Book Title: Jinendra Vandana evam Barah Bhavana
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ ६. श्री पद्मप्रभ वन्दना मानता आनन्द सब जग हास में पर आपने निर्मद किया परिहास को परिहास भी है परीग्रह जग को बताया हे पद्मप्रभ परमात्मा पावन किया जग ७. श्री सुपार्श्वनाथ वन्दना पारस सुपारस है वही पारस करे जो वह आतमा ही है सुपारस जो स्वयं निर्मोह रति - राग वर्जित आतमा ही लोक में आराध्य है। निज आतमा का ध्यान ही बस साधना है साध्य है | लोह को । हो ॥ ( ४ ) परिहास परिहास में । में ॥ आपने । आपने ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50