Book Title: Jinendra Vandana evam Barah Bhavana Author(s): Hukamchand Bharilla Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 9
________________ १४. श्री अनन्तनाथ वन्दना तुम हो अनादि अनंत जिन तुम ही अखण्डानन्त हो। तुम वेद विरहत वेद-विद शिव कामिनी के कन्त हो॥ तुम सन्त हो भगवन्त हो तुम भवजलधि के अन्त हो। तुम में अनन्तानन्त गुण तुम ही अनन्तानन्त हो। १५. श्री धर्मनाथ वन्दना हे धर्म जिन सद्धर्ममय सत् धर्म के आधार हो। भवभूमि का परित्याग कर जिन भवजलधि के पार हो। आराधना आराधकर आराधना के सार हो। धरमातमा परमातमा तुम धर्म के अवतार हो॥ (८)Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50