Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 15
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 474
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ www.kobatirth.org प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवार पुण्ण३; अंति: भेएहिं उदाहरणं, गाथा-४९. ३. पे. नाम चतुः शरण प्रकीर्णक, पृ. ४अ - ६ आ. संपूर्ण. ५. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. ८- ९अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसुवन्न, अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ६. पे. नाम. पलांकित स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंति: सा जिनशासन देवता, श्लोक-४. ७. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र अध्ययन १-२ पृ. ९अ - ९आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुकिङ अंति: (-), प्रतिपूर्ण ६२७६५. (+) जीवविचार, नवतत्त्व व चउसरण प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११, १४४४२). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण, अंति: रूद्दाउ सुय समुद्दाउ, गाथा ५१. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई, अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा- ६३. ६२७६६. षद्रव्य विवरण, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे, (२५.५५११, १३x४१). , ६२७६७. संधारा पन्ना सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदे, (२५.५४११, ७४४५-४९). 3 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बोल संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: अधर्मास्तिकायना ४; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., जीव द्रव्य वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ४५९ संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि काऊण नमुक्कारं जिणवर, अंतिः सुहसंक्रमणं मम दिंतु, गाथा- १२२, (वि. १८३१, आश्विन शुक्ल, १४, मंगलवार ) संस्तारक प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: करीनइ नमस्कार जिणवर, अंतिः कर्ताना मनोरथ जाणिवा, ग्रं. ५००, (वि. १८३९, कार्तिक कृष्ण, २, प्रले. मु. महतावराव, प्र.ले.पु. सामान्य ) ६२७६९. (+) उववाईसूत्र हिस्सा ध्यानविचार सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६X१०.५, १५X३०). 1 " औपपातिकसूत्र - हिस्सा ध्यानसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: अट्टे झाणे चडविडे, अंति (-) (पू.वि. शुक्लध्यान अपूर्ण तक पाठ है.) औपपातिकसूत्र - हिस्सा ध्यानसूत्र का बालावबोध, मा.गु. गद्य, आदि: ध्यानना च्यार भेद, अंति: (-). ६२७७१. पिंडविशुद्धि प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. कुल ग्रं. १२८, जैदे., (२५.५x१०.५, ११x४१). पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि देविंदविंदवंदिव पयार अंतिः बोहिंतु सोहिंतु य गाथा - १०३. ६२७७२. (+०) नवतत्त्व सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. पंन्या. नंदनमेरु मुनि (गुरु पंन्या. जयकलश मुनि); गुपि. पंन्या. जयकलश मुनि ( गुरु ग. शिवनिधान), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै.., (२६११, ८४३६) For Private and Personal Use Only नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः कम्माण वग्रणाणते, गाथा-८७. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: तत्त्व कहता साची; अंति: अनंता वर्गणा जाणव ६२७७३. नवकारमंत्र सह कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५X११, १४४४१). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढमं हवई मंगलम्, पद-९, संपूर्ण. नवकार-कथा, सं., गद्य, आदि: श्रीनमस्कारो भावेन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. जिनदास श्रेष्ठी कथा अपूर्ण तक है.)

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