Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 15
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 482
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ ४६७ ६२८३३. (+) वाग्भटालंकार सह ज्ञानप्रमोदिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-२(१ से २)=११, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०, १५४६३). वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. परिच्छेद-१, श्लोक-३ से परिच्छेद-३, श्लोक-११ तक है.) वाग्भटालंकार-ज्ञानप्रमोदिका वृत्ति, ग. ज्ञानप्रमोद; ग. रत्नधीर, सं., गद्य, वि. १६८१, आदि: (-); अंति: (-). ६२८३४. (+) कर्पूरप्रकर, संपूर्ण, वि. १६९९, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. पाटणनगर, प्रले. मु. जयसागर ऋषि (गुरु पं. ललितसागर); गुपि.पं. ललितसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं. ३०८, जैदे., (२५.५४११, १३४४५). कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि: कर्पूरप्रकरः शमामृत; अंति: नेमिचरित्रका , श्लोक-१७९. ६२८३५. श्रावकप्रतिक्रमण सूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६०, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ. ११, प्रले. मु. व्रजलाल; पठ. श्रावि. सुखीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०, ११४२७-३५). आवश्यकसूत्र-श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० तिखुत; अंति: क्कराइए च्छीए भाइए आ. ६२८३६. (+) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(२)=१०, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१०.५, १२-१९४३४). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: (-), (पू.वि. चौदनियम अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टीका, सं., गद्य, आदि: नमस्कारः अस्तु इति; अंति: (-). ६२८३७. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ- अध्ययन ४ व ९, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५४१०, ४४३५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अध्ययन-९, गाथा-६० तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ६२८३८. (+) स्तुतिचौवीशी व पंचमी स्तुति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १०४३२). १.पे. नाम. स्तुतिचतुर्विंशतिका, पृ. १अ-१०अ, संपूर्ण. मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक, अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ६२८४०. चतुर्मासिक व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१(१)=१०, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४१०.५, ११४२९-३१). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सामायिक के ऊपर राजा दमदंत की कथा अपूर्ण से पति मारिका दृष्टांत अपूर्ण तक है.) ६२८४१. (+) श्रीसिद्धचक्रमाहात्म्यविषये श्रीपाल कथा, संपूर्ण, वि. १७०२, चैत्र शुक्ल, १२, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. मेडतानगर, प्रले. पंडित. राजहर्ष गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १७४४९). श्रीपाल चरित्र, पंन्या. सत्यराज, सं., पद्य, वि. १५१४, आदि: श्रिये श्रीमन्महावीर; अंति: श्रीपालवृत्तह्यदः, श्लोक-४८६. ६२८४२. (#) धर्मपरीक्षाविषये कामघट कथा, संपूर्ण, वि. १७७२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३२-३५). पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथानक, सं., प+ग., आदि: कुलं विश्वश्लाघ्य; अंति: सिद्धिसाधं जग्मतुः. For Private and Personal Use Only

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