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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सर्वदिग्गमन नक्षत्र से छायाबलज्ञान विधि तक
है.)
ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६१३१४. सामुद्रिकशास्त्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्र.ले.श्लो. (११५९) यदि शुद्धमशुद्धं वा, जैदे., (२२.५४११, १२४३९).
सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: लंबोदरी लंबदंताः, अध्याय-३६, श्लोक-२७१, संपूर्ण. सामुद्रिकशास्त्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: पहीलु आउष जोइय पीछै; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., स्त्रीलक्षण तक बालावबोध लिखा है.) ६१३४५. योगचिंतामणि सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२९-३(१ से २,३५)=१२६, जैदे., (२७४१२.५, ७४४२).
योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं
हैं., अध्याय-१ अपूर्ण से कायचिकित्सा प्रारंभ तक है.) योगचिंतामणि-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
अध्याय-४ तक लिखा है.) ६१३४७. (#) योगचिंतामणि सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४२-४३(१ से ३२,३७ से ३९,९९ से १००,११२,१३३ से १३७)=९९, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२, ६x२४). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रकरण-२ राजरोग निवारण
विधि अपूर्ण से पारदविधि अपूर्ण तक है व बीच-बीच के कुछ पाठांश नहीं है.)
योगचिंतामणि-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६१३५९. (+) रामनिदान सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११०+१(३८)=१११,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२४.५४१३, ५-७X३८). रामनिदान, सं., पद्य, आदि: श्रियं स दद्यात् भवत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., जिह्वापरीक्षा तक
लिखा है.)
रामनिदान-टबार्थ, पुहि., गद्य, आदि: मोक्षलक्ष्मी वह देओ; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६१३६०. (+#) रामनिदान सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८१-९(५० से ५८)+१(१४)=७३, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, दे., (२४४१२.५, ८-२२४३४-६०). रामनिदान, सं., पद्य, आदि: श्रियं स दद्यात भवत; अंति: (-), (पू.वि. स्नेहपानाधिकार किंचिंत अपूर्ण भाग नहीं है व
प्रस्वेदाधिकार से जिह्वापरीक्षा श्लोक-४ अपूर्ण तक है.)
रामनिदान-टबार्थ, पुहिं., गद्य, आदि: मोक्षलक्ष्मी वह देओ; अंति: (-). ६१३७२. (+) अभिधानचिंतामणिनाममाला-१ से २ कांड, संपूर्ण, वि. १८०७, चैत्र शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. पं. भाणसागर; पठ. पं. सुंदरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १५४४०-४३).
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति:
(-), प्रतिपूर्ण. ६१३७६. सारस्वतव्याकरण सह दीपिका टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १७०-३(१ से ३)=१६७, दे., (२६.५४१२, १०४३२).
सारस्वत व्याकरण, प्रक्रिया, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं
हैं., मंगलाचरण अपूर्ण से संप्रदान कारक अधिकार तक है., वि. मूलपाठ का मात्र प्रतिकपाठ है.) सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ व
अंत के पत्र नहीं हैं.
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