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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ ६०५१९. (+#) नारचंद्रज्योतिष सह यंत्रकोद्धार टिप्पण, संपूर्ण, वि. १८७७, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४४,
प्रले. मु. हुकमचंद ऋषि (गुरु मु. किशोरचंद ऋषि); गुपि.मु. किशोरचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र की किनारी खंडित होने के कारण पठनार्थे अस्पष्ट है., पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १६-१९४४१-५३). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: च कंठे सताम, श्लोक-५३७, (वि. प्रतिलेखक
ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.)
ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: सरस्वती प्रसादेन; अंति: आरोहण मुहर्तम्. ६०५२०. (+#) नारचंद्रज्योतिष सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३९-१(१)=३८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ६४३६-४०). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: दोषा प्रकीर्त्तिता, श्लोक-४३४, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.,
श्लोक-५ अपूर्ण से है., वि. प्रतिलेखक ने एक श्लोक को दो श्लोक गिना है.)
ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ए राशि दोष कह्यो, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ६०५२२. योगचिंतामणि सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४२-१५(४,११ से २४)=२७, प्र.वि. बालावबोध टबार्थ रूप में लिखा गया है., जैदे., (२६.५४१२, ८४३२-३९). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: यत्र वित्रासमायांति; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं
हैं., पित्तविकार लक्षण, श्लोक-९ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) योगचिंतामणि-बालावबोध, म. मानकीर्ति-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञ प्रणम्या; अंति: (-), पृ.वि. अंत के
पत्र नहीं हैं. ६०५२३. (#) धनंजयनाममाला, संपूर्ण, वि. १७६२, वैशाख शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. २४, ले.स्थल. सूर्यपुर (सुरत), पठ. मु. नेमसागर
(गुरु मु. रत्नचंद्र, सरस्वतीगच्छ); गुपि.मु. रत्नचंद्र (गुरु मु. श्रुभचंद्र, सरस्वतीगच्छ); मु. श्रुभचंद्र (गुरु मु. अभयचंद्र, सरस्वतीगच्छ); मु. अभयचंद्र (गुरु मु. कुंमदचंद्र, सरस्वतीगच्छ); मु. कुमदचंद्र (गुरु आ. कुंदकुंदाचार्य, सरस्वतीगच्छ); आ. कुंदकुंदाचार्य (सरस्वतीगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. कुल ग्रं. २०५०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, ९४२४).
धनंजयनाममाला, जै.क. धनंजय, सं., पद्य, आदि: तन्नमामि परं ज्योति; अंति: शरणोत्तम मंगलान्, श्लोक-२११. ६०५२८. (+) अनेकार्थसंग्रह-कांड-४ से ७, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-१(९)=१९, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, १०x४०). अनेकार्थ संग्रह, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण,
पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., कांड-७, श्लोक-५५ अपूर्ण तक है.) ६०५२९. (+#) नारचंद्रज्योतिष सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७२४, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ४७-२९(१ से २१,२५ से ३१,४४)=१८,
अन्य. पं. नेतसीजी; मु. कनकसुंदर-शिष्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१२, ५४३०). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: रविजासुतीव्र, श्लोक-२९४, (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं
हैं., श्लोक-६२ अपूर्ण से है व बीच-बीच के श्लोक नहीं हैं.)
ज्योतिषसार-टबार्थ *,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: बारमइ क्रूर करइ, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. ६०५३०. (+) नारचंद्र सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १८४५, पौष शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. १८, ले.स्थल. राजपुरा, प्रले. पं. लब्धिकमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, १५४४६).
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: प्रकीर्तिता, श्लोक-२९४.
ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: सरस्वतीं नमस्कृत्य; अंति: यंत्रकोद्धारटिप्पनम्. ६०५३१. (#) अभिधानचिंतामणि नाममाला व चूडी चक्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, जैदे., (२५४१२,१४४२९).
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