Book Title: Jambuchariyam
Author(s): Jinvijay, Chandanbalashree
Publisher: Bhadrankar Prakashan
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२२५
सोलसमो उद्देसओ
दइए निवेसियाई दइयाए धवलपम्हलच्छीणि । दोण्ह वि विरहभएणं जायाई. निमेसरहियाइं ॥४२२॥ माणकलिया वि पयडइ रायं दइयस्स पोढवरमहिला । सुरयसुहासापरिखित्तमाणसा पुलयभेएण ॥४२३॥ कवडेणं नासंतं दइयं दट्टण झत्ति मुद्धाए । अवहत्थिज्जइ माणं कंठविलग्गाए दइयस्स ॥४२४॥ विरहग्गिणा वि दड्ढो पहिओ कह कह वि पाविओ दइयं । अणवरयं चिय घुट्टइ तण्हासुसिओ व्व अहररसं ॥४२५।। सव्वो वि जणो सव्वायरेण संलद्धगरुयपसरेण । महुणा मयजज्जरिओ कीरइ मयबाणपहरेहिं ॥४२६॥ सज्झायझाणकलिए जुत्ते चारित्तकवयसंनद्धे । गुरुवयणतग्गयमणे मोत्तूणं साहुणो एक्के ॥४२७।। इय एरिसे वसंते मयणसरा नो मणं पि मउए वि । खुप्पंति जंबुहियए सिद्धिवहूनिब्भरमणस्स ॥४२८॥ गुरुवयणकवयकलिए जंबुकुमारे अलद्धसंपसरे । परिजूरइ पंचसरो विमुहीकयसयलवावारो ॥४२९॥ वयगहणनिच्छियमई जंबुकुमारं वियाणिउं ताहे । ण्हाणेह समाणत्तो जणएहि विलासिणीलोओ ॥४३०॥ माणिक्कवेइयाए कंचणपीढंमि जंबुवरनामो ।
उवविट्ठो विलयाहिं उवणीया मज्जणविही य ॥४३१॥ ताव य किं जायं ?अवि य- घोलंतकन्नकुंडलकंठविरायंतधवलहाराहिं ।
बाहुलयारयणवलयकलरवपरिमुहरियदिसाहिं ॥४३२॥ पिहुलनियंबयडट्ठियरसणाकिंककिणिकलप्पवालाहिं । चलचलणरयणनेउररवभरियनहंतरालाहि ॥४३३।।
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