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जीवन से बढ़कर ग्रंथ नहीं
जीवन और जगत् को पढ़ना दुनिया की किसी भी महानतम पुस्तक को पढ़ने से ज्यादा बेहतर है।
यह सृष्टि कितनी सुंदर, स्वर्गिक और मधुरिम है! सृष्टि का पहला सत्य
स्वयं सृष्टि का होना और सृष्टि में हमारा होना है। सृष्टि को जब खुली आंखों से देखते हैं, तो सृष्टि का होना और सृष्टि में हमारे अस्तित्व का होना, हमारे लिए सत्य का पहला कदम है। मुझे सृष्टि से प्यार है। जितना सृष्टि से है, उतना ही सृष्टि पर जीवन जी रहे आप सब हम-मुसाफिरों से। जितना आपसे और इस अखिल सष्टि से प्यार है, उतना ही अपने आप से। मैंने कहा-अपने आपसे, पर यथार्थ तो यह है कि स्वार्थ युक्त व्यक्ति का केवल अपने आप से ही अनुराग होता है, लेकिन निःस्वार्थ चेतना के लिए स्व-पर का भेद मिट जाता है और 'वसुधैव कुटुम्बकम्' उसके जीवन का मंत्र हो जाता है।
ऐसा है जगत् का सत्य अपनी शांतचित्त-स्थिति में जब-जब भी बैठकर इस सारे जगत् को निहारता हूं, तो अनायास ही जगत् के प्रति अहोभाव उमड़ आता है, यह देखकर कि यह सारी रचना कितनी सुंदर है। प्रकृति के द्वारा रचे गए पहाड़, उमड़ते-घुमड़ते
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