Book Title: Jinendra Vandana evam Barah Bhavana
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 18
________________ बारह भावना १. अनित्यभावना भोर की स्वर्णिम छटा सम क्षणिक सब संयोग हैं। पद्मपत्रों पर पड़े जलबिन्दु सम सब भोग हैं। सान्ध्य दिनकर लालिमा सम लालिमा है भाल की। सब पर पड़ी मनहूस छाया विकट काल कराल की॥ अंजुली-जल सम जवानी क्षीण होती जा रही। प्रत्येक पल जर्जर जरा नजदीक आती जा रही॥ काल की काली घटा प्रत्येक क्षण मंडरा रही। किन्तु पल-पल विषय-तृष्णा तरुण होती जा रही। ( १७)


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