Book Title: Jambuchariyam
Author(s): Jinvijay, Chandanbalashree
Publisher: Bhadrankar Prakashan

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Page 298
________________ २६५ परिशिष्टम्-१ जंबुचरिये उद्धरणानामकाराद्यनुक्रमः ॥ | जं मारेसि रसंते चउत्थी उ बला नाम ३२९।२१६ | जं वुत्थो नवमासे चच्चरनिरंतरुब्भड ३१६।२१५ जं समयनाभिपुव्वं चत्तारि परमंगाणि ५४५।२३५ जं हरसि परधणाई चेइयसाहुसमीवे ६९६।२४७ जं होइ जियाण दुहं [चेईय ]कुलगणसंघ ७४८।२५२ जा विविहकलाकोसल्लचोप्पपडयं (?) मसिमंडियं १५।१७५ जायमेत्तस्स जंतुस्स चोल्लगपासगधन्ने २८०।२१२ जायाण वि जम्मजरा जाव य न दिति हिययं छट्ठी ओम( उण? )हायणी ३३१।२१६ जिणवंदणं कुणंतो जिणवंदणच्चण जीयं जलबिंदुसमं जइ जाणउं इसुहं माणउं ८१।३५ जइ वि धमिज्जइ कज्जे जीयंमि चले पेमंमि जुत्तीखमं च वयणं जत्तो जत्तो गम्मइ ५११११६ जम्मण-मरण-परंपर जे चोरसुमिणसउणा ५२।११६ जरमरणरोगउ जे वि समसहियनिद्धनिम्मल१०४।१९७ जे सव्वसत्थसललियजलनिबहुल्लसंतडंडीरय ११३।२१ जो चिंतिज्जइ जलबुब्बुयंमि जीए २०५।१०० जललवतरले विज्जुलय जो पुण जाणतो २०३११०० जस्स किर नत्थि पुत्तो ८।४२ जो समो सव्वभूएसु जह तिमिररुद्धदिट्ठी जोणीसहस्साणि बहूणि गंतुं ५५७।२३६ जह नाम कोइ मेच्छो जोव्वणयं पि रूवलायन्न ३६५।२१९ जह समिला पब्भट्ठा ५४७१२३५ जह सयलजलियकाणाण ५७४।२३७ झाएइ वंदणत्थं जंकल्ले कायव्वं २०४१०० जं गयवरकंद वरघडगल)- ५३।३१ | तइयं च दसं पत्तो जं चिय कुंकुमचंदण ३१०।२१४ | तह सत्तुमित्तघरवासजं जेण जत्थ जइया ५४।१५० तं पत्ते य समाणे जं जेण जत्थ जइया ६५।११८ तं चेव इमं देहं जं जेण पावियव्वं ४५।१४७ | तं पि जराअक्कंतं जं नेउररसणखलन्तहार ५४।३१ | ता उज्झिऊण एयं जं पि सुरयंमि सोक्खं ११८।१५६ | ताओ वि तस्स जायाओं ११६३४० ११४।३९ ३२१।२१५ ११७।४० ११६।१५६ ३२०।२१५ ३२६।२१६ ११७।१५६ ६४१ ६९२।२४७ ७४५.२५२ ५६।११६ ५३।११६ २६९।२११ १३०।१९९ ३१९।२१५ ३१८।२१५ ४७।११५ २५।१८९ ६९८।२४८ २८५१२१२ ११४।२१ ३।१५८ ६९४।२४७ ३२८१२१६ ५७५/२३७ ५२१८४ ३१५।२१५ ३१३१२१५ १२१११५६ ७८८।२५७ Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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