Book Title: Jambuchariyam
Author(s): Jinvijay, Chandanbalashree
Publisher: Bhadrankar Prakashan
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२२४
जंबुचरियम् ता पसिय पसिय जयगुरु ! विहेसु पणईण कह वि तं वीर ! । कम्मकलंकविमुक्कं नियचलणासन्नपरिवासं" ॥४१०॥ एवं थुणिऊण जिणं सहिओ सो पणइणीहिं पणिवइओ । जिणपयकमले विमले पयाहिणं तह पुणो काउं ॥४११॥ काऊणं सयलं चिय जहारुहं तं पि तत्थ करणीयं । परियणसहिओ य गओ जिणभवणं जंबुणामो त्ति ॥४१२।। सहयारमंजरीगंधलुद्धभसलालिगीयसंवलिओ। ताव य माहवमासो समागओ जणमणाणंदो ॥४१३॥ केसुयनिहेण नज्जइ वणलच्छी महुसमागमे मुइया । पयडेइ रायभावं दइयस्स व पोढमहिल व्व ॥४१४॥ परिहरइ निययवावाइयं पि जो केसरी वणुद्देसे । पिसियं च भुक्खियं पिव किंसुयउक्केरसंकाए ॥४१५।। फुल्ली पलाससिहरे पलंबिए कुसुमनियरभारेण । देइ चलप्पं बहुसो असणत्थं मंससंकाए ॥४१६।। पंथियवंद्राई वणे दट्ठण(दटुं) सहयारमंजरीनियरे । ऊसुयमणाई बहुसो सरिउं दइयाण मुझंति ॥४१७।। कप्पूररेणुपरिमलमयरंदामोयनिब्भरसुयंधो । पहियाण दहइ हिययं सिसिरो विय दाहिणो पवणो ॥४१८॥ पहियदइयाण हियए चंदणमयरंदनिब्भरसुयंधो । विरहानलदड्ढाई दाहिणपवणो समुद्धवइ ॥४१९॥ सयराहं मुक्काओ जीएणं पहियदइयदइयाओ । ईसीसि जाव निसुओ कोइलकलकंठउल्लावो ॥४२०॥ दइयावाहजलेण वि पंथे न निवारिओ तहा दइओ । मांसलमयरंदेणं जह पाडलकुसुमगंधेण ॥४२१॥
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