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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. परमानंद, पुहिं., पद्य, आदि: महावीर हमें बचा लो; अंति: परमानंद॰झुका रहा हूं, गाथा-५. ३. पे. नाम. गुरु महिमा पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. परमानंद, पुहिं., पद्य, आदि: गुरुसेवा में ध्यान; अंति: परमानद० दिया करो, गाथा-५. ४. पे. नाम. गुरुगुण पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. परमानंद, पुहिं., पद्य, आदि: वारी जाउंजी सतगुरुजी; अंति: परमानंद०पार उतारनाजी, गाथा-४. ५. पे. नाम. उद्यम महिमा पद, प्र. १अ-१आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-उद्यम महिमा, मु. परमानंद, पुहि., पद्य, आदि: उद्यमकर उठके प्यारे; अंति: परमानंद० धर लीजै,
गाथा-६. ६.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-बेमेल विवाह परिहार, प. १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-बेमेल विवाह परिहार, मु. परमानंद, पुहिं., पद्य, आदि: पोति भी तोती को; अंति: यह ब्याह
लिये जाय, गाथा-६. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद-सत्संग माहात्म्य, पृ. १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-सत्संग, मु. परमानंद, पुहिं., पद्य, आदि: भरा सत्संग का दरिया; अंति: आकाल की फासी तु
डालो, गाथा-५. ८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-कुनारी परिहार, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: यह कलियुग घोर है आया; अंति: करो मत घोर अंधियारी, गाथा-१०. ९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: बिना जिनराज को देखे; अंति: से यह विनती हमारी है, गाथा-४. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद-धुम्रपान परिहार, पृ. २अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: जरा हो जाना हुशीयार; अंति: प्रगट सुनाने वाले, दोहा-४. ११. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-दहेज परिहार, पृ. २अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: कन्या रो रो करे पुका; अंति: में नाम बढाने वाले, दोहा-७. १२. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण.
पुहि., पद्य, आदि: कहां गए जैन जाति के; अंति: में मंगल चाहनेवाले, दोहा-६. १३. पे. नाम. ब्रह्मचर्य सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-ब्रह्मचर्यव्रत, पुहिं., पद्य, आदि: ले लो ब्रह्मचर्य शरण; अंति: धन हरने वाले, गाथा-५. १४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय- वेश्यावृत्ति परिहार, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण..
औपदेशिक सज्झाय-वेश्यावृत्ति परिहार, मु. परमानंद, पुहिं., पद्य, आदि: डूबे जाते हो क्यों; अंति: के रहने वाले,
दोहा-८. १५. पे. नाम. औपदेशिक पद-अनाथ, पृ. ३अ, संपूर्ण.
मु. परमानंद, पुहिं., पद्य, आदि: रोरो करे अनाथ पुकार; अंति: परमानंद० कमाने वाले, दोहा-५. १६. पे. नाम. शीलव्रत सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण.
शीयलव्रत पद, पुहिं., पद्य, आदि: पहनो पहनो री सवा मन; अंति: ती हो तुम अति दुःखडा, दोहा-४. १७. पे. नाम. पतिव्रत सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: चाहो जो स्वर्ग निवास; अंति: से ध्यान लगा लो, दोहा-५. १८. पे. नाम. नारी शिक्षा सज्झाय, प्र. ३अ-३आ, संपूर्ण.
नारीशिक्षा सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: सीता और अंजना नारी; अंति: धर्म से प्रीत बढा लो, दोहा-१०. १९. पे. नाम. नारी शिक्षा सज्झाय-विधवा, पृ. ३आ, संपूर्ण.
नारीशिक्षा सज्झाय-विधवा, पुहिं., पद्य, आदि: विधवा के धर्म सुनो; अंति: रहे जब लो जान तुमारी, दोहा-८.
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