Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 15
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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४५४
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंतिः (-), प्रतिपूर्ण. मौनैकादशी स्तुति - टीका, सं., गद्य, आदि: कल्याणकानां पंचकंअद : अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
६२७३१. (+) आराधनासूत्र सह टवार्थ व चार मेघवर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे, २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५४१०.५, ५४२८-३२).
१. पे. नाम. आराधना प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ - ९अ, संपूर्ण.
पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण भणइ एवं भयवं; अंति: लहंति ते सासयं सुखं, गाथा- ७०,
ग्रं. २४५.
पर्यंताराधना-टबार्थ”, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने कल्याण; अंति: सास्वतो सुख पांमई.
२. पे. नाम. चारमेघ वर्णन, पृ. ९अ, संपूर्ण.
स्थानांगसूत्र- हिस्सा स्थानक४ उद्देश ४ मेघपद से परिनिंदिता पद का चारमेघ विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: चार प्रकारना मेघ, अंति: पांचमा आरलगणु हुवै,
६२७३२. (४) दशवैकालिकसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २५-१५ (१ से १४,१६) = १०. पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, ११३५).
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दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा. पद्म, वी. रवी, आदि (-); अंति: (-) (पू.वि. अध्ययन ६ गाथा- १२ अपूर्ण से गाथा ३७ अपूर्ण तक व गाथा ६१ अपूर्ण से अध्ययन- ९ उद्देश ४ अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
६२७३३. गौतमपृच्छा सह कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२-१ (१) =११, जैदे. (२५x१०५ २ १४X३९-४७).
"
गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: दुमेहो जायए पुरिसो, प्रश्न- ४८, गाथा - ३१, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा५ अपूर्ण से है., वि. पूर्णता सूचक संकेत नहीं है.)
गौतमपृच्छा - बालावबोध+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंतिः पिण न्यायथाइ नहीं, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं है. ६२७३४. (+) योगशास्त्र- प्रकाश ३ से ४, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १० प्रसं उपा. कनकतिलक गणि, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जीवे., (२६११, १४X३५-४०).
योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण ६२७३५. नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९, जैये. (२६४१०.५, ४४३६)
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवार जीवार पुण्णं३: अंति: अनंतभागोसिद्धिगओ, गाथा ४८.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः साची वस्तुनउं स्वरूप; अंति: ते निश्चय करीयां नव... ६२७३६, (४) भक्तामर स्तोत्र व कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे २ प्रले. आ. धर्मरत्नसूर (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १६X५६).
१. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह टीका, पृ. १अ - ५आ, संपूर्ण.
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणति मौलि, अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र- अवचूरि, सं., गद्य, आदिः किल इति स्तये अहमपि अंतिः जसं निरंतर कंठघृतां.
२. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, प्र. ५आ- ९अ, संपूर्ण.
कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंति: मोक्षं प्रपद्यंते,
लोक-४४.
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कल्याणमंदिर स्तोत्र - टीका, सं., गद्य, आदि: किल इति संभावनायां; अंतिः किं० विगलितमलनिचयाः.
६२७३७.
(+#)
उपस्थापना विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x१०.५. १५४५३).

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