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चेतना का वास है दुर्गन्धमय इस देह में। शुद्धातमा का वास है इस मलिन कारागेह में ॥ इस देह के संयोग में जो वस्तु पलभर आयगी । वह भी मलिन मल-मूत्रमय दुर्गन्धमय हो जायगी ॥
आतमा ।
आतमा ॥
किन्तु रह इस देह में निर्मल रहा जो वह ज्ञेय है श्रद्धेय है बस ध्येय भी वह उस आतमा की साधना ही भावना का ध्रुवधाम की की आराधना आराधना का सार है ॥
सार है।
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