Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 15
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 498
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ अंतकृद्दशांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: अथांतकृतदशासु किमपि; अंति: विधीयतां सर्वथा, वर्ग-८. ६२९२१. (+#) चउसरणपइन्नय, नवतत्त्व व भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२-१(१)=२१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ५४३१). १.पे. नाम. चउसरणपइन्नय सह टबार्थ, पृ. २अ-९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मुक्तिनां सुख लहइ. २.पे. नाम. नवतत्त्व सह टबार्थ, पृ. ९अ-१४आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४३. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: कालइ अनंतगुणा छइ. ३. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १५अ-२२आ, पूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४४ का अंतिमपद नहीं भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्तिवत देवता प्रणत; अंति: (-). ६२९२२. (+) विपाकसूत्र, संपूर्ण, वि. १५७९, ज्येष्ठ कृष्ण, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २५, ले.स्थल. अजाहरीनगर, प्रले. ग. हंससमय (गुरु पं. कमलभुवन, तपागच्छ); गुपि.पं. कमलभुवन (तपागच्छ); राज्ये आ. हेमविमलसूरि (गुरु आ. सुमतिसाधुसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (११४८) यादृसं पुस्तिकिं दृष्ट, (११४९) उद्देदृष्टि कटिग्रीवः, जैदे., (२६४११, १५४५३-५६). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: विसेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध-२, ग्रं. १२५०, (वि. अध्ययन २०) ६२९२३. (+#) श्रावकप्रतिक्रमण सूत्रसंग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२-१(११)=२१, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ४४४०-४३). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. खमासमणासूत्र अपूर्ण तक व पच्चक्खाणसूत्र से वंदितुसूत्र गाथा ५० अपूर्ण तक है.) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार थावउ माहरो; अंति: (-). ६२९२४. (#) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११.५, ८x२५). . श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. वंदित्तुसूत्र गाथा ४५ अपूर्ण तक है.) ६२९२५. (#) संग्रहणीसूत्र की अवचूर्णी, संपूर्ण, वि. १५४६, वैशाख कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. २२, ले.स्थल. देलुलिनगर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, २०४५३-५८). बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: आदौ शास्त्रकाराभीष्ट; अंति: वेदाश्च प्रागुक्ताः, ग्रं. ३५०० ६२९२६. (+#) अंतगडदशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४३९-४५). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेण कालेणं तेण समएण; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, ___ अध्याय-९२, ग्रं. ८९९. ६२९२७. (+#) आदिनाथदेशना सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-१(१)=२०, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११,७४३६-४१). For Private and Personal Use Only

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