Book Title: Jinendra Vandana evam Barah Bhavana
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 36
________________ ... १०. लोकभावना निज आतमा के भान बिन षद्रव्यमय इस लोक में। भ्रमरोगवश भव-भव भ्रमण करता रहा त्रैलोक्य में॥ करता रहा नित संसरण जगजालमय गति चार में। समभाव बिन सुख रञ्च भी पाया नहीं संसार में॥ नर नर्क स्वर्ग निगोद में परिभ्रमण ही संसार है। षद्रव्यमय इस लोक में बस आतमा ही सार है। निज आतमा ही सार है स्वाधीन है सम्पूर्ण है। आराध्य है सत्यार्थ है परमार्थ है परिपूर्ण है। (३५)

Loading...

Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50