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जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क
नहीं रखने का निर्देश करते हुए आहार संबंधी दोषों का भी नामोल्लेख किया गया है । कल्पनीय भिक्षा के अन्तर्गत नव कोटि विशुद्ध आहार ग्रहण करने के कारणों एवं उपकरण आदि की सजगता का निर्देश किया है। निर्ग्रन्थों के आंतरिक स्वरूप एवं निर्ग्रथों की ३१ उपमाओं का निरूपण भी इसमें किया गया है। अपरिग्रह व्रत के रक्षणार्थ ५ भावनाओं-श्रोत्रेन्द्रिय संयम, चक्षुरिन्द्रिय संयम, घ्राणेन्द्रिय संयम, रसनेन्द्रिय संयम और स्पर्शनेन्द्रिय संयम का सविस्तार वर्णन करते हुए इनके विषय विकारों से बचने का निर्देश किया है। अंत में सूत्रकार ने कथन किया है कि पाँचों इन्द्रियों के संवर से सम्पन्न और मन, वचन, काय से गुप्त होकर ही साधु को धर्म का आचरण करना चाहिए।
संवर द्वार का उपसंहार करते हुए सूत्रकार ने फरमाया है कि जो साधु पूर्वोक्त पच्चीस भावनाओं और ज्ञान, दर्शन से युक्त, कषाय और इन्द्रिय संवर से संवृत्त, प्राप्त संयम योग का प्रयत्नपूर्वक पालन और अप्राप्त संयमयोग की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहते हुए सर्वथा विशुद्ध श्रद्धावान होता हैं, वह इन संवरों की आराधना करके मुक्त होता है। इस प्रकार की विषय सामग्री का निरूपण प्रश्नव्याकरण सूत्र के अंतर्गत आर्य सुधर्मा स्वामी ने जम्बूस्वामी के समक्ष प्रकट किया है।
व्याख्याता, अलीगढ़, जिला-टोंक (राज.)
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