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1.
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
२३९ ६११०७. (+#) विवाहपन्नत्ती सह टीका का टबार्थ+बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९०४, श्रावण शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ६३७,
ले.स्थल. हरिदुर्ग, सम. श्रावि. मानकंवर धना हरजी सा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वि.सं. १९१४ मार्गशीर्ष शु.प. १० गुरुवार के दिन इस प्रत को दान देने का उल्लेख मिलता है, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२, ९x४८). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहताणं० सव्व; अंति: संतिकरितं नमसामि, शतक-४१,
सूत्र-८६९, ग्रं. १५७५२.
भगवतीसूत्र-टीका का टबार्थ+बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वज्ञः सर्वज्ञ; अंति: मयाहिस्तवक कृतः. ६११०८. (+) आचारांगसूत्र सह टीका, पूर्ण, वि. १९६३, पौष कृष्ण, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०२-१(१०१)=३०१, प्र.वि. संशोधित-त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२७४१२.५, १३४५१).
आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउस तेण; अंति: विमुच्चति त्ति बेमि, अध्ययन-२५,
ग्रं. २६४४, (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ उद्देशक-१ अपूर्ण है.) आचारांगसूत्र-टीका # , आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य, वि. ९१८, आदि: जयति समस्तवस्तु; अंति: मिति
तात्पर्यार्थः, श्रुतस्कंध-२, ग्रं. १२०००. ६११०९. (+#) जीवाभिगमसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७७, अन्य. श्राव. लालचंद पूनमचंद प्राग्वाट; श्रावि. तुलसी
पूनमचंद प्राग्वाट; श्राव. जवेरचंद सेठ; श्राव. जेठाभाई; आ. राजेंद्रसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. वि. सं. १९४१ वैशाख कृष्णपक्ष दशमी के दिन आ. श्रीराजेंद्रसूरि के उपदेश से लालचंद्र पूनमचंद्र प्राग्वाट ने इस प्रत को राजपुर के भांडागार में रखवाया, त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७X१२, १७४५१-५५).
जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: णमो उसभादियाणं चउवीस; अंति: सेत्तं सव्वजीवाभिगमे, प्रतिपत्ति-१०, सूत्र-२७२,
ग्रं. ४७५०. जीवाभिगमसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: प्रणमत पदनखतेजःप्रति; अंति: नयः सिद्धांतसद्बोधम्,
प्रतिपत्ति-१०, ग्रं. १४०००. ६१११०. (+#) स्थानांगसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९२३, भाद्रपद कृष्ण, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २९१, अन्य. श्राव. लालचंद पूनमचंद
प्राग्वाट; श्रावि. तुलसी पूनमचंद प्राग्वाट; श्राव. जवेरचंद सेठ; श्राव. जेठाभाई; आ. राजेंद्रसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. वि.सं. १९४१ वैशाख कृष्णपक्ष दशमी के दिन आ. श्रीराजेंद्रसूरि के उपदेश से लालचंद्र पूनमचंद्र प्राग्वाट ने इस प्रत को राजपुर के भांडागार में रखवाया, त्रिपाठ-द्विपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. १८०००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (४६) भग्न पृष्टी कटी ग्रीवा, (१०७) यन्मात्राक्षरपादबिंदुगलितं किंचित्प्रमादान्मयो, (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, दे., (२६४१२.५, २१४४८). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: अणता पण्णत्ता, स्थान-१०, सूत्र-७८३,
ग्रं. ३७००. स्थानांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: श्रीवीरं जिननाथ; अंति: ग्येभ्योन्येभ्य इति,
स्थान-१०, ग्रं. १४२५०. ६११११. (+#) वस्तुपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १९५९, आषाढ़, श्रेष्ठ, पृ. १५७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, १४४३६-३९).
वस्तुपालमंत्री चरित्र, ग. जिनहर्ष, सं., पद्य, वि. १४९७, आदि: श्रीमानहन शिवः; अंति: जिनहर्ष० व्यधात्, प्रस्ताव-८. ६१११२. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३४-३(१३ से १५)+१(४७)=१३२,
पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, ५-१४४३५-४१).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. व्याख्यान-७ अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरीहतने माहरो; अंति: (-). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य परमं ज्योति; अंति: (-).
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