Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 15
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 496
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ www.kobatirth.org ५७. पे. नाम. सर्वजिनभव स्तव, पृ. ४३अ - ४३आ, संपूर्ण. सर्वजिनभवसंख्यादि स्तवन, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदिः आदौ सार्धपतिर्धाना १; अंति: सिकोरत्थंभवाः शंभवा: श्लोक ८. ५८. पे नाम, शांतिनाथ स्तव, पृ. ४३आ-४४अ, संपूर्ण शांतिजिन स्तवन, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि अहं देवभूमीतले लग्न, अंतिः वीक्षते देव नूनम, लोक-११. ५९. पे. नाम. कल्याणकसंख्यासंक्षेप स्तव, पृ. ४४-४४आ, संपूर्ण. पंचकल्याणक संख्यासंक्षेप स्तवन, पं. शीलशेखर गणि, प्रा., पद्य, आदिः कत्तिपणीगुडबारतेर, अंतिः नवेगु आसोतमि पुत्रिम, गाथा ३. ६०. पे. नाम वीर स्तोत्र, पृ. ४४-४५अ संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन- यमकमय, पं. शीलशेखर गणि, प्रा., पद्य, आदि; गयकलहं गयकलहं गवकलह अंतिः सत्ताणं जिणवइकरे, गाथा - १०. ६१. पे नाम. पंचजिन नमस्कार, पृ. ४५अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir יי पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: मौनेनोर्वी व्यहृतपरि; अंति: संगम काम रसं सुदा, श्लोक - ५. ६२. पे नाम, कारकक्रियागुप्त वीर स्तोत्र, पृ. ४५अ- ४५आ, संपूर्ण महावीरजिन स्तोत्र-कारकक्रियागुप्त, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्म, आदिः श्रीवीरं स्तौमि अंति हता रंभाननं गः शिवे, श्लोक - १६. ६२९१०. (+#) उपासकदशांगसूत्र व पैतीस गुण वर्णन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५८, आश्विन कृष्ण, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४५, कुल पे. २, ले.स्थल. नवहर, प्रले. पं. आनंदधीर (गुरु मु. ज्ञाननिधान); गुपि. मु. ज्ञाननिधान (गुरु पं. महिमामेरु); पं. महिमा ( गुरुग. सुखनिधान), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैवे. (२५.५x११, ६४५७) १. पे. नाम. उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ - ४४आ, संपूर्ण. उपासक दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: तेणं० चंपा नाम नवरी अंतिः दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन- १०, ग्रं. ८१२. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मा.गु., गद्य, वि. १६९३, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंतिः श्रुतांग तिमही ज.. २. पे नाम, पैंतीस गुण वर्णन, पृ. ४४-४५अ, संपूर्ण ३५ वाणीगुण, सं., गद्य, आदि: संस्कारवत्वं१ औदात्य; अंतिः मत्त्वं अखेदत्वनि. ३५ वाणीगुण टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संस्कृतादिक लक्षणे, अंतिः भगवंतना जाणिवा ६२९११. (+) समवायांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३०, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित, जैदे., (२६x११, १७५५). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. गद्य, आदि; सुयं मे आउस तेणं; अंतिः अज्झयणंति त्तिबेमि, अध्ययन- १०३, सूत्र- १५९. ग्रं. १६६७. ', ६२९१२. (+०) कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य, अपूर्ण, वि. १६७६, मध्यम, पृ. ५०-१८ (१ से १८) = ३२, प्रले. मु. ज्ञानमेरु (गुरु वा. महिमसुंदर, खरतरगच्छ); गुपि वा महिमसुंदर (गुरु पं. साधुकीर्ति पाठक, खरतर गच्छ); वा. साधुकीर्ति (गुरु वा. अमरमाणिक्य, खरतरगच्छ); अन्य. ग. प्रेमविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५. ५X११, १५X४१-५०). ર कल्पसूत्र - अंतर्वाच्य, उपा. भक्तिलाभ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: श्रीसंघभट्टारकः, (पू.वि. भगवान महावीरस्वामी के गृह त्याग प्रसंग वर्णन से है.) ६२९१३. (+) अंतगडदसांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३२, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६.५X११, ११X३४-३९). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: जधाणाता धम्मकथाणं, अध्याय-९२, ग्रं. ८९९. For Private and Personal Use Only

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