Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 15
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६२९१४. भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४८, पौष कृष्ण, ६, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २५, ले. स्थल. गांदिलीनगर, प्रले. मु. मोतिचंद (गुरु पंन्या. ज्योतिविजय); गुपि. पंन्या. ज्योतिविजय (गुरु पं. रत्नविजय); पं. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीरुआ प्रासादात्, जैदे., (२५.५X११.५, ५x२१-२५).
भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. २४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे, अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३,
',
गाथा - १४५, संपूर्ण.
भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांदवा योग सर्वने, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चैत्यवंदनभाष्य की गाथा ३१ तक लिखा है.)
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६२९१५. (+) संघयणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५X१०.५,
"
१०X२७-३३).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ, अंति: (-), (पू. वि. गाथा ३०६ अपूर्ण तक है.)
६२९१६. (+) उक्तिरत्नाकर, अपूर्ण, वि. १६९७, भाद्रपद शुक्ल, ११, सोमवार, जीर्ण, पृ. २१-१ ( २० ) - २०, लिख. मु. हीरानंदचंद्र (गुरु आ. रायचंद्रसूरि, पार्श्वचंद्र गच्छ); गुपि. आ. राजचंद्रसूरि (गुरु आ. समरचंद्रसूरि, पार्श्वचंद्र गच्छ); अन्य. पं. दयाचंद्र, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. प्र. ले. श्लो. (७५९) अदृष्टदोषान्मतिविभ्रमाच्च जैये. (२५.५४११, १५X३२-३६).
-
उक्तिरत्नाकर, उपा. साधुसुंदर, प्रा.सं., गद्य, आदि: स्मृत्वा श्रीभारतीं; अंति: मान्यश्चिरं नंदतु, (पू. वि. क्रियाविभाग के कुछ अंश नहीं हैं.)
६२९१७. (+*) प्रश्नव्याकरण सूत्र सह टबार्थ श्रुतस्कंध १ पंचमाश्रवद्वार अंतिमगाथापंचक से श्रुतस्कंध २, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२६११, ८४४७-५२). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: जंबू एतो संबरदाराई, अंति: सरीरधरे भविस्सइति,
. ,
अध्याय- १०, गाथा - १२५० ग्रं. १३००, संपूर्ण.
1
प्रश्नव्याकरणसूत्र - टवार्ध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण
६२९१८. (+#) भाष्यत्रय सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २५, प्र. वि. त्रिपाठ - संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे., (२५.५X११, १-६x२४-४९).
भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. ९४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे, अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३,
गाथा - १४५.
भाष्यत्रय - अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: बंदि० वंदनीवान् परमे; अंतिः पच्चकखाणम० सुगमा. ६२९१९. (+#) संग्रहणीसूत्र व बारह लक्षण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२-१ (१) = २१, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५४१०.५, ९४२७-३०),
१. पे. नाम. बृहत्संग्रहणी, पृ. २अ-२२आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है .
आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा - ३१२, (पू. वि. गाथा १५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. बार सामान्य लक्षण, पृ. २२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
निश्चय उपयोग लक्षण, मा.गु., गद्य, आदिः सविहुं जीवनई साकर, अंति: (-), (पू.वि. "ते समुद्धातक कहीइ" पाठ तक है.)
६२९२०_ (+) अंतगडदशांगसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २२ प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. कुल ग्रं. ७९०, जैदे. (२६४१०.५, १५४४०-४५ ).
अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय-९२, ग्रं. ८९९.
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