Book Title: Jinvani Special issue on Jain Agam April 2002
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 495
________________ ETES [480 जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क इसमें आलोचना आदि पदों की व्याख्यापूर्वक शुद्ध भाव से आलोचना करना, क्षिप्तचित्त और दीप्तचित्त साधुओं की सेवा-सुश्रूषा करना, साधुओं के विहार की विधि, साधु-साध्वियों को अपने सगे-संबंधियों के घर से आहार आदि ग्रहण करने की विधि का विधान, अन्य समुदाय से आने वाले साधु-साध्वियों को अपने समुदाय में लेने के नियमों का विवेचन तथा उनके शयन, बाल दीक्षा-विधि आदि का विवेचन किया गया है। बृहत्कल्प लघुभाष्य-संघदासगणि क्षमाश्रमण इस भाष्य के रचयिता हैं। बृहत्कल्प के सूत्रों का इसमें विवेचन किया गया है। पीठिका के अतिरिक्त यह छह उद्देशकों में विभक्त है। बृहत्कल्प-लघुभाष्य की पीठिका में ८०५ गाथाएं हैं, जिनमें ज्ञानपंचक, सम्यक्त्व, सूत्रपरिषद्, स्थंडिलभूमि, पात्रलेप, गोचर्या, बसति की रक्षा, वस्त्रग्रहण, अवग्रह, विहार आदि का वर्णन है। स्त्रियों के लिए भूयवाद (दृष्टिवाद) पढ़ने का निषेध है। इसमें श्रावकभार्या, साप्तपदिक, कोंकणदारक, नकुल, कमलामेला, शंब का साहस और श्रेणिक के क्रोध की कथाओं का वर्णन है। बृहत्कल्प-बृहत्भाष्य- यह भाष्य अधूरा ही उपलब्ध है। इस भाष्य में पीठिका और प्रारम्भ के दो उद्देशक पूर्ण हैं, और तीसरा उद्देशक अपूर्ण है। बृहत्कल्प- लघुभाष्यगत विषयों का ही यहां विस्तृत विवेचन किया गया है। जीतकल्पभाष्य- जीतकल्पभाष्य पर जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण का स्वोपज्ञ भाष्य है। यह भाष्य वस्तुत: बृहत्कल्प लघुभाष्य, व्यवहार भाष्य, पंचकल्प महाभाष्य और पिण्डनियुक्ति आदि ग्रंथों की गाथाओं का संग्रह है। इनमें पांच ज्ञान, प्रायश्चित्त स्थान, भक्तपरिज्ञा की विधि, इंगिनीमरण और पादोपगमन का लक्षण, गुप्ति-समिति का स्वरूप, ज्ञान-दर्शन-चारित्र के अतिचार, उत्पादना का स्वरूप, ग्रहणैषणा का लक्षण, दान का स्वरूप आदि विषयों का प्रतिपादन किया है। यहां क्रोध के लिए क्षपक, मान के लिए क्षुल्लक, माया के लिए आषाढ़भूति, लोभ के लिए सिंहकेसर, मोदक के इच्छुक क्षपक, विद्या के लिए बौद्ध उपासक, मन्त्र के लिए पादलिप्त और मुरुण्डराज, चूर्ण के लिए क्षुल्लकद्वय और योग के लिए ब्रह्मद्वीपवासी तापसों के उदाहरण प्रस्तुत किए गए हैं। उत्तराध्ययनभाष्य- शान्तिसूरि की पाइयटीका में भाष्य की कुछ ही गाथाएं उपलब्ध होती हैं। अन्य भाष्य की गाथाओं की भांति इस भाष्य की गाथाएं भी नियुक्ति के साथ मिश्रित हो गई हैं। इनमें बोटिक की उत्पत्ति तथा पुलाक, बकुश, कुशील, निर्ग्रन्थ और स्नातक नाम के जैन निर्ग्रन्थ साधुओं के स्वरूप का प्रतिपादन है। इसमें केवल 45 गाथाएं हैं। आवश्यकभाष्य- आवश्यक सूत्र पर मूलभाष्य, भाष्य और विशेषावश्यक महाभाष्य लिखे गए हैं। इस सूत्र की नियुक्ति में १६२३ गाथाएं हैं, जबकि भाष्य में कुल २५३ गाथाएं उपलब्ध होती हैं। यहा भी भाष्य और नियुक्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ww

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