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२२. श्री नेमिनाथ वन्दना आसन बिना आसन जमा गिरनार पर घनश्याम तन। सद्बोध पाया आपने जग को बताया नेमि जिन।। स्वाधीन है प्रत्येक जन स्वाधीन है प्रत्येक कन। पर द्रव्य से है पृथक् पर हर द्रव्य अपने में मगन॥
२३. श्री पार्श्वनाथ वन्दना तुम हो अचेलक पार्श्वप्रभु वस्त्रादि सब परित्याग कर। तुम वीतरागी हो गये रागादिभाव निवार कर॥ तुमने बताया जगत को प्रत्येक कण स्वाधीन है। कर्त्ता न धर्ता कोई है अणु अणु स्वयं में लीन है॥
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