्रीवीरजिन प्रते; अंति: (-), (पू.वि. असाता
वेदनीकर्म बंध वर्णन तक हैं.) ६२३०३. (+) गजसिंघ चरित्र, संपूर्ण, वि. १९७९, ज्येष्ठ शुक्ल, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले.स्थल. साहपुर, प्रले.सा. गंगादीपकुंवर (गुरु सा. छगना); गुपि.सा. छगना (गुरु सा. दलुजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १६४४३). गजसिंघ चरित्र, मु. आसकरण ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५२, आदि: अरीहत अतीसेवंद गणा; अंति: आसकरसुणतां
लीलविलास, ढाल-४६. ६२३०४. (4) पंचव्याख्यान वार्त्तिक सह कथा, संपूर्ण, वि. १७७८, आश्विन कृष्ण, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. २०, ले.स्थल. अर्गलपुर, प्रले. मु. देवीदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८.५४१२.५, २१४६१).
पंचाख्यान वार्तिक, सं., पद्य, आदि: कुश्रितं कुप्रनष्टं; अंति: न कदापि निश्चिता, श्लोक-४४.
पंचाख्यान वार्तिक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: दक्षिणदेश तिहां महिल; अंति: कुरु ते सुसोभित. ६२३०५. दानधर्मानुमोदनाधिकारे चित्रसेनपदमावती चउपइ, संपूर्ण, वि. १८२०, आश्विन कृष्ण, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले.स्थल. पालग्राम, प्र.वि. प्रतिलेखक का नाम अवाच्य है., जैदे., (२७.५४११.५, १८४३७). चित्रसेनपद्मावती चौपाई-दानधर्मानुमोदनाधिकारे, उपा. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: श्रीरिसहेसर
पयकमल; अंति: व्याल्यो सोभाग सवायौ, ढाल-३१, गाथा-४९५. ६२३०६. (+) अंजनासुंदरी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, २०४३५).
अंजनासुंदरीरास, मा.गु., पद्य, आदि: पहलै कडावैजी पाय; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा १६२ अपूर्ण तक है.) ६२३०७. (+#) स्तुति व स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३०). १. पे. नाम. आदिजिनवृद्धि स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ बृहत्स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी विनवू जी; अंति: समयसुंदर गुण भणै,
गाथा-३०. २. पे. नाम. चतुर्विशतिजिन स्तुति, पृ. २आ-१८आ, संपूर्ण. स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: रिषभ जिनेसर प्रीतम; अंति: आनंदघन प्रभु जागरे,
स्तवन-२४.
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३९२
६२३०८. ढुंढकमतपरीक्षा प्रश्नोत्तर, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १६+१ (१६) १७, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. वे.,
"
(२५.५x१२.५, ७-१०X२३-२८).
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
कुंडकमतपरीक्षा प्रश्नोत्तर, मु. दीपविजय, रा., गद्य वि. १८७६, आदि: श्रीतपागच्छाधिराज, अंति: (-), (पू. वि. "कोटी कोटी जन्मनां पाप जाइ पाठ तक हैं.)
(#)
६२३०९. नवतत्व प्रकरण का बालवबोध, संपूर्ण, वि. १८९९, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १५, पठ. मु. गुणचंद, मु. शिवचंद (गुरु मु. धर्मचंद, बृहत्विजयगच्छ); गुपि. मु. धर्मचंद (गुरु आ . जिनचंदसूरि, बृहत्विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४१३, ११-१४४२५-२८).
יי
नवतत्त्व प्रकरण- बालावबोध, मा.गु, गद्य, आदि जीवतत्त्व १ अजीवतत्त; अंतिः सिद्धा अनेक सिद्धा. ६२३१०. (#) सीयलवेल, संपूर्ण, वि. १९३५, मार्गशीर्ष शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १५, पठ. मु. जेठमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५X१२.५, ११४३०).
"
स्थूलभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: सयल सुहंकर पासजी, अंति: विमला कलसा वरस्ये रे, ढाल - १८.
६२३११. (#) रिषभ चरित्र, संपूर्ण, वि. १८६८, कार्तिक कृष्ण, ६, सोमवार, मध्यम, पृ. १६, ले. स्थल. साहेपुरा, प्रले. मु. जगराम (गुरु मु. कनीराम); गुपि.मु. कनीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५X१२.५, २४४४४). आदिजिन चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु, पद्य, वि. १८४०, आदि: अरिहंत सिद्धनै आयरिय; अंतिः पून्य पीपाड
चोमास, ढाल-४७.
६२३१२. मार्गणादित्रिभंगी संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १९-४ (१ से ४) = १५, कुल पे ३, प्र. वि. बीच-बीच में यंत्र दिये हैं, जैवे. (२७१२.५, १६४३४).
१. पे. नाम मार्गणाअव त्रिभंगी, पृ. ५अ १०आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं है.
आस्रवत्रिभंगी, मु. श्रुतमुनि, प्रा., पद्य वि. १४वी, आदि: (-); अंति: बालिंदो चिरं जयऊ, अध्याय-३, गाथा- ६१, ( पू. वि. गाथा २८ अपूर्ण से हैं . )
२. पे. नाम बंधत्रिभंगी, पू. १० आ-१७आ, संपूर्ण.
गोम्मटसार-बंधत्रिभंगी, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्म, आदि: णमिकण णेमिचंदं असहाय, अंतिः बंधस्सं तो अणतोय, त्रिभंगी - ३, गाथा-४४.
३. पे नाम, उदयउदीरणा त्रिभंगी, पृ. १७आ-१९आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
गोम्मटसार- उदयत्रिभंगी, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: पंचणवदोणिअट्ठावीसं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १४ अपूर्ण तक हैं.)
६२३१३. (+४) कववन्ना चौपाई, संपूर्ण वि. १८४८ फाल्गुन शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १५, ले. स्थल वालोतरा, प्रले. मु. क्षेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१३, १६x४८-५५).
कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा, अंति: धरम करो मन उलसै छे, ढाल- ३१, गाथा-६४८.
६२३१४. (#) धर्मपरीक्षा वार्त्तिक, संपूर्ण, वि. १८७४, चैत्र शुक्ल, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. १५, ले. स्थल. रत्नपुरी, प्रले. मु. खूबचंद ऋषि (गुरु मु. रूपचंद ऋषि), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर फीके पड गये हैं, प्र. ले. श्लो. (१९१८) भमपृष्टि कटीग्रीवा, (१९२४) या पुस्तकं दृष्टा, जैये. (२६.५x१३.५, १४४२८-३२)
"
धर्मपरीक्षा वार्त्तिक, मा.गु., गद्य, आदि: कोइक भलो शिष्य विनइ; अंतिः ए वातमां फेर नही.
६२३१५. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे १७, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दे. (२६४१३,
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१०X३१-३४).
१. पे नाम, रिषभजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण
आदिजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि ऋषभ जिणेसर त्रिभुवन, अंति: लालचंद० मझारो रे,
गाथा - ११.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
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२. पे. नाम गौडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि वालेसर मुज विनति, अंतिः इम जपे जिनराज हो,
गाथा-७.
३९३
३. पे. नाम. सीमंधरविहरमानजिनराज वृद्धस्तवन, पृ. ३अ ४आ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु, पद्य, आदि: सफल संसार अवतार, अंतिः भगतिलाभै० मन तणी,
गाथा - १८.
४. पे नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मु. कनककीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: तुं मेरे मन में, अंति: साहिब तीन भुवन मै, गाथा- ३.
५. पे. नाम. रिषभजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थं स्तवन, आ, जिनभक्तिसूरि, पुहिं, पद्य, आदि: सुण सुण सेनुंजगिर अंतिः श्रीजिनभक्तिसूरिंदा, गाथा १०. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन लघुस्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी बलवटमंडन, मु. वस्ता, मा.गु, पद्य, आदिः सांभलि थलवट स्वामि अंतिः वस्तानी सुखशाता रे, गाथा- ७.
७. पे. नाम, नंदीश्वर स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
नंदीश्वरद्वीप स्तवन, मु. जैनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: नंदीसर बावन जिनालय, अंति: जैनचंद्र गुण गावो रे, गाथा- १५. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७अ, संपूर्ण.
पा. सदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा पासजिनराय सूरत, अंति: सदानंद० सीधा सगला काज, गाथा ५.
९. पे. नाम. पंचमी वृद्ध स्तवन, पृ. ७अ-९अ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः प्रणमुं श्रीगुरुपाय अंति: भगति भाव प्रशंसीयो, डाल-३, गाथा २५.
१०. पे. नाम. पंचमी लघु स्तवन, पृ. ९अ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन- लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचमी तप तुमे करो; अंति: ज्ञाननो पंचमो भेद रे, गाथा ५.
११. पे. नाम. आंतरिक पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ९अ - १० अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- अंतरीक्षजी, ग. रंगकलश वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: अंतरीक प्रभु पासजी, अंतिः रंगे० थवा दुख दंद हो, गाथा - १३.
१२. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १०अ १० आ. संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- जिनप्रतिमास्थापनगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि श्रीजिनप्रतिमा हो; अंति समय प्रतिमाजीसुं नेह गाथा - ७.
१३. पे नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १० आ. ११आ, संपूर्ण.
मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८२७, आदि: भविजन वंदो रे शीतल, अंति: गुण पभणे रे कल्याण्ण, गाथा- ११. १४. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १९ आ-१२अ, संपूर्ण,
जिनबिंबपूजा स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि भविका श्रीजिनबिंब, अंतिः श्रीजिनचंद्र सहाई रे,
गाथा - ११.
१५. पे. नाम. संखेसरा पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १२अ- १२आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अंतरजामी सुणि अलवेसर, अंति: मुजने भवसायरथी तारी, गाथा ५.
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१६. पे नाम. अजितशांतिजिन स्तवन, पृ. १२ आ-१४अ, संपूर्ण.
अजितशांति स्तवलघु - खरतरगच्छीय, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि उल्लासिक्क मनिख; अंति: दुरियमखिलं तह, गाथा १७.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१७. पे. नाम. गौडीपार्श्वनाथ जिन स्तवन, पृ. १४-१५अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धमल विरा, अंति
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जिनचंद० फली सहु आस, गाथा- ९.
६२३१६. तीरथमाला स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३४, माघ कृष्ण, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले. स्थल. सूरतबंदर, प्रले. पं. हिमतविजय; लिख श्रावि, गुलाबचाई, पठ श्रावि. रत्नकोरबाई, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीशांतीनाथाय प्रसादात्. पं. हरषविजयजी की प्रति से प्रतिलिपि की गई है., दे., (२५. ५X१४, ११x२५-३२).
शत्रुंजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु, पद्य, वि. १८४०, आदि: जगजीवन जालिम जादवा, अंतिः नित नमो गिरिराया रे, ढाल १० (वि. अंत में सरस्वती मंत्र लिखा है.)
६२३१७. (#) जैनतत्त्वज्ञान संबंधी बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९५२, माघ शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. १९-४ (१,११ से १३) + १ (५) = १६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. ले. स्थल, सादड़ी, प्रले. मु. चनणमल (गुरु मु. सोभागमल); गुपि मु. सोभागमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे. (२६४१२.५, २३४४८-५३).
"
,
बोल संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-) (वि. जैन तत्वज्ञान.)
"
६२३१८. (+) ढाल, स्तवन, सज्झाय व गहुली संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. ११, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., दे., (२७X१३.५, १५-१८३८-४२).
१. पे. नाम, श्रीगोडीजीमहाराज श्रीमुंबाईबंदरमध्ये ओछव माहात्म्य ढालीया, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन गौडीजी मंदिर-महिमा माहात्म्य वर्णन ढालीया-मुंबइ, मु. माणीकविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९४२, आदिः प्रणमी पार्श्व पदकजे, अंति: माणीक०लहेरां नीत लहे, ढाल ४.
२. पे. नाम. गोडीजी पार्श्वजिन स्तवन- मुंबई, पृ. ३अ, संपूर्ण, वि. १९४२, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, सोमवार, ले. स्थल. मुंबाईबंदर, प्रले. पं. दोलतरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य.
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी मुंबई, पं. दोलतरुचि, मा.गु., पद्य, वि. १९४२, आदि: अहो भवीकाजी गोडीजी; अंति: दोलत नीज गुण फरसी, गाथा ८.
३. पे. नाम. अस्थिर लक्ष्मी लोक संग्रह, पृ. ३अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद- असारसंसार, मा.गु. सं., पद्य, आदि; चला लक्ष्मी चला अंतिः पापाय पर पीडण, श्लोक-३. ४. पे. नाम. हरियाली गुहली सह टवार्थ, पृ. ३आ-४अ संपूर्ण
औपदेशिक हरियाली, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: केहेज्यो पंडित ते; अंति: जस० सुख लहस्यें,
गाथा - १४.
औपदेशिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कहेज्यो पंडीतजनो ते; अंति: (-), (वि. अंतिम दो गाथा का नहीं लिखा है.)
५. पे. नाम. वयरस्वामीगुणगर्भित फूलडारूप हरीयाली - सज्झाय तथा गुहली सह टबार्थ, पृ. ४अ ५अ, संपूर्ण.
वज्रस्वामी गहुंली, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सखि रे में कौतुक; अंति: शुभवीरने वालडा रे, गाथा-८. वज्रस्वामी गहुली - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवयरस्वामी छ मास, अंतिः वीर० अरघ वलभ वचन छड़ ६. पे. नाम. पोषदशमी कथानक चरित्र, पृ. ५अ-८अ, संपूर्ण, ले. स्थल. मुंबाईबंदर.
पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वनाथ, अंतिः धिकार सत्यं ब्रूवेमि.
७. पे. नाम. मौनएकादशी वार्त्तिक, पृ. ८अ - ११अ, संपूर्ण, वि. १९४२, पौष शुक्ल, १, बुधवार, प्रले. पं. दोलतरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य.
मौन एकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदिः श्रीवीरजीणं नत्वा, अंतिः ऋद्धि वृद्धि स्यात्.
८. पे. नाम, पंचसमवाय गाथा सह बालावबोध, पृ. ११अ १३आ, संपूर्ण, वि. १९४२, पौष शुक्र. ३. शुक्रवार, ले. स्थल. मुंबाईबंदर.
५ समवाय गाथा, प्रा., पद्य, आदि: कालो १ सहावर नियई३; अंति: एगते होइ मिच्छत्तं, गाथा- १.
५ समवाय गाथा - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः काल शब्द उत्सर्पणी, अंतिः सर्व समवाय पणे मानणा.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ ९.पे. नाम. औपदेशिक दुहा, पृ. १३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक दोहा, रा., पद्य, आदि: बंदर थाने मद पीया; अंति: क्युं न करे उतपात, गाथा-१. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३आ, संपूर्ण.
मु. पद्म, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन तू तो धर विवेकी; अंति: पद पद्म विसारत हे, गाथा-३. ११. पे. नाम. थंभणपुर पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १३आ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमुरे पास; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ३
गाथा १२ अपूर्ण तक है.) ६२३१९. मयणरेहा चोपाई, संपूर्ण, वि. १९१९, चैत्र कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १२, दे., (२८.५४१३,११४२९).
मदनरेखासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर पाये नमी; अंति: अपजस बांधनै प्राणी, गाथा-२००. ६२३२०. (#) चंदनमलयागिरीरास, संपूर्ण, वि. १८५३, माघ कृष्ण, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. १४, ले.स्थल. कोटा, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८.५४१३.५, १६४३९-४५). चंदनमलयागिरीरास, पं. क्षेमहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७०४, आदि: चउवीसे जिन पयनमी वलि; अंति: ते पामे सुख
अनंतोरे, ढाल-१३. ६२३२१. (+#) श्रावक पाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९२५, श्रावण कृष्ण, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १२, प्रले. चांदमल;
पठ. श्राव. माणिकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-टिप्पणयुक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३.५, १०४२७). श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमिय चरणं; अंति: मिच्छामि
दुक्कडम्. ६२३२२. श्रावक अतिचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२७.५४१२.५, ८x१८-२४).
श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणमिदंसणंमि०; अंति: (-), (पू.वि. दशवें
स्थूल अपूर्ण तक है.) ६२३२३. (+) खंडा जोयन, संपूर्ण, वि. १९३२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. अमदावाद, प्रले. आसाराम
व्यास; अन्य. श्राव. सालिचंद जेचंद; सा. जडाव, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ३२५, दे., (२६.५४१२.५, १२४३६-३९). लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः (१)अथ श्रीजंबूदिपनो, (२)हवे जंबूद्विप एक लाख;
अंति: हजारने नेऊ नदीउ थई. ६२३२४. (+#) स्तवन व पद्मावती आराधना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष
पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४१३, १३४३४). १.पे. नाम. पुन्यप्रकास स्तवन, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण, प्रले. ग. प्रतापविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुन्य
प्रकाश ए, ढाल-८, गाथा-१०२. २.पे. नाम. पदमावती आराधना, पृ. ५आ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पदमावती जीव; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा २६ अपूर्ण तक है.) ६२३२५. (#) स्तवन चोवीसी-अतीत, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२.५, १३४२७-३०). स्तवनवीसी-अतीत, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जिणंदा तारा नामथी; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., स्तवन
२० तक है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६२३२६. (#) तेर काठिया कथा, संपूर्ण, वि. १९८०, भाद्रपद कृष्ण, १०, बुधवार, मध्यम, पृ. १३, ले.स्थल. वालेसर,
पठ. पं. धिगडमल (गुरु मु. ऋद्धिमल, खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा); गुपि.मु. ऋद्धिमल (खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा); राज्ये आ. जिनलब्धिसूरि (गुरु आ. जिनहर्षसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३, १३४३३). १३ काठिया स्वरुप, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, वि. १८वी, आदि: (१)नमः श्रीवर्द्धमानाय, (२)ऐंद्रश्रेणिनतं
नत्वा; अंति: एक तोहल काठियौ. ६२३२७. (+#) तप विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८.५४१२.५, १४४४२).
तपग्रहणविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सचित्त सरव वसत सचित्; अंति: बेसी नमुत्थुणं कहीजै. ६२३२९. (#) पुन्यपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. १९७१, ?, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १४-१(६)+१(९)=१४, ले.स्थल. फलोधि,
लिख. हस्तकंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन वर्ष हेतु मात्र "इकतरसाल" लिखा है, प्रत अनुमानित बीसवीं का होने से वर्ष में १९७१ प्रविष्ट किया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३, २०४५६). पुण्यपाल चरित्र-दानाधिकारे, मु. रामदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९०९, आदि: संतिनाथ साता करन अरी; अंति:
राम० अवगुण गुण ग्रहै, ढाल-३५, (पूर्ण, पू.वि. ढाल १४ गाथा ९ से ढाल १७ गाथा ४ तक नहीं है.) ६२३३०. (#) प्रतिमा हुंडी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. कलकत्ताबंदर, प्रले. मु. ज्ञानचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१३, १३४२९).
प्रश्नोत्तर संग्रह, उपा. विनयविजय, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा श्रुतज्ञानमनंत; अंति: विनय० श्रीसुरतबंदरे. ६२३३१. (+#) पाक्षिक अतिचार व विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, ११४३१). १.पे. नाम. पाक्षिक अतीचार, पृ. १अ-१०अ, संपूर्ण.
श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दसणम्मि अ; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २. पे. नाम. पक्खी संवत्सरी चौमासी प्रतिक्रण संक्षिप्त विधि, पृ. १०अ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: १२ लोगसनो काउसग; अंति: वत्सरीनो
शब्द कहेवो. ३. पे. नाम. पौषधविधि संग्रह, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. ___ संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: करेमीभतो पोसहं आहार; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ४. पे. नाम. संथारापौरसी गाथा, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण.
संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: इअसमत्तं मए गहिअं, गाथा-१४. ५. पे. नाम. विधि संग्रह, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण.. गुरुवंदन विधि-प्रात:कालीन, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. मुहपत्ती तथा स्थापनाचार्य
पडिलेहण विधि.) ६२३३२. गम्मा थोकडो-चौवीस दंडक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, दे., (२७.५४१४, ८-१३४४४-४७).
२४ दंडक बोल संग्रह ,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६२३३३. (#) स्तवन चौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१४, १६४३८).
स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: ऋषभ जिणिंदसु प्रीतडी; अंति: पूर्णानंद समाजोजी,
स्तवन-२४. ६२३३४. (+#) ईलाकुमार चउपई, संपूर्ण, वि. १७६१, वैशाख शुक्ल, ६, शनिवार, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. जालोरगढ, प्रले. ग. हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १६४५३). इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: सकल सिद्धिदाइ सदा; अंति:
भावतणा गुण एहवा जाणी, ढाल-१६, गाथा-१८७, ग्रं. २९९.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
३९७ ६२३३५. (+#) गुणठाणाद्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, अन्य. श्रावि. पारवतीबाई; श्राव. गीरधर पानाचंद शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७७१३, १४४३७).
१४ गुणठाणा २१ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: नाम १ लक्खण गुण २; अंति: अनुयोग सूत्रथी जाणवौ. ६२३३६. (#) महानिशीथसूत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३.५, १४४३३-३७).
___ महानिशीथसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: भवसयसहस्स० अर्हत; अंति: अविधि करे तो पिण फलै. ६२३३७. (#) ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन, संपूर्ण, वि. १९१४, पौष कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ११, अन्य. मु. गणेशसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३, ११४३५-४०). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (१)प्रथम बाजठ उपरि तथा,
(२)श्रीसौभाग्यपंचमी; अंति: विजयलक्ष्मी शुभ हेज, पूजा-५.. ६२३३८. विक्रमराजा चोबोली चौपाई, अपूर्ण, वि. १७९३, कार्तिक शुक्ल, २, रविवार, मध्यम, पृ. १२-१(१)=११, ले.स्थल. वसेडा, प्रले. पं. रतन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, १७४३६).
विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अंति: अभयसोमे०
___ काजे कही, ढाल-१७, (पूर्ण, पू.वि. ढाल २ से है.) ६२३३९. (+#) चातुर्मासिक व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२.५, १५४३६). चातुर्मासिक व्याख्यान, रा.,सं., पद्य, आदि: सामायिकावश्यकपौषधानि; अति: (-), (पू.वि. तेतलीपुत्र मुहता का दृष्टांत
अपूर्ण तक है.) ६२३४०. (+#) चिदानंद बहोत्तरी व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ९, प्रले. मु. फतेसागर (गुरु मु. वीरसागर);
गुपि. मु. वीरसागर (गुरु पं. प्रतापसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१३,१५-१८४३६-४८). १.पे. नाम. चिदानंदबहुत्तेरीना स्तवन, पृ. १अ-९अ, संपूर्ण.
चिदानंदबहोत्तरी, मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: पिया परघर मत जावो; अंति: चिदा०होजो वारंवार रे, अध्याय-६५. २.पे. नाम. भैरवरागनोद्रपद पद, पृ. ९अ, संपूर्ण.
भैरवराग का द्रुपद पद, तानसेन, पुहि., पद्य, आदि: शुगड बन छायो रे; अंति: प्रथम राग भैरव गायो, का.-२. ३. पे. नाम. शत ज्वर छंद, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.
ज्वर छंद, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ नमो आणंदपुर अजयपाल; अंति: सारमंत्र जपीये सदा, गाथा-१७. ४. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. ९आ, संपूर्ण.
मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: आज सखी मे मिलन जावरी; अंति: विनय० निज शुध भावरी, गाथा-४. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ९आ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक पद-जिन होरी, म. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: अंति: विनय० पद अचल थान से, गाथा-३. ६. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ९आ, संपूर्ण.
आ. कीर्तिसागरसूरिजी, पुहिं., पद्य, आदि: आओ आओ वालमजी एक बेर; अंति: अवनासी भइ जोरी रे, गाथा-५. ७. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ९आ, संपूर्ण.
मु. रंगविजय, पुहिं., पद्य, आदि: नही जान देओ भला साहि; अंति: रंग की उमंगमे रमु, गाथा-५. ८. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ९आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: प्यारो कोन बतावोरे; अंति: चर लगे पोहचावोरे, गाथा-४. ९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ९आ, संपूर्ण.
मु. आनंदराम, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन ज्ञान शंभार ए; अंति: रहेज्यो नेडा नेडा, गाथा-३.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६२३४१. (+#) वीमलाचल तीर्थमाला स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३२, ज्येष्ठ कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. १०, प्रले. श्राव. जेशींघ साकरचंद,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसुविधिनाथ प्रशादात्., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१३, १०४३३). शQजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: विमलाचल वाल्हा वारू; अंति: नित नमो
गिरिराया रे, ढाल-१०. ६२३४२. (+#) श्रावक अतिचार, तप आलापक व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. ३, ले.स्थल. वापीनगर,
प्रले. मु. वेलचंद (गुरु मु. जीवराज), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१३, १३४३३). १.पे. नाम. श्रावक अतिचार, पृ. १अ-९अ, संपूर्ण.
श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दसणमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २.पे. नाम. पाक्षीक चौमासी संवत्सरी तप, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: चोथ भंते एक अपवास; अंति: चोमासाने दिने
केहवु. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण..
मु. वेलचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७१, आदि: ओलघडीई आदेनाथनी रे; अंति: आपो सीवराजोउ लाल, गाथा-१२. ६२३४३. मेरुत्रयोदशीपर्व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२६४१३, ११४३४-३८).
मेरुत्रयोदशीपर्व कथा, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य भारती भक्त; अंति: अवचल सुख पामैं. ६२३४४. अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८९८, आश्विन अधिकमास शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. बिलाडा, प्रले. मु. बुधमल्ल (परंपरा आ. सबलदासजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमयासागरजी की प्रति से प्रतिलिपि., जैदे., (२६४१३, १३४२४-२८). ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: अजर अमर अकलंक जे; अंति: आणी आप समोवड
थापीये, ढाल-९, गाथा-७७. ६२३४५. स्तवन व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ७, दे., (२५.५४१३.५, ११४२९-३२). १. पे. नाम. सौभाग्यपंचमी स्तवन, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर; अंति: गुणविजय रंगे सुणो, ढाल-६,
गाथा-४९. २. पे. नाम. बीजनी थूइ, पृ. ४आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: लबधिविजय० मनोरथ माय,
गाथा-४. ३. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. ४आ, संपूर्ण.
क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अरिहंत नमु; अंति: कवी ऋषभ० महिमा घणो, गाथा-३. ४. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण.
बीजतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: अभिनंदन चंदन शीतल; अंति: प्रणमुते सुविहाण, गाथा-१. ५. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाल हो; अंति: जसविजे० पोष लालरे,
गाथा-५. ६. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अजित जिणंदस्यु प्रीत; अंति: वाचक जस० गुण गाय के,
गाथा-५. ७. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण.
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३९९
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३०, आदि: संभव जिनवर विनती; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ तक लिखा है.) ६२३४६. (+#) नवतत्त्व का बालवबोध, संपूर्ण, वि. १८९२, आषाढ़ कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. अजीमगंज, पठ.
किसनकुवर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१३, १२४३४).
नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध*, रा., गद्य, आदि: जीव क० जीवतत्व१ अजीव; अंति: सिद्ध१५ एवं पनरै भेद. ६२३४७. (#) श्रावकपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९५५, चैत्र कृष्ण, ८, बुधवार, मध्यम, पृ. ९-१(२)=८, ले.स्थल. पालणपुर,
प्रले. वीरचंदजी तेजसींघजी ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं.१८०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १०४३२). श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि अ; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्,
(पू.वि. ज्ञानाचार अपूर्ण से चारित्राचार अपूर्ण तक नहीं है.) ६२३४८. (+#) नयचक्र-भाषावचनिका का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, २२४५०). नयचक्र-भाषावचनिका का बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: (१)स्यात्कारमुद्रिता, (२)अनंत धर्मात्मक
वस्तु; अंति: रसथीज सिद्धि थाइं. ६२३४९. (#) विमलमुंहता सिलोको व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १३-१६४३४-४१). १.पे. नाम. विमलमुंहता सिलोको, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण, वि. १८६६, चैत्र शुक्ल, १३, ले.स्थल. गीररी. विमलमंत्री श्लोक, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सामण बे करजोड; अंति: विनीतविमल गुण गायो,
गाथा-११०. २.पे. नाम. कृष्ण भाषापद संग्रह, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण..
कृष्ण भाषापद, छाजुराम, मा.गु.,रा., पद्य, आदि: ठाकुरांकाणरो तु; अंति: महीया बाकी तो चाह छै, पद-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया संग्रह, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सवैया संग्रह*, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: मीनखा देही पाय कै; अंति: मन कारज
सीधलाजी. ६२३५०. (+) शेजय स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१(१)=६, ले.स्थल. पालीतणा, प्रले. मु. जेतसी ऋषि (गुरु मु. रायचंद ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १०४२५-२८). शत्रुजयतीर्थ १०८ खमासणाना दुहा, मु. कल्याणसागरसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गल वेलि सुजसे
जयसिरी, गाथा-१०९, (पू.वि. गाथा ८ अपूर्ण से है.) ६२३५१. श्रावकआराधना बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, दे., (२७४१२.५, १४४३९).
श्रावक आराधना-बालावबोध, उपा. राजसोम, मा.गु., गद्य, वि. १७१५, आदिः (१)श्रीसर्वज्ञपदं नत्वा, (२)इहां
आराधनाने विषै; अंति: वय॑श्चाराधना चक्रे. ६२३५२. (+) षटदर्शननिराकरणसम्यक्त्व चौपाई, संपूर्ण, वि. १९२६, पौष कृष्ण, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. कलकत्ताबंदर, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१३, १३४३३). सम्यक्त्व षट्स्थान चौपाई, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीतराग प्रणमी करी; अंति:
वाचक जस इम बोले जी, अध्याय-१२५. ६२३५३. नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १९१९, आषाढ़ कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. सुरतबिंदर, प्रले. श्राव. लवजी मोतीचंद; पठ. श्राव. माणकचद उत्तमचंद शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथजिन प्रसादते., दे., (२६.५४१३, १२४२४-२७). नवपद पूजा, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३८, आदिः श्रुतदायक श्रुतदेवता; अंति: पद्मविजय गुण गायो,
ढाल-९.
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४००
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६२३५४. (+#) मंगलकलश, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-२(१ से २)-७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. टीकादि का अंश नष्ट है, दे., (२५.५४१२.५, १७X४४-४८). मंगलकलश चौपाई, मु. लक्ष्मीहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल ५ गाथा ९ अपूर्ण से
ढाल २१ गाथा ३ तक है.) ६२३५५. (+) ज्ञानपंचमी देववंदन व पंचमी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०९, पौष कृष्ण, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २,
ले.स्थल. उदेपुर, प्रले. अमरचंद्र ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४१२.५, १५४४१). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमीदेववंदन विधि, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम बाजोठ उपरि तथा; अंति:
विजयलक्ष्मी शुभ हेज, पूजा-५. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमी सज्झाय, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणेसर; अंति: संघ सकल सुखदाय रे,
ढाल-५, गाथा-१६. ६२३५६. (+) साधुवंदना, दशवैकालिक सज्झाय व २४ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९६२, कार्तिक शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३,
ले.स्थल. खीचंद, प्रले.पं. दलिचंद (उपकेशगच्छ); पठ. श्राव. सूरजमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१२.५, २६४७०). १.पे. नाम. साधुवंदना, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण..
मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: पंच भरत पंच एरवय; अंति: देवमुनी० संथुण्यां, ढाल-१३, गाथा-३७७. २. पे. नाम. दशवकालिक सज्झाय, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धरम मंगल महिमा निलो; अंति:
जेतसी जय जय रंग, अध्याय-११. ३. पे. नाम. स्तवन चौवीसी, पृ. ४आ-६आ, संपूर्ण.
स्तवनचौवीसी, श्राव. विनयचंद्र गोकलचंद कुमट, मा.गु., पद्य, वि. १९०६, आदि: श्रीआदिश्वर सामी हो; अंति:
___महास्तुति पूरण करी, स्तवन-२४. ६२३५७. (#) मनुष्यभव दशदृष्टांत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१३, १३४२९).
१० दृष्टांत, मा.गु., गद्य, आदि: चोल्लग१ पासगर धन्ने३; अंति: द्रष्टांतनउ परमार्थ. ६२३५८. (+) चउसरणसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १७४३८).
चउसरणपयन्नासूत्र, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं,
गाथा-६३.
चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सावध व्यापार त्याग; अंति: कारणइ भद्र मोक्ष. ६२३५९. (+#) स्तवन स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२-१९(१ से १८,२३)=१३, कुल पे. १२,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, २०४४१-४६). १. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १९अ-२०अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तवन, उपा. पुण्यप्रधान गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: आपहु पहुसंपय अचलठाण, गाथा-२१,
(पू.वि. गाथा ७ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. २०अ-२१आ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तवन, वा. हर्षधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: सूरज ऊगमतै नमुसंती; अंति: हरखधरमै वीनव्यो, गाथा-२३. ३. पे. नाम. नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र, पृ. २१आ-२२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है.
मु. मेरु, अप.,मा.गु., पद्य, आदि: सिरिनिलय जंबूदीपोय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १२ अपूर्ण तक है.) ४. पे. नाम. शीतलनाथ स्तुति, पृ. २४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है.
पण ९.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
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शीतलजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति भणे श्रीजिनलाभसूरिद, गाथा-४, (पू. वि. गाथा २ अपूर्ण से है.)
५. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, प्र. २४- २४आ, संपूर्ण
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक, अंतिः श्रीजिनलाभसूरिंदा जी गाथा ४.
६. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ नमस्कार, पृ. २४आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीसेतुंजो सिद्ध, अंतिः जिनवर करूं प्रणाम, गाथा- ३.
७. पे. नाम. सीमंधरजिन दूहा, पृ. २४-२५अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी नित नमु; अंतिः ते प्रणमुं नीशदीश, गाथा - ३.
८. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. २५अ, संपूर्ण
अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि चोवीसे जिनवर प्रणमुं, अंति: इम जीवित जनम प्रमाण,
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गाथा-४.
९. पे नाम. पर्यूषणा स्तुति, पृ. २५ अ- २५आ, संपूर्ण.
पर्युषण पर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि बलि वलि हुं ध्यावुं: अंतिः कहै जिनलाभसूरींद, गाथा-४. १०. पे. नाम. महावीरजी स्तुति, पृ. २५-२६अ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि मूरति मनमोहन कंचन, अंति: इम श्रीजिनलाभसूरिंद,
गाथा-४.
११. पे नाम. स्नात्र विधि, प्र. २६-३१अ संपूर्ण.
स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन, अंतिः देवचंद० कही सूत्रमझार, डाल-८, गाथा- ६०.
१२. पे नाम, अष्टप्रकारी पूजा दूहा, पृ. ३१अ ३२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
८ प्रकारी पूजा दूहा, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: अह पडिभगापसरं पयाहिण, अंति: (-), (पू. वि. शांतिजिन आरति गाथा ३ अपूर्ण तक है.)
६२३६०. आबू तीरथमाला, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, जैवे. (२८४१३, १३४४३-४७).
"
अर्बुदगिरि तीर्थमाला, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७९, आदि: अरबुदगिरि अंतरजामी; अंति: निधि
रिद्धिसीद्धि रे, डाल- १३.
६२३६१. सिद्धवेली, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८ ले स्थल, पेथापुरनगर, प्रले. श्राव जेसींग साकरचंद, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीसुवधीनाथ प्रासादात्., जैवे. (२८४१३, ११-१४४३२-३६).
शत्रुंजयतीर्थ वेल, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८५, आदि: पासतणा पदकज नमी समरी, अंति उतमविजय०गिरि गायो रे, ढाल - १३.
६२३६२. मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १९३२, वैशाख शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. ठाकोर मायाराम भोजक; पठ. मघा मयाराम ठाकोर भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२८.५४१३, १२४२८).
मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीमहावीरस्वामी चरम, अंति: सांभलीने प्रमाण कधी..
६२३६३. पद गीत व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८७०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. १४-६ (१ से ६ ) = ८, कुल पे, ९६, प्र. मु. भागचंद्र, अन्य मु. भेरुलाल (गुरु मु. भागचंद्र), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अंतिम पत्र पर पत्रांक नहीं है., जीवे., (२७४१३, १६-२९×३२-५५).
१. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. ७अ अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं.
नवपद स्तवन, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नितप्रति नमत कल्याण, गाथा-५, ( पू. वि. गाथा २ अपूर्ण से है.)
२. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. ७अ, संपूर्ण.
मु. जिनचंद, पुहिं., पद्य, आदि जग तारक श्रीवीरप्रभु, अंतिः जिनचंद० सदा नित साया, गाथा-५.
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४०२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: उठत प्रभात नाम जिनजी; अंति: हरख० सुखसंपति बढाइयै, गाथा-५. ४. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. ७आ, संपूर्ण.
मु. भुवनकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: मो मन वीर सुहावे; अंति: भुवनकीरत गुण गावे, गाथा-३. ५. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ७आ, संपूर्ण.
मु. सोभाचंद, पुहिं., पद्य, आदि: भज श्रीऋषभ जिणंद; अंति: सोभाचंद० हिरदे लयलाई, गाथा-४. ६.पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. ७आ, संपूर्ण.
मु. सोभाचंद, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिनवर तु भजरे; अंति: सोभाचंद० रहे लय भाई, गाथा-३. ७. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तवन, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: तू मेरे दिल मे तू मे; अंति: रंगविजय० देव सकल मे, गाथा-४. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ८अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: तेरे घटमें हे फुलवार; अंति: अवचल देख ववीहार, गाथा-५. ९. पे. नाम. समकित पद, पृ. ८अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी है.
सम्यक्त्व पद, मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: जागे सो जिनभक्त कहाव; अंति: ताकुं वंदना हमारी है, गाथा-३. १०. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
मु. हर्षचंद, रा., पद्य, आदि: भेट वीर जिनंद री; अंति: हरख भरी हर्षचंद री, गाथा-३. ११. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. ८आ, संपूर्ण.
मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: नाही रे कोई जिनजी; अंति: हरख० सोई परम पुनीता, गाथा-४. १२. पे. नाम. सुमतिजिन पद, पृ. ८आ, संपूर्ण..
मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: निरख वदन सुख पायो; अंति: हरखचंद० नही भायौ, गाथा-४. १३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण.
मु. रंगविजय, पुहिं., पद्य, आदि: जब आदीसर सेवियै तब; अंति: रंगवि० सब जीव सुहावे, गाथा-५. १४. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वजिन पद, पृ. ९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: चिंतामणिस्वामी सच्चा; अंति: बानारसि बंदा तेरा,
गाथा-५. १५. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ९अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन-सिद्धाचल, मु. अमृत, पुहिं., पद्य, आदि: आज सवल मे जिनवर देख; अंति: साहिब आवागमन
नीवारी, गाथा-५. १६. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ९अ, संपूर्ण.
मु. जिनचंद्र, सं., पद्य, आदि: अर्हत भगवत वामानंदन; अंति: नित्यं रतिपतितेहम्, गाथा-३. १७. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.
आ. जिनरंगसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: पहिलो श्रीरिसहेसर; अंति: जिनरंग० नमे करजोडी, गाथा-५. १८. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. ९आ, संपूर्ण.
मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पावापुर महावीर जिणेस; अंति: जिन चरणे चित लावोरे, गाथा-३. १९. पे. नाम. अध्यात्म पद, पृ. ९आ, संपूर्ण.
साधारणजिन पद, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: क्युं जिन भक्ति; अंति: अवगति की गति न्यारी, गाथा-७. २०. पे. नाम. समकित पद, पृ. ९आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी है.
सम्यक्त्व पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जागे सौ जिनभक्ति; अंति: रूपचंद० हमारी हे, गाथा-३. २१. पे. नाम. अध्यात्म पद, पृ. ९आ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: तरसकी जइ दइको दइकी; अंति: आनंदघन दाह हमारी री, गाथा-३.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
४०३ २२. पे. नाम. अध्यात्म पद, पृ. ९आ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे पाता आनंदघन तात; अंति: आनंदघन लाभ आनंदघन, गाथा-३. २३. पे. नाम. अध्यात्म पद, पृ. ९आ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: पीया विना निस दिन; अंति: आनंदघन पीउख झरी री,
गाथा-३. २४. पे. नाम. अध्यात्मिक पद, पृ. ९आ, संपूर्ण. आध्यत्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऐसी कैसी घरवसी; अंति: आनंद० भागे आण रसीउडो,
गाथा-३. २५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ९आ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ठगोरी भगोरी लगोरी; अंति: घाट उतारन नाव मेगोरी, गाथा-३. २६. पे. नाम. अध्यात्मिक पद, पृ. ९आ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: तेरी हं तेरी हु; अंति: तो गंग तरंग वहरी, गाथा-३. २७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १०अ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरी तुं मेरी तुं; अंति: आनंद०मिलि केलि करेरी, गाथा-३. २८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १०अ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आतम अनुभव रीति वरीरी; अंति: आनंदघन सर वंग धरी री, गाथा-३. २९. पे. नाम. अध्यात्मिक पद, पृ. १०अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अपना रूप जब देखा; अंति: आनंदघन गयो दिल
भेखा, गाथा-३. ३०. पे. नाम. अध्यात्मिक पद, पृ. १०अ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: चेतन चतुर चोगान लरी; अंति: आनंदघन पद पकरीरी,
गाथा-५. ३१. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १०अ, संपूर्ण.
मु. जैत, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीचंदाप्रभु जिनवर; अंति: भव तुम चरणां बलिहारी, गाथा-४. ३२. पे. नाम. विविध पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १०अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-विविध पार्श्वजिन, पुहि., पद्य, आदि: दरसन देख्यो पासकुमर; अंति: माया मुगति अव मांगी, गाथा-७. ३३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १०अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती पद, मु. दीपसागर, पुहि., पद्य, आदि: सुणीयो री मे सखी सहे; अंति: दीपसायर गुण गावोरे, गाथा-३. ३४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १०अ, संपूर्ण..
मु. जिनचंद, पुहि., पद्य, आदि: तेरे चरण भेट आज आनंद; अंति: दरसण आनंद बहु पईयां, गाथा-३. ३५. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १०अ, संपूर्ण.
मु. फकीरचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो मन लागी रह्यो; अंति: चंद फकीर गुण गाय, गाथा-४. ३६. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १०आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, पुहिं., पद्य, आदि: प्यारो पारसनाथ पूजाओ; अंति: ज्ञानविमल ० वसीया, गाथा-८. ३७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १०आ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: वारू रे नाही वह ऐ; अंति: आनंदघन पद लीधु, गाथा-३. ३८. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १०आ, संपूर्ण.
मु. हरखचंद, पुहिं., पद्य, आदि: तुम हो नाभिजी के नंद; अंति: हरख० कुमुद वनचंद, गाथा-३. ३९. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १०आ, संपूर्ण.
मु. जगतराम, रा., पद्य, आदि: हं तो थारी लागी राज; अंति: जगत० राजीमति वडभागी, गाथा-३.
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४०४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४०. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १०आ, संपूर्ण.
मु. वखता, पुहिं., पद्य, आदि: तारण तरण जिहाज प्रभु; अंति: वखता के महाराजा, गाथा-३. ४१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १०आ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: अनुभव तूं है हेतु; अंति: आनंद बाजे जीत नगारो, गाथा-३. ४२. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १०आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: हम मगन भए प्रभुध्यान; अंति: जीत लीयो है मेदान मे,
गाथा-६. ४३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १०आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. श्रीधर, पुहिं., पद्य, आदि: नीकी मूरति पास जिणंद; अंति: सेवा दाता परमानंद की, गाथा-३. ४४. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. ११अ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: चित चाहत सेवा चरण; अंति: हरख० मिटावो मरण की, गाथा-४. ४५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ११अ, संपूर्ण.
मु. जगतराम, पुहिं., पद्य, आदि: कैसैं वस करिये ऐसे; अंति: रस में मेरे मगन हीया, गाथा-३. ४६. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. ११अ, संपूर्ण..
मा.गु., पद्य, आदि: सुख उपनो दुख गल गयो; अंति: जब प्रगटी राग कल्याण, गाथा-२. ४७. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ११अ, संपूर्ण.
मु. गुणविलास, पुहिं., पद्य, आदि: अब मोही तारोगे दीन; अंति: मेरी करो प्रतिपाल, गाथा-४. ४८. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ११अ, संपूर्ण.
मु. आनंदअमृत, रा., पद्य, आदि: परगई ऐसी वान नेन नव; अंति: जिनेसर आनंदअमृत वान, गाथा-३. ४९. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ११अ, संपूर्ण.
रा., पद्य, आदि: अनी में निसदिन ध्याव; अंति: प्रभु दीठा नेणन मै, गाथा-३. ५०. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ११अ, संपूर्ण.
मु. भूधर, पुहि., पद्य, आदि: मै तो तेरी आज महिमा; अंति: हम जाचक तुम दानी, गाथा-४. ५१. पे. नाम. महावीरजिन देशना पद, पृ. ११अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: मधुरी जिनवाणी हे; अंति: जग प्रभू सुहित जाणी, गाथा-३. ५२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ११अ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, आदि: को मोकुं कोउ कैसै; अंति: आनंद० जन रावरो थको, गाथा-३. ५३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ११आ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: मनसा नटनागरसूंजोरी; अंति: आनंदघन० चकोरी हो, गाथा-५. ५४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ११आ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: पीया विनु सुधि बुधि; अंति: रज धरे आनंदघन आवे हो, गाथा-६. ५५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ११आ, संपूर्ण.
मु. कुशल, पुहिं., पद्य, आदि: झूठी बाजी रे मना सव; अंति: कुशल कहै०कऊ नहीं थिर, गाथा-३. ५६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ११आ, संपूर्ण...
मु. कुशल, पुहिं., पद्य, आदि: कौऊ नही तेरा रे चिदा; अंति: कुशल० माही उजेरा हो, गाथा-७. ५७. पे. नाम. गिरनारतीर्थ पद, पृ. ११आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: शिखर गिरनार जाना हो; अंति: पल छिन न रहाना हो, गाथा-३. ५८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ११आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी है.
मु. दौलत, पुहि., पद्य, आदि: शरन जिनराज तेरी हो; अंति: तोडी करम की बेरी हो, गाथा-३. ५९. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ११आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी है.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
४०५ पुहि., पद्य, आदि: श्रीजिन वंदन जइयो जग; अंति: प्रभुको वंदत वारंवार, गाथा-५. ६०.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ११आ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: देख्योरी जिनंदा भगव; अंति: पायो अविचल ज्ञान, गाथा-४. ६१. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ११आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: पारस प्रभु के चरण; अंति: मेटा भव भव फिरण, गाथा-५. ६२. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ११आ, संपूर्ण..
मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो मन वस कर लीनो; अंति: दीज्यो मोक्ष नीवास, गाथा-४. ६३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १२अ, संपूर्ण.
मु. विमल, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सखी वंदन जइये; अंति: वंदो विमलगिरीद, गाथा-४. ६४. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १२अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी है.
पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिन वंदन जइयो जग; अंति: सो उतरे भवपार, गाथा-२. ६५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १२अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन रेखता, मु. लालचंद, पुहि., पद्य, आदि: जगतपति पास जिनराया; अंति: चरण की सरण मोह दीजै, गाथा-३. ६६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १२अ, संपूर्ण.
मु. रामदास, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु दरसण पायौ मै; अंति: रामदास० सिखर को राज, गाथा-४. ६७. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १२अ, संपूर्ण.
पुहि., पद्य, आदि: मोतियन थाल भरकै करहु; अंति: लोह कंचन मोहि करकै, पद-४. ६८. पे. नाम. सिद्धचक्र पद, पृ. १२अ, संपूर्ण.
मु. जिनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: ध्याइये सिद्धचक्र, अंति: हमकुं भव भव सुख रसाल, गाथा-४. ६९. पे. नाम. सिद्धचक्र पद, पृ. १२अ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र स्तवन, ग. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र भजौनी; अंति: यह भज मुक्ति व्रजौनी, गाथा-७. ७०. पे. नाम. सिद्धचक्र पद, पृ. १२अ, संपूर्ण.
ग. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: धन नवपद से रंग मेरे; अंति: गुण उपजत भविजन अंग, गाथा-४. ७१. पे. नाम. पार्श्वजिन होरी, पृ. १२अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन पद, आ. जिनभक्तिसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: माई रंगभर खेलेगे; अंति: भक्ति रमे जिनवर सहाई, गाथा-४. ७२. पे. नाम. औपदेशिक होरी पद, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, पुहि., पद्य, आदि: नव नय के ताल बजाय; अंति: देखै शिवपुर जावा, गाथा-४. ७३. पे. नाम. धर्मजिन होरी, पृ. १२आ, संपूर्ण.
मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: मधुवन मै धूम मची होर; अंति: पायो दरसण अनुभोरी, पद-६. ७४. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १२आ, संपूर्ण.
आ. जिनभक्तिसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे नेम कुंवर खेले; अंति: भक्ति रमे उपजत आनंद, गाथा-५. ७५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १२आ, संपूर्ण.
मु. जगराम, मा.गु., पद्य, आदि: पूजो चरन जिनेश्वरजी; अंति: तोहि तोहि त्रातारे. गाथा-४. ७६. पे. नाम. आतम पद, पृ. १२आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी है.
आध्यात्मिक पद, मु. वसंत, पुहिं., पद्य, आदि: निज आतम घट फूल्यो; अंति: वंसत नित सांज भोर, गाथा-८. ७७. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १२आ, संपूर्ण.
पुहि., पद्य, आदि: ऐसे प्रभुजी कुं ध्या; अंति: सखी आठू कर्म खपावू, गाथा-६. ७८. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १२आ, संपूर्ण.
मु. क्षमाकल्याण, पुहि., पद्य, आदि: ऐसे स्याम सलूणे खेलत; अंति: पद कीनो निज अधीकार, पद-५. ७९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १२आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी है.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. वसंत, पुहिं., पद्य, आदि: निज आतम घट फूल्यो; अंति: नित सांझ कीयो वीचार, गाथा-७. ८०. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १२आ, संपूर्ण.
आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कुसल गुरु कुसल करो; अंति: वीनवै श्रीजिनचंदसूरि, गाथा-३. ८१. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. १३अ, संपूर्ण.
मु. जिनराज, पुहि., पद्य, आदि: कुशल गुरु अब मोहि; अंति: अपनो कर जाणीजै, गाथा-३. ८२. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १३अ, संपूर्ण.
मु. गुणविनय, मा.गु., पद्य, आदि: दादा पूर हो मनोवंछित; अंति: सोम निजर करी जोवे, गाथा-४. ८३. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. १३अ, संपूर्ण.
आ. जिनरंगसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: कुशलगुरु तुं साहिब; अंति: पूरन जिनरंगसूरि सहाई, गाथा-३. ८४. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. १३अ, संपूर्ण.
मु. आनंदचंद्र, पुहि., पद्य, आदि: कुशलसूरिंद सहाई हमा; अंति: आनंद० दिन होत वधाई, गाथा-४. ८५. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १३अ, संपूर्ण.
कुशलसूरि गीत, पुहिं., पद्य, आदि: प्रणमूं कुशलसूरींद; अंति: जस लक्ष्मी वरी, गाथा-३. ८६. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. १३अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी है.
मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि: महिर करीने हो दरसण; अंति: अक्षय सदा जिनचंद, गाथा-६. ८७. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. १३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी है.
मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि: महिर करीने हो दरसण; अंति: अक्षय सदा जिनचंद, गाथा-६. ८८. पे. नाम. जिणदत्तसूरि पद, पृ. १३आ, संपूर्ण. जिनदत्तसूरि पद, मु. जिनचंद्र, रा., पद्य, वि. १८५०, आदि: परतिख परचा पूरवै दाद; अंति: तास पसाये गुण गाय हो,
गाथा-६. ८९. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गच्छपति पद, पृ. १३आ, संपूर्ण.
मु. जिनचंद, रा., पद्य, आदि: गच्छपति खरतरगछसिणगार; अंति: जिणचंद० कमल मै वीनती, गाथा-५. ९०. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १३आ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: आयो आयो री समरतो; अंति: परमानंदपद पायो जी, गाथा-५. ९१. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. १३आ, संपूर्ण.
मु. जिनचंद्र, पुहि., पद्य, आदि: समरण होत सहाई कुशल; अंति: चंदअक्षय नित पाई, गाथा-३. ९२. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. १३आ, संपूर्ण.
क. आलम, पुहिं., पद्य, आदि: नित कुशलसूरीसर ध्याई; अंति: आणंद अधिक वढाईयै, गाथा-४. ९३. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १३आ, संपूर्ण. कुशलसूरि पद, मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १८६०, आदि: भवि पूजो सब मिली कुश; अंति: जिण सतगुरु होत
सहाय, गाथा-७. ९४. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. १४अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि फाग, मु. जिनचंद, पुहि., पद्य, आदि: नित करियै सेव कुशलगु; अंति: जिनचंद० पूरण जयकर की,
गाथा-६. ९५. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १४अ, संपूर्ण.
गच्छा. जिनचंद्रसूरि, पुहिं., पद्य, वि. १८६९, आदि: शांतिजिनेसर सोलमोरे; अंति: प्रेम घणो जिणचंदा, गाथा-९. ९६. पे. नाम. जिनदत्तसूरि गीत, पृ. १४अ, संपूर्ण.
मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: सदगुरु को ध्यान हृदै; अंति: करज्यो गुरु मेरे, गाथा-३. ६२३६४. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तुति व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७७१३,
१४४३०-३४).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
१.पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. नमस्कारचौवीसी, मु. लखमो, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: पढम जिनवर पढम जिनवर; अंति: वली अवधारो हेव,
गाथा-२६. २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: कनक तिलक भाले हार; अंति: होउ में नाण धारा, गाथा-२७. ३. पे. नाम. शेव्रुजय स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन-आदिजिन, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेज रलीआमणो; अंति: मागुमनने उल्लासे,
गाथा-५. ४. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तवन, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दउद्र हरिदीपे जोता; अंति: वा समर्थ तुहिज देवा, गाथा-५. ५. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण.
आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ऊजलगिरि अम्हे जाइ; अंति: नंदसूरि सेवक उद्धरुए, गाथा-५. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मूरति त्रेवीशमो; अंति: सेवक उद्धरु ए, गाथा-५. ७. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: साचोर पूरवरि जगत्र व; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५ अपूर्ण तक है.) ६२३६५. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ४, दे., (२७.५४१३, १२४३४). १. पे. नाम. बीज स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पुक्खलवई विजये जयो; अंति:
यशोविजय०भयभंजन भगवंत, गाथा-७. २.पे. नाम. पंचमीस्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरु पाय; अंति:
वीरजिणवर इम कहै, ढाल-३, गाथा-२२. ३. पे. नाम. अष्टमीतप स्तवन, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हारेमाहरे ठांम; अंति: कांति सुख पावे घणो,
ढाल-२, गाथा-२४. ४. पे. नाम. एकादशी स्तवन, पृ. ३आ-६आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: पामीये मंगल
अति घणो, ढाल-३, गाथा-२७. ६२३६६. (+#) पंचमीदेववंदन उजमणा विधि व सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-५(१ से ५)-६, कुल पे. २,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३.५, १५४२५). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमीदेववंदन विधि, पृ. ६अ-१०अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विजयलक्ष्मी शुभ हेज, पूजा-५,
(पू.वि. श्रुतज्ञान देववंदन अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पंचमीनी सिझाय, पृ. १०अ-११आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणेसर; अंति: संघ सयल सुखदाय रे,
ढाल-५, गाथा-१६. ६२३६७. (+#) कीसनजीरी ढाला, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, दे., (२५.५४१२, २१४३६).
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४०८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कृष्ण ढाल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमनाथ समोसर्या; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल ११ तक
लिखा है.) ६२३६८. (#) संग्रह सार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२५४१२.५, ३०४५७-७४).
विविध विषय सार संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: वीन धरे कर दीन धरे; अंति: तव कौन
उपाय करैगो, गाथा-२५४. ६२३६९. (#) आनंदघन चोवीसी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१३.५, ५४४३). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: (-), (पू.वि. शीतलजिन
स्तवन गाथा १ तक है.) स्तवनचौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीआनंदघनस्या गीत, (२)चिदानंदमय जिनवरु;
अति: (-). ६२३७०. (+) सिखरजी रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१३, १३४३५).
सम्मेतशिखरतीर्थ रास, मु. बालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९०७, आदि: वांदी वीरजिनेसरू रच; अंति: कीनौ भणतां
___ मंगलमालजी. ६२३७१. तेतीसारो थोकडो, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२८x१२, १८४४५-५२).
३३ बोल थोकडो, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बोल १० से २८ तक है.) ६२३७२. गुणठाणा, संपूर्ण, वि. १८६०, मार्गशीर्ष कृष्ण, जीर्ण, पृ. ७, ले.स्थल. सिघाणा, प्रले.सा. हत (गुरु सा. सीता); गुपि. सा. सीता (गुरु सा. गुमानाजी); सा. गुमानाजी (गुरु सा. चनणा), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१३, १९४३७).
१४ गुणस्थानक ४१ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार कहे; अंति: अल्प बहुत्वद्वार. ६२३७३. मानतुंगमानवती चौपाई व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२.५, १४४३३). १.पे. नाम. मानतुंगमानवती रास, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण.
अनुपचंद-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १८७०, आदि: श्रीजिन शांतिजिनेश्व; अंति: प्रसादे० जयनगरे कही, ढाल-८. २. पे. नाम. राणकपुरतीर्थ स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: राणपुरो रलीयामणौरे;
अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ५ अपूर्ण तक लिखा है.) ६२३७४. ५६३ जीव भेद संमुच्छिमजीवोत्पत्ती स्थान २३ पदवी नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ३, दे.,
(२४.५४१२, १४४४४). १.पे. नाम. पांचसैत्रेसठि भेद जीवना, प्र. १अ-६आ, संपूर्ण. ___ गतागति २४ दंडक के ५६३ भेद विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: १४ भेद नारकी रा सात; अंति: अपर्याप्तामाहै आवै. २. पे. नाम. त्रेवीस पदवी नाम, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
२३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चक्ररतन१ छत्ररतन२; अंति: पदवी ८ आठ पदवी पामै. ३. पे. नाम. संमूर्छिमजीवोत्पत्ती के चौदस्थान विचार, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.
जीवउत्पत्ति के १४ स्थान, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: एवं दस १० दंडकै जावै. ६२३७५. (+) स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ५४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे.,
(२५.५४१२.५, १५-१७X४५). १. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. ऋद्धिहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: गढ गिरनार की तलहटी; अंति: सांभली शिवादेवी माय, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक होरी पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: होरी खेलो रे भविक; अंति: तेरा पाप सबल थरकै, गाथा-४. ३. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
४०९ मु. भूषण, रा., पद्य, आदि: नेमनिरंजन ध्यावो रे; अंति: सहु जगरो जस लीनो रे, गाथा-४. ४. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. चंद, पुहि., पद्य, आदि: यादव मन मेरो हर लीयो; अंति: चंद कहे मन हरखियोरे, गाथा-५. ५.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: जय बोलो पास जिनेसर; अंति: जिनचंद० सुरतरु की, गाथा-७. ६. पे. नाम. आदिजिन होरी पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
आदिजिन होरी, म. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: होरी खेलीयै नर बुहरत; अंति: भव भव पातिक जाय, गाथा-४. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन होरी पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन होरी, मु. जिनचंद, पुहि., पद्य, आदि: मेरे पारस प्रभुजी के; अंति: निरख्यो नवल वसंत, गाथा-४. ८. पे. नाम. धर्मजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, पंडित. खीमाविजय, पुहिं., पद्य, आदि: इक सुणलैनाथ अरज मेरी; अंति: अनुपम कीरत जग तेरी,
गाथा-५. ९. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
आ. जिनभक्तिसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे नेम कुंवर खेले; अंति: जिनभक्ति० उपजति आणंद, गाथा-७. १०. पे. नाम. होरी पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
वासुपूज्यजिन होरी, मु. रतनसुंदर, पुहि., पद्य, आदि: ऐसी होरी तो हो रही; अंति: वणाई रतनसुंदर गाए, गाथा-३. ११. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
साधारणजिन फाग, म. चंद, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसी होरी में प्रीतम; अंति: चंद० प्रीतम पायारी, गाथा-३. १२. पे. नाम. नेमिजिन होरी, पृ. २अ, संपूर्ण.
नेमिजिन पद, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे स्याम सलूणे खेलत; अंति: कीनो निज अधिकार, पद-९. १३. पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन धमाल, पृ. २अ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिसुव्रत मेरो मन; अंति: जिनलाभ० शुद्ध कह्यौ, गाथा-३. १४. पे. नाम. संभवजिनगीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
संभवजिन स्तवन, मु. सुगुण, मा.गु., पद्य, आदि: संभव जिन सुखकारी हो; अंति: सदा हितकारी हो लाला, गाथा-५. १५. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. सुगुण, मा.गु., पद्य, आदि: संभवजिन अरज सुणो मेर; अंति: सुगुण० शिवपुरनी सेरी, गाथा-७. १६. पे. नाम. पद्मप्रभजिन धमाल, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. ज्ञान, मा.गु., पद्य, आदि: मेरे रिदय प्रभु भमर; अंति: गांन०लहित अक्षयनिधान, गाथा-३. १७. पे. नाम. पार्श्वजिन धमाल, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, आ. जिनभक्तिसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: माई रंगभर खेलेगे; अंति: (१)भक्ति रमे जिनवर सहाय, (२)रसै
जिनवर सुहाय, गाथा-५. १८. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्व होरी पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, आ. जिनसौभाग्यसूरि, पुहि., पद्य, आदि: चिंतामण दरबार ऐसे; अंति: जिनसौ० पामो
भवजल पार, गाथा-३. १९. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ३अ, संपूर्ण.
मु. चतुरकुशल, रा., पद्य, आदि: विसरे मत नाम प्रभूजी; अंति: लहै रंग पतंग फीको, गाथा-३. २०. पे. नाम. साधारणजिन होरी, पृ. ३अ, संपूर्ण.
उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: दरसण विण जीव संसार; अंति: भगवंत तेरो पापशम्यो, गाथा-७. २१. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पृ. ३अ, संपूर्ण.
मु. क्षमाकल्याण, पुहि., पद्य, आदि: मधुवन मे जाय मची; अंति: सुधक्षमा कहै करजोडी, गाथा-२.
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२२. पे नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ३अ संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: नेमस्वामी से कहीयो; अंति; लगी है मुक्तिकी डोरी, गाथा- ३.
२३. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण,
पार्श्वजिन पद, पुहिं., पद्य, आदि: सांवरो सुखदाई जाकी; अंति: प्रभुजीमें लगन लगाई, गाथा-३. २४. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण
पुहिं., पद्य, आदि: पावै सोई सुखधाम जाकु, अंति: हित निज शुद्ध भावै, गाथा- ३.
"
२५. पे. नाम. संभवजिन होरी, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी है. संभवजिन पद, मु. बाल मुनि, पुहिं., पद्य, आदि: या कुमता मेरी वैरन; अंति: इक प्रभु को समरन, गाथा-३. २६. पे. नाम. औपदेशिक पद - होरी, पृ. ३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, आदि वा की ममताने धूम मचा, अंतिः तो श्रीजिनराज दुहाई, गाथा-४.
"
२७. पे नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ३आ, संपूर्ण
बाल, पुहिं, पद्य, आदि: ग्यान सुधारस वरसै; अंतिः बाल० वधू सोई बरसै गाथा ४.
1
"
३३. पे. नाम. नेमिजिन होरी, पृ. ४आ, संपूर्ण,
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
बाल, पुहिं, पद्य, आदि; कोई वरजो री स्याम हम अंतिः बाल कहत जोरी वरजोरी, गाथा- ३.
"
२८. पे. नाम. संभवजिन पद, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी है.
मु. बाल मुनि, पुहिं., पद्य, आदिः या कुमता मेरी वैरन, अंति: इक प्रभु को समरन, गाथा- ३.
२९. पे. नाम. श्यामसुंदर होली पद, पृ. ४अ, संपूर्ण.
बाल, मा.गु., पद्य, आदि ऐसे फागुण मस्त महीने; अंतिः बाल कहे कर जोडि, गाथा-३.
३०. पे नाम, नेमराजिमती होरी, पृ. ४अ, संपूर्ण.
मराजिमती होरी पद, बाल, पुहिं., पद्य, आदि आज सहियी होरी खेलन, अंतिः सिधाए बाल नर्म करजोरी, गावा- ३. ३१. पे. नाम. संभवजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण.
मु. बाल मुनि पुडिं, पद्य, आदि: गारी दई लाख नमै; अंतिः बाल० परम पद वरलै गाथा ३.
"
३२. पे. नाम. जिनवाणी महिमा पद, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण.
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राजिमती होरी, बाल, पुहिं., पद्य, आदि: मनमोहन गजगत की गामिन; अंति: कहे भई मुक्ति धामिनी, गाथा- ३. ३४. पे नाम, आध्यात्मिक होरी, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: खेलो निरंत लाल होरि, अंति: रूपचंद० बंधन किरतार, गाथा- ३.
३५. पे, नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, पुहिं, पद्य, आदि: होरी के खेलइवा हां, अंति: अनुपम भव विस्तर रे, गाथा-४. ३६. पे. नाम. नेमिजिन होरी, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मिजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: मत छोडो मानु युही रे; अंति: पहिली राजुल नारी रे, गाथा-५. ३७. पे नाम. पार्श्वजिन होरी चिंतामणी, पृ. ४आ-५ अ, संपूर्ण.
धरीया, गाथा- ७.
४०. पे नाम. आदिजिन पद, पृ. ५अ -५आ, संपूर्ण.
मु. जिनचंद, पु,ि पद्य, आदि नित ध्यावो ऋषभ अंति: गुण गावो जिनजी को, गाथा ५.
"
४१. पे. नाम औपदेशिक होरी, पृ. ५आ, संपूर्ण.
मु. जिनलाभ, पुहिं., पद्य, आदि: जिनमंदिर जयकार ऐसे; अंति: जिनलाभ० खेलत भवजल पार, गाथा-७. ३८. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ५अ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदिः समकित बिना जीव जगत, अंति: रूपचंद० वहीं अटक्यो, गाथा- ७.
३९. पे नाम, शत्रुंजयगिरनारतीर्थं स्तवन, पृ. ५अ संपूर्ण
गिरनारशत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारो सोरठ देश देखाओ, अंतिः ज्ञानविमल० सिर
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
मु. बाल मुनि, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसी खेलो तुम होरी रे; अंति: वाल कहै कर जोरी, गाथा-९. ४२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. ___आ. जिनहर्षसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: वीनतडी अवधारो हो; अंति: जिनह० काज सुधारो, गाथा-५. ४३. पे. नाम. पार्श्वजिन होरी, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
मु. रत्नसागर, पुहिं., पद्य, आदि: रंग मच्यो जिनद्वार; अंति: रत्नसागर० बोले जयकार, गाथा-५. ४४. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन-बालूचरमंडन, मु. सुगुण, पुहिं., पद्य, आदि: जिनराज जुहारो क्या; अंति: सुगुण सायर पार उतारौ,
गाथा-५. ४५. पे. नाम. नेमराजिमती होरी, पृ. ६अ, संपूर्ण.
मु. रतनसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: या दिन नेम कुं देखन; अंति: पंचमी गत पद पइयु, गाथा-४. ४६. पे. नाम. नेमिजिन होरीपद, पृ. ६अ, संपूर्ण.
मु. नवल, मा.गु., पद्य, आदि: किन डारी पिचकारी रे; अंति: नवल० देत है तारी रे, पद-४. ४७. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
मु. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, आदि: अचरज होरी आई रेलाल; अंति: अनुभव सुरखी आई रे, गाथा-७. ४८. पे. नाम. दादाजी स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण.
जिनदत्तसूरि गीत, मु. क्षमाकल्याण, पुहि., पद्य, आदि: सदगुरु को ध्यान हृदै; अंति: करज्यो गुरु मेरे, गाथा-६. ४९. पे. नाम. दादाजी गीत, पृ. ६आ, संपूर्ण.
कुसलसूरि गीत, मु. सिवचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: बलिहारी हुंकुसलसूरी; अंति: सिवचंद्र जसोभ करकी, गाथा-४. ५०. पे. नाम. जिनदत्तसूरि पद, पृ. ६आ, संपूर्ण.
आ. जिनसौभाग्यसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: सदगुरु के चरण चितलाय; अंति: महिर करो गुरु सुखदाय, गाथा-४. ५१. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण...
आ. जिनसौभाग्यसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: गुरु पूज रचो रे; अंति: गुरु महिमा लखानी, गाथा-३. ५२. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. ७अ, संपूर्ण, वि. १९२३, ज्येष्ठ कृष्ण, ११.
मु. जितविनय, पुहिं., पद्य, आदि: गच्छनायक द्वार मची; अंति: आस्या पूरो अब मोरी, गाथा-७. ५३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ७अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है.
मु. ज्ञानसागर, पुहि., पद्य, आदि: मेरो पीया पर संग रमत; अंति: हिलमिल सोरठ गावैरी, गाथा-३. ५४. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी, पृ. ७अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है.
मु. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, आदि: परघर खेलत मेरो पीयो; अंति: यानसार जिन मे मिलीया, गाथा-३. ६२३७६. नवतत्त्व का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९२८, पौष कृष्ण, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. पोरबंदर, प्रले. मोरारजी भगवानजी जोशी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, १५४३९).
नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हवे विवेकि सम्यग्; अंति: देखी गीरधि थावु नहि. ६२३७७. (+) विचारषट्विंशिका सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११.५, १४४५५). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिऊं चउवीस जिणे तसु; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ,
गाथा-३९. दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., गद्य, वि. १५७९, आदि: श्रीवामेयं महिमामयं; अंति: मत्वेद
बालचापल्यम्. ६२३७८. (#) स्नात्र पूजा व शनिश्चर कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-३(१ से ३)=६, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, जैदे., (२५४१२.५, १२४२८). १.पे. नाम. स्नात्रपूजा, पृ. ४अ-९अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्राव. वच्छ भंडारी, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सवी उपद्रव ध्रुजे, (पू.वि. मरूदेवामाता १४ स्वप्न वर्णन गाथा ५
अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शनिश्चर कथा, पृ. ९अ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शनिश्चर चौपाई, पंडित. ललितसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति शंपत द्यो मुझ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा
१३ अपूर्ण तक है.) ६२३७९. छवीस द्वार, संपूर्ण, वि. १८६१, माघ शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. जहानाबाद, पठ. धनाजी चतराजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, १७X४३).
२४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सरीर ओघना संघान संठा; अंति: योग काया को भाषा को. ६२३८०. चैत्रीपूनम क्रिया विधी पूजा सहित, संपूर्ण, वि. १९२५, वैशाख शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. वालूचर, प्रले. केवलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१३, १२४३३).
चैत्रीपूनम क्रियाविधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम गोवररी गुंहली; अंति: पछै ऊजमणो करीजै. ६२३८१. प्रतिक्रमण सूत्र व शांतिजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, दे., (२४.५४१३.५, ११४२३). १.पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. देवसिप्रतिक्रमण विधि-खरतरगच्छीय, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (१)सामायक लिया पछै इच्छ, (२)इच्छामि
खमासमणो वंदि; अंति: सग्गहरं जयवीयराय कहै. २.पे. नाम. शांतिजिन स्तोत्र, पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण.
लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ६२३८२. नवकार महिमा कथा सहित, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२७४१३, १३४३०).
नमस्कार महामंत्र-कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदिः (१)श्रीनवकार महामंत्र, (२)भरतक्षेत्रि पोतनपुर; अंति: यक्ष उपशांत
थयो, (वि. श्रीमती, शिवकुमार, जिनदास, चंडपिंगल चोर व हुंडक चोर के दृष्टांत हैं.) ६२३८३. समकितविचार गर्भित महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६.५४१३, १५४४३-४६).
महावीरजिन स्तवन-समकितविचारगर्भित, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: (१)एकविध दुहविध
त्रिविध, (२)इगविध दुविध त्रिविध; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., ढाल ६ गाथा ६ अपूर्ण तक है.,
वि. कृति का अंतिम पाठ नहीं है.) ६२३८५. (+) विहरमानजिन वीस गीत व पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१३,
१५४३८). १. पे. नाम. वीसविहरमानजिण गीत, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुज हीयडौ हेजालूवौ; अंति: विहरमान जिन वीस,
स्तवन-२०. २. पे. नाम. केशीगणधर पद, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
मु. सुमतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरु मेरे केसीसामि; अंति: सुमति० भंडार भरे, गाथा-३. ६२३८६. (#) अष्टप्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२७४१२.५, ११४३०-३३). ८ प्रकारी पूजा, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१३, आदि: श्रुतधर जस समरे सदा; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम
कलश गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ६२३८८. (#) लीलावतीसुमति विलास रास, अपूर्ण, वि. १८५५, फाल्गुन शुक्ल, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. २०-१५(१ से १५)=५,
ले.स्थल. देहगाम, प्रले.पं. देवविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, १२४३७). लीलावतीसुमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: (-); अंति: सुख संपति सुरसाल जी,
ढाल-२१, गाथा-३४८, (पू.वि. ढाल १६ गाथा ४ अपूर्ण से है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
४१३ ६२३८९. पंचकल्याणक टीप गणणु आदि बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२८x१३, ३३४१७).
बोल संग्रह*,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. वर्तमान चोवीसी के पंचकल्याणक, चौदहपूर्व नाम, ४५
आगम नाम, १३ काठीया मंत्र जाप आदि संग्रह.) ६२३९०. अंगुलसत्तरी का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८३०, पौष कृष्ण, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५४११.५, १८४४९).
अंगुलसप्ततिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ऋषभजिनने नत्वा नमीने; अंति: अने परनइ गुणने अर्थि, (वि. मूल
का मात्र प्रतीक पाठ है.) ६२३९१. (+) पूण्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. इल्लोलनगर, प्रले. पं. सुरेंद्रविजय (गुरु पं. चतुरविजय); गुपि.पं. चतुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीकुंथुजिन प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२६४१३.५, १५४३३). महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., प+ग., वि. १७२९, आदि: सकलसिधदायक सदा चोवीस; अंति: नामे
पुन्यप्रकाश ए, ढाल-८, गाथा-७९. ६२३९२. (+#) औपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२५४१२.५, २३-३०४५६-७०).
औपदेशिक सवैया, म. देवीदास, मा.गु.,रा., पद्य, आदि: सदहि के करम अघ लहि; अंति: देवीदास देखतहि संतकु,
गाथा-१४२. ६२३९३. (+) देवतानी परषदा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, अन्य.सा. रंभाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२६४१३, १२४२६).
समवसरण १२ पर्षदा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चमरेंद्रना चोसठ हजार; अंति: बोतेर लाख भवनथीआ. ६२३९४. (-) परमात्मा छत्तीसी व पार्श्वनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे.,
(२५४१२.५, ९४२५). १. पे. नाम. परमात्मा छत्तीसी, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण.
परमात्मछत्रीसी, मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: परमदेव परमातमा परम; अंति: चिदानंद०आतमके उद्धार, गाथा-३६. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ४आ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: इंद्रादिकि सेवत पद; अति: (-), (पू.वि. गाथा १२ अपूर्ण तक है.) ६२३९५. (+) नवत्त्वव जीवना चउद भेदनी चरचा, संपूर्ण, वि. १९७०, वैशाख कृष्ण, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २,
ले.स्थल. पडधरी, प्रले. कालीदास परसोत्तम खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, १६४३२-३७). १. पे. नाम. नवतत्वनी चरचा, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण.
नवतत्त्व प्रकरण-रूपी अरूपी बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नवतत्त्व मांहि रुपि; अंति: अनंतगुणे अधिकाछे. २.पे. नाम. जीवना १४ भेद, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण.
__जीव के १४ भेद, मा.गु., गद्य, आदि: जीवना १४ भेद ते; अंति: संठाण त्रापाने आकारे. ६२३९६. (+) निगोदविचार गीत, संपूर्ण, वि. १८९९, कार्तिक शुक्ल, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१३.५, १०४२९). महावीरजिन स्तवन-निगोदविचारगर्भित, मु. क्षमाप्रमोद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी नमियें सदा; अंति: क्षमाप्रमोद
जगीसए, गाथा-४८. ६२३९९. (+#) जैनवदरी की पत्री, संपूर्ण, वि. १८९५, श्रावण कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२.५, १०४२७).
गोमटस्वामी आदि यात्रा वर्णन, पुहिं., गद्य, वि. १८२१, आदि: पानीपंथ सुभ अनेक औपम; अंति: प्रवर्त्तमान करज्यो. ६२४००. (+#) स्तवन व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८५४, आषाढ़ कृष्ण, ११, जीर्ण, पृ. १०-५(१ से ५)=५, कुल पे. १५,
ले.स्थल. घांटीला, प्रले. ग. उत्तमविजय (गुरु मु. सुबुद्धिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, २१४४५). १.पे. नाम. आदिनाथ आलोइण, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं.
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४१४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिनविनती स्तवन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि: (-); अंति: पाप आलोया आपणा,
ढाल-५, गाथा-५६, (पू.वि. गाथा ९ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. रीषभ स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: रीषभ जीणंदा हो के मे; अंति: मोहन० नही तुझ तोले, (वि. गाथांक
नहीं लिखा है.) ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
आदिजिन बृहत्स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि सयल जिणंद पाय; अंति: जिम पामो
भवपार ए, गाथा-२१. ४. पे. नाम. सोलसती सज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण.
१६ सती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती माता प्रणमु; अंति: रूपविजय भावे गुण गाय, गाथा-७. ५. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण.
गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिं वसु; अंति: लभते नितरां क्रमेण, श्लोक-९. ६. पे. नाम. भवानी अष्टक, पृ. ८अ, संपूर्ण.
शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: न तातो न मातो नबंधुर; अंति: चान्यं सदा हे शरने, श्लोक-८. ७. पे. नाम. कर्मछत्रीसी, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: करमथी छूटे नही प्राण; अंति: धर्म तणो परमाणजी, गाथा-३६. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ८आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: जीवा जीवन मारिइ जीव; अंति: मर्जाद कदी न चुके, गाथा-२. ९. पे. नाम. नेमराजिमती नवरसो, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत चंदलो; अंति: रूपचंद० मुगत मझार जी, ढाल-९, गाथा-४०. १०. पे. नाम. आत्म सज्झाय, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. सिद्धविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बापडलारे जीवडला; अंति: कहे० चढत सवाई रे,
गाथा-११. ११. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. १०अ, संपूर्ण.
मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: दीठो सुविधि जिणंद; अंति: जगत आधार छे हो लाल, गाथा-७. १२. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सहज गुण आगरो स्वामि; अंति: तुज गुण रमाव्यो, गाथा-८. १३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १०आ, संपूर्ण.
मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: तारि हो तारि प्रभू; अंति: विमल प्रभुता प्रकाशे, गाथा-७. १४. पे. नाम. हिरविजय कवित्त, पृ. १०आ, संपूर्ण.
हीरविजयसूरि कवित, क. सोम, मा.गु., पद्य, आदि: सबे मृगनयणी चली; अंति: कवि सोम कहे० पेटनटा, गाथा-१. १५. पे. नाम. हीरविजय कवित्त, पृ. १०आ, संपूर्ण.
म. भानुचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अगड दौदौ धौध; अंति: एक ही ऐ जगतारण कुं. गाथा-१. ६२४०१. (+) कल्पसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २०३+१(११)=२०४,प्र.वि. पत्र ४५+१५८ हैं, पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२४.५४१२, १५४२८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९,
ग्रं. १२१६, (वि. अल्प व कहीं-कहीं प्रतीकरूप में पाठ लिखा है.)
कल्पसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: जयवंतौ प्रवत्तॊ. ६२४०२. (+) कल्पसूत्र का बालावबोध-व्याख्यान १से६, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६५, प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(२७७१३,११-१३४३९).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
४१५ कल्पसूत्र-बालावबोध, आ. शांतिसागरसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६२४०३. (+) तत्त्वसारोद्धार, अपूर्ण, वि. १९२८, मार्गशीर्ष शुक्ल, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १४६-१८(१ से १७,११०)=१२८, प्रले. मु. सुखराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित., दे., (२५.५४१४, ११४३६). तत्त्वसारोद्धार, मु. हुकममुनि, मा.गु., गद्य, वि. १९१९, आदिः (-); अंति: हुकम० आतम लाहाव, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र
नहीं हैं., कषाय वर्णन अपूर्ण से है.) ६२४०४. (+) आगमसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १८६५, वैशाख शुक्ल, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १३७, ले.स्थल. कलकत्ता,
प्रले. श्राव. शितलसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४१३, ८४३०).
__ आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: हिवै भव्यजीवने; अति: सफल फली मन आस. ६२४०५. (+#) ज्ञाताधर्मकथासूत्र की कथा, अपूर्ण, वि. १९०२, चैत्र कृष्ण, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. ९७-२(२ से
३)+२(४५,५९)=९७, ले.स्थल. नवानगर-हालारदेश, प्रले. श्राव. नानचंद उकरडा दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वि.सं. १७७३ में जिर्णगढ में लिखित प्रत से प्रतिलिपि करने का उल्लेख मिलता है, टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२,१६४३७). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: राजग्रही नामा नगरी; अंति: पहुता तेणे कहीउं, (पू.वि. मेघकुमार की
कथा के कुछ पाठांश नहीं हैं.) ६२४०६. (+) कर्मग्रंथ-यंत्र १ से ५, अपूर्ण, वि. १८७६, कार्तिक शुक्ल, ६, रविवार, मध्यम, पृ. ९४-२(२०,४८)=९२, कुल पे. ५,
ले.स्थल. कृष्णगढ, प्रले. हीरानंद मथेन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १४४३३). १. पे. नाम. प्रथमकर्मग्रंथ यंत्र, पृ. १अ-१९आ, संपूर्ण.
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, रा., गद्य, आदि: श्रीवीरजिन प्रते; अंति: अंतराय कर्म बांधे. २. पे. नाम. द्वितीयकर्मग्रंथ यंत्र, पृ. २१अ-२८आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है.
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: १३ अथवा १२ विच्छेद. ३. पे. नाम. तृतीयकर्मग्रंथ यंत्र, पृ. २९अ-३६आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., यं., आदि: श्रीवर्धमान जिनचंद; अंति: तिर्यंचआउ एवं १५
हीन. ४. पे. नाम. चतुर्थकर्मग्रंथ यंत्र, पृ. ३७अ-४७आ-४९आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. शतक नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, पंन्या. सुमतिवर्धन, मा.गु., को., वि. १८७५, आदि: श्रीजिन प्रते नमस्का; अंति: कृष्णगढे
सुभ वास, ग्रं. ९००. ५. पे. नाम. पंचमकर्मग्रंथ यंत्र, पृ. ५०अ-९४आ, संपूर्ण.
सप्ततिका कर्मग्रंथ-यंत्र, पंन्या. सुमतिवर्धन, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिन प्रते नम; अंति: (-). ६२४०७. शुकबहुत्तरी कथा, संपूर्ण, वि. १८०३, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ८१, ले.स्थल. सुजालपुर, प्र.ले.श्लो. (६२७) जलात्र रक्षे तैलात् रक्षे, (११२७) जाद्रसं पुस्तकं लिखे, जैदे., (२६.५४१२.५, १७४४१-४५). शुकबहोत्तरी कथा, मु. रत्नसुंदरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: सयल सुरासुर राया; अंति: चउथो जिनसासन
प्रधान, कथा-७२, गाथा-२४४५. ६२४०८. (+) चंदराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १४-२०४३७). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: (-), (पू.वि. उल्लास-४
ढाल- १२ अपूर्ण तक है.) ६२४०९. (+) काव्यानुशासन की टीका अलंकारचूडामणि, संपूर्ण, वि. १९५६, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ८३, ले.स्थल. पाटण,
प्रले. वलभ लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१३, १३४४१).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
काव्यानुशासन स्वोपज्ञ अलंकारचूडामणिवृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: प्रणम्य परमात्मानं अंतिः चंपूष्वपि द्रष्टव्यः ग्रं. २८००.
६२४१०. वीसस्थानक तपविधि, संपूर्ण वि. १९४० आश्विन शुक्र ११, श्रेष्ठ, पृ. ७६, दे. (२६४१३, ८४३३).
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२० स्थानकतप विधि, मु. ज्ञानसागर- शिष्य, पुहिं. प+ग, आदि (१) श्रीमदर्हतमानम्य, (२) तिहां प्रथम शुभ दिन, अंति: अनंत सुख अनुभवै.
"
६२४११. (#) जीवाभीगम का टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७७ + १ (६८) = ७८, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६X१३, १६X३४-३८).
जीवाभिगमसूत्र - टबार्थ, मु. जिनविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७७२, आदि: प्रणम्य ज्ञानविज्ञान, अंति: (-), ग्रं. ९३००, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., स्वर्ग वर्णन अपूर्ण तक लिखा है., वि. मूलपाठ का मात्र मंगलाचरण दिया हुआ है.)
६२४१२. (+) मानतुंगमानवती रास, संपूर्ण, वि. १९२८, श्रावण शुक्ल, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ७०, ले. स्थल. वलसाड, प्रले. पं. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीमाहावीरस्वामी प्रसादे., संशोधित., दे., (२८x१४, ११x२५).
मानतुंगमानवती रास - मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु, पद्य, वि. १७६०, आदि ऋषभजिणंद पदांबुजे, अंति: मोहनविजय० मंगलमालो है, ढाल ४७, गाथा- १०१५.
६२४१४, (+) रत्नसार रास, संपूर्ण वि. १८६५, आषाढ़ कृष्ण, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६५, ले. स्थल, आयुपुरनगर,
प्र. ग. देवेंद्रसागर (गुरु मु. कल्याणसागर, तपा. सागरशाखा); पठ. ग. भोजविजय (गुरु ग. देवेंद्रसागर, तपा. सागरशाखा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन समय में प्रतिलेखक ने पहले आषाढ मास का उल्लेख किया है पुनः चैत्र मास का उल्लेख किया है, कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, प्र.ले. श्लो. (७६३) मंगलं लेखकानां च, जैदे., (२७X१३, १७३९).
रत्नसार रास-दानधर्म विषये, ग. देवेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८६५, आदि: श्रीजिन अमल कमल धवल; अंतिः देवेंद्र० सुंदर जी, बाल-७१, गाथा- १८६७.
६२४१५. (+#) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६६ - १ ( १ ) = ६५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है. जैवे. (२६.५४१३, १६x४३).
"
जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण..
प्रारम्भिक पाठ नहीं हैं व सीतोवा नदी के उत्तर दिशा में विजयपर्वत वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ६२४१६. (+) श्रीपाल चौपाई, संपूर्ण वि. १८९३, आषाद अधिकमास शुक्ल १२, रविवार, जीर्ण, पृ. ६०, प्र. वि. श्रीसंभवनाथजी प्रसादात., संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५X१३, १३x२३-२५).
श्रीपाल रास- बृहद्, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुण अंतिः जिनहरष० लुणिज्यो रे,
ढाल - ४९, गाथा-८६१.
६२४१७. (+) श्रीपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५२ - १ (३६) = ५१, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X१३.५, १५-१७X३१). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कविय तणी; अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४, गाथा- १८२५, (पू. वि. खंड- ४ ढाल १ अपूर्ण से २ अपूर्ण तक नहीं है.)
६२४१८. (+#) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८९८, श्रावण शुक्ल, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५८ + १ (१३) = ५९, ले. स्थल. गोधूदानगर, प्र. मु. नेमविजय (गुरु पं. मानविजय); गुपि. पं. मानविजय (गुरु पं. विनितविजय); पं. विनितविजय (गुरु पं. कनकविजय); पं. कनकविजय (गुरु पं. रूपविजय गणि) पं. रुपविजय गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१२, १४X३९).
श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कविय तणी, अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४, गाथा - १८२५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
४१७ ६२४१९. (+#) मानतुंगमानवती चौपाई, संपूर्ण, वि. १९०३, श्रावण कृष्ण, १२, सोमवार, मध्यम, पृ. ५९, प्रले. श्राव. लक्ष्मीचंद;
पठ. सा. संतोषश्री; लिख. श्रावि. जडावबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२, १२४३१-३६). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद
पदांबुजे; अंति: मोहनविजयमंगलमालो है, ढाल-४७, गाथा-१०१५. ६२४२०. (+) चोवीसदंडक बोल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२७X१४, ११४३५).
महादंडक ३० द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक १ लेस्या २ ठिती; अंति: (-), (पू.वि. बोल ३० अपूर्ण तक है.) ६२४२१. (+#) स्तुति, पच्चखाणसूत्र व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५९-१०(१ से २,६ से ८,२६,३६,३९ से
४०,४७)=४९, कुल पे. ५०, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खडित है, जैदे., (२६.५४१२.५, ११४३३). १. पे. नाम. दीवाली स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण.
दीपावलीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पापायां पुरि चारु; अंति: स्तौमि वीर प्रभुम्, श्लोक-१. २. पे. नाम. अविरल स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरल कुवल गवल; अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. ३. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: नाभेयाजितवासुपूज्यसु; अंति: नेताः प्रयच्छंतु नः, श्लोक-४. ४. पे. नाम. २४ दंडक स्तुति, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण..
आ. जिनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: रुचितरुचिमहामणि; अंति: भारती भारती, श्लोक-४. ५. पे. नाम. चौवीसजिन स्तुति, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतक पाडल जाई; अंति: माई जौ तूसै अंबाई, गाथा-४. ६. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सिद्धिनाणं, गाथा-४. ७. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमोत्तिअहारसुतारगुण; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम गाथा अपूर्ण मात्र
८. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. ___मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मेलइ मुगति साथ, गाथा-४, (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण से है.) ९. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: गर्भावतारे जनुषिव्रत; अंति: नेत्रे मम नंदनांका, श्लोक-४. १०. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थस्तुति, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.
आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमंडण; अंति: नंदसूरि पाय सेवता, गाथा-४. ११. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अट्ठ सोहइ; अंति: सुख संति कल्याणदाता, गाथा-४. १२. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: विपदः पंचकमदः, श्लोक-१. १३. पे. नाम. तीर्थराजजिन स्तुति, पृ. १०अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराजः पदपद्म; अंति: भावदाता दधतं सीवं वा,
श्लोक-१. १४. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १०अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: देवी दद्यात्सौख्यम, श्लोक-१.
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१५. पे. नाम. पंचकल्याणक स्तवन, पृ. १०अ १२आ, संपूर्ण.
मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: नमिय पयकमल सुभ भावि, अंतिः पुण्यसाग० आराहउ मुदा, गाथा-२१. १६. पे नाम, अजितजिन स्तवन, पू. १२आ- १४अ, संपूर्ण.
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उपा. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पणमुं अजितनाथ भगवंत, अंतिः पुण्यसागर०मह सोहंकरो, गाथा-१८. १७. पे नाम. लोडणपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १४- १६अ, संपूर्ण,
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पार्श्वजिन स्तवन- शेरीसा, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सामि सुहाकरि० पास; अंतिः लावण्यसमय० तिहुवणतिलो, गाथा-१५ (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गाथा गिना है.)
मा.गु., पद्य, आदि: मिय पाय मुणिराय छे; अंति: भगवंत भव भीति हारी, गाथा- ६.
२०. पे. नाम. श्रावक पच्चक्खाण, पृ. १९अ-२२अ, संपूर्ण.
प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उगए सूरे नमुक्कार, अंतिः धोवणादि जल न पीवै.
१८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १६अ १८आ, संपूर्ण.
उपा. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पणमीय पण परमिट, अंतिः उविह संघसुहकर चिरजयउ, गाथा- १९. १९. पे नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १८ आ. १९अ, संपूर्ण
२१. पे. नाम. सीमंधरस्वामी चैत्यवंदन, पृ. २२अ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु, पद्य, आदि: बंदु जिनवर विहरमाण; अंति: कारण परम कल्याण,
"
गाथा - ३.
२२. पे नाम समेतगिरि चैत्यवंदन, पृ. २२अ संपूर्ण,
सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, मु. कल्याण, मा.गु, पद्य, आदि: पूरब देसै दीपतो गिर, अंतिः तीरथ करण कल्याण,
गाथा - ३.
२३. पे नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण
सिद्धचक्र नमस्कार, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु, पद्य, आदि: श्री अरिहंत उदार कांत, अंतिः निधि प्रगटै चेतन भूप,
उवज्झाय ए, गाथा - ३२.
२९. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. २९-३०आ, संपूर्ण.
गाथा-६.
२४. पे. नाम गुरु सज्झाय, पृ. २२आ, संपूर्ण.
गुरुगुण सज्झाय, मा.गु, पद्म, आदिः आज आनंद मुज अतिघणी र अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३ अपूर्ण तक लिखा है.)
२५. पे. नाम. नंदिश्वर स्तवन, पृ. २३अ २४अ, संपूर्ण.
नंदीवरद्वीप स्तोत्र, मु. मेरु, अप., मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मेरु सुभत्तिहि बोलले, गाथा २५, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १२ अपूर्ण से लिखा है.)
२६. पे. नाम. आदिजिन स्तवन- शत्रुंजय मंडन, पृ. २४-२५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयमंडन, मु. रत्नचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविमलाचल तीरथ अंति: (-), (पू.वि. गाथा २३ अपूर्ण तक है.)
२७. पे नाम, सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. २७अ २७आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: भगतिलाभै० मन तणी, गाधा - १८, ( पू. वि. गाथा १० अपूर्ण से है . )
२८. पे. नाम. अजितशांतिजिन स्तवन, पृ. २७आ- २९आ, संपूर्ण.
अजितशांति स्तवन, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: मंगल कमलाकंद ए सुख; अंति: मेरुदण
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महावीरजिन स्तव बृहत् आ. अभयदेवसूरि प्रा., पद्य, आदि; जइज्जा समणे भगवं अंति: एअं पढह कय अभयसूरीहि गाथा - २२.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
४१९ ३०. पे. नाम. नाणपंचमी स्तवन, पृ. ३०आ-३१आ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तव, प्रा., पद्य, आदि: वंदामि नेमिनाह पंचम; अंति: कीत्तिराय मणोहरो, गाथा-११. ३१. पे. नाम. पंचपरमेष्टिनमस्कार स्तोत्र, पृ. ३१आ-३३आ, संपूर्ण.. नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पत्तरू रे; अंति: तणी सेवा देज्यो
नित, गाथा-१३. ३२. पे. नाम. नवग्रहगर्भित पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३३आ-३४अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, प्रा., पद्य, आदि: अरिहं थुणामि पास; अंति: पुरओ विचिटुंतु, गाथा-१३. ३३. पे. नाम. चैत्रीपूर्णिमा स्तवन, पृ. ३४अ-३५आ, संपूर्ण.. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: पय पणमी रे जिणवरना; अंति: साधुकीरति इम कहै,
गाथा-१७. ३४. पे. नाम, थंभनपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३५आ-३८आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ___पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमुरे पास; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १
अपूर्ण व गाथा ६ अपूर्ण से गाथा १६ अपूर्ण तक है.) ३५. पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. ४१अ-४२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. शत्रुजयतीर्थ बृहत्स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: समयसुंदर गुण भणै, गाथा-३२,
(पू.वि. गाथा २ अपूर्ण से है.) ३६. पे. नाम. मौनएकादशी स्तवन, पृ. ४२आ-४३अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बइठा भगवंत; अंति:
समयसुंदर कहो द्याहडी, गाथा-१३. ३७. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ४३आ-४४आ, संपूर्ण. ___ महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति:
थुण्यो त्रिभुवन तिलो, गाथा-१९. ३८.पे. नाम. पोसहविधि स्तवन, पृ. ४४आ-४८अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. पौषधविधि स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: जेसलमेर नगर भलो जिहा; अंति:
समयसुंदर भणै सीस, ढाल-५, गाथा-३७, (पू.वि. गाथा १७ अपूर्ण से गाथा ३४ अपूर्ण तक नहीं है.) ३९. पे. नाम. शीतलनाथ स्तवन, पृ. ४८अ-४९अ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन-अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: मोरा साहिब हो; अंति: समयसुंदर०
जनमन मोह ए, गाथा-१५. ४०. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. ४९अ-५०आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन-बृहत्, वा. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: महिय महिमावंतू ए; अंति: गणि पदमराज पभणै जगीस,
गाथा-१९. ४१. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तवन, पृ. ५०आ-५२अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरुपाय; अंति: भगति
भाव प्रसंसीयो, ढाल-३, गाथा-२०. ४२. पे. नाम. सत्तरभेदीपूजा स्तवन, पृ. ५२अ-५४आ, संपूर्ण. १७ भेदी पूजा, मु. जिनप्रभसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजिण पमुह चउवीस; अंति: गुरु सीस जपै सुहकरो,
ढाल-६, गाथा-३४. ४३. पे. नाम. तीर्थावली स्तवन, पृ. ५४आ-५५अ, संपूर्ण. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सेजेजे रीषभ समोसर; अंति: समयसुंदर कहे
एम, गाथा-१६.
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४२०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४४. पे. नाम. गउडेचापार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ५५अ-५६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन बृहत्स्तवन-गोडीजीदशमीतिथि, मु. समयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिनेसर जगतिलोए; अंति:
समयरंगगणि इम बोलै, ढाल-५, गाथा-२३. ४५. पे. नाम. वरकाणापार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ५६आ-५७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-१० भववर्णन, मु. मतिविसाल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसारद हो पाय नमे; अंति: मति विलास
सुखीया करै, गाथा-१३. ४६. पे. नाम. जीरावलापार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ५७आ-५८अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मा.गु., पद्य, आदि: जीरावलादेव करुं जुहा; अंति: करी सेवक मझ थापो, गाथा-१०. ४७. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ५८अ-५८आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. सुजयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: करो ध्यान जिणेसर पास; अंति: सुजयसागर० वधारीयै, गाथा-७. ४८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५८आ-५९अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: भली भावना भाग संयोग; अंति: मंदिर ह कल्याण कोटे, गाथा-९. ४९. पे. नाम. जीरावला पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ५९अ-५९आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मु. मेरु, मा.गु., पद्य, आदि: वामातणओ नंद पार्श्वन; अंति: श्री मुनिमेरु बोलै, गाथा-८. ५०. पे. नाम. थंभनपुरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपुरि सिरि पासजिण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण तक है.) ६२४२४. (+) रोहिणी चौपाई, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १२४३२-३५). रोहिणी चौपाई, मु. कर्मसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १७३०, आदि: श्रीजिन पययुग प्रणमि; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२९
गाथा ५ अपूर्ण तक है.) ६२४२५. (+) दंडक बोल विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३, कुलपे. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२.५,
१८x११-१६). १.पे. नाम. चौवीस दंडक द्वार बोल, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण.
२४ दंडक बोल संग्रह , मा.गु., गद्य, आदि: नारकी सातनो दंडक एक; अंति: जीव अनंतगुणाधिक. २.पे. नाम. बारह पर्षदा विचार, पृ. ६अ, संपूर्ण.
१२ पर्षदा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अग्निकूणमै गणधर १; अंति: मनुष्यस्त्री ३. ३. पे. नाम. अशुचिस्थान गाथा, पृ. ६अ, संपूर्ण.
१४ अशुचिस्थान गाथा, प्रा., पद्य, आदि: उच्चारे १ पासवणे २; अंति: च्छिमा मणुअ पंचिंदी, गाथा-२. ४. पे. नाम. बासठ बोल गाथा सह बालावबोध, पृ. ६अ-९अ, संपूर्ण, वि. १८९१, कार्तिक कृष्ण, ९, ले.स्थल. फलवद्धी,
प्रले. पं. लब्धिविशाल, प्र.ले.पु. सामान्य. ६२ बोल गाथा, प्रा., पद्य, आदि: गइ इंदिए काए जोए वेए; अंति: भवसम्मे सन्नि आहारे, गाथा-१.
६२ बोल गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: देवगति मांहि जीवरा; अंति: लेश्या ६ स्तोकः. ५. पे. नाम. चौबीस दंडक बयालिस बोल विचार, पृ. ९अ-२२आ, संपूर्ण.
२४ दंडक ४२ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: शरीर ५ अवगाहना २; अंति: सोपक्रमान जीवयोनिन. ६. पे. नाम. उत्कृष्ट अवधि, पृ. २२आ-२३अ, संपूर्ण.
जीव के जघन्य उत्कृष्ट आयुष्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि: भुवनपती प्रथम असुर; अंति: चेंद्रीयूँजीवसंज्ञा. ६२४२६. (#) विक्रमसेनराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८-९(२७ से ३५)=२९, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १६४३३). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सुखदाता संखेश्वरो; अंति: (-),
(पू.वि. ढाल-३९ अपूर्ण तक व ढाल-४९ अपूर्ण से ढाल-५२ अपूर्ण तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
६२४२७. (+) पांच बोल, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल. लींबडी, प्रले. मु. मोतीचंद ऋषि, पठ. सा. कुवरबाई आर्या, अन्य. सा. अजवाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे. (२६.५x१२.५, १९५२७-३०).
"
५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो नरकनो द्वार; अंति: सुख भोगवता विचरे..
६२४२९. (+) मौनएकादशी चौपाई व जंबूस्वामी चोढालीयो, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे.,
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(२५x१२, १७४३०-३७).
१. पे. नाम. मौनएकादशी चौपाई, पृ. १अ - ८आ, संपूर्ण.
मौनएकादशीव्रत चौपाई, मु. आलमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: च्यार तिर्थंकर सासता, अंति: आलमचंद० गुणगावे छे, ढाल १३.
२. पे. नाम. जंबूस्वामी चोढालीयो, पृ. ८आ- १२आ, संपूर्ण.
जंबूस्वामी चौढालीयो, मु. दुर्गादास, मा.गु., पद्य वि. १७९३, आदि: पुरसादाणी परमप्रभुः अंतिः आणंद होय उदारीजी,
ढाल - ५.
६२४३० (+) चौमासी चतुर्दशी व्याख्यान, संपूर्ण वि. १९००, कार्तिक शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले. स्थल, कुरलाया, प्रले. मु. शिवदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैये., (२६X१२.५, १४X३३-४३).
चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु. सं., पग, आदि सामाइकावश्यक पौषधानि अति: मिच्छामिदुक्कडं देवो. ६२४३१. धर्मोपदेश व्याख्यान व गाथा संग्रह, संपूर्ण वि. १८६३ श्रावण अधिकमास कृष्ण, ११. श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. २,
प्रले. मु. दयालसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२.५, १४४४५).
१. पे. नाम. धर्मोपदेश व्याख्यान, पृ. १आ- १७आ, संपूर्ण.
व्याख्यान संग्रह *, प्रा., मा.गु., रा. सं., गद्य, आदि: देवपूजा१ दया२ दानं३; अंति: निर्वाण मार्ग पामै. २. पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १७आ, संपूर्ण.
जैनगाथा संग्रह", प्रा. मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा ४.
६२४३२. (+) चौबीस महादंडक विचार, संपूर्ण, वि. १९०३ फाल्गुन शुक्ल, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २४, ले. स्थल. नउत्तनपुर, प्र. मु. ज्ञानचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४.५X१२.५, १६X३६).
४२१
२४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक१ लेस्या २ ठिति; अंति: जेम जीवने सुख थाय. ६२४३३. चोवीसजोडाना देववंदन, संपूर्ण, वि. १९४०, आश्विन कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्रले. पं. नरेंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीपलव्याजीमाहाराज प्राशादात्., दे., ( २६.५X१२.५, ११X३६).
चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदिः विमलकेवलज्ञान कमला, अंतिः पास सामलनु चेई रे. ६२४३४. गुणस्थान द्वार बोल, संपूर्ण, वि. १९३८, भाद्रपद कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले. स्थल. वीसनगर, प्रले. श्राव. धनसुख बेचर,
पठ. मु. भक्तिविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५x१३, ११४३४).
१४ गुणठाणा २१ द्वार, मा.गु, गद्य, आदि: नाम १ लक्खण गुण २ अंतिः सुत्रधी जाणवो.
६२४३५. श्रावकआराधना का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९०३, आश्विन शुक्ल, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल. पेथापुरनगर, प्रले. श्राव. वर्द्धमान पानाचंद गांधी, पठ. मु. मयसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीसुविधिनाथस्वामी प्रसादे., प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (९८३) जब लग मेरु थीर रहे, दे., ( २६१२.५, १३X२८-३५).
श्रावक आराधना-बालावबोध, उपा. राजसोम, मा.गु., गद्य, वि. १७९५, आदि: इहां आराधनानें विषे; अंतिः वर्यैश्चाराधना चक्रे.
६२४३६. (+) स्नात्रपूजा विधि सहित, संपूर्ण, वि. १९१० वैशाख शुक्ल ८, सोमवार श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल राजनगर, प्रले. पं. खूबचंद (खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीदादाजी प्रसादात्., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले. लो. (१९२९) जब लग मेरु अडिग है, दे., (२५x१३, १३४३० ).
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४२२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चौतीसे अतिसै जूओ; अंति: देवचंद कही
सूत्रमझार, ढाल-८, गाथा-६०. ६२४३७. नवपदपूजा व राजलोक मान, संपूर्ण, वि. १९१२, आश्विन कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २, दे., (२३४१३,
११४२६). १. पे. नाम. नवपदपूजा, पृ. १आ-१२आ, संपूर्ण. नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: कोई नये न अधूरी रे,
पूजा-९. २. पे. नाम. राजलोक मान, पृ. १२आ, संपूर्ण.
१४ राजलोक प्रमाण, मा.गु., गद्य, आदि: कोई देवता सोधर्मदेव; अंति: असंख्याता समुद्र छै. ६२४३९. सत्तरभेदीपूजा व गोडीपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२७७१३, ११-१५४३२). १.पे. नाम. सत्तरभेदी पूजा, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण, वि. १८५४, चैत्र कृष्ण, १०, ले.स्थल. पालिताणा, प्रले.पं. गणेशविजय,
प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. श्रीऋषभजिन प्रसादात्.
१७ भेदी पूजा, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: सर्वज्ञ जिनमानम्य; अंति: तस घर होइ आणंदारे, पूजा-१७. २.पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण, वि. १८९८, चैत्र कृष्ण, १०, अन्य. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य.
पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: अमी आउ नियडो कंदी गो; अंति: गड्यो खिलि हूंआ खर, गाथा-६. ६२४४०. (+) भोजचरित्र, नंद बुहुत्तरी व दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, कुल पे. ४, प्रले. पं. विनयविजय गणि (गुरु
पं. अमृतविजय); गुपि.पं. अमृतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१४.५४११, १६x४३). १. पे. नाम. भोजचरित्र पनरमीविद्या वात, पृ. १अ-२१आ, संपूर्ण, वि. १८२०, आश्विन कृष्ण, १०, रविवार. भोजवार्ता-पंद्रहवीं विद्या गर्भित, भवानीदास व्यास, मा.गु., प+ग., आदि: गणपति सरसति शिव विस; अंति: को
धरम धजाधारी थयो. २. पे. नाम. नंदबहुत्तरी, पृ. २१आ-२३अ, संपूर्ण, वि. १८२१, कार्तिक कृष्ण, ४, रविवार, ले.स्थल. चुली, पे.वि. श्रीवीरजी
प्रशादात.
मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: सबही नगर सिर सेहरोप; अंति: तरी वील्हा वास मझार, गाथा-७२. ३. पे. नाम. जिनरंगकृत दूहा, पृ. २३अ-२४आ, संपूर्ण, वि. १८२१, आषाढ़ कृष्ण, १४, सोमवार, ले.स्थल. विद्यापुरनगर,
पे.वि. श्रीवरकारक प्रशादत्.
