Book Title: Jinvani Special issue on Jain Agam April 2002
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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[406E ER जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क दीपिका शिशुबोधिनी (१६४१)-अजितदेव सूरि, कल्पलता (१६४२)-समयसुन्दर, खरतरगच्छीय, सुबोधिका(१६३९)-- विनयविजय, कौमुदी (१६५०)-शान्तिसागर, तपागच्छीय, बालावबोध (१६९३)-दानविजयगणि, तपागच्छ, कल्पबोधिनी (१७३१)-न्यायसागर, तपागच्छ, कल्पद्रुमकलिका (लगभग १८३५)--लक्ष्मीवल्लभगणि, खरतरगच्छ, सूत्रार्थप्रबोधिनी (१८९७)-विजयराजेन्द्रसूरि, त्रिस्तुतिगच्छ, कल्पलता-गुणविजयगणि, तपागच्छ, दीपिका- बुद्धविजय, अवचूरिउदयसागर, अंचलगच्छ, अवचूरि–महीमेरु, कल्पोद्योत-न्यायविजय, अन्तर्वाचना(१४००)-गुणरत्नसूरि, अन्तर्वाचना–कुलमण्डन सूरि, अन्तर्वाचना-रत्नशेखर, अन्तर्वाचना-जिनहंस, अन्तर्वाच्य-भक्तिलाभ, अन्तर्वाच्य-जयसुन्दरसूरि, अन्तर्वाच्य-सोमसुन्दरसूरि, स्तबकपार्श्वचन्द्रसूरि, स्तबक-रामचन्द्रसूरि, मडाहडगच्छ, स्तबक(१५८२)सोमविमलसूरि, तपागच्छ, बालावबोध- क्षमाविजय,बालावबोध(१६५०)मेरुविजय,स्तबक(१९७२)-विद्याविलासगणि, खरतरगच्छ, बालावबोध (१६७६)-सुखसागर और मांगलिकमाला (१७०६)।
संदर्भः १. वी.एस आप्टे, संस्कृत हिन्दी कोश, मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स लिमिटेड,
दिल्ली १९९३, पृ. ३९२ २. प्रवचनसार, ३/१६, आचार्य कुन्दकुन्द, परमश्रुतप्रभावकमण्डल, बम्हाई १०१२ । ३. सर्वार्थसिद्धि,७/२५, पूज्यपाद, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी १९५५ । ४. तत्त्वार्थभाष्यवृत्ति, ९/२२, सिद्धसेनगणि, दे.ला.पु., फण्ड, बम्बई १९२९ । ५. छेयसुयमुत्तमसुयं, निशीथभाष्यचूर्णि, भाग ४, ६/४८, सम्पा. अमरमुनि, ग्र.मा. ६,
भारतीय विद्या प्रकाशन, दिल्ली एवं सन्मति ज्ञानपीठ, वीरायतन, राजगृह। ६. छेयसुयं कम्हा उत्तमसुतं? भण्णामि-जम्हा एत्थं सपायच्छित्तो विधी भण्णति, जम्हा
एतेणच्चरणविशुद्धं करेति, तम्हा तं उत्तमसुतं। नि.भा.चू. भाष्यगाथा, ६/८४ की
चूर्णि। ७. प्रो. एच.आर. कापड़िया, द कैनानिकल लिटरेचर ऑव द जैनाज, लेखक, सूरत,
१९४१, पृ. ३६, पादटिप्पण सं. ३। ८. वही, पृ. ३६। ९. वही, पृ. ३६। १० आचार्य देवेन्द्र मुनि, जैन आगम साहित्य, तारक गुरु जैन ग्र.मा. सं. ७१, तारक गुरु
जैन ग्रन्थालय, उदयपुर १९७७ पु. २३-२४। ११. कापड़िया, कैनानिकल, सूरत १९४१, पृ. ३७। १२. वही, पृ. ३९। १३. प्रो. जैन, "अर्धमागधी आगम'' जैन आयाम-५, पार्श्वनाथ, १९९४, पृ.९ । १४. देवेन्द्रमुनि, "छेदसूत्र'', त्रीणिछेदसूत्राणि, ब्यावर १९८२, पृ. ४१ । १५. वही, पृ. ४२! १६. पंचकल्पचूर्णि, पत्र १ (लिखित), द्रष्टव्य-वही, पृ. ४२ । १७. पं. मालवणिया, जैन साहित्य का बृहद् इतिहास-एक, पार्श्वनाथ, १९८१, पृ. ४१ ।
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