Book Title: Jambuchariyam
Author(s): Jinvijay, Chandanbalashree
Publisher: Bhadrankar Prakashan

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Page 282
________________ २४९ सोलसमो उद्देसओ जओ- "अविराहियसामन्नस्स साहुणो सावगस्स य जहन्नो । सोहम्मे उववाओ भणिओ तेलोक्कदंसीर्हि" ॥७०९॥ [ ] तेणऽइयारविसद्धं पालेयव्वं अवस्स जा गहियं । अइयारे सेवितो निरत्थयं कुणइ सामइयं ॥७१०॥ दुप्पणिहाणं मणमाइयाण अणवट्ठियस्स करणं वा । सइसामइयाकरणं सामइए हुंति अइयारा ॥७११॥ सामाइयंमि उ कए घरचितं जो उ चिंतए सड्ढो । अट्टवसट्टोवगओ निरत्थयं तस्स सामइयं ॥७१२॥ कडसामइओ पुचि बुद्धीओ पेहिऊण भासेज्जा । सइ अणवज्जं वयणं अन्नह सामाइयं न भवे ॥७१३॥ अनिरिक्खियापमज्जिय थंडिल्ले ठाणमाइसेवंतो । हिंसाभावे वि न सो कडसामइओ पमायाओ ॥७१४॥ न सरइ पमायजुत्तो जो सामइयं कया उ कायव्वं । कयमकयं वा तस्स हु कयं पि विहलं तयं नेयं ॥७१५॥ काऊण तक्खणं चिय पारेड़ करेइ वा जहिच्छाए । अणवट्ठियसामइयं अणायराओ न तं सुद्धं ॥७१६॥ एयं नाऊण इमं वज्जेयव्वे इमे हु अइयारे । सुविसुद्धं सामइयं पालेयव्वं पयत्तेण ॥७१७॥ सामाइयं कुणंतो मंचड़ जरमरणरोगपउराओ । संसारओ अवस्सं पावइ य सुहं निराबाहं ॥७१८॥ देसावगासियं तह पुव्वग्गहियस्स गिण्हए निच्चं । अणुदियहं गिण्हतो विसेसलाहं जओ लहइ ॥७१९॥ न य दीहकालियं जं संवच्छरमाइयस्स कालस्स । परिमाणं इह गहियं दिणेण सयलं तरइ गंतुं ॥७२०॥ Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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