दोहावली, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: लोचन प्यारे पलकको कर; अंति: जिनरंग० कनक की जोडि, गाथा-६९. ४. पे. नाम. औपदेशिक प्रहेलिका, पृ. २४आ, संपूर्ण, वि. १८२७, फाल्गुन शुक्ल, २, प्रले. मु. हरुजी, प्र.ले.पु. सामान्य.
प्रहेलिका संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. ६२४४१. (+) हंडी की ढाल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २८-२०(१ से २०)=८, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१३, ११४२७).
हुंडी ढाल, मा.गु., पद्य, वि. १८८०, आदि: (-); अंति: वहु ढाड देस मझोरौरै, गाथा-६४३, (पू.वि. द्वितीय अंग वर्णन
___ अपूर्ण से है.) ६२४४२. (#) पंचकल्याणक पूजा, संपूर्ण, वि. १९०८, पौष कृष्ण, १०, शुक्रवार, जीर्ण, पृ. ६, ले.स्थल. पालनपुरनगर,
प्रले. श्राव. अमुलख वखतराम; पठ. पं. सुखविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपल्लवियापार्श्व प्रशादात्., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७४१३, १४४३६). पार्श्वजिन पंचकल्याणक पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८९, आदि: श्रीशंखेश्वर साहिबो; अंति: वंछितदाय
सहायो रे, ढाल-८. ६२४४३. (#) तीर्थमाला, संपूर्ण, वि. १८९९, भाद्रपद कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. जुनेरनगर, प्रले. मु. चंदुलाल; पठ. मु. दानशीयल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १२४४३). शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरंग, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: विमलाचल वाल्हा वारू; अंति: नित नमो
गिरिराया रे, ढाल-१०.
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י'
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
४२३
६२४४४. (+) चतुर्विंशतिदेववंदन व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६१, आषाढ़ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ५, ले. स्थल. डीसा,
प्र. वि. श्रीमहावीरसांमी प्रसादात् संशोधित, जैवे. (३४४१४, १२-१५४३९).
* ,
१. पे नाम, आदिजिन चैत्यवंदन, प्र १अ संपूर्ण
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मा.गु., पद्य, आदि: पढम मुनिवर मुनिवर, अंति: जिण दुजय निजिअ कम्म, गाथा- ३.
२. पे नाम, २४ जिन स्तवन, पृ. १अ ७अ, संपूर्ण
उपा. राजरत्न; आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ( १ ) आदिपुरुष अरिहंत अकल, (२) कनकतिलकभाले हार हइये, अंतिः (१) राजरत्न० आज अधिक आणंद, (२) नंद० विनव्या सुखदायक, स्तवन- ४८.
३. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. ७आ, संपूर्ण
मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजगनायक सुरतरु मन; अंति: देव ए मुज प्रणाम, गाथा-२.
४. पे नाम, सीमंधरजिन धुई. पृ. ७आ, संपूर्ण,
सीमंधरजिन स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर मुजने वाल, अंतिः शांतिकुशल सुखदाताजी,
गाथा-४.
५. पे. नाम. शास्वतजिनबिंब स्तवन, पृ. ७आ-८अ संपूर्ण.
श्राव. देपाल, मा.गु., पद्य, आदि: भुवन विसात कोडी लाख; अंति: पामे बोलि कवी देवाल, गाथा- ११. ६२४४५. (+) चेलणासती चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें, दे., (२६.५X१२.५,
१०X३५).
चेलणासती चौपाई, मु. दयाचंदजी ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसमा महावीरजी; अंति: यी छै जनम मरण मिटासी,
ढाल- १३.
६२४४६. (+#) । साधुवंदना व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९११, आषाढ़ कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, अन्य. मु. छैगमल्ल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६.५x१२.५, १०४२९).
१. पे नाम, साधुवंदना, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण.
आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहजिण पमुह चउवीस; अंति: मन आणंदे संथुआ, ढाल-७, गाथा- ८९. २. पे नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है.
मु. रघुपति, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिनवीर कृपाकर, अंति: रघुपति० परम विवेक जी, गाथा-८.
६२४४७. (+) जंबूस्वामी चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित. जैदे. (२६.५x१२.५,
,
१५X४२-४५).
जंबू अध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मा.गु., गद्य, आदिः एकदा प्रस्तावै, अंति: (-), (पू. वि. तीसरी स्त्री दृष्टांत कथा पूर्ण
तक है.)
६२४४८. (+) जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा व आरती, संपूर्ण, वि. १९१६ कार्तिक शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ५. कुल पे. २. ले. स्थल. कामठी, प्रले. पं. महिरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. संशोधित. दे., (२७४१३, ८४३३).
१. पे नाम, जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण
आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि: स्मृत्वा गुरुपदाभोज; अंति: त्संस्तुवैः संस्तुतं, ढाल-८. २. पे. नाम. जिनकुशलसूरि आरती, पृ. ४-५ अ, संपूर्ण
मा.गु., पद्य, आदि: जय जय गुरु राजा सारै; अंतिः सुत रिद्धि तन ताजा, गाथा - ५.
६२४४९. सिद्धगिरि स्तुति, संपूर्ण, वि. १९२७, पौष कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., ( २६.५X१३, १४x२९).
शत्रुंजयतीर्थ १०८ खमासणाना दुहा, मु. कल्याणसागरसूरि-शिष्य, मा.गु. पद्य, आदिः श्रीआदीश्वर अजर अमर अंतिः बेलि बाधे जससिरी, गाथा १०९.
६२४५० (+) श्रीपाल चरित्र, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९२. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४४१२.५,
११x२५).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेलि कवियण
तणी; अंति: (-), (पू.वि. कलश की गाथा ६ अपूर्ण तक है.) ६२४५१. (+) चंदराजा चरित्र, संपूर्ण, वि. १९३६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. ६०, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७७१२.५, २१४४६).
चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: मोहनविजये० गुण चंदना,
उल्लास-४, गाथा-२६७९, (वि. ढाल-१०८.) ६२४५२. चंद चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ९९-४६(१ से ३८,४२,४५ से ४६,५१,५३,५५,५८,६७)=५३, प्रले. पं. रत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१२, १५४३३). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., उल्लास-१ ढाल-२० गाथा-१५ से है व उल्लास-४ ढाल-७ तक लिखा है. बीच-बीच के पाठ
नहीं हैं.) ६२४५३. मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९०३, भाद्रपद कृष्ण, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. ५३-२(१ से २)=५१, ले.स्थल. पुर,
प्रले. मु. जेठमल (गुरु मु. हंसराज ऋषि, लुंकागच्छ); गुपि. मु. हंसराज ऋषि (गुरु मु. सेवाराम ऋषि, लुंकागच्छ); मु. सेवाराम ऋषि; राज्यकालरा. सरूपसिंघ, प्र.ले.पु. मध्यम, दे., (२३.५४१३, १५४२६-२८). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदिः (-); अंति: घर
घर मे मंगलमाला है, ढाल-४७, गाथा-१०१५, (पू.वि. ढाल-२ गाथा-१२ से है.) ६२४५४. (+) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५६, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. १५००, जैदे., (२४.५४१२.५, १३४३०-३५). पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि: स्मृत्वा पार्श्व; अंति: हेतुः सकामान्,
श्लोक-६२४.
पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ जीनेश; अंति: सुख पामस्यौ भव्यजीवौ. ६२४५५. हंसराजवच्छराज चौपाई, संपूर्ण, वि. १९०३, माघ शुक्ल, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४७, ले.स्थल. जनकपुर, प्रले. मु. हंसराज
ऋषि (गुरु मु. सेवाराम ऋषि, लुंकागच्छ); गुपि.मु. सेवाराम ऋषि; पठ. श्राव. जीतमलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (८३९) जादृसं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२३४१२.५, १४४२५-३५). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदीस्वर आदिकरि चोवीस; अंति:
सूरि० हंस अनैवछराज, खंड-४, गाथा-९११, ग्रं. १३००, (वि. ढाल-४५.) ६२४५६. स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २७-१(२)=२६, कुल पे. २३, दे., (२३४१२.५, १३४२४). १.पे. नाम. १५ तिथि स्तुति संग्रह, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक मिथ्यात असंयम; अंति: (-), (पू.वि. तृतीयातिथि स्तुति गाथा-२ तक है.) २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं.
मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: आपणी आनंदघनपद येह, गाथा-६, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से
३. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण.
मु. पुनो, रा., पद्य, आदि: वीरजिणंद समोसर्या जी; अंति: पामें भव पार कुमरजी, गाथा-२१. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण.
औपदेशिक बारहमासी सज्झाय, आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन पारसनाथनां; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१९ अपूर्ण तक लिखा है.) ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण..
औपदेशिक सज्झाय-जीवदया, आ. कीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वाणि तो सुणी श्रीजिन; अंति: कीर्तिसूरि उपदेश
इसौ, गाथा-९. ६. पे. नाम. ढंढणकुमार सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
ढंढणऋषि सज्झाय, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढण ऋषिजीनै वंदणा; अंति: जिनहर्ष सुजाण रे, गाथा-९. ७. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण.
मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबलि चारित लीयो; अंति: विमलकीर्ति गुण गाय, गाथा-१२. ८. पे. नाम. नेमराजल स्वाध्याय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.
रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हेतविजय, रा., पद्य, आदि: प्रणमी सदगुरु पाय; अंति: पद राजुल लह्यो जी, गाथा-११. ९.पे. नाम. दानशीलतपभावना प्रभाति, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिनधर्म कीजिइ; अंति: समयसु० फल त्यांह रे, गाथा-६. १०. पे. नाम. नेमराजिमती बारमास सज्झाय, पृ. ८आ-९आ, संपूर्ण.
आ. विनयसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल उभी विनवेजी का; अंति: धनि राजुल नारी हो, गाथा-१५. ११. पे. नाम. तेरहकाठिया सज्झाय, पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण. १३ काठिया दोहरा, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: जे वटवारै वाट मै करै; अंति: दसा कहीयै रहै
तीन, गाथा-१७. १२. पे. नाम. अठार पापस्थानीक सज्झाय, पृ. १०आ-२०अ, संपूर्ण. १८ पापस्थानक सज्झाय, आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६५२, आदि: श्रीजिनवरनै नामुं; अंति: गुणसागर० हरष
अपार, सज्झाय-१९, गाथा-१४१. १३. पे. नाम. विषयतृष्णानिवारण सज्झाय, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-विषयतृष्णानिवारण, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: धिग धिग कामविटंबना;
अंति: ते पाल सील उदारो रे, गाथा-१४. १४. पे. नाम. येलाचीपुत्र सज्झाय, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नमी एलापुत्र जाणीय; अंति: लब्धिविजय गुण गाय,
गाथा-९. १५. पे. नाम. अहीरण सीझाय, पृ. २१आ-२२आ, संपूर्ण. अरणिकमुनिसज्झाय, मु. कीर्तिसोम, मा.गु., पद्य, आदि: यक दिन अहिर्ण जाम उठ; अंति: कीरतिसू० इणपरि भणै ए,
गाथा-२४. १६. पे. नाम. प्रसन्नचंदराजर्षि सज्झाय, पृ. २२आ-२३अ, संपूर्ण. प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, म. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राज छंडीरलीयामणो; अंति: रीधहर्ष सुख प्रतक्ष,
गाथा-६. १७. पे. नाम. रात्रीभोजन सज्झाय, पृ. २३अ-२४अ, संपूर्ण.
रात्रिभोजन निवारण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अवनितलि वारु वसेजी; अंति: साध्या आपणा काजरे, गाथा-२१. १८. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २४अ-२५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-दक्षण करहेटक, मु. खेमकलश, मा.गु., पद्य, आदि: महिमंडल सुणी श्रवण; अंति: खेमकलश० इण
परि कहै, गाथा-१३. १९. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण.
मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावेरे मेघ; अंति: अमर तुट करमना पास, गाथा-५. २०. पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. २५आ-२६अ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रयवाडी चड्यो; अंति: समयसुंदर० कर जोडि, गाथा-९. २१. पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. २६अ-२६आ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरे वखाणी राणी; अंति: समय० पामसी भवतणो पार, गाथा-७. २२. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. २६आ-२७अ, संपूर्ण.
मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, आदि: दोगुंदक सुरनी परे; अंति: ज्ञान विविध प्रकार, गाथा-१४.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
२३. पे. नाम. वज्रस्वामी सज्झाय, पृ. २७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: कहइ सुनंदा बांह पसार, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ६२४५७. (+) दीवालीकल्प, संपूर्ण, वि. १८६६, कार्तिक शुक्ल, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. २३, ले. स्थल. आयुपुरनगर, प्रले. मु. देवेंद्रसागर (गुरु ग. कल्याणसागर); गुपि. ग. कल्याणसागर, पठ. पं. युक्तिहंस गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २३x१२, १६x२७-२९).
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दीपावलीपर्व कल्प, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., सं., गद्य, आदि: प्रणम्य सम्यक् परम; अंति: मंगल श्रेयपणु पामीयै. ६२४५८. (०) रत्नचूडमुनि रास, संपूर्ण, वि. १७८३, फाल्गुन शुक्ल, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २३, ले. स्थल बीलाडा, प्रले. मु. प्रतापसी
(गुरु उपा. करमचंद); गुपि. उपा. करमचंद (गुरु उपा. गांगजी गणि); उपा. गांगजी गणि (गुरु उपा. आसा गणि); उपा. आसा गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१३, १६X३७-४४).
रत्नचूड रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५७, आदि: प्रणमुं जिनवर पास; अंतिः जिनहरष मुनिंदा रे, ढाल ३१,
गाथा-६३७.
६२४५९. (#) गुणकरंडगुणावली चौपाई, संपूर्ण, वि. १८५३, पौष शुक्ल १, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले. स्थल. मिसरोली,
प्रले. पंडित. चत्रभुज; लिख. सा. उदाजी (गुरु सा. सरूपाजी आर्या); गुपि. सा. सरूपाजी आर्या (गुरु सा. खुश्यालाजी आर्या); सा. खुश्यालाजी आर्या (गुरु सा. देउजी आर्या); सा. देउजी आर्या, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (९२१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., ( २४४१३, १७३८).
"
गुणकरंडकगुणावलि चौपाई, मु. दीपचंद ऋषि, मा.गु. पच, वि. १७५४, आदि: संपति सुखदायक सरस अंतिः थिर संपति जस थावैजी, ढाल - २७, गाथा - १६०३.
६२४६० (+) विंशतिस्थानक स्तुतिमय पूजाविधि, संपूर्ण वि. १९१७ आश्विन अधिकमास कृष्ण, १२. गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, प्र. मु. प्रेमसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. प्र. ले. श्रो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२३.५४१४, १९३२).
२० स्थानक पूजा, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु, पद्य वि. १८५८, आदिः सुखसंपतिदायक सदा जग, अंति: (१) जिनहरष० तणी रचना करी, (२) जिणहरख० पंकविखंडनाय, पूजा - २०.
६२४६२, (A) कयवन्नासाधु चौपाई, संपूर्ण, वि. १८८१, फाल्गुन कृष्ण, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २७, ले. स्थल, देवगढ, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५X११.५,
१०- १२X३५).
कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य वि. १७२१, आदि: स्वस्त श्रीसुखसंपदा, अंति: जयरंग० मन उलसें वे,
',
ढाल- ३१, गाथा - ५५५.
६२४६३. (+१) चौसठप्रकारी पूजा विधिसहित, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २२- १(१ ) २१. पू. वि. बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५X१३, १४x२८).
६४ प्रकारी पूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. दिवस - १ जलपूजा दोहा-६ अपूर्ण से दिवस-५ पुष्पपूजा गाथा-५ अपूर्ण तक है.)
६२४६४. (+) महावीरजिन स्तवन- स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२३X१३, १८X३७).
महावीरजिन स्तवन- स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदिः प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: (-), (पू.वि. ढाल - ७ प्रशस्ति की मात्र दो अंतिम गाथाएँ नहीं है.) महावीरजिन स्तवन- स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जत्थय जं जाणिज्जा, अंति: (-).
६२४६५. श्रावकपाक्षिकअतिचार चौपाई, अपूर्ण, वि. १८८७, फाल्गुन कृष्ण, ५, मध्यम, पू. ३८-२२ (१ से २२) १६. प्रा. पं. रूपचंद, पठ श्रावि, मुन्ना बीबीजी, प्र. ले. पु. सामान्य प्र. वि. श्रीशांतिनाथजी प्रसादात्., जैदे., (२५.५५१३, ८x२६-२८).
1
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
४२७ श्रावकपाक्षिक अतिचार-पायचंदगच्छीय, संबद्ध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नाणे दंसण चरणे जाण;
____ अंति: लहिजो शिवसुखनी संपदा, गाथा-१५५, संपूर्ण. ६२४६६. चौमासी देववंदना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, दे., (२४.५४१३, ११४३२-३५).
चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अलवेसरू; अंति: पास सामलनु चेई रे. ६२४६७. (#) लीलावतीसुमतिविलास रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-३(१,१६ से १७)=१७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२.५, ११-१५४३५). लीलावतीसुमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१
गाथा-८ अपूर्ण से ढाल-१४ गाथा-३ अपूर्ण व ढाल-१६ गाथा.३ अपूर्ण से ढाल-२० गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ६२४६८. श्रावक अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, दे., (२५४१३, ९४२३).
श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दसणंमि०; अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं. ६२४६९. सुपात्रदानादि विषयक दृष्टांतकथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११+४(१ से ४)=१५, प्र.वि. प्रथम पत्रानुक्रम-१ से
४ व द्वितीय पत्रानुक्रम १ से ११ दोनो स्वतंत्र रूप से है परंतु विषय समान होने से दोनो को साथ में रखा गया है., जैदे., (२४४१३, १८४३३).
सुपात्रदानादि विषयक व्याख्यान संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: दानं सुपात्रे विसदं; अंति: प्रकारे सुख पामे. ६२४७०. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ७५१, जैदे., (२५.५४१२,१५४४३).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवार पुण्णं३; अंति: परियट्टो चेव संसारो, गाथा-२६. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. सोमसुंदरसूरि शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: यथास्थित साचो जीवनो; अंति: अर्द्धमाहि
मोक्ष जाइ. ६२४७१. (#) १८ पापस्थानक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९२३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. महमदपुर,
प्रले. मु. हीरविजय गणि; लिख. जवेर देसाई; अन्य. मु. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१२.५, १२४२७). १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापथानक पहिलूंका; अंति:
वाचकजस इम आखै जी, सज्झाय-१८, ग्रं. २११. ६२४७२. (+) चंदराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१२.५, १६४३२). चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: श्रीजिननायक समरीइं; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-११
गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) ६२४७३. सुमतीविलासलीलावती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-७(१ से ६,८)=१२, जैदे., (२३.५४१३, १३४२८-३१). लीलावतीसुमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: (-); अंति: सुखसंपती सूर रसालेजी,
ढाल-२१, गाथा-३४८, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल-६ गाथा-५ अपूर्ण से गाथा-२७ अपूर्ण तक व ढाल-७
गाथा-१ अपूर्ण से है.) ६२४७४. (+) जंबूपृच्छा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-२(१ से २)=१०, पृ.वि. बीच के पत्र हैं..प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५४१२.५, १५४२७-३१). जंबूपृच्छा, मु. वीरजी, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-१० अपूर्ण से ढाल-११
दोहे-५ अपूर्ण तक है.) ६२४७५. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. १३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१३, १३४३३).
१.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
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४२८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार; अंति: पूरि आस्या मनतणी,
गाथा-१८. २. पे. नाम. पंचमीतप वृद्धि स्तवन, पृ. २अ-४अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरुपाय; अंति: भगति
भाव प्रसंसीयो, ढाल-३, गाथा-२१. ३. पे. नाम. पंचमी लघुस्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचिम तप तुम्है करो; अंति: समयसुं०पांचमो
भेदरे, गाथा-५. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल; अंति: जिनचंद०
फली सहु आस, गाथा-९. ५.पे. नाम. मुनएकादशीरो स्तवन, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बैठा भगवंत; अंति: कहै
कह्यो दाहडी, गाथा-१३. ६.पे. नाम. अजितशांतिजिन स्तवन, पृ. ५आ-८आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह,
गाथा-४०. ७. पे. नाम. सीमंधरस्वामि द्वितीया स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण.
बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्निसोवन; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ८. पे. नाम. वीसविहरमान स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण.
विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषे विहरंत; अंति: जण मन वंछित सारइ, गाथा-४. ९. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.
आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमु; अंति: इम जीवित जनम प्रमाण, गाथा-४. १०.पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण..
सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: विपदः पंचकमदः, श्लोक-४. ११. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: अविरलकवलगवल मुक्ताफल; अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १०आ, संपूर्ण.
आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन नरेसर वामा; अंति: जिनभक्तिसूरि० वित्त, गाथा-४. १३. पे. नाम. सीमंधरस्वामी वीनती स्तवन, पृ. १०आ-११आ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सनेही साजन; अंति: जिनचंद० प्रेम अभंग, गाथा-९. ६२४७६. बावीसपरिसह चौपाई व वंकचूल चोढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रावण कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २,
प्रले. मु. धनसुखदास ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१३, १६४३२). १. पे. नाम. बावीसपरीसारी चौपई, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण. २२ परिसह सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: श्रीआदेसर आद दै; अंति: रायचंदो० भलै बारो
जी, ढाल-२२. २.पे. नाम. वंकचूलनो चोढालीयो, पृ. ७आ-१०आ, संपूर्ण. वंकचूल चौढालियो, मु. फतेचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८१, आदि: पुर हथिणापति वंदीयै; अंति: फतेचंद० कहे इम वाण
ए, ढाल-४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
४२९ ६२४७७. (+) भरतबाहुबली व हरिबलमच्छी कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे.,
(२३.५४१३, १३४२३). १.पे. नाम. भरतबाहुबली कथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ____ मा.गु., गद्य, आदि: विनयरो नास करे ते; अंति: तेहथी घणा सुख पामौ. २. पे. नाम. हरिबलमच्छी कथा, पृ. १आ-१०अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: इणही ज भरतने क्षेत्र; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., हरिबल का विभीषण की
पुत्री से विवाहोपरांत राज्य प्राप्ति के प्रसंग तक लिखा है.) ६२४७८. २४ जिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२४.५४१२.५, ९-१३४४७).
२४ जिन स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभजिणंद ऋषभजिणंद; अंति: (-), (पू.वि. नेमिजिन स्तवन
गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ६२४७९. (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(८)=९, कुल पे. ९, प्र.वि. पत्रांक-१ व ४ आधुनिक है., संशोधित.,
दे., (२१x१२.५, १२-१५४२२-२८). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार हुँ; अंति: भगतिलाभ० मुज
तणी, गाथा-१७. २.पे. नाम. प्रभातीदरसण पूजा, प्र. २आ-३आ, संपूर्ण. जिनपूजाफल स्तवन, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: समरी सरस्वती सामिण; अंति: रीषभदासकहै ते नर तरी,
गाथा-१३. ३. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन छंद, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास संखेसरो मन; अंति: पास संखेसरो आप तूठा,
गाथा-७. ४. पे. नाम. नवकार छंद, पृ. ४अ-६अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पूरे विविध; अंति: ऋधी वंछित फल
लेह, गाथा-१३. ५. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपारसनाथजीरी सेवा; अंति: भावरतन गुण गावे, गाथा-७. ६. पे. नाम. बीज थुई, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: लबधि० पूरि मनोरथ माय,
गाथा-४. ७. पे. नाम. पार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: कंवल कंवल माहे धवल; अंति: जीणचंद०
सफल फली ए आस, गाथा-९. ८.पे. नाम. शनिसर स्तोत्र, पृ. ९अ-१०अ, संपूर्ण.
शनिश्चर छंद, मा.गु., पद्य, आदि: छायानंदन जग जयो रवि; अंति: सदा वली वली वखाणीइ, गाथा-१५. ९.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १०अ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि मनि समरी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ६२४८०.(+#) २७ बोलनो थोकडो, संपूर्ण, वि. १९१३, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४४१२.५, १४४१८-३४).
२७ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पेहले बोले गति ४ नरक; अंति: वचनसंजम कायासंजम.
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४३०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६२४८१. (+) पच्चक्खाण फल व पोसोग्रहण विधि स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-४(१ से ३,५)=५, कुल पे. २,
प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४१२.५, ७-१२४१८-२१). १.पे. नाम. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: (-); अंति: रामचंद्र तपविधि भणे, ढाल-३, गाथा-३३, (पू.वि. मात्र
अंतिम गाथा है.) २.पे. नाम. पोसोग्रहणविधि स्तवन, पृ. ४अ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. पौषधविधि स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: जेसलमेर नगर भलो जिहा; अंति:
समयसुंदर भणै सीस, ढाल-५, गाथा-३८, (पू.वि. ढाल-१ की गाथा-३ अपूर्ण तक व ढाल-२ से है.) ६२४८२. नवपदकलश पूजा, अपूर्ण, वि. १९२८, फाल्गुन शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ११-४(१ से ४)-७, ले.स्थल. पेण,
प्रले. पंन्या. विजयकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. सेठ केसू भोजो की धर्मशाला में यह प्रत लिखी गयी है., दे., (२४.५४१२.५, १४४३६-३८). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: जस० नये नही अधूरी रे, पूजा-९,
(पू.वि. प्रथम पूजा का "नमोनंतशांतप्रमोद प्रधान" पाठ से है.) ६२४८३. सत्तावीस बोलनो थोकडो, संपूर्ण, वि. १९२७, फाल्गुन शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ६, दत्त. पंन्या. हितविजय; गृही. श्रावि. जतनाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१३, १२४१४-३५).
२७ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलै बोले गति चार; अंति: वचनसंजम कायासंजम. ६२४८४. (#) पुण्यसारकुमार चरित्र, संपूर्ण, वि. १८६१, चैत्र कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२.५, १९४३६-३९). पुण्यसार रास-पुण्याधिकारे, मु. पुण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि: नाभिराय नंदन नमु; अंति: पुण्यकीरति०
तस गेह, ढाल-९, गाथा-२०५. ६२४८५. (#) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-५(४ से ८)-६, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१२, ११४२७).
स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाल हो; अंति: (-),
___(पू.वि. स्तवन-६ गाथा-३ अपूर्ण तक व स्तवन-१५ गाथा-५ अपूर्ण से स्तवन-२३ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ६२४८७. जिनचैत्यबिंबप्रवेश विधि, श्लोक व ज्योतिष विचार, संपूर्ण, वि. १८५७, माघ कृष्ण, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ.८, कुल
पे. ३, ले.स्थल. गोंडल, प्रले. पं. खिमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिजिन प्रशादात्., जैदे., (२५४१२, १४४३७-३९). १.पे. नाम. गृहचैत्य अथवा जिनचैत्यबिंब प्रवेशविधि, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण.
प्रतिष्ठा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: हवे पूर्वोक्त भव्य; अंति: साधर्मिक भगति साचवे. २. पे. नाम. जैनधार्मिक श्लोक, पृ. ८अ, संपूर्ण..
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: जिनेंद्रभक्त्याजिन; अंति: तदानुकूला वरदा भवंतु, श्लोक-१. ३. पे. नाम. नाग टालन विचार, पृ. ८आ, संपूर्ण..
___ ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ६२४८८. (+) तपविधि संग्रह व पोरसीकालमान विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २,प्र.वि. यंत्र सहित., संशोधित.,
जैदे., (२४.५४११.५, १५४४६-५३). १.पे. नाम. तपविधि संग्रह, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: पुरिम११ एकासणं२; अंति: पच० करै एसरीआनो तप. २. पे. नाम. १२ मास पोरसीकालमान विचार, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. पच्चक्खाण कल्पमान-पोरसी, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: आसाढमासै पग६ पोरसी; अंति: (१)द्वादशमासे जाणवो,
(२)पग१ पुरीमङ्घ थाइं.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
४३१
६२४८९. प्रतिक्रमणसूत्र व ५० बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे.,
(२३.५x१३, ६४१६-२० ).
१. पे. नाम. देवसिराइप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण, वि. १९३४, कार्तिक शुक्ल, ८, बुधवार, ले. स्थल. पालीताणा,
पठ. पं. कपूरचंद (परंपरा पं. खूबचंद, खरतरगच्छ); प्रले. पं. खूबचंद ( खरतरगच्छ), प्र. ले. पु. सामान्य.
"
आवक प्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदिः प्रभातेई तीन नवकार अंतिः चैत्ववंदन कीजे.
२. पे नाम, मुंहपत्ति का पचास बोल, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण,
मुहपत्ति पच्चास ५० बोल, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अर्थर चिंतनुं अंतिः छकायनी जयणा करू. ६२४९०. (+) बारभावना, गोडीपार्श्वजिन स्तवन व प्रसन्नचंद सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. मु. दानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२४X११.५, १८x४१). १. पे. नाम. बारभावना वेल, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण.
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१२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पासजिनेश्वर पाय नमी, अंति: भणी जेसलमेर मझार, ढाल - १३, गाथा- १२८, ग्रं. २००.
२. पे. नाम, गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि गोडी देव जइ रे बेनी, अंति: देववि० प्रणमे निसदीस,
गाथा- ७.
३. पे. नाम. प्रसन्नचंद सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण.
,
प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. रुपविजय, मा.गु., पद्म, आदिः प्रणमुं तुमारा पाय अंतिः दीठा ऐ मुनि प्रतक्ष गाथा ६. ६२४९१ (+) मुनिमाला, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ७-२ (१ से २) ५ पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित. दे., (२३.५x१२.५,
"
९x१९-२४).
मुनिमालिका स्तवन, ग. चारित्रसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. गाथा - १० से गाथा-३४ तक है.)
६२४९२. (+) सत्तरभेदी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. प्र. वि. संशोधित, जैदे, (२५X१३, १३-१५x२७-३५).
१७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत मुखपंकजवासिनी; अंति: सकल० तस फल सुणीओ रे, ढाल - १७, गाथा - १०८.
६२४९३. (#) बंधउदयउदीरणासत्ता विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६- १ ( १ ) = ५, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५X१२.५, १४४२८-३६).
उदय उदीरणासत्ता विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०९ उदय विचार अपूर्ण से है तथा १२ ग्रैवेयक विचार अपूर्ण तक लिखा है.)
६२४९४. उपधान विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. ग. हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५x१२, १७३७). उपधानतप विधि, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: प्रथम शुभदिवसई पोषध, अंतिः पछी माल पेरावीसुझे.
६२५३०. (#) वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल. बंबापुरी (मुंब, प्र. वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे.,
(२५X१२.५, १२X३४).
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैनस्य, अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति.
६२५३६. (+) आर्यवसुधाराधारिणी, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५x१२, ११४३५)वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्यः अंतिः भाषितमभ्यनंदनिति
६२५३७. आर्यवसुधारा, संपूर्ण, वि. १८४२, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२५x१२.५, १४X३३-३७).
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैनस्य अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति,
६२५६७. वसुधारानामधारिणी मंत्र, संपूर्ण वि. १९५३ आश्विन शुक्ल, १०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ८, ले. स्थल. वीसल नगर, प्रले. हरगोवन मोतीराम भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २८४१५, १२४३० ).
"
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४३२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: जयविजयकरम्. ६२५६९. (+#) सुधर्मगच्छपरीक्षा व महावीरशासन प्रसंग वर्णन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २,
अन्य. मु. लक्ष्मीचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x११.५, १३४४१). १. पे. नाम. सुधर्मगच्छपरीक्षा, पृ. १अ-१०अ, संपूर्ण.
मु. ब्रह्मर्षि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: वीर नमुंकर अंजलि; अंति: आपमतीनी संगति तजो, गाथा-१७३. २. पे. नाम. महावीरशासन प्रसंग वर्णन, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण.
___ महावीरजिनशासने ऐतिहासिक प्रसंग वर्णन, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीवीरकेवलात्; अंति: ते सत्य जाणिवा. ६२५७०. (+) लीलावती चौपाई शीलविषये, संपूर्ण, वि. १८३१, फाल्गुन कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले.स्थल. आहोरनगर, प्रले. पं. चतुरविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४११.५, १५४३९-४२). लीलावती चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: त्रेवीसम त्रिभुवन; अंति: लाभवर्द्धन० सुखकार,
ढाल-२९, गाथा-६१९. ६२५७६. अबयद शुकनावली, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२८.५४१४, १६४३०-३६).
अबयद शुकनावली, मु. सुजाणसिंह, पुहि., गद्य, वि. १७९४, आदि: महावीर कौ ध्याइके; अंति: (-), (पू.वि. 'ज'
प्रकरण अपूर्ण तक है.) ६२५८०. (+#) ककाबत्रीशी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. कलकत्ताबंदर, प्रले. मु. बालचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२६.५४१३, ६४११-२२). अक्षरबत्रीशी, मु. हिम्मतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: कका ते किरिया करो; अंति: ते पामसी भव पार,
गाथा-३३. ६२५९२. बूढा रासो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. महताबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१३, १३४२९).
बुढापा रास, मु. चंद, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: दया जमाता वीनवु; अंति: सुणौ कलियुग निसाणी, ढाल-२२. ६२५९५. (+) चोवीस तीर्थंकरोनां नाम तथा माता-पितादिना कोष्ठक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अन्य. सा. दीवालीबाई स्वामी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ९x१२-४९).
२४ जिन विवरण यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अंतिम कुछ पाठांश नहीं है.) ६२५९९. (-) पासाकेवली सुकनावली, संपूर्ण, वि. १९२५, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. मु. रामलाल (गुरु मु. कर्मचंद);
गुपि. मु. कर्मचंद (गुरु मु. हर्षचंद); मु. हर्षचंद (गुरु पं. धनरूप); पं. धनरूप, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२६४१३, १३४२७). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः (१)ॐ नमो भगवति, (२)१११ अहो मानवी तोने; अंति: अथ
महासिद्ध होसी. ६२६०३. (+) गणित साठि व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, चैत्र शुक्ल, २, मध्यम, पृ. २७, कुलपे. २, प्र.वि. परिशिष्ट में वर्ष के
लिये मात्र मिति चैत सुदि २ लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२.५, १०-१३४३२-३५). १. पे. नाम. पंचांगगणित विधि, पृ. १आ-१४आ, संपूर्ण.
उपा. महिमोदय, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: परम जोति प्रभुकुं; अंति: महिमोदयग्रंथ समुदाय, गाथा-१६४. २. पे. नाम. ज्योतिष, पृ. १५अ-२७अ, संपूर्ण.
ज्योतिष*, मागु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: राशीश्वरं राजयुतं; अंति: शेष आकषट् गुणो कीजै. ६२६०६. (#) वर्णमाला व कातंत्र व्याकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(५)=५, कुलपे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, जैदे., (२४.५४१२, ४४१८). १.पे. नाम. वर्णमाला, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: अ आ इ ई उ ऊ ऋऋल; अंति: चूचे चै चो चौ चंचः. २. पे. नाम. कातंत्र व्याकरण-संधिप्रकरण, पृ. ४अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
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कातंत्रव्याकरण, आ. शर्ववर्माचार्य, सं. पण, आदिः सिद्धो वर्णसमाम्नायः अंति: (-), प्रतिपूर्ण
,
६२६०७ (१) प्रदेशीराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५x११.५,
१७x४५-४८).
प्रदेशीराजा चौपाई, मा.गु, पद्य, आदि: रावप्रदेसी मुकियो, अंति: उच्चकुल अवतार.
६२६११. प्राकृत छंदकोश सह टीका, अपूर्ण, वि. १७२७, फाल्गुन कृष्ण, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. २२-३ (१ से ३)=१९, ले. स्थल, रूपनगर, प्रले. संतोषी पांडे, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४.५४११.५, ११४३८-४२).
"
प्राकृत छंदकोश, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्म, आदि: (-): अंति: रयणसेहर० सुहं देवो, गाथा-२७, (पू.वि. प्रारंभ के
7
"
४३३
पत्र नहीं हैं., गाथा- २ अपूर्ण से है.)
प्राकृत छंदकोश - टीका, आ. अमरकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५०, आदि: (-); अंतिः लिखन्निजहस्त पुस्तके,
पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
६२६१२. (+४) नवाणुं प्रकारनी पूजा, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ८. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२३.५४१२, १२४३८).
९९ प्रकारी पूजा, वा. अमरसागर, मा.गु., प+ग, आदि: स्वस्ति श्रीदायक, अंति: वंछित फल पाईजे. ६२६१४. (+) रामविनोद व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२८, फाल्गुन शुक्ल, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. १०१, कुल पे. २,
ले.स्थल. चुरू, प्रले. गिरधारी ब्राह्मण; पठ. मु. हीरालाल ऋषि (लौंकागच्छ); मु. विनयचंद्रजी ऋषि (स्थानकवासी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२९x१२, १२X३९).
१. पे. नाम. रामविनोद, पृ. १आ - १०१अ, संपूर्ण.
पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सिद्धबुद्धदाता सलहीय; अंति: जां लगि मेरु दिणंद, समुद्देश- ७, गाथा - १६१७, ग्रं. ३३२५.
२. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १०१अ - १०१आ, संपूर्ण.
औषधवैद्यक संग्रह, पुहि. प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
६२६१९. (+) पथ्यापथ्य, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (२७४१२.५, ११४४०). पथ्यापथ्य, उपा. रामऋद्धिसार, पुष्टि, पद्म, आदि आदीश्वर जिणंद को अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाधा ४४४ तक लिखा है.)
६२६२४ (४) कल्पसूत्र, संपूर्ण वि. १९०७, माघ शु. १, रविवार, मध्यम, पृ. १५४+२ (३५, ४८) = १५६, ले. स्थल. विक्रमपुर, प्र. मु. कनकमाणिक्य, पठ. सिवलाल ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे (२४.५४१२.५, ८x१७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं अंति: उवदंसे ति बेमि, व्याख्यान ९. ६२६२५ (+) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति सह टबार्ध, अपूर्ण, वि. १८८१ कार्तिक कृष्ण, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. २९९-१६२ (१ से १३१, १४६ से १६१,१७५,१७९ से १८६, १८८ से १८९,२२३ से २२५, २४३) = १३७, ले. स्थल. हुरडा, प्रले. पं. जसकुशल;
पठ मु. खुबकुशल (गुरु पं. जसकुशल), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, कुल ग्रं. १७००० अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४X१२.५, ७X३७).
जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, वक्षस्कार- ७, ग्रं. ५१४६, (पू. वि. वक्षस्कार गंगासिन्धु नदी वर्णन से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)
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जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जंबूस्वामी प्रते कहे, ग्रं. १२०००.
६२६२६. नंदीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०९, वैशाख शुक्ल, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ८९, ले. स्थल. महुवा, प्रले. श्राव. नानजी उकरडा दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ दे (२४.५x१३, ३-१९४३४-३७).
नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: २० तहा वीसणुं नामाई, सूत्र-५७,
गाथा- ७००.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
नंदीसूत्र - टवार्थ * मा.गु., गद्य, आदि: जयक० विजय कषायादिक; अंति: अनुज्ञा नाम जाणवा ६२६२७. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९८ - १३५ (१ से २८,५१ से १५७)=६३, प्र. वि. कुछ पत्रों में पत्रांक नहीं हैं, पदच्छेद सूचक लकीरें, जै. (२५१३, ३-१२४३१-४३).
"
उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि (-); अंति: (-) (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं है..
""
अध्ययन - २, गाथा २८ अपूर्ण से अध्ययन- ५, गाथा - ३० तक है व बीच-बीच की गाथाएँ नहीं हैं.) उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. उत्तराध्ययन सूत्र- बालावबोध, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ६२६२८. (+#) चंद्रकेवलि चरित्र अंतर्गत गाथाकाव्य श्लोक सह टबार्थ + व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८५७, मध्यम, पृ. ६६, प्र. मु. जीवणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२४.५X१३.५, ५x२६-३०).
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श्रीचंद्रकेवलि चरित्र - गाथाकाव्य श्लोक, संबद्ध, प्रा. सं., पद्य, आदि: जं चंदणेण तइआतइअं अंतिः यः श्रीवीरभद्रं दीस, लोक-३६३ (वि. १८५७ आश्विन शुक्ल, १, रविवार)
श्रीचंद्रकेवलि चरित्र - गाथाकाव्य श्लोक का टबार्थ + व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणिपत्य पार्श्वदेव, अंति: जीव परम मंगलिक दिओ (वि. १८५७ आश्विन शुक्ल, ११. गुरुवार)
६२६२९. (+#) अंतगडदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६९, आषाढ़ अधिकमास कृष्ण, १०, सोमवार, मध्यम, पृ. ६६, ले. स्थल नागोर, प्रले. श्रीनाथ जोषी, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पवच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२४४१२.५, ६- ९४४४).
अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं, अंतिः पण्णत्ता तिबेमि, अध्याय-९२. अंतकृद्दशांगसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा, अंतिः त्ति० इसो कां.
६२६३० (+) श्रीपाल चरित्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८१-१८ (१,३४ से ३६, ५० से ६३) = ६३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१३, ८X३१).
सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य वि. १४२८ आदि (-) अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के
"
पत्र नहीं हैं., गाथा-२९ अपूर्ण से १२८० अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.)
सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ६२६३१. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६१, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे.,
(२४.५X१२.५, ७X३७-४०).
प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पग, आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर, अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं, 'छठाण निमितत्थकाय' पाठ तक है.)
प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अहो जंबू ए प्रत्यक्ष, अंति: (-), (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'चित्तासुत्तीपूवाविसलपभासा' पाठ तक का रचार्थं लिखा है)
६२६३२. (+) प्रतिक्रमण सूत्र, स्तुति, स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६०, कुल पे ७७, प्र. वि. क्षमाकल्याण गणि के द्वारा लिखित प्रत के ऊपर से लिखा गया., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २४.५x१३, १३x३० ).
१. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमण सूत्र, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण.
साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., सं., प+ग, आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंतिः समुन्न
निमित्तं.
२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ७अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., पद्य, आदि: श्रीसेढीतटिनीतटे; अंति: नाथो नृणां श्रिये, श्लोक-२.
३. पे, नाम, पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. ७अ संपूर्ण
हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: चउकसायपडिमलुरण, अंतिः पासु पयच्छउ वंछिउ, गाथा-२.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
४. पे. नाम. पंचपरमेष्ठिजिन स्तुति, पृ. ७अ, संपूर्ण..
५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति, सं., पद्य, आदि: अहँतो भगवंत इंद्र; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. ५.पे. नाम. शांतिजिन चैत्यवंदन, पृ. ७अ, संपूर्ण.
सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: श्रेयसे पार्श्वनाथः, श्लोक-१. ६. पे. नाम. अतिचार आलोचणा, पृ. ७आ, संपूर्ण.
अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: आजूणा चौपहुर दिवसमा; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ७. पे. नाम. मुहपत्ति के ५० पडिलेहण बोल, पृ. ८अ, संपूर्ण.
मुहपत्ति पच्चास ५० बोल, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अरथ साचौ सरदहु; अंति: जीमणै पगे परिहरु. ८. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
आदिजिनसीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय त्रिभुवन आदि; अंति: प्रति करुं प्रणाम, गाथा-३. ९. पे. नाम. सिद्धाचल स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धोविज्जायचक्की; अंति: महं तित्थमेयं नमामि, गाथा-१. १०. पे. नाम. मंगल श्लोक, पृ. ८आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: शिवमस्तु सर्वजगतः; अंति: सुखी भवंतु लोकाः, गाथा-१. ११. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय नाभिनरिंदनंद; अंति: निसदिन नमत
कल्याण, गाथा-३. १२. पे. नाम. शांतिजिन चैत्यवंदन, पृ. ८आ, संपूर्ण.
उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सोलम जिनवर शांतिनाथ; अंति: लहीयै कोडि कल्याण, गाथा-३. १३. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण.
नेमिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह सम प्रणमौ नेमि; अंति: क्षमा० करै प्रणाम, गाथा-३. १४. पे. नाम. गौडीपार्श्व स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: पुरसादाणी पासनाह; अंति: प्रगटे परम
कल्याण, गाथा-३. १५. पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण. महावीरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु जगदाधार सार सिव; अंति: कल्याण० करी
सुपसाय, गाथा-३. १६. पे. नाम. थंभणपार्श्वनाथ स्तुति, प्र. ९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन नमस्कार-स्थंभनपुर, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेढी तट मेरुधाम; अंति: पावौ पद कल्याण,
गाथा-३. १७. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु जिणवर विहरमान; अंति: संपदा कारण पद
कल्याण, गाथा-३. १८. पे. नाम. समेतशिखर स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण.
सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: पूरव देसै दीपतौ; अंति: तीरथ करण कल्याण, गाथा-३. १९. पे. नाम. पद्मनाभजिन स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण. पद्मनाभजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम महेसर पद्मनाभ; अंति: कारण सदा कल्याण,
गाथा-३. २०. पे. नाम. गौतम स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण.
गौतमस्वामी स्तुति, सं., पद्य, आदि: सर्वारिष्टप्रणाशाय; अंति: गौतमस्वामिने नमः, श्लोक-१.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २१. पे. नाम. सरस्वती स्तुति, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., पद्य, आदि: अवामा वामादे सकलमुनय; अंति: हरतु मे दुरितं, श्लोक-२. २२. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. १०अ, संपूर्ण.. ___आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: सुवर्णवर्णं गजराज; अंति: ऋषभं जिनोत्तमम्, श्लोक-१. २३. पे. नाम. जिनदर्शन श्लोक संग्रह, पृ. १०अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: दर्शनं देवदेवस्य; अंति: साक्षात् सुरद्रुमः, श्लोक-९. २४. पे. नाम. ज्ञान पहिरावणी गाथा, पृ. १०अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: नमंत सामंतमही विनाह; अंति: लाभाय भवक्खयाय, गाथा-२. २५. पे. नाम. देसावगासी पच्चक्खाण, पृ. १०अ, संपूर्ण.
देशावगासिक पच्चक्खाण, प्रा., गद्य, आदि: अहण्णं भंते तुम्हाणं; अंति: अभिग्गहो० वोसिरामि. २६. पे. नाम. नवपदजी स्तुति, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र नमस्कार, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत उदार कांत; अंति: निधि प्रगटै चेतन भूप,
गाथा-६. २७. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. १०आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: जय जय जगदानंदन जय; अंति: भगवते ऋषभाय नमोनमः, श्लोक-५. २८. पे. नाम. गौडीपार्श्व स्तुति, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति-गोडीमंडन, सं., पद्य, आदि: जिनेशः पार्श्वेशः; अंति: सकल दुखहारी भवतु मे, श्लोक-१. २९. पे. नाम. सीमंधरजी स्तुति, पृ. ११अ, संपूर्ण.
बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ३०. पे. नाम. सीमंधरजी स्तुति, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन स्तुति, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: मनसुध वंदो भावै भविज; अंति: ज्यो जिनहर्ष सहाईजी, गाथा-४. ३१. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. ११आ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमा; अंति: सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. ३२. पे. नाम. वीशविहरमानजिन स्तुति, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण.
विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषय; अंति: जण मनवंछित सारै, गाथा-४. ३३. पे. नाम. जैसलमेर पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंति: जयतु सा जिनशासनदेवता,
श्लोक-४. ३४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञ ज्योति; अंति: वृद्धिं वैदुष्यम्, श्लोक-४. ३५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १२आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: हर्षनताशुरनिर्जर; अंति: मजनशस्तनिजाघः, श्लोक-४. ३६. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: युगादिपुरुषंद्राय; अंति: कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. ३७. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १३अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: बालपणै डाबै पाय; अंति: काम चढे प्रमाणै, गाथा-४. ३८. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १३अ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तुति, अप., पद्य, आदि: भरहेसरकारि अदेव हरे; अंति: विगणंत अणंत दहतगुणा, गाथा-२. ३९. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १३अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: दद्यात्सौख्यम, श्लोक-१.
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४०. पे. नाम. अष्टमी थुई, पृ. १३ - १३आ, संपूर्ण.
अष्टमीतिथि स्तुति, मु. जीवविजय, मा.गु, पद्य, आदि: चौवीसे जिनवर प्रणमुं अंतिः जिनसुखसूरि० सुह झाण,
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गाथा-४.
४१. पे नाम, पार्श्व स्तुति, पृ. १३आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन नरेसर वामा, अंतिः जिनभक्तिसूरि० वित्त, गाथा ४. ४२. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. १३आ- १४अ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि, अंतिः क्षितौ कल्याणा: श्लोक-४.
४३. पे. नाम चतुर्दशी स्तुति, पृ. १४अ १४आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: ट्रें दें कि धप; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४.
४४. पे. नाम. दीवाली स्तुति, पृ. १४आ, संपूर्ण.
दीपावली पर्व स्तुति, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदिः पापायां पुरि चारु, अंति: शार्दूलविक्रीडितम्, श्लोक-४.
४५. पे. नाम. महावीर स्तुति, पृ. १४-१५अ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु. पच, आदि मूरति मनमोहन कंचन, अंतिः इम श्रीजिनलाभसूरिंद
"
गाथा-४.
४६. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १५-१५आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखक ने कृति नाम नेमिनाथ स्तुति दिया है. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडल जाई; अंति: तुसे देवी अंबाई, गाथा-४. ४७. पे. नाम. सेत्तुंजा स्तुति, पृ. १५आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुंजयमंडण, अंतिः नंद० तुम्ह पाय सेवता, गाथा-४. ४८. पे नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. १५- १६अ, संपूर्ण
अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै; अंति: तिहसंति कल्याणदाता, गाथा-४.
४९. पे नाम, नेमिजिन स्तुति, पृ. १६अ, संपूर्ण,
मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर बंदिय पाय, अंति: मंगल करो अंबादेवीय, गाथा- ४.
५०. पे. नाम. नवपदजी स्तुति, पृ. १६अ - १६आ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि निरुपम सुखदायक, अंतिः श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा ४. ५१. पे. नाम. नवपदजी थुई, पृ. १६आ- १७अ, संपूर्ण.
पच्चक्खाण आगार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नवकार १ पोरिसीए २; अंति: हवंति सेससु चत्तारि ५६. पे, नाम, धारणा पच्चक्खाण, पृ. १९अ संपूर्ण
४३७
सिद्धचक्र स्तुति, आ, जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः समरु सुखदायक मन, अंति श्रीजिनचंद्रनी वाणी, गाथा- ४. ५२. पे. नाम. पर्युषणा थुई, पृ. १७अ, संपूर्ण.
पर्युषण पर्व स्तुति, आ. जनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि बलि बलि हुं ध्यावु अंतिः कहै जिनलाभसूरींद, गाथा-४. ५३. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. १७अ संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: लोकाधारं शांताकार, अंतिः सर्वे धर्मे शिक्षा, श्लोक-४.
५४. पे. नाम. दशवच्चक्खाण सूत्र, पृ. १७अ - १९अ, संपूर्ण.
प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: तिहां प्रथम चउदे, अंति: गारेण सो साधू कहै.
५५. पे. नाम. पच्चक्खाणनाम गाथा, पृ. १९अ, संपूर्ण.
धारणा प्रत्याख्यानसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: अरिहंतशिक्षीयं अंतिः मह० सव्व० बोसिरामि
५७. पे. नाम. पच्चक्खाण आगार संख्या, पृ. १९आ, संपूर्ण, वि. १९३८, आषाढ़ शुक्ल, ४, पठ. मु. लिखमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः पच्चक्खाण पारण आगार, अंति तस्समिच्छामी दुकडं,
गाथा - ३.
५८. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमण सूत्र, पृ. १९-२४आ, संपूर्ण.
वंदितुसूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे, अंतिः वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०.
५९. पे. नाम. राईसंथारा सूत्र, पृ. २४आ - २५आ, संपूर्ण.
संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि, अंति: मज्झवि तेह खमंतु, गाथा- १४.
६०. पे नाम. उपदेशमाला प्रकरण, पृ. २५-२७आ, संपूर्ण.
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पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: उपन्नं केवलं नाणं, गाथा-३३. ६१. पे. नाम. प्रवज्या कुलक, पृ. २७आ-२९अ, संपूर्ण.
प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संसार विसमसायर भवजल, अंतिः तरति ते भवसलिलरासिं, गाथा- ३४. ६२. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र द्रुमपुष्पिका अध्ययन, पृ. २९ अ २९आ, संपूर्ण.
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुकि अंति (-), प्रतिपूर्ण ६३. पे नाम. लघुशांति, पृ. २९-३०, संपूर्ण
आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांति निशांत, अंतिः सूरिः श्रीमानदेवश्च श्लोक-१७. ६४. पे नाम. सप्ततिजिन स्तोत्र, पृ. ३०१-३१अ. संपूर्ण.
3
तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासं अट्ठ; अंति: निब्भतं निच्चमच्चेह, गाथा- १४. ६५. पे नाम. नवग्रहगर्भित पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३९अ-३१आ, संपूर्ण.
.
पार्श्वजिन स्तोत्र नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य वि. १४वी, आदिः दोसावहारदक्खो नालिया, अंति जिणप्पहसूरिन पीडंति, गाथा-१०.
६६. पे. नाम. नवग्रहगर्भित चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, पृ. ३१ आ-३२अ, संपूर्ण.
ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधिर्मतः, श्लोक-१०. ६७. पे. नाम. चौवीसजिन नाम, पृ. ३२अ, संपूर्ण.
२४ जिन नाम - वर्त्तमान, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभदेवजी, अंति: पार्श्वनाथ० महावीरजी.
६८. पे. नाम. पंचपरमेष्ठिनमस्कार महामंत्र स्तवन, पृ. ३२अ-३४अ, संपूर्ण.
नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य वि. १२वी, आदिः किं कप्पतरु रे अयाण, अंतिः सेवा देज्यो नित्त, गाथा - १३.
६९. पे नाम बृहत्शांति स्तोत्र, पृ. ३४-३६आ, संपूर्ण.
बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंतिः पूज्यमानो जिनेश्वरः.
७०. पे नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ३६आ- ३९आ, संपूर्ण
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमीलि अंतिः मानतुंग० लक्ष्मी, श्लोक-४४.
७१. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तवन, पृ. ३९-४२आ, संपूर्ण, वि. १९६१, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ५, प्रले. श्राव. फुसाराम, पठ. मु. लिखमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य.
कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि सं., पद्म, वि. १वी, आदि कल्याणमंदिरमुदार: अंतिः मोक्षं प्रपद्यंते,
श्लोक-४४.
७२. पे नाम, स्थंभनक पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. ४२-४५अ, संपूर्ण.
जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुख, अंतिः अभवदेव० आदिअ, गाथा - ३०.
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७३. पे. नाम. समसंस्कृत वीर स्तवन, पृ. ४५अ ४७अ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तव- समसंस्कृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: दृष्टिं दयालो मयि.
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७४. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. ४७अ - ४९अ, संपूर्ण.
दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरियरवसमीरं मोहपंको अंतिः सवा पायप्पणामो तुह,
गाथा-४४.
७५. पे. नाम, सप्तस्मरण, पृ. ४९-५७अ संपूर्ण.
सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. . भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअं जिअ सव्वभयं, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सप्तम स्मरण नहीं लिखा है.)
७६. पे. नाम. जिनपंजर स्तोत्र, पृ. ५७-५८ अ, संपूर्ण.
आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह, अंतिः श्रीकमल प्रभाख्यः श्लोक-२५.
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७७. पे. नाम ऋषभ मंडल स्तोत्र, पृ. ५८अ ६० अ, संपूर्ण.
ऋषिमंडल स्तोत्र, सं., पद्य, आदि आद्यंताक्षरसंलक्ष्यम, अंतिः लभते पदमुत्तमम्, श्लोक-६३. ६२६३३. (#) लघुक्षेत्रसमास सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८८३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४, शनिवार, मध्यम, पृ. ५३,
ले. स्थल. लक्ष्मणापुर प्रले. मु. धर्मचंद्र (गुरु आ. कांतिसागरसूरि, विजयगच्छ); गुपि आ. कांतिसागरसूरि प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२३.५४१३, १५-१८४३४-३९).
४३९
"
लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; अंति: कुसलरंगमयं पसिद्ध अधिकार-६, गावा- २६३.
,
लघुक्षेत्रसमास प्रकरण - बालावबोध, मु. उदयसागर, मा.गु. गद्य वि. १६७६, आदि: निश्शेषज्ञान दायितं अंति प्रसादमाधाय तत्सर्वं.
६२६३४.
(+#) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९६, आश्विन कृष्ण, १४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४९ - १ (१३*) =४८,
. स्थल. वृंदावतीनगर, प्रले. मु. नगविमल (गुरु मु. विवेकविमल); गुपि. मु. विवेकविमल (गुरु मु. रत्नविमल); मु. रत्नवि
(गुरु मु. अमरविमल): मु. अमरविमल पढ श्राव घासीराम, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४४१३, ६३०-३५ ).
(+)
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३३६.
बृहत्संग्रहणी - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमीने अरिहंत१ सिद्धर; अंति: की सम्यग्दृष्टि कहै.
६२६३५. प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४६ + २ (२८ से २९) = ४८, अन्य. मु. तिलोक ऋषि, मु. धनजी ऋषि, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक- २८ तीन बार दिया गया है, परंतु पाठ क्रमश: है. दे. (२५x१२.५, ७४३३-३९).
प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: सरीरधरे भविस्सइति, अध्याय- १०, गाथा - १२५०, ग्रं. १३००, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्रुतस्कंध १, पंचम आश्रवद्वार के उपसंहार से लिखा है.) प्रश्नव्याकरणसूत्र -टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: धारणहार साधु भ० होइ, अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण.
६२६३६.
'बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १९५०, वैशाख शुक्र १३, मध्यम, पु. ४० प्र. वि. सं. १७३२ की प्रत के ऊपर से लिखी गयी है., टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., दे., ( २४.५X१३, ६x२६).
बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पति निगंधाण, अंतिः कप्पट्टिई तिबेमि, उद्देशक- ६,
ग्रं. ४७३.
बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१) हिवे इहां बृहत्कल्प, (२)नो० न कल्पइ नि० साधु, अंति: तुझ प्रती कहुं छं, ग्रं. ४०००.
६२६३७. (+) बृहत्संग्रहणी सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३७ - १ (१) = ३६, प्र. वि. प्रतिलेखक ने प्रत नाम लघुसंग्रहणी लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२५.५x१२.५, ७२१).
"
"
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि (-); अंति: जा वीर जिणतित्यं गाथा- ३४९ (पू. वि. गाथा - ४
अपूर्ण से है.)
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४४०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६२६३८. (+) दृष्टांतशतक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४१२.५, ५४२९).
दृष्टांतशतक, म. तेजसिंघ ऋषि, सं., पद्य, आदि: नत्वा श्रीवृषभंसदा; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१०१ अपूर्ण तक है.)
दृष्टांतशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइं; अंति: (-). ६२६३९. (#) विधिपक्षगच्छीय प्रतिक्रमण समाचारी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१३, १३४३२).
प्रतिक्रमण समाचारी-विधिपक्षगच्छीय, प्रा.,सं., गद्य, आदि: णमो अरिहताणं णमो; अंति: तस्स मिच्छामिदुक्कडं. ६२६४०. वर्द्धमानविद्या कल्प, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, प्रले. धनसुखराम शंभुराम स्मार्त, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१२.५, ८x२४).
वर्द्धमानविद्या कल्प, आ. वज्रस्वामि, प्रा.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं अहह; अंति: सव्वसाहूणं लिखेदिति. ६२६४२. (#) सूत्रकृतांगसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५८-४१(१ से ४१)=१७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, २-५४२३-३८). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-५, उद्देश-१, गाथा-७ अपूर्ण से
अध्ययन-९, गाथा-६ अपूर्ण तक है.)
सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६२६४३. (+) भगवतीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-२(१ से २)=१६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, ६४३४-३७). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शतक-१, सूत्र-४ अपूर्ण से उद्देश-२ सूत्र-२२
अपूर्ण तक है.)
भगवतीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६२६४४. (#) जिनप्रतिमापूजन विषयक-आगमिक दृष्टांतपाठ संग्रह सह विवेचन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३१-१५(१ से १४,१६)=१६, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२४४१२.५, ३-९४४२-४९). जिनप्रतिमापूजन विषयक-आगमिक दृष्टांतपाठ संग्रह, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच के
पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बीच के पाठांश हैं व आचारांगसूत्र श्रुत.-१ के साक्षिपाठ तक लिखा है.) जिनप्रतिमापूजन विषयक-आगमिक दृष्टांतपाठ संग्रह-विवेचन, पुहि., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ,
बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६२६४५. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४१३, १-४४२३-२८). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३५ तक लिखा है.) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *,मा.गु., गद्य, आदि: भुवन क० चतुर्दश रज्व; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण. ६२६४६. (#) स्तवन व विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
(२३४१३, १३४३७). १.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तव, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: देवं देवाधिदेवं परम; अंति: तन्नास्ति मे दोष, श्लोक-३७. २. पे. नाम. सिद्धचक्रयंत्रोद्धार सह टीका, पृ. ४आ-७आ, संपूर्ण. सिरिसिरिवाल कहा-सिद्धचक्रयंत्रोद्धार गाथा, हिस्सा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गयणमकलियायत;
अंति: महंत सिद्धिओ, गाथा-१२.
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४४९
सिरिसिरिवाल कहा- सिद्धचक्रयंत्रोद्धार गाथा की व्याख्या, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: अथ गगनादिसंज्ञा; अंतिः रहस्यभूतमित्यर्थः
३. पे. नाम. मंत्रमातृका सह टीका, पृ. ७आ-९अ, संपूर्ण.
मंत्र नाममाला, सं., पद्य, आदिः कामं क्रोधं तथा लोभ, अंतिः मातृका निर्मिता मया श्लोक-२७.
मंत्र नाममाला - टीका, सं., गद्य, आदि: नम: संपत्तिकर१ वषट्; अंति: व पिंडबीजं.
४. पे. नाम. पंचपरमेष्टि स्थापना विधि, पृ. ९अ - १५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
पंचपरमेष्ठि बीजयंत्र साधना विधि, सं., प+ग, आदि: श्रीवामेयं जिनं; अंति: (-), (पू.वि. अंत के किंचित् पाठांश नहीं हैं.)
६२६४८. (+) कर्मविपाक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., ( २४.५X१३.५, ४x२९-३२).
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: सिरिवीरजिण वंदिअ; अंति: लहिउ देविंदरिहिं गाथा ६०.
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीमहावीरदेव प्रते अंतिः श्रीदेवेंद्रसूरिजी ये
६२६५०. (#) वृद्धिघंटाकर्ण कल्प व घंटाकर्ण महामंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. २, प्र. वि. अंतिम पत्र हनुमानजी का चित्र दिया है. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४१२.५, ८४२८-३३).
,
""
१. पे. नाम, घंटाकर्ण कल्प, पृ. १आ-१३अ, संपूर्ण
मा.गु., सं., गद्य, आदि: प्रणम्य गिरिजाकांत अंति: क्षमस्व परमेश्वर.
२. पे. नाम. घंटाकर्ण महामंत्र, पृ. १३अ १३आ, संपूर्ण
घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्म, आदिः ॐ घंटाकर्णो महावीर: अंतिः ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. ६२६५१. उपासकदशांगसूत्र सह विवरण, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २०- ७ (१ से ७) = १३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५X१२.५, १६३६).
उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. अध्ययन- १ अपूर्ण से अध्ययन- ३ अपूर्ण तक है.)
उपासकदशांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. १११७, आदि: (-); अंति: (-).
६२६५२. (+) वृद्धिसंघयणी, संपूर्ण, वि. १८७२, चैत्र शुक्ल, १५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले. स्थल. नउतनपुर (नुतनपुर, प्रले. मु. देवी जसराजजी ऋषि, पठ. मु. भाणजी ( गुरु मु. देवजी जसराजजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५X१२.५, २०x४२-४४).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमियो अरिहंताई ठिई, अंति: इय लोयंमि दुल्लहा, गाथा- ३८२. ६२६५३. (+) विचारषट्त्रिंशिकासूत्र सह स्वोपज्ञ अवचूरि व टवार्थ, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र. मु. उत्तमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२५.५X१२.५, ४X१८).
.
दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीसजिणे तस्स, अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा-४०, संपूर्ण.
दंडक प्रकरण- स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., गद्य वि. १५७९, आदि: श्रीवामेयं महिमामेयं, अंतिः (-). (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मात्र पत्र - १ पर ही अवचूरि लिखी है.)
दंडक प्रकरण - टबार्थ, पुहिं., गद्य, आदि: नमस्कार करके चउवीश; अंति: आत्मा के हित अर्थ, संपूर्ण.
६२६५४. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२६, कार्तिक शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. वे. (२५x१२.५, ४४३२).
कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
कल्याणमंदिर स्तोत्र - टबार्थ, पा. रूपचंद्र गणि, मा.गु., गद्य, वि. १८११, आदि: जिनेश्वरस्य अंहिपद; अंतिः
अल्पकाल० मोक्ष पामै.
६२६५५. सिंदूरप्रकर, संपूर्ण वि. १९१३ कार्तिक कृष्ण ७, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. मु. गोकलचंद ऋषि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५X१३, १०X३२).
सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः अंतिः सोमप्रभ० मुक्तावलीयम्, द्वार- २२, लोक- ९७.
६२६५६. जांजरियामुनि सज्झाय व हरचंदराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९४७, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, ले. स्थल. भीलाड, पठ. मु. वछराज (गुरु मु. सोभाचंद); गुपि. मु. सोभाचंद (गुरु मु. जसराज); मु. जसराज (गुरु मु. विनयचंद); मु. विनयचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, दे., (२४.५X११.५, १८-१९x४६).
१. पे. नाम. झांझरियामुनि सज्झाय, पृ. १अ २अ, संपूर्ण, वि. १९४७, कार्तिक शुक्ल, ३.
मु. भावरत्न, मा.गु., पद्म, वि. १७५६, आदि: सरसति चरणे शीस नमावी; अंतिः सांभलता मन मोहे के, दाल-४,
गाथा ४३.
२. पे. नाम. हरिश्चंद्रराजा चौपाई, पृ. २अ -११आ, संपूर्ण, वि. १९४७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९.
मु. प्रेम, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: श्रीआदीसर आये करी, अंति: जुगमे नाम तीका राजोय, डाल- २३. ६२६५७. (+) शांतिपूजा विधि, संपूर्ण वि. १८४४, आषाढ़ कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टिप्पण
युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२४४१२.५, १२४२८-३५)
शांतिपूजा विधि, मा.गु. सं., गद्य, आदिः ननु संघादीनां विघ्नो अंतिः विसर्जनानंतर कहणो.
६२६५८. (+) पंचप्रतिक्रमणसूत्रादि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे, २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित.. जैवे. (२४.५४१३ १३x२३-२६).
१. पे नाम, पंचप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १अ १०आ, संपूर्ण.
पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.सं., प+ग., आदि: इच्छामि खमासमणो वंदि, अंतिः शांतिस्तोत्र सुणै.
२. पे नाम, प्रतिक्रमण मध्य अंतराय विचार, पृ. १० आ, संपूर्ण
प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: पाखी पडिकमणो करता; अंति: आहणीयै शांति भवति.
६२६५९. अष्टाह्निकामहोत्सव व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५X१२, १५X४३). पर्युषणाष्ठाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्म, वि. १७८९, आदि: स्मृत्वा पार्श्व अंति: (-). (पू.वि. सूर्ययशा कथा
,
श्लोक-१३९ अपूर्ण तक है.)
६२६६०. (+#) सिंदूरप्रकर सह शब्दार्थ, संपूर्ण, वि. १९२७, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल. बीदासर, प्रले. मु. शिखरचंद्र ऋषि, पठ. श्राव हुलासचंद्र ब्रह्मचारी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २४.५X१२.५, १३X३५ ).
सिंदूरकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः अंतिः सोमप्रभ० मुक्तावलीयम्, द्वार - २२,
"
श्लोक-१०१, संपूर्ण.
सिंदूरकर - शब्दार्थ, सं., गद्य, आदि: शार्दूल पुंज किं, अंति: (-), (पूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. अंतिम श्लोक का शब्दार्थ नहीं लिखा है.)
६२६६१. (+) नमस्कार स्तोत्र सह टीका व उवसग्गहर स्तोत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १९४७, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. ३, प्र. वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. वे. (२५.५४१३, १२-१७४३३-४६).
१. पे. नाम. नमस्कार स्तोत्र सह टीका, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण.
सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी आदिः सकलात्प्रतिष्ठान अंतिः श्रीवीरजिननेत्रयोः, श्लोक-२६, (प्रले. मु. महाचंद्र यति, प्र. ले. पु. सामान्य )
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४४३
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
सकलार्हत् स्तोत्र-टीका, ग. कनककशल, सं., गद्य, वि. १६५४, आदि: वयमार्फत्यं प्रणिदध; अंति:
शोधनीयेयमादरात्, ग्रं. २८२, (वि. १९४७, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, ले.स्थल. मकसुदाबाद (अजीम, प्रले. मु. हीरचंद्र ऋषि
(विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य) २. पे. नाम. उपसर्गहर स्तोत्र की टीका, पृ. ८अ-९अ, संपूर्ण.
उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ कीटीका, सं., गद्य, आदि: अहं श्रीपार्श्व; अंति: समर्थ इति युक्तमेव. ३. पे. नाम. शत्रुजयमाहात्म्यगत श्लोक संग्रह, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६२६६२. (+) दंडक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९२, ज्येष्ठ शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५४१२.५, ४४२४-३८). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसारेण अप्पहिआ.
गाथा-४०.
दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने चोवीस; अंति: आपकी आत्महिते लिखी. ६२६६३. (-) भक्तामर मंत्राम्नाय, स्तुति व स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-१२(१ से १२)=८, कुल पे. १३,
प्र.वि. अशुद्ध पाठ., ., (२३४१३.५, १३४२८). १.पे. नाम. भक्तामर मंत्राम्नाय विधि, पृ. १३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. भक्तामर स्तोत्र आम्नाय, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: महदि महावीर वड्डमाण०, (पू.वि. ४८ लब्धिगत
मंत्र-२५ से है.) २. पे. नाम. आदिजिन नमस्कार, पृ. १३आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: वंदे देवाधिदेवं तं; अंति: मम भूयात् भवे भवे, श्लोक-३. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तोत्र, पृ. १३आ, संपूर्ण..
सं., पद्य, आदि: शांतये शांतिकामाय; अंति: पापशांतिर्भवेभवे, श्लोक-३. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १३आ-१४आ, संपूर्ण..
सं., पद्य, आदि: प्रणाम मे येन अरह; अंति: सिद्धि मनोमिप्सितं, श्लोक-६. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १४आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र-कलिकंड, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं तं नमह; अंति: इयनाउंसरह भगवंतम, श्लोक-४. ६. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: वाग्वादिनी नमस्तुभ्य; अंति: निर्मलबुद्धिमंदरम्, श्लोक-७. ७. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, पृ. १५अ, संपूर्ण.
___ सं., पद्य, आदि: ॐ चंद्रप्रभः; अंति: दायिनि मे वरप्रदा, श्लोक-५. ८. पे. नाम. उपसर्गहर स्तोत्र, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ९, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं० तुह; अंति: पास जिणंदो नमसामि,
गाथा-९. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: श्यामो वर्ण विराजिते; अंति: तीर्थस्य दर्शनम्, श्लोक-७. १०. पे. नाम. ज्वालामालिनीदेवी स्तोत्र, पृ. १६अ-१८अ, संपूर्ण.
ज्वालामालिनीदेवी स्तोत्र-सबीज, सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते श्रीचंद; अंति: ज्ञायते स्वाहा. ११. पे. नाम. गुणरत्नाकर छंद-अधिकार-१ गाथा-१ से १४, पृ. १८अ-१९आ, संपूर्ण.
गुणरत्नाकर छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५७२, आदि: शशिकरनिकर समुज्वल; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १९आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-शृंखलाबंध, मु. जैनचंद्र, सं., पद्य, आदि: सर्वदेवसेवितपदपद्म; अंति: सौ मुक्तालतावाङ्दे, श्लोक-७.
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४४४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १३. पे. नाम. चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण.
___ सं., पद्य, आदि: श्रीचक्रे चक्रभीमे; अंति: चक्रदेव्याः स्तवेन, श्लोक-९. ६२६६४. बोल संग्रह, आराधना प्रकरण व ज्योतिष विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१३,
१३४२८-३३). १.पे. नाम. साधुसाध्वी श्रावकश्राविका नरकगामी विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
नरकगामी साधुसाध्वी आदि संख्या विचार, मा.गु., गद्य, आदि: महावीरथीके दुपसा; अंति: तो बहुश्रुत जाणै. २. पे. नाम. श्राद्ध पर्यंताराधना, पृ. १आ-८आ, संपूर्ण. श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: श्रीसर्वज्ञ प्रणम्य; अंति: जैनधर्मोस्तु मंगलम्,
अधिकार-५. ३. पे. नाम. ग्रहफल व संक्रांतिफल विचार, पृ. ८आ, संपूर्ण.
ज्योतिष*,मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: सूर्यः पंचदिने शशि; अंति: संक्रांते फलमुत्तमम्. ६२६६५. (+) चतुर्विंशतिदंडकविचारगर्भित वीतराग स्तवन सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१३, ४४३५). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ.
गाथा-४३.
दंडक प्रकरण-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभादिक महावीर; अंति: आत्माना हीतने काजे. ६२६६६. पार्श्वनाथ निसाणी, स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ६, दे., (२५४१२.५, १३४४३-४५). १. पे. नाम. पारसनाथजीरी नीसाणी, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपत दायक सुर नर; अंति: गुण जिनहरष गावंदा है,
गाथा-२९. २. पे. नाम. सूत्रकृतांगसूत्र- वीरस्तुति अध्ययन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति:
आगमिसति त्तिबेमि, गाथा-२९. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमुलं; अंति: सिझिं संति तहावरे, गाथा-७. ४. पे. नाम. गणधरमहिमा स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण.
गणधर महिमा पद, पुहिं., पद्य, आदि: चवदे पूर्वरा धारक कह; अंति: सठ पुरसामे पुरस सारा, गाथा-६. ५. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र-नमिप्रवज्याअध्ययन, पृ. ४अ-६अ, संपूर्ण.
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६. पे. नाम. सूत्रकृतांगसूत्र-श्रुतस्कंध १ अध्ययन-१०-११, पृ. ६अ-८अ, संपूर्ण.
सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६२६६७. (+) विपाकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-४(१ से ४)-७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२४.५४१२.५, १५४४०). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ अपूर्ण से
अध्ययन-३ अपूर्ण तक है.) ६२६६८.(#) भक्तामर स्तोत्र व पार्श्वप्रभु स्तव, अपूर्ण, वि. १९५३, मध्यम, पृ. १३-६(१ से ६)=७, कुल पे. २, ले.स्थल. सुजाणगढ,
प्रले. जानकीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२.५, ९४२४). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., वि. १९५३, आश्विन कृष्ण, ८, बुधवार.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. मात्र अंतिम काव्य है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिनमहिम्न स्तोत्र, पृ. ७आ-१३आ, संपूर्ण, वि. १९५३, आश्विन शुक्ल, ६, सोमवार.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
४४५ आ. रघुनाथ, सं., पद्य, वि. १८५७, आदि: महिम्नः पारं ते परम; अंति: रघुनाथ लिखितोमोदभरतः, श्लोक-४१. ६२६६९. (+) जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१२.५, ६४२५-३०).
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति:
संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: तीन भुवननै विषे; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है.) ६२६७०. (#) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, स्तवन व विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९७, चैत्र शुक्ल, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ७,
ले.स्थल. प्रधरी, प्रले. श्राव. नानजी उकरडा दोसी,प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, १२-१५४३५). १. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण.
प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. २.पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: आदि जिणेसर पहेला; अंति: धन मानव जे थाए यती, गाथा-७. ३. पे. नाम. जिनधर्म सज्झाय, पृ. ७अ, संपूर्ण.
दानशीलतपभावना प्रभाति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिनधर्म; अंति: ए छे
__ मुगतिदातार, गाथा-६. ४. पे. नाम. पोसो पारवानी विधि, पृ. ७अ, संपूर्ण.
पौषधपारणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: सागरचंदो कामो; अंति: होय तस मिच्छामीदुकडं. ५.पे. नाम. सामायक पारवानी विधि, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
सामायिकपारणसूत्र, हिस्सा, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: सामाइ वयजुत्तो जाव; अंति: तस मिच्छामि दुक्कडं. ६. पे. नाम. पोषधपच्चक्खाणसूत्र, पृ. ७आ, संपूर्ण.
पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: करेमे भंते पोसं आहार; अंति: अप्पाणं वोसिरामि. ७. पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. ७आ, संपूर्ण.
संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सुरे उग्गए अब्भत्त; अंति: गारेणं वोसिरामि. ६२६७१. (+) श्रमणप्रतिक्रमण सूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(२)-७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१२, १५४२५).
साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० इच्छा; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारंभ से "चंदाप्रभु तारि तारि" अपूर्ण तक है व "सायणाए तेतीसन्नराए" अपूर्ण से २४जिन
स्तव अपूर्ण तक लिखा है.) ६२६७२. (+) कार्तिकपंचमी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. मु. धर्मचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१३, १६४२९-३३). वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि:
श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मेडतानगरे, श्लोक-१४७. ६२६७३. (+) दशवैकालिकसूत्र-१ से ४ अध्ययन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., ., (२५४१२.५, १४४४०).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६२६७४. (+) कल्पसूत्र पीठिका व ज्ञान पहिरावणी गाथा, संपूर्ण, वि. १९४४, भाद्रपद शुक्ल, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २,
प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१३, ९४२३). १.पे. नाम. कल्पसूत्र की पीठिका, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण.
कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: संघ जयवंतो प्रवर्तो. २. पे. नाम. ज्ञान पहिरावणी गाथा, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: नमंत सामंतमही विनाह; अंति: लाभाय भवक्खयाय, गाथा-२.
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४४६
६२६७५. श्रावकप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६ वे. (२४४१२.५, ६x२८).
वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे, अंतिः वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा - ५०. ६२६७६. (+) पोषदशमी कथा व पोषदशमी व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, दे., (२२४१२.५, १५-१७४४०).
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१. पे. नाम. पौषदशमीपर्व कथा, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण.
मु. जिनेंद्रसागर, सं., पद्य, आदि: ध्यात्वा वामेयमर्हत, अंतिः शीघ्रं रचयांचकार, श्लोक ७५.
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२. पे. नाम. पौषदशमीपर्व व्याख्यान, पृ. ३आ-५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
पौषदशमीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: अभिनवमंगलमालाकरणं; अंति: (-), (पू.वि. आचार्य श्री मुनिचंद्रसूरि द्वारा संवत् १२०४ में जिनबिंच प्रतिष्ठा कराने प्रसंग तक है.)
६२६७७. मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १८८३, आषाढ़, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. लखनौ, प्रले. मु. धर्मचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५X१३, १५X३१).
मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., पद्य, वि. १५७६, आदि: अन्यदा नेमिरीशाने; अंतिः हमीरपुरसंश्रितैः श्लोक-११९.
"
६२६७८ (४) कुमतिउत्थापन चर्चा, संपूर्ण, वि. १८८३, पीष शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. पं. आसाराम, प्र. ले. पु. सामान्य,
प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५x११.५, १५X४२-४५). कुमतिउत्थापन चर्चा, पुहिं. गद्य, आदि: मनोमती झूठी प्ररूपणा अंति मत का उत्थापक जाणणा. ६२६७९_ (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, स्तुति व गीत, संपूर्ण, वि. १८८५, माघ कृष्ण ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ४, ले.स्थल. वरीयाव, प्रले. मु. हर्षसागर, अन्य. मु. देवविजय (गुरु पं. नेमविजय); गुपि. पं. नेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२३.५X१३, १९x४२).
१. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १अ -५अ, संपूर्ण.
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंति: सेसो संसारफले हेउ. २. पे नाम, पार्श्वनाथजी थुई, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपास जिणेसर पुजा; अंति: सुख संपति हितकार, गाथा-४. ३. पे नाम, पजोसणजी धुड़, पृ. ५आ, संपूर्ण
पर्युषणपर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मा.गु., पच, आदि परव पजोसण पुन्यै पाम; अंतिः अमर० दिन करै वधाइ जी,
गाथा-४.
४. पे नाम, पार्श्वनाथ गीत, पृ. ५आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदिः आणी मन सुध आसता देव, अंति: मेरी चिंता चूर, गाथा-७.
६२६८१. अजितशांति व बृहत्शांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., ( २४.५x१२, १x२८). १. पे नाम, अजितशांति स्तव, पृ. १अ ५अ, संपूर्ण
आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि अजिअं जिअसव्वभयं संत, अंतिः पुव्वुप्प० विणासंति, गाथा- ३९. २. पे नाम, बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, पृ. ५अ ५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है.
सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: (-), (पू.वि. "पुण्याहं पुण्याहं" पाठ तक है.)
६२६८२. (+) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३०, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे.,
"
१२४३०-३६).
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(२४.५X१०.५, दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा. पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुक्किहं, अंति: अपुणागमं गए तिबेमि,
अध्ययन १०.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
४४७ ६२६८३. (+#) युगादिदेशना, संपूर्ण, वि. १६९०, वैशाख शुक्ल, १२, बुधवार, मध्यम, पृ. ४३, ले.स्थल. रसिकपुर,
प्रले. पं. कमलकीर्ति गणि (गुरु मु. कल्याणलाभ, खरतरगच्छ); गुपि.मु. कल्याणलाभ (गुरु ग. कल्याणधीर, खरतरगच्छ); ग. कल्याणधीर (गुरु आ. जिनमाणिक्यसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनमाणिक्यसूरि (गुरु गच्छाधिपति जिनहससूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अंत में प्रहेलिकामय दो गाथाएँ दी गयी है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४५९). युगादिदेशना, ग. सोममंडन, सं., पद्य, आदि: श्रीमानादिजिनः श्रेय; अंति: चैषा जयाभ्युदयदायिनी, उल्लास-५,
श्लोक-५७४. ६२६८४. (+) उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४३, अन्य. पं. विनयविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ९४२८).
उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४२. ६२६८५. (+#) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १७०३, चैत्र कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ३९, ले.स्थल. मूलत्रांण, प्रले. मु. दयासागर (गुरु ।
उपा. धर्मकीर्ति वाचक, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि. उपा. धर्मकीर्ति वाचक (गुरु ग. धर्मनिधान, बृहत्खरतरगच्छ); ग. धर्मनिधान (गुरु गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि, बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (४७१) भग्नपृष्टं कटिग्रीवा, (६१२) यादृशं पुस्तके दृष्टं, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४०-५०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९,
ग्रं. १२१६. ६२६८६. (+) संघयणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३८,प्र.वि. उदाहरणार्थ कोष्ठक-यंत्र संलग्न है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अशुद्ध पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०,५४५०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउ अरिहंताई ठिइ; अंति: नंदउ जा वीरजिण तत्थं,
गाथा-३७७.
बृहत्संग्रहणी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ अरिहंत; अंति: महावीरना तीर्थ लगै. ६२६८७. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थव कथा- अध्ययन ९ से १२, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, ३-१३४३६-४२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अध्ययन-९ गाथा-२ से लिखा
हैव अध्ययन-१२ गाथा-४० तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण.
उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह ,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ६२६८८. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ-अध्ययन १ से ११, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११, ६४३६).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: साधु केहवा छइं जिणइ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६२६८९. (+) नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८७१, माघ शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ३१, उप.पं. फतींद्रविजय; लिख. श्राव. वखतावरमल्लजी सीपाणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ९४३७). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: से तं नंदी सम्मत्ता, सूत्र-५७,
गाथा-७००. ६२६९०. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. प्रारंभिक ३ पत्र बाद में लिखे गये हैं., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०.५, ७-१२४३५-४०). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: नमो अरि० धम्मो मंगल; अंति: (-),
(पू.वि. अध्ययन-८ गाथा-१५ तक है.)
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४४८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रथम महावीरस्वामीने, (२)नमस्कार थाओ० केवली; अंति: (-),
(वि. पीठिकारूप कथा प्रारंभ में है.) ६२६९१. निरयावलिकादि पंचोपांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, कुल पे. ५, जैदे., (२६४१०.५, १३४४५). १.पे. नाम. कल्पिकासूत्र, पृ. १आ-१४अ, संपूर्ण.
प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंति: भणियव्यो तहा, अध्ययन-१०. २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र, पृ. १४अ-१५आ, संपूर्ण.
प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: कप्पवडिंसियाउ, अध्ययन-१०. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र, पृ. १५आ-२७आ, संपूर्ण.
प्रा., गद्य, आदि: जइण भते समणेणं०; अंति: चेइयाई जहा संगहणीए, अध्ययन-१०. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र, पृ. २७आ-२९आ, संपूर्ण.
प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेण०; अंति: वासे सिज्झिहिंति, अध्ययन-१०. ५.पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र, पृ. २९आ-३२आ, संपूर्ण.
प्रा., गद्य, आदि: जइणं भंते० पंचमस्स; अंति: बारस्स उद्देसगा, अध्ययन-१२. ६२६९२. (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३७-१२(१ से १०,१८ से १९)=२५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ९४२०-२५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उत्तमकुलवर्णन प्रसंग से जिनाभिषेक प्रसंग तक
है व बीच-बीच के कुछ पाठांश नहीं हैं.) ६२६९३. (+) कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५४-१२५(१ से १२२,१२६ से १२८)=२९, अन्य. पं. चारित्रकीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०, १५४४४-५०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., २४ तीर्थंकर आंतरा अपूर्ण से
आर्य प्रभवस्वामि की पट्टावली तक है.) कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र
६२६९४. (+) श्रावक सामाचारी सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, १४४३३-४०).
श्रावक सामाचारी, प्रा., पद्य, आदि: णमिऊण जिणं वीरं ससुर; अंति: णासो संवेगरसायणं देइ, गाथा-२०.
श्रावक सामाचारी-टीका, सं., गद्य, आदि: येन ध्यानसमन्वितेन; अंति: गुण कोपि कालः सभावी. ६२६९५. (+) दशवैकालिकसूत्र व सूत्र परिचय गाथा, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २८-२(१,२६)+१(१६)=२७, कुल पे. २,
प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३५-४०). १.पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र, पृ. २अ-२८आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं. __ आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: मुच्चइ त्ति बेमि, अध्ययन-१०, (पू.वि. अध्ययन-२ गाथा-११
अपूर्ण से अध्ययन-१० गाथा-१५ अपूर्ण तक व चूला-१ गाथा३ अपूर्ण से है., वि. चूलिका-२.) २.पे. नाम. दशवैकालिकसूत्रपरिचय गाथा, पृ. २८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दशवकालिकसूत्रगत गाथा, संबद्ध, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिजभवं गणहरं जिण; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ६२६९६. भववैराग्यशतक सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदे., (२६४११, ९४३२-३६).
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, गाथा-१०४.
वैराग्यशतक-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंति: लहइ जी शास्वतु ठाम. ६२६९७. (+) मनुष्यभव १० दृष्टांत कथा, चातुर्मासिक व्याख्यान व पट्टावली, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, कुल पे. ३,
प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १५४४४).
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४४९
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
१.पे. नाम. मनुष्यभव १० दृष्टांतगाथा सह दृष्टांतकथा, पृ. १आ-२२अ, संपूर्ण, वि. १७४८, श्रावण कृष्ण, ११, शनिवार,
ले.स्थल. जूनागढ, प्रले.मु.सुमतिशील पडित (गुरु वा. चारित्रचंद्र गणि, खरतरगच्छ); गुपि. वा. चारित्रचंद्र गणि (गुरु मु. तिलकचंद्र, खरतरगच्छ); मु. तिलकचंद्र (गुरु मु. जयतसी, खरतरगच्छ); मु. जयतसी (गुरु ग. पुण्यकलश, खरतरगच्छ); ग. पुण्यकलश (गुरु ग. धर्ममंदिरजी, खरतरगच्छ); राज्ये गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम. मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत गाथा, प्रा., पद्य, आदि: चूल्लग१ पासग२ धन्ने३; अंति: दिटुंता मणुयभवलंभे, गाथा-१. मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत गाथा-दृष्टांतकथा, सं., गद्य, आदि: संसारे चतसृषु० साकेत; अंति: परमाणुदृष्टांतो
दशमः.
२. पे. नाम. चातुर्मासिक व्याख्यान, पृ. २२अ-२६आ, संपूर्ण. चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६५, आदि: प्रणम्य परमानंदात्; अंति:
मिथ्यादुष्कृतं देयम्. ३. पे. नाम. महावीरजिन पट्टावली, पृ. २६आ, संपूर्ण. पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., गद्य, आदि: १श्रीमहावीर वीरस्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
जिनवल्लभसूरि तक लिखा है.) ६२६९८. (+#) कर्पूरप्रकर सह अवचूरि व कथासंग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२-२(७,२८)=३०, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४४). कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि: कर्पूरप्रकरः शमामृत; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१६ से १८, ७२-७४ व
श्लोक-८५ से नहीं हैं.) कर्पूरप्रकर-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: भव्या लब्धार्यदेशं१; अंति: (-).
कर्पूरप्रकर-कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानम्य; अंति: (-). ६२६९९ (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-१४(१ से १४)=११, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३४-४१).
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-),
(पू.वि. मर्त्यकांड श्लोक-८९ से ४५३ तक है.) ६२७०१. (#) सम्यक्त्व कौमुदी, अपूर्ण, वि. १६२४, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३१-९(२ से १०)=२२,
ले.स्थल. देवासनगर, प्रले. गोपी जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४५१-५७). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४५७, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: विपर्ययादीक्षतो बंध,
पद-४४४, ग्रं. १६७५, (पू.वि. राजा श्रेणिक द्वारा समवसरण में भगवान महावीर एवं गौतमस्वामी की स्तुति कर
गौतमस्वामी से सम्यक्त्व कौमुदी कथा कहने के प्रसंग से अर्हद्दास सेठ की कथा अपूर्ण तक नहीं है.) ६२७०२. (#) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १७४५, चैत्र कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. २८, पठ. श्राव. जयंतसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, २०४४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९,
ग्रं. १२००. ६२७०३. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७१-४८(१ से ३९,५३ से ६०,६६)=२३, पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१०.५, ११४३३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२३ गाथा २ अपूर्ण से
अध्ययन-२९ सूत्र २० अपूर्ण तक, अध्ययन-३२ गाथा १ अपूर्ण से अध्ययन-३२ गाथा ९० अपूर्ण तक व
अध्ययन-३२ गाथा १०८ अपूर्ण से अध्ययन-३६ गाथा २ अपूर्ण तक है.) ६२७०४. सिद्धांतसार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३-१(१)=२२, जैदे., (२६४१०.५, १४४५१).
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४५०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५८ बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
पल्योपम भेद विचार से है व सावध क्रिया पाठ तक लिखा है.) ६२७०५. (#) दशवैकालिकसूत्र सह बालावबोध-अध्ययन १ से ४, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १६४४५-४८). दशवकालिकसूत्र-हिस्सा अध्ययन १ से४, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति:
राहेजासि त्ति बेमि, अध्ययन-४. दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा अध्ययन १ से ४ का बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीगुरुना
चरणकमल; अति: (१)श्रावक एहनी जयणा करइ, (२)पासचंद्र० बालावबोधः. ६२७०६. साधुसमाचारी, संपूर्ण, वि. १९६०, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १९, ले.स्थल. पाटण, प्रले. जयनारायण लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५, १२४३३).
साधुदिनकृत्य, आ. हरिप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीवीरः श्रेयसे; अंति: दस शिवगमी, गाथा-४२२. ६२७०७. साधुपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १८७०, फाल्गुन कृष्ण, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. १६, ले.स्थल. राजनगर, जैदे., (२५४११, १०४३५-३९).
साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दसणंमिय; अंति: पारगाहोह गुरुवचन. ६२७०८. (#) भक्तामर स्तोत्र सह बालवबोध, संपूर्ण, वि. १८३१, श्रावण शुक्ल, १, सोमवार, मध्यम, पृ. १८, ले.स्थल. अवंतीनगर,
प्रले. पं. अमृतसोम (गुरु पं. गंगसोम); गुपि.पं. गंगसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (११३८) जब लग मेरु अडग है, जैदे., (२५४१०.५, १३४४८).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समपैत्रु लक्ष्मीः , श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५२७, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: लक्ष्मी स्वयंवर
वरइ. ६२७०९. वैराग्यशतक, गौतमकुलक व श्रावक के एकवीस गुण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८, कुल पे. ३,
जैदे., (२५.५४१०.५, ५४३२). १.पे. नाम. वैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ. १आ-१४आ, संपूर्ण. वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारमि असारे नत्थि; अंति: (१)लहइ जिओसासयं ठाणं, (२)जत्थेकासतितुजंतुणो,
गाथा-१०३.
वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सं० चतुर्गतिरुप संसा; अंति: य घणो दुख घणो जीवने. २. पे. नाम. गौतमकुलक सह टबार्थ, पृ. १४आ-१८अ, संपूर्ण.
गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: निसेवितु सुहं लहंति, गाथा-२०.
गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लु० लोभीया नर मनुष्य; अंति: ल० पामइ जे अठसइ पामइ. ३. पे. नाम. श्रावक गुण सह टबार्थ, पृ. १८आ, संपूर्ण.
श्रावक २१ गुण सवैया, मा.गु., पद्य, आदि: लज्जावंत दयावंत; अंति: इकवीस गुणधारी है, पद-१.
श्रावक २१ गुण सवैया-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अकार्य करतो लाजइ; अंति: हुइ ते श्रावक जाणवा. ६२७१०. (+#) नवतत्त्व व जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७२२, आश्विन कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १७, कुल पे. २,
ले.स्थल. राजनगर, प्रले. ग. विनीतचंद्र (गुरु ग. मतिचंद्र); गुपि.ग. मतिचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ४४३३). १.पे. नाम. नवतत्वप्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-९अ, संपूर्ण.
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-४७.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व १ अजीवतत्व २; अंति: एनर भेद सिद्ध जीवना. २.पे. नाम. जिवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ९अ-१७अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
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जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि भुवण पईवं वीरं नमिऊण अंतिः रुदाओ सुव समुद्दाओ, गाथा-५१.
गाथा - ५१.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः भुवन कहीजै तीन; अंति: रूपीया समुद्र हुती.. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकर सह टबार्थ, पृ. ७अ १३अ, संपूर्ण.
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जीवविचार प्रकरण- टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिण भुवन तेहनइ; अंति: ते मांहिथी उद्धर्यो.
"
६२७११. (७) सभाश्रृंगार वचन चातुरी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६. प्र. वि. प्रथम पत्र बाद में लिखा गया है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १५X४०-४५).
सभाश्रृंगार वचन चातुरी मा.गु., पद्य, आदि: नाभिनंदन सकल जगत्त्र, अंतिः स्नेहवती घोषणाः ६२७१२. (+४) जीवविचार, नवतत्त्व व विचारषट्त्रिंशिका सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १८, कुल पे. ३,
ले.स्थल. गेहरसर, प्रले. मु. डुंगरसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जीवे. (२६१०.५, ५X३०-३५ ).
"
१. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण.
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊंण, अंतिः रुदाउ सुसमुद्दाउ,
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: क्क१४ णिक्काय१५, गाथा-६०. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि जीव कहतां प्राणधी १० अंति: १४ अनेकसिद्धि १५. ३. पे. नाम. विचारषट्त्रिंशिका सह टबार्थ, पृ. १३अ - १८अ, संपूर्ण.
दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिऊण चउवीसजिणे तस्स, अंति: विन्नत्ति अप्पहिया,
गाथा - ३९.
६२७१४.
दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ चउवीस; अंति: आतमानइ हितकारिणी. ६२७१३. (+) पक्खिसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५x११.
६x४७-५०).
४५१
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., पग, आदि तित्यंकरे अ तित्थे, अंति: जेसिं सुवसायरे भत्ती.
पाक्षिकसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थनइ करइ अथवा ०; अंतिः रूप समुद्रनै विषइ.
(#)
। षद्रव्य संग्रह सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १८. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे.. (२५.५X१०.५, ९X३१).
द्रव्यसंग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: जीवमजीवं दव्वं जिणवर; अंति: चंदमुणिणा भणिय जं,
अधिकार-३, गाथा-५८.
द्रव्य संग्रह - टीका, सं., गद्य, आदि: अहं नेमिचंद्रः तं; अंति: रताः तल्लब्धये भवत.
६२७१५. (+#) संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण
युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५X११, ११X३३-३६).
.
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिठं अरिहंताई ठिङ, अंति; जा वीरजिण तित्थं, गावा- ३४९. ६२७१६. संबोधसप्ततिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५२, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १५, प्रले. पं. धीरविजय गणि (गुरु
ग. जिनविजय); गुपि. ग. जिनविजय (गुरु पं. पद्मविजय); पठ. श्रावि. कल्याण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले. श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, (१९४९) मंगला लेखकनां च जैदे. (२५X१०.५, ३x४१-४४).
"
"
संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा- ८५, (ले. स्थल. सप्तच्छदीनगर) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ऐं नमस्ते जगन्नेत; अंति: मोक्ष हुई सहीज, ग्रं. ८२५,
(ले. स्थल. आउआनगर)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६२७१७. (#) भक्तामर स्तोत्र व अजितशांति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. २, प्रले. मु.प्रीतविजय (गुरु
ग. सूरविजय); गुपि.ग. सूरविजय (परंपरा उपा. कल्याणविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ५४३६). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण.
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४.
भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्त जे देवता तेहना; अंति: वशि एहवी श्रीलक्ष्मी. २. पे. नाम. अजितशांति स्तवन सह टबार्थ, पृ. ८आ-१५आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह,
गाथा-४०.
अजितशांति स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: द्वितीयतीर्थंकरंजित; अंति: जिनवचने आदर करतु. ६२७१८. (+) उत्तराध्ययनसूत्र-जीवाजीवविभत्ती अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ११४३१).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: भवसिद्धीय समंतए, ग्रं. २०००, प्रतिपूर्ण. ६२७१९. (+#) लघुसंग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२४३०-३३). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिणमयं लोए,
गाथा-२८१. ६२७२०. (+#) नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६६, कार्तिक कृष्ण, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. रूपनगर,
प्रले. पं. कस्तुरविजय गणि (गुरु ग. गोकलविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ३४२७-३१).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: १३ क्क१४ णिक्काय१५, गाथा-४९.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीव दश विध प्राण धरै; अंति: १४ अनेकसिद्धा १५. ६२७२१. (+#) बृहत्संग्रहणी व कवित संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक
लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १३४३३-४४). १.पे. नाम. बृहत्संग्रहणी, पृ. १अ-१३आ, संपूर्ण, वि. १७९९, वैशाख कृष्ण, २, ले.स्थल. सितपत्र, प्रले. पं. किसनदास,
प्र.ले.पु. सामान्य. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई ठिइ; अंति: नंदोजा वीरजिण तित्थं,
गाथा-२९२. २. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त संग्रह, पृ. १३आ, संपूर्ण.
कवित संग्रह*, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६२७२२. (+#) जयसेन चौपाई, संपूर्ण, वि. १६४८, वैशाख शुक्ल, २, बुधवार, मध्यम, पृ. १२, प्रले. अमर सिंह;
पठ. श्रावि. नाथीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३२-४३). जयसेन चौपाई-रात्रिभोजन विषये, वा. धर्मसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: ए पणमिसु गोयगणहर पाय; अंति: सिद्ध संपद
ते लहइ, गाथा-२५७. ६२७२३. (#) चउसरण, श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र व दंडकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १०४२७-३०). १. पे. नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण, वि. १८४१, चैत्र कृष्ण, ३, रविवार.
ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
२. पे. नाम. वंदितसूत्र, पृ. ५आ - ९आ, संपूर्ण, वि. १८४१, चैत्र कृष्ण, ५, मंगलवार, ले. स्थल. बाधणवाडा,
प्र. मु. खुसवखतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य.
वंदित्सूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: बंदेतु सव्व सिद्धे, अंतिः वंदामि जिणे चडवीस, गाथा-५०.
३. पे. नाम, चौवीस दंडक प्र. ९आ-१२ आ. संपूर्ण.
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दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा. पद्य वि. १५७९, आदि नमिऊं चडवीस जिणे तसु; अंतिः विन्नति अप्पहिया,
"
गाथा - ४१.
६२०२४. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १९-६(१ से ६ ) = १३, पू. वि. बीच के पत्र हैं, जैवे. (२५.५४१०.५, १४X३७-४५).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. अध्ययन- ५ गाथा २५ अपूर्ण से अध्ययन- १० गाथा - १३ अपूर्ण तक है.)
६२०२५, (+०) संग्रहणी प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४११, ९४४३-४६).
"
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा. पद्य वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहंताई ठिह, अंतिः जा वीरजिणमयं लोए,
४५३
गाथा - ३४९.
६२७२६. हैमधातुपाठ सह टीका व कंड्वादि पाठ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. २, प्र. वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६x११, १-८४४८-५३).
१. पे. नाम. हैंमधातुपाठ सह टीका, पृ. १अ - १४आ, संपूर्ण.
सिद्धमशब्दानुशासन हैमधातुपाठ, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १९९३, आदि: भू सत्तायां पां पाने अंति: बहुलमेतन्निदर्शनम् ग्रं. ३००.
सिद्धहेमशब्दानुशासन - हैमधातुपाठ की टीका, सं., गद्य, आदि: इह तावत्पदपदार्थ; अंति: जाताणि चुरादिगणाः. २. पे. नाम. सिद्धमशब्दानुशासन- कंडवादि धातुपाठ, पृ. १४आ, संपूर्ण.
सिद्धमशब्दानुशासन - कंड्वादि धातुपाठ हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: कंडु महीड़ हणीड़, अंति: अरर समर सपर.
६२७२७. (+) अजितशांति स्तवन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X१०.५, ४x२९-३२). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि अजियं जिवसव्वभयं संत अंतिः (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. गाधा- ३९ अपूर्ण तक है.)
अजितशांति स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः प्रणिपत्य जिनवरेंद्र, अंति: (-), (पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा- ७ अपूर्ण तक का टबार्थ लिखा है.)
६२७२८. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैवे., (२५.५४११,
६-१७४४४-४८).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि: संजोगा विप्यमुक्कस्स: अंति (-) (पू. वि. अध्ययन- ३ गाथा- २ अपूर्ण तक है.)
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उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: संयोग बाह्य मातापिता, अंति: (-).
उत्तराध्ययनसूत्र- कथा संग्रह", मा.गु, गद्य, आदि आचार्य उपर दुष्टपणो अंति: (-).
६२७३०. (#) कालकाचार्य कथा व एकादशी स्तुति सह टीका, संपूर्ण, वि. १७१९, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. ९, कुल
पे. २, प्रले. मु. जयकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१०.५, १७x४४-४८). १. पे. नाम. कालकाचार्य कथा, पृ. १अ ९आ, संपूर्ण.
कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य वि. १६६६, आदि: प्रणम्य श्रीगुरुं अंतिः संघ प्रवर्त्तताम् २. पे. नाम. एकादशी स्तुति गाथा १ सह टीका, पृ. ९आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंतिः (-), प्रतिपूर्ण. मौनैकादशी स्तुति - टीका, सं., गद्य, आदि: कल्याणकानां पंचकंअद : अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
६२७३१. (+) आराधनासूत्र सह टवार्थ व चार मेघवर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे, २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५४१०.५, ५४२८-३२).
१. पे. नाम. आराधना प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ - ९अ, संपूर्ण.
पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण भणइ एवं भयवं; अंति: लहंति ते सासयं सुखं, गाथा- ७०,
ग्रं. २४५.
पर्यंताराधना-टबार्थ”, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने कल्याण; अंति: सास्वतो सुख पांमई.
२. पे. नाम. चारमेघ वर्णन, पृ. ९अ, संपूर्ण.
स्थानांगसूत्र- हिस्सा स्थानक४ उद्देश ४ मेघपद से परिनिंदिता पद का चारमेघ विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: चार प्रकारना मेघ, अंति: पांचमा आरलगणु हुवै,
६२७३२. (४) दशवैकालिकसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २५-१५ (१ से १४,१६) = १०. पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, ११३५).
"
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा. पद्म, वी. रवी, आदि (-); अंति: (-) (पू.वि. अध्ययन ६ गाथा- १२ अपूर्ण से गाथा ३७ अपूर्ण तक व गाथा ६१ अपूर्ण से अध्ययन- ९ उद्देश ४ अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
६२७३३. गौतमपृच्छा सह कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२-१ (१) =११, जैदे. (२५x१०५ २ १४X३९-४७).
"
गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: दुमेहो जायए पुरिसो, प्रश्न- ४८, गाथा - ३१, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा५ अपूर्ण से है., वि. पूर्णता सूचक संकेत नहीं है.)
गौतमपृच्छा - बालावबोध+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंतिः पिण न्यायथाइ नहीं, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं है. ६२७३४. (+) योगशास्त्र- प्रकाश ३ से ४, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १० प्रसं उपा. कनकतिलक गणि, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जीवे., (२६११, १४X३५-४०).
योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण ६२७३५. नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९, जैये. (२६४१०.५, ४४३६)
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवार जीवार पुण्णं३: अंति: अनंतभागोसिद्धिगओ, गाथा ४८.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः साची वस्तुनउं स्वरूप; अंति: ते निश्चय करीयां नव... ६२७३६, (४) भक्तामर स्तोत्र व कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे २ प्रले. आ. धर्मरत्नसूर (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १६X५६).
१. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह टीका, पृ. १अ - ५आ, संपूर्ण.
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणति मौलि, अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र- अवचूरि, सं., गद्य, आदिः किल इति स्तये अहमपि अंतिः जसं निरंतर कंठघृतां.
२. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, प्र. ५आ- ९अ, संपूर्ण.
कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंति: मोक्षं प्रपद्यंते,
लोक-४४.
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कल्याणमंदिर स्तोत्र - टीका, सं., गद्य, आदि: किल इति संभावनायां; अंतिः किं० विगलितमलनिचयाः.
६२७३७.
(+#)
उपस्थापना विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x१०.५. १५४५३).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
योगविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, मु. शिवनिधान, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: श्रीहर्षसारवाचकशिष्य; अंति: त्तेणावि
कालेणं कीरइ. ६२७३८. (#) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ व सिद्धभेद गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ६४३१). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-९आ, संपूर्ण.
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं पावा; अंति: कम्माणं वग्गणाणंता, गाथा-८७.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: एह नवतत्त्वनुसंखेप; अंति: कम्माणंवग्रणाणता. २. पे. नाम. सिद्धभेद गाथा, पृ. ९आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: जिण अजिण तित्थतित्था; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र एक पद लिखा
है.) ६२७३९. (+) ऋषिमंडल प्रकरण व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, पठ. पं.रंगवर्द्धन गणि (गुरु
पं. कल्याणवर्द्धन गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १३४३६-३९). १.पे. नाम. ऋषमंडल प्रकरण, पृ. १अ-९आ, संपूर्ण. ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: भत्तिब्भरनमिरसुरवर; अंति: धम्मघोस० सिद्धिसुह,
गाथा-२१९, ग्रं. २५९. २. पे. नाम. जैनधार्मिक गाथा, पृ. ९आ, संपूर्ण.
गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ६२७४०. सिंदूरप्रकर, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१०.५, ९४२२-२५).
सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- ६१ अपूर्ण तक
६२७४१. (+#) उपदेशसंग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १६x४६-५०).
उपदेश संग्रह, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य पुण्यपद्मा; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक- ४०७ अपूर्ण तक है.) ६२७४२. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०७-१००(१ से ९०,९२ से ९५,९७ से १०२)=७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०, ६-१५४३६-४९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. तीर्थंकर आंतरा से स्थविरावली अपूर्ण तक
बीच-बीच के पाठ हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६२७४३. (+) सम्यक्त्वस्वरूप स्तवन सह अवचूर्णिव श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७८५, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद
सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४११, २४३४-३८). १.पे. नाम. सम्यक्त्वस्वरूप स्तवन सह अवचूर्णि, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण.
सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: हवेउसम्मत्तसंपत्ति, गाथा-२५.
सम्यक्त्वपच्चीसी-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: यथा येन औपशमिकत्वादि; अंति: भवत्विति सुगममन्यत्. २. पे. नाम. सम्यक्त्व वर्णन श्लोक, पृ. ८अ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: गुणानामेक आधारो; अंति: किमुदीरयामः, श्लोक-६. ६२७४४. (+#) सनत्कुमारचक्री चरित्र, संपूर्ण, वि. १६९५, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर फीके पड गये हैं,
जैदे., (२६४१०.५, १४४४३).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका का हिस्सा सनत्कुमारचक्री चरित्र, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९,
आदि: कुरुजंगले देशे हस्ति; अंति: ताधिकारे उक्तवास्ति. ६२७४५. (#) सौभाग्यपंचमीकथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-८(१ से ८)=५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ७४२७-३२). वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदिः (-); अंति:
विनिर्मिता कनककुशलेन, श्लोक-१५०, (पू.वि. गाथा-९७ से है.)
वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: नामेनं टीका कृता. ६२७४६. उत्तराध्ययनसूत्र सह लेशार्थदीपिका टीका व कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२५४११, १५४३६-४०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., अध्ययन-१ गाथा-१४ तक लिखा है.) उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्यादिदेवादीनर; अंति: (
का, स., गध, आदिः प्राणपत्यादिदेवादानर; अति: (-), अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.
उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह*, मागु., गद्य, आदि: उजेणी नगरी; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६२७४७. (+) भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७०३, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. अर्गलपुर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५.५४११, ५४३९-४२).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणत मौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४.
भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्तिवंत जे देवता ते; अंति: सेवि लक्ष्मी तेहनइ. ६२७४८. (#) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. पंचपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, ६-९४२४-३०). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्ष प्रपद्यते,
श्लोक-४४.
कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वजिनमानम्य; अंति: सुप्रसादात्. ६२७४९. (+) चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ५४३८-४५). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोगविरई उक्कित; अंति: कारणं निव्वुई सुहाणं,
गाथा-६३.
चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते जोग कहता मन वचन; अंति: तेहना सुखनो कारण. ६२७५०. वैराग्यशतक सह अर्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-३(२ से ३,५)=६, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११, ११४२५-२९).
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ से १२, गाथा- २५ से २९ अपूर्ण एवं
गाथा- ५२ से अंत तक नहीं है.)
वैराग्यशतक-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: एह संसारमाहिसार नथी; अंति: (-). ६२७५१. (+) विक्रमखापरा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४६२).
खापराचोर चौपाई, उपा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: सरसति माता समरिए नित; अंति: मतिमंदिर
सुख थाइ, ढाल-१७. ६२७५२. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७००, ज्येष्ठ कृष्ण, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. नवीननगर,
प्रले. ग. हंसविजय; पठ. श्रावि. श्रृंगारदे शिवजीभाई भंसाली, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ५४३३-३८).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
४५७ कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते,
श्लोक-४४.
कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिनेश्वर तीर्थंकरखें; अंति: क्षणमांहि मोक्ष पामइ. ६२७५३. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले.पं. हर्षचंद्र गणि (गुरु ग. तेजचंद्र); गुपि.ग. तेजचंद्र (गुरु ग. शिवराज); ग. शिवराज (गुरु ग. जीवराज), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ९४२६)..
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ६२७५४. (+) कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. मु. रत्नसागर (गुरु भट्टा. ज्ञानचंद्रसूरि, वृहद्गच्छ);
गुपि. भट्टा. ज्ञानचंद्रसूरि (वृहद्गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ९४३८-४२).
__कालिकाचार्य कथा, प्रा., पद्य, आदि: नामेण धरावासं अत्थि; अंति: भणियं पुव्वसूरीहिं, गाथा-१३०. ६२७५५. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५१-४४(१,३ से १०,१६ से ५०)-७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ५४३०-३५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२ से ९ अपूर्ण तक
बीच-बीच के पाठ हैं.)
दशवकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६२७५६. (+) महावीरजिन २७ भववर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२५४११, १२४३७).
महावीरजिन २७ भव व्याख्यान, सं., गद्य, आदि: ग्रामेश स्त्रिदशो२; अंति: तीर्थंकरो जातः, ग्रं. १००. ६२७५७. स्तवन व स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-७(१ से ५,१२ से १३)=७, कुल पे. ७, जैदे., (२५.५४११,
१५४३३-३५). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला महामंत्रमय, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: लभेत् ध्रुवम्,
श्लोक-१४, (पू.वि. गाथा ११ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. लघु अजितशांति स्तोत्र, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तवलघु-अंचलगच्छीय, क. वीर गणि, प्रा., पद्य, आदि: गब्भवियार सोहममिसिर; अंति: सुह सयल
संपज्जए, गाथा-८. ३. पे. नाम. वृद्धिशांति स्तोत्र, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण, वि. १७३८, आश्विन शुक्ल, ७, शुक्रवार.
अजितशांति स्तवबृहत्-अंचलगच्छीय, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, आदि: सकलसुखनिवहदानाय सुर; अंति:
__ जनयति संघस्य मुदम्, श्लोक-१७. ४. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ७अ-९आ, संपूर्ण.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ५. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ९आ-११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४१ अपूर्ण तक है.) ६. पे. नाम. चउशरण पइण्णय, पृ. १४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदिः (-); अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३,
(पू.वि. गाथा ५३ अपूर्ण से है.) ७. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १४अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १९ अपूर्ण तक है.) ६२७५८. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८-२(१,३)=६, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,
प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, ४४४५-४७).
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४५८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ गाथा ५ अपूर्ण से १३ अपूर्ण
तक वगाथा २३ अपूर्ण से अध्ययन-२ गाथा १३ अपूर्ण तक है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६२७५९. (+) पाक्षिकसूत्र व पाक्षिकखामणा, संपूर्ण, वि. १८४२, ज्येष्ठ कृष्ण, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २,
पठ. मु. मुक्तिचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२४४२). १.पे. नाम. पाक्षिक सूत्र, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण.
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. खामणा सूत्र, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पिय; अंति: मणसा मत्थएण वंदामि, आलाप-४. ६२७६०. (+) गाथारत्न माला व गुणानुराग कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद
सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ५४३८). १.पे. नाम. गाथारत्नमाला सह टबार्थ, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण.
गाथारत्नमाला, मा.गु., पद्य, आदि: अमीयस्स रसो चंदस्स; अंति: गुरुयं सिप्पसंपुडयं, गाथा-५६.
गाथारत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अमृतनो जे साररस चंद; अंति: देवतादिक सेवा करइ. २.पे. नाम. गुणानुराग कुलक सह टबार्थ, पृ. ६आ-८आ, संपूर्ण.
गुणानुराग कुलक, मु. जिनहर्ष, प्रा., पद्य, आदि: सयल कल्लाण निलय; अंति: सो पावइ सव्वनमणिज्जो, गाथा-२९.
गुणानुराग कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: स० समस्त क० सुख तेहन; अंति: ते धरती माहि ते पामइ. ६२७६१. (#) कल्याणमंदिर स्तोत्र सहटबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१(१)=६, प्र.वि. कुल ग्रं. २००, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, ६४३३). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४,
(पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण से है.)
कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मोक्ष प्रति पामइ सहा. ६२७६२. (+) साधुप्रतिक्रमण सूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ११४३४). साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं० करेमि; अंति: (-),
(पू.वि. "चत्तारि सरण वज्जामि" तक का पाठ है.) ६२७६३. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४-२६(१ से २६)=८, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२५ गाथा-३ अपूर्ण से
अध्ययन-३० गाथा-२० अपूर्ण तक है.) ६२७६४. (+) श्लोक व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०, १२४३४). १.पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक प्रा.,सं., पद्य, आदि: प्रासाद १ पर्चत २; अंति: (-), श्लोक-८०. २. पे. नाम. पट्टावली, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण.
पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., पद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: श्रीगौतमः स्तान्मुदे, श्लोक-१४. ३. पे. नाम. वर्द्धमानजिन स्तुति, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु वर्द्धमानाय; अंति: भाजां श्रुतांगी, श्लोक-४. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण.
प्रा.,सं., पद्य, आदि: परसमयतिमिरतरणिं भव; अंति: मे मंगलं देवि सारं, गाथा-४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
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प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवार पुण्ण३; अंति: भेएहिं उदाहरणं, गाथा-४९.
३. पे. नाम चतुः शरण प्रकीर्णक, पृ. ४अ - ६ आ. संपूर्ण.
५. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. ८- ९अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसुवन्न, अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४.
६. पे. नाम. पलांकित स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंति: सा जिनशासन देवता, श्लोक-४.
७. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र अध्ययन १-२ पृ. ९अ - ९आ, संपूर्ण.
दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुकिङ अंति: (-), प्रतिपूर्ण ६२७६५. (+) जीवविचार, नवतत्त्व व चउसरण प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११, १४४४२).
१. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण.
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण, अंति: रूद्दाउ सुय समुद्दाउ, गाथा ५१.
२. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण.
ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई, अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा- ६३.
६२७६६. षद्रव्य विवरण, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे, (२५.५५११, १३x४१).
,
६२७६७. संधारा पन्ना सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदे, (२५.५४११, ७४४५-४९).
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बोल संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: अधर्मास्तिकायना ४; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., जीव द्रव्य वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.)
४५९
संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि काऊण नमुक्कारं जिणवर, अंतिः सुहसंक्रमणं मम दिंतु, गाथा- १२२,
(वि. १८३१, आश्विन शुक्ल, १४, मंगलवार )
संस्तारक प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: करीनइ नमस्कार जिणवर, अंतिः कर्ताना मनोरथ जाणिवा, ग्रं. ५००, (वि. १८३९, कार्तिक कृष्ण, २, प्रले. मु. महतावराव, प्र.ले.पु. सामान्य )
६२७६९. (+) उववाईसूत्र हिस्सा ध्यानविचार सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६X१०.५, १५X३०).
1
"
औपपातिकसूत्र - हिस्सा ध्यानसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: अट्टे झाणे चडविडे, अंति (-) (पू.वि. शुक्लध्यान अपूर्ण तक पाठ
है.)
औपपातिकसूत्र - हिस्सा ध्यानसूत्र का बालावबोध, मा.गु. गद्य, आदि: ध्यानना च्यार भेद, अंति: (-). ६२७७१. पिंडविशुद्धि प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. कुल ग्रं. १२८, जैदे., (२५.५x१०.५, ११x४१). पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि देविंदविंदवंदिव पयार अंतिः बोहिंतु सोहिंतु य
गाथा - १०३.
६२७७२. (+०) नवतत्त्व सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. पंन्या. नंदनमेरु मुनि (गुरु पंन्या. जयकलश मुनि); गुपि. पंन्या. जयकलश मुनि ( गुरु ग. शिवनिधान), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै.., (२६११, ८४३६)
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नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः कम्माण वग्रणाणते, गाथा-८७.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: तत्त्व कहता साची; अंति: अनंता वर्गणा जाणव
६२७७३. नवकारमंत्र सह कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५X११, १४४४१). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढमं हवई मंगलम्, पद-९, संपूर्ण. नवकार-कथा, सं., गद्य, आदि: श्रीनमस्कारो भावेन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. जिनदास श्रेष्ठी कथा अपूर्ण तक है.)
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४६०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६२७७४. (+) दशवकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १४४५०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मोमंगलमुकट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-५
गाथा २३ अपूर्ण तक है.) ६२७७५. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, ५४३५-४२). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा
४३ अपूर्ण तक है.)
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन कहीजे तीन; अंति: (-). ६२७७६. (+) मौनएकादशी व्रत फल, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १५४४८).
मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: सिरिवीरं नमिऊण; अंति: सकल सुख विभागी थाइ. ६२७७७. (+#) दीवाली कल्प, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३०-३४).
दीपावलीपर्व कल्प, प्रा.,सं., गद्य, आदि: पव्वेसु पोसहविहिं; अंति: शक्तिमुद्यमः कार्यः. ६२७७८. (+#) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ व गाथा संग्रह, पूर्ण, वि. १७६९, पौष शुक्ल, १५, सोमवार, मध्यम, पृ. ६-१(२)=५,
कुल पे. ४, ले.स्थल. फलौधी, प्रले. मु. जसौजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ५४३३). १.पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामी जीण चोवीसं, गाथा-५०, (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण से
२० अपूर्ण तक नहीं है.) । वंदित्तुसूत्र-टबार्थ ,मा.गु., गद्य, आदि: वांदी करी तीर्थंकर; अंति: तीर्थंकर चउवीसीही. २. पे. नाम. अतिचार आलोचना, पृ. ६आ, संपूर्ण. अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: आजुणा चौपहर दिवसमाह; अंति: आलोअणमाहि
आलोयस्या. ३. पे. नाम. तेरकाठिया नाम, पृ. ६आ, संपूर्ण.
१३ काठिया गाथा, प्रा., पद्य, आदि: आलस मोह अवन्ना थंभा; अंति: पखेव कोहला रमणा, गाथा-१. ४. पे. नाम. अभ्यंतरग्रंथि गाथा, पृ. ६आ, संपूर्ण.
१४ अभ्यंतरग्रंथि गाथा, प्रा., पद्य, आदि: मिच्छत्तं वीय तिगं; अंति: चउदिसि अभ्यंतरा गंठी, गाथा-१. ६२७७९. (+#) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७०६, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, २, जीर्ण, पृ. ५,
ले.स्थल. विक्रमपुरनगर, प्रले.पं. अमृतविजय गणि; पठ. ग. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ४४४९). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रूद्दाउ सुय समुद्दाउ,
गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: समुद्र थकी जाणिवो, (वि. पत्र खंडित होने के कारण
आदिवाक्य नहीं भरा है.) ६२७८१. (+) कल्पसूत्र सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१-२६(१ से २६)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त
विशेष पाठ-पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ९४२७).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
४६१ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. माता त्रिशला के स्वप्नफल वर्णन अपूर्ण से
माता के गर्भ में भगवान महावीर द्वारा अपने आंगोपांग को संकुचित करने के प्रसंग तक का पाठ है.)
कल्पसूत्र-टिप्पण*,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६२७८२. योगशास्त्र- प्रकाश १ से २, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५.५४११,१३४४०-४६).
योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६२७८३. (+) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अन्य. मु. क्षमाभक्ति,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंतिम पत्र पर पठनार्थे लेने का उल्लेख मिलता है, जो बाद में लिखित प्रतीत होता है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६.५४१०.५, ५४३५).
साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), ___(पू.वि. प्रत्याख्यानसूत्र अपूर्ण तक है.)
साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुवउ अर्हत; अंति: (-). ६२७८४. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४११, ४४३४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२० की अंतिम गाथा अपूर्ण से
अध्ययन-२२ गाथा-५ अपूर्ण तक है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६२७८६. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६.५४११, १-४४४०).
कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक १६ तक लिखा है.) कल्याणमंदिर स्तोत्र-दीपिका टीका, मु. माणिक्यचंद्र, सं., गद्य, वि. १६६८, आदि: रैवताद्रिशिरश्चुलामण; अंति:
(-), ग्रं. ७२०, अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६२७८७. (+) भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १७३९, पौष, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. सादलपुर, प्रले. ग. अमीचंद्र (गुरु ग. आणंदचंद्र);
गुपि.ग. आणंदचंद्र (गुरु ग. सुमतिचंद्र); ग. सुमतिचंद्र; पठ. मु. पृथ्वीचंद्र (गुरु ग. धीरचंद्र); गुपि.ग. धीरचंद्र (गुरु ग. अमीचंद्र), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४४३-४७). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३,
गाथा-१५३. ६२७८८. साधूसामाचारी व जिनमुद्रा विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१, कुल पे. २, प्र.वि. बृहद्गच्छे श्रीदेवसूरि संतानीय
गुणाकरसूरि पट्टे श्रीनरदेवसूरि पट्टे श्रीकमलचंद्रसूरि शिष्य गुणसागरसूरि लिखित प्रत की प्रतिलिपि है., जैदे., (२५४११, १३४५०). १. पे. नाम. सुखबोधा सामाचारी, पृ. १आ-४१आ, संपूर्ण. सुबोधा सामाचारी, आ. श्रीचंद्रसूरि, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: सामायारी सम्मत्ता, ग्रं. १३८६,
(वि. सम्यक्त्वादि महिमा पाठ से प्रारंभ किया है. ग्रंथगत प्रकरण क्रमशः नहीं है.) २. पे. नाम. जिनमुद्रा विवरण, पृ. ४१आ, संपूर्ण.
जिनमुद्रा विचार, प्रा.,सं., गद्य, आदि: जिणमुद्द १कलस रपरमेट; अंति: आकारा हस्तोपरिहस्ता. ६२७८९. (+#) पद्यालय सह टीका, अपूर्ण, वि. १७६८, पौष शुक्ल, ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५२-१३(१ से १३)=३९,
ले.स्थल. अर्गालापुर, प्रले. ग. महिमाचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. २५०१, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४५५). वज्जालग्ग, क. जयवल्लभ, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: लहइ सो पुरिसो, गाथा-७९५, ग्रं. १२३०, (पू.वि. इंदिदिरवज्जा
२६ गाथा १२ से है.) वज्जालग्ग-वृत्ति, ग. रत्नदेव, सं., गद्य, वि. १३९३, आदि: (-); अंति: स पुरुष इति भद्रम्.
जिन
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४६२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६२७९०. (#) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८-१५(१ से १५)=३३, प्र.वि. कुल ग्रं. ३१००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४५९-६८).
अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: कृतसपर्याः
कृतधियः, श्लोक-३२, (पू.वि. गाथा ११ से है.) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका-स्याद्वाञजरी वृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं., गद्य, श. १२१४, आदि: (-); अंति:
सास्त्यत्र सम्यग्यतः. ६२७९१. विपाकसूत्र, संपूर्ण, वि. १६२३, चैत्र शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ३०, ले.स्थल. पत्त, प्रले. कृष्णदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. १३५०, जैदे., (२६४१०.५, ११-१५४३७-५०). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध-२,
ग्रं. १२५०, (वि. अध्ययन २०) ६२७९२. (#) भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २८, अन्य. सा. विंझाजी (गुरु सा. वखताजी);
सा. वखताजी (गुरु सा. उमेदाजी); सा. उमेदाजी (गुरु सा. धनोजी); सा. धनोजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. त्रिपाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११, १-३४५४).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मु. शुभवर्द्धन, मा.गु., गद्य, वि. १२०२, आदि: श्रीमदादिजिनं नत्वा; अंति: तेह प्रति
आश्रिइ. ६२७९३. (+) चैत्यवंदनसूत्र सह टीका, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २८-१(१)=२७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित. कुल ग्रं. १२७०, जैदे., (२६४१०.५, १५४५१).
चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: तव्वयणसेवणा आभवमखंडा, (पू.वि. "नमोत्थुणं अरहताणं" ___ पाठ से है.)
चैत्यवंदनसूत्र-ललितविस्तरा वृत्ति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: मात्सर्यविरहः परः, ग्रं. १५४५. ६२७९५. (+) गौतमीय काव्य सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२-१६(६,१२ से १४,२६ से ३७)=२६, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १२४४१). गौतमीय काव्य, पा. रूपचंद्र गणि, सं., पद्य, वि. १८०७, आदि: श्रीराविरासीदिवदिव्य; अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-१
गाथा ९ तक, गाथा १२ से २२ तक, गाथा ३१ से सर्ग-२ गाथा २४ अपूर्ण तक व सर्ग-४ गाथा ५ से २५ अपूर्ण तक
है.)
गौतमीय काव्य-गौतमीयप्रकाश टीका, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८५२, आदि: अनंतविज्ञानमयं विशुद;
__ अंति: (-). ६२७९७. (+) अनुयोगद्वारसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, प्र.वि. अबरखयुक्त पत्र., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. १४१७, जैदे., (२५.५४११, १७-१९४५४-५८).
अनुयोगद्वारसूत्र, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प+ग., आदि: नाणं पंचविह; अंति: साहू से तं नए, प्रकरण-३८,ग्रं. १४१७. ६२७९८. (+) अंतगडदशांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३३-१०(१ से १०)=२३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४३४-३९).
अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: अयमढे पण्णत्ते, अध्याय-९२, ग्रं. ८९९,
(पू.वि. वर्ग-३ अध्ययन ८ अपूर्ण से है.) ६२७९९. (+#) सिंदूरप्रकर सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-५(९ से १३)=२०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १६४४२-४५). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२,
श्लोक-१००, (पू.वि. श्लोक- २३ से ४५ अपूर्ण तक नहीं है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
४६३ सिंदरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: (१)वृत्तिमिमामकार्षीत,
(२)व्यरचि कृति. ६२८००. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका- अध्ययन १३, संपूर्ण, वि. १६४५, श्रेष्ठ, पृ. २२, प्रले. पं. हर्षविजय (गुरु पं. नाका गणि); गुपि.पं. नाका गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १५४३६).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६२८०१. (+) उत्तमकुमार चरित्र, संपूर्ण, वि. १७००, ज्येष्ठ शुक्ल, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, प्रले. ग. वीरविजय (गुरु
पं. वर्द्धमानविजय); गुपि.पं. वर्द्धमानविजय (गुरु ग. शिवविजय); ग. शिवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४३३).
उत्तमकुमार चरित्र, मु. चारुचंद्र, सं., पद्य, आदि: वंदित्वा स्वगुरुन; अंति: चारुचंद्रनंदतांचिरं, श्लोक-५५९. ६२८०२. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४९-१२७(१ से १२४,१२८,१३६ से १३७)=२२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., दे., (२४.५४११, ६-१२४२६-३१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अरेष्टिनेमि का वर्णन अपूर्ण से स्थिविरावली
अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६२८०३. (+) संग्रहणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १७८५, पौष शुक्ल, १०, रविवार, मध्यम, पृ. २१-१(१३)=२०, प्रले. मु. विजयचंद (गुरु
मु. गिरधर); गुपि. मु. गिरधर (लोंकागच्छ); अन्य. मु. मलूकचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ऋषि मलूकचंदजी के द्वारा सं १८०१, आश्विन शुक्लपक्ष ३, गुरुवार को प्रत दिए जाने का उल्लेख है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ९४३७).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३४९,
___ (पू.वि. गाथा-८० अपूर्ण से ९७ अपूर्ण तक नहीं है.) ६२८०४. (+) चौवीस तीर्थंकरों के नाम, गण, योनि, नक्षत्रादि विवरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १२-१६४१७-५८). २४ तीर्थंकरों के नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण, मा.गु., को., आदि: (-); अंति:
(-), (पू.वि. अंत के कुछ पाठांश नहीं हैं.) ६२८०५. (+) सुसढ कथानक व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २०, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद
सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४१०, १३४४०). १.पे. नाम. सुसढ कथानक, पृ. १अ-२०अ, संपूर्ण. सुसढ कथानक-यतनाविषये, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: राजग्रिहे गुणसिलए; अंति: जयणं चिय धम्मकामा,
गाथा-४१९. २. पे. नाम. जैनगाथा संग्रह, पृ. २०अ, संपूर्ण..
जैनगाथा संग्रह*,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: समणीभव गयवेयं परिहार; अंति: तावयमाणं ध्रुवं होही, गाथा-२. ६२८०६. (+) नवतत्त्व सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १२४३७).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: बुद्धिबोधिक्कणेगाय, गाथा-५२, संपूर्ण.. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., वि. प्रतिलेखक ने अंतिम गाथा का बालावबोध नहीं लिखा है.) ६२८०७. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२-४(२ से ५)=१८, जैदे., (२५४११, ५४३३).
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४६४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहं० पंचिंदिय; अंति: मणसा मत्थेण वंदामि,
(अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., बीच के कुछ पाठांश नहीं हैं.)
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: माहरउ नमस्कार अरिहंत; अंति: करी मनि करी वांदवू, संपूर्ण. ६२८०८. (+#) नवतत्त्व, जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ व वीस विहरमान नामादि, अपूर्ण, वि. १८५३, चैत्र शुक्ल, ९, मध्यम,
पृ. २०-२(१,१७)=१८, कुल पे. ३, ले.स्थल. दीधोद, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६.५४१०, ४४३६). १.पे. नाम. नवतत्त्व सहटबार्थ, पृ. २अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है.
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: संछप्पया अणंता नेया, गाथा-९९, (पूर्ण, पू.वि. गाथा ६ अपूर्ण से है.)
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: राजलोक माहि अनंता छै, अपूर्ण. २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १४आ-२०आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: शांतिसूरि०
समुद्दाओ, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण से २७ अपूर्ण तक नहीं है.) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: भुवण क० स्वर्गमृत्यु; अंति: घणाकि समुदायरि. ३. पे. नाम. वीस विहरमान नाम, पिता-माता व कलत्रादि नाम, पृ. २०आ, संपूर्ण.
२० विहरमानजिन मातापितादि वर्णन, पुहि., गद्य, आदि: सीमधर१ युगमधर२; अति: पद्मावती१९ रत्नवती२०. ६२८०९. कल्पसूत्र-चौद स्वप्न वर्णन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, प्रले. पं. खेतसी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १५४४२).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, वि. १६८०, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६२८१०. (+) सप्तस्मरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६९४, आश्विन शुक्ल, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, प्रले. मु. कल्याणरत्न ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ५४४१). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं; अंति: भवे भवे पास
जिणचंद, स्मरण-७.
सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अजितनाथ जीता छइ सर्व; अंति: पार्श्व० चंद्रमासमान. ६२८११. (+) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १३४३१-४०).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पूर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं
है., अंतिम गाथा का अंतिम पाद नहीं है.) । ६२८१२. (+) गौतमीय काव्यम्, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७, ले.स्थल. पुष्पावतीनगर, प्रले. मु. गजसार साधु; पठ. मु. विवेक
कल्याणजित्, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका अवाच्य है., अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित. कुल ग्रं. ६६९, प्र.ले.श्लो. (११७९) यावद्यो प्रतिभानुश्च यावन्मेरुर्धरा स्थितः, जैदे., (२५४११, १५४५२). गौतमीय काव्य, पा. रूपचंद्र गणि, सं., पद्य, वि. १८०७, आदि: श्रीराविरासीदिवदिव्य; अंति: मुत्साहमेवे स्थितं,
सर्ग-११. ६२८१३. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६९८, आषाढ़ शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्रले. मु. गुणसेन (गुरु
ग.सुखनिधान, खरतरगच्छ); गुपि.ग. सुखनिधान (गुरु मु.समयकलश, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२८.५४१०.५, १-९x४०).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुग्नं पावा; अंति: अणंतभागोयं सिद्धिगओ, गाथा-५०. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: यथास्थित साचुंजे; अंति: घणा सामटा मोक्ष जाय.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
६२८१४. श्रावकदिनकृत्य प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२६x११,
१२X३७).
हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: मिच्छामि दुक्कडं.
२. पे. नाम, क्षामणकसूत्र. पू. १५-१५आ, संपूर्ण.
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श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वीरं नमिऊण तिलोयभाणु; अंति: मिच्छामिह दुक्कडंवि, गाथा - ३४५, (वि. गाथा सं. ३४४ नहीं है.)
६२८१५. (*) पक्खीसूत्र व पक्खीखामणा, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. जैवे. (२६४१७.५, ११X३८).
१. पे नाम, पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-१५अ, संपूर्ण.
हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: होह इति गुरुवचनं, आलाप-४.
६२८१६. (+) संग्रहणी सूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११, ११×३५-३८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२७६. ६२८१७. (+) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जीवे. (२३.५x१०.५,
""
९X३०-३५).
नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ, अंति: (-), (पू.वि. स्मरण- ७, भक्तामर स्तोत्र की गाथा ४४ अपूर्ण तक है.)
६२८१८. (+#) संग्रहणीरत्नसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १५- १ ( २ ) = १४, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५X१०.५, १३४३९-४१).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताइं ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३२५, ( पू. वि. गाथा - १४ अपूर्ण से ३७ अपूर्ण तक नहीं है. )
६२८१९. (+) सम्यक्त्वसप्ततिका सह टीका अधिकार-६, प्रभावक ७, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न, कुल नं. १४४१, जैवे. (२६४११, १५४४५-५२).
सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. गाधा ३६ से ३९.)
सम्यक्त्वसप्ततिका सम्यक्त्वकौमुदीटीका, आ. संघतिलकसूरि, सं., प+ग. वि. १४२२, आदि: (-) अंति: (-),
"
प्रतिपूर्ण.
४६५
६२८२०. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ + कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८-२५ (१ से १९, २३ से २८) = १३, पू.वि. बीच-बीच
के पत्र हैं. प्र. वि. टिप्पण बुक्त विशेष पाठ- संशोधित, जैदे. (२५.५४१०.५, १५-१७४३८-५५).
"
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- १ गाथा - २१ से ३१ व अध्ययन-१८ गाथा-४३ से ५५ अपूर्ण तक है.)
उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्ध+कथा " मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
*,
६२८२१. (+) चित्रसेनपद्मावती चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे.,
(२५x१०.५, १४४४७).
चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- ४४७ अपूर्ण तक है.)
६२८२२. नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैवे. (२७४११, ११४३३).
नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ, अंति: (-), (पू.वि. स्मरण-६ जयतिहुअण गाथा २९ अपूर्ण तक है.)
६२८२३. (+) उत्तराध्ययनसूत्र - नमिप्रवज्याध्ययन की टीका, संपूर्ण, वि. १५९४, पौष कृष्ण, ४, गुरुवार, मध्यम, पृ. १२, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे., ( २६११, १५x५४).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र-दीपिका टीका, आ. जयकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६२८२४. (+#) बृहद्संग्रहणी वरीषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८११, चैत्र कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २,
ले.स्थल. कर्मवाटी, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १०-१४४३२-५५). १.पे. नाम. बृहत्संग्रहणी, पृ. १अ-१२आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने लघुसंग्रहणी नाम लिखा है.
आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३१४. २.पे. नाम. रीषभजिन स्तवन, पृ. १२आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: जयो जगनायक जगगुरु रे; अंति: केसर० मोरो माहाराज, गाथा-५. ६२८२५. नव्यबृहत्क्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. कुल ग्रं. ३८८, जैदे., (२६.५४११, १५४५६-६०).
बृहत्क्षेत्रसमास नव्य, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३७३, आदि: सिरिनिलयं केवलिणं; अंति: सोहेयव्वो
सुअहरेहिं, गाथा-३८७. ६२८२६. (+) लघुक्षेत्रसमास सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ७X४३). लघुक्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊणसजलजलहर निभस्सण; अंति: झाएजा
सम्मदिट्ठीए, अध्याय-५, गाथा-१८८, (संपूर्ण, वि. अंत में कुछ असंबद्ध प्राकृत गाथाएँ दी गई हैं.) लघुक्षेत्रसमास-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमीनइ जल सहित मेघ; अति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
गाथा-१३० तक का टबार्थ लिखा है.) ६२८२७. चातुर्मासिक व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१०.५, ६-१४४५०).
चातुर्मासिक व्याख्यान, मु. सुरचंद्र ऋषि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: (-), (पू.वि. सोमदत्त
ब्राह्मण की कथा तक है.) ६२८२८. (#) श्लोकसंग्रह जैनधार्मिक, त्रुटक, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १९-८(१,३ से६,८ से १०)=११, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, ९४३१). जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. गाथा-१०४ अपूर्ण से २१५ अपूर्ण तक है
व बीच-बीच की गाथाएँ नहीं हैं.) ६२८२९. (+) पंचकुमार कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, २२४५८).
पंचकुमार कथा, पा. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १७४६, आदि: अथैकदा द्वाविंशतिम; अंति: पंचकौमारसंकथा. ६२८३०. (+) पगामसज्झायसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ३४३६).
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: करेमि भंते० चत्तारि०; अंति: (-), (पू.वि. "सीलंगधारा अक्ख ___आयारचरिता" पाठ तक है.)
पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, पंन्या. सुमतिविजय, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा श्रीमन्महावीर; अंति: (-). ६२८३१. विचारसार संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, जैदे., (२५.५४१०.५, ६x४१).
विचारसार संग्रह, प्रा., गद्य, आदि: कहन्नं भंते जीवाः; अंति: देवगति भवति.
विचारसार संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जयंती पूछइ छइ हे; अंति: कलउ होइ देवता थाय. ६२८३२. (+#) नवस्मरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०, १२४३५). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), स्मरण-६, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., स्मरण-२ से ७ लिखा है व क्रम आगे-पीछे है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
४६७ ६२८३३. (+) वाग्भटालंकार सह ज्ञानप्रमोदिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-२(१ से २)=११, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०, १५४६३). वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. परिच्छेद-१, श्लोक-३ से
परिच्छेद-३, श्लोक-११ तक है.)
वाग्भटालंकार-ज्ञानप्रमोदिका वृत्ति, ग. ज्ञानप्रमोद; ग. रत्नधीर, सं., गद्य, वि. १६८१, आदि: (-); अंति: (-). ६२८३४. (+) कर्पूरप्रकर, संपूर्ण, वि. १६९९, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. पाटणनगर, प्रले. मु. जयसागर ऋषि (गुरु पं. ललितसागर); गुपि.पं. ललितसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं. ३०८, जैदे., (२५.५४११, १३४४५).
कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि: कर्पूरप्रकरः शमामृत; अंति: नेमिचरित्रका , श्लोक-१७९. ६२८३५. श्रावकप्रतिक्रमण सूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६०, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ. ११, प्रले. मु. व्रजलाल; पठ. श्रावि. सुखीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०, ११४२७-३५).
आवश्यकसूत्र-श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं०
तिखुत; अंति: क्कराइए च्छीए भाइए आ. ६२८३६. (+) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(२)=१०, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१०.५, १२-१९४३४). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: (-), (पू.वि. चौदनियम
अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टीका, सं., गद्य, आदि: नमस्कारः अस्तु इति; अंति: (-). ६२८३७. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ- अध्ययन ४ व ९, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५४१०, ४४३५).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अध्ययन-९, गाथा-६० तक है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ६२८३८. (+) स्तुतिचौवीशी व पंचमी स्तुति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १०४३२). १.पे. नाम. स्तुतिचतुर्विंशतिका, पृ. १अ-१०अ, संपूर्ण.
मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक, अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ६२८४०. चतुर्मासिक व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१(१)=१०, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४१०.५, ११४२९-३१). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सामायिक के ऊपर राजा दमदंत की कथा
अपूर्ण से पति मारिका दृष्टांत अपूर्ण तक है.) ६२८४१. (+) श्रीसिद्धचक्रमाहात्म्यविषये श्रीपाल कथा, संपूर्ण, वि. १७०२, चैत्र शुक्ल, १२, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १०,
ले.स्थल. मेडतानगर, प्रले. पंडित. राजहर्ष गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १७४४९).
श्रीपाल चरित्र, पंन्या. सत्यराज, सं., पद्य, वि. १५१४, आदि: श्रिये श्रीमन्महावीर; अंति: श्रीपालवृत्तह्यदः, श्लोक-४८६. ६२८४२. (#) धर्मपरीक्षाविषये कामघट कथा, संपूर्ण, वि. १७७२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३२-३५).
पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथानक, सं., प+ग., आदि: कुलं विश्वश्लाघ्य; अंति: सिद्धिसाधं जग्मतुः.
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४६८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६२८४३. (+) शोभनस्तुति सह टिप्पण, पूर्ण, वि. १७५५, फाल्गुन शुक्ल, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(५)=१०, ले.स्थल. मसूदानगर,
प्रले. मु. चयनकुशल (गुरु ग. प्रतापकुशल); गुपि.ग. प्रतापकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., प्र.ले.श्लो. (५५६) भग्नपृष्टि कटी ग्रीवा, जैदे., (२५४१०.५, ८४३५). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनक; अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४,
श्लोक-९६, (अपूर्ण, पू.वि. गाथा ४० अपूर्ण से ४८ अपूर्ण तक नहीं है.)
स्तुतिचतुर्विंशतिका-टिप्पण, ग. जयविजय, सं., गद्य, आदि: भव्या एवाभोजानि; अंति: (-), अपूर्ण. ६२८४४. (+) आउरपच्चक्खाण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६४६, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ४-८४२७). आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., वि. ११वी, आदि: देसिक्कदेस विरउ सम्म; अंति: खयं
सव्वदुक्खाणं, गाथा-६०.
आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: मात्र वीर शब्द जाणवो. ६२८४५. नंदीसूत्र स्थविरावली की टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. लक्ष्मीधर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १५४५५-६२). नंदीसूत्र-स्थविरावली-टीका, सं., गद्य, आदि: प्रथमत आवलिका अभिधि; अंति: वक्ष्ये एव माह, (वि. मूल कृति का
प्रतीक पाठ दिया गया है.) ६२८४६. (+) चउसरणपयन्ना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११, ५४३३). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं,
गाथा-६३.
चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मंगलीक भणी पहुलू; अंति: मोक्षना सुखनुं हेतु. ६२८४७. (+) दमयंतीकथा की टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-१३(२ से १०,१७ से २०)=९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४५). दमयंतीकथा-टीका, पं. गुणविनय गणि, सं., गद्य, आदि: ध्यात्वा सरस्वतीं; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र
नहीं हैं., उच्छ्वास-१, "तेषां महतां गुणानां स पार्थिवपुंगवो" पाठ तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ६२८४८. (+) भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०.५, ११४४३). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३,
गाथा-१४७. ६२८४९. (+) महावीर स्तवन सह टीका वटीका का भावार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, ४४३१). महावीरजिन स्तव-समसंस्कृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: दृष्टिं
दयालो मयि, श्लोक-३०. महावीरजिन स्तव-टीका, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानं; अंति: सद्भिरादरणीय स्यात्.
महावीरजिन स्तव-टीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अहं कहता हुं महावीर; अंति: सत्पुरुषे आदरीयइ. ६२८५०. जयतिहुअणबत्रीसी सह टबार्थ व भंडारगाथा, संपूर्ण, वि. १७६९, फाल्गुन शुक्ल, १, शनिवार, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २,
ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. मु. हरचंद यति, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०, ४४३७). १.पे. नाम. जयतिहुअणस्तोत्र, पृ. १अ-९अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
४६९ जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: विन्नवइ
आणदिइ, गाथा-३०. जयतिहअण स्तोत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: जयवंतउ थाउ त्रिभुवन; अंति: वृत्तिकार वीनवइ छइ. २. पे. नाम. जयतिहुअणस्तोत्र-भंडारगाथा, पृ. ९अ, संपूर्ण.
जयतिहअण स्तोत्र-भंडार गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: परमेसर सिरिपासनाह; अंति: सिद्धि मह वंछियपूरण, गाथा-२. ६२८५१. सुभाषित पद्यावली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-५(२,६,११ से १३)=९, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३२).
सुभाषित संग्रह, सं., पद्य, आदि: मित्रशत्रु चिविज्ञे; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., "विवेक प्रकरण" तक है.) ६२८५२. (+) वृत्तरत्नाकर व वाग्भटालंकार, अपूर्ण, वि. १७०९, निधिव्योममुनिशसि, वैशाख शुक्ल, २, मंगलवार, मध्यम,
पृ. ११-२(१ से २)=९, कुल पे. २, ले.स्थल. सेत्रावा, प्रले.ग. मतिहर्ष गणि; गुभा. ग. राजहर्ष गणि (गुरु ग. हीरकीर्ति गणि, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि.ग. दानराज गणि; गुभा. ग. निलयसुंदर गणि (गुरु ग. पद्महेम गणि, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि.ग. पद्महेम गणि (गुरु ग. तिलककमल गणि, बृहत्खरतरगच्छ); ग. तिलककमल गणि (गुरु गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि, बृहत्खरतरगच्छ); गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि (गुरु आ. जिनसिंहसूरि, बृहत्खरतरगच्छ); पठ. मु. राजलाभ (गुरु ग. मतिहर्ष गणि, बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४४७). १.पे. नाम. वृत्तरत्नाकर, पृ. ३अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
केदार भट्ट, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: वृत्तरत्नाकराख्यम्, अध्याय-६, ग्रं. १८९, (पू.वि. श्लोक-१३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. वाग्भटालंकार, पृ. ४आ-११आ, संपूर्ण..
जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रियं दिशतु; अंति: सारस्वता धानतः, परिच्छेद-५. ६२८५३. (+) ऋषिमंडल प्रकरण वृत्तौ आदिनाथ चरित्रं, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-१(१)=९, प्रले. मु. हीरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४३८). ऋषिमंडल प्रकरण-कथार्णवांक वृत्ति, ग. पद्ममंदिर, सं., गद्य, वि. १५५३, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण,
पू.वि. श्लोक-३२ अपूर्ण से है.) ६२८५४. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ अध्ययन-२६, अपूर्ण, वि. १९३२, माघ शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(८)=८, प्रले.
कमलसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंतिम पत्र पर भांगा यंत्र बनाया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७.५४१०, ४४३५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. गाथा ४३ अपूर्ण से ५० अपूर्ण
तक नहीं है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ६२८५५. (+) जीवविचारादि प्रकरण संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-९(१ से ९)=९, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(२६४११, १४४४८). १.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १०अ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा ३० अपूर्ण से
२. पे. नाम. एकविंशतिस्थान प्रकरण, पृ. १०आ-१२आ, संपूर्ण. २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया; अंति: असेस साहारणा भणिया,
गाथा-६६. ३. पे. नाम. संबोधसप्ततिका, पृ. १२आ-१५आ, संपूर्ण.
आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोयगुरुं; अंति: सो लहइ न इत्थ संदेहो, गाथा-७६. ४. पे. नाम. शीलोपदेशमाला, पृ. १५आ-१८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबभयारि नेमि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१०७ अपूर्ण तक है.)
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४७०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६२८५६. श्लोकसंग्रह जैनधार्मिक, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०-१(१)=९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२२.५४९.५, ११-१४४४३-४७).
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा २१ अपूर्ण से गाथा २३६ अपूर्ण तक है) ६२८५७. (+) बृहत्संग्रहणी यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १२४३०). बृहत्संग्रहणी-अंकयंत्रसंग्रह *, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. समयोत्कृष्टा सिद्धि संख्या तक है., वि. मूल
गाथाओं का प्रतीक पाठ दिया गया है.) ६२८५८. (+#) भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९२, आश्विन कृष्ण, १२, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. मडराडद्रहा,
प्रले. मु. ज्ञानकीर्ति; पठ. अनोपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ५४३३).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४.
भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्त अमरदेवता प्रणत; अंति: देवतारा सुखमुक्त. ६२८५९. (2) संग्रहणीसूत्र वद्यूतविजय यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-१(६)=८, कुल पे. २,प्र.वि. मूल पाठ का अंश
खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०, १३४५६). १.पे. नाम. बृहत्संग्रहणी, पृ. १अ-९अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है.
आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२८६,
(पू.वि. गाथा-१७३ अपूर्ण से २०५ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. द्यूतविजय यंत्र, पृ. ९आ, संपूर्ण.
यंत्र संग्रह , मा.गु.,सं., को., आदि: (-); अंति: (-). ६२८६०. (#) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-१(१)=८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१०, १०४३४). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., गाथा-२० अपूर्ण से है व १७२ अपूर्ण तक लिखा है.) ६२८६१. ऊववाईसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प्र. ९-१(१)-८, दे., (२५४१०.५, ९४३०).
औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: सुहीसह पत्ता, (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. केवलिसमुद्धात, सूत्र-७४ अपूर्ण से है.) ६२८६२. (#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-१२(१ से १२)=८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ७४३३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., अध्ययन-५,
उद्देश-१, गाथा-२७ अपूर्ण से अध्ययन-६, उद्देश-१, गाथा-२ अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., अध्ययन-५, उद्देश-१ तक का टबार्थ लिखा है.) ६२८६३. (+) सिंदूरप्रकर, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, प्रले. मु.रंगसागर, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे.. (२५.५४११, १३४३१-३९). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२,
श्लोक-९९. ६२८६४. (+#) संघयणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १७७७, आश्विन कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. पाटोध्यै, प्रले. ग. रंगविमल;
पठ. श्राव. लाधा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०, १५४४४).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२७६.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
४७१ ६२८६५. (+) ऋषिमंडल प्रकरण, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९-१(१)=८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १३४४५-४७).
ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: (-); अंति: धम्मघोस० सिद्धिसुह, गाथा-२३०,
(पू.वि. गाथा १४ अपूर्ण से है.) ६२८६६. (+) स्तवन, रास व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-२(१ से २)=७, कुल पे. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७४११, १३४४६). १. पे. नाम. क्षमाछत्रीसी, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जीव क्षमागुण; अंति: चतुरविध संघ जगीस जी, गाथा-३६. २.पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार ए हु; अंति: पूरि आस्या
मनतणी, गाथा-१९. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुर, पृ. ५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: लोईयपुरइ आज महिमा
घण; अंति: समयसुंदर करइं अरिदास, गाथा-९. ४. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. ६अ-९अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर चरण कमल; अंति: वृद्धि कल्याण करो, गाथा-५१. ५. पे. नाम. जिनकुशलसूरि अष्टक, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.
मु. लालकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणि पाय नमी; अंति: लालकीरति जयकार, गाथा-९. ६. पे. नाम. बलदेवमुनि सज्झाय, पृ. ९आ, संपूर्ण.
मु. सकलमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: बलदेवमुनिवर तप तपवनि; अंति: सकल जन सुख देइरे, गाथा-८. ६२८६७. (#) स्तोत्र व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-१(७)=७, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, जैदे., (२३.५४१०.५, १०-१४४१७-२८). १.पे. नाम. अष्टापद स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: मनरो असटापद मोयो; अंति: (-), गाथा-५. २. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणत मौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ३. पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण.
मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: जो श्रावक करणी छे एह, गाथा-२२. ४. पे. नाम. कर्मविपाकफल सज्झाय, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ५. पे. नाम. रात्रिभोजन सज्झाय, पृ. ८अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.
रात्रिभोजन चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से २२ अपूर्ण तक है.) ६२८६८. (+) एकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १६८४, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (६४६) तैला रक्षे जला रक्षै, (१०८४) याद्रसं पुस्तकं द्रष्टा, जैदे., (२६४१०.५, १२४३९).
सुव्रतऋषि कथानक, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरं नमिऊणं पुछइ; अंति: ओ रिद्धिं तह मुखसुखं, गाथा-१५५. ६२८६९. श्रावक ११ व भद्रप्रतिमा प्रतिमा विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, दे., (२५४१०.५, १०x४२).
१. पे. नाम. श्रावक ११ प्रतिमा विधि, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नालिकेरादि; अंति: कुटुंब समक्ष घरि आवि. २. पे. नाम. भद्रप्रतिमा विधि, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मा.गु.,सं., गद्य, आदि: भद्रप्रतिमा २ उपवास; अंति: (-), (पू.वि. "अविधि अशातना" तक का पाठ है.)
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४७२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६२८७०. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९३५, भाद्रपद कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१०.५, ७४३३). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते,
श्लोक-४४. ६२८७१. (+) दंडक, जीवविचार व गाथा संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२९x११, ५-७४४६). १.पे. नाम. दंडक प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ,
गाथा-३८. दंडक प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ चउवीस; अंति: आपणा हितनइ अर्थइ. २. पे. नाम. जीवविचार सह टबार्थ, पृ. ४अ-७अ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुय
समुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवनमांहि प्रदीप; अंति: सिद्धांतसमुद्र थकी. ३.पे. नाम. गाथा संग्रह सह टबार्थ, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
जैनगाथा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: भोयं च निद्दिट्ठा, गाथा-३.
जैनगाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: भोग अज्ञानभेद काउं. ६२८७२. विद्याविलास कथानक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२६४१०, १५४५०).
विद्याविलास कथानक-पुण्यप्रभावे, सं., गद्य, आदि: धर्माजन्मकुले शरीर; अंति: मुक्तिं यास्यतः. ६२८७३. (+) दानशीलतपभावना कुलक व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १७३०, कार्तिक शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २,
प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ६४३०-३२). १.पे. नाम. दानशीलतपभावना कुलक सह टबार्थ, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि: देवाहिदेवं नमिऊण; अंति: हिया सूरि खमंतु तेणं,
गाथा-४९. दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवाधिदेव श्रीमहावीर; अंति: खोटो सोखरो करज्यो. २. पे. नाम. जैनगाथा संग्रह, पृ. ७आ, संपूर्ण.
जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: रागोयदोसोविय कम्मबीय; अंति: अन्नत्थ पुव्विं, गाथा-३. ६२८७४. (+) वेदखंडन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, १४४३६-४०).
___ वेदखंडन, उपा. कीर्तिचंद्र, सं., गद्य, आदि: अहो मिथ्याशास्त्र; अंति: परवादि मुखमुद्रणाय. ६२८७५. (+) चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ५४३२-३५). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५४ अपूर्ण
तक है.)
चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हवइ चउसरण संसार पार; अंति: (-). ६२८७६. (+) प्रत्याख्यानभाष्य, आचार्यछत्रीसगुण व साधु नामकरण विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ३,
प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, ५४३८). १.पे. नाम. प्रत्याख्यानभाष्य सह टबार्थ, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण.
प्रत्याख्यान भाष्य, प्रा., पद्य, आदि: भावि अईयं कोडि अहिय; अंति: लाई दामनगमाइ परलोए, गाथा-५७. प्रत्याख्यान भाष्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलउ अनागत पच्चक्खा; अंति: सेठिनइ घरनो धणी थयो.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
४७३ २. पे. नाम. आचार्यगुण सज्झाय सह टबार्थ, पृ. ७आ, संपूर्ण.
पंचिंदियसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: पंचिदिअसंवरणो तह; अंति: छत्तीसगुणो गुरु होइ, गाथा-२.
पंचिंदियसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पंचेंद्रिय स्पर्शना; अंति: ३६ गुण जाणवा. ३. पे. नाम. नूतनसाधु नामकरण विधि, पृ. ७आ, संपूर्ण.
दीक्षाविधि*,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: दीक्षा वडौ हुवै तो; अंति: सर्व वांदणा देवै. ६२८७७. (+) भक्तामर स्तोत्र सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८-१(१)=७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०.५, ५४३३).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से
भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: रहित आश्रइ लक्ष्मी. ६२८७८. (+) पर्यंताराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६५३, कार्तिक कृष्ण, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. अंतरालीया, प्रले. मु. कानजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, ७४३७).
पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण भणइ एवं भयवं; अति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७२.
पर्यंताराधना-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी कहइ इनइ; अंति: ते सास्वता सुख पामइ. ६२८७९. (+) पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४३९).
पाशाकेवली, मु. गर्गऋषि, सं., पद्य, आदि: वीरंदेवं नमस्कृत्य; अंति: सत्यापासक केवली, श्लोक-१९६. ६२८८०. (+) विचारगाथा संग्रह व साधुसाध्वी १४ उपकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्रले. पं. उत्तमविजय गणि,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ६४३९). १.पे. नाम. विचारगाथा संग्रह सह टबार्थ, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण.
विचारगाथा संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, आदि: आई जिणाणठन्हं गयाउ; अंति: वच्छल भावणा अट्ठ, गाथा-२२.
विचारगाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आदिनाथ थी आठ माताई; अंति: वच्छल भावना प्रभावना. २. पे. नाम. साधुसाध्वी उपकरण सह टबार्थ, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
साधुसाध्वी १४ उपकरण, प्रा., पद्य, आदि: पत्तं पत्ताबंधो पायठ; अंति: ए अजाणं पणवीसंतु, गाथा-७.
साधुसाध्वी १४ उपकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पात्रानी मर्यादा; अंति: कह्या साधवीने पचवीस. ६२८८१. कर्मविपाक कर्मग्रंथ, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)-६, लिख. वा. कमलराज; पठ. ग. कल्याणश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४९, १०४४४-५१).
कर्मविपाक प्राचीन कर्मग्रंथ, ऋ. गर्ग महर्षि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: कम्मविवागंतु सो अयरा, गाथा-१६६,
(पू.वि. गाथा-२७ अपूर्ण से है) ६२८८२. (+#) श्लोकसंग्रह जैनधार्मिक, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११, १९४५७).
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अंत के कुछ श्लोक नहीं हैं.) ६२८८३. कल्पसूत्र बालावबोध- व्याख्यान १, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४४).
कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, वि. १६८०, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६२८८४. (#) संबोधसत्तरी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९-३(१ से ३)=६, प्र.वि. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२६४१०.५, ५४३५-३८). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सो लहइ न इत्थ संदेहो, गाथा-७५, (पू.वि. गाथा २७
अपूर्ण से है.) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: नथी एवातनो संदेह.
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४७४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६२८८५. (+) भक्तामर स्तोत्र, अजितशांति व बृहद्शांति, अपूर्ण, वि. १७०७, आश्विन कृष्ण, ५, जीर्ण, पृ. ९-३(१ से ३)=६, कुल
पे. ३, ले.स्थल. दूणी, प्रले. ग. दर्शनसौभाग्य (गुरु ग. उदयसौभाग्य); गुपि.ग. उदयसौभाग्य (गुरु ग. शंकरसौभाग्य); पठ. मु. हितसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., प्र.ले.श्लो. (४९९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, जैदे., (२५४१०.५, १३४३६). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ४अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. गाथा १८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अजितशांति स्तव, पृ. ५आ-८अ, संपूर्ण.
आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजि अजिअसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. ३. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, पृ. ८अ-९आ, संपूर्ण.
___ सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे. ६२८८६. (+) साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १३४४६).
साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहजिण पमुह चउवीस; अंति: मनि आणंदई संथुआ, ढाल-७,
गाथा-११४. ६२८८७. (+#) होलिकापर्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४४, चैत्र कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. चतुर्भुज; पठ. मु. चंद्रभाण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, ७४३७). होलिकापर्व कथा, मु. गुणाकरसूरि शिष्य, सं., पद्य, आदि: ऋषभस्वामिनं मन्ये; अंति: यतो धर्मस्ततो जयः,
श्लोक-६८.
होलिकापर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ऋषभजिन करसणी धर्मरूप; अंति: तेतलोज जय होवें छे. ६२८८८. (+-#) चतुःशरणप्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ५, प्रले. मु. सेखा ऋषि; पठ. मु. सीहमल ऋषि,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-दुर्वाच्य. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ६x४७). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं,
गाथा-६३.
चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावज्जजोगनुं वर्तवू; अंति: सुखनो कारणभूत छे. ६२८८९. (+) गौतमपृच्छा व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. अजमेर, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद
सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, ६x४४). १.पे. नाम. गौतमपृच्छा सह टबार्थ, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण.
गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४.
गौतमपृच्छा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ तीर्थ; अंति: गौतमपृच्छा मोटा ते. २. पे. नाम. औषधवैद्यक संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण.
औषधवैद्यक संग्रह , पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सरसों काली का तेल; अंति: णापि छाडी संध्या. ६२८९०. (+) सूत्रकृतांगसूत्र-अध्ययन ६, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. लाधाराम जोषी; पठ. श्रावि. दुधिबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४१०.५, ५४२९). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिस्सणं समणा; अंति:
आगमेसंति त्ति बेमि, गाथा-२९. ६२८९१. (+) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ४, प्रले. पं. श्रीकर्ण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(२५.५४११.५, १४४३९). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणित मौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ३. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासं अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति:
जिणप्पहसूरिन पीडंति, गाथा-१०. ६२८९२. (+) चातुर्मासिक व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-१(२)=५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १३४४६). - चातुर्मासिक व्याख्यान, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सामायिकावश्यकपौषधानि; अंति: फाल्गुनं वः श्रिये,
(पू.वि. "परिहरणा गिरि" पाठ से "अहिमा सयंमि" पाठ तक नहीं है.) ६२८९३. (#) पंचमी कथा, संपूर्ण, वि. १८५७, कार्तिक कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. पंन्या. लालविजय गणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १२४३२-३८).
वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ज्ञानं सारं सर्व; अति: प्रपाल्य मुक्तिं गतः. ६२८९४. (+) कल्पसूत्र अंतर्गत- नेमिनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १७४५७).
कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य-नेमिजिन चरित्र, सं., गद्य, आदि: श्रीनेमिनाथदेवस्य; अंति: अत्यंत हर्षो जातः. ६२८९५. (+#) जीवविचार व नवतत्त्व, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त
पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४३९). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा-५१. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ३अ-५आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४९. ६२८९६. (+) वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७२०, आश्विन शुक्ल, ७, जीर्ण, पृ. ५, प्रले.मु. पंचायण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पूज्यश्री दामोदरजी प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ९४५२).
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिओसासयं ठाणं, गाथा-१०४.
वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसारमाहि असार नास्त; अंति: लहई जीउ सासयं ठाणं. ६२८९७. कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-८(१ से ५,९ से ११)-५, जैदे., (२५४१०.५, ५४३६).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,
पुंडरीक गणधर के नमस्कार तक है व चौदस्वप्न वर्णन से महावीर जन्म महोत्सव वर्णन तक नहीं है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीमद्वीरजिनं नत्वा, (२)नमो अरिहंताणं चउसठि; अंति: (-),
पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ६२८९८. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४१०.५, १२-१४४३६).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३, गाथा-४ अपूर्ण
से अध्ययन-४, गाथा-१४ तक है.) ६२८९९. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२४.५४१०.५, ६४३१).
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुय
समुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवन माहे दीवा; अंति: सिद्धांत समुद्र थकी.
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४७६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६२९०१. (+#) साधुप्रतिक्रमण सूत्रसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४७). साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहताणं नमो; अंति: (-),
(पू.वि. मांगलिक पाठ अपूर्ण तक है.) ६२९०२. (+#) कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-२(१ से २)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४७).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम सूत्र मात्र है.)
कल्पसूत्र-टीका*, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ६२९०३. (+) पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १४४३६-३९). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: (-), (पू.वि. "अन्ने न समणुजाणामि तंजहा अरिहंत"
पाठ तक है.) ६२९०४. (+) पर्युषणअष्टाह्निका व्याख्यान सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०७, आश्विन शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ६७, प्रले. जेठमल ब्राह्मण; पठ.मु. ऋद्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, ४४२८-३५). पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि: स्मृत्वा पार्श्व; अंति: विलसितानंदहेतुसकामन्,
श्लोक-६२४.
पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथजीने; अंति: आनंद करणहार धर्म. ६२९०५. (+#) सम्यक्त्व कौमुदी, अपूर्ण, वि. १७१५, कार्तिक शुक्ल, २, रविवार, मध्यम, पृ. ९१-५८(१ से ४५,७१ से ७२,७४ से
८४)=३३, प्रले. मु. रतना (गुरु पं. जिनसुंदर, संडेरगच्छ); गुपि. पं. जिनसुंदर (संडेरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ११४२४-२७). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४५७, आदि: (-); अंति: तस्माद्धर्मोविधीयता, पद-४४४,
ग्रं. १६७५, (पू.वि. गाथा १८३ अपूर्ण से बीच-बीच के पाठ हैं.) ६२९०७. (+) सूत्रकृतांगसूत्र सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ११४२८-३६). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झेज्झ तिउट्टिज; अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध- २ सूत्र १
अपूर्ण तक है.)
सूत्रकृतांगसूत्र-टिप्पण, मा.गु., गद्य, आदि: बुज्झेज्झ कहता जाणइ; अंति: (-). ६२९०८. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५, कुल पे. ६२, प्र.वि. यंत्र सहित., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष
पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२३.५४१०, १२४३१-४५). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन सह टिप्पण, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण..
पार्श्वजिन स्तोत्र, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: सुध्यानसुध्यानतपाद; अंति: कंदर्पदभोज्जितम्, श्लोक-३२.
पार्श्वजिन स्तोत्र-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम. नेमिनाथ स्तवन सह टिप्पण, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तोत्र, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: पदपावितभूमिमंडलं स्व; अंति: स लभते भविको भवांते,
श्लोक-३२. नेमिजिन स्तोत्र-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन नमस्कार सह टिप्पण, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. २४ जिन नमस्कार स्तोत्र, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: ऋषभःसश्रुभायभा; अंति: पतिव्वीर सदा विशारदा,
श्लोक-२४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
४७७ २४ जिन नमस्कार स्तोत्र-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. नेमिनाथ स्तवन सह टिप्पण, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तोत्र, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: जनप्रीतिदानीतिदा; अंति: सुंदररमाभरमंदिरं सः, श्लोक-१६.
नेमिजिन स्तोत्र-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन सह टिप्पण, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: जिनाधीमानौमि निर्धूत; अंति: लोको नमस्यत्यधीश,
श्लोक-८. साधारणजिन स्तवन-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६. पे. नाम. वीरजिन स्तव सह टिप्पण, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-अष्टदलकमलगर्भित, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: मानवाः स्मरत कात्य; अंति: त्वां
रजोरिक्षयज्ञम्, श्लोक-९. महावीरजिन स्तवन-अष्टदलकमल गर्भित-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७. पे. नाम. सर्वजिन स्तव सह टिप्पण, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तव, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: त्वयि लसद्गणचंदनशाख; अंति: दरसोदर सोदर सोद्यमः,
श्लोक-१४. साधारणजिन स्तव-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८. पे. नाम. महावीरजिन स्तव सह टिप्पण, पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-क्रियागुप्त, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: चरमजिन तं कल्याणानि; अंति: सेव्य
नराभवदुःखपदम्, श्लोक-१६. महावीरजिन स्तव-क्रियागुप्त-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तव सह टिप्पण, पृ. ८आ-९आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-क्रियागुप्त, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: जगति शस्तवैराग्यरंग; अंति: स याति निर्वृतिम,
श्लोक-३२. पार्श्वजिन स्तोत्र-क्रियागुप्त-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०. पे. नाम. आदिनाथ स्तव सह टिप्पण, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तोत्र, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु नाभेयसुभावशा; अंति: नो यच्छतु नाभिनंदनः,
श्लोक-८. आदिजिन स्तोत्र-टिप्पण, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ११. पे. नाम. जिनचित्र स्तव सह टिप्पण, पृ. १०अ-११अ, संपूर्ण. गुरुनामगर्भाष्टदलकमल स्तोत्र-चित्रबंध, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: रिरंसारससंसार रसासीर; अंति:
जनसमालिंगति तनयस्थम, श्लोक-२०. गुरुनामगर्भाष्टकदलकमल स्तोत्र-चित्रबंध-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १२. पे. नाम. नेमिनाथ स्तवन सह टिप्पण, पृ. ११अ-१२अ, संपूर्ण.. नेमिजिन स्तवन-पंचवर्गपरिहार, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: शैवेयसार्वं सरसं सहस; अंति:
यक्लेशराशेस्त्वमद्य, श्लोक-१९. नेमिजिन स्तवन-पंचवर्गपरिहार-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १३. पे. नाम. वीर स्तव सह टिप्पण, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तोत्र-कारकक्रियारूपाष्ट गुप्त, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: सेवारससुरसाल श्रीवीर; अंति:
हृद्या नृधुर्यामद, श्लोक-१६.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
महावीरजिन स्तोत्र - कारकक्रियारूपाष्ट गुप्त- टिप्पण, सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-).
१४. पे. नाम. चतुर्विंशति नमस्कार सह टिप्पण, पृ. १३-१४अ, संपूर्ण.
२४ जिन नमस्कार स्तोत्र, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: अतुल्य कल्याण विधायक; अंतिः परानिभंसवर वीतदभ, श्लोक-२४.
२४ जिन नमस्कार स्तोत्र- टिप्पण, सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-).
१५. पे. नाम. पार्श्वनाथ द्वात्रिंशिका स्तव सह टिप्पण, पृ. १४अ - १५अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्व तं स्तुव अंतिः नय नवध्वानवर तम्, श्लोक-३२. पार्श्वजिन स्तोत्र - टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
१६. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १५अ - १५आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तोत्र, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्म, आदि देवोपचारी ममशर्मकारी अंतिः वितानं संमदादेकतानम्, श्लोक- ५.
१७. पे. नाम, सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. १५ आ- १६अ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन स्तोत्र, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्म, आदि: पुनाति यः पूर्वमहा अंतिः समोवर सिद्धिशीर्षे श्लोक-११. १८. पे. नाम गौतमस्वामी स्तवन, पृ. १६अ १६आ, संपूर्ण.
गौतमस्वामी स्तोत्र, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: प्रभूतविद्याभिरभून्न, अंति: मूर्तितमिच्छेत् श्लोक-११. १९. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १६आ- १७अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: ब्रह्माजिह्मलयं कृता; अंतिः निर्माति मुक्तारणम्, श्लोक १०. २०. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. १७अ - १८अ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन स्तोत्र, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि उत्पत्तिः पूर्वाको, अंति: वरसोकर्मशर्माश्रुवीत, श्लोक ८. २१. पे. नाम जीरापल्ली पार्श्व स्तव, पृ. १८-१८आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- जीरापल्ली मंडन, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: भक्त्या यस्याभिषेकः ; अंतिः शिवं स व्रजेत्, लोक- ९.
२२. पे. नाम. सर्वजिन स्तवन, पृ. १८आ - १९अ, संपूर्ण.
पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: भवतोरक्षतोदेव भवतोभव, अंति: हंतार महसातरसा समानः श्लोक-११.
२३. पे. नाम. सर्वजिन स्तवन, पृ. १९अ - १९आ, संपूर्ण.
पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि जिना नौमि देवाधिदेवं अंतिः स्वर्गभाजामनिंद्यः, श्लोक १०.
२४. पे. नाम. पंचजिन स्तवन, पृ. १९आ - २१अ, संपूर्ण.
पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: ऋषभतमभिसूरत्वं शिवं; अंतिः कल्पः कामभेकोहिकल्पः, श्लोक-२४. २५. पे नाम, शांतिनाथ स्तवन, पृ. २१अ-२२अ, संपूर्ण
शांतिजिन स्तवन- गुरुनामगर्भमष्टदलकमल, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि नतजनततिशांते ये स्मर अंतिः प्रस्तसर्वाधिरिद्धम्, लोक- ९.
२६. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २२अ, संपूर्ण.
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पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: जनलंभितशांतिदयाकामलं; अंति: निर्विलंबं जनं तम्, श्लोक ९.
२७. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २२आ-२३अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: प्रभु मस्तसमस्त महा; अंति: निर्विलंब जनं तम्, श्लोक-१२. २८. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २३अ - २३आ, संपूर्ण.
पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: जिनसदानसदासदाभवान् अंतिः विनमामि सादरम् श्लोक-११.
२९. पे. नाम. मुनिसुव्रतस्वामी स्तवन, पृ. २३-२४अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
४७९ मुनिसुव्रतजिन स्तवन-द्वियमकबंध, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: विकटसंकटसंततिविस्रुत; अंति: जयसहाय
महारितरोद्यम, श्लोक-८. ३०. पे. नाम. नेमि स्तवन, पृ. २४अ-२५आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: महिमानल्पनेमेशा महिम; अंति: भयभवारंभादनंतहृतम्,
श्लोक-३२. ३१. पे. नाम. आदिजिन स्तवन सह टिप्पण, पृ. २५आ-२६अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: सुवासनाभेयमिह प्रजा; अंति: निर्विलंबं जनं तम्, श्लोक-९.
आदिजिन स्तवन-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन सह टिप्पण, पृ. २६अ-२६आ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तवन, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: यः संनतोनिर्मलभावश्य; अंति: निर्विलबजनं तम्, श्लोक-९.
शांतिजिन स्तवन-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन सह टिप्पण, पृ. २६आ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तोत्र, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: नेमेशिवावासमगुर्नराः; अंति: निर्विलंबं जनं तम्, श्लोक-८.
नेमिजिन स्तोत्र-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन सह टिप्पण, पृ. २६आ-२७अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: पार्श्वन पार्श्वेन; अंति: निर्विलबजनं तम, श्लोक-९.
पार्श्वजिन स्तवन-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५. पे. नाम. महावीर स्तवन सह टिप्पण, पृ. २७अ-२७आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: विश्वेमहावीरति मोह; अंति: निर्विलंबं जनं तम्, श्लोक-९.
महावीरजिन स्तवन-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३६. पे. नाम. पंचजिन स्तोत्र, पृ. २७आ-२८अ, संपूर्ण.
पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: युगादिनाथं जितमोहसेन; अंति: भविक सुतत्वलीनम, श्लोक-६. ३७. पे. नाम. वासुपूज्य यमक स्तवन, पृ. २८अ-२८आ, संपूर्ण.
वासुपूज्यजिन स्तवन यमकबंध, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: वसुपूज्यं वसुपूज्यं; अंति: पंचेषुवीरप्रभु श्रीः,
___ श्लोक-१५. ३८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन सह टिप्पण, पृ. २८आ-२९अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: भास्वन्महा: सुमहिमाव; अंति: यामृतरमापिसा क्रमेण,
___ श्लोक-१८.
पार्श्वजिन स्तवन-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३९. पे. नाम. वर्द्धमानजिन स्तवन सह टिप्पण, पृ. २९आ-३०आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-गुरुनामगर्भषडरचक्रं, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: कलशकलशरादि प्रोल्लसल; अंति:
दुःखतम्यारविम्, श्लोक-१४. महावीरजिन स्तवन-गुरुनामगर्भषडरचक्रं-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४०. पे. नाम. सर्वजिन साधारण स्तव, पृ. ३०आ-३२अ, संपूर्ण.
सर्वजिन स्तोत्र, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: सिद्धिं करोतिस्म; अंति: कांता० प्रथिताशिषोथ, श्लोक-३६. ४१. पे. नाम. जन्मोत्सव स्तव, पृ. ३२अ-३४अ, संपूर्ण. महावीरजिन जन्मोत्सव, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: निर्भिन्नभावारिमनंतभ; अंति: यायते भवाच्चितरंति,
श्लोक-३२. ४२. पे. नाम. समवसरण स्तवन, पृ. ३४अ-३५आ, संपूर्ण.
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४८०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: सत्केवलज्ञान महाप्रभ; अंति: मालंबतां निर्वृतिम्, श्लोक-३४. ४३. पे. नाम. सिद्धपुर स्तव, पृ. ३५आ-३६अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-सिद्धपुर, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: सिद्धपुराभिधनगरवतंस; अंति: तस्य च मोनपुरम्,
श्लोक-१०. ४४. पे. नाम. पार्श्व स्तव, पृ. ३६अ-३६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: तालतमाल विशाल सालदल; अंति: सोद्भुत संपदमनुभवति,
श्लोक-९. ४५. पे. नाम. वीर स्तोत्र, पृ. ३६आ-३७अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: सत्यपुरावनिवरतिलक; अंति: शिवमपि विधृतमतिः,
श्लोक-१४. ४६. पे. नाम. चतुर्विंशति स्तव, पृ. ३७अ-३८आ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तोत्र, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: श्रीनाभिभूपाल विशाल; अंति: रमया संजयानंदमेति, श्लोक-२४. ४७. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तव, पृ. ३८आ-३९आ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तोत्र, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: हेमाभनाभिनंदन मरुदेव; अंति: कृतः शिवसुखं दधुः, श्लोक-२५. ४८. पे. नाम. महावीरजिन स्तोत्र, पृ. ३९आ-४०अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-यमकमय, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: जितमोहमही शरणं केवल; अंति: श्रितानये
भूत्यनवधान, श्लोक-८. ४९. पे. नाम. सर्वजिन स्तोत्र, पृ. ४०अ, संपूर्ण.
२४जिन स्तुति, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथाजितसंभवे; अंति: दुरापन्नसुखं च सारम्, श्लोक-५. ५०. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ४०अ-४०आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: जय पार्श्वजिनेश्वर; अंति: धुर सफलीकृत
सकलाभिमत, श्लोक-११. ५१. पे. नाम. सर्वजिन स्तवन, पृ. ४०आ-४१अ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तोत्र, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: सुरनरकिंनर निर्मित; अंति: सति सततं सौख्यततिः, श्लोक-८. ५२. पे. नाम. शत्रुजय स्तवन, पृ. ४१अ-४१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: भूतलमंडन पुंडरीकगिरि; अंति: समशमिनं शिवशर्मकर,
श्लोक-९. ५३. पे. नाम. गिरिनार स्तवन, पृ. ४१आ-४२अ, संपूर्ण. गिरिनारतीर्थ स्तवन, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: श्रीगिरिनार गिरीश्वर; अंति: गिरिगिरनार ललामवर,
श्लोक-१०. ५४. पे. नाम. स्तंभनपुर स्तवन, पृ. ४२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-स्तंभनपुर मंडन, पं. शीलशेखर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीभरभासुर सुंदरदेह; अंति:
नुवतोममसुगतिं वितर, श्लोक-९. ५५. पे. नाम. नंदीश्वर स्तवन, पृ. ४२अ-४२आ, संपूर्ण. नंदीश्वरद्वीप स्तवन, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: नंदीसरवरदीवमझारे सास; अंति: भव समुद्दलहु तेतरइम,
श्लोक-८. ५६. पे. नाम. शांतिनाथ विज्ञप्ति, पृ. ४२आ-४३अ, संपूर्ण. शांतिजिन विज्ञप्तिका-गुरुचतष्कनाम गर्भित, पं. शीलशेखर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सिरिअइरादेवी तणय; अंति:
रंमुसंमु सो लहइ घणु, गाथा-१२.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
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५७. पे. नाम. सर्वजिनभव स्तव, पृ. ४३अ - ४३आ, संपूर्ण.
सर्वजिनभवसंख्यादि स्तवन, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदिः आदौ सार्धपतिर्धाना १; अंति: सिकोरत्थंभवाः शंभवा: श्लोक ८.
५८. पे नाम, शांतिनाथ स्तव, पृ. ४३आ-४४अ, संपूर्ण
शांतिजिन स्तवन, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि अहं देवभूमीतले लग्न, अंतिः वीक्षते देव नूनम, लोक-११. ५९. पे. नाम. कल्याणकसंख्यासंक्षेप स्तव, पृ. ४४-४४आ, संपूर्ण.
पंचकल्याणक संख्यासंक्षेप स्तवन, पं. शीलशेखर गणि, प्रा., पद्य, आदिः कत्तिपणीगुडबारतेर, अंतिः नवेगु आसोतमि पुत्रिम, गाथा ३.
६०. पे. नाम वीर स्तोत्र, पृ. ४४-४५अ संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन- यमकमय, पं. शीलशेखर गणि, प्रा., पद्य, आदि; गयकलहं गयकलहं गवकलह अंतिः सत्ताणं जिणवइकरे, गाथा - १०.
६१. पे नाम. पंचजिन नमस्कार, पृ. ४५अ, संपूर्ण.
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יי
पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: मौनेनोर्वी व्यहृतपरि; अंति: संगम काम रसं सुदा, श्लोक - ५.
६२. पे नाम, कारकक्रियागुप्त वीर स्तोत्र, पृ. ४५अ- ४५आ, संपूर्ण
महावीरजिन स्तोत्र-कारकक्रियागुप्त, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्म, आदिः श्रीवीरं स्तौमि अंति हता रंभाननं गः शिवे, श्लोक - १६.
६२९१०. (+#) उपासकदशांगसूत्र व पैतीस गुण वर्णन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५८, आश्विन कृष्ण, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४५, कुल पे. २, ले.स्थल. नवहर, प्रले. पं. आनंदधीर (गुरु मु. ज्ञाननिधान); गुपि. मु. ज्ञाननिधान (गुरु पं. महिमामेरु); पं. महिमा ( गुरुग. सुखनिधान), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैवे. (२५.५x११, ६४५७)
१. पे. नाम. उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ - ४४आ, संपूर्ण.
उपासक दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: तेणं० चंपा नाम नवरी अंतिः दिवसेसु अंगं तहेव,
अध्ययन- १०, ग्रं. ८१२.
उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मा.गु., गद्य, वि. १६९३, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंतिः श्रुतांग तिमही ज.. २. पे नाम, पैंतीस गुण वर्णन, पृ. ४४-४५अ, संपूर्ण
३५ वाणीगुण, सं., गद्य, आदि: संस्कारवत्वं१ औदात्य; अंतिः मत्त्वं अखेदत्वनि.
३५ वाणीगुण टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संस्कृतादिक लक्षणे, अंतिः भगवंतना जाणिवा
६२९११. (+) समवायांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३०, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित, जैदे., (२६x११, १७५५). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. गद्य, आदि; सुयं मे आउस तेणं; अंतिः अज्झयणंति त्तिबेमि, अध्ययन- १०३, सूत्र- १५९. ग्रं. १६६७.
',
६२९१२. (+०) कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य, अपूर्ण, वि. १६७६, मध्यम, पृ. ५०-१८ (१ से १८) = ३२, प्रले. मु. ज्ञानमेरु (गुरु
वा. महिमसुंदर, खरतरगच्छ); गुपि वा महिमसुंदर (गुरु पं. साधुकीर्ति पाठक, खरतर गच्छ); वा. साधुकीर्ति (गुरु
वा. अमरमाणिक्य, खरतरगच्छ); अन्य. ग. प्रेमविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५. ५X११, १५X४१-५०).
ર
कल्पसूत्र - अंतर्वाच्य, उपा. भक्तिलाभ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: श्रीसंघभट्टारकः, (पू.वि. भगवान महावीरस्वामी के गृह त्याग प्रसंग वर्णन से है.)
६२९१३. (+) अंतगडदसांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३२, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६.५X११, ११X३४-३९). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: जधाणाता धम्मकथाणं, अध्याय-९२, ग्रं. ८९९.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६२९१४. भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४८, पौष कृष्ण, ६, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २५, ले. स्थल. गांदिलीनगर, प्रले. मु. मोतिचंद (गुरु पंन्या. ज्योतिविजय); गुपि. पंन्या. ज्योतिविजय (गुरु पं. रत्नविजय); पं. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीरुआ प्रासादात्, जैदे., (२५.५X११.५, ५x२१-२५).
भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. २४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे, अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३,
',
गाथा - १४५, संपूर्ण.
भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांदवा योग सर्वने, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चैत्यवंदनभाष्य की गाथा ३१ तक लिखा है.)
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६२९१५. (+) संघयणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५X१०.५,
"
१०X२७-३३).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ, अंति: (-), (पू. वि. गाथा ३०६ अपूर्ण तक है.)
६२९१६. (+) उक्तिरत्नाकर, अपूर्ण, वि. १६९७, भाद्रपद शुक्ल, ११, सोमवार, जीर्ण, पृ. २१-१ ( २० ) - २०, लिख. मु. हीरानंदचंद्र (गुरु आ. रायचंद्रसूरि, पार्श्वचंद्र गच्छ); गुपि. आ. राजचंद्रसूरि (गुरु आ. समरचंद्रसूरि, पार्श्वचंद्र गच्छ); अन्य. पं. दयाचंद्र, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. प्र. ले. श्लो. (७५९) अदृष्टदोषान्मतिविभ्रमाच्च जैये. (२५.५४११, १५X३२-३६).
-
उक्तिरत्नाकर, उपा. साधुसुंदर, प्रा.सं., गद्य, आदि: स्मृत्वा श्रीभारतीं; अंति: मान्यश्चिरं नंदतु, (पू. वि. क्रियाविभाग के कुछ अंश नहीं हैं.)
६२९१७. (+*) प्रश्नव्याकरण सूत्र सह टबार्थ श्रुतस्कंध १ पंचमाश्रवद्वार अंतिमगाथापंचक से श्रुतस्कंध २, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२६११, ८४४७-५२). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: जंबू एतो संबरदाराई, अंति: सरीरधरे भविस्सइति,
. ,
अध्याय- १०, गाथा - १२५० ग्रं. १३००, संपूर्ण.
1
प्रश्नव्याकरणसूत्र - टवार्ध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण
६२९१८. (+#) भाष्यत्रय सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २५, प्र. वि. त्रिपाठ - संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे., (२५.५X११, १-६x२४-४९).
भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. ९४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे, अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३,
गाथा - १४५.
भाष्यत्रय - अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: बंदि० वंदनीवान् परमे; अंतिः पच्चकखाणम० सुगमा. ६२९१९. (+#) संग्रहणीसूत्र व बारह लक्षण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२-१ (१) = २१, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५४१०.५, ९४२७-३०),
१. पे. नाम. बृहत्संग्रहणी, पृ. २अ-२२आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है .
आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा - ३१२, (पू. वि. गाथा १५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. बार सामान्य लक्षण, पृ. २२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
निश्चय उपयोग लक्षण, मा.गु., गद्य, आदिः सविहुं जीवनई साकर, अंति: (-), (पू.वि. "ते समुद्धातक कहीइ" पाठ तक है.)
६२९२०_ (+) अंतगडदशांगसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २२ प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. कुल ग्रं. ७९०, जैदे. (२६४१०.५, १५४४०-४५ ).
अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय-९२, ग्रं. ८९९.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
अंतकृद्दशांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: अथांतकृतदशासु किमपि; अंति: विधीयतां
सर्वथा, वर्ग-८. ६२९२१. (+#) चउसरणपइन्नय, नवतत्त्व व भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२-१(१)=२१, कुल पे. ३,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ५४३१). १.पे. नाम. चउसरणपइन्नय सह टबार्थ, पृ. २अ-९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३,
(पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मुक्तिनां सुख लहइ. २.पे. नाम. नवतत्त्व सह टबार्थ, पृ. ९अ-१४आ, संपूर्ण.
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४३.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: कालइ अनंतगुणा छइ. ३. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १५अ-२२आ, पूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४४ का अंतिमपद नहीं
भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्तिवत देवता प्रणत; अंति: (-). ६२९२२. (+) विपाकसूत्र, संपूर्ण, वि. १५७९, ज्येष्ठ कृष्ण, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २५, ले.स्थल. अजाहरीनगर, प्रले. ग. हंससमय
(गुरु पं. कमलभुवन, तपागच्छ); गुपि.पं. कमलभुवन (तपागच्छ); राज्ये आ. हेमविमलसूरि (गुरु आ. सुमतिसाधुसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (११४८) यादृसं पुस्तिकिं दृष्ट, (११४९) उद्देदृष्टि कटिग्रीवः, जैदे., (२६४११, १५४५३-५६). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: विसेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध-२,
ग्रं. १२५०, (वि. अध्ययन २०) ६२९२३. (+#) श्रावकप्रतिक्रमण सूत्रसंग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२-१(११)=२१, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ४४४०-४३). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-),
(पू.वि. खमासमणासूत्र अपूर्ण तक व पच्चक्खाणसूत्र से वंदितुसूत्र गाथा ५० अपूर्ण तक है.)
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार थावउ माहरो; अंति: (-). ६२९२४. (#) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११.५, ८x२५). . श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-),
(पू.वि. वंदित्तुसूत्र गाथा ४५ अपूर्ण तक है.) ६२९२५. (#) संग्रहणीसूत्र की अवचूर्णी, संपूर्ण, वि. १५४६, वैशाख कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. २२, ले.स्थल. देलुलिनगर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, २०४५३-५८).
बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: आदौ शास्त्रकाराभीष्ट; अंति: वेदाश्च प्रागुक्ताः, ग्रं. ३५०० ६२९२६. (+#) अंतगडदशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४३९-४५).
अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेण कालेणं तेण समएण; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं,
___ अध्याय-९२, ग्रं. ८९९. ६२९२७. (+#) आदिनाथदेशना सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-१(१)=२०, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक
लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११,७४३६-४१).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिनाथ देशनोद्धार, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सिवं जंति, गाथा-८८, (पू.वि. गाथा- १५ अपूर्ण से है.)
आदिनाथ देशनोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: शिव मोक्ष पहुंचइ. ६२९२९. (+) कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे.८,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११,१७४४९-५२). १. पे. नाम. ललितांगकुमार कथा, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण.
ललितांगकुमार कथा-धर्म विषयक, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: त्रिवर्गसंसाधनमंतरेण: अंति: नगरी निश्चिंत तरो. २. पे. नाम. शशिसूर कथा, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण.
शशिसूरराजा कथा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ते धतूरतरं वपंति भुव; अंति: गया पश्चाताप पामै. ३. पे. नाम. रोहिणी चोर कथा, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण.
रोहिणीयाचोर कथा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रभुजीनी वाणी सांभल; अंति: जीव सर्वसुख पामै. ४. पे. नाम. वसुराज कथा, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण.
वसुराजा कथा-सत्वविषयक, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तस्याग्निर्जलमर्ण; अंति: सत्यनो आदर करिवो. ५. पे. नाम. नागदत्त कथा, पृ. ८अ-९अ, संपूर्ण.
नागदत्त कथा-अदत्तादान ऊपर, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: परजनमनःपीडाक्रीडावनं; अंति: मन बंछित फल पामै. ६.पे. नाम. विक्रमादित्य कथा, पृ. ९अ-११अ, संपूर्ण.
विक्रमादित्य कथा-कपटवचन विषयक, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: न ब्रूते परदूषणं; अंति: सज्जवंता पणो करिवउ. ७. पे. नाम. अंगदेश कथा, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण..
सुंदरराजा मदनवल्लभाराणी कथा-शीलऊपर, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: लक्ष्मीः सर्वतिनी; अंति: लीधो सदगति गयो. ८. पे. नाम. अमरसेन वयरकथा, पृ. १२अ-१३आ, संपूर्ण. अमरसेनवज्रसेन कथा-सुपात्रदान विषयक, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तस्यासत्तारतिरनुचरीक; अंति: बेऊ सुरलोकिइ
पहुता. ६२९३०. (+#) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १४-२(१ से २)=१२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं. ७००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १५४४५-५०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः (-); अंति: कहणा पवियालणा संघे, अध्ययन-१०,
(पू.वि. अध्ययन- ४ अपूर्ण से है, वि. चूलिका २) । ६२९३१. (+#) शांतिनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. १७१६, चैत्र शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ११४-९५(१ से ९५)=१९, ले.स्थल. जुनागढ,
प्रले. पं. विजयराम (मूलसंघ सरस्वतीगच्छ बलात्कारगण); गुपि. भट्टा. अविचलकीर्ति (मूलसंघसरस्वतीगच्छ बलात्कारगण); भट्टा. ब्रह्मनंदराम (मूलसंघ सरस्वतीगच्छ बलात्कारगण); अन्य.पं. जीवणदास; श्राव. रुघनाथजी मीठोजी वेराई साहा, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. वि.सं. १८३७ माघ शुक्लपक्ष १ के दिन भावनगर में इस प्रत को पठनार्थे देने का उल्लेख मिलता है, संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं.४८८१, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १५४४१-४५). शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३०७, आदि: (-); अंति: स करोतु शांतिः, प्रस्ताव-६,
श्लोक-१६३३, ग्रं. ५०००, (पू.वि. श्लोक-८६४ अपूर्ण से है.) ६२९३२. व्याख्यान संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. ४, जैदे., (२६.५४११, १३४४२-४५). १. पे. नाम. अक्षयतृतीया व्याख्यान, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण.
अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य प्रभु; अंति: क्षमाकल्याणपाठकैः, ग्रं. ७०. २. पे. नाम. मेरुत्रयोदशी व्याख्यान, पृ. ३आ-८अ, संपूर्ण. मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: मारुदेवं जिनं नत्वा; अंति:
शिष्यैरामोदतस्त्वदः, ग्रं. १६५. ३. पे. नाम. चातुर्मासिक व्याख्यान, पृ. ८अ-१७आ, संपूर्ण.
उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं स्फुरद; अंति: संघादिसमक्षं वाच्यम्.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
४. पे. नाम. होलिका व्याख्यान, पृ. १७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. होलिकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३५, आदि: होलिका फाल्गुने मासे; अंति: (-),
(पू.वि. प्रारम्भिक पाठ मात्र है.) ६२९३३. (+#) चित्रसेनपद्मावती कथा, अपूर्ण, वि. १७२२, पौष शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. २०-२(१,६)=१८, प्रले. मु. अमरसागर (गुरु
ग. पुण्यसागर, तपगच्छ); पठ. मु. विबुधसागर (गुरु मु. अमरसागर); गुपि.ग. पुण्यसागर (गुरु मु. भागसागर, तपगच्छ); मु. भागसागर (गुरु ग. गुणसागर, तपगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४२९-३५).
चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: (-); अंति: पाठक राजवल्लभः,
__ श्लोक-५१०, (पू.वि. श्लोक-१३ अपूर्ण से ११५ अपूर्ण तक व श्लोक- १४० अपूर्ण से है.) ६२९३४. (+#) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-१(१२)=१३, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, ११४३३-३६). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २२० अपूर्ण
तक व गाथा २४३ अपूर्ण से २७७ अपूर्ण तक है.) ६२९३५. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-४(१ से ४)=१२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२३४१०.५, ५४२७-३२).
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम अध्ययन अपूर्ण मात्र है.) ६२९३६. (+) उत्तमकुमार चरित्र, संपूर्ण, वि. १६८१, फाल्गुन शुक्ल, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले.स्थल. सुरत, प्रले. ग. गुणविजय
(गुरु उपा. धर्मविजय गणि); गुपि. उपा. धर्मविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४४२).
___ उत्तमकुमार चरित्र, मु. चारुचंद्र, सं., पद्य, आदि: वंदित्वा स्वगुरुन; अंति: कथेयं नंदतां चिरम्, श्लोक-६०२. ६२९३७. (+#) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६-८(१,१७ से २३)=१८, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ५४३२). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अतिचार गाथा ८ अपूर्ण तक व
पच्चक्खाण अपूर्ण से खमासमणा अपूर्ण तक है.)
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६२९३८. (+) कर्मग्रंथ १ से ६, संपूर्ण, वि. १७९१, ज्येष्ठ शुक्ल, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. ६, ले.स्थल. इंद्रप्रस्थनगर,
प्रले. उपा. राजसोम गणि (गुरु उपा. कर्पूरविजय गणि, खरतरगच्छ); पठ. पं. रंगवल्लभ गणि (गुरु उपा. राजसोम गणि, खरतरगच्छ); गुपि. उपा. कर्पूरविजय गणि (गुरु ग. लक्ष्मीसमुद्र, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीजिनकुशलसूरीश्वर सद्गुरु प्रसादात्, संशोधित., प्र.ले.श्लो. (११५१) सर्वेपि संतु सुखिनः, जैदे., (२५.५४११, १२४४०-४४). १. पे. नाम. कर्मविपाक कर्मग्रंथ, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ
देविंदसूरिहिं, गाथा-६०. २. पे. नाम. कर्मस्तव कर्मग्रंथ, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमहं तं
वीर, गाथा-३४. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व कर्मग्रंथ, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्क; अंति: देविंदसूरि०
सोडे, गाथा-२४. ४. पे. नाम. षड्शीति कर्मग्रंथ, पृ. ६आ-१०अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: नमिअ जिणं जिअ१ मग्गण; अंति: लिहि देविंदसूरीहिं गाथा ८९.
५. पे. नाम. शतक कर्मग्रंथ, पृ. १० आ-१४आ, संपूर्ण.
शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय, अंतिः देविंदसूरि० आयसरणड्डा, गाथा- १००.
६. पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रंथ, पृ. १४आ-१८अ, संपूर्ण.
प्रा. पद्म, वि. १३वी ९४वी, आदि: सिद्धपएहिं महत्वं अंति: पूरेऊणं परिकहंतु, गाथा- ८९. ६२९३९. (+) साधुपंचप्रतिक्रमण सूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, ४X३०-३६).
साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं नमो अंतिः (-), (पू.वि. आयरियउवज्झायसूत्र पाठ तक है.)
साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चिउसडिइंद्रादिकनी, अंति: (-). ६२९४०. दानशीलतपभावना कुलक सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १९. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, जैदे., (२५.५X११.५, ३X२८-३२).
दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: परिहरिअ रज्जसारो, अंति: (-), (पू.वि. भावनाकुलक गाथा १९ अपूर्ण तक है. )
दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: परिहरिउ छांडिउ; अंति: (-).
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
४ दुर्लभता गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., ( चत्तारि परमंगाणी), ६०७०४-२(+)
४ निक्षेप विचार, प्रा., मा.गु. गा. १, पद्य, वे (नाम निक्षेप स्थापना), ५९८५० २(+)
"
४ रत्न गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, म्पू, (जीवदया जिनधम्मो), ६१७७९-२
(२) ४ रत्न गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवनी दया श्रीजिन), ६१७७९-२
५ तीर्थजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू (श्रीशत्रुंजयमुख्य), ६००२७-३३(+), ६१०९७-१५ (+), ६११३०-४७(*), ६१९१७-४२(०), ६०९१७-१४९९
५ धात्री नाम, सं., गद्य, मूपू., (क्षीरधात्री १ मज्जन), ६२१४१-७४(+)
५ परमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, प्रा., मा.गु., प+ग., मूपू., (बारस गुण अरिहंता), ५९६५७-९(+), ५९८७६($)
५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (अर्हतो भगवंत इंद्र), ६१९१७-९५ (+), ६२६३२-४ (+#), ६११९५-११(#)
.
५ परमेष्ठि स्तोत्र, प्रा., गा. ७, पद्य, मूप. (परमिद्रुमंतसारं सारं), ५९५०७-२
"
५ मेरुमंदिर नमस्कार, सं., गद्य, मूपू (श्री सुरेंद्रनाथाय नम), ६२२४४-६(+)
५ लब्धि विचार, प्रा., मा.गु., पद्य, मूपू., (खउउवसम विसोहिय देसण), ६०३७६-५(#)
५ समवाय गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, भूपू (कालो १ सहावर निवई३) ६२३१८-८(+)
(२) ५ समवाय गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (काल शब्दै उत्सर्पणी), ६२३१८-८(+)
६ द्रव्यपरिणाम विचार गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मृपू. (परिणामि जीव मुत्ता), ६०००६-२
(२) ६ द्रव्यपरिणाम विचार- विवरण, मा.गु., गद्य, मृपू., (घटद्रव्य मध्ये जीव१), ६०००६-२
६ संस्थानभेद विचार, सं., गद्य, श्वे. (वज्रऋषभनाराच संहनन१) ६१०४२-३(१)
७ राजलक्ष्मी नाम, सं., गद्य, भूपू (करिए तुरंगर रथ३ पायक), ६२१४१-७१(+)
८ कर्मस्थिति विचार गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (नाणे दंसणावरणे वेयणि), ६०३६८-६
८ निह्नव वर्णन गाथा, प्रा. गा. ४, पद्य, भूपू., (कवणं भंते नीनवा भवीस), ६१८०४-१०(m)
८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु., सं., ढा. ८, श्लो. ८, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (गंगा मागध क्षीरनिधि), ६०१४९-३(#), ५९९५१($)
८ प्रकारीपूजा कथा संग्रह, प्रा., कथा. ८, ग्रं. १२००, पद्य, मूपू., (पणमह तं नाभिसुयं), ६११७७(+)
(२) ८ प्रकारीपूजा कथा संग्रह - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हो ते नाभिरा), ६११७७(+)
८ प्रकारी पूजा दूहा, प्रा. मा. गु., पद्य, भूपू (अह पडिभगापसरं पवाहिण), ६२३५९-१२-०३)
-3
"
८ प्रातिहार्य लोक सं., श्लो. १, पद्य, भूपू (असोखवृक्ष्यसूरपुष्फ), ६२२४४-८(क)
१० आश्चर्य वर्णन, मा.गु. सं., गद्य, वे (-), ५९४२४)
श्वे.,
१० कल्पवृक्षनाम गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (तेसिमत्तंग १ भिंगा २) ६१०१९-२
(२) १० कल्पवृक्षनाम गाधा-टवार्थ, मा.गु, गद्य, भूपू (मितगनामा अंगनामे), ६१०१९-२
,
"
१० दिक्पाल आवाहन विसर्जन विधि, मा.गु., सं., पद. १०, प+ग, श्वे. (ॐ नमो इंद्राय पूर्व), ६१७२५-३(#) १० दृष्टांत मनुष्यभवदुर्लभता, सं., श्लो. १०, पद्य, मृपू. (विप्रः प्रार्थितवान), ६१८६३ (७)
(२) १० दृष्टांत मनुष्यभवदुर्लभता - (पु.हि.) बालावबोध, पुष्टिं गद्य, म्पू, (प्रथम श्रीऋषभदेव), ६१८६३ (७)
""
१० स्थान बोल-आनंदादि दशश्रावक, प्रा., मा.गु., गद्य, श्वे., (मन ठामि राखवा हेते), ५९४८६ (+)
१२ ढक्कादि वाद्यनाम, प्रा. गा. १, पद्य, भूपू (ढक्कार इकार डमरुअर) ६२१४१-७३(+)
"
יי
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१२ तुर्यनंदा नाम गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (भंभी१ मुकुंदर मद्दल३), ६२१४१-७२(+) १२ भावफल, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (तनु १ धन २ सहज ३), ६०२९९-३
परिशिष्ट परिचय हेतु देखें खंड ७, पृष्ठ ४५४
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४८८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
१२ भाव विचार, सं., श्लो. १२, पद्य, वै., (तनुपतिस्तनुगोमदनानुग), ६१५४१-३(+) १२ व्रत पूजाविधि, पं. वीरविजय, मा.गु.,सं., ढा. १३, गा. १२४, वि. १८८७, पद्य, मूपू., (उच्चैर्गुणैर्यस्य), ६२२०१(+) १३ काठिया गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (आलस मोह अवन्ना थंभा), ६२७७८-३(+#) १४ अभ्यंतरग्रंथि गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, म्पू., (मिच्छत्तं वीय तिगं), ६२७७८-४(+#) १४ अशुचिस्थान गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (उच्चारे १ पासवणे २), ६२४२५-३(+) १६ सती नाम, मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (ब्राह्मी १ चंदनबाला), ५९५९०-८(+), ६२२७५-२(+) १६ सती स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (ब्राह्मी चंदनबालिका), ६११३०-१४(+), ६१९१७-६५(+), ६०३५७-१० १८ अक्षरी नमिऊणबीज मंत्र, प्रा.,सं., गद्य, श्वे., (ॐ नमिऊण पास विषहर), ६१०१५-२७(-) १८ नातरा श्लोक, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (भ्रातासितनुर्जन्मासि), ६१८१७-२(+#) (२) १८ नातरा श्लोक-टीका, सं., गद्य, मूपू., (भ्राता एक मातृकत्वात), ६१८१७-२(+#) १८ लिपि नाम, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (हंसलिवी१ भूअलिवी२), ६२१४१-७५(+) २० स्थानकतप आलापक, प्रा., गद्य, श्वे., (इच्छकारि भगवन् पसाय), ६०९५६-२(+) २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम नालिकेरादि), ५९८८९ २१ प्रकारी पूजा, ग. शिवचंद्र, मा.गु.,सं., वि. १८७८, पद्य, मूपू., (मंगल हरिचंदन रूचिर), ५९९१३-३(+) २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., गा. ६६, पद्य, मूपू., (चवण विमाणा नयरी जणया), ५९६०७-१(+), ६०९३५(+),
६१०९७-४५(+#), ६१६१०(+), ६२८५५-२(+), ५९७६८(5) (२) २१ स्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चोवीस तीर्थंकरना २१), ५९६०७-१(+), ६१६१०(+$), ५९७६८(5) २२ अभक्ष्य गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (पचुंबर चउविगई हिम), ५९७३१-२(+) (२) २२ अभक्ष्य गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वड पीपल उंबरि अंजीर), ५९७३१-२(+) २४ जिन चैत्यवंदन, मु. क्षमाकल्याण, सं., श्लो. ४८, पद्य, मूपू., (श्रीमद्वृषभ सर्वज्ञ), ६१८७६-२१(+#) २४ जिन नमस्कार, सं., श्लो. २९, पद्य, मूपू., (--), ६०७०९-२(+$) २४ जिन नमस्कार स्तोत्र, पं.शीलशेखर गणि, सं., श्लो. २४, पद्य, मूपू., (अतुल्य कल्याण विधायक), ६२९०८-१४(+) (२) २४ जिन नमस्कार स्तोत्र-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (--), ६२९०८-१४(+) २४ जिन नमस्कार स्तोत्र, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. २४, पद्य, मूपू., (ऋषभःसश्रुभायभा), ६२९०८-३(+) (२) २४ जिन नमस्कार स्तोत्र-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (--), ६२९०८-३(+) २४ जिन पंचकल्याणक पूजा, पुहिं.,सं., पूजा. २४, प+ग., दि., (ॐ ह्रीं श्रीं अनंता), ६०४२४ २४ जिन स्तव, श्राव. भूपाल, सं., श्लो. २६, पद्य, मूपू., दि., (श्रीलीलायतनं महीकुल), ६१०८९-२($) (२) २४ जिन स्तवन-टीका, सं., गद्य, मूपू., दि., (भो देव प्रातः प्रभात), ६१०८९-२(5) २४ जिन स्तव, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (आद्यः श्रीऋषभस्ततो), ६१८७६-९(+#) २४ जिन स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. २९, पद्य, मूपू., (कनककांतिधनुशतपंचकोच), ५९५७८-९(+), ६१०१५-५(-) २४ जिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नाभेयाजितवासुपूज्यसु), ६१०९७-८(+#), ६१५७६-७(+#),
६२४२१-३(+#) २४जिन स्तुति, पं.शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ५, पद्य, मपू., (श्रीआदिनाथाजितसंभवे), ६२९०८-४९(+) २४ जिन स्तुति, अप., गा. २, पद्य, मूपू., (भरहेसरकारिय देव हरे), ६१८८६-२४(+), ६२६३२-३८(+#) २४ जिन स्तोत्र, मु. नेतृसिंह कवि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (वंदे धर्मजिनं सदा), ६१८७६-४९(+#) २४ जिन स्तोत्र, पं.शीलशेखर गणि, सं., श्लो. २४, पद्य, मूपू., (श्रीनाभिभूपाल विशाल), ६२९०८-४६(+) २४ जिन स्तोत्र, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (सुरनरकिंनर निर्मित), ६२९०८-५१(+) २४ जिन स्तोत्र, पं.शीलशेखर गणि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (हेमाभनाभिनंदन मरुदेव), ६२९०८-४७(+) २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (आदौ नेमिजिनं नौमि), ६१२७१-५(#) २४ दंडक स्तुति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (रुचितरुचिमहामणि), ६००२७-३२(+), ६१०९७-१९(+#), ६२४२१-४(+#)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
२९ भावना प्रकरण, प्रा., गा. ३०, पद्य, वे. (संसारम्मि असारे), ५९४७३-३(+४)
יי
(२) २९ भावना प्रकरण टवार्थ *, मा.गु., गद्य, श्वे. (संसार असाररूप छद), ५९४७३-३ (+३) ३० अतिरत्नजाति नाम, सं., गद्य, श्वे. (पद्मरागर पुप्फराग२), ६२१४१-६९(+)
"3
३२ अनंतकाय गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, श्वे. (सव्वाउ कंदजाई), ५९७३१-३ (+), ६०११४-४(*) (२) ३२ अनंतकाय गाथा - टबार्थ, मा.गु., गद्य, वे., (सर्व कंदजाति अणंतकाय), ५९७३१-३(+) ३५ वाणीगुण, सं., गद्य, भूपू (संस्कारवत्वं औदात्य), ६२९१०-२(+) (२) ३५ वाणीगुण टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (संस्कृतादिक लक्षणे), ६२९१०-२ (+) ३६ आयुध प्रकार, सं., गद्य, श्वे., (चक्र धनु वज्र खड्ग), ६२१४१-७० (+)
३६ बोल संग्रह, प्रा., मा.गु.. गा. ३६, गद्य, भूपू (एगविहे असंयमे एगे), ६२२७९ ५३ क्रिया, प्रा.,मा.गु., गद्य, दि., (गुणवयतवसमपडिमै दाणं), ६१८७७-२(+)
५८ बोल संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (नाणेम जाणइ भावे), ५९८४४(#), ६२७०४($)
६२ बोल गाधा, प्रा., गा. १, पद्य, भूपू (गइ इंदिए काए जोए वेए), ६२४२५-४०)
(२) ६२ बोल गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (देवगति मे जीव का भेद), ६२४२५-४(+)
७२ कला नाम- पुरुष, सं., श्लो. ३, पद्य, थे. (लिखित पठितर संख्या ३) ६२१४१-६८(०)
,
३४६ भेद- नवपद, मा.गु., सं., पद. ३४६, गद्य, मूपू., (अशोकवृक्ष प्रातिहार) ५९५३०-१ (+), ६२१७५२, ६१८०५(१) अंगचूलिका प्रकीर्णक, प्रा. गद्य, म्पू, नमो सुय० नमो अरि०), ५९४६२ (+४), ५९६७४
अंगविद्या, ऋ. नारद मुनि, सं., श्लो. १८, पद्य, वै. (अंगविद्यां प्रविक्ष), ६०९५०-१)
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४८९
अंगुलसप्ततिका, आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., गा. ७०, पद्य, मूपू., (उसभसमगमणमुसभजिणमणि), प्रतहीन.
