Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 15
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 466
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ www.kobatirth.org जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि भुवण पईवं वीरं नमिऊण अंतिः रुदाओ सुव समुद्दाओ, गाथा-५१. गाथा - ५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः भुवन कहीजै तीन; अंति: रूपीया समुद्र हुती.. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकर सह टबार्थ, पृ. ७अ १३अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवविचार प्रकरण- टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिण भुवन तेहनइ; अंति: ते मांहिथी उद्धर्यो. " ६२७११. (७) सभाश्रृंगार वचन चातुरी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६. प्र. वि. प्रथम पत्र बाद में लिखा गया है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १५X४०-४५). सभाश्रृंगार वचन चातुरी मा.गु., पद्य, आदि: नाभिनंदन सकल जगत्त्र, अंतिः स्नेहवती घोषणाः ६२७१२. (+४) जीवविचार, नवतत्त्व व विचारषट्त्रिंशिका सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १८, कुल पे. ३, ले.स्थल. गेहरसर, प्रले. मु. डुंगरसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जीवे. (२६१०.५, ५X३०-३५ ). " १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊंण, अंतिः रुदाउ सुसमुद्दाउ, नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: क्क१४ णिक्काय१५, गाथा-६०. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि जीव कहतां प्राणधी १० अंति: १४ अनेकसिद्धि १५. ३. पे. नाम. विचारषट्त्रिंशिका सह टबार्थ, पृ. १३अ - १८अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिऊण चउवीसजिणे तस्स, अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा - ३९. ६२७१४. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ चउवीस; अंति: आतमानइ हितकारिणी. ६२७१३. (+) पक्खिसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५x११. ६x४७-५०). ४५१ पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., पग, आदि तित्यंकरे अ तित्थे, अंति: जेसिं सुवसायरे भत्ती. पाक्षिकसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थनइ करइ अथवा ०; अंतिः रूप समुद्रनै विषइ. (#) । षद्रव्य संग्रह सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १८. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे.. (२५.५X१०.५, ९X३१). द्रव्यसंग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: जीवमजीवं दव्वं जिणवर; अंति: चंदमुणिणा भणिय जं, अधिकार-३, गाथा-५८. द्रव्य संग्रह - टीका, सं., गद्य, आदि: अहं नेमिचंद्रः तं; अंति: रताः तल्लब्धये भवत. ६२७१५. (+#) संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५X११, ११X३३-३६). . बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिठं अरिहंताई ठिङ, अंति; जा वीरजिण तित्थं, गावा- ३४९. ६२७१६. संबोधसप्ततिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५२, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १५, प्रले. पं. धीरविजय गणि (गुरु ग. जिनविजय); गुपि. ग. जिनविजय (गुरु पं. पद्मविजय); पठ. श्रावि. कल्याण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले. श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, (१९४९) मंगला लेखकनां च जैदे. (२५X१०.५, ३x४१-४४). " " संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा- ८५, (ले. स्थल. सप्तच्छदीनगर) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ऐं नमस्ते जगन्नेत; अंति: मोक्ष हुई सहीज, ग्रं. ८२५, (ले. स्थल. आउआनगर) For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612