Book Title: Jinendra Vandana evam Barah Bhavana
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 6
________________ ८. श्री चन्द्रप्रभ वन्दना रति - अरतिहर श्री चन्द्र जिन तुम ही अपूरव चन्द्र हो । निश्शेष हो निर्दोष हो निर्विघ्न हो निष्कंप हो ॥ निकलंक हो अकलंक हो निष्ताप हो निष्पाप हो । यदि हैं अमावस अज्ञजन तो पूर्णमासी आप हो ॥ ९. श्री सुविधिनाथ (पुष्पदंत) वन्दना विरहित विविध विधि सुविधि जिन निज आतमा में लीन हो । हो सर्वगुण सम्पन्न जिन सर्वज्ञ हो स्वाधीन हो ॥ शिवमग बतावनहार हो शत इन्द्र करि अभिवन्द्य दुख - शोकहर भ्रमरोगहर संतोषकर हो । सानन्द हो ॥ (५)

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