Book Title: Jinendra Vandana evam Barah Bhavana
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 43
________________ यह आत्मा दूसरों को सुधारने के निरर्थक प्रयत्न में जितनी शक्ति और समय नष्ट करता है, यदि उसका शतांश भी अपने को सुधारने में लगाए तो पूर्ण सुखी हुए बिना न रहे। सत्य की खोज, पृ. १७ X X X X आत्महित करना है तो इन प्रतिकूल संयोगों में ही करना होगा । इन संयोगों को हटाना अपने हाथ की बात तो है नहीं। हाँ, हम चाहें तो इन संयोगों पर से अपना लक्ष्य हटा सकते हैं, दृष्टि हटा सकते हैं । यही एक उपाय है आत्महित करने का । अन्य कोई उपाय नहीं । सत्य की खोज, पृ. २१५ ( ४२ ) X - -

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