(उ० ऋषभदेव स्वामी ते), ६२३९०
(२) अंगुलसप्ततिका - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. ९२, ग्रं. ८९९, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० चंपा०), ५९२८६ (+$), ५९४३३(+#), ६०५००(+#$), ६०९९८ (+), ६११६१ (+$), ६१७६३ (+), ६२६२९ (+#), ६२७९८ (+), ६२९१३ (+), ६२९२० (+), ६२९२६(+#), ६१५६५
(२) अंतकृद्दशांगसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., वर्ग. ८, वि. १२वी, गद्य, मूपू., (अथांतकृतदशासु किमपि ), ६२९२० (+),
६०४३२
(२) अंतकृद्दशांगसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू., (अंतगड शब्दस्य कः), ५९२८६ (३), ५९४३३ (+), ६०५०० (+#5), ६०९९८ (०), ६११६१ (+$), ६१७६३ (+), ६२६२९ (+#)
अंबड चरित्र, ग. अमरसुंदर, सं., वि. १५वी, गद्य, मृपू. (धर्मात् संपद्यते), ६११९७(*)
अकलंकाष्टक स्तोत्र, आ. अकलंकदेव, सं., श्लो. १६, पद्य, दि., (त्रैलोक्यं सकलं), ६१०१५-२२ (-)
अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं. ग्रं. ७०, गद्य, म्पू, (प्रणिपत्य प्रभु, ५९७४५-११(+०, ६१०४०-३(+),
"
६११४०-१०(०), ६२९३२-१
अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, प्रा. रा. सं., गद्य, भूपू (उसभस्सव पारणए इक्खु), ६२२५७-१(+), ६०१७३-१
-"
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अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा. गा. ४०, पद्य, मूपू (अजियं जियसव्वभयं संत), ५९७६५-११(+), ६१२०७-२(*),
.,
23
६१६५४-१(+), ६१६६०-२ (+), ६१७४९ (+०), ६१७९६-५ (+), ६१७९८-३(१०) ६१७९९ (+४), ६२४७५-६(+), ६२७२७(+३), ६२८८५-२(+), ५९३०९-२, ६२६८१-१, ६२७१७-२(#), ६०९२७-१(-)
(२) अजितशांति स्तव - बोधदीपिका टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., ग्रं. ७४०, वि. १३६५, गद्य, मूपू., (अजितशांतिजिनाधिपयोः), ६१७९९(+$)
(२) अजितशांति स्तव बार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (अजितनाथ जीता छड़ सर्व), ६१२०७-२(+), ६२७२७/+६) ६२७१७-२(m)
(२) अजितशांति स्तवन, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., गा. ३२, वि. १५वी, पद्य, म्पू, (मंगल कमलाकंद ए सुख), ६०९२५-५४१), ६२४२१-२८(+#)
अजितशांति स्तवबृहत् अंचलगच्छीय, आ. जयशेखरसूरि सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू (सकलसुखनिवहदानाय सुर), ६२७५७-३
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४९०
संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ अजितशांति स्तवलघु अंचलगच्छीय, क. वीर गणि, प्रा. गा. ८, पद्य, मूपू., (गब्भ अवयार सोहम्मसुर), ६२७५७-२ अजितशांति स्तलघु - खरतरगच्छीय, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १७, पद्य, म्पू, (उद्धासिकमनक्ख), ५९५७८ ५(१), ५९७६५-१२(००), ६२३१५-१६)
अजीर्णमंजरी, काशिराज, सं., श्लो. ४२, पद्य, वै., (यो रावणं रणमुखेभुवनै), ६१४७७-१
अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., अधि. १६, श्लो. २७२, पद्य, मूपू., (जयश्रीरांतरारीणां ), ६१५७२($)
(२) अध्यात्मकल्पद्रुम-अध्यात्मकल्पलता टीका, उपा. रत्नचंद्र, सं., अ. १६, ग्रं. २४५९, वि. १६७४, गद्य, मूपू., (प्रणत सुरासुरकोटी), ६१५७२(६)
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(२) अध्यात्मकल्पद्रुम-हिस्सा शांतरस अधिकार, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, मूपू., (--), प्रतहीन.
(३) अध्यात्मकल्पद्रुम-हिस्सा शांतरस अधिकार का शांतरसवर्णन, मा.गु., ग्रं. १८५०, गद्य, मूपू., (अहो भव्य जीवो सदाकाल), ६२१४७(+१)
अनशन विधि, प्रा.मा.गु., गद्य, म्पू, (नवकार त्रणवार भणावी), ५९५१२-३(+)
अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. ३३, प्र. १९२, प+ग, मूपू., (तेणं कालेणं० नवमस्स), ५९४५८(०), ६०६८५ (०) ६१०२६) ६१६१८+३) ५९४६८, ५९५९२, ६१७०६
"
(२) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते काल चउथा आराने), ६०६८५ (+), ६१०२६(+), ६१६१८(+$),
५९४६८, ५९५९२, ६१७०६
יי
अनुपानमंजरी, आ. विश्रामाचार्य, सं., समु. ५, वि. १८४३, पद्य, जै., (यस्य ज्ञानमयी), ६२१२७ (+), ६०२२६ (२) अनुपानमंजरी - टबार्थ, मा.गु., गद्य, जी., (जे प्रभुनी ज्ञानमयी), ६२१२७ (+), ६०२२६
अनुयोगद्वारसूत्र, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प्रक. ३८, ग्रं. २०८५, प+ग, मूपू., (नाणं पंचविह), ५९४२६(+$), ५९५१५ (+),
५९६५५ (+$), ५९८१४(+$), ६०४०५ (+#$), ६०४६६ (+), ६१०७६ (+), ६२०६१ (+), ६२७९७ (+), ६२०८१
(२) अनुयोगद्वारसूत्र टीका, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, सं. ग्रं. ५९००, वि. १२वी, गद्य, मूपु. ( सम्यक्सुरेंद्रकृत), ५९६५५ (०३), ५९८१४(०३)
(२) अनुयोगद्वारसूत्र- बालावबोध, मु. हीरमुनि, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानावरणी कर्मनो ), ६२०८१
(२) अनुयोगद्वारसूत्र - बालावबोध, मु. मोहन ऋषि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनं), ६०४०५ (+), ६०४६६ (+), ६२०६१(+) (२) अनुयोगद्वारसूत्र -टबार्थ, मु. धर्मसिंह, मा.गु., गद्य, मूपू., ( वंदितु जिणवरिंदे ० ), ६१०७६(+)
(२) अनुयोगद्वारसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, म्पू., (ना० ज्ञान पंच प्रकार), ५९४२६ (०३), ६०४०५ (+०३), ६०४६६ (+)
(२) अनुयोगद्वारसूत्र - हिस्सा सामायिक १२ भेद गाथा, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा. गा. १, प+ग. म्पू, (अग १ गिरी २ जलण ३), ६२२१९-१(+), ६२२१९.२(५)
(३) अनुयोगद्वारसूत्र - हिस्सा सामायिक १२भेद गाथा का बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू., (अत्र अनुजोगद्वार ), ६२२१९-१(+) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ३२, वि. १२वी, पद्य, मूषू, (अनंतविज्ञानमतीत), ६२७९०(५६)
(२) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका स्याद्वाद्यजरी वृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं. श. १२१४, गद्य, भूपू (वस्य ज्ञानमनंतवस्तु), ६२७९० (#$)
"
अभक्ष्यानंतकाय गाधा, प्रा., गा. ७, पद्य, भूपू (सव्वावि कंदजाई सूरण), ६०३६८-१३ अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. कां. ६. ग्रं. १४५२, वि. १३वी, पद्य, मूपू. (प्रणिपत्वार्हतः ), ६०२८४(+5), ६०४०२(+#5), ६०५०६ (+०), ६०५०७(+०३), ६०५१०१+०), ६०७७१(+३), ६११३८(+), ६१३७२(+), ६२६९९(+०६), ६०५३१-१(०) ६०७७९(०६)
"
(२) अभिधानचिंतामणि नाममाला स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवृति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. वि. १२१६, गद्य, मूपू., (धर्मतीर्थकृतां वाचा), ६०७७९(#$)
(२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू (सिद्धं निष्पन्न), ६११३८ (३)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
४९१ (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-बालावबोध+बीजक, पं. देवविमल गणि, मा.गु., गद्य, मूपू., (हेमाचार्य नाममाला),
६०५०७(+#$) (२) अनेकार्थ संग्रह, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ. ६+१, श्लो. १९३१, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (ध्यात्वार्हतः कृतै),
६०५२८(+#$) अमरदत्तमित्रानंद कथा-कषायविषये, सं., गद्य, मूपू., (अस्मिन् भरते सुरतिलक), ६१७६७-६(#) अमरसेनवज्रसेन कथा-सुपात्रदान विषयक, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (तस्यासत्तारतिरनुचरीक), ६२९२९-८(+) अर्थकांड, आ. हेमप्रभसूरि, सं., पद्य, मूपू., (स्वात्यादष्टक), ६०५४३ अर्थरत्नावली, उपा. समयसुंदर गणि, सं., वि. १८वी, गद्य, मपू., (राजानो ददते सौख्यम), ६०७८०(+$) अहँत पाशाकेवलि, सं., प्रश्न. ४, गद्य, मूपू., (श्रीमद्वीरजिनं नत्वा), ६०५५३ अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १०, वि. १२वी-१३वी, पद्य, मूपू., (अर्हन्नामापि कर्ण),
६०४३८-२(+), ६२२७८-१०(+) । अष्टकप्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अष्ट. ३२, पद्य, मूपू., (यस्य संक्लेशजननो), ६०९९१(+) (२) अष्टकप्रकरण-वृत्ति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., ग्रं. ३३७०, वि. १०८०, गद्य, मूपू., (इह हि सुगृहितनामधेयो), ६०९९१(+) अष्टप्रकारी पूजा, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (स्वर्वासिवासे सुतरां), ५९५७८-२७(+), ६१०१५-२३.) अष्टमीतिथि स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (संप्रात संसारसमुद्र), ५९५३४-२ । अष्टलक्षी, उपा. समयसुंदर गणि, सं., वि. १६४६, गद्य, मूपू., (श्रीसूर्यः श्रेयसे), ६२०४४(+$) अष्टापदतीर्थ स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (यत्र श्रीभरतेश्वरः), ६१८७६-२२(+#) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८६०, गद्य, मूपू., (शांतीशं शांतिकर्ता), ५९७४५-२(+#), ६०४१३(+),
६१०२५-१(+#), ६११४०-२(+), ६११६०(+), ६१२५४+), ६१७३३(+), ६२१६६(+) (२) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान-बालाबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अर्हन्नत्वाल्पबुधिना), ६२१५८(+) अष्टोत्तरी स्नात्रविधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ते माहिली शांतिकविध), ६१४८४-२ आगंतुकप्रश्न विचार, सं., श्लो. ६, पद्य, वै., (आत्मछाया त्रिगुणीकृत), ६१४७५-३(+) आगम स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (स्वस्ति सुरभिगंधा), ६२२६४-८ आगमिक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, मूपू., (जे भिक्खू वा भिखूणी), ५९२५२($) आगमिक विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (--), ५९२४२($) आगमों में जिनप्रतिमा के आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (तेणं कालेणं तेणं), ६१६२८(#$) आचारदिनकर, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., उद. ४०, प+ग., मूपू., (तत्त्वज्ञानमयो लोके), ६१५९८ आचारप्रदीप, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., प्रका. ५, ग्रं. ४०६५, वि. १५१६, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमनुपमवि), ६१०७७(+) आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. २५, ग्रं. २६४४, प+ग., मूपू., (सुयं मे आउसं० इहमेगे), ५९३०१(+$), ५९७४६(+),
६०४६९(+), ६०६८८+), ६०७४१(+), ६१००९-१(+#), ६११०८(+), ६११३७(+$), ६१७७५ (+$), ६१८३९(+),
६२०६८(+), ५९५६३, ६१८४२, ६१९१३, ६०४१७($), ६१०३३(६), ६११२२(६), ६१२२९(६) (२) आचारांगसूत्र-टीका # , आ. शीलांकाचार्य, सं., श्रु. २, ग्रं. १२०००, वि. ९१८, गद्य, मूपू., (जयति समस्तवस्तु), ६०४५४(+),
६११०८(+) (२) आचारांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीजिनाधीश), ५९३०१(+$) (२) आचारांगसूत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (भगवंत श्रीसुधर्म), ६१७७५(+$) (२) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मु. धर्मसी, मा.गु., ग्रं. १२५५४, गद्य, मूपू., (भगवंत श्रीसुधर्मा), ६०७४१(+), ६२०६८(+) (२) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतरागने नमस्कार), ५९७४६(+), ६०४६९(+$), ६०६८८(+), ६११३७(+$),
६१८३९(+), ५९५६३, ६१९१३, ६०४१७(s), ६१२२९($) (२) आचारांगसूत्र-द्वितीयश्रुतस्कंध-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते चारित्रीओ मुलगुण), ६१८४२ आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ७१, वि. ११वी, प+ग., म्पू., (देसिक्कदेसविरओ), ६२८४४(+)
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४९२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ६२८४४(+) आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, सं., प्रका. ४, श्लो. १८१, वि. १८३३, प+ग., मूपू., (अनंतविज्ञानविशुद्ध), ५९५५७(+$),
६१९३४+#) (२) आत्मप्रबोध-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. जिनलाभसूरि, सं., वि. १८३३, गद्य, मूपू., (अनंतविज्ञानविशुद्ध), ५९५५७(+$), ६१९३४+#)
आत्महित कुलक, प्रा., गा. १२, पद्य, श्वे., (कत्थ वितवो न सील), ६१५९४-२($) (२) आत्महित कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (किहां एक तप छे नथी), ६१५९४-२($) आदिजिन चरित्र, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (जंबुद्वीपे पश्चिमविद), ५९२६३(+) आदिजिन नमस्कार, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (वंदे देवाधिदेवं त), ६११३०-६४(+), ६१९१७-५०(+), ६२६६३-२(-) आदिजिन महिम्न स्तोत्र, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., श्लो. ३८, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (महिम्नः पारं ते परम), ५९५७८-११(+),
६२२७८-१४(+), ६१०१५-७(-) आदिजिन स्तवन, पं.शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ९, पद्य, म्पू., (सुवासनाभेयमिह प्रजा), ६२९०८-३१(+) (२) आदिजिन स्तवन-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (--), ६२९०८-३१(+) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ऋषभनाथ भनाथनिभानने), ६००२७-१५(+), ६१०९७-१४(+#), ६११३०-४६(+),
६१९१७-३९(+) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (जय जय जगदानंदन जय), ६११३०-६५(+), ६१९१७-५१(+), ६२६३२-२७(+#) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (युगादिपुरुषंद्राय), ६००२७-१४(+), ६१०९७-३(+#), ६११३०-३७(+), ६१५७६-२४(+#),
६१८८६-६(+), ६२६३२-३६(+#), ६०९१७-१५(२) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (सदापिनाकीय कृतप्रणाम), ६२२६४-२ आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सुवर्णवर्णं गजराज), ६११३०-५१(+), ६२६३२-२२(+#), ६११९५-२६(#) आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (वरमुक्तियहार सुतार), ५९५८९-१५(+#), ६००२७-५(+),
६१०९७-१२(+#), ६११३०-१९(+), ६१५७६-२३(+#), ६१९१७-३१(+), ६२४२१-७(+#s), ६०९१७-४(-) आदिजिन स्तुति श्लोकसंग्रह, सं., श्लो. १६, पद्य, म्पू., (उद्यानं विमलोचलेंद्र), ५९५४२-१(+) आदिजिन स्तोत्र, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (नमोस्तु नाभेयसुभावशा), ६२९०८-१०(+) (२) आदिजिन स्तोत्र-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (--), ६२९०८-१०(+) ।
आदिनाथ देशनोद्धार, प्रा., गा. ८८, पद्य, मूपू., (संसारे नत्थि सुह), ५९४७३-२(+), ६२९२७(+#$) (२) आदिनाथ देशनोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसारमाहि नथी सुख), ५९४७३-२(+$), ६२९२७(+#$) आराधनासार, आ. देवसेन, प्रा., गा. ११५, वि. ९९०, पद्य, दि., (विमलयरगुणसमिद्धि), ६१९०१-१(+#) आरामशोभा कथानक, सं., गद्य, मूपू., (सद्धर्ममूलसम्यक्त्व), ६१७६७-२(#) आलाप पद्धति, आ. देवसेन, सं., अधि. १९, सू. २२८, वि. १०वी, पद्य, दि., (गुणानां विस्तर), ६१२३६(+$), ५९५९५ आवश्यकसूत्र, प्रा., अध्य. ६, सू. १०५, प+ग., मूपू., (णमो अरहताणं० सव्व), ६०३९१(+#$), ६१८५६-१(+), ६१९०४(+),
६१९४१, ५९८९३(#$), ६१०८२(#$) (२) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. २५५०, ग्रं. ३१००, पद्य, पू., (आभिणिबोहियनाणं), ६१९०४(+),
६१९४१, ६१०८२(#$) (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य, प्रा., गा. २५३, पद्य, मूपू., (अवरविदेहे गामस्स), ६१९४१, ६१०८२(#$) (४) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (--), ६१९४१, ६१०८२(#$) (४) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की अवचूर्णि #, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (--), ६१०१३(+#$) (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की लघुटीका #, आ. तिलकाचार्य, सं., वि. १२९६, गद्य, मूपू., (--), ६१९०४(+) (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की शिष्यहिताटीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., ग्रं. २२०००, गद्य, मपू., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र),
६१९४१, ६१०८२(#$)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
"
(३) आवश्यकसूत्र -निर्युक्ति की अवचूर्णि #. आ. ज्ञानसागरसूरि सं. वि. १४४०, गद्य, मूपू. (प्रारभ्यते श्री आवश्य), ६१०१३ (+०६)
(३) आवश्यकसूत्र- नियुक्ति का हिस्सा सामायिक अध्ययन निर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, मूपू (आभिणिबोहियनाणं सुयना), ६१११३(+)
(४) विशेषावश्यकभाष्य, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अध्य. प्रथम, गा. ३६०३, पद्य, मूपू., ( कयपवयणप्पणामो वोच्छं), ६१११३(+#)
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(५) विशेषावश्यकभाष्य-शिष्यहिता वृहट्टीका, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, सं. ग्रं. २८०००, वि. १९७५, गद्य, भूपू.. (श्रीसिद्धार्थनरेंद्र), ६१११३ (+)
,
"
(२) आवश्यक सूत्र- लघुवृत्ति #, आ. तिलकाचार्य, सं. ग्रं. १२३२५, वि. १२९६, गद्य, भूपू (देवः श्रीनाभिसूनु), ६१९०४(*)
.
(२) आवश्यकसूत्र - शिष्यहिता टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., ग्रं. २२०००, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र ), ६१९४१,
६१०८२ (#$)
(२) आवश्यकसूत्र-अवचूर्णि #, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., वि. १४४०, गद्य, मूपू., ( प्रेक्षावतां प्रवृत), ६१०१३ (+#$)
(२) आवश्यकसूत्र वालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू, नमो अ० इत्यादि एहनो) ५९८९३/०७)
"
(२) आवश्यकसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो० नमस्कार होवउ), ५९४५५ (+३), ६१०५५ (+), ६२०९५(+), ६२२९३(५), ५९८९३ (०३)
(२) चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, प्रा., सं., प+ग, मूपू., ( नमो अरिहंताणं नमो ), ६२७९३ (+)
(३) चैत्यवंदनसूत्र - ललितविस्तरा वृत्ति, आ. हरिभद्रसूरि सं. ग्रं. १५४५, गद्य, भूपू (प्रणम्य भुवनालोकं), ६२७९३(+)
"
(२) सकलकुशलवद्धि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., श्लो. १, पद्य, भूपू (सकलकुशलवल्ली), ६११३०-५ (+), ६२६३२.५(५०),
,
६११९५-१२(#)
,
(२) अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, म्पू, (आजुणा चौपहूर दिवसमाह), ५९६५७-६ (०३),
६००२७-४३(+), ६१९१७-७(+), ६२६३२-६(+#), ६२७७८-२ (+#), ६११९५-१३(#)
(२) आवश्यक सूत्र- श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - स्थानकवासी संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, मूपू, स्वा., ( नमो अरिहंताणं० तिखुत), ५९७८६(+१), ६२०८५ (+), ६२२९३(+), ६२८३५
(३) आवश्यक सूत्र- श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-स्थानकवासी वालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू, स्था. (अनुयोगद्वार मध्ये), ६२२९३(+)
"
(३) आवश्यक सूत्र- श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - स्थानकवासी-टवार्थ, रा. गद्य, मूपू स्था., (तीन बार जीमण दखणना),
६२०८५(+)
(३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र स्थानकवासी टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू, स्था., (नमस्कार हो कर्मरूप), ५९७८६ (+)
(२) आवश्यकसूत्र- पडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, म्पू, नमो अरिहंताणं नमो), ५९२७९+७), ६००५३)
יי
יי
(३) आवश्यकसूत्र- पडावश्यक सूत्र- बालावबोध, मा.गु., गद्य, भूपू (अरिहंतने नमस्कार), ६१०५५ (००)
षडावश्यकसूत्र
(+#)
"
(३) षडावश्यकसूत्र-टबार्थ + बालावबोध, मु. जिनविजय, मा.गु., वि. १७५१, गद्य, मूपू., (श्रीजसविजय चरणे नमः), ५९२७९(+$)
(३) षडावश्यकसूत्र- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., ( नमो अरिहंताणां नमो), ६००५३(+$)
(३) षडावश्यकसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (वीतराग१२ गुण विराजमा), ६००५३(०३)
(२) कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (कल्लाणकंदं पढमं), ६०९१४-३(+), ६१६९४-४(#)
(२) क्षेत्रदेवता स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. १, पद्य, भूपू (यस्याः क्षेत्र समाश), ६११९५-४(क)
"
(२) जगचिंतामणि सूत्र, संबद्ध, आ. गीतमस्वामी गणधर, प्रा., गा. ७, पण. म्पू. (जगचिंतामणी जगनाह), ६०३५७-२
,
४९३
(२) देववंदन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम दोय गाथारो नम), ६१७४४-२(+$)
(२) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र - तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, मूपू., (नमो अरिहंताणं), ६१२०३-१(+), ६१२३३-३(+$),
६१६२३(+०)
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(२) देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय, संबद्ध प्रा., मा.गु. सं., प+ग, भूपू (नमो अरिहंताणं नमो) ६०९१४-१(+), ६११७० (5)
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४९४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-अंचलगच्छीय, संबद्ध, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं पढम),
६११६२-१(+$) (२) देसावगासिक पच्चक्खाण, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (अहन्नं भंते तुम्हाणं), ५९६५७-२(+), ६११३०-१०(+), ६१५८२-२(+),
६११९५-२८(#) (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं० जयउ), ६००२७-३(+), ६२६५८-१(+),
६११९५-१(2) (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं), ५९४५५(+$), ५९६९५(+-5),
६१८८३(+) (३) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमद्वामेयमानम्य), ६१८८३(+$) (३) पौषधपारणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (सागरचंदो कामो), ६१६४५-३(+#), ६२६७०-४(#) (३) पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (करेमि भंते पोसह), ६१५७०-२(+#), ६१६४५-२(+#), ६२६७०-६(#) (२) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छाकारेण संदिसह), ६२३४२-२(+#) (२) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मुहपत्तिवंदणय), ६२३३१-२(+#), ६१२२३-२ (३) क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सर्वे यक्षांबिकाद्या), ६१०६०-३(+) (३) छींक विचार, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पाखी पडिकमणा करता), ६०९३६-३(+) (२) पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही पडिक), ५९६५७-१७(+), ६०६९८-२ (२) पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावहि चार नवकारनो), ६१७४४-१(+), ६२३३१-३(+#) (२) प्रतिक्रमण विधि*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीप्रवचनसारोद्धार), ६१६१९-१ (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (पाछिली रात्रइ शय्या), ६१५७६-२०(+#), ६११९५-८(2),
६१७४६(#$) (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह , संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ६१०९७-१(+#) (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ५९५९०-१३(+), ५९७०९(+#$),
६१२२८(+s), ६१२३५(+#$), ६२६७०-१(#), ६०९६३(१) (३) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (हे वीतरागदेव तुमे), ६१२३५(+#$) (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर*, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं० करेमि), ६१७१९(#s), ६०३६०(5), ६०९१८(5) (३) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीगुरुदेवजीकुं), ६१७१९(#$) (२) प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (उग्गए सूरे नमुक्कार), ५९५८९-१(+#$), ५९६५७-१(+), ६००२७-३७(+),
६१०९७-२९(+#), ६११३०-९(+), ६१२४८-२(+), ६१२७५ (+#), ६१५७०-६(+#), ६१६४५-१(+#), ६१९१७-५(+),
६२४२१-२०(+#), ६२६३२-५४(+#), ६०७००,५९७१२(#$), ६२६७०-७(#) (३) प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (सूर्यनइ उदये बै घटिक), ६०७००, ५९७१२(#$) (३) प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (दो चेव नमोक्कारे), ५९६३२-२(+$), ६१०९७-३०(+#),
६११३०-८(+), ६१९१७-४(+), ६२६३२-५७(+#) (४) प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पचखांण विधे करी), ५९६३२-२(+$) (२) मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तत्त्वदृष्टि सम्यक्त), ६११९५-१४(#) (२) मुखवस्त्रिका प्रतिलेखन गाथा, संबद्ध, प्रा., गा.७, पद्य, मूपू., (दिट्ठपडिलेह एगा नव), ६११३०-९५(+) (३) मुखवस्त्रिका प्रतिलेखन गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (साचवू सम्यक्तमोहनी), ६११३०-९५(+) (२) राईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), प्रतहीन. (३) भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (भरहेसर बाहुबली अभय), ६०९१४-२(+), ६१२४८-१(+$), ६१६९४-३(#),
६०३५७-१(६)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
(२) वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (वंदित्तु सव्वसिद्धे), ५९२९६-३ (+), ५९५८९-१२(+#), ५९७०१-१(+#$), ५९७१३-२(+), ५९७४९-४(+#), ६००२७-४२(+), ६१०४४-१(+), ६१०९७-३१(+#), ६११३०-८५ (+), ६१५९१-२(+), ६१७८३-१(+), ६१८२१(+), ६१८८६-२९(+), ६१९९७-६(+), ६२०७२-२ (+), ६२६३२-५८(+४) ६२७७८-१(००३) ६१८१३, ६२६७५, ६०७७७(४) ६१९९५-४०(५) ६१७६९-२०१, ६२७२३-२(४) ६१२६८(३) ६१७१४(३) ६०९१७-२२(-६) (३) वंदित्सूत्र - अर्थदीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि सं. अधि. ५. ग्रं. ६६४४ वि. १४९६, गद्य, मूपू (जयति सततोदयश्रीः), ६१७१४(३)
१
(३) दिसूत्र - टवार्थ* मा.गु., गद्य, मूपू (वंदितु क० वांदीने), ६१८२१(+), ६२७७८-१(+४७), ६०७७७(१)
"
1
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४९५
(३) सामायिकपारणसूत्र, हिस्सा, प्रा., मा.गु., गद्य, मृपू., (सामाइअवयजुत्तो जाव), ६२६७०-५ (१)
3
(२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, मूपु. ( णमो अरिहंताणं णमो ), ५९४७१(*), ५९७१३-१(०), ६१७७८(+#$), ६२९२३ (+#$), ६२४८९-१, ६२९२४(#$), ६०३५७-१२($)
(३) आवक प्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय-टवार्थ, मा.गु., गद्य, मृपू., (माहरउ नमस्कार अरहंतन), ६२९२३ (+*$)
(३) पौषध सज्झाय खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., गा. ३३, पद्य, मूपू. (जगचूडामणिभूओ उसभो), ५९२९६-६(०), ६०१२५-६८(०),
,
६१०९७-४६(+#), ६१८८६-३४ (+), ६१९१७-१२ (+), ६२६३२-६० (+#), ६११९५-४२(#)
(२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. सं., पग, मूपू, नमो अरिहंताणं० पंचिं), ६१०३५ (+), ६१०५५ (+), ६१२०३-२(+), ६१२३३-२(+३) ६१८७०, ५९५०१३)
(३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनई नमस्कार), ६१८७० (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (माहरउ नमस्कार अरिहंत), ६१०३५ (+#) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - पायचंदगच्छीय, संबद्ध, प्रा., सं., मा.गु., प+ग, मूपू., (णमो अरिहंताणं णमो ), प्रतहीन.
(३) श्रावकपाक्षिक अतिचार- पायचंदगच्छीय, संबद्ध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १५५, पद्य, भूपू (नाणे दंसण चरणे जाण),
"
६२४६५, ६२१७४ ($)
(२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह (वे. पू. पू.), संबद्ध, प्रा. मा.गु., पग, मूपू., नमो अरिहं० सव्वसाहूण), ६०३९५(+), ६२६७९-१(+), ६२८३६(७), ६२९३७/**३), ५९६४६, ६१७३४-१, ५९४४४(4), ६१५९९(5), ६२८०७(5)
(३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- वंदारू टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. २७२०, गद्य, मूपू., (वृंदारुवृंदारकवृंदवं), ५९८०८(+), ६०३९१+०७), ६१८५६-१(*)
(४) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वंदारू टीका का टबार्थ, मु. देवकुशल, मा.गु., वि. १७६१, गद्य, मूपू., (बालानां सुहितार्थाय०),
५९८०८(+)
(३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - टीका, सं., गद्य, मूपू., ( नमस्कारः अस्तु इति), ६२८३६ (+३)
(३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलुं सकल मंगलिकनुं), ५९४४४(#$)
(३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनइ नमस्कार हुआ), ६०३९५(+), ६२९३७(+०३), ५९६४६, ६२८०७, ५९४४४ (०३)
(३) श्रावकपाक्षिक अतिचार- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणंमि दंसणंमि०), ५९९६८ (+), ६००६३(+),
६००८०(+), ६०११२+०६), ६०१५४(+), ६२१८४(+३) ६२२५८ (+३), ६२३२१(+०), ६२३३१-१(+), ६२३४२-१(+), ५९८५१, ५९८७३, ६०७३२, ६२४६८, ५९९७२०) ६२३४७) ६०३५७-८३) ६२३२२६)
(२) संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा. सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (संसारदावानलदाहनीरं), ६०९१४-४(+), ६१२०३-५ (+), ६१५७६-५(१०), ६१६९४-७(१
(२) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, भूपू, णमो अरिहंताणं० करेमि ), ६२७६२(+३), ६२७८३+३) ६२९०१+७), ६२९३९(+)
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(३) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र- खरतरगच्छीय का टवार्थ, मा.गु., गद्य, मृपू., (नमस्कार हुवउ अर्हत) ६२७८३(+३), ६२९३९ (+)
(२) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, मूपू., ( नमो अरिहंताणं नमो), ६२०९५(+),
६१६९४-१(१६)
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४९६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं० आवस्स), ५९७०८(+#s), ६२६७१(+s), ५९५०६,
५९५८६(#), ५९८५८(5) (३) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो० नमस्कार होवउ), ५९५८६(#) (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ५९२९६-१(+$), ६१२१६(+),
६१०३६(#), ६१६०९(2) (३) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टीका, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिनवरेंद्रान्), ६१६०९(#) (३) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू, (आवसही कहेतउसावधान), ६१२१६(+) (३) क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., आला. ४, गद्य, मूपू., (इच्छामि खमासमणो पियं), ५९५१०-२(+#), ५९६०२-२(+), ५९६७०-२(+),
६०९१५-२(+), ६०९३६-२(+), ६१००४-२(+), ६१०९७-४४(+#), ६११३०-९३(+), ६१५८१-२(+), ६२७५९-२(+),
६२८१५-२(+), ६००११-३, ६१०१८-२,६१५९३-२,५९४६५-२(#) (४) क्षामणकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (यथा राजानं मंगलपाठका),६१०१८-२ (४) क्षामणकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छु छु वाछु), ६१००४-२(+) (३) पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., सू. २१, गद्य, मूपू., (करेमि भंते० चत्तारि०), ५९५८९-१४(+#), ५९५९०-१७(+$), ५९६८८(+),
६००२७-४०(+), ६०७०७(+#$), ६१०९७-२८(+#), ६११३०-८३(+), ६१७१७-१(+), ६१८८६-३१(+), ६१९१७-१४(+),
६२१४१-२६(+), ६२८३०(+$), ६००११-१, ६०४४०-१, ६१०१९-१, ६१६७६, ६१२५०(#), ६०४४३(5) (४) पगामसज्झायसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (निवर्तवा वांछुउ प्रक), ६२१४१-२६(+) । (४) पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., वि. १७४९, गद्य, मूपू., (एँ नत्वा पार्श्वनाथ), ६१०१९-१, ६१६७६ (४) पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, पंन्या. सुमतिविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीमहावीरं), ६२८३०(+$) (४) पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चार बोल तेम मंगलिक), ५९६८८(+), ६१७१७-१(+), ६०४४३($) (३) पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., मूपू., (तित्थंकरे य तित्थे), ५९५१०-१(+#), ५९६०२-१(+),५९६५०(+#), ५९६७०-१(+),
५९६७६-१(+), ६०४७७(+#S), ६०८८९(+#), ६०९१५-१(+), ६०९३६-१(+), ६१००४-१(+), ६१०६७(+), ६१०९७-४३(+#), ६१२१२(+), ६१२१७-१(+), ६१५८१-१(+), ६१५८२-१(+), ६१५९०(+), ६२७१३(+), ६२७५९-१(+), ६२८१५-१(+), ६२९०३(+$), ६०४९९, ६१०१८-१, ६१२२३-१, ६१५९३-१, ५९२६९(#), ५९४६५-१(#), ६१६१४-१(#), ५९३०८-१(s),
५९४८८(६), ६११५२(६), ६१५७८($) (४) पाक्षिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (तीर्थंकरांश्चशब्दादत), ६१०१८-१ (४) पाक्षिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (तीर्थं वक्ष्यमाण), ६०४२९(+#) (४) पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थंकर प्रते वांदउ), ६१००४-१(+), ६१०६७(+), ६२७१३(+), ६११५२($) (४) पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थंकर सिद्ध तीर्थ), ५९४८८(६) (३) गुरुवंदन विधि-प्रातःकालीन, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही पडिकम), ६२३३१-५(+#) (३) साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सयणासणन्नपाणे), ६११३०-६(+), ६१५७०-९(+#), ६१९१७-२(+) (३) साधुदेवसिप्रतिक्रमणअतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ठाणे कमणे चंकमणे), ६१५७०-७(+#) (३) साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणम्मि दसणम्मि०), ५९५१०-३(+#), ६२०७२-३(+),
६००११-२, ६२७०७ (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., प+ग., मूपू., स्था., (नमो अरिहताणं० तिखूत), ६१६६७-३(+$) (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ६१५७०-१(+#) (३) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, हिस्सा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (चउक्कसायपडिमलुल्लूरण), ६११३०-३(+), ६१५७०-३(+#), ६१९१७-९४(+),
६२६३२-३(+#), ६११९५-१०(#) (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं णमो), ६०३६२-१(+),
६०३६९(+#), ६०९४०-१(+), ६११३०-१(+), ६१५६३(+$), ६१५७६-१(+#$), ६१६७९(+$), ६१८८६-१(+), ६१९१७-१(+), ६२६३२-१(+#), ६१७६९-१(#), ६०९१७-१(-)
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४९७
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५ (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., स्था., (नमो अरिहंताणं०), ५९५४९(+),
५९६३२-१(+), ६१८६०(+) (३) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., स्था., (नमस्कार हो कर्मरूप), ५९५४९(+),
५९६३२-१(+), ६१८६०(+) (२) सामायिक ३२ दूषण, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम १० मन संबंधी), ६११३०-९४(+) आशीर्वचन पाठ, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (नक्षत्राक्षतपूरित), ५९८०४-३(+) आषाढकार्तिकफाल्गुनचातुर्मासिक व्याख्यान, सं., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वसुखमागार), ५९२७३(+) आस्रवत्रिभंगी, मु. श्रुतमुनि, प्रा., अ. ३, गा. ६२, वि. १४वी, पद्य, दि., (पणमिय सुरिंदपूजिय), ६२३१२-१(5) इंद्राक्षी स्तोत्र-रुद्रयामले, सं., श्लो. २२, पद्य, वै., (ॐ अस्य श्रीइंद्राक्ष), ६१२७१-७(4) इंद्रियपराजयशतक, प्रा., गा. १००, पद्य, मूपू., (सुच्चिअसूरो सो), ५९७०७(+), ६०४३७-१(+#) (२) इंद्रियपराजयशतक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तेहिज शूरा तेहिज), ६०४३७-१(+#) (२) इंद्रियपराजयशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (तेहिज सूर तेहिज), ५९७०७(+) इरियावही कुलक, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (चउदस पय अडचत्ता तिगह), ६१८०४-७(#) (२) इरियावही कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चौदह नारकी ४८ तीर्यच), ६१८०४-७(#) उक्तिरत्नाकर, उपा. साधुसुंदर, प्रा.,सं., गद्य, जै., (स्मृत्वा श्रीभारती), ६२९१६(+$) उत्तमकुमार चरित्र, मु. चारुचंद्र, सं., श्लो. ५७२, पद्य, मूपू., (वंदित्वा स्वगुरुन), ६१८७३(+$), ६२८०१(+), ६२९३६(+), ६०८९९,
६१६८९ (२) उत्तमकुमार चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पोताना गुरुनें वांदी), ६१८७३(+$) उत्तमकुमार चरित्र, सं., गद्य, मूपू., (भक्त्या वस्त्राणि), ५९४४५(+#) (२) उत्तमकुमार चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भक्ते करीने निर्दोष), ५९४४५(+#) उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., अध्य. ३६, ग्रं. २०००, प+ग., मूपू., (संजोगाविप्पमुक्कस्स), ५९२३८(+#$), ५९२८९(+$),
५९२९९(+$), ५९४२८(+$), ५९४५२-१(+#), ५९४७७(+), ५९४७८(+), ५९४७९(+$), ५९४८०(+), ५९४८२(+), ५९४९६(+$), ५९४९९(+5), ५९५५०(+$), ५९५५५(+$), ५९६६६(+#$), ५९६९७(+$), ५९७२३(+#$), ५९७२६(+$), ५९७२७३(+), ५९७५१(+$), ५९७६९(+$), ५९७७४(+), ५९७९०(+), ५९८०७-१(+#), ५९८०९(+#), ५९८१०(+#$), ५९८१२(+$), ५९८४१(+$), ६०१२७(+#$), ६०३८३(+#$), ६०४९५(+$), ६०६९४(+#$), ६०९५५ (+#$), ६०९६९(+$), ६०९७५(+$), ६०९८४(+5), ६१०२०(+#s), ६१०६३(+#$), ६१०७५(+$), ६१०९३(+), ६११२०(+#$), ६११७३(+), ६११८३(+), ६१२०४+), ६१२२५(+$), ६१५७७+#), ६१६१७(+#$), ६१६६७-१(+$), ६१७४२(+#$), ६१८३८(+), ६१८६६(+), ६१९०९(+$), ६१९३१(+#$), ६१९३३(+#$), ६२६२७(+$), ६२६८७(+$), ६२६८८+), ६२७०३(+#$), ६२७१८+), ६२७५८(+$), ६२७६३(+$), ६२७८४(+$), ६२८००+), ६२८२०(+६), ६२८३७(+$), ६२८५४(+६), ६११४५, ६१२५९, ६१८५७, ५९७०५, ६०९५३, ६११७२-४, ६२६६६-५, ५९६३०(#), ६०४६०(#), ६१००६(#$), ६१६०८), ६१७२१(#$), ५९६१२(5),
६०३८२(६), ६०९६१(६), ६१६८३(७), ६१७५९(६), ६२७२८($), ६२७४६($) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., अध्य. ३६, गा. ६०७, पद्य, मूपू., (नाम ठवणादविए), प्रतहीन. (३) उत्तराध्ययनसूत्र-नियुक्ति की शिष्यहिताबृहद्वृत्ति#, आ. शांतिसूरि, सं., अध्य. ३६, गद्य, मूपू., (शिवदाः संतु तीर्थेशा),
६१७५९(६) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टीका*, सं., गद्य, मूपू., (--), ५९६६६(+#$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-दीपिका टीका, आ. जयकीर्तिसूरि, सं., ग्रं. ८६७०, वि. १५वी, गद्य, मूपू., (श्रीउत्तराध्ययनस्य), ६२८२३(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, मूपू, (भिक्षो विनयं प्रादुष), ६२७४६($) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-शिष्यहिता बृहद्वृत्ति #, आ. शांतिसूरि, सं., ग्रं. १६०००, गद्य, मूपू., (शिवदाः संतु तीर्थेशा), ६१७५९($) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं., ग्रं. १२०००, वि. ११२९, गद्य, मूपू., (प्रणम्य विघ्नसंघात),
६२८००(+)
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४९८
संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (३) उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका का हिस्सा सनत्कुमारचक्री चरित्र, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं., वि. ११२९, गद्य, मूपू.,
(कुरुजंगले देशे हस्ति), ६२७४४(+#) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सूत्रार्थदीपिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., ग्रं. १५३००, वि. १८पू, गद्य, मूपू., (अहँतो ज्ञानभाजः),
६११२०(+#s), ६१९३३(+#$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-पर्याय टिप्पण, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५९२३८(+#$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसारतणा संबंधथी), ६२६२७(+$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, मु. रत्नसिंह-शिष्य, मा.गु., गद्य, पू., (श्रीमत्पार्श्वजिन), ६०९६१(६) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (उत्तराध्ययननो अर्थ), ५९८०९(+#) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानजिनं नत्वा), ६१०९३(+), ६११७३(+), ६१८३८(+), ६२६२७(+$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (संयोग बे प्रकारे), ५९२८९(+$), ५९४२८(+$), ५९४५२-१(+#), ५९४७८+),
५९४७९(+$), ५९४८०(+), ५९४८२(+), ५९४९९(+६), ५९६९७(+$), ५९७२३(+#$), ५९८१२(+$), ६०३८३(+#$), ६०६९४(+#$), ६०९५५(+#s), ६०९६९(+$), ६०९८४(+$), ६१०२०(+#$), ६१०६३(+#$), ६१०७५ (+s), ६१२०४+), ६१२२५(+६), ६१६१७(+#S), ६१७४२(+#s), ६१८६६(+), ६१९३१(+#s), ६२६८७(+5), ६२६८८(+), ६२७५८(+s),
६२७८४(+$), ६२८३७(+$), ६२८५४(+$), ६१८५७, ६१७२१(#$), ५९६१२($), ६२७२८($) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा *, मा.गु., गद्य, मूपू., (उत्तराध्ययनो स्यु), ५९७५१(+$), ५९८१०(+#$), ६२८२०(+$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा संग्रह, मु. पार्श्वचंद्रसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (पूर्वसंजोग मातापिता), ५९५५०(+$),
५९७७४(+), ५९८४१(+$), ६१६६७-१(+$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानजिनं नत्वा०), ५९७९०(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ + कथा संग्रह , मा.गु., गद्य, मूपू., (संजोग बि प्रकारे), ५९२९९(+5), ५९७६९(+६), ५९८०७-१(+#),
६१९०९(+$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह*, मा.गु., कथा. ४, गद्य, मूपू., (एक आचार्यनइं एक चेलो), ५९५५०(+s), ५९६९७(+$),
५९७९०(+), ६०१२७(+#$), ६१८६६(+), ६२७२८(), ६२७४६() (२) उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह , सं., पद्य, मूपू., (एकस्य आचार्यस्य), ६२६८७(+$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ३६, हिस्सा, प्रा., गा. २७३, पद्य, मूपू., (जीवाजीवविभत्तिं सुणे), ५९५१८+#) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा नमिप्रव्रज्याध्ययन ९, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., गा. ६२, पद्य, मूपू., (चइऊण देवलोगाओ उवयन्न),
६०००७-१(-2) (२) उत्तराध्ययनसूत्र माहात्म्यगर्भित गाथासंग्रह, संबद्ध, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (जे करि भव सिद्धिया), ५९८०७-२(+#) उपदेशकंदली, श्राव. आसड, प्रा., विश्रा. १३, पद्य, मूपू., (तिहुयणमंगलतिलयं कय), ६१९०७ (२) उपदेशकंदली-वृत्ति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., ग्रं. ७६००, गद्य, मूपू., (यन्नाभिनासिकभूदृगल), ६१९०७ उपदेशचिंतामणि, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., अ. ४ भाग, गा. ५४०, पद्य, मूपू., (तित्थयरे भयवंते परमग), ६०९२१(+$) (२) उपदेशचिंतामणि-स्वोपज्ञ टीका, आ. जयशेखरसूरि, सं., ग्रं. १२०६४, वि. १४३६, गद्य, मूपू., (प्राचीमेकां पुनानामि),
६०९२१(+$) उपदेशतरंगिणी, ग. रत्नमंदिरगणि, सं.,त. ५, ग्रं. ३३००, पद्य, म्पू., (श्रीनाभेयः स वो देया), ५९२८२(+$), ६१०७९(+),
६१९३६(+#$) (२) उपदेशतरंगिणी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूर्यमंडनपार्श्व), ६१९३६(+#$) उपदेशप्रासाद, आ. लक्ष्मीसूरि, सं., स्तंभ. २४ व्याख्यान३६१, वि. १८४३, प+ग., मूपू., (स्वस्ति श्रीदो नाभि), ६२०६३(+),
६१७८७($) (२) उपदेशप्रासाद-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६२०६३(+), ६१७८७(६) उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., गा. ५४४, पद्य, स्पू., (नमिऊण जिणवरिंदे इंद), ५९२५५(+), ५९२६५(+), ५९२७७(+),
५९२८५ (+$), ५९६९४(+$), ५९७९८(+),५९८०३(+), ६११२९(+#$), ६१६६६(+), ६१९१०(+), ६२६८४(+), ६०७३९
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
(२) उपदेशमाला- दोघट्टीविशेषवृत्ति, आ. रत्नप्रभसूरि प्रा. सं. ग्रं. ११८२९, वि. १२३८, गद्य, भूपू (वस्वारघट्टस्य घनोपदे),
"
५९२७७(+)
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(२) उपदेशमाला-वृत्ति, ग. रामविजय, सं., ग्रं. ७६००, वि. १७८१, गद्य, मूपू., (श्रेयस्करं कामितदान), ५९७९८(+)
(२) उपदेशमाला - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू (नत्वा जिनवरेंद्रान), ५९२५५ (+)
""
(२) उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., वि. १७१३, गद्य, मूपू., (नमस्कार करीनइ जिण), ५९८०३ (+), ६०७३९
(२) उपदेशमाला-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीने तीर्थं), ६११२९(+#$), ६१९१०(+)
(२) उपदेशमाला - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (धीरं वीरं महावीरं), ५९८०३(+)
(२) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिऊण कही नमीनइ), ५९२८५ (+३), ५९६९४(+४)
"
(२) उपदेशमाला- वालावबोध, मु. रत्नचरित्र - शिष्य, मा.गु.. गद्य, म्पू, (स्तुत्वा जिनं च सुगु), ६१६६६ (०) (२) उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे श्रीउपदेशमाला), ५९२८५ (+$), ६१९१० (+)
(२) उपदेशमाला - कथा संग्रह, सं., गद्य, भूपू (प्रणम्य गुरुपादाब्ज), ५९७९८(+)
(२) उपदेशमाला - वर्णमालिका, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू (आदौ षट्शून्येषु), ५९६०८-२(०३)
१
(२) उपदेशमाला-श्लोकानुक्रमणिका, प्रा., गद्य, मूपू., (नमिऊण), ५९६०८-१(+)
उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि प्रा. गा. २६, पद्य, भूपू (उवएसरयणकोसं नासिअ), ५९५९८-५ (+)
,
भूपू
י:
उपदेश संग्रह, सं., श्लो. ४३९, पद्य,
(प्रणम्य पुण्यपद्या), ६२७४१ (+5)
उपधानतप विधि, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (पहिलं नवकारनुं), ६०९५६-१(+), ६१६३० (+), ६०४२२-१
"
"
"
उपधानतप विधि, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, मूपू (प्रथम शुभदिवसई पोषध), ६२४९४
"
उपधानादि विधि संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, मूपू. (पहिलइ नउकारनइ उपधानड़), ५९८८५(क)
उपयोगशून्यक्रियाविषयक कथा, सं., गद्य, म्पू, (दानं ध्यानं मौन शास), ६१७३५-९
"
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उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. अध्य. १० नं. ८१२, प+ग. मूपू., (तेणं० चंपा नाम नयरी), ५९४३४(+), ५९४३५ (०७),
"
५९७६३(+), ६०४२१(+#$), ६०४८३ (+), ६०८८२(+#5), ६०९२९(+#$), ६११२३(+#), ६११८२ (+#), ६१६७० (+),
६१६८२ (+०६), ६१७६६ (+), ६२९१०-१+०, ६१२३७/३), ६२६५१(३)
(२) उपासकदशांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि, सं., अध्य. १०, वि. १११७, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ५९४३४(+), ५९७१० (+४३), ६२६५१(३)
(२) उवसग्गहर स्तोत्र- गाधा ५ की टीका, सं., गद्य, मूपू (अहं श्रीपाच) ६२६६१-२ (०)
""
४९९
(२) उपासकदशांगसूत्र- विषमस्थल टिप्पण, मा.गु., गद्य, भूपू (उपासगदसा० सातमा अंग), ६०४२१ (+5)
(२) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मा.गु., वि. १६९३, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ५९७६३(+), ६११२३(+#), ६१६८२ (+), ६२९१०-१(+४)
(२) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ५९४३५ (+$), ६०४८३ (+), ६०९२९(+#$), ६११८२(+#), ६१६७० (+), ६१७६६ (+)
उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा १३, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू (उवसग्गहरं पासं० ॐ), प्रतहीन.
(२) भयहर स्तोत्र मंत्राम्नाय, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (श्रीस्तंभन स्तंभन ), ६०९३४-३(+)
उवसगहर स्तोत्र - गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू (उवसगहरं पासं पासं), ६०९७१(+), ६१९९४-३(+३), ५९६८०-१(६)
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(२) उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ५ की पार्श्वदेवीय टीका, ग. द्विजपार्श्वदेव, सं., गद्य, मूपू. (अर्ह आवश्यकादि), ६०९७१(+)
"
(२) उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ५ लघुवृत्ति, आ. पूर्णचंद्राचार्य, सं. वि. १२वी, गद्य, मृपू (नमस्कृत्य परंब्रह्म), ५९७३६ (३) उवसग्गाहर स्तोत्र - गाथा ७, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ०७, पद्य, भूपू ( उवसग्गहरं पासं०० 3 ) ६१७९६-९(०)
"
उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ९, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ९, पद्य, मूपू., ( उवसग्गहरं पासं पासं०), ५९५७८-३०(+), ६१०१५-२६(-),
६२६६३-८)
ऋषिदत्तासती चरित्र, सं., गद्य, भूपू दुग्गहपहपत्थानं, अब), ६१७६७-३०)
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५०० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
ऋषिपुत्रिकाध्ययन, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. २०१, पद्य, मूपू., (सो जयउ जएउ समो अणंत), ६०४१२(+#) (२) ऋषिपुत्रिकाध्ययन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जयवंत होवो २ वृषभ), ६०४१२(+#) ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., गा. २०९, ग्रं. २५९, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (भत्तिब्भरनमिरसुरवर), ५९२८१-१(+#),
५९४९५(+#$), ६२७३९-१(+), ६२८६५(+$) (२) ऋषिमंडल प्रकरण-कथार्णवांक वृत्ति, ग. पद्ममंदिर, सं., ग्रं. ७२६१, वि. १५५३, गद्य, मूपू., (जयाय जगतामीशो युगादी),
६२८५३(+s) (२) ऋषिमंडल प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भक्ति घणी करी नम्या), ५९२८१-१(+#), ५९४९५(+#$) (२) ऋषिमंडल प्रकरण-कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (भरत ऋषीश्वरनो संबंध), ५९२८१-१(+#), ५९४९५ (+#$) (२) ऋषिमंडल प्रकरण-बीजक, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (१आदीश्वर दृ० २ महा), ५९२८१-२(+#) ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., श्लो. ९२, ग्रं. १५०, पद्य, मूपू., (आद्यताक्षरसंलक्ष्य), ६०१७७-२(+$),
६११६७-४(+#), ६१६५९-३(+#), ६१८७६-५०(+#), ६२२७८-१(+), ६०९७४, ६१७०८, ५९५१६(#) ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., श्लो. ६३, पद्य, मूपू., (आद्यताक्षरसंलक्ष्य), ५९५७८-३(+), ६१०१५-२(-) (२) ऋषिमंडल स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आदिको अक्षर अंतको), ६१७०८ (२) ऋषिमंडल स्तोत्र पूजा, संबद्ध, ग. शिवचंद्र, मा.गु.,सं., ढा. २४, वि. १८७९, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीपारस विमल), ५९९१३-१(+) ऋषिमंडल स्तोत्र, सं., श्लो. ८४, पद्य, दि., (आद्यंताक्षरसंलक्ष्यम), ६२६३२-७७(+#) एकलविहारी ८ बोल, प्रा., पद्य, श्वे., (अट्ठहिं ठाणेहि), ५९२७०-३(+$) एकाग्रचित्ततापस कथा, सं., गद्य, श्वे., (ध्रुवमेकाग्रया भक्त), ६१७३५-८ एकीभाव स्तोत्र, आ. वादिराजसूरि, सं., श्लो. २६, ई. ११वी, पद्य, दि., (एकीभावंगत इव मया), ६१०८९-५ (२) एकीभाव स्तोत्र-(पु.हि.)भाषाटीका, श्राव. अखैराज श्रीमाल, पुहि., गद्य, दि., (यह जु अष्टप्रकार), ६१०८९-५
ओघनियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ११६४, पद्य, मूपू., (अरहते वंदित्ता चउदस), ६१७७४, ६१०८१(६) (२) ओघनियुक्ति-अवचूर्णि #, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., ग्रं. ३३००, वि. १४३९, गद्य, मूपू., (प्रक्रांतोयमावश्यकान), ६१०८१ औपदेशिक कवित्त संग्रह, पुहि.,सं., दोहा. ३, पद्य, श्वे., (पत्तनप्रदेशे कुमार), ६०७९८-५६ औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा., गा. ३२, पद्य, मूपू., (धणमिव चिंतइ धम्म), ६२१४१-५(+) औपदेशिक पद-असारसंसार, मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., (चलं चितं चलं वित), ६२३१८-३(+) औपदेशिक व्याख्यान, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (धर्मः कामगवी यदीय), ५९८३८-१(+), ६०४३१(+#$) औपदेशिक श्लोक संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ६१, पद्य, श्वे., (धर्मे रागः श्रुतौ), ६०७९८-४५, ६०३५७-९(5) औपदेशिक सज्झाय-मूर्खलक्षण, सं., श्लो. २१, पद्य, श्वे., (मूर्खस्य पंच विघ्नान), ६०७९८-४४ औपपातिकसूत्र, प्रा., सू. ४३, ग्रं. १६००, पद्य, मूपू., (तेणं कालेण० चंपा०), ५९२९१(+#$), ५९७४२(+$), ६०३८०(+$),
६०५०१(+#$), ६०९०२(+$), ६१०८८(+#), ६११२७(+), ६११३२(+#), ६१८५४(+), ६१९१८(+), ५९६३५(#$), ६२८६१(६) (२) औपपातिकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., ग्रं. ३१२५, गद्य, पू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ६०३८०(+s), ६१०८८(+#) (२) औपपातिकसूत्र-टिप्पण", मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (--), ५९२९१(+#$), ६०५०१(+#$) (२) औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदित्वा श्रीजिन), ६११२७(+), ६११३२(+#) (२) औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. राजचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदित्वा श्रीजिन), ६१९१८(+) (२) औपपातिकसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (चउथा आरानइ विषइ वरस), ५९७४२(+$), ६१८५४(+), ५९६३५(#$) (२) औपपातिकसूत्र-हिस्सा ध्यानसूत्र, प्रा., पद्य, मूपू., (अट्टे झाणे चउविहे), ६२७६९(+$) (३) औपपातिकसूत्र-हिस्सा ध्यानसूत्र का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ध्यानना च्यार भेद), ६२७६९(+$) औषधमंत्रादि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (--), ५९५९६-४(+) औषधवैद्यक संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, (अनार दाणा टां.८०), ६०३०७-२(+), ६२६१४-२(+), ६२८८९-२(+) औष्ट्रिकमतोत्सूत्रोद्घाटन कुलक, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., गा. १८, पद्य, मूपू., ते., (पणमिय वीरजिणंद सुरि), ६०८२२(+$),
६११८५
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
५०१ (२) धर्मसागरोपाध्यायोपज्ञ कुलक-टीका, पं. गुणविनय गणि, सं., वि. १६६५, गद्य, मूपू., ते., (प्रणम्य रम्यशर्माण), ६०८२२(+S),
६११८५ कच्छपशृगाली कथा-बुद्धिविषये, पुहिं.,सं., गद्य, श्वे., (बुद्ध्या सिद्ध्यति), ६१७३५-१४ कथा संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (पश्चिम विदेहे गधिला), ६१६२९ कथा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (हिवे छ आरानु नाम), ६२२६५(+) कनकरथराजा कथा-सुपात्रदानविषये, सं., गद्य, मूपू., (अत्रैव भरते वैताढ्य), ६१७६७-१०(१) कमलश्रेष्ठि कथा-मृषावाद, सं., गद्य, श्वे., (असत्येन निहत्यंते), ६१७३५-११ कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., श्लो. १७९, पद्य, मूपू., (कर्पूरप्रकरः शमामृत), ५९६४२(+$), ६०४३९-१(+#$), ६२६९८(+#$), ६२८३४(+) (२) कर्पूरप्रकर-टीका, आ. जिनसागरसूरि, सं., वि. १५५१, गद्य, मूपू., (व्याख्यायां धर्म), ५९६४२(+$) (२) कर्पूरप्रकर-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (व्याख्या लक्ष्यो), ६२६९८(+#$) (२) कर्पूरप्रकर-कथा संग्रह, सं., कथा. १५७, गद्य, मूपू., (श्रीवर्धमानम्य), ६२६९८(+#$) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ६०, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (सिरिवीरजिणं वंदिय), ५९४६१-१(+),
५९५७९-१(+), ५९५८२-१(+$), ५९६६०-१(+), ५९७४९-१२(+#), ५९७८४-१(+#), ६११४२-१(+#), ६१६०७(+$), ६१८०८-१(+), ६१८९३-१(+), ६१९१७-८५(+), ६२६४८(+#), ६२९३८-१(+), ६१०८५-१, ६१२६२-१, ६१७०१-१(#$),
६०७२९-१(६) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रियाष्टप्रतिहार्य), ५९७८४-१(+#) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रेयोमार्गस्य वक्ता), ६१०८५-१ (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., वि. १७वी, गद्य, मूपू., (शारदां वरदां स्मृत्व), ६११४२-१(+#) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिन वांदी), ६२६४८(+#), ६१७०१-१(#$) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, रा., गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिन प्रते), ६२४०६-१(+), ६२३०२(#$) कर्मविपाक प्राचीन कर्मग्रंथ, ऋ. गर्ग महर्षि, प्रा., गा. १६८, पद्य, मूपू., (ववगयकम्मकलंक वीर), ६२८८१(६) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (तह थुणिमो वीरजिण), ५९४६१-२(+),
५९५७९-२(+), ५९५८२-२(+), ५९६५९-१(+5), ५९६६०-२(+), ५९७४९-१३(+#$), ५९७८४-२(+#), ६०१०६(+), ६११४२-२(+#), ६१५७३-१(+), ६१८०८-२(+), ६१८९३-२(+), ६१९१७-८६(+), ६२९३८-२(+), ६०७२९-२, ६१०८५-२,
६१२६२-२, ६१७०१-२(#) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (तथा वीरजिनं स्तुम), ५९७८४-२(+#) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीरं बोधनिधिं धीर), ६१०८५-२ (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., गद्य, मपू., (तिम हुंस्तबुंछु), ६११४२-२(+#) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तह क० तिम हवे बिजा), ६०१०६(+) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बंध ते स्यु कहीयइ), ६१५७३-१(+), ६१७०१-२(#$) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., यं., मूपू., (बंध प्रकृतिओ छे), ६२४०६-२(+$) कलंकाष्टक, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (त्रैलोक्यं सकल), ५९५७८-२६(+) कलियुगाष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (तु-रातेपि), ६०७९८-४६ कल्पद्रुम मंत्राम्नाय, सं., गद्य, मूपू., (कल्पद्रुम मंत्ररुचेव), ६०९३४-४(+)
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५०२
संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., व्याख. ९, ग्रं. १२१६, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० समणे), ५९२७८(+#$), ५९२८०(+),
५९२८३(+), ५९४८४(+#$), ५९५१७(+$), ५९५२०(+$), ५९५५४(+#), ५९६६२(+), ५९७४८(+#$), ५९७६१(+#$), ५९७६६(+$), ५९७७३+#), ५९७८८(+), ५९७९१(+#$), ५९७९३(+#), ५९७९४(+#$), ५९७९६(+), ५९७९७(+#), ५९८००(+), ५९८०२(+#), ५९८०४-१(+), ५९८१५(+$), ५९९०४(+$), ५९९०६(+$), ५९९३६(+#$), ६०१८२(+$), ६०३९३(+$), ६०४४९(+), ६०४५६(+), ६०६९७(+), ६०७२२(+#$), ६०७२८-२(+#$), ६०७६६(+5), ६०८९०(+5), ६०९९२(+६), ६०९९७(+S), ६१०५७(+), ६१०५९+#), ६१०६८(+5), ६१०७०(+), ६१०७४(+६), ६१०८६(+#s), ६१०९०(+#$), ६१०९६(+#), ६११००(+), ६१११२(+#$), ६११२१(+$), ६११२४+#), ६११३१-१(+), ६११३९(+#), ६११४४(+#$), ६११४८(+#), ६११५९(+$), ६११८१(+$), ६१७२४(+$), ६१७५८(+), ६१७७१(+$), ६१८१२(+$), ६१८७१(+), ६१८८२(+#), ६१८८७(+), ६१८९०(+-$), ६१९०३(+#), ६१९०८(+#$), ६१९१२(+), ६१९१४(+), ६१९१६(+), ६१९२४(+#), ६१९२८(+#$), ६१९४४(+s), ६२१६०(+#), ६२४०१(+), ६२६८५(+#), ६२६९२(+$), ६२६९३(+s), ६२७४२(+9), ६२७८१(+s), ६२९०२(+#$), ६०७३८, ६१०५६, ६११२८, ६१७५६, ६१८४०, ६१९२६, ६११५१, ६२८०९, ५९५६६(#$), ५९७८१(#), ६०३८९(#), ६१०७२(#s), ६११२६(#$), ६१८०३(#$), ६१८४१(#$), ६१८४९(#s), ६१८८९(#$), ६१९११(#$), ६१९१९-२(#), ६१९३९(#$), ६२६२४(#), ६२७०२(#), ५९२४३(७), ५९२५०(६), ५९४४०($), ५९५७३($), ५९६००(5), ५९६४३(s), ५९६७१(६), ५९६९९(5), ५९७७५(६), ५९७८५(६), ६००६५(), ६०३६४(६), ६०५०३($), ६०९४३($), ६१०६९(६),
६११८६(s), ६१५६६(s), ६१६७४(६), ६१७२९($), ६१७६२(६), ६१८८४(६), ६१८८५(६), ६२८०२(७), ६२८९७($) (२) कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., ग्रं. ५२१६, वि. १६२८, गद्य, मूपू., (प्रणम्य प्रणताशेष),
५९६९९(६) (२) कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., ग्रं. ४१०९, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानस्य), ५९७४८(+#$),
५९७९१(+#$), ५९८००(+$), ५९८०४-१(+), ६०४४९(+), ६१०६८(+$), ६११२४(+#s), ६१९१६(+), ६१९२८(+#s), ६११५१,
६१५६६($) (२) कल्पसूत्र-कल्पमंजरी टीका, मु. रत्नसार, सं., गद्य, मूपू., (श्रीनाभेयजिनेश्वरोत), ६१७६२(5) (२) कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., ग्रं. ७७००, वि. १६८५, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमं ज्योतिः), ६१२३०(+),
६१६८८+), ६१९२३(+), ६२६९३(+$) (२) कल्पसूत्र-टीका, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमश्रेयस्कर), ६१६८४(+) (२) कल्पसूत्र-टीका *, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य प्रणताशेष), ६०९४२(+$), ६२९०२(+#$), ६१८१४(#$) (२) कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, मु. छत्रसौभाग्य, सं., अ. सामाचारी अध्ययन, गद्य, मूपू., (--), ६१७८४(+$) (२) कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय, सं., ग्रं. ६५८०, वि. १६९६, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमश्रेयस्कर), ५९७७३(+#),
६१९१२(+), ६१९४३(+), ६१९२६, ६०७३८(5) (३) गणधरवाद-सुबोधिकाटीकागत गणधरसंवाद, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (केवलज्ञानोत्पन्ना), ५९७०६-३ (२) कल्पसूत्र-टिप्पण*, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (--), ६०३९३(+$) (२) कल्पसूत्र-टिप्पण*,सं., गद्य, मूपू., (--), ६२७८१(+) (२) कल्पसूत्र-कल्पदीपिका बालावबोध, मु. मयाचंद ऋषि, मा.गु., ग्रं. ३२९९, वि. १८१४, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमं ज्योति),
५९८१९(+) (२) कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. खीमाविजय, मा.गु., वि. १७०७, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ६१०५९(+#) (२) कल्पसूत्र-बालावबोध, उपा. रामविजय, मा.गु., वि. १८१९, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ५९८१५(+$) (२) कल्पसूत्र-बालावबोध, आ.शांतिसागरसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमं ज्योतिः), ६२४०+) (२) कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., वि. १६८०, गद्य, मूपू., (नमः श्रीवर्द्धमानाय), ६२८०९, ६२८८३ (२) कल्पसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमः श्रीवर्द्धमानाय), ६२४०१(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
५०३ (२) कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं), ५९७६६(+$), ५९९०४(+$), ५९९०६(+$), ५९९१०(+$),
५९९३६(+#$), ६०१८२(+$), ६१०५७(+), ६२१६८(+#S), ६२७४२(+$), ५९८५३, ६१८४९(#s), ५९२५०(६), ५९६७१(s),
६१६७४($), ६१८१६($), ६२२८५(६) (२) कल्पसूत्र-टबार्थ, मु. कल्याण शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य शिरसा वीरं), ५९७८१(#) (२) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनइ माहरो), ५९२७८(+#$), ५९२८०(+), ५९५२०(+$), ५९६६२(+),
५९७६६(+$), ५९७९३(+#), ५९७९४(+#$), ५९७९६(+), ५९७९७(+#), ५९८०२(+#), ६०४५६(+), ६०६९७(+), ६०७२२(+#$), ६०७२८-२(+#$), ६०९९२(+$), ६१०५९(+#), ६१०७०(+), ६१०७४(+$), ६१०८६(+#$), ६१०९०(+#$), ६१११२(+#$), ६११३१-१(+), ६११४४(+#s), ६११५९(+5), ६११८१(+), ६१८९०(+-5), ६१९०३(+#), ६१९०८(+#s), ६१९१४(+), ६१९२४+#), ६२१६०(+#), ६२७४२(+$), ६१०५६, ६१०७२(#$), ६११२६(#$), ६१९११(#$), ६१९१९-२(#), ६१९३९(#S), ५९२४३($), ५९५७३(), ५९६००(5), ५९६४३(७), ५९७७५ (७), ५९७८५ ($), ६००६५(६), ६०९४३($), ६१०६९(s),
६१६७४(६), ६२८०२(), ६२८९७(5) । (२) कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (सकलार्थसिद्धिजननी), ६०९९७(+s),
६१८४१(#$) (२) कल्पसूत्र-अनुवाद, पुहिं., गद्य, मूपू., (हे श्रोतागणो मेरी), ६००८४(#$) (२) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, स्पू., (सकलार्थसिद्धिजननी), ५९४४०($) (२) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, सं., गद्य, मूपू., (तत्रादौ श्रीऋषभदेव), ५९६६२(+), ६१६६५(+#$), ६१८९०(+-$) (२) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमः श्रीवर्द्धमानाय), ५९२७८(+#$), ५९५२०(+$), ५९७९३(+#).
५९७९४(+#$), ५९७९६(+), ५९७९७(+#), ५९८०२(+#), ६०४५६(+), ६०६९७(+), ६०८९०(+$), ६०९९२(+$), ६१०५७(+), ६१०७०(+), ६१०८६(+#$), ६१०९०(+#$), ६१११२(+#s), ६११३१-१(+), ६११४४(+#s), ६११५९(+5), ६११८१(+s), ६१९०३(+#), ६१९०८(+#s), ६१९१४(+), ६२१६०+#), ६२२३२(+$), ५९७८१(#), ६११२६(#$), ६१९११(#$),
६१९१९-२(#), ६१९३९(#$), ५९६४३($), ५९७७५(s), ५९७८५(), ६००६५(६), ६०९४३($), ६१०६९(), ६२८०२($) (२) कल्पसूत्र-कथा संग्रह *, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (बलदेव बलिदेव वासुदेव), ५९२८०(+$), ६०७२८-२(+#S) (२) कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., प+ग., मूपू., (तेणं कालेणं तेणं समय), प्रतहीन. (३) कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन-टीका, सं., गद्य, मूपू., (तस्मिन् काले तस्मिन्), ६०७१४($) (२) कल्पव्याख्यान पद्धति, संबद्ध, मु. कांतिविजय, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (धर्माधिकारि धर्मना), ६१९१९-१(#) (३) कल्पव्याख्यान पद्धति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुरिम कहेतांप्रथम), ६१९१९-१(#) (२) कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (नमः श्रीवर्धमानाय), ५९४४३(+$), ६२६७४-१(+) (२) कल्पसूत्र-मांडणी, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानं जिनं नत्व), ६०७२८-१(+#$) (२) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, उपा. भक्तिलाभ, सं., गद्य, मूपू., (पुत्राः पंचमतिश्रुता), ६२९१२(+#$) (२) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (एसो पज्जोसवणा समणाण), ६१९२४+#) (३) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (एजे पर्युषणापर्व), ६१९२४(+#) (२) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य*,सं., गद्य, मूपू., (कल्याणांपुरिम इह), ५९२५३(+$), ६१०५६ (२) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, सं., गद्य, मूपू., (चतुर्विंशतिजिनान), ५९७५८(+#) (२) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य-नेमिजिन चरित्र, सं., गद्य, मूपू., (श्रीनेमिनाथदेवस्य), ६२८९४(+) कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (जति णं भंते समणेणं०), ५९७४७-२(+), ६०४०७-२(+), ६१०२३-२(+#),
६२६९१-२, ५९६२६-२($) (२) कल्पावतंसिकासूत्र-टिप्पण", सं.,मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६१०२३-२(+#) (२) कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जौ हे भगवंत समण०), ५९७४७-२(+) कल्पिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं०), ५९७४७-१(+), ६०४०७-१(+), ६१०२३-१(+#), ६२६९१-१,
६०९३२(#$), ५९६२६-१(६)
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५०४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
(२) कल्पिकासूत्र-टिप्पण*, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (--), ६१०२३-१(+#) (२) कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतरागदेवने नमस), ५९७४७-१(+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., श्लो. ४४, वि. १वी, पद्य, मूपू., (कल्याणमंदिरमुदार), ५९४४२(+$), ५९४६३(+),
५९५४७-२(+#$), ५९५८९-१०(+#), ५९६२७-२(+), ५९७४९-८(+#), ६००२७-५०(+), ६००८५(+#), ६०९३७(+#$), ६०९४०-६(+S), ६११९४-२(+), ६१२३२-५(+$), ६१२४९(+), ६१६५१(+), ६१७०३(+#), ६१७०७-२(+#), ६१७८३-७(+), ६१७८८-२(+), ६१७९६-८(+), ६१९१७-७६(+), ६२२३८(+), ६२६३२-७१(+#), ६२६५४(+), ६२७५२(+), ६२८७०(+#), ६०४२५, ६१०८९-४, ६१६९७, ६१७३८, ५९६८६-१(#), ६१०४९(#), ६१७३९(#), ६१७६९-९(#), ६१८२०(#$),
६२७३६-२(#), ६२७४८(#), ६२७६१(#), ५९६८२(5), ६१८९५ (), ६२७५७-५(६), ६२७८६(5) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, मु. कनककुशल, सं., ग्रं. ६५०, वि. १६५२, गद्य, म्पू., (प्रणम्य पार्श्व), ६१२७७($) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, मूपू., (सर्वज्ञं जिनमानम्य), ६२७४८(#) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, वा. मेघविजय, सं., गद्य, म्पू., (श्रीशंखेश्वरपार्श्व), ५९४४२(+$) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, पा. हर्षकीर्ति, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिन), ५९४६३(+), ६०३५८(+#), ६०४२५, ६१८२०(#$) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, मूपू., (किल इति संभावनायां), ६२७३६-२(#) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, मूपू., (तस्य तीर्थेश्वरस्य), प्रतहीन. (३) कल्याणमंदिर स्तोत्र-भाषाटीका, श्राव. अखैराज श्रीमाल, पुहि., गद्य, मूपू., (तेजु है श्रीपार्श्वन), ६१०८९-४ (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-दीपिका टीका, मु. माणिक्यचंद्र, सं., ग्रं. ७२०, वि. १६६८, गद्य, मूपू., (रेवतादिशिरश्चूलामण),
६२७८६($) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (कथं भूतं अंघ्रिपञ), ६१७८८-२(+) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य शंखेश्वरपार), ६१७०३(+#) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, पा. रूपचंद्र गणि, मा.गु., वि. १८११, गद्य, मूपू., (जिनेश्वरस्य अंहिपद), ६२६५४(+) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (केहQछे कमल ते), ६१७०७-२(+#) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (जिनेश्वर तीर्थंकरर्नु), ६२७५२(+) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पार्श्वनाथजीनइ), ६२७६१(१) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पार्श्वनाथजीरा चरण), ५९६२७-२(+), ६००८५(+#), ६०९३७(+#$), ६१७३८,
६१७३९(#S), ५९६८२(), ६१८९५(5) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., दि., (परम ज्योति परमातमा),
६१६९७ (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-मंत्र विधिसहित, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवओ रिसहस्स), ६१६९७ कातंत्रव्याकरण, आ. शर्ववर्माचार्य, सं., अ. ४ अध्याय २५ पाद, सू. १४०१, प+ग., वै., (सिद्धो वर्णसमाम्नायः), ६२६०६-६#) कामावस्था वर्णन, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (प्रथमे जायते चिंता), ६०३६८-८ कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (जह तुह दसणरहिओ काय), ६१७३७-२ (२) कायस्थिति प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिम ताहरे दर्शनइ), ६१७३७-२ कार्तिकपूर्णिमापर्व व्याख्यान, ग. जयसार, सं., वि. १८७३, गद्य, मूपू., (श्रीसिद्धाचलतीर्थेश), ५९७४५-५(+#) कार्तिक पूर्णिमा व्याख्यान, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (सिद्धोविजायचक्की), ६००१७-५(+) काल विचार, प्रा., गा. १०६, पद्य, श्वे., (अहरत्तहय दसणा कसिणा), ५९५४३(+) कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुंदर गणि, सं., वि. १६६६, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीगुरुं), ५९८०४-२(+), ६१५८८(+), ६१७९३(+),
६२७३०-१(#) कालिकाचार्य कथा, प्रा., गा. १३०, पद्य, मूपू., (नामेण धरावासं अत्थि), ६२७५४(+) कालिकाचार्य कथा, सं., गद्य, मूपू., (वंदामि भद्दबाहु), ६११७१(+), ६१८२६-१(+#) काव्यषट्त्रिंशिका, मु. तेजसिंह, सं., श्लो. ३७, पद्य, श्वे., (ज्ञानप्रकाशो कविरंजन), ५९६२७-८(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५ (२) काव्यषत्रिंशिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (ज्ञा० मतिश्रुतादि), ५९६२७-८(+) । काव्यानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ.८, वि. १२वी, गद्य, मूपू., (अकृतिमस्वादुपदां), प्रतहीन. (२) काव्यानुशासन-स्वोपज्ञ अलंकारचूडामणिवृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. २८००, वि. १२वी, गद्य, मूपू.,
(प्रणम्य परमात्मान), ६२४०९(+) कुम्मापुत्त चरिअ, मु. जिनमाणिक्य; उपा. अनंतहंस, प्रा., गा. १९८, ग्रं. १०००, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (नमिऊण वद्धमाणं असुरं),
६११९१(+) (२) कुम्मापुत्त चरिअं-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानस्वामीने नम), ६११९१(+) कुलकोडिमान गाथा, प्रा., गा.१, पद्य, श्वे., (एगा कोडाकोडी सनाणवज), ६१०१५-३२(-) कुलवालक कथा-गुरुविराधना विषये, सं., गद्य, मूपू., (अत्रैव भरतक्षेत्रे), ६१७६७-९(#) कुस्त्री कथा, सं., गद्य, श्वे., (वरं रंक दरिद्रत्वं), ६१७३५-७ कृपणश्रेष्ठि कथा, सं., गद्य, श्वे., (भोक्तारोर्थस्य काप), ६१७३५-१२ खंडप्रशस्ति, क. हनुमान, सं., अ. १० अवतार, श्लो. १५९, ग्रं. ३३६, पद्य, वै., (कृत क्रोधे यस्मिन), ५९३३०(+#$) (२) खंडप्रशस्ति-सुबोधिकाटीका, पं. गुणविनय गणि, सं., वि. १६४१, गद्य, मूपू., वै., (श्रीपार्श्व फलवर्द), ५९३३०(+#$) खरतर तपागच्छ ३० उत्सूत्र बोल, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (तपः यतयः उत्सूत्र), ५९९६२(६) खामणासूत्र, प्रा., पद्य, मूपू., (इच्छामि खमासमणो वंदि), ६१६१४-२(१), ६१८२७-२($) (२) खामणासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बांछउ रोग रहित श्यात), ६१८२७-२($) गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., गा. १३७, पद्य, मूपू., (नमिऊण महावीर), ६१७१८(+) (२) गच्छाचार प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (नमस्कार करी श्रीमहाव), ६१७१८(+) गणधरदेव स्तुति, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. २६, पद्य, मूपू., (तं जयउ जए तित्थं), ५९५७८-६(+), ५९६५८-२(+), ५९७६५-१४(+#) गणरत्नमहोदधि, आ. वर्द्धमान, सं., अ. ८, श्लो. ४६०, वि. ११९७, गद्य, मूपू., (वाग्देवतायाः क्रम), ६१३८३ गांगेयभंग प्रकरण, मु. पद्मविजय, प्रा.,गा. ३६, पद्य, मूपू., (नमिऊण महावीरं गंगेय), ६०९४६(+#$) (२) गांगेयभंग प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमत् शांतिजिनाधीश), ६०९४६(+#$) गाथाकोश, प्रा., गा. ४३५, पद्य, मूपू., (वंदिय वीरं धीरं गंभी), ५९२९३(+) गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, श्वे., (सत्तइ रत्ता मत्तइ), ६२७३९-२(+) गाथासप्तक, प्रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (पढमे बीए तईए चउत्था), ५९९९३-२(#) गिरिनारतीर्थ स्तवन, पं.शीलशेखर गणि, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (श्रीगिरिनार गिरीश्वर), ६२९०८-५३(+) गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., श्लो. १३५, वि. १४४७, पद्य, मूपू., (गुणस्थानक्रमारोहहत), ६०८८४(+#), ६१६७७(+) (२) गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., वि. १४४७, गद्य, मूपू., (अहँ पदं हृदि), ६०८८४(+#), ६१६७७(+) गुणानुराग कुलक, मु. जिनहर्ष, प्रा., गा. २८, पद्य, मूपू., (सयल कल्लाण निलय), ६२७६०-२(+) (२) गुणानुराग कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (स० समस्त क० सुख तेहन), ६२७६०-२(+) गुरुनामगर्भाष्टदलकमल स्तोत्र-चित्रबंध, पं.शीलशेखर गणि, सं., श्लो. २०, पद्य, मूपू., (रिरंसारससंसार रसासीर), ६२९०८-११(+) (२) गुरुनामगर्भाष्टकदलकमल स्तोत्र-चित्रबंध-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (--), ६२९०८-११(+) गुरुपारतंत्र्य स्मरण-खरतरगच्छीय, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (मयरहियं गुणगणरयणसायर), ५९५७८-७(+),
५९६५८-३(+), ५९७६५-१५(+#) गुरुवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ४१, पद्य, मूपू., (गुरुवंदनणमह तिविह), ६१५९२-२ (२) गुरुवंदनभाष्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (गुरुवंदन कहितां गुरु), ६१५९२-२ गोचरी आलोअण गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (कालेणय गोअरिआ), ६११३०-७(+), ६१९१७-३(+) गोचरी आलोयण गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (अहो जिणेहिं असावज्जा), ६१५७०-८(+#) गोचरी दोष, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (अहाकम्मु १द्देसिअ२), ६०४६३-२(#) गोधूलिक लग्नविचार, सं., प+ग., वै., (नंदक्षणंचैव चैत्र), ६०७८६-२(+#)
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५०६
संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ गोम्मटसार, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., कां. २ अधिकार ३१, गा. १७०५, पद्य, दि., (सिद्धं सुद्धं पणमिय), प्रतहीन. (२) गोम्मटसार-उदयत्रिभंगी, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., त्रिभं. ३, गा. ७३, पद्य, दि., (पंचणवदोणिअट्ठावीसं), ६२३१२-३ (s)
(२) गोम्मटसार-बंधत्रिभंगी, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा. त्रिभं. ३, गा. ४१, पद्य, दि., (णमिऊण णेमिचंदं असहाय), ६२३१२-२
गौतम कुलक, प्रा., गा. २०, पद्य, म्पू, (लुद्धा नरा अत्थपरा), ५९५२३(+), ५९५६४(+), ६१०६६(+), ६११५०-६ (१४), ६१२४१(१०), ६२०६७(*), ६२१६३(०), ६०३७१, ६२७०९-२ ६२१६७ (३)
(२) गौतम कुलक- टीका + कथा, मु. ज्ञानतिलक, सं., कथा. ६९, वि. १६६०, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीदेवगुरुन), ५९५६४(+#), ६१०६६ (+), ६२१६३(+)
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(२) गौतम कुलक-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (लुद्धा० लोभी नरा), ५९५२३ (+), ६२१६७($)
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(२) गौतम कुलक-बालावबोध+कथा, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., वि. १८४६, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीमन्महावीरं), ५९६२३(+$)
(२) गौतम कुलक-बालावबोध + कथा, ऋ. रिधु, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुयदेवी समरि करि), ६२०६७(+)
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"
(२) गौतम कुलक-टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू. (लोभीया मनुष्य अर्थनइ), ६११५०-६(+), ६१२४१(+०), ६०३७१, ६२७०९-२ गौतमपृच्छा, प्रा. प्रश्न ४८ गा. ६४, पद्य, भूपू (नमिऊण तित्थनाहं), ५९६४८(+), ५९७२८(+), ६०१४४-१(+#5), ६१०८०(०), ६२८८९-१(+), ५९६४९, ६१७६०, ५९४२९ (४४), ५९५३९(४), ५९५९३(५७), ५९५९४(५७), ६१७१२ (०३), ५९२८४(६), ६१०११ ($), ६२७३३ ($)
(२) गौतमपृच्छा टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं. ग्रं. १६८२, वि. १७३८, गद्य, म्पू., (वीरजिनं प्रणम्यादौ), ५९६४८(+), ५९६४९, ६१७६०, ६१०११६)
(२) गौतमपृच्छा टीका * सं. गद्य, म्पू, (यद्ज्ञानदर्पणतले), ५९५९३ (०३), ५९५९४(०३), ५९२८४($)
"
(२) गौतमपृच्छा-बालावबोध, आ. जिनसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वा कहता नमीने), ६०१४४-१ (+#$), ६१७१२(#$)
(२) गौतमपृच्छा-बालावबोध*, मा.गु., वि. १५६९, गद्य, मूपू., (तीर्थनाथ श्रीमहावीर), ६१०८०(+)
(२) गौतमपृच्छा - बालावबोध+कथा * मा.गु, गद्य, भूपू (एकई गामि धनसार इसिइ), ६२०८७(+), ६२७३३(३)
7
(२) गौतमपृच्छा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थनाथ श्रीमहावीर ), ६२८८९-१ (+), ५९४२९(#$), ५९५३९ (#), ६१७१२(#$)
(२) गौतमपृच्छा-टबार्थ, सं., गद्य, मूपू., (हे भगवन् श्रुत्वा), ५९७२८(+#$)
(२) गौतमपृच्छा - कथा, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, मूपू., (एकस्मिन् ग्रामे एको), ६१०११ ($)
(२) गौतमपृच्छा-कथा संग्रह *, मा.गु., कथा. ३५, गद्य, मूपू., (वसंतपुर नगरने विषे), ६०१४४-१(+#$), ५९४२९ (#$), ६१७१२(#$) (२) गौतमपृच्छा- बीजक, सं., गद्य, मूपू (नत्वा वीर जिनं बालाव), ६०१४४-२००)
गौतम यंत्राम्नाय, सं., गद्य, मूपू., (सिंहारूढासुत युग्म), ५९६४७-४
गौतमस्वामी अष्टक, सं., श्रो. १०, पद्य, म्पू, (श्रीइंद्रभूतिं वसु), ६११३०-७२(+)
गौतमस्वामी स्तव, आ. वज्रस्वामि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू. (स्वर्णाष्टाग्रसहस्र) ५९५७८-२३(०), ६१०१५-१९८) गौतमस्वामी स्तुति, मा.गु. सं., गा. ५, पद्य, मृपू, (अंगुठे अमृत वसे लब्ध), ५९५९०-७(+), ६२२७५-७(+)
गौतमस्वामी स्तुति, सं., श्लो. १, पद्म, मूपू (सर्वारिष्टप्रणाशाय), ६११३० १२(*), ६१९९७-६३ (*), ६२६३२-२० (+),
६११९५-२४१०१
गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं. लो. १०, पद्य, म्पू, (इंद्रभूतिं वसुभूति) ५९५७८-१४०, ६१९९७-५८(का
"
६२४००-५(M), ५९६४७-५, ६१०१५-१०१)
गौतमस्वामी स्तोत्र, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (प्रभूतविद्याभिरभून्न), ६२९०८-१८(+) गौतमाष्टक, उपा. उदयविजय, सं., श्लो. ७, पद्य, म्पू., (ॐ जय जय श्रियानिधि), ६२२७८-२० (+)
गौतमीय काव्य, पा. रूपचंद्र गणि, सं., स. ११, वि. १८०७, पद्य, मूपू., (श्रीराविरासीदिवदिव्य), ६२७९५ (+$), ६२८१२(+), ६१०२९($)
(२) गौतमीय काव्य- गौतमीयप्रकाश टीका, वा क्षमाकल्याण, सं. वि. १८५२, गद्य, म्पू, (अथ तत्रभवंतः श्रीमंत), ६२७९५ (+३)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
५०७ ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (जगद्गुरुं नमस्कृत्य), ५९५७८-१२(+), ६०४३८-३(+), ६११३०-८१(+),
६१८७६-५६(+#), ६१९१७-७०(+), ६२६३२-६६(+#), ६११९५-४८(#), ६१०१५-८(-) घंटाकर्ण कल्प, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (प्रणम्य गिरिजाकांत), ६०९५९, ६२६५०-१(#) घंटाकर्ण मंत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ॐ घंटाकर्णमहावीर), ५९५७८-३२(+) । घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ॐ घंटाकर्णो महावीरः), ६१२३२-४(+), ६२६५०-२(#), ६१०१५-२९(-) चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र, प्रा., प्राभृ. २०, ग्रं. १८५४, पद्य, मूपू., (नमो अरि० जयति नवणलिण), ५९७७२(+), ६०४२७($) (२) चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र-मलयगिरीय टीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहां अविघ्न पणइ), ५९७७२(+) (२) चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पु० पूछइछइ जिनवर वृष), ५९७७२(+) । चंद्रप्रभजिन चरित्र, आ. देवेंद्रसूरि, सं., परि. २, ग्रं.५३२५, वि. १२६४, पद्य, मूपू., (दृष्टोपि हृष्टजन), ६१८५३(+) चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (ॐ चंद्रप्रभः), ६२२७८-२(+), ५९६४७-२, ६२६६३-७(-) चंद्रावेध्यक प्रकीर्णक, प्रा., गा. १७५, पद्य, मूपू., (जगमत्थयत्थयाणं विगसि), ६१२२०(5) चंद्रोदरराजर्षि चरित्र-दानादिप्रवर्तने, प्रा.,सं., गा. १५६, प+ग., मूपू., (इदानि यथाशक्ति दाना), ६१७४३-१(+) चक्रवर्ति ऋद्धि विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (छ खंड भरतक्षेत्र), ६२१४१-६७(+), ६२२५१-२(#) चक्रवर्तीकुलकरबलभद्रवासुदेवप्रतिवासुदेव नाम, सं., गद्य, श्वे., (१कनक कुलधर रकनकप्रभ), ५९२७०-२(+) चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (श्रीचक्रे चक्रभीमे), ६२२७८-७(+), ६२६६३-१३(-) चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ६३, वि. ११वी, पद्य, मूपू., (सावज्जजोग विरई), ५९६७८-१(+$), ५९६९२(+),
६०३७२(+), ६०९४८(+), ६१६४२(+$), ६१८१८-४(+5), ६२३५८(+), ६२७४९(+), ६२७६५-३(+), ६२८४६(+), ६२८७५ (+$),
६२८८८(+-#), ६२९२१-१(+#$), ५९६५६, ६०४७३, ६१७१६ (#$), ६१७२३(#), ६२७२३-१(), ६२७५७-६($) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (इदमध्ययनं परमपद), ६१७९२-१(+#), ५९६५६ (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सावद्य योग विरति ते), ६२३५८(+) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, ग. लाभकुशल, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ६०४७३ (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (चउसरणपइनाना अर्थ०), ५९६९२(+), ६०९४८(+), ६१६४२(+$), ६२७४९(+),
६२८४६(+), ६२८७५ (+$), ६२८८८(+-#), ६२९२१-१(+#$), ६१७२३(#) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., ग्रं. ३४१, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य महावीर), ६१७१६(#$) चाणक्यवृद्धराजनीति, कौटिल्य, सं., अ. १८, पद्य, वै., (प्रणम्य शिरसा विष्णु), ६१४०८-३(-६) (२) चाणक्यवृद्धराजनीति-(पु.हि.)बालावबोध, पुहि., गद्य, श्वे., वै., (नमस्कार करी शंकर), ६१४०८-३(-) (२) चाणक्यलघुराजनीति, संक्षेप, कौटिल्य, सं., अ. ८, पद्य, वै., (प्रणम्य शंकर देव), ६१४०८-२(.) (३) चाणक्यलघुराजनीति-(पु.हि.)तिलक बालावबोध, पुहि., गद्य, श्वे., वै., (श्रीमन्नाभेयमानम्य), ६१४०८-२(-) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., ग्रं. ४०१, गद्य, मूपू., (स्मारं स्मारं स्फुरद), ५९४८१(+#),
५९७४५-१(+#$), ६१०४०-४(+$, ६११४०-१(+), ६१७९०(+), ६१७९४(+), ६११६९, ५९६१५(#$) (२) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान-अनुवाद, मा.गु., गद्य, मूपू., (सर्वजगतें पूज्यमान), ६०१४२($) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (सामाइकावश्यक पौषधानि), ६२४३०(+#), ६२८४०(5) चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, उपा. समयसुंदर गणि, सं., वि. १६६५, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमानंद), ५९६९८(+), ६२६९७-२(+),
५९५०२-१ चातुर्मासिक व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, मूपू., (स्मारं स्मारं स्फुरद), ६२९३२-३ चातुर्मासिक व्याख्यान, मु. सुरचंद्र ऋषि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ६२८२७(5) चातुर्मासिक व्याख्यान, रा.,सं., पद्य, मूपू., (सामायिकावश्यकपौषधानि), ६१५६९(+), ६२३३९(+#$) चातुर्मासिक व्याख्यान, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (सामायिकावश्यकपौषधानि), ६२८९२(+$) चार्चिक, सं., गद्य, मूपू., (अवरुप्यरसंवाह इत्या), ६०९१९(#$) चिंतामणिकल्प, आ. धर्मघोषसूरि, सं., श्लो. ४७, पद्य, मूपू., (किंचिद् गुरूणां वदन), ६०९३४-१(+)
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५०८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ चिंतामणिबृहत्कल्प विशेषाम्नाय, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रथम श्रीपार्श्वनाथ), ६०९३४-८(+) चिंतामणि संप्रदाय, सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह), ६०९३४-२(+) चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., श्लो. १२३२, वि. १५२४, पद्य, मूपू., (नत्वा जिनपतिमाद्य), ६२०६६(+),
६२८२१(+$), ६२९३३(+#$), ६१८३६, ५९७८३(#) (२) चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ, ग. भक्तिविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (अद्य क० पहेला युगला), ६२०६६(+), ६१८३६,
५९७८३(#) चित्रसेनपद्मावती चरित्र, मु. रत्नशेखर, सं., श्लो. ८००, वि. १६६०, पद्य, म्पू., (प्रणम्य श्रीमदहँत), ६०३८८(+#) (२) चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वा चाषीच सद्गुरुन), ६०३८८(+#$) चित्रसेनपद्मावती चरित्र, पा. राजवल्लभ, सं., श्लो. १२३१, वि. १५२४, पद्य, मूपू., (नत्वा जिनपतिमाद्य), ६१५६४
चैत्यप्रतिष्ठा विधि, सं., प+ग., मूपू., (विषमैरंगुलैर्हस्तैः), ६१८७४(+), ६०३९४-१ (२) चैत्यप्रतिष्ठा विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (विषम क० एकी गणतीइं), ६०३९४-१ चैत्यवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ६३, पद्य, मूपू., (वंदित्तु वंदणिज्जे), ६१५९२-१ (२) चैत्यवंदनभाष्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वादि करके सर्व वंदन), ६१५९२-१ चैत्रीपूनम क्रियाविधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (प्रथम गोवररी गुंहली), ६२३८० चैत्रीपूर्णिमापर्व व्याख्यान, मु. जीवराज, सं., वि. १८६९, गद्य, मूपू., (तीर्थराज नमस्कृत्य), ५९७४५-१०(+#), ६१०४०-२(+),
६११४०-९(+), ६१६००-४ छत्रभ्रमण प्रतिमापूजन स्नात्र विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम असुरिंद सुरिंद), ६०८९६-२ जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., उ. २१, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० रायगिहे), ५९५६८(+#), ५९५६९(+#), ५९५७२(+#),
६१०३०(+), ६११०५(+#), ६११७४(+$), ६१८४५(+#), ६१०६४, ६१२०२(#$) (२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते काल चउथो आरोतेवा), ५९५६८(+#), ५९५६९(+#), ५९५७२(+#),
६११०५(+#), ६११७४(+$), ६१८४५(+#), ६१०६४, ६१२०२(#$) (२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुप्रभावं जिनं नत्वा), ६०४४६(+), ६२४४७(+5), ५९९३०, ६००४६(#) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., वक्ष. ७, ग्रं. ४१४६, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० तेणं), ५९७७१(+), ६१११९(+#), ६२६२५(+#$) (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६२४१५(+#$) (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., ग्रं. १५०००, वि. १७७०, गद्य, मूपू., (श्रीसिद्धार्थनराधिप), ५९७७१(+),
(२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते० ते काल चउथा आरा), ६२६२५(+#$) जंबूद्वीपादिविचार संग्रह, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (पांच सै छबीस जोयण), ६१२०१-३(+) जंबूस्वामी चरित्र, प्रा., प+ग., मूपू., (नमिऊण वद्धमाणं जस्स), ५९५५६(+) (२) जंबूस्वामी चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करी श्रीवर्द), ५९५५६(+) जन्मकुंडली विचार, सं., श्लो. ११०, पद्य, वै., (एकोपि यदि केंद्रस्थो), ६१५४१-२(+) जन्मपत्री पद्धति, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अधि. ३३, पद्य, मूपू., (प्रणम्य सारदां ज्योत), ६१३९४(+#$) जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., गा. ३०, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (जय तिहुयणवरकप्परुक्ख), ५९५७८-१०(+),
५९५८९-११(+#), ५९६५८-१(+), ५९७०१-२(+#), ५९७०३(+), ६००२७-४४(+), ६०९४०-२(+), ६१०८३-२(+), ६१०९७-३४(+#), ६११३०-८७(+), ६१५९१-१(+), ६१७८३-६(+), ६१८८६-२(+), ६१९१७-७४(+), ६२६३२-७२(+#),
६२८५०-१, ६१०३१(#), ६१७६९-३(#$), ५९६८०-२($), ६१६३५(६), ६०९१७-२०(२), ६१०१५-६(-) (२) जयतिहुअण स्तोत्र-टीका, सं., ग्रं. २५०, गद्य, मूपू., (अत्रायं वृद्धसंप्रदा), ६१०३१(#) (२) जयतिहुअण स्तोत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (जयवंतो वर्ति), ६२८५०-१ (२) जयतिहअण स्तोत्र-भंडार गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (परमेसर सिरिपासनाह), ६१८८६-३(+), ६२८५०-२ जयशेखरराजा सोममंत्रिकथा-उपकारविषये, सं., गद्य, श्वे., (विस्मरत्युपकारं नोस), ६१७३५-२
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
५०९ जलयात्रा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (जलयात्रा योग्य उपगरण), ६१०४३-२ जातकपद्धति, मु. हर्षविजय, सं., श्लो. ९३, वि. १७६५, पद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वदेवेश), ५९६४०(+), ५९६७७(+), ६११५३($) (२) जातकदीपिका पद्धति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणाम करीने), ५९६४०(+), ५९६७७(+), ६११५३(१) जिनअपराधक्षमापन स्तोत्र, सं., श्लो. १६, पद्य, मूपू., (ॐकार आदं अविगत अतीत), ६२२७८-१५(+) जिनदत्तसूरिस्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (दासानुदासा इव सर्व), ६२२७५-९(+) जिनदर्शन श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (दर्शनं देवदेवस्य), ६०७३१-२(+#), ६१८७६-१२(+#), ६२६३२-२३(+#) जिनदर्शन स्तुति, सं., श्लो. ३, पद्य, श्वे., (अद्याभवत सफलता नयन), ६१८७६-५९(+#) जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं अह), ५९५७८-४(+), ६११६७-५(+#), ६१८७६-१(+#),
६२२७५-१६(+), ६२२७८-११(+), ६२६३२-७६(+#), ६१२७१-८(#), ६१०१५-३(-) जिनपूजा संग्रह, श्राव. ब्रह्मशांतिदास, सं., प+ग., दि., (--), ६१२६९(#$) जिनप्रतिमापूजन विषयक-आगमिक दृष्टांतपाठ संग्रह, प्रा., प+ग., मूपू., (--), ६२६४४(#$) (२) जिनप्रतिमापूजन विषयक-आगमिक दृष्टांतपाठ संग्रह-विवेचन, पुहिं., गद्य, मूपू., (--), ६२६४४(#$) जिनबिंब प्रतिष्ठा विधि, मु. नरसागरशिष्य, मा.गु.,सं., वि. १८१४, गद्य, मूपू., (--), ६१७२५-१(-#$) जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, आ. रत्नशेखरसूरि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वेशो विभा), ६०९३०, ६११०३(#) जिनबिंबप्रवेश स्थापना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पहिलु मुहूर्त भलु), ६१४८४-१ जिनमुद्रा विचार, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (जिणमुद्द १कलस रपरमेट), ६२७८८-२ जिनरक्षा स्तोत्र, सं., श्लो. १८, पद्य, मूपू., (श्रीजिनं भक्तितो), ५९५७८-२१(+), ६२२७८-१३(+), ६१०१५-१७(-) जिनरक्षा स्तोत्र, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (सर्वातिशयसंपूर्णान्), ६२२७८-१२(+) जिनशतक, मु. जंबू कवि, सं., परि. ४, श्लो. १००, वि. १००१-१०२५, पद्य, मूपू., (श्रीमद्भिः स्वैर्महो), ६१६८१ (२) जिनशतक-पंजिका टीका, मु. शांबमुनि, सं., ग्रं. १५५०, वि. १०२५, गद्य, मूपू., (निष्क्रांतौ कृत पंचम), ६१६८१ जिनसहस्रनाम लघुस्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. ४०, पद्य, मूपू., (नमस्त्रिलोकनाथाय), ६१८७६-५२(+#) जिनसहस्रनाम लघुस्तोत्र, सं., श्लो. ४१, पद्य, मूपू., (नमस्त्रिलोकनाथाय), ५९५७८-२(+), ६१०१५-१) जिनसहस्रनाम स्तोत्र, श्राव. आशाधर, सं., श्लो. १४३, वि. १२८७, पद्य, दि., (प्रभो भवांगभोगेषु), ६१२०९(+$), ६०८९१(६) (२) जिनसहस्रनाम स्तोत्र-टीका, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., गद्य, दि., (ध्यात्वा विद्यानंद), ६१२०९(+$) (२) जिनसहस्रनाम स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, दि., (जिन इति अनेक विषम भव), ६०८९१(६) जिनस्तुत्यादि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीअहँतो भगवंत), ६११३०-४(+) जिनेश्वराष्टक अष्टप्रकारपूजागर्भित, आ. विबुधविमलसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मपू., (जिनपतेर्वरगंधसुपूजन), ६२१४१-२५(+) जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., गा. ५१, वि. ११वी, पद्य, मूपू., (भुवणपईवं वीरं नमिऊण), ५९२४७(+$), ५९४३९-२(+#),
५९४५१-२(+), ५९४७०-१(+#), ५९५१९-१(+), ५९५२५-१(+), ५९५९६-३(+), ५९६१०(+), ५९७४९-२(+#), ५९७६५-८(+#), ६००२७-५३(+), ६०१६९(+$), ६०३६१-१(+), ६०४८९-२(+), ६०७०९-३(+), ६०७१६-१(+), ६०९११-२(+), ६०९४९(+), ६०९६६-३(+), ६०९७२-२(+), ६१०९७-३८(+#), ६११३०-९६(+), ६१२२७-३(+$), ६१२७४-१(+#), ६१६४३(+#), ६१६५०-१(+#), ६१६६१(+), ६१८०७(+#), ६१८१५(+$), ६१८१७-१(+#), ६१८१८-३(+), ६१८२४(+), ६१९१७-८०(+), ६२०७२-१(+$), ६२६४५(+$), ६२६६९(+), ६२७१०-२(+#), ६२७१२-१(+#), ६२७६५-१(+), ६२७७५ (+$), ६२७७९(+#), ६२८०८-२(+#$), ६२८५५-१(+), ६२८७१-२(+), ६२८९५-१(+#), ५९५९७, ५९७२४, ६०७३३-१, ६१२७६-१, ६१६१६,
६२८९९, ६१६११-१(२), ६१७६९-१०(#) (२) जीवविचार प्रकरण-टीका, पा. रत्नाकर, सं., वि. १६१०, गद्य, मूपू., (सज्ञानभास्करं वीर), ५९२४७(+$) (२) जीवविचार प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (त्रिभुवनप्रदीपं महाव), ६१८२४(+) (२) जीवविचार प्रकरण-टिप्पण*, सं., गद्य, मूपू., (त्रिभुवने प्रदीप), ५९४३९-२(+#) (२) जीवविचार प्रकरण-बालावबोध, पं. हंसविजय, मा.गु., वि. १९१४, गद्य, मूपू., (प्रथमथी महावीरस्वामी), ६०७१६-१(+$) (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, पुहि., गद्य, मूपू., (त्रिभुवन मे दीपक), ६०९११-२(+), ६०९७२-२(+)
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५१०
संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ (२) जीवविचार प्रकरण- टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (तीन भुवन रे विषै), ५९४५१-२(+४), ५९४७०-१ (०) ५९६१० (+४),
"
६०१६९(+३), ६०३६१-१(+), ६०४८९-२(+), ६०९४९(+), ६१६६१(+), ६१८०७(१) ६१८१७-१+०) ६२६४५ (+३), ६२६६९(+३), ६२७१०-२(+), ६२७१२-१(+), ६२७७५ (+5), ६२७७९ (+), ६२८०८-२+०३) ६२८७१-२(*), ५९५९७, ५९७२४, ६०७३३-१, ६१६१६, ६२८९९
(२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, पुहिं., गद्य, मूपू., (भुवण क० तिलोक में), ६१६४३(+#)
(२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, पुहिं., गद्य, मूपू., (--), ६१८१५ (+$)
(२) जीवविचार प्रकरण-यंत्र, संबद्ध, मा.गु. गद्य, भूपू (जीवना २ भेद एक मुक्त), ६२२४७
!
