Book Title: Jinagam Ke Anmol Ratna Author(s): Rajkumar Jain, Mukesh Shastri Publisher: Kundkund Sahtiya Prakashan Samiti View full book textPage 8
________________ जिनागम के अनमोल रत्न] इंदसदवंदियाणं तिहुवणहिदमधुरविसदवक्काणं। अंतातीदगुणाणं णमो जिणाणं जिदभवाणं ।। (पंचास्तिकाय, आचार्य कुन्दकुन्द देव) सहजानन्द चैतन्य, प्रकाशाय महीयसे। नमो अनेकान्त, विश्रान्त महिम्ने परमात्मने। (पंचास्तिकाय संग्रह कलश, आ. अमृतचन्द्र स्वामी) काऊण णमुक्कारं जिणवरवसहस्स वड्ढमास्स। दंसणमग्गं वोच्छामि जहाकम्मं समासेण।। (अष्टपाहुड़, आचार्य कुन्दकुन्द देव) जीवमजीवं दव्वं जिणवरवसहेण जेण णिद्दिटुं । देविंदविंदवंदं वंदे तं सव्वदा सिरसा।। (बृहद् द्रव्यसंग्रह, आ. नेमिचन्द्र सिद्धान्तदेव) तज्जयति परमज्योतिः समं समस्तैरनन्त पर्यायैः। दर्पण तल इव सकला, प्रतिफलति पदार्थ मालिका यत्र। (पुरुषार्थ सिद्धयुपाय, आ. अमृतचन्द्र स्वामी) नमः श्री वर्धमानाय, नि त कलिलात्मने । सालोकानां त्रिलोकानां यद्विद्या दर्पणायते।। (रत्नकरण्ड श्रावकाचार, आचार्य समन्तभद्र स्वामी) मोक्षमार्गस्य नेत्तारं, भेत्तारं कर्म भूभृताम्। ज्ञातारं विश्व तत्त्वानां, वन्दे तद्गुण लब्ध्ये ।। (तत्त्वार्थ सूत्र, आ. उमास्वामी) निज स्वरूपको परम रस, जामैं भरौ अपार। वन्दौ परमानन्दमय समयसार अविकार ।। __(नाटक समयसार, कविवर बनारसीदासजी) मंगलमय मंगल करन, वीतराग विज्ञान। नमौं ताहि जाते भये, अरहन्तादि महान।। (मोक्षमार्ग प्रकाशक, पं. टोडरमलजी) तीन भुवन में सार वीतराग विज्ञानता। शिव स्वरूप शिवकार, नमहूँ त्रियोग सम्हारिके।। (छहढाला, पं. दौलतरामजी)Page Navigation
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