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जिनवाणी-- जैनागम-साहित्य विशेषाङक को भी सज्जन करता है फिर इसके लिये ऐसा परहेज क्यों? बात यह है कि ज्ञान दो प्रकार का है- एक ग्रहण शिक्षा रूप दूसरा सेवन रूप। इनमें पदार्थ ज्ञान एवं उत्सर्गापवाद की शिक्षा वाला जो प्रथम ज्ञान है उसके लिये
अधिकारी का विचार आवश्यक है। आज भी अणुविज्ञान आदि के तत्त्व गुप्त रखे जाते हैं, कारण कि उनके दुरुपयोग की आशंका रहती है। इसलिये भाष्यकार कहते हैं कि शास्त्र के रहस्यों को जो साधारण में प्रगट करता है
और अपवाद पद का गलत उपयोग करता है वैसे ज्ञान-दर्शन-चारित्र की शिथिल प्रवृत्ति वाले को ज्ञान देना दोष का हेतु है। ऐसे अपात्र में शास्त्रज्ञान देने वाला चतुर्गतिक संसार में परिभ्रमण करता है। इसलिये कल्पशास्त्र का ज्ञान देने के लिये निम्न गुण देखने चाहिये -
... अरहस्सधारए, पारए य, असढकरणे तुलासमं समिते। ___ कप्पाणु-पालणा दीवणाय, आराहण छिन्न संसारी।।6490
अर्थात् जो गम्भीर रहस्य को धारण करने वाला है, प्रारम्भ किये श्रुत को बीच में नहीं छोड़ता, छल और अहंकार से दूर तथा तुला के समान रागद्वेष रहित समबुद्धि वाला है, जितेन्द्रिय है, उसको शास्त्रज्ञान देना चाहिए, जिससे भगवत्कथित कल्प की आराधना हो अथवा जो शास्त्र कथित विधि का पालन करे उसको देना चाहिये। ऐसा करने से जिनमार्ग की दीपना होती
विषयवस्तु
बृहत्कल्पसूत्र में कुल ६ उद्देशक एवं ८१ अधिकार हैं। प्रत्येक अधिकार में भिन्न-भिन्न विषयों की चर्चा है। सूत्रों की संख्या २०६ है। प्रथम उद्देशक
प्रथम उद्देशक में २४ अधिकार हैं। पहले प्रलंबाधिकार है, जिसमें कहा गया है कि ताल एवं केला आदि प्रलंबफल साधु-साध्वियों को कैसा लेना और कैसा नहीं लेना। कच्चा हो तो साधु-साध्वियों को बिना कटा लेना नहीं कल्पता, कटा हुआ ले सकते हैं। साधुओं के लिये पक्के ताल प्रलंब का निषेध नहीं, किन्तु साध्वी उसे भी विधिपूर्वक कटे होने पर ले सकती है, अन्यथा नहीं।
दूसरा मास कल्पाधिकार है। इसमें कहा है कि वर्षाकाल के अतिरिक्त साधर मास और साध्वी २ मास एक गांव में रह सकते हैं। यदि गांव बाहर भीतर आदि रूप से दो भाग में हो तो द्विगुण काल तक रह सकते हैं, किन्तु उस समय जहां रहते हों उसी हिस्से से भिक्षा लेनी चाहिए। तीसरे अधिकार में साधु-साध्वियों के एक गावं में एकत्र रहने का विचार है। जो गांव एक ही द्वार वाला हो, जहाँ उसी से निकलना और प्रवेश करना हो वहां दोनों को एक साथ रहना निषिद्ध है। भिन्न मार्ग होने पर रह सकते हैं। चौथे उपाश्रय अधिकार में साध्वियों के लिये बाजार या गली के मुंह पर ठहरना निषिद्ध
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