Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 15
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 476
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ ४६१ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. माता त्रिशला के स्वप्नफल वर्णन अपूर्ण से माता के गर्भ में भगवान महावीर द्वारा अपने आंगोपांग को संकुचित करने के प्रसंग तक का पाठ है.) कल्पसूत्र-टिप्पण*,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६२७८२. योगशास्त्र- प्रकाश १ से २, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५.५४११,१३४४०-४६). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६२७८३. (+) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अन्य. मु. क्षमाभक्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंतिम पत्र पर पठनार्थे लेने का उल्लेख मिलता है, जो बाद में लिखित प्रतीत होता है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६.५४१०.५, ५४३५). साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), ___(पू.वि. प्रत्याख्यानसूत्र अपूर्ण तक है.) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुवउ अर्हत; अंति: (-). ६२७८४. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४११, ४४३४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२० की अंतिम गाथा अपूर्ण से अध्ययन-२२ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६२७८६. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६.५४११, १-४४४०). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक १६ तक लिखा है.) कल्याणमंदिर स्तोत्र-दीपिका टीका, मु. माणिक्यचंद्र, सं., गद्य, वि. १६६८, आदि: रैवताद्रिशिरश्चुलामण; अंति: (-), ग्रं. ७२०, अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६२७८७. (+) भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १७३९, पौष, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. सादलपुर, प्रले. ग. अमीचंद्र (गुरु ग. आणंदचंद्र); गुपि.ग. आणंदचंद्र (गुरु ग. सुमतिचंद्र); ग. सुमतिचंद्र; पठ. मु. पृथ्वीचंद्र (गुरु ग. धीरचंद्र); गुपि.ग. धीरचंद्र (गुरु ग. अमीचंद्र), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४४३-४७). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३, गाथा-१५३. ६२७८८. साधूसामाचारी व जिनमुद्रा विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१, कुल पे. २, प्र.वि. बृहद्गच्छे श्रीदेवसूरि संतानीय गुणाकरसूरि पट्टे श्रीनरदेवसूरि पट्टे श्रीकमलचंद्रसूरि शिष्य गुणसागरसूरि लिखित प्रत की प्रतिलिपि है., जैदे., (२५४११, १३४५०). १. पे. नाम. सुखबोधा सामाचारी, पृ. १आ-४१आ, संपूर्ण. सुबोधा सामाचारी, आ. श्रीचंद्रसूरि, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: सामायारी सम्मत्ता, ग्रं. १३८६, (वि. सम्यक्त्वादि महिमा पाठ से प्रारंभ किया है. ग्रंथगत प्रकरण क्रमशः नहीं है.) २. पे. नाम. जिनमुद्रा विवरण, पृ. ४१आ, संपूर्ण. जिनमुद्रा विचार, प्रा.,सं., गद्य, आदि: जिणमुद्द १कलस रपरमेट; अंति: आकारा हस्तोपरिहस्ता. ६२७८९. (+#) पद्यालय सह टीका, अपूर्ण, वि. १७६८, पौष शुक्ल, ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५२-१३(१ से १३)=३९, ले.स्थल. अर्गालापुर, प्रले. ग. महिमाचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. २५०१, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४५५). वज्जालग्ग, क. जयवल्लभ, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: लहइ सो पुरिसो, गाथा-७९५, ग्रं. १२३०, (पू.वि. इंदिदिरवज्जा २६ गाथा १२ से है.) वज्जालग्ग-वृत्ति, ग. रत्नदेव, सं., गद्य, वि. १३९३, आदि: (-); अंति: स पुरुष इति भद्रम्. जिन For Private and Personal Use Only

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