जीवाभिगमसूत्र, प्रा., प्रतिप. १०, सू. २७२, ग्रं. ४७५०, गद्य, मूपू., (णमो उसभादियाणं चउवीस), ५९२७६(+$), ५९७९२(+#),
६०३९६(+४), ६११०९(+४) ६१११६ (+), ६११३५ (+४) ६१९२९ (+), ६१२६०(5)
(२) जीवाभिगमसूत्र - टीका, आ. मलयगिरिसूरि, सं., प्रतिप. १०, ग्रं. १४०००, गद्य, मूपू., (प्रणमत पदनखतेजःप्रति), ६११०९(+#) (२) जीवाभिगमसूत्र - कठिनपद टिप्पण, सं., मा.गु., गद्य, मूपू., (-), ६०३९६ (+४)
(२) जीवाभिगमसूत्र - टवार्थ, मु. जिनविजय, मा.गु. ग्रं. ९३००, वि. १७७२, गद्य, मूपू (प्रणम्य ज्ञानविज्ञान), ५९७९२ (+),
,י
י
६१११६(+), ६२४११(#$)
(२) जीवाभिगमसूत्र - टबाधं, सं., गद्य, मूपु. ( नमोभ्य द्वादशगु), ६११३५ (+5)
(२) जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६१२६०($)
जैन कथा वार्ता चरित्रादि, पुहिं, प्रा. मा.गु. सं., प+ग. ओ., (--), ५९४८७-२००४)
श्वे.,
"
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जैन गाथा, प्रा., पद्य, श्वे. (उस्सासद्वारमे भागे), ५९२५७-२(+), ६०३६८-७
"
जैनगाथा संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, मूपू., (सललमथघ्रतकाज निक्खु), ५९९८७-२ (+#), ६०३६३-२ (+#), ६२०८३-२(+), ६२८०५-२(+), ६२८७१-३+), ६२८७३-२(+), ६२४३१-२ ६२८२८(१६)
(२) जैनगाथा संग्रह - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिनधर्म जीवानइ), ६०३६३-२(+#), ६२८७१-३(+)
जैन तात्विक क्रमावलि, प्रा. गद्य, भूपू (-) ६०७१७(5)
""
(२) जैन तात्त्विक क्रमावलि बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू (-), ६०७१७३)
(२) जैन तात्त्विक क्रमावलि - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६०७१७($)
जैनदुहा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, वे (चिह्न नारी नर नीपजइ), ५९६७९-२ (+), ५९४७२-२, ६००२३-२(१) जैन मंत्र संग्रह - सामान्य, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, श्वे., ( ॐ नमो अरिहंताणं), ६२२७८-२५ (+) जैन श्लोकसंग्रह, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (दर्शनज्ञानचारित्रात), ६१२१४-२(#) जैन सामान्यकृति, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, वे (त्रीणि स्थानानि ), ६१८५२-२(+)
जैनसिद्धांत संदर्भश्लोक-पुराणगत, सं., पद्य, श्वे., वै., (अहिंसा १ सत्य २), ५९३५३(#$)
+
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. अध्य. १९, ग्रं. ५५०० प+ग. म्पू, (तेणं काले० चंपाए), ५९२७५ (95), ५९८०५(१), ६०४९१(+), ६१०८४(+), ६११३४(+), ६१५६० (+), ६१८३०(+), ६१२५१(०३), ६१९३८(४७), ६१२०६(३) ६२९३५ (३)
(२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र - टबार्थ, उपा. कनकसुंदर, मा.गु., ग्रं. ८५००, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ५९८०५ (+)
(२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र - टबार्थ, ग. प्रेमजी, मा.गु., वि. १६९९, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ६१८३०(+)
(२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., ग्रं. १०५००, गद्य, मूपू., ( ध्यात्वा वीरं जिनं०), ५९२७५ (+$)
(२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार श्रीमहावीरने), ६१०८४ (+), ६११३४ (+#$), ६१२५१(#$) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ६१२०६ (5)
(२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- कथा, मा.गु, गद्य, भूपू (राजग्रही नामा नगरी), ६२४०५ (+४६)
(२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र - प्रश्नशतक, संबद्ध, मा.गु., प्रश्न. १००, गद्य, मूपू., (ज्ञाताधर्मकथा साढि), ६२२४९(+)
ज्ञानद्रव्य कथा, सं., गद्य, श्वे. (श्रीज्ञानसाधारणवित्त), ५९२७२(+)
"
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, भूपू., (पंचानंतकसुप्रपंचपरमा), ५९५८९-२० (+१), ६००२७-७(+), ६०३६२-३(+), ६१०९७-५(+) ६११३०-२० (+), ६१५७६-९(+४) ६१८८६-७(+), ६१९१७-१७(*), ६२६३२-३१(+), ६०९१७-३(
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
५११ ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीनेमिः पंचरूप), ६०९१४-६(+), ६२८३८-२(+), ६१६९४-६(#) ज्ञान पहिरावणी गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (नमंत सामंतमही विनाह), ६२६३२-२४(+#), ६२६७४-२(+), ६११९५-२७(#) ज्ञानपूजा मंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं अनंता), ६१६५४-५(+) । ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., अष्ट. ३२, श्लो. २७३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रीसुखमग्नेन), ६११०४(+), ६१७१३(+),
६१८५२-१(+) (२) ज्ञानसार-ज्ञानमंजरी टीका, ग. देवचंद्र, सं., अष्ट. ३२, ग्रं. ३८००, वि. १७९६, गद्य, मूपू., (पार्श्वेशं जिनं नत्व), ६१८५२-१(+) (२) ज्ञानसार-स्वोपज्ञ टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऐंद्रवृंदनतं नत्वा), ६११०४(+) ज्योतिष, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., जै., वै., (--), ६१४७५-२(+), ६१५४१-४(+), ६१६७८-१(+), ६२६०३-२(+), ६०२९९-४,
६२४८७-३, ६२६६४-३, ६०५३१-२(#) ज्योतिष श्लोक, मा.गु.,सं., पद्य, वै., (ज्येष्टार्क पश्चिमो), ६१६७८-५(+) ज्योतिष श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (ध्रुवघटी पुटपंक्ति), ६१५४४-२(#) (२) ज्योतिष श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (भू १ द्वीप ८ अद्रि ७), ६१५४४-२(2) ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., श्लो. २९४, पद्य, मूपू., (श्रीअर्हतजिनं नत्वा), ५९६३३(+#), ६०२५०(+$), ६०५१९(+#),
६०५२०(+#$), ६०५२९(+#$), ६०५३०(+), ६०५४१(+), ६०५५२-१(+), ६०७८६-१(+#), ६१३०९(+६), ६२१३३+), ६२०२४,
६२०८९, ६०७७०(#s), ६०८३८(#), ६०२०९(६), ६०७६९(६) (२) ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (सरस्वतीं नमस्कृत्य), ६०५१९(+#), ६०५३०(+),
६१३०९(+$)
(२) ज्योतिषसार-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहंतभगवानने), ५९६३३(+#), ६०५२०(+#$), ६०५२९(+#$), ६०२०९($) ज्योतिषसारोद्धार, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अ. ३, श्लो. ३३७, ग्रं. ५००, पद्य, मूपू., (तं नमामि जिनाधीशं), ६०२२७(+$) ज्योतिषीय प्रश्नोत्तरी, प्रा.,सं., गद्य, वै., (वारपृच्छकदि ग्यानम्), ६०९५०-२(२) ज्वालामालिनीदेवी स्तोत्र-सबीज, सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवते श्रीचंद), ६१०१५-१४(२), ६२६६३-१०(-) ज्वालामालिनी स्तोत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवते श्रीचंद), ५९५७८-१८(+), ५९६४७-३ ढुंढकमत कुमतिउत्थापन चर्चा, पुहि.,प्रा., ग्रं. २४०, गद्य, पू., (ढुंढियो कहे हु), ६२२५४ तंदलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग., मूपू., (निजरिय जरामरण), ५९२९२(+), ६०४२०(+#), ६०८७७(+), ६१८६२
तंदूलवैचारिक प्रकीर्णक-लघुवृत्ति, मु. विशालसुंदर-शिष्य, सं., वि. १६५५, गद्य, मूपू., (सकलत्रिभुवनपरिवृटिक), ६१८६२ (२) तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तप जप संजमनइ वलइ), ५९२९२(+), ६०४२०(+#) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., अ.१०, गद्य, मूपू., दि., (सम्यग्दर्शनशुद्ध), ६०७२३(+#), ५९७७६, ६१७२८(2) (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-टबार्थ*, पुहिं., गद्य, मूपू., दि., (सम्यग्दर्शन सम्यग्ज), ५९७७६ तपग्रहणविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही पडिकम), ६२३२७(+#) तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ), ५९५८९-९(+#), ६००२७-४७(+), ६१०८३-३(+),
६११३०-९०(+), ६१२३२-२(+), ६१६५९-१(+#$), ६१७८३-५(+), ६१७९६-३(+), ६१९१७-७२(+), ६२६३२-६४(+#),
६२८९१-३(+), ६११९५-४६(#), ६१७६९-५(#) तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (सद्भक्त्या देवलोके), ६१८७६-५४(+#) तेरापंथी चर्चा, मु. शीलविजय, प्रा.,मा.गु., प+ग., श्वे., (छ लेस्या हुंति वीर), ६२१८८(+) त्रिपुराभवानी स्तोत्र, आ. लघ्वाचार्य, सं., श्लो. २४, पद्य, वै., (ऐंद्रस्यैव शरासनस्य), ६२२७८-२९(+) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पर्व. १०, ग्रं. ३५०००, वि. १२२०, पद्य, मूपू.,
(सकलार्हत्प्रतिष्ठान), ६०३८५(+$) । (२) सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २६, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (सकलार्हत्प्रतिष्ठान),
५९५९०-४(+), ५९६१८(+$), ६१२४८-३(+$), ६१६६०-१(+$), ६२६६१-१(+), ५९३०९-१, ६१८२२, ६१८२५-२, ६०९२७-३(-)
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५१२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
(३) सकलार्हत् स्तोत्र-टीका, ग. कनककुशल, सं., ग्रं. २८२, वि. १६५४, गद्य, मूपू., (वयम् आर्हत्य), ६२६६१-१(+) (३) सकलार्हत् स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमः श्रीपार्श्वनाथाय), ५९६१८(+$), ६१८२२ (२) नेमिजिन चरित्र-त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रअष्टमपर्वे, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., स. १२, ग्रं. ४७५०, पद्य,
मूपू., (ॐ नमो विश्वनाथाय), ५९७४०($) (३) नेमिजिन चरित्र-त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रअष्टमपर्वे-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य परया भक्त्या), ५९७४०($) त्रिषष्टिशलाकापुरुष विचार स्वाध्याय, आ. विजयरत्नसूरि, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (पणम्य पढमजिणंदरिसह), ६०९५०-३(-) दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., गा. ४५, वि. १५७९, पद्य, मूपू., (नमिउंचउवीसजिणे तस्स), ५९४३९-३(+#), ५९४६४(+),
५९४७०-३(+#), ५९४८५(+), ५९४८७-१(+#), ५९५२५-३(+), ५९५२७(+), ५९५९६-२(+), ५९६३८-२(+), ५९७४९-३(+#), ५९७६५-१०(+#), ६००२७-५५(+9), ६०४४२(+), ६०४८९-१(+), ६०९११-३(+), ६०९४१(+), ६०९६६-४(+), ६०९७२-१(+), ६१०९७-४०(+#), ६११३०-९८(+), ६११६५(+), ६१२०१-१(+), ६१२२७-२(+), ६१६२७(+#$), ६१६६८(+#), ६१७५४(+), ६१७९१(+), ६१८००-१(+), ६१८१८-२(+), ६१९१७-८२(+), ६२२३४(+), ६२३७७(+), ६२६५३(+), ६२६६२(+), ६२६६५(+), ६२७१२-३(+#), ६२८७१-१(+), ५९४५७, ५९६०३, ६०४१४-२, ६०७३३-२, ६११६३, ६१२७६-२, ६१७५२-१,
६१६११-२(#), ६१७६९-१२(१), ६२७२३-३(#) (२) दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., ग्रं. २१६, वि. १५७९, गद्य, मूपू., (श्रीवामेयं महिमामेय), ५९६३८-२(+),
६२३७७(+), ६२६५३(+$) (२) दंडक प्रकरण-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा चतुर्विंशति), ५९४३९-३(+#) (२) दंडक प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (थमा १ वंसा २ सेला ३), ६१६६८(+#) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, पुहि., गद्य, मूपू., (नमस्कार करके चउवीस), ६०९७२-१(+), ६२६५३(+) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मु. यशसोम-शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऐंद्रराजं जिनं नत्वा), ६०९४१(+) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभादिक २४ जिननै), ५९४६४(+), ५९४७०-३(+#), ५९४८५(+), ५९५२७(+),
६०४४२(+$), ६०४८९-१(+), ६०९११-३(+), ६११६५(+), ६१२०१-१(+), ६१६२७(+#s), ६१६६८(+#), ६१७५४(+),
६२२३४(+), ६२६६२(+), ६२६६५(+), ६२७१२-३(+#), ६२८७१-१(+), ६०७३३-२, ६११६३ (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभादिक महावीर), ६१७९१(+) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चौवीश तीर्थंकर ऋषभा), ५९४८७-१(+#) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिउं क. चउवीस तीर्थ), ५९६०३(६) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिउंक० नमस्कार), ५९४५७ दत्त कथा-दानप्रभावे, प्रा.,सं., गा. ३९, पद्य, मूपू., (छहिय मणवजं किरिय), ६१७४३-२(+) दरिद्रविप्रकथा-कर्मदशायां, सं., गद्य, श्वे., (यत्रतयापि यातानां), ६१७३५-१३ दर्शनशुद्धि प्रकरण, आ. चंद्रप्रभसूरि, प्रा., अ. ५, श्लो. २७१, पद्य, मूपू., (पत्तभवण्णवतीरं दुहदव), ६१०५४ (२) दर्शनशुद्धि प्रकरण-वृत्ति, आ. तिलकाचार्य, सं., वि. १२७७, गद्य, मूपू., (यद्वक्त्रांभोजपवाप्य), ६१०५४ दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., अध्य. १० चूलिका २, वी. रवी, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुक्किट्ठ), ५९२४०(+$),
५९२४५(+), ५९२९६-५(+), ५९२९७(+), ५९४२७(+), ५९४६७(+$), ५९४९२(+$), ५९५१३(+), ५९५२२(+$), ५९५५३(+), ५९५७४(+), ५९७१४(+$), ५९७४१(+#), ५९७५६(+$), ५९७८२(+), ५९८१३-२(+#$), ६०४१५(+), ६०९५७(+#$), ६०९७९(+#$), ६०९८७(+), ६०९८८(+#$), ६१०१६(+#), ६१०३७(+#$), ६११३०-८३(+), ६११४३(+#), ६११६२-४(+), ६११६८+), ६११९८(+$), ६१२६१(+$), ६१२६७-४+#), ६१५६१(+), ६१५८६(+६), ६१७७३(+s), ६२०५७(+), ६२०५९(+), ६२०८४(+#), ६२६३२-६२+#), ६२६७३(+), ६२६८२(+), ६२६९० (+$), ६२६९५-१(+$), ६२७५५(+#$), ६२७६४-७+), ६२७७४(+$), ६२९३०(+#$), ५९४३२, ६१०१४, ६१२१०,६१२६६, ६११७२-१, ६१२६५,५९२५८(#$), ५९७५०(#), ५९७६२(#), ५९७८९(#), ६२७३२(#$), ६२८६२(#$), ६११८९६), ६१६८६(), ६१८८०($), ६२७२४(६), ६२८९८($), ६२३०१(-2)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५ (२) दशवकालिकसूत्र-दीपिका वृत्ति, उपा. समयसुंदर गणि, सं., अध्य. १० चूलिका २, ग्रं. ३४५०, वि. १६९१, गद्य, मूपू.,
(स्तंभनाधीशमानम्य), ५९७४१(+#) (२) दशवैकालिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुत्कृष्टं), ५९२४५(+) (२) दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्म सर्वोत्तम मांगल), ५९४३२, ६१२६५, ६२७३२(#$) (२) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (ध० जीवनइ दुर्गति), ५९२४०(+s), ५९४२७(+), ५९४९२(+$), ५९५७४(+),
५९७५६(+$), ५९७८२(+), ५९८१३-२(+#S), ६०९५७(+#$), ६०९८७(+), ६०९८८(+#$), ६११४३(+#), ६११९८(+$), ६१२६१(+$), ६१२६७-४+#), ६१५६१(+), ६१७७३(+$), ६२०५७(+), ६२०५९(+), ६२०८४(+#), ६२६९०(+8),
६२७५५(+#$), ५९४३२, ५९७५०(#), ५९७६२(#), ५९७८९(#), ६२८६२(#$) (२) दशवैकालिकसूत्र-अन्वय, प्रा., गद्य, मूपू., (अहिंसा संजमो तवो), ६१०१४ (३) दशवैकालिकसूत्र-अन्वय का अन्वयार्थ, हिं., गद्य, मूपू., (प्राण व्यपरोपणका), ६१०१४ (२) दशवैकालिकसूत्र-अन्वयार्थ, पुहि., गद्य, मूपू., (अहिंसा प्राण व्यपरोप), ५९५५३(+) (२) दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा अध्ययन १ से ४, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., अध्य. ४, वी. रवी, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुक्किट्ठ),
६२७०५(#) (३) दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा अध्ययन १ से ४ का बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीगुरुना चरणकमल),
६२७०५ (#) (२) दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुक्किट्ठ),
५९५९०-५(+), ६१९१७-६७(+), ६११९५-४३(2) (२) दशवैकालिकसूत्रगत गाथा, संबद्ध, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (सिजंभवं गणहरं जिण), ६२६९५-२(+$) (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, वा. कमलहर्ष, मा.गु., अ. १०, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (मंगलिक महिमा निलो रे),
६२१४१-२१(+) (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., अ.१०, वि. १७१७, पद्य, मूपू., (धर्ममंगल महिमा निलो),
६०१२५-९(+), ६२३५६-२(+) (२) दशवकालिकसूत्र-स्वाध्याय, संबद्ध, ग. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, म्पू., (श्रीश्रुतदेवी पसाउले), ५९९६६-३(#$) दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., दशा. १०, ग्रं. १३८०, पद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० हवइ), ५९२३६(+), ५९६३६(+),
६०४०३(+#), ६०९८५(+#$) (२) दशाश्रुतस्कंधसूत्र-विषमपद टिप्पण", मा.गु., गद्य, पू., (--), ५९२३६(+) (२) दशाश्रुतस्कंधसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीदशाश्रुतस्कंध), ५९६३६(+), ६०४०३(+#), ६०९८५(+#$) दानकल्पद्रुम, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., पल्ल. ९, पद्य, मूपू., (स श्रेयस्त्रिजगद्), ५९४३१(+#$), ६२०६४(+) (२) दानकल्पद्रुम-टबार्थ, मा.गु., ग्रं. ४०००, गद्य, मूपू., (ऋषभस्वामी कहेवा छे), ५९४३१(+#$), ६२०६४(+) दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., गा. ५०, पद्य, स्था., (देवाहिदेवं नमिऊण), ६१२३९(+), ६२८७३-१(+) (२) दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, स्था., (देवाधिदेवनई नमस्कार), ६१२३९(+), ६२८७३-१(+) दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., वक्ष. ४, गा. ८१, पद्य, मूपू., (परिहरिय रज्जसारो), ५९५९८-४(+), ६२९४०($) (२) दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (परिहरिउंछाडिउ स ग), ६२९४०($) (२) दानशीलतपभावना कुलक-शब्दार्थ, मु. गोकुलचंद्र ऋषि, सं., गद्य, मूपू., (परिहरति राज्यलक्ष्मी), ५९५९८-४(+$) दामनक कथा-जीवदया विषये, सं., गद्य, मूपू., (अत्रैव भरतक्षेत्रे), ६१७६७-८(#) दिवालीकल्प, सं., गद्य, मूपू., (श्रीगौतम गणाधीशो), ६११४०-३(+) दीक्षा मुहूर्त, मा.गु.,सं., पद्य, जै., (दिक्षामुहुर्त मघा), ६०३७६-७(#) दीक्षाविधि*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., म्पू., (दीक्षा देन्हार पूरवे), ६२८७६-३(+) दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पुच्छा वासे चिइ वेसे), ६०७०४-१(+) दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., वि. १३८७, गद्य, म्पू., (पणमिय वीरं वुच्छ), ६१६८५(+$)
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५१४
संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट- १ दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., श्लो. ४३७, ग्रं. १५००, वि. १४८३, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमांगल्य), ५९६२५ (+), ६१६६४(+), ६१७६४०), ६०९२५(३)
(२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अर्हते बालबोधीनां), ६१६६४(+), ६१७६४(+) (२) दीपावलीपर्व कल्प- टवार्थ, मा.गु, गद्य, म्पू, (अर्हन्नत्वाल्पबुद्धी), ५९६२५(+), ६०९२५(३) दीपावलीपर्व कल्प, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. सं., गद्य, भूपू., (प्रणम्य सम्यक् परम), ६२४५७/*) दीपावलीपर्व कल्प, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २७८, पद्य, म्पू. (संतु श्रीवर्द्धमान), ६०४३०(+१) ६१५६८.
६२०८६
(२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानस्वामीन), ६०४३० (+#), ६१५६८, ६२०८६ दीपावलीपर्व कल्प, प्रा. सं., गद्य, भूपू (पव्वेसु पोसहविहिं), ६२७७७ (+)
"1
दीपावलीपर्व व्याख्यान, पा. उमेवचंद्र, सं., वि. १८९६, गद्य, मृपू.. ( श्रीनेमीशं जिनं), ६०९९० (+), ५९५८१
दीपावलीपर्व व्याख्यान, सं., प्रा., गद्य, मूपू., (जाते वीरजिनस्य निवृत), ५९७४५-१३(+#)
दीपावलीपर्व व्याख्यान, मा.गु. सं., श्लो. ४, प+ग, भूपू., (पापायां परिचास्षष्ट), ६२२५७-२(+३)
दीपावलीपर्व स्तुति, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, सं., श्लो. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (पापायां पुरि चारु), ६००२७-१८(+), ६१०९७-१७(+#), ६११३०-४४(+), ६१५७६-११००१, ६१९१७-३७, ६२६३२-४४(+९१)
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दीपावलीपर्व स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, भूपू (पापायां पुरि चारु), ६२४२१-१ (४) ६०९१७-१०()
दीवाली व्याख्यान, मा.गु., सं., प+ग, मूपू., (श्रीवर्धमान मंगल्यः), ६२१८० (+)
दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा. गा. ४४, पद्य, म्पू, (दुरिअरवसमीर मोहपंको), ५९७००(+), ५९७४५-३(+४),
६००२७-५२(*), ६१०९७-३५ (+०), ६१२३२-७(+), ६१९१७-७८(*), ६२६३२-७४(+)
(२) दुरिअरयसमीर स्तोत्र - टीका, ग. साधुसोम, सं., वि. १५१९, गद्य, म्पू., (वर्द्धयतु वर्द्धमानः), ५९७०० (+)
(२) दुरिअरयसमीर स्तोत्र - वृत्ति, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, म्पू, (अहं तस्य महावीरदेव), ५९७४५-३(+४) दुषमप्राभृत, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. सं., पद्य, मूपू., (बीइ तेवीस तीह अड नवड), प्रतहीन. (२) दुषमप्राभृत-यंत्र, आ. देवेंद्रसूरि, सं., को. भूपू ( नमः श्रीभद्रबाहवे), ६०४११-१(+)
"
',
दृष्टांतशतक, मु. तेजसिंघ ऋषि, सं., श्लो. १०२, पद्य, श्वे., (नत्वा श्रीवृषभं सदा), ६००५८(+#$), ६१७०० (+$), ६१७९५ (+$),
६२६३८ (०४), ५९२४८
(२) दृष्टांतशतक - टबार्थ, मा.गु., गद्य, जै., (नत्वा नमस्कार करीनइ), ६००५८(+#$)
,
(२) दृष्टांतशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीनई), ६१७०० (+$), ६१७९५ (+$), ६२६३८(+$)
देवसिप्रतिक्रमण विधि- खरतरगच्छीय, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, भूपू (इच्छामि खमासमणो बंदि), ६२३८१-१ देशावगासिक पच्चक्खाण, प्रा., गद्य, मूपू., (अहण्णं भंते तुम्हाणं), ६२६३२-२५(+#)
द्रव्यसंग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., अधि. ३, गा. ५८, पद्य, दि., (जीवमजीवं दव्वं जिणवर), ६०४२८(+), ६१२११-१, ६२७१४(१)
(२) द्रव्यसंग्रह - टीका, सं., गद्य, दि., (अहं नेमिचंद्रः तं), ६२७१४(#)
(२) द्रव्यसंग्रह - बालावबोध, मु. हंसराज, मा.गु., गद्य, म्पू, दि., (श्रीमज्जिनेंद्रदेवान), ६०४२८(+)
"
(२) द्रव्यसंग्रह - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., दि., (जीवद्रव्य अजीवद्रव्य), ६१२११-१
द्रौपदी पंचप्रश्नोत्तराणि, सं., श्लो. ८, पद्य, श्वे., (महाभारते शास्त्रे), ६०९५०-५ ()
द्वात्रिंशद्द्द्वात्रिंशिका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., अ. ३२बीसी, श्लो. १०२४ ग्रं. ५५००, पद्य, मूपू. (ऐंद्रशमंप्रदं दानमन),
६१०९५-१(+)
(२) द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका - स्वोपज्ञ तत्त्वार्थदीपिका टीका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., द्वात. ३२, गद्य, मूपू. (ऐंद्रवृंदविनतांप्रिय), ६१०९५-२(+)
द्विजमुखचपेटा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ४२१, पद्य, मूपू., (सद्भूत भाव्यर्थविकास), ६२१७६(#) धनंजयनाममाला, जैक, धनंजय, सं., श्लो. २११, पद्य, दि., (तन्त्रमामि परं ज्योति), ६०७८४(+), ६०५२३(०)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
धन्नाशालिभद्र कथा, सं. गद्य, भूपू (-) ६१७६७-१(०६)
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धम्मिलकुमार चरित्र, आ. जयशेखरसूरि सं. वि. १४६२, पद्य, मूपू., (बोधिनीजं सतां स्वांत), ६१८३३(+४) धरणेंद्रयक्षपूजा विधि, सं., श्लो. १०, प+ग., मूपू., (धरनयक्षविलक्षविसह्यस), ६१७२२-३(#) धर्मकल्पद्रुम, पंडित, उदयधर्म, सं., पल्ल. ८, पद्य, भूपू (श्रियं दिशतु वो) ६०९४५ (+-६)
६०१४३
धर्मध्यान चतुर्विध आलंबन कथा, प्रा., मा.गु., कथा. ४, गद्य, मूपू., (धर्मकथा तेसु जे भाव), धर्मध्यान लक्षण, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (धम्मेज्झाणे चउविहे), ५९९८१ (+#$) धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांत लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू (लज्जातो भयतो वितर्क), ५९६७५-४(*) (२) धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांत श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, वे., (लज्जाथकी अर्द्धमांडि), ५९६७५-४(+) धर्मरत्न प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. गा. १४५, पद्य, भूपू (नमिऊण सयलगुणरयणकुलहर) ६१०४९ (+४७)
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(२) धर्मरत्न प्रकरण - सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं. ग्रं. १७००, गद्य, मूपू. (सज्ज्ञानलोचनविलोकितस) ६१०४१ (+) धर्मसंग्रह, उपा. मानविजय, सं., प्रक. ४, श्लो. १५९, वि. १७३१, पद्य, मूपू (प्रणम्य प्रणताशेषसुर), ६१११५ (+) (२) धर्मसंग्रह - स्वोपज्ञ टीका, उपा. मानविजय, सं., प्रक. ४, वि. १७३१, गद्य, मूपू., (प्रणम्य विश्वेश्वर) ६१११५ (+ण धर्मोपदेशशतक, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., स. ५, श्लो. १०६, ग्रं. ७४८, पद्य, मूपू., (प्रणिधाय परं ज्योतिर), ६१६५२-१(+$) धान्यव्यापार अतिचार, सं., गद्य, श्वे. (यथाप्रायः सर्वाणि), ६०९५०-७()
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धारणा प्रत्याख्यानसूत्र, प्रा., गद्य, खे, (अरिहंतसक्खियं सिद्धस), ६२६३२-५६(+)
धूर्ताख्यान, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., आख्या ५, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणवरिंदे तिअस), प्रतहीन. (२) धूर्ताख्यान- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सदुपनिषदनेकग्रंथसंदर), ६००५५ (+डी
नंदीश्वरतीर्थ स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (सुमेरुशृंगे कृत जैन), ५९५७८-२८(+), ६१०१५-२४(-) नंदीश्वरद्वीप पूजा, मा.गु. सं., प+ग, मूपु (सर्वासि वासे सुतरां ), ६००६१(+)
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नंदीश्वरद्वीप स्तवन, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ८, पद्य, भूपू (नंदीसरवरदीवमझारे सास), ६२९०८-५६ान नंदीश्वरद्वीप स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (लसद्विपंचाशदधीश्वरा), ६१८७६-२३(+#)
,
नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र, मु. मेरु, अप., मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सिरि निलय जंबुदीवो), ६२३५९-३(+), ६२४२१-२५(माड) नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., सूत्र. ५७ गा. ७०० प+ग, मूपू (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), ५९५६७(+), ६०८८० (+०),
,
६११५८(+), ६११६४(+), ६११७६(+), ६११९० (+), ६१२५६ (+), ६२६८९ (+), ५९५७१, ६११७५, ६२६२६, ६०००२ (०३), ६०७२०(4)
(२) नंदीसूत्र - बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ नंदि इति कः), ६११७६ (+), ६१२५६ (+), ५९५७१($)
(२) नंदीसूत्र- टवार्थ *, मा.गु, गद्य, भूपू (नंदी ते आनंदनी देण), ५९५६७ (+), ६०८८० (+), ६११७६(+), ६११९० (+), ६१२५६(+), ६११७५, ६२६२६
(२) नंदीसूत्र - कथा संग्रह *, मा.गु., कथा. ८९, गद्य, मूपू., (नंदनं नंदि प्रमोदोहर), ६११७६(+)
(२) नंदीसूत्र सज्झाय, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., गा. २७, पद्य, मूपू., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), ६११६२-२(+) (२) नंदीसूत्र स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (अर्हस्तनोतु स श्रेय), ६०४०८-१(+)
(२) नंदीसूत्र - स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा. गा. ५०, पद्य, मूपू (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), प्रतहीन,
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(३) नंदीसूत्र - स्थविरावली टीका, सं., गद्य, मृपू., (प्रथमत आवलिका अभिधि), ६२८४५
नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद. ९, पद्य, मूपू., (णमो अरिहंताणं), ५९९३२ (+), ६१६६७-२ (+), ६२७७३
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(२) नमस्कार महामंत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (बारसगुण अरिहंता), ५९९३२ (+)
(२) नमस्कार महामंत्र- कथा संग्रह, मा.गु., कथा. ६, गद्य, मूपू., ( एह श्रीनउकार भावसहित ), ६२३८२
(२) नवकार कथा, सं., गद्य, भूपू ( श्रीनमस्कारो भावेन), ६२७७३(३)
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नमस्कारमाहात्म्य श्लोक, प्रा.सं., श्लो. १, पद्य, मृपू. (नमस्कारसमं मंत्र), ६१८७६-२४(१)
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नमस्कार स्तव, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा. वो ३३, पद्य, भूपू (परमिट्टि नमुक्कार), ६१६२५ (+)
(२) नमस्कार स्तव स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. जिनकीर्तिसूरि सं. वि. १४९७, गद्य, मूपू., (जिनं विश्वत्रवी), ६१६२५ (०७)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा. गा. २४, पद्य, भूपू (नमिऊण पणयसुरगण), ५९७६५-१३(+), ६१२०७-१(+), ६१७९६-१(+), ६१७९८-२(+#), ६१७३६
(२) नमिऊण स्तोत्र टीका, सं., गद्य, भूपू (सिद्धार्थपार्थिवसुतं), ६१७३६
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(२) नमिऊण स्तोत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू. (नत्वा प्रणमामि देवसम) ६१२०७-१(०)
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नयचक्र, मु. माइल्लधवल, प्रा., गा. ४२५, पद्य, दि., (दव्वाविस्स सहावा), प्रतहीन.
(२) नयचक्र-भाषावचनिका, श्राव. हेमराज शाह, पुहिं., वि. १७२६, गद्य, दि., (वंदो श्रीजिनके वचन), प्रतहीन.
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(३) नयचक्र-भाषावचनिका का बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., दि., (स्यात्कारमुद्रिता), ५९८३२-२(+), ६२३४८(+#) नयचक्रसार, ग. देवचंद्र, सं., वि. १८वी, गद्य, भूपू (प्रणम्य परमब्रह्म) ६०५१७(+), ६१६३२(+), ६९८७८(०४)
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(२) नयचक्रसार - स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, नयप्रकाश स्तव, ग. पद्मसागर सं. श्री. ९, पद्य, भूपू (२) नयप्रकाश स्तव स्वोपज्ञ वृत्ति, ग. पद्मसागर, सं. ग्रं. ७४०, वि. १६७६, गद्य, भूपू (गंगाप्रवाहा इव वाग्व), ६०८९७(+) नयरहस्य, उपा. यशोविजयजी गणि, सं. ग्रं. ५७५, गद्य, मूपू. (एंद्रश्रेणिनतं नत्वा), ६१७१५ नरकगतिविचार गाथा, प्रा., मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (नरयगई पडिहत्थकए तह), ६१००९-३ (+#) नल कथा - द्यूतविषये, सं., गद्य, मूपू, (अत्रेव भरते कोशलदेशे), ६१७६७-१२(१
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नलचंपू, त्रिविक्रम भट्ट, सं., अ. ७ उच्छवास, गद्य, वै., ( जयति गिरिसुतायाः), प्रतहीन..
(२) दमयंतीकथा - टीका, पं. गुणविनय गणि, सं., गद्य, म्पू. वै., ( ध्यात्वा सरस्वती), ६२८४७(+) नवग्रहजाति व उत्पत्तिस्थान, प्रा., सं., गा. १, पद्य, वै., (कंसारो भरडो लोहार), ६०१९२-२(+#) (२) नवग्रह उत्पत्तिस्थान-टबार्थ, मा.गु., गद्य, वै., ( सूर्य कंसारो चंद्रमा), ६०१९२-२(+#) नवतत्त्व प्रकरण, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुण्णं पावा), ६०३८१(#) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. मेरुतुंगसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीरं विभुं), ६०३८१ (#) नवतत्त्व प्रकरण, आ. धर्मसूरि, प्रा., गा. ६०, पद्य, भूपू (-), ५९४८३ (+)
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मा.गु., वि. १८वी, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमब्रह्म), ६०५१७(+), ६१८७८(+$) (तस्मै नमः श्रीजिन), ६०८९७(१)
(२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५९४८३(०६)
नवतत्त्व प्रकरण, आ. मणिरत्नसूरि प्रा. गा. ५५, पद्य, मूपु. ( जीवाजीवापुन्नं पावा), ६१७३२(+०)
"
(२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), ६१७३२ (+#)
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., गा. ६०, पद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुण्णं पावा), ५९२७०-१(+), ५९४३९-१(+#$), ५९४५० (+#), ५९४५१-१(+), ५९४६६ (+३), ५९४९० (+), ५९४९१(+), ५९४९४(•०३), ५९४९७(+), ५९५०९(०), ५९५१९-२(+), ५९५२५-२(+), ५९५९६-१(+), ५९६२१(+), ५९६३१(+), ५९६३८-१(+), ५९७४९-१(+), ५९७६५-९(+), ५९८५०-१(०), ६००२७-५४(का ६०५०२(+#), ६०९०५(+$), ६०९११-१(+), ६०९६६-२ (+), ६०९७३-१(+), ६१०४८ (+#), ६१०९७-३९(+#), ६११३० ९७(+), ६१२२४-२ (+), ६१२२७-१ (+), ६१२५३(+), ६१२७४-२ (+), ६१६१२(+), ६१६३८ (+), ६१६४०(+), ६१६४१(+), ६१६५०-२(००), ६१६७५-१(+), ६१७५३(+), ६१७८५ (०४), ६१८००-२(+), ६१८९८-१(०), ६१८१९(४) ६१८२८(+), ६१९००(+#), ६१९१७-८१(+), ६२४७० (+), ६२७१०-१(+#), ६२७१२-२ (+#), ६२७२० (+#), ६२७६५-२ (+), ६२७७२(+#), ६२८०६(+), ६२८०८-१(+४), ६२८१३(+), ६२८९५-२ (-१), ६२९२१-२(+४), ५९६७३, ६०४१४-१, ६०४३६, ६२७३५, ६१०४२-१(३), ६१७६९-११(०), ५९५०३(३), ५९५०५(5) ६०४४४-१(5), ६२७५७-७(5)
(२) नवतत्त्व प्रकरण- टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं. ग्रं. ४७७, गद्य, मृपू. (श्रीवर्द्धमानजिनपति), ५९२७०-१(+)
(२) नवतत्त्व प्रकरण- टीका, मु. नेतृसिंह कवि, सं., गद्य, भूपू (अमरपतिगणैव वंतितो), ५९६३१ (+०३), ५९६३८-११)
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(२) नवतत्त्व प्रकरण अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, भूपू (जयति श्रीमहावीर), ६०५०२ (+)
(२) नवतत्त्व प्रकरण- टिप्पण * सं., गद्य, म्पू, (जीवति दशविधान), ५९४३९-१(+४)
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(२) नवतत्त्व प्रकरण वालावबोध, मु. सोमसुंदरसूरि शिष्य, मा.गु, गद्य, भूपू (यथा स्थित साचडं जे), ६२४७० (+) (२) नवतत्त्व प्रकरण बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू., (जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), ५९४५० (+४), ५९८५०-१(+), ६१२२४-२(+),
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६२८०६ (+), ६२८१३(+), ६०४१४-१, ६२३०९ (४), ५९९५७ (३)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
(२) नवतत्त्व प्रकरण बालावबोध में रा. गद्य, मृपू. ( जीवाजीवा० जीवतत्त्व), ६२३४६(१) (२) नवतत्त्व प्रकरण बालावबोध, मा.गु. ग्रं. २००, गद्य, म्पू, (हवे विवेकि सम्यग्), ६२३७६
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(२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (साचउ वस्तुनउ स्वरूप), ६१७८५ (+$)
(२) नवतत्व प्रकरण-वार्थ, उपा. मानविजय, मा.गु.. ग्रं. १२५०, गद्य, भूपू (वीरजिनं नत्वा मत्वा), ६१६७५-१(+)
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-
(२) नवतत्त्व प्रकरण बार्थ में, मा.गु., गद्य, म्पू., ( जीव कहतां च्यार), ५९४५० (+), ५९४५१-१(०६), ५९४६६ (+5), ५९४९० (+),
५९४९१(), ५९४९४/+#5), ५९४९७(+), ५९५०९(+), ६०९११-१ (+), ६१०४८ (+४) ६१२५३(+), ६१६१२(+), ६१६४०(+), ६१८१९(+), ६१८२८(+), ६२७१२-२(+), ६२७२०(+), ६२७७२(+), ६२८०८-१(००३), ६२९२१-२ (०३), ५९६७३, ६०४३६, ६२७३५, ६१०४२-१(#$), ५९५०५ ($)
(२) नवतत्त्व प्रकरण बार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू ( जीवतत्व १ अजीवतत्व २), ६२७१०-१(+)
(२) नवतत्त्व- २७६ बोल, संबद्ध, मा.गु, गद्य, भूपू ( जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), ५९४७०-२ (+)
(२) नवतत्त्व प्रकरण-रूपी अरूपी बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नवतत्त्व मांहि रुपि), ६२३९५-१ (+)
(२) नवतत्त्व प्रकरण - विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नवतत्त्व नाम जीव), ६०१५० ($)
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., गा. १०७, पद्य, मूपू., (जीवाजीवापुन्नं पावा), ६०३६६ (+), ६२०८३-१ (+), ६१८९९(#$), ६२७३८-१(#) (२) नवतत्त्व प्रकरण- टबार्थ, ग. मानविजय, मा.गु., गद्य, म्पू, (जीवतत्त्व चेतना सहित), ६२०८३-१(+)
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(२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिनं नत्वा), ६१८९९(#$), ६२७३८-१(#)
नवपद आवाहन, प्रा., मा.गु., पद्य, श्वे. (अंतरंगारिगणे सुनाणे), ५९५७८-२२ (+)
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नवपद खमासण विचार, पुहिं. सं., गद्य, भूपू ( तिहां प्रथम पदे), ६२२७३(+)
नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., मा.गु. सं., पूजा, ९, पद्य, म्पू, (उपन्नसन्नाणमहोमयाणं), ६२४३७-१, ५९८७९ (६), ६०१४९-४१०१, ६२२६३(३) ६२४८२ (६)
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नवपदस्वरूप दर्शन, प्रा. गा. ९, पद्य, भूपू (जिअंतरंगारि जणे), ६१०१५-१८१
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नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., स्मर. ९, पण, मृपू, नमो अरिहंताणं० हवइ), ५९५७८-१(+), ५९७११(+),
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६०९१२(५७), ६१०३९(+), ६१२३३-१(+३), ६२८१७(+३), ६२८३२(+०३), ६०३९८-१, ६११८४, ६१९९६, ६१५८३-१, ५९२९४(१६), ६०८९४(०४) ६१२६३-१(०३), ६१६०२ (०४) ६१७६८-१(०४), ६०९३८(४), ६२८२२(७), ६०७८७-१८) (२) नवस्मरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनई माहरो ), ६११८४, ५९२९४ (#$), ६१७६८-१ (#$), ६०७८७-१(-) नागदत्त कथा- अदत्तादान ऊपर, मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (परजनमनः पीडाक्रीडावनं), ६२९२९-५ (+) नागश्री कथा - रात्रिभोजन परिहार, मु. ब्रह्म नेमिदत्त, सं., श्लो. ३६५, पद्य, दि., (श्रीमज्जिनं जगत्), ६११५६ (+$) नाभाकराज चरित्र, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., श्लो. २९५, वि. १४६४, पद्य, मूपू (सौभाग्यारोग्यभाग्योत), ६१०४५) निःशुकद्यूतकार कथा, सं., गद्य थे. (शूरे धीमतिनिःशूके), ६१७३५-१०
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निगोद विचार, प्रा., गा. ४, पद्य, वे (चउहा अनंता जीवा अवर), ५९६०७-२(*)
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(२) निगोदविचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, वे. (श्रीतीर्थंकर वीतराग), ५९६०७-२(+)
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निशीथसूत्र, प्रा. उ. २०, ग्रं. ८१५, गद्य, मूपू., (जे भिखु हत्थ कम्म), ५९६२९(+), ६०३९९ (+), ६१८४३ (+), ६१८७९(+)
(२) निशीथसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे० जे साधु ह० हस्तक), ५९६२९ (७)
(२) निशीथसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हुवो सु०), ६०३९९ (+), ६१८४३(+), ६१८७९(+)
नेमराजिमती ९ भव वर्णन, सं., गद्य, मूपू., (--), ५९७०६-१($)
नेमिजिन स्तव, प्रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (वंदामि नेमिनाहं पंचम), ६२४२१-३० (+)
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नेमिजिन स्तवन, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (महिमानल्पनेमेशा महिम), ६२९०८-३० (+) नेमिजिन स्तवन- पंचवर्गपरिहार, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. १९, पद्य, मृपू.. (शैवेयसार्व सरसं सहस) ६२९०८-१२(०) (२) नेमिजिन स्तवन- पंचवर्गपरिहार- टिप्पण, सं., गद्य, भूपू. (--), ६२९०८-१२(+) नेमिजिन स्तोत्र, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. १६, पद्य, मूपू., (जनप्रीतिदानीतिदा), ६२९०८-४(+) (२) नेमिजिन स्तोत्र - टिप्पण, सं., गद्य, म्पू, (--), ६२९०८-४०)
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५१८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
नेमिजिन स्तोत्र, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ८, पद्य, म्पू., (नेमेशिवावासमगुर्नराः), ६२९०८-३३(+) (२) नेमिजिन स्तोत्र-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (--), ६२९०८-३३(+) । नेमिजिन स्तोत्र, पं.शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (पदपावितभूमिमंडलं स्व), ६२९०८-२(+) (२) नेमिजिन स्तोत्र-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (--), ६२९०८-२(+) नेमिजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (परमानं क्षुधात), ६११३०-६७(+), ६१९१७-५३(+) नेमिनिर्वाण महाकाव्य, जै.क. वाग्भट्ट, सं., स. १५, ई. १२वी, पद्य, मूपू., (श्रीनाभिसूनोः पदपद्म), ६०३८४(+#) (२) नेमिनिर्वाण महाकाव्य-अवचूरि, सं., गद्य, स्पू., (युगादिदेवस्य विस्तार), ६०३८४(+#) न्यायावतारसूत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., श्लो. ३२, वि. ११वी, पद्य, मूपू., (प्रमाणं स्वपराभासि), ६१७२६-१(+) (२) न्यायावतारसूत्र-अवचूरि, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (प्रमाणेत्यादि अनेन), ६१७२६-१(+) पंचकल्पसूत्र, प्रा., गद्य, मूपू., (--), प्रतहीन. (२) पंचकल्पसूत्र-भाष्य, ग. संघदासगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. २५७४, ग्रं. ३१००, पद्य, मूपू., (वंदामि भद्दबाहु), ५९२३९(+$) पंचकल्याणक संख्यासंक्षेप स्तवन, पं.शीलशेखर गणि, प्रा., गा.३, पद्य, मूपू., (कत्तिपणीगुडुबारतेर), ६२९०८-५९(+) पंचकुमार कथा, पा. लक्ष्मीवल्लभ, सं., वि. १७४६, गद्य, मूपू., (अथैकदा द्वाविंशतिम), ६२८२९(+) पंचजिन नमस्कार, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (मौनेनोर्वी व्यहृतपरि), ६२९०८-६१(+) पंचजिन स्तवन, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. २४, पद्य, मूपू., (ऋषभतमभिसूरत्वं शिव), ६२९०८-२४(+) पंचजिन स्तोत्र, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ६, पद्य, म्पू., (युगादिनाथं जितमोहसेन), ६२९०८-३६(+) पंचदंड कथा-विक्रमचरित्रे, आ. रामचंद्रसूरि, सं., श्लो. २५५०, वि. १४९०, पद्य, म्पू., (प्रणम्य जगदानंद दायक), ५९७३८(+),
६१०६०-१(+) पंचपरमेष्टि स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (स्वश्रियं श्रीमद), ६२१६४-२५(-) पंचपरमेष्ठि १०८ गुणवर्णन, प्रा.,सं., गा. १, पद्य, मूपू., (बारसगुण अरिहंता), ६०१६४(+$) पंचपरमेष्ठिगुण वर्णन, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (बारस गुण अरिहंता), ६०३६८-५ पंचपरमेष्ठि बीजयंत्र साधना विधि, सं., प+ग., श्वे., (श्रीवामेयं जिन), ६२६४६-४(#$) पंचपरमेष्ठि स्तुति, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (णमिउण असुरसुरगरूल), ५९५७८-२९(+), ६१०१५-२५(-) पंचवस्तुक, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. १७१४, पद्य, मूपू., (णमिऊण वद्धमाणं सम्म), ६१८४६ (२) पंचवस्तुक-स्वोपज्ञ शिष्यहिता व्याख्या, आ. हरिभद्रसूरि, सं., ग्रं. ७१७५, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनं वीरं), ६१८४६ पंचसंग्रह, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., गा. ९९१, पद्य, मूपू., (नमिउण जिणं वीरं सम्म), ६१००७(#$), ६१९०५($) (२) पंचसंग्रह-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं. १८८५०, गद्य, मूपू., (अशेषकर्मद्रुमदाहदाव), ६१००७(#$), ६०९०४(६),
६१९०५($) पंचाख्यान वार्तिक, सं., श्लो. ४८, पद्य, श्वे.?, (कुश्रितं कुप्रनष्टं), ६२३०४(#) (२) पंचाख्यान वार्तिक-बालावबोध, मा.गु., ग्रं. १५००, गद्य, श्वे.?, (दक्षिणदेश तिहां महिल), ६२३०४(#) पंचाशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पंचा. १९, गा. ९४०, ग्रं. ११८७, पद्य, मूपू., (नमिण वद्धमाणं सावग), ६१९२३(+) (२) पंचाशक प्रकरण-शिष्यहिता वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., ग्रं. ७४८०, वि. ११२४, गद्य, मूपू., (सदृष्टीनां समस्तार्थ),
६१९२३(+) (२) पंचाशक प्रकरण-हिस्सा गुर्वाज्ञाकथन, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (छट्ठट्ठमदसमदुवालसेहि), ६०४१९-२(+) (३) पंचाशक प्रकरण-हिस्सा गुर्वाज्ञाकथन की टीका, सं., गद्य, मूपू., (षष्टाष्टमद्वादशैः), ६०४१९-२(+), ५९२६४-२ पंचिंदियसूत्र, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (पंचिदिअसंवरणो तह), ६२८७६-२(+) (२) पंचिंदियसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पंचेंद्रिय स्पर्शना), ६२८७६-२(+) पउमचरिय, आ. विमलसूरि, प्रा., पर्व. ११८, गा. ८६५१, ग्रं. १२०००, ई. ३वी, पद्य, मपू., (सिद्ध सुर किन्नरोरग), ६१९२५ पच्चक्खाण आगार गाथा, प्रा., पद्य, मूपू., (नवकार १ पोरिसीए २), ६२६३२-५५(+#) पच्चक्खाण कल्पमान-पोरसी, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (सावण वद पडवाक दिन), ६२४८८-२(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
पट्टावली*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर), ५९८४३(+) । पट्टावली खरतरगच्छीय, उपा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८३०, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जगन्नाथ), ५९६५४(+#) पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., श्लो. १४, पद्य, मूपू., (नमः श्रीवर्द्धमानाय), ६२७६४-२(+) पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरायुर्वर्ष ७२), ६२६९७-३(+$) पट्टावली तपागच्छीय, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (सिरिमंतो सुहहेउ), ५९२४४(+) (२) पट्टावली तपागच्छीय-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, मूपू., (सिरिमंतोत्ति यत्तदो), ५९२४४(+) पडिलेहण कुलक, ग. विजयविमल, प्रा., गा. २८, पद्य, मूपू., (पडिलेहणाविसेस), ५९५२९(#) (२) पडिलेहण कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रतिलेखनाना विशेष), ५९५२९(१) पत्रलेखन विधि, सं., प+ग., श्वे., (स्वस्ति श्रीनिकरं य), ६१६२१ पद्मावती कल्प, सं., अ. ६, श्लो. ७२, प+ग., मूपू., (ऐं क्लीं ह्रौँ नागा), ६०८८३-२, ६१००८-२(-) पद्मावती कल्प, सं., गद्य, मूपू., (हाँ ह्रीँ हूँ), ६०८८३-३ पद्मावती कल्पद्वादशयंत्र, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., (दिक्षुकूटा निचि), ६०८८३-५ पद्मावती कल्प-रक्त, सं., गद्य, मूपू., (ओं ह्रीं क्लीं पञ), ६१००८-५(-) पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), ६०८८३-१२, ५९४९३(६), ६१००८-८(.) (२) पद्मावतीदेवी अष्टक-टीका, सं., गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनं देव), ६०८८३-१४, ५९४९३(s), ६१००८-१०-) (२) पद्मावतीदेवी अष्टक-पार्श्वदेवीय वृत्ति, ग. पार्श्वदेव, सं., ग्रं. ५००, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्यं जिनं देव), ५९४४७(+) पद्मावतीदेवी चौपाई, आ. जिनप्रभसूरि, अप., गा. ३७, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (जिणसासण अवधाक करेवि), ६०८८३-९,
६१००८-४(-) पद्मावतीदेवी पूजन कल्प, सं., गद्य, मूपू., (चतुषष्टि बीजदले आदिक), ६१००८-७(-) पद्मावतीदेवी मंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ आँक्रॉहीए), ६१००८-६(-) पद्मावतीदेवी स्तव, सं., श्लो. २७, पद्य, मूपू., (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), ५९५७८-३१(+), ६११६७-१(+#), ६१६५५, ६१७२२-४(#),
६१०१५-२८(-) पद्मावतीदेवी स्तोत्र, पंडित. श्रीधराचार्य, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (जयंती भद्र मातंगी), ६२२७८-२६(+) पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ४१, प+ग., मूपू., (ॐ अस्य श्रीमंत्रराज), ६१०८९-८($) पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथजिन), ६१७२२-५(१) पद्मावतीपटल स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (श्रीमन्माणिक्यरश्मि), ५९५३५-२(+#) पद्मावतीपूजन विधि, मु. इंद्रनंदि, सं., गद्य, दि., (ॐ नमो भगवते), ६०८८३-७ पद्मावती पूजन-शैवागमोक्त, सं., गद्य, मपू., (ततो रक्तपद्मावती १), ६०८८३-११ पद्मावती पूजा, सं., गद्य, मूपू., (आदौ मंत्र निवेशः ततो), ६०८८३-४ पद्मावतीपूजा छंद, सं., पद्य, मूपू., (श्रीसव्यपानिगति), ६१७२२-६(#$) पद्मावती पूजा व विधि, सं., गद्य, मूपू., (ओम ह्रीं क्लीं सो), ६०८८३-१ पद्मावती यंत्रोद्धार, सं., गद्य, मूपू., (षट्कोण मंडलचादौ षट्), ६०८८३-६ पद्मावती-रक्तवर्णीय पूजन विधिवृद्ध, सं., गद्य, मूपू., (पूग ४०० पत्र ४००), ६०८८३-८ पद्मावतीव्रतउद्यापन पूजा, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमः श्रीपार्श्वनाथाय), ६१७२२-२(#) पद्मावतीसहस्रनाम स्तोत्र, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (प्रणम्य परया भक्त्या ), ६१७२२-१(#S) पद्मावतीसहस्रनाम स्तोत्र, सं., श्लो. १३५, पद्य, मूपू., (प्रणम्य परया भक्त्या), ५९५३५-१(+#), ५९४७५-१ पद्मावती स्तोत्र-क्षेपक, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (गर्जभीरदगर्भ निर्गत), ६०८८३-१३, ६१००८-९) पद्मावती स्तोत्र-यंत्रमंत्र स्थापना विधि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (श्रियं दिशितु वो देव), ५९४७५-२ परमसुखद्वात्रिंशिका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (धर्माधर्मांतर मत्वा), ५९६२७-१०(+) (२) परमसुखद्वात्रिंशिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्म अने अधर्म जे), ५९६२७-१०(+)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
परमात्म प्रकाश, मु. योगींद्रदेव, अप. गा. ३४५, वि. ६वी, पद्य, दि., (जे जाया झाणग्गियए), प्रतहीन.
"
(२) परमात्म प्रकाश-पद्यानुवाद, मु. नथमल, पुहिं., गा. ३५६, वि. १९९९, पद्य, दि., (जाके ज्ञानादरस मैं), ६२०९४(+) परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. २५, वि. १८वी, पद्य, मूपू. (परमानंदसंपन्न), ५९६२७-६(+) (२) परमानंद स्तोत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (परमात्माने नमस्कार), ५९६२७-६(+)
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परीक्षामुखसूत्र, आ. माणिक्यनंदि, सं., समु. ६, सू. २०७, वि. ५६९, पद्य, दि., (प्रमाणदर्थसंसिद्धि), ५९४३७(+#$) (२) परीक्षामुखसूत्र - प्रमेयरत्नमाला टीका, आ. अनंतवीर्यजी, सं., समु. ६, प+ग. वि., ( नतामरशिरोरत्नप्रभाप), ५९४३७(+०६) पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., गा. ७०, ग्रं. २४५, पद्य, मूपू., (नमिउण भणइ एवं भयवं), ५९७३१-१ (+), ६०६०३(+), ६०९६२(+),
,
-
६०९७७(+), ६२७३१-१(०) ६२८७८(*), ६१८१०, ६२०८२
(२) पर्यंताराधना-टवार्थ *, मा.गु, गद्य, म्पू., (नमस्कार करिने), ५९७३१-१(+), ६०६०३(*), ६०९६२ (०), ६०९७७(+),
६२७३१-१(+), ६२८७८* ६१८१०. ६२०८२
पर्युषणाचिंतामणी प्रकरण, पं. अमृतकुशल, सं., वि. १८५६, गद्य, मूपू., (चिदानंदस्वरूपाय), ६०४१८-१(+)
(२) पर्युषणाचिंतामणी प्रकरण बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६१०२४(३)
पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., श्लो. ६२४, वि. १७८९, पद्य, मूपू., (स्मृत्वा पार्श्व), ५९५६५ (+#), ५९७४३(+#),
६०७३१-१(+०), ६१००१(+), ६१००३ (+), ६११८०(०), ६१६०५ (०७), ६२४५४(०), ६२९०४(+), ६१२५८(०) ६१६०३ (६), ६२६५९(३)
(२) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथ भगवंत), ६२४५४(+)
(२) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान टबार्थ, ग. ऋद्धिविजय, मा.गु., गद्य, भूपू (स्मृत्वा समरीने श्री), ६१२५८ाक
(२) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान टबार्थ *, मा.गु., गद्य, भूपू (स्मृ० श्रीपार्श्वनाथ), ५९५६५ (+४) ५९७४३ (+5), ६१००१(+),
,
1
६१००३(+), ६११८०+), ६१६०५ (+३), ६२९०४(+), ६१६०३(8)
पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, आ. लक्ष्मीसूरि, सं., व्याख. ३, वी. १६६९, गद्य, मूपू., (सामायिकप्रमुखशिक्षाव), ६०९५२-१(#) पांडव चरित्र, ग. देवविजय, सं., स. १८, ग्रं. १००००, वि. १६६०, गद्य, मूपू., (ॐ नमो वृषभस्वामियोग), ६०४७५ (+$) पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि सं., श्लो. ४, पद्य, भूपू (स्नातस्याप्रतिमस्य), ६०९१४-८ (०) ६०९८६-२(*), ६१२०३-७(+),
',
-
५९३०९ ४, ६१६९४-९ (#)
(२) पाक्षिक स्तुति - टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू. (स्नात न्हवराव्यो), ६०९८६-२ (+)
पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथानक, सं., प+ग, मूपू., ( धर्मतः सकलमंगलावली), ६११५४ ६२८४२ (०) ६१६७१ (३) (२) पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथानक - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६१६७१($) पार्श्वजिन अष्टक - महामंत्रगर्भित सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू (श्रीमदेवेंद्रवृंदा), ५९५७८-१९(०), ६१०१५-१५(१
१७
पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, भूपू (ॐ नमः पार्श्वनाथाय), ६१८७६-४८(+४), ६१७६८-२(१६), ६१५८३-२(३),
,
६२१६४-२ (-)
पार्श्वजिन चैत्यवंदन - यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर सं., श्लो. ७, पद्य, भूपू., (वरसं वरस वरस वरस), ६११३०-७८(१), ६१८७६-४५(१०) पार्श्वजिन नमस्कार - जीरावला, सं., श्लो. १, पद्य, मृपू. (आधिव्याधिहरो देवो), ५९५८९-३(+९१)
पार्श्वजिन पद, मु. जिनचंद्र, सं., गा. ३, पद्य, भूपू (अर्हत भगवत वामानंदन), ६२३६३-१६
"
पार्श्वजिन पद्मावतीदेवी छंद, मा.गु., सं., गा. ११, पद्य, मूपू., (कलिकुंडंदंडं), ६१२६३-२ (#$)
पार्श्वजिनमहिम्न स्तोत्र, आ. रघुनाथ, सं., श्लो. ४१, वि. १८५७, पद्य, स्था., (महिम्नः पारं ते परम), ६२६६८-२(#)
पार्श्वजिन माहात्म्य कथासंग्रह- स्थंभनपार्श्व, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., प्रबं. ३२ वि. ११३१, गद्य, मूपु. ( श्रीस्थंभन पार्क), ६१६९६ पार्श्वजिन लघुस्तवन- इरियापथिकी मिथ्यादुः खकृत विचारगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (मणुयात
तिडुत्तर न), ५९५९०-९(+)
पार्श्वजिन स्तव, सं., श्लो. ७, पद्य, भूपू (लक्ष्मीनिदानं गुरु), ६१८७६-५ (+४)
पार्श्वजिन स्तव, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (विशदगुणविचित्रं), ६१८७६-३(+#)
पार्श्वजिन स्तव अममंत्राम्नाय गर्भित, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू (ॐ नमो भगवते श्री), ६२१४१-२४(+), ६१००८-१२)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
५२१ (२) पार्श्वजिन स्तव-अट्टेमट्टेमंत्राम्नाय गर्भित-मंत्रसाधन विधि, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (कुंकुमगोरोचनकर्पूर), ६१००८-१३(-) पार्श्वजिन स्तव-करहेटक, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (आनंदभंदकुमुदाकरपूर्ण), ६११३०-७७(+), ६१८७६-४७(+#) पार्श्वजिन स्तव-गोडीजी, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिने), ६१८७६-८(+#) पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, उपा. देवकुशल पाठक, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (स्फुरदेवनागेंद्र), ६१८७६-४२(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कमलप्रभ, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (जस्स फणिंद फणो होई), ६०९३४-७(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रत्नकीर्ति, प्रा., गा.७, पद्य, मूपू., (नमिऊण पासनाहं विसहरव), ६०९३४-६(+) पार्श्वजिन स्तवन, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ९, पद्य, स्पू., (पार्श्वेन पार्श्वेन), ६२९०८-३४(+) (२) पार्श्वजिन स्तवन-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (--), ६२९०८-३४(+) पार्श्वजिन स्तवन, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., (प्रभु मस्तसमस्त महा), ६२९०८-२७(+) पार्श्वजिन स्तवन, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. १८, पद्य, मूपू., (भास्वन्महाः सुमहिमाव), ६२९०८-३८(+) (२) पार्श्वजिन स्तवन-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (--), ६२९०८-३८(+) पार्श्वजिन स्तवन, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (चउकसाय पडिमल्ल), ५९५८९-४(+#) पार्श्वजिन स्तवन, सं., श्लो.८, पद्य, मपू., (श्रीवामोदर मेदनी), ६२२६४-४ पार्श्वजिन स्तवन-जीरापल्ली मंडन, पं.शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (भक्त्या यस्याभिषेकः), ६२९०८-२१(+) पार्श्वजिन स्तवन-पच्चक्खाणविधिविवरणगर्भित, मु. खेम, प्रा.,मा.गु., ढा. ५, गा. ४४, प+ग., मूपू., (पणमहि पाय जिनराय सिर),
६०१२५-६६(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू., (यस्य ज्ञानदयासिंधो), ६१८७६-४(+#) पार्श्वजिन स्तवन-शृंखलाबंध, मु. जैनचंद्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (सर्वदेवसेवितपदपद्म), ६११३०-७६(+), ६२६६३-१२(-) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (श्रीसेढीतटिनीतटे), ६१०९७-२७(+#), ६११३०-२(+), ६१८७६-३७(+#),
६१९१७-९३(+), ६२६३२-२(+#), ६११९५-९(#) पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनजनतारणगुण), ६११३०-७५(+), ६१९१७-६१(+) पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (विशदसद्गुणराजिविराजि), ६१८७६-७(+#) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (यः संसार विगाहमान), ५९६७५-२(+) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (हर्षनतासुरनिर्जरलोक), ६१०९७-११(+#), ६१५७६-२७(+#), ६१८८६-१५(+),
६१९१७-३३(+), ६२६३२-३५(+#), ६०९१७-१२(-) पार्श्वजिन स्तुति-गोडीमंडन, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (जिनेशः पार्श्वेशः), ६२६३२-२८(+#) पार्श्वजिन स्तुति-नवखंडा, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (कल्याण कमला गेह), ६१८७६-३८(+#) पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नेंद्रे कि धप), ५९७६५-७(+#), ६००२७-२१(+),
६०३६२-६(+$), ६१०९७-१८(+#), ६११३०-३०(+), ६१८८६-१९(+), ६१९१७-२१(+), ६२६३२-४३(+#), ६११९५-३३(#),
६०९१७-१७) पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (श्रीसर्वज्ञ ज्योति), ६००२७-६(+), ६१०९७-१३(+#), ६११३०-४२(+),
६१५७६-२५(+#), ६१८७६-१६(+#), ६१९१७-२९(+), ६२६३२-३४(+#), ६०९१७-१९०) पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (शमदमोत्तमवस्तुमहापणं), ५९५८९-२२(+#), ६००२७-४(+),
६१०९७-२(+#), ६११३०-१८(+), ६१५७६-२२(+#), ६१८७६-१३(+#), ६१८८६-१४(+), ६१९१७-३२(+), ६२६३२-३३(+#),
६२७६४-६(+), ६०९१७-८(-) पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (हर्षनतासुरनिर्जरलोकं), ६००२७-११(+),
६११३०-३६(+) पार्श्वजिन स्तुति-स्तंभन, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (सिरिथंभणयट्ठिय पास), ६२२६४-६ पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं धरणोर), ६११३०-७१(+), ६१९१७-५७(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (सिग्घमवहरउ विग्घ), ५९५७८-८(+), ५९६५८-४(+$), ५९७६५-१६(+#)
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५२२
संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ पार्श्वजिन स्तोत्र, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (तालतमाल विशाल सालदल), ६२९०८-४४(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (ब्रह्माजिह्मलयं कृता), ६२९०८-१९(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्व तं स्तुव), ६२९०८-१५(+) (२) पार्श्वजिन स्तोत्र-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (--), ६२९०८-१५(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (सुध्यानसुध्यानतपाद), ६२९०८-१(+) (२) पार्श्वजिन स्तोत्र-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू, (--), ६२९०८-१(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (संत्तित्तुः स्तुतिभ), ५९५८९-२(+#) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (अभिनवमंगलमालाकरण), ६११३०-६८(+), ६१९१७-५४(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (अमरतरु कामधेनु चिंता), ६११३०-७३(+), ६१९१७-५९(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (श्यामो वर्ण विराजिते), ६२६६३-९(-) पार्श्वजिन स्तोत्र-कलिकुंड, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं तं नमह), ६२६६३-५(-) पार्श्वजिन स्तोत्र-क्रियागुप्त, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ३२, पद्य, मपू., (जगति शस्तवैराग्यरंग), ६२९०८-९(+) (२) पार्श्वजिन स्तोत्र-क्रियागुप्त-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (--), ६२९०८-९(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (किं कर्पूरमयं सुधारस), ५९५७८-१६(+),
५९६२७-३(+), ६११३०-७०(+), ६१९१७-५६(+), ६१२७१-४(#), ६१०१५-१२-) (२) पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (किं० पार्श्वप्रभुनु), ५९६२७-३(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला महामंत्रमय, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., श्लो. १४, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (ॐ नमो देवदेवाय नित्य),
६२२७८-२८(+), ६२७५७-१(६) । पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, प्रा., गा. १२, पद्य, मूपू., (अरिहं थुणामि पास), ६२४२१-३२(+#) पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., गा. १०, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (दोसावहारदक्खो नालिया),
६००२७-४८(+), ६०९६६-१(+$), ६११३०-९१(+), ६१२३२-३(+), ६१९१७-७१(+), ६२६३२-६५(+#), ६२८९१-४(+),
६११९५-४७(#), ६१७६९-६(#) पार्श्वजिन स्तोत्र-यमकबंध, उपा. समयसुंदर गणि, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (प्रणत मानव मानव मानव), ६१८७६-४६(+#) पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मी, मु. पद्मप्रभदेव, सं., श्लो. ९, पद्य, दि., (लक्ष्मीर्महस्तुल्य), ५९५७८-३४(+), ६१०१५-३१(-) पार्श्वजिन स्तोत्र-वाराणसी, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (चित्तबहुलाइ चविङ), ६११३०-७४(+), ६१९१७-६०(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., गा. ३२, वि. १७१२, पद्य, मूपू., (जय जय जगनायक), ६१२७१-३(#) पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, सं., श्लो. ५, वि. १८१७, पद्य, मूपू., (गोडी ग्रामे स्तंभने), ६१८७६-६(+#) पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, पं.शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (जय पार्श्वजिनेश्वर), ६२९०८-५०(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-समस्याबंध, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथं तमह), ६१८७६-५३(+#) पार्श्वजिन स्तोत्र-सहस्रफणी, उपा. भक्तिलाभ, सं., श्लो. १६, पद्य, मूपू., (ध्यात्वा सद्गुरु पाद), ५९५७८-२४(+), ६२२७८-२१(+),
६१०१५-२०(२) पार्श्वजिन स्तोत्र-स्तंभनतीर्थ, आ. तरुणप्रभसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (श्रीस्तंभनस्तंभन), ६०९३४-५(+) पार्श्वनाथ चरित्र, आ. भावदेवसूरि, सं., स. ८, ग्रं. ६४००, वि. १३१२, पद्य, मूपू., (नाभेयाय नमस्तस्मै), ६०४९०(+) पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., श्लो. १९६, पद्य, श्वे., (महादेवं नमस्कृत्य), ५९६२०(+#$), ६०५३४(+$), ६०५४२(+#), ६०५९८(+),
६२८७९(+), ६०७८३, ६०७८५, ६११६६,५९३७१(#) (२) पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, श्वे., (१११ उत्तम थानक लाभ), ६२२२१, ६२५९९(-) पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १०३, पद्य, मूपू., (देविंदविंदवंदिय पयार), ६२७७१ पुच्छिस्सुणं, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. १९, पद्य, मूपू., (कल्याणी कोडीकारणी), ६१२६७-३(+#) पुण्य कुलक, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (सपुन्न इंदिअत्त माणु), ५९५४४-३(+), ५९५९८-१(+) (२) पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (पुरु पंचिन्द्रियपणो), ५९५४४-३(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
५२३ (२) पुण्यकुलक-शब्दार्थ, मु. गोकुलचंद्र ऋषि, सं., गद्य, मूपू., (संपूर्णप्रतिपूर्ण), ५९५९८-१(+) पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., वि. १५वी, पद्य, मूपू., (छत्तीसदिवस सहस्सा), ५९५४४-२(+), ५९५९८-३(+), ६१७३७-१ (२) पुण्यपाप कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवै सो वर्षना दिन), ५९५४४-२(+), ६१७३७-१ (२) पुण्यपाप कुलक-शब्दार्थ, मु. गोकुलचंद्र ऋषि, सं., गद्य, मूपू., (छत्तीस सहस्र दिवसो), ५९५९८-३(+) पुराणहुंडी, मा.गु.,सं., श्लो. २७८, पद्य, श्वे., वै., (श्रूयतां धर्मः), ५९३४९(+#$), ६०८५४-१, ५९८४९-२(#) (२) पुराणहंडी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., वै., (ध० धर्म सघलाई सांभल), ५९३४९(+#$) पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (जइ णं भंते समणेणं०), ५९७४७-४(+), ६०४०७-४(+), ६१०२३-४(+#), ६२६९१-४,
५९६२६-४(६) (२) पुष्पचूलिकासूत्र-टिप्पण, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (--), ६१०२३-४(+#) (२) पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतरागदेवने नमस), ५९७४७-४(+) पुष्पिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (जति णं भंते समणेण०), ५९७४७-३(+), ६०४०७-३(+), ६१०२३-३(+#), ६२६९१-३,
५९६२६-३(5) (२) पुष्पिकासूत्र-टिप्पण", मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (--), ६१०२३-३(+#) (२) पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जौ हे पूज्य०), ५९७४७-३(+) पूजा प्रकरण, वा. उमास्वाति, सं., श्लो. १९, पद्य, मूपू., (स्नानं पूर्वोन्मुखी), ६१२२२-२(+#) पूजा प्रकरण, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ५६, पद्य, मूपू., (सिरिवद्धमाणतित्थाहिन), ६१७४८(+) (२) पूजा प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वर्द्धश्चासौमानश्च), ६१७४८(+) पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकसूरि, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वनाथ), ५९७४५-७(+#), ६२३१८-६(+), ६१७४७-१(5) (२) पौषदशमीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीने), ६१७४७-१(६) (२) पौषदशमीपर्व कथा-अंतर्कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिम कोसंबीनगरीए धना), ६१७४७-१($) पौषदशमीपर्व कथा, मु. जिनेंद्रसागर, सं., श्लो. ७५, पद्य, मूपू., (ध्यात्वा वामेयमहँत), ६१०४०-१(+), ६१७५१(+), ६२६७६-१(+) पौषदशमीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (अभिनवमंगलमालाकरण), ६११४०-६(+), ६२६७६-२(+$), ६१६००-१ पौषध पारने की विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (इरियावही पडिकमी), ५९६७६-३(+) पौषधप्रतिक्रमण स्थापन गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (पाणिवह मुसावाए अदत्त), ६०३६८-११ पौषध लेने की विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (प्रथम इरियावही पडिकम), ५९६७६-२(+) प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., पद. ३६, सू. २१७६, ग्रं. ७७८७, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० ववगय), ५९५५९(+$),
६०४४८(+), ६०४५९(+$), ६०४६५(+), ६१०९२(+), ६१९०६(+$), ६१०७१(#s), ६१८०१(६) (२) प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., ग्रं. २८०००, वि. १७८४, गद्य, मूपू., (प्रणम्य पुण्यपदपद्म), ६०४४८(+),
६१०९२(+), ६१९०६(+$) (२) प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ, मु. धनविमल, मा.गु., वि. १७०५, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ६०४६५(+) (२) प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५९५५९(+$), ६०४५९(+$) (२) प्रज्ञापनासूत्र-(पु.हि.)पंचम पर्यायपद जीव अजीवादि विचार, संबद्ध, पुहि., पद्य, मूपू., (पटलै सो पर्याय कहिये),
६०१४१(+$) (२) प्रज्ञापनासूत्र-तृतीयपदसंग्रहणी, संबद्ध, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. १३३, पद्य, मूपू., (दिसि १ गइ २ इंदिय ३), प्रतहीन. (३) प्रज्ञापनासूत्र-तृतीयपदसंग्रहणी की अवचूरि, आ. कुलमंडनसूरि, सं., वि. १४४१, गद्य, मूपू., (परित्त इति परीताः), ६१७०९ प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका, मु. रूपसिंह, सं., श्लो. ३७, पद्य, श्वे., (प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन), ५९६२७-७(+) (२) प्रज्ञाप्रकाशषट्विंशिका-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रज्ञा क० बुद्धि), ५९६२७-७(+) प्रतिक्रमण मध्य अंतराय विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (पाखी पडिकमणो करता), ६२६५८-२(+) प्रतिक्रमण समाचारी-विधिपक्षगच्छीय, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (तत्रादावनगारस्य दैवस), ६२६३९(2) प्रतिक्रमण स्तुति, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (कमलदल विपुल नयना), ६१५७६-३(+#), ६१८७६-३६(+#), ६११९५-५(#)
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५२४
संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ प्रतिमाशतक, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. १०४, पद्य, मूपू., (ऐद्रश्रेणि नता), ५९७२०(+), ६२२१३-२(+) प्रतिष्ठा कल्प, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ६०४०९(+), ६१७७०(+) प्रतिष्ठाकल्प, सं., गद्य, मूपू., (लग्ने प्रतिष्ठा विधे), ६०३९४-२ प्रतिष्ठा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पूर्वोक्त शुभ दिवसे), ६०९०८, ६२४८७-१ प्रतिष्ठा विधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य स्वस्ति), ६१८६८-१(+), ६१६८७(#$) प्रतिष्ठासार संग्रह, आ. वसुनंदि सैद्धांतिक, सं., अ. ६, पद्य, दि., (सिद्ध सिद्धात्म), ६१०३८-२ प्रत्याख्यान भाष्य, प्रा., गा. ६०, पद्य, मूपू., (भावि अईयं कोडि अहिय), ६२८७६-१(+) (२) प्रत्याख्यान भाष्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलउ अनागत पच्चक्खा), ६२८७६-१(+) प्रद्युम्न चरित्र, उपा. रत्नचंद्र, सं., स. १७, ग्रं. ३५६९, वि. १६७४, पद्य, मूपू., (राज्यलक्ष्मीायल), ६१८३७ प्रबंधकोश, आ. राजशेखरसूरि, सं., प्रबं. २४, ग्रं. ३८७८, वि. १४०५, गद्य, मूपू., (राज्याभिषेककनकासनस्थ), ६१०५८(+#) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, आ. वादिदेवसूरि, सं., परि.८, सू. ३७९, वि. ११५२-१२२६, प+ग., मूपू., (रागद्वेषविजेतार),
५९२६६(+), ६११०६(+) (२) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार-स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. वादिदेवसूरि, सं., परि. ८, गद्य, मूपू., (नमः
परमविज्ञानदर्शना), ६११०६(+) (३) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार-स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वृत्ति की रत्नाकरावतारिका टीका, आ. रत्नप्रभसूरि, सं., परि.८,
ग्रं. ५६८०, वि. १३वी, प+ग., मूपू., (सिद्धये वर्द्धमान), प्रतहीन. (४) रत्नाकरावतारिका-आद्यश्लोकशतार्थीवृत्ति, उपा. जिनमाणिक्य, सं., पद्य, मूपू., (वितरतु परमार्थरमा), ६१७६१(+) (५) रत्नाकरावतारिका की आद्यश्लोकशतार्थीवृत्ति-टीका, मु. विजय, सं., वि. १५३९, गद्य, मूपू., (इह हि चतुरचतुरंगसभास),
६१७६१) प्रवचनपरीक्षा, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., विश्रा. ११, ग्रं. १२०५, वि. १६२९, पद्य, मूपू., (पणमिअणाणनिहाणं वीर), ६१९४०-१ (२) प्रवचनपरीक्षा-स्वोपज्ञ सहस्रकिरणा वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., विश्रा. ११, ग्रं. १३३८७, वि. १६२९, गद्य, मूपू., (प्रणम्य
श्रीमहावीर), ६१९४०-१ (२) प्रवचनपरीक्षा-बीजक, सं., गद्य, मूपू., (पणमिअ इत्यादि गाथा), ६१९४०-२ प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., द्वा. २७६, गा. १५९९, ग्रं. २०००, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नमिऊण जुगाइजिणं),
६१५८५(+5), ६१०६१(६) (२) प्रवचनसारोद्धार-(पु.हि.)टिप्पण, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६१५८५(+$) प्रव्रज्या कुलक, प्रा., गा. ३४, पद्य, मूपू., (संसार विसमसायर भवजल), ५९२९६-२(+), ५९५८९-१३(+#), ६००२७-३९(+),
६१०९७-३३(+#), ६१७८३-२(+), ६१८८६-३०(+), ६१९१७-१३(+), ६२६३२-६१(+#), ६०९१७-२१(-) प्रश्नचिंतामणि, ग. वीरविजय, सं., खं. २, ग्रं. २२००, वि. १८६८, गद्य, मूपू., (पुष्टंदीवरपीवरद्युत), ६१८५८-१(+$) (२) प्रश्नचिंतामणि-बीजक, मा.गु., गद्य, मूपू., (ब्राह्मी सुंदरी), ६१८५८-२(+) प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. १०, गा. १२५०, ग्रं. १३००, प+ग., मूपू., (जंबू अपरिग्गहो संवुड), ५९५५१(+),
६०४६२(+), ६०६८६(+), ६०८७८(+$), ६२०६२(+), ६२६३१(+$), ६२९१७(+#), ६०३८६, ६१०७८, ६२६३५(5) (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहो जंबू इणमो कहता), ५९५५१(+) (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हे जंबू एह प्रत्यक्ष), ६०४६२(+), ६०६८६(+), ६०८७८(+$), ६२०६२(+),
६२६३१(+$), ६२९१७+#), ६०३८६, ६२६३५(६) (२) प्रदेशी प्रश्न, प्रा., गद्य, मूपू., (अजयसुरीकंता १ तह), ६१००९-२(+#) प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., श्लो. २९, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), ६०४८०(+) (२) प्रश्नोत्तररत्नमाला-टबार्थ, मु. रंगविजय, मा.गु., गद्य, म्पू., (पहिला श्रीआदिनाथनइ), ६०४८०(+) प्रश्नोत्तररत्नाकर, गच्छा. सेनसूरि ; मु. शुभविजय, सं., उल्ला. ४ प्रश्न १०१४, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य परं ज्योति), ५९४५३(+$),
६०९१३)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
५२५ प्रश्नोत्तर संग्रह, उपा. विनयविजय, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वा श्रुतज्ञानमनंत), ६२३३०(#) प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक, उपा. क्षमाकल्याण, सं., प्रश्न. १५१, वि. १८५१, गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञं नत्वा), ५९६३९($) (२) प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक-बीजक, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., प्रश्न. १५१, वि. १८५३, गद्य, मूपू., (पहिलै बोलै तीर्थंकर), ५९८९७(+$),
५९९२३(+), ६००३२(+), ६२१५१, ६२२९५ प्रश्नोत्तरीरत्नमाला, तुलसीदास, सं., श्लो. ३२, पद्य, वै., (अपार संसार समुद्र), ५९६२७-११(+) (२) प्रश्नोत्तरीरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, वै., (ते तुंमणिरत्नमाला), ५९६२७-११(+) प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ६१, पद्य, पू., (धर्माज्जन्मकुले शरीर), ६१६२६(+), ६१६३१(+), ६१६३७(+#), ६१६४४,
६१८०४-१(२) (२) प्रस्ताविक श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्म थकी भला कुलनइ), ६१८०४-१(#) प्राकृत छंदकोश, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., गा. २७, पद्य, मूपू., (गामाणामाजाई वयस), ६२६११($) (२) प्राकृत छंदकोश-टीका, आ. अमरकीर्तिसूरि, सं., वि. १६५०, गद्य, मूपू., (--), ६२६११(६) प्रार्थनापंचविंशति, आ. अमितगत्याचार्य, सं., श्लो. २५, पद्य, दि., (सत्त्वेषु मैत्रीं), ५९६२७-५(+) (२) प्रार्थना पंचविंशति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, दि., (स० प्राणिओने विष), ५९६२७-५(+) प्रासादमार्तंड, सं., पद्य, मूपू., वै., (अनंतविज्ञानविशुद्धरू), ६०५४५(+1) (२) प्रासादमार्तंड-दीपिका भाषाटीका, पुहिं., गद्य, मूपू., वै., (एक हाथ के प्रासाद मे), ६०५४५(+#) प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. २८, पद्य, मूपू., (पंचमहव्वयसुव्वयमूल), ६१२४५-२(+), ६१२६७-२(+#) (२) प्रास्ताविक गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (हे सुव्रत जंबु प०), ६१२६७-२(+#) प्रास्ताविक श्लोक, सं., श्लो. १८१, पद्य, मूपू., (नमोस्तु देवदेवाय), ६२२६४-९ प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. ५७, पद्य, जै.?, (दाता दरीद्री कृपणो), ६०७९८-४७ बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २५, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (बंधविहाणविमुक्कं), ५९४६१-३(+),
५९५७९-३(+), ५९५८२-३(+), ५९६५९-२(+), ५९६६०-३(+), ५९७८४-३(+#), ६११४२-३(+#), ६१५७३-२(+), ६१८९३-३(+),
६१९१७-८७(+), ६२९३८-३(+), ६०७२९-३, ६१०८५-३, ६१२६२-३, ६१७०१-३(#$) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, मपू., (बंध० बंधः कर्माणुनां), ५९७८४-३(+#) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (सर्वशर्मप्रदं नत्वा), ६१०८५-३ (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (कर्मबंधथी मुकाणउं), ६११४२-३(+#) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ*मा.गु., गद्य, मूपू., (कर्म बंधना प्रकारथी), ६१५७३-२(+) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, मु.सुमतिवर्द्धन, मा.गु., यं., मूपू., (श्रीवर्द्धमान जिनचंद), ६२४०६-३(+) बटुकभैरव मंत्र, सं., गद्य, वै., (ॐ ह्रीँ बटुकाय आपदौ), ६०६९६-३(+) । बालत्रिपुरा स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (देवि त्वं आदिशक्तिस), ६२२७८-८(+) बाहुबलि कथा-मानविषये, सं., गद्य, म्पू., (धम्मो मएण हुतो), ६१७६७-११(#) बीजतिथि स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (महीमंडणं पुन्नसोवन), ५९५८९-१७(+#), ६००२७-८(+), ६१०९७-९(+#), ६११३०-१६(+),
६१५७६-२८(+#), ६१८८६-५(+), ६१९१७-१६(+), ६२४२१-६(+#), ६२४७५-७(+), ६२६३२-२९(+#), ६२७६४-५(+),
६०३५७-७, ६०९१७-२() बुद्धिसिद्धिस्त्रीद्वय कथा-अतिलोभे, सं., गद्य, श्वे., (अतिलोभो न कर्तव्यः), ६१७३५-४ बृहत् कथाकोश, आ. हरिषेणाचार्य, सं., कथा. १५७, वि. १०वी, पद्य, दि., (श्रियं परां प्राप्तम), ६०४५२(+#$) बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., उ. ६, ग्रं. ४७३, गद्य, मूपू., (नो कप्पइ निग्गंथाण), ६११९३(+), ६२६३६(+), ६०४०६-१,
६१७८१, ६०७६१,५९६०४(६), ६०८८१(६) (२) बृहत्कल्पसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, मूपू., (--), ६०७६१ (३) बृहत्कल्पसूत्र-नियुक्ति का लघुभाष्य #, ग. संघदासगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. ६४९०, पद्य, मूपू., (--), ६०७६१
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (४) बृहत्कल्पसूत्र-नियुक्ति के लघुभाष्य की टीका #, आ. मलयगिरिसूरि ; आ. क्षेमकीर्तिसूरि, सं., ग्रं. ४२६००, वि. १४वी,
गद्य, मूपू., (--), ६०७६१ (३) बृहत्कल्पसूत्र-निर्युक्ति की टीका #, आ. मलयगिरिसूरि ; आ. क्षेमकीर्तिसूरि, सं.,प्रा., गद्य, मूपू., (--), ६०७६१ (२) बृहत्कल्पसूत्र-लघुभाष्य #, ग. संघदासगणि क्षमाश्रमण, प्रा., उ. ६, गा. ६४९०, पद्य, म्पू., (काऊण नमोक्कारं तित्थ),
६०७६१ (३) बृहत्कल्पसूत्र-भाष्य की टीका, आ. मलयगिरिसूरि ; आ. क्षेमकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., (--), ६०७६१ (२) बृहत्कल्पसूत्र-सुखावबोधा टीका, आ. मलयगिरिसूरि ; आ. क्षेमकीर्तिसूरि, सं., ग्रं. ४२६००, गद्य, मूपू.,
(प्रकटीकृतनिःश्रेयसपद), ६०७६१ (२) बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (कव० कश्चित नगरं), ६०४०६-१, ५९६०४(६) (२) बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., ग्रं. ४०००, गद्य, मूपू., (हिवे इहां बृहत्कल्पस), ६११९३(+), ६२६३६(+), ६१७८१ (२) बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्त विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नीवी मास भिन्न), ६०४०६-२ (३) बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्त विधि का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नीवीने मास भिन्न कही), ६०४०६-२ बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अधि. ५, गा. ६५५, वि. ६वी, पद्य, मूपू., (नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण),
५९५९९(+#s), ५९३०६($) (२) बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. १४२, पद्य, मूपू., (नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण),
५९५९१(+), ५९६६३(+#), ५९२४१(#$) (३) जंबूद्वीप प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबूद्वीपमांहे छ), ५९५९१(+) (३) जंबूद्वीप प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिऊण कहेतां नमस्कार), ५९६६३(+#), ५९३०६(5) (२) लघुक्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अ. ५, गा. ८८, पद्य, मूपू., (नमिऊणसजलजलहर निभस्सण), ६२८२६(+) (३) लघुक्षेत्रसमास-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमीने जे भगवंत सजल), ६२८२६(+$) (२) बृहत्क्षेत्रसमास-गणित, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ए जंबुद्वीपने विष), ५९९३१(+#) बृहत्क्षेत्रसमास नव्य, आ. सोमतिलकसूरि , प्रा., गा. ३८७, वि. १३७३, पद्य, मूपू., (सिरिनिलयं केवलिणं), ६२८२५ बृहत्पंचनमस्कार, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ६०८९५(+) । बृहत्शांति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., प+ग., मूपू., (भो भो भव्याः शृणुत), ६१०९७-३७(+#) बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., मूपू., (भो भो भव्याः शृणुत), ५९७४९-५(+#), ६१०४७(+), ६११३०-९२(+),
६१६५९-२(+#), ६१६६०-३(+$), ६१७९६-४(+), ६१७९८-५(+#), ६१९१७-६८(+), ६२१५९(+#), ६२६३२-६९(+#),
६२८८५-३(+), ५९३०९-३, ६१८२५-१, ५९९३९-३(#), ६११९५-५०(#), ६२६८१-२(६), ६०९२७-२(.) बृहत्शांतिस्नात्र विधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (नमोर्हत्सिद्धाचार्यो), ५९५२४-२ बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४९, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नमिउं अरिहंताई ठिइ), ५९२३७(+), ५९२४६(+), ५९२५७-१(+),
५९२७४(+$), ५९४३०(+$), ५९४३९-४(+#$), ५९४६९(+#$), ५९५४६(+#$), ५९५६२-१(+#), ५९५८८(+), ५९६७८-२(+), ५९७०४(+#$), ५९७३७(+), ५९७४४(+), ५९७४९-१०(+#), ५९७५२(+$), ५९७५४(+#), ५९७७८(+$), ५९७७९(+), ६०४६७(+), ६०४८१(+), ६१००५(+$), ६१०६५(+), ६१०९४(+), ६१०९७-४७(+#), ६१०९८-१(+), ६११३०-९९(+), ६११८७(+#), ६१२०८(+), ६१५६७(+), ६१६९३(+S), ६१७२७(+5), ६१७५७(+5), ६१७८२(+s), ६१८३४(+#), ६१८७२(+#$), ६१९१७-८४(+), ६२१७०(+), ६२६३४(+#), ६२६३७(+$), ६२६५२(+), ६२६८६(+-), ६२७१५(+#), ६२७१९(+#), ६२७२१-१(+#), ६२७२५(+#), ६२८०३(+s), ६२८११(+), ६२८१६(+), ६२८१८(+#$), ६२८२४-१(+#), ६२८६४(+#), ६२९१५(+s), ६२९१९-१(+#$), ६२९३४(+#$), ५९४२५, ५९४८९, ५९७५३, ६०४६१, ५९४४६(#), ६१७८९(#$),
६२८५९-१(#S), ६२८६०(#s), ६१०२७($), ५९६०१(-१) (२) बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., ग्रं. ३५००, गद्य, मूपू., (अत्यद्भुतं योगिभि), ५९७४४(+), ५९७५४(+#), ५९७७८(+$),
६१०९४(+), ६२९२५ (#) (२) बृहत्संग्रहणी-अवचूरि , सं., गद्य, मूपू., (नत्वा प्रणम्य), ५९२४६(+$)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
५२७ (२) बृहत्संग्रहणी-टिप्पण, मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वा पंचपरमेष्ठीन्), ५९७४९-१०(+#$) (२) बृहत्संग्रहणी-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (सुष्ठ राजते शोभते), ५९४३९-४(+#$) (२) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., वि. १६००, गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथं फल), ६१७५७(+$) (२) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध*मा.गु., गद्य, मूपू., (ॐ नत्वा अरिहंतादी), ५९७५२(+$), ६०४६७(+), ६१००५(+$),
६१७८२(+$), ६१८७२(+#$), ६०४६१,६२२७०(#$), ६१०२७(६) (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, मु. धर्ममेरु, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीने अरिहंत), ५९२३७(+), ५९५६२-१(+#), ५९७७९(+) (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार अरिहंता),५९४३०(+$), ५९५४६(+#$), ५९७३७(+), ६०४६७(+),
६१००५(+$), ६१०९८-१(+), ६११८७(+#), ६१५६७(+), ६२६३४(+#), ६२६८६(+-),५९४२५, ५९७५३,५९६०१(-) (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, पुहि., गद्य, मूपू., (--), ६१८३४(+#$) (२) बृहत्संग्रहणी-अंकयंत्रसंग्रह *मा.गु., यं., मूपू., (--), ६२८५७(+$) बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (जीवाय १ लेसा ८ पखीय), ५९६५७-७(+$), ६०६९६-२(+), ६२१४१-७९(+), ५९८५५,
६०००९, ६०६८७, ६२२३९, ६२३१७(#s), ६२१८७-१(६), ६२१८७-२(७), ६२७६६($) बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (हिवै शिष्य पूछ), ६२१९२(+#$), ६२३८९ भंगतरंगिणी, प्रा., गा. ५२, पद्य, श्वे., (नमिउंसिरिणजिहिवं), ६०१५८(+) (२) भंगतरंगिणी-टीका, श्राव. दलपत, सं., वि. १७८६, गद्य, श्वे., (संजोगियाइ दस१०), ६०१५८(+) (२) भंगतरंगिणी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम संजोगिभांगा), ६०१५८(+) भंजकविप्र कथा-परगृहभंजने, सं., गद्य, श्वे., (असमंजसवाक् लोको न), ६१७३५-५ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४४, पद्य, मूपू., (भक्तामरप्रणतमौलि), ५९५३२(+), ५९५३३-१(+), ५९५४७-१(+#),
५९५७७(+$), ५९५८९-७(+#), ५९६२७-१(+), ५९६२८(+$), ५९६६७(+), ५९६९०(+), ५९७१५(+), ५९७३२-१(+#), ५९७३५(+#), ५९७४९-६(+#), ५९७६७-२(+), ६००२७-४९(+), ६०९४०-५(+), ६११९४-१(+), ६१२२२-१(+#), ६१२७०(+), ६१७०७-१(+#), ६१७८३-३(+), ६१७८८-१(+), ६१७९६-७(+), ६१७९८-४(+#), ६१८०६(+#), ६१९१७-७५(+), ६२६३२-७०(+#), ६२७४७(+), ६२७५३(+), ६२८५८(+#), ६२८७७(+8), ६२८८५-१(+$), ६२८९१-१(+), ६२९२१-३(+#), ५९५०७-१, ५९६६१, ५९७०२, ६०४१०, ६०७४४, ६०८८७, ६१०८९-३, ६१६५३, ६१७७७, ६१८८८, ६२७५७-४, ५९६४४(#$), ६०९७०(#$), ६११९५-५१(#), ६१७६९-८(2), ६२६६८-१(#$), ६२७०८(#), ६२७१७-१(#), ६२७३६-१(#),
६२७९२(#), ६२८६७-२(#), ६०४२३($), ५९६९३(-#) (२) भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., ग्रं. १५७२, वि. १४२६, गद्य, मूपू., (पूजाज्ञानवचोपायापगमा),
५९६२८(+$), ६०७२७(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-टीका, मु. कनकसागर, सं., वि. १७४६, गद्य, मूपू., (सरस्वत्या नमस्कृत्य), ६०८८७ (२) भक्तामर स्तोत्र-टीका, मु. श्रीदेव, सं., गद्य, म्पू., (श्रीसर्वशं नमस्कृत), ५९७३५(+#) (२) भक्तामर स्तोत्र-टीका, उपा. सिद्धिचंद्र, सं., गद्य, मूपू., (श्रेयः श्रिये प्रभुर), ५९५७७(+$), ६०३५९(+#$) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालहितैषिणी टीका, मु. कनककुशल, सं., ग्रं. ६९३, वि. १६५२, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमानंददायक),
६०४१०, ६१७७७ (२) भक्तामर स्तोत्र-लघुटीका, सं., गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञ नमस्कृत), ६१२२२-१(+#) (२) भक्तामर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (किल इति सत्ये अहमपि), ६२७३६-१(#) (२) भक्तामर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मपू., (भक्ताश्च ते अमराश्च), ६१७८८-१(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., वि. १५२७, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ६२७०८(#) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मु. शुभवर्द्धन, मा.गु., वि. १२०२, गद्य, मूपू., (श्रीमदादिजिनं नत्वा), ६२७९२(#) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (किल इति सत्ये), ६०४२३($) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (किल इसी संभावनाइ), ५९६४४(#$) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिनपाद केहवा छे भक्त), ५९७१५(+)
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५२८
संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १
5
"
(२) भक्तामर स्तोत्र - बालावबोध कथा *. ग. मेरुसुंदर, मा.गु. गद्य, भूपू (प्रणम्य श्रीयुगादीश), ५९६६७(*) (२) भक्तामर स्तोत्र - (पु. हि. ) टबार्थ, मु. हर्षचंद्र, पुहिं., वि. १८३९, गद्य, मूपू., (जिनेश्वरं नमस्कृत्य), ६१७०७-१(+#) (२) भक्तामर स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु, गद्य, मूपू (भक्तिवंत जे देवता), ५९६२७-१(+), ६१२७० (+), ६२७४७(+), ६२८५८(+),
६२८७७(+६), ६२९२१-३(४), ५९५०७-१, ५९६६१, ५९७०२, ६२७१७-१(०), ५९६९३(१
(२) भक्तामर स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (सेवक अमर देवता नमता), ५९६९०(*)
""
-
(२) भक्तामर स्तोत्र - (पु.हि.) भाषाटीका, श्राव. अखैराज श्रीमाल, पुहिं., गद्य, मूपू., (किल अहमपि तं प्रथमं), ६१०८९-३
(२) भक्तामर स्तोत्र (सं+पु. हिं. ) मंत्र यंत्र विधिविधान, संबद्ध, पुहिं. सं., गा. ४८, पग, मूपु. ( श्रीभक्तामरजी माहा), ६१०८९-९
(२) भक्तामर स्तोत्र आम्नाय, संबद्ध, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (भक्तामरेति प्रथम), ६२६६३-१($)
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(२) भक्तामर स्तोत्र-ऋद्धि, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीँ अर्हं णमो ), ६१०८९-१
(२) भक्तामर स्तोत्र - पूजा विधान, संबद्ध, आ. सोमसेन, सं., पद्य, म्पू, दि., (श्रीमदेवेंद्रवंच), ६०७५७/*)
(२) भक्तामर स्तोत्र-मंत्र, संबद्ध, सं., मंत्र. ४८, गद्य, मूपू., (ॐ हाँ अर्हणमो), ६१६०६ (००), ६१०८९-१२, ६१८८८
(२) भक्तामर स्तोत्र - मंत्राम्नाय, संबद्ध, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., ( ॐनमोवृषभनाथाय मृत्यु), ६१२७३
(२) भक्तामर स्तोत्र - यंत्र, सं., यं., मूपू., (--), ६१८८८
भगवती देवी पद्मावती कल्प, सं., गद्य, भूपू (ओं ह्रीं की पद्ये), ६०८८३-१०
,
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. शत. ४९. सू. ८६९, ग्रं. १५७५२, गद्य, म्पू, नमो अरहंताणं० सव्व), ५९२८८(०७), १९६५१(+), ५९६५३(०४), ६०८९३(+), ६११०७(१) ६१११७(१), ६११४९(३), ६१६४९(०४), ६२६४३ (०४), ६०९६७(१४), ६११७९ ($)
(२) भगवतीसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., शत. ४१, ग्रं. १८६१६, वि. ११२८, गद्य, मूपू., (सर्वज्ञमीश्वरमनंत), ६०४५७(+), ६१६४९ (६)
(३) भगवतीसूत्र- टीका का टबार्थ + बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अयं अर्थ: श्रीजिन के), ६११०७(+#)
(३) भगवतीसूत्र टीका का हिस्सा पंचनिग्रंथी प्रकरण, आ. अभयदेवसूरि, प्रा. गा. १०६. वि. ११२८, पद्य, मृपू. (पत्रवण वेय रागे कप्प), ६१०३२
(४) पंचनिग्रंथी प्रकरण-टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु. ग्रं. ३५५, वि. १८वी, गद्य, भूपू (नयविजयगुरुणां पंचनिर),
"
६१०३२
(२) भगवतीसूत्र - टवार्थ, मु. सत्यसागर, मा.गु. ग्रं. १५७७५, गद्य, म्पू. (सुखसंततिवृद्ध्यर्थं), ६१११७(*)
(२) भगवतीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते कालनइ विषइ ते), ५९६५१(+), ५९६५३(+$), ६०८९३ (+), ६११४९(+#$), ६२६४३ (+३), ६११७९
(२) भगवतीसूत्र-शतक-१ के ९वें उद्देश का हिस्सा सूत्र - ४२३ - ४३४ कालासवैश्यपुत्र अधिकार, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (तेणं काले० कालास), ५९५२८(+#$)
(३) भगवतीसूत्र - शतक-१ के ९ वें उद्देश का हिस्सा सूत्र - ४२३ - ४३४ कालासवैश्यपुत्र अधिकार - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते. ते कालनिं विषई), ५९५२८(+3)
(२) भगवतीसूत्र - हिस्सा सप्तमशतक - द्वितीय उद्देशे पच्चक्खाण गाथा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू.. (अणागयमइक्कंते), ६१८०४-८(#)
(३) भगवतीसूत्र - हिस्सा सप्तमशतक- द्वितीय उद्देशे पच्चक्खाण गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अनागत पचक्खाण ते जे), ६९८०४-८
(२) भगवतीसूत्र - सज्झाय, संबद्ध, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. २१, वि. १८४३, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर अरथ), ६०१२५-१८(+)
(२) भगवतीसूत्र - बीजक, मु. हर्षकुल, सं., ग्रं. ४०९, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परया भक्त्या), ५९५०८ (+$) भद्रप्रतिमा विधि, मा.गु., सं., गद्य, मृपू, (भद्रप्रतिमा २ उपवास), ६२८६९-२(३)
भवभावना, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा. गा. ५३१, पद्य, मूपु. ( णमिऊण णमिरसुरवर मणि), ६१७०२(5)
',
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
५२९ (२) भवभावना-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६१७०२(5) (२) भवभावना-कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६१७०२(5) भवानी अष्टक, शंकराचार्य, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (न तातो न मातो नबंधुर), ६२२७८-१८(+), ६२४००-६(+#) भाव प्रकरण, ग. विजयविमल, प्रा., गा. ३०, वि. १६२३, पद्य, मूपू., (आणंदभरिय नयणो आणंद), ५९६९६(+), ६१६६२(+) (२) भाव प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, ग. विजयविमल, सं., वि. १६२३, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीजिनशंभव), ५९६९६(+) (२) भाव प्रकरण-अवचूरि, ग. विजयविमल, सं., गद्य, मपू., (--),६०००६-१(६) भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., भाष्य. ३, गा. १४५, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (वंदित्तु वंदणिज्जे), ५९४६०(+$), ६०८९८(+), ६११९२(+),
६१६९८(+), ६१७७२(+), ६२७८७(+), ६२८४८(+), ६२९१८(+#), ६०८९२, ६२९१४, ६००७८(६), ६०९५४($) (२) भाष्यत्रय-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (वंदि० वंदनीयान् सर्व), ६२९१८(+#) (२) भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदित्तु क० वांदीने), ५९४६०(+$), ६०८९८(+), ६११९२(+), ६१६९८(+), ६१७७२(+),
६०८९२, ६००७८(5), ६०९५४(६), ६२९१४(६) भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., श्लो. १७०, वि. १३पू, पद्य, मूपू., (सारस्वतं नमस्कृत्य), ६०१९०(+#), ६०१९२-१(+#),
६०७८६-३(+#), ६१४४४(+), ६१४७५-१(+), ६१५४१-१(+), ६१५५३(+#$), ६१९७५ (+), ६२०३०(+), ६१५४९ (#$) (२) भुवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (सरस्वती संबंधीओ मह), ६०१९२-१(+#), ६१४७५-१(+), ६१५४१-१(+$),
६१५५३(+#$), ६१९७५(+$) भुवनदेवता स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (चतुर्वर्णाय संघाय), ६११९५-३(#) भुवनभानुकेवली चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., गद्य, मूपू., (सिरिरिसहपहु पणमिय), ६१०१२(+#) भुवनभानुकेवली चरित्र, सं., ग्रं. १८००, गद्य, मूपू., (अस्तीह जंबूद्वीपे), ६११०१ भैरवपद्मावती कल्प, आ. मल्लिषेण, सं., परि. १०, श्लो. ४००, पद्य, दि., (कमठोपसर्गदलन), ६०५१८, ५९६४७-१(६), ६१००८-१(-) (२) भैरवपद्मावती कल्प-टीका, मु. बंधुषेण, सं., गद्य, दि., (श्रीमत्थारुनिकायामरव), ६०५१८ (२) भैरवपद्मावतीकल्प-टीका, सं., गद्य, दि., (--), प्रतहीन. (३) भैरवपद्मावती कल्प-टीका का संक्षेपरूप पद्मावती अनुष्ठान विधि, सं., गद्य, दि., (तत्रादौ स्नात्वा), ६१००८-३(-)
भैरवाष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (--), ६२२७८-१९(+$) भोजराज दृष्टांतकथा संग्रह, सं., गद्य, वै., (मालवदेशे श्रीधारानगर), ६२१४१-८०(+) भोजराजा भूकँडद्विज कथा-अनित्यताविषये, सं., गद्य, श्वे., (धारानगर्यां भोजराजः), ६१७३५-३ भ्रमराष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, वै., (गंधाढ्यासौ भुवनविदित), ५९५४२-३(+) मंगल श्लोक, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (शिवमस्तु सर्वजगतः), ६२६३२-१०(+#), ६११९५-१७(2) मंगलाष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (श्रीमन्नम्रसुरासुर), ६१८७६-१०+#) मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (ॐहाँश्री अहँत), ६१७९६-१०(+), ६२२७८-६(+), ५९६४७-६ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ.,पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., वै., (श्री ॐ नमः आदि सुदिन), ५९६७५-३(+), ५९९८७-३(+#),
६२२७८-२४(+), ६१२७१-२(#) मंत्र नाममाला, सं., श्लो. २७, पद्य, मूपू., (कामं क्रोधं तथा लोभ), ६२६४६-३(#) (२) मंत्र नाममाला-टीका, सं., गद्य, मूपू., (नमः संपत्तिकर१ वषट्), ६२६४६-३(#) मंत्र संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (ॐ नमो भगवओ बाहूबलि), ६००११-४ मणिविजय गुरू निर्वाण, पं. गुलाबविजय, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्यानंतविज्ञान), ६१२२६(+) मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत, सं., गद्य, श्वे., (संसारे चतसृषु गतिषु), ६१०४६(#$) मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांत काव्य, प्रा.,सं.,मा.गु., श्लो. ११, पद्य, श्वे., (चुल्लग पासग धन्ने), ६२१८५(#) (२) मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांत काव्य-बालावबोध, मु. ऋद्धिसोम, मा.गु., प+ग., श्वे., (श्रीपार्श्वेशं जिन), ६२१८५(#) मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (चूलग पासग धन्ने जूए), ६२६९७-१(+) (२) मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत गाथा-दृष्टांतकथा, सं., गद्य, श्वे., (संसारे चतसृषु० साकेत), ६२६९७-१(+)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
मनुस्मृति ऋ. मनु, सं., अ. १२, पद्य, वै., (मनुमेकाग्रमासीनमभिगम) ६०७९८-४३
"
मलवासुंदरी चरित्र, आ. जयतिलकसूरि, सं., प्र. ४ ग्रं. २४३०, पद्य, मूपू., (चतुरंगो जयत्वर्हन), ६१०७३ (+) मल्लिजिन चरित्र-मौनैकादशीपर्व माहात्म्योपरि, प्रा. सं., गद्य, मूपू., (मल्लीणं अरहा अप्प), ६१५९५-२(+) महानिशीथसूत्र, प्रा., अध्य. ६ चूलिका २ प्र. ४५४४, गद्य, मूपू. (ॐ नमो तित्यस्स ॐ), ६११३३, ५९६४५ (5) (२) महानिशीथसूत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू., ( भवसवसाहस्स० अर्हत) ६२३३६(१) महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्रा. गा. १४२, पद्य, मूपू. (एस करेमि पणामं तित्थ), ६१५९७/-) (२) महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ए हुं प्रणाम करुं), ६१५९७ (-) महाबलमलयासुंदरी चरित्र, सं., गद्य, मूपू., (यन्मनोरथशतैरगोचरं), ६१०२२
छ
महालक्ष्मी स्तव, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू. (आद्यं प्रणवस्ततः), ६२२७८-२३(+), ६२२७८-२७(+) महावीरजिन २७ भव व्याख्यान, सं., ग्रं. १००, गद्य, मूपू., (ग्रामेशस्त्रिदशो), ६२७५६ (+), ५९७०६-२ महावीरजिन जन्मोत्सव, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू (निर्भिन्नभावारिमनंतभ) ६२९०८-४९) महावीरजिन पारणा स्तुति, सं. श्री. ४, पद्य, भूपू (यत्पारणासु प्रथमासु), ६१५७६-८(+)
.
