Book Title: Jinendra Vandana evam Barah Bhavana
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 26
________________ ५. अन्यत्वभावना जिस देह में आतम रहे वह देह भी जब भिन्न है। तब क्या करें उनकी कथा जो क्षेत्र से भी अन्य हैं। हैं भिन्न परिजन भिन्न पुरजन भिन्न ही धन-धाम हैं। हैं भिन्न भगिनी भिन्न जननी भिन्न ही प्रिय वाम है। अनुज-अग्रज सुत-सुता प्रिय सुहृद जन सब भिन्न हैं। ये शुभ अशुभ संयोगजा चिवृत्तियाँ भी अन्य हैं। स्वोन्मुख चिवृत्तियाँ भी आतमा से अन्य हैं। चैतन्यमय ध्रुव आतमा गुणभेद से भी भिन्न है। ( २५ )

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