________________
१६. श्री शान्तिनाथ वन्दना मोहक महल मणिमाल मंडित सम्पदा षट्खण्ड की। हे शान्ति जिन तृण-सम-तजी ली शरण एक अखण्ड की॥ पायो अखण्डानन्द दर्शन ज्ञान बीरज आपने। संसार पार उतारनी दी देशना प्रभु आपने॥
१७. श्री कुन्थुनाथ वन्दना मनहर मदन तन वरन सुवरन सुमन सुमन समान ही। धनधान्य पूरित सम्पदा अगणित कुबेर समान थी॥ थीं उरवसी सी अंगनाएँ संगनी संसार की। श्री कुन्थु जिन तृण-सम तजी ली राह भवदधि पार की।
(९)