3
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महावीरजिनशासने ऐतिहासिक प्रसंग वर्णन, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (१. श्रीवीर केवलात्), ६२५६९-२(+#)
महावीरजिन स्तव, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू. (कनकाचलमिव धीरं), ६११३०-६९(०), ६१९१७-५५(का
महावीरजिन स्तव - क्रियागुप्त, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. १६, पद्य, भूपू (चरमजिन तं कल्याणानि ), ६२९०८-८(+) (२) महावीरजिन स्तव-क्रियागुप्त- टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (--), ६२९०८-८ (+)
महावीरजिन स्तवन, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू (विश्वेमहावीरति मोह), ६२९०८-३५(१
3
(२) महावीरजिन स्तवन- टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (--), ६२९०८-३५(+)
महावीर जिन स्तवन, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. १४, पद्य, मूपू., (सत्यपुरावनिवरतिलक), ६२९०८-४५ (+)
महावीरजिन स्तवन- अष्टदलकमलगभिंत, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ९, पद्य, भूपू (मानवाः स्मरत कांत्य), ६२९०८-६ (+) (२) महावीरजिन स्तवन- अष्टदलकमल गर्भित टिप्पण, सं., गद्य, भूपू (--), ६२९०८-६(+)
महावीरजिन स्तवन- गुरुनामगर्भषडरचक्रं, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. १४, पद्य, मूपू., (कलशकलशरादि प्रोल्लसल),
६२९०८-३९(+)
(२) महावीर जिन स्तवन- गुरुनामगर्भषडरचक्रं - टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (-), ६२९०८-३९(+)
महावीरजिन स्तवन- यमकमय, पं. शीलशेखर गणि, प्रा. गा. १०, पद्य, मूपू महावीरजिन स्तवन- यमकमब, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ८, पद्य, भूपू महावीर जिन स्तवन- सिद्धपुर, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. १०, पद्य, भूपू महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (जइज्जा समणे भगवं), ६१०९७-२६(+#), ६१८८६-३३(+),
(गयकलहं गयकलहं गयकलह), ६२९०८-६० (+) (जितमोहमही शरणं केवल ), ६२९०८-४८(+) (सिद्धपुराभिधनगरवतंस), ६२९०८-४३(०)
६१९१७-९२(+), ६२४२१-२९(+)
"
महावीरजिन स्तव-समसंस्कृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.सं., श्लो. ३०, पद्य, मूपू., (भावारिवारणनिवारणदारु), ६००२७-५१(+),
६१०९७-३६(+#), ६१२३२-६ (+), ६१९१७-७७(+), ६२६३२-७३(+#), ६२८४९ (+), ५९६८६-२(#$) (२) महावीरजिन स्तव - टीका, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ६२८४९ (+)
(३) महावीरजिन स्तव-टीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहं कहता हुं महावीर), ६२८४९(+) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू, नमोस्तु वर्द्धमानाय), ५९५८९-५ (+) ६१८७६-३४(+)
महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू, नमोस्तु वर्द्धमानाय), ६०३६२-२(+), ६१५७६-२ (००), ६२७६४-३(+), ६११९५-७(१) महावीरजिन स्तुति, प्रा.मा.गु., सं., गा. ११, पद्य, मूपू., (पंचमहव्वयसुव्वयमूलं), ५९७२७-२(+), ६११७२-३, ६२६६६-३ महावीरजिन स्तुति, प्रा. सं., गा. ४, पद्य, भूपू (परसमवतिमिरतरणिं भव), ५९५८९-६ (+४), ६१५७६-४(+), ६१८७६-३५ (+०),
"
६२७६४-४(+), ६२२६४-७, ६११९५-६(४)
"
महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू (यदंहिनमनादेव देहिन), ६००२७-१३(+), ६१०९७-४(+), ६११३०-२२(+), ६१५७६-२६(+), ६१८८६-२० (+), ६१९१७-३८(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
५३१ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू., (लोकाधारं शांताकार), ६१०९७-२२(+#), ६२६३२-५३(+#) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (वीरं देवं नित्यं), ६००२७-२०(+), ६१०९७-१०(+#), ६११३०-२१(+), ६१८७६-१४(+#),
६१८८६-२२(+), ६१९१७-३५(+), ६२४२१-१४(+#), ६२६३२-३९(+#), ६११९५-३९(#), ६१६९४-१५(#) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीदेवार्यं विश्ववर), ६११३०-३९(+), ६१८७६-१५(+#) महावीरजिन स्तोत्र, मु. केसर, सं., गा. ५२, पद्य, मूपू., (अहो वीर वीरत्व में), ६२१७२-४५(-2) महावीरजिन स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., गा. ५, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (जयसिरिजिणवर तिहुअणजण), ६२२७८-९(+) महावीरजिन स्तोत्र, पं.शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (देवोपचारी ममशर्मकारी), ६२९०८-१६(+) महावीरजिन स्तोत्र-कारकक्रियागुप्त, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. १६, पद्य, म्पू., (श्रीवीरं स्तौमि), ६२९०८-६२(+) महावीरजिन स्तोत्र-कारकक्रियारूपाष्ट गुप्त, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. १६, पद्य, मूपू., (सेवारससुरसाल श्रीवीर),
६२९०८-१३(+) (२) महावीरजिन स्तोत्र-कारकक्रियारूपाष्ट गुप्त-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (--), ६२९०८-१३(+) महीपालराजा कथा, ग. वीरदेव, प्रा., गा. १८०९, ग्रं. २५००, पद्य, मूपू., (नमिऊण रिसहनाह केवल), ६०४७०(+) (२) महीपालराजा कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करी श्रीऋषभ), ६०४७०(+) मांगलिक श्लोक, मा.गु.,सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (ॐकार बिंदु संयुक्तं), ६२२७५-३(+) मांगलिक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सर्वमंगल मांगल्य), ६२२७५-१२(+), ६११९५-४४(#) मांगलिक श्लोक-खरतरगच्छीय, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (सर्वमंगलमंगल्य), ६११३०-११(+), ६१९१७-१०(+) माघकवि कथा-दानविषये, सं., गद्य, श्वे., (उपानहौ मया दत्ते जीर), ६१७३५-१ मायाबीज विधि, सं., गद्य, मूपू., (विधिना ह्रींकार), ६१००८-११(-) मार्गानुसारी ३५ गुण, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (न्यायसंपन्नविभवः), ५९८७१-२ (२) मार्गानुसारी ३५ गुण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्वामीनो द्रोह करी), ५९८७१-३($) मुद्रापंचक विधि, सं., गद्य, पू., (ॐ ह्रीँ नमोजिणाण), ६१६६३(+) मुनिपति चरित्र, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ६४६, ग्रं. ६४४, वि. ११७२, पद्य, मूपू., (नमिऊण महावीरं चउ), ६१८७५ (#S) (२) मुनिपति चरित्र सारोद्धार, संक्षेप, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (मुनिपतिचरित्रसारोद्ध), ६१६९२ मुनिसुव्रतजिन स्तवन-द्वियमकबंध, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (विकटसंकटसंततिविस्रुत), ६२९०८-२९(+) मुहूर्तरत्नकौमुदी, मु. रत्नविजय, सं., पद्य, मूपू., (श्रीमत् पार्श्वजिनाध), ६१९६४(49) मुहर्तमुक्तावली, आ. परमहंस परिव्राजक, सं., श्लो. ४५, पद्य, वै., (श्रीशं श्रीहरशारदा), ६०२१६(+), ६१५४४-१(#) (२) मुहूर्तमुक्तावली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., (श्रीपार्श्वनाथ), ६०२१६(+), ६१५४४-१(#) मेतार्य कथा-जीवदयाविषये, सं., गद्य, श्वे., (अत्रैव भरते साकेतपुर), ६१७६७-४(#) मेरुत्रयोदशीपर्व कथा, सं., गद्य, म्पू., (प्रणम्य भारती), ५९२६८(+), ६२०७७ मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., ग्रं. १६५, वि. १८६०, गद्य, मूपू., (मारुदेवं जिनं नत्वा), ५९७४५-८(+#),
६१०२५-२(+#), ६११४०-७(+), ६१६००-२, ६२९३२-२ (२) मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान-भाषांतर, मा.गु., गद्य, मूपू., (मारुदेवं जिनं नत्वा), ६००१७-८(+) मोहविवेक कथा, सं., श्लो. ११३, पद्य, मूपू., (अथ भव्यप्रबोधाय मुनि), ६१७०५-२ मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., श्लो. २०१, वि. १६५७, पद्य, मूपू., (प्रणम्य ऋषभदेव), ५९५३६(+), ५९६५२(+),
६०९८०(+), ६१७०४-१(#) (२) मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणमीने चरणकमल), ५९६५२(+), ६१७०४-१(#) मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., श्लो. ११६, वि. १५७६, पद्य, मूपू., (अन्यदा नेमिरीशाने), ६२६७७ (२) मौनएकादशीव्रत कथा, मु. आलमचंद, मा.गु., ढा. १३, वि. १८१४, पद्य, मूपू., (च्यार तिर्थंकर सासता), ६२४२९-१(+) मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (अरस्य प्रव्रज्या नमि), ६१५९५-१(+) मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, मपू., (शांतीशं शांतिकार), ६११४०-५(+$)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरं नत्वा गीतमः ), ५९७४५-६ (+०), ६२३१८-७(+), ६१२७२-२(क मौनएकादशीपर्व कथा, प्रा. गा. १५७, पद्य, मूपू (सिरिवीरं नमिऊण पुच्छ), ६०७११(+) (२) मौनएकादशीपर्व कथा - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., ( श्रीमहावीर प्रतै), ६०७११(+#) मौनएकादशीपर्व गण, सं., को. भूपू (जंबूद्वीपे भरते), ५९५९०-१२ (+), ६१६५६(*)
""
"
मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अरस्य प्रव्रज्या नमि), ५९७६५-६ (+), ६००२७-१०(०), ६०३६२-५ (+),
६१०९७-७(+#), ६११३०-२७(+), ६१५७६-१८(+#), ६१८८६-१६ (+), ६१९१७-२० (+), ६२४२१-१२(+#), ६२४७५-१० (+), ६२६३२-४२+०, ६११९५-३२० ६२७३०-२(0)
(२) मौनैकादशी स्तुति - टीका, सं., गद्य, मूपू., (अरस्य अरजिनस्य), ६२७३०-२(#)
मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मृपू., (दीक्षा श्रीअरनाथकस्य), ६००२७-३५(४) मौनएकादशी व्याख्यान, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (राजगृही नगर के उद्या), ५९६८९(+)
यंत्रराज, आ. महेंद्रसूरि, सं., अ. ५, श. १२९२, पद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञपदांबुज), ६१३०६ (+), ६०६८४, ६१४३४(#$) (२) यंत्रराज- टीका, आ. मलवेंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य सर्वज्ञपदारव), ६०६८४, ६१४३४००६), ५९२७१ (६) यंत्र संग्रह*, मा.गु.,सं., को., जै., वै., (--), ६२८५९-२(#)
यतिदिनचर्या, आ. भावदेवसूरि, प्रा. गा. १५४, पद्य, भूपू (वीरं नमिऊण जिणं सुआण), ६०९९६ (+)
"
(२) यतिदिनचर्या - अवचूरि, मु. मतिसागर, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य जगदानंद), ६०९९६ (+)
राजर्षि गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., ( उहावसीहा पुयावसहा), ६०९१५-३(+) युगप्रधानतप विधि, प्रा., मा.गु., प+ग., म्पू, (से भयवं केवई कालं). ६०४११-२(+)
युगप्रधानाचार्य स्तुति - खरतरगच्छीय, सं., श्लो. २, पद्य, भूपू (दासानुदासा इव सर्व), ६१८७६-३३(+) युगादिदेशना ग. सोममंडन, सं., अल्ला. ५, श्लो. ५७७, पद्य, मृपू. ( श्रीमानाविजिनः श्रेय), ६२६८३ (+)
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योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अ. ७. वि. १७वी, पद्य, मूपू (यत्र वित्रासमायांति), ६०५०५ (+०) ६०७५८ (+8), ६१९६३(+९),
',
६१३४७(#$), ६१४६४ (#$), ६०५११($), ६०५२२ ($), ६१३४५ ($)
(२) योगचिंतामणि- बालावबोध, मु. मानकीर्ति-शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञ प्रणम्या), ६०५०५ (+४), ६०५११(३), ६०५२२(३) (२) योगचिंतामणि- बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., ( प्रथम स्त्री योग्य), ६१४६४(#$)
(२) योगचिंतामणि- टबार्थ, मा.गु, गद्य, मूपू (औषध छइ बले पथ्य छड़), ६१९६३ (+)
१
(२) योगचिंतामणि टवार्थ *, मा.गु., गद्य, म्पू., (--), ६०७५८(+), ६१३४७(०३), ६१३४५ (३)
योगदृष्टि समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., श्लो. २२८, पद्य, मूपू., (नत्वेच्छायोगतोयोगं), प्रतहीन.
(२) योगदृष्टि समुच्चय- स्वोपज्ञ टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, मृपू, (योगतंत्रप्रत्यासन्न), ६१६८० (+)
योगबिंदु, आ. हरिभद्रसूरि, सं., श्लो. ५२६, पद्य, मूपू., (नत्वाद्यंतविनिर्मुक), ६०४६४
(२) योगबिंदु स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू (सद्योगचिंतामणितोनणीय), ६०४६४
"
योगविधि संग्रह - खरतरगच्छीय, मु. शिवनिधान, प्रा., मा.गु, गद्य, मूपू (श्रीहर्षसारवाचकशिष्य), ६०७७६ (+), ६२७३७(+) योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १२, श्लो. १०००, वि. १३वी, पद्य, मूपू., ( नमो दुर्वाररागादि), ६२७३४(+#), ६२७८२, ६०९२४(5)
(२) योगशास्त्र - हिस्सा प्रकाश-५ से १० धर्मध्यान के ४ प्रकार, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., वि. १३वी, पद्य, मूपू., (पादांगुष्ठादौ जंघाया), ६०४९४(+)
(३) योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश-५ से १० धर्मध्यान के ४ प्रकार का बालावबोध, मा.गु., गद्य, भूपू (पगना अंगुठा आदि देह), ६०४९४(+)
योगसार, मु. योगींद्रदेव, अप., गा. १०८, पद्य, दि., (णिम्मलझाणपरिद्वया), ६१५८०(+), ५९४४८
"
(२) योगसार - टवार्थ, मा.गु., गद्य, दि. (निर्मल ध्यानने विषइ), ६१५८० (+), ५९४४८ योगसार, सं., प्र. ५, श्लो. २०६, पद्य, मूपू., (प्रणम्य परमात्मानं), ६०९४४(+) योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (ओमिति नमो भगवओ), ६०४०८-२(१)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, भूपू (श्रीआवश्यक सुअक्खंधो), ६२२९० रत्नशेखरराजा कथा - नमस्कारविषये, सं., गद्य, म्पू, (अन्नेवि इत्यधम्मे), ६१७६७-५(१)
रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि प्रा. गा. ५५०, पद्य, भूपू (नमिऊण जिणवरिंदे उवया), ५९५८३ (+)
"
(२) रत्नसंचय - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीरनै नमस्कार), ५९५८३ (+#$)
रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि सं. लो. २५, वि. १४वी, पद्य, मूपु. ( श्रेयः श्रियां मंगल), ५९६२७-४(+), ६०९८६-१(+),
"
3
६११५०-३ (+), ६१६१३ (+), ६२२३३ (+)
(२) रत्नाकरपच्चीसी-टीका, ग. कनककुशल, सं. ग्रं. ३००, गद्य, मूपू (प्रणम्य श्रीमदर्हत) ६२२३३ (+)
(२) रत्नाकरपच्चीसी-टीका, मु. भोजसागर सं. वि. १७९५, गद्य, म्पू, (नमस्कृत्य जिनं सार्व), ६१६१३(*)
"
(२) रत्नाकरपच्चीसी - बालावबोध, मु. जीवराज, मा.गु., वि. १९२०, गद्य, मूपू., (सत्य चोवीसेजिन नमु), ६११५०-३
(२) रत्नाकरपच्चीसी-टवार्थ, मा.गु, गद्य, मूपू (अहो कल्याणक लक्ष्मी), ५९६२७-४(+)
',
(२) रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., ( श्रेयः कल्याण अनइ), ६०९८६- १(ख)
राई प्रतिक्रमण विधि, प्रा., मा.गु., पग, मूपू (प्रथम इरियावही पडिक), ६०६९८-३
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राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., सू. १७५, ग्रं. २१००, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० तेणं), ६०३९२ (+), ६०९०३ (+#$), ६०९८१(+$),
६०९९३(+०६), ६१०५० (+), ६१२०५ (+४) ६१९२७(+४), ६२१६२(+), ५९२८७२४), ५९२९०(३) ६११४६(३) ६१७७६ (३) (२) राजप्रश्नीयसूत्र - टीका, आ. मलयगिरिसूरि, सं., ग्रं. ३७००, गद्य, मूपू., (प्रणमत वीरजिनेश्वर), ६१०५० (+#)
(२) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., ग्रं. ५५००, गद्य, मूपू., (देवदेवं जिनं नत्वा), ६०९८१ (+६), ६०९९३(+#$), ६१९२७(+), ६११४६(३)
(२) राजप्रश्नीयसूत्र - टबार्थ, मा.गु. ग्रं. ३२८१, गद्य, मूपू., (नत्वा वीरजिनेश्वरचरण), ५९२९० (5)
"
(२) राजप्रनीयसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (नमस्कार हुवउ० चउथा), ६२१६२ (+४), ५९२८७/६)
रामनिदान, सं., पद्य, भूपू (श्रियं स दद्यात् भवत), ६१३५९ (+), ६१३६० (+*७)
(२) रामनिदान - टबार्थ, पुहिं., गद्य, मूपू., (मोक्षलक्ष्मी वह देओ), ६१३५९ (+$), ६१३६०(+#$)
रूद्रयामल, सं., पद्य, वै., (--), प्रतहीन.
י:
(२) रूद्रयामल-बटुकभैरव स्तोत्र, हिस्सा, उमामहेश्वर संवाद, सं., श्लो. ८६, पद्य, वै., (मेरुपृष्ठे सुखासीनं), ६२२७८-४(+) रूपसेनकनकावती चरित्र चतुर्थव्रतपालने आ जिनसूरि सं., श्लो. २२४, ग्रं. १५३०, पद्य, भूपू (श्रीमंतं विदुरं शांत),
"
६१८६५ (+-७), ६२०७३(+), ६१०२१(०३)
५३३
(२) रूपसेनकनकावती चरित्र चतुर्थव्रतपालनेटबार्थ, ग. ऋद्धिविजय, मा.गु., गद्य, भूपू (शरीर नीरोग पामे सो), ६१८६५ (+३),
"
६२०७३(+)
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रूपीअरूपी जीवअजीव भेद गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, श्वे. ( धम्माधम्मागासा तिय), ६१२४६ - २ (+#$)
""
(२) रूपीअरूपी जीवअजीव भेद गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (कर्म ८ पाप १८ मन जोग), ६१२४६ - २(+#$)
रोहिणीतप व्याख्यान आ. नरेंद्रसूरि सं., श्लो. १२९, वि. १७७०, पद्य, खे, (नत्वा च श्रीमहावीर), ५९७४५-१२(+०) रोहिणीयाचोर कथा, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (प्रभुजीनी वाणी सांभल), ६२९२९-३(+)
लंघनपथ्य निर्णय, मु. दयातिलक शिष्य, सं., श्लो. ३०४, वि. १७९२, पद्य, मूपू. (श्रीसर्वशं नमस्कृ), ६१४७७-२
लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., अधि. ६, गा. २६३, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय), ५९६८५ (+), ५९७४९-११ -११(+#), ६०७२४(+$), ६१००० (+#), ६११३०-१०० (+), ६१८९४ (+$), ६१९१७-८३(+), ६०४७४(#$), ६२६३३(#), ६१७४५ (5)
(२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण सुगमावबोधिका टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं., गद्य, मूपू., (-), ६०७२४(+)
(२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण - स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., अ. ६, वि. १५वी, गद्य, मूपू., (अर्हमिति ब्रह्मपदं), ६०४७४(#$)
(२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण बालावबोध, मु. उदयसागर, मा.गु., वि. १६७६, गद्य, मूपू., (निश्शेषज्ञानविज्ञान), ६१००० (+),
६२६३३(५)
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५३४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (शांति शांतिनिशांत), ५९५८९-८(+#), ५९७४९-७(+#), ६००२७-४६(+),
६०९१४-९(+), ६०९४०-४(+), ६१०४४-२(+$), ६११३०-८९(+$), ६१२३२-१(+$), ६१२४८-४(+$), ६१७८३-४(+), ६१७९६-२(+), ६१९१७-७३(+), ६२६३२-६३(+#), ६२८९१-२(+), ६२३८१-२, ६११९५-४५(#), ६१७६९-४(#$),
६०३९८-२(s), ६०७८७-२(-) (२) लघुशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीशांतिनाथ शांति), ६०७८७-२(-) लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं सव्वन्नु), ५९६०९(+), ६१०९८-२(+), ६१७११(+#$),
६१९१७-९१(+), ६१२३४ (२) लघुसंग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिय क० नमस्कार करी), ५९६०९(+), ६१७११(+#$) (२) लघुसंग्रहणी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, स्पू., (नमिय क० नमस्कार करी), ६१२३४($) (२) लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (लाख जोयणनो जंबूद्वीप), ५९८४६(+), ५९९४४(+$),
६००६०(+#), ६२२२७(+), ६२३२३(+), ६०३७४, ५९९९७-१(#$) । (२) लघुसंग्रहणी-जंबूद्वीप विचार*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबुद्वीप मांहि केतल), ६१०९८-३(+$) लब्धिप्रकाश, क. नंदलाल, प्रा., गा. ३५, वि. १९०३, पद्य, श्वे., (नमिऊण महावीरं वदामि), ६००२८(#) (२) लब्धिप्रकाश-स्वोपज्ञ चौपाई, क. नंदलाल, मा.गु., वि. १९०३, पद्य, श्वे., (रामचंद्र बनवास में), ६००२८(#) ललितांगकुमार कथा-दानविषये, सं., गद्य, श्वे., (पक्षपातोपि जयाय), ६१७६७-७(#) ललितांगकुमार कथा-धर्म विषयक, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (त्रिवर्गसंसाधनमंतरेण), ६२९२९-१(+) लीलावती, भास्कराचार्य, सं., श्लो. २७९, प+ग., वै., (प्रीतिं भक्तजनस्य), प्रतहीन. (२) लीलावती-पद्यानुवाद, पं. रतनचंद, मा.गु., पद्य, म्पू., वै., (श्रीपारस परमेश्वर), ६०५१३($) (२) लीलावती-भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., अ. १६, गा. ७०७, वि. १७३६, पद्य, मूपू., वै., (सोभित सिंदूर पुर), ६०५७१(+#),
६०५८०(+#) लेश्या फलस्वरूप लक्षण, प्रा.,सं., गा. १३, पद्य, मूपू., (मूलं साहपसाहा गुच्छ), ६०३६८-३ लोकतत्त्वनिर्णय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., श्लो. १४५, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्यैकमनेक), ६१७३० लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. ३२, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (जिणदसणं विणा जं), ६०९२२(+), ६१२१९(+),
६०९५८ (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-व्याख्या, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ६१२१९(+) (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वा वीरं विशेषज्ञ), ६०९५८ (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-बालावबोध, मा.गु., वि. १७१२, गद्य, मूपू., (श्रीमद् विमलनाथस्य), ६०९२२(+) लोकप्रकाश , उपा. विनयविजय, सं., स. ३७, ग्रं. २०६२१, वि. १७०८, पद्य, मूपू., (ॐ नमः परमानंद), ५९८०६(+$) वंगचूलिका प्रकीर्णक, आ. यशोभद्रसूरि, प्रा., पद्य, मूपू., (भत्तिब्भरनमियसुरवर), ५९२५१ (२) वंगचूलिका प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भक्तिना समुहे करीने), ५९२५१ वज्जालग्ग, क. जयवल्लभ, प्रा., गा. ७९५, ग्रं. १२३०, पद्य, मूपू., (सव्वन्नुवयणं पंकयनिव), ६२७८९(+#$) (२) वजालग्ग-वृत्ति, ग. रत्नदेव, सं., वि. १३९३, गद्य, मूपू., (तत्र शास्त्रस्यादौ), ६२७८९(+#$) वज्रपंजर स्तोत्र, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (ॐ परमेष्ठि), ५९५७८-१५(+), ६०४३८-१(+), ६१८७६-५७(+#), ६१०१५-११(-) वडीदीक्षा अनुयोग विधि, प्रा.,सं.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० करेमि), ६०३७६-८(#) वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ज्ञानं सारं सर्व), ५९५०४(+), ५९७४५-४(+#), ६००१७-४(+), ६११४०-४(+$),
६१२७२-१(२), ६२८९३(#), ६१७४७-२(5) (२) वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वृषभनुलछन छे जेहन), ५९५०४(+), ६१७४७-२(5) वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., श्लो. १५०, वि. १६५५, पद्य, म्पू., (श्रीमत्पार्श्वजिन),
५९४७६(+), ५९७१८(+#$), ६२६७२(+), ५९४७२-१, ६२७४५ (#$), ६०९२३($) (२) वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ *मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथ प्रतै), ५९४७६(+), ५९४७२-१
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
(२) वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ६२७४५ (#$) वर्द्धमानदेशना, ग. राजकीर्ति, सं., उल्ला. १०, ग्रं. ४३००, गद्य, म्पू., (नमः श्रीपार्श्वनाथाय), ५९७९९(+$), ६१८४७(+#), ६१९३७(#) वर्द्धमानविद्या कल्प, आ. वज्रस्वामि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं अहह), ६२६४० वसतिदानादि विषयक कथासंग्रह, प्रा.,सं., कथा.८, गद्य, मूपू., (वसही सयणासण भत्तपाणे), ६०३७५(+) वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, मूपू., बौ., (संसारद्वयदैन्यस्य), ५९३८४(+), ५९४१६(+), ५९७१९(+), ६०३४५(+), ६०६७२(+-),
६१४९९(+$), ६२२७८-५(+), ६२५३६(+), ५९३६३, ५९३७७, ५९४१८, ६०६७७, ६१५००, ६२५३७, ६२५६७, ५९३४३(#),
५९३७८(#), ६०३३५(2), ६०६८२(१), ६१८०९-२(#), ६२५३०(#), ६०३५२(६) । वसुराजा कथा-सत्वविषयक, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (तस्याग्निर्जलमर्ण), ६२९२९-४(+) वस्तुपालमंत्री चरित्र, ग. जिनहर्ष, सं., प्र.८, वि. १४९७, पद्य, मूपू., (श्रीमानहन शिवः), ६११११(+#) वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., परि. ५, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (श्रियं दिशतु), ५९३०७(+$), ६०७६८(+#), ६२८३३(+$),
६२८५२-२(+), ५९३०३ (२) वाग्भटालंकार-ज्ञानप्रमोदिका वृत्ति, ग. ज्ञानप्रमोद; ग. रत्नधीर, सं., ग्रं. २९५६, वि. १६८१, गद्य, मूपू.,
(यस्यानेकगुणास्पदस्य), ६२८३३(+$) (२) वाग्भटालंकार-टीका, आ. जिनवर्धनसूरि, सं., परि. ४, गद्य, मूपू., (श्रीमान् श्रीआदिनाथः), ५९३०७(+$) (२) वाग्भटालंकार-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (यदागमपदावली यस्यागम), ६२०२५(+) (२) वाग्भटालंकार-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (--), ६०७६८(+#) वासुपूज्यजिन स्तवन यमकबंध, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., (वसुपूज्यं वसुपूज्य), ६२९०८-३७(+) वास्तुमंजरी, सूत्रधार नाथजी खेतजी, सं., अधि. ३, पद्य, मूपू., वै., (उद्यदादित्यसंकाशं), ६१७१० वास्तुसार प्रकरण, ठक्कुर फेरु, प्रा., प्रक. ३, गा. २०५, वि. १३७२, पद्य, मूपू., (सयलसुरासुरविंद दसण), ६१०३८-१ विक्रमकुमारकथा जीवदयोपरि, सं., पद्य, स्पू., (प्रणम्य श्रीजिनाधिश), प्रतहीन. (२) विक्रमकुमार कथा जीवदयोपरि-अनुवाद, पुहिं., गद्य, मूपू., (जीवदया के पालने से), ६०९८९(+) विक्रमादित्य कथा-कपटवचन विषयक, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (न ब्रूते परदूषणं), ६२९२९-६(+) विचारगाथा संग्रह, प्रा.,सं., गा. ३, गद्य, मूपू., (बत्तीसं कवलाहारो), ६२८८०-१(+) (२) विचारगाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रावकने प्रथम), ६२८८०-१(+) विचार संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (जोअणसयं तु गंता अणहा), ६२१४१-३९(+) विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (समरवीर राजा महावीरनउ), ५९५६२-२(+#), ६०४३३-२(+#), ६०९७३-२(+$),
६११५०-५(+), ६१६६७-४(+), ६१६७५-२(+), ६१७१७-२(+), ६१७९२-२(+#), ५९९९७-२(#), ६०३७६-११(#), ५९२४९-२($) विचारसार संग्रह, प्रा., गद्य, मूपू., (कहन्नं भंते जीवाः), ६२८३१ (२) विचारसार संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्राविका जयंति), ६२८३१ विजयदेवसूरि स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीमेडतापुरमहीललला), ५९२६०-२(+#) विजयप्रभसूरिस्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (विजयप्रभसूरे नित्य), ६१६९४-१२(#) विजयरत्नसूरि स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (विजयरत्नगणाधिप धीमता), ६१६९४-१३(#) विद्याविलास कथानक-पुण्यप्रभावे, सं., गद्य, मूपू., (धर्माज्जन्मकुले शरीर), ६२८७२ विधिमार्गप्रपा नाम सुविहितसमाचारी, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., ग्रं. ३५७४, वि. १३६३, पद्य, मूपू., (नमिय महावीरजिणं सम्म),
६१०८७(+) विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., श्रु. २ अध्ययन २०, ग्रं. १२५०, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं), ५९५५८(+#), ५९६७२(+$),
५९७५७(+$), ६०४७२(+), ६०८७९(+$), ६०८८८(+#$), ६११४७(+#), ६१२००(+$), ६२६६७(+$), ६२९२२(+), ६१७६५,
६२७९१, ५९७३३ (२) विपाकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., श्रु. २, ग्रं. ९००, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीवर्द्धमान), ६१६७२ (२) विपाकसूत्र-टिप्पण, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६०८७९(+$)
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५३६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ विपाकश्रुत किसउ), ५९५५८(+#), ५९७५७(+$), ६११४७(+#) (२) विपाकसूत्र-भाषापर्याय *,मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५९६७२(+$) विप्रद्वय कथा-भाग्ये, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (आरोहतुं गिरिशिखर), ६१७३५-१६ विप्रपालितशुक कथा-अविचारितकर्मणि, सं., गद्य, श्वे., (विचारितं च कर्तव्य), ६१७३५-६ विवाहपडल, सं., श्लो. १६०, पद्य, वै., (जंभाराति पुरोहिते), ६०२९९-२ (२) विवाहपडल-बालावबोध, मु. अमरसुंदर, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., (प्रणम्य शिरसा पार्श), ६०२९९-२ (२) विवाहपडल-पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., गा. ६३, पद्य, मूपू., वै., (वाणी पद वांदी करी), ६०६२२(+$) विविध विचार संग्रह, पुहि.,प्रा., गद्य, मूपू., (स्त्री के जब स्त्री), ५९९४३(+$) विवेकमंजरी, श्राव. आसड कवि , प्रा., गा. १४४, वि. १२४८, पद्य, मूपू., (सिद्धिपुरसत्थवाह), ५९६१७ विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., उल्ला. १२, पद्य, मूपू., (शाश्वतानंदरूपाय तमस), ५९५५२(+), ६०५०९(#) (२) विवेकविलास-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते को एक परमात्मानइ), ५९५५२(+), ६०५०९(#) विशेषशतक, उपा. समयसुंदर गणि, प्रा.,सं., गा. १००, वि. १६७२, पद्य, मूपू., (सुधर्मस्वामिनं नत्वा), ६१८६४-१(+) (२) विशेषशतक-प्रश्नसंग्रह, संबद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, भूपू., (कृष्णस्य भवचतुष्टय), ६१८६४-२(+) विषापहार स्तोत्र, जै.क. धनंजय कवि, सं., श्लो. ४०, ई. ७वी, पद्य, दि., (स्वात्मस्थितः सर्वगत), ६१०८९-६ (२) विषापहार स्तोत्र-(पु.हि.)भाषाटीका, श्राव. अखैराज श्रीमाल, पुहिं., गद्य, दि., (पुराण पुरुषः पायात्), ६१०८९-६ विहरमान २० जिन स्तव, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (द्वीपेत्र सीमंधर), ५९६५७-४(+) । वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. २०, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (यः परात्मा पर), ५९४५९(+) (२) वीतराग स्तोत्र-अवचूरि , मु. विशालराजसूरि-शिष्य, सं., प्रका. २०, ग्रं. ६२५, वि. १५१२, गद्य, मूपू., (जयति श्रीजिनो वीरः),
५९४५९(+) वीतरागाष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (शिवं शुद्धबुद्ध), ६१८७६-११(+#) वृत्तरत्नाकर, केदार भट्ट, सं., अ. ६, ग्रं. १८९, पद्य, वै., (सुख संतान सिध्यर्थ), ६२८५२-१(+$) वृद्धवणिक कथा-भाग्यदशायां, सं., गद्य, श्वे., (पुन्यप्राग्भारयोगेन), ६१७३५-१५ वृष्णिदशासूत्र, प्रा., अध्य. १२, गद्य, मूपू., (जइ णं भंते० पंचमस्स), ५९५८४(+$), ५९७४७-५(+), ६०४०७-५(+), ६१०२३-५(+#),
६२६९१-५,५९६२६-५(६) (२) वृष्णिदशासूत्र-टिप्पण", सं.,मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ६१०२३-५(+#) (२) वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जौ हे पूज्य० पांचमान), ५९५८४(+$), ५९७४७-५(+) वेदखंडन, उपा. कीर्तिचंद्र, सं., गद्य, मूपू., (अहो मिथ्याशास्त्र), ६२८७४(+) वेदिका स्थापन विधि, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (तिहां पहिले भव्य), ६१७२५-२(-2) वैद्यकसारोद्धार, मु. हर्षकीर्ति, सं., पद्य, म्पू., (--), ६०५३५(+#$) (२) वैद्यकसारोद्धार-भाषाटीका*,मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६०५३५(+#$) वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., विला. ९, श्लो. ३२६, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (सरस्वतीं हृदि), ६०३०७-१(+), ६०८३३(+$),
६०५४९() (२) वैद्यवल्लभ-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसरस्वती देवता), ६०३०७-१(+) (२) वैद्यवल्लभ-टबार्थ, रा., अ.८, गद्य, मूपू., (सरस्वती माता हृदय), ६०८३३(+$) वैद्यसंजीवनी, सं., श्लो. १०१, पद्य, श्वे., (देशकालवयोवह्नि सात्म), ६०८५४-२ वैमानिकदेव देहमान, प्रा., श्लो. १३, पद्य, म्पू., (प्रति प्रतरदेहमान), ५९६५७-८(+) वैराग्यशतक, प्रा., गा. १०५, पद्य, मूपू., (संसारंमि असारे नत्थि), ५९२६१(+), ५९४७३-१(+), ५९४७४(+#), ५९५२१(+),
५९६६४(+), ६०३६३-१(+#), ६०४८५(+),६०९१६(+), ६०९२८(+), ६११५०-२(+), ६२८९६(+), ६१५९४-१, ६१६५८,
६१६९५, ६२६९६, ६२७०९-१, ५९७२२(#), ६२७५०(६) (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु.,ग्रं. ४२५, गद्य, मूपू., (चउदश राजप्रमाण लोक),५९४७३-१(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
५३७ (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वामेयं पार्श्वनाथ), ६१६९५ (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, सं., गद्य, म्पू., (वीरं वारिधिगंभीर), ५९६६४(+) (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (स० चार गतिरूप संसार), ५९४७४(+#) (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सं० चतुर्गतिरुप संसा), ६२७०९-१ (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसार असारमाहि नथी), ६०३६३-१(+#), ६०९१६(+5), ६०९२८(+), ६११५०-२(+),
६२८९६(+), ६१५९४-१, ५९७२२(#) (२) वैराग्यशतक- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहो प्राणी संसार), ५९२६१(+), ६२६९६ (२) वैराग्यशतक- बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू., (एह संसारमाहि सार नथी), ६२७५०($) व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., उ. १०, ग्रं. ३७३, गद्य, मूपू., (जे भिक्खू मासिय), ६०४०४(+#), ६०४३४(+#), ६१२५७-१(+) (२) व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे० जे कोइ भि० साधु), ६०४०४(+#) (२) व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ६१२५७-१(+) (२) व्यवहारसूत्र-चुलिका सोलह स्वप्न विचार, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (तेणं कालेण० पाडलीपु), ६१२१५(+), ६१२५२(+),
६१२४० (३) व्यवहारसूत्र-चुलिका का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते काल पांचमा आराने), ६१२१५(+), ६१२५२(+), ६१२४० व्याकरण, सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., वै., (रते भव: दंत्य: देत), ६२०१८-२($) व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (जिनेंद्रपूजा गुरू), ६०५८५-२ व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., गद्य, मूपू., (देवपूजा दया दान), ६००८३(+), ६२४३१-१ शक्र स्तव-अर्हन्नामसहस्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., मूपू., (ॐ नमोर्हते भगवते), ५९५७८-१७(+), ६१८७६-५१(+#),
६१०१५-१३(-) शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १००, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं धुवबंधोदय), ५९३०२(+#$),
५९५८२-५(+), ५९७८४-५(+#), ६०३८७(+), ६०४४१(+#), ६०४९६(+), ६०७४७-२(+#s), ६११४२-५(+#), ६१६३४(+),
६१९१७-८९(+), ६२९३८-५(+), ६१०८५-५ (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. ४३४०, गद्य, मूपू., (यो विश्वविश्वभविनां), ५९३०२(+#$) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नमिअजिणं० मिथ्यात्व), ५९७८४-५(+#) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (रत्नत्रयोपदेष्टार), ६०३८७(+), ६१०८५-५ (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, उपा. धनविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (ध्रुवबंधी प्रकृति), ६११४२-५(+#) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (परमात्मानइं भव्य), ६०४४१(+#), ६०४९६(+), ६०७४७-२(+#$) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, पंन्या. सुमतिवर्धन, मा.गु., ग्रं. ९००, वि. १८७५, को., म्पू., (श्रीजिन प्रते नमस्का ), ६२४०६-४(+$) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथ जगन्नाथ), ६१२७१-६(#) शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ), ५९५४१($) (२) शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अइमुत्तइ केवलीइ), ५९५४१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ९, पद्य, मपू., (भूतलमंडन पुंडरीकगिरि), ६२९०८-५२(+) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सिद्धोविज्जायचक्की), ६११३०-५२(+), ६१६५४-३(+), ६२६३२-९(+#), ६११९५-१६(#) शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., स. १४, ग्रं. १००००, पद्य, मूपू., (ॐ नमो विश्वनाथाय), ६१९३२(+#$), ६१६९०(#),
६१०९९(६) (२) शत्रुजय माहात्म्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीयुगादीश), ६१९३२(+#s), ६१६९०(#) शनि जाप, सं., गद्य, वै., (ॐ नमो आदित्याय वस), ६०५८८-३(+#) शनिश्चर स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (यः पुरा राज्यभ्रष्टा), ६०५८८-२(+#), ६१२७१-९(#) शशिसूरराजा कथा, मा.गु.,सं., गद्य, पू., (ते धतूरतरं वपंति भुव), ६२९२९-२(+)
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५३८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ शांतिजिन चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि, सं., प्र.६, वि. १५३५, गद्य, मूपू, (प्रणिपत्याहतः सर्व), ५९७७०(+), ६०४९२(+#), ६१८३५(+),
६१८४४-२(+$) शांतिजिन स्तवन, पं.शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (अहं देवभूमीतले लग्न), ६२९०८-५८(+) शांतिजिन स्तवन, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (यः संनतोनिर्मलभावश्य), ६२९०८-३२(+) (२) शांतिजिन स्तवन-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (--), ६२९०८-३२(+) शांतिजिन स्तवन-गुरुनामगर्भमष्टदलकमल, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (नतजनततिशांते ये स्मर),
६२९०८-२५(+) शांतिजिन स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (किं कल्पद्रुमसेवया), ६११३०-६६(+), ६१९१७-५२(+) शांतिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (देवदेवाधिपैः सर्वतो), ६००२७-३४(+) शांतिजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (शांतये शांतिकामाय), ६११३०-६३(+), ६१९१७-४९(+), ५९६४७-७, ६२६६३-३(-) शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., प्र.६, श्लो. १६३२, ग्रं. ५०००, वि. १३०७, पद्य, मूपू., (श्रेयोरत्नकरोद्भूता), ६१११८(+#),
६२९३१(+#$) (२) शांतिनाथ चरित्र-टबार्थ, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., वि. १७९९, गद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिन), ६१११८(+#) शांतिनाथ पुराण, आ. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., अधि. १६, पद्य, दि., (--), प्रतहीन. (२) शांतिनाथपुराण-टिप्पणक, आ. जिनचंद्र, सं., स. १६, ग्रं. १२००, गद्य, दि., (श्रीशांतिनाथमानम्य), ६०४०१(#) शांतिपूजा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ननु संघादीनां विघ्नो), ६२६५७(+) शांतिस्नात्र विधि, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (अथ प्रतिष्ठायां वा), ६२१८९(+), ६१०४३-१, ६१५९६ शांतिस्नात्र विधि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (नमोर्हत्सिद्धाचार्यो), ५९५२४-१ शारदादेवी स्तुति, सं., श्लो.८, पद्य, वै., (प्रथम भारती नाम), ६११३०-१३(+), ६१९१७-६४(+) शालिहोत्र, नकुल , सं., अ. १४, वै., (--), प्रतहीन. (२) शालिहोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, वै., (प्रथम रेवंतजीरो उतपत), ६०५७६-२(+) शाश्वतप्रतिमा वर्णन, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १२, पद्य, मूपू., (चत्तारिअट्ठदसदोइ), ६१६५२-२(+) शीतलजिन स्तवन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (सकलमंगलकेलिनिवेशन), ६१८७६-२(+#) शीतलाष्टक, सं., श्लो. १५, पद्य, वै., (वंदेहं शीतला देवी), ६२२७८-१६(+) शील कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (सोहग्ग महानिहिणो), ५९४५४(+$) (२) शील कुलक-व्याख्यान+कथा, सं., गद्य, म्पू., (अथ धर्मस्य द्वितीयभे), ५९४५४(+$) शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., कथा. ४३, गा. ११५, वि. १०वी, पद्य, मूपू., (आबालबंभयारि नेमि), ५९६६५(+),
६०४८७(+#$), ६१०२८(+$), ६१०५१(+), ६२८५५-४(+$) (२) शीलोपदेशमाला-शीलतरंगिणी वृत्ति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., गद्य, मूपू., (यस्योपदेशसमये दशनांश), ६०४८७(+#),
६१०२८(+$), ६१०५१(+) (२) शीलोपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५९६६५(+) (२) शीलोपदेशमाला-कथा संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (जंबूद्वीपाभिधो द्वीप), ६१०२८(+$) शुकराज कथा-शत्रुजयमाहात्म्ये, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजयतीर्थेशः), ५९२५४(+) श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४१, ग्रं. ३९०, पद्य, मूपू., (वीरं नमिऊण तिलोयभाणु), ५९५७६(+#S), ६१२१३(+),
६२८१४ (२) श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीरं कहीइ श्रीमहावीर), ५९५७६(+#$) श्राद्धविधि प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., प्रका. ६, पद्य, मूपू., (सिरिवीरजिणं पणमिय), ६१८३२($) (२) श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., प्रका. ६, ग्रं. ६७६१, वि. १५०६, गद्य, मूपू.,
(अर्हत्सिद्धगणींद्र), ६१८३२(६) श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सच्चित्त दव्व विगई), ६०१७७-१(+), ६१५७०-५(+#), ६०३६८-१२
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५ (२) श्रावक १४ नियम गाथा-(पु.हि.)बालावबोध, रा., गद्य, मूपू., (श्रावके जीवजी पांच), ६०१७७-१(+) श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., अधि. ५, ग्रं. १६६, वि. १६६७, गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञ प्रणिपत), ५९५१२-१(+),
६०९६८(+), ६२६६४-२ (२) श्रावक आराधना-बालावबोध, उपा. राजसोम, मा.गु., वि. १७१५, गद्य, मूपू., (इहां आराधनाने विर्षे), ६२३५१, ६२४३५ श्रावक आलोयणा, प्रा.,सं., पद्य, श्वे., (तिव्वार पनरठारस इग), ६०४२२-२ श्रावक आलोयणा विधि, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (स्मारं स्मारं जिनें), ५९९७१(+) श्रावक पाक्षिकादि अतिचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणमिदंसणंमि अचरण), ६०७०९-१(+$) श्रावकविधि प्रकाश, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु.,सं., वि. १८३८, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीजिनाधीश), ६२१९१-१(+$), ६२१७५-१ श्रावकव्रत १२४ अतिचारभेद वर्णन, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (अथ ५ अतिचाराः अथ), ५९५०२-२ श्रावक-श्राविका सम्यक्त्वग्रहण विधि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (धारणा प्रमाणै अरिहंत), ६२२७६-३(+) श्रावक सामाचारी, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (णमिऊण जिणं वीरं ससुर), ६२६९४(+) (२) श्रावक सामाचारी-टीका, सं., गद्य, मूपू., (येन ध्यानसमन्वितेन), ६२६९४(+) श्रीचंद्रकेवलि चरित्र, मु. सिद्धर्षि, सं., अधि. ४, श्लो. ९६६, वि. ५९८, पद्य, मूपू., (ॐ ध्यात्वा श्रीजिन), ६१८३१ (२) श्रीचंद्रकेवलि चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ॐकार सिद्धनो ध्यान), ६१८३१ (२) श्रीचंद्रकेवलि चरित्र-गाथाकाव्य श्लोक, संबद्ध, प्रा.,सं., श्लो. ३६३, पद्य, मूपू., (जं चंदणेण तइआतइ), ६२६२८(+#) (३) श्रीचंद्रकेवलि चरित्र-गाथाकाव्य श्लोक का टबार्थ+व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य पार्श्वदेव), ६२६२८(+#) श्रीपाल चरित्र, ग. जयकीर्ति, सं., प्र. ४, वि. १८६८, गद्य, मूपू., (प्रणम्य सिद्धचक्र), ५९४३६(+#), ६०८८६(+$) (२) श्रीपाल चरित्र-बालावबोध, मु. देवमुनि, मा.गु., प्र. ४, ग्रं. १८००, वि. १९१७, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत सुसिद्धपद), ६००१९(+) श्रीपाल चरित्र, आ. ज्ञानविमलसूरि, सं., वि. १७४५, गद्य, मूपू., (सकलकुशलवल्ली सेचने), प्रतहीन. (२) श्रीपाल रास, मु. चेतनविजय, मा.गु., ढा. ९, वि. १८५३, पद्य, मूपू., (देव धरम गुरु सेवके), ६२२६८(+) श्रुतदेवता स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सुवर्ण शालिनी देयाद्), ६११९५-२(#) श्रुतबोध, कालिदास, सं., श्लो. ४१, पद्य, वै., (छंदसां लक्षणं येन), ६०६५६(+) (२) श्रुतबोध-मनोरमा टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., वै., (श्रीमत्सारस्वत धाम), ६०६५६(+) श्रेणिक चरित्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., स. १८, वि. १३३५, पद्य, मूपू., (सिद्धोवर्णसमाम्नाय:), ६१८५१(+) श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (कलकोमलपत्रयुता), ६०४१८-२(+), ६०७७२(+$), ६०९२०(+), ५९६११-१,
६०००७-३(-2) श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. ४१, पद्य, मूपू., (नेत्रानंदकरी भवोदधि), ६२७४३-२(+) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, श्वे., (देहे निर्ममता गुरौ), ५९४५२-२(+#), ५९५४२-२(+), ५९८३८-३(+5), ६०५५२-२(+),
६११३०-८०(+), ६१६४७(+$), ६१७९६-६(+), ६१८७७-३(+), ६१९१७-६६(+), ६२०७२-४(+), ६२२१३-१(+), ६२२४४-९(+), ६२६६१-३(+), ६२७६४-१(+), ६२८८२(+#$), ६०३५७-११, ६१७५२-२, ६२४८७-२, ६१२४३(#), ६१७६९-७(#),
६०९५१(६), ६२८५६(5) षट्पंचाशिका, आ. पृथुयशा, सं., अ.७, श्लो. ५६, पद्य, वै., (प्रणिपत्य रविं), ६०७८६-४(+#) षट्पुरुष चरित्र, ग. क्षेमकर, सं., गद्य, मूपू., (श्रीअल्तश्चतुस), ५९६३७(+), ६०९०६ षट्लेश्या लक्षण, प्रा.,सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (अतिरौद्र सदा क्रोधी), ६१६७८-४(+$) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा.८६, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं जियमग्गण), ५९४६१-४(+),
५९५७९-४(+), ५९५८२-४(+), ५९६५९-३(+), ५९६६०-४(+), ५९७८४-४(+#), ६०७४७-१(+#$), ६११४२-४(+#), ६१२२१(+), ६१५७३-३(+), ६१६२२(+$), ६१८९३-४(+$), ६१९१७-८८(+), ६२९३८-४(+), ६१०८५-४, ६१२६२-४, ५९४५६($),
६०१३७(१) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, मपू., (नमनि० तत्र जीवंति), ५९७८४-४(+#) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य शिरसा वीरं), ६१०८५-४
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५४० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
(२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीतरागदेव नमस्कार), ६०१३७($) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, उपा. धनविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (वांदीनइ तीर्थंकर), ६११४२-४(+#) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. यशसोम शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणिधाय परंतेजो), ६०१३७(5) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवइं चउथा कर्मग्रंथ), ६०७४७-१(+#$), ६१२२१(+), ६१५७३-३(+),
६१६२२(+६), ५९४५६(७) षडशीति प्राचीन कर्मग्रंथ, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा.८६, पद्य, म्पू., (निच्छिन्नमोहपास),६०४३३-१(+#) (२) षडशीति प्राचीन कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., वि. १५७०, गद्य, मूपू., (अभिवंद्य मुदा पादौ), ६०४३३-१(+#) षड्दर्शनसिद्धांत श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (चार्वाकोध्यक्षमेक), ६१७२६-२(+) षोडशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अ. १६, श्लो. २५६, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनं वीरं), ६१०१०(+) (२) षोडशक प्रकरण-सुगमार्थकल्पना वृत्ति, आ. यशोभद्रसूरि, सं., प्रक. १६, ग्रं. १५००, वि. ११वी, गद्य, मूपू.,
(अमृतमिवामृतमनघं जगाद), ६१०१०(+) संकष्टहरण गणेशाष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, वै., (ॐ ॐ ॐकाररुपं त्र), ६२२७८-१७(+) संघपट्टक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., श्लो. ४०, पद्य, मूपू., (वह्निज्वालावलीढं), ५९२९५(+) (२) संघपट्टक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अग्नि तेहनी ज्वालाई), ५९२९५(+) संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., गा. १४, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (संतिकरं संतिजिणं जग), ६१६५४-२(+), ६१७९८-१(+#) संथारापोरसीसूत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (निसीहि निसीहि निसीहि), ५९२९६-४(+), ६००२७-४१(+), ६०१२५-६७(+),
६०९१४-१०(+), ६१०९७-३२(+#), ६११३०-८४(+), ६१५७०-४(+#), ६१८८६-३२(+), ६१९१७-१५(+), ६२३३१-४(+#),
६२६३२-५९(+#), ६११९५-४१(#) संथारा विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (संथारा पाट आलोङ), ५९६५७-१६(+) संदेहदोलावली प्रकरण, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. १५०, पद्य, मूपू., (पडिबिंबिय पणय जय), प्रतहीन. (२) संदेहदोलावली प्रकरण-चयन जैनधर्ममहिमा गाथा, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (इणि दुसमिय वयधारि), ६०४३७-२(+#) संबोधपंचाशिका, क. रइधूमहाकवि, अप., गा. ५१, पद्य, दि., (णमिऊण अरहचरणं वंदेप्), ६१९०१-२(+#$) संबोधप्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., अधि. ११, गा. १६१७, पद्य, मूपू., (नमिऊण वीयरायं सव्वन), प्रतहीन. (२) अभव्य कुलक, हिस्सा, प्रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (जह अभवियजीवेहिं न), ५९५४४-१(+), ५९५९८-२(+), ६११५०-४(+) (३) अभव्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जह क० जिम अभव्यनो), ५९५४४-१(+) (३) अभव्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवनी दोय रास एक तो), ६११५०-४(+) (३) अभव्य कुलक-शब्दार्थ, मु. गोकुलचंद्र ऋषि, सं., गद्य, मूपू., (यः अभव्य जीवेन न), ५९५९८-२(+) संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १२५, पद्य, मूपू., (नमिऊण तिलोअगुरुं), ५९२५९(+), ५९२६२(+#$), ६०९४७(+$),
६११५०-१(+), ६१६०१(+), ६२८५५-३(+), ६१७७९-१, ६२७१६, ६२८८४(#5), ५९६८७(5), ६०९०७(5) (२) संबोधसप्ततिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (वंदिय पासजिणंदंतह), ५९६८७($) (२) संबोधसत्तरि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्करीनइ त्रिभुवननउ), ५९२५९(+) (२) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीनइ तिन), ५९२६२(+#$), ६०९४७(+$), ६११५०-१(+), ६१७७९-१,
६२८८४(#$), ६०९०७(६) (२) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्तंजगन्नेत सच्चेतों), ६२७१६ संवेगदुमकंदली, आ. विमलाचार्य, सं., श्लो. ५२, पद्य, मूपू., (दूरीभूतभवार्तिभिः), ६०४३९-२(+#) संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. १२२, पद्य, मूपू., (काऊण नमुक्कारं जिणवर), ६११५७, ६२७६७ (२) संस्तारक प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीरं० करीनई), ६११५७, ६२७६७ सकलैश्वर्य स्तोत्र, आ. राजेंद्रसूरि, सं., श्लो. २३, पद्य, मूपू., (सकलैश्वर्यवस्थानमास), ६१६३६(+) (२) सकलैश्वर्य स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वयं आहूत्यं समुपास), ६१६३६(+) सद्बोध चंद्रोदय, मु. पद्मनंदी, सं., श्लो. ५०, पद्य, दि., (यज्जानन्नपि बुद्धिमा), ६०४३९-३(+#)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
५४१ सन्निपातकलिका, अश्विनीकुमार, सं., श्लो. ८६, पद्य, वै., (रोगाग्रस्त शरीर शांत), ६०८४१(+), ६०८४७(+#), ६१९८९(+),
६२१२२(#) (२) सन्निपातकलिका-टबार्थ, वा. हेमनिधान, पुहिं., वि. १७३३, गद्य, मपू., वै., (संधिक सन्निपात की), ६०८४१(+%), ६०८४७(+#),
६१९८९(+), ६२१२२(#) सप्ततिका कर्मग्रंथ, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., श्लो. ९१, पद्य, मूपू., (सिद्धपएहिं महत्थ), ५९५८२-६(+), ६१०८५-६ (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (अभिगम्यजगद्धीरं वीरं), ६१०८५-६ सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., गा. ७२, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (सिद्धपएहिं महत्थं), ५९८२१(+$), ६०७४७-३(+#), ६११४२-६(+#),
६१९१७-९०(+), ६२९३८-६(+), ६१५७९(5) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-टीका*, सं., गद्य, मूपू., (--), ६१५७९($) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-बालावबोध, उपा. जयसोम, मा.गु., ग्रं. ४०००, वि. १७०२, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य पार्श्वदेव), ५९८२१(+$) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., वि. १७००, गद्य, मूपू., (सिद्धि निश्चल पद छइ), ६११४२-६(+#) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिद्ध निश्चल पद छइ), ६०७४७-३(+#) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-यंत्र, पंन्या. सुमतिवर्धन, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीजिन प्रते नम), ६२४०६-५(+) सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि ,प्रा., गा. ३६०, वि. १३८७, पद्य, मूपू., (सिरिरिसहाइ जिणिंदे), ६०५०४(+), ६०७४२ (२) सप्ततिशतस्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिन), ६०५०४(+), ६०७४२ सप्तव्यसन कथासमुच्चय, आ. सोमकीर्ति, सं., स. ७, श्लो. ६७७, ग्रं. २०६७, वि. १५२६, पद्य, दि., (प्रणम्य श्रीजिनान्),
५९३३२(+$), ५९४०२(+#$) सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., स्मर. ७, पद्य, मूपू., (णमो अरिहताणं० हवइ), ५९२५६(+#$), ५९२६०-१(+#),
५९६७९-१(+), ५९७०१-३(+#$), ५९७४९-९(+#), ६००२७-४५(+), ६०१२५-६९(+), ६०९४०-३(+), ६१०८३-१(+),
६१९१७-७९(+), ६२६३२-७५(+#$), ६२८१०(+), ५९६१६(#$), ६१०१५-४-) (२) सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अजितनाथ जीता छइ सर्व), ६२८१०(+) समयसार, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., अधि. ९, गा. ४१५, पद्य, दि., (वंदितु सव्वसिद्धे), प्रतहीन. (२) समयसार-आत्मख्याति टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., अधि. ९, श्लो. २७८, प+ग., दि., (नमः समयसाराय स्वानुभ),
प्रतहीन. (३) समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., अधि. १२, श्लो. २७८, पद्य, दि.,
(नमः समयसाराय), प्रतहीन. (४) समयसार नाटक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., अधि. १३, गा. ७२७, ग्रं. १७०७, वि. १६९३, पद्य, दि., (करम भरम जग तिमिर
हरन), ५९८२६(७), ६२२८४($) समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (थुणिमो केवलीवत्थं), ६२०६९(+) (२) समवसरण स्तव-टबार्थ, पंन्या. रुपविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्तवनां करुं छु), ६२०६९(+) समवसरण स्तवन, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ३४, पद्य, मूपू., (सत्केवलज्ञान महाप्रभ), ६२९०८-४२(+) समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १०३, सू. १५९, ग्रं. १६६७, गद्य, मूपू., (सुयं मे० इह खलु समणे), ५९५४८(+),
५९५७०(+$), ५९७५५(+), ५९८०१(+#$), ६०३९७(+), ६०४८६(+), ६०४९३(+), ६०९८२(+$), ६१०५२(+#), ६१८६७(+s),
६१८९८(+$), ६२९११(+) (२) समवायांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., ग्रं. ३५७५, वि. ११२०, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ५९५४८(+),
६१०५२(+#) (२) समवायांगसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., ग्रं. ४४७४, वि. १७उ, गद्य, मूपू., (देवदेवं जिनं नत्वा), ५९७५५(+), ६०४८६(+),
६०४९३(+), ६१८६७(+s), ६१८९८(+$) (२) समवायांगसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, भूपू., (--), ५९५७०(+$), ५९८०१(+#$), ६०९८२(+$) समाधिशतक, आ. देवनंदी, सं., श्लो. १०६, ई. ५वी, पद्य, दि., (येनात्माबुध्यतात्मैव), ६०४५३(+$)
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५४२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
(२) समाधिशतक-बालावबोध, मु. पर्वतधर्मार्थी, मा.गु., गद्य, दि., (जिनान् प्रणम्याखिलकर), ६०४५३(+$) (२) समाधिशतक दोधकछंदमय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. १०४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., दि., (प्रणमी सरसति
__ भारती), ६०१७१(#$) सम्यक्त्व कौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद. ४४४, ग्रं. १६७५, वि. १४५७, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ६११८८(+),
६२९०५(+#$), ५९७६४, ६०४५५, ६०८८५, ६२७०१(#$) (२) सम्यक्त्व कौमुदी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमान चतुर), ५९७६४, ६०४५५ सम्यक्त्वकौमुदी, मु. धर्मकीर्ति, सं., स. १०, वि. १६७८, पद्य, दि., (श्रीवीरंजिनं भक्त्या ), ६१८७७-१(+) सम्यक्त्वकौमुदी कथा, उपा. विनीतसागर, सं., ग्रं. १५८७, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ५९२९८(+) सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., गा. २५, पद्य, म्पू., (जह सम्मत्तसरूव), ६२७४३-१(+) (२) सम्यक्त्वपच्चीसी-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (यथा येन औपशमिकत्वादि), ६२७४३-१(+) सम्यक्त्व परीक्षा, सं., पद्य, श्वे., (--), प्रतहीन. (२) सम्यक्त्वपरीक्षा-वचनिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रीजीणराज वीतरागदेव), ६०११७(+$) सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ७०, पद्य, मूपू., (दसणसुद्धिपयास), ६१६२०+), ६२८१९(+), ६०१७९, ६१८०२(5) (२) सम्यक्त्वसप्ततिका-सम्यक्त्वकौमुदीटीका, आ. संघतिलकसूरि, सं., अधि. १२, ग्रं. ७७११, वि. १४२२, प+ग., मूपू.,
(सच्चामीकरबंधुरोद्धर), ६१६२०(+), ६२८१९(+) (२) सम्यक्त्वसप्ततिका-सम्यक्त्वरत्नप्रकाशक बालावबोध+कथा, उपा. रत्नचंद्र, मा.गु., वि. १६७६, गद्य, मूपू., (नत्वा
श्रीपार्श्वमर), ६०१७९ (२) सम्यक्त्व सप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सम्यक निर्मलाईनइ), ६१८०२($) सम्यक्त्व सार कुलक, प्रा., गा. ५६, पद्य, पू., (नमिऊण महावीरं लोआलोअ), ६०४१९-१(+), ५९२६४-१(६) (२) सम्यक्त्वसार कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिऊण महावीरं), ६०४१९-१(+), ५९२६४-१ सरस्वतीदेवी छंद, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ४४, वि. १६७८, पद्य, श्वे., (सकलसिद्धिदातारं), ६२१४१-२२(+) सरस्वतीदेवी स्तवन, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (राजते श्रीमती देवता), ५९३०८-२($) सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (अवामा वामादे सकलमुनय), ६२६३२-२१(+#), ६११९५-२५(#) सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., श्लो. ७, पद्य, वै., (वागवादिनी नमस्तुभ्यं), ६२१४१-२३(+) सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, जै.?, (सरस्वती महाभागे वरदे), ६२२७५-८(+) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., (कदाकुंडलिनित्वदीयवपु), ५९५७८-२५(+), ६१०१५-२१(-) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (राजते श्रीमती देवता), ६११३०-१५(+), ६१९१७-११(+) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, वै., (वाग्वादिनी नमस्तुभ्य), ६१२७१-१(#), ६२६६३-६(-) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (व्याप्तानंतसमस्तलोक), ५९५७८-२०(+), ६१०१५-१६(-) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (श्वेतपद्मासना देवी), ६२२७५-४(+) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ६, पद्य, वै., (सरस्वती नमस्यामि), ५९५७८-१३(+), ६१०१५-९(-) सरस्वतीदेवी स्तोत्र-षोडशनामा, सं., श्लो. १२, पद्य, जै.?, (नमस्ते शारदादेवी), ६२१६४-१(-) सरस्वतीसूत्र, सं., पद्य, वै., (--), प्रतहीन. (२) सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, वै., (प्रणम्य परमात्मान), ६१९४७(+#), ६२१०९(+$), ६१३७७, ६१०९१(६),
६१३७६($) (३) सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., वृ. ३, ग्रं.७५००, वि. १६२३, गद्य, मपू., वै., (नमोस्तु
सर्वकल्याणपद), ६०५१२(+#), ६०७६०(+$), ६१९४७(+#), ६१३७७, ६१०९१७), ६१३७६(१) । (३) सारस्वत व्याकरण-मेघरत्ना टीका, मु. मेघरत्न, सं., वि. १२वी, गद्य, मूपू., वै., (राढावंत फणिपति फणै), ६२१०९(+$) (२) सिद्धांतचंद्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, वै., (नमस्कृत्य महेशानं मत), ६०५३८($)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
५४३ (३) सिद्धांतचंद्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., प्रक. १९, वि. १७९९, गद्य, मूपू., वै., (पुराणपुरुष ध्यात्वा), ६०७८३(+),
६०५०८(#s), ६०५३८(s) सर्वकार्यसिद्धि मंत्र, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (नमो अरिहताणं वर्ण), ६२२७८-३(+) सर्वजिनभवसंख्यादि स्तवन, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (आदौ सार्धपतिर्धाना १), ६२९०८-५७(+) सर्वजिन स्तवन, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (जिना नौमि देवाधिदेव), ६२९०८-२३(+) सर्वजिन स्तवन, पं.शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (भवतोरक्षतोदेव भवतोभव), ६२९०८-२२(+) सर्वजिन स्तोत्र, पं.शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ३६, पद्य, मूपू., (सिद्धिं करोतिस्म), ६२९०८-४०(+) सर्वज्ञशतक, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., श्लो. १२३, पद्य, मूपू., (पणमिय सिरिवीरजिण), ६१७४१(+$) (२) सर्वज्ञशतक-स्वोपज्ञ टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, म्पू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ६१७४१(+$) साधारणजिन नमस्कार-स्तुति संग्रह, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (कल्याणपादपाराम), ६१८२५-३(क) साधारणजिन स्तव, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. १४, पद्य, मूपू., (त्वयि लसद्गुणचंदनशाख), ६२९०८-७(+) (२) साधारणजिन स्तव-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (--), ६२९०८-७(+) साधारणजिन स्तवन, पं.शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (जनलंभितशांतिदयाकामल), ६२९०८-२६(+) साधारणजिन स्तवन, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (जिनसदानसदासदाभवान्), ६२९०८-२८(+) साधारणजिन स्तवन, पं.शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (जिनाधीमानौमि निर्धूत), ६२९०८-५(+) (२) साधारणजिन स्तवन-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (--), ६२९०८-५(+) साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीतीर्थराजः पदपद्म), ६१५७६-१०(+#), ६१८८६-२३(+),
६२४२१-१३(+#), ६१६९४-१४(#) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अविरलकमलगवल), ६००२७-१६(+), ६१०९७-१६(+#), ६११३०-४३(+),
६१८८६-२७(+), ६१९१७-२२(+), ६२४२१-२(+#), ६२४७५-११(+) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (कमनपविसोनेम्यालीनः), ६२१७२-६३(-#) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, श्वे., (गर्भावतारे जनुषिव्रत), ६२४२१-९(+#) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (दर्शनादुरितध्वंसी), ६११३०-६२(+), ६१८७६-१७(+#) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (प्रणामं मे येन अरह), ६२६६३-४(-) साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा.८, पद्य, मूपू., (मंगलं भगवान वीरो), ६२१६४-४(-) साधारणजिन स्तुति-शतार्थी, आ. सोमप्रभसूरि, सं., श्लो. १, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (कल्याणसारसवितानीय), ६१६९१(+) (२) साधारणजिन स्तुति-शतार्थी-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. सोमप्रभसूरि, सं., प+ग., मूपू., (यद्भारती कामगवीव), ६१६९१(+) साधुदिनकृत्य, आ. हरिप्रभसूरि, सं., श्लो. ४२२, पद्य, मूपू., (श्रीवीरः श्रेयसे), ६२७०६ साधुविधि प्रकाश, उपा. क्षमाकल्याण, प्रा.,सं., वि. १८३८, गद्य, मूपू., (प्रणम्य तीर्थेशगणेश), ५९६३४ साधुसमाचारी, सं., गद्य, मूपू., (इह पर्युषणा द्विविधा), ६०३७०(+) साधुसमाचारी खरतरगच्छीय, सं., गद्य, मूपू., (प्रथम जिनचरित्र), ६१८२६-२(+#) साधुसाध्वी १४ उपकरण, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (पत्तं पत्ताबंधो पायठ), ६२८८०-२(+), ६०९५०-४(२) (२) साधुसाध्वी १४ उपकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पात्रानी मर्यादा), ६२८८०-२(+) सामाचारी प्रकरण, प्रा.,सं., द्वा. २१, ग्रं. ११७६, गद्य, मूपू., (आयारमयं वीरं वंदिय), ६०४०८-३(+) (२) सामाचारी प्रकरण-टिप्पण, मा.गु.,सं., गद्य, म्पू., (ततः श्रीशांतिरित्या), ६०४०८-३(+) सामाचारी शतक, उपा. समयसुंदर गणि, सं., प्रका. ५, वि. १६७२, गद्य, मूपू., (श्रीवीरं च गुरुं), ६१९४५-१ (२) सामाचारी शतक-बीजक, सं., गद्य, मूपू., (सामायिकदंडकोच्चारान), ६१९४५-२ सामायिक अतिचार, प्रा., गद्य, मूपू., (नमो चउवीसाए), ६१७५०(+#), ६१६१५, ६१६१९-२($) सामायिक-लघु, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., (सिद्ध वस्तु वचो भक्त), ६१०८९-१० (२) सामायिक-लघु-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिद्ध जो वस्तु पदार), ६१०८९-१०
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ सामुद्रिकशास्त्र, सं., अ. ३६, श्लो. २७१, पद्य, मूपू., ( आदिदेवं प्रणम्यादी), ६०५३६(+४), ६०५४४(+), ६०२३१, ६०५३७, ६१३१४ (२) सामुद्रिकशास्त्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू, (आदिदेव प्रते प्रथम), ६१३१४) (२) सामुद्रिकशास्त्र- बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिला आउखु जौइजै), ६०५३७
(२) सामुद्रिकशास्त्र - बालावबोध, मा.गु, गद्य, मूपू (पुरुष स्त्रीना लक्षण), ६०५४४ (
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(२) सामुद्रिकशास्त्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आदिनाथ जे चतुर्विंशत), ६०५३६(+#)
सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं. द्वा. २२, श्लो. १०० वि. १३वी, पद्य, मृपू. (सिंदूरप्रकरस्तपः), ५९४९८ / +६), ५९५१४(१०),
,
५९६०६(+), ५९६७५-५ (+), ५९६८१ (+), ५९७३९(+$), ६०९०० (+), ६०९६६-५ (+$), ६११३०-१०१ (+), ६११५५ (+),
६१५७४(+), ६१६७८-३(+), ६१७२० (+$), ६१७४० (+#$), ६१८९१(+), ६२१५७ (+$), ६२६६० (+#), ६२७९९ (+#$), ६२८६३ (+), ५९६१३, ६९६०४, ६२०५६, ६२६५५, ६१२१४-१(२) ६२०९१(३) ६२७४०(३)
(२) सिंदूरप्रकर- टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६५५, गद्य, मूपू., ( श्रीमत्पार्श्वजिनं), ६२७९९(+#$), ६२०९१($)
(२) सिंदूरप्रकर-टिप्पण, पुहिं., गद्य, मूपू., (सिंदूर लालरंग का), ६२१५७(+$)
(२) सिंदूरप्रकर- बालावबोध + कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिंदूरनो प्रकर कहिइं), ५९७३९(+)
(२) सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू (सिंदूरनउ समूह तापरूप), ५९६७५-५ (+३), ६०९००(+), ६११५५ (+), ६१५७४(१), ६१६७८-३(+)
,
(२) सिंदूरप्रकर- शब्दार्थ, सं., गद्य, मूपू., ( शार्दूल पुंज किं), ६२६६०(+#)
सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण), ६२२४४-११(+) सिद्धचक्रयंत्र पूजनविधि, मा.गु. सं., पद्य, भूपू (प्रथम स्नात्रीया ९), ५९९७८ (+) सिद्धचक्र स्तव, सं., श्लो. ३७, पद्य, भूपू (देवं देवाधिदेवं परम) ६२६४६-१(4) सिद्धचक्र स्तुति, सं., श्लो. १५, पद्य, भूपू (विधातारं तावद्), ६११६७-२(+) सिद्धचक्र स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, भूपू (श्रीअर्हत्सिद्धमुनिं), ६११६७-३ (+)
,
सिद्धभेद गाथा, प्रा., मा.गु., पद्य, मूपू., (जिण अजिण तिथ तिथा), ६२७३८-२ (०६)
सिद्धलक्ष्मी स्तोत्र, महादेव, सं., श्लो. १६, पद्य, वै. (ॐ अस्य श्रीसिद्धलक), ६२२७८-२२(+)
सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ. ८, सू. ४६८५, ग्रं. २१८५, वि. ११९३, गद्य, मूपू., (अहँ सिद्धिः स्याद), ६१९३० (+$)
(२) सिद्धहेमशब्दानुशासन - स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. ग्रं. १८०००, वि. ११९३, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमात्मानं ), ६१९३० (+$)
(२) सिद्धहेमशब्दानुशासन षट्पादावचूरि, सं. गद्य, भूपू (अहं णामं वहत्वे), ६०४७९०)
"
(२) सिद्धहेमशब्दानुशासन - कंड्वादि धातुपाठ, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., वि. १२वी, गद्य, मूपू., (कंडू मह हणीड्), ६२७२६-२
(२) सिद्धहेमशब्दानुशासन हैमधातुपाठ, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. ग्रं. ३००, वि. ११९३, गद्य, मूपू., (भू सत्तायां पां पाने), ६२७२६-१
(३) सिद्धहेमशब्दानुशासन हैमधातुपाठ की टीका, सं., गद्य, मूपू., (इह तावत्पदपदार्थ), ६२७२६-१
"
(२) सिद्धहेमशब्दानुशासन - हेमपरिभाषासूत्र संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. वि. १२वी, पद्य, म्पू, (स्वं स्वं शब्दस्याशब), प्रतहीन.
(३) सिद्धहेमशब्दानुशासन हैमपरिभाषासूत्र की टीका, सं., गद्य, भूपू
(पंचम्या निर्दिष्टे), ६२०१८-१
(२) सिद्धहेमशब्दानुशासन- हेमलघुप्रक्रिया, उपा. विनयविजय, सं., वि. १७१०, गद्य, मूपू (अर्हमित्यक्षरं ध्येय), ६२१२३ (+45) (३) सिद्धहेमशब्दानुशासन- हेमलघुप्रक्रिया - टीका, सं., गद्य, भूपू (--), ६२१२३ (+०६)
(२) हैमशब्दचंद्रिका, उपा. मेघविजय, सं., वि. १८वी, गद्य, मूपू., ( ॐ शंखेश्वरपार्श्वाघ), ६०५३३(+$) सिद्धांतगाथा संग्रह, प्रा., गा. ६०, पद्य, मूपू., (एकेंदियए पंचेंदिय), ६०४४४-२ सिद्धांतगाथा संग्रह, प्रा. गा. १००, पद्य, श्वे. (धम्मो मंगलमुकिङ), ५९५७५ (१०) ५९२४९-१
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
(२) सिद्धांतगाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (धर्मरूपीओ मांगलिक), ५९५७५(+#)
सिद्धांतसार, आ. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., अधि. १६, श्लो. ४५१६, पद्य, दि., (श्रीमंतं त्रिजगन्नाथ), ६१६६९(+$) (२) सिद्धांतसार - भाषा पद्यानुवाद, श्राव. नथमल विलाला, पुहिं., अ. १६, गा. ७४००, ग्रं. ७४००, वि. १८२४, पद्य, दि., दर्शी सर्वज्ञ मह), ६२०६५
(सब
יי
सिद्धांत हुंडी, प्रा., मा.गु, पद्य, मृपू., (पहिलुं लुंका कन्हइ), ६१७९७
सिद्धिप्रिय स्तोत्र, आ. देवनंदी, सं., श्लो. २६, ई. ६वी, पद्य, दि., (सिद्धिप्रियैः प्रति), ६१२३१ (+), ६१०८९-७ (२) सिद्धिप्रिय स्तोत्र - लघुस्वयंभू टीका, सं., श्लो. २६, पद्म, वि. (--), ६१२३१(*)
(२) सिद्धिप्रिय स्तोत्र - (पु. हि. ) भाषाटीका, मु. रामजी ऋषि, पुहिं., गद्य, मूपू., दि., ( श्रीनाभिराजतनु भूपद), ६१०८९-७ सिद्धों के १५ भेद उदाहरण, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू (जिणसिद्धा अरिहंता), ६१६७५-३ (+)
"
सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १३४१, ग्रं. १६७५, वि. १४२८, पद्य, मूपू., (अरिहाइ नवपयाई झायित),
५९५००(+$), ५९५८५ (+$), ६०४२६ (+#$), ६१०५३(+), ६१८५५ (+), ६२६३० (+#$), ६१९२० ($)
(२) सिरिसिरिवाल कहा- अवचूरि, मु. हेमचंद्र, सं. ग्रं. ४०२२, गद्य, मूपू. ( ध्यात्वा नवपवीं), ६१०५३(+), ६१९२० (३) (२) सिरिसिरिवाल कहा- टवार्थ, पं. ऋद्धिसागर मुनि, मा.गु., पद्य, म्पू, (अरिहंतादिक नवपद), ६१८५५ (+)
(२)
) सिरिसिरिवाल कहा- टबार्थ में, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतादिक नवपद), ५९५०० (+5), ५९५८५ (+5), ६२६३० (+०६)
2
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(२) सिरिसिरिवाल कहा- सिद्धचक्रयंत्रोद्धार गाथा हिस्सा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा. गा. १२, पद्य, मूपु. ( गयणमकलियायंत).
"
६२६४६-२(#)
(३) सिरिसिरिवाल कहा- सिद्धचक्रयंत्रोद्धार गाथा की व्याख्या, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं. गद्य, भूपू (अथ गगनादिसंज्ञा),
,
६२६४६-२(#)
(२) श्रीपाल चरित्र, पंन्या. सत्यराज, सं., श्लो. ४९८, वि. १५१४, पद्य, मूपू., ( श्रिये श्रीमन्महावीर), ६०९०९ (+s), ६२८४१(+),
६१५७१
७
सीमंधरजिन स्तोत्र, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (उत्पत्तिः पूर्वाको), ६२९०८-२०(+) सीमंधरजिन स्तोत्र, पं. शीलशेखर गणि, सं. लो. ११, पद्य, भूपू (पुनाति यः पूर्वमहा), ६२९०८-१७(०) सुंदरराजा मदनवल्लभाराणी कथा - शीलविषये, मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (लक्ष्मीः सर्व्वतिनी), ६२९२९-७(+) सुंदरी कथा - अक्षयनिधितपोपरि, प्रा., गद्य, मूपू., (पज्जसवणेकप्पे भावणाई), ५९५४०-२ ($) सुकन विचार संग्रह, सं., श्लो. ९, पद्य, वै. कन्यागोपूर्णकुंभ), ६१०६०-२२०, ६२१४१-८१(क) सुक्तावली श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, श्वे., (सकल कुशलवल्ली पुष्कर), ५९६६८(+$) सुदर्शनसेठ चरित्र, मु. सकलकीर्ति, सं. परि. ८, पद्य, मूपू ( नमः श्रीवर्द्धमानाय), ५९५८७
"
"
""
सुधर्मगच्छपरीक्षा, मु. ब्रह्मर्षि, प्रा.मा.गु. गा. १७४ प+ग, मृपू., (जयति जगदेव मंगलमपहत), ६२५६९- १(+०)
सुपात्रदानफल स्तोत्र, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (उसभस्सय पारणए इक्खुर), ६११३०-७९(+), ६१५७६-६ (+#), ६१९१७-६२(+) सुपात्रदानादि विषयक व्याख्यान संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, खे, (नो दानं बहिती तपो न ), ६२४६९
"
सुवोधा सामाचारी, आ. श्रीचंद्रसूरि प्रा. सं. ग्रं. १३८६ प+ग. म्पू, (नमिऊण तिलोयगुरु), ६०४०० (+), ६२७८८-१
"
सुभाषित लोक मा.गु. सं., श्रो. २, पद्य, श्वे. ( अपुत्रस्य गृहं सुनं), ६०७५२(+5)
सुभाषित श्लोक संग्रह, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., गा. ४०, पद्य, श्वे., (दानं सुपात्रे विशुद), ५९५२६(+), ५९६५७-१८(+$), ६०९७६(+#$), ६२२३५-२ (+), ६०३६८-२, ६०५८५-१
सुभाषित श्लोक संग्रह में सं., पद्य, (विद्यालक्ष्मीसंपन्ना), ५९६७५-१(+)
सुभाषित संग्रह, सं., श्लो. १९५३, पद्य, श्वे., (वीरं विश्वगुरुं नत्व), ५९८३८-२ (+$), ६२८५१(s)
सुलसासती कथा, सं., श्लो. २४०, पद्य, मृपू. (अधानंतरविश्वेशः), ६१७०५-१
सुव्रतऋषि कथानक, प्रा. गा. १५७, पद्य, भूपू (सिरिवीरं नमिऊणं), ६२८६८(+)
सुसढ कथानक-यतनाविषये, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ५१८, पद्य, मूपू., (रायगिहे गुणसिलए), ६२८०५-१(+) सुसढ चरित्र, प्रा., गा. ५१६, पद्य, भूपू (जे परमानंदमय परप्पमा), ५९७५९
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) सुसढकथा-टबार्थ, मु. लब्धि, मा.गु., वि. १८०८, गद्य, जै., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ५९७५९ सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., वर्ग.४, श्लो. १७६, वि. १७५४, पद्य, मूपू., (सकलसुकृत्यवल्लीवृंद), ५९७२९(+$),
५९९५०(+), ६००२०(+$), ६००६७(+#), ६०१४८(+#$), ६०१८१(+$), ६२२११(+), ५९८५९, ६२१४४, ६२१७८, ६२१५३(#$) (२) सूक्तमाला-बालावबोध, मु. प्रतापविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (तदनुक्रम संग्रहो), ६००२०(+$) (२) सूक्तमाला-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकल सर्व जे शुभ करणी), ६२१४४, ६२१५३(#$) (२) सूक्तमाला-टबार्थ, मु. धर्मविजय, मा.गु., वि. १८२७, गद्य, मूपू., (सघलि पुण्य रुप वेलनी), ६०१८१(+$) (२) सूक्तमाला-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६०१४८(+#$) (२) सूक्तमाला-कथा, मु. धर्मविजय, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रणमी सद्गुरु शारदा), ६०१८१(+$) (२) सूक्तमाला-कथा, मा.गु., कथा. ६९, गद्य, मूपू., (श्रीआदेश्वरजीनी सेवा), ६२१४४ (२) सूक्तमाला-कथा*, मा.गु., गद्य, पू., (--), ६०१४८(+#$) सूक्तावली, सं., अधि. ७४, पद्य, मूपू., (ॐकार बिंदुसंयुक्त), ५९५६१(#$) सूक्तावली, सं., श्लो. ७७८, पद्य, मूपू., (अहँतो भगवंत इंद्र), ६१२५५(#$) सूक्तावली, सं., श्लो. १३८, पद्य, श्वे., (राज्यं निःसचिवंगत), ६०८६३ सूतक विचार, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (सूतकं वृद्धिहानिभ्या), ६०३७६-६(१) सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. २३, ग्रं. २१००, प+ग., मूपू., (बुज्झिज्ज तिउट्टेज), ५९३००(+$), ५९६२४(+),
५९६४१(+$), ५९७६ ०(+), ५९७७७(+), ६०६९३(+), ६०९२६(+), ६०९९४+#), ६११०२(+#$), ६१९२१(+), ६१९४२(+),
६२९०७(+$), ६०३९०, ५९५६०, ५९६२२, ६२६६६-६, ६२६४२(#$), ५९६१९(६), ६०४९८($) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. २०५, पद्य, मूपू., (तित्थयरे य जिणवरे), ५९६४१(+$) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-बृहद्वृत्ति #, आ. शीलांकाचार्य, सं., ग्रं. १२८५०, वि. १०वी, गद्य, मूपू., (स्वपरसमयार्थसूचकमनंत),
५९६४१(+$), ६१९४२(+), ५९६१९(5) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-टिप्पण, मा.गु., गद्य, मूपू., (बुज्झेज्झ कहता जाणइ), ६२९०७(+$) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य सद्गुरुन्), ६११०२(+#$) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य सद्गुरुन), ५९७६०(+) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (बुज्झेज कहता जाणइ), ५९३००(+$), ६२६४२(#$) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बुज्झि छकाय जीवना), ५९७६०(+), ५९७७७(+), ६०६९३(+), ६०९२६(+),
६०९९४४+#), ६१९२१(+), ५९५६०, ५९६२२ (२) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५९६२४(+) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. २९, पद्य, मूपू., (पुच्छिसुणं समणा माहण), ५९७१७(+),
५९७२७-१(+), ६१२४५-१(+), ६१२६७-१(+#), ६२८९०(+), ६११७२-२, ६२६६६-२, ६०००७-२(-2) (३) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पु० पुछता हवा कोण), ५९७१७(+), ६१२४५-१(+),
६१२६७-१(+#) सूरिमंत्रपूजा विधि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (ॐ क्रौं हीं श्रीं), ६१८९७ सूरिमंत्र विचार-मलधारीगच्छ, सं., अधि. १०, गद्य, मूपू., (तत्र च दश वक्तव्यता), ६०९७८(+$) सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा., प्राभृ. २०, ग्रं. २२००, गद्य, मूपू., (नमो अरि० तेण० मिथिल), ६०९९५(+) स्तुतिचतुर्विंशतिका, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., स्तु. २४, श्लो. ९६, वि. ९वी, पद्य, मूपू., (नमेंद्रमौलिगलितो), ६०४३५ (२) स्तुतिचतुर्विंशतिका-स्वोपज्ञ अवचूरि, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., अ. २४, वि. ९वी, गद्य, मूपू., (पारिजाताः कल्पद्रुमा), ६०४३५ स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., स्तु. २४, श्लो. ९६, पद्य, मूपू., (भव्यांभोजविबोधनैक), ५९५४५-१(+), ६०९६०(+),
६२८३८-१(+), ६२८४३(+$) (२) स्तुतिचतुर्विंशतिका-टिप्पण, ग. जयविजय, सं., गद्य, मूपू., (भव्या एवांभोजानि), ६२८४३(+$) स्थविरावली सज्झाय, प्रा., गा. २७, पद्य, मूपू., (सुहम्मं अग्गिवेसाण), ६११६२-३(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
५४७
स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., स्था. १०, सू. ७८३, ग्रं. ३७००, प+ग, मूपू., (सुयं मे आउस तेणं), ५९७९५ (+), ६०९०१ (+$), ६०९९९(*), ६१११०(०४) ६१११४(+), ६११२५ (+४) ६१७५५ (+३), ६१८६१(+), ६१९०२ (०३), ५९८११, ६१८२९(45), ६१५८४(४)
"
(२) स्थानांगसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं. स्था. १० प्र. १४२५०, वि. ११२०, गद्य, मूपू., (श्रीवीर जिननाथ), ६१११० (+४), ६१११४(+)
(२) स्थानांगसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिनं नाथं), ६१७५५ (+s), ६१८६१(+)
(२) स्थानांगसूत्र - टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., ग्रं. १३५००, गद्य, मूपू., (श्रीमद्वीरजिनं नत्वा), ५९८११
(२) स्थानांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू (श्रीसुधर्मा कहि हे), ६०९०१ (७), ६११२५ (+), ६१९०२ (445)
(२) स्थानांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु, गद्य, मूपू., (सुण्या मे हे आउखावंत), ५९७९५ (+)
(२) स्थानांगसूत्र- बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (एगे आया एगे अणया), ६००४७(+)
(२) स्थानांगसूत्र - हिस्सा नवमस्थानक पदार्थविवरण आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. पण, मूपू., (-), प्रतहीन.
(३) स्थानांगसूत्र का हिस्सा नवमस्थानक पदार्थविवरण- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व १ अजीव), ६०१४५ (+#$) (२) स्थानांगसूत्र - हिस्सा स्थानक४ उद्देश४ मेघपद से परिनिंदिता पद, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., मूपू., ( चत्तारि मेहा प० तं०), प्रतहीन.
