Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 15
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र-दीपिका टीका, आ. जयकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६२८२४. (+#) बृहद्संग्रहणी वरीषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८११, चैत्र कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २,
ले.स्थल. कर्मवाटी, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १०-१४४३२-५५). १.पे. नाम. बृहत्संग्रहणी, पृ. १अ-१२आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने लघुसंग्रहणी नाम लिखा है.
आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३१४. २.पे. नाम. रीषभजिन स्तवन, पृ. १२आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: जयो जगनायक जगगुरु रे; अंति: केसर० मोरो माहाराज, गाथा-५. ६२८२५. नव्यबृहत्क्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. कुल ग्रं. ३८८, जैदे., (२६.५४११, १५४५६-६०).
बृहत्क्षेत्रसमास नव्य, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३७३, आदि: सिरिनिलयं केवलिणं; अंति: सोहेयव्वो
सुअहरेहिं, गाथा-३८७. ६२८२६. (+) लघुक्षेत्रसमास सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ७X४३). लघुक्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊणसजलजलहर निभस्सण; अंति: झाएजा
सम्मदिट्ठीए, अध्याय-५, गाथा-१८८, (संपूर्ण, वि. अंत में कुछ असंबद्ध प्राकृत गाथाएँ दी गई हैं.) लघुक्षेत्रसमास-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमीनइ जल सहित मेघ; अति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
गाथा-१३० तक का टबार्थ लिखा है.) ६२८२७. चातुर्मासिक व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१०.५, ६-१४४५०).
चातुर्मासिक व्याख्यान, मु. सुरचंद्र ऋषि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: (-), (पू.वि. सोमदत्त
ब्राह्मण की कथा तक है.) ६२८२८. (#) श्लोकसंग्रह जैनधार्मिक, त्रुटक, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १९-८(१,३ से६,८ से १०)=११, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, ९४३१). जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. गाथा-१०४ अपूर्ण से २१५ अपूर्ण तक है
व बीच-बीच की गाथाएँ नहीं हैं.) ६२८२९. (+) पंचकुमार कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, २२४५८).
पंचकुमार कथा, पा. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १७४६, आदि: अथैकदा द्वाविंशतिम; अंति: पंचकौमारसंकथा. ६२८३०. (+) पगामसज्झायसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ३४३६).
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: करेमि भंते० चत्तारि०; अंति: (-), (पू.वि. "सीलंगधारा अक्ख ___आयारचरिता" पाठ तक है.)
पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, पंन्या. सुमतिविजय, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा श्रीमन्महावीर; अंति: (-). ६२८३१. विचारसार संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, जैदे., (२५.५४१०.५, ६x४१).
विचारसार संग्रह, प्रा., गद्य, आदि: कहन्नं भंते जीवाः; अंति: देवगति भवति.
विचारसार संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जयंती पूछइ छइ हे; अंति: कलउ होइ देवता थाय. ६२८३२. (+#) नवस्मरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०, १२४३५). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), स्मरण-६, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., स्मरण-२ से ७ लिखा है व क्रम आगे-पीछे है.)
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