Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 15
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
१.पे. नाम. मनुष्यभव १० दृष्टांतगाथा सह दृष्टांतकथा, पृ. १आ-२२अ, संपूर्ण, वि. १७४८, श्रावण कृष्ण, ११, शनिवार,
ले.स्थल. जूनागढ, प्रले.मु.सुमतिशील पडित (गुरु वा. चारित्रचंद्र गणि, खरतरगच्छ); गुपि. वा. चारित्रचंद्र गणि (गुरु मु. तिलकचंद्र, खरतरगच्छ); मु. तिलकचंद्र (गुरु मु. जयतसी, खरतरगच्छ); मु. जयतसी (गुरु ग. पुण्यकलश, खरतरगच्छ); ग. पुण्यकलश (गुरु ग. धर्ममंदिरजी, खरतरगच्छ); राज्ये गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम. मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत गाथा, प्रा., पद्य, आदि: चूल्लग१ पासग२ धन्ने३; अंति: दिटुंता मणुयभवलंभे, गाथा-१. मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत गाथा-दृष्टांतकथा, सं., गद्य, आदि: संसारे चतसृषु० साकेत; अंति: परमाणुदृष्टांतो
दशमः.
२. पे. नाम. चातुर्मासिक व्याख्यान, पृ. २२अ-२६आ, संपूर्ण. चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६५, आदि: प्रणम्य परमानंदात्; अंति:
मिथ्यादुष्कृतं देयम्. ३. पे. नाम. महावीरजिन पट्टावली, पृ. २६आ, संपूर्ण. पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., गद्य, आदि: १श्रीमहावीर वीरस्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
जिनवल्लभसूरि तक लिखा है.) ६२६९८. (+#) कर्पूरप्रकर सह अवचूरि व कथासंग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२-२(७,२८)=३०, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४४). कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि: कर्पूरप्रकरः शमामृत; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१६ से १८, ७२-७४ व
श्लोक-८५ से नहीं हैं.) कर्पूरप्रकर-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: भव्या लब्धार्यदेशं१; अंति: (-).
कर्पूरप्रकर-कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानम्य; अंति: (-). ६२६९९ (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-१४(१ से १४)=११, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३४-४१).
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-),
(पू.वि. मर्त्यकांड श्लोक-८९ से ४५३ तक है.) ६२७०१. (#) सम्यक्त्व कौमुदी, अपूर्ण, वि. १६२४, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३१-९(२ से १०)=२२,
ले.स्थल. देवासनगर, प्रले. गोपी जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४५१-५७). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४५७, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: विपर्ययादीक्षतो बंध,
पद-४४४, ग्रं. १६७५, (पू.वि. राजा श्रेणिक द्वारा समवसरण में भगवान महावीर एवं गौतमस्वामी की स्तुति कर
गौतमस्वामी से सम्यक्त्व कौमुदी कथा कहने के प्रसंग से अर्हद्दास सेठ की कथा अपूर्ण तक नहीं है.) ६२७०२. (#) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १७४५, चैत्र कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. २८, पठ. श्राव. जयंतसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, २०४४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९,
ग्रं. १२००. ६२७०३. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७१-४८(१ से ३९,५३ से ६०,६६)=२३, पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१०.५, ११४३३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२३ गाथा २ अपूर्ण से
अध्ययन-२९ सूत्र २० अपूर्ण तक, अध्ययन-३२ गाथा १ अपूर्ण से अध्ययन-३२ गाथा ९० अपूर्ण तक व
अध्ययन-३२ गाथा १०८ अपूर्ण से अध्ययन-३६ गाथा २ अपूर्ण तक है.) ६२७०४. सिद्धांतसार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३-१(१)=२२, जैदे., (२६४१०.५, १४४५१).
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