(३) स्थानांगसूत्र- हिस्सा स्थानक४ उद्देश ४ मेघपद से परिनिंदिता पद का चारमेघ विचार, संबद्ध, मा.गु, गद्य, मूपू. (चार प्रकारना मेघ) ६२७३१-२(+१)
स्नात्रपंचाशिका, ग. शुभशील, सं., कथा. ५०, श्लो. ५०, पद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीजिनान्), ५९४४१-१(#) (२) स्नात्रपंचाशिका - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य क० प्रणाम), ५९४४१-१(०)
(२) स्नात्रपंचाशिका-कथासूचि, मा.गु., गद्य, मूपू., (धनसारनी कथा वीरवणीक), ५९४४१-२(#) स्नात्रविधि, मा.गु. सं., प+ग. म्पू, (--), ६०८९६-१(३)
स्वर्ग नरकागत मनुष्य चिह्न श्लोक, सं., पद्य, खे, (विद्वेषतां बंधुजनेषु), ६१८४४-१(+६)
स्वाध्याय लोक सं., श्लो. ४, पद्य, दि., (ॐकारविंदु संयुक्त), ६०७४६.६ (-)
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हरिविक्रम चरित्र, आ. जयतिलकसूरि, सं. स. १२, श्लो. ४७५०, पद्य, मूपू. श्रीतीर्थाय नमस्तस्म) ६०४५१(क) हस्तसंजीवन, उपा. मेघविजय, सं., श्लो. २८३, ग्रं. ५२५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीभरणं), ६०२२८($) हिंगुल प्रकरण, उपा. विनयसागर सं., श्लो. १८०, पद्य, मूपू., (श्रीमच्छ्रीवासुपूज्य), ६१७३१(०) हिंसाष्टक, आ. हरिभद्रसूरि, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (अविधायापि हि हिंसा), ६१८२३
(२) हिंसाष्टक स्वोपज्ञ अवचूर्णि आ. हरिभद्रसूरि सं. गद्य, भूपू (अपार पारावार संसार), ६९८२३
',
"
हृदयप्रदीपषट्त्रिंशिका, आ. चिरंतनाचार्य, सं., श्लो. ३६, पद्य, मूपू (शब्दादिपंचविषयेषु), ५९६२७-९(+) (२) हृदयप्रदीपषट्त्रिंशिका - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श० शब्दादि पांच विषय), ५९६२७-९(+) हेमदंडक, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (जीवभेया सरीराहार), ५९६०५-१(०)
(२) हेमदंडक - पद्यानुवाद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. १०७, वि. १८६९, पद्य, मूपू (जो ध्रुव अलख अमूरती), ५९६०५-२ (+)
हैमविभ्रम सं., श्लो. २१, पद्य, मूपू (कस्य धातोस्तिवादीनाम), ५९५११
13
(२) हैमविभ्रम- अवचूरि, ग. चारित्रसिंह, सं., वि. १६२५, गद्य, भूपू (नत्वा जिनेंद्र) ५९५११
,
होलिकापर्व कथा, मु. गुणाकरसूरि शिष्य, सं., श्लो. ६९, पद्य, मूपू., (ऋषभस्वामिनं मन्ये), ६२८८७ (+#), ६१२४४, ६१७०४-२ (#)
(२) होलिकापर्व कथा - टबार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (श्रीऋषभस्वामीने), ६२८८७(+९१) ६१२४४, ६१७०४-२(१)
होलिकापर्व कथा, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., श्लो. ५३, पद्य, मूपू., (वर्द्धमानजिनं नत्वा), ६१६४८(+#)
"
(२) होलिकापर्व कथा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर जिन प्रते), ६१६४८(+#) होलिकापर्व कथा, सं., श्लो. ६५, पद्य, भूपू (ऋषभस्वामिनं वंदे), ६०९६४, ६१६००-३ (२) होलिकापर्व कथा - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीआदिश्वर प्रणमीकै), ५९९०१ (२) होलिकापर्व कथा-टवार्थ, पुहिं. गद्य, भूपू (ऋषभस्वामी तिनकु बंद), ६०९६४
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५४८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
होलिकापर्व कथा, सं., श्लो. ५०, पद्य, म्पू., (वर्द्धमान जिन), ५९५३७(+#), ६०३६७ (२) होलिकापर्व कथा-टबार्थ, आ. जिनसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्धमानस्वामी), ६०३६७ (२) होलीरजपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानस्वामी), ५९५३७(+#) होलिकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८३५, गद्य, मूपू., (होलिका फाल्गुने मासे), ५९७४५-९(+#), ६११४०-८(+),
६०१७३-२($), ६२९३२-४($) होलीरजपर्व प्रबंध, ग. फतेंद्रसागर, सं., श्लो. १३९, वि. १८२२, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ५९६९१, ६१२१८ (२) होलीरजपर्व प्रबंध-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्धमानस्वामी प्), ५९६९१, ६१२१८ ह्रींकार कल्प, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ३०, पद्य, मूपू., (मायाबीजबृहत्कल्पात्,), ५९६४७-८($)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २
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४ आहार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (हविं च्यार प्रकारना), ५९६५७-१४(+)
४ ध्यान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम आरितध्यान जीका), ५९७२१()
४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (नगर कंपिलानो धणी रे ), ५९५९० -३ (+)
४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा. डा. ४, गा. ११०, पद्य, वे. (अनंत चोवीसी जे नमु), ६०१०८ + ५९९५४
"
४ मंगल शरण, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८५२, पद्य, श्वे. (पो उठीनें समरीजै हौ), ६००७७-१(+)
४ शरण सज्झाय, क. विजयभद्र, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू (पहिलो मंगलिक कहु), ६१७३४-३
,
४ शरणा, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिलो शरणो अरिहंत), ६०४९७-१
५ आरा २९ बोल, मा.गु., गद्य, भूपू (श्रीमहावीरस्वामिजी), ६२२५१-१(१)
५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (सिद्धारथसुत वंदिये), ६२१४१-९४(+) ५ कुगुरु सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ३९, पद्य, मूपू., (सेवो सदगुरु गुण), ६०७१३(#)
५ ज्ञान पूजाविधि, रा., प+ग, मूपू., (ज्ञानं स्यात् कुमतां), ६०१४९-१(#$)
५ तीर्थजिन चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (धुर समरुं श्रीआदिदेव), ६१६९४-२(#)
יי
५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मृपू., (आदि हे आदिजिणेसरु ए), ६०१७६-१ (+)
५ देव बोल, मा.गु., गद्य, श्वे. (पहिलुं नामद्वार बिजु), ६१२११-२
५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू, (हस्तिनापुर नगर भलो), ६२१४१-४३ (+), ६२२६७-१३(+)
,
,
५ प्रकारे संसारीजीव, मा.गु., गद्य, मूपू., (द्रव्य संसारु१), ६०३७६-३(५)
५ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलो नारकिनो द्वार), ६२१९९ (+), ६२४२७ (+), ६२२५१-५(#)
५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू (सकल मनोरथ पूरवै रे), ५९८६६-१ (+), ६२२६७-२३(+)
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५ शरीर २३ बोल विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम शरीर ते शरीर), ५९८८८ (#$)
५ शरीर नाम, मा.गु., गद्य, म्पू, (उदारिकर वैक्रिय२), ६१०९७-४१(+)
५ साधु चौपाई - अभयकुमारसंबंधे, मु. कान्हजी, मा.गु., ढा. १३, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (जगगुरु प्रणमु वीरजिन), ६२२०४(+#)
६ आरा बोल, मा.गु, ग्रं. १८०, गद्य, भूपू (दस कोडाकोड सागरोपमना), ६०७१५ (+)
६ आरा संवाद, मा.गु., गद्य, श्वे., ( अवसर्पणी उत्सर्पणी), ५९९६० (+)
६ आवश्यक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (चार आवश्यक थया कर्म), ६२१४१-३७/+)
६ संघयण नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (वज्रऋषभनाराच१ ऋषभ), ६१०९७-४२(+#), ६१०४२-२(#)
८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मूल कर्म आठ तेहनी), ५९५३८(+), ६२२३६ (+), ६१५४२, ६१६३३, ५९९५९.२ (४७)
८ कर्म ३० बोल विवरण, मा.गु., गद्य, भूपू., (ज्ञानावरणी पोलिआ), ६००७० (+)
८ कर्मप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपु (समकित वेदनीनो ए अर्थ), ५९८९९
८ कर्मप्रकृति विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम ज्ञानावरणी), ५९८७७
८ प्रकारी पूजा, मु उत्तमविजय, मा.गु. दा. ८. वि. १८९३, पद्य, मूपू (श्रुतधर जस समरें सदा), ६२३८६ (45)
"
+
८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७७, वि. १८२१, पद्य, मूपू., (अजर अमर निकलंक जे), ६२३४४
८ प्रकारी पूजा - पिस्तालीस आगमगर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., वि. १८८१, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), ६२२६२ ($)
८ प्रकारी पूजा रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु. दा. ७८ गा. २०१४, वि. १७५५, पद्य, म्पू (अजर अमर अविनाश जे), ५९८२३(७), ६२०५८(+)
८ मदस्वरुप विचार, मा.गु., गद्य, वे., (मदजात मेतार्जवत् कुल), ५९८७०-३०
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५५०
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ८, गा. ७६, पद्य, मूपू., (शिवसुख कारण उपदेशी), ५९८३३(+),
६२१७७-३ (२) ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रेणिनत), ६२२८९ (२) ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रेणिनतं पाश), ५९८३३(+) (२)८ योगदृष्टिगुण सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (निरुपद्रव्य सुखनु), ५९८३३(+) ८ शुद्धि विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे., (भावशुद्धि१ कायशुद्धि), ६०३७६-१०(१) ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. १०, गा. ४३, वि. १७६३, पद्य, म्पू., (श्रीगुरुने चरणे नमी), ५९८६६-९(+),
६००७७-१३(+), ६२१७७-४ ९ सम्यक्त्व प्रकार, मा.गु., गद्य, मूपू., (एहवं सांभलीनै शिष्य), ६०१५२-२(+$) १० गच्छमति नाम, मा.गु., गद्य, श्वे.?, (१ तपामती २ वडपोसा), ६००२७-२(+) १० दृष्टांत, मा.गु., गद्य, मूपू., (चुल्लग १ पासग २ धन्न), ६२३५७(#) १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३३, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (सिद्धारथनंदन नमु), ६२४८१-१(+$) १० बोल सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (स्यादवादमत श्रीजिनवर), ६२१४१-४०(+), ६२२६७-२(+-) १० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ११, गा. १३६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुकृतलता वन सींचवा), ५९९६४(+),
५९८६० १० श्रावक सज्झाय, मु. गढमल ऋषि, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (आनंदी आणंद हुवै), ६१६५०-३(+#) ११ अंग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्वा. ११, वि. १७२२, पद्य, मूपू., (आचारांग पहेलुका ), ५९८३५-१४(5) ११ अंग सज्झाय, मु. विनयचंद्र, मा.गु., ढा. १२, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (पहिलो अंग सुहामणों), ६०१२५-२८(+) ११ गणधर नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (इंद्रभूति अग्निभूति), ६०११८-३(#) १२ चक्रवर्ती नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम भर्थजी१ सगर२), ६१२०१-६(+) १२ पर्षदा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (अग्निकूण में पर्षदा), ६२४२५-२(+) १२ भावना चौपाई, जगदीश स्वामी, पुहिं., दोहा. १६, पद्य, दि., (पंच परमगुरु वंदना), ६०७४६-३(-) १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., ढा. १३, गा. १२८, ग्रं. २००, वि. १७०३, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर पाय नमी),
६०९८३(+), ६२४९०-१(+), ५९८७२, ५९९७६, ६०४५० १२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., ढा. १४, पद्य, मूपू., (विमल कुल कमलना हंस), ६२१७७-५ १२ मासी तपस्तवन, मु. विजयविमल, मा.गु., गा. १५, वि. १९०२, पद्य, मूपू., (त्रिभुवन नायक तु), ६१८७६-२८(+#), ५९८९१-४ १२ व्रतवर्णन गाथा, पुहिं., दोहा. १३, पद्य, दि., (जो नित मन वच कायसु), ६०७४६-१(-) १३ काठिया गाथा, पुहिं., गा. १७, पद्य, दि., (जोवट कारै वाटमै करै), ६०७४६-१३(-) १३ काठिया दोहरा, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, दि., (जे वट पारे वाट मै), ६२४५६-११ १३ काठिया स्वरुप, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., वि. १८वी, गद्य, मूपू., (अथ हवे श्रीवर्धमान), ६२३२६(#) १३ द्वीप जिनपूजा विधि, क. लालजी, पुहिं., पूजा. ६२, ग्रं. १९३०, वि. १८७७, पद्य, दि., (श्रीअरहत प्रणाम कर), ६२१३६ १४ गुणठाणा २१ द्वार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नामद्वार १ लखण २), ६२३३५(+#), ६२४३४, ५९८६५(६) १४ गुणठाणा जीवभेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलें गुणठाणे), ५९८९२(+#$) १४ गुणस्थानक ४१ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (नामद्वार लक्षणद्वार), ६२३७२ १४ गुणस्थानके कर्मबंधउदयसत्ता व उदीरणा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानावरणी ५ दर्शना), ६०१६५(+$) १४ पूर्व स्तवन, आ. सौभाग्यसूरि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३३, वि. १८९६, पद्य, मूपू., (जिनवर श्रीवर्धमान), ६०१२५-१५(+),
६१८७६-२९(+#), ५९८९१-२ १४ राजलोक प्रमाण, मा.गु., गद्य, मूपू., (कोई देवता सोधर्मदेव), ६२४३७-२ १४ राजलोक विचार, मा.गु., गद्य, स्पू., (पहेली नरके पहेलो राज), ६०७१६-२(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
५५१ १५ तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., स्तु. १६, गा. ६४, पद्य, मूपू., (एक मिथ्यात असंयम), ६२२०९-१(+), ५९९८५,
६२४५६-१(६) १६ तप विधि, पुहिं., गद्य, म्पू., (क्रोध१ मान२ माया३), ६१८७६-३१(+#) १६ तप स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीरजिनेसर भाखियो रे), ६१८७६-३०(+#) १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आदिनाथ आदि जिनवर), ६००७७-९(+), ६०१७६-२(+$),
६२१६४-२६(-) १६ सती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सरसती माता प्रणमु), ६२४००-४(+#) १७ भेद जीवअल्पबहुत्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. १८, पद्य, मूपू., (अरिहंत केवलज्ञान), ६०१२५-६४(+) १७ भेदी पूजा, मु. जिनप्रभसूरि शिष्य, मा.गु., ढा. ६, गा. ३४, पद्य, मूपू., (आदिजिण पमुह चउवीस), ६२४२१-४२(+#) १७ भेदी पूजा, मु. मेघराज, मा.गु., पूजा. १७, पद्य, मूपू., (सर्वज्ञं जिनमानम्य), ६२४३९-१ १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., ढा. १७, पद्य, मूपू., (अरिहंत मुखपंकजवासिनी), ६२४९२(+), ५९८५२ (२)१७ भेदी पूजा-टबार्थ, ग. सुखसागर, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे स्नान कर्या पछी), ५९८५२ १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., ढा. १७, वि. १६१८, पद्य, मूपू., (भाव भले भगवंतनी पूजा), ६२२०३-१(+), ६२२४०,
६०१४९-५(#) १७ भेदी पूजा सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सत्तरभेद पूजा फल), ६२१४१-५७(+) १८ नातरा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मथुरा नगरी मे कुबेर), ६१२०१-७(+) १८ नातरा सज्झाय, मु. हेतविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, पद्य, मूपू., (पहेला ते समरूं पास), ६२२६७-२७(+-) १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., सज्झा. १८, ग्रं. २११, पद्य, मूपू., (पापस्थानक पहिलुं कहि),
६२१७७-२, ६२४७१(2) १८ पापस्थानक सज्झाय, मु. केसर, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (नारी ते नरने विनवे), ६२१७२-३६(-2) १८ पापस्थानक सज्झाय, आ. गुणसूरि, मा.गु., सज्झा. १९, गा. १४१, वि. १६५२, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवरनै नामु), ६२४५६-१२ १८ पापस्थानक सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. ३८, वि. १८९१, पद्य, श्वे., (महावीर वर्धमानजी), ६२२७४ १८ हजार शीलांग भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम स्त्री भेद ४), ६०३७६-१(#) २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, मूपू., (सीमंधर जिनवरा विचरे), ६२२४३-३(-$) २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (अनंत चउवीसी जिन नमु), ६०४४०-२ २० विहरमानजिन मातापितादि वर्णन, पुहिं., गद्य, मूपू., (श्रीमंधरस्वामि), ६२८०८-३(+#) २० विहरमानजिन स्तवन, पं. खेमवर्द्धन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसीमधर युगंधर), ६२१४१-३२(+) २० स्थानकतप विधि, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, पुहि., प+ग., मूपू., (तिहां प्रथम शुभ दिन), ६२४१० २० स्थानकतपस्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ६, गा. ८१, वि. १७६६, पद्य, मूपू., (जिनमुखपंकजवासिनी), ६०००४-२(+) २० स्थानकतपस्तवन, मु. वखतचंद्र, मा.गु., ढा. ३, गा. १९, पद्य, पू., (वीशस्थानक तप सेवीय), ६२२३७-८(+) २० स्थानक पूजा, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पूजा. २०, वि. १८५८, पद्य, मूपू., (सुखसंपतिदायक सदा जग), ५९९१३-४(+),
५९९४८(+), ६२४६०(+) २२ अभक्ष्य नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (वडोलीया पीप पीपर), ५९६५७-१२(+) २२ परिसह सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. २२, वि. १८२२, पद्य, स्था., (श्रीआदेसर आद दै), ६२४७६-१ २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, पू., (सात एकेंद्री रत्ननी), ६२३७४-२ २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, मूपू., (५० कोडि लाख सागर), ६२२५१-७(2) २४ जिन आयुष्य विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रीरीषभदेव आउखू), ५९८१३-१(+#$) २४ जिन गणधरसाधुसाध्वीसंख्यागर्भित स्तवन, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., गा. १९, वि. १७५३, पद्य, मूपू., (आदीसर पहलो अरिहंत
गण), ६०१२५-५५(+)
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५५२
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ २४ जिन चैत्यवंदन- अनागत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, वि. १८वी, पद्य, मूपू. (पद्मनाभ पहेला जिणंद), ६२२४३-२) २४ जिन चैत्यवंदन - देहमानगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, गा. ३, पद्य, मूपू. (पंचसवा धनुमान जाण), ६२२४४-४(+) २४ जिन चैत्यवंदन- भवसंख्यागर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३. वि. १८वी, पद्य, मूपू (प्रथम तीर्थंकरतणा),
२४ जिन वर्ण दुहा, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (दोय गोरा दोय सावला), ६२२७५-५ (क)
२४ जिन विवरण यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ६२५९५ (+$)
६२२४४-१६ (+)
२४ जिन चैत्यवंदन-वर्णगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. गा. ३, वि. १८वी, पद्य, म्पू, (पद्मप्रभने वासपूज्य), ६२२४४-५ (+) २४ जिन च्यवनागम, नगर, पिता, मातादिविचार कोष्ठक, मा.गु., को., मूपू., (चवणविमान नयरि जिण), ५९९६५ ($)
२४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू (शत्रुंजे ऋषभ समोसर्य), ६२४२१-४३ (+), ५९८६७-४ २४ जिनदेहमान स्तवन, मु. रंगविनय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (प्रणमुं ऋषभ जिनेसर), ६१८७६-२५(+#)
२४ जिन नाम- अतीत, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीकेवलज्ञानी), ६०११८-१(०)
२४ जिन नाम - वर्तमान, मा.गु., गद्य, भूपू (श्रीऋषभदेवजी अजित), ६२६३२-६७(+१), ६०११८-२(४)
זי
२४ जिन स्तवन, आ. जिनरंगसूरि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (पहिलो श्रीरिसहेसर), ६२३६३-१७
२४ जिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, भूपू (ग्रह समे भाव धरी), ६००२५-४९(+४)
י
२४ जिन स्तवन, मु. नेत, मा.गु., गी. २४, पद्य, मूपू., (ऋषभदेव राजा लही ओलग), ६२२२० (+)
२४ जिन स्तवन, उपा. राजरत्न, आ. नंदसूरि, मा.गु. स्त. ४८, पद्य, मूपू (आदिपुरुष अरिहंत अकल), ६२४४४-२(*)
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२४ जिन स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (ऋषभजिणंद ऋषभजिणंद), ६२४७८($)
२४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( आदि जिणेसर पहेला), ६२६७०-२(७)
मूपू.,
२४ जिन स्तवन- देहमान आयुस्थितिकथनादिगर्भित, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., ढा. ५, गा. २९, वि. १७२५, पद्य, (पंचपरमिड मन शुद्ध), ६०१२५-५६(०)
२४ जिन स्तवन- मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु. वि. १५६२, पद्य, म्पू, ( सवल जिणेसर प्रणम्), ५९९९४-८(+४), ६००२५-१८(+#), ६२२६४-१, ६२१६४-१९(-)
२४ जिन स्तवन- लंछनगर्भित, मु. केसर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (रीषभ रीषभ चरणे भलो), ६२१७२-५४(#)
२४ जिन स्तुति, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., ( कनक तिलक भाले हार), ५९८८६-२
२४ जिन स्तुति, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू (कनक तिलक भाले हार), ६२३६४-२(+)
२४ तीर्थंकरों के नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण, मा.गु. को.. मूपु (--), ६२८०४(०३), ५९८९४, ६२२३१
२४ दंडक २४ द्वार विचार, मा.गु., को., भूपू (दंडक २४ नामानि शरीर) ६२२६१(+)
२४ दंडक २५ द्वार विचार, मा.गु, गा. २, प+ग, भूपू ( सरीरोगाहणा संघवण), ६२१९७४)
२४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, म्पू, (शरीर अवगाहणा संघयण), ६००३७(+), ६०४१४-३, ६२३७९
,
२४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम नामद्वार बीजु), ६०१५६ (+$), ६०३७९(+), ६२२९९(+), ६०७०६, ६२१९४($)
२४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (दंडक लेश्या ठित्ति), ६०४१६ (+##$), ६२४३२(+#), ५९९५३($)
२४ दंडक ४२ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (शरीर ५ अवगाहना २ ), ६२४२५-५(+)
२४ दंडक बोल संग्रह ै, मा.गु., गद्य, मूपू., (दंडक २४ ना शरीर ५), ६२४२५-१ (+), ६२२४८, ६२३३२
२७ बोल, मा.गु, गद्य, मृपू., (पहिले बोले गति च्यार) ६२४८० (+) ६२४८३
२८ लब्धि नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आमोसही विप्पोसही), ६२१४१-३८(+)
३२ अनंतकाय विचार, मा.गु., गद्य, मृपू., (कचूर हलवनीला आदो वज), ५९६५७-१३(+)
३२ सामायिकदोष सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु. गा. १०, पद्य, मूपू., (संयम धर सुगुरु प्राय), ६०९२५-७(०) ३२ सामायिकदोष सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू (शुभ गुरू चरणे नामी), ६००७७-१७(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
५५३ ३३ बोल थोकडो, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक संजय एक असंजम), ६२३७१(६) ३४ अतिशय स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (चोत्रिस अतिशयना धणी), ६२१७२-२४(-2) ३६ बोल थोकडो, मा.गु., गद्य, मूपू., (एगे असंजमे १ एगे), ६००३९(+) ४५ आगमनाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आचाराग१ सुयगडांग२), ६०३६८-९ ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिउं अरिहंताई बोले), ५९९००(+), ५९९९५(+#) ६२ मार्गणा यंत्र, मु. जीवविजय, मा.गु., को., मूपू., (--), प्रतहीन. (२) ६२ मार्गणा यंत्र-विवरण, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (नरकगति गुणठाणा चार), ६००९७(+) ६३ शलाकापुरुष स्तवन, मु. वखतचंद्र, मा.गु., ढा. ५, गा. १८, पद्य, मूपू., (सद्गुरु चरणकमल मनधार), ६०१२५-१७(+) ६३ शलाकापुरुष स्तवन, मु. वसतौ, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (सदगुरु चरणकमल मनधार), ६१८७६-१९(+#), ५९९७४-४ ६४ प्रकारी पूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु., पूजा. ६४, वि. १८७४, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर साहिबो), ६२४६३(+#$),
६००३५(5) ७२ मिथ्यात्वनाम सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (भारति भगवती हीयडि), ६२१४१-८४(+) ८४ गच्छ नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ बेवंदनीक २ धर्मघोष), ६००२७-१(+) ९६ जिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (केवलज्ञानी सर्वज्ञाय), ६२२७५-१(+) ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., ढा. ५, गा. २३, वि. १७४३, पद्य, मूपू., (वरतमान चोवीसै वंदु), ६०१७६-४(+) ९९ प्रकारी पूजा, वा. अमरसागर, मा.गु., प+ग., मूपू., (स्वस्ति श्रीदायक), ६२६१२(+#) ९९ प्रकारी पूजा-शत्रुजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ११, वि. १८८४, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), ६०१६०-१(+) १५० जिनकल्याणक चैत्यवंदन, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (शासननायक जगजयो वर्धम), ६००७४-११ १६९ जीवों के नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थंकर२४ माता२४), ६१०८९-११ १७० जिन चैत्यवंदन, मु. केसर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रणमी सीमधर तणा), ६२१७२-२(-2) १७० जिन यंत्र, पुहिं., गद्य, श्वे., (श्रीऋषभदेवजी १ अजित), ६२१७१(+) १८१ हुंडी बोल, आ. भीषणजी स्वामीजी, रा., गद्य, श्वे., (जे हलूकर्मी जीव होसी), ६२२४१(+) ५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (उंचा लोक में ५६३), ६०३६१-२(+) अंजनासुंदरी चौपाई, मु. गुलाबविजय, मा.गु., ढा. ४७, वि. १८८९, पद्य, मूपू., (श्रीजिणचरणकमल नमु), ६२१३९(+#) अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., खं. ३ ढाल २२, गा. ६३२, वि. १६८९, पद्य, मूपू., (गणधर गौतम प्रमुख), ५९८२७(#) अंजनासुंदरी रास, मा.गु., गा. १६५, पद्य, मूपू., (शील समो वड को नही), ५९९५२(+), ६२३०६(+$), ६००३१, ६२१८२(#) अंजनासुंदरी रास-बृहद्, मा.गु., गा. ३१८, पद्य, मूपू., (पहिलै नइ कडवइ पय नमु), ६०४४७(#) अंबिकादेवी स्तुति, मा.गु., गा. १९, पद्य, जै., वै.?, (सदा पुराण ब्रह्म), ६२१६४-२४(८) अंबिकादेवी स्तोत्र, विश्वनाथ, मा.गु., गा. ६, पद्य, वै., (ॐ काली कंकाली करवर), ६२१६४-१६(-) अइमुत्तामुनि सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. १४, वि. १९४४, पद्य, श्वे., (एवंतामुनिवर नाव तराइ), ६२२६६-४(+-) अक्षयतृतीया व्याख्यान, रा., गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य प्रभु पार), ६००१७-१०(+) अक्षयनिधितपखमासमण दूहा, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (सुखकर संखेश्वर नमी), ६००७६-२(+) अक्षयनिधितप विधि, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही कहेवी), ६००७६-४(+), ५९५४०-१ अक्षयनिधितप स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ५, गा. ५१, वि. १८७१, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर शिर), ६००७६-१(+) अक्षरबत्रीशी, मु. हिम्मतविजय, मा.गु., गा. ३५, वि. १७२५, पद्य, मूपू., (कका ते किरिया करो), ६२५८०(+#) अक्षरबावनी, मु. उदैराज, मा.गु., गा. ५९, वि. १६७६, पद्य, श्वे., (अकल अवतार अपरंपर), ६००१३-२(#) अक्षरबावनी, उपा. क्षमालाभ, रा.,पुहिं., गा. ५६, वि. १८८०, पद्य, मूपू., (ॐ आदि अजित संभवसु), ६०११४-३(+) अक्षरबावनी, मु. जसराजजी; मु. जिनहर्ष, पुहि., गा. ५६, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (ॐकार अपार जगत आधार), ६०००५(+#) अक्षरबावनी, मु. मान, पुहिं., गा. ५७, पद्य, श्वे., (ॐकार अपार अलख्य), ६०१२०(+)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २
अक्षरबावनी, मु. लालचंद, पुहिं., गा. ५८, वि. १८७०, पद्य, स्था., (सरस वचन सरस्वति तणा), ६०१०९ अक्षरबावनी, पं. सुंदरदास, पुहिं. गा. ५७, वि. १८३६, पद्य, भूपू (ॐकार अपार संसार), ६०८१०-३ (+)
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अजितजिन पद, मु. केसर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (देखो साहेब अजित), ६२१९७२-५७(-#) अजितजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, म्पू.. (विषयने विसारी विजयान), ६२२४५-२ अजितजिन स्तवन, मु. खुशालमुनि, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (अजित जिणेसरदेव मोरा), ६२२४५-७ अजितजिन स्तवन, उपा. पुण्यसागर, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (पणमुं अजितनाथ भगवंत), ६२४२१-१६ (+#) अजितजिन स्तवन, मु. भावसागर, मा.गु गा. ५, पद्य, मूपू (अजितजिणंद सुणोने एक), ६२१४१-७८(+) अजितजिन स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रीतलडी बंधाणी रे), ६०१६३-१(+)
"
अजितजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू, (कांबल रूपाणी लागणे), ५९८३५-११
अजितजिन स्तवन, उपा यशोविजयजी गणि, मा.गु गा. ५. वि. १८वी, पद्य, मूपू (अजित जिणंदस्यु प्रीत), ६२३४५-६ अजितजिन स्तवन, मु. विनय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अजितजिणेशर सेवीइ रे), ६००२५-४(+#) अजितजिन स्तुति, मु. जिनचंद्र, मा. गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जंबूद्वीपमै सोहै भरत), ६१५७६-१२(+#)
"
अजितजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु. गा. ४, पद्य, म्पू, (विश्वनायक लायक), ६१०९७-२५(१०) ६११३०-२३(+), ६१८८६-१७(*), ६१९१७-२६(+)
अजितसेनकनकावती रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ४३, गा. ७५८, ग्रं. १०१४, वि. १७५१, पद्य, मूपू., (वीणापुस्तकधारणी), ५९९३७) ६०७८८(३)
अट्ठाईपर्व व्याख्यान, मा.गु. गद्य, म्पू, (सामाइक व्रतना धारक), ६०९५२-२ (४७)
अढीद्वीप वर्णन, मा.गु., गद्य, भूपू (तीलोकमा असंख्य), ६१२२४-१(+), ६०३७६-२(१)
"
अढीद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सर्वने मध्य भार्गे एक), ६०७१६-३(+)
अणाहारीवस्तु सज्झाय, मु. मुक्ति, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जखौ मंडण वीरजिणंद), ६०११४-६(+)
अतीत अनागत वर्तमान जिननाम लावणी, मु, केसर, मा.गु., गा. ११, पद्य, म्पू, (हुं प्रणमी पासजिणंद), ६२१७२-२१ (७) अतीत चौबीसजिन नाम स्तवन, मु. राजविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अनंत चोवीसी ध्याइइ), ६२२४३-१(-) अतीतजिन चौवीसी- धातकी द्वितीयभरते, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (धातकी खंडे बीजे भरते), ५९९८०-५ () अतीतजिन चौवीसी- पुष्करार्द्ध प्रथमभरते, मु. ज्ञानसागर - शिष्य, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपु., (पुष्कर भरत पहेले नमु), ५९९८०-७/(४) अतीतजिन चौवीसी- प्रथम ऐरवते, मु. ज्ञानसागर - शिष्य, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पुष्कर अरध मझारि भरत), ५९९८०-१२(#) अध्यात्मगीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रणमियै विश्वहित), ६२१४१-४ (+), ६०११३ अध्यात्म पद, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ३. वि. १८वी, पद्य, भूपू (तरसकी जड़ दहको दइकी), ६२३६३-२१ अध्यात्म पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मेरे प्रान आनंदधन), ६२३६३-२२ अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहिं., वि. १६८५, पद्य, स्था., (अजर अमर पद परमेसर), ६०११४-१(+$) अध्यात्म भारत, पुहिं., गद्य, दि., (भाय इम भावना ध्यान), ६०७४६-११()
अनंतजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (धार तलवारनी सोहली), ६००२५-१२(+#) अनागतचौवीसी स्तवन, मु. रामरतन, मा.गु., गा. २७, वि. १९०६, पद्य, स्था., (श्रीसंतजिनेसर सोलमा ), ५९८७०-२९ अनागतजिन चौवीसी-द्वितीय भरते, मु. ज्ञानसागर - शिष्य, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (हो तारक पंचरूप पहिला), ५९९८०-१३(#) अनागतजिन चौवीसी- पुष्करार्द्ध द्वितीयभरते, मु. ज्ञानसागर- शिष्य, मा.गु. गा. ८, पद्य, मूपू (पुष्कर भरत बीजे भला),
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५९९८० १०(१)
अनागतजिन चौवीसी- पुष्करार्द्ध प्रथमभरते, मु. ज्ञानसागर - शिष्य, मा.गु. गा. ९. पद्य, भूपू (पुष्कर अर्द्ध भरतइ), ५९९८०-९(१) अनागतजिन चौवीसी-प्रथम ऐरवते, मु. ज्ञानसागर- शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (ऐरवत पहेले जिन पहेला), ५९९८०-१५(#) अनागतजिन चौवीसी-स्तवन- द्वितीय ऐरवते, मु. ज्ञानसागर - शिष्य, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (वज्रस्वामी पहिलाइ ),
५९९८० १६(१)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
अनागतजिन स्तवन-धातकी प्रथमभरते, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (भावी जिन वंदो हो), ५९९८०-३(#) अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रेणिक रयवाडी चड्यो), ६००७७-१५(+), ६२४५६-२० अनुकंपास्वरूप चौढालीयो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (अनुकंपाने आदरी किजो), ६०१६२(+#) अनुभव प्रकाश, मु. दीप, मा.गु., गद्य, मूपू., (गुन अनंतमय परम पद), ६२२७७ अबयद शुकनावली, मु. नगविजय, पुहिं., प्रक. ४, वि. १८७३, गद्य, मूपू., (महावीर कौ ध्याइकै), ५९९६७(+) अबयद शुकनावली, मु. सुजाणसिंह, पुहि., वि. १७९४, गद्य, श्वे., (महावीर कौ ध्याइके), ६०१५९(+), ६०५७७(+#), ६२५७६($) अभक्ष्य अनंतकाय सज्झाय, वा. उदय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (वड पेंपल उंबर फला), ६२१४१-९०(+) अभिनंदनजिन स्तवन, मु. खुशालमुनि, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (अभिनंदन अरिहंतजी रे), ६२२४५-१, ६२२४५-८ अभिनंदनजिन स्तवन, वा. जयविमल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (चोथो अभिनंदणजिन जानी), ६०४७६-४(+) अभिनंदनजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बे करजोडी वीनवुरे), ५९९६१-६(-#) अभिनंदनजिन स्तवन, वा. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभु तुम दर्सण), ५९८७८-१७(+#) अमरसेन जयसेननृप चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. २४, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (श्रीसंखेश्वर पास), ६२२९२(+$) अमृतवेल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. २९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चेतन ज्ञान अजुवालीए), ६१६५४-४(+$) अरणिकमुनि सज्झाय, मु. कीर्तिसोम, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (इक दिन अरणक जाम), ६२४५६-१५ अरणिकमुनि सज्झाय, मु. खीमा, पुहिं., गा. १२, पद्य, श्वे., (कचा था सोई चल गया),५९८७०-१० अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), ६००२५-१५(+#), ६०११४-११(+) अरणिकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), ६०१६३-१४(+) अरदास चौपाई, मु. कुस्यालचंदजी; मु. धन्नो, मा.गु., ढा. ६४, वि. १८५९, पद्य, मूपू., (अरीगंजण अरीहतजी), ५९९१८(+$) अर्बुदगिरि तीर्थमाला, मु. उत्तमविजय, मा.गु., ढा. १३, वि. १८७९, पद्य, मूपू., (अरबुदगिरि अंतरजामी), ६२३६० अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १३, गा. १०७, वि. १७४१, पद्य, मूपू., (मुनिवर आर्य सुहस्ति), ५९९७७(+),
५९९९१(+#), ६००९९(+),५९८७५, ६२१७३-३,५९९६६-१(#$) अवंतिसुकुमाल सज्झाय, मु. जगचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वंदो अयवंती सुकुमालन), ६२२४५-१२ अवंतिसुकुमाल सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (ए संसार असार छ साचो), ६२२६७-३१(+-) अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पं. खिमाविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (चैत्र वदी आठम दिने), ६२२४४-३(+) अष्टमीतिथि नमस्कार, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १२, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आठिम तप आराधिइं भाव),
६२२४४-१३(+) अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हां रे मारे ठाम धर्म), ६००२५-३०(+#),
६२३६५-३ अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चोवीसे जिनवर प्रणमुं), ५९५८९-२३(+#), ६१८८६-१०(+),
६१९१७-१८(+), ६२३५९-८(+#), ६२४७५-९(+), ६११९५-३०(#$) अष्टमीतिथि स्तुति, मु. जीवविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चौवीसे जिनवर प्रणमु), ६००२७-२२(+), ६११३०-२४(+),
६२६३२-४०(+#) अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मंगल आठ करी जिन आगल), ६२२०९-२(+) अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अष्टमी अष्ट परमाद), ६१५७६-३०(+#) अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (महामंगलं अष्ट सोहै), ५९५८९-२१(+#), ६००२७-९(+), ६०३६२-४(+),
६१०९७-६(+#), ६११३०-४०(+), ६१५७६-१९(+#), ६१९१७-२५(+), ६२४२१-११(+#), ६२६३२-४८(+#), ६०९१७-९८) अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनडु अष्टापद मोा), ६२८६७-१(#) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, रा., गद्य, मूपू., (शांतीशं शांतिकार), ६००१७-२(+), ६००३८(+), ६००४५(+#) असज्झाय सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसति माता आदे नमीई), ६२२६७-४(+-)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २
असज्झाय सज्झाच, मु. हीर, पुहिं. गा. १५, पद्य, म्पू. (श्रावण काती मिगसिर), ६०१२५-१३(+) आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., वि. १७७६, गद्य, मूपू., (हिवै भव्यजीवने), ५९८३२-१ (+), ६००१८(+), ६०६९० (+), ६१९१५ (+), ६२४०४(*) ६२१४२, ६१०६२(३)
(२) आगमसारोद्धार-स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., वि. १७७६, गद्य, मूपू., ( तिहां प्रथम जीव), ५९८३२-१(+), ५९८६९(३)
आगम स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रुत अतिहि भलो संघ), ६०१२५-५२ (+) आणंदश्रावक सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, रा., ढा. २, गा. २३, वि. १८३४, पद्य, स्था., (आज पछे अण तीरथी रे), ५९८७०-७ आत्मशिक्षा भावना, मु. रतनहर्ष, मा.गु., गा. १८५, वि. १६६२, पद्य, म्पू, (जिनवर मुख वासिनी जग), ५९९५९- १(क) आत्मा के ६५ गुण, मा.गु., गद्य, मूपू., (असंख्यात प्रदेशी), ६०४८८($)
"
',
,
आदिजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., गा. ३, पद्य, भूपू (आदिदेव अरिहंत नमु), ६२३४५-३ आदिजिन चैत्यवंदन, मु. केसर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रीतिपात्र प्रथम), ६२१७२-५२(-#) आदिजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, भूपू (पतम मुनिवर मुनिवर), ६२४४४-१०)
आदिजिन चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४७, वि. १८४०, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्धनै आयरिय), ६२३११(#) आदिजिन नमस्कार, मु. प्रीतिविजय, मा.गु, गा. ३, पद्य, भूपू (नाभि नरेसर कुलकमल), ६२२४४-१८(+)
,
"
"
मूपू.,
(जित जाउ तित कलना), ६२३६३-४८ (मरुदेवीनो नंद मांहरो) ६००२५-५७/००) (बिसरे मत नाम प्रभूजी), ६२३७५-१९(+) (आज तो हमारे भाग ऋषभ), ५९८३५-३ (नित ध्यावो रे रिषभ), ६२३७५-४० (+)
"
आदिजिन पद, मु. आनंदअमृत, रा. गा. ३, पद्य, भूपू. आदिजिन पद, मु. उदयरत्न, मा.गु, गा. ३, पद्य, मूपू आदिजिन पद, मु. चतुरकुशल, रा., गा. ३, पद्य, आदिजिन पद, मु. जयंत, पुहिं., गा. ३, पद्य, म्पू. आदिजिन पद, मु. जिनचंद, पुहिं. गा. ५, पद्य, मूपू आदिजिन पद, आ. जिनहर्षसूरि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (जिन तेरी छाय रही है), ६०१२५-६३(+) आदिजिन पद, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मीठी मनि लागी साहिबा ), ६०११६-२९(१) (ऋषभ सकल सुखकार हमारे), ६०१२५-६० (+)
"
"
"
"
आदिजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं. गा. ३, पद्य, म्पू, आदिजिन पद, मु. विमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू (चालो सखी वंदन जाइये), ६२३६३-६३, ५९९६१-२(*) आदिजिन पद, मु. सोभाचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (भज श्रीऋषभ जिणंद), ६२३६३-५ आदिजिन पद, मु. हरखचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (तुम हो नाभिजी के नंद), ६२३६३-३८
"
आदिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., ( उगत प्रभात नाम जिनजी), ६२२४५-९, ६२३६३-३ आदिजिन पद, पुहिं. गा. ५, पद्य, म्पू, (श्रीजिन वंदन जइयो जग), ६२३६३-५९, ६२३६३-६४
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आदिजिन पारणा स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (वा रस सेलडी सुपनो), ६२२६६-१२(+)
आदिजिन बृहत्स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, भूपू (प्रणमवि सरल जिणंद), ५९९९४-९(+४),
६००२५-१९(+०, ६२४००-३+४) ६२१६४-२०(-)
आदिजिनविनती स्तवन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., ढा. ५, गा. ५७, वि. १६६६, पद्य, मूपू., ( श्रीआदीसर वंदु पाय), ६२४००-१+४)
आदिजिनसीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जय जय त्रिभुवन आदि), ५९६५७-३ (+), ६११३०-५३(+), ६२६३२-८(+#), ६१९९५-१५(#)
आदिजिन स्तवन, मु. अक्षयचंदसूरि शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., (प्रभुजी आदीसर अलवेसर), ६२२४५-६ आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणेसर प्रीतम ), ६२४५६-२ ($) आदिजिन स्तवन, मु. ऋषभविजय, मा.गु. गा. ९, पद्य, म्पू. (श्रीरिषभ जिनेश्वर) ६२१६४-१४) आदिजिन स्तवन, मु. केशरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ऋषभजिणेशर वालहो मुज), ६००२५-२(+#) आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मृपू. (आदि कर आदि करीजे रे), ६२१७२-९ (७)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
५५७ आदिजिन स्तवन, मु. केसर, पुहि., गा. २१, पद्य, मूपू., (आदिकर आदिस्वर सुणो), ६२१७२-७(-2) आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (आदि करण प्रभु प्यारा), ६२१७२-१०(-2) आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जे जगनायक जगगुरु जी), ६००२५-१३(+#), ६२८२४-२(+#),
६०११६-१२(#) आदिजिन स्तवन, मु. केसर, पुहिं., गा. ५, पद्य, म्पू., (मन की मन में रही रे), ६२१७२-६२(-2) आदिजिन स्तवन, मु. गुणविलास, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (अब मोहे तारो दीनदयाल), ६२३६३-४७ आदिजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मन मधुकर मोही रह्यउ), ५९९६१-५(-2) आदिजिन स्तवन, मु. जीवविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नाभेयश्री मोय दीयो), ६२१७२-१४(-2) आदिजिन स्तवन, मु. जीवविजय, पुहि., गा. ९, पद्य, मूपू., (पुरण पुन्य उदय हुयो), ६२१७२-१८(-#) आदिजिन स्तवन, मु. जीवविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मोरा नंद करे हु), ६२१७२-४२(-#) आदिजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणंदशुंप्रीतडी), ५९८३५-१० आदिजिन स्तवन, मु. महानंद, रा., गा.७, पद्य, मूपू., (प्यारो लागे प्यारो), ६००७७-१०(+), ६०११६-१३(#) आदिजिन स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, म्पू., (रीषभ जीणंदा हो के मे), ६२४००-२(+#) आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जगजीवन जगवाल हो), ६२३४५-५ आदिजिन स्तवन, मु. रंगविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (जब आदीसर सेवियै तब), ६२३६३-१३ आदिजिन स्तवन, मु.रूपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (हां रे मारे प्रथम), ६००७४-९(5) आदिजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, म्पू., (श्रीसिद्धाचलमंडणो), ६००७४-४ आदिजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ११, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (ऋषभ जिणेसर त्रिभुवन), ६०१२५-५१(+), ६२३१५-१(+),
५९९६१-८(-#) आदिजिन स्तवन, मु. वीर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आदिजिनेसर विनती), ६००२५-५९(+#) आदिजिन स्तवन, मु. वेलचंद, मा.गु., गा. १२, वि. १८७१, पद्य, श्वे., (ओलघडीई आदेनाथनी रे), ६२३४२-३(+#) आदिजिन स्तवन, मु. श्रीविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ऋषभजिणेसर भेटीइं भवि), ५९९९४-१(+#) आदिजिन स्तवन, पं. सदासुख, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीरीषभ जिणंदा मोरी), ६२२६६-२३(+-) आदिजिन स्तवन, उपा. सहजकीर्ति, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (विमलगिरि सिखर गजराज), ६०१२५-५०(+) आदिजिन स्तवन-२४ दंडक गतिआगतिविचारगर्भित, ग. धर्मसुंदर, मा.गु., ढा. २, गा. २६, पद्य, मूपू., (आदीसर हो सोवनकाय),
६०१२५-१(+) आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ३, गा. २६, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (प्रणमु प्रथम जिनेसर),
६०१२५-११(+), ६२०७४-३(+) । आदिजिन स्तवन-आत्मनिंदागर्भित, वा. कमलहर्ष, मा.गु., ढा. ४, गा. ५२, पद्य, मूपू., (आदीसर पहिलो अरिहंत), ६०१२५-२(+) आदिजिन स्तवन-केसरियाजी, मु. केसर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (केसरियाजी कामणगारी), ६२१७२-११(-2), ६२१७२-१७(-2) आदिजिन स्तवन-केसरियाजी, मु. जीव, पुहिं., गा.१०, वि. १८५९, पद्य, मूपू., (खडा खडा में अरज करत), ६२१४१-८८(+) आदिजिन स्तवन-जन्मबधाई, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू., (आज तो बधाइ राजा नाभि), ६००२५-११(+#) आदिजिन स्तवन-धुलेवामंडन, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चालोरी सखी धूलेवै), ६०१२५-६१(+) आदिजिन स्तवन-धुलेवामंडन, आ. जिनसौभाग्यसूरि, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (आज जिणंद जयो सो), ६०१२५-६२(+) आदिजिन स्तवन-नारदपुरीमंडन, मु. वल्लभ, मा.गु., गा. ७, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (चालो सहेली आपण सहु), ६००२५-५६(+#) आदिजिन स्तवन-बीकानेर मंडण, मु. मलूकचंद, मा.गु., गा.८, वि. १८१०, पद्य, मूपू., (विकानेर नयर मंडणौ), ६२२४५-१० आदिजिन स्तवन-भावनगर, मु. मलूकचंद, मा.गु., गा. ५, वि. १८२५, पद्य, मूपू., (श्रीभावनगर प्रभु आदि), ६२२४५-११ आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.७, वि. १६७६, पद्य, मूपू., (राणपुरे रलीयामणोरे),
६००२५-८(+#), ६२३७३-२($)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आदिजिन स्तवन-शत्रुजयमंडन, मु. रत्नचंद्र, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (श्रीविमलाचल तीरथ), ६२४२१-२६(+#$) आदिजिन स्तवन-सिद्धाचल, मु. अमृत, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज सवल मे जिनवर देख), ६२३६३-१५ आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रह उठी वंदु ऋषभदेव), ५९६११-२ आदिजिन स्तुति, पुहि., गा. ११, पद्य, श्वे., (उज्वल सिखरी दिणदो), ५९८६७-१ ।। आदिजिन स्तुति-उन्नतपुरमंडन, मु. भावसागर, मा.गु., गा.४, पद्य, मूपू., (उन्नतपुरमंडण जगतधणी), ६१६९४-११(#) आदिजिन हरियाली, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (एक अचंभो उपनो कहो जी), ६१८०४-६(#) (२) आदिजिन हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुरुष कउ आउखु हवडा), ६१८०४-६(2) आदिजिन होरी, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दया मिठाई अति भली रे), ६२३७५-६(+) आध्यत्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऐसी कैसी धरवरी), ६२३६३-२४ आध्यात्मिक औपदेशिक हरियाली, उपा. विनयसागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सेवक आगळ साहेब नाचे), ६१८०४-५(#) (२) आध्यात्मिक औपदेशिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवई भव्यजीवन), ६१८०४-५(#) आध्यात्मिक कडब, अखो, मा.गु., गा. ११, पद्य, वै., (जे जंते न जाण्यो जे), ६२१४१-८७(+) आध्यात्मिक कडब, अखो, पुहिं., गा. ३, पद्य, वै., (मर्म समझे मनवा मेरा), ६२१४१-८५(+) आध्यात्मिक कडब, अखो, मा.गु., गा. ११, पद्य, वै., (माया मोटी जगमाहे नट), ६२१४१-८६(+) आध्यात्मिक दूहासंग्रह, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (अणजोवंतां लाख जोवो), ६१२७२-३(#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (अनुभव तूं है हेतु), ६२३६३-४१ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (कोउ राम कहो रहमान), ६०११०-८(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (को मोकुं कोउ कैसै), ६२३६३-५२ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चेतन चतुर चोगान लरी), ६२३६३-३० आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ठगोरी भगोरी लगोरी), ६२३६३-२५ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (तेरी हु तेरी हु), ६२३६३-२६ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (नट नागर सुंजोरी हो), ६२३६३-५३ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पीया बिन सुधबुद्ध), ६२३६३-५४ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पीया विना निस दिन), ६२३६३-२३ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मेरी तु मेरी तु), ६२३६३-२७ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मोर बताय निज रूप), ६२३६३-२८ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (वारू रे नाही वहूं ऐ), ६२३६३-३७ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. २, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (साधु भाई अपना रुप), ६२३६३-२९ आध्यात्मिक पद, कबीरदास संत, पुहि., दोहा. ४, पद्य, वै., (रामरस ऐसो रे भाई जो), ६००७९-५८ आध्यात्मिक पद, गोपीचंद, पुहि., गा. ४२, पद्य, वै., (सोनारी कुंडीरे गोपी), ५९८७०-२३ आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञान, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (रेनर जन्म अमोलक पाय), ६०७९८-६२ आध्यात्मिक पद, मु. बाल मुनि, पुहिं., दोहा. ३, पद्य, श्वे., (जियरा मोरा जान काहे), ६०७९८-६० आध्यात्मिक पद, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अलख अगोचर अकलरूप), ६२२४४-७(+) आध्यात्मिक पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (लख लहो रेलख लहो रे), ६००२५-४३(+#) आध्यात्मिक पद, मु. वसंत, पुहि., गा.७, पद्य, मूपू., (निज आतम घट फूल्यो), ६२३६३-७६, ६२३६३-७९ आध्यात्मिक पद, सूरदास, पुहिं., दोहा. ३, पद्य, वै., (अपुन यो आपु ते), ६०७९८-६३ आध्यात्मिक पद, पुहिं., दोहा. ३, पद्य, श्वे., (अमोलक जैनधर्म प्यारे), ६००७९-५४ आध्यात्मिक पद, पुहिं., दोहा. ४, पद्य, श्वे., (आप में जब तक कि कोई), ६००७९-५१ आध्यात्मिक पद, पुहिं., दोहा. ३, पद्य, श्वे., (एक राइ घटे कछु तिल), ६००७९-६१
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
आध्यात्मिक पद, पुहि., दोहा. ४, पद्य, श्वे., (जिन आपको जोया नहीं), ६००७९-४० आध्यात्मिक पद, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (बने मस्तान अब हमतो), ६००७९-३९ आध्यात्मिक पद-जिन होरी, मु. विनय, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (आतम तत्व विचारो), ६२३४०-५(+#) आध्यात्मिक सज्झाय, मु. केसर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जीउ वीनती एक छे मेरी), ६२१७२-३७(-#) आध्यात्मिक हरियाली, वा. गुणविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (एक अचंभो जगमा मे), ५९८७८-७(+#) आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. ६, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (वरसे कांबल भींजे), ६१८०४-३(#) (२) आध्यात्मिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (कांबली कहता इंद्री), ६१८०४-३(#) आध्यात्मिक होरी, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (अचरज होरी आई रे लाल), ६२३७५-४७(+) आध्यात्मिक होरी, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (परघर खेलत मेरो पीयो), ६२३७५-५४(+) आध्यात्मिक होरी, मु.रूपचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (खेलो निरंत लाल होरि), ६२३७५-३४(+) आर्द्रकुमार रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १९, गा. ३०१, ग्रं. ४५१, वि. १७२७, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर जेहना), ५९९४७(+$) आलोयणा विचार, मु. चंद्रभाण, पुहि., प+ग., श्वे., (सिद्ध श्रीपरमातमा), ६०१२२(+) आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, श्वे., (अतीत काल अठार पाप), ६११३०-८६(+), ६०१००(#) आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १६, गा. २१८, ग्रं. ३५१, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (सकल ऋद्धि समृद्धिकर),
५९९४५(+#), ५९९४६(+#) आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ७, वि. १७३७, पद्य, मूपू., (सासणनायक सुरवरूं वंद), ६००९०-२(+$) इरियावही मिच्छामिदुक्कडं संख्या स्तवन, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., ढा. ४, गा. १५, पद्य, मूपू., (पद पंकज रे प्रणमी), ६०१२५-४(+),
६२२३७-३(+) इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १६, गा. १८७, ग्रं. २९९, वि. १७१९, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धदायक
सदा), ६००४१(+#), ६२३३४(+#), ५९९६९, ६२२२६($) इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, पू., (नाम इलापुत्र जाणीए), ५९८६६-७(+), ६००२५-२४(+#),
६०१६३-६(+), ६२४५६-१४ इलापुत्र सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (नाम इलापुत्र जाणीये), ६२२६७-३३(+-$) उत्तमकुमारचरित्र रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. २९, गा. ५८७, वि. १७४५, पद्य, मूपू., (चरम जिणेसर चित्त), ६०१७२(+#$),
५९८३४(६) उपदेशक बारमास सज्झाय, मा.गु., गा. ६२, पद्य, मूपू., (जीव सवे ते आतमा धरम), ५९५३३-२(+) उपदेशछत्रीसी, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (सकल सरूप यामें), ६००१३-१(#) उपदेशबत्तीसी, मु. राज, पुहिं., गा. ३०, पद्य, मपू., (आतमराम सयाने ते), ६०७४६-५(-) उपधानतप स्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. १८, पद्य, मूपू., (श्रीमहावीर धरम), ६०१२५-५७(+) उपवास फल, मा.गु., गद्य, श्वे., (एक उपवासे १ उपवास), ६२१४१-८२(+) । ऋतुवंती स्त्री विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (आ जगतमा समस्त), ६२१४१-२(+) एकादशीतिथि चैत्यवंदन, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (शासननायक वीरजी प्रभु), ६२२४४-१(+) एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज एकादसी रे नणदल), ५९८७८-२९(+#), ६००२५-३२(+#),
६२२६०-२ औपदेशिक कवित्त, क. गंग, पुहि., दोहा. १२, पद्य, वै., (गंग तरंग प्रवाह चलै), ६०७९८-५२ औपदेशिक कवित्त, श्राव. गोविंद, पुहि., सवै. १७, पद्य, श्वे., (साध्वी के साथ वैर), ६०७९८-५१ औपदेशिक कवित्त संग्रह*, पुहिं.,मा.गु., पद्य, मूपू., (कीमत करन बाचजो सब), ६०७९८-४९ औपदेशिक कवित्त संग्रह- देशभक्ति, राधेश्याम, पुहिं., गा. ५, पद्य, वै., (उसी का जीवन है धन्य), ६०७९८-६९ औपदेशिक कवित्त संग्रह-विभिन्न विषयक, पुहि., गा. ४८, पद्य, श्वे., (सीख्यो सब काम धन धाम), ६०७९८-५७
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २
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औपदेशिक कुंडलिया, क. गिरधर, पुहिं., दोहा. ११, पद्य, वै., (हीरा अपनी खान को बार), ६०७९८-४८ औपदेशिक चौपाई, क. सारंग, पुहिं., पद्य, मूपू., (ओंकार अपार अलख मूरति), ६०८१७ (६) औपदेशिक छंद-मूढशिक्षा, जै.क. भैया, पुहिं. दोहा १२, पद्य, दि., (देह सनेह कहा करें), ६०७४६-४१) औपदेशिकछतीसी - जीव, मु. विनयचंद्र, पुहिं., गा. ३६, वि. १८६८, पद्य, श्वे., (जीवा तने करम नमावै), ६०१०३-४(#) औपदेशिक दोहा, मु. उदयराज, पुहिं गा १, पद्य, मृपू., (हति गरज मन उर हे), ६००७१-३ (+४) ६१८६८-२०)
,
औपदेशिक दोहा, रा., गा. १, पद्य, श्वे., (बंदर थाने मद पीया), ६२३१८-९ (+)
पद्य, वै., (जे आसा के दास ते), ६०९२५-३४(+)
,
गिरधर, पुहिं., रा., दोहा. ९, पद्य, श्वे., ( कबहु मन रंग तरंग चढै), ६०७९८-५५ (चोपड खेले चतुर नर) ६०७९८-७०
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,
"
(यह काया कंचन से बहतर), ६०७९८-१८
,
औपदेशिक दोहा - आशात्याग, पुहिं, दोहा ३, औपदेशिक दोहा-पाश्चात्य संस्कृति परिहार, मु. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., दोहा ४६, पद्य, वै. औपदेशिक दोहे, कबीर, पुहिं. दोहा २०, पद्य, वै., औपदेशिक दोहे- कथनी और करनी, कबीर, पुहिं. दोहा १३, पद्य, वै.. (कहना मीठी खांड है), ६०७९८-२५ औपदेशिक दोहे- कालविषये, कबीर, पुहिं., दोहा २९, पद्य, वै., (मूसा डरो काल से कठिन), ६०७९८-२१ औपदेशिक दोहे - कृष्ण पांडव प्रश्नोत्तर, पुहिं., दोहा. २५, पद्य, वै., (यह कृष्णा श्रीकृष्ण), ६०७९८-२७ औपदेशिक दोहे-छोटी नदी, दलपतराम, मा.गु., दोहा. १४, पद्य, श्वे., (ओ छोटी नदी छत पामीने), ६०७९८-३० औपदेशिक दोहे - प्रमाद परिहार, कबीर, पुहिं., दोहा. १३, पद्य, वै., (एक बूंद ते सब किया), ६०७९८-१९ औपदेशिक दोहे- भक्तिगर्भित, कबीर, पुहिं., दोहा. २, पद्य, वै., (माला तो कर में फिरे), ६०७९८-२२ औपदेशिक दोहे-मंकोडा, दलपतराम, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे. (ओ मंकोडा हट लेवानो), ६०७९८-३२ औपदेशिक दोहे मगज की पंडिताई के विरुद्ध हृदय की पवित्रता, कबीर, पुहिं. दोहा २, पद्य, वै., (पढी गुणी पाठक भये सम),
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६०७९८-२६
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औपदेशिक दोहे - लुकमान और कुत्ते, पुहिं., गा. १५, पद्य, वै. ?, (किसी ने यह जाके), ६०७९८-७३ औपदेशिक दोहे - विभिन्न विषयक, पुहिं., दोहा २०, पद्य, वै., (बातहि से दशरथ मरे), ६०७९८-४१ औपदेशिक दोहे- वृक्ष महिमा, दलपतराम, मा.गु. दोहा १२, पद्य, श्वे. (जोओ आछो छोड अनाज तणा), ६०७९८-३१ औपदेशिक दोहे व्यसन परिहार, कबीर, पुहिं, दोहा, ६, पद्य, वै., (अमल गांजो भांग तमाखू), ६०७९८-७७ औपदेशिक दोहे- साधुगुण गर्भित, कबीर, पुहिं., दोहा २०, पद्य, वै., (केशो कहा बिगाडियो जो), ६०७९८-२३ औपदेशिक दोहे साधुता, कबीर, पुहिं, दोहा ४, पद्य, वै., (जब लग नाता जात का तब), ६०७९८-२४
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औपदेशिक पद, श्राव. अमरदास, पुहिं, दोहा ४, पद्य, श्वे. (गर्भवास में लिखे जो ), ६००७९-६०
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औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जिनचरणे चित ल्याव मन), ६००२५-५१(+#) औपदेशिक पद, मु. आनंदराम, पुहिं., गा. ३, पद्य, वे (चेतन ज्ञान शंभार ए), ६२३४०-९(+०) औपदेशिक पद, मु. कुशल, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू (कीऊ नही तेरा रे चिदा), ६२३६३-५६ औपदेशिक पद, मु. कुशल, पुहिं, गा. ३, पद्य, म्पू, (झूठी बाजी रे मना सव), ६२३६३-५५ औपदेशिक पद, मु. केसर, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (माडी मुने ते बुधित), ६२१७२-५८(-#) औपदेशिक पद, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ज्ञान विना कोउ मुगति), ६२२२९-२ औपदेशिक पद, मु. चौथमलजी, रा. दोहा १, पद्य, स्था. (पुन्य गयो पूर्व), ६०७९८-५१ औपदेशिक पद, पंडित. टोडरमल, पुहिं., दोहा. ३, पद्य, दि., (नीर बिन कूप कहा तेज), ६०७९८-५४ औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपू (जैनधर्म पावो दोहिलो), ६०१२५-२४/१ औपदेशिक पद, मु. पद्म, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (चेतन तू तो धर विवेकी), ६२३१८-१० (+) औपदेशिक पद, जे. क. बनारसीदास पुहिं, दोहा ५, पद्य, दि., (यह काया है कामधेनु), ६०७९८ ११ औपदेशिक पद, मु. मान, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जाग जाग जाग जाग रे ), ६००२५-४४(१०) औपदेशिक पद, मारीच, मा.गु., गा. ३. वि. १५२९, पद्य, श्वे. ? (गंगानायो नी गोमती), ५९८७०-३२
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
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औपदेशिक पद, रघुवीर प्रसाद, पुहिं. गा. ४, पद्य, वै., ( इश्क का करना सहजन), ६०७९८-१ औपदेशिक पद, मु. रामरतनशिष्य, पुहिं., दोहा ४, पद्य, वे., (हिरवे बाणज लागो उरो), ६२२६६-८ (+) औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (आपे खेल खेलंदा), ५९८८३-५ (#) औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहिं, गा. ६, पद्य, भूपू (क्या करूं मंदिर क्या), ६००२५-७९(+०) औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (समकित विन जीव संसार), ६२३७५-३८(+) औपदेशिक पद, म., पद्य, वै., (जनम्हणती बाबा बाबा), ६०७९८-७८($)
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औपदेशिक पद, पुहिं गा ३, पद्य, श्वे. ( जागि जागि रेन गइ भोर), ५९८८३-३ (०)
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औपदेशिक पद, पुहिं. गा. ३, पद्य, खे,
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औपदेशिक पद, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (जीवा जीव न मारिइ जीव), ६२४००-८(+8) (तेरे घट में हे फुलवा), ६२३६३-८ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (नव नय के ताल बजाय), ६२३६३-७२ औपदेशिक पद, पुहिं. गा. ३, पद्य, भूपू (पावै सोई सुखधाम जाकु), ६२३७५-२४(१) औपदेशिक पद, पुहिं., दोहा. ४, पद्य, मूपू., (बिना जिनराज को देखे ), ६००७९-९ औपदेशिक पद, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपू., (वा की ममताने धूम मचा), ६२३७५-२६(+)
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औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (संत चरणकी जाउ बलिहार), ५९८७०-१८ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (होरी खेलो रे भविक), ६२३७५-२(+) औपदेशिक पद- अनाथ, मु. परमानंद, पुहिं, दोहा ५, पद्य, थे. (रो रो करे अनाथ पुकार), ६००७९-१५ औपदेशिक पद- अवसरवादिता परिहार, पुहिं. दोहा ४, पद्य, खे, (सब पैसे के भाई रे), ६००७९-५७ औपदेशिक पद- अहंकार परिहार विषे, पुहिं. दोहा ४, पद्य, ., (सुनो मित्र हमारा ), ६००७९-४३ औपदेशिक पद-आलस परिहार, पुहिं., दोहा. ३, पद्य, श्वे., ( उठो जरा नींद को), ६००७९-३८ औपदेशिक पद- उद्यम महिमा, मु. परमानंद, पुहिं., दोहा. ६, पद्य, श्वे. (उद्यमकर उठके प्यारे), ६००७९-५
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औपदेशिक पद-कपट परिहार, मा.गु., दोहा. २, पद्य, श्वे., ( बापा ज्यां छे कपट), ६००७९-६४
औपदेशिक पद - कायाअनित्यता, मु. जिनहर्ष, पुहिं. गा. १, पद्य, मूपू. (काहे काया रूप देखी), ५९८७०-३१
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औपदेशिक पद चतुर नारी, दलपतराम, पुहिं. गा. १४, पद्य, ओ. (एक घरमाहवी रे घर), ६०७९८-२८
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(जरा हो जाना हुशीयार), ६००७९-१० (मांडीरी घंटा घरररर), ५९८७०-१९
औपदेशिक पद - जीवहिंसा परिहार, पुहिं, दोहा ६, पद्य, औपदेशिक पद-धुम्रपान परिहार, पुहिं, दोहा ४, पद्य, श्वे. औपदेशिक पद - नारी परिहार गर्भित, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे. औपदेशिक पद-निंदा त्याग, कबीर, पुहिं., दोहा. ५, पद्य, वै., (निंदक तुं मत मरजे रे), ६२२६६-७(+) औपदेशिक पद- निर्गुण इस्क, रघुवीर प्रसाद, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (तेरे लिये हरदम), ६०७९८-२ औपदेशिक पद-परमार्थ, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद. ४, पद्य, दि., (जिसने नहीं कुछ दिया), ६०७९८-७
औपदेशिक पद-पाखंडी बाबा परिहार, भोजाभगत, पुहिं., दोहा. ३, पद्य, वै., (जो इस जगत में एवा), ६०७९८-७६ औपदेशिक पद-प्रमाद परिहार, पुहिं. गा. ४, पद्य, वे (दुनिया में हाथ पैर), ६०७९८-५८
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औपदेशिक पद-फकीरी विषे, जै.क. बनारसीदास, पुहिं, दोहा ८, पद्य, दि. (मन को मार के बनाया), ६०७९८-९ औपदेशिक पद - भारत दुर्दशा, पुहिं, दोहा ४, पद्य, वै.. (लूटत है दिन रैन सभी), ६०७९८-५९
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औपदेशिक पद- मदिरापान परिहार, पुहिं. दोहा २, पद्य, वे., (एजी पिलो शराब की) ६००७९-६६
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वे., (जब से जिनमत को तजा), ६००७९-५०
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औपदेशिक पद - महावीरता, पुहिं., दोहा. ५, पद्य, श्वे., ( उठो भारत के क्षत्री), ६००७९-४७
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औपदेशिक पद- माया परिहार, कबीर, पुडिं. दोहा ७, पद्य, वै. ( माया माथे सींगडा), ६०७९८-२० औपदेशिक पद- मिथ्याभिमान परिहार, पुर्हि, दोहा, २, पद्य, थे. (देखोजी हम हैं सिपाही), ६००७९-५६ औपदेशिक पद-मूर्खनारी परिहार, भोजाभगत, मा.गु., दोहा. ५, पद्य, वै., (मूर्ख नारी कुमारजा), ६०७९८-२७५ औपदेशिक पद - योवन, मु. उदयरत्न', मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (योवनीयानी फोजां मोज), ६००२५-५०(क्या
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक पद-लालच परिहार, पुहिं., दोहा. ३, पद्य, श्वे., (सारा सुगंधिदार माल), ६००७९-६२ औपदेशिक पद-विकथा परिहार, पुहि., दोहा. ५, पद्य, श्वे., (गप्पा हाके गपोडा पुर), ६००७९-६३ औपदेशिक पद-वृद्धावस्था, मु. तिलोक ऋषि, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (अखडे मनी जोबन के), ६२२६६-२२(+-) औपदेशिक पद-वैराग, जै.क. बनारसीदास, पुहि., दोहा. ४, पद्य, दि., (कालबली से लड़के), ६०७९८-५ औपदेशिक पद-वैराग्य, पुहिं., दोहा. ४, पद्य, श्वे., (बता दे भैया इस जग), ६००७९-४४ औपदेशिक पद-वैराग्य, पुहिं., दोहा. ५, पद्य, श्वे., (यापन जतन बचाना जब), ६००७९-४१ औपदेशिक पद-संसार मिथ्या, पं. गुणपद्म, पुहिं., पद. २, पद्य, मूपू., (कोई कर्म के भेद को), ६०७९८-६१ औपदेशिक पद-सुरा व सुंदरी परिहार, मा.गु., दोहा. २, पद्य, श्वे., (होटलमांजाइने बोटल), ६००७९-६५ औपदेशिक प्रहेलिका हरियाली, मु. रूप ऋषि, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (आहे बासि वसिरे वनी), ६२१४१-६१(+) औपदेशिक प्रहेलिका हरियाली, मु. रूप ऋषि, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (एक नारि इत अबल भणीजइ), ६२१४१-६३(+) औपदेशिक प्रहेलिका हरियाली, मु. रूप ऋषि, मा.गु., गा.५, पद्य, श्वे., (परबत वनमाहि एक नर ऊप), ६२१४१-६४(+) औपदेशिक प्रहेलिका हरियाली, मु. रूप ऋषि, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (पर्वत बेठु प्रशविउ), ६२१४१-६०(+) औपदेशिक प्रहेलिका हरियाली, मु. लावण्यसमय', मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (दोइ पाख अछि इति सारी), ६२१४१-६६(+) औपदेशिक प्रहेलिका हरियाली, मु. लावण्यसमय *, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीअजिनवरना पाइ नम), ६२१४१-६२(+) औपदेशिक प्रहेलिका हरियाली, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (एक पुरुष अति रूयडु), ६२१४१-६५(+) औपदेशिक बारमासा, मु. कवियण, पुहिं., गा. १५, पद्य, मूपू., (गुणनीद्धे गुणमत लागु), ५९८७०-२४ औपदेशिक बारहमासी सज्झाय, आ. गुणसूरि, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (श्रीजिन पारसनाथना), ६२४५६-४($) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (करमदल मलकुं क्षय), ५९८६७-६ औपदेशिक लावणी-शील विषे, पं. हस, पुहिं., गा. ८, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (चतुर नर सील सदा धरणा), ६२२६६-६(+-) औपदेशिक विचार संग्रह, मा.गु., प+ग., श्वे., (संजराग जल पव्वेमि), ५९५१२-५(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (हं तो प्रणमुसदगुर), ६२२६७-२६(+-) औपदेशिक सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (प्यारी ते पीउने इम), ६२१४१-४१(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चतुर तुंचाखि मुज), ५९८७८-२२(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. केसर, पुहिं.,गा.११, पद्य, मूपू., (चालो साहेली हेली गंग), ६२१७२-४३(-2) औपदेशिक सज्झाय, मु. केसर, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (धिक्ताको अवतार छिद्), ६२१७२-६०(-2) औपदेशिक सज्झाय, मु. केसर, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (भगधर भावें विनवूकर), ६२१७२-५०(-2) औपदेशिक सज्झाय, मु. केसर, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (रे अधमाधम आतम तेरी), ६२१७२-३५ (-2) औपदेशिक सज्झाय, मु. केसर, पुहि., गा. ९, पद्य, मूपू., (रे मध्यमातम बाउरा रे), ६२१७२-३३(-2) औपदेशिक सज्झाय, जिनदास, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (तने संसारी सुख किम), ६२२६७-१६(+-) औपदेशिक सज्झाय, मु. जीवविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आ जगमां अंगना नथी रे), ६२१७२-४१(-2) औपदेशिक सज्झाय, मु. जीवविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (उत्तम आतमकुं नित्य), ६२१७२-३२(-2) औपदेशिक सज्झाय, मु. जीवविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सूरत संगी हो अधमातम), ६२१७२-३४(-2) औपदेशिक सज्झाय, दलपतराम, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (दयाथीदे छे जीवन दान), ६०७९८-३६ औपदेशिक सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सुक्ष्मबोध विनु भवीक), ६२१४१-३(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. नित्यलाभ, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (चेतन समजो राज मन), ६०११४-९(+) औपदेशिक सज्झाय, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., दोहा. ८, पद्य, दि.?, (कुरान की आयतें हम), ६०७९८-१० औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, पुहिं., गा. १३, पद्य, श्वे., (तुं तो लख चोरासी), ६२२६६-१५(+-) औपदेशिक सज्झाय, मु.रूपचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अणसमजुजी सीखामण दीजे), ६०१६३-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. सिद्धविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (बापडला रे जीवडला), ६२४००-१०(+#)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
५६३ औपदेशिक सज्झाय, मु. हंसराज, पुहिं., दोहा. ७, पद्य, मपू., (जैसे मिले दूध जल यार), ६०७९८-६८ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा.७, पद्य, श्वे., (कोई तुमारा इल्म से), ६००७९-१ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., दोहा. १७, पद्य, श्वे., (ख्याल आता है मुझे), ६००७९-५५ औपदेशिक सज्झाय-आत्मप्रबोध, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पिउडारे पिउडा नरभव), ६२१४१-४५(+) औपदेशिक सज्झाय-आत्मोपदेश, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (नही एसो जनम वारोवार), ५९८३५-९ औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (आउखु तुट्याने सांधो), ६०१६३-१२(+),
६२२६६-१(+-) औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (आऊखौ तुटै नै सांधो), ६०१२५-३५(+) औपदेशिक सज्झाय-ईख, दलपतराम, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (सुण सेलडी तूंशाणी), ६०७९८-३७ औपदेशिक सज्झाय-ईख की संगति करने वाली एरंडी, दलपतराम, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (ओ एरंडी उत्तम संगति),
६०७९८-२९ औपदेशिक सज्झाय-कन्याविक्रय परिहार, पुहि., दोहा. ६, पद्य, श्वे., (महाजन तुम कहाते हो), ६००७९-३० औपदेशिक सज्झाय-काया, पुहिं., गा. १०, पद्य, श्वे., (मन का इंजन बुद्धि), ६०७९८-४० औपदेशिक सज्झाय-काया, पुहिं., गा. १६, पद्य, श्वे., (माया नदी किनारे काया), ६०७९८-७४ औपदेशिक सज्झाय-कुनारी परिहार, पुहि., दोहा. १०, पद्य, श्वे., (यह कलियुग घोर है आया), ६००७९-८ औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कडवां फल छे क्रोधनां), ६००७७-३(+),
६०१६३-८(+$) औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (क्रोध न करिये भोला), ६००२५-५२(+#) औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., गा.७२, पद्य, मूपू., (उत्पति जोज्यो आपणी), ६०१२५-७०(+), ६००६८ औपदेशिक सज्झाय-चतुरविचार, रा., गा. ६६, पद्य, श्वे., (साध सावग रतनारी माला), ६२०७८-२(+) औपदेशिक सज्झाय-जीवदया, आ. कीर्तिसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वाणि तो सुणी श्रीजिन), ६२४५६-५ औपदेशिक सज्झाय-जीवहिंसा परिहार, न्यामत, पुहि., दोहा. ६, पद्य, श्वे., (जुल्म करना छोड़ दो), ६००७९-५२ औपदेशिक सज्झाय-ज्ञान साधारण द्रव्यादि, मु. केसर, मा.गु., ढा. ४, गा. ४२, पद्य, मूपू., (भावें सुणजो रे ग्यान), ६२१७२-४४(-2) औपदेशिक सज्झाय-दया, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (गरीबो आसरोलेवा), ६०७९८-३९ औपदेशिक सज्झाय-दयापालने, मु. हीरालाल, रा., गा. १३, वि. १९४४, पद्य, स्था., (मारी दयामाता थाने), ६२२६६-५(+-) औपदेशिक सज्झाय-दरजी की कैंची गज व सूई के गुण दोष, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (सुण दरजीडा कातर गजने),
६०७९८-३३ औपदेशिक सज्झाय-दहेज परिहार, पुहि., दोहा. ७, पद्य, श्वे., (कन्या रो रो करे पुका), ६००७९-११ औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १४, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (एक घर घोडा हाथीया जी),
६०१२५-३२(+) औपदेशिक सज्झाय-नारी, पुहि., गा. १७, पद्य, श्वे., (मुरख के मन भावे नही), ६२२६७-१४(+-$) औपदेशिक सज्झाय-नारीशिक्षा, मु. गुलाब, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (रंगरोचुवा जीशी शीखा), ६२१४१-२८(+) औपदेशिक सज्झाय-नारीशिक्षा, मु. गुलाब, मा.गु., गा.७, पद्य, म्पू., (सुणो संखणी नार आंख), ६२१४१-२७(+) औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग विषये, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.५, वि. १७वी, पद्य, म्पू., (निंदा म करजो कोईनी),
६०१२५-३३(+) औपदेशिक सज्झाय-निंदात्यागे, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (गुण छे पुरा रे), ५९८६६-८(+), ६००२५-१४(+#) औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (एक काया दुजी कामनी), ६०१२५-२५(+) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., गा. १०, पद्य, पू., (सुण सुण कंतारे सिख), ६००७७-१२(+) औपदेशिक सज्झाय-परमार्थ, मु. शिवचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अचरिज एक अपूरव दिठो), ६१८०४-४(#)
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५६४
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ (२) औपदेशिक सज्झाय-परमार्थ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अचरिज एह भव्य जीवनी), ६१८०४-४(2)
औपदेशिक सज्झाय-पाश्चात्य संस्कृति परिहार, पुहिं., दोहा. ६, पद्य, श्वे., (जगदीश के हम अंश हैं), ६००७९-३१ औपदेशिक सज्झाय-बादल, दलपतराम, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (हारे आव वहाली), ६०७९८-३५ औपदेशिक सज्झाय-बेमेल विवाह, मु. परमानंद, पुहिं., दोहा. ८, पद्य, श्वे., (म्हारो जनम अकारथ जाय), ६००७९-२१ औपदेशिक सज्झाय-बेमेल विवाह परिहार, मु. परमानंद, पुहिं., दोहा. ६, पद्य, श्वे., (पोति भी तोती को), ६००७९-६ औपदेशिक सज्झाय-ब्रह्मचर्यव्रत, पुहि., दोहा. ५, पद्य, श्वे., (ले लो ब्रह्मचर्य शरण), ६००७९-१३ औपदेशिक सज्झाय-मनुष्य जन्म दुर्लभता, मु. परमानंद, पुहिं., दोहा. ७, पद्य, श्वे., (जो गर्भ में दुःख था), ६००७९-२६ औपदेशिक सज्झाय-माता पिता की भक्ति, पुहि., दोहा. ९, पद्य, श्वे., (माँ बाप से रख दोस्ती), ६००७९-२५ औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (रे जीव मान न कीजीए), ६००७७-४(+), ६०१६३-९(+) औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, पंडित. भावसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अभिमान न करस्यो कोई), ६००२५-५३(+#) औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (समकितनु मुल जाणीये), ६००७७-५(+),
६०१६३-१०(+) औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (माया मूल संसारनो), ६००२५-५४(+#) औपदेशिक सज्झाय-मित्रता, पुहि., दोहा. ५, पद्य, श्वे., (नर तन को पा के मूरख), ६००७९-२० औपदेशिक सज्झाय-मृगतृष्णा, जै.क. बनारसीदास, पुहि., दोहा. ४, पद्य, दि., (वनकाय में मन मृग चार), ६०७९८-६ औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (तमे लक्षण जो जो लोभ), ५९८७८-८(+#),
६००७७-६(+) औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (लोभ न करीये प्राणीया), ६००२५-५५(+#) औपदेशिक सज्झाय-विद्याभिलाषी, मु. परमानंद, पुहि., दोहा. ६, पद्य, श्वे., (मंगल करो महाराज), ६००७९-२३ औपदेशिक सज्झाय-विषयतृष्णानिवारण, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (धिक् धिक् काम विटंबण),
६२४५६-१३ औपदेशिक सज्झाय-वृद्धविवाह निषेध, पुहि., दोहा. १२, पद्य, श्वे., (एक महाजन था धनदास), ६००७९-२४ औपदेशिक सज्झाय-वृद्धविवाह निषेध, पुहि., दोहा. ६, पद्य, श्वे., (बूढे बाबा करे विवाह), ६००७९-३६ औपदेशिक सज्झाय-वेश्यावृत्तिनिषेध, पहिं., दोहा. ७, पद्य, श्वे., (हम हैं रंडीबाज), ६००७९-३४ ।। औपदेशिक सज्झाय-वेश्यावृत्ति परिहार, मु. परमानंद, पुहिं., दोहा. ८, पद्य, श्वे., (डूबे जाते हो क्यों), ६००७९-१४ औपदेशिक सज्झाय-वेश्यावृत्ति परिहार, पुहिं., दोहा. ७, पद्य, श्वे., (खुजली उठ रही है वह), ६००७९-४६ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. जैमल ऋषि, पुहि., गा. ३५, पद्य, स्था., (मोह मिथ्यात की नींद), ६०७४३-१(+) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, रा., गा.७, पद्य, मूपू., (आज की काल चलेसी रे), ६००२५-२१(+#) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्यविषये, पुहिं., दोहा. ८, पद्य, श्वे., (देख लो इसका तमाशा), ६००७९-४२ औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (शील सोहामणु पालीए), ६०११०-४(+#) औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (एक अनोपम शिखामण कही),
६००७७-११(+), ६०११०-५(+#$) औपदेशिक सज्झाय-षड्दर्शनप्रबोध, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (ओरन से रंग न्यारा), ६००२५-६५(+#) औपदेशिक सज्झाय-सत्संग, मु. परमानंद, पुहि., दोहा. ५, पद्य, श्वे., (भरा सत्संग का दरिया), ६००७९-७ औपदेशिक सज्झाय-हाथिणी, दलपतराम, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (हो हाथीणी जाणी मैं), ६०७९८-३४ औपदेशिक सवैया, आ. दयासूरि, पुहिं., गा. ३९, पद्य, मूपू., (अमृत छांडि करे विख), ६२२३५-१(+) औपदेशिक सवैया, मु. देवीदास, मा.गु.,रा., गा. १४२, पद्य, श्वे., (सदहि के करम अघ लहि), ६२३९२(+#) औपदेशिक सवैया, मु. माणकचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (छे डारी तो सुद नही), ५९८७०-३३ औपदेशिक सवैया, पुहिं., दोहा. ७, पद्य, दि., (कंचन भंडार पायरंजन), ६०७४६-८(-)
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५६५
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
औपदेशिक सवैया, पुहिं., सवै. १, पद्य, वै., (चकवी न बोले स्याम), ६०११६-१९(१) औपदेशिक सवैया, पुहि., दोहा. ४, पद्य, श्वे., (सिंह की खोली कीय), ५९९६१-४(-2) औपदेशिक सवैया-छत्रपति शिवाजी, पुहि., दोहा. ३, पद्य, वै., (कुंभकर्ण असुर औतारी), ६०७९८-७१ औपदेशिक सवैया-दूहा, मं. बिरबल, पुहिं., पद. १, पद्य, वै., (दूति दमण मुरख बांभण), ६००२५-६६(+#) औपदेशिक सवैया संग्रह , मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं.,मा.गु., पद्य, जै., वै.?, (पांडव पांचेही सूरहरि), ६२३४९-३(#) औपदेशिक हरियाली, मु. केसर, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (अचरिज एक सुंण्यु), ६२१७२-३०(-2) औपदेशिक हरियाली, मु. जिनेंद्रसागर, पुहिं., गा. १३, पद्य, मूपू., (कहेयो रे पंडित ते), ५९८७८-६(+#) औपदेशिक हरियाली, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (कहेयो रे पंडित ते), ६२३१८-४(+) (२) औपदेशिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (दिसे जाणिइंते चेतना), ६२३१८-४(+) औपदेशिक होरी, मु. बाल मुनि, पुहि., गा. ९, पद्य, श्वे., (ऐसी खेलो तुम होरी रे), ६२३७५-४१(+) औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, वै., (--), ६१४७७-३ कंसकृष्ण विवरण लावणी, मु. विनयचंद ऋषि, पुहिं., ढा. २७, गा. ४३, पद्य, श्वे., (गाफल मत रहे रे मेरी), ६०१०३-२(#) कका चंद्रावला, मु. कवियण, मा.गु., गा. १७८, पद्य, मूपू., (श्रीगरवा गरु गुणवंत), ५९९२४-१ ककाबत्रीसी, मु. जीवण, मा.गु., गा. ३३, पद्य, श्वे., (कका कहू ते कहु मान), ५९९२४-२ कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ५९९३८(+#$), ६२२५५(+$) । कमलावतीसती सज्झाय, मु. चोथमल, मा.गु., गा. ९, वि. १९६०, पद्य, श्वे., (धन पुरुस जो संजम), ६२२६६-२६(+-) कमलावतीसती सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, पुहिं., गा. २९, पद्य, श्वे., (महिला में बेठी राणी), ६००८९-१(#) कयवन्ना चौपाई, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., ढा. २५, गा. २१९, पद्य, मूपू., (दान न देखइ दलिद्रहि), ६००६४(#$) कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., ढा. ३१, गा. ५५५, वि. १७२१, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), ६२३१३(+#), ५९८३१,
६२४६२(#), ६००७३($) कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६६८, पद्य, मूपू., (कर्म थकी छूटे नही), ६२४००-७(+#) कर्मभूमि अकर्मभूमि आराभाव विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (देवकुरु उत्तरकुरु), ५९९८२-२ कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १८, पद्य, पू., (देव दाणव तीर्थंकर), ६२८६७-४(#$) कर्मविपाकफल सज्झाय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (देव दानव तीर्थंकर), ६२२६७-२०(+-$) कर्मविपाक बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रकृतिबंध कर्मस्थित), ५९८३९ कलियुग सज्झाय, मु. रामचंद, रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (हलाहल कलजुग चल आयो), ६२२६६-१६(+-), ६२२६६-१७(+-),
६२२६७-३०(+-) कलियुगसाधु पद, क. धीर, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (मुनिवर होय मजुर वदे), ६००२५-८४(+#) कलियुगसाधु पद, मु. मान, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आवे मुनीवर चोमास), ६००२५-८५(+#) कवित संग्रह, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, श्वे., (आसराज पोरवार तणै कर), ६२७२१-२(+#) कवित्त संग्रह- कृष्ण रुक्मिणी, पुहिं., दोहा. २०, पद्य, वै., (श्रीपति आवो आवो रे), ६०७९८-१४ कवित्त संग्रह-राम वनवास, गोस्वामी तुलसीदास, पुहि., चौपा. ५५, पद्य, वै., (रोवत सारी अबध राम), ६०७९८-४ कवित्त संग्रह- रुक्मिणी विवाह वर्णन, पुहि., दोहा. १३९, पद्य, वै., (बनडा की अजब बहार), ६०७९८-१३ कान्हडकठियारा रास-शीयलविशे, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ९, वि. १७४६, पद्य, मूपू., (पारसनाथ प्रणमुसदा), ६०३७७(+),
६२२२२, ५९९४९(#) कामदेव श्रावक सज्झाय, मु. खुशालचंद, मा.गु., गा. १६, वि. १८८६, पद्य, श्वे., (एक दिन इंद्रे), ५९८७०-८ कालीसती सज्झाय, मु. नंदलाल शिष्य, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (काली हो राणी सफल किय), ६२२६६-२०(+-) कुंथुजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (कुंथुजिन मनडुं किमहि), ६२२३७-४(+) कुंथुजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १९वी, पद्य, म्पू., (रात दिवस नित सांभरो), ५९८७८-३(+#)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २
कुंथुजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (कुंथु जिणेसर जाणज्यो), ५९८७८-१८(+#) कुगुरुपच्चीसी, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू (सद्गुरु केरि परिक्षा), ६२२६७-३(+), ६२२६७-२५) कुमतिउत्थापन चर्चा, पुहिं. गद्य, म्पू, (मनोमती झूठी प्ररूपणा), ६२६७८ (५)
"
कुमति सज्झाय, मु. राममुनि, मा.गु गा. १४, पद्य, भूपू (अबके जोग मील्वो छे), ६२२६७-६(+)
"
कुमारपाल रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४९४९, ग्रं. ५८००, वि. १६७०, पद्य, मूपू., (सकल सिद्ध सुपरि नमुं), ६०१५७/+०६)
कुशलसूरि गीत, पुहिं, गा. ३, पद्य, मूपू (प्रणमूं कुशलसूरींद), ६२३६३-८५
こ
कुशलसूरि पद, मु. जिनचंद्र, पुहिं., गा. ७, वि. १८६०, पद्य, मूपू., (भवि पूजो सब मिली कुश), ६२३६३-९३
कुसलसूरि गीत, मु. सिवचंद्र, पुहिं, गा. ४, पद्य, मृपू., ( बलिहारी हुं कुसलसूरी), ६२३७५-४९(+)
कृष्ण ढाल, मा.गु., ढा. १८, पद्य, मूपू., (नेमनाथ समसर्यां), ६२३६७(+#$)
कृष्ण बलभद्र लावणी, मु. नंदलाल शिष्य, पुहिं. गा. ५. वि. १९६५, पद्य, श्वे. (ये कृष्ण और बलभद्र), ६००८९-४ (०)
"
"
कृष्णभक्ति पद, पुहिं., गा. ९, पद्य, वै., (जी मात जसोदा जलभर), ५९८७०-२६ कृष्णभक्ति पद, पुहिं., गा. १२, पद्य, वे. नगर दवारकासु कसन), ५९८७०-२५
""
कृष्ण भाषापद, छाजुराम, मा.गु.. रा., पद. ५, पद्म, जै. वै.? (ठाकुरां कांणरो तु), ६२३४९-२(१)
"
केशीगणधर पद, मु. सुमतिविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुगुरु मेरे केसीसामि), ६२३८५-२(+)
केशीगणधर प्रदेशीराजा चौपाई, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., डा. ४१, गा. ५९४, वि. १७वी, पद्य, मूपू. (प्रणमी श्रीअरिहंत), ६००३६(+),
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६२२८३
कोणिकराजा चौपाई, मा.गु. ता. २२. वि. १७१४, पद्य, मूपू (कुटुंब तणी जागरका), ५९९८९
कोणिकराजा रास, मा.गु. दा. १४, पद्य, मूपू (सुखे राज श्रेणिक), ५९८५७)
11
क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (आदर जीव क्षमागुण), ६०७४३-२ (+), ६२८६६-१(+),
५९९६६-२(०६)
क्षमावावनी, मु. रूपचंद ऋषि, रा. गा. ५२, पद्य, वे (जती धरम दसविध कहाँ), ६०१०३-५ (क)
क्षेत्रोपपत्ति, मा.गु., गद्य, वे. (खेतानुवाणं सव्वत्थो), ६०१७४-१(७)
खरतरगच्छ संबंधी धर्मसागरीय ३० प्रश्नों के उत्तर, मा.गु., वि. १६२७, गद्य, मूपू. ( श्रीखरतरगछिय सुविहित ), ६०७०३ ( +०)
खापराचोर चौपाई, उपा. अभयसोम, मा.गु., डा. १७, वि. गच्छाधिपति भास- लुकागच्छ, मा.गु., गा. १०, पद्य, वे गजसिंघ चरित्र, मु. आसकरण ऋषि, रा., ढा. ४६, वि. १८५२, पद्य, वे., (अरिहंत अतिसैवंत घणु), ६२३०३(+)
१७२३, पद्य, मूपू (सरसति माता समरिए नित), ६२७५१(+) (म्हें तो गच्छपतिना), ६०१६७-१४
गजसुकुमाल चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., डा. ३० गा. ५००, वि. १६९९, पद्य, मृपू., (नेमीसर जिनवरतणा चरण), ५९९३३(+)
,
गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. कांति, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (श्रीजिन आव्या हे सोर), ६००२५-७६(+#) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रतन, मा.गु., गा. १३, पद्य, वे (श्रीजिन आया हो सोरठ), ६२२६६-२५ (+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ४१, पद्य, मूपू., (वाणी श्रीजिनराजतणी), ६२२६७-१०(+-$) गणधरपद गहुली, ग. रूपविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मृपू. (वीर पटोधर दिनमणी), ६२२४३-५ () गणधर महिमा पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (चवदे पूर्वधार कहीये), ६२६६६-४
י'
गणधरवंदन गहुंली, आ. दीपविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जी रे कामनी कहे सुणो), ६२१४१-६(+) गण विचार, मा.गु., पद्य, (चू चे चो ला अश्वनी), ५९७६७-१ (+)
गतागति २४ दंडक के ५६३ भेद विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (सप्त नरके समुचे गति), ६२३७४-१, ६०००६-३($)
गति आगति द्वार विचार- २४ दंडके, मा.गु., गद्य, वे (नारकीदंड २ गति) ६१२०१-५ (१)
"
गाथारत्नमाला, मा.गु., गा. ५६, पद्य, श्वे. (अमीयस्स रसो चंदस्स), ६२७६०-१(+)
""
(२) गाधारत्नमाला - टवार्थ, मा.गु. गद्य, वे. (अमृतनो जे साररस चंद), ६२७६०-१(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
५६७ गिरनारतीर्थ पद, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (शिखर गिरनार जाना हो), ६२३६३-५७ गिरनारश@जयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सारो सोरठ देश देखाओ), ६२३७५-३९(+) गुणकरंडकगुणावलि चौपाई, मु. दीपचंद ऋषि, मा.गु., ढा. २७, गा. १६०३, वि. १७५४, पद्य, श्वे., (संपति सुखदायक सरस),
६२४५९(#) गुणकरंडकगुणावली रास-बुद्धिविषये, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. २६, गा. ४९३, वि. १७५१, पद्य, पू., (श्रीअरिहंत अनंत गुण),
६००५४(#$) गुणरत्नाकर छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., अ. ४, वि. १५७२, पद्य, मूपू., (शशिकरनिकर समुज्वल), ६२१६४-१५(-६), ६२६६३-११(-) गुणावलि रास, मु. ज्ञानमेरु, मा.गु., ढा. १६, वि. १६७६, पद्य, मूपू., (प्रणमुचउवीसे जिनरा), ६०१२१(#) गुरुगुण गहुली, मु. कवियण, रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (एकन अमुलक मेतो), ६२१४१-७(+) गुरुगुण गहुंली, मु. केसर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (देख्यो एक अचंभोरे), ६२१७२-२८(-#) गुरुगुण गहुली, मु. केसर, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (मुनिवर आया रे जिपे), ६२१७२-२९(-2) गुरुगुण गहुंली, मु. केसर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सोहम सिख बहु विचरता), ६२१७२-२६(-2) गुरुगुण गहुंली, मु. मणिउद्योत, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मोहनिद्रा परीहरो रे), ६२१४१-९(+) गुरुगुण गहुंली, मु. विनय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (हेत धरी साहेलीयु), ६२१७२-२७(-2) गुरुगुण गहुंली, रा., पद्य, मूपू., (म्हारा पगल्याने पाय), ६२२५६-२(६) गुरुगुण पद, मु. परमानंद, पुहि., दोहा. ४, पद्य, श्वे., (वारी जाउंजी सतगुरुजी), ६००७९-४ गुरुगुण सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज आनंद मुज अतिघणौर), ६२४२१-२४(+#$) गुरुगुण सज्झाय, पुहि., दोहा. ६, पद्य, श्वे., (कहां गए जैन जाति के), ६००७९-१२ गुरु महिमा पद, मु. परमानंद, पुहिं., दोहा. ५, पद्य, श्वे., (गुरुसेवा में ध्यान), ६००७९-३ गोमटस्वामी आदि यात्रा वर्णन, पुहिं., वि. १८२१, गद्य, श्वे., (पानीपंथ सुभ अनेक औपम), ६२३९९(+#) गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., वि. १५४५, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवे), ६००१५(#$) गौतमस्वामी गहुँली, मु. गौतमसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (चालो सैयर गुरु वंदवा), ६२१४१-१६(+) गौतमस्वामी गहुंली, मु. गौतमसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जीरे मारे गुरुगौतम), ६२१४१-१५(+) गौतमस्वामी गीत, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रह उठी नित प्रणमीय), ६२२७५-१३(+) गौतमस्वामीगीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (गौतम नाम जपो परभाते), ६२२७५-१४(+) गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (वीरजिनेश्वर केरो शिष), ५९५९०-६(+), ६२१६४-३(-) गौतमस्वामी महावीरजिनविरह स्तवन, मु. खिमाविजय, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (तोस्यूप्रीत बंधाणि), ६२१४१-४४(+) गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., ढा. ६, गा. ६६, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), ६२२५२(+) गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., गा. ६३, वि. १४१२, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), ५९९९८(+),
६१२४२(क) गौतमस्वामी रास, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (वीर जिनेसर चरण कमल), ६२८६६-४(+) गौतमस्वामी स्तवन, मु. वीर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पहेलो गणधर वीरनो रे), ६२१६४-२२(-) गौहत्या निषेध सज्झाय, पुहिं., दोहा. ७, पद्य, श्वे., (आओ प्यारो बनो रक्षक), ६००७९-३३ ग्रहनक्षत्र तारा संख्या श्लोक, पुहिं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (त्रयं यमेश्चाग्नौषट्), ६००९३-२(+) घंटाकर्ण कल्प, मा.गु., गद्य, मूपू., (ए मंत्र त्रिकालगुणी), ५९५७८-३३(+), ६१०१५-३०-) चंदनबालासती चौपाई, मु. रतनचंद, मा.गु., ढा. १४, पद्य, मूपू., (फणीमणीमंडित निलतन), ६००६६(+$) चंदनबालासती रास, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रणमी प्रेमें सरसती), ६२१७३-४($) । चंदनबालासती सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (बालकुंआरी चंदनबाला), ६०१६३-५(+) चंदनमलयागिरि चौपाई, क. केसर, मा.गु., ढा. ११, गा. २६५, वि. १७७६, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेसर पाय), ६००५६(#)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २
चंदनमलयागिरि रास, मु. भद्रसेन, पुहिं., अ. ५, गा. १९९९, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीविक्रम), ५९८६८ चंदनमलयागिरी रास, पं. क्षेमहर्ष, मा.गु., ढा. १३, वि. १७०४, पद्य, मूपू., (जिनवर चउवीसे नमी), ६२३२०(#) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. जैत, पुडिं, गा. ६, पद्य, मूपू (श्रीचंदाप्रभु जिनवर) ६२३६३-३१ चंद्रप्रभजिन स्तवन- बालूचरमंडन, मु. सुगुण, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिनराज जुहारो क्या), ६२३७५-४४(+)
""
चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल १०८, गा. २६७९, वि. १७८३, पद्य, मूपू., ( प्रथम धराधव तीम), ५९८१६(+#$),
५९८२८(+$), ५९९०३(+), ६०१२३ (+#), ६०१२४ (+), ६०१२६ (+), ६०१३० (+#$), ६०१३३ (+$), ६०६९५ (+), ६२१३७ (+), ६२१३८(+), ६२४०८(+), ६२४५१(+), ६२१३५, ६२१४५, ६०१२८(०) ६०१३१(०३), ६०९१३६ (०३), ६२१४९ (४), ५९८४५ () ६००२९(३) ६००५२(६) ६२४५२३(३)
7
चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., खं. ६ ढाल १०३, गा. २५०५, ग्रं. ३०५५, वि. १७१७, पद्य, मूपू., (श्रीजिननायक समरीइं), ६२४७२ (३)
,
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चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., ढा. २९, गा. ६२४, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति नमी करी), ५९९२५(#), ६००२६(+), ६००४८(+), ६००४२(०) ५९९१४(१)
चंद्रहंसराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू. ( नमो निरंजन देवहु नमो), ६००९२-२ (३)
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चक्केसरीदेवी गीत, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (हांरेमा चक्केसरी), ६००२५-७१(+#) चक्रेश्वरीदेवी गरबी, मु. केसर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धाचलें सोभति ), ६२१७२-३१(-#) चपल स्वभाव परिहार, पुहिं. दोहा १२, पद्य, वे (फंस गया नादान तू). ६००७९-२८
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चर्चा समाधान, जैक. भूधर, पुहिं. वि. १२७६, पद्य, दि. (जयो वीर जिनचंद्रमा), ६०७४६-७ (-) चातुर्मासिक व्याख्यान में रा. गद्य, म्पू, (पंचापि परमेष्टिन), ६००१७-१(०) ६०४७१(३) चातुर्मासिक व्याख्यान, मा.गु., प+ग. म्पू., (प्रणम्य परमानंद), ५९८४८(०) ६१७८६ (+)
चित्रसंभूति रास, मु. खोडीदास ऋषि, मा.गु., ढा. २१ उल्लास ४, गा. ५५८, पद्य, श्वे. (प्रथम कुंवर क्षितीपत), ६०४६८(+)
चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू (चित्त कहे ब्रह्मराय), ६२२६७-१७(+)
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चित्रसेनपद्मावती चौपाई-दानधर्मानुमोदनाधिकारे, उपा. रामविजय, मा.गु., ढा. ३१, गा. ४९१, वि. १८१४, पद्य, मूपू., (रिसर
पायकमल पणमिय), ५९८४२(+), ६२३०५
चिदानंदबहोत्तरी, मु. चिदानंद, मा.गु., अ. ७२, पद्य, मूपू., (पिया परघर मत जावो), ६२३४०-१(+#)
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चेलणासती चौडालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा. ढा. ४, गा. ३७, वि. १८३३, पद्य, स्था., (अवसर जो नर अटकलो ते), ६०१०३-३(क) चेलणासती चौपाई, मु. दयाचंदजी ऋषि, मा.गु., डा. १३, पद्य, श्वे. चोवीसमा महावीरजी), ६२४४५ (+) चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीरे वखाणी राणी), ५९५९० -१० (+), ६२४५६-२१ चैत्यवंदनवीशी, मु. केसर, मा.गु., चैत्यव. २०, पद्य, मूपु. ( श्रीसीमंधर आदिइना), ६२१७२-१(०)
"
चैत्री पूर्णिमापर्व देववंदन विधि, मु. दानविजय, मा.गु., देवजो. ५, पद्य, म्पू, (प्रथम चौमुख प्रतिमा), ६००२१-४
चैत्री पूर्णिमापर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सेतुंजगिर नमीये), ६११३०-३१(+), ६१९१७-४५१) चैत्री पूर्णिमापर्व स्तुति, उपा. समवसुंदर गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू. (श्रीशेश्रुंजय तीरथ), ६१५७६-२१(+१) चौमासी देववंदन सविधि, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ४२५, पद्य, मूपू., (प्रथम ईरियावहि पछे), ६००२१-५
चौमासपर्व देववंदन, पंन्या पद्मविजय, मा.गु., पद्य, म्पू, (विमलकेवलज्ञान कमला), ६००१२ (०३), ६२३००(+), ६२२९८, ६२४३३, ६२४६६, ६२१९५-१ (# ), ६२१९६ (#)
छंदज्ञान, आ. पिंगलाचार्य, मा.गु., गा. २, पद्य, (पंच दी लहू अंकडो), ५९८६६-११(+)
छमासीतप स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( गौतमस्वामी रे बुध दो), ६१८७६-२७(+#) जंबुद्वीपक्षेत्रविस्तार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे. (जंबूद्वीप एक लक्ष), ६१२०१-४(०)
"
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जंबूपृच्छा, मु. वीरजी, मा.गु., ढा. १३, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (सकल पदारथ सर्वदा), ६२४७४(+$) जंबूस्वामी ५ भव सज्झाय, मु. राम, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (सारद प्रणमु हो के), ५९८७०-१
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
जंबूस्वामी चरित्र, श्राव. आणंद जेठमल, मा.गु., ढा. ३५, वि. १९२०, पद्य, मूपू., (शासनपति वर्धमाननो), ६२२८२ जंबूस्वामी चौडालीयो, मु. दुर्गवास, मा.गु., डा. ५, वि. १७९३, पद्य, मूपू (पुरसादाणी परमप्रभु), ६२४२९-२(+) जंबूस्वामी सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, गा. १६, पद्य, मूपू.. (संयम लेवा संचर्या), ६२२६७-१५ (+) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. बुधमल, मा.गु, गा. १२, पद्य, स्था., (जंबुकुंवर वैरागीया), ५९८७०-९
जंबूस्वामी सज्झाय, आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., गा. १४, वि. १७६६, पद्य, मूपू., (सरसत सामीने विनवुं), ६२२६७-२९(+$) जंबूस्वामी सज्झाब, आ. शिवचंदसूरि, मा.गु. गा. १२, पद्य, मृपू. (संजम पंथ स्वामी दोही), ६०१६३-११(०) जयविजयकुंवर रास, मु. जिनविजय, मा.गु., अधि. ४ ढाल ३३, ग्रं. ७२५, वि. १७३४, पद्य, मूपू., (आदि आदि जिणेसरु पय),
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५९९२९
जयसेन चौपाई रात्रिभोजन विषये, वा. धर्मसमुद्र, मा.गु., गा. २५५, पद्य, मूपू. (प्रणमीस गोवम गणहरराय), ६२७२२(+) जिनकुशलसूरि अष्टक, मु. लालकीर्ति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मृपू, (सरसति सामिणि पाय नमी), ६२८६६-५ (+)
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जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, आ जिनचंद्रसूरि मा.गु., ढा. ८. वि. १८५३, पद्य, मृपू. (स्मृत्वा गुरुपदांभोज), ६२४४८-१(०) जिनकुशलसूरि आरती, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जय जय गुरु राजा सारै), ६२४४८-२(+)
जिनकुशलसूरि गच्छपति पद, मु. जिनचंद, रा. गा. ५, पद्य, मूपू. (गच्छपति खरतरगछसिणगार), ६२३६३-८९ जिनकुशलसूरि गीत, मु. गुणविनय, मा.गु, गा. ४, पद्य, मूपू., (दादा पूरि हो मन वंछि), ६२३६३-८२
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जिनकुशलसूरि गीत आ जिनचंद्रसूरि, मा.गु गा. २, पद्य, भूपू (कुसल गुरु कुसल करो), ६२३६३-८०, ५९९६१-१३(१)
1
,
जिनकुशलसूरि गीत, मु. जिनभक्ति, मा.गु. गा. ५, पद्य, मूपू (दरसण देवो खरतरगछना) ५९९६१-१४/० जिनकुशलसूरि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपू., ( आयो आयो री समरंतो), ६२३६३-९० जिनकुशलसूरि गीत, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (कुशल अंग उछरंग कुशल), ६२२७५-११(+) जिनकुशलसूरि गीत, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (कुशल वडो संसार कुशल), ५९५९०-१४(+) जिनकुशलसूरि पद, मु. आनंदचंद्र, पुहिं, गा. ४, पद्य, मूपू (कुशलसूरिंद सहाई हमा), ६२३६३-८४ जिनकुशलसूरि पद, क. आलम, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपू.. (नित कुशलसूरीसर ध्याई), ६२३६३-९२ जिनकुशलसूरि पद, मु. जितविनय, पुहिं. गा. ७, पद्य, मूपु. ( गच्छनायक द्वार मची), ६२३७५-५२(+)
"
जिनकुशलसूरि पद, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ५, वि. १८५०, पद्य, मूपू., (महिर करीने हो दरसण), ६२३६३-८६, ६२३६३-८७ जिनकुशलसूरि पद, मु. जिनचंद्र, पुहिं. गा. ३, पद्य, मृपू. (समरण होत सहाई कुशल), ६२३६३-९१ जिनकुशलसूरि पद, आ. जिनरंगसूरि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., ( कुशलगुरु तुं साहिब), ६२३६३-८३ जिनकुशलसूरि पद, मु. जिनराज, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., ( कुशल गुरु अब मोहि), ६२३६३-८१ पद्य, मूपू., (गुरु पूज रचो रे), ६२३७५-५१)
(फाग करो नितमेव कुशल), ६२३६३-९४
"
"
जिनकुशलसूरि पद, आ. जिनसौभाग्यसूरि पुहिं. गा. ३, जिनकुशलसूरि फाग, मु. जिनचंद, पुहिं, गा. ७, पद्य, मूपू जिनकुशलसूरि सवैया, मु. धर्मसीह, पुहिं. गा. २, पद्य, मूपू (राजे धूभ ठौर ठौर ऐसी), ५९५९०-१५ (०) ६२२७५-१५(०) जिनकुशलसूरि स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (दादी परतिष देवता), ५९९६१-१२ (-१) जिनगुणप्रशस्ति बोल, मा.गु., गद्य, वे (भगवान त्रिलोक्य तारण), ६२१४१-३६(+)
१
,
जिनदत्तसूरि गीत, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (सदगुरु कौ ध्यान हृदै), ६२३७५-४८(+), ६२३६३-९६ जिनदत्तसूरि छंद, मु. रूपचंद, फा., मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., ( केही गल्लांक पीयां), ६०३६८-१०
जिनदत्तसूरि पद, मु. जिनचंद्र, रा. गा. ९, वि. १८५०, पद्य, मूपू., (परतिख परचा पूरवै दाद), ६२३६३-८८
"
जिनदत्तसूरि पद, आ. जिनसौभाग्यसूरि, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (सदगुरु के चरण चितलाय), ६२३७५-५०(+) जिनदत्तसूरि सवैया, मु. धर्मसी, पुहिं, सबै १, पद्य, म्पू., (बावन वीर कीए अपने वस), ५९५९०-१६ (+), ६२२७५-१०(+)
जिनदत्तसूरि स्तवन, मु. लाभउदय, रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (सदगुरुजी तुम्हे ), ६२२३७-९(+)
जिनदर्शनपूजन फल, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मुख दीठां सुख उपजै), ६२२७५-६(+)
जिन परिवारमान स्तवन, मु. भावविमल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सकल जिणेस्वर प्रणमी), ६००७७-२० (+)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २
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जिनपूजाफल स्तवन, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सरसति सामण समरी माय), ६२४७९-२(+) जिनप्रतिमा स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., डा. २ गा. २१, पद्य, भूपू (जिन जिन प्रतिमा वंदण), ६२१४१-५८(१) जिनबिंबपूजा स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (भविका श्रीजिनबिंब), ६०१२५-४७(+), ६२३१५-१४(+) जिनमंदिर कर्त्तव्य स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (करि निसिही देहरामांह), ५९८७८-२०(+#) जिनमतश्रद्धा सज्झाय, रा., गा. २५, पद्य, श्वे., (लखचोरासी जीव जचावे), ५९९२६-४(+)
जिनवाणी महिमा पद, बाल, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपू., (ग्यान सुधारस वरसै), ६२३७५-३२(+)
जीव आयुष्यविचार सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु, गा. १०, पद्य, म्पू, (गुरु चरण कमल प्रणमीन), ६०९२५-३६ (+) जीवउत्पत्ति के १४ स्थान, मा.गु., गद्य, मूपू., (वली नीत ने विषे उपजे), ६२३७४-३
जीव के १४ भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवना १४ भेद तेमा), ६२३९५-२(+)
जीव के जघन्य उत्कृष्ट आयुष्य विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (भुवनपती प्रथम असुर), ६२४२५-६ (+)
जीवविचार बोल, मा.गु., को., मूपू., (--), ५९९९२ (+$)
जीवविचार स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु. दा. ९, गा. ८३, वि. १७१२, पद्य, भूपू (श्रीसरसती रे वरसती) ६०११९(+)
,
जीवहिंसा परिहार पद, पुहिं. दोहा ३, पद्य, श्वे. (यह नहीं कलयुग है कर), ६००७९-५३
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"
जीवोत्पत्तिस्थान विचार, मा.गु, गद्य, वे., (काचा दूध मांहे), ६२१९१-२(+)
ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू (युगला धर्म निवारिओ), ६२२४४-२ (+)
ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मृपू, (त्रिगडे बेठा वीर), ६२२४४-१२(०)
ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पूजा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसौभाग्यपंचमी), ६०१०५ (+#), ६२३५५-१(+),
६२३६६-१(+४), ६०००३, ६००२१-२ ६२३३७(५) ६२२१२(७)
ज्ञानपंचमीपर्व पूजा, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., ढा. ११, वि. १८८७, पद्य, मूपू., (सकल कुशल कमलावली), ६०७१८(+$), ५९९७५ ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., डा. ३, गा, २५, पद्य, मूपू (प्रणमुं श्रीगुरु पाय),
६००२५-२९(+०), ६०१२५-३९(+), ६२३१५-९(+), ६२४२१-४१(+४), ६२४७५-२(+), ६२३६५-२
ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ५, गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीवासुपूज्य जिणेसर), ६२३५५-२(+), ६२३६६-२ (+#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ४९, पद्य, मूपू., (प्रणमी पास जिणेसर), ६२३४५-१ ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ६८, वि. १७९३, पद्य, मूपू., (सुत सिद्धारथ भूपनो), ५९९९६ (+),
६२१४१-९३(+)
ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन- लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पंचमीतप तुमे करो रे), ६०१२५-४० (+),
६२३१५-१० (+), ६२४७५-३ (+)
ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास पुहिं. गा. २५, वि. १७वी, पद्य, दि., (सुरनर तिर्यग जग जोनि ), ६०८१०-२ (+) ज्वर छंद, मु. कांति, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (ॐ नमो आनंदपुर अजयपाल), ६२३४०-३(+#)
झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु. दा. ४, गा. ४३, वि. १७५६, पद्य, मूपू (सरसति चरणे शीश नमावी), ६२६५६-१
"
ढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ढंढणऋषिने वंदणा), ६००२५-२० (+#), ६००७७-१६(+), ६२४५६-६ इंडिया नवबोल चर्चा, मु. दीपविजय, रा. वि. १८७६, गद्य, मूपू., (श्रीमंतपागछिय भेद), ६००८७+७), ६२१६९, ६००९१(१),
"
६२३०८(६)
तत्त्वसारोद्धार, मु. हुकममुनि, मा.गु. वि. १९९९, गद्य, मृपू., (अवनाशी अकलंकतु), ६२४०३ (+३)
"
तपविधि संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (नांदल मांडीजे), ६२४८८-१ (+)
तिलकतप स्तवन, ग. विजयविमल, मा.गु., ढा. २, गा. १८, पद्य, मूपू., (सासण देवी सारदा वाणी), ६१८७६-२०(+#), ५९८९१-३
तीर्थंकर गोत्रबंध के २० बोल, मा.गु, गद्य, भूपू (अरिहंतजीरा गुण ग्राम), ६२२५१-४
"
तीर्थंकर चक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, मा.गु., गद्य, म्पू, (तित्थयरा गणहारी चक्क ), ५९५१२-४०)
तीर्थयात्रा स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा. २९, वि. १९०२, पद्य, मूपू., (सारद माय नमी करी), ६२१७२-८(-#)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
तृष्णा सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (क्रोध मान मद मच्छर), ६००२५-६४(+#) तेजसारकुमार रास-जिनेश्वरपूजादीपकभावविशुद्ध विषये, मु. नेमविजय, मा.गु., ढा. ३९, गा. ९६०, वि. १७८७, पद्य, मूपू., (परम
परमेश्वर प्रभू), ६०१४०(#) त्रिकालभाव वंदना, मा.गु., पद. १, पद्य, मूपू., (पढो मंत्र नवकार ताप), ६१७३४-२ त्रैलोक्यसुंदरी चौपाई, मु. कनीराम ऋषि, मा.गु., ढा. २२, वि. १८११, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्ध अनंतगुण), ५९९७०(+) दयाछत्रीसी, मु. चिदानंदजी, पुहिं., गा. ३६, वि. १९०५, पद्य, मूपू., (चरणकमल गुरूदेव के), ६०११४-२(+) दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सयल तीर्थंकर करु रे), ६२१६४-२८-) दसाणुवाइ विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव समुचय सर्व थोडा), प्रतहीन. (२) दसाणुवाइ-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (राजग्रही नगरी गुणसल), ६१२४६-१(+#) दादाजीस्तवन-नागोरीगच्छ, मु. परमानंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (देव सकल सेहरो हो), ६०१६७-३ दादाजी स्तवन-नागोरीगच्छ, मु. परमानंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (दौलत दो दादा सदगुरु), ६०१६७-४ दानशीलतपभावना प्रभाति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (रे जीव जिन धरम कीजीय), ६२४५६-९,
६२६७०-३(#) दानशीलतपभावना रास, मु. निहालचंद, मा.गु., ढा. ५, गा. १२१, वि. १७९८, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु गौतम पय), ५९८५६ दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ४, गा. १०१, ग्रं. १३५, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेसर पाय),
६२१४१-५४(+), ६००६९-४(#) दीक्षा के १८ दोष, मा.गु., गद्य, मूपू., (आठ वरसना बालक उपरांत), ६०७०४-३(+) दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वीरजिनवर वीरजिनवर), ६००२१-१,
६१८०९-१(2) दीपावलीपर्व व्याख्यान, रा., गद्य, पू., (पणमिय वीरं वुच्छ), ६००१७-३(+) दीपावलीपर्व स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (श्रीदीवाली विजयवति), ६२१७२-२३(-2) दीपावलीपर्व स्तुति, मु. चंद्रविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ ताता जग), ६११३०-४५(+), ६१९१७-४१(+) दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सासननायक श्रीमहावीर), ५९५४५-२(+) दूहा संग्रह, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे.?, (सुख उपनै दुख गल गए), ६२३६३-४६ दृष्टांत संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६२२७१-१(+$) देवकी ६ पुत्र रास, मा.गु., ढा. १९, गा. ३०७, पद्य, म्पू., (नेमजिणंद समोसा ), ६२२०७(#) देवानंदा सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहि., गा. १२, पद्य, मूपू., (जिनवर रूप देखी मन), ६२२६७-२१(+-) देशभक्ति पद, पुहि., दोहा. ५, पद्य, श्वे., (जागो भारत सुनो बाते), ६००७९-४९ दोहावली, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ६३, पद्य, श्वे., (लोचन प्यारे पलकको कर), ६२४४०-३(+) दोहा संग्रह, पुहि., पद्य, (ओस ओस सबको कहें मरम), ६०७९८-१५ द्रव्यभावलेश्या सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (अरिहंतदेवनी वाणी), ५९९२६-३(+) द्रव्यलिंग व्यवस्था, पुहि., दोहा. ३८, पद्य, दि., (सम्यग ज्ञान नही), ६०७४६-९(-) द्रोपदीसती चीरहरण कवित्त, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., दोहा. ५, पद्य, दि., (द्रौपदी विपत्ति में), ६०७९८-८ द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., ढा. ३९, गा. १११७, वि. १६९३, पद्य, मूपू., (पुरिसादाणी पासजिण), ६००५०(६) द्रौपदीसती चौपाई, आ. हीरविजयसूरि, मा.गु., ढा. १४, गा. २१८, पद्य, मूपू., (सील वडो संसारमै मध्य), ६००९०-१(+) द्वादशानुप्रेक्षा, पुहि., दोहा. ३८, पद्य, दि., (विरहत पहुचे पाडवा), ६०७४६-१०-) धन्नाअणगार चौपाई, मु. सबलदास, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ५९९२८(+#$) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. ठाकुरसी, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (जिनवाणी रे धना अमीय), ६२२६७-१२(+-) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. विनयचंद, मा.गु., गा. २०, पद्य, स्था., (जिनशासन स्वामी अंतरज), ६०१०३-१(#)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
धन्नाअणगार सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सरसती सामीने वीनहु), ६२२६७-२२(+) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अजीया जोरावर कारमी), ५९८६६-५ (+) धम्मिलकुमार रास, पं. वीरविजय, मा.गु., खं. ६, पद्य, मूपू., (सकल शास्त्र महोदयधि), ६२१८६($) धर्मजिन पद, मु. जीवविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धर्म जिनेश्वर सुरत), ६२१७२-१६(#) धर्मजिन स्तवन, पंडित, खीमाविजय, पुहिं. गा. ५, पद्य, मूपू., इक सुणली नाथ अरज), ६२३७५-८(०) धर्मजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (धर्मजिणंद तेरे धर्मक), ५९८७८-१० (+#) धर्मजिन स्तवन, उपा मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू. (प्रमुदित वित्ते रे), ६०९१६-४(७)
धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हारे मारे धर्म जिणं), ५९९९४-१३ (+#) धर्मजिन स्तुति, आ. निलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मुरति मन हरणी जाणे), ६११३०-४९(+)
धर्म हो, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद. ८, पद्य, मूपू., (मधुवन मै धूम मची होर), ६२३६३-७३
धर्मपरीक्षा वार्त्तिक, मा.गु., गद्य, मूपू., (कोइक भलो शिष्य विनइ), ६२३१४(#)
धर्म भावना, मा.गु, गद्य, श्वे. ( धन्य हो प्रभु संसार), ६२१४१-८९(+)
',
धर्मरुचिअणगार सज्झाय, मु. रतनचंद ऋषि, रा., गा. १५, वि. १८६५, पद्य, स्था., (चंपानगरनी रुप सुंदर), ५९८७०-३ धान्य नाम, मा.गु., गद्य, मूपू (ब्रीही जवर मसूर३), ५९६५७-११(+)
ध्यानद्वार विचार, मा.गु., गद्य, म्पू, (प्रथम चार प्रकारना), ६०१५२-१(+)
ध्यानस्वरूपनिरूपण प्रबंध, मु. भावविजय, मा.गु, डा. ९. गा. १६३. वि. १६९६, पद्य, मूपू (सकल जिणेसर पाय बंदे),
""
६०४६३-११०१
""
नंदबहुत्तरी, मु. जिनहर्ष, मा.गु. गा. ७३. वि. १७१४, पद्य, भूपू (सबैनयर सिरि सेहरो, ६०५७६-३+३), ६२४४०-२(१) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. १६, पद्य, मूपू., (राजगृही नयरीनो वासी), ६२२६७-१९(+) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (पंचसयां धणि परिहरी), ६०११०-९(+#) नंदीवरद्वीप ५२ जिनप्रसाद स्तवन, ग. शिवचंद्र, मा.गु., वि. १८७७, पद्य, मूपू (स्वस्ति श्रीसुखकरण), ५९९१३-२(५) नंदीश्वरद्वीप स्तवन, मु. जैनचंद्र, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (नंदीसर बावन जिनालये), ६०१२५-१६ (+), ६२३१५-७(+) नमस्कारचौवीसी, मु. लखमो, मा.गु. गा. २५. वि. १६वी, पद्य, श्वे. (पढम जिणवर पदम जिणवर) ६२३६४-१(०) ५९८८६-१ नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (वंछित० श्रीजिनशासन), ६२४७९-४(+),
,
.
६२१६४-१७)
नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सुखकारण भवियण समरो), ६२२६४-३, ६२१६४-११) नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., गा. १३, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (किं कप्पतरु रे आयाण), ६११३०-८८(+$), ६१९१७-६९(+), ६२४२१-३१(+०), ६२६३२-६८(+), ६११९५-४९(
नमिजिन पद, पुहिं., दोहा. ४, पद्य, मूपू., (विदेह देश और मिथिला), ६०७९८-१७
नरकगामी साधुसाध्वी आदि संख्या विचार, मा.गु, गद्य, भूपू (सूर साधु सूर पण), ६२६६४-१
"
नरक वर्णन, बुद्धिविलास, पुहिं., दोहा. १०३, पद्य, दि., (जन्मथान सब नर्क में), ६०७४६-१७ (-)
नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ६ ढाल ३९ गा. ९३१, प्र. १३५०, वि. १६७३, पद्य, मूपू..
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प्रमुख), ५९९१६ (+), ५९९३५ (+४), ६२१६५(+), ५९८२४(३)
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नवअंगपूजा दुहा, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जल भरी संपुट पत्रमा), ६१८७६-१८(+#) नवकल्पीविहार विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीस दिन २० बिहार), ६१८०४-९(०)
नवकार कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., ( नवकार इक्क अक्खर पाव), ६१८२७-१
नवतत्त्व १३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., ( जीव चेतन १ अजीव), ५९८८१(+$)
नवतत्त्व चौपाई, मु. वरसिंह ऋषि, मा.गु., गा. १३५, वि. १७६६, पद्य, स्था., (पास जिनेसर प्रणमी), ६२२४६(+) नवतत्त्व भेद, मा.गु., गद्य, भूपू (हवे विवेकी समदृष्टि), ६२१९८
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
५७३ नवतत्त्व विचार*, मा.गु., गद्य, स्पू., (जीवाजीवा पुन्नं पावा), ६००१०(5) नवतत्त्व संग्रह, आ. विजयानंदसूरि, पुहि., अ. ९, वि. १९२७, गद्य, मूपू., (शुद्धज्ञान प्रकाशाय), ६२१५०(+) नवतत्त्व स्तवन, मु. विवेकविजय, मा.गु., ढा. ११, वि. १८७२, पद्य, मूपू., (सरस्वतीनें प्रणमु), ६०७१९(+$) नवपद आराधन, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहेले पद नमो अरिहता), ६०९६५-१(#) नवपद आराधन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (आसो सुदि सातमी तथा), ५९५३०-२(+), ६१०३४(+#) नवपद आराधन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम आसो चइत्रनी), ६०९६५-२(2) नवपद के चैत्यवंदन स्तवन व स्तुतियां, मु. हीरधर्म; मु. कुसल, मा.गु., पद्य, मूपू., (जय जय श्रीअरिहंत), ५९८८०($) नवपदगुण वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (पेले पदे नमो अरिहंता), ६०१६६(१) । नवपद पूजा, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., ढा. ९, वि. १८३८, पद्य, मूपू., (श्रुतदायक श्रुतदेवता), ६२३५३ नवपद सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुरतरुने सुरमण थकी), ६२२६७-५(+-) नवपद स्तवन, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तीरथनायक जिनवरू रे), ६१८७६-२६(+#), ६००६२-३, ६२३६३-१(६) नवपद स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., गा. २३, वि. १७६२, पद्य, मूपू., (सकल कुशल कमलानो), ६२२४३-४(-) नवपद स्तवन, मु. दोलतविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीसरसती प्रणमुं), ६०१६०-२(+) नवपद स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (मन काया कर एकंते विक), ६००६२-१ नवपद स्तुति, मु. जिणचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुखसंपति दायक समरु), ६००२७-३०(+) नवमीतिथि स्तवन, मा.गु., पद्य, श्वे., (वीर सुनो मोरी विनती), ६०४७६-५(+$) नवरत्न कवित्त, पुहिं., गा. ११, पद्य, दि., (धन्वंतरि छपणक अमर घट), ६०७४६-१६(-) नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ११, गा. ९७, वि. १७२९, पद्य, पू., (श्रीनेमीश्वर चरणयुग), ५९८६६-२(+),
६०१२५-१०(+), ६०११५(#) नववाड सज्झाय, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., गा. १५, पद्य, स्था., (सोलमो अधेनउत्ताधेनको), ५९८७०-१५ नशावृत्ति निषेध सज्झाय, पुहिं., दोहा. ५, पद्य, श्वे., (होलि में खाक धूल), ६००७९-३७ नारकीदुखवर्णन लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. १०, पद्य, श्वे., (दुःख दुष्ट भुगता हुय), ६१८०४-२(#) (२) नारकीदुखवर्णन लावणी-(पु.ही.)टबार्थ, पुहि., दोहा. १०, पद्य, श्वे., (पांच आश्रव मति करो), ६१८०४-२(#) नारकीभवनद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नरक ७ ना भवन सासता), ६००८८(+) नारी प्रहेलिका हरियाली, वा. गुणविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (एक नारी आती दीपती रे), ५९८७८-२(+#) नारीरूप सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (चित्रलिखित जे पूतली), ५९८६७-५ नारीशिक्षा सज्झाय, पुहि., दोहा. १०, पद्य, श्वे., (सीता और अंजना नारी), ६००७९-१८ नारीशिक्षा सज्झाय-पतिव्रत धर्म, पुहि., दोहा. ७, पद्य, श्वे., (सुख नारियों जो चाहो), ६००७९-३२ नारीशिक्षा सज्झाय-विधवा, पुहि., दोहा.८, पद्य, श्वे., (विधवा के धर्म सुनो), ६००७९-१९ निश्चय उपयोग लक्षण, मा.गु., गद्य, मूपू., (सविहुं जीवनइं साकर), ६२९१९-२(+#$) निह्नवछत्रीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ३८, वि. १८३३, पद्य, श्वे., (इण आरे निन्हव उगडीया), ५९९२६-२(+) नेमराजिमती गीत, मु. कांतिसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नेमकुमर वर परणवा), ६००२५-७५(+#) नेमराजिमती गीत, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू, (नेम मले तो बाता), ६००२५-६८(+#) नेमराजिमती गीत, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (गगन परे विजूरी चमकै), ६००२५-७७(+#) नेमराजिमती नवभव स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. १७, वि. १७३७, पद्य, मूपू., (नेमजी आव्या रे सहसाव), ५९८७८-३०(+#) नेमराजिमती नवरसो, मु.रूपचंद, मा.गु., ढा. ९, गा. ४०, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय सुत चंदलो), ६२४००-९(+#) नेमराजिमती पद, पं. कपूरचंद, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (छाई घटा गगन में काली), ६०७९८-१६ नेमराजिमती पद, आ. कीर्तिसागरसूरिजी, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (आओ आओ वालमजी एक बेर), ६२३४०-६(+#) नेमराजिमती पद, मु. चंद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (यादव मन मेरो हर लीयो), ६२३७५-४(+)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ नेमराजिमती पद, मु. जगतराम, रा. गा. ३, पद्य, मूपू, हुं तो धारी लागी राज), ६२३६३-३९ नेमराजिमती पद, मु. दीपसागर, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुणीयो री मे सखी सहे), ६२३६३-३३
राजिमती पद, मु. प्रमाणसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नव भव केरी प्रीत), ६००२५-३८(+#) नेमराजिमती पद, बाल, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (कोई वरजो री स्याम हम ), ६२३७५-२७(+) नेमराजिमती पद, मु. रंगविजय, पुहिं., गा. ४, पद्य, मृपू., ( नहि ज्याने दुगी मे), ६२३४०-७(+) नेमराजिमती पद, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपू (नेमस्वामी से कहीयो), ६२३७५-२२ (*) नेमराजिमती पद, पुहिं. गा. ४, पद्य, भूपू (प्यारो कोन बतावो रे), ६२३४०-८(+)
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राजिमती बारमास सज्झाय, आ. विनयसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (राजुल पीउ सूं वीनवे), ६२४५६-१० राजिमती बारमासो, आ. दवासूरि, मा.गु, गा. १३, पद्य, मूपू. (श्रावण मासे स्वाम), ६००२५-३६(+०) नेमराजिमती सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. १५, वि. १७७१, पद्य, मूपू., (राणी राजील करजोडी), ६२२६७-१८(+) नेमराजिमती सज्झाय, मु. नंदलाल शिष्य, पुहिं., गा. ९, पद्य, श्वे. (ऐसा जदुपति रे प्रणवा), ६२२६६-२४ (+) नेमराजिमती सज्झाय, मु. नवलराम, पुहिं., गा. ८, पद्य, थे., (नेमजी की जान ववी), ६२२६६-२(+) नेमराजिमती सज्झाय, मु. पेमचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, खे, (नेम छबीली माहरे मन), ६०१२५-२३(+)
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राजिमती सज्झाय, मु, मोहनविजय, मा.गु., गा. ६, पद्म, मूपू (पीउजी रे पीठजी नाम), ६०११४-८ (+) मराजिमती स्तवन, मु. उदवरत्न, मा.गु. गा. ७, पद्य, म्पू, (स्यानै आवीने मुझनै), ५९८७८-२६(१) नेमराजिमती स्तवन, मु. कुसालचंद, रा. गा. १५, पद्य, थे. (अहो अहो उग्रसेन घर), ५९८७०-१७ नेमराजिमती स्तवन, मु. चतुरकुशल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू (समुद्रविजय सुत नेमकु), ६००२५-७४(४) नेमराजिमती स्तवन, मु. दानविजय, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (राजीमती कहे मेरी), ५९८७८-१६(+#)
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नेमराजिमती स्तवन, मु. मतिहंस, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राजुल बेठी उंची गोखड), ५९८७८-१५ (+#), ६०११६-११(#)
राजिमती स्तवन, मु. विनय, मा.गु., गा. ९, वि. १८२१, पद्य, मूपू., (रहो रहो वाल्हा रे), ६००२५- ६२(+#) नेमराजिमती स्तवन, पुहिं. गा. २०, पद्य, थे. (क्यु आया किम फीर) ५९८७०-५
राजिमती होरी, बाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (मनमोहन गजगतकी गामनी), ६२३७५-३३(+) नेमराजिमती होरी, मु. रतनसुंदर, मा.गु. गा. ४, पद्य, मूपु. ( या दिन नेम कुं देखन), ६२३७५-४५(०)
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नेमराजिमती होरी - पद, बाल, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., ( आज सहियौ होरी खेलन), ६२३७५-३० (+) नेमसागर गली, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (गुरुजी आव्या रे), ६२१४१-२० (+)
नेमसागरगुरु गहुंली, मु. गौतमसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (वाला मारा गुरु गीरुआ), ६२१४१-१४(+)
नेमसागरगुरु गहुंली, मा.गु गा. ९, पद्य, भूपू (आव्या मुनि जिन आणा), ६२१४१-१७(*)
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नेमिजिन गहुली, मु. गौतमसागर, मा.गु गा. १९. वि. १९११, पद्य, मूपू (चालो सैयर गुरु वंदवा), ६२१४१-१३(*)
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नेमिजिन गीता, मु. विजयसिंघ - शिष्य, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., ( भगवति भारती चीत्त), ६००६९-१(#)
नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. केसर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (तारण तरण तरी समो), ६२१७२-५३(#)
नेमिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रह सम प्रणमूं नेम), ६११३०-५६ (+), ६२६३२-१३(+#),
६१९९५-२० (#)
नेमिजिन पद, मु. ऋद्धिहर्ष, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (गढ गिरनार की तलहटी), ६२३७५-१(+)
नेमिजिन पद, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद. ९, पद्य, म्पू, (खेलत नेम कुमार ऐसे), ६२३७५-१२(+), ६२३६३-७८
नेमिजिन पद, आ, जिनभक्तिसूरि पुहिं. गा. ५, पद्य, मूपू. (ऐसे नेम कुंवर खेले), ६२३७५-१(+), ६२३६३-७४
नेमिजिन पद, मु. भूषण, रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (नेम निरंजन ध्यावो), ६२३७५-३(+)
नेमिजिन पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (मत छोडो म्हांने), ६२३७५-३६(+)
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नेमिजिन बारहमासा, मु. गौतमसागर, मा.गु., गा. १०५, वि. १९१५, पद्य, मूपू., (सरसतस्वामीने वेनवु), ६२१४१-९६ (+) नेमिजिन व्याहलो, मु. गुमानचंद, मा.गु., ढा. ४, गा. ३०, वि. १८६३, पद्य, श्वे. (छपनकोड जादव मिल आवा), ५९८७०-२८
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५७५
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
नेमिजिन स्तवन, मु. कांति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (कालीने पीली वादली), ५९९९४-६(+#), ६००२५-१६(+#), ६०११६-१८(#) नेमिजिन स्तवन, मु. केसर, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (खेलनदे होरी खेलनदे), ६२१७२-३९(-#) नेमिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (नेमि जिनेसर वीनति), ६२१७२-६(-2) नेमिजिन स्तवन, मु. चौथमल ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १९५८, पद्य, स्था., (सेवो श्रीरष्टनेम से), ६२२६६-१९(+-) नेमिजिन स्तवन, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (उज्जलगिरी अमहे जाइ), ६२३६४-५(+) नेमिजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (निरख्यो नेमि जिणंदने), ६२२१७-२ नेमिजिन स्तवन, मु. रुचिरविमल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मात सिवादेवी जाया), ५९९९४-७(+), ६०११६-६(#) नेमिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (घेर आवोने नेम वरणागी), ६००२५-७३(+#) नेमिजिन स्तवन, पुहि., गा. ११, पद्य, श्वे., (आज रंग वरस मारा नेम), ६२२६६-२१(+-) नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू., (समुद्रविजयसुत नेम), ५९९९४-१६(+#) नेमिजिन स्तवन-भ्रमरगीता, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. २७, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय नृप कुल), ५९९९४-१०(+#) नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (श्रावण सुदि दिन), ६१२०३-४(+), ६२१४१-३३(+) नेमिजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुर असुर वंदित पाय), ५९५८९-१९(+#), ६००२७-२७(+), ६११३०-३५(+),
६१५७६-१५(+#), ६१८८६-२८(+), ६१९१७-३०(+), ६२६३२-४९(+#), ६११९५-३५(#), ६०९१७-५(-) नेमिजिन स्तुति-एकाक्षरी, न्याय, पुहिं., दोहा. ६, पद्य, दि., (जोगी जती जथा रथी), ६०७४६-१५(-) नेमिजिन स्तुति-गिरनारमंडन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गिरनार सिहरि पर नेमि), ६००२७-२४(+),
६११३०-४८(+) नेमिजिन होरीपद, मु. नवल, मा.गु., पद. ४, पद्य, श्वे., (किन मारी पीचकारी रे), ६२३७५-४६(+) पंचकल्याणक स्तवन, मु. पुण्यसागर, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (नमिय पयकमल सुभ भावि), ६२४२१-१५(+#) पंचतीर्थीजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (अब जिनबिंब परलंब), ६२१७२-४६(-2) पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वीर कहे गौतम सुणो), ५९८६६-४(+) पंचमआरा सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वीर कहै गोयम सूणो), ६२२६७-१(+-) पंचमीतिथि सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सद्गुरू चरण पसाउले), ५९८६६-३(+), ६००२५-३३(+#) पंचांगगणित विधि, उपा. महिमोदय, मा.गु., गा. १६४, वि. १७३३, पद्य, मूपू., (परम जोति प्रभुकुं), ६२६०३-१(+) पंचाख्यान चौपाई, मु. रत्नसुंदरसूरि, मा.गु., अधि. ५, गा. २६१६, वि. १६२२, पद्य, मूपू., (प्रणम्य पूर्व), ६०६८९(+) पंडितप्रिया चौपाई, पन्या. रामचंद्र, मा.गु., ढा. २९, पद्य, मूपू., (--), ५९९५५(+#$) पट्टावली अंचलगच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिणइ कलिकाल तणइ योगइ), ६२१९३(+) पट्टावली खरतरगच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (गुबरग्रामवासी वसुभूत), ६००८६(+$) पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमान तीर्थं, ६११३१-२(+), ६१६५७(+$) पतिव्रत सज्झाय, पुहि., दोहा. ५, पद्य, श्वे., (चाहो जो स्वर्ग निवास), ६००७९-१७ पथ्यापथ्य, उपा. रामऋद्धिसार, पुहिं., पद्य, मूपू., (आदीश्वर जिणंद को), ६२६१९(+$) पद्मनाभजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रथम महेसर पद्मनाभ), ६११३०-६०(+), ६२६३२-१९(+#) पद्मप्रभजिन धमाल, मु. ज्ञान, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मेरे रदय पदमप्रभु), ६२३७५-१६(+) पद्मप्रभजिन स्तवन-नाडोलमंडन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीपद्मप्रभु जिनराय), ६००२५-३७(+#) पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (हवे राणी पद्मावती), ५९५१२-२(+),
६००७७-१४(+), ६०१२५-३१(+), ६२२७६-२(+), ६२३२४-२(+#$) परमात्मछत्रीसी, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (परमदेव परमातमा परम), ६२३९४-१(-) परमार्थशतक, पुहि., गा. १०३, पद्य, श्वे., (अनुभौ अभ्यास में), ५९८४९-१(#) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (परवराज संवत्सरी दिन), ६२१४१-५३(+)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २
पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (कल्पतरुवर कल्पसूत्र), ६२१४१-४९(+) पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू. (जिननी बहिन सुदर्शना), ६२१४१-५१(+ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., ( पास जिणेसर नेमनाथ), ६२१४१-५२(+) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रणमु श्रीदेवाधिदेव), ६२१४१-४८(+) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुंजय शृंगार), ६२१४१-४७(+) पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू. (सुपन विधि कहे सुत), ६२१४१-५० (+) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (परव पजुसण पुण्ये), ६२६७९-३ (+)
पर्युषण पर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मृपू., (वली वली हुं ध्यावु), ५९५८९-२४(+०३), ५९७६५-१(+४६),
६००२७-३१(+), ६१०९७-२४(+), ६११३०-३४(+), ६१५७६-१६(+), ६१८८६-१२(+), ६१९१७-२४(+), ६२३५९-९(+०), ६२६३२-५२(+), ६११९५-३७(४) ६०९१७-१८
पर्युषणपर्व स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (परव पजुसण पुन्य), ६१६९४-१७ (#)
पर्युषणाष्ठाह्निका व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मूपू, नमो अरिहंताणं० ॐकार) ६१५७५
पांडवचरित्र रास, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु., खं. ६ डाल१५० ग्रं. ३७९७, वि. १७६७, पद्य, मृपू. (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), ६०१२९(०)
पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., खं. ९ ढाल १५१, ग्रं. ५७५०, वि. १६७६, पद्य, मूपू., (श्रीजिन आदिजिनेश्वरू), ६११९९(+$), ६००२२ (०३), ६०१३२ (०३)
पाक्षिकतपवृद्ध स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. २, गा. १४, पद्य, मूपू., (जंबुद्वीप सोहामणो), ६१८७६-३२(+#), ५९८९१-५ पाखंडपरिहार पद पु,ि दोहा ३, पद्य, वे. (दिलकु खूब समझाना), ६००७९-५९
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पाखीखामणा अंचलगच्छीय, मा.गु., पद्य, मूपू., (अरिहंतजीने खमावीए रे), ६०११४-१२ (+$)
पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथानक, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ६०१०१($)
पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री रास, मु. लालचंद, मा.गु., डा. ३९ गा. ५३५, वि. १७४२, पद्य, मूपू (प्रथम जिणेसर परगडो),
६०७९९ (+#$), ६००९२-१($)
पार्श्वजिन आरती, मु. मतिहंस, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (पहिली आरती आससेण), ६००२५-६९(+#)
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पार्श्वजिन आरती, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (भव भव आरत टालें हमार), ६००७४-३ पार्श्वजिन गीत, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मेरे एही ज चाहीइं), ६००२५-१७(+#)
पार्श्वजिन गौडीजी मंदिर-महिमा माहात्म्य वर्णन ढालीया-मुंबइ, मु. माणीकविजय, मा.गु. डा. ४. वि. १९४२, पद्य, भूपू..
(प्रणमी पार्श्व पदकजे), ६२३१८-१(+)
पार्श्वजिन चैत्यवंदन - गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू (पुरसादाणीय पासनाह), ६११३०-५७(+), ६२६३२-१४(+), ६११९५-२१(क)
पार्श्वजिन छंद, मु. धानत, पुहिं. गा. १०, पद्य, मूपू., (नरेंद्र फणींद्र), ६१८७६-४३००), ६२२६६-९(+)
पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (धवल थिंग गोडी धणी), ६२१६४-५१ पार्श्वजिन छंद - गोडीजी, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (सुवचन आपो शारदा मया), ६१४०८-१(-)
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पार्श्वजिन छंद - नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८. वि. १७वी, पद्य, मूपू (आपण घर बेठा लील करो), ६२२६६-१० (+)
पार्श्वजिन छंद- शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदचरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (सेवो पास शंखेश्वरो), ६२४७९-३(+), ६२१६४-६) पार्श्वजिन छंद-स्थंभनपुर, मु. अमरविसाल, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (थंभणपूरवर पासजिणंदो), ५९९६१-७(-#) पार्श्वजिन नमस्कार- स्थंभनपुर, मु. कल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीसेढी तट मेरुधाम ), ६२६३२-१६(+#) पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. २७, पद्य, मूपू., (सुखसंपत्तिदायक सुरनर), ५९५९०-११(+), ६२६६६-१ पार्श्वजिन पंचकल्याणक पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ८, वि. १८८९, पद्य, मूपू., ( संखेश्वर साहेब सुर), ६२४४२(#)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५ पार्श्वजिन पद, मु. कनककीर्ति, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (तूं मेरे मन में तूं), ६०१२५-४६(+), ६२३१५-४(+) पार्श्वजिन पद, मु. जिनचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (तेरे चरण भेट आज आनंद), ६२३६३-३४ पार्श्वजिन पद, आ. जिनभक्तिसूरि, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (माई रंगभर खेलेगे), ६२३७५-१७(+), ६२३६३-७१ पार्श्वजिन पद, आ. जिनलाभसूरि, पुहिं., गा.७, पद्य, मूपू., (होरी के खिलईया हारे), ६२३७५-३५(+) पार्श्वजिन पद, मु. लालचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मेरो मन वश कर लीनो), ६२३६३-६२, ५९९६१-९(-2) पार्श्वजिन पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (परमातम श्रीपासजिनेश्), ६२१७२-१३(-#) पार्श्वजिन पद, पुहि., पद. ४, पद्य, मूपू., (मोतियन थाल भरकै करह), ६२३६३-६७ पार्श्वजिन पद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (सांवरो सुखदाई जाकी), ६२३७५-२३(+) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. केसर, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (मनमोहन मूरत पास की), ६००२५-२७(+#) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनवचकाया वश करी रे), ६०११६-२४(#) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभु बेठेहिं सारंग), ६०११६-८(#) पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, आ. जिनसौभाग्यसूरि, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (चिंतामण दरबार ऐसे), ६२३७५-१८(+) पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (चिंतामणिसामी साचा), ६२३६३-१४ पार्श्वजिन पद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. वीरविजय, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (अजब जोत मेरे प्रभु), ५९८३५-४ पार्श्वजिन बृहत्स्तवन-गोडीजीदशमीतिथि, मु. समयरंग, मा.गु., ढा. ५, गा. २३, पद्य, मूपू., (पास जिनेसर जगतिलोए),
६२२३७-२(+5), ६२४२१-४४(+#) पार्श्वजिन रेखता, मु. लालचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (जगतपति पास जिणराज), ६२३६३-६५ पार्श्वजिन सज्झाय-गजभव, पुहिं., दोहा. १०, पद्य, दि., (करि उपगार मुनीश तिहा), ६०७४६-२) पार्श्वजिन स्तवन, मु. अमृत, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (रित वसंत आई मेरी), ५९८७८-१४(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीरत, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (श्रीसुगुरु चिंतामणि), ६१८७६-५५(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. केसर ऋषि, मा.गु., गा. ८, वि. १८४२, पद्य, मूपू., (प्रणमुपास जिनेसरु), ५९८६७-७ पार्श्वजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (में तो साहेब तेरे नो), ६२१७२-६१(-2) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (जय बोलो पास जिनेसर), ६२३७५-५(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मोतीडे मेहवुठारे), ६००२५-५८(+#) पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हितधर वंदू हो पासजिण), ६०१२५-५८(+) पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनहर्षसूरि, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (वीनतडी अवधारो हो), ६२३७५-४२(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जीवविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (पास जिनेश्वर साहवा), ६२१७२-१५(-2) पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, पुहि., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्यारो पारसनाथ पूजाओ), ६२३६३-३६ पार्श्वजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सहज गुण आगरो स्वामि), ६२४००-१२(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. नित्यलाभ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पासजिणंद सदा शिवगामी), ६००७७-१८(+) पार्श्वजिन स्तवन, उपा. पुण्यसागर, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (पणमीय पण परमिट), ६२४२१-१८(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. बखतावर, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (चरणकमल जिनवरतणारे),५९८६७-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. भावरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीपारसनाथजीरी सेवा), ६२४७९-५(+) पार्श्वजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीपासजी प्रगट), ६००२५-४७(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रभु जगजीवन जगबंधु), ६०११६-१४(#) पार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा.५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मेरे साहिब तुम ही), ५९८७८-४(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. राज, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (जय बोलो अश्वसेन लाला), ६००२५-६३(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. श्रीधर, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (नीकी मूरति पास जिणंद), ६२३६३-४३ पार्श्वजिन स्तवन, पा.सदानंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मोरा पासजिनराय सूरत), ६२३१५-८(+)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. सुजयसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (करं ध्यान जिणेसर), ६२४२१-४७(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु.सुमति, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जय जय श्री जिनराज जग), ६१८७६-४०(+#) पार्श्वजिन स्तवन, सुरचंद, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (गोडी गामने गुदरे), ६१२१७-२(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रणमुपदपंकज सदा), ६०१६७-९ पार्श्वजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सेवक जपै हो साहिब), ६०१६७-१० पार्श्वजिन स्तवन, मु. हितविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एक पुरुष मे नवलो), ५९८८३-२(#) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (इंद्रादिकि सेवत पद), ६२३९४-२(-६) पार्श्वजिन स्तवन, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (पारस प्रभु के चरण), ६२३६३-६१ पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू., (भली भावना भाग संयोग), ६२४२१-४८(+#) पार्श्वजिन स्तवन-१० भववर्णन, मु. मतिविसाल, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (श्रीसारद हो पाय), ६२४२१-४५(+#), ६२१६४-२१(-) पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., ढा. ४, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (पूर मनोरथ पासजिणेसर),
६२०७४-१(+), ५९९७४-२($) । पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, मु. केसर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पाये तुम पासजी), ६२१७२-२०(-2) पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, ग. रंगकलश वाचक, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (अंतरीक पासजी महिर), ६२३१५-११(+) पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, वा. विनयराज, मा.गु., ढा. ४, गा. २७, वि. १७७२, पद्य, मूपू., (पर उपगारी परम गुरु), ५९९६१-१(-2) पार्श्वजिन स्तवन-अक्षयनिधितपगर्भित, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १२, वि. १८४३, पद्य, मूपू., (तपवर कीजे रे अक्षय),
६००७६-३(+) पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., ढा. ५, गा. ५५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (वाणी
ब्रह्मवादिनी), ५९९३९-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-कापरडामंडन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (अंग सुरंगी अंगीया), ५९८७८-२१(+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अहो त्रिभुवन जन बंधो), ५९८७८-२७+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. केसरविमल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (लाखेणो सोहोवे जनजी), ५९९९४-५(+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनचंद्र, पुहि., गा. ९, वि. १७२२, पद्य, मूपू., (अमल कमल जिम धवल), ६०१२५-४१(+),
६२३१५-१७(+), ६२४७५-४(+), ६२४७९-७(+) । पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वाल्हेसर मुझ विनती), ६२३१५-२(+), ५९९७४-३(5) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. ज्ञानसागर, पुहिं., गा.५, पद्य, मूपू., (अनीकी मुरत पाश की), ६०११६-२३(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (मिता चालो तो जिनजि), ६०११६-२१(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. दीपचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुणज्यौ गोडीजी), ६०१२५-४३(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (लाखीणो सोहावें जिनजी), ५९८७०-११ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गोडी देव जइरे बेनी), ६२४९०-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मुजरो मानीने लेजो हो), ६०११६-२७(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रुघपति, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (आज सुहावो दीहडो में), ६०१२५-२२(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. वसता मुनि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (धन धन पारकर देश में), ६२२३७-६(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. विनयविबुध शिष्य, मा.गु., गा.५, पद्य, म्पू., (मीठो मुने लागेरे), ६००२५-७(+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अमे आउ नेहडो कदी), ६२४३९-२ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी थलवटमंडन, मु. वस्ता, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सांभलि थलवट स्वामि), ६२३१५-६(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी मुंबई, पं. दोलतरुचि, मा.गु., गा.८, वि. १९४२, पद्य, मूपू., (अहो भवीकाजी गोडीजी), ६२३१८-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीचिंतामण पासजी), ६०१२५-४४(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (आणी मनसुध आसता देव), ६२६७९-४(+)
पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू. (श्रीपास चिंतामणि जेम), ६१८७६-४४(+)
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पार्श्वजिन स्तवन- जिनप्रतिमास्थापनगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु. गा. ७, पद्य, मूपु. (जिनप्रतिमा हो जिन), ६२३१५-१२(*) पार्श्वजिन स्तवन- जीरावला, मु. मेरु, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (वामातणओ नंद पार्श्वन), ६२४२१-४९(+) पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जीराउला देव करउ), ६२४२१-४६(+#) पार्श्वजिन स्तवन- जीरावला, मा.गु., गा. ११, पद्य, मृपू., (महानंद कल्याणवली), ६१८७६-४१(+४)
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पार्श्वजिन स्तवन-दक्षण करहेटक, मु. खेमकलश, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (महिमंडल श्रुणि श्रवण), ६२४५६-१८ पार्श्वजिन स्तवन- दीक्षा कल्याणक, पं. वीरविजय, मा.गु. गा. २१, पद्य, मूपू (सोना रूपा के सोगठे), ६२१४१-५६(+) पार्श्वजिन स्तवन- नारंग, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १८८३, पद्य, मूपू., (प्रभूजी नारंग पास), ६००७४- १०($) पार्श्वजिन स्तवन- पंचासरातीर्थ, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मृपू (परमातम परमेश्वरु), ६००२५-७२ (+ पार्श्वजिन स्तवन- पाटण पंचासरा, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू. (हे साहीब मेहेर करीने), ६००७४-८ पार्श्वजिन स्तवन प्रभाति, मु, लाभउदय, मा.गु गा. ५, पद्य, भूपू (उठो रे मारा आतमराम), ६०००४-१ (+) पार्श्वजिन स्तवन- भिनमाल, मु. पुण्यकमल, मा.गु., गा. ५३, वि. १६६१, पद्य, मूपू. (सरसति भगवति नमीव पाय), ५९८८३-१(०) पार्श्वजिन स्तवन- भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपु., (जाब से जाब के जाय छे), ६२१४१-३५),
६०११६-३०(१
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पार्श्वजिन स्तवन-भीलडीयाजी, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १८७८, पद्य, मूपू., (श्रीभिलडीया पास भेट), ६००७४-७ पार्श्वजिन स्तवन- मनमोहन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनमोहन पावन बेहडीजी), ५९९९४-२ (+ पार्श्वजिन स्तवन- लोद्रवपुरमंडन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु, गा. ५, पद्य, मृपू (हो सुणि सांवलिया), ६०१२५-२१(+) पार्श्वजिन स्तवन- लोद्रवपुरमंडन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मृपू., (सिद्ध श्रीलोद्रवपुर), ६०९२५-२६ (*) पार्श्वजिन स्तवन- लोद्रवपुरमंडन, ग. जिनलाभ, मा.गु., गा. १५, वि. १८१७, पद्य, मूपू., (श्रीलोद्रवपुर साहिबो), ६०१२५-२७(+) पार्श्वजिन स्तवन- लोद्रवपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, वि. १६८९, पद्य, मूपू., (लोईयपुर आज महिमा घण),
६२८६६-३ (+)
पार्श्वजिन स्तवन- वरकाणामंडन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (कांइ रे जीव तुं मन), ५९९७४-५
पद्य, मूपू., (कांइ रे जीव मनमें), ६२१६४-१२ (दरसन देख्यो पासकुमर) ६२३६३-३२
पार्श्वजिन स्तवन- वरकाणामंडन, मु. हर्षकुशल, मा.गु, गा. ८, पार्श्वजिन स्तवन- विविध पार्श्वजिन, पुहिं. गा. ७, पद्य, भूपू पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, वा. उदयरत्न, मा.गु गा. १०. वि. १७८०, पद्य, भूपू (पासजी तोरा पाय पलक), ६००७७-७(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (सकल मंगल तणी कल्प), ६००६९-२(#) पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. धीर, पुहिं, गा. ३, पद्य, मूपू. ( अजब ज्योत हेरी जिन), ६००२५-४१(+०)
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पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. रंग, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (दिलरंजन जिनराजजी), ५९८३५-१२
पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. विद्याचंद, मा.गु., गा. ४३, वि. १६४३, पद्य, मूपू., (श्रीजिवर सदा ओलंगुं ए), ६००६९-३(#) पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. विनयशील, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सकल मुरत श्रीपास), ६२१६४-१०-) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अंतरजामी सुण अलवेसर), ६०१२५-४२(+), ६२३१५-१५(+) पार्श्वजिन स्तवन- शेरीसा, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ३०, वि. १५६२, पद्य, मूपू. (स्वामि सुहंकर श्रीसे), ६२४२१-१७(+०) पार्श्वजिन स्तवन-समवसरण विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. २, गा. २७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासन सेहरो जग ),
६०१२५-३०)
पार्श्वजिन स्तवन- स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., डा. ५, गा. १८, पद्य, मूपू., (प्रभु प्रणमुं रे पास), ६२३१८-११(+), ६२४२१-३४(+#$), ६२२५०
पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सकल मूरत त्रेवीसमो), ६२३६४-६(+)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (थंभणपुर श्रीपास जिण), ६२४२१-५०(+#$) पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अश्वसेन नरेसर वामा), ६००२७-१९(+), ६११३०-२६(+),
६१५७६-३२(+#), ६१८८६-१३(+), ६१९१७-१९(+), ६२४७५-१२(+), ६२६३२-४१(+#), ६११९५-३१(#) पार्श्वजिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीपास जिणेसर पुजा), ६२६७९-२(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनमुख पंकज), ६००२५-३(+#) पार्श्वजिन स्तोत्र-स्तंभनपुर मंडन, पं. शीलशेखर गणि, मा.गु., श्लो. ९, पद्य, मपू., (श्रीभरभासुर सुंदरदेह), ६२९०८-५४(+) पार्श्वजिन होरी, मु. जिनचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (मेरे पास प्रभुजी के), ६२३७५-७(+) पार्श्वजिन होरी, मु. रत्नसागर, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (रंग मच्यो जिनद्वार), ६००२५-३९(+#), ६२३७५-४३(+) पार्श्वजिन होरी, मु. वल्लभसागर, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (पासजि के दरबार चलो), ६००२५-४६(+#) पार्श्वजिन होरी-चिंतामणी, मु. जिनलाभ, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिन मिंदिर जयकार ऐसे), ६२३७५-३७(+), ५९९६१-३(-2) पार्श्वजिन होरी-नवसारी मंडण, मु. केसर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (खेलो नवसारी मंडण), ६२१७२-२२(-2) पार्श्वपुराण, जै.क. भूधरदास, पुहिं., अ. ९, वि. १७८९, पद्य, दि., (मोह महातम दलन दिन,), ६२१०७(+#) पुण्यपाल चरित्र-दानाधिकारे, मु. रामदास ऋषि, मा.गु., ढा. ३५, वि. १९०९, पद्य, श्वे., (संतिनाथ साता करन अरी), ६२३२९(#) पुण्यपाल चौपाई, मु. चेतनविजय, मा.गु., खं. ४ ढाल ७, वि. १८५५, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत अनंतगुण), ६२२८६(+#), ६२२८७(+#) पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ८, गा. १०२, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धिदायक सदा), ५९९८७-१(+#),
५९९८८(+), ६२१४१-९२(+), ६२३२४-१(+#), ५९५३४-१, ६२०९०, ६२२२९-१, ६०११८-४(2) पुण्यसार रास-पुण्याधिकारे, मु. पुण्यकीर्ति, मा.गु., ढा. ९, गा. २०५, वि. १६६६, पद्य, मूपू., (नाभिराय नंदन नमु), ६२४८४(#) पुद्गलपरावर्त भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (औदारिक वैक्रिय तेजस), ६०३६८-१ पुद्गलपरावर्त विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नाम १ गुण २ तिसंख ३), ५९९८२-१ पृथ्वीचंद्रगुणसागर सज्झाय, पंडित. जीवविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ६८, पद्य, मूपू., (शासननायक सुखकर वंदी), ६२२६७-२८(+-$) पैगंबर साहेब के फरमान, फा.,मा.गु., गद्य, (हजरत अल्ली साहेबे), ६०७९८-७२ पौषदशमीपर्व कथा, रा., गद्य, मूपू., (ध्यात्वा वामेयमहँत), ६००१७-७(+) पौषधविधि स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ५, गा. ३८, वि. १६६७, पद्य, मूपू., (जेसलमेर नगर भलो जिहा),
६२४२१-३८(+#S), ६२४८१-२(+$) प्रजनकंवर लावणी, मु. खूबचंद ऋषि, पुहि., गा. २२, वि. १९६४, पद्य, श्वे., (ये प्रजनकंवर कि), ६००८९-२(#) प्रत्याख्यान ४९ भांगा, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनइंन करुं वचने न), ६१८५६-२(+) प्रत्याख्यानविचार सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. २, गा. १७, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (धुरि समरूं सामिणी), ६०११०-७(+#) प्रदेशीराजा के प्रश्न-राजप्रश्नीयसूत्रे, मा.गु., प्रश्न. ११, गद्य, मूपू., (प्रथम हिवे ११ प्रश्न), ५९९८६ प्रदेशीराजा चौपाई, मु. गिरधर ऋषि, मा.गु., ढा. ७, पद्य, स्था., (सतगुरु चरणकमल नमी), ५९९७३ प्रदेशीराजा चौपाई, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., ढा. १७, वि. १८७७, पद्य, श्वे., (रायप्रसेणी सुत्रमे), ६०१५३ प्रदेशीराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., (रायप्रदेसी मुकियो), ६२६०७(#) प्रदेशीराजा चौपाई, मा.गु., ढा. २३, पद्य, मूपू., (संधि प्रदेशी रायनी), ६२२९१ प्रबोधपच्चीसी, पं. सुंदरदास, पुहिं., गा. २७, पद्य, मूपू., (--), ६०८१०-१(+$) प्रभात गीत, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (आजकाल करत प्यारे काल), ५९८८३-४(#) प्रभुभक्ति पद, पुहिं., दोहा. ५, पद्य, श्वे., (ईश्वर तू लाज रखले), ६००७९-२७ प्रभु स्तुति, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (प्रभु दर्शन सुख संपद), ६२२३७-७(+) प्रश्नोत्तरमाला, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ६२, वि. १९०६, पद्य, मूपू., (परम ज्योति परमात्मा), ६२१४१-१९(+) प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रणमुं तुमारा पाय), ६२४५६-१६ प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. रुपविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रणमुतुमारा पाय), ६२४९०-३(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मारगमां मुनिवर मल्यो ), ५९५९०-१(०) प्रहेलिका दोहा, पुहिं., दोहा. १, पद्य, वै., ( अहिफण कमल चक्र टणकार), ६०९५०-६ (-) प्रहेलिका संग्रह, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (पवन को करें तोल गगन), ६२४४०-४(+), ६२२४५-१३($) प्रायचित्त विचार, मा.गु, गद्य, म्पू, (भीन मास कहतां लूखो), ६१२५७-३ (+) प्रास्ताविक कवित्त, क. गिरधर, पुहिं., दोहा. २, पद्य, वै., (साईं अपने भ्रात को),
६०७९८-५०
प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहिं., मा.गु., गा. ७१, पद्य, श्वे., (पडिवन्नइ माछा भला बग), ६०७९८-४२, ६१५९२-३ प्रियतमविरह पद, मा.गु., गा. ६, पद्य, वै., (झरी झरी मेरी नाव), ५९८७०-२०
3
प्रियदर्शनासती सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (सतीया ए समीप रुपोयो), ५९८७०-१६ बंधउदयउदीरणासत्ता विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मिथ्यात्वगुणठाणइ ११७), ६२४९३(#$)
बलदेवमुनि सज्झाय, मु. सकलमुनि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (बलदेव महामुनि तप तपइ), ६२८६६-६ (+)
बालविवाह परिहार सज्झाव, पुहिं., दोहा ६, पद्य, वे (बचपन में करे विवाह), ६००७९-२९
"
बाहुजिन फाग, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (परणे रे बाहू रंग), ५९८७८-१२(+#)
बाहुबली सज्झाय, मु, मोहनविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, भूपू (बाहूबली वन काउसग), ५९८७८-२६(+०), ६०११०-१(+),
६२१७७-८
बीजतिथि स्तवन, ग. गणेशरुचि, मा.गु., गा. १९, वि. १८१९, पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतदेवि पसाउले), ६००२५-२८(+#)
बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दिन सकल मनोहर बीज), ६०९१४-५ (+), ६१२०३-३ (+), ६१५७६-१४(+#), ६२४७९-६(+), ६२३४५-२, ६१६९४-५ (#)
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बीजतिथि स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, भूपू (अभिनंदन चंदन शीतल), ६२३४५-४
बुढ़ापा चौपाई, मा.गु., डा. १२, वि. १८४५, पद्य, मूपू (जंबुद्वीपनै भरतमै ), ६००१४)
बुढापा रास, मु. चंद, रा. डा. २२, वि. १८३६, पद्य, भूपू (दया ज माता वीनवु), ५९८९०(५) ६२५९२, ५९८९५
"
भंगरत्नावली, मु. गांगेय, मा.गु., गद्य, मूपू., ( तिहां प्रथम पद करवार), ५९९९३-१५
भक्ति पद, सूरदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (माखण मेरो खायो मटकी), ५९८७०-२२ भक्ष्याभक्ष्य काल प्रमाण, मा.गु., गद्य, भूपू., (चावल रांधे पहर४), ५९६५७-१५(१) भरतक्षेत्रे आर्यम्लेछ क्षेत्रफल विचार, मा.गु., गद्य, वे (भरत क्षेत्र को भेद), ६१२०७-३ (०३)
भरतबाहुबली कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवड़ भरत श्रीमरुदेवी) ६२४७७-१(+)
भरतबाहुबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., गा. १२, वि. १७७१, पद्य, मूपू. (तव भरतेश्वर वीनवे), ६०१६३-४(क)
भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू ( बाहुबल चारित लीयो), ६२४५६-७
भरत विलाप, गोस्वामी तुलसीदास, पुहिं., दोहा. ४, पद्य, वै., (हमारी मात की करनी), ६०७९८-६६
"
भवदेवनागिला सज्झाब, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १८७२, पद्य, स्था. ( भवदेव जागी मोहनी तज), ५९८७०-१२ भवनद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सातमी नारकीनां नाम), ६२२२४ (+$)
भवानी स्तोत्र, ग. कल्याणसागर, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सकति सदा सानिधि करो), ५९४७५-३
,
भारत दुर्दशा, मोहन, पुहिं, दोहा, २७, पद्य, वै., (पाप में धन का लगाना), ६०७९८-६७
"
,
भारमान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., (षट सरसवे एक जव थाय), ६२१४१-७६(+)
भैरवराग का द्रुपद पद, तानसेन, पुहिं. का. २, पद्य, वै., ( शुगड बन छायो रे, ६२३४०-२ (००)
"
भोजवार्त्ता-पंद्रहवीं विद्या गर्भित, भवानीदास व्यास, मा.गु., प+ग., वै., (गणपति सरसति शिव विस), ६२४४०-१(+) मंगलकलश चौपाई, मु. लक्ष्मीहर्ष, मा.गु, ढा. २७, वि. १७९९, पद्य, भूपू (प्रह उठी नीत प्रणमीय), ६२३५४(+०३)
मंगलकलश रास, मु. दीप्तिविजय, मा.गु., वि. १७४९, पद्य, मूपू., (प्रणमुं सरसति स्वामी), ५९८६२($)
मत्स्योदर रास, पंडित. ललितसागर, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीजिन चोवीसमाइ नमी), ६२२१८(+#$)
मदनमोहनासती रास, झवेरचंद दसानंद कवि, मा.गु., खं. ४, वि. १८३९, पद्य, वे, वै., (सरसती माता विनवु सय), ६२१४० (+)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ मदनरेखासती रास, मा.गु., गा. १८८, पद्य, मूपू., (जूआ मांस दारु तणी), ६२३१९ मदनसेन चौपाई, मु. सांवतराम ऋषि, मा.गु., ढा. ३१, वि. १८९८, पद्य, श्वे., (प्रथम नमी भगवंतनै), ६००७५ ($) मधुबिंद द्रष्टांत, पुहि.,मा.गु., गद्य, श्वे., (मधुबिंदु की कथानो), ६२१४१-५९(+) मधुबिंदु सज्झाय, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., ढा. ५, गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसति मुझने रे मात), ६०११४-१०(+) मनकमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (नमो रे नमो मनक), ६०१६३-३(+) मनमांकड सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मन मांकडलो आण न माने), ६०११०-२(+#) मनुष्यभव पुण्यप्रभावदर्शक १७ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ बोलै मनुष जनमारो), ६२२५१-६(#) मलयासुंदरी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., खं. ४ ढाल १४८, गा. ३००६, वि. १७५१, पद्य, मूपू., (श्रीशांतिसर सोलमो), ५९७८७(+#$) मल्लिजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चीत कुंण रमे चित कुण), ५९८७८-१३(+#) महादंडक ३० द्वार, मा.गु., गद्य, मूपू., (दंडक १ लेस्या २ ठिती), ६२४२०(+$), ५९९३९-१(#) महाबलमलयासुंदरी चौपाई, मु. भक्तविमल, मा.गु., खं. ४, वि. १८५२, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथ प्रणम), ५९८३०(+), ५९८३७(+) महावीरजिन आयुष्य विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक वर्षमें सवाइग्यार), ६२२५१-३(#) महावीरजिन गहली, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (चालो सईर गुरूवांदवा), ६२१४१-८(+) महावीरजिन गहुंली, मु. गौतमसागर, मा.गु., गा. ३१, वि. १९११, पद्य, मूपू., (जी रे मारे गुरु गीरु), ६२१४१-१२(+) महावीरजिन गहुंली, मु. गौतमसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वाला मारा गुरु गुरु), ६२१४१-११(+) महावीरजिन गहुंली, मु. वचनसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सखी राजगृही उद्यानमा), ६००२५-७०(+#) महावीरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वंदु जगदाधार सार सिव), ६११३०-५८(+), ६२६३२-१५(+#),
६११९५-२२(#) महावीरजिन देशना पद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (मधुरी जिनवाणी हे), ६२३६३-५१ महावीरजिन निर्वाण स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. १२, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सच्छांतिकांतिसमता), ५९८६४ महावीरजिन पद, मु. कीर्ति, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर सेवीइ), ५९८३५-५ महावीरजिन पद, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पावापुर महावीर जिणेस), ६२३६३-१८ महावीरजिन पद, मु. परमानंद, पुहि., दोहा. ५, पद्य, श्वे., (महावीर हमें बचा लो), ६००७९-२ महावीरजिन पद, मु. फकीरचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (मेरो मन लागी रह्यो), ६२३६३-३५ महावीरजिन पद, मु. भुवनकीर्ति, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मो मन वीर सुहावै), ६२३६३-४ महावीरजिन पद, मु. विनय, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (आज सखी मे मिलन जावरी), ६२३४०-४(+#) महावीरजिन पद, मु. सोभाचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवर तु भज रे), ६२३६३-६ महावीरजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (नाही रे कोई जिनजी), ६२३६३-११ महावीरजिन पद, मु. हर्षचंद, रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (भेट वीर जिनंद री), ६२३६३-१० महावीरजिन पूजा स्तवन, मु. केसर, पुहिं., गा.७, पद्य, मूपू., (केसर की पूजा करो वीर), ६२१७२-५५(-2) महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (वीर सुणो मुज विनती),
६०१२५-४५(+), ६०४७६-१(+), ६२४२१-३७(+#) महावीरजिन स्तवन, पं. कपूरविजय गणि, रा., गा. ११, वि. १८२३, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर वंदीइ), ६००२५-३५(+#) महावीरजिन स्तवन, ग. कपूरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभुजी त्रिसलासुत), ६००२५-३४(+#) महावीरजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (त्रिसलाजी को नंदन), ६२१७२-४०(-#) महावीरजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीमहावीर मया करी), ६२१७२-३८(-2) महावीरजिन स्तवन, मु. खुशालमुनि, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (जिन माहरा रे श्रीमहा), ६२२४५-४ महावीरजिन स्तवन, मु. जिनचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (जग तारक श्रीवीरप्रभु), ६२३६३-२ महावीरजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर वंदीये), ६००२५-५(+#)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
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महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, पुहिं. गा. ९, पद्य, म्पू, (वीर विना वाणी कोण), ५९५१०-४ (+), ६००२५-६७(+) महावीरजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (तार हो तार प्रभु मुज), ६२४००-१३(+#) महावीरजिन स्तवन, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (साचुंरि परवर्या जगत), ६२३६४-७(+) महावीरजिन स्तवन, उपा. पुण्यप्रधान गणि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू.. ( नमी पाय मुनिरायज), ६२३५९-१+४४) महावीर जिन स्तवन, पं. मानविजय, मा.गु. गा. ७, पद्य, म्पू., (त्रिसलानंदन त्रिजग), ६०११६.५ (१) महावीरजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभुजी वीरजिणंदने), ६००७१-२(+#) महावीर जिन स्तवन, मु. रघुपति, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवीर कृपाकर), ६२४४६-२ (+#) महावीरजिन स्तवन, मु. रामरतनशिष्य, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (मनडो मोहोजी महावीर ), ६२२६६- १३(+) महावीरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु. गा. १२, वि. १८३७, पद्म, वे. (सिद्धारथ कुल दीपक), ५९८७०-६
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महावीरजिन स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीवृधमान जिनराया), ६००७४-१२ महावीरजिन स्तवन, मु. विनय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (आज आनंदघन प्रगटीयो), ६२१७२-५ (-)
महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ८, गा. ७९, वि. १७२९, प+ग., मूपू., (सकलसिधदायक सदा चोवीस),
६२३९१(+)
महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (माताजी तुमे धन धन रे), ६२१४१-१८(+)
महावीरजिन स्तवन, ग. सौभाग्यविजय, मा.गु., ढा. १४, गा. १७६, वि. १७४५, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेस्वर प्रभु), ६०६९८-१ महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नमिय पाय मुणिराय छे), ६२४२१-१९(+#)
महावीर जिन स्तवन, पुहिं, गा. ७, पद्य, मृपू (सिद्धारथ राजा का), ६२२६६-११(+)
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महावीरजिन स्तवन- २० भवविचारगर्भित मु. हंसराज, मा.गु, ढा. १० गा. १०० वि. १७वी, पद्य, मूपू (सरसति भगवति दिओ
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मति), ५९८७४(+$)
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महावीर जिन स्तवन- अतिचारगर्भित, उपा धर्मसी, मा.गु., ढा. ४, गा. ३०, पद्य, मूपू (ए धन सासन वीर जिनवर), ६०१२५-५(१) महावीरजिन स्तवन-छमासीतप वर्णनगर्भित, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसति सामण दो मति), ५९८९१-१ महावीरजिन स्तवन- तपवर्णन, उपा. समवसुंदर गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (कीयो छे मास पांच दिन), ६२२६७-११(+) महावीरजिन स्तवन- दीपावलीपर्व, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मारग देशक मोक्षनो रे), ६०१२५-५३(+) महावीरजिन स्तवन- दीपावलीपर्व निर्वाणमहिमा, मु. गुणहर्ष, मा.गु. दा. १० गा. १२५, पद्य, म्पू, (भ्रमणसंघतिलकोपमं).
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६०९३३ (+), ६२२७२(#)
महावीरजिन स्तवन- निगोदविचारगर्भित, मु. क्षमाप्रमोद, मा.गु., गा. ४८, पद्य, मूपू., (प्रह उठी नमियें सदा), ६२३९६(+) महावीरजिन स्तवन- समकितविचारगर्भित, मु. न्यायसागर, मा.गु., डा. ६, वि. १७६६, पद्य, मूपू (एकविध दुहविध त्रिविध),
६२३८३
महावीरजिन स्तवन- समवसरण, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (त्रिशलानंदन वंदीये), ६२१४१-४२(+) महावीरजिन स्तवन स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु, डा. ६, गा. १४८, प्र. २२८,
५८३
वि. १७३३, पद्य, मूपू (प्रणमी श्रीगुरुना पय), ६२२१०(*), ६२४६४(*)
(२) महावीरजिन स्तवन- स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित बालावबोध, मा.गु, गद्य, मृपू., (ए स्तवनमा प्राइ पद), ६२४६४(+) महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मुरति मनमोहन कंचन), ५९७६५-४(+#), ६००२७-२३(+), ६११३०-२५(*), ६१८८६-२१(*), ६१९१७-४०(*), ६२३५९-१० (+), ६२६३२-४५ (+), ६१९९५-३४/१
महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू (बालपणे डाबो पाव चांप), ६००२७-२५ (०) ६११३०-३२(+), ६१५७६-३१(+),
""
६१९१७-४८(+), ६२४२१-८(+), ६२६३२-३७(१४), ६०९१७-६-२
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महावीरजिन स्तोत्र-प्रभाती, मु. विवेक, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सेवो वीरने चित्तमां), ६२१६४-२७(-)
महीपालराजा चौपाई, मु. विनयचंद, मा.गु., खं. ४ ढाल १२३, ग्रं. ५५०४, पद्य, स्था., ( श्रीनाभेय युगादिजिन), ६००५७(#$) माणिकचंदचंपावती रास, मु. भूधर, मा.गु., पद्य, वे (आदिकरण अरिहंत जिन), ६२२८० (5)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुसल, मा.गु., गा. २६, पद्य, म्पू, (सरस वचन द्यो सरसती), ६२१६४-१३(-) माणिभद्रवीर छंद, आ. शांतिसूरि, मा.गु. गा. ४३, पद्य, भूपू (सरसति सामनि पाय), ६२१६४-२३(-) माणिभद्रवीर छंद. मु. शिवकीर्ति, मा.गु. गा. ९, पद्य, भूपू
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(श्रीमाणिभद्र सदा), ६२१६४-७(-)
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माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. ५५२, वि. १६१६, पद्य, मूपू., (देवि सरसति देखि), ६०७९७ मानतुंगमानवती रास, अनुपचंद - शिष्य, मा.गु., डा. ८, वि. १८७०, पद्य, मूपू., (सरी संत जणेसरु नमता), ६२३७३-१ मानतुंगमानवती रास, उपा. अभयसोम, मा.गु., ढा. १४, वि. १७२७, पद्य, मूपू., (प्रणमुं माता सरसती), ५९८५४($) मानतुंगमानवती रास - मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., डा. ४७ गा. १०१५, वि. १७६०, पद्य, मूपू.. (ऋषभजिणंद पदांबुजे), ५९९१२(+), ५९९५८(*), ६००४३ (६) ६२४१२(+), ६२४१९(१), ६०३७३, ६२४५३(डा मानवभव दुर्लभता सज्झाय, नरसिंघदास, रा. गा. ९, वि. १८७९, पद्य, वे (दुलभ लाघो मानवभव का) ५९८७०-२ मिश्रदत्त चरित्र- दानविषये, मु. चोथमल, रा. गा. ११७, पद्य, श्वे. (आद जिनेश्वर हून), ६२०८८
,
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,
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मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (निलाडै कृष्णलेश्या १), ६१९१७-९(+)
मुनिपति रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., डा. ९३, गा. ४००५, वि. १७६१, पद्य, मूपू., (सकल सुख मंगल करण), ६००३३(+) मुनिमालिका स्तवन, ग. चारित्रसिंह, मा.गु., गा. ३६, वि. १६३६, पद्य, भूपू (ऋषभ प्रमुख जिन पय), ६०१७६-३(+३), ६२४९१(१७) मुनिसुव्रतजिन धमाल, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु. गा. ३, पद्य, मूपू (मुनिसुव्रत मेरो मन), ६२३७५-१३(०) मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु, गा. ७, पद्य, भूपू (केसर धनसार से पूजो), ६२१७२-४९(*) मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. केसर, पुहिं, पद्य, मूपू., (मुनिसुव्रतजिन बंदि), ६२१७२-४८
"
.
मुहपति पडिलेहण के २५ बोल, मा.गु., गद्य, म्पू, (सूत्र अर्थ साचो सद), ६००२५-८१ (४) ६१९१७-८(+) मुहपत्ति पच्चास ५० बोल, मा.गु., गद्य, म्पू, (सूत्र अर्थ तत्त्व), ६२६३२-७(+), ६२४८९-२
मुहूर्त मणिमाला, पा. रूपचंद्र गणि, मा.गु. ग्रं. १८९१. वि. १८२१, पद्य, मूपू (--), ६०५३२(+#5)
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,
मृगांकलेखा चौपाई. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., डा. ६२, वि. १८३८, पद्य, वे. (आवेसर जिन आददे चोवीस), ५९९५६ (+३) मृगापुत्र सज्झाय, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (दोगुंदुक सुरनी पर ), ६२४५६-२२ मृगावतीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ३ ढाल ३७, गा. ७४५, ग्रं. ११००, वि. १६६८, पद्य, मूपू., (समरु सरसति
सामिणी), ५९८४० (#$)
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मृषावादपापस्थानक सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, वि. २०वी, पद्य, मूपू., (असत्य वचन मुखथी नवि), ६०१६३-१३(+) मेघकुमार सज्झाय, मु. अमर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (धारणी मनावे रे मेघ) ६२४५६-१९ मेघकुमार सज्झाय, मु. पुण्यविजय, मा.गु., गा. २१. पद्य म्पू (वीरजिणंद समोसर्याजी), ६२९९५-२शन मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, रा., गा. २२, पद्य, श्वे., (वीरजिणंद समोसर्या जी ), ६२४५६-३ मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविजय, मा.गु, गा. ६, पद्य, मूपू., ( धारणी मनावे रे मेघकु), ६०११६-२०२०) मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( धारणी मनावे रे मेघ), ६००२५-२२ (+#) मेघरथराजा सज्झाय, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु गा. १५. वि. १९२९, पद्य, स्था. (सुधर्मी सभा समने), ६२२६६-३(+)
"
तारजमुनि चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. २०, वि. १८४९, पद्य, श्वे., (सासणनायक समरीये), ६०१६८($)
मेतारजमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, पुहिं. गा. १४, पद्य, मूपू., (समदम गुणना आगरु जी), ५९८६६-६ (+), ६०१६३-७(+४),
"
६२२६७-७(+)
"
मेरुत्रयोदशीपर्व कथा, मा.गु, गद्य, मोक्षसाधन प्रकार, मा.गु., गद्य, मूपू
भूपू (प्रणम्य भारतीं भक्त), ६२३४३ (द्रव्य१ क्षेत्र२ काल), ६०३७६-४(१)
मोहविवेक चौपाई, पं. धर्ममंदिर गणि, मा.गु., डा. ७६, वि. १७४१, पद्य, श्वे. (-), १९९२६-५ (+) मौन एकादशीपर्व कथा, रा. गद्य, म्पू, (सिरि वीरं नमिऊण), ६००१७-६(+)
मौनएकादशीपर्व देववंदन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, म्पू., (सकल नयर सिणगार हार), ६००७२-१(+) मौनएकादशीपर्व देववंदन, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (नगर गजपूर पुरंदर), ६००२१-३
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, म्पू., (सिरिवीरं नमिऊण), ६२०७९(+), ६२७७६(+), ६२३६२ मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. २५, वि. १७६९, पद्य, मूपू., (द्वारिकानयरी समोसर्य), ६२२०९-३(+),
६२३६५-४ मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., ढा. ३, गा. २८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रणमी पूछे वीरने), ६००२५-३१(+#) मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, म्पू., (भविकजन छंडीये विषय), ६२२४३-७८) मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १३, वि. १६८१, पद्य, मूपू., (समवसरण बेठा भगवंत), ६००२५-८६(+#),
६०१२५-३८(+), ६२२३७-१(+), ६२४२१-३६(+#), ६२४७५-५(+) मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजय, मा.गु., ढा. १२, गा. ६२, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (धुरि प्रणमुंजिन),
६२२६०-१ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एकादशी अति रुअडी), ६०९१४-७(+), ६१२०३-६(+),
६१६९४-८(#) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (अरनाथ जिनेश्वर), ६१९१७-४६(+) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नेमिजिन उपदेशी मौनएक), ६१६९४-१६(#) युगप्रधान स्तवन, मु. सौभाग्यविमल, मा.गु., ढा. २, गा. ३२, पद्य, मूपू., (एसादि वस्मेण पतंति), ६०४११-३(+) रत्नचूड चौपाई, मु. रत्नसिंहसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. ३४५, वि. १५०९, पद्य, मूपू., (सरसति देवी पाय नमी), ६२२०५-२(+$) रत्नचूड रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ३१, गा. ६३७, वि. १७५७, पद्य, मूपू., (प्रणमुं जिनवर पास), ६२४५८(+#) रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., खं. ४ ढाल ६६, गा. १३७२, वि. १७६०, पद्य, पू., (सकल श्रेणि में दुर),
६२१५५ रत्नसार रास-दानधर्म विषये, ग. देवेंद्रसागर, मा.गु., ढा. ७१, गा. १८६७, वि. १८६५, पद्य, मूपू., (श्रीजिन अमल कमल धवल),
६२४१४(+#) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (काउसग व्रत रहनेम), ६०१२५-२०(+) रथनेमिराजिमती सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ४०, पद्य, मूपू., (रहनेमि अंबर विण राजु), ६२१४१-९५(+) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हेतविजय, रा., गा.११, पद्य, मूपू., (प्रणमी सदगुरु पाय), ६२४५६-८ रात्रिभोजन चौपाई, उपा. सुमतिहंस, मा.गु., ढा. २४, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (सुबुधि लबधि नव निध), ५९९४०(+) रात्रिभोजन चौपाई, मा.गु., गा. २२८, पद्य, मूपू., (पणमि गोयम गणहर राय), ६२८६७-५(#$) रात्रिभोजन निवारण सज्झाय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (अवनितलि वारू वसइजी), ६२४५६-१७ रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., गा.१३, पद्य, मूपू., (पुण्यसंजोगे नरभव लाध), ५९५९०-२(+) राधाकृष्ण बारमासो, रतनासागर, पुहि., गा. १६, पद्य, वै., (पेलो रे महीनो सखी), ५९८७०-१४ राधाकृष्ण होरी गीत, पुहि., गा. ४, पद्य, जै.?, (कुंण खेले रंग होरी), ६००२५-७८(+#) राम रावण युद्ध पद, क. श्रीपति, मा.गु., गा. ३, पद्य, वै., (जुध तणां जयकार किरती), ६२२००-१(#) राम वनवास वर्णन, गोस्वामी तुलसीदास, पुहि., दोहा. ४, पद्य, वै., (लायो जल झारी सियाजी), ६०७९८-३ रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., समु. ७, गा. १६१७, ग्रं. ३३२५, वि. १७२०, पद्य, मूपू., (सिद्धबुद्धदायक सलहीय),
६०५६१(+#), ६०५६२-१(+), ६२६१४-१(+), ६०५५५, ६०६०८(5) (२) रामविनोद-हिस्सा नाडीपरीक्षा-नेत्रपरीक्षा, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (सुभमति सरसति समरियै),
६०५६२-२(+) राम स्तुति, गोस्वामी तुलसीदास, हिं., पद. ५, पद्य, वै., (श्री रामचंद्र कृपालु), ६०७९८-६५ रावण पद, मु. जवाहर ऋषि, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (रावण कुं समझावै रानी), ६००८९-५(#) रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (विचरता गामोगाम नेमि), ६२२६७-२४(+-) रुक्मिणी विवाह, शिशुपाल, पुहि., दोहा. ६, पद्य, वै., (पांच सात मिल भामणी), ६०७९८-१२
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रूपसेन रास, मु. महानंद, मा.गु., ढा. ७५, गा. २९४५, वि. १८०९, पद्य, श्वे. (श्रीऋषभादिक नित्य), ५९९१९(+$) रोहिणी कथा, मु. विनयचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ६, पद्य, श्वे., (सकल सुरासुर जेहने), ६००९५(#) रोहिणी चौपाई, मु. कर्मसिंह, मा.गु., ढा. २९, वि. १७३०, पद्य, मूपू., (जिनपय युग प्रणमियई), ६२४२४(+) रोहिणीत कथा, रा. गद्य, भूपू. (उच्छिम सुंदरयं), ६००१७-११(+)
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २
रोहिणीतप सज्झाय, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वासुपूज्य नमी स्वामी), ६२२४३-६ (-) लक्ष्मीचंदआचार्य भास, मु. केशरचंद्र, मा.गु., गा. ९, वि. १८७८, पद्य, मूपू., (सरसती तोने ध्यावुं), ६०१६७-५ लक्ष्मीचंद्रजी गीत, मु. हर मुनि, मा.गु., गा. ६, वि. १८४७, पद्य, मूपू., (सरसति सामण सहीया), ६०९६७-१२ लक्ष्मीचंद्रसूरि भास, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (गुण गाऊँ गछराजनां हे), ६०१६७-२
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लक्ष्मीचंद्रसूरि भास, मा.गु., गा. १२, वि. १८८१, पद्य, मूपू., (राज सरसति प्रणम्), ६०१६७-१३ लालकुमार कथा, मु. चेतनविजय, मा.गु गा. १७१, पद्य, मूपू. (देव धरम गुरु सेवकेा), ६२९८१(+)
"
लीलावती चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., ढा. २९, गा. ६१९, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (त्रेवीसमो त्रिभुवन), ६२५७० (+) लीलावती चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., ( श्रीआदिसर आददे प्रणम), ६००९८(+$)
लीलावतीसुमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., डा. २१, गा. ३४८, वि. १७६७, पद्य, मूपु. ( परम पुरुष प्रभु पास), ६२१९० (+), ६२२००-२२०, ६२३८८(०३), ६२४६७०७), ६२४७३(३)
वकचूल चौढालियो, मु. फतेचंद, मा.गु., ढा. ४, वि. १८८१, पद्य, स्था., ( पुर हथिणापति वंदी), ६२४७६-२ बच्छराज चौपाई, मु. विनयलाभ, मा.गु., खं. ४ डाल ६६, वि. १६३०, पद्य, मूपू. (परम निरंजन परमप्रभु), ६०१३५ (+) वच्छराजहंसराज चतुष्पदी, असाइत नायक, मा.गु., खं. ४, गा. ४३७, वि. १४१७, पद्य, मूपू., वै., (अमरावई समाणां पंखि),
"
६२२०५-१(+5)
वज्रस्वामी गहुंली, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सखी रे में कौतुंक), ६२३१८-५ (+)
(२) वज्रस्वामी गहुंली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वयरस्वामी ६ मासनै), ६२३१८-५ (+)
वज्रस्वामी सज्झाय, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु, गा. ९, पद्य, भूपू (कठै सुनंदा बांह पसार), ६२४५६-२३(३)
वर्णमाला, मा.गु, गद्य, श्वे. (अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लृ ६२६०६-१(७)
"
वर्तमानजिन चौवीसी द्वितीय ऐरवते धातकीखंडे, मु. ज्ञानसागर- शिष्य, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू.. (ऐरक्त बीजे सुख करु रे),
५९९८०-१७(#)
वर्तमानजिन चौवीसी- धातकी द्वितीयभरते, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, मा.गु. गा. ६, पद्य, म्पू, (वर्तमान जिनगण भलो), ५९९८०-६ (#) वर्तमानजिन चौवीसी- पुष्करार्द्ध द्वितीयभरते, मु. ज्ञानसागर - शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( वर्त्तमाने वृंद हवे), ५९९८०-११(#) वर्तमानजिन चौवीसी- पुष्करार्द्ध प्रथमभरते, मु. ज्ञानसागर - शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पुष्कर भरते पहिले), ५९९८०-८(#) वर्तमानजिन चौवीसी- प्रथम ऐश्वते, मु. ज्ञानसागर- शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू, (हां रे मारे अरिहा), ५९९८० १४१०१ वर्तमान जिननाम स्तवन- द्वितीय भरते, मु. ज्ञानसागर - शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (--), ५९९८०-१(#$) वर्तमानजिन नाम स्तवन- धातकी प्रथमभरते, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, मा.गु गा. ६, पद्य, मूपू (युगादि पहिला नमुं), ५९९८०-२ (४) वर्तमानजिन स्तवन- धातकीखंड द्वितीयभरते, मु. ज्ञानसागर - शिष्य, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (धातकी बीजे भरते नमुं),
,
"
५९९८०-४११
वर्द्धमान आचार्य गीत, श्राव. भैरु कवि, मा.गु., गा. १०, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (मोरी सजनी विवध वधावो), ६०१६७-७ वर्द्धमान आचार्य गीत, वरमो, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आज घणा आणंद है आवो), ६०१६७-११
वासुपूज्यजिन स्तुति, मा.गु. गा. ४, पद्य, मूपु. ( श्रीवासुपूज्य नरेसर) ६११३०-५०(१)
"
वासुपूज्यजिन होरी, मु. रतनसुंदर, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपू.. (ऐसी होरी तो हो रही), ६२३७५-१० (+)
"
"
विकथा सज्झायखियों के कथला, मु. महानंद, रा. गा. ४७, वि. १८१०, पद्य, वे विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., ढा. १७, ग्रं. ३२५, वि.
६२३३८
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(आठम पाखी परवना दिवसे), ६२१४१-८३(+) १७२४, पद्य, मूपू., (वीणा पुस्तक धारणी),
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
५८७ विक्रमराजा चौपई, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., खं. ६ ढाल ७५, गा. ३१६८, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (प्रणमुपासजिणद पय),
६०६१०(+5), ६२१४८(+) विक्रमराजा रास, मु. भाणविजय, मा.गु., ढा. १७४, गा. ५७९७, ग्रं. ७४४०, वि. १८३०, पद्य, मूपू., (अमल कमल सम नयन यूग),
६०१८०(+#), ६२१५६(+#$), ६२१६१(#S) विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., ढा. ६४, वि. १७२४, पद्य, मपू., (परम ज्योति प्रकास), ५९९०९(#) विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ५२, गा. ११६२, ग्रं. १६२४, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (सुखदाता संखेश्वरो),
६०१५१(+s), ५९९०७, ६०१४६(#), ६२४२६(#s), ५९९४१(६) विक्रमादित्य चौपाई, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु., ढा. २७, गा. ५८५, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (पुरिसादाणी प्रणमीइं),
६१६७३(+#$) विक्रमादित्य चौपाई, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., गा. ४६८, वि. १८२१, पद्य, मूपू., (सरस वचन द्यो सारदा), ६००३४(+#) विगयनिवियातादि विचार, रा., गद्य, मूपू., (दूध१ दहीर घृत३ तेल४), ६००२७-३८(+) विचाररत्नसार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ६२१४६(+) विचार संग्रह *मा.गु., गद्य, श्वे., (ठाणांगमाहिंत्रीजे), ५९५६२-३(+#) । विजयधर्मसूरि सज्झाय, मु. ऋषभ, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सासनदेवी पसायथी जोय), ६००२५-४०(+#) विजयप्रभसूरि सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (समरी वर सारद सूरी), ६००२५-४८(+#) विमलजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अमल विमलप्रभु मिलवा), ६०११६-३(#) विमलमंत्री श्लोक, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., गा. १०९, पद्य, मूपू., (सरसति समरूं बे करजोड), ६२३४९-१(#) विवाहपटल दोहा, मु. हीर, मा.गु., गा. १३४, पद्य, मूपू., (हरिसयणा धन मीन मलमास), ६०२९९-१ विविध विषय सार संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,मा.गु.,रा., गा. २५४, पद्य, श्वे., (वीन धरे कर दीन धरे), ६२३६८(#) विहरमान २० जिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सीमंधरस्वामी श्रीजुग), ५९६५७-५(+) विहरमान २० जिन स्तवन, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (वंदु मन सुध विहरमाण),
६०१२५-१३(+), ६२२१५-१(+) विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंचविदेह विषय), ५९५८९-१८(+#), ६००२७-१२(+), ६१०९७-२०(+#),
६११३०-१७(+), ६१८८६-४(+), ६१९१७-३४(+), ६२४७५-८(+), ६२६३२-३२(+#), ६०९१७-१३(-) विहरमानजिन चैत्यवंदन, मु. केसर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (रीषभांकित सीमंधरो गज), ६२१७२-३(-2) विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू., (मुज हीयडौ हेजालूवौ), ६२३८५-१(+) विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू., (पुखलवई विजये जयो रे), ५९८८७(#S) वीरता सज्झाय, पुहि., दोहा. ७, पद्य, श्वे., (अश्वटाप अरु रथ पहियो), ६००७९-४८ वीरता सज्झाय, पुहिं., दोहा. ८, पद्य, श्वे., (हम वीर की संतान है), ६००७९-२२ वृद्धविवाहनिषेध सज्झाय, पुहिं., दोहा. ८, पद्य, श्वे., (आए हम कन्यारत्न के), ६००७९-३५ वृद्धावस्था वर्णन सज्झाय, मु. रामरतनशिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (बालपणे तो हंस खेल गम), ६२२६६-१८(+-) वैयावच्च विचार-१३० बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (आचार्यरी वेयावच), ६१२५७-२(+) वैराग्य सज्झाय, मुहम्मद काजी, पुहिं., गा. ५, पद्य, (गाफल वंदे नीदडली), ५९८७०-२१ वैराग्य सज्झाय, शिव, मा.गु., गा. २३, पद्य, श्वे., (परमातम प्रणमी करी), ५९८७०-४ शतौषधि नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मोरशिखा सहदेवी तुलसी), ६०८९६-३ शत्रुजयतीर्थ १०८ खमासणाना दुहा, मु. कल्याणसागरसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. १०९, पद्य, मूपू., (श्रीआदिसर अजर अमर),
६२३५०(+$), ६२४४९ शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., ढा. १२, गा. १२०, ग्रं. १७०, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (विमल गिरिवर विमल),
६२०७६(+), ६२१४१-९१(+), ६२२४२(+#), ६२०९२, ६२२१६, ६००६९-५ (#$)
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५८८
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु, गा. ३, पद्य, भूपू (जय जय नाभिनरिंदनंद), ६११३०-५४(+), ६२६३२-११(+४), ६१९९५-१८(१)
शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल सिद्ध), ६००७४-२
शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (शत्रुंजय सिद्ध), ६२३५९-६(+#), ६०३५७-६ शत्रुंजयतीर्थ बृहत्स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३१, पद्य, म्पू, (बे करजोडी विनवुंजी), ६२३०७-१(+४),
६२४२१-३५ (+१३)
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शत्रुंजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरंग, मा.गु., डा. १०, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (विमलाचल बाहला बारु), ५९९७९-१, ५९८८४(#), ६२४४३(#)
शत्रुंजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु. डा. १०, वि. १८४०, पद्य, भूपू (जगजीवन जालम जादवा), ६२३४१(+),
+
६२३१६
शत्रुंजयतीर्थ रास उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु. दा. ६, गा. ११२, वि. १६८२, पद्य, भूपू (श्रीरिसहेसर पाय नमी), ६००८२-२ (+),
"
६२०७०
शत्रुंजयतीर्थ वर्णन, पुहिं., गद्य, दि., (अधानंतर जंबूद्वीप), ६०७४६-१२)
शत्रुंजयतीर्थ वेल, मु. उत्तमविजय, मा.गु., ढा. १३, वि. १८८५, पद्य, मूपू., (पासतणा पदकज नमी समरी), ६२३६१ शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु. गा. ७. वि. १८वी, पद्य, म्पू, (आंखडीवे रे में आज), ६००२५-२५/०१
,
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (ते दिन क्यारे आवसी), ५९८३५-२
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वनीता ते प्रीउने वीन), ५९८७८-९ (+#), ६०९१६-१०(#) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू, (शेडुंजानो वासी), ५९९९४-४(+१), ६०११६-३१(७) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल जे भेटावें), ६२१७२-४७(-#) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपु. ( करजोडी कहे कामिनी), ६२१४१-२९(+) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आज आपे चालो सहीयां). ५९९६१-११(०) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुण सुण शत्रुंजयगिरि), ६०१२५-४९(+), ६२३१५-५(+) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. जीवविजय, मा.गु., गा. ८. पद्य, भूपू (नमो नमो विमलगिरि नाम), ६२१७२-११-० शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (माहरुं मन मोह्यु रे), ६००२५- ६(+#), ६०११६-१७(#) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानसमुद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (हजीलू मन माहरो रे), ६००२५- ६०००) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (उंचा रे गढसेत्रुंज), ६२२००-३(#) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पंन्या पद्मविजय, मा.गु. गा. १०, पद्य, भूपू (यात्रा नवाणु करीए), ६२२३७-५ (+), ५९९६१-१०-०) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. मलूकचंद, मा.गु., गा. ५, वि. १८२५, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुंजगिरीनी), ६२२४५-३
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू. (विमलाचल सिर तिलो), ६०१२५-५९(०), ६०४७६- ३(०) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु, गा. ९, पद्य, मूपू., (जी रे मारे श्रीसिद्ध), ६००७४-५
७.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. १०, वि. १८७८, पद्य, मूपू (चालो सखी सिद्धाचल), ६००७४- १(३) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., ( श्रीसीद्धाचल मनोहारी), ६००७४-१३ शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. वल्लभ, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीसोरठदेशे सोहतां), ६२२४४-१९(+$) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. विनय, मा.गु. गा. १०, पद्य, म्पू, (आदिजिणंद नमो जयकारी), ६००२५-६१+०)
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (पय पणमी रे जिणवरना), ६०१२५-६ (+), ६२४२१-३३(+#) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन- आदिजिन, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (सेडुंजा रलीआमणो), ६२३६४-३(०) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन- पुंडरीकगिरि, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सोरठ देस सोहामणो), ६००७४-६
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
५८९ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजयमंडण), ५९५८९-१६(+#), ६००२७-१७(+), ६१०९७-२१(+#),
६११३०-३८(+), ६१५७६-२९(+#), ६१८८६-१८(+), ६१९१७-३६(+), ६२४२१-१०(+#), ६२६३२-४७(+#), ६११९५-३८(#),
६१६९४-१०(#), ६०९१७-७-) शत्रुजयतीर्थस्तुति, पुहि., गा.४, पद्य, मूपू., (आगे पूरव वार नीवाणु), ६१५७६-१३(+#) शनिश्चर चौपाई, पंडित. ललितसागर, मा.गु., गा. ४७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सरसती सामिणी मन दियो), ६२३७८-२(#S) शनिश्चर छंद, खेतल, मा.गु., गा. ६, पद्य, वै., (बाहण महिख बडाला), ६०५८८-५(+#) शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (अहि नर असुर सुरपति), ६०५८८-४(+#) शनिश्चर छंद, मा.गु., गा.१६, पद्य, वै., (छायानंदन जग जयो रवि), ६२४७९-८(+), ६२१६४-८८) शनीचर कथा, मा.गु., गा. १६७, वि. १८२०, पद्य, वै., (सरसति समरु मोरी), ६०५८८-१(+#) शांतिकपूजा विधि, पुहिं., गद्य, मूपू., (प्रथम शुभ दिन शुभ), ६२२९७(+) शांतिजिन आरती, सेवक, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (जय जय आरती शांति), ६०१४९-२(#) शांतिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सोलम जिनवर शांतिनाथ), ६११३०-५५(+), ६२६३२-१२(+#),
६११९५-१९(#) शांतिजिन रास, मु. रामविजय, मा.गु., खं. ६, गा. ६९५१, वि. १७८५, पद्य, मूपू., (सकल श्रेयवरदायिनी), ६०१७८(+$) शांतिजिन विज्ञप्तिका-गुरुचतुष्कनाम गर्भित, पं. शीलशेखर गणि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सिरिअइरादेवी तणय),
६२९०८-५६(+) शांतिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अचिरानंदन वंदना रे), ५९९९४-१५(+#) शांतिजिन स्तवन, पं. कांतिविमल, मा.गु., गा. ८, पद्य, पू., (संति जीनेसर मूरति), ५९९९४-११(+#) शांतिजिन स्तवन, आ.कीर्तिसूरि, पुहिं., गा. १२, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (सकल मुरत श्रीशांतिजि), ५९६११-३ शांतिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (शांतिजिन सेवोरे के), ६२१७२-४(-#) शांतिजिन स्तवन, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, पुहि., गा. ९, वि. १८६९, पद्य, म्पू., (शांतिजिनेसर सोलमो रे), ६२३६३-९५ शांतिजिन स्तवन, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शांति जिनेश्वर साचो), ६२३६३-७ शांतिजिन स्तवन, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (दउद्र हरिदीपे जोता), ६२३६४-४(+) शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (शांति जिनेश्वर साहिब), ६००२५-१(+#), ६०११६-१६(#) शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सोलमा श्रीजिनराज उलग), ६२१४१-७७(+) शांतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हम मगन भए प्रभुध्यान), ६२३६३-४२ शांतिजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (चित चाहत सेवा चरण), ६२२४५-५, ६२३६३-४४ शांतिजिन स्तवन, वा. हर्षधर्म, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (सूरज ऊगमतइ नमुसंती), ६२३५९-२(+#) शांतिजिन स्तवन-अष्टभयनिवारण, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., गा. २३, वि. १७२०, पद्य, मूपू., (जगनायक जिनवर पुहवी),
६०१२५-६५(+) शांतिजिन स्तुति, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सयल सुरासुर सेवित), ६१८८६-२५(+) शांतिजिन हालरई, मु. चौथमलजी, मा.गु., गा. ५, पद्य, स्था., (सर्वार्थसिद्ध थकी), ६०७९८-३८ शांबप्रद्युम्न लावणी, मु. नंदलाल शिष्य, पुहि., गा. २९, पद्य, श्वे., (ए प्रजन कुवर का स्या), ६००८९-३(#) शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., ढा. २९, गा. ५१०, वि. १६७८, पद्य, मूपू., (सासननायक समरियै), ५९८३६(+),
५९९२०(+-5), ५९८२९, ६२२०२(#$) शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ३६, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (प्रथम गोवालिया तणे), ६२१९५-३(#$) शास्वतजिनबिंब स्तवन, श्राव. देपाल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (भुवन विसात कोडी लाख), ६२४४४-५(+) शीतलजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (नंदा नंदन वंदन कीजै), ६२१७२-६४(-2)
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५९०
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ शीतलजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ११, वि. १८२७, पद्य, मूपू., (भविजन वंदो रेशीतल), ६०१२५-४८(+),
६२३१५-१३(+) शीतलजिन स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शीतलजी सहजानंदी थयो), ६००७७-८(+) शीतलजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (निजरी भरी जोवो कयु), ५९८७८-११(+#) शीतलजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सीतलजिन सहेज सुरंगा), ६००२५-८२(+#) शीतलजिन स्तवन-अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., गा. १५, पद्य, मूपू., (मोरा साहेब हो), ६०४७६-२(+),
६२४२१-३९(+#) शीतलजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (त्रिभुवन जननायक दायक), ५९७६५-३(+#), ६११३०-४१(+),
६१८८६-२६(+), ६१९१७-२७(+), ६२३५९-४(+#$) शीतलजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा.४, पद्य, मूपू., (सुख समिकित दायक कामि), ६११३०-२८(+), ६१८८६-९(+),
६१९१७-२८(+), ६१९१७-४४(+) शीयलव्रत पद, पुहिं., दोहा. ४, पद्य, श्वे., (पहनो पहनो री सवा मन), ६००७९-१६ शीयलव्रत रास, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., गा. ६४, पद्य, मूपू., (शीलरतन जतने धरौ छंडी), ६०१२५-३०(+) शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. ६८, ग्रं. २५१, पद्य, मूपू., (पहिलुं प्रणाम करूं), ६००८२-१(+) शुकबहोत्तरी कथा, मु. रत्नसुंदरसूरि, मा.गु., कथा. ७२, गा. २४०१, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (सयल सुरासुर माया), ६२४०७ श्यामसुंदर होली पद, बाल, मा.गु., गा. ५, पद्य, वै., (रासे फागुन मस्त महिन), ६२३७५-२९(+) श्रावक ११ प्रतिमा विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिली प्रतिमा मास १), ६२८६९-१ श्रावक २१ गुण सवैया, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., (लज्जावंत दयावंत), ६२७०९-३ (२) श्रावक २१ गुण सवैया-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (अकार्य करतो लाजइ), ६२७०९-३ श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलो मनोरथ समणोपासण), ६२१४१-३१(+), ६०४९७-२ श्रावक अतिचार आलोयणा चौपाई, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ५९२६७(+#$) श्रावक आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम इरियावहि पडकमी), ६२२७६-१(+) श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (श्रावक तुं उठे परभात), ६००७७-२(+), ६२२६४-५, ६२८६७-३(#),
६२१६४-१८) श्रावक देवसिक आलोचणासूत्र, पुहि., गद्य, मूपू., (७ लाख प्रिथवीकाय ७), ६०४४०-३ श्रावकव्रत १२४ अतिचार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानना ८ दर्शनना ८), ६२२७१-२(+) श्रावकाचार प्रश्नोत्तर, श्राव. बुलाकीदास, पुहिं., अधि. २४, गा. २२५९, पद्य, दि., (सिद्धं संपूर्ण भव्या),६०७०५(#) श्रीकृष्ण पद, मीराबाई, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (द्रौपद आवत सीत प्रीत), ६०११६-२५ (#) श्रीकृष्ण पद, सूरदास, ब्र., गा. ४, पद्य, वै., (उभजी तो जलफारेसूल),६०११६-२६(#) श्रीकृष्ण पद, पुहिं., पद. ३, पद्य, वै., (मनमोहन छैल विहारी), ६०७९८-६४ श्रीपालराजा चरित्र*, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ६००१६(+$) श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ३२३, वि. १५३१, पद्य, मूपू., (करकमल जोडि करि सिद्ध), ६००४० श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ४०, गा. ७५६, ग्रं. ११३१, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर जेहना), ६०१०२(#$) श्रीपाल रास, मु. तत्त्वकुमार मुनि, मा.गु., ढा. ५, पद्य, श्वे., (आदिपुरुष आदीसरू आदि), ६२२२८ श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४१, गा. १८२५, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (कल्पवेल
कवियण तणी), ५९८१८(+5), ५९८२०(+), ५९८२२(+$), ५९९०५(+), ५९९०८+#), ६०१३८(+8), ६०१३९(+#), ६०१८३(+#), ६०३७८(+), ६११३६(+$), ६१८५९(+$), ६२१४३(+), ६२४१७(+$), ६२४१८(+#), ६२४५०(+), ५९९१५, ५९९११(#),
६२०९३() (२) श्रीपाल रास-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५९९०८+#)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
(२) श्रीपाल रास - बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६२१४३(+)
(२) श्रीपाल रास-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (त्रीजो खंड पूरो थयो ), ६२१४३ (+$), ५९९१५
श्रीपाल रास-बृहद्, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ४९, गा. ८६१, वि. १७४०, पद्य, मूपू., (अरिहंत अनंतगुण धरीये), ६२२८१(+), ६२४१६ (००), ६००२३-१(०), ५९९६३(३), ६०००८ (5)
श्रीपाल विनती स्तुति, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे. (ॐ नम सिधे मनधरि संत), ६१८७६-५८(+)
""
श्रेणिकराजा रास, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., ढा. ८४, ग्रं. ३२५०, वि. १९३९, पद्य, मूपू., (जे जे जे जिन जग गुरु), ६००३०(+) श्वासोश्वास विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, भूपू (सासउसास धाय एक मुहर), ६१६७८-२(+)
षड्द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्मास्तिकाय १ अधर्म), ६०१७४-२ (#)
षड्भाव प्रकाश सज्झाय, उपा. ज्ञानसागर, मा.गु., डा. ९, गा. ८२, वि. १७७८, पद्य, थे. (श्रीसद्गुरुना प्रणमी) ६२९७७-६(४) संभवजिन पद, मु. बाल मुनि पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (गारी दई लाख नमे), ६२३७५-३१(+) संभवजिन पद, मु. बाल मुनि पुहिं., गा. ३, पद्य, वे. (या कुमता मेरी बैरन), ६२३७५-२५ (+), ६२३७५-२८(क) संभवजिन स्तवन, मु. मान, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभुजी संभव स्वामी), ६०११६-१(#)
संभवजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १७३०, पद्य, मूपू., (संभव जिनवर विनती), ६२३४५-७(s) संभवजिन स्तवन, मु. सुगुण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (संभवजिन अरज सुणो मेर), ६२३७५-१५ (+) संभवजिन स्तवन, मु. सुगुण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (संभव जिन सुखकारी हो), ६२३७५-१४(+) संभवजिन स्तवन- धाणसामंडण, मु. विनय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रणमो भवियां जिनवर), ६००२५-९(+#) संयमश्रेणिविचार स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. २, गा. २१, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीगुरुना), ६०९३९-१(+) (२) संयमश्रेणिविचार स्तवन- बालावबोध, मा.गु, गद्य, मूपु. ( सच्चामि वुडिणं), ६०९३९-२ (०)
,
(२) संयमश्रेणिविचार स्तवन - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऐंद्रवृंदनतं नत्वा), ६०९३९-१(+)
יי
संयुक्त वर्णमाला के ५ प्रकार, मा.गु., पद्य, (क्क क्ख ग्गग्घ ङ), ५९७३२-२ (+#)
संवर सज्झाय, मा.गु गा. ६, पद्य, भूपू (बीर जिणेसर गौतमने) ५९८६७-३
"
संवेगी चौढालियो, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ४, गा. ७३, पद्य, मूपू., (सुद्ध संवेगी किरिया), ६२२५३
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सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (प्रवचन अमरी समरी), ६०११०-६(+#), ६०११४-५(+), ६०१२५-८(+), ६२१४१-५५ (+)
सज्जन पद, मु. कवियण, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (दलडे दीजी केहने जी), ६००२५-८० (+#)
सदारंग आचार्य गीत, मु. खेमदास, मा.गु., गा. १०, वि. १७३२, पद्य, श्वे. (आज मनोरथजी माहरा सहू), ६०१६७-८
सदारंगजी गीत, मु. रहिवास शिष्य, मा.गु, गा. ९, पद्य, मृपू (सारवदेवी सुखकारी), ६०१६७-६
सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १६, वि. १७५१, पद्य, मूपू., (सुरनर परसंशा करे ), ६२२६७-८(+) सप्तनय रास, मु. मानविजय, मा.गु., ढा. १५, गा. १८५, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुचरणकमल), ६०१०४(+#)
(२) सप्तनय रास - टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (नत्थि ण्णएहि विहणं), ६०१०४ (+#) सभाशृंगार, मा.गु., गद्य, भूपू ( जीव अजीव पुन्य पाप), ६०५७६-१(+) सभाश्रृंगार वचन चातुरी मा.गु., पद्य, म्पू, (नाभिनंदन सकल जगत्त्र), ६२७११(०)
समवसरण १२ पर्षदा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पूर्व दिसिने बारणे), ६२३९३(+)
समवसरण स्तुति, मु. जयत, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मिलि चीविह सुरवर) ५९७६५-५(४) ६००२७-३६०), ६१८८६-८(०), ६१९१७-४३(+)
सम्मेतशिखरतीर्थ पद, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., गा. ३, पद्य, मृपू., (मधुवन में जाय मची रे). ६२३७५-२१(+)
"
सम्मेतशिखरतीर्थ रास, मु. बालचंद, मा.गु. वि. १९०७ पद्य, मूपू (वांदी वीस जिनेसरू), ६२३७० (+)
सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, मु. कल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पूरव दिसे दीपतो), ६११३०-६१(+), ६२४२१-२२(+#), ६२६३२-१८(+), ६११९५-२३(१
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
सम्यक्त्व १० बोल, मा.गु, गद्य, भूपू (हेयर ज्ञान२ उपादेव३) ५९६५७-१०११)
"
सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १२, गा. ६८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुकृतवल्लि कादंबिनी),
५९८७८-१(+#), ६२२५९ (+), ६२१७७-१
,
,
सम्यक्त्व के ९ भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (द्रव्य समकित भाव), ६०३६८-४
"
सम्यक्त्वकौमुदी चौपाई, मु. आलमचंद, मा.गु., खं. ६. ग्रं. ५५००, वि. १८२२, पद्य, भूपू (वीर जिणेसर चरण युग), ५९८१७(+) सम्यक्त्व पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (जागे सौ जिनभक्ति), ६२३६३-९, ६२३६३-२०
सम्यक्त्व विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., ( एहवे शिष्य हाथ जोडने), ५९८७१-१
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सम्यक्त्व विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५९९३४(+$)
सम्यक्त्व षट्स्थान चौपाई, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., अ. १२५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., ( वीतराग प्रणमी करी), ६२३५२(+) सम्यक्त्व सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, पुहिं. गा. ५, पद्य, मूपू (जबलगे समकित रत्नकुं), ५९८३५०७
सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (सरस वचन समता मन ), ६२१६४-९(-)
सर्वज्ञजिन स्तवन, मु. विनय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभुजि सू लागे), ६००२५-१०(+#)
सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, म्पू, (जगदानंदन गुणनौलो रे), ५९८३५-१३, ५९९७९-२ सहजानंदी सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु. गा. ११, वि. १९वी पद्य, मृपू (सहजानंदी रे आतीमा), ६२१४१-३०(+)
सागरोपम पल्योपम विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (च्यार गाउनो कुओ), ६१२०१ -२(+)
साज श्रृंगार परिहार सज्झाय, मु. गुरुदास, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (जाय मिजाजी जोबन को), ६००७९-४५
יי
सातव्यसन सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ४, गा. १७, पद्य, मूपू., ( पर उपगारी साधु), ६००७७-२१(+$) साधारणजिन जन्मकल्याणक स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., ( में जिन मुख देखण जाउ), ५९८३५-८ साधारणजिन पद, मु. केसर, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (साहेब सुरत पिंजार), ६२१७२-५६ (#), ६२१७२-६७(-#) साधारणजिन पद, मु. जगतराम, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., ( कैसैं वस करिये ऐसे), ६२३६३-४५ साधारणजिन पद, मु. जगराम, मा.गु., गा. ४, पद्य, स्था., (पूजो चरन जिनेश्वरजी), ६२३६३-७५ साधारणजिन पद, मु. ज्ञानसागर, पुडिं, गा. ३, पद्य, मूपू. (मेरो पीया पर संग रमत ), ६२३७५-५३(+) साधारणजिन पद, मु. दौलत, पुहिं. गा. ३, पद्य, भूपू (सरण जिनराज तेरी हो), ६२३६३-५८
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साधारणजिन पद, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जिनराज हमारे दिल), ६०११६-२२ (#) साधारणजिन पद, मु. भूधर, पुहिं. गा. ४, पद्य, थे. मै तो तेरी आज महिमा), ६२३६३-५० साधारणजिन पद, मु. मोहनविजय, मा.गु, गा. ८, पद्य, म्पू, (क्युं जिन भक्ति), ६२३६३-१९ साधारणजिन पद, मु. रामदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (नयना सफल भए प्रभु), ६२३६३-६६ साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (देव निरंजन भव भव), ६००२५-४२(६०), ६०९१६-१५(४) साधारणजिन पद, मु. वखता, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (तारण तरण जिहाज प्रभु), ६२३६३-४० साधारणजिन पद, रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (अनी में निसदिन ध्याव), ६२३६३-४९
साधारणजिन फाग, मु. चंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (ऐसी होरी में प्रीतम), ६२३७५-११ (+) साधारणजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (देखो रे जिणंदा प्यार), ६२३६३-६० साधारणजिन स्तवन, मु. कनककुशल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिनकी अंग प्रभा उमा), ५९८७८-२३(+#) साधारणजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (में कलंकी कलंकी हो), ६२१७२-६६(#) साधारणजिन स्तवन, मु. केसर, पुहिं. गा. ७, पद्य, भूपू (श्रीजिनराज दवाल प्रभ), ६२१७२-६९(*) साधारणजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा. ६, वि. १९१०, पद्य, मूपू., (हुं स्तेयि हुं स्तेय), ६२१७२-६५ (-#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (जब जिनराज कृपा होवे), ५९८७८-२४(+#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (जिनराज जुहारण जास्या), ५९९९४-३(+#) साधारणजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, पुहिं. गा. ५, पद्य, भूपू. में मतवाला जिनका), ५९८३५-६
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
५९३ साधारणजिन स्तवन, मु. रामरतन, पुहि., गा. ९, पद्य, स्था., (भावधरी जीन पुजीये),५९८७०-३४ साधारणजिन स्तवन, मु.रूपचंद, पुहि., गा. ८, पद्य, मूपू., (मिलवो जुग जोर कठिन), ६०११६-२८(#) साधारणजिन स्तवन, पुहिं., दोहा.८, पद्य, दि., (आबत श्रीभगवंत जिहां), ६०७४६-१४) साधारणजिन स्तवन, पुहि., गा. ६, पद्य, भूपू., (ऐसे प्रभुजी कुं ध्या), ६२३६३-७७ साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चंपक केतकी पाडल जाई), ६२४२१-५(+#), ६२६३२-४६(+#),
६०९१७-११-) साधारणजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मिल चौविह सुरवर विरच), ६११३०-२९(+) साधारणजिन होरी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (दर्शन बिन जीव संसार), ६२३७५-२०(+) साधु आचार सज्झाय, मु. रूपचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ६, वि. १८२०, पद्य, स्था., (पहिला अरिहतने नमु), ५९९२६-१(+) साधुगुण गहुंली, मु. गौतमसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आव्या मुनि संजमना), ६२१४१-१०(+) साधुगुण गहुंली, मु. जीव-शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हु वलिहारी रे जाउ), ६२१७२-५१(-2) साधुगुण सज्झाय, मु. आसकरण, पुहिं., गा. १०, वि. १८३८, पद्य, श्वे., (साधुजीने वंदना नीत), ६२२६६-१४(+-) साधुगुण सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पांचे इंद्री रे), ६०१२५-१९(+) साधुप्रायश्चित विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानना अतिचार कहै), ६०३७६-९(#) साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., ढा. ७, गा. ८८, पद्य, मूपू., (रिसहजिण पमुह चउवीस), ६२४४६-१(+#), ६२८८६(+), ५९९८४ साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., ढा. १३, गा. ३७७, पद्य, मूपू., (पंच भरत पंच एरवय), ६२३५६-१(+), ६००४४ साधुवंदना बडी, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. १११, वि. १८०७, पद्य, स्था., (नमुंअनंत चोवीसी), ६००००(#) साधुवंदना लघु, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. ५९, वि. १८०७, पद्य, श्वे., (नमुं अनंत चोविसी), ६२०७८-१(+), ५९८९८ साधु समाचारी, पुहि., समु. २८, गद्य, मूपू., (तिणकाल तिणसमैं के), ६२२९४(+) सामायिक चौपाई, मा.गु., पद्य, श्वे., (सारद भगवंत नमी करी), ६००८१(+$) सारविचार चौपाई, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ६००५१(#$) सिंहासनबत्रीसी कथा, मा.गु., कथा. ३२, पद्य, श्वे., (पंचाख्यान इसु कहइ), ५९८६१(#$) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. मोहन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र महामंत्र), ६२२४४-१५(+) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. शांतिविजय शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पहेले दिन अरिहंतनु), ६२२४४-१४(+) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र आराधतां), ६२१४१-४६(+) सिद्धचक्र नमस्कार, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा.६, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत उदार कांत), ६११३०-५९(+), ६१८७६-३९(+#),
६२४२१-२३(+#), ६२६३२-२६(+#), ६११९५-२९(#$) सिद्धचक्र पद, ग. क्षमाकल्याण, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (धन नवपद से रंग मेरे), ६२३६३-७० सिद्धचक्र पद, मु. जिनचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (ध्याइये सिद्धचक्र), ६२३६३-६८ सिद्धचक्र स्तवन, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (समरी सारद माय प्रणमी), ६२१४१-३४(+) सिद्धचक्र स्तवन, ग. क्षमाकल्याण, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र भजौनी), ६२३६३-६९ सिद्धचक्र स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सुरमणि सम सहू मंत्र), ६००६२-२ सिद्धचक्र स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र वर सेवा), ६१२४७-२ सिद्धचक्र स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. २५, पद्य, मूपू., (जी हो प्रणमु दिन), ५९९७९-३ सिद्धचक्र स्तवन, मा.गु., पद्य, म्पू., (सरसति सामणि मनि समरी), ६२४७९-९(+$) सिद्धचक्र स्तुति, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८उ, पद्य, मूपू., (पहिले पद जपीइ अरिहंत), ६०६९८-४ सिद्धचक्र स्तुति, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जगनायक दायक सिद्ध), ६००२७-२८(+) सिद्धचक्र स्तुति, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रणमंत सुरनर पाय), ६००२७-२६(+) सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (समरु सुखदायक मन), ६१९१७-४७(+), ६२६३२-५१(+#)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २
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सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु गा. ४, पद्य, भूपू (निरुपम सुखदायक), ५९७६५-२(+), ६००२७-२१ (५), ६१०९७-२३(१), ६११३०-३३(+), ६१५७६-१७(+०), ६१८८६-११(+), ६१९१७-२३(+), ६२३५९-५ (+), ६२६३२-५०/क्त), ६००६२-४ ६१९९५-३६(४), ६०९१७-१६(-)
सिद्धपद स्तवन, मा.गु गा. १३, पद्य, मूपू (जगतभूषण विगत दूषण), ६२२४४-१०+)
सिद्धांतसारोद्धार, मा.गु., गद्य, मूपू. (प्रथम जंबूद्वीपविचार), ६०६९६ १(+)
सीतासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (छोडी हो पीया छोड), ६२१७७-७
सीतासती सज्झाय - शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू (जलजलती मिलती घणी रे) ६००२५-२३(+) सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वंदुं जिणवर विहरमाण), ६२४२१-२१(+#), ६२६३२-१७(+#) सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ३, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर वीतराग), ६२२४४-१७(+), ६०३५७-३ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (श्रीजगनायक सुरतरु मन), ६२४४४-३(+) सीमंधरजिन दूहा, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू (अनंत चोवीशी जिन नमुं), ६२३५९-७(+ सीमंधरजिन प्रार्थना स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (शत्रुमित्र समचित्त), ६००७२-२ (+)
सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., डा. १७, गा. ३५०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर
साहिब), ५९९९० (+), ६११७८(+), ६१८५०(+), ६२१७९
(२) सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन- ३५० गाथा - बालावबोध, क. पद्मविजय, मा.गु., ढा. १७, वि. १८३०, गद्य, मूपू., (पार्श्वनाथपदद्वंद्वं), ६१८५० (+)
(२) सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन- ३५० गाथा - टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ग्रं. १२०१, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीपार्श्व), ६११७८ (+5)
सीमंधरजिन विनती स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं. गा. ५, पद्य, मूपू., (सीमंधर विनती सुणि), ५९८७८-५(00)
सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सफल संसार अवतार हुं), ६०१२५-३७(+), ६२३१५-३(+),
६२४२१-२७(+३३), ६२४७५-१(+), ६२४७९-१(०), ६२८६६-२(+)
सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., डा. ११, गा. १२५, ग्रं. १८८, वि. १८वी, पद्य, मूपू.,
(स्वामी सीमंधर विनती), ६०७१०+), ६१२४७-१, ६२२३०(१)
सीमंधरजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर साहिबा रे), ६२१७२-२५ (-#)
सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुगुण सनेही साजन ), ६२४७५-१३(+)
सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पुक्खलवह विजये जयो र) ६०११६- ९(१) सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू (पुष्कलवर विजये जयो), ६०३५७-४,
६२३६५-१
सीमंधरजिन स्तवन, मु. रूप, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (हा रे ओला चांदलिया), ६००७७-१९(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू. ( श्रेयांसनंदन स्वाम स), ५९९९४-१२(४)
सीमंधर जिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., ढा. ७, गा. ४०, पद्य, मूपू., (सुणि सुणि सरसती भगवत), ५९९९४-१४(+#) सीमंधरजिन स्तवन- आत्मनिंदाएकत्रीसी गर्भित, मु. केसर, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर साहेब सुण), ६२१७२-१२(#),
६२१७२-५९(#)
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सीमंधरजिन स्तवन- बृहत् वा. पद्मराज, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू (महियल महिमावंतु ए), ६२४२१-४० (+०) सीमंधरजिन स्तुति, मु. कांतिविजय, मा.गु, गा. ४, पद्य, मृपू. (सीमंधर जिनपति विनति), ६००७२-३ (+) सीमंधरजिन स्तुति, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मनसुध वंदो भावै भविज), ६२६३२-३०(+#) सीमंधरजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सीमंधर जिनवर सुखकर), ६०३५७-५ सीमंधरजिन स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर मुजनेवाला), ६२४४४-४(+) सुंदरीसतीतप सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू (सरस्वती स्वामिनी), ५९८७८-२८(+४)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१५
सुगणबत्तीसी, ग. रुघपति, मा.गु., गा. ३२, वि. १८८६, पद्य, मूपू., (सुगण बूढापो आवियो लख), ६०१२५-२९(+) सुगुरुपच्चीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २५, पद्य, म्पू. (सुगुरू पिछाणो एणे), ६२२६७-३२+३)
सुभद्रासती पंचढालीयो, मु. विनयचंद, मा.गु., ढा. ५, वि. १८७०, पद्य, स्था., (सिवदायक लायक सदा), ५९९०२(#) सुभद्रासती सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु, गा. २१, पद्य, मूपू (मुनिवर सोधइ ईरजा), ६०११०-३ (+४), ५९८७०-१३ सुमतिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (निरखत बदन सुख पायो), ६२३६३-१२
सुमतिजिन समवसरण गीत, ग. जीतविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज हुं गइती रे समवसर), ६००२५-२६(+#) सुमतिजिन समवसरण गीत, मा.गु. गा. ८, पद्य, खे, ( आज हुं गइवी समोसरणमे), ५९८७०-२७
सुमतिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( हो साहेब सुमति जिनेश), ६२१७२-६८(#)
सुमतिजिन स्तवन, मु, मान, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू.. (सुमतिजिनेसर साहिब) ६०११६.७/०१
सुमतिजिन स्तवन १४ गुणस्थानविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., डा. ६, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (सुमतिजिणंद सुमति), ६०१२५-१४(+), ६२०७४-२(+), ६२२१५-२(+), ५९९७४-१(३)
सूतक विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., ( जेहने गृह मध्ये जन्म), ६२१४१-१(+)
सूतक सज्झाय, आ. पुण्यसिंधुसूरि, मा.गु. गा. ३३, वि. १९७६, पद्य, म्पू, (सरस्वतीदेवी समरु), ६०११४-७(+)
सुमतिजिन स्तवन-पिंडस्थध्यान गर्भित, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (रूप अनुप निहाळी सुमत), ५९८७८-१९(+#)
"
सुविधिजिन पद, मु. कनककुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू (मुजरा साहिब मेरा रे), ६००२५-४५ (+) सुविधिजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( दीठो सुविधि जिणंद), ६२४००-११००) सुविधिजिन स्तवन, मु. मान, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुविधिजिनेश्वर साइया), ६०११६-२(#) सूतक विचार, मा.गु, गद्य, मूपु (पुत्र जन्म्यां १०) ६२१७२-७० (-)
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सोजत गजल, रा. गा. ७२, पद्य, मूपु. ( हे लो मारियो जी), ६२२५६-१
,
स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., स्त. २४, वि. १८पू, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम), ५९८२५ (+), ५९९४२(+#$),
६२३०७-२(+#), ५९८३५-१, ५९९२१, ६००६२-५, ६२२१७-१, ६२३६९ (#$)
(२) स्तवनचौवीसी-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (चिदानंदमय जिनवरु सदा), ५९९२१ ($)
(२) स्तवनचौवीसी-टवार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. ग्रं. ८२८, गद्य, मूपू. (आनंदघनस्यास्वा गीत), ५९८२५ (+), ६२३६९ (५३),
५९९२१(३)
स्तवनचौवीसी, मु. कांतिविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, भूपू (सुगुण सुगुण सोभागी), ६२१७३ १, ५९८८२ (०) स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., स्त. २४, वि. १७७६, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणिंदसु प्रीतडी), ६२३३३ (#)
स्तवनचौवीसी, उपा. मानविजय, मा.गु., स्त. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणंदा ऋषभ), ६२०७१, ६०१११(#$)
स्तवनचीवीसी, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु स्त. २४, पद्य, मूपू (ऋषभ ऋषभ जिणंद निरखी), ६२१७३-२
"
יי
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स्तवनचौवीसी, मु. मोहनरुचि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (श्रीऋषभ जिणेसर साहिब), ६०७५९(#)
स्तवनचौवीसी, मु. मोहनविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., ( प्रथम तीर्थंकर सेवना), ६२२९६ (+)
स्तवनचीवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २४, गा. १२१, वि. १८वी, पद्य, म्पू, (जगजीवन जगवालहो), ५९७१६ (+४),
६२२०६) ६२४८५ (०३)
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स्तवनचीवीसी, मु. लाधो साहा, मा.गु., स्त. २४, वि. १७७९, पद्य, श्वे. (प्रभुजी आविसर अरिहंत), ५९८६३(+)
"
स्तवनचौवीसी, श्राव. विनयचंद्र गोकलचंद कुमट, मा.गु., स्त. २४, वि. १९०६, पद्य, श्वे. (श्रीआदिश्वर सामी हो), ६०१०७(+#$),
६२३५६-३(+)
स्तवनचीवीसी, मु. हर्षचंद, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (उठत प्रभात नाम जिनजी), ६२२०८ (+) स्तवनवीसी, मु. ज्ञानसार, मा.गु, स्त. २०, पद्य, थे. (किम मिलिये किम परचिव), ६०१७० (+) स्तवनवीसी - अतीत, मु. देवचंद्र, मा.गु., स्त. २१, पद्य, मूपू., (जिणंदा तारा नामथी), ६२३२५ (#$)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ स्थूलिभद्रमुनि नवरसो ढाल व दूहा, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७४, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (सुखसंपति
दायक सदा), ५९८६६-१०(+) स्थूलिभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. १८, वि. १८६२, पद्य, म्पू., (सयल सुहंकर पासजिन), ६००७१-१(+#),
६२२२५(+), ५९९८३, ६२०७५, ६२३१०(#) स्नात्रपूजा, श्राव. वच्छ भंडारी, मा.गु., गा. ७०, पद्य, मूपू., (पवित्र धोती पेरी रे), ६२३७८-१(#$) स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ८, गा.६०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चोतिसे अतिसय जुओ वचन), ६२२०३-२(+),
६२३५९-११(+#), ६२४३६(+#), ६००९४ स्वरोदयज्ञान, मु. कपुरचंद, मा.गु., गा. ४५३, वि. १९०५, पद्य, मूपू., (नमो आदि अरिहंतदेव), ६०५४०($) हंसराजवछराज चौपाई, मु. विनयमेरु, मा.गु., खं. ४, वि. १६६९, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर चरम जिण), ६००४९(+#) हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४८, गा. ९०५, वि. १६८०, पद्य, मूपू., (आदिसर आदे करी
चोवीसे), ६००२४(+#), ६२४५५, ५९८९६($) हरचंदराजा चौपाई, मा.गु., ढा. २८, गा. ४१७, पद्य, मूपू., (पास जिनेसर पाय नमु), ६२१८३ हरिबल चौपाई, मु. लब्धिविजय, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल ५९, ग्रं. ३७५१, वि. १८१०, पद्य, मूपू., (प्रथम धराधर जगधणी), ६०१३४($) हरिबलमच्छी कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., (इणही ज भरतने क्षेत्र), ६२४७७-२(+$) हरिबल रास, मु. कुशलसंयम, मा.गु., खं. ४, गा. ९२५, ग्रं. १०५०, वि. १५५५, पद्य, मूपू., (पहिलुं प्रणमूं पास), ५९९२२(+) हरिश्चंद्रराजा चौपाई, मु. कनकसुंदर, मा.गु., खं. ५ ढाल ३९, गा.७८१, वि. १६९७, पद्य, मूपू., (पासजिणेसर पाय नमु), ६०१५५(+),
५९४३८ हरिश्चंद्रराजा चौपाई, मु. प्रेम, रा., ढा. २३, वि. १८३४, पद्य, श्वे., (आदेसर आदी करी वीतराग), ६२६५६-२ हरिश्चंद्रराजा रास, ग. लालचंद, मा.गु., ढा. ३८, वि. १६७९, पद्य, मपू., (शुभ मति आपो सारदा), ५९९१७(#) हर्षचंदजी गीत, श्रावि. लुंगादे, मा.गु., गा. ११, वि. १८२६, पद्य, श्वे., (सरसति सामण सहिया), ६०१६७-१ हीरविजय कवित्त, मु. भानुचंद, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (अगड दौदौ धौधू), ६२४००-१५(+#) हीरविजयसूरि कवित, क. सोम, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (सबे भृग नयन चलीगु), ६००२५-८३(+#), ६२४००-१४(+#) हीरावेधि बत्रीसी, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (राजनगर सम एह नारि), ६००९३-१(+) (२) हीरावेधि बत्रीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ मंदोदरी रावणने), ६००९३-१(+) हुंडी ढाल, मा.गु., गा. ६४३, वि. १८८०, पद्य, मूपू., (--), ६२४४१(+$) होलिकापर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मूपू., (फागुण चौमासी पर्वने), ६००१७-९(+) होलिकापर्व सज्झाय, मु. वीर, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (नवगाटी नवल वर पाया), ६२२६७-९(+-$)
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