Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 15
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 463
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रथम महावीरस्वामीने, (२)नमस्कार थाओ० केवली; अंति: (-), (वि. पीठिकारूप कथा प्रारंभ में है.) ६२६९१. निरयावलिकादि पंचोपांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, कुल पे. ५, जैदे., (२६४१०.५, १३४४५). १.पे. नाम. कल्पिकासूत्र, पृ. १आ-१४अ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंति: भणियव्यो तहा, अध्ययन-१०. २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र, पृ. १४अ-१५आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: कप्पवडिंसियाउ, अध्ययन-१०. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र, पृ. १५आ-२७आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइण भते समणेणं०; अंति: चेइयाई जहा संगहणीए, अध्ययन-१०. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र, पृ. २७आ-२९आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेण०; अंति: वासे सिज्झिहिंति, अध्ययन-१०. ५.पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र, पृ. २९आ-३२आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइणं भंते० पंचमस्स; अंति: बारस्स उद्देसगा, अध्ययन-१२. ६२६९२. (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३७-१२(१ से १०,१८ से १९)=२५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ९४२०-२५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उत्तमकुलवर्णन प्रसंग से जिनाभिषेक प्रसंग तक है व बीच-बीच के कुछ पाठांश नहीं हैं.) ६२६९३. (+) कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५४-१२५(१ से १२२,१२६ से १२८)=२९, अन्य. पं. चारित्रकीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०, १५४४४-५०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., २४ तीर्थंकर आंतरा अपूर्ण से आर्य प्रभवस्वामि की पट्टावली तक है.) कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र ६२६९४. (+) श्रावक सामाचारी सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, १४४३३-४०). श्रावक सामाचारी, प्रा., पद्य, आदि: णमिऊण जिणं वीरं ससुर; अंति: णासो संवेगरसायणं देइ, गाथा-२०. श्रावक सामाचारी-टीका, सं., गद्य, आदि: येन ध्यानसमन्वितेन; अंति: गुण कोपि कालः सभावी. ६२६९५. (+) दशवैकालिकसूत्र व सूत्र परिचय गाथा, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २८-२(१,२६)+१(१६)=२७, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३५-४०). १.पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र, पृ. २अ-२८आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं. __ आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: मुच्चइ त्ति बेमि, अध्ययन-१०, (पू.वि. अध्ययन-२ गाथा-११ अपूर्ण से अध्ययन-१० गाथा-१५ अपूर्ण तक व चूला-१ गाथा३ अपूर्ण से है., वि. चूलिका-२.) २.पे. नाम. दशवैकालिकसूत्रपरिचय गाथा, पृ. २८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दशवकालिकसूत्रगत गाथा, संबद्ध, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिजभवं गणहरं जिण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ६२६९६. भववैराग्यशतक सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदे., (२६४११, ९४३२-३६). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, गाथा-१०४. वैराग्यशतक-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंति: लहइ जी शास्वतु ठाम. ६२६९७. (+) मनुष्यभव १० दृष्टांत कथा, चातुर्मासिक व्याख्यान व पट्टावली, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १५४४४). For Private and Personal Use Only

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