Book Title: Jinvani Special issue on Jain Agam April 2002
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 539
________________ 1524 जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क सुमतिचन्द जी मेहता ने किया। दीक्षा महोत्सव पर विभिन्न स्थानों के लगभग ४ हजार लोग उपस्थित थे। आवास, भोजनादि की सुन्दर व्यवस्था में लुणावत परिवार एवं कवाड़ परिवार का प्रमुख योगदान रहा। शोभायात्रा एवं अभिनन्दन कार्यक्रम- दीक्षाभिषेक के एक दिन पूर्व २४ फरवरी २००२ को प्रात: १० बजे चारों ममक्ष बहिनों की भव्य शोभायात्रा, भक्ति गीत, भजन, गगनभेदी जयनाद के साथ पीपाड़ के प्रमुख मार्गों से निकल कर कोट में विसर्जित हुई। इसी दिन सायं ७ बजे पश्चात् श्री वर्द्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ-पीपाड़ शहर, श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ-पीपाड़ शहर एवं अखिल भारतीय श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ के संयुक्त तत्त्वावधान में वीर मातापिता और दीक्षार्थिनों बहिनों का स्वागत-अभिनन्दन का कार्यक्रम अखिल भारतीय श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ के अध्यक्ष माननीय श्री रतनलाल जी बाफना की अध्यक्षता में श्री ओसवाल लोडे साजन विकास केन्द्र (कोट) में रखा गया। समारोह में श्री चुन्नीलाल जी सैनी एस.डी.एम. तथा श्री बाबूलाल जी टाक, नगराध्यक्ष विशिष्ट अतिथि के रूप में पधारे। समारोह में मुमुक्षु बहिनों एवं वीर माता-पिताओं को अभिनन्दन पत्र एवं रजत पट्टिका पर प्रशस्ति-सम्मान अर्पित किया गया। समारोह में विरक्ता बहनों ने अपने विचार प्रकट करते हुए संयमजीवन के महत्त्व का प्रतिपादन किया। समारोह के अध्यक्ष श्री रतनलाल जी बाफना ने जीवन की नश्वरता को समझ कर संयम द्वारा इसे सार्थक बनाने की प्रेरणा की। बड़ी दीक्षा भोपालगढ़ में ३ मार्च २००२ को भोपालगढ़ में मधुर व्याख्यानी श्री गौतममुनि जी म.सा. के मुखारविन्द से चारों नवदीक्षिता साध्वियों की बड़ी दीक्षा सम्पन्न हुई। नवदीक्षिता साध्वियों के नाम निम्नानुसार रखे गएसुशीला जी लुणावत -महासती श्री संयमप्रभा जी अनिता जी जैन -महासती श्री वृद्धिप्रभा जी समता जी लुणावत -महासती श्री ऋद्धिप्रभा जी डिम्पल जी जैन -महासती श्री सिद्धिप्रभा जी पूर्व विधायक श्री रामनारायण जी डूडी और भोपालगढ़ के सरपंच ने अपने हृदयोद्गार में जैन सन्त-सतीवृन्द के तपःपूत साधनामय जीवन को श्रेष्ठ बताते हुए अपनी ओर से नवदीक्षिता महासती-मण्डल हेतु संयम साधना में उत्तरोत्तर प्रगति की कामना की। कार्यक्रम का संचालन सुश्रावक श्री नेमीचन्द जी कर्णावट ने किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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