Book Title: Jinagam Ke Anmol Ratna Author(s): Rajkumar Jain, Mukesh Shastri Publisher: Kundkund Sahtiya Prakashan Samiti View full book textPage 7
________________ 6] [जिनागम के अनमोल रत्न विभिन्न जिनागम से उद्धत् सोलह- मङ्गलाचरण वंदितु सव्वसिद्धे धुवमचलमणोवमं गदिं पत्ते। वोच्छामि समयपाहुड़मिणमो सुदकेवलीभणिदं।। (समयसार, आ. कुन्दकुन्द देव) नमः समयसाराय, स्वानुभूत्या चकासते। चित्स्वभावाय भावाय, सर्व भावान्तरच्छिदे ।। . (समयसार कलश, आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी) एस सुरासुरमणुसिंद. वंदिदं धोदघाइ कम्ममलं। पणमामि वड् ढमाणं तित्थं धम्मस कत्तारं ।। सेसे पुण तित्थयरे ससव्वसिद्धे विसुद्ध सब्भावे। समणे य णाण दंसणचरित्त तववीरियायारे ।। ते ते सव्वे समगं समगं पत्तेगमेव पत्तेगं। वंदामि य वटुंते अरहंते माणुसे खेत्ते ।। किच्चा अरहंताणं सिद्धाणं तह णमो गणहराणं। अज्झावयवग्गाणं साहू णं चेव सव्वेसिं।। तेसिं विसुद्धदंसण णाणहाणासमं समासेज्ज। उपसंपयामि सम्म जत्तो णिव्वाण संपत्ती।। (प्रवचनसार, आ. कुन्दकुन्द देव) सर्वव्याप्येक चिदूप, स्वरूपाय परात्मने । स्वोपलब्धि प्रसिद्धाय, ज्ञानानन्दात्मने नमः।। (प्रवचनसार कलश, आ. अमृतचन्द्र स्वामी) णमिऊण जिणं वीरं, अणंतवरणाण दंसण सहावं। बोच्छामि णियमसारं, केवलि सुदकेवलि भणिदं।। (नियमसार, आचार्य कुन्दकुन्द देव) त्वयि सति परमात्मान्मादृशान्मोहमुग्धान्। कथमतनुवशत्वान्बुद्ध के शान्यजेऽहं ॥ सुगतमगघरं वा वागधीशं शिवं वा, जितभवमभिवन्दे भासुरं श्रीजिनं वा।। (नियमसार कलश, श्री पद्मप्रभमलधारिदेव)Page Navigation
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