Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 15
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 480
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ ६२८१४. श्रावकदिनकृत्य प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२६x११, १२X३७). हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम, क्षामणकसूत्र. पू. १५-१५आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वीरं नमिऊण तिलोयभाणु; अंति: मिच्छामिह दुक्कडंवि, गाथा - ३४५, (वि. गाथा सं. ३४४ नहीं है.) ६२८१५. (*) पक्खीसूत्र व पक्खीखामणा, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. जैवे. (२६४१७.५, ११X३८). १. पे नाम, पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-१५अ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: होह इति गुरुवचनं, आलाप-४. ६२८१६. (+) संग्रहणी सूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११, ११×३५-३८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२७६. ६२८१७. (+) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जीवे. (२३.५x१०.५, "" ९X३०-३५). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ, अंति: (-), (पू.वि. स्मरण- ७, भक्तामर स्तोत्र की गाथा ४४ अपूर्ण तक है.) ६२८१८. (+#) संग्रहणीरत्नसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १५- १ ( २ ) = १४, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५X१०.५, १३४३९-४१). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताइं ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३२५, ( पू. वि. गाथा - १४ अपूर्ण से ३७ अपूर्ण तक नहीं है. ) ६२८१९. (+) सम्यक्त्वसप्ततिका सह टीका अधिकार-६, प्रभावक ७, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न, कुल नं. १४४१, जैवे. (२६४११, १५४४५-५२). सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. गाधा ३६ से ३९.) सम्यक्त्वसप्ततिका सम्यक्त्वकौमुदीटीका, आ. संघतिलकसूरि, सं., प+ग. वि. १४२२, आदि: (-) अंति: (-), " प्रतिपूर्ण. ४६५ ६२८२०. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ + कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८-२५ (१ से १९, २३ से २८) = १३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. टिप्पण बुक्त विशेष पाठ- संशोधित, जैदे. (२५.५४१०.५, १५-१७४३८-५५). " उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- १ गाथा - २१ से ३१ व अध्ययन-१८ गाथा-४३ से ५५ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्ध+कथा " मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-). *, ६२८२१. (+) चित्रसेनपद्मावती चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५x१०.५, १४४४७). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- ४४७ अपूर्ण तक है.) ६२८२२. नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैवे. (२७४११, ११४३३). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ, अंति: (-), (पू.वि. स्मरण-६ जयतिहुअण गाथा २९ अपूर्ण तक है.) ६२८२३. (+) उत्तराध्ययनसूत्र - नमिप्रवज्याध्ययन की टीका, संपूर्ण, वि. १५९४, पौष कृष्ण, ४, गुरुवार, मध्यम, पृ. १२, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे., ( २६११, १५x५४). For Private and Personal Use Only

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