Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 15
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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६२६७५. श्रावकप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६ वे. (२४४१२.५, ६x२८).
वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे, अंतिः वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा - ५०. ६२६७६. (+) पोषदशमी कथा व पोषदशमी व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, दे., (२२४१२.५, १५-१७४४०).
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१. पे. नाम. पौषदशमीपर्व कथा, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण.
मु. जिनेंद्रसागर, सं., पद्य, आदि: ध्यात्वा वामेयमर्हत, अंतिः शीघ्रं रचयांचकार, श्लोक ७५.
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२. पे. नाम. पौषदशमीपर्व व्याख्यान, पृ. ३आ-५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
पौषदशमीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: अभिनवमंगलमालाकरणं; अंति: (-), (पू.वि. आचार्य श्री मुनिचंद्रसूरि द्वारा संवत् १२०४ में जिनबिंच प्रतिष्ठा कराने प्रसंग तक है.)
६२६७७. मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १८८३, आषाढ़, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. लखनौ, प्रले. मु. धर्मचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५X१३, १५X३१).
मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., पद्य, वि. १५७६, आदि: अन्यदा नेमिरीशाने; अंतिः हमीरपुरसंश्रितैः श्लोक-११९.
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६२६७८ (४) कुमतिउत्थापन चर्चा, संपूर्ण, वि. १८८३, पीष शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. पं. आसाराम, प्र. ले. पु. सामान्य,
प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५x११.५, १५X४२-४५). कुमतिउत्थापन चर्चा, पुहिं. गद्य, आदि: मनोमती झूठी प्ररूपणा अंति मत का उत्थापक जाणणा. ६२६७९_ (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, स्तुति व गीत, संपूर्ण, वि. १८८५, माघ कृष्ण ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ४, ले.स्थल. वरीयाव, प्रले. मु. हर्षसागर, अन्य. मु. देवविजय (गुरु पं. नेमविजय); गुपि. पं. नेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२३.५X१३, १९x४२).
१. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १अ -५अ, संपूर्ण.
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंति: सेसो संसारफले हेउ. २. पे नाम, पार्श्वनाथजी थुई, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपास जिणेसर पुजा; अंति: सुख संपति हितकार, गाथा-४. ३. पे नाम, पजोसणजी धुड़, पृ. ५आ, संपूर्ण
पर्युषणपर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मा.गु., पच, आदि परव पजोसण पुन्यै पाम; अंतिः अमर० दिन करै वधाइ जी,
गाथा-४.
४. पे नाम, पार्श्वनाथ गीत, पृ. ५आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदिः आणी मन सुध आसता देव, अंति: मेरी चिंता चूर, गाथा-७.
६२६८१. अजितशांति व बृहत्शांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., ( २४.५x१२, १x२८). १. पे नाम, अजितशांति स्तव, पृ. १अ ५अ, संपूर्ण
आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि अजिअं जिअसव्वभयं संत, अंतिः पुव्वुप्प० विणासंति, गाथा- ३९. २. पे नाम, बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, पृ. ५अ ५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है.
सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: (-), (पू.वि. "पुण्याहं पुण्याहं" पाठ तक है.)
६२६८२. (+) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३०, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे.,
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१२४३०-३६).
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(२४.५X१०.५, दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा. पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुक्किहं, अंति: अपुणागमं गए तिबेमि,
अध्ययन १०.

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