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जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क | का आरोपण, दिशानुज्ञा, निर्गम (विहार), प्रवेश आदि कार्यों के सम्बन्ध में तिथि, करण, नक्षत्र, मुहूर्त एवं योग का निर्देश हो वह गणिविद्या कहलाता है। (नन्दिसुत्तं प्रा.टे.सो; अहमदाबाद, पृ० ७१) विषयवस्तु:- गणिविद्या प्रकीर्णक में नौ विषयों का निरूपण है :दिवसतिथि नक्षत्र, करण, ग्रह, मुहूर्त, शकुनबल, लग्नबल और निमित्तबल। इसमें दिवस के बलाबल विधि का निरूपण है। चन्द्रमा की एक कला को तिथि माना जाता है। इन तिथियों का नामकरण नन्दा, भद्रा, विजया, रिक्ता, पूर्णा आदि रूपों में किया गया है। तारों के समुदाय को नक्षत्र कहते हैं। इन तारा समूहों से आकाश में बनने वाली अश्व, हाथी, सर्प, हाथ आदि की आकृतियों के आधार पर नक्षत्र का नामकरण किया जाता है। तिथि के आधे भाग को करण कहते है। जिस दिन की प्रथम होरा का जो गृहस्वामी होता है उस दिन उसी ग्रह के नाम का वार (दिवस) रहता है ये सात हैं - रवि, सोम मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र एवं शनि। तीस मुहूर्त का एक दिन-रात होता है। प्रत्येक कार्य को करने के पूर्व घटित होने वाले शुभत्व या अशुभत्व का विचार करना शकुन कहलाता है। लग्न का अर्थ है - वह क्षण जिसमें सूर्य का प्रवेश किसी राशि विशेष में होता है। लग्न के आधार पर किसी कार्य के शुभ-अशुभ फल का विचार करना लग्न शास्त्र कहा जाता है। भविष्य आदि जानने के प्रकार को निमित्त कहा जाता है। गणिविद्या प्रकीर्णक में दैनंदिन जीवन के व्यवहार, गमन, अध्ययन, स्वाध्याय, दीक्षा, व्रतस्थापन आदि के लिए उपयोगी एवं अनुपयोगी दिवस, तिथि, नक्षत्र, करण, ग्रह मुहूर्त, शकुन, लग्न और निमित्तों का निरूपण किया गया है तथा इन्हे उत्तरोत्तर बलवान कहा है।
___ गणिविद्या प्रकीर्णक और अन्य आगम एवं ज्योतिष ग्रन्थों क तुलनात्मक विवरण गणिविज्जापइण्णयं में दिया गया है। ५.मरणविभत्ति पइण्णय:
मरणविभक्ति प्रकीर्णक को मरणसमाधि प्रकीर्णक नाम से भी जान जाता है, जिसमें कथाओं के प्रसंग से अन्त समय की साधना का निरूपण है इसका परिचय नंदिसूत्र की चूर्णि और वृत्ति में प्रायः समान रूप से मिलता है कि 'मरण का अर्थ है पाप त्याग। मरण के प्रशस्त और अप्रशस्त इन दो भेदे का जिसमें विस्तार से वर्णन है वह अध्ययन मरण-विभक्ति कहलाता है। पाक्षिक सूत्र में उक्त परिचय देते हुए मरण के सत्रह भेद बताए गए हैं। परम्परागत मान्य दस प्रकीर्णकों में यह सबसे बड़ा है। इसमें ६६१ गाथाएँ हैं ग्रन्थकार के अनुसार (१) मरणविभक्ति (२) मरणविशोधि (३) मरणसमाधि (४) संलेखनाश्रुत (५) भक्तपरिज्ञा (६) आतुरप्रत्याख्यान (७) महाप्रत्याख